Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारानसूत्रे
वशतः प्रगाढ मिथ्यात्वमोहनीयोदयात् प्रगाढमोहाक्रान्त इत्यर्थः । एवं स्वकर्मवशतः परिपीडितमपि नितान्तदयनीयमपि रागद्वेषमोहान्धाः परितापयन्तीत्याह-अस्मिन् लोके' इत्यादि । अस्य व्याख्या पूर्ववत् बोध्या ।
'पश्य' इति पदेन भागवता मां संबोध्य यथोपदिष्टं तथा कथयामीति जम्बूस्वामिनं श्रीसुधर्मा स्वामी मतिबोधयति ।
'प्रव्यथिते ' इति विशेषणपदं च स्वस्वकर्मणैव च स्वस्वकर्मणैव नानाविधवेदनासमन्वितानामपि पृथिव्यादिषड्जीवनिकायानां परिपीडने विषयसुखतृष्णाक्रान्ताना
गाढे मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से मोहयुक्त है । इस प्रकार अपने कर्मों से पीडित और अत्यन्त दयनीय पृथ्वीकाय आदि जीवों को राग-द्वेष और मोह से अन्धे पुरुष पीडा पहुंचाते हैं । ' अस्मिन् लोके ' - ( इस लोक में ) इत्यादि की व्याख्या पहले के समान समझ लेना चाहिए.
'पश्य' (देखो ) इस पद से श्रीसुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि मुझे संबोधन करके भगवान् ने जैसा उपदेश दिया है वैसा ही मैं कहता हूँ ।
'प्रव्यथिते ' पद से यह सूचित किया गया है कि- बेचारे षटूकाय के जीव अपने-अपने कर्मों के कारण नाना प्रकार की वेदनाएँ भोग ही रहे हैं, इस पर भी विषय - सुख के लोलुप लोग उन्हें और सताते हैं । उन्हें दुःखी देख कर भी इनके
અત્યન્ત ગાઢા મિથ્યાત્વમાહનીયના ઉદયથી માહયુક્ત છે. એ પ્રકારે પેાતાના કર્મોથી પીડિત અને અત્યન્ત દયાપાત્ર પૃથ્વીકાય આદિ જીવાને રાગ-દ્વેષ અને માહથી અંધ थयेस चु३ष थीडा पडथाडे छे 'अस्मिन् लोके' (या बोउमां) इत्याहिनी व्याय्या પ્રથમ પ્રમાણે સમજી લેવી જોઈએ.
'पश्य' (लुमो) मा पहथी श्री सुधर्मा स्वामी भ्यूस्वामीने हे छे :મને સંએધન કરીને ભગવાને જેવા ઉપદેશ આપ્યા છે તેવાજ હું કહુ'
' प्रव्यथिते ' यहथी मे सूचित श्वामां आवे छे :- मियारा षडायना लव પાત–પેાતાના કર્મોના કારણે નાના પ્રકારની વેદનાએ ભાગવીજ રહ્યા છે. તે ઉપરાંત પશુ વિષયસુખના લાલુપ માણસો, તેને વધારે સતાવે છે. તેને દુ:ખી જોઈ ને પણ
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ઃ ૧