Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचाराङ्गसूत्रे ॥ छाया ॥ अकार्ष चाई, कारयामि चाहं, कुर्वतश्चापि समनुज्ञो भविष्यामि । एतावन्तः सर्वे लोके कर्मसमारंभाः परिज्ञातव्या भवन्ति ।।सू. ६॥
॥ टीका ॥ 'अकार्ष चाहम्' इति । अत्र 'च'-शब्दोपादानेन भूतकालिककारितानुमोदितक्रियाद्वयस्यापि ग्रहणम्, तेन-(१) अहमकार्षम् (२) अहमचीकरम् (३) अहं कुर्वन्तमन्यमन्वमूमुदम्, इति भेदत्रयं भवति । 'कारयामि चाहम् ' इति, अत्र 'च'-शब्देन वर्तमानकालिककृतानुमोदितक्रियाद्वयस्यापि ग्रहणम् ,। तेन-(१) अहं कारयामि, (२) अहं करोमि, (२) अहमनुमोदयामि, इति भेदत्रयं भवति ।
टीकार्थ-'अकरिस्सं चऽहं' यहाँ जो 'च' का प्रयोग किया है; उस से यह अर्थ समझना चाहिए कि-" मैंने अनुमोदन किया था।" इस प्रकार मैंने किया, करवाया और अनुमोदन किया, तीन भेदों का कथन हुआ है।
_ 'कारवेसुं चऽहं ' यहाँ भी 'च' पद से दो क्रियाओं का ग्रहण होता है, अतः मैं कराता हूँ, मैं करता हूँ, और मैं अनुमोदन करता हूँ; इन तीन भेदों का कथन समझना चाहिए।
___ "करओ यावि समणुन्ने भविस्सामि" यहाँ भी 'च' पद से भविष्यकालीन करने और कराने का अर्थ लेना चाहिए, अतः करने वाले का मैं अनुमोदन करूंगा, मैं स्वयं करूंगा और मैं कराऊंगा । ये क्रिया के तीन भेद समझ लेने चाहिए।
--'अकरिस्सं चऽहं' मा २ 'च' नो प्रयास या छ, तथा से म समान है-'में ४२२०यु तु२ प्रभाओं में प्रयु, ४२२व्यु, અને મેં અનુમોદન આપ્યું, આ ત્રણ ભેદનું કથન સમજવું જોઈએ. ___कारवेसुं चऽहं ' महिं पY 'च' ५४थी मे छियासानु अड थाय छे. तेथी में કર્યું, મેં કરાવ્યું, અને મેં અનુદાન આપ્યું. આ ત્રણ ભેદનું કથન સમજવું જોઈએ.
'करओ यावि समणुने भविस्सामि' मा ५g 'च' ५४थी माविष्यातीन शश અને કરાવીશ. તે અર્થ તે જોઈએ. એ કારણથી “કરવાવાળાને હું અમેદન કરીશ, હું સ્વયં કરીશ અને હું કરાવીશ” એ ક્રિયાના ત્રણ ભેદ સમજી લેવા જોઈએ.
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૧