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प्रास्ताविक अर्थात मेरे धनमें से एक भाग धर्म-कार्यके लिए, दूसरा भाग घर-खर्चके लिए तथा तीसरा भाग सहोदरोंमें बांटनेके लिए है। पुत्रियों और पुत्रोंमें वह भाग समानरूपसे बांटना चाहिए। इससे यह स्पष्ट है कि धनमें पुत्रीका भी पुत्रोंके समान ही समान अधिकार है।
इस तरह मूलपाठशुद्धि, अनुवाद, टिप्पण और अध्ययनपूर्ण प्रस्तावनासे समृद्ध यह संस्करण विद्वान् सम्पादककी वर्षोंकी श्रमसाधनाका सुफल है। प० पन्नालालजी साहित्यके आचार्य तो हैं ही, उनने धर्मशास्त्र, पुराण और दर्शन आदिका भी अच्छा अभ्यास किया है। अनेक ग्रन्थोंकी टीकाएं की हैं और सम्पादन किया है। वे अध्ययनरत अध्यापक और श्रद्धालु विचारक हैं। हम उनको इस श्रमसाधित सत्कृतिका अभिनन्दन करते हैं और आशा करते हैं कि उनके द्वारा इसी तरह अनेक ग्रन्थरत्नोंका उद्धार और सम्पादन बादि होगा।
भारतीय ज्ञानपीठके संस्थापक भद्रचेता साह शान्तिप्रसादजा तथा अध्यक्षा उनकी समशीला पत्नी सौ. रमाजी इस संस्थाके सांस्कृतिक प्राण हैं। उनकी सदा यह अभिलाषा रहती है कि प्राचीन ग्रन्थोंका उदार तो हो ही साथ ही उन्हें नवीन रूप भी मिले, जिससे जनसाधारण भी जैन संस्कृतिसे सुपरिचित हो सकें। वे यह भी चाहते हैं कि प्रत्येक आचार्यके ऊपर एक-एक अध्ययन ग्रन्थ लिखा जाये जिसमें उनके जीवन वत्तके साथ ही उनके ग्रन्थोंका दोहनामृत हो। ज्ञानपीठ इसके लिए यथासम्भव प्रयत्नशील है। इस ग्रन्थका दूसरा भाग भी शीघ्र ही पाठकोंकी सेवामें पहुंचेगा। भारतीय ज्ञानपीठ काशी ।
-महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य वसन्त पंचमी २... "
सम्पादक-मूर्तिदेवी जैन ग्रन्थमाला