Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१०
आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 808888888888888888888888888888888888888888888
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कर्म समारम्भ-हिंसा में प्रवृत्त होने के छह कारण बताएं हैं जो इस प्रकार हैं -
१. अपने इस जीवन के लिये - जीवन को नीरोग तथा बहुत वर्षों तक जीवित रखने के लिये।
२. परिवन्दन - प्रशंसा के लिए। ३. मान - सत्कार-सम्मान की प्राप्ति के लिए। ५. पूजा - प्रतिष्ठा पाने के लिए। ५. जन्म-मरण-मुक्ति - जन्म और मरण से छूटने के लिए। ६. दुःख प्रतिघात - दुःखों से छुटकारा पाने के लिए।
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जीव अज्ञानवश सावध क्रियाएं करता है किंतु जो पुरुष ज्ञानी हैं वे इन क्रियाओं को कर्मबन्ध का कारण जान कर त्याग कर देते हैं। - इन छह कारणों में से पांचवां कारण - जन्म मरण से छूटने के लिए की जाने वाली हिंसा अबोधि (सम्यक्त्व की प्राप्ति दुर्लभता से हो) के लिए तथा शेष पांच कारण इसके अहित के लिए समझना चाहिये।
कर्म बंधन की कारणभूत क्रियाएं कितनी हैं? इसी बात को पुनः स्पष्ट करने के लिए सूत्रकार फरमाते हैं -
(E) एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा भवंति..
भावार्थ - सम्पूर्ण लोक में इतनी ही कर्मबंधन की हेतुभूत क्रियाएं जानने योग्य होती हैं। ... विवेचन - चौथे सूत्र में बताए अनुसार क्रियाएं २७ ही हैं इससे अधिक या कम नहीं अतः विवेकी पुरुषों को कर्मबंधन की हेतुभूत इन क्रियाओं के स्वरूप को जान कर उनका त्याग कर देना चाहिये।
प्रस्तुत सूत्र में दृढ़ता के साथ पूर्व वर्णित विषय का समर्थन करते हुए साधक को क्रियाओं का स्वरूप जानने की प्रेरणा की गयी है। आगे के सूत्र में इनसे विरत की प्रेरणा है -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org