Book Title: Acharang Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - प्रथम उद्देशक - हिंसा के हेतु
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया।
कठिन शब्दार्थ - खलु - निश्चय ही, परिण्णा - परिज्ञा (विवेक), पवेइया - प्रवेदिता-उपदेश दिया है।
भावार्थ - कर्मबन्धन की कारणभूत क्रियाओं के विषय में भगवान् महावीर स्वामी ने परिज्ञा का उपदेश दिया है।
विवेचन - परिष्कृत और प्रशस्त ज्ञान का नाम 'परिज्ञा' है। प्रस्तुत सूत्र में परिज्ञा का तात्पर्य है - कर्मबंधन की हेतुभूत क्रियाओं के स्वरूप को समझना और तदनन्तर उनका परित्याग करना। परिज्ञा के दो भेद हैं - १. ज्ञ परिज्ञा और २. प्रत्याख्यान परिज्ञा। ज्ञ परिज्ञा से वस्तु के स्वरूप को जाना जाता है और प्रत्याख्यान परिज्ञा से हेय वस्तु का त्याग किया जाता है। ज्ञ परिज्ञा ज्ञान प्रधान है और प्रत्याख्यान परिज्ञा त्याग प्रधान है। अतः विवेकी पुरुषों को ज्ञ परिज्ञा से सावध क्रियाओं को जान कर प्रत्याख्यान परिज्ञा से उनका त्याग कर देना चाहिये।
हिंसा के हेतु
इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाइमरणमोयणाए, दुक्ख-पडियायहे। __ कठिन शब्दार्थ - जीवियस्स - जीवन के लिये, परिवंदण-माणण-पूयणाए - परिवन्दन (प्रशंसा) मान और पूजा-प्रतिष्ठा के लिये, जाइमरणमोयणाए - जन्म-मरण से मुक्ति के लिये, दुक्खपडियायहेडं - दुःख के प्रतिकार हेतु।।
- भावार्थ - अनेक संसारी प्राणी इस जीवन के लिये अर्थात् इस जीवन को नीरोग और चिरंजीवी बनाने के लिये, परिवंदन-प्रशंसा, मान-सम्मान तथा पूजा-प्रतिष्ठा के लिये, जन्ममरण से मुक्त होने के हेतु और दुःखों से छुटकारा पाने के लिये हिंसा आदि सावध क्रियाएं करते हैं।
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