Book Title: Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Author(s): Punyavijay
Publisher: L D Indology Ahmedabad
Catalog link: https://jainqq.org/explore/018005/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ATALOGUE OF ANSKRIT ND PRAKRIT ANUSCRIPTS JES ALMER COLLECTION COMPILED BY GENERAL EDITOR SUKH MALVANIA NSTITUTE OF INDOLOGY DABAD-9 MUNI SHRI PUNYAVIJAYAJI INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म म १६ल ना - .. न मतभी स . ५ + anale 4 जी ५ व ५ ५. लि . Y atus है । Featence utमा हो . 14 - Hit+cti+At ज र मी पर anel : ५८ + vain Tirt 4. नालाल ने ३१- १-३१ NMMCL ज 24 ((107 *C » 452 nage 17ncy/2/10 / २८ ।। ५५. मोटी . 5-2512424 ncies प्रति 10.24tHACLE1 241156 / Materia8119/2rms / A5AMM REAT THEA24-- लिटो । 41414 ((टा। सटा कन्या -12 AI nor- STIRI(493e ।। 2 574 1-1-५५ प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नहेरू तथा राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसादका अभिमत Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मी मग माण जिणस्सा मोगराणीक उपतापमथन श्री च्या सेना- जाशी वा मातनयं नाव नित्र्यंनाना निरस्तामयम्॥ छर्दनर गौरापतीसंतापीन पुण्यमहं करो मिशरण श्री पार्श्वनार्थ जिन॥॥ स्वस्तिश्रीनृपविक मार्क संवति २००१चैत्रमासे युक्त पदे एकादशी तिथी बुधवासरे पूर्वष्णुनीनदविश्विर योगे वह श्रीनितलमागे खरंतर गजानं कारयुगपधाना वार्यश्वरश्री जिनसरिजैन ज्ञानमा अगारस्य जीर्णोद्वार विधानादि पुरस्रं पुनः सापनाविहिता अर्थच ज्ञान की ओयुग प्रधा नाचार्य श्रीचिकाइसन पचदशनिमगठकचतुर्थचरखापित पोसीता तदनचतैः प्राचीनतमानां चिनकोनजेनेतर स्त्रविराचार्य विनिर्मितानामतिवकमूल्यानामनच्या जानकारी पिनसह सोन्यश्य खालका गलादि खिताः । खविवाचात्य ज्ञानकोशेहि पुरपत्तनादिचिकोशे पुचस्त्रापिताः। यपि जेसलमेरु स्वातिमहतोज्ञानागारस्थानाधिभिर्मुनिवार्य नरैवावलोकानंगन्य नाम सूची पुस्तक जननेजीणेचारादिकंच व्यधायितचापिगतविक मशतकात डॉ० टॉड-डॉ. बुखर- डॉ. याकोनी डॉ. नाशस्कर-यतिजी श्री मोतीबिजयना-श्रीसविजयजी महाराज श्रीजैन होता घर कॉन्फरन्स मुखई - सी०डी० दलाल-श्रीजिनक पावन्द्रसरि, यी जिनहरिसागर सूरि- भारतीयविद्या नवनाथाचा थीजिनविजयजी यतिनीधी न साची प्रतिनिधिघरे ज्ञान नडार निरीक्षण- पुस्तक लेखन-य-थनामसूचीविधानादिपाण्डित्य सूचकं निरमायातथापिने के ना विविधत्यकाण्डेनैताखागार लीमार उपवाक्यापा-पेखन संशोधनारिक समग्र नावेन वाधायिकि श्रीस इ-पृयोदयात श्रीजेसलमेरु श्री ममसम्मत्यास वी श्रेष्ठापणा श्रीसाजीदारानी सुपुत्रश्रेधिश्रीया यदानजी श्रीराजमनजीत श्रेष्ठिफतेसिंहजी मुथा योर्विज्ञाया श्रीजेसन मेरुतीर्थयात्रा प्राचीन ज्ञान मडारजीर्णोधाराद्यर्य श्री गुर्जरदेशान्न तिराननगरत (मवावादत परिहारेणवित्वावागतैः श्रीतयोग दिनाकरन्यायाजोनिविसंविशारतीयाद्याचार्य पञ्चानदेशीधारक याचार्य श्री विनयान इस रिश्रीश्रात्मारामजी महाराज) शिथाऽगहि जैन ज्ञानमा डामारो वारक वर्तक कवि विजयातेवासिलीनी पतिमगर प्राचीन ज्ञानाधारक श्री श्रात्मानधन यन्यमाला सम्पादक सुनिवरश्री चतुरविज (शशाशिनः सराय निकाम पुनः सह संशाने कर्मनिश्री विजय स्त्रहरुबंधुपादश्री विजयनी महाराज वायातितैः पूज्यपवस्वास्त्रिचडामणिश्रीहं वि विनीतनावपूर्णज्ञांश श्रीसमासविजयजी शिक्षा अनेक संशोधनऽतिलिपिविधान प्रवीण मुनि श्री रमणीक विजयजी में गुते खशिघ श्रीजयन्नद विजयजीपरिवृ तिनमनज्ञानकोशन्यलेखन संशोधन-पृथक्करण-विष्यविधानादिना सर्वाणोजीकारी विहितः प्रपिचेत भडार जीणोदारादिसमरत कार्ये कार्यवा श्वान्यायतीव जाणवतेहचंद्रो नी कुलभूषण:पडितश्री मृतजातः सतत संवोधनादिजीन परितश्रीनगीन रासो जेस्वनकला पवीण नीजक चीमन जायतेचारोऽवि सतत महाविनास्या राजनगरीय श्री राजरात विद्यासनया चीयनपहिताः नटली एम.ए. न्यायाचार्याय ज्ञानकोशस्त्र दार्शनिकयन्यसंगी विकास तात्याजीगरायोग्य त्याच कार्येमोनीलमणदास रसिकजालश्चापि सायिनावनुताम्। रसवंतीकारको वीरमादवसितावतो साहभावेन सर्वेषामानदायिनी नूनामा पितीणी दारार्थसमस्ताऽयादिवताश्रीजैन प्रेतांबर कॉन्फरन्स बघई संख्या विहितात विवस्वास हिलपुर तन वास्त ज्ञान श्रेष्ठका चात्मजश्री केशव जाल मत्प्रेरणयापत्तनी यो दार चेतरक- जिनवचनानु भिमादेवि पटला सुगीचीमन वाले नात्मीय ज्ञानावरणीयादिकिष्टकर्मनिर्जरादिनिर्मिता अपरान् कामपछिका दवरक वस्त्रवेष्टनमा महापा(कबाद) विश्या वी निकालाको फिलिंग फोटोग्राफ विश्याच वागवस्त्राविद्या १०००० कोटी ६:३० २०० श्री मेघ २००० कटक नाश्री संघ २००० ज्ञानमंदिरपरा बदन जसकोर व्हेइरा कोशापक समस्य श्रेष्ठता श्री रतन लाल जीन श्रीजेन खे० कॉ० कार्य करविज्ञातत्तखानीय श्री सहै विहिना। तथा श्री गोडीजी जैन श्रीस हम चंदनाई पेद्रई२५०० वडोदराजानी तेरी श्रीसंघ१५१ वडोदरा श्री आत्मारामजी बगनेसाल लक्ष्मी व सर्वसहायका रिन्योऽयुपयोगि साहाय्य श्री नेसलमेरुराय रामजी सिंहजी तावश्रियायदान जी जागा-श्रेतिश्री केशरीमलजी जनाणी सुड परिवाराश्चति निर्वनि-एननिर्मलज्ञानमक्तिशालिग सोडा को समर्पितयेन ज्ञानकोश व विसौकर्य समननिय पिधायामासाधक समय अनिवरित नितिन श्री सनारकर यासि विखोजक चीन जालना जीणी मेलामाइन वीरवर२४९३८ ॥ श्री गावाकयानसर पहनाकर श्रीविजयवन सरिक्षसामान्यख महागणारा धीरघुनाथ संघजी साहब नव॥श्री श्री जिनभद्रसूरि ज्ञानभंडारके जीर्णोद्धारका शिलालेख Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NEW CATALOGUE OF SANSKRIT AND PRAKRIT MANUSCRIPTS JESALMER COLLECTION L. D. SERIES 36 COMPILED BY GENERAL EDITOR MUNI DALSUKH MALVANIA SHRI PUNYAVIJAYAJI भारतीय L. D, INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9 38 222 For Private & Personal use only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) Printed by (1) Text pp. 1-472 Shantilal Vadilal SI Manorath Printery Kalupur, Tankshal Ahmedabad-1 Introduction etc. Ranjanben Dalal Vasant Printing Preg Gheekanta, Ahmedabad. and Published by Dalsukh Malvania Director L. D. Institute of In Ahmedabad-9 FIRST EDITION AUGUST, 1972 PRICE RUPEES 401- Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ا فيني الا علم و दलपत भाई भारतीय व संस्कृति ि विद्यामंदिर य जेसलमेरुदुर्गस्थहस्तप्रति संग्रहगताना संस्कृतप्राकृतभाषानिबद्धानां ग्रन्थानां नूतना सूची सङ्कलयिता मुनिराज श्री पुण्यविजयजी प्रकाशक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अहमदाबाद - ९ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOREWORD We are happy to publish the Now Catalogue of the various mss. collections at Jesalmer. This was prepared and got printed by Rev. Muni Shri Punyavijayaji who is no more with us. During his life-time the printing of this Catalogue was finished but due to his other engagements he was not able to write the Introduction. So, the publication was delayed. The expenses of preparation and printing were borne by the Svetămbara Jaina Conference of Bombay and we are much grateful to the authorities of this Conference for allowing us to publish the Catalogue. The first Catalogue was published in 1923 A. D. in the G.O.S. Vol. No. 21. It was compiled by Shri C. D. Dalal and was edited with Introduction etc. by Pt. L. B. Gandhi. Therein we find the entries of the mss. as follows: 1) Bada Bhandar palm-leaf mss. 347 Badā Bhaņdār paper mss. 18 2) Tapagaccha Bhandar Palm-leaf mss. 9 Tapagaccha Bhandar Paper mss. 3) Tharu Shah Bhandar paper mss. 400 In this New Tesalmer Catalogue the entries of mss. are as follows: pp. 1-173 Collection of Jinabhadra in the Fort-(Badă Bhandar) Palm-leaf mss. 402 173-180 Paficano Bħaņdar. Palm-leaf mss (No. 404-426 ) 93 PP. 181-291 Collection of Jinabhadra Paper mss. (In 83 Pothis). 1330 292-357 Vadāupashraya in the Fort - paper mss. (No. 1831-2257) 997 358-360 Tapagaccha Collection. Palm-leaf mss. pp. 361-363 Lonkāgacchiya Collection Palm-leat mss. 364 Tharushab Collection Paper mss. pp. pp. 9691 1. It should be noted that in one mss, there may be more than one work. 2. This was previously in the City but now it is kept in the fort. 3. This collection is of Vegadagaccha. 4. This collection is of Vegadagaccha. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ This comparison shows the value of this Catalogue. Introduction to this Catalogue is written by Pt. Amratlal Bhojak. Pt. Bhojok was with Rev. Muniji in Jesalmer and had good fortune to be trained by Rev. Muniji. We are thankful to Pt. Bhojak for his informative Introduction. We hope that this Catalogue will be useful to the interested scholars, provided the mss. in the Collection are made available by the authorities. Some important mss. of the Collection were microfilmed by the efforts of Rev. Muniji and some of the microfilm roles are handed over to us, but some of the roles are with Pt. Fatehchand Belany. We have proposed to microfilm the mss. of which we have no roles. We hope that the authorities at Jesalmer will allow us to finish the work so that the world of scholars may be able to utilize the Collection. L. D. Institute of Indology Ahmedabad-9. 15th Aug. 1972. Dalsukh Malvania 1. See Introduction p. 22. but of them Roles Nos. 1-5 are with us. Director Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थानुक्रम प्रस्तावना माचार्य श्रीजिनभद्रसूरि संस्थापित ताडपत्रीय ग्रन्थ भंडारनुं सूचिपत्र पंचनो भंडार - खरतरगच्छीय बडा उपाश्रयना भंडारना ताडपत्रीय ग्रन्थोनुं सूचिपत्र तृतीयं परिशिष्टम् जेसलमेरु दुर्गस्थज्ञानभंडारगत ग्रन्थप्रान्तस्थित लेखक पुष्पिकाद्यन्तताना मैतिहासिकोपयोगिविशेषनाम्नामकारादिवर्णक्रमेण सूची चतुर्थ परिशिष्टम् वि. सं. १८०९मां नोवेली जेसलमेरना ज्ञानभंडारनी टीप-सूची पञ्चमं परिशिष्टम् पृ. १७४- ८० पृ. १८१-२९१ आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिज्ञानभंडारस्थित कागळ उपर लखेला प्रन्थोनुं (श्रीवे गडगच्छीय ग्रन्थभंडारनुं) सूचिपत्र स्वरतरगच्छीय वडाउपाश्रयना भंडारना कागळ उपर लखेला ग्रन्थोनुं सूचिपत्र पृ. २९२ - ३५५ प्रस्तुत सूचिपत्रना पृष्ठ ६४ क्रमांक १७८ (१) 'बन्घस्वामित्ववृत्ति' नी ग्रन्थकारनी प्रशस्ति प्रस्तुत सूचिपत्रना पृष्ठ १८९ पोथी ८मीना खंडित क्रमांको प्रस्तुत सूचिपत्रना पृष्ठ २८१ पोथी ६५-६६ ना क्रमांको प्रदर्शनी मंजूषामां (शोकेसमां) मूकेली वस्तुओनी सूचि तपागच्छीय ज्ञानभंडारगत ताडपत्रीय ग्रन्थो लोकागच्छीय ज्ञानभंडारगत ताडपत्रीय प्रतिभो थाहरूशाह ज्ञानभंडारना बे ग्रन्थोनो परिचय ( उदाहरणरूपे) प्रथमं परिशिष्टम् - जेसलमेरु दुर्गस्थज्ञानभंडारगतमन्थानां अकारादिवर्णक्रमेण सूची द्वितीयं परिशिष्टम् - जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडार सूचीस्थितग्रन्थकर्तृनाम्नामकारादिवर्णक्रमेण सूची वि० सं० १९४१ मां कपडवंजना श्रीसंघ तरफथी मोकलेल यति श्री मोतीचंदजीए नोघेली जेसलमेरमा ज्ञानभंडारमी टीप-सूची षष्ठं परिशिष्टम् - आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराजे जेसलमेरना भंडारनो समुद्धार कराव्योतेनी संक्षिप्त माहिती दर्शावता शिलालेखनी वाचना पृ. पृ. १- ३५ १-१७३ पृ. ३५५ मुं पृ. ३५६ मुं पृ. ३५६ मुं पृ. ३५७ मुं पृ. ३५८- ६० पृ. ३६१- ६३ पृ. ३६४ मुं पृ. ३६५ - ९६ पृ. ३९७-४०७ पृ. ४०८- ४० पृ. ४४१- ५० पृ. ४५१- ६८ पृ. ४६९- ७१ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमप्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी विक्रम-१९५२-२०२७ Jan Education Intemational Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जयन्तु वीतरागाः ॥ प्रस्तावना जेसलमेरनो परिचय __ जेसलमेरना प्राचीन ज्ञानभंडारोनो परिचय मेळव्या पहेलां मापणे सामान्य रीते जेसलमेरनु प्रादेशिक निरीक्षण करी लईए ए उचित छे. जेसलमेर ए, राजपुतानानी वायव्य सरहदे, पाकिस्ताननी सरहदनी लगोलग आवेला एक नाना देशीराज्यनुं पाटनगर हतुं. आजे आ राज्यने हिंदी संघमा मेळवी देवामां आव्युं छे. पहेलां गुजरातथी जेसलमेर जवा इच्छनारे रेलमार्गे भारवाड जंक्शनथी जोधपुर थई पोकरण पहोची त्यांथी मोटर मारफत जेसलमेर जg पडतुं. हवे पोकरणथी रेलमार्गे ज जेसलमेर पहोंची शकाय छे, रेल्वे थई जवाने कारणे एक समये अति अगवडभरी गणाती यात्रा आजे सुगम बनी गई छे. कुदरती वातावरणनी अनेकविध प्रतिकूळताओ छतां मा नगर पोतानी समृद्धिथी प्राचीन युगमां केटलं झळहळतुं हतुं अने अना आंगणे केवु महत्वनुं कळा, शिल्प-स्थापत्य अने साहित्य- सर्जन थयुं हतुं एनी साक्षी अहींनां संख्याबंध जैन-जैनेतर मंदिरो, जैन ज्ञानभंडारो भने जैन पटवाओनी भव्य कळापूर्ण हवेलीओ तेमज तेमां रहेली अनेक प्रकारनी साधनसामग्री पूरे छे. रणवगडा जेवा विकट अने वेरान दीसता आ प्रदेशमा एक काळे केवा कळाविदो अने कळाघरो जीवता जागता हता ए आजे विद्यमान अहींनी प्राचीन कळाकृतिमओ भने अनेकविध अवशेषो उपरथी आपणे कल्पी शकीए छीए. आ नगरनी प्रासपास आजे पण नानां मोटां संख्याबंध तळावो छे. वरसाद नो सातआठ इंच जेटलो वरसे तो आ प्रदेशनी प्रजा माटे पाणीनी बे-त्रण वरस सुधी नीरांत थई जाय छे, परंतु कुदरतनी बलिहारी मानो के गमे ते कारणे, आ प्रदेशमा मेघराजानी अटली महेर पण नियमित रीते थती नथी. एटले अहींनी प्रजा माटे 'पाणीनी तंगी' ए सामान्य वस्तु गणाती हेती. अहोंनी भूमि मोटे भागे पत्थरोया होवाने लीधे सामान्य रीते खेतीवाडी माटे उपयोगी नथी. छता अमुक जमीन एवा पण छ, जेमां चाल अमुक अनाज उगाडवामां आवे छे. शाक-भावी वगेरे आ प्रदेशमां ऊगतां नथी; ऊगी न ज शके तेवू तो नथी लागतुं, पण प्रजाना स्वभावमा पा १. भाम हने जेसलमेरमां पाणीमा नळ थवाथी पाणीनी सगवड थई छे. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषेनो उद्यम ज नथी. प्राचीन काळथी एटलं गाता रहे छे के "अठे तो धान के साथ धान सावारो हे" एटले अहीं व्यंजन (साक) तरीके मोटे भागे मग, अडद, चोळा के चणानो भने एनी दाळनो न वपराश थाय छे. ए उपरांत व्यंजन तरीके सांगरी, केर, कुमठी, बावळना पैडॉ वगैरेनी सुकवणीनो उपयोग अमुक प्रमाणमां अहीं थाय छे. दूध-घी अहीं ठीक ठीक मळे छे. आजी लगभग सो-सवा सौ वर्ष पहेला जेसलमेरमा २७०० जेटलां जैन घरो हता. पण प्रादेशिक विषमता अने राज्यनी अव्यवस्था आदिने लीधे वेपार-धंधाओ नष्ट थवाने कारणे प्रजा क्रमे क्रमे देश-देशांतरमा जती रही छे अने आजनी परिस्थितिमां तो ए विषे काई कहेवानुं व न होय. ममे जेसलमेर हता त्यारे (ई. स. १९५०-५१मां) जैनोना मात्र सत्तावोस घर व हता. अहींनी मुख्य पेदायश पत्थरोनी छे. ए पत्थरोमां मारेसनी जातिने मळतो पीळो पत्थर अहीं ठीक ठीक प्रमाणमां पाके छे, ए काईक पोचो होई तेमां कोतरणी के नकशी सरळताथी बनावी शकाय छे. अमरसागरनां कळापूर्ण जैन मंदिरो अने जेसलमेरमांनी पटवाओनी भव्य हवेलीओ आ ज पाषाणनी एक सरखी जातिने पसंद करीने बनाववामां आवेल छे. जेसलमेरनां जैन मंदिरो भने तेमांनी हजारोनी संख्यामा विद्यमान मूर्तिो पण आ ज पाषाणमांथी निर्मित थयां छे. कुदरती रीतेज जेमां अनेक रंग-विरंगी भातो अने आकृतिओ देखाय तेवी वींछीया वगेरे पत्थरनी जातिओ पण अझै पाके छे, पण तेनुं प्रमाण घणुं ओछु छे. आथीज अहींनां मंदिरोमां एनो खास उपयोग नजरे पडतो नथी। जेसलमेरनां जैन मंदिरो ___जेसलमेरगाममा मात्र नानुं सरखं अने लगभग सादुं गणी शकाय तेवु तपगच्छनु जैन मंदिर छे. जेने आपणे भव्य अने कळापूर्ण कहीं शकीए एवां मंदिरो तो अहींना टेकरी उपरना किल्लामां आवेलां छे. अहींनो किल्लो एटले ऊंचाईमा प्रायः तलाजा (सौराष्ट्र) जेवी टेकरी (लगभग ५००६०० फीट ऊंची) समजवी जोईए, परंतु किल्लाना उपरना भागनो विस्तार एटलो बधो छे के जे एक नानुं सरखं नगर गणी शकाय. किल्लामा अहींना महाराउलजीना महेल, संख्याबंध जैन जैनेतर मंदिरो उपरांत आमप्रजानां घरो पण ठीक ठीक प्रमाणमां छे. किल्लामां पाणी वगेरे साधनोनी सगवर होवाने कारणे युद्धना प्रसंगोमां आ किल्लाए राज्यनुं सारी रीते रक्षण कयु छे. किल्लामा लक्ष्मीनारायण आदि मंदिरो पण अनेक छे, तेम छतां जेमां विविध कळाओना जीवता नमूनाओ छे ते जैन मंदिरोनो ज मात्र अहीं परिचय आपवामां आवे छे. किल्लामां बधां मळोने आठ जैन मंदिरो छे, जे विक्रमना पंदरमा शतकना चतुर्थ चरणमां अने सीळमा शतकना प्रथम चरणमा विषमान स्वरतरगच्छीय समर्थप्रभावक आचार्य श्री जिनभद्रसूरिप्रवरना उपदेशथी बनेलां छे. आज भाचार्यना उपदेशथी संभातनिवासी गूर्जरज्ञातीय श्रेष्ठी धरणाके अने श्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठी बलिरान उदयराजे लखावेली संख्यावंध ताडपत्रीय पोथीओ अहींना ज्ञानभंडारमा विद्यमान छे, जेने विधे Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगळ विशेष कहेवाशे. जेसलमेरना आ भव्य मंदिरोनो विस्तृत महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक परिचय स्व. श्रीयुत् पूर्णचन्द्रजी नहारे तेमना "जैनलेखसंग्रह जेसलमेर भाग ३"मां आप्यो छे, एटले अहीं प्रसंगवश ज मा मंदिरोनो मात्र अमुक लक्षथी ज ढूंक उल्लेख करवामां आवे छे. मंदिरोमां केवी कळानुं सर्जन करवामां आव्यु छे तेनुं दिग्दर्शन उपरोक्त नहार बाबुजीना पुस्तकने आधारे थई शकशे. तेम छतां मा मंदिरो पैकी अष्टापदजी चिंतामणिपार्श्वनाथ अने आदीश्वर भगवानना मंदिरमां, खास करीने मूळ मंदिरनी प्रदक्षिणामां पडती त्रणे बाजुनी भींतोमां अने ते उपरांत मंदिरनां तोरणो, कमानो अने गुंबज मादिमा जे देव-देवीओ वगेरेनां तेमज नृत्यकळानी विविध भंगीओ, अंगभंगो अने मुद्रामोने दर्शावतां रूपो घडवामां आव्यां छे ए, शिल्प-स्थापत्यकळा अने नृत्यकळा विशारदने माटे एमनी कळामां प्राण पूरी शके एवी रसप्रद वस्तु छे, आ पंक्तिओ वांचनारने प्रथम नजरे जरूर मामां मतिशयोक्तिनो भास थशे, छतां हुं माशा राखुं छु के आ कळाकृतिओने नजरे जोया पछी अथवा एनी प्रतिकृति (फोटोग्राफ्स) जोया पछी एमनो ए ख्याल जरूर दूर थई जशे. आ विशिष्ट भने दैवी कलापूर्ण रूपो जोतां आपणने एम जरूर लागे छे के ए रूपोना घडवैया शिल्पीओने आ अंगे घणुं ऊंडु ज्ञान हशे अने तेमो सिद्धहस्त हशे. आ रूपो पैकी केटलांक रूपो तो आपणने एवां जीवतां जागतां भासे छे के जाणे हमणां ज बोली के हसी ऊठशे ! अमरसागरनां जैन मंदिरो जेसलमेरथी पांच माईलना अंतरे आवेला अमरसागरमां जेसलमेरना बाफणा कुटुंबे बंधावेला मंदिरनी बहारनी विशाळ जाळी अने अन्दरनो भाग ए बेमा जे नकशी छे ए, आपणने अमदावादनी मसजीदो अने हठीभाईनी वाडीना मंदिरनी नकशीमोने घडीभर भुलावी दे तेवी छे. जेसलमेरथी दसेक माईलना अंतर उपर आवेलं लोदवाजीनुं मंदिर पण प्राचीन अने भव्यरचनापूर्ण छे.' अनवरत साहित्यसंशोधक गुरुवर्य श्री चतुरविजयजी महाराज अने अनेक ग्रन्थभंडारोना उद्धारक विद्योपासक प्रगुरु प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महाराज साहेबनी निश्रामां प्राचीन ग्रंथोना संशोधनकार्यमा अने प्राचीन ज्ञानभंडारोना संरक्षणादि कार्यमा बाळपणथी न जोवा-शीखवा अने तैयार थवानुं सौभाग्य आगमप्रभाकरजी मुनिराज श्री पुण्यविजयजीने प्राप्त थयेलं. ज्यारथी विद्वदर श्री सी. डी. दलाल द्वारा संपादित जेसलमेरना ज्ञानभंडारनी सूचि जोई त्यारथी ज जेसलमेरना ज्ञानभंडारोनुं निरीक्षण-संशोधनादि कार्य करवानुं बीज पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीना १. भहीं सुधीनी प्रस्ताबनानुं प्राथमिक रीते तैयार करेलु मेटर पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी श्रुत-शीलबारिधि विद्वरेण्य मुनिप्रवर श्री पुण्यविजयजी महाराज साहेबे लखेलं मळी आम्युं छे जे यथावत् आप्युके. हवे पछीको प्रस्तावनानो कोईक भाग पू. पा. आगमप्रभाकरजोनी टी-छवाई नौधोना आधारे तथा शेष मुद्रित सूचीपत्रमाथी स्वतंत्र रीते तारवीने आपवामां आग्यो. Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरमा रोपायु हतुं. आमां, अहीं जणाव्यु तेम, तेमना गुरु-प्रगुरुजीनो संशोधन क्षेत्रनो बारसो प्रधान वस्तु छे. त्यार बाद वि. सं. १९९९ मां पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजीए, तेमना विद्वन्मंडल साथे जेसलमेरना भंडारो जोवा अने उपयोगी सामग्रीनी नकल करवा-कराववा माटे पांच मास पर्यंत जेसलमेरमा जे कार्य कर्यु ते प्रत्यक्ष सांभळीने पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीनी जेसलमेर जवानी वृत्तिने वधु प्रोत्साहन मळ्यु. जा पछी सात वर्षना अंतरे जेसलमेर श्रीसंघनी तीर्थयात्रा प्रसंगना मेळा माटेनी योजना अने विनंति थतां तेओश्रीए जेसलमेर जवा माटे, वि. सं. २००६ना कार्तक वदि ७ ना दिवसे कपडवंजथी विहार करीने कार्तक वदि अमावास्याना दिवसे साबरमती आवीने वि. सं. २००६ना मागसर सुद १ ना दिवसे साबरमतोथी विहार को. अने वि. सं. २००६ना माह सुदि १२ ना दिवसे जेसलमेरमा प्रवेश कर्यो. ते ज दिवसे तेमनी सायेनुं विद्यामंडळ पण जेसलमेर पहोंच्यु मने बराबर स्मरण छे के कपडवंजथी जेसलमेरना मार्गमां पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी अमदावाद, पाटण वगेरे जे जे स्थानोमां गया त्यां कोई पण समुदाय के गच्छना जे जे वडिल गुरुवरो हता तेभनी पासे जईने तेओए जेसलमेरना ज्ञानसंशोधनादि कार्य माटे विनीत भावे शुभाशीर्वाद मेळया हता. जेसलमेरना जैन ज्ञानभंडारो' जेसलमेरना ज्ञानभंडारोनी विशेष महत्ता तेमा रहेली प्राचीन-प्राचीनतम प्रतिओ अने केटलाक अन्यत्र अप्राप्य ग्रंथोने कारणे छे. आनो अर्थ ए नथी के गुजरात वगेरे प्रदेशोमां आवेला ज्ञानभंडारोनुं महत्त्व एथी ओळु छे. पाटण, खंभात, अमदावाद, सूरत अने अन्य प्रदेशोमां रहेला ज्ञानभंडारोमां एवा घणा ग्रन्थो छे, जेनुं मूल्यांकन आपणे जेसलमेरना ग्रंथोथी जरा पण भोछु न लेखीए. अर्थात् पाटण-खंभातना ताडपत्रीय ज्ञानभंडागेनी जेम ज जेसलमेरना ताडपत्रीय ज्ञानभंडारनुं स्थान छे. जेम जेसलमेरना भंडारमा अन्यत्र अप्राप्य अने प्राचीनतम विशिष्ट ग्रन्थो छे तेवू पाटण अने खंभातना भंडारोना संबंधमां छे. जेसलमेरना ज्ञानभंडारनुं सविशेष महत्त्व ए कारणे छे के सौप्रथम तो त्यां जq ए मुश्केल छे, त्यां गया पछी ए भंडारोने जोवानी अनुकूळता मळवी मुश्केल छे. अने पूरती धीरजथी आखा भंडारने तपासवान कार्य तो घणुंज अघरं छे. आ परिस्थितिमां ए ज्ञानभंडारोनुं निरीक्षण बहु ओछु थयुं होई तेमांना साहित्यनो ख्याल भने उपयोग घणा ओछा करी शक्या छे. तेथी विद्वानोना मनमां तेनी महत्ता आज पर्यन्त जळवाई रही छे. जे जे विद्वानो त्यां गया तेमणे सौए पोता पूरतुं अमुक कार्य कर्यु होई तेनो व्यापक परिचय १. जेसलमेरना ज्ञानभंडारोना विविधविषयक ग्रन्थोना परिचय माटे पं. श्री लालचन्द्र भगवान गांधीए लखेली श्री सी. डी. दलाल संपादित "जेसलमेर जैन भाण्डागारीयग्रन्थानां सूचिपत्रम्” (सेंट्रल लाइब्रेरी-वडोदरा द्वारा प्रकाशित) ग्रन्थनी पांडित्यपूर्ण प्रस्तावना जोवा भलामण के. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौने न मळवाने कारणे ए भंडारो विषेनी जिज्ञासा विद्वद्वर्गमा अहर्निश बनी रही छे. आ भंडारनी महत्तार्नु आगq उपलक्षण आज छे. बाकी भारतमा स्थान स्थानमा जे ताडपत्र के कागळ उपर लखायेल ग्रन्थोना संग्रहो छे ते बघा घणो घणी दृष्टिए महत्त्वना छे. ढूंकमां एम पण कही शकाय के गुजरात वगेरेना भंडारो घणीवार आपणा जोवामां आव्या होई ए विशेनी नवाई आपणा मनमां रहे ते करतां जे भंडारो जोवाया न होय ते विषेनी नवतरता आपणा मनमा सविशेष रहे ए स्वाभाविक छे. अस्तु. जेसलमेरमा कुल दस जैन ज्ञानभंडारो छ१ किल्लामां श्री संभवनाथजीना मंदिरना भोयरामां आवेलो श्रोजिनभद्रसूरिज्ञानभंदार. २. वेगडगच्छीय ज्ञानभंडार. ३. खरतरगच्छीय वडा उपाश्रयनो अथवा पंचनो ज्ञानभंडार. ४-५. खरतरगच्छीय वडा उपाश्रयमा आचार्य श्री वृद्धिचंद्रजी यतिश्रीनो ज्ञानभंडार अने यति श्री लक्ष्मीचन्द्र जी महाराजनो ज्ञानभंडार. ६. आचार्यगच्छना उपाश्रयमांनो ज्ञानभंडार. ७. स्वरतरगच्छीय श्री थाहरूशाहनो ज्ञानभंडार. ८. यति श्री डूंगरजीनो ज्ञानभंडार. ९. लोकागच्छनो ज्ञानभंडार. १०. तपागच्छनो ज्ञानभंडार. आ भंडारोमांना लोकागच्छीय भने तपागच्छीय ज्ञानभंडार सिवायना बाकीना आठ भंडागे खरतरगच्छीय छे. - प्रथम बे नंवरना ज्ञानभंडारो तो किल्लामां साये ज हता ज्यारे त्रीजा नंबरनो वडाउपाश्रयनो ज्ञानभंडार पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए जेसलमेरना श्रीसंघने समजावीने किल्लामां मूकाव्यो . पांचमा नंबरवाळो यति श्री लक्ष्मीचन्द्रजी महाराजनो भंडार तेओश्रीए पोते वि. सं. २००७ मां श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर (पाटण-गुजरात) ने समर्पित करेलो होवाथी हाल ने भंडार पाटणमां छे. अही जणावेला जेसलमेग्ना तेमज अन्यान्य स्थानोमा रहेला प्राचीन जैन ज्ञानभंडारो, ए, केवल जैन धर्मना ग्रन्थोना संग्रहरूप ज नथी पण तेमां ब्राह्मण अने बौद्ध ग्रन्थो पण जैनोए लखावीने संग्रहेला छे. आमां एवा पण कोइक अजैन ग्रन्थो के जेनी प्रति अन्यत्र मळती नथी, अने एवा पण अजैन ग्रन्थो छे, जेनी प्राचीनमां प्राचीन नकल जैनभंडारोमा ज मळती होय. आ दृष्टिए Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा भंडारोमा भारतीय वामयना प्राचीन-प्राचीनतम प्रन्थो सचवाया छे. एमां शक नथी; मळवत, भामां जैनधर्मना ग्रन्थोनी बहुलता होय ए स्वाभाविक के. __ उपर जणावेला जेसलमेरना ज्ञानभंडारो पैकीनो छदा नंबरवाळो आचार्यगच्छना उपाश्रयमांनो भंडार तथा माठमा नंबरवाळो श्रीडूंगरजी यतिनो भंडार जोवानी मुविधा पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीने मळो न होती. तेमज दसमा नंबरवाळो तपागछनो मंडार जेसलमेरथी नौकळवाना थोडा दिवसो पहेलां जोवानी सगवड यई हतो, ज्यारे सातमा नंबरवाळो श्री थाहरूशाहनो भंडार तो सलमेरथी विहार करवाना बे-चार दिवस पहेलां एक दिवस माटेज जोवानी तक मळी हती. बाकीना भंडारो तेमोश्रीए संपूर्ण जोया के. तेमांय भौजिनभद्रसूरिज्ञानभंडार, वेगडगच्छीय ज्ञानभंडार भने खरतरगच्छीय वडा उपाश्रयनो अथवा पंचनो शानभंडार, एम त्रण ज्ञानभंडारोनो संपूर्ण सुरक्षा तथा व्यवस्था भने सूचीपत्र करवामां आवेल के. परबत, तपागच्छीय भंडार अने लोकागच्छीय भंडारमा रहेली ताडपत्रीय प्रतिमोनुं सूत्रीपत्र करवामां भाव्यु छे, अने थाहरूशाहना भंडारनी कागळ उपर लखायेली मात्र बे प्रतिओनोज परिचय आप्यो . जे त्रण भंडारोना संपूर्ण समुद्धारनुं कार्य करवामां आव्यु छे ते भंडारोनी विशेष माहिती नीचे प्रमाणे के १. श्रीजिनभद्रसरि जैन ज्ञानभंडार आ भंडारनी स्थापना खरतरगच्छीय युगप्रधान आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीए विक्रमना पंदरमा शतकना उत्तरार्द्धमां करेली छे. व्यवहारभां आ भंडार 'बडो भंडार' ना नामे ओळखाय के. मा आचार्यश्रीना उपदेशथी खंभातनिवासी परीक्षक-परीख धरणाशाहे घणा ग्रंथो ताडपत्र उपर लखावेला, जेमांना ४८ ग्रंथो आज पण आ भंडारमा बिद्यमान छे. ते उपरांत खंभातनिवासी श्रेष्ठी श्री उदयराज अने श्रेष्ठी श्री बलिराज नामना भ्रातृयुगले पण आ आचार्यश्रीना उपदेशथी अनेक ग्रंथो ताडपत्र उपर लखावेला होवा जोईए, आ बे भाईओए लखावेला छ ग्रंथो आ भंडारमां विद्यमान छे. श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर (पाटण)मा रहेला श्री वाडीपार्श्वनाथज्ञानभंडारनी स्थापना पण आ ज आचार्यश्रीनी प्रेरणाथी थई हती. आ भंडारमा विक्रमना पंदरमा शतकना अंतमां श्री जिनभद्रसूरिना उपदेशथी कागळ उपर लखा येला जैन आगमादि साहित्य उपरांत काव्य, कोश, अलंकार, छंद अने दर्शनशास्त्रना पण महत्त्वना ग्रंथो छे. आथी आ आचार्य श्रीनी विविध विद्याशाखाओ प्रत्येनी रुचि, आदर अने प्रेरणा विशेष उल्लेखनीय बनी जाय छे. वाडीपार्श्वनाथज्ञानभंडारमा केटलाक ग्रंथो एवा छे जे जेसलमेरना ज्ञानभंडारनी ताडपत्रीय प्रतिनी नकलरूपे छे. आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीना Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपदेशथी जेसलमेर, जावाल, देवगिरि, अहिपुर (आहोर), पाटण (गुजरात), मंडपदुर्ग, आशापकी अने खंभातमां ज्ञानभंडारोनी स्थापना थई हती (जुओ पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी संपादित ' विज्ञप्ति त्रिवेणी' नी प्रस्तावना, पृ० ५७ - ५८.) प्रस्तुत श्री जिनभद्रसूरिज्ञानभंडारमां परीख घरणाशाह अने श्रेष्ठी श्री उदयराज बलिराजे न खावी होय तेवी प्रतिओने विक्रमना बारमा शतकना पूर्वार्द्धथी लई पंदरमा शतकना उत्तरार्द्ध सुधीमां जुदा जुदा महानुभावोए लखावेली छे. सौथी प्राचीनतम प्रति विशेषावश्यक महाभाग्यनी छे, जे विक्रमना दसमा शतकना पूर्वार्द्धमां लखायेली छे, जुओ क्रमांक ११६. प्राचीनता भने लिपिनी दृष्टिए आ प्रति असाधारण महत्त्वनी छे. आ भंडारमां लांबा अने का मापनी कुल ४०३ ताडपत्रीय प्रतिओ छे, प्यारे तेमां पेटा नंबरोमां आवता नाना मोटा ग्रंथो मळीने कुल ग्रंथसंख्या लगभग ७५० थी पण उपर थाय है. आमां अहीं जणावेल विशेषावश्यकमहाभाष्य, सर्वसिद्धान्तप्रवेश, तत्व संग्रह, सांख्यकारिकानी टीकाओ, मलबादीनुं धर्मोत्तर टिप्पन, पादलिप्तसूरिकृत ज्योतिष्करण्डकनी टोका, ओघनिर्युक्तिभाष्य, गुणपालकृत जंबूचरियं अने चन्द्रलेखाविजयप्रकरण आदि अनेक अलभ्य दुर्लभ्प ग्रंथो आ भंडारमां छे. आ सिवाय जैन आगमो, तेनी व्याख्याओ, व्याकरण, काव्य, कोश, अलंकार, छंद अने दर्शनशास्त्राना प्राचीन प्राचीनतम महत्वना ग्रंथो आमां के, जे अभ्यासी अन्वेषको आ सूचीपत्रमाथी जाणी शकशे. आ उपरांत जेनुं अमुक दृष्टिए वैशिष्ट्य होय तेवी प्रतिओमांथी केटलीक उदाहरण फूत अहीं जणाववामां आवे छे - १. भगवती सूत्रवृत्ति (क्रमांक १५) आ प्रतिनां पत्रो अतीव सुकुमार छे. २. वि. सं. १२०७ मां अजमेरनो भंग थयेलो ते समये त्रुटित थयेली पंचाशक प्रकरण लखीने संपूर्ण करी हती. आ प्रतिनो क्रमांक १२०७ मां अजमेरनो भंग भयो हतो, भने वृत्तिनी प्रतिने, श्री स्थिर चन्द्रगणिए त्रुटित भाग पुनः २०८ छे. आ उपरथी जाणी शकाय छे के वि. सं. ते वखते जैन ज्ञानभंडारने पण हानि पहोंची हती. ३. वि. सं. ११८० मां लखायेली पाक्षिकसूत्र सवृत्तिकनी प्रति नजीकना समयमां ब स्वबाई जवाने कारणे के फाटी जवाथी कोई कळाघरे तेने काळजी पूर्वक सांधीने तैयार करेली के. विशिष्ट प्रकारे संधायेली प्रतिओमां आ प्रति कीमती दर्शनीय नमूनारूप छे. आनो क्रमांक १२९ के. * आ प्रतिनी प्रतिलिपि में करेलो तेने आधारे ते अमदावादमी नाणीती लालभाई दळपतभाई प्रन्थमाळामी छपायुं छे. Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. चैःयवंदनभाष्य उपर श्री देवेन्द्रसूरिए रचेली संघाचारटीकानो प्रति, टीकाकारनी पोतानी ज छे. आनो क्रमांक २०७ के. ५. वि. सं. ११९० ना कार्तक सुद १ ना दिवसे रचायेला धर्मविधिप्रकरणनी वि. सं. ११९० ना पोष सुदि ३ ना दिवसे लखायेली प्रतिनो क्रमांक २३६ छे. ६. श्री नामनां शेठाणीए लखावेली भवभावनावृत्तिनी प्रति उपद्रवथी खंडित थई गयेली, तेने तेमनां प्रपौत्रवधुए समरावीने संपूर्ण करी हती. जुओ पृ० ८४--८५, श्लो० २५-२६. आ प्रतिनो क्रमांक २३१ छे. ७. सिद्धसाधुरचित न्यायावतार वृत्ति उपरनी टिप्पणी ज्ञानश्री नामनां साध्वीजीए करेली होय तेवो संभव छे. आनो क्रमांक ३६४(१) छे. ८. प्रकरण-स्तोत्रादिना संग्रहरूप वि. सं. १२१५ मां लखा येली क्रमांक १५४ वाळी प्रति शांतिमतिगणिनीना स्वाध्याय माटेनी पोथी छे. तथा सटीक पिंडविशुद्धिप्रकरण (क्रमांक २१०) नी प्रति प्रभावतीमहत्तरानी छे. ९. कर्मप्रकृतिचूणिं (क्रमांक १६९) नी प्रति, गच्छादिना दुराग्रहथी के मालिकीहक्कना व्यामोहथी प्रेराईने ग्रंथ लखावनारनी पुष्पिका भूसी नाख्याना नमूना रूपे छे. १०. क्रमांक २३२ वाळी भवभावनावृत्तिनी प्रति नन्नी-नानी नामनी श्राविकाए वि. सं. १२४० मां लावावेली अने तेनुं व्याख्यान वि. सं. १२४०, १२४८ तथा १२५३ मां पादरामा करावेलं. आ नन्नी-नानी ना पछी तेना सुकृत माटे तेनी पुत्री जयतीए वि. सं. १२६५ मां तिमिरपाटकमां अने वि. सं. १२८० मां पंडित नेमिकुमार द्वारा आ ग्रंथन व्याख्यान कराव्यु. यारबाद देवपत्तनथी आवीने जयतीए अभयकुमारगणिने आ ग्रंथ पादरामा समर्पित कर्यो. आ ग्रंथ नानी श्राविकाए त्रण वार वंचाव्यो ए अंगेनी नानी श्राविकानी प्रशस्ति प्राकृत भाषामां छे. भने तेनी पुत्री जयतीनी प्रशस्ति संस्कृतमां छे.. लखावेला ग्रन्थोना व्याख्याननी हकीकत तथा ग्रंथो वंचायानी तेमज तेमनुं संशोधन कर्यानी हकीकतोनां उदाहरण अन्वेषकोने आ सूचीपत्रमाथी मळी रहेशे. ____ आ उपरांत आ भंडारनी विक्रमना १२ मा शतकथी पंदरमा शतक सुधीमां लखायेली प्रतिमो लखावनारनी प्रशस्ति-पुष्पिकाओमां तत्तत्कालीय राजवंशो, राजाओ, महामात्यो, पंचकुलो, दंडनायको, श्रमणोना गणो शाखाओ-गच्छो-पट्टपरंपराओ, जैनाचार्य आदि जैन विद्वानो, जैन गृहस्थो तेमनां कुळ वंश गोत्र भने अटको, अजैन विद्वानो, प्राचीन ग्रंथो अने गाम-नगर आदिनां नाम मळे छे, जेने तेमना सत्तासमय अने प्राचीनताना प्रामाणिक आधार तरीके स्वीकारी शकाय. आ महत्वनां थशां य नाम आ ग्रन्थना त्रीजा परिशिष्टमांथी जोई-जाणी शकाशे . Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशस्ति -पुष्पिकामा अणावेलां जिनमंदिरनिर्माण आदि धर्मकृत्यो तथा उक्त त्रीजा परिशिष्टमा मणावेलां नामो पैकी केटलांक गाम-नगरादिनां नाम वाचकोनी जाण माटे नीचे जणाववामा भावे: १. श्री जगद्धर श्रेष्ठीए जेसलमेरमा श्रेपार्श्वनाथजिननुं मंदिर बनाव्युं हतुं. जुओ क्रमांक ११४, पृ० ३७, श्लो• २; क्रमांक २१७, पृ० ७७, लेखऋप्रशस्तिनो श्लो० ७; क्रमांक २७. (४), पृ० ११६, श्लो• १ अने क्रमांक २७२, पृ० १२०, श्लो० ८. २. श्री पद्मदेव श्रेष्ठीए नागपुर (नागोन) पासे कुडिल्लूपुरीमां भव्य जिनालय बनाव्यु हतुं. जुमओ क्रमांक २१७, लेखकनी प्रशस्तिनो श्लो०४. अहीं भगवानना नामवाळो पानानो भाग तूटी गयो छे. ३. कुमारपल्ली (गुजरात-पाटण पासे कुणघेर) मां श्री पार्श्व नामना श्रेष्ठीए श्री वीरजिननो . चतुर्मुख प्रासाद-चोमुखजीन मंदिर-कराव्यो हतो. जुओ क्रमांक २३५, पृ० ८९, श्लो० ७. ४. भीमपल्ली (भीलडी-बनासकांठा) मां श्री भुवनपाल नामना श्रेष्ठीए मांडलिकविहार नामनु श्रीवीरजिननु उत्तुंग मंदिर बनाव्यु हतुं. जुओ क्रमांक २१७, पृ० ७७, लेखकनी प्रशस्तिनो श्लो. १२. मा भुवनपाल शेठ उपर जणावेला जेसलमेरना श्रीपार्श्वजिनमंदिरना करावनार श्री अगदर शेठना पुत्र छे. ५. श्री गोल्ल नामना श्रेष्ठीए मरुकोहमा श्री चन्द्रप्रभजिना उत्तुंग मंदिर बनाव्युं हतुं. जुभो क्रमांक ३१२, पृ० १३२, लो० ५. ६. लवणखेटमां श्रीशांतिनाथजिनमंदिर बनाव्यानी नोध मळे छे. जुओ क्रमांक ११२, श्लो. १४ अने क्रमांक ११४, लो० ११. ७. श्री ब्रह्मदेव नामना श्रेष्ठीए श्रीमंट (!) जिनेशमंदिरमा श्रोवीरदेवगृह कराव्युं हतं. जुओ क्रमांक २३२, पृष्ठ ८४, लो० ८. ८. क्षेमंधर श्रेष्ठीए अजमेरमा श्री पार्श्वजिनमंदिरमां भव्य मंडप कराव्यो हतो. जुमो क्रमांक ११२, पृ० ३६, "लो० ७; क्रमांक २७० (४), पृ० ११५, श्लो० २ तथा क्रमांक २७२, पृ. ११९, ग्लो० ५. ९. आवश्यकवृत्ति प्रथमखंड (क्रमांक ११२) ना लखावनारनी प्रशस्तिमा भीमदेव नामना शेठने, कर्मग्रन्थविचारमा अतिनिपुण अने धर्मक्रियानिष्ठ जणाव्या . १०. आगळ जणावेला श्री उदयराज-बलिराजना दादा हाजी शेठ श्री जिनचन्द्रसूरिनी आचार्यपदवीनो महोत्सव को हतो. जुओ पृ. ४०, लो० ५. आ सिवाय अनेक श्रेष्ठीओनां तीर्थयात्रा-संघ, आवश्यक-पूजादिकार्य, उपधानतप, मममणा, साधर्मिकभक्ति मादि धर्मकार्योनी पण हकीकतो आ प्रशस्तिमओमां नोधायेली. Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थ लखावनारनी प्रशस्ति-पुष्पिकाओमा अणहिल्लपुरपत्तन, स्तम्भतीर्थ, भृगुकच्छ, धवलक्कक (घोळका), वढउद्द (वडोदरा) आदि अनेक सुख्यात प्राचीन नगरोनां नाम अनेक स्थळे मळे हे म. ते उपरांत बीजां पण अनेक गाम-नगरोनां नाम मळे छे. तेमांना केटलांक नाम, ते जे संवतमा नोभायां छे, ते संवत साये जणावू छु. कांसा, सं. १२६०-अणहिल्लपुरपत्तनना विषयपथकमां आवेलुं गाम, जे आज पण कांसा नामे ज ओळखाय छे. जुओ क्रमांक २३३. कुमारपल्ली, सं. १२०७-आजथी लगभग पांचसो वर्ष पहेलांना गाळामां रचायेला रास वगेरेमा जे कुमरगिरि नामर्नु गाम उल्लिखित थयु छे ते ज आ कुमारपल्ली होय एम लागे . आज आ गाम पाटण (गुजरात) थी पांच माइल दूर आवेलुं छे भने ते कुणवेर नामथी ओळखाय ले. कुमारपालना नामनी स्मृति स्थायी करवा माटे आ गाम वसेलुं हतुं. वि. सं. १२०७ मां आ प्रति (क्रमांक २३५) लखावनारना पिताए कुमारपल्लीमां श्रीवीरजिननो चतुर्मुखप्रासाद कराव्यो हतो, आथी जाणी शकाय छे के कुमारपालना राज्यना प्रारंभमां ज आ गाम वस्युं हतुं. कुमारपालनो राज्यारोह वि० सं. ११९९ मां थयो हतो. पालउद्र, सं० १२२७-महेसाणा (उ. गु.) पासेनुं पालोदर गाम. आ गामने विषय-दंडाज्य पथकमां जणाव्यु छे. जुओ क्रमांक २३७. कटुकासन, सं० १२२७-महेसाणा-वीरमगाम रेलमार्गमां आवेलु कटोसण. जुओ क्रमांक २३७. बदरसिद्धस्थान, चतुरोत्तरमंडलकरणमध्यस्थित सं० १३३९-चरोतर प्रदेशमा आवेखें बोरसद. जुओ क्र० २५०. आशापल्लीसं० १२२३-अमदावाद पासेनुं असारवा. आशावल्ली जुओ क्रमांक २१७, पृ० ७६-७७. पद्रउर सं० १२४०-वडोदरा पासे पादरा. जुओ क्रमांक २३२, पृ० ८५-८६-८७. पद्रग्राम ऊमता, सं. ११९८-विसनगर (उ. गु.) पासे ऊमता. जुओ क्रमांक ४०६. बासव । सं० १२४०-वडोदरा पासे वासद. जुओ क्रमांक २३२, पृ० ८६. मंरसी, सं० १२१८ अने १२२६-वीरमगाम पासे मांडल. जुओ क्रमांक ३०१, पृ० १२८ मने क्र० ७६, पृ० २५. बासप्पयो Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंभूयपुरी, सं० १२१६-गांभू (उ. गु.) क्रमांक २५९. पंचासर, , - मांडलपासे पंचासर , संडथल, , 'चडावली, , 'छत्तावल्लिपुरी, सं० ११२५ क्रमांक २३५. 'छत्रापल्ली, सं० १३०४ क्रमांक २५६. मूलनारायणदेवीयमठ, सं० १२०० क्रमांक ३९१. ज्ञेरिंडक, सं० १२२३ क्रमांक २१७, पृ०७६. धारापुरी, सं० १२९५ क्रमांक २८१, पृ. १२३. नलकच्छपुर , " " मण्डपदुर्ग , , , , ; सं० १३०८, क्रमांक २८६, पृ. १२५ बाहुपुर-मठस्थानक, सं० १३८४ क्रमांक १२७९, पृ० २८२. मड्डाहड सं० १२१३ क्रमांक १५५ (८), पृ० ५३. उपर उदाहरण रूपे जणावेलां गाम-नगरो पैकी जे नाम लेखकनी प्रशस्तिओनां छे तेमां मोटा भागनां नाम गुजरातनां छे. आथी अने खंभातनिवासी परीख धरणाशाह तथा उदयराजबलिराजना लखावेला ग्रंथोने लक्षीने कही शकाय के जेसलमेरना प्रस्तुत ताडपत्रीय ज्ञानभंडारना स्थापक आचार्य प्रवरनो उपासक वर्ग गुजरातमां विपुल प्रमाणमा हतो अने ते धर्मशील समृद्ध तथा दानी हतो. ग्रन्थ लखनार लेखकोनां-लहियानां नाम पण मळे छे; तेमां मुनिओ उपरांत श्रावको अने ब्राह्मणोनां नामोनो पण समावेश थाय छे. आ गृहस्थ लेखकोए पोतानां गामनां नाम आ प्रमाणे जणाव्यां छे-स्तंभतीर्थ, अणहि लपुरपत्तन, मंडली-मांडल, कांसा, पलोदर, ऊमता अने मुंडहटा. आमां एक लेखके 'पोते भव्य अक्षरथी भवभावनावृत्ति (क्र० २३३)नुं पुस्तक लख्यु' एम जणावीने अने एक लेखके पोताना माटे 'विविधलिपिनो जाणकार' (क० ४०८) आवं विशेषण आपीने पोत पोतानो विशेष परिचय पण आप्यो छे. पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी आदि द्वारा प्राचीन प्राचीनतम ग्रन्थो लखावनारनी प्रशस्ति-पुष्पिकाओ अलग मुद्रित ग्रन्थरूपे प्रसिद्ध थयेली छे. आथी पण अनेक रीते वधारे उपयोगी प्राचीनतम सामग्री ग्रन्थकारोनी प्रशस्तिओमां सचवायेली छे, जो तेनो संग्रह करीने ते एक के बध ग्रन्थरूपे प्रकट थाय तो अभ्यासी अने जिज्ञासुभोने अनेक ऐतिहासिक तेमज धर्मकार्योनी उपयोगी सामग्री एमांथी मळी शके. अस्तु. १-१. आ छ नाम प्रन्थकारनी प्रशस्तिमांथी मोज्यां छे. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ भाग्यवान दानी श्रेष्ठीओए पोत पोताना श्रद्धेय गुरुवर्योना उपदेशथी लखावेली पोथीओनी अव्यवस्था जेवुं पण केटलोक वार थतुं हतुं. जेना कारणे ए पोथीओ वेवीने पैसा लेनार व्यक्तिओना हाथमा जती. प्रस्तुत भंडारनो केटलीक प्रतिओना प्रान्तमां मूल्यथी लेवामां आवेली प्रतिरूपे उल्लेख मळे छे. ते आ प्रमाणे -- १. वि. सं. १३१९ मां लखायेला त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रना प्रथम अने दशम पर्वनी प्रतिने (क्र० २३९) वि. सं. १३४३ मां महण नामना श्रेष्ठीए (?) मूल्यथी लईने श्री जिनचन्द्रसूरिजीने समर्पित करी हती. २. उपर जणावेला महण प्रतिमे (क० २५६) वि. सं. करी हती. श्रेष्ठीए वि. सं. १३०४ मां लखाएली मुनिसुव्रतस्वामिचरित्रनी १३४३ मां मूल्यशी खोरीदीने श्री जिनचन्द्रसूरिजीने समर्पित ३. ' आना' नामना श्रेष्ठीए वि. सं. १३७८ मां श्री जिनकुशलसूरिजीना उपदेशथी नैषधमहाकाव्यनी प्रति खरीदी हती. जुओ क्रे० ३४१ ४. विक्रमना चौदमा शतकमां लखाएली पिंडविशुद्धिप्रकरण सटीकनी प्रतिने (क्र० २०५ ) बि. सं. १३९४ मां से नामना श्रेष्ठीए मूल्यथी खरीदीने श्री जिनपद्मसूरिजीने समर्पित करी हती. ५. समवायांगसूत्र अने समवायांगवृत्तिनी प्रतिने (क्र० ९) राउला नामना श्रेष्ठीए वि. सं. १४०१ मां मूल्यथी खरीदीने श्री जिनचन्द्रसूरिजीने समर्पित करी हती. ६. विक्रम संवत् १२७४ मां लखाएकी भगवतीसूत्रनी प्रतिने (क्र० १५) डुसाऊ नामना श्रेष्ठ वि. सं. १४०५ मां श्री जिनपद्मसूरिगुरुना उपदेशथ छोडावी. आय एम जणाय छे के आ प्रति गीरो मुकाई हती. ७. वि. सं. १२९५ मां लखाएलो प्रवचनसारोद्वार सटीकनी प्रतिने (क्र० २०६ ) भात निवासी बलाल नामना श्रेष्ठीए वि. सं. १४८४ मां मूल्यथा स्वगदी हती. ८. विक्रमना चौदमा शतकमां गोपी नामनी श्राविकाए उपदेशमाला बृहद्वृत्तिनी प्रतिने मूल्यथी खरीदीने श्री जिनेश्वरसूरिजीने समर्पित करी हती. जु क्र० २३०, पृ० ८३, श्लो० २७. ९. वि. सं. १३३९ मां लखाएली आदिनाथचरित्रनो प्रतिने (क्र० २५०) जावड नामना श्रेष्ठीए खरीदीने श्री खरतरगच्छने समर्पित करी हती. उपर बणावेली प्रतिओ खरीदायानी नोधमा जेनी पाथी खरीदी करवामां आवी तेनुं नाम जणान्युं नथी. आमां खरीदनार गृहस्थ अने तेनी प्रेरणा आपनार धर्मगुरुनी महानुभावता स्पष्ट थाय छे. १- २ मुद्रित सूचीपत्रमां आ बे प्रथोमो लेखनसंवत् अनुक्रमे १३७८ अने १४०१ आप्यो के तेमां भगवधान थयुं छे. खरी रीते आ संवतो ते ते प्रति खरीदाई तेना . Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ " अणहिलपुर पाटणथी ज्ञानभंडारने खसेडीने जेसलमेर दुर्गना गुप्तस्थानमां मूकवामां भाव्यो छे" आवी प्राचीन समयथी किंवदंती संभळाय छे, पण अहीं एटलं तो सुस्पष्ट थाय ज के जेसलमेरो आ प्राचीनतम ज्ञानभंडार आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीए ज स्थापेलो छे. जे भंडार माटे किंवदंती छे ते भंडार कोई बीजो होय अने ते हजु सुधी गुप्तावस्थामां न होय से वस्तु विचारणीय छे. २. बेगडगच्छीय ज्ञानभंडार खरतरगच्छनी वेगडशाखाना विद्वान् आचार्योंए आ भंडार स्थापेलो . आमां विक्रमना १३ मा शतक भी २० मा शतक सुधीमां लखायेला ग्रन्थो छे. २० मा शतकमां लखाएला ग्रन्थो माचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजीए लखावीने मूक्या छे. आमां रहेला, विक्रमना १५ मा शतकमां पाटण (गुजरात) मां लखायेला, प्रन्थोनी पुष्पिकाओ जोतां एम जणाय छे के ते समयना बेगडगच्छीय भाचार्योए जेसलमेरना भंडार माटे पाटणना प्राचीन ग्रन्थोनी नकलो करावी होय. श्री जिनभद्रसूरिजी पाटणमां स्थापेला भंडार माटे लखाववामां आवेली प्रतिओ पण आ भंडारमां छे. पोथी नं. १ थी ८३ सुत्री मां (पृ० १८१ थी २९१) आ भंडारना क्रमांक १ थी १३३० सुधोना प्रन्थो छे. अने ते बधा कागळ उपर लखावेला के. ८० मी पोथी ज्योतिषना अपूर्ण तथा प्रकीर्णक पानांना संग्रहरूपे छे, अने ८१ थी ८३ सुधीनी त्रण पोथीओमां स्तवनसाय आदिनां प्रकीर्णक पानां छे. आ भंडारमा वि. सं. १२४६ (क्र० १३४, पृ० २८८ ), वि. सं. १२७७-१२७८ (क्र० १३०० - १३०१, पृ० २८५ ) मां लखाएला अने बीजा पण विक्रमना १३मा शतकमां aareला अनेक ग्रन्थो छे. काळ उपर लखाएला आटला प्राचीन ग्रन्थो आ भंडारमां ज सचवाया छे. तेमां य वि. सं. १२७९मां लखायेली न्यायतात्पर्यवृत्ति अने भाष्य, श्रीकण्ठनुं टिप्पन अने न्यायवार्तिकी प्रतिओ तो अत्यन्त महत्वनी छे. आ प्रतिओ एवी जीर्ण हालतमां हती के जेने स्पर्श करतां पण तूटी जवानो भय रहे, परंतु तेने दिल्ही नेशनल आर्काइशमां मोकलावीने वैज्ञानिक पद्धतिए तेनो जीर्णोद्धार कराववामां आव्यो छे, जेथी बीजां चार सो पांच सो वर्ष सुधी एने आंच न आ भने भेनी मूळस्थिति जळवाई रहे. वि. सं. १५३८ मां लखाएली प्रेमराजकृत कर्पूरमञ्जरीनाटिकाकर्पूरकुसुमभाष्यनी प्रति (क्र० २४६, पृ० २०६ ) अने जयदेवकृत गीतगोविन्दनी जगद्धरकृत टीका (क्र० ४५९ पृ० २२७ ) तेमज वि. सं. १४०७मां गुणसमृद्धिमहत्तराए प्राकृतभाषामां रचेला अंजनासुंदरीकथानकनी प्रति पण आ भंडारमां छे. उपर जणान्या सिवायना विविध विषयोना अनेक प्राचीन ग्रन्थो आ भंडारमां छे, जे प्राचीन प्रत्यंतरादि दृष्टिए अति उपयोगी है. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ सूचीपत्रमा आ भंडारनुं नाम 'श्री जेसलमेरुस्थित खरतरगच्छीय युगप्रधान श्री जिनभद्रसूरिज्ञानभंडारस्थित कागळ उपर लखेल ग्रन्थोनुं सूचीपत्र' आवा शिर्षकमा आप्युं छे, पण वास्तवमा मा कागळ उपर लखायेलो ज्ञानभंडार वेगडगच्छीय ज्ञानभंडार छे. पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीना य पहेलां जे कोईए आ भंडार जोयो तेमणे तेने किल्लामां श्री जिनभद्रसूरिज्ञानभंडारवाळा भोयरामां ज नोयो छे. अर्थात् अनेक वर्षोथी आ भंडारने किल्लामां मूकवामां आवेलो के. माथी ज अहीं मणाव्युं तेम, आ भंडारनुं शीर्षक अपायुं छे. आ संबंधमां पूज्यपाद आगमप्रभाकरवीए नोष पण करेली के. ३. खरतरगच्छीय वडाउपाश्रयनो अथवा पंचनो ज्ञानभंडार प्रस्तुत सूचीपत्रमा क्रमांक ४०४ थी ४२६ सुधीना आ भंडारना प्रन्थोने 'पंचनो ज्ञानभंडारजेसलमे' आ नाम थी सूचित कर्या छे. जुओ पृ० १७४ थी १८० वास्तवमा मा ग्रन्थो वडा उपाश्रयना भंडारना ज छे. आ ग्रन्थोमां स्थविर श्री अगस्त्यसिंहगणिकृत दशवैकालिकसूत्रनी चूर्णिनो अति महत्त्वनी प्राचीन प्रति छे, जे अन्यत्र कोई पण भंडारमा नथी. आ ग्रन्थने पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए संपादित कयों छे अने ते प्राकृत टेक्स्ट् सोसाइटी द्वारा ढूंक समयमांज प्रसिद्ध थशे. आ उपरांत नन्दिसूत्रनी तथा अनुयोगद्वारसूत्रनी प्राचीनतम विशिष्ट प्रति, वि. सं. ११९३मां रचाएला श्री मुनिसुंदरसूरिकृत मुनिसुव्रतस्वामिचरित्रनो वि. सं. ११९८मां लखाएली प्रति, वागीश्वरांक रत्नाकरकविकृत हरविजयमहाकाव्यनी वि. सं. १२२८मां लखाएली प्रति आदि ताडपत्र उपर लखाएली कुल पंदर प्रतिओ अने विक्रमना चौदमा शतकथी सोळमा शतक सुधीमा कागळ उपर लखाएली महत्त्वनी प्राचीन प्रतिओ आ भंडारमा छे. कागळ उपर लखाएली प्रतिओमां चांदीनी (रूपेरी) शाहीथी लवाएली कल्पसूत्र अने कालकाचार्यकथानी सचित्र प्रति तेमज काळी शाहीथी लखाएली सुंदरतम चित्रोवाळी कल्पसूत्र अने कालकाचार्य कथानी प्रति आपणी विशिष्ट लेखनकळा अने चित्रकळाना नोधपात्र नमूनारूप छे. उपर जणावेला पंचना भंडार पछी प्रस्तुत सूचीपत्रमा वेगडगच्छीय ज्ञानभंडारना ग्रन्थोनी सूची आपी छे. अने ते पछी पोथी नं. ८४ थी १३३ सुधीमां आवेला क्रमांक १३३१ थी २२५७ सुधीना ग्रन्थो वडाउपाश्रयना ज्ञानभंडारना छे. जुओ पृ० २९२ थी ३५५ आ ग्रन्थो विक्रमना पंदरमा शतकथी ओगणीसमा शतक सुधीमां लखाएला छे अने तेमांनो मुख्य भाग जैन आगम, प्रकरण, रास तथा स्तोत्रादि ग्रन्थोनो छे. आम छतां व्याकरण, काव्य, छंद, आयुर्वेद अने ज्योतिष मादि विषयोना अजैन ग्रन्थोनी प्रतिओ पण मा भंडारमा छे. शेष भंडारोनी माहिती मा प्रमाणे छे Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ तपागच्छनो ज्ञानभंडार आ भंडारमां ताडपत्र अने कागळ उपर लखाएला ग्रन्थो छे. तेमांथी ताडपत्रीय बधा य एटले सात प्रन्थोनी सूची अहीं आपी छे. आमां ऋषभदेवचरित्रनी प्रति (क्र० २, पृ० ३५८) विशेष महत्वनी छे, कारण के आ चरित्र श्री जयसिंहसूरिए वि. सं. १३३० मां रचेलं छे अने लक्ष्मी नामनी श्रेष्ठपुत्रीए ते न समयमां एटले वि. सं. १३३०मां लखावीने प्रन्थकार श्री जयसिंहसूरिजीने ते अर्पण करेल छे. आ सिवाय धर्मरत्नप्रकरण स्वोपज्ञवृत्तिसहितनी प्रति (क्र० ४, पृ० ३५८) पण महस्वनी छे, कारण के तेमां वृत्तिकारना नामनो स्पष्ट निर्देश छे तेमज वि. सं. १११५मां लखायेल पंचाशकप्रकरण आदि बीजा पण विशिष्ट ग्रन्थो आ भंडारमां छे. आ भंडारमा रहेली कागळनी प्रतिओ पैकी केवल एक सोनानी शाहीथी लखेली सचित्र कल्पसूत्रनी प्रतिनो तेनी विशिष्ट लेखनकळा अने चित्रकळाने लक्षीने परिचय आप्यो छे. आ पुस्तक लखावनारनी प्रशस्तिमां संघयात्रा, ऊजमणं तेमज पौषधशाळा कराव्यानो उल्लेख छे. जुओ क्र० ८, पृ० ३५९-६०. atarगच्छनो ज्ञानभंडार आ भंडारमां ताडपत्र उपर लखायेली चार प्रतिओ के कागळ उपर लखायेला ग्रन्थो विपुल प्रमाणमां छे. अहीं मात्र ताडपत्रीय प्रन्थोनी सूची आपवामां आवी छे. ताडपत्रीय चार प्रतिओमां कुल नत्र ग्रन्थो के अने ते जैन आगम अने तेनी व्याख्याना हे. तेमां भगवतीसूत्र ( क्र० ४, पृ० ३६२ ) अनुमाने विक्रमना बारमा शतकमां लखायेलं हे, अने शेष ग्रन्थो वि. सं. १३०७ मां लखायेला छे. प्राचीन प्रत्यंतरनी दृष्टिए आ ग्रन्थो महत्त्वना छे. थाहरूशाहनो ज्ञानभंडार विक्रमना सत्तरमा शतकमां जेसलमेर निवासी भणशालीगोत्रीय धनी, दानी भने धर्मनिष्ठ श्रेष्ठी श्री थाहरू शाहे जिनमंदिरनिर्माण आदि अनेक धर्मकृत्यो करेला जेमां पोतानो ज्ञानभंडार पण लखावेलो. आ भंडार आज पण तेमना वंशजो पासे सुरक्षित छे. पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीने आ भंडार जोवा माटे छेले छेले एक दिवस पूरती न अनुकूळता मळी तेथी तेनी सूची आपी शकाई नथी. श्री थाहरूशाहजीना परिचय माटे तेमनी प्रशस्तिवाळी एक उदाहरण पूरती अंगविज्जानी प्रतिनी तथा लेखनकळा अने चित्रकळाना श्रेष्ठ किंमती नमूनारूपे सुवर्णाक्षरी सचित्र कल्पसूत्रनी प्रतिनी प्रशस्ति अहीं आपी के उपरांत, चामडना डाबडा उपर पण लखेली श्री थाहरू शाहनी पुष्पिका पण अहीं आपी छे. चौलुक्य महाराजा श्री कुमारपालदेवना समयी श्री जिनदत्तसूरिजीना चित्रवाळी ताडपत्रीय पुस्तकना उपर राखवामां आवती एक चित्रमय काष्ठपट्टिका पण आसूचीम नोंघी छे, आ काष्ठपट्टिका मूळमां थाहरूशाहना भंडारनी नथी पण किल्लाना श्री जिनभद्रीयज्ञानभंडारनी Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे. इस्वोसन १९१६मां श्री सी. डी. दलाले आ ज काष्ठपहिकानो नोध बडा भंडारमानी पर श्री जिनभद्रसूरिभंडारमांनी काष्ठपटिकारूपे लीधी छे. जुमओ गायकवाइस ओरियेन्टल सिरीक्षमा प्रकाशित 'जेसलमेरभाण्डागारीयग्रन्थानां सूचिपत्रम्'ना ३१मा पृष्ठमां आवेलो क्रमांक २५१, भने तेने सरखावो प्रस्तुत सूचोपत्रना ३६४मा पृष्ठना क्रमांक ने साथे. वि. सं. १८०९ मां जेसलमेरना भंडारोनी टीप-सूची थएली, मे आ ग्रन्भना चोथा परिशिष्टरूपे आपी छे. आ सूचीमा डाबदानी ओळख माटे अपाता क्रमांक एक-बे आदिना बदले स्वस्तिकडाबडो, श्रीवत्सडाबडो मादि अष्टमंगलना नामथी ताबडानी ओळख आपवामां आवी. मा डाबडा आज पण आ भंडारमा विद्यमान छे. प्रस्तुत सूचीमां आपेला भंडारोना संबंधमां घणु लखी शकाय तेम छे. ही बाचकोने एना महत्त्वनो सामान्यरूपे ख्याल आवे ते प्रती ढूंकमां हकीकतो जणावी हे. सलमेरना भंडारोनी प्राचीन सूचीओ जेसलमेरना भंडारोना संशोधनादि कार्यकाळमां पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीने जेसलमेरना भंडारोनी बे प्राचीन सूचीओ पण मळेली. ____ आमांनी एक वि. सं. १८०९ मां थयेली छे अने ते आ ग्रन्थमा यथावत् मुद्रित करी छे. जुओ पृ० ४४१ थी ४५०. बीजी सूची कपडवंज (गुजरात)ना शेठ नीहालचंदभाई नत्थूभाईना तरफथो मोकलेला, माणसूरगच्छाधिपति विजयगुणरत्नसूरि मारफत सुरतनिवासी मुनि श्री मोतीचंदजीए करेली छे. आ सूची पण आ ग्रन्थमा यथावत् मुद्रित करी छे. जुओ पृ. ४५१ थी ४६८. आ बे सूचीओ उपस्थी जाणी शकाय छे के जेसलमेरना भंडारोना संबंधमां प्राचीन समयथी गवेषणा भने जिज्ञासा रहेली ज छे. जेसलमेरमा पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीन कार्य पूर्वे जणाव्युं तेम श्री जिनभदसूरिज्ञानभंडार, वेगडगच्छीय ज्ञानभंडार भने वडाउपाश्रयनो भथवा पंचनो ज्ञानभंडार एम किल्लामां श्री संभवनाथजीना मंदिरना भोयरामा रहेला कुल त्रण ज्ञानभंडारोना समुद्धारनुं कार्य तथा ग्रन्थसंशोधनादि कार्य पूज्यपाद मागमप्रभाकरजी मुनिबर्ग श्री पुण्यविजयजी महाराज द्वारा तथा तेमना मार्गदर्शनमा थयु ते नीचे मुजब के. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानभंडारनो समुद्धार ___उपर जणावेला त्रण भंडारो पैकीना श्री जिनभद्रसूरिज्ञानभंडार समग्रना तथा वेगडगच्छीय भने वडा उपाश्रयना-पंचना ज्ञानभंडारना ताडपत्रीय भने ताडपत्रना आकारवाळा कागळ उपर लखाएला ग्रन्थोनां पानांने एकत्रित राखवा माटे प्रत्येक पानाने नवी सुतराउ दोरीथी परोवीने दरेक प्रन्थनी उपर-नीचे प्रमाणयुक्त नवी काष्ठपट्टिकाओ मूकीने तेमने बांधवामां आव्या छे. आ प्रमाणे दोरीथी बंधायेला प्रत्येक ग्रन्थने नवा वस्त्रना प्रमाणयुक्त बंधनथी बांधवामां आव्यो छे. प्रत्येक प्रन्थना उपरनी काष्ठपट्टिका उपर ग्रन्थy नाम अने क्रमांक लखवामां आव्या छे, अने प्रत्येक ग्रन्थना बनबंधन उपर ग्रन्थनो क्रमांक भापवामां आव्यो छे. वस्त्रना बंधनमां बंधाएला प्रत्येक ग्रन्थने ते ते ग्रन्थना प्रमाणवाळा एल्युमिनियमना उबामां मूकवामां आव्यो छे. आ एल्युमिनियमना डबा पण नवा बनाववामां आव्या छे. आ डबा उपर पण ग्रन्थनो क्रमांक आपवामां आव्यो छे. जे डबामा एकथी वधु ग्रन्थ मूकवामां आव्या छे तेना उपर पण तेमां रहेला ग्रन्थोना क्रमांक लख्या छे. आ प्रमाणे तैयार करेला एल्युमिनियमना उबाओने लोखंडना मजबूत कबाटोमां मूकवामां आव्या छे. अने प्रत्येक कबाट उपर तेमां मावेला क्रमांको लखवामां माव्या छे. कबाटो बहार तैयार करावीने भोयरामा लई बई शकाय तेम न होवाथी भोयरामा ज लोखंडनी चादरो वगेरे तदुचित सामान लईने जोधपुरना कुशळ कारीगरो द्वारा ते तैयार कराव्यां छे. भोयराना जे खंडमां भंडार ते खंडमां जवानुं प्रवेशद्वार मांर २॥४२॥ फूटनी आसपास छे. ___ ताडपत्रीय अने ताडपत्रीय आकारना कागळ उपर लखायेला ग्रन्थो सिवायना कागळ उपर लखायेला ग्रन्थोनी कुल १३३ पोथीमो छे. आ पोथीओमा २२५७ हस्तप्रतो छे. प्रत्येक पोथीमां अनेक हस्तप्रतो मूकवामां आवी छे, जे प्रस्तुत सूचीपत्र जोवाथी जाणी शकाशे. प्रत्येक हस्तप्रतने कागळy रेपर करी तेना उपर तेनुं नाम अने क्रमांक लखवामां आव्यो छे. प्रत्येक पोथीना उपर नीचे प्रमाणयुक्त पाटली मूकीने तेने नवा वस्त्रना बंधनथी बांधीने तेना उपर पोथीनो नंबर अने तेमा रहेला ग्रन्थोना क्रमांक लखवामां आव्या छे. आ पोथीओने पण लोखंडना कबाटमा मूकवामां भावी . ने भोयरामां भंडार छे ते भोयरानी पण मरामत करवामां आवी छे. उपर जणाव्या प्रमाणे भंडारने संपूर्ण सुरक्षित कर्या भगाउ प्रत्येक ग्रन्थनां समग्र पानांने गणीने खूटतां पत्रोनी नोध लेवामां आवी के. आ काम करती वखते सेंकडो वर्षथी दर्शनादि ज्ञानभक्ति निमित्त अवार-मवार पुस्तको खोलवाने कारणे अने ते पाछा भंडारमा मूकती वखते चोक्कसाईना अभावे लगभग सो ग्रन्थोनां पानां अलग अलग पडीने आपसमां भेळसेळ थई गयां हता, ते सर्व पानांने प्रत्येक ग्रन्थवार तारवीने तेमना मूळग्रन्थनी साथे जोडीने अनेक ग्रन्थ पूर्ण करवामां आव्या २. आ कार्य पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी सिवाय अन्यने माटे दुष्कर ज नहीं किन्तु अशक्य ३ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हतुं. मने बराबर स्मरण छे के आ भेळसेळ थयेलां अनेक ग्रन्थोनां पानांने व्यवस्थित करवा माटे वि० सं० १९९९मा पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजीए अने तेमना सहायक तरीके गयेला भमे चार भाईओए पण प्रयत्न करेलो, पण ते कार्य अशक्य लाग्यु त्यारे पू. मुनि श्री जिनविजयजीए कधु के-"भाई ! आ काम पुण्यविजयजी सिवाय कोई नहीं करी शके." मा सिवाय, पहेलां जणाव्युं तेम, महत्त्वनी कागळ उपर लखा येली अति जीर्ण प्रतिओनो दिल्होमा जीर्णोद्धार कराव्यो. केटलाक ताडपत्रीय ग्रन्थो उपर सचित्र कळामय प्राचीन बहुमूल्य काष्ठपट्टिकाओ हती ते वधारे घसाय नहीं भने सुरक्षित रहे ते माटे अलग तारवीने प्रदर्शनीमचूषा-शों केइसमां मूकवामां मावी छे. मा पट्टिकामना परिचय माटे जुओ पृ० ३५७. संशोधनादि कार्य पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी द्वारा जेसलमेरना भंडारोना ग्रन्थोनुं संशोधन कार्य थयुं तेना मुख्यतया चार विभाग करी शकाय. १ सूचीपत्र तैयार करवं, २ महत्त्वना ग्रन्थोनी नकल-प्रेसकोपी कराववी, ३ उपयोगि प्रन्थोने अक्षरशः मेळवी लेवा, ४ महत्त्वना ग्रन्थोनी फिल्म-माइक्रोफिल्म बराववी. आ चार बाबतोनी विगतो आ प्रमाणे छे. १. सूचीपत्र-प्रत्येक ग्रन्थनु नाम, तेनी भाषा, तेना कर्ता, तेनो रचनासमय, तेनो लेखनसंवत्लेखनसंवत् न मळयो होय तो अनुमाने विक्रमनो शतक, तेनी हालत-स्थिति अने लंबाई-पहोळाईनी विगतो आ सूचीपत्रमा आपवामां आवी छे. महत्वना ग्रन्थोनो आदि-अंतनो भाग तेमज प्रत्येक प्रन्थना लेखकनो प्रशस्ति-पुष्पिकाओ अक्षरशः आपी छे. कोईवार उपयोगी जणांतां ग्रन्थकारनी प्रशस्ति पण आपी छे. आ सिवाय विशेष जाणवा जेवी हकीकत होय तो तेने ते ते ग्रन्थना अंतमा नोधरूपे नणावी छे. उपर प्रमाणेनी सूचीनी पछी छ परिशिष्टो आपवामां आव्यां छे. प्रथम परिशिष्टमां समग्र सूचीपत्रमा आवेला ग्रन्थोनां नाम तेमना स्थळदर्शक पृष्ठांक साथे, अकारादि क्रमथी माप्यां छे. द्वितीय परिशिष्टमां सूचिपत्रमा आवेला ग्रन्थोना रचयिताओनां नामोने, तेमना स्थळदर्शक पृष्ठांक साथे, अकारादि क्रमथी आप्यां छे. तृतीय परिशिष्टमां सूचिपत्रमा आवेला ग्रन्थोना आदि-अंत भागमां तथा प्रशस्ति-पुष्पिकाओमा आवेलां विशेषनामोने पृष्ठांक साथे, अकारादि क्रमथी आपवामां मान्यां छे, आ नामोनुं ऐतिहासिक महत्त्व पणुं छे. चतुर्थ अने पंचम परिशिष्टमां पूर्वे जणावेली अनुक्रमे वि. सं. १८०६ अने वि. सं. १९४१ मां लखायेली जेसलमेरना भंडारोनी टीपो-सूचीओ मापवामां आवी छे. अने छठा परिशिष्टमा आगळ जणावेला वि. सं. २००७ वाळा शिलालेखनी बाचना मापवामां आवी छे. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. महत्त्वना ग्रन्थोनी नकलो-से अन्थोनुं प्राचीनतानी दृष्टिए अने पाठभेदनो दृष्टिए महत्त्व के अने जे ग्रन्थो अन्यत्र नथी मळता ते ग्रन्थो पैकी नीचेना ग्रन्थोनी नकल-प्रेसकोपी कराववामां आवी छे.क्र० ग्रन्थनाम क्र० मन्थनाम २७ प्रज्ञापनासूत्र ३७३ सर्वसिद्धान्तप्रवेश ३४ ज्योतिष्करण्डकटीका ३८७(२) प्रमाणान्तर्भाव ८५ दशवकालिक चूर्णि श्री अगस्त्यसिंहगणिकृत ३९३ सांख्यसप्ततिका सटीक ११६ विशेषावश्यकमहाभाष्य ३९४ १२२ ओधनियुक्तिमहाभाष्य मुनिसुव्रतचरित्र २७१ पृथ्वीचन्द्रचरित्र ४१०(२) नन्दीसूत्रचूर्णि ३१७ कविकल्पलतापल्लवशेषविवेक भगवतीसूत्र लोकागच्छीय ३६३ सन्मतितर्क द्वितीयखंड भंडारनी प्रति नीचेना दार्शनिक ग्रंथोमांथी संभव छे के कोई ग्रन्थनी कॉपी न थई होय अने एना पाठभेद ज लीधा होय : ३६४(२) न्यायबिन्दुवृत्ति ३७७ तत्त्वसंग्रहमूल ३६४(५) न्यायबिन्दुमूल ३७८ तत्त्वसंग्रहपंजिका ३७५(१) न्यायप्रवेशसूत्र ३८३(२) न्यायकन्दलीटीका ३७५(३) न्यायप्रवेशटीका ३८१(१) न्यायकन्दलीटिप्पनक ३६४(३) न्यायप्रवेशपञ्जिका ३८३(१) प्रशस्तपादभाष्य अपूर्ण ७२-पोथी नं. ७ पंचप्रस्थान ३६४(१) न्यायावतारवृत्ति १३१३ पोथी नं. ७७ किरणावली ३८१(२) न्यायावतारटिप्पनक ३. उपर जणान्या प्रमाणे जे ग्रन्थो पाठभेदनी दृष्टिए अने प्राचीनतानी दृष्टिए महत्वना ते पैकीना नीचेना ग्रन्थोने तेमनी मुद्रित आवृत्ति साथे अक्षरशः मेळवीने तेना पाठभेद नोधी लीधा छे'.७९(१) अनुयोगद्वारसूत्र ८० अनुयोगद्वारसूत्रावृत्ति मलबारीया ७९(२) , लघुवृत्ति हारि० ८१ " " ४१०(३) , चूर्णि १. आ ग्रन्थोमा जे प्रन्थ अद्यावधि मुद्रित थयो न होय ते ग्रन्थनी प्रेक्षकॉपी साथे पाठमेद डेवामां आभ्या के. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थनाम ७७ (१) नन्दीसूत्र ७७(२) वृत्ति मलय • ३५ सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति 99 ३६ १४८ ज्योतिष्करण्डकसूत्र वृत्तिसह मलय • ११७ विशेषावश्यकवृत्ति कोट्याचार्यकृता ११२ आवश्यकवृत्ति मलयगिरीया प्र० खंड ११३ द्वि० खंड "" 19 ८४(२) दशवैकालिक सूत्रवृत्ति हारि● ५५ कल्पवृत्ति प्रथम खंड ४६ "" कल्पलघुभाष्य ४ सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति समवायांगसूत्रवृत्ति ४० (५) पर्युषण कल्पटिप्पनक ९ (२) ४० (३) पर्युषणाकल्पनिर्युक्ति ४० (४) पर्युषणाकल्पचूर्णि ४५ ८२ (४) कल्पसूत्र टिप्पनक ८२ (५) कल्पसूत्रनिर्युक्ति ८२ (६) कल्पसूत्र टिप्पनक ४१ (१) दशाश्रुतस्कन्धसूत्रचूर्णि 29 ४१ (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र १३२ आवश्यक वृत्तिटिप्पनक ७६ ४१ (४) पंचकल्पभाष्य नन्दीदुर्गपदवृत्ति २८ प्रज्ञापनासूत्रवृत्ति २९ प्रज्ञापनासूत्र २० (४) प्रश्नव्याकरणसूत्र २० क्र० २२ (९) प्रश्नव्याकरणसूत्र १९ (५) प्रश्नव्याकरणसूत्रवृत्ति २१ (४) २२ (४) २३ (३) 39 २२(६) उपासकदशांगसूत्र १९ (२) २१ (१) २३ (१) ग्रन्थनाम २० (१) २२(१) उपासकदशांगसूत्रवृत्ति "" 19 १९ (६) २१ (५) 39 " 29 २२(७) अन्तकृद्दशांगसूत्र "" २० (२) २२ (२) अन्तकृदशांगवृत्ति १९ (३) २१ (२) २३ (२) २२ (८) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र 35 "" २० (३) २२ (३) अनुत्तरौपपातिकदशांग सूत्रवृत्ति १९ (४) २१ (३) २२ (१०) विपाकसूत्र 37 "9 95 २० (५) २२ (५) विपाकसूत्रवृत्ति 19 99 39 " Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थनाम क्र. ग्रन्थनाम २०९ भावश्यकचूर्णि २३१ ___ भवभावना स्वोपज्ञवृत्तिसह २६१ पार्श्वनाथचरित्र २३२ २९. सिद्धहेमळघुवृत्ति पंचमाध्याय २३३ ३०. , षष्ठ-सप्तमअभ्याय २६०(१) मरिष्टनेमिचरित २९८ , तृतीयाध्यायथी पंचम अध्याय २.८ पश्चाशकप्रकरणवृत्ति ३१४(१) जयदेवछन्दःशास्त्र ३१४(२) जयदेवछन्दःशास्त्रवृत्ति २२४(८) धर्मबिन्दुप्रकरणमूल ३१४(३) कइसिट्ठछन्दःशास्त्र २२५ धर्मबिन्दुप्रकरण वृत्तिसह ३१४(४) कइसिद्वछन्दःशास्त्रवृत्ति १९८ बहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक ३२२ काव्यप्रकाश ३२३ १९३ बृहरक्षेत्रसमासप्रकरण ,, ३३१ अभिधावृत्तिमातृका प्रवचनसारोद्धार वृत्तिसह ३२६(२) अलंकारदर्पण आवश्यकवृत्ति प्र० खंड हारि० ३१६(१) कल्पलताविवेक तृतीय परिच्छेद द्वि० संड , ३१६(२) , चतुर्थ परिच्छेद २६५ समराइचकहा ३५४ गौडवहोमहाकाव्य सटीक धन्यशालिभद्रचरित्र ३४८ वासवदत्ताख्यायिका त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र तृतीयपर्वपर्यन्त ३७६(१) न्यायबिन्दु मूल तृतीय पर्व ३७६(२) न्यायबिन्दु टीका द्वितीय-तृतीयपर्व ३६५ न्यायकन्दलीटीका २४४ , ३७९ ४११ ३८० ११२ दशम पर्व धर्मोत्तरटिप्पनक २६४ पउमचरियं ३७४ न्यायप्रवेश मूल २०६ . . २३८ २४. " अष्टम पर्व ३७१ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशिष्ट पाठभेद न मळवाने कारणे मेळववानो समुचित प्रयत्न करीने जे ग्रन्थो संपूर्ण मेळव्या नथी तेनी यादी नीचे प्रमाणे २६ क्र० अन्धनाम क्र. ग्रन्धनाम ३६८ रत्नाकरावतारिका ४१४ मंगविषाप्रकीर्णक प्रथम खंड २४८ महावीरचरित्र १५ भगवतीसूत्रवृत्ति १(१-३) आचारांगसूत्र-नियुक्ति-वृत्ति , प्रथम खंड २(१-३) १३ , द्वितीय खंड आचारांगसूत्रचूर्णि १४ , २६ शतक पर्यन्त स्थानांगसूत्रवृत्ति ५२ कल्पवृत्ति प्रथम खंड जीवाभिगमसूत्रवृत्ति ५३ , द्वितीय खंड अनुयोगद्वारचूर्णि ५४ , तृतीय खंड १४९ अंगविद्याप्रकीर्णक ४. जे ग्रन्थोनी माइक्रोफिल्म लेवामां आवी के तेनी यादी नीचे प्रमाणे छे. रोल नं. १ १ निशीथचूर्णि, प्रथम खंड, पत्र ३३८ ७ जीवाभिगमसूत्र, पत्र १०२ २ , द्वितीय खंड, पत्र ४१९ ८ , लघुवृत्ति, पत्र १०३ थी १३५ ३ विशेषावश्यकवृत्ति, प्र. खंड, पत्र ३३५ ९ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, पत्र १४८ (मलधारीया) १० दशाश्रुतस्कन्धचूर्णि, पत्र १ थी ५० ४ , द्वि. खंड, पत्र ३२५ ११ दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, ५० थी ९२ ५ कल्पबृहद्भाष्य, पत्र २०७ १२ पञ्चकल्पचूर्णि, १७४ थी २४९ ६ पिंडनियुक्ति, वृत्तिसह रोल नं. २ १३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग, पत्र ९७ १८ समवायांगसूत्र, पत्र ६४ १४ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगचूर्णि, पत्र ४० १९ ओघनियुक्तिबृहद्भाष्य, पत्र १०१ १५ निर्यावलिकादिपंचोपांगसूत्र, पत्र २५ २० कल्पबृहद्भाष्य, प्रथम खंड, पत्र ३११ १६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग, पत्र १६४ २१ तपोटमतकुट्टन आदि, पत्र २० १७ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांगचूर्णि, २२ न्यायावतारवृत्ति टिप्पणीसह, पत्र १६५ थी २३३ टिप्पणीकार-ज्ञानश्री (), पत्र १३७. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, पत्र १५२ २४ चैत्यवंदनभाष्यसंघाचारटीका, पत्र २६१ टीकाकारस्यात्मीया प्रतिः २५ दशवैकालिकसूत्रचूर्णि श्री अगस्त्य सिंह - गणिकृता, पत्र १७७ थी ३४२ २६ ब्योतिष्करण्डक टिप्पनक २७ दर्शनशुद्धिप्रकरण विवरणसह, मूल- श्रीचन्द्रप्रभसूरि, विव० श्री देवभद्रसूरि पत्र १८६ रोल नं० ३४ प्रज्ञापनासूत्र, पत्र १७०, ले. सं. १३८९ ३५ प्रज्ञापनासूत्र लघुवृत्ति, पत्र २३४ थी ३५० ३६ मुनिसुव्रतस्वा मिचरित्र, पत्र १५७, ले. सं. १३०४ ३७ कल्पचूर्ण, पत्र ३३४, ले. सं. १३८९ ३८ पृथ्वीचन्द्र चरित्र पत्र २६०, ले सं. १२२५ ३९ संवेगरंगशाला, पत्र ३४८, ले. सं. १२०७ ४० उपदेशपदलघुटीका, वर्द्धमानसूरिकृता, पत्र १९२, ले. सं. १२१२ ४१ पंचवस्तुकव्याख्या, पत्र १९३ थी ३५० ४२ मिनाहचरिउ, अपभ्रंश, पत्र ३०४ २३ ५० उपासकदशांगसूत्रवृत्ति, पत्र १ थी २३ ५१ मन्तकृदशांगसूत्रवृत्ति, पत्र २३ थी ३१ ५२ अनुत्तरौपपातिकदशांगवृत्ति, पत्र ३१ श्री ३४ ५३ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रवृत्ति, पत्र ३५ थी १५९ ५४ विपाकसूत्रवृत्ति, पत्र १५९ थी १८१, के. सं. ११८५ २८ त्रिषष्टिशलाका चरित्र, गद्य, पत्र १६१, विमलसूरिकृत २९ भगवतीसूत्र, पत्र ३४८, के. सं. १२३१ ३० व्यवहारसूत्र, पत्र १ थी १५ ३१ व्यवहारसूत्रभाष्य, पत्र १६ थी १३६ ३२ पिंड नियुक्तिलघुवृत्ति, पत्र १ थी १३१ ३३ पिंडनियुक्ति पत्र १३२ थी १७५ ३ ४३ समराइ कहा, हरिभद्रसूरिकृता पत्र ३०७, के. सं. १२५० ४४ षडावष्यक सूत्रवृत्ति, नमिसाधुकृता, पत्र ९१, के. सं. १२९८. ४५ पाक्षिकसूत्रचूर्ण, पत्र २६ ४६ कर्मप्रकृति चूर्णिविशेषवृत्ति पत्र १०४ ४७ अतिमुक्तक चरित्र, पत्र २१ ४८ जम्बूद्वीपक्षेत्र समासवृत्ति, हरिभद्रसूरिकृता, पत्र २६ ४९ निशीथ चूर्णिविंशोदेशक व्याख्या, पत्र १७२ रोल नं० ४ ५५ उपासक दशांगसूत्र, पत्र १८२ थी २०२ ५६ अन्तकृद्दशांगसूत्र, पत्र २०३ थी २२२ ५७ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, पत्र २२३ थी २२८ ५८ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र, पत्र २२८ थी २५९ ५९ विपाकसूत्र, पत्र २५९ थी २८५, ले. सं. ११८६ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० धर्मविधिप्रकरण, नन्नसूरिकृत, पत्र १८६, के. सं. ११९० ३१ निशीथसूत्र, पत्र १५ ६२ निशीथसूत्रभाष्य, पत्र १७८ ६३ निशोथचूर्णि, प्रथम खंड, किंचिदपूर्ण, १० उदेशपर्यन्त, लेखन समय १० मासैकानो प्रारंभ ६४ भगवतीसूत्र, पत्र ४२२, लेखन समय १२ मो सैको ६५ ओघनियुक्तिवृत्ति, द्रोणाचार्यकृता, पत्र १०५, ले. सं. ११९७ ६६ आवश्यक सूत्रनिर्युक्ति, पत्र १४१, के. सं. ११६६ ७५ स्याद्वादरत्नाकर, प्रथम खंड, बादिदेवसूरिकृत, पत्र ३७३ ७६ पंचकल्पभाष्य, पत्र १०६ ७७ पंचकल्पचूर्णि, पत्र १०७ थी २०२ ७८ नन्दीसूत्र चूर्णि पत्र १८५ थो २२३ ७९ अनुयोगद्वार चूर्णि पत्र २२४ थी २७५ ८० न्यायभाष्य, पत्र ५७, लेखनसमय १५मो सैको, कागळनी प्रति ८१ न्यायवार्तिक, भारद्वाजकृत, पत्र ५८ थी २०० ८२ न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका, वाचस्पतिकृता, पत्र २०१ थी ४०१ ९१ अनेकार्थकैरवाकरकौतुदी, प्रथम खंड, पत्र २६४ २४ ६७ उपदेशप्रकरणलघुटीका, वर्द्धमानसूरिकृता पत्र १४९ थी २९९, ले. सं. ११९३ ६८ कर्मप्रकृति चूर्णि पत्र ३०६, के. सं. १२२२ ६९ दशवैकालिकषृत्ति, पत्र १०६ थी २१२ दशवैकालिक नियुक्ति पत्र १२ ७० ७१ पिडविशुद्धिप्रकरण, सटीक, पत्र १८४, टीका श्रीयशोदेवसूरि ७२ शतक चूर्णि पत्र १७३, ले. सं. ११९६ ७३ सूक्ष्मार्थं विचार सारचूर्णि, पत्र ६७ ७४ अणुव्रतविधि, पत्र ७७, के. सं. ११६९ रोल नं० ५ ८३ न्यायतात्पर्य परिशुद्धि, पत्र ४०२ थी ५६६ ८४ श्रीकण्ठीय टिप्पनक, ८५ पंचप्रस्थानटिप्पनक ८६ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांगसूत्र, पत्र ४६ [१६५९ थी १६९६] ८७ पिण्डनियुक्ति अवचूरि, पत्र ४७ ८८ बालशिक्षा व्याकरण, संग्रामसिंहकृत, पत्र ३० ८९ सिद्धिविनिश्वय, सटीक, पत्र ५८२ ९० निर्वाणलीलावती महाकथोद्धार ( लीलावतीसार), पत्र २६७ संस्कृत जिनेश्वरसूरिकृत, लेखनसमय १४ मो को रोल नं. ६ ९२ ९३ 19 "9 " 1 द्वितीय खंड, पत्र २३९ तृतीय खंड, पत्र १३४ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ सिद्ध हेमशब्दानुशासनलघुन्या सदुर्गपदव्याख्या, कनकप्रभकृता; प्रथमादर्श पत्र १८४ ९५ पञ्चग्रन्थी - बुद्धिसागरव्याकरण, पत्र ३७६ ९६ सिद्धमशब्दानुशासन रहस्यवृत्ति - सिद्धद्देमलघुवृत्तिसंक्षेप, पत्र १६० ९७ शतकचूर्णि, टक, पत्र ५७ थी १३५. ९८ ९९ पञ्चाशकप्रकरणलघुवृत्ति, पत्र २६५ १०० चैत्यवन्दनचूर्ण, यशोदेवसूरिकृता, पत्र ६३. १०१ वन्दनकचूर्णि, यशोदेवसूरिकृता, पत्र १ थी ४८ १०२ इरियावहिया चूर्णि, यशोदेवसूरिकृता, पत्र ४८ थी ५८ 17 २५ 29 १०३ खण्डनखण्डखाद्य, श्रीहर्षकृत, पत्र २६० १०४ भाष्यवार्तिकविवरण पञ्जिका, अनिरुद्धपण्डितकृता, अध्याय २-५, पत्र ११७ १०५ गौतमीयन्यायवृत्ति, पत्र १२४ १२१ अनर्घराघवनाटक, अपूर्ण, पत्र १६९ १२२ वेणीसंहारनाटक, पत्र ७३ १२३ चन्द्रलेखाविजयप्रकरण, पत्र २०३ १२४ अलंकारदर्पण, पत्र १३ १२५ चक्रपाणिविजयमहाकाव्य, पत्र ११७ १२६ हम्मीरमदमर्दननाटक, पत्र ९० १२७ वस्तुपालप्रशस्ति १२८ गउडवहो महाकाव्य, सटीक, टीका- उपेन्द्र हरिपाल पत्र २४८ १२९ भट्टिकाव्य - रामकाव्य, पत्र १४४ १०६ सर्वसिद्धान्तप्रवेश १०७ न्यायप्रवेशसूत्रवृत्ति पत्र १६४ १०८ सांख्यसप्ततिकावृत्ति, पत्र ८९ १०९ , पत्र १५७ ११० सांख्य सप्ततिकाभाष्य-टीका, गौडपाद आदि. पत्र १८३ १११ सांख्यसप्ततिका, वृत्तिसह, पत्र १०२ ११२ न्यायमञ्जरी ग्रन्थीभङ्ग, चक्रधरकृत, पत्र १८६ ११३ विलासवईकहा, अपभ्रंश पत्र २०६ ११४ पत्र २०३ 31 ११५ नैषधमहाकाव्य, पत्र ३१७ ११६ काव्यादर्श, सोमेश्वरकृत, पत्र २२२ ११७ काव्यप्रकाशसंकेत, माणिक्यचन्द्रकृत, अपूर्ण, रोल नं० ७ 39 पत्र ५३ ११८ काव्यप्रकाश अवचूरि, पत्र ९२ ११९ मुद्राराक्षस नाटक, पत्र १थी ९५ १२० प्रबोधचन्द्रोदयनाटक, पत्र ९६ थी १६५ " १३० वृन्दावन काव्य, सटीक, टीका-शान्तिसूरि, पत्र १ थी ३१ १३१ घटखर्परकाव्य, सटीक, टीका - शान्तिसूरि, पत्र ३२ थी ४२ १३२ शिवभद्रकाव्य, सटीक, टीका-शान्तिसूरि, पत्र ४३ थी ८७ १३३ मेघाभ्युदय काव्य, सटीक, टीका-शान्तिसूरि, पत्र ८८ थी ११४ १३४ चन्द्रदूतकाव्य, सटीक, टीका-शान्तिसूरि, पत्र ११५ थी १३३ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ राक्षसकाव्य, सटीक, टीका-शान्तिसूरि. १५४ कातन्त्रयाकरणवृत्तिपञ्जिका, पत्र २७० पत्र १३३ थी १४६ , ,, कृवृत्ति, पत्र १६४ १३६ घटसर्परकाव्य, सटीक, टीका-शान्तिसूरि- १५६ कातन्त्रव्याकरण दुर्गपदप्रबोध, प्रबोधमूर्तिपत्र ३९ थी ५३ कृत, पत्र १९१ १३७ काव्यप्रकाश, टिप्पणीसह, पत्र १७८ १५७ कातन्त्रोत्तरविद्यानन्दिवृत्ति, पञ्चसन्धि, १३८ जयदेवछन्दःशास्त्र, पत्र १० पत्र ७४ १३९ जयदेवछन्दःशास्त्र, वृत्तिसह, पत्र १ थी ५५ १५८ कातन्त्रोत्तरविद्यानन्दिवृति, नामद्वितीयपाद१४० कइसिट्ठछन्दःशास्त्र, विरहांक, पत्र ५६थी८९ पर्यन्त, पत्र ४६ १४१ कहसिट्ठछन्दःशास्त्र, वृत्तिसह, वृत्ति-भट्ट- १५९ कातन्त्रोत्तरविद्यानन्दिवृत्ति, कारकप्रकरण, गोपाल, पत्र ८९ थी १८३ पत्र २७ १४२ वृत्तरत्नाकर, पत्र १५ १६० कातन्त्रोत्तरविद्यानन्दिवृत्ति, कारकटिप्पण, १४३ छन्दोनुशासन, जयकीर्तिकृत, पत्र २८ पत्र ४३ १४४ काव्यादर्श, तृतीयपरिच्छेदपर्यन्त पत्र ३९ १६१ कातन्त्रोत्तरविद्यानन्दिवृत्ति, तद्धितपर्यन्त, ११५ अलंकारदर्पण, पत्र २४ पत्र ३०९ १४६ मभिधावृत्तिमातृका, पत्र ३१ १६२ स्याद्यन्तप्रक्रिया, सर्वधरकृता, पत्र ९४ १४७ उद्भटालङ्कारलघुवृत्ति, प्रतीहारेन्दुराजकृता, १६३ प्राकृतप्रकाश, पत्र २८ पत्र १४३ १६४ न्यायकन्दलीटीका अपूर्ण, पत्र ३८७ १४८ रुद्रटालङ्कार, तृतीयाध्यायथी पञ्चमाध्याय १६५ प्रशस्तपादभाष्य, अपूर्ण, पत्र ३३ पर्यन्त, पत्र ४६ १६६ न्यायकन्दली, श्रीधरकृता, पत्र ५१ थी ८७ १४९ कविरहस्य-अपशब्दाभासकाव्य, सटीक, १६७ मीमांसादर्शन-शाबरभाष्य, पत्र १ थी ५० १६८ प्रमाणान्तर्भाव, पत्र ५१-९७ पत्र ७४ १५० वामनीय काव्यालङ्कार, स्वोपज्ञवृत्तिसह, १६९ धर्मोत्तरटिप्पनक, मल्लवादिकृत, पत्र ९४ ' १७० , पत्र ७७ टिप्पणीसह, पत्र १३० १७१ अनेकान्तजयपताकाटिप्पनक, मुनिचन्द्र१५१ व्यक्तिविवेककाव्यालङ्कार, राजानकमहिमकृत, सूरिकृत, पत्र २३१ पत्र १९८ १७२ प्रमालक्ष्मलक्षण, सटीक, पत्र २७२ १५२ सिद्धहैमलघुवृत्ति, पश्चमाध्याय, १७३ वासवदत्ता, पत्र ४७ ले. सं. १२०६, पत्र ९१ १७४ लोलावईकडा, कुतूहलकविकृता, पत्र १४३, १५३ कातन्त्रव्याकरण, माझ्यातवृत्ति, पत्र ३०३ . सं. १२६५ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७५ महावीरचरित्र, प्राकृत, नेमिचन्द्रस्कृित, ले. सं. १२७९ ले. सं. ११६१, पत्र १५७ १८१ न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि, उदयमाचार्यकृता, १७६ अर्थशास्त्रवृत्तिसंक्षिप्त, त्रूटक, अपूर्ण अपूर्ण, पत्र १५७ थी ३२५, ले.सं. १२७९ १७७ विशेषावश्यकमहाभाष्य, पत्र २८४, लेखन- १८२ षडशीतिकर्मग्रन्थटिप्पनक, रामदेवगणिकृत, समय १० मो सैको पत्र ७४ थी १०५, कागळनी प्रति, ले. १७८ न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका, वाचस्पतिमिश्र- सं. १२४६ कृता, पत्र ५ थी २८० ले. सं. १२७९ १८३ द्वादशारनयचक्र, पत्र ५२२, कागळनीप्रति १७९ न्यायभाष्य, अपूर्ण, पत्र २८१ थी ३५० १८४ दशवैकालिकसूत्र, त्रिपाठ, पत्र १६, १८० न्यायवार्तिक, भारद्वाजकृत, पत्र ८ थी१५७, कागळनी प्रति रोल नं०८-परिशिष्ट १८५ नन्दीदुर्गपदवृत्ति, श्रीचन्द्रसूरिकृता, १९८ , पत्र १६२+३१, ले.सं. १२२२ पत्र ३ थो २२१ १९९ पातंजलयोगदर्शनभाष्य, वाचस्पतिमिश्रकृत, १८६ पञ्चवस्तुकप्रकरण, पत्र १५२ पत्र १ थी १६० १८७ सप्ततिकाटिप्पनक, रामदेवगणिकृत, २०० , जीर्ण, पत्र १६१ थो२१७ पत्र ५६, ले. सं. १२११ २०१ आवश्यकटिप्पनक, मलधारिहेमचन्द्रसूरि१८८ बहत्संग्रहणो, सटीक, पत्र १५०, टीका- कृत, पत्र ३१५ शालिभद्रसूरि २०२ चउम्पन्नमहापुरिसचरिय, पत्र १, तथा पत्र १८९ धर्मबिन्दुप्रकरण, पत्र ६४, लेखनसमय २२१ थी २२३ (चार पत्र) १२ मो शतक २०३ पार्श्वनाथचरित्र, देवभद्रसूरिकृत, पत्र १, १९० उपदेशपदप्रकरण, पत्र ११२ ले. सं. ११७८ तथा पत्र २२९ मुं (बे पत्र) १९१ प्रकरणपुस्तिफा, पत्र ४५, ले. सं. ११६९ २०४ पञ्चाशकप्रकरणवृत्ति, पत्र १, २६०, १९२ सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण-सार्धशतक, २६१ (त्रण पत्र) पत्र ११, लेखनसमय १२ मो सैको १९३ श्रावकधर्मविधिप्रकरण, पत्र ८ २०५ महावीरचरित्र, गुणचन्द्रकृत, पत्र १ तथा १९४ ओकारपञ्चाशिका, पत्र ५ ३६१ थी ३६३ (चार पत्र) १९५ श्रावकविधिप्रकरण, पत्र ४ २०६ न्यायभाष्य, पत्र ५७ १९६ सुभाषितपद्यसंग्रह, पत्र ३ २०७ न्यायवार्तिक, भारद्वाजकृत, पत्र १४२ १९७ प्रकरणसंग्रह, पत्र १२७, ले. सं. ११९२ (५८ थी २००) Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ २०८ न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका, वाचस्पतिमिश्रकृता, पत्र २०१ (२०१ थी ४०१) - २०९ न्यायतात्पर्य परिशुद्धि, उदयनाचार्यकृता; पत्र १६४ (४०२ थी ५६६) २१० न्यायटिप्पन, श्रीकण्ठकृत, पत्र ४९ (५६७ थी ६१४) A २११ जम्बूद्वीपप्रज्ञति सूत्र, पत्र ४६ (१६५१ थी १६९६) २१२ पिण्डनिर्युक्तिअवचूरि २१३ बालशिक्षा व्याकरण, पत्र ३० २१४ निर्वाणलीलावती कथोद्धार, पत्र २६७, अपूर्ण. ' उपर जणावेला ग्रन्थोनी माइक्रोफिल्म लेवानुं कार्य न्यु दिल्हीमां कराववामां आव्युं छे. मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स अने ओथोरीटीस ऑफ एडमिनिस्ट्रेटीव इ-टेलीजन्ट्स रूम (क्वीन्स वे, न्यु दिल्ही), आर माइक्रोफिल्म लेवाना कार्यमां अनुकूलता आपी हती. आ दिवसोमां नेशनल म्युझीयम - न्यू दिल्हीना विद्वान् अध्यक्ष श्री डॉ. वासुदेवशरणजी अग्रवालने आ ग्रन्थेनुं महत्त्व अने दर्शनीयता जणातां तेमणे ता. २४-२५ फेब्रुअरी १९५१ ना दिवसे नेशनल म्युझीयममां आ ग्रन्थोनुं प्रदर्शन योग्य हतुं. आ प्रसंगे तेमणे प्रकाशित करेला निमंत्रण पत्रमा जेसलमेरना जैन भंडार अने तेना ग्रन्थो माटे आ प्रमाणे जणान्युं हतुं : -- AN EXHIBITION OF OLD PALM-LEAF MANUSCRIPTS These mansucripts belong to the Jinabhadra Jñana Bhandar, an ancient library established in the 15th century at Jaisalmer as part of a Jain temple establishment. The library contains some of the oldest manscripts known in India going back to the 10th century A. D. and has remained almost sealed to the public from the 15th century, which partly accounts for its preservation intact. The distinguished Jain scholar Muni Punya Vijayaji, through his personal influence १. पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीना काळधर्म पछी तेमनी अंतरेच्छाने अनुसरीने तेमना प्रधान शिष्य दीर्घतपस्त्री पंन्यासजी दर्शविजयजी महाराज साहेबे पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीनो समग्र संग्रह (हस्तलि खितं मुद्रित ग्रंथो अने अन्य कलासामग्री) श्री ला.द. विद्यामंदिरने समर्पित कर्यो छे. आ संग्रहमां अह उपर जणावेली, माइक्रोफिल्न टेवायेला ग्रंथोनी यादी पण मळी आवी छे, जे पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए स्वहस्ते लखेली छे. आ यादीने अनुसरीने ज उपर जणावेली ग्रन्थसूचि आपवामां आवी छे. आम छतौ आ सूचिमां आवेला रोल नं ६-७८ ला.द. विद्यामंदिरमां आव्या नथी. आ संबंधमां विशेष तपास करतां एम जणायुं छे के उक्त ऋण रोल पं. श्री फतेचंदभाई बेलाणीनी पासे छे. आ संबंधमां ला.द. विद्यामंदिरना मुख्य निय मक पं. श्री दलसुखभाई मालवणियानी समक्ष रूबरू मुलाकातमां पं. श्री फतेचंदभाई बेलाणीए मौखिक जणावे के रोल नं. ६ ७ ८ तो में मारा माटे अने मारा खर्चे लेारावेला छे. आभी उक्त त्रण रोल ला.द. विद्यामंदिरमां आव्या नथी Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ persuaded the custodians of this library to have the manuscripts not only properly examined and catalogued, but also preserved for posterity and multiplied for scbolars with the aid of microfilming. Accordingly, important select mansucripts of palm-leaf were brought to New Delhi and have been microfilmed through the special facilities provided by the Ministry of Commerce and the authorities of the Administrative Intelligence Room, Queensway, New Delhi. Before sending back the manuscripts to their traditional custody at Jaisalmer to be kept in specially designed new aluminium containers, an opportunity has been taken to put them on view in an Exhibition open to the public under the auspices of the National Museum of India with the kindness of Sri Fateh Chand Belaney, who has organised the microfilming arrangements. The manuscripts were specially seen by the Hon'ble Dr. Rajendra Prasad who evinced keen interest in their future preservation and publication. The collections of the Jaisalmer Bhandar consist of 402 manuscripts on palm-leaf and more than 1000 on paper together with a number of beautifully painted wooden book-covers, which have been sent to Bombay for coloured reproducation. The Bhandar is considered to be the oldest amongst all the Jain manuscripts collections in this country so far known, containing a number of important manuscripts of the 11th, 12th and 13th centuries. Besides collecting Jain religious texts, the Bhandar was founded with a more eclectic aim and therefore it contains manuscrip's relating to the systems of Indian pbilosopby like Sārkbya Mimamsā, Vaiseshika, Nyāya ard Yoga, and also works on Poetry, Rhetoric, Metres, Drama, Romance, Literature, Stories, Lexicons, Grammar, etc A new commentary of about the 14th century on the Artkaśastra of Kautilya has been discovered in this Bhandar. When properiy edited, it is expected to throw new light on the continuity of the textual tradition of the Arthaśâştra in India. As is known, the Arthaśāstia was discovered by the late Dr. Shama Shastri only about forty years ago. For the first time a manuscript library in India has brought to light Buddhist Sapskrit texts on philosophy, a voluminous literature preserved in original in Nepal and in translations in Tibet and China, but lost in its homeland, A Palm-leaf manuscript of Nyaya-Piaveśa of the famous Buddhist philosopher Dinnāga written in 1146 A, D. as well as the Taittasangraha of Kamalasila, Principal of the Nalanda University with his own commentary dated 12th century (the only known copy in the world ) and some other works are on view in the Exhibition. There are some manuscripts discovered for the first time, e. g. two new commentaries on Sankhya-Saptati and a Bbäsbya on the Ogha-Niryukhi. The author's copy of a commentary by Kanak Vijaya on Hema Chandra's Grammar Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 90 dated 1214 A. D. is also on show. There are other manuscripts from this collection in the Exhibition, the dates of which coincide with the dates of their first composition and these belong to the early part of the 12th century. The manuscript of the Nishitha-Sülra ( 12th century A. D.) is the personal copy of the famous Jain pontif Sri Jina Datta Sūri. Of even greater interest are the several manucrfpts of old romance literature, e. g. Tilaka-mañjari, of Dhanapala (1073 A. D.), Śringāra-mañjari by the famous king Bhoja (a beautiful new love romance with a good deal of cultural documentation of the 11th cintury), Kuvalaya-mālā-Kaha by Udyotana Sūri (1082 A. D.), Väsavadattă by Subandhu (1150 A. D.), Samvega-Ranga-śālā by Jina Chandra Sūri (a new and unpublic hed story book in Prakrit relating to love and renunciation, dated 1150 A.D.), Vilāsavatikathā in Apabhraíša, Samarāditya-kathā (Prakrit, dated 1193 A. D.) and Nirvana-lilāvati (dated 1208 A. D.). The mansucript of the Nārāyaṇi commentary on the Naishadha-charita was written in 1303 A. D., only eight years after its composition. A comjo-ite manuscript of 615 palm-leaves preserves the whole gamut of Nyāya literature consisting of the Bhăsh,a of Vätsyāvana, Värttika of Bhārdyāja, Tā paryaţikā by Vāchaspati, Tätparya paris'uddhi by Udayana and Nyāya Tippanaka by Srikantha, The entire literature of the Jain Anga texts in Ardhamāgadhi with Prakrit and Sanskrit commentaries is represented in manuscripts written between 1064 and 1174 AD. This collection also shows the oldest paper manuscript so far found in India (dated 1189 A. D.) of a work called Karmagranglha Țippana. The longest palm-leaf manuscript in the exhibi ion is of 34" written in perfectly preserved black ink. Palmleaf was specially imported from Indonesia during the medieval period and was called Sri-tāla Each leaf has four or eight lines of writing. The script of the manuscripts is Devanagari of the llth-12h century. Some specimens of old writing material are also on show. V. S. AGRAWALA Superintendent, प्रन्थोने सुरक्षित रीते जेसलमेरथी दिल्ही लई जवा माटे भाई लक्ष्मणदास भोजक तथा चिमनलाल भोजकने मोकलवामां आव्या हता. दिही पहोंच्या पछी लक्ष्मण दासनी जेसलमेरमा धणी अगत्य होवाथी तेमना भाई रसिकलाल भोजकने न्यु दिल्ही मोकलीने लक्ष्मणदासने जेसलमेर बोलावी लिधा हता. आ बे भाईओए (चीमनलाल तथा रसिकलाल) दिल्हीमां ग्रन्थोनी फिल्म लेवा माटे प्रत्येक ग्रन्थनां पानां गोठववा आदिनुं कार्य चोकसाईथी कयुं हतुं अने बधाय ग्रन्थोने सुरक्षित रीते जाळवीने जेसलमेर लान्या हता. आ कार्य माटेनी व्यवस्था पं. श्री फतेचन्दभाई बेलाणीए करी हती. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ अहीं एक हकीकतनी खास नांध लेवी जोईए के जेसलमेर निवासी श्रेष्ठी श्री राजमलजीना सुपुत्र श्रेष्ठी श्री फतेसिंहजी महेताए, भंडारना अन्य ट्रस्टोओनी समक्ष दिल्ही मोकलवाना ग्रन्थोना संबंधां संपूर्ण जवाबदारी न स्वीकारी होत तो आ ग्रन्थोनी माइक्रोफिल्म लेवानुं कार्य न न बनी शकत. पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए जेसलमेरथी लखेला पत्रोमा जेसलमेरना भंडारो विषे घणी हकीकती जणावी छे. आमांनी केटलीक हकीकती श्री महावीर जैन विद्यालय ( मुंबई ) द्वारा प्रकाशित 'ज्ञानांजलि - पूज्य मुनि श्री पुण्यविजयजी अभिवादन ग्रंथ 'मांथी जाणी शकाशे. * पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए प्रस्तुत ज्ञानभंडारसमुद्धारनुं कार्य कर्तुं ते समयमा जे अनेक महानुभावो जेसलमेर आवेला ते पैकीना केटलाक उल्लेखनीय महानुभावोनी यादी आ प्रमाणे छेडॉ. श्री जितेन्द्रभाई जेटली दार्शनिक ग्रन्थोनी कॉपी अने संशोधन कार्य माटे चारथी पांच महिना रह्या. पं. श्री बेचरदासजी दोसी काव्यकल्पलतापल्लवशेषनुं संशोधन आदि कार्य माटे आसरे दोढ महिनो रह्या. जर्मन विद्वान् डो. आल्सडॉर्फ घणा ग्रन्थोनी फोटोकॉपी लेवा माटे चार दिवस रह्या. भारतीय तत्त्वज्ञाननाऊंडा अभ्यासी पं. श्री दलसुखभाई मालवणिया दर्शनशास्त्रना ग्रन्थोनी कोपीओना संज्ञोधन आदि कार्य माटे चार दिवस रह्या. राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठानना सम्मान्य संचालक पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी, प्राच्यविद्यामंदिर (वडोदरा) ना मुख्यनियामक श्री डॉ. भोगोलालभाई सांडेसरा तथा श्री अगर चन्दजी नाहटा विविध विषयक अनेक ग्रन्थोना निरीक्षणार्थे आशरे चार दिवस रह्या. शेठ श्री कस्तुरभाई लालभाई पोताना विशाळ कुटुंब साथे चार दिवस रह्या शेठ श्री केशवलाल कीलाचंद, शेठ श्री चीमनलाल पोपटलाल, शेठ श्री जेसींगलाल लल्लुभाई झवेरी, श्री केशवलाल मंगळचंद, श्री मोहनलाल दीपचंद चोकसी तथा श्री फूलचंदजी झाबक आदि अनेक धर्मानुरागी श्रेष्ठीओ पण चार पांच दिवस रह्या. शेठ श्री त्रिक्रमलाल महासुखलाल विशाळ जनसमूह साथे तथा अमदाबाद मोटीपोळ अने नागजी भूदरनी पोळना भाईओनो मोटो समूह चार पांच दिवस रहेल. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ जेसलमेरना ज्ञानभंडारोना समुद्धार संशोधन आदिना संबंधमां पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी साथेना मुनिवरो, सहायक विद्वानो, अन्य कार्यकरो तेमज आ महत्वना ज्ञानकार्यमां थयेल खर्चना दाताओ वगेरेनी विगतो दर्शावतो एक शिलालेख सुंदरलिपिमां कोतरावीने जे भयरामां भंडार छे ते भयराना प्रवेशना पहेला खंडमां पत्थरनी दीवाल कोचीने चोडाव्यो छे जेथी आवा ज्ञानकार्यमा ते ते प्रकारे प्रेरणा अने अनुमोदनानी परंपरा जळवाई रहे, आ शिलालेखनो पूरो ख्याल आवे ते माटे तेनो ब्लोक बनावीने तेनी प्रतिकृति आ सूचीपत्रना प्रारंभमां मूकवामां आवी छे, अने तेनुं समग्र लखाण सुवाच्य बने ते माटे आ ग्रन्थना अंतमां छट्टा परिशिष्टरूपे आप्युं छे. संस्कृतभाषामां लखायेला आ शिलालेखनो अनुवाद नीचे प्रमाणे छे. जेसलमेर ज्ञानभंडार शिलालेख श्रमण भगवान वीर वर्द्धमानजिनने नमस्कार हो. अनुयोगधरोने नमस्कार हो. कमठासुरना प्रतापनं मथन करनारा, श्री अश्वसेन तथा श्री वामादेवीना पुत्र, प्राभाविक, नामस्मरण मात्री रोगोने दूर करनारा, अर्हन्, घरणेन्द्रथी सेवित, पद्मावतीथी संस्तुत, एवा श्री पार्श्वजिननुं हुं पुनः पुनः शरण स्वीकारुं लुं. स्वस्ति श्री विक्रम संवत् २००७ना चैत्र सुदि ११ तिथि अने बुधवार पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रमां स्थिरयोगमां आज अहीं श्री जेसलमेर महादुर्गमां खरतरगच्छालंकार युगप्रधानाचार्यप्रवर श्रीजिनभद्रसूरिज्ञानभंडारनी, जीर्णोद्वारादि कार्य पूर्वक, फरीने स्थापना करवामां आवी छे. आ ज्ञानभंडार युगप्रधानाचार्य श्री जिनभद्रसूरिए विक्रमना पंदरमा शतकना चौथा चरणमां स्थापित क्रर्यो हतो. तेमां तेमणे जैन जैनेतर स्थविरार्यपुंगवोए रचेला अतिबहुमूल्य अलभ्य अने दुर्लभ्य प्राचीनतम ग्रन्थोनो संग्रह कर्यो हतो. तेम ज तेमणे ताडपत्र अने कागळ उपर हजारो ग्रन्थो लखाव्या हता. अने ते अहींना - जेसलमेरना अने अणहिलपुर पाटण वगेरेना भंडारोमां मूक्या हता. आज पर्यन्त घणा मुनिपुंगवाए भने श्रेष्ठ विद्वानोए जेसलमेर दुर्गमा रहेल आ अतिमहान् ज्ञानभंडारनुं अवलोकन, ग्रन्थसूची, पुस्तक लेखन अने जीर्णोद्धारादि कार्य कयुं छे. तेमां य गया सैकामां डॉ. टोड, डॉ. बुल्हर, डो. याकोबी, डॉ. भाण्डारकर, यति श्री मोतीविजयजी, श्री हंसविजयजी महाराज, श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स - मुंबई, श्री सी. डी. दलाल, श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि, श्री जिनहरिसागरसूरि, भारतीयविद्याभवन ( मुंबई ) ना आद्य आचार्य श्री जिनविजयजी, यति श्री लक्ष्मीचन्द्रजी वगैरे विद्वद्वरोए ज्ञानभंडारनुं निरीक्षण, पुस्तक लेखन अने ग्रन्थसूचीनुं पाण्डित्यसूचक कार्य कर्युं छे. आम छतां एक पण प्रकाण्ड विद्वाने आ भण्डारनुं जीर्णोद्धार प्रन्थव्यवस्थापन-लेखनसंशोधनादि कार्य समप्रभावे कर्यु नथी. Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री संघना पुण्योदयथी अने जेसलमेरना श्री संधनी सम्मतिथी संघवी शेठ श्री सांगीदासजी बाफणाना सुपुत्र श्रेष्ठी श्री आयदानजी अने श्रेष्ठी श्रीराजमल जीमहेताना सुपुत्र श्री फत्तेसिंहजी महेता, आ बे सुश्राव कोनी विनंतिथी, तपगच्छदिवाकर न्यायांभोनिधि संविग्नशाखाना आद्य आचार्य पंजाबदेशोद्धारक आचार्य श्री विजयानन्दसूरि (आस्मारामजी महाराज )ना शिष्य अणहिल्लपुर पाटण आदिमां रहेल जैन ज्ञानभण्डारोना उद्धारक प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजीना शिष्य लिंबडी वगेरे नगरोना प्राचीन ज्ञानभंडारोना उद्धारक श्री आत्मानन्द जैन ग्रन्थमालाना संपादक मुनिवर श्री चतुरविजयजी महाराजना शिष्याणुरन अने समग्र जिनागमना सांग संशोधननी इच्छावाळा मुनि पुण्यविजयजीए, राजनगर (अमदावाद) गुजरातथी अत्युग्र विहार करी जेसलमेर आवीने अहींना किल्लामा रहेला प्राचीनतम जैन ज्ञानभण्डारनो, ग्रन्थलेखन-संशोधन-पृथक्करण-टीप वगेरे करीने सर्वांगीण समुद्धार को. पूज्यप्रवर चारित्रचूडामणि श्री हंसविजयजी महाराजना शिष्य विनीतस्वभावी पंन्यास श्री संपद्विजयजीना शिष्याणु अनेक ग्रन्थोनुं संशोधन अने नकल करवामां प्रवीण मुनि श्री रमणिक विजयजी अने पोताना शिष्य श्री जयभद्रवि चयनीथी सहित मुनिवर्य श्री पुण्यविजयजीए पोताना मोटा गुरुभाई पूज्यपाद श्री मेघविजयजी महाराजनी छत्रछायामां रहीने उपर जणावेलू जीर्णोद्धारादि कार्य कयुं छे. भनेककार्यकुशळ न्यायतीर्थ बेलाणी श्री फत्तेहचन्द्र, भोजककुलभूषण पंडित श्री अमृतलाल, सततसंशोधनादिलीन पंडित श्री नगीनदास अने लेखनकलाप्रवीण भोजक चीमनलाल, आ चारेय विद्वानोए आ भण्डारना जीर्णोद्धारादि समस्त कार्यामां सतत सहाय करी छे. तथा राजनगरनी श्री गुजरातविधासभाए पोताना खरचे मोकलेला श्री जितेन्द्रभाई जेटली एम. ए. न्यायाचार्य पण अहींना ज्ञानभण्डारोमा रहेला दार्शनिक ग्रन्थोना संशोधनादिमां सहायक थया छे. तथा महीना भंडारना जीर्णोद्धारादिने उपयोगी अन्यान्य कार्यानो निरन्तर श्रम उठावनार भोजककुल नंदन लक्ष्मणदास अने रसिकलाल (बे भाईओ) पण सहायक थया छे. रसोई करनार वीरचंद भने माधवसिंह ठाकोर पण उत्साह पूर्वक बधाने आनंद आपता हता. ___ श्री जैन कॉन्फरन्स-मुंबई, आ संस्थाए जीर्णोद्धारादिमां थएला समस्त द्रव्यनी व्यवस्था करी छे. तेमां उपर जणावेला विद्वद्वर्ग आदिना निमित्तनी बधी ज व्यवस्थानो खरच अणहिल्लपुर पाटणना निवासी श्रेष्ठी श्री कीलाचन्द्रात्मज श्री केशवलालभाईनी सत्प्रेरणाथी प्रेराईने पाटणना ज वतनी उदार प्रकृतिवाळा जिनप्रवचनना अनुरागी श्रेष्ठी श्री पोपटलालना सुपुत्र श्री चीमनलालभाईए पोताना ज्ञानावरणादि क्लिष्ट कर्मनी निर्जरा निमित्ते को छे. ग्रन्थोनी काष्ठपट्टिकाओ, दोरीओ, वस्त्रनां बन्धनो, एल्युमिनियमना डबा अने लोखंडनां कबाट वगेरे माटेनी तेमज माईक्रोफिल्म संबंधी समग्र द्रव्या Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवस्था, श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्सना कार्यकरोनी विनंतिथी जे जे श्री संघ तथा महानुभावोए की तेमनी नामावली आप्रमाणे छे-रु.१००००) श्री गोडोजी जैन श्री संघ-मुंबई, रु. २०००) कोट श्री संघ-मुंबई, रु. २०००) श्री संघ-पूना, रु. २०००) श्री संघ-कलकत्ता, रु. २५००) शेठ हेमचंदभाई-भूपेन्द्रबधर्स-मुंबई, रु. ७५१) जानीसेरी श्रीसंघ-वडोदरा; रु. ७५१) श्री आत्मारामजी जैन ज्ञानमंदिर-वडोदरा, रु.५००) जसकोर बहेन झवेरी ह. हसमुखबहेन झवेरी-वडोदरा, रु. ४०१) शा. छगनलाल लक्ष्मीचंद-बडु. ___ उपर जणावेला बधाय सहायको करतां पण अति उपयोगी सहाय करनार तो जेसलमेर श्रीसंघना व्यवस्थापको अने श्रीसंघना आगेवान सुश्रावको छे. तमनां नाम आ प्रमाणे छे-१. श्रेष्ठी श्री रतनलालजी महेताना पुत्र श्रेष्ठी श्री रामसिंहजी; २. श्रेष्ठी श्री फत्तेसिंहजी महेता ( श्रेष्ठी श्री राजमलजी महेताना सुपुत्र ); ३. श्रेष्ठी श्री आयदानजी बाफणा अने ४ श्रेष्ठी श्री केसरीमलजी जिंदाणीना सुपुत्र श्रेष्ठी श्री प्यारेलालजी. ज्ञानभक्तिथी शोभायमान मा चार श्रेष्ठीमओए व्यवस्थादि माटे समस्त ज्ञानभण्डार सोप्यो जेथी ज्ञानभण्डारनी व्यवस्था आदिमां सुविधा थई. ___मही पंदर महिनाथी कंइक बधारे समय रहीने जीर्णोद्धारादि सर्व कार्य पूर्ण क्युं छे. श्री संघ भट्टारकनुं कल्याण हो. मा प्रशस्ति चीमनलाले लखी अने मेडती सलाट ईस्माईले शिला उपर उत्कीर्ण करी. वीरसंवत् २४७७. शुभ थामओ. तपागच्छाधीश श्री विजयानन्दस्पिट्टप्रभाकर श्री विजयवल्लभसूरिना धर्मसाम्राज्यमा भने स्वतंत्रभारतमहासाम्राज्यगणतंत्रनी छायामां रहेला महारावलजी श्री रघुनाथसिंहजी साहेब बहादुरना विजय राज्यमां. प्रस्तुत ज्ञानभंडारोना, संपूर्ण सुरक्षा आदि कार्यनी समाप्ति पछी अनुक्रमे ई. स. १९५४ अने १९५५मा भारतगणतंत्रना प्रथम वडा प्रधान अने प्रथम राष्ट्रपति पं. जवाहरलालजी नेहरु अने डॉ. श्री राजेन्द्रप्रसादजी जेसलमेर गयेला. मा बन्ने विभूतिओए ज्ञानभंडारने जोइने जे अभिप्राय आप्यो छे ते तेमना पोताना हस्ताक्षरोमांज ग्रन्थना प्रारंभमां मुद्रित कये! छे. गत ता. ६-११-१९७१ना रोज श्रीसंघ-जेसलमेरना अग्रणी शेठिया अमदावाद आवेला, तेमणे जणाव्यु छ के तपागच्छीय ज्ञानभंडार, थाहरू शाहनो ज्ञानभंडार भने डूंगरजी यतिनो Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानभंडार, एम जेसलमेरना त्रण ज्ञानभंडारो सिवायना शेष बधाय भंडारो हवे किल्लामां श्रीजिनभद्रसूरि ज्ञानभंडारनी साथे ज मुकवामां आव्या छे. अहीं माइक्रोफिल्म लिधेला ग्रंथोनी यादी आपीछे तेमां कोईक कोईक ग्रंथ जेसलमेरभंडार सिवायनो पण छे. पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी लांबा समय सुधी जेसलमेरमा रह्या ते समयमां सिद्धिविनिश्चय, द्वादशारनयचक्र जेवा कोईक ग्रन्थो तेमणे अन्य स्थानोना भंडारोमांथी मंगावेला. तेनी उपयोगिताना लीधे फिल्म पण साये साये लेवरावी लीधी छे. श्री महावीर जैन विद्यालय संचालित आगमप्रकाशन विभागना संचालक महानुभावोए आगमप्रकाशनकार्यना समयमां आ प्रस्तावना लखवानी अनुमति आपीने मने अनुगृहीत को छे. श्रीला. द. भारतीयसंस्कृतिविद्यामंदिर ) युनिवर्सीटी विस्तार, नवरंगपुरा __ अमदावाद ९ ता. ८-११--१९७१ विद्वजनविनेयअमृतलाल मोहनलाल भोजक Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ जयन्तु वीतरागाः॥ ॥ णमो त्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्त ॥ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ खरतरगच्छीय युगप्रधान आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिसंस्थापित ताडपत्रीय जैन ग्रन्थभंडारनुं सचिपत्र, क्रमाङ्क १ (१) आचारांगसूत्र पत्र १-७१। भा. प्रा.। ग्रं. २६५४ । (२) आचारांगसूत्र निर्यक्ति पत्र ७२-८७। भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ३६६ । (३) आचारांगसूत्र वृत्ति पत्र १-४२१। भा. सं. । क. शीलांकाचार्य । ग्रं. १२००० । ले. सं. १४८५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१mx२. पत्र ३४६ मध्ये तदात्मकस्य ब्रह्मचर्याख्यश्रुतस्कन्धस्य निर्वृतकुलीनश्रीशीलाचार्येण तत्त्वादित्यापरनाम्ना वाहरिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाप्तेति ॥छ। सत्त सहस्सा पंच य, सयाई अहियाई णेय णूणाई। गंथस्स य रइयाई, विहिणा कम्मक्खयट्ठाए ॥ अक्खर मत्ता बिंदू, वयण पयं तह य गाह वित्तं च। जं इत्थ न मे लिहियं, तं समयविऊहिं खमियव्यं ॥२॥ कृतिः श्रीशीलाचार्यस्येति ॥छ॥ ॐ नमः ॥ जयत्यनादिपर्यन्तमनेकगुणरत्नभृत् । न्यक्कृताशेषतीर्थशं तीर्थ तीर्थाधिपैर्नुतम् ॥ इत्यादि... अन्तआचार्यशीलाकविरचितायामाचारटीकायां द्वितीयः श्रुतस्कन्धः ॥छ॥ समाप्तं चाचाराङ्गमिति ॥छ। आचारटीकाकरणे यदाप्त, पुण्यं मया मोक्षगमैकहेतु । तेनापनीयाशुभराशिमुच्चैराचारमार्गप्रवणोऽस्तु लोकः ॥छ॥ ग्रन्थाग्रे सहस्र द्वादश अङ्कतोऽपि ॥छ॥१२०००॥ शुभं मङ्गलम् ॥ श्रीः ॥ श्रीः यावन्मही यावदिमे समुद्राः, तिष्ठन्ति यावच्च कुलाद्रयोऽमी। तावच्चिरं पुस्तकमस्तदोष नन्द्यात् सुधीभिभुवि वाच्यमानम् ॥ श्री ॥छ।। ॥ स्वस्ति सं. १४८५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि द्वितीयायां गुरौ श्रीखरतरगच्छे भट्टारकश्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये परीक्षगूजरसुतधरणाकेन श्रीआचारागसूत्र-नियुक्ति-वृत्तिपुस्तक लेखयाञ्चके ॥ ठा. सारङ्गन। पं. सोमकुजरगणिना सोधितम् ॥ श्रीजयसागरमहोपाध्यायपादानां समीपे पठता पं. सोमकुञ्जरमुनिना यथायोगं शोधितं पुनः श्रीगीतार्थः शोधनीयम् । श्रीः ॥ सं. १४९२ वर्षे शोधितम् । श्रीः॥ क्रमाङ्क २ (१) आचारांगसूत्र पत्र १-७६ । भा. प्रा.। पत्र ७० मुं नथी। (२) आचारांगसूत्र नियुक्ति अपूर्ण पत्र १-१३ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । गा. ३५४ पर्यंत । (३) आचारांगसूत्र वृत्ति अपूर्ण पत्र २-३०२। भा. सं. । क. शीलांकाचार्य। ले. सं. अनु. १५मी शताब्दीचं उत्तरार्ध । संह० मध्यम । द. मध्यम। लं. प. ३०॥४२॥. पत्र ५, ९, २१, २५, ५७, ८०, ८४, ८५, २८८ नथी. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ जैन [३ क्रमाङ्क ३ आचारांगसूत्र चूर्णी पत्र २६ । भा. प्रा. । ले. सं. १४८९। संह० श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२, पत्र ६, ७, ९, १०, १२, १४-१७, १९, २०, २७, २८, ३१, ४०, ४१, ४५, ४८, ५०-६०, ६४, ६५, ६९, ७५, ७६, ८३, ८४, ८६, २२३, २२५, २२६ नथी. अन्त इति आचारचुण्णी परिसम्मत्ता। संवत् १४८९ वर्षे भाद्रपद. सुदि १३ शुक्के खरतरगच्छे. श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये परीक्षिगुर्जरसुतपरीक्षिधरणाकेन श्रीआचारायचूर्णिलिखापिता ॥छ॥ शुभं भवतु श्रीसंघस्य ॥छ॥ क्रमाङ्क ४ सूत्रकृतांगसूत्र वृत्ति. अपूर्ण पत्र ४१४। भा. सं.। क. शीलांकाचार्य । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दीनु उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४१ । पत्र ३५९मुं नथी. आ प्रतिनां ताडपत्र अत्यंत सुकुमार, पातळां अने सरस छे. क्रमाङ्क ५ (१) सूत्रकृतांगसूत्र पत्र १-५३ । भा. प्रा.। (२) सूत्रकृतांगसूत्र नियुक्ति पत्र ५४-५८ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. २०८ । (३) सूत्रकृतांगसूत्र वृत्ति किंचिदपूर्ण पत्र ५९-३५६ । भा सं.। क. शीलांकाचार्य। ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दीन उत्तरार्ध [परीक्षी धरणाक लेखित ?]। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ लं. प. ३४४२॥. पत्र १, १०, १३, १८, १९, २३, २९, ३१, ३४, ३८, ५८, ६६, ६९, ३४२, ३४६, ३४९, ३५२, ३५३ नथी. आ प्रतिनां ताडपत्र स्थूल छे. घणा पानाना टुकडाओ थई गयेला छे । क्रमाङ्क ६ स्थानांगसूत्र वृत्ति पत्र ३४९ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. १४२५० । र. सं. ११२० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दीनु पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४४२. पत्र ६, ८, ३९, ४०, ३३४ नथी. क्रमाङ्क ७ (१) स्थानांगसूत्र पत्र १-८७ । भा. प्रा.। ग्रं. ३७५० । (२) स्थानांगसूत्र वृत्ति पत्र १-३४९ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. १४२५०। र. सं. ११२०। ले. सं १४८६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२॥. अन्त-अत्र दशमाध्ययने श्लोकाः १७१४ ॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्या ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । अनुष्टुभां सपादानि सहस्राणि चतुर्दश ॥छ॥ अङ्कतोऽपि १४२५०। शिवमस्तु । संवत् १४८६ वर्षे माघ वदि पञ्चम्यां सोमे अयेह श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाऽऽज्ञापालनपटुतरे विजयिनि खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयकृतपापपूरप्रलयचारुचरित्रचन्दनतरुमलयश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन प. गुजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकपरीक्षधरणाकेन पुत्रसाइयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे स्थानाङ्गसूत्रवृत्तिपुस्तकं लिखापितम् ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ११] ताडपत्रीय ग्रंथभंडारसूचीपत्र क्रमाङ्क ८. (१) समवायांगसूत्र पत्र १-४५ भा. प्रा. । ग्रं. १६६७ । पत्र. १५ में नथी । (२) समवायांगसूत्र वृत्ति पत्र ४६-१३४ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य। ग्रं. ३५७५ । र. सं. ११२० । ले. सं.१४८७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥ ४ २१. अन्तसमवायांगवृत्तिः संपूर्णा ॥ संवत् १४८७ वर्षे पोस सुदि १० रवौ......[धरणाक लेखिता?] क्रमाङ्क ९ १) समवायांगसूत्र पत्र १-६४ । भा. प्रा. | ग्रं. १६०० । पत्र २४ मुं नथी। (२) समवायांगसूत्र वृत्ति पत्र ६५-२१५ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. ३५७५ । र. सं. ११२० । ले.सं. १४०१ ।संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ । लं. प. २७४ २.। प्रति शुद्ध छे। अन्त ॥संवत् १४०१ वर्षे माघ शुक्ल एकादश्यां श्रीसमवायांगसूत्रवृत्तिपुस्तकं सा. रउलासुश्रावण मूल्येन गृहीत्वा श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनपद्मसूरिपट्ठालंकारश्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरोः प्रादायि। आचंद्रा नंदतात् ॥ छ । क्रमाङ्क १० भगवतीसूत्र पत्र ३४८ । भा. प्रा. । ले. सं. १२३१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९॥४२॥ । अतिम पत्रमा शोभन छ । प्रति शुद्ध छे । अन्त ॥ भगवई समत्ता ॥छ॥ ॐ ॥छ॥ संवत् १२३१ वैशाख वदि एकादश्यां गुरौ अपराहे लेखकधणचंडेन लिखितमिति ॥ क्रमाङ्क ११ भंगवतीसूत्र पत्र २९३ । भा. प्रा.। ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३२४२।।. पत्र २८५ टूकडो तथा पत्र २८८ नथी। अन्तवियसियअरविंदकरा नासियतिमिरा सुयाहिया देवी । मज्झ पि देउ मेहं बुहनिवहनमंसिया निच्च ॥ सुयदेवया पणमिमो जाए पसाएण सिक्खियं नाणं । अन्नं पवयणदेवी संतिकरी ते नमसामि ॥ सुयदेवया य जक्खो कुंडधरो बंभसंति घेरोट्टा । विज्जा य अंबहुंडी देउ अविग्ध लिहतस्स छ।। ॥संवत् १४८८ वर्षे मार्ग सुदि ५ पंचम्यां गुरुदिने श्रीमति श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन प० गजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्रसाइयासहितेन श्रीसिद्धांतकोशे श्रीभगवतीसूत्रपुस्तकं लिखापितं ॥छ॥ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ जैन । क्र. १२ क्रमाङ्क १२. भगवतीसूत्रवृत्ति प्रथम खंड अष्टमशतक पर्यन्त पत्र २५६ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य। ग्रं. ९४३८ । र. सं. ११२८ । [ले. सं. ११९५] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. २६४२।। आ प्रतिना केटलांक पानां गूम थवाथी ते पानां पुनः अनुमान १३मी शताब्दीमां नवां लखावेलां देखाय छ । पट्टिका उपर-“श्रे. मांडव्यपुरीय लक्ष्मीधरेण प्रदत्तं ॥ भगवती प्रथमखंड पु.” - क्रमाङ्क १३ भगवतीसूत्र वृत्ति द्वितीयखंड. नवमा शतकथी संपूर्ण पत्र २५५ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य। ग्रं. ९१७८ । सर्वग्रं. १८६१६ । र.सं. ११२८। ले. सं. ११९५। सह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. २६४२१. । आ पोथी उधेईए खाधेली छे । अन्त॥ संवत् ११९५ श्रावण सुदि ६ शुक्रे ॥ लिखितं च लेखकबंदिराजेन ॥छ॥ ॥छ॥ क्रमाङ्क १४ भगवतीसूत्र वृत्ति २६ शतक पर्यन्त पत्र ४३७ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । ले. सं. अनु. १२ शताब्दीन उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २७४२।। प्रति शुद्ध छे । पत्र २९५, ३३५, ३३६, ४३३ नथी । क्रमाङ्क १५ भगवतीसूत्र वृत्ति पत्र ४३५ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. १८६१६ । र. सं. ११२८ । लें. सं. १२०४ । सह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । ल.प. २९४२.आ प्रतिनां ताडपत्र पहोळां अने अतिसुकुमार छे। अन्त अष्टादश सहस्राणि षट् शतान्यथ षोडश । इत्येवं मानमेतस्याः श्लोकमानेन निश्चितम् ॥१६॥ अङ्कतोऽपि १८६१६॥ मङ्गल महाश्रीः ॥ प्राप्तप्रतिष्ठो भूभृत्सु सुपर्वसमलकृतः। शाखाञ्चितो धर्कटानां वंशोऽस्ति भुवि विश्रुतः ॥१॥ तत्र मुक्तामणिप्रायः संजज्ञे वैसटः पुमान् । सवृत्तः कान्तिभृत् तस्य प्रेयसी वीरवत्यभूत् ॥२॥ जिनदेवः सुतस्तस्य जिनदेव्याः प्रियोऽभवत् । वरदेवोऽङ्गजस्तस्य बकुलश्रीश्च तत्प्रिया ॥३॥ सलक्षणस्तयोराद्यो नागेन्द्रश्च ततः सुतः । साढाकः साल्हणश्चैव बोधिस्थो नाम पञ्चमः ॥४॥ प्रिया सल्लक्षणा सीता ततः सौभाग्यदेव्यथ । सहजगतिस्तेषां तु बहुश्रीश्च यथाक्रमम् ॥५॥ सल्लक्षणस्य पुत्रोऽभूत् वैर आस्ते तथाऽऽजडः । शिवादेवीति सोभीति तथाऽभूत् पुत्रिकाद्वयम् ॥६॥ नागेन्द्रस्याङ्गजः ख्यातो जिनचन्द्रः सतां प्रियः। चन्द्रोज्ज्वलाऽपि यत्कीर्तिः सरागं कुरुते जनम् ॥७॥ तस्य भ्राता कनिष्ठोऽस्ति यशोनागो यशोनिधिः। द्वितीयाचन्द्रलेखेव वन्द्या यस्य गुणावली ॥८॥ भगिनी पाहिनीत्याद्याऽभयश्रीरपरा तयोः । सरस्वतीव प्रत्यक्षा तृतीया तु सरस्वती ॥९॥ यजनन्याश्च सीतायाः पिता सलक्षणोऽजनि। विशुद्धशीलालङ्कारा माता तु श्रीमती पुनः ॥१०॥ यद्भर्त्ता नरदेवोऽभूत् सांपटस्वर्णिकाङ्गजः । यशोभटसुताकुक्षिशुक्तौ मौक्तिकसन्निभः ॥११॥ जिनचन्द्रसाधुदयिते जिनमति-कप्रदेविसंज्ञे स्तः । कर्पूरोज्ज्वलशीले आद्यायाः सोगला पुत्री ॥१२॥ यशस्विनी यशोदेवी यशोनागस्य बल्लभा । पुत्रिका रूपलावण्यशालिनी पद्मलाऽभिधा ॥१३॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १८] ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र साढकपुत्री चाऽऽस्ते पुनी साल्हणसुतो विमलचन्द्रः । श्रीपार्श्व वीरनामा तथाऽपरो गुणमतिः पुत्री ॥१४॥ वोधिस्थस्याऽऽत्मजो जातः शुद्धबुद्धिर्महीलणः । रत्नीति पुत्रिकारत्नं विद्यते गुणसुन्दरम् ॥१५॥ अन्यदा चिंतयामास स्वीयस्वान्ते सरस्वती । दाने चतुर्विधेऽपि स्याद् ज्ञानदानं महाफलम् ॥१६॥ यतःपाय पायमपायवर्जमखिलग्रन्थार्थपाथःपतिक्षीरं भूरि घनाघना इव परप्रीत्यै विधायोनतिम् । धन्यानां गुरवः प्रबोधकवचोधाराभिरासारिणी, वृष्टेः सृष्टिमहर्निशं श्रुतिपथक्षेत्रेषु कुर्वन्त्यमी ॥१७॥ गुरवोऽपि पुस्तकाभावात् कथं कुर्वन्ति देशनाम् । सर्वज्ञोपज्ञशास्त्राणामतो लेखनमुत्तमम् ॥१८॥ इत्थं विचिन्त्य मनसा लेखयित्वा सरस्वती । भगवत्यङ्गसूत्रस्य सद्वर्ण वृत्तिपुस्तकम् ॥१९॥ श्रीदेवचन्द्रसूरेः शिष्याणां देवभद्रसूरीणाम् । वेद-मुनि-भानुवर्षे [१२७४] भक्त्या विधिनाऽर्पयामास ॥२०॥ सूर्यशुभ्रांशुताडका नभःश्रीः क्रीडति स्वयम् । ताराकपईकैर्यावत्तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥२१॥ छ । संवत् १२७४ वर्षे प्रथम ज्येष्ठ वदि ७ शुक्रे प्रल्हादनपुरे भगवतीवृत्तिपुस्तकमलेखीति ॥छ । मङ्गलं. महाश्रीः । शुभं भवतु श्रीश्रमणसंघस्य ॥छ । पश्चाल्लिखित श्रीशत्रुअयोजयन्तमहातीर्थयात्राविधान-प्रतिदिनपंचशतसाधर्मिकभोजनदान-निजधर्मनेष्टिकताप्रकटिताऽऽनन्दकामदेवादिश्रावकत्रज-नित्यगुरुचरणसमाराधनसमर्जितसुकृत-नानानिजावदातवातसंजातकीर्तिकमलिनीपरिमलपरिमलितत्रिभुवनवलय-प्रमुखगुणश्रेणीधवलीकृतनिजकुलः साधुश्रीअभयचन्द्रश्चन्द्रावदातः समजनि । तत्पुत्रः सा तेजा श्रावको बभूव । तस्य पुत्रौ सा. कमसिंह सा० पाल्हणसिंहावभूतां । सा० कमसिंहपुत्रेण सा. दुसाऊसुश्रावकेण निजपितृव्य सा. पाल्हणसिंहपुण्यार्थ श्रीजिनपद्मसूरिसुगुरूपदेशेन श्रीभगवतीवृत्तिसिद्धान्तपुस्तक संवत् १४०५ वर्षे मोचापितं आचन्द्राकै नन्दतात् ॥छ॥ क्रमाङ्क १६ भगवतीसूत्रवृत्ति पत्र ३९७ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य। ग्रं. १८६१६ । र. सं. ११२८ । ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४४२॥. पश्चा ॥ संवत् १४८८ वर्षे मार्ग सुदि २ गुरुदिने श्रीमति श्रीस्तम्भतीथें अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगपवरोपमतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारक श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षिगृजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन प. धरणाकेन सुत सा. साईयासहितेन श्रीसिद्धांतकोशे श्रीभगवतीवृत्तिपुस्तक लिखापितं ॥छ॥ शुभं भवतु ॥ क्रमाङ्क १७ (१) शाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १-१४८ । भा. प्रा. । (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति किंचिदपूर्ण पत्र १४९-२६४ । भा. से. । क. अभयदेवाचार्य । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं प. ३२॥४२॥.। पत्र २६४मा देवीन चित्र छ । पत्र २, ३, २०, २१, १६८ नथी। क्रमाङ्क १८ (१) शाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १-११४ । भा. प्रा. । ग्रं. ५४६४ । Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ जैन [ क्र. १९(२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र ११४-१९७ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । . ३८०० । र. स. ११२० । लें. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध धरणाक लेखित ?] सह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥x २१. । पत्र १, १२ नथी । क्रमाङ्क १९ . (१) शाताधर्मकथांगसूत्र वृत्ति पत्र १-१४५। भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. ३७०० । र. सं. ११२०। (२) उपासकदशांगसूत्र वृत्ति पत्र १४५-१७८ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । . ९०० । (३) अंतकृद्दशांगसूत्र वृत्ति पत्र १७८-१८९ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य ।। (४) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र वृत्ति पत्र १८९-१९३ । क. अभयदेवाचार्य । उपा. अंत. अनु. त्रणे सूत्रनी वृत्तिना ग्रं. १३०० । (५) प्रश्नव्याकरणसूत्र वृत्ति पत्र १९३-३५० । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । पत्र ३५० मां ॥संवत् १२०१ वैशाख वदि १२ मुंडहटाग्रामे चांडहरिसुतेन लेषककपर्दैन नायाधम्मकथाद्यगवृत्तिलिखितेति ॥ मंगलं महालक्ष्मीः ॥छ॥ (६) विपाकसूत्र वृत्ति पत्र ३५१-३७५ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य। . ९०० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २७४२।. अन्त॥शाताधर्मकथादिषडंगविवरणं समाप्तमिति ॥छ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ श्रीमानकेशवंशेऽप्यजनि समकरः श्रावको भावदेवः स्वस्थात्मा योगवीरः प्रचुरतरमहासत्त्वधामा समुद्रः। तस्मात् प्रादुर्बभूव प्रकृतजनमनोलोचनामन्दमोदः सूनुौरांगयष्टिविहितबुधनुतिश्चंद्रवद् देवचंद्रः ॥१॥ तस्याऽऽसीच्चारुचर्याजितविशदयशःपुंजशुभ्रीकृतांगो नि:संगे सद्गुरौ च प्रविरचितनतिविल्हकाख्योऽअजन्मा । तस्याऽऽसन् जात्यवाहा इव शुचिविनया देवडो जेसलोऽन्ये ' ......प्राच्यानुचीर्णध्रुतविधिरतयो......देवश्च पुत्राः ॥२॥ भार्याऽऽस्ते देवडस्य श्रुतसुगुरुगिरो देवभद्रस्य पौत्री चित्तानढीति नाम्ना विनयगुणनिधिः सोमदेवस्य पुत्री। शस्त्री दुर्वासनानां जिनगुणमधुरोद्गानविक्षिप्ततंत्री पुण्यायालीलिखत् सा सुविवरणमदः श्रीषडंगश्रुतस्य ॥३॥ इतश्च यस्योद्यद्वक्त्रचंद्रद्युतिभिरिह मुखेष्विदुकांतेष्विवोच्चै रुत्सृष्टेषु श्रवत्सु श्रमजलमिषतोऽखर्वगर्वप्रवाहम् । वादींद्राणां विवादेष्ववनिपतिगृहप्रांगणानामयत्नात् सिध्यत्याक्षालनश्रीजिनपतियतिपः कस्य न स्यान्मुदेऽसौ ॥४॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २२ ] ताडपत्रीय ग्रंथभंडारसूचीपत्र तस्मै स्वस्मै हिताय व्यतरदवनता पुस्तकं तत् षडंगव्याख्यायाः ख्यातकीर्तर्जगति जिनवचोदुर्गसेतुश्रियः सा । सत्यंकारानुकारि त्वरित सुरशिना मंदमंदानुषंगे नंदत्वेतच्च तावच्चतुरुदधितटम्ब्यते यावदुर्व्या ॥५॥ छ ॥ क्रमाङ्क २० (१) उपासकदशांगसूत्र पत्र १ - १९ । भा. प्रा. । ग्रं. ८१२ । (२) अंतकृद्दशांगसूत्र पत्र १९ - ३७ । भा. प्रा. ग्रं. ८९० । (३) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र ३७-४१ । (४) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र ४१-६७ । भा. प्रा. । (५) विपाकसूत्र पत्र ६७-९५ । भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध [ धरणाक लेखित ? ] संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥ अन्त क्रमाङ्क २१ (१) उपासकदशांग वृप्ति पत्र (२) अंतकृद्दशांग वृत्ति पत्र १ - १९ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । १९ - २६ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । (३) अनुत्तरौपपातिकदशांग वृत्ति पत्र. २६-२८ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । (४) प्रश्नव्याकरणवृत्ति पत्र. २८ - १२६ । क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. ४६३०। (५) विपाकसूत्र वृत्ति पत्र. १२६-१४४ । भा. सं. । क. अभयदेवसूरि । ले. सं. १४९० । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३ ॥ ४२ ॥ . भा. प्रा. । ग्रं. १९२ । संवत् १४९० वर्षे वैशाख सुदि १३ बुधे श्रीमति श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपद्धत.. ....... श्रीगुजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्ष्य धरणाकेन पुत्र सा. साइयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे ज्ञाताधर्मकथा. ७ क्रमाङ्क २२ (१) उपासकदशांगसूत्र वृत्ति पत्र (२) अंतकृद्दशांगसूत्र वृत्ति पत्र २३ १ - २३ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । - ३१ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । (३) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र वृत्ति पत्र ३१ - ३४ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । नं. १३०० [ उपा. अंत. अनु. त्रणेनी वृत्तिना ] । (४) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र वृत्ति पत्र ३५-१५९ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. ४६००। (५) विपाकसूत्र वृत्ति पत्र १५९-१८१ । भा. सं. । कं. अभयदेवाचार्य । . ९०० । ॥ संवत् ११८५ ज्येष्ठ सुदि १२ शुक्रदिने श्रीमदणहिलपाटके ले. सोढलेन लिखितमिति ॥ (६) उपासकदशांगसूत्र पत्र १८२ - २०२ । भा. प्रा. । . ८१२ । (७) अंतकृद्दशांगसूत्र पत्र २०३ - २२२ । भा. प्रा. ग्रं. ७९० । (८) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र २२३-२२८ । भा. प्रा. । (९) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र २२८ - २५९ । भा. प्रा. । . १२५० । (१०) विपाकसूत्र पत्र २५९ - २८५ । भा. प्रा. । . १२१६ । ले. सं. ११८६ | संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९ ॥४२॥ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [क्र. २३ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ जैन अन्त-- ॥एकारसमं अंगं सम्मत्तं ॥॥ ॥ ग्रंथाप्रम् १२१६ ॥ छ छ ११८६ अश्विनसुदि ३ भौमे। अयेह श्रीमदणहिल्लपत्तने ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ ॥छ॥ संवत् श्रीमालवंश इह मेरुसमोऽस्ति किन्तु नाष्टापदामिकलितो न च कूटधारी ॥१॥ तस्मिन्नभून्मल्हणनामधेय छायामिरामः सुमनोमनोज्ञः । वणिग्वरो निर्जरशाखितुल्यः परं सदा पल्लववर्जितोऽसौ ॥२॥ तस्यास्तम......... ................................................॥३॥ तयोरभूतां तनयौ गुणालयौ सद्धर्ममार्गाचलचेतसावुभौ । आद्यस्तयोर्वच्छक इत्यभिख्यया ख्यातः परोऽल्हः सुमना उदारधीः ॥४॥ भ्यायात्तं वित्तमर्हन्निगदितविधिना जायते पुण्यहेतुः सप्त............... ......गृहीत्वा परमसुखकृते पुस्तके कर्ममुक्त्यै ॥५॥ यतिपतिजिनपतिसूरेः शिष्येभ्यो भक्तितो ददौ चेदम् । श्रीचित्रकूटसंस्थो वाच्छाख्यः श्रावको धीमान् ॥६॥ नैवास्थां तेषु दुःखं क्षणमपि........... ........................तेभ्य इद्धोऽपि दृष्टः । निस्तीर्णस्तैर्भवाब्धिः स्वयमपि भजते मोक्षलक्ष्मी द्वैत तान् श्रीयन्ते ते निया ये विदधति भुवने पुस्तकज्ञानदानम् ॥७॥ आदर्शः किं खलक्ष्म्याः सुरपथसरसो राजहंसोऽथवा किं ......... ...............। ..डिडीरपिंडो शुसरित इति खे शंक्यते यावदिन्दुस्तावन्नंद्यात् सभायां शुभगुरुभिरिदं पुस्तकं पठ्य मानम् ॥८॥छ॥ क्रमाङ्क २३ (१) उपासकदशांगसूत्र वृत्ति पत्र ६१-६८ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । (२) अंतकृद्दशांगसूत्र वृत्ति पत्र ६९-९५ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । (३) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र वृत्ति अपूर्ण पत्र ९५-२७२ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. २८॥४२. । पत्र १ थी ६०, १५९ थी १७९, १८१ थी १८५ नथी। क्रमाङ्क २४ (१) औपपातिकोपांगसूत्र पत्र १-४३ । भा. प्रा. । औपपातिकोपांगसूत्र वृत्ति पत्र ४४-१५८ । भा. सं.। क. अभयदेवाचार्य । ग्रं. ३१३५। ) राजप्रश्नीयोपांगसूत्र पत्र १५९-२२९ । भा. प्रा. । ग्रं. २०७९ । (४) राजप्रश्नीयसूत्रवृत्ति पत्र २३०-३४५। भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि। ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३६४२१. Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २८ ] ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अन्त इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपाङ्गवृत्तिका समर्थिता ॥छ॥छ॥छ॥ श्री ॥ सं. १४८९ वर्षे मार्ग शुदि ५ गुरुदिने श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अखिलत्रिकालज्ञाऽऽज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमतगच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगुजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. धरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे उवाईयसूत्र-वृत्ति राजप्रश्नीसूत्र-वृत्ति लिखापितम् ॥ ॥छ॥ पुरोहित हरियाकेन लिखितम् ॥ श्री ॥ छ । क्रमाङ्क २५ (१) जीवाभिगमसूत्र पत्र १-१०२। भा. प्रा.। (२) जीवाभिगमसूत्र लघुवृत्ति पत्र १०३-१३५। भा. सं.। क. हरिभद्राचार्य । (३) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र पत्र १३६-२६५। भा. प्रा. । ग्रं. ३८५० । (४) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिचूर्णी पत्र २६६-३२९ । भा. प्रा.। ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३१॥४२॥. अन्त जंबुद्दीवपण्णत्तीकरणाणं चुण्णी सम्मत्ता ॥छ। जंबुद्दीवपण्णत्ती सम्मत्ता ॥छ॥ संवत् १४८९ वर्षे मार्ग सुदि ५ गुरौ श्रीस्तम्भतीर्थे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशतः प. गूजरसुत प. धरणाकेन सुतसाइयासहितेन सिद्धान्तकोशे श्रीजीवाभिगमसूत्र-लघुवृत्ति जम्बूद्वीपसूत्र-जम्बूद्वीपचूलापुस्तकं लिखापितम् ॥ क्रमाङ्क २६ जीवाभिगमसूत्र वृत्ति पत्र ३३६ । भा. सं.। क. आचार्य मलयगिरि। ग्रं. १४००० । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥॥४२॥ अन्त ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां जीवाभिगमटीका समाप्ता ॥छ॥ ग्रन्थाग्रं चतुर्दश सहस्रा ॥छ॥श्री॥छ॥ श्री॥ संवत् १४८९ वर्षे वैशाख सुदि द्वितीयायां श्रीखरतरगच्छे अयेह श्रीस्तम्भतीर्थे श्रीजिनभद्रसूरीणां उपदेशात् परीक्षगुर्जरसुतसाधरणाकेन जीवाभिगमपुस्तकं लिषापितमस्ति ॥ चिरं नंदत ॥ क्रमाङ्क २७ प्रशापनासूत्र पत्र १७० । भा. प्रा.। क. श्यामाचार्य । ग्रं. ७८८७ । ले. सं. १३८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥ अन्त ॥छ॥ छत्तीसइमं पदं संमत्तं ॥छ॥ ३६ पण्णवणा समत्ता छ॥ अनुष्टुपछंदसां ग्रन्थाग्रं ७८८७॥छ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ सं. १३८९ वर्षे ॥ क्रमाङ्क २८ प्रज्ञापनासूत्र वृत्ति पत्र २२९ । भा. सं.। क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ट । लं. प. ३३॥४२॥॥ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ अन्त इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकायां षट्त्रिंशत्तमपदं समर्थितम् ॥ छ ॥ समर्थिता प्रज्ञापना टीका ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥ ॥ यस्मिन् जाग्रत्सुपुरुषसुमस्तोमसौरभ्यभङ्गी भोगाकृष्टैर्बुधमधुकरैस्तन्यते कीर्त्तिगीतिः । पृथ्वीकान्ताकमनकरणत्राणशृङ्गारकोऽसौ पुष्पापीडो जगति जयति श्रीमदूकेशवंशः ॥१॥ तस्मिन् सिद्धिवधूवशीकृतिविधौ गाढानुबन्धान्न्यधाद् यः स्वस्वान्तवसुन्धरान्तरतुलं सम्यक्त्वसत्कार्मणम् । सर्वाङ्गीणविभूषणं त्वचकलच्छीलं शरीरेऽसकौ पुन्नागोऽभवदासनाग उदयी नाहट्टवंशोद्भवः ॥२॥ कुमरपाल इति प्रथमोऽङ्गभूरभवदस्य विभास्वरभाग्यभूः । तदनुजोऽजनि दुर्लभनामकः कलकलाकलनाकुशलात्मकः ॥३॥ देवार्चागुरुपर्युपास्तिगुणवद्दानादिषट्कर्म्मणां कर्त्ता विप्र इवान्वहं कुमरपालः श्राद्धरत्नं जयी । श्रीशत्रु जयदेव देवकुलिकां श्रीमानतुङ्गाभिघप्रासादाभरणं विधाय नृजने योऽलात् फलं निस्तुलम् ॥४॥ समजनि जनी मान्या धन्याभिधाssस्यसुधारसप्रसर मधुरव्याहारोद्घा सुशीलरमानघा । यतिजनसदा सेवा हेवा कताकलिता हि याऽजनयत निजं नामान्वर्थे विवेकवती सती ॥५॥ स्वःशाखेव सुखावहान् कलफलान् प्रासूत सा सत्सुतान् ख्यातानीश्वर -लौहटौ कुमरसिंहं चेति सत्पुत्रिके । गोग नाम सरस्वतीं च विदितैरेतैरपत्योत्तमैर्या कांचित् कलयांचकार परमां रामासु शोभां भुवि ॥६॥ उदयश्रीति नाम्नाऽभूदीश्वरस्य सधर्मिणी । समुद्रतनया ख्याता लक्ष्मी लक्ष्मीपतेरिव ॥७॥ तयोः सुतोऽभूत् थिरदेवनामा बभौ द्वितीयो जिनदेवसंज्ञः । ततस्तृतीयोऽजनि वीरदेवस्त्रयोऽपि मूर्त्ता इव पूरुषार्थाः ॥ ८ ॥ इतश्च पृथ्वीराजन्रराजराजसमितौ प्रौढप्रमाणायुधैः, श्रीपद्मप्रभसूरिवीरमुदयद्दर्प विजित्वा (त्य ? ) क्षणात् । वीरा लेषसुखोन्मुखी जयरमा येनोपयेमेतमां, सैषोऽशेषजिगीषुराड् जिनपतिजज्ञे यतीन्द्रः पुरा ॥९॥ तदीयपदसम्पदां स समपादि पात्रं परं जिनेश्वरयतीश्वरः सुकृतवारिवार्डियकः । निशाकरकरोत्करप्रवरसौवकीर्त्तिच्छटासिताभ्रदलभङ्गिभिर्व्याधित पत्रभङ्गीदिशाम् ॥१०॥ रेजे श्रीजिनचन्द्रसूरि सुगुरुस्तद्गच्छलक्ष्मीपतिर्मुक्ताहार तुषारतार सुयशः प्राग्भारविश्वंभरिः । यात्रां यत्र वितन्वति क्षितितले मिथ्यात्वदस्युच्छिदे, तद्गृह्या इव ते दिगंतगतयः पाषण्डिनो जज्ञिरे ॥११॥ शुद्धे यद्वसौधे कलिमलविलय क्लृप्त सर्वर्तुकान्ते कान्ते श्रीवाणिदेव्याः सुखमसुखमुषि प्रत्यहं संवसन्त्याः । लीलादोलानुकारं कलयति युगलीकल्पयोः कर्ष्णपाल्योस्तत्पट्टस्वर्णशैले जिनकुशल गुरुः स्वस्तरुः सोऽस्त्युदीतः ॥ १२ ॥ प्राहुर्ज्ञानचरित्रदर्शनमयं श्रीमुक्तिमार्ग जिना, विज्ञानेन विना क्षमे न भवितुं चारित्र सद्दर्शने । प्यानज्ञाननिबन्धनं च समयज्ञानैकतानात्मनां साधूनां बहुशास्त्रपुस्तकततेर्विश्राणनं गीयते ॥ १३॥ तन्मोक्षलक्ष्मिपरिरम्भमहोत्सवोत्कैः, श्राद्धर्विशुद्धहृदयैर्विकसद्विवेकैः । [ २९ जैनागमावगमसङ्गत संयतेभ्यः सिद्धान्तपुस्तकततिः सततं प्रदेया ॥ १४॥ इति हितमुपदेशं सन्मरंदावभासं जिनकुशलयतीन्दोर्वक्त्रपद्मान्निरीतम् । मधुकर इव वर्यानन्दसन्दोहसिन्धुः स्म पिबति बत वेगादीश्वरः श्राद्धरत्नम् ॥१५॥ श्रीमत्प्रज्ञप्त्युपाङ्गागमविवृतिमिमां पुस्तयुग्मे सुवर्णैर्ज्यायोन्यायात्तवित्तैर्निजसुकृतकृते लेखयित्वा प्रधानाम् । प्यानज्ञानप्रभाभे विधिपथपथिकः पुण्यभूरीश्वराख्यः, श्राद्धोत्तंसः प्रभुश्रीजिनकुशलगुरुभ्यो ददौ ब्रह्मांडालयमंडपप्रतिकृतिव्यमाङ्गणे तीर्थकृत्कीर्त्तिः कीर्त्त्यनटीस्फुटीकृतगतिर्नृत्यं परं पुष्णती । ॥१६= Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र यावत् खेचरचक्रवालपरिषत्प्रीतिप्रदा जायते तावत् क्रीडतु भृङ्गवत् कृतिकराम्भोजेष्वदः पुस्तकम् ॥१७॥ श्रीजिनकुशलयतीशां निकटे कर्पूरपूरगंडूषः । विदधल्लुब्धिनिधानोऽभिषेक आधात् प्रशस्तिमिमाम् ॥१८॥ इति साहुईश्वरलेखित पुस्तकप्रशस्तिः ॥ क्रमाङ्क २९ (१) प्रज्ञापनासूत्र पत्र २३३ । भा. प्रा. । क. श्यामाचार्य । ग्रं. ८०२० । अन्त ॥ इति पन्नवणाए भगवतीए समुग्धायपदं छत्तीसइमं सम्मत्तं ॥ छ ॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्या ग्रन्थमानं स्फुटाक्षरम् । अष्टौ श्लोकसहस्राणि विंशत्यधिकानि निश्चितम् ॥ (२) प्रज्ञापनासूत्र लघुवृत्ति पत्र २३४ - ३५० । भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र । ग्रं. ३९३८ । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२१. | पत्र ७, ११, १५, १९, ५६, २४७२४९, २५३, २५४, २६१-२६३, २९१ नथी । अन्त- ॥ छ ॥ इति प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्यायां षट्त्रिंशत्तम व्याख्या समाप्तेति ॥ छ || समाप्ता चेयं प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या ॥ कृतिरियं श्रीहरिभद्रसूरेः ॥ छ ॥ ग्रन्थानं ३९३८ ॥ संवत् १४८९ वर्षे मार्ग सुदि १० सोमे प्रज्ञापनासूत्र प्रदेशव्याख्या लिखापिता सा. बलिराजेन ॥ छ ॥ श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणां भांडागारे | क्रमाङ्क ३० प्रज्ञापनासूत्र वृत्ति पत्र ३९५ । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१।४२ ॥ . अन्त समाप्ता प्रज्ञापनाटीका ॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रज्ञापनाटीकायां षट्त्रिंशत्तमं पदं समर्थितं ॥ छ ॥ ॥ छ ॥ संवत् १४८९ वर्षे श्रावण सुदि १० गुरावयेह श्रीस्तंभतीर्थे खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशात् परीक्षिधरणाकेन प्रज्ञापनाबृहद्वृत्तिलिखापिता || शुभं भवतु ॥ श्रीर्भूयात् ॥ क्रमाङ्क ३१ (१) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र १ - १६४ । भा. प्रा. । ग्रं. ४१४६ । (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र चूर्णी पत्र ले. सं. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. आदि ११ १६५ - २३३ । भा. प्रा. । ग्रं. १८६० । श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २७४२१. मिऊण विणयविरतियकरकमलकयंजली पयतो । सुरवरमणिरयणुक्कड फुरंतपरिघट्टपावीढं ॥१॥ वरवसहमत्तगयवरसललियविक्कतकंतगतिगमणं । वरहेमतवितचपयदिणकरकरसम्पहं उसहं ॥२॥ अवसेसे य जिणिदे णमितं चंदिदधणयपणिपतिते । करणविभावण वोच्छं जंबुद्दीवस्सऽहं इणमो ॥३॥ विक्खंभ वग्ग दसगुण करणी वट्टस्स परिरओ होइ । विक्खंभ पायगुणिओ परिरओ तस्स गणितपदं ॥ ४ ॥ जंबुद्दीवस विक्खभं पावेऊण इमं लक्खं १०००००, एयस्स वग्गो दसगुणं च जातं इमं एयस्स मूलगहियं इमं । अन्त--- जंबुद्दीवपण्णत्तीकरणाणं चुण्णी समत्ता ॥ जंबुद्दीवपण्णत्ती समाप्ता ॥ ग्रं. १८६० ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [३२श्रीश्रीमालकुले सुधांशुधवले पुरत्नचक्राकुले, धैर्यौदार्यविनिर्जितामरगिरिस्वःपादपालीचले। श्रीमद्भूपतिमन्त्रिमुख्यविविधव्यापारचिन्ताकुले, ब्राह्मीसिन्धुसुताविलाससदने प्रक्षालितान्तर्मले ॥१॥ रेजतुः परहितौ सहोदरौ सूरिवयजिनभक्त बाहडौ। प्राप्तसाधु-गृहधर्मसेवधी योगिनाथजिनदत्तसूरितः ॥२॥युग्मम् ॥ जज्ञे बाहडदेहजो जिनरतः साधारणः श्रीपतिर्यद्दानात् समजायतात्र भवने दानेश्वरोऽर्थिवजः । तत्पुत्रोऽजनि उजलो गतमलः सत्साधुसेवाकुलो, यत्का कायलता सदा समुदिता रेजे परार्थोद्यता ॥३॥ कृत्वोत्सर्जनदीपिकां निजकरे सद्वाक्यवर्त्यन्वितां, भावस्नेहसमुज्ज्वलां विधिपथं या दर्शयत्यङ्गिनाम् । सा श्रीशीलसमुज्ज्वलाम्बरधरा स्वाध्यायनित्याशना, तस्याजायत धर्मकर्मनिरता जीवंदही श्राविका ॥४॥ आद्यस्तस्यास्तनूजः परहितनिरतो राजसिंहो विवेकी, सप्तक्षेत्र्यां स्वकीयं वपति निजभुजोपार्जितं योऽर्थजातम् । तस्यैवाभाति वीरप्रवचनविविधोत्सर्पणाबद्धकक्षो, धर्मज्ञो मोषदेवो विधिपथजलधिं सेवते विष्णुवद् यः ॥५॥ रयवति गुरुसंघे संघपाश्चात्यभारो निजविभवचयेनाङ्गीकृतो दुर्द्धरोऽपि । विमलविमलशैले कारिता च प्रतिष्ठा जिनकुशलगुरूणां पाणिपझेन याभ्याम् ॥६॥ आद्यस्याऽऽद्या वितरणरता प्रेमिका भाति कान्ता धर्मिण्याख्या नतगुरुजिना सत्यसंज्ञा द्वितीया । जाताः पुत्रास्तदुदरभवाः पाण्डवाभाः प्रवीणाः पुत्र्यश्चान्याः कुमतविरताः श्राविकाधर्मभाजः ॥७॥ तत्राद्यः पूर्णसिंहाख्यो द्वितीयो धणसिंहकः । अन्ये च हेमसिंहाद्याः सुता भान्ति महीतले ॥८॥ इतश्च जज्ञे चान्द्रकुले जिनेन्दुसुगुरू रूपास्तमीनध्वजस्तच्छिष्यः परवादिजिज्जिनपतिस्तत्पट्टलक्ष्मीपतिः । श्रीमत्सुरिजिनेश्वरो युगवरो भाग्यावलीमेदुरस्तत्पट्टे च जिनप्रबोधयतिपो विद्याम्बुपाथोनिधिः ॥९॥ येषां ध्यानतपोबलेन सततं जाताः सुराः किङ्करा, व्याख्यानामृतमग्नजन्तुनिकरा वाञ्छन्ति नो शर्कराः। कीर्तिव्याप्तदिगम्बराः स्मरहराः सौभाग्यलक्ष्मीभरा, रेजुस्ते जिनचन्द्रसूरिगुरवस्तत्पट्टलक्ष्मीवराः ॥१०॥ जजुः पट्टे तदीये विबुधपतिनताः प्रीणितप्राणिजाता, ज्ञानध्यानकवित्ता जिनकुशलबुधाधीश्वराः शान्तचित्ताः। चक्रुर्येषां मिषेण ध्रुवमवनितले संघभाग्यादिदानी, श्रीजम्बूस्वामिमुख्या युगवरनिचयाः स्वोदयं सर्वलब्ध्या ॥११॥ सर्वज्ञे शिवपत्तनं गतवति श्रीद्वादशाङ्गीलवा, गीतार्थः करुणास्पदैः परकृते न्यस्ताः पुरा पुस्तके। तेषां लेखनमुच्चकैः प्रतिदिनं यः कारयत्यादरात् तस्यागण्यमुदेति पुण्यमधिकं प्राणान्नदानोद्भवात् ॥१२॥ श्रुत्वा व्याख्यां तदीयां गुरुवचनरतो राजसिंहोऽत्र साधु जम्बूप्रज्ञप्तिसंज्ञस्य बहुसुखकृते तातमात्रोरिदानीम् । पुस्तं श्रीसत्रशाला शिवसुखजनिका व्यञ्जनाढया विशाला, सौन्दर्याङ्गोत्थयुक्तो व्यरचयत मुदा लेखयन्नन्यपुस्तान् ॥१३॥ मृगाकं लालयन्नेष मृगाको गगनाङ्गणे । यावदाहादते विश्वं तावन्नन्दतु पुस्तकम् ॥१४॥ पुस्तकप्रशस्तिः समाप्तेति ॥छ॥ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया। यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥१॥ __ क्रमाङ्क ३२ (१) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र ९७ । भा. प्रा.। ग्रं. ४१४६ । ले. सं. १३७८ । ॥जबुद्दीवपन्नत्ति सम्मत्ता ॥छ॥ ग्रन्थसंख्या ४१४६॥ संवत् १३७८ पोष बदि ५ दिने समर्थिता ॥छ॥ शुभं भवतु संघस्य ॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कं. ३४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र चूर्णी पत्र १-४० । भा. प्रा. । ग्रं. १८६० । (३) सिद्धप्राभृतसूत्र पत्र ४१-४४ । भा. प्रा. । गा. १२१ । (४) सिद्धप्राभृतसूत्र वृत्ति पत्र ४४ - ६१ । भा. प्रा. । (५) निर्यावलिकादिपंचोपांगसूत्र पत्र १ - २५ | भा. प्रा. ग्रं. ११०० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥ . क्रमाङ्क ३३ (१) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांगसूत्र पत्र १ - १०१ । भा. प्रा. । ग्रं. ४१४६ । (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र चूर्णी पत्र १०२ - १४० । भा. प्रा. ग्रं. १८६० । (३) सिद्धप्राभृतसूत्र पत्र १४१ - १४४ । भा. प्रा. । गा. १२१ । (४) सिद्धप्राभृतसूत्र वृत्ति पत्र १४४ - १६० । भा. प्रा. । लै. सं. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३ ॥ ४२ ॥ क्रमाङ्क ३४ (१) सूर्य प्रज्ञप्तिसूत्र पत्र. १-१०१ । भा. प्रा. (२) ज्योतिष्करंडकसूत्र वृत्तिसह पत्र. १०२-१६५ । भा. प्रा. । क. पादलिप्ताचार्य । ग्रं. १५८० । आदि ॥ ५० ॥ णमो अरहंताणं || कातूण णमोक्कारं जिणवरवसभस्स वद्धमाणस्स । जोतिसकरंडगभिणं लीलावट्टीव लोगस्स || कालपणाणाभिगमं सुणह समासेण पायडमहत्थं । णक्खत्तचंदसूरा जुगम्मि जोगं जध उति ॥ कंचि वायग वालब्भं सुतसागरपारगं दढचरितं । अप्पस्सुतो सुविहियं वंदिय सिरसा भणति सिस्सो ॥ सज्झायाणजोगस्स धीर ! जदि वो ण को पि उवरोधो । इच्छामि ताव सोतुं कालण्णाण समासेणं ॥ अह भणति एवभणितो उवमाविण्णाणणाणसंपण्णो । सो समणगंधहत्थी पsिहत्थी अण्णवादीणं || दिवसिय रातिय पक्खिय चउमासिय तह य वासियाणं च । णिअयपडिक्कमणाणं सज्झायस्सावि य तदत्थे ॥ सुण ताव सूरपण्णत्तवण्णणं वित्थरेण जं णिउणं । थोगुच्चएण एतो वोच्छं उद्योगमेत्तागं ॥ अंत ........] " कालपणाणसमासो पुव्वायरिएण नीणिओ एसो । दिणकरपण्णत्तीतो सिस्सजणहिउपियो [.... पुव्वायरियकयाय नीति समससमएणं ( ? ) । पालित्तएण इणमो रइया गाहाहिं परिवाडी ॥ नमो अरहंताणं । काoण्णाणस्स इणमो वित्ती णामेण चंद त्ति । सिवनंदिवायगेहिं तु रोयिगा जिणदेवगतिहेतूणं ॥ छ ॥ [ ग्रं.]१५८० ।। (३) ज्योतिष्करंडकसूत्र पत्र १६६ - १७९ । भा. प्रा. (४) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र पत्र १८० - २५६ । भा. प्रा. । ग्रं. १८३१ । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २३।४२। आदि ફ્ ॥ नमो अरिहंताणं ॥ जयति नवनलिणिकुवलयवियसियसयवत्तपत्तलदलच्छो । वीरो गइंदमयगलसल लियगयविक्कमो भयवं ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [३५नमिऊण असुरसुरगरुलहुयगपरिवदिए गयकिलेसे । अरिहे सिद्धायरिओवज्झाए सव्वसाहू य॥ फुडवियडपायडत्थं इणमो पुव्वसुयसारनीसंदं । सुहुमगणिओवइलु जोतिसगणरायसंबद्ध ॥ नामेण इंदभूइ त्ति गोतमो वंदिऊण तिविहेण । पुच्छइ जिणवरवसभं जोइसरायस्स पणत्तिं ॥ अन्त तत्थ खलु इमे अट्ठासीर्ति महागहा पण्णत्ता । तं जहा-इंगालए वियालए लोहियक्खे सणिच्चरे आहुणीए पाहुणीए कणए कणगसंताणए सोमे सहिए आसासणे भए कजोयए कव्वडए आगरए रंडभए संखे संखवण्णे संखवण्णाभे कसे कंसवण्णे कंसवण्णाभे रुप्पा रुप्पी रुप्पोभासे णीले णीलभासे दगे तंबवण्णे तिले तिलपुप्फवण्णे काए काकंबे इंदग्गी धूमकेतू हरी पिंगलए बुहे सुके बहस्सती राहू अगत्थी माणवए कालव्वासे धुरे पमुहे वियडे विसंधी णियल्लोयल्ले जडिले आतिलए अरुणे अग्गिलए काले महाकाले सत्थीए सोवत्थिए वद्धमाणए पूसमाणए अंकुसे पल्लंके निच्चालोए निच्चुज्जोये सयंपमे ओभासे उयंकरे खेमंकरे अपराजिए अरए असोगे विगतसोगे विमले विमुहे वितड्डे विवत्थे विभासे सकले सुव्वए अणियट्टी एकजडी दुजडी करे करिए रायग्गले पुप्फकेतु भावकेतू । इति एस पागडअभव्वजणहिययदुल्लभा इणमो। उक्कित्तिा भगवती जोतिसरासि(ति)स्स पण्णत्ती ॥ एस गहिया वि संती थद्धे गारवियमाणिपडणीए । अबहुस्सुए न देया तव्विवरीए भवे देया ॥ जम्हा धिइउहाणुच्छाहकम्मबलवीरियपुरिसकारेहि। जो सिक्खिओ वि संतो अभायणे पक्खिवेज्जासि ॥ सो पवयणमुत्तगुणो संघबाहिरो णाणविणयपरिहीणो। अरहंत थेर पवयण गणहर किर होति वोलीणो ॥४॥ तम्हा घितिउहाणुच्छाहबलवीरियसिक्खियं नाणं । धारेयव्वं निययं न य अविणीएसु दायव्वं ॥छ। इति चंदपण्णत्ती सम्मत्ता ॥छ।। ग्रन्थाग्रं १८३१ ॥छ।॥छ।॥छ।। सम्बत् १४८९ वर्षे मार्गशीर्ष शुदि पञ्चम्यां तिथौ गुरुदिने श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थ अविचलत्रिकालज्ञाssज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्ट लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमधीमत्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामपदेशेन परीक्ष सा. गुजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्ष्यधरणाकेन पुत्र सा.साईयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे सूर्यपन्नत्तीसूत्र-टिप्पनकं चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रं लिखापितम् । पु. हरीयाकेन लिखितम् ॥छ॥ क्रमाङ्क ३५ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र वृत्ति अपूर्ण पत्र २७६ । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि। ग्रं. ९१२५ । ले. स. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३०x२॥। पत्र १६३, १६४ नथी। क्रमाङ्क ३६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र वृत्ति पत्र ३१० । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । अं. ९१२५ । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २३॥४२॥. अन्त ॥संवत् १४८९ वर्षे भाद्रपद सुदि षष्ठी शुक्रे श्रीषरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये परीक्षिगूजरसुत परीक्षि धरणाकेन सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तिपुस्तकं लिखापित ॥छ॥श्रीः।। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३९] जैन ताडपत्रीय ग्रंथमंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ३७ चंद्रप्राप्तिसूत्र वृत्ति पत्र ३३५ । भा. सं.। क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ९५०० । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २३।४२।, आदि ॥ॐ नमः श्रीवर्द्धमानाय ॥ मुक्ताफलमिव करतलकलितं विश्वं समस्तमपि सततम् । यो वेत्ति विगतकर्मा स जयति नाथो जिनो वीरः॥१॥ सर्वश्रुतपारगता प्रतिहतनिःशेषकुपथसन्तानाः। जगदेकतिलकभूता जयन्ति गणधारिणः सर्वे ॥२॥ विलसतु मनसि सदा मे जिनवाणी परमकल्पलतिकेव। कल्पितसकलनरामरशिवसुखसन्तानदुर्ललिता ॥३॥ चन्द्रप्रज्ञप्तिमहं गुरूपदेशानुसारतः किञ्चित् । विवृणोमि यथाशक्ति स्पष्ट स्वपरोपकाराय ॥४॥ तत्राविघ्नेनेष्टप्रसिद्धयर्थमादाविष्टदेवतास्तवमाह ॥छ।। जयइ नवनलिणकुवलयवियसियसतपत्तपत्तलदलच्छो। वीरो गइंदमयगलसललियगयविकमो भगवं ॥ अन्त वन्दे यथास्थिताशेषपदार्थप्रविभासकम् । नित्योदितं तमोऽस्पृष्ट जैन सिद्धान्तभास्करम् ॥१॥ विजयन्तां गुणगुरवो गुरवो जिनवचनभासनकपराः । यद्वचनवशादहमपि जातो लेशेन पटुबुद्धिः ॥२॥ चन्द्रप्रज्ञप्तिमिमामतिगम्भीरां विवृण्वता कुशलम् । यदवापि मलयगिरिणा साधुजनस्तेन भवतु कृती ॥३॥ इति श्रीमलयगिरिविरचितायां विंशतितमं प्राभृतं समाप्तम् । समाप्ता चन्द्रप्रज्ञप्तिटीका। ग्रन्थाग्रं ९५०० ॥ सम्वत् १४८९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि २ गुरौ श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. उदयराज सा. बलिराजेन श्रीचन्द्रप्रज्ञप्तिटीका लिखापिता ॥ क्रमाङ्क ३८ (१) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र चूर्णी पत्र ७५ । भा. प्रा. । ग्रं. १८६० । पत्र ३४, ४०, ४२, ४८, ५३, ५९, ६२, ६९, ७१ नथी। अंक विनानां चार पत्र छ। (२) सिद्धप्राभृतसूत्र पत्र १-८ । भा. प्रा. । गा. १२१ । (३) सिद्धप्राभृतसूत्र वृत्ति पत्र ८-४४ । भा. प्रा.। . ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध [ धरणाके अथवा बलिराज-उदयराजे लखावेलो? ]।संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७॥४१॥। पत्र २६, २९ नथी। क्रमाङ्क ३९ (१) निर्यावलिकादिउपांगसूत्रपंचक संपूर्ण पत्र २९-८३ । भा. प्रा. । ग्रं. ११०९। (२) निर्याबलिकादिउपांगसूत्रपंचक वृत्ति अपूर्ण पत्र ८३-११४ । भा. सं.। क. श्रीचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध (धरणाके लखावेली ?)। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२,। पत्र ४४, ४५, ५३, ५५, ५६, ५८, ५९, ६२, ६३, ६८, ७०-७२ नथी। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ . [४० क्रमाङ्क ४० (१) कल्पसूत्र (पर्युषणाकल्प-दशाश्रुतस्कंधसूत्र अष्टमाध्ययन) पत्र १-७४ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। (२) कालिकाचार्यकथा पद्य पत्र ७५-८० । भा. प्रा.। गा. ८४ । आदि'अत्थि धरावासपुरे नरनाहो वयरसिंहनामो ति। (३) पर्युषणाकल्पनियुक्ति पत्र ८१-८६ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ६७ । (४) पर्युषणाकल्पचूर्णी पत्र ८६-१३३ । भा. प्रा. । ग्रं. ७०० । ले. सं. १४०४ । ॥पज्जोसमणाकप्पो अट्ठमज्झयणं परिसमाप्तं ॥छ।। सं. १४०४ वर्षे पौष वदि ३ भौमे लिखितं ॥छ।। ग्रन्थाग्रं ७०० कल्पसूत्रचूर्णी ॥छ। (५) पर्युषणाकल्पटिप्पनक पत्र १-२५ । भा. सं.। क. पृथ्वीचन्द्रसूरि । ग्रं. ६७० । (६) कालिकाचार्य कथा गद्य अपूर्ण पत्र १०३-१२९ । भा. प्रा. । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं.प. १४॥४२।. आदि'अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे धरावासं नाम नयरं । क्रमाङ्क ४१ (१) दशाश्रुतस्कंधसूत्रचूर्णी पत्र १-५० । भा. प्रा. । ग्रं. २२५० ।। (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र पत्र ५०-९२ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामो। ग्रं. २००० । (३) दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति पत्र ९२-९६ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । (४) महत्पंचकल्प भाष्य पत्र ९७-१७४ । भा. प्रा.। क. संघदास गणि क्षमाश्रमण । गा. २५७४ । अन्त ॥छ। महत्पंचकल्पभाष्यं । संघदासक्षमाश्रमणविरचितं समाप्तं ॥छ।। गाहग्गेणं पंचवीस सयाइं चउहत्तराई ।। २५७४ । सिलोयग्गेण बत्तीस सयाणि पंचत्तीसाणि ३२३५ ॥छ।। (५) पंचकल्पचूर्णी पत्र १७५-२४९ । भा. प्रा. । ग्रं. ३२३५ । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २२४२॥.। पत्र १६१, १६२, १६५-१७२, १७५ नथी। क्रमाङ्क ४२ (१) कल्पसूत्र (पर्युषणाकल्प-दशाश्रुतस्कंधसूत्र अष्टमाध्ययन) पत्र १-१३७। भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। ग्रं. १२१६ । ॥ग्रन्थाग्रं १२१६ ॥छ।। शुभं भवतु सकलसंघस्य ॥ साहु हेमासुत वोहडिना आत्मीय मातृश्रे (२) कालिकाचार्यकथा गद्य अपूर्ण पत्र १३७-१७५ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १४ शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२. आदि अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे धरावासं नाम नयरं । पत्र ११, १२, १४, २३, ३२, ३४, ३५, ४१, ४६, ७०, ७१, ७४, ८४, ९१-९४, ९६, ९८, १००, १०४, १२८, १५४, १५६,-१५९, १६४, १६६, १६७ नथी। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ४३ (१) कल्पसूत्र (पर्युषणाकल्प - दशाश्रुतस्कंधसूत्र अष्टमाध्ययन.) पत्र. १ - ८५ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. १२१६ । (२) कालिकाचार्यकथा गद्य पत्र. ८६ - १११ । भा. प्रा. । . ३६० । आदि अथ इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे धरावासं नाम नयरं । क्र. ४७ ] अन्त संलेहणं विहेउं अणसणविहिणा दिवं पत्तो ॥ कालिकाचार्य कथानकं समाप्तम् ॥ छ ॥ ग्रंथाग्रं कथा ३६० ॥ एवं ग्रंथ १५७६ ॥ छ ॥ (३) पर्युषणाकल्पचूर्णी पत्र. ११२-१५७ । भा. प्रा. । ले. सं. अनु. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२४२ ॥ क्रमाङ्क ४४ (१) कल्पसूत्रवृत्ति (संदेहविषौपधि) पत्र. १ - १४६ । भा. सं. । क. जिनप्रभसूरि । ग्रं. २१६८ । (२) कल्पनियुक्तिवृत्ति पत्र. १४६ - २०१ । भा. प्रा. । क. जिनप्रभसूरि । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्ध [ धरणाक लेखित ] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४१।।।.। अंतिम पत्र नथी । १७ क्रमाङ्क ४५ पर्युषणाकल्पचूर्णी. पत्र. १-२७। भा. प्रा. । ग्रं. ७०० । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२ । । कागळ उपर लखेली पोथी छे । १४ शताब्दी । संह० ३ क्रमाङ्क ४६ कल्पलघुभाष्य (बृहत्कल्पलघुभाष्य) अपूर्ण पत्र. १७९ । भा. प्रा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । ग्रं. ६५६८ । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४ ॥ ५२ ॥ पत्र. १६९, १७१, १७४, १८०-१८३ नथी । पत्र. १६७ थी १८३ कागळ उपर नवां लखावेलां छे । क्रमाङ्क ४७ (१) बृहत्कल्पसूत्र. पत्र १-१२ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । (२) कल्पलघुभाष्य. पत्र १३ -२३८ । भा. सं. । क. संघदासगणि क्षमाश्रमण | गा. ६६०० । ले. सं. १४८८ । संह श्रेष्ठ । द श्रेष्ठ । लं. प. ३२x२। अन्त ॥ इति लघु कल्पभाष्यं समाप्तम् ॥ छ ॥ सर्वसंख्या गाथा ६६०० ॥ शुभं भवतु श्री श्रमण संघस्य ॥ छ ॥ संवत् १४८८ वर्षे श्रीमत्खरतरगच्छनायकश्रीजिनराजसूरिपट्टप्रद्योतसहस्रकरकिरणानुकाराणां श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परमदेवगुर्वाज्ञापालक परोपकारकारक प. धरणासुश्रावकेण पु. सा. साइया सा महीराज ' सा. जिणदासादिसारपरिवारकलितेन श्रीज्ञानकोशे सौवविभवव्ययेनैतत्पुस्तकं लेखयांचक्रे । वाच्यमानं चिरं जयतु ॥ Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्रमाङ्क ४८ कल्पवृहद्भाष्य प्रथमखंड. पत्र ३११ । भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध धरणाक लेखित । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २३x२ ।। पत्र. १, २४, २७, २९, २९५ थी २९७, ३००, ३०९, ३११ नो टुकडो नथी । अन्त . महीराज प. जिणदासादिपरिवारयुतेन श्रीकल्पबृहद्भाष्यपुस्तकमलेखि । वाच्यमानं चिरं नन्दतु । क्रमाङ्क ४९ कल्पबृहद्भाष्य प्रथम खंड पत्र २०२ । भा. प्रा. । ले. सं. १४९० । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२॥ अन्त सामी अणुष्णविज्जति दुममस्व जस्सोग्गहो व असधीणे । कूरसुरपरिग्गहिते इणमो गमयो मुणेतव्वो । णेच्छते वा अण्णो ईसा खलु सुरेण जं परिग्गहियं । तत्थ वि सो चेव गमो सगारपिंडम्मि म गणतो ॥ जक्खो श्चिय होति तरो पलिः ॥ छ ॥ क्र. ४८ संवत् १४९० वर्षे मार्गशीर्ष सुदि पञ्चम्यां तिथौ गुरुवासरे श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थ अविचलत्रिकालज्ञाssज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत् खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपप्रमिथ्यात्वतिभिरनिकरदिनकरप्रस रसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. धरणाकेन पुत्र साइयासुतसहित श्रीसिद्धान्तकोशे बृहत्कल्पचूर्णिपुस्तकं (बृहत्कल्पबृहद्भाष्यपुस्तकं ) लिखापितम् ॥ ॥ क्रमाङ्क ५० कल्पचूर्णी. पत्र ३३४ । भा. प्रा. ग्रं. १४७८४ । ले. सं. १३८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२।४२॥ | पत्र १५६, १६३ नथी । अन्त १४७८४ ।। ॥ कल्पचूर्णी ॥ छ ॥ विक्रम सं. १३८९ भाद्रवा सुदि चतुर्थीदिने लिखितमिदम् । ग्रं. उदकानलचोरेभ्यो मूषकेभ्यस्तथैव च । रक्षणीयः प्रयत्नेन यस्माद् दुःखेन लिख्यते ॥ शुभमस्तु सङ्घस्य ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टालङ्कारश्रीजिनकुशलसूरियुगपवरागमोपदेशेन ना. कुमरपाल श्रावण श्रीकल्पचूर्णिपुस्तकमिदमलेखि ॥ • यस्मिन् जाग्रत्सु पुरुषसुमस्तो मसौरभ्यभङ्गी भोगाकृष्टैर्बुधमधुकरैस्तन्यते कीर्त्तिगीतिः । पृथ्वीकान्ताकमनकरणत्राणशृङ्गारकोऽसौ, पुष्पापीडो जगति जयति श्रीमदूकेशवंशः ॥१॥ तस्मिन् सिद्धिवधूवशीकृतिविधौ गाढानुबन्धान्न्यधाद्, यः स्वस्वान्तवसुन्धरांतरतुलं सम्यक्त्वसत्कार्मणम् । सर्वाङ्गीणविभूषणं त्वचकलच्छीलं शरीरेऽसकौ, पुन्नागोऽभवदासनाग उदयी नाहट्टवंशोद्भवः ॥२॥ कुमरपाल इति प्रथमोऽङ्गभूरभवदस्य विभास्वरभाग्यभूः । तदनुजोऽजनि दुर्लभनामकः कलकलाकलना कुशलात्मकः ॥३॥ देवार्चागुरुपर्युपास्तिगुणवद्दानादिषट्कर्मणां कर्त्ता विप्र इवान्वहं कुमरपालः श्राद्धरतं जयी । श्रीशत्रु जयदेवदेवकुलिकां श्रीमानतुङ्गाभिघप्रासादाभरणं विधाप्य नृजने योऽलात् फलं निस्तुलम् ॥४॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ५१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र समजनि जनी मान्या धन्याभिधाऽऽस्यसुधारसप्रसरमधुरव्याहारोद्घा सुशीलरमाऽनघा । यतिजनसदासेवाहेवाकताकलिता हि याऽजनयत निजं नामान्वर्थे विवेकवती सती ॥५॥ स्वःशाखेव सुखावहान् कलफलान् प्रासूत सा सत्सुतान् ख्यातानीश्वरलोहटौ कुमरसिंहं चेति सत्पुत्रिके । गोगी नाम सरस्वतीं च विदितैरेतैरपत्योत्तमैर्या काश्चित् कलयाञ्चकार परमां रामासु शोभां भुवि ॥६॥ [ उदयश्रीति नाम्नाऽभूदीश्वरस्य सधर्मिणी । समुद्रतनया ख्याता लक्ष्मीर्लक्ष्मीपतेरिव ॥] तयोर्बभूव स्थिरदेव - वर्द्धापनादयो नप्तृवरा उदाराः । अवर्द्धिषातामिति तौ धरायां न्यग्रोधभूमी रुवन्निकामम् ॥७॥ इतश्च पृथ्वीराजन्रराजराजसमितौ प्रौढप्रमाणायुधे, श्रीपद्मप्रभसूरिवीरमुदयद्दर्प विजित्य क्षणात् । वीरासुखोन्मुखी जयरमा येनोपयेमेतमां, सैषोऽशेषजिगीषुराड् जिनपतिर्जज्ञे यतीन्द्रः पुरा ॥ ८ ॥ तदीयपदसम्पदां स समपादि पात्रं परं जिनेश्वरयतीश्वरः सुकृतवारिवाद्धिर्यकः । निशाकरकरोत्करप्रवर सौव कीर्तिच्छटा सिता भ्रदलभङ्गिभिर्व्यधित पत्रभङ्गीदिशाम् ॥९॥ तत्पट्टपट्टद्विपकुम्भकोटिमध्यास्त चक्रीव जिनप्रबोधः । सूरीश्वरो येन सुशास्त्र चक्रप्रयोगतो जाड्यरिपुर्व्यभेदि ॥ १० ॥ रेजे श्रीजिनचन्द्रसूरि सुगुरुस्तद्गच्छलक्ष्मीपतिर्मुक्ताहार तुषार तार सुयशः प्राग्भारविश्वंभरिः । यात्रां यत्र वितन्वति क्षितितले मिथ्यात्वदस्युच्छिदे, तद्गृह्या इव ते दिगन्तगतयः पाखण्डिनो जज्ञिरे ॥ ११ ॥ शुद्धं यद्वक्त्रसौधे कलिमलविलय क्लुप्त सर्वर्तुकांते, कान्ते श्रीवाणिदेव्याः सुखमसुखमुषि प्रत्यहं संवसन्त्याः । लीलादोलानुकारं कलयति युगली कल्पयोः कपाल्योस्तत्पट्टस्वर्गिशेले जिनकुशलगुरुः स्वस्तरुः सोऽस्त्युदीतः ॥१२॥ प्राहुर्ज्ञानचरित्र दर्शनमयं श्रीमुक्तिमार्ग जिना, विज्ञानेन विना क्षमे न भवितुं चारित्रसद्दर्शने । प्यानज्ञाननिबन्धनं च समयज्ञानैकतानात्मनां साधूनां बहुशास्त्रपुस्तकततेर्विश्राणनं गीयते ॥ १३ ॥ तन्मोक्षलक्ष्मिपरिरम्भमहोत्सवोत्कैः श्राद्धैर्विशुद्धहृदयैर्विकसद्विवेकः । जैनागमा वगमसङ्गतसंयतेभ्यः सिद्धान्तपुस्तकततिः सततं प्रदेया ॥ १४ ॥ इति हि तदुपदेशं सान्द्रचन्द्रातपाभं विशदवदनचन्द्रात् सादरं पुंश्वकोरः । किमपि कुमरपालः पुण्यलक्ष्म्या विशालः स्म पिबति बत तृष्णगू सद्विवेकप्रवेकः ।। १५ ।। छेदग्रन्थपुरावतारसरणेः श्रीकल्पचूर्णेः कलं, संलेख्याक्षरचञ्चुलेखकारात् पुस्तं प्रशस्ताक्षरम् । पुण्यात्मा च कुमारपाल उदयद्धर्माशयः श्रेयसे ज्ञानाक्षीणनिधानवत् सुगुरवे विश्राणयामासिवान् ॥ १६ ॥ ब्रह्माण्डालयमण्डपप्रतिकृति व्योमाङ्गणे तीर्थकृत्कीर्त्तिः कीर्त्यनटीस्फुटीकृतगतिर्नृत्यं परं पुष्णती । यावत् खेचरचक्रवालपरिषत् प्रीतिप्रदा पद्यते तावत् क्रीडतु भृङ्गवत् कृतिकराम्भोजेष्वदः पुस्तकम् ॥ १७ ॥ श्री जिनकुशलयतीशां निकटे कर्पूरपूरगण्डूषान् । विदधलब्धिनिधानोऽभिषेक आधात् प्रशस्तिमिमाम् ॥ १८ ॥ ॥ इति श्रीकल्पचूर्णि पुस्तकप्रशस्तिः ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ५१ कल्पचूर्णी अपूर्ण पत्र २४-३५६ । भा. प्रा. ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्धं । संह श्रेष्ठ । द श्रेष्ठ । ३१॥॥४२॥ पत्र ३-२३, २६, २८, २९, ४४, ४५, ४८, ३४२, ३४४, ३४८, ३५० - ३५३ नथी । १९ ३१ ॥४२॥ ले. प. ३२१, ३२६-३२९, ३३१, ३३४-३३५, ३३८, ३४०, Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्रमाङ्क ५२ कल्पवृत्ति प्रथमखंड मासकल्पप्रकृतपर्यन्त पत्र ३३१ । भा. प्रा. सं. । मलयगिरिं तथा तपा. क्षेमकीर्ति । ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. अन्त ॥ इति मासकल्पप्रकृतं समाप्तम् ॥ छ ॥ चूर्णिश्री वृद्धभाष्यप्रभृति बहुतिथग्रन्थसार्थाभिरामारामादर्थप्रसूनैस्त्वरितमवचितैः सूक्तिसौरभ्यसारैः । चेतःपट्टे निधाय स्वगुरुशुचिवचस्तन्तुभिर्गुम्फितेय, इति श्रीकल्पप्रथमखण्डपुस्तकं ॥ छ ॥ श्री ॥ सम्वत् १४८८ वर्षे मार्गशीर्ष शुदि पञ्चम्यां तिथौ गुरुवासरे श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाऽऽज्ञापालन पटुतरे विजयिनि श्रीमतखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकर श्री कल्पे मासकल्पप्रकृतविवरणस्रग् मया भव्ययोग्या ॥ छ ॥१॥ [ क्र. ५२ वृ. क. आचार्य ३३ ॥ ५२ ॥ प्रसरसम श्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणान पुत्र सा. साईयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे श्रीकल्पवृत्ति प्रथमखण्डपुस्तकं लिखापितम् । मङ्गलमस्तु ॥ ॥ छ ॥ श्री ॥ क्रमाङ्क ५३ कल्पवृत्ति द्वितीयखंड पत्र ३०८ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. तपा. क्षेमकीर्ति । ग्रं. १४१६० । ले. सं. १४९० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥ अन्त--- एवमस्माकमपि प्राघूर्णकाः प्रधानपुरुषकल्पास्ततस्तेषां यथायोग्यमवकाशान् दत्त्वा वृषभाः संस्तारकभूमी: संक्षिप्य प्रयच्छन्तः पूर्वानपि साधून् मापयन्ति ॥ छ ॥ समाप्तं बृहत्कल्पवृत्तिद्वितीयखण्डम् ॥ छ ॥ ग्रं. १४१६० ॥ संवत् १४९० वर्षे वैशाख सुदि पञ्चम्यां तिथौ गुरुवासरे श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराज - सूरिपठ्ठे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धि बोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिभिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेश भट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्र सा. साइयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे बृहत्कल्पवृत्तिद्वितीयखण्डपुस्तकम् । क्रमाङ्क ५४ कल्पवृत्ति तृतीयखंड. पत्र २९६ । भा. प्रा. सं । वृ. क. आचार्य क्षेमकीर्ति । र. सं. १३३२ । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४४२ । अन्त- सूत्रे वा भाष्ये वा यन्मतिमोहाद् मयाऽन्यथा किमपि । लिखितं वा वितं वा तन्मिथ्यादुष्कृतं भूयात् ॥२६॥ ग्रन्थ ९५५१ सर्वाग्रं १२६५१ श्रीः ॥ छ ॥ श्रीः ॥ सम्वत् १४८९ वर्षे मार्ग सुदि ५ गुरु दिने श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुर बहुबुद्धिबोधित भूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिभिरनिकरदिनकरप्रसरसम श्रीमत् गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगुजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे बृहत्कल्पतृतीयखंडपुस्तकं लिखापितम् । पुरोहित हरीयाकेन लिखितम् । शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ छ ॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ५९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ५५ कल्पवृत्ति पीठिकासहित प्रथमखंड, मासकल्पप्रकृत पर्यन्त प्रथम उद्देश. पत्र २०७ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. आचार्य मलयगिरि तथा तपा. क्षेमकीर्ति । ग्रं. १५००० । ले. सं. १३७८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२॥ पत्र ९६ मां ग्रं. ४६०० ॥ कल्पपीठिका श्रीमलयगिरिविरचिता ॥छ॥ सं. १३७८ वर्षे मार्ग शुदि ८ दिने समर्थिता ॥छ॥ क्रमाङ्क ५६ कल्पवृत्ति पीठिका अनंतरवर्ती विभाग अपूर्ण. पत्र ३१५। भा. प्रा. सं.। वृ. क. आचार्य क्षेमकीर्ति। ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. मध्यम । लं. प. ३७४२।। पत्र. १४३, १४४, १४६-१५१, २०९, २१०, २८१-२८४, ३०२-३१०, ३१२ नथी । क्रमाङ्क ५७ कल्पवृत्ति तृतीयखंड. पत्र. २८२ । भा. प्रा. सं.। वृ. क. आचार्य क्षेमकीर्ति । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ। द. मध्यम। लं. प. ३८॥४२॥. । पत्र. १, २७४, २७६, २७७, २८१ नथी। अंतनी प्रशस्तिनो भाग अपूर्ण छे. क्रमाङ्क ५८ (१) कल्पवृत्ति द्वितीयखंड. पत्र. २८९-३९६ । भा. प्रा. सं. । (२) पत्र. २७६-४२२ । भा. प्रा. सं.। वचमा घणां पानां नथी. मात्र २५ जेटलां पानां छे। ॥ सं. १४०३ वर्षे भाद्रवा सुदि ६ सोमदिने खरतरगच्छाधिपतिश्रीतरुणप्रभसूरीणां उपदेशात् ॥छ॥ कल्प... (३) कल्पविशेषचूर्णी. पत्र. २९ । भा. प्रा. । (४) पत्र. २४९-३०५ । भा. प्रा.। ॥छ॥ विशेषकल्पचूर्णी सम्मत्ता ॥छ॥ ग्रंथाग्रं ११००० ॥ शुभं भूयात् ॥ (५) कल्पचूर्णी त्रूटक अपूर्ण, (६) कल्पलघुभाष्य. त्रूटक, अपूर्ण. टक अपूर्ण ग्रंथोनी आ पोथी छे । क्रमाङ्क ५९ (१) व्यवहारसूत्र. पत्र. १-१५ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. ६८८ । ले. सं. १२३६ । अन्त ॥छ । ववहारे दसमो उद्देसओ समत्तो ॥ समत्तो ववहारो॥छ ।। संवत् १२३६ ॥ श्रावण वदि १० शुक्र अद्येह श्रीमदणहिलपाटकस्थितेन साधुजिनबंधुरेण कर्मक्षयार्थ लिखितमिति ॥छ। ग्रंथाग्रं श्लोकमानेन ६८८ ॥ छ ।। (२) व्यवहारसूत्र भाष्य. पत्र. १६-१३६ । भा. प्रा. । ग्रं. ६००० । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ अन्त ॥ जयति जिणो वीखरो सररुहतवणिज्जपुंजपिंजरदेहो । सव्वसुरासुरणरवरमउडतडालीढपावीढतडो || नमो सुतदेवयाए भगवतीए ॥ छ ॥ व्यवहारभाष्यं समाप्तमिदं ॥ मंगलं माश्रीः ॥ छ ॥ प्रत्यक्षरगणनायां सुभाष्यामृतनीरथेः । द्वादशार्द्धसहस्राणि ग्रन्थमानं विनिश्चितम् ॥१॥ ग्रं. ६००० ॥ छ ॥ येन श्रीजिनधर्ममत्र जगृहे भित्त्वा सुदुर्गाग्रहं सूरेः श्रीजिनरक्षितस्य विधिना सम्यग्गुरोरतिके तेनेदं जिनबंधुरेण गुरवे स्वस्मै स्फुटं साधुना मोक्षार्थ व्यवहारभाष्यममलं संलिख्य दत्तं स्वयम् ॥ छ ॥वं॥छ॥ ॥ (३) व्यवहारचूर्णी पत्र १ - २३१। भा. प्रा. । ले. सं. १२३६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९ ॥ ४२१ । पत्र. १३०- १४९ नथी । अन्त---- व्यवहारस्य भगवतः अर्थविवक्षाप्रवत्तने दक्षम् । विवरणमिदं समाप्तं श्रमणगणानाममृतभूतम् ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ६० (१) व्यवहारसूत्र पत्र १ - १९ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । पत्र २, ४ नथी । (२) व्यवहारसूत्र चूर्णी पत्र १-३०१ । भा. प्रा. ले. सं. १४९० । ग्रं. १२००० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२४२ अन्त ।।छ।। ग्रन्थाग्रं १२००० ।। संवत् १४९० वर्षे माघवदि ५ शुक्रे श्रीमति श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे । विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धि बोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्र चंदनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिभिरनिकरदिनकरप्रसरसम श्रीमद्गच्छेशभट्टारक श्री जिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षिगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन प. धरणाकेन पुत्र सा. साइयासहितेन स्वश्रेयसे व्यवहारचूर्णि पुस्तकं लिखापितं ॥ ॥ क्रमाङ्क ६१ (१) व्यवहारभाष्य पत्र १-१५५ । भा. प्रा. क. जिनदासगणि क्षमाश्रमण | [ क्र. ६० अन्त- ।। संवत् १४९० वर्षे फा. वदि ९ गुरौ लिखितं श्रीस्तंभतीर्थे खरतरगच्छे जिनभद्रसूरीश्वराणां ॥ (२) दशाश्रुतस्कंधनिर्युक्ति पत्र १५६ - १६१ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी 1 चूर्णी पत्र १६१-२२५ । भा. प्रा. । 33 सूत्र पत्र २२५ - २८० । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. १४९० [धरणाक लेखित ] | संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२x२ क्रमाङ्क ६२ व्यवहारसूत्रवृत्ति प्रथमखंड. प्रथम उद्देश पर्यन्त पत्र ३५० | आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४८९ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४६-३४७ नथी. भा. प्रा. ३२ ।।४२।। अन्त- ।। छ । । प्रन्थानं १०८७८ ।। संवत् १४८९ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिराज्ये प. गूजर पुत्र सुश्रावक प. धरणाकेन श्रीव्यवहारप्रथमखंडपुस्तकं पुन्यार्थ लेखापितं ॥ शुभं भवतु || कल्याण मस्तु ॥छ || 35 सं. 1 वृ. क. पत्र ३४२ ३४४, Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ६३ व्यवहारसूत्र वृत्ति द्वितीयखंड २-६ उद्देश पर्यन्त पत्र ३७५ । भा. प्रा. सं.। वृ. क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. १३७१९ । ले. सं. १४९० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२।४२। ॥ स्वस्ति संवत् १४९० वर्षे मार्गशीर्ष सुदि पञ्चम्यां तिथौ गुरुवारे । श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचल - त्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत् खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिध्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसम श्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्ष सा. गूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. परीक्ष्यधरणाकेन पुत्र सा. साईया - सहितेन श्रीसिद्धान्तकेशो लेखितः स्वश्रेयसे । यावन्मेरुः पवित्रो जिनवरजनन स्नात्रसम्भूततोयैर्यावद्दिन्या विमानस्थितिरतिसुखदा सिद्धिसंस्थाश्व सिद्धाः । यावलोकप्रकाशं सकलजनहितं जैनसिद्धान्ततत्त्वं विद्वद्भिर्वाच्यमानं चिरमवनितले पुस्तकं तावदास्ताम् ॥छ || ॥ श्रीसङ्घस्य शुभं भवतु ॥ छ ॥ श्रीः ॥ क्र. ६६ ] क्रमाङ्क ६४ व्यवहारसूत्रवृत्ति तृतीय खंड ७-१०उद्देश पर्यन्त संपूर्ण पत्र ३०७ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४९० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं प. ३२x२०. अन्त ॥ इति श्रीव्यवहारवृत्तिः संपूर्णाः ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥ संवत् १४९० वर्षे मार्गशीर्ष सुदि पञ्चम्यां तिथौ गुरुवारे । श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाssज्ञापालनपटुतरे विजयिनि । श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधित भूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरमिध्यात्वतिभिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्री जिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षसाहगूजर सुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. परीक्ष्यधरणाकेन पुत्र सा. साइयायुतेन श्रीसिद्धान्तकोशो लेखितः स्वश्रेयसे । २३ यावन्मेरुः पवित्रो जिनवरजननस्नात्रसम्भूततो यैर्यावद्दिव्या विमानस्थितिरतिसुखदा सिद्धिसंस्थाश्च सिद्धाः । यावल्लोकप्रकाशं सकलजन हितं जैनसिद्धान्ततत्त्वं विद्वद्भिर्वाच्यमानं चिरमवनितले पुस्तकं तावदास्ताम् ॥ छ ॥ ॥ श्रीसंघस्य शुभं भवतु ॥ छ ॥ श्रीः ॥ क्रमाङ्क ६५ (१) निशीथसूत्र पत्र १-१५ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । (२) निशीथसूत्र भाष्य पत्र १-१७८ । भा. प्रा. । गा. ६४३९ । ग्रं. ७४०० । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दीनुं उत्तरार्द्ध । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २६ ॥ ४२ ॥ पट्टिका उपर ५ निसीहभास्यपुस्तकं श्रीजयसिंहाचार्याणाम् ॥ क्रमाङ्क ६६ निशीथसूत्र भाष्य पत्र २१४ । भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दीनुं उत्तरार्द्ध [धरणाक लेखित ? ] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५॥४२ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. ६७क्रमाङ्क ६७ निशीथसूत्रचूर्णी प्रथमखंड. ११ मा उद्देश पर्यन्त किंचिदपूर्ण पत्र ४६४ । भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४॥४२. । पत्र १८-३२, ४१, ४३, ४६, ४७, १८४, २७१ नथी। प्रथम पत्रनी पहेली पूंठी उपर।। श्रीजिनदत्ताचार्याणां निशीथसूत्रचूर्णिप्रथमखंडपुस्तकं ॥ क्रमाङ्क ६८ (१) निशीथसूत्र पत्र १८ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। ग्रं. ८१२ । पत्र ८, १०, ७४, ७७, २१५, २१९-२२३, २२५-२२८, २४१ नथी. (२) निशीथसूत्रचूर्णी प्रथमखंड अपूर्ण पत्र १-३२४ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध [धरणाक लेखित ?]। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३२४२॥ पट्टिका उपरि ॥ सं. १५४९ वर्षे श्रीजिनसमुद्रसूरिविजयराज्ये महोपाध्यायश्रीकमलसंयमशिष्यश्रीमुनिमेरूपाध्यायग्रंथोऽयमवाच्यत ॥ ॥सं. १६३४ वर्षे श्रीजिनचंद्रसूरिराजानां शिष्यैः पं. कल्याणकमल पं० महिमराजमुनि पं० समयराज पं० धर्मनिधान पं. रत्ननिधानमुनिभिः पंचभिः प्रत्यंतरे लेलिखितो ग्रंथोऽयमवाचि च ॥ अथ वाच्यमानश्चिरं नंदतादिति श्रीजिनकुशलसूरिप्रसत्त्यासत्त्या ॥श्रीः क्रमाङ्क ६९ निशीथसूत्रचूर्णी द्वितीयखंड. पत्र. २९४ । भा. प्रा.। ले.सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध [धरणाक लेखित ?]। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३१॥४२॥ क्रमाङ्क ७० निशीथसूत्रचूर्णी प्रथमखंड दशम उद्देश पर्यंत. पत्र. ३३८ । भा. प्रा । ग्रं. १७८८४ । ले. सं. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥ क्रमाङ्क ७१ निशीथसूत्रवर्णी द्वितीयखंड. पत्र. ४१९ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी- पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२॥ क्रमाङ्क ७२ महानिशीथसूत्र. पत्र. ८७ भा. प्रा.। ग्रं. ४५४४ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दीनु उत्तरार्द्ध. [धरणाक लेखित ?] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥ क्रमाङ्क ७३ निशीथसूत्र लघुभाष्य पत्र. ४-१००। भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दीनुं उत्तरार्द्ध । संह. अतिजीर्ण। द. श्रेष्ठ । लं. प. ११४२१.। पत्र ९३९ नथी। पत्र ७९ मां-णिसीथभाष्ये प्रथम उद्देशक ॥छ॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ७७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ७४ (१) दशवकालिकसूत्र पत्र. १-९६ । भा. प्रा.। क. शय्यंभवसूरि। ग्रं. ७०० । (२) पाक्षिकसूत्र पत्र ९७-१४२। भा. प्रा.। ग्रं. ३००। पत्र ८४ नथी। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ११४२ क्रमाङ्क ७५ निशीथचूर्णी विंशोदेशक व्याख्या अपूर्ण पत्र. १७२ । भा. सं.। क. श्रीचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ८॥४१॥॥ पत्र. १-५, ५५-५८, ६०, ६१ नथी। आ. श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर क्रमाङ्क ७६ श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र नंदीदर्गपदवत्ति पत्र. ३-२२१ । भा. सं.। क. श्रीचंद्रसूरि । ग्रं. ३३कोबा (गाधीनगर) पि 300000 ले. सं. १२२६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२॥ अन्तइति समाप्ता श्रीशीलभद्रप्रभुश्रीधनेश्वरसूरिशिष्यश्रीचन्द्रसूरिविरचिता नन्दिटीकाया दुर्गपदव्याख्या ॥छ॥ स्वं कष्टेऽतिनिधाय कष्टमधिकं मा मेऽन्यदा जायतां, व्याख्यानेऽस्य तथाविधे कुमनसामल्पश्रुतानाममुम् । इत्यालोचयता तथापि किमपि प्रोक्तं मया तत्र च, दुर्व्याख्यानविशोधनं विदधतु प्राज्ञाः परार्थोद्यताः ॥१॥ दुःसम्प्रदायादसदूहनाद्वा प्रकाशितं यद् वितथं मयेह । तद् धीधनैर्मामनुकंपयद्भिः शोध्य मतार्थक्षतिरस्तु मैवम् ॥२॥छ। ग्रथाग्रं ३३०० ॥छ॥ मङ्गलमस्तु ॥छ॥ संवत् १२२६ वर्षे द्वितीय श्रावण शुदि ३ सोमेऽयेह मंडलीवास्तव्यश्रीजाल्योधरगच्छे मोढसे श्रावकश्रीसदेवसुतेन ले. पल्हणेन लिखिता। लिखापिता च श्रीगणभद्रसूरिभिः ॥छ॥ मङ्गलमस्तु ॥छ॥ सकलभुवनप्रकाशनभानुश्रीहेमचन्द्रसुगुरूणाम् । स्थापयिताऽऽसीद् भाण्डागारिकसोमाकरसुश्राद्धः ॥१॥ मरुदेवागर्भजया तत्सुतया सीमिकाहवया क्रीत्वा । नन्द्यध्ययनसुविवरणटिप्पितपुस्तकमिदमुदारम् ॥२॥ मुनिबालचन्द्रशिष्यश्रीमद्गुणभद्रसूरिसुगुरुभ्यः । दत्तमुपलभ्य वय फलममलं ज्ञानदानस्य ॥३॥६॥ सं. १३९३ श्रीजिनपद्मसूरिसुगुरूपदेशेन सा. केलीपुत्ररत्न सा.किरतासुश्रावकेण सत्पुत्र सा. विजमल सा. कर्मसिंह पौत्रकीका सकलपरिवारेण ससूत्रा नन्दीटीका गृहीता। भगिनीनायकसुश्राविकाश्रेयोऽर्थम् । आचन्द्रार्क नन्दतात् ॥श्रीः॥ क्रमाङ्क ७७ (१) नंदीसूत्र पत्र २६ । भा. प्रा.। क. देववाचक । ग्रं. ७०० । (२) नंदीसूत्रवृत्ति पत्र १-२९७ । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ७७३२ । ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥.। शुद्ध प्रति । अन्त स्वस्ति संवत् १४८८ वर्षे श्रीसत्यपुरे पौषवदि १० दिने श्रीपार्श्वदेवजन्मकल्याणके श्रीखरतरगणाधिपैः Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ७८श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकारसारैः प्रभुश्रीमज्जिनभद्रसूरिसूर्यावतारैः श्रीनंदिसिद्धान्तपुस्तकं स्वहस्तेन शोधितं पाठितं च । तच्च श्रीश्रमणसधेन वाच्यमाने चिरं नंदतु ॥ क्रमाङ्क ७८ अनुयोगवारचूर्णी पत्र. ६९ । भा. प्रा.। क. जिनदासगणि महत्तर। ग्रं. २२६८ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २२॥४२॥ क्रमाङ्क ७९ (१) अनुयोगद्वारसूत्र पत्र १-६६। भा. प्रा. । (२) अनुयोगद्वारसूत्रलघुवृत्ति पत्र ६७-१६३। भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२ अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति पत्र १८१ । भा. सं. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०॥४२१.। संशोधिता प्रति । क्रमाङ्क ८१ अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति किंचिदपूर्ण पत्र १९४ । भा. सं. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १५ भी शताब्दी उत्तरार्ध [धरणाशाह लेखित ?]। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३२।।।४२।। संशोधिता प्रति । क्रमाङ्क ८२ (१) दशवैकालिकसूत्र सटीक पत्र १-१८६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. शय्यंभवसूरि । टी. क. तिलकाचार्य । ग्रं. ७०००। वृ. र. सं. १३०४ । (२) संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र १८७-२७५ । मू. क. श्रीचंद्रसूरि । टी. क. देवभद्रसूरि । ग्रं. ३५०० । (३) कल्पसूत्र (पर्युषणाकल्प ) पत्र २७६-३०५ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । (४) कल्पसूत्रचूर्णी पत्र ३०५-३२१ । भा. प्रा. । (५) कल्पसूत्रनियुक्ति पत्र ३२१-३२३ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । गा. ६८ । ३-५ ना ग्रं. १९००।। (६) कल्पसूत्र टिप्पनक पत्र ३२३-३३८ । भा. सं. । क. पृथ्वीचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३४२॥. आ प्रतिमां भगवान् श्रीपार्श्वनाथना जीवनप्रसंगने लगतां चित्रो छ। चित्रोनी यादीचित्रक्रमांक पत्रांक वामा माता अंतनां पांच स्वप्न जुए छे. वामा माताए जोएलां प्रारंभनां गज-वृषभादि नव स्वप्न. स्वप्नपाठकनो फलादेश. भगवान् श्रीपार्श्वनाथनो जन्म. हरिणेगमेषि देव पार्श्वनाथ भगवानने मेरु उपर लई जाय छे. मेरुपर्वत उपर श्रीपार्श्वनाथनो जन्माभिषेक. - Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र भगवान् पार्श्वनाथ घोडा उपर बेसी फरवा नीकळ्या छे. श्रीपार्श्वनाथर्नु लग्न. श्रीपार्श्वस्वामी अने राणी प्रभावती रंगभवनमां. वामा माता अने भूगवान्-दीक्षानी अनुज्ञा. भगवान् पार्श्वनाथ कमठ तापस पासे जाय छे. कमठ तापसनु पंचाग्नितप अने नागदहन. वार्षिकदान. भगवान् शिबिकामां बेसी दीक्षा माटे जाय छे. भगवाननु केशढुंचन अने दीक्षा. कमठ-मेघमालिदेवकृत जलोपसर्ग. आचार्य महाराज शिष्योने वाचना आपे छे. समवसरण. पार्श्वनाथ भगवाननु निर्वाण. अष्टमंगल. क्रमाङ्क ८३ (१) दशवैकालिकसूत्र वृत्ति पत्र १-२०२ । भा. सं.। क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. ७००० । ले. सं. १२८९ । पत्र २०२ मां ॥ संवत् १२८९ फाल्गुन सुदि ४ सोमे स्तंभतीर्थनगरनिवासिना । श्रीश्रीमालवंशोद्भवेन ठ. साढासुतेन । ४. कुमरसिंहेन दशवैकालिकश्रुतस्कंधवृत्ति १ नियुक्ति २ सूत्र ३ पुस्तकं लेखयांचक्रे ॥छ॥ शुभं भवतु ॥छ॥ मंगलमस्तु ॥छ॥ (२) दशवैकालिकसूत्रनियुक्ति पत्र २०३-२२१ । क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ४४०. ॥ संवत् १२८९. इत्यादि पुष्पिका उपर प्रमाणे. (३) दशवैकालिकसूत्र पत्र २२२-२४७ । भा. प्रा.। क. शय्यभवसूरि। ग्रं. ७००० । ले. सं. १२८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥. अन्त ॥ संवत् १२८९ फाल्गुन सुदि ४ सोमे स्तंभतीर्थनगरनिवासिना । श्रीश्रीमालवंशोद्भवेन ठ. साढासुतेन ४. कुमरसिंहेन दशवैकालिकश्रुतस्कंधवृत्ति १ नियुक्ति २ सूत्र ३ पुस्तकं लेखयांचक्रे श्रीजिनराजसूरीणां ॥छ॥ क्रमाङ्क ८४ (१) ओघनियुक्ति वृत्ति पत्र १-१०५। भा. प्रा. सं. । क. द्रोणाचार्य। ले. सं. १११७ । पत्र 1., ४६ नथी । पत्र १०५ मां हाथी अने कमळनां शोभनो छ । अन्त ॥ ओघनियुक्तिटीका समाप्ता ॥छ॥ दोषारुषि चन्द्रकुलं प्रजनितबहुलक्षपापहरणं च । यच्चरिते सदा सान्तं तजयति महातपोहितं सकलम् ॥१॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. ८५ तस्मिन् बभूव भुवनत्रयगीतकीर्तिः श्रीमान् कृती सुकृतवान् मुनिचन्द्रसूरिः । यस्याभुतेकचरिताम्बुनिधेर्गुणानां शक्या न जातु परिमा गुरुणाऽपि कर्तुम् ॥२॥ सूरिः श्रीमानाम्रदेवाभिधानस्तच्छिष्योऽभूद् भूषणं भूरमण्याः । बद्धस्पर्धा यद्गुणाः कीर्तिवध्वा सार्द्ध भ्रमुर्विश्वदृक्कौतुकेन ॥३॥ शिष्यस्तस्याऽजनि बहुमतः श्रीयशोदेवसूरियस्यात्यथै गुरुगुणगणाः प्रत्यहं वृद्धिभाजः । ब्रह्माण्डान्तनिजनिवसनस्थानसम्बाधभीत्या शङ्क भ्रमुस्त्रिभुवनमदो वीक्षितुं सवेदेव ॥४॥ नागपालसुतः श्रीमान् श्रीधराख्योऽभवद् वणिक् । जगदानन्दनस्तस्याभूदानन्दाभिधः सुतः ॥५॥ स इदं लेखयामास ओघनियुक्तिपुस्तकम् । तस्मै श्रीसूरये भक्त्या ज्ञानदानधिया सुधीः ॥६॥ यावञ्चन्द्रदिवाकरौ प्रकुरुतो निर्ध्वान्तमझनभो यावत्तुङ्गतरङ्गभङ्गगहना गङ्गापगा गीयते । यावच्चोन्नतिमान् महानिह गिरिमरुनगग्रामणीस्तावत् पुस्तकरत्नमेतदमलं कुर्वन्तु कण्ठेऽशठाः ॥७॥छ॥ सम्वत् १११७ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥ पाहिलेन लिखितम् । मङ्गलं महाश्री ॥छ॥छ॥छ॥ (२) दशवैकालिकसूत्र वृत्ति पत्र १०६-२१२ । भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र । पत्र २१२ मां हाथी, कळश, श्रीदेवी आदि चित्ररूप शोभनो छ। अन्तदोषारुचि चन्द्रकुलं प्रजनितबहुलक्षपापहरणं च । यच्चरिते सदा सांतं तज्जयति महातपोहितं सकलम् ।। तस्मिन् बभूव भुवनत्रयगीतकीर्तिः श्रीमान् कृती सुकृतवान् मुनिचन्द्रसूरिः । यस्याद्भुतैकचरिताम्बुनिधेगुणानां शक्या न जातु परिमा गुरुणाऽपि कर्तुम् ॥ सूरिः श्रीमानाम्रदेवाभिधानस्तच्छिष्योऽभूद् भूषणं भूरमण्याः । बद्धस्पर्धा यद्गुणाः कीर्तिवध्वा साधै भ्रमुर्विश्वकौतुकेन ॥ शिष्यस्तस्याऽजनि बहुमतः श्रीयशोदेवसूरिय॑स्यात्यर्थ गुरुगुणगणाः प्रत्यहं वृद्धिभाजः । ब्रह्माण्डान्तर्निजनिवसनस्थानसम्बाधभीत्या शङ्के भ्रमुस्त्रिभुवनमदो वीक्षितुं सर्वदैव ॥ नागपालसुतः श्रीमान् श्रीधराख्योऽभवद्वणिक् । जगदानन्दनस्तस्याभूदानन्दाभिधः सुतः ॥ स इदं लेखयामास दशवैकालिकाभिधम् । पुस्तकं सूरये तस्मै श्रीमते शुद्धमानसः ॥ यावच्चन्द्रदिवाकरौ प्रकुरुतो निन्तिमझेर्नभो यावत्तुङ्गतरङ्गभङ्गगहना गङ्गापगा गीयते । यावच्चोन्नतिमान् महानिह गिरिमरुनगग्रामणीस्तावत् पुस्तकरत्नमेतदमलं कुर्वन्तु कण्ठेऽशठाः ॥छ॥छ। मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥ पाहिलेन लिखितम् । मङ्गल महाश्रीः ॥ (३) दशवैकालिकनियुक्ति अपूर्ण पत्र. १० । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ३७९ पर्यन्त । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५॥४२॥. । पत्र ८ मुं नथी । क्रमाङ्क ८५ (१) दशवैकालिकसूत्र वृत्ति पत्र. १-१७३। भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र । ग्रं. ७००४ । पत्र. १७३ मां शोभन छ । (२) दशवकालिकचूर्णी पत्र. १७४-३४१ । भा. प्रा.। क. स्थविर अगस्त्यसिंह । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९॥४२१. । पत्र ३३४ मां शोभन छ। पट्टिका उपर॥छ॥ श्रीमज्जिनदत्तसूरीणां दशवैकालिकवृत्तिचर्णिश्च ॥ छ । प्रधानाक्षरा ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ८५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अन्त छहि मासेहिं अधीतं. गाधा। छहि इति परिमाणसहो । मास इति कालपरिसंखाणं, तेहिं छहिं अधीतं । एत्तिएण कालेण पढितं । अज्झयणसद्दो सव्वम्मि दसकालिये वट्टति। अधवा अज्झयणमिणं तु जं इमं पच्छिमं चूलियज्झयणं, एतम्मि आणुपुवीए अहीते सगलं सत्थमधीतं भवति। अज्जमणएणं ति अज्जसद्दो सामिपज्जायवयणो, मणयो पुव्वं भणितो। तेण तस्स एत्तियो चेव छम्मासो परियाओ। अह कालगतो अधसद्दो अणंतरत्थे अज्झयणपरियायाणंतरं । अह तदणु कालगतो समाधीए जीवणकालो जस्स गतो सो कालगतो, समाधीए त्ति जधा तेण एत्तिएण चेव सुतनाणेण आराधित एवमण्णे वि एत्तिएणेव आराधगा भवतीति । द्वितीया निज्जुत्तिगाधा ॥ आणंदअंसुगाधा। आणदणमाणंदो तेण अंसुपातो। जधा इसमादौ आराधितमिमेण ति। एतेण अत्थेण कासी इति अकार्षीत्। अतिकंतकालवयण। सेज्जंभवथेरा इति जे पढमं परूविता। तहिं ति तम्मि काले। सेज्जंभवसामिपधाणसीसाणं जसभद्दाण पुच्छा असुपातं प्रति। किं खमासमणो ! इमम्मि खुड्डए कालगते असुपातो अकतपुव्वो कतो। कधणा य अज्जसेज्जभवाण जधा हरिसो संसारसंबंधो त्ति। एस मम सुतो। अज्जजसभद्देहि य एस गुरूणं सुतो एवं कधावियालणा संघे। सव्वेहि य आणंदअंसुपातो मिच्छादुक्कडाणि य कताणि पडिचोदप्यादिसु गुरुसुतो आसाइतो त्ति। सेज्जभवसामिणा वि मा गोरवेण ण पडिचोदेज्ज त्ति अतो पढमं न कधिय। एवमणुगमे परिसमत्ते णया। तत्थ णायम्मि गेण्हितब्वे. गाधा। गाधाविवरण जधा आवस्सए। बितिया सव्वेसि पि णयाण. गाधा। अक्खरत्थविचारो से तधेव । एवमेत धम्मसमुकित्तणादिचरणकरणाणेगपरूवणागभं नेव्वाणगमणफलावसाणं भवियजणाणंदिकरं। चुण्णिसमासवयणेण दसकालिय परिसमत्तं ॥ ॥नमः॥ वीरवरस्स भगवतो तित्थे कोडीगणे सुविपुलम्मि । गुणगणवइराभस्सा वैरसामिस्स साहाए । महरिसिसरिससभावा भावाभावाण मुणितपरमत्था । रिसिगुत्तखमासमणो खमासमाणं निधी आसि ॥ तेसि सीसेण इमा कलसभवमइंदणामधेज्जेणं । दसकालियस्स चुण्णी पयाण रयणातो उवण्णत्था ॥ रुयिरपदसंधिणियता छड्डियपुणरुत्तवित्थरपसंगा । वक्खाणमंतरेणावि सिस्समतिबोधणसमत्था ॥ ससमयपरसमयणयाण जं थ ण समाथितं पमादेणं । तं खमह पसाहेह य इध विण्णत्ती पवयणीणं ।। ॥दसकालियचुण्णी परिसमत्ता ॥ आसीदशेषनगरीगरिमापहारिश्रीपल्लिकावरपुरीविहिताधिवासः । श्रीधर्कटान्वयसमुत्थजनाग्रगामी सच्छ्रावकः सुविदितो भुवि शालिभद्रः ॥१॥ गाम्भीर्यधैर्यविनयाजवसत्यमुख्यसंख्याव्यतीतगुणसम्पदुपेतमूर्तिम् । य नास्पृशत् क्षयभयादिव दुईमोऽपि नूनं कलिः कलुषिताखिलसत्तमोऽपि ॥२॥ तस्य देवगुरूपास्तिनिरस्ताशेषदुःकृता । शीतेव शीलसम्पन्ना बहुदेवी गृहिण्यभूत् ॥३॥ तयोरसमसाहसो मतिमतां मनःस्वात्मवत् परोपकृतितत्परः परमबन्धुभूतः सताम् । न केवलमभिख्ययाऽजनि तथाऽर्थतोऽप्यङ्गजः प्रसिद्धिमधिकां गतो जगति साधुसाधारणः ॥४॥ सुरगुरुरकुलीनो ग्राहभाग वारिराशिः खररुचिरहिमांशुः प्राप्तदोषो मृगाङ्कः । गिरिकुलमपि दूरं कर्कशत्वप्रपन्ने तदयमतिगुणाढ्यः केन तुल्यः समस्तु ॥५॥ सिन्धौ हरौ धनपतौ च चिरं स्थिता श्रीः तै रक्षिताऽऽदरपरैर्व्ययिताऽमुनैव । बद्धाऽस्य पुण्यनिगडैनै च नंष्टुमीष्टे कस्यास्तु विस्मयकरी न सतां प्रवृत्तिः ॥६॥ धवलगुणदेविपुत्री पवित्रचारित्रपात्रता प्राप्ता। भार्या जिनमुनिभक्ता शान्तिमतिर्नाम तस्यास्ति ॥७॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ तस्याममास्यमभजत् (?) प्रचुरेऽपि कोपे कार्कश्यवन्न च वचः क्वचिदुललाप । स्वप्नेऽपि न व्यधित कर्म विगर्हणीयं कृच्छ्रेऽपि लंघितवती न च या स्वमेराम् ॥८॥ पूर्णभद्र - हरिभद्रसंज्ञितौ प्रज्ञया च विनयेन चान्वितौ । साऽभ्यसून तनयौ विशिष्टया शैशवेऽपि शुचिचेष्टया युतौ ॥९॥ दृष्ट्वा संसृतिसम्भवं सुखमतिस्वल्पं वपुर्जीवितं, विद्युच्चञ्चलमाकलय्य. मत्वा चाशुभभित्तिभंगचतुरं ज्ञानप्रदानं मुदा, सम्यक् शान्तिमतिर्व्यलेखयदिदं मोक्षाय सत्पुस्तकम् ॥१०॥ जायं खण्डयति प्रभावमतुलं संवर्द्धयत्युद्धतं मिथ्यात्वं प्रतिहन्ति कीर्त्तिममलामुल्लासयत्यञ्जसा । किंवा नो वितरत्यभीष्टमखिलं सज्ज्ञानदानं ततः कल्याणार्थिभिरादृतैरिह महायत्नो विधेयः सदा ॥११॥ केचिन्मुग्धधियो धनानि बहुधाssवर्ज्योर्जितान्यङ्गनाबन्धुस्निग्धसुतोपभोगविधये युञ्जन्ति रक्षन्ति च । अन्ये तूज्ज्वलबुद्धयोऽधममिदं ज्ञात्वा भवार्त्तिच्छिदि प्रत्नानंतमुदि क्षिपन्ति विभवं ज्ञानप्रदानादिषु ॥१२॥ यावद्विक्षेपदण्डश्रियमनुकुरुते तिर्यगद्रित्रजोऽयं मेरूणां पञ्चकं च प्रथयति नियतं कन्दुकाकारमुद्राम् । क्रीडत्येभिश्च कालः शिशुरिव विविधान्यान्यपर्यायवृत्त्या स्तात्तावत् पुस्तकोऽयं यतिभिरनुदिनं सादरं पठ्यमानः ॥ १३ ॥ छ ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ८६ दशचैकालिकवृत्ति टक अपूर्ण पत्र २०८ । भा. प्रा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २६ ॥ ४२ ॥ वचमां घणां पानां नथी । क्रमाङ्क ८७ (१) दशवैकालिकनिर्युक्ति पत्र १-१६ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । (२) दशवैकालिकवृत्ति पत्र १ - १७१ । भा. सं. । क. आचार्य लं. प. . सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । खंडित थएां घणां पानां अनु. १५ मी शताब्दीमां लखाएलां छे । अन्त [क्र. ८६ क्रमाङ्क ८८ (१) दशकालिकसूत्र नियुक्ति वृत्ति सह पत्र २७० । भा. प्रा. सं. । मू. क. शय्यंभवसूरि । नि. क. भद्रबाहुस्वामी । वृ. क. आचार्य हरिभद्र । वृ. ग्रं. ७००० । सर्वग्रं. ८२७५ । (२) दशवैकालिक लघुवृत्ति पत्र २७२ - ३५८ । भा. सं. । क. सुमतिसूरि । प्र. २५०० । र. सं. १२२० । ले. सं. १४८८ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३x२ । पत्र १३ मुं नथी. हरिभद्र । ग्रं. ७००० । ३३॥४२॥ । वचमां वचम ॥ समाप्ता दशवैकालिकटीका ॥ महत्तराया याकिन्या धर्मपुत्रेण चिन्तिता । आचार्यहरिभद्रेण टीकेय शिष्यबोधिनी ॥१॥ दशवेकालिकानुयोगात् सूत्रव्याख्या पृथक् कृता मात्सर्यदुःखविरहाद् गुणानुरागी भवतु लोकः ॥२॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ९० जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र दशवैकालिकटीका विधाय यत् पुण्यमर्जितं तेन । हरिभद्राचार्यकृतान्मोहाद् भक्त्याऽथवा मया ॥३॥ श्रीमद्बोधकशिष्येण श्रीमत्समतिसूरिणा। विद्वदभिस्तत्र न द्वेषो मयि कार्यो मनागपि ॥४॥ यस्माद् व्याख्याक्रमः प्रोक्तः सूरिणा भद्रबाहुना । आवश्यकस्य नियुक्तौ व्याख्याक्रमविपश्चिता ॥५॥ सूत्रार्थः प्रथमो ज्ञेयो नियुक्त्या मिश्रितस्तथा। सर्वैर्व्याख्याक्रमर्युक्तो भणितव्यस्तृतीयकः ॥६॥ प्रमादकार्यविक्षिप्तचेतसा तदयं मया । क्रियाया अवबोधार्थ साधूनां तु पृथक्कृतः ॥७॥ लब्ध्वा मानुष्यकं जन्म ज्ञात्वा सर्वविदां मतम् । प्रमादमोहसम्मूढा वैफल्य ये नयन्ति हि ॥८॥ जन्ममृत्युजराव्याधिरोगशोकायुपद्रुते । संसारसागरे रौद्रे ते भ्रमन्ति विडम्बिताः ॥९॥ ये पुनर्ज्ञानसम्यक्त्वचारित्रविहितादराः। भवाम्बुधिं समुलंघ्य ते यान्ति पदमव्ययम् ॥१०॥ ॥ ग्रंथ २५०० ॥ कातंत्रभूषणन्यासकर्तृश्रीचंद्रसूरये। आशादित्यमहामात्यः [........... .........] एना [विशतिसंयुक्ते शतद्वादशहायने । एकादश्यां नभस्यस्य कृष्णायां भोमवासरे ॥छ।। संवत् १४८८ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि २ गुरौ श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. उदयराज सा. बलिराजेन दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति-बृहद्वृत्ति-लघुवृत्तिपुस्तकं लिखापितम् ॥छ।।छ।। श्रीमंगलं ।। क्रमाङ्क ८९ (१) दशवैकालिकचूर्णी पत्र. १-३५५ । भा.प्रा. । ग्रं. ८४०० । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं. प. २२।४२. अन्त ॥संवत् १४८९ वर्षे मार्ग शुदि ५ गुरुदिने श्रीमति श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन श्रीसिद्धांतेन भांडकार लिखापितं आसा लिखितं॥ (२) दशवकालिकनियुक्ति पत्र. ३५६-३८० । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ४५० । ले. सं. १४९१ । लं. प. २२।४२. अन्ततत्समर्थने च दशवैकालिकनियुक्तिः समाप्ता ॥छ। कृतिः श्रीभद्रबाहुस्वामिनः ॥छ॥ आवश्यकादिनियुक्तिविधानाल्लब्धकीर्तये । भद्रबाहुमुनोंद्राय श्रुतकेवलिने नमः ॥ ॥संवत् १४९१ वर्षे श्रावण सुदि ९ बुधे विशाखानक्षत्रे शुभयोगे लिखितं ॥छ। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥छ॥श्रीः॥छ॥ क्रमाङ्क ९० (१) पिंडनियुक्ति (महल्लिया पिंडनियुक्ति) पत्र १-३० । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । गा. ६९७ । (२) पिंडनियुक्ति लघुवृत्ति पत्र ३१-१०२ । भा. प्रा.। - Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ९१(३) पिंडनियुक्तिबृहवृत्ति सह पत्र १-२४१। भा. सं.। वृ. आचार्य मलयगिरि। ग्रं. ७५००। ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३४२। अन्त एवं ग्रन्थसङ्ख्या ७५०० पिण्डनियुक्तिः समाप्ता ॥छ॥ संवत् १४८९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ५ गुरुवारे श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन साहबलिराजेन सा. उदयराजादिसपरिवारेण श्रीपिण्डनियुक्तिसूत्रलघुवृत्तिबृहद्वृत्तिपुस्तकं लिखापितम् ॥छ॥ शुभं भवतु चतुर्विधश्रीश्रमणसङ्घस्य । क्रमाङ्क ९१ पिंडनियुक्ति वृत्तिसह पत्र २०० । भा. प्रा. स.। नि. क. भद्रबाहुस्वामी। वृ. क. मलयगिरि । ग्रं. ७२५० । ले. सं. १२८९ । लं. प. ३१॥४२॥ अन्त छ॥ ग्रंथानं ७२५० ॥छ।॥छ॥ संवत् १२८९ वर्षे फाल्गुन शुदि ४ सोमे स्तंभतीर्थनगरनिवासिना श्रीश्रीमालवंशोद्भवेन । ठ. साढासुतेन ठ. कुमरसिंहेन । मलयगिरिविरचिता सूत्रमिश्रा पिंडनियुक्तिवृत्तिलेखयांचक्रे ॥छ॥छ॥ शुभं भवतु चतुर्विधश्रीश्रमणसंघस्य ॥छ॥छ॥ मंगलमस्तु ॥छ॥छ। क्रमाङ्क ९२ पिंडनियुक्तिवृत्ति पत्र २४७ । भा. सं. । क. वीरसूरि । ग्रं. ७६७१।। ले. सं. अनु. १४ शताब्दी । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ट। लं. प. ३३१४२१.। पत्र २३५, २३७, २४२, २४४, २४६ नथी । बे पत्र नंबर विनानां छे। 1 क्रमाङ्क ९३ प्रवृत्ति पत्र १-१३१ । भा. प्रा. । ग्रं. २९५० । (२) पिंडनिर्यक्ति पत्र १३२-१७५ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहस्वामी। गा. ७०७ । ले.सं. अनु. १३ शताब्दी पूर्वाध। . संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२॥ पत्र १, १३१, १३२, १७५ मां सुंदर शोभनो छे।। क्रमाङ्क ९४ (१) आवश्यकनियुक्ति किंचिदपूर्ण पत्र ६६ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२।। पत्र. २४, ५४ नथी। (२) उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ५० । भा. प्रा.। ले. सं. १४८७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२.। पत्र १, ४, ५, १४, १६, २१, २६, २७, २९, ३३, ४९, नथी। अन्त स्वस्तिश्री संवत् १४८७ वर्षे अश्विनमासे शुक्लपक्षे एकादश्यां तिथौ गुरुवासरे श्रीस्तभतीर्थे श्रीखरतरगच्छे भट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीणां श्रीउत्तराध्ययनपुस्तकं लिखितं। ग्रंथाग्रं २०००॥ श्री श्रीः ॥छ ॥ १० धरणाकेन समवायांगसूत्रवृत्ति आवश्यकसूत्र पाक्षिकसूत्रवृत्ति उत्तराध्ययनसूत्रपुस्तकं लिखापितं ॥छ । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ९५ उत्तराध्ययनसूत्र चूर्णी पत्र २५३ । भा. प्रा. । क. गोपालिक महत्तर शिष्य । ग्रं. ५८५५ । ले.सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९।४२. । अन्त ॥संवत् १४८९ वर्षे कार्तिक वदि ४ भौमे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन प. गूजरपुत्र प. धरणाकेन सुतसाईयासहितेन श्रीउत्तराध्ययनचूर्णिपुस्तकं लिखापितं ॥ उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति पाइयटीका किंचिदपूर्ण पत्र ३९० । भा. प्रा. सं. । क. थारापद्रगच्छीय वादिवेताल शान्तिसूरि। ले. सं. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९।४२॥. । पत्र १, १०, ७८, १३५, १४४, ३०९ नथी । क्रमाङ्क ९७ उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति द्वितीयखंड (पाइयटीका) पत्र २०८ । भा. प्रा. सं.। क. थारापद्रगच्छीय वादिवेताल शांतिसूरि । ले. सं. १४९१ । संह० श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२१.।' अन्त संवत् १४९१ वर्षे कार्तिक वदि ११ गुरौ श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षिगूजरसुतेन रेषाप्राप्तपरमसुश्रावकेन परीषिधरणाकेन पुत्रसाइयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे श्रीउत्तराध्ययनबृहद्वृत्तिद्वतीयखण्डपुस्तकं लिखापितम् । स्वश्रेयसे ॥छ॥ श्रीभूयात् श्रीसमणसंघस्य ॥छ॥ पुस्तकं विद्वजनैर्वाच्यमानमाचन्द्राकै यावन्नन्दतात् ॥ श्रीः ॥ क्रमाङ्क ९८ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्तिसह पत्र ३९५। भा. प्रा. सं. अप.। ७.क. नेमिचंद्रसूरि। . १४००० । ले. सं. १३५४ । संह. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥. अन्त ॥छ।। वृत्तेः सूत्रसमं ग्रंथाग्रं श्लोक १४००० ॥छ॥ मंगलमस्तु ॥छ॥छ॥ संवत् १३५४ वर्षे अश्विन शुदि २ सोमे। श्रीउत्तराध्ययनपुस्तकं लिखितं ॥छ॥ भद्रं भवतु ॥छ॥ क्रमाङ्क ९९ ___ उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति सह पत्र ४५५ । भा. प्रा. सं. अप.। वृ. क. नेमिचंद्रसूरि । ले. सं. १४९१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २३४२. अन्त इत्युत्तराध्ययनटीकासूत्रसन्मिश्रा समाप्ता ॥छ। संवत् १४९१ वर्षे श्रावण वदि १३ रवी श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबन्धुरबहुबुद्धिबोधितभूषलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षिसाहगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन सा. धरणाकेन पुत्र सा. साइयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे श्रीउत्तराध्ययनलघुटीका सूत्रसहिता समाप्ता ॥छ॥ श्रीभूयात् ॥छ॥ ग्रन्थाग्रं-१४०००॥ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. १००क्रमाङ्क १०० उत्तराध्ययनसूत्र सुखावबोधा वृत्ति त्रूटक अपूर्ण पत्र १३७ । भा. प्रा. सं. । क. नेमिचन्द्रसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१४२।। लगभग २०० जेटलां पानां छे। क्रमाङ्क १०१ आवश्यक चर्णी पत्र ४१२ । भा. प्रा.। क. जिनदासगणि महत्तर। ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४।४२।। पुष्पिका धरणाशाहनी घसाएली छे। __क्रमाङ्क १०२ आवश्यक चूर्णी अपर्ण पत्र २-३७९ । भा. प्रा.। क. जिनदासगणि महत्तर । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥.। वचमां घणां पाना खूटे छे तथा घणा पानांना टूकडा थएला छ। क्रमाङ्क १०३ आवश्यक चूर्णी पत्र ३३९ । भा. प्रा.। क. जिनदासगणि महत्तर । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वाध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२।। पत्र २, ९०, ९२, ११६, ११८, १२२, २०३, २७८, २८०-२८३, २८५, २९०-२९३, ३१३ नथी । क्रमाङ्क १०४ (१) आव शष्यहिता प्रथमखंड पत्र. ३९६। भा. प्रा. सं.। क. आचार्य हरिभद्र । ले. सं १४८९ । अन्त ॥समाप्तमावश्यकप्रथमखंडमिति ॥छ । मंगलं महाश्रीः ॥ स्वस्ति संवत् १४८९ वर्षे पौषवदि २ भोमे स्तंभतीर्थे पुस्तकं लेषिनीया। श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये सा. इंगरसुत बलिराजउदयराजसुश्रावकयोः (काभ्यां ? ) निजपुण्यार्थ पुस्तकं लिखापयामास (लिखापितम् ) ॥छ॥ (२) आवश्यकनियुक्ति अपूर्ण पत्र. १५ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥. क्रमाङ्क १०५ __ आवश्यकवृत्ति शिष्यहिता द्वितीयखंड पत्र. ३३१ । भा. प्रा. स.। क. आचार्य हरिभद्र । ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२१४२।. अन्त ॥संवत् १४८८ वर्षे भाद्रपद सुदि २ गुरौ अयेह श्रीस्तंभतीर्थे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये परीक्षिधरणाकेन श्रीआवश्यकबृहद्वृत्तिद्वितीयखंडपुस्तकं लिखापित ॥ चिरं वाच्यमानं नंदतात् ॥ क्रमाङ्क १०६ आवश्यकवत्ति प्रथमखंड पत्र. ३१३। भा. प्रा.सं.। क. आचार्य हरिभद्र । ले. सं. १४०७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥ । पत्र. ३०, ४६, ४७, ४९, ५०, ७४, ७६, ७९-८१, ८३, १२८, ३०५, ३०७, ३०९, ३११ नथी । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ११२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अन्त सं० १४०७ वर्षे आषाढ सुदि ६ गुरौऽोह श्रीपत्तने आवश्यकवृत्तिप्रथमखंडस्य खंडिलिखिता। संकुडियजन्हुकुप्परगीवाकरचलणबंधणावयवा । अणसमउ तुम्ह वैरं....... क्रमाङ्क १०७ आवश्यकवृत्तिद्वितीयखंड पत्र. ३१० । भा. प्रा. सं.। क. आचार्य हरिभद्र। ग्रं. १२४०० । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥॥४२॥. क्रमाङ्क १०८ आवश्यकवृत्ति टिप्पनक अपूर्ण पत्र. १४६। भा. सं.। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२।। पत्र. ६७, ६९, ७०, ८६, ८८, १०१, १०३, १०४, १०६, १०४-११७, ११९-१२९, १३३-१४५ नथी. क्रमाङ्क १०९ विशेषावश्यक महाभाष्य पत्र. ७-१०७। भा. प्रा.। क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. ४३१४ । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध [धरणाशाह लेखित?]। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥x.। पत्र. ६१ मुं नथी. क्रमाङ्क ११० आवश्यकवृत्ति प्रथमखंड. पत्र. २४२ । भा. प्रा. सं.। क. आचार्य मलयगिरि। ले. सं. १४९० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२।। पत्र १३२ मुं नथी । अन्त ॥संवत् १४९० वर्षे माघसुदि पंचमी शुक्र श्रीमति श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्ष सा. गूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्र सा० साइयासहितेन । श्रीआवश्यकमलयगिरिकृतबृहबृत्तिप्रथमखंडपुस्तकं लिखापितं ॥ श्रीः ॥ छ । क्रमाङ्क १११ आवश्यकवृत्ति द्वितीयखंड पत्र ३२४ । भा. प्रा सं। क. आचार्य मलयगिरि। ले. सं. १४९१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥. अन्त ॥संवत् १४९१ वर्षे श्रावण सुदि ८ भोमे श्रीमति श्रीस्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि । श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गगच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन श्रीसिद्धांतकोशे श्रीमलयगिरिकृतश्रीआवश्यकबृहद्वृत्तिद्वितीयखंडपुस्तकं लिखपितं ॥छ॥ शुभं भवतु ॥ क्रमाङ्क ११२ __ आवश्यकवृत्ति प्रथमखंड पत्र २३६ । भा. प्रा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १३००। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. १९२ अन्तसव्वेसि पि जिणाणं जेहि उ दिन्नाउ पढमभिक्खाओ । ते पयणुपेज्जदोसा दिव्ववरपरक्कमा जाया ॥ केयी तेणेव भवे निव्वुया सव्वकम्मउम्मुक्का । केई तइयभवेणं सिज्झिस्संती जिणसगासे ॥छ॥ ५०॥ सरक्ष्य जीवस्य कृतार्तिकस्य नालीकसम्बन्धमनोहरस्य । जैनस्य धर्मस्य निबन्धनं श्रीऊकेशवंशोऽत्र वरीवृतीति ॥१॥ तत्रेन्दिराभद्रवशैकविन्ध्यः श्राद्धावतंसोऽजनि पद्मदेवः । अमस्त धर्म विभवं विवेकं चक्षुःसधर्मोपकृतीरसून् यः ॥२॥ नासत्ययुक्त्या गतरोगशीला सुपर्वऋध्यद्वसुराजकाम्या । वृषाग्रिमश्रीरुचिताऽस्य देवश्रीरित्यभूत् प्रेमगृहं कलत्रम् ॥३॥ तस्याङ्गभूः कौस्तुभवत् पयोधेः क्षेमंधरोऽभूद् विलसन्महस्कः । लोकंपृणैर्यः स्वगुणैश्चकार पदं हृदब्जे पुरुषोत्तमस्य ॥४॥ यो धर्मरत्नमभजज्जिनचन्द्रसूरे र्गत्यनियि विविच्य विशुद्धबुद्धिः । वाक्यामृतैर्जिनपतेः सुगुरोरुदारैः कृत्वा तदेव विमलं हृदये न्यधत्त ॥५॥ चित्र महाधार्मिकमौलिरेष सहोदरं यन्निजनंदनं च । आचार्यलक्ष्मीयुजमप्यहासीत् को वाच्यमिच्छन्जिनचन्द्रमाप्य ॥६॥ पार्श्वप्रभोरजयमेरुपुरे पुरस्ताद् योऽचीकरत् कमपि मण्डपमग्यभङ्गिम् । मध्यंदिने दिनपतिर्यदधः क्षणे यान् चामीकराण्डकरमा परमां बभार ॥७॥ तस्य प्रिया समुदपद्यत हंसिनीति यस्या वपुलवणिमामृतपार्वणेन्दुः । लावण्यमप्यविषयः सुरसूरिवाचो वाचोऽप्यधःकृतसितामृतदुग्धधाराः ॥८॥ तयोस्तनूजा जनताप्तपूजास्त्रयोऽभवन् स्वःसरितो यथौघाः । पूतामलस्वात्मसु येषु नित्यं मुदा रमंते सुमनोमनांसि ॥९॥ समस्ति तेषां धुरि भीमदेवः श्रिया परीतो गुणबद्धयेव । प्रज्ञालतां तां हृदयालुतां च चित्रीयते यस्य निशम्य धीमान् ॥१०॥ यः कर्मसद्ग्रन्थविचारचारुचातुर्यधुर्यः धितसाधुचर्यः । कृत्यद्धिरावश्यकतीर्थपा मुख्यैर्जनुः स्वं सफलीकरोति ॥११॥ पङ्कानुषङ्गभिदुरोऽप्यजडाश्रयोऽपि पद्मः प्रबुद्ध इह शश्वदपि द्वितीयः । पश्चाद्भवः पुरिसडो वृषनैष्ठिकत्वं यस्याब्रवीत् परिकरः सुकृतं चरिष्णुः ॥१२॥ अत्रत्याक्षियुगेन मंक्षु मिलिते अन्यप्रियालोकनौत्सुक्यं दोषममुष्य मा मम दशौ मुग्धे ग्रहीष्टामिति। नीरङ्गीपिहितास्यया न ददृशे पुसः परस्याननं, वैदेह्येव यया प्रियाऽस्य जयदेव्याख्यऽस्ति पद्मस्य सा ॥१३॥ य इह लवणखेटे मन्दिरं शान्तिनेतुर्व्यरचयदतिरम्यं स्वर्धनीस्पर्द्धिकेतु । स्मृतिपथगमितानंदादिपुंस्कस्य तस्योद्धरणसमभिधस्य श्रावकस्याङ्गजा या ॥ १४ ॥ प्रज्ञावान् विनयी जितेन्द्रियचयः सम्यक्त्वरत्नालयः श्रीतीर्थकरबन्धुरार्चनगुरूपास्त्येकतानाशयः । सत्पात्रेष्वनिदानदानविदुरः श्रेयःश्रिया मेदुरः सूनुः सूनवदुज्ज्वलोल्वणगुणान् धत्ते तयोः साढलः ॥१५॥ कचिदपि समयेऽथ साढलोऽयं द्वयधिकदशामलभावनापरागे । निजहृदयसरोरुहीतिचिन्तामधुकरिकां विनिवेशयांबभूव ॥१६॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ११४ ] ततः जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र मोक्षे सौख्यं निरवधि स तु प्राप्यते कर्मनाशाच्चारित्रेणायमपि सुविदस्तच्च स्वाज्ञानहानेः । तद् दुःखद्रोर्विमलसलिलाभ्यर्ण पूर्णालवाल, दोषाणां वा क्षय इव रुजां कारणं ही समेषाम् ॥१७॥ तस्याssमूलनिमूलनोज्ज्वलबलं श्रीतीर्थराजां वचस्तस्यावश्यकमादिमं दुरधिगं नियुक्तिमेतद् विना । साऽप्येवं विवृतिं विनाऽपि निपुणैस्तल्लेख्यते चेदसौ, पारंपर्यवशाद् वशंवदमिदं शर्मात्मनः स्यात्तदा ॥१८॥ इति मनसि विविच्य रुच्य ( भव्य ? ) मावश्यकविवृतेः प्रथमं स एष खण्डम् । त्रिशतयुतदिनाधिनाथरोचिः परिमितसंवति १३०० लेखयांबभूव ॥१९॥ चान्द्रे कुले श्रीजिनवल्लभोऽभूत् सूरिस्ततः श्रीजिनदत्तसूरिः । तत्पट्टपूर्वांचलहेलिकेलिः कलौ दिदीपे जिनचन्द्रसूरिः ॥२०॥ तदनु दनुजकल्पानल्पदुर्वादिजल्पाविरलगरलमूर्च्छाछेदपेयूषजूषः । स्वपरसमयसारोदन्वतः पारदृश्वाऽजनि जिनपतिसरिर्नम्रनिःशेषसूरिः ॥२१॥ तत्पदसरोजन्मा जन्मामलच्छदवृत्तयः प्रवचनमलंकुर्वन्ति श्रीजिनेश्वरसूरयः । व्यतरदजरद्भक्त्या तेभ्यः स पुस्तकमुत्तमं तदिह सुतरामेवंकारं भवेदुपयोगवत् ॥२२॥ ककुभमपरां दूरं राज्ञि प्रसाधयितुं गते प्रवरविभया नक्षत्रौघं सदंबरमंडले । उदयकटकालंबी सुरः स्वहेतिभिरस्तयन्नुदयमयते यावत्तावत्तमः स्यतु पुस्तकः ॥ २३ ॥छ॥ ॥ प्रशस्तिः समाप्ता ॥ क्रमाङ्क ११३ आवश्यकवृत्ति द्वितीयखंड पत्र. ३१० । भा. प्रा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं प. ३२|||४२॥ ३७ क्रमाङ्क ११४ आवश्यक लघुवृत्ति पत्र. ३०१ । भा. सं. । क. तिलकाचार्य । ले सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३० ॥ ४२ ॥ पत्र - १, ९, १२, १३, ३६, ४१, ४३, ४८, ५०, ५६ थी ५८, ६६, ६९, ७०, ७२, ७४, ७८, ९०, ९४, ९९, ११३, १२४, १२९ थी १३१, १३३ थी १३५, १३७, १४० थी १४२, १४४ थी १४६, १५७, १६१, १६७, थी १६९, १७२, १७९, १९१, २०१, २०३ थी २०९, २१२ श्री २१४, २२३ थी २२७, २२९ थी २३०, २३२ थी २३५, २३९, २४१, २४२, २४५ थीं २४७, २५३ थी २६१, २७१ थी २७३, २७६, २७८, २८२, २९३, २९४, २९७ थी २९९ नथी । यो मन्दरागेण न मन्थितोऽपि न वा नरैः क्वाऽपि विलंघितोऽपि । यं नालुलोके प्रमदोत्करामो महोदधिः सोऽप्युपकेशवंशः ॥ १ ॥ तस्मिन् साधुजगद्धरः समजनि क्षेमन्धराङ्गोद्भवः, श्रीपार्श्वस्य निकेतनं क्षितिगतस्वः सद्मसद्मभ्रमम् । सर्वाङ्गीणपरिष्कृतीश्च वसुना स्वीयेन योऽचीकरन्मध्येजेसलमेरु चित्रमथवा किं तादृशां दुष्करम् ॥ २ ॥ औदार्यमुख्यगुणसंहतिलक्षणानां पौरस्त्यलक्ष्यमभवद् भरतावनीषु । यो जङ्गमः किमपरं मरुमण्डलेऽभूत्तद्वा सिजन्मिसुकृतैर्बत कल्पशाखी ॥ ३॥ रामस्य सीतेव सतीव शम्भोर्मधुद्विषः श्रीरिव रेवतीव । बलस्य जायाऽजनि सज्जनाऽस्य प्रसिद्धियुक् साढलहीति नाम्ना ॥ ४ ॥ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ચૂંટ श्रीजेसलमेरु दुर्गस्थ समजनि बत तस्य विश्वशस्यास्तनयवरास्त्रितये जगद्वयस्याः । सुवृषपरतयाऽतिवैभवत्वात् सुभगतयाऽङ्गभृतो वृषार्थकामाः ॥ ५ ॥ तदादिरभवद् यशोधवल उज्ज्वलोर्जस्वलो, यशोधवल उच्चकैर्लसति यस्य विश्वावने । यदीयकरकल्पभूरुहविपूर्णकामा नरा विदन्ति मरुमण्डलं निपतितं दिवः खण्डलम् ॥ ६ ॥ द्विःषोढाऽऽवश्यकविधिमथो तीर्थपाच निरर्ची, साधूपास्ति तत इतरदेशागतश्राद्धभुक्तिम् । दानं गुप्तिस्थितनृषु ततो मोक्षणं चैव तेषां यस्यावश्यं रचयत इदं यान्ति घस्राः सहस्राः ॥ ७ ॥ तदनु भुवनपालः प्रीतदिक्चक्रवाल: सुगुरुजिनपतीशस्तूपसाश्चर्यकार्यम् । विघटितमपि दिष्ट्या कारयामास योऽयं जिनपतिरथयानं चक्रवर्तीव पद्मः ॥ ८ ॥ तार्त्तीयक उदारतैकवसतिर्गाम्भीर्यपाथः पतिः, स्वच्छात्मा सहदेव आर्हतमतप्रोत्सर्पणोद्यन्मतिः । यस्य स्त्रं शुभपात्रतां प्रथयतेऽनेहस्त्रयेऽपि स्फुटां, पात्रत्राभवदंकुरः शुभतरोः पूर्वार्जितैस्तैः कृतम् ॥ ९॥ श्रेयोमूत्तेः स्फुरति यशसः सुन्दरी धर्मपत्नी, लज्जासज्जा प्रियसहचरी हन्त यस्याः प्रशस्या । अश्रान्तं प्रत्यवयवमलङ्कारिका शीललक्ष्मीराली मुख्या यदि परममूलैौकिकाचारकृत्यैः ॥ १०॥ य इह लवणखेटे मन्दिरं शान्तिनेतुर्व्यरचयदतिरम्यं स्वर्धुनीस्पर्द्धिकेतु । इतश्च- स्मृतिपथगमिताऽऽनन्दादिपुंस्कस्य तस्योद्धरणसमभिधस्याऽऽनन्दना नन्दना या ॥ ११ ॥ तयोस्तनूजो नेभिकुमारः प्रथमः शिशुरपि तनुजिऩमारः । विनयगभीरिमधीरिमसिन्धुः परिमलमथकेम्बुजेव बन्धुः ॥ १२ ॥ द्वैतीयकोऽजनि गणदेवः सुगुरुपदाम्बुजविरचितसेवः । शैशव एव प्रवरविवेकस्ता दृगुभयकुलजोऽपरथा कः ।। १३ ।। वैराग्यकन्दलसमुज्ज्वलचित्तवृत्तिः श्रीमज्जिनेश्वरगुरोः क्रमपङ्कजान्ते । प्रव्रज्य शैशववयस्यधिगूर्जरत्रं तन्नन्दना प्रचुखैभवडम्बरेण ॥ १४ ॥ गृहे सरस्वती नाम्ना व्रते चारित्रसुन्दरी । तपस्यति शिवायैषा दुर्लभं हि तदन्यथा ।। १५ ।। [ क्र. ११४ सप्तक्षेत्र्यां निहितविभवा वैभवेऽप्यस्तमाना, मानत्यक्तस्वपरजनतास्वौचितीवर्यचर्या । उच्चैःशब्दं क्वचिदपि मनाकेनचिन्नादधानाऽप्युच्चैः शब्द प्रतिपदमिता धर्मकर्मैकताना ॥ १६ ॥ कचिदपि समये च सुन्दरीयं द्वयधिकदशामलभावनापरागे । निजहृदयसरोरुहीतिचिन्तामधुकरिकां विनिवेशयाम्बभूव ॥ १७ ॥ मोक्षे सौख्यं निरवधि सकः प्राप्यते कर्मनाशाच्चारित्रेणाऽयमपि सुविदस्तच्च स्वाऽज्ञानहानेः । तद् दुःखदोर्विमलसलिलाभ्यर्णपूर्णालवालं, दोषाणां वा क्षय इव रुजां कारणं ही समेषाम् ॥ १८ ॥ तस्या मूलनिमूलनोज्ज्वलबले श्रीतीर्थराजां वचस्तस्याssवश्यकमादिमं दुरधिगं निर्युक्तिमेतद्विना । साऽप्येवं विवृतिं विनाऽतिधिषणैस्तलेख्यते चेदसौ, पारम्पर्यवशाद्वशंवदमिदं शर्मात्मनः स्यात्तदा ॥ १९ ॥ स्थैर्य मेरुगिरेर्गभीरिमरमां सिन्धोर्विधोः सौम्यतां, तेजस्वित्वमहः पतेः सुकवितां काव्याद् गुरोर्वाग्मिताम् । रूपं पुष्पशरात् स्वरं जलधरादादाय सृष्टिं स्वकामेकत्रोपगताभिवेक्षितुमना यस्मिन् विधाता व्यधात् ॥२०॥ इति झटिति सदक्षरौघमावश्यकविवृतेरपरं विलेख्य खण्डम् । सुविहितयतिनायकाय साऽस्मै स्वगुरुजिनेश्वरसूरये व्यतारीत् ॥ २१ ॥ यावत् क्षोणीमृगाक्षी सलिलनिधिमहानीलनीलान्तरीपा कालिन्दीवेणिवल्लिः सुरपथसरिदामुक्तमुक्ताकलापा । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ११९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ज्योतिर्विस्तारिताराम्बरनलभरितश्यामरम्योन्तरीपा, स्वर्णोर्वीभृत्किरीटा वहति जनशिशून् पुस्तकस्तावदास्ताम् ॥२२॥छ । क्रमाङ्क ११५ आवश्यकलघुवृत्ति पत्र ३२२ । भा. सं.। क. तिलकाचार्य । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध [धरणाक लेखित ] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३१॥४२।। पत्र ९३, २९५, ३२१ नथी। क्रमाङ्क ११६ विशेषावश्यकमहाभाष्य पत्र २८४ । भा. प्रा. । क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। गा. ४३०० । ले. सं. अनु. १० शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४२. अन्त सव्वाणुयोगमूलं भासं सामाइयस्स [सोतूणं] । होति परिकम्मियमती जोग्गो सेसाणुयोगस्स ॥ पंच सता इगितीसा सगणिवकालस्स वट्टमाणस्स । तो चेत्तपुण्णिमाए बुधदिण सातिम्मि णक्खत्ते ॥ रज्जाणुपालणपरे सीलादि] चम्मि णरवरिन्दम्मि । वलभीणगरीए इमं महदि [सिरि]संतिजिणभवणे ।। ॥ गाथाग्रं चत्तारि सहस्साणि तिण्णि सताणि ॥ क्रमाङ्क ११७ विशेषावश्यकवृत्ति अपूर्ण पत्र ३४० । भा. स । क. कोट्याचार्य । ले. सं. अनु. १५ शताब्दी उत्तरार्ध । [धरणाक लेखित ] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१।४२।।। पत्र १४१, ३०८, ३१२, ३१६, ३१७, ३२३, ३२९-३३१, ३३७, ३३८ नथी। क्रमाङ्क ११८ विशेषावश्यकवृत्ति प्रथमखंड पत्र ३३५ । भा. सं.। वृ. मलधारी हेमचंद्रसूरि। ग्रं. १४०००। ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२॥. पत्र १मां भगवान महावीरनु परिकर सहित अति सुंदर चित्र छे अने पत्र २मां व्याख्यान करता आचार्य अने सांभळता श्रोताओन सुंदर चित्र छ । क्रमाङ्क ११९ विशेषावश्यकवृत्ति द्वितीयखंड पत्र ३२५ । भा. सं.। वृ. क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ग्रं. १४००० । र. सं. ११७५ । ले.सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥२॥ अन्त शरदां च पंचसप्तत्यधिकैकादशशतेष्वतीतेषु। कार्तिकसितपंचम्यां श्रीमज्जयसिंहनृपराज्ये ॥११॥ श्रेष्ठिवीरकसत्पुत्रवेष्ठिवेल्लकसंज्ञयोः । शय्यातरयोर्गेहेऽसौ वृत्तिनिष्पत्तिमागता ॥१२॥छ॥ ॥श्रीः॥ शुभं भवतु श्रीसंघस्य ॥छ॥ ॥५०॥ नवा नवां योऽनुकलं बिभर्ति श्रियं श्रयत्सेवकदित्सयेव । स वः सदा श्यामतनुः शिवाय श्रीस्तंभनः पार्श्वजिनः शुभाय ॥१॥ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. १९९श्रीमालाकलिते सुपुण्यपुरुषे श्रीमालवंशोत्तमद्रंगे कोटिकगोत्रनामविशदप्रासाद आभासते। तत्राभूत् कलशोपमः सुकुशलानन्दप्रदानक्षमः साधुः श्रीविणलाभिधोऽतिविमलः सद्वृत्तशोभावहः ॥२॥ तेजाभिधः प्रादुरभूत् सतेजास्ततोऽब्जिनीनाथ इवोदयाद्रेः । मुदं महर्षिष्वपि यो दधानः सच्चक्रकष्टान्यभितो जघान ॥३॥ तज्जन्योऽजनि यो जगन्निजभुजद्वैतार्पणार्थार्पणोद्भूतस्फीतहरावदातसुयशाः शीतांशुकान्त्या तथा । चक्रे निर्मलमुज्ज्वलः समभवन् भावा यथा दुधियां कालुष्यान्मलिनात्मनामपि कृती हाजीति सुश्रावकः ॥४॥ अचीकरत् श्रीजिनचन्द्रसूरिगुरोः पदस्थापनमादरेण । श्रीगौतमस्येव हरिर्महद्धर्था स शोभते श्राद्धवरोऽत्र हाजी ॥५॥ तन्नन्दनः फम्मणनामधेयस्तीर्थेशपूजार्जितभागधेयः ।। मेरास्थितोऽप्यम्बुधिवद् भुवं यो व्यापत् स्वपूरैः कुतुकं स आसीत् ॥६॥ रूपादे गेहिनी तस्य रूपसौंदर्यशालिनी । अजायत सदाचारा हरेः पञव देहिनी ॥७॥ गुरूपदेशामृतपूर्णकर्णः सर्वज्ञपूजाप्रवणः सकर्णः । तयोस्तनूजोऽजनि डूंगराख्यः स्ववंशशृंगारकरोऽतिदक्षः ॥८॥ तद्रोहिनी चाहिणिदेवी नाम्ना गंगेव गौरा जिनपादलीना । पद्माभिराम। वरकंकणाढ्या सुश्राविकाऽभूजगति प्रसिद्धा ॥९॥ तदुदरनदसंभूतं भ्रमरहितं सर्वदा लसत्कोशम् । बलिराजोदयराजांबुजयुग्म जयति सश्रीकम् ॥१०॥ साधुश्रीबलिराजस्य तारादेवीति वल्लभा । समस्ति सुगुणाधारा हारयष्टिरिवामला ॥११॥ धौरेयको धर्मधुरामिवोवी वोढुं विनीतौ तनयौ तदीयौ । विराजतस्तत्र तु देवदत्तो मुख्यो द्वितीयः किल रत्नपालः ॥१२॥ उदारोदयराजस्य जाया शृंगारदेऽभिधा । विमलाऽपीन्दुलेखेव चित्रं वक्रा न या क्वचित् ॥१३॥ पुत्रौ तदीयावपि सच्चरित्रौ शुभावुभौ स्तः सुगुणैः पवित्रौ । पूर्वस्तयोः श्रावकपासवीरो द्वितीयको राजति राजपालः ॥१४॥ इत्यादिपरिवारेण सहितो हितमानसः । बलिराजश्चिरं धर्मकृत्यानि कुरुते भुवि ॥१५॥ इतश्च अस्ति स्वस्तरुसन्निभः सुमनसामाधारभूतो लसत्पात्रश्रेणिविभूषितोऽतिविततो नीरंध्रसच्छायकः । श्रीमच्चन्द्रकुलालवालकलितः श्रीवीरतीर्थावनीसंप्राप्तोन्नतिरुत्तमः खरतरो गच्छो गणानां गुरुः ॥१६॥ आसंस्तत्र जिनोदया: सुगुरवः संप्राप्तभव्योदयास्तेभ्यः श्रीजिनराजसूरियतयो राजेंद्रचक्रांचिताः । तत्पट्टोदयशैलशंगमभितोऽप्याक्रम्य सूर्या इव भ्राजन्ते जिनभद्रसूरिगुरवस्ते बोधयन्तो जगत् ॥१७॥ प्राग् ज्ञानं तदनन्तरं किल दया वागाईतीति स्फुटा न ज्ञानेन विना क्रियाऽपि सफला प्रायो यतो दृश्यते। तत् स्यात् संप्रति पाठतः स च पुनः स्यात् पुस्तकाधारतस्तस्मात् पुस्तकलेखनेन मुनिषु ज्ञानं प्रदत्तं भवेत् ॥१८॥ ज्ञानं सर्वसुखप्रदं च ददता साधुव्रजायाभयं दत्तं येन ततो भवेदधिगमस्तत्त्वस्य तत्त्वाच्छमः । शान्तो वैरविवर्जितः स निररिनिद्वेषिणो नो भयं तस्माल्लेखयत श्रुतं भुवि जनाः! यूयं विधायाऽऽदरम् ॥१९॥ निपीय तेषामिति वाक्सुधौघं सबान्धवः श्रीबलिराजनामा । अलीलिखच्छ्रीश्रुतपुस्तकानि स्फुरद्यशांसीव निजानि मन्ये ॥२०॥ व्यतीते विक्रमादष्टाष्टाब्धीन्दु १४८८ मितवत्सरे । विशेषावश्यकव्याख्यात्यखंडं लेखितं मुदा ॥२१॥छ॥ ॥ श्रीः।। शुभं भवतु ॥छ।। Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १२४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क १२० विशेषावश्यक वृत्तिसह प्रथमखंड अपूर्ण पत्र ३२२ । भा. प्रा. सं.। क. मू. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । वृ. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२॥. प्रति शुद्ध छे. ___ क्रमाङ्क १२१ विशेषावश्यक वृत्तिसह द्वितीयखंड पत्र ३६४ । भा. प्रा. सं. । क. मू. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । वृ. मलधारी हेमचंद्रसूरि। र. सं. ११७५ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं.प. ३२४२।. क्रमाङ्क १२२ ओघनियुक्तिबृहद्भाष्य पत्र १०१। भा. प्रा.। गा. २५१७ । ले. सं. १४९१ । लं. प. २४॥४२॥. आदि५० ॥ ॐ नमः श्रीसर्वज्ञाय ॥ अरहते वंदित्ता चोद्दसपुव्वी तहेव दसपुची । एक्कारसंगसुत्तत्थधारए सव्वसाहू य ॥१॥ ओहेण यु निज्जुर्ति वोच्छं चरणकरणाणुओगातो । अप्पक्खरं महत्थं अणुग्गहत्थं सुविहियाणं ॥२॥ ओहे पिंड समासे संखेवे चेव होंति एगत्था । निय अधिग नियय निच्छिय जुत्ति अत्थ त्ति निज्जुत्ती ॥३॥ वोच्छामि भणामि ति चिज्जइ चरणं ति किज्जते करणं । तो चरणकरण भण्णइ होइ विभागो इमो तेसि ॥४॥ वय समणधम्म संजम वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। णाणाइतियं तव कोहनिग्गहाइ चरणमेयं ॥५॥ ओहसमायारेतं जुजंता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवेति कम्म अणेगभवसंचियमणंतं ॥ एसा अणुग्गहट्ठा फुडवियडविसुद्धपागडमहत्था । भणितोहसमायारी दसविह एत्तो परं भवती ॥ २५१७ ओहणिज्जुत्तीए भासं सम्मत्तं गाहाणं सव्वग्गं ॥छ॥ संवत् १४९१ वर्षे श्रावण सुदि १ बुधे श्रीमति श्रीस्तम्भतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमतगच्छेशभट्टारकश्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन परीक्षगूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे श्रीओपनियुक्तिभाष्यं लिखित पुरोहितहरीयाकेन ॥छ॥ शुभं भवतु ॥ क्रमाङ्क १२३ (१) ओघनियुक्ति पत्र १-३६ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ११६३ । पत्र ११, ३३ नथी । (२) ओघनियुक्तिवृत्ति पत्र १६४ । भा. प्रा. 1 ग्रं. ६८२५ । ले. सं. १४८७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२॥ । पत्र १५१ नथी । अन्त अक्षरगणनया ग्रंथाग्रं ६८२५ ॥ संवत् १४८७ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकारश्रीजिनभद्रसूरिसुगुरूणामादेशतः पुस्तकमेतल्लिखितं शोधितं च ॥ लिखापितं साहधरणाकेन सुतसाईयासहितेन ॥छ॥श्री॥ क्रमाङ्क १२४ ओधनियुक्तिवृत्ति पत्र २४१ । भा. प्रा. सं. । क. द्रोणाचार्य । ले. सं. १२८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अन्त श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ ओघनियुक्तिटीका समाप्ता ॥ छ ॥ कृतिराचार्यद्रोणस्येति ॥ ॥ ॥ संवत् १२८९ वर्षे फाल्गुन शुदि ४ सोमे स्तंभतीर्थनगरनिवासिना श्रीश्रीमालवंशोद्भवेन ठ. साठासुतेन । ठ. कुमरसिंहेन सूत्रमिश्रा ओघनियुक्तिवृत्तिलेखयांचक्रे ॥ छ ॥ छ ॥ शुभं भवतु चतुर्विधश्री श्रमण संघस्य ॥ छ ॥ छ ॥ मंगलं महाश्रीः || ४ || छ || मंगलमस्तु ॥ छ ॥छ || क्रमाङ्क १२५ ओघनिर्युक्तिवृत्ति पत्र २३४ । भा. प्रा. सं. । क. द्रोणाचार्य । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३।४२. पाक्षिकसूत्र वृत्ति सह पत्र ११८० । ले. सं. १४८८ [ धरणाक ११, १८ नथी । अन्त [ क्र. १२५ क्रमाङ्क १२६ ओघनियुक्ति वृत्तिसह पत्र २३३ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. द्रोणाचार्य । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. मध्यम । द श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२. क्रमाङ्क १२७ ६८ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. यशोदेवसूरि । ग्रं. २७०० । र. सं. लेखित ? ] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४।४२।. । पत्र १, संवत् १४८८ वर्षे आषाढ सुदि १५ खौ पाक्षिकवृत्तिः समाप्ता ॥ क्रमाङ्क १२८ पाक्षिकसूत्र वृत्ति सह पत्र ८९ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. यशोदेवसूरि । र. सं. ११८० । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३।४२१. क्रमाङ्क १२९ आ प्रति तत्काळ कोइ कारणसर सांधीने पुनः तैयार करी छे, तेथी आ पाक्षिकसूत्र वृत्तिसह पत्र ८४ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. यशोदेवसूरि । र. सं. ११८० । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं प. ३२ ।४२। । पत्र ५७ ५८ नथी । खवाइ जवाने लीधे के भांगी जवाथी तेने कोई कळाधरे काळजी पूर्वक प्रति विशिष्ट प्रकारे संधाती प्रतिओना किंमती दर्शनीय नमूनारूप छे ! क्रमाङ्क १३० आवश्यक निर्युक्ति अपूर्ण पत्र १४० । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । ले सं. अनु. १२ मी शताब्दीनुं पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२ पत्र १ थी ७, ९ थी १४, १६, १७, २१, २२, २४, २६, २९, ३१, ३७, ३८, ४०, ४१, ४३ थी ४५, ५३, ५७, ५९, ६१, ६३, ६४, १२६, १३८, १३९ नथी 1 क्रमाङ्क १३१ आवश्यकनिर्युक्ति पत्र १४१ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. ११६६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प १३।४२. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । क्र. १३९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अन्त संवत् ११६६ पौष वदी ३ मंगलदिनी महाराजाधिराजत्रैलोक्यगंडश्रीजयसींघदेवविजयराज्ये लिहवेहेन लिखित ॥ क्रमाङ्क १३२ _आवश्यकवृत्तिटिप्पनक पत्र ३१५ । भा. सं.। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि। ले. सं अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२ क्रमाङ्क १३३ आवश्यकनियुक्ति पत्र २-२९१। भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२।। अंतिम पत्रना टूकडा थइ गया छे।। क्रमाङ्क १३४ आवश्यकनियुक्ति पत्र २६९ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। ग्रं. ३२८४ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२।। पत्र ७८, ९७, १३२, १४१-१४८, १५६, २६३ नथी. क्रमाङ्क १३५ आवश्यकनियुक्ति ऋटक अपूर्ण पत्र १८७ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४२।। आ प्रतिमां वचमां वचमां घणां पानां नथी । क्रमाङ्क १३६ (१) षडावश्यकसूत्रवृत्ति पत्र १-९१ । भा. सं.। क. नमिसाधु । ग्रं. १५५० । र. सं. ११२२ । ले. सं. १२९८ । पत्र ९१ मां विक्रम संवत् १२९८ वैशाष सुदि १५ गुरौ षडावश्यकं लिखितं ॥छ। मंगलं महाश्री॥ शुभं भवतु ।। (२) श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरणवृत्ति पत्र ९१-१४६ । भा. सं.। ग्रं. ९..।। , मूल पत्र १४६-१५२ । भा. प्रा. । गा. ७७ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२।. क्रमाङ्क १३७ षडावश्यकसूत्रवृत्ति पत्र १४६। भा. सं. । क. नमिसाधु । ग्रं. १५५० । र.सं. ११२२ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४१॥. क्रमाङ्क १३८ ललितविस्तरावृत्तिसंक्षेप (चैत्यवंदनासूत्रवृत्ति) पत्र २८ । भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२॥. __ क्रमाङ्क १३९ (१) चैत्यवंदनासूत्रचूर्णी पत्र १-६० । भा. प्रा.। क. यशोदेवसूरि । ग्रं. ८४० । र. सं. ११७४ । पत्र १, २ नथी। Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. १४०(२) वंदनकसूत्रचूर्णी अपूर्ण पत्र ६०-८१ । भा. प्रा.। क. यशोदेवसूरि । - (३) प्रत्याख्यानस्वरूपप्रकरण त्रटक पत्र १४७-१५२। भा. प्रा.। क. यशोदेवसूरि । गा. २५० थी ३२९ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२॥ क्रमाङ्क १४० (१) चैत्यवंदनासूत्रचूर्णी पत्र ६३ । भा. प्रा.। क. यशोदेवसूरि । ग्रं. ८४० । र. सं. ११७४ । अन्त॥ संवत् ११७४ वर्षे ॥ अमुकदिने चैत्यवंदक चूर्णी कृता लिखि ॥ (१) (२) वंदनकसूत्रचूर्णी पत्र १-४८ । भा. प्रा.। क. यशोदेवसूरि । ग्रं. ७०७ (३) इरियावहियादंडकचूर्णी पत्र ४८-५८ । भा. प्रा.। क. यशोदेवसूरि। पं. १५०। (४) प्रत्याख्यानस्वरूपप्रकरण गाथाबद्ध पत्र ५८-८४ । भा. प्रा.। क. यशोदेवसरि। गा. ३२९ । ग्रं. ४००। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १५४२ क्रमाङ्क १४१ (१) चैत्यवंदनासूत्रवृत्ति पत्र १-२८ । भा. सं.। क. श्रीचंद्रसूरि। ग्रं. ५४० । (२) वंदनकसूत्रवृत्ति पत्र २८-६६ । भा. सं. । क. श्रीचंद्रसूरि । (३) प्रत्याख्यानसूत्रवृत्ति पत्र ६६-७९ । भा. सं. । क. श्रीचंद्रसूरि। ग्रं. ९२० त्रणेना। (४) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति पत्र ८०-१८२ । भा. सं.। क. श्रीचंद्रसूरि। ग्रं. १९५० । र. सं. १२२२ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७॥४२ आ प्रतिमा जीर्ण थयेल अंतनां पानां सं. १६३५ मां नवां उमेरेलां छे. । अन्तनी नवी पुष्पिका ॥संवत् १६३५ वर्षे आषाढ सुदि नवम्यां पूर्णतां प्रापितं पत्रमदः प्रांतिमं श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टांभोजभास्करश्रीश्रीश्रीजिनचंद्रसूरिभिट्टार करिति श्रुतभगवद्भक्तये ॥श्रीः क्रमाङ्क १४२ चैत्यवंदनादिविवरण अपूर्ण पत्र ५४ । भा. सं.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२।। पत्र ३८, ३९, ४३, ४५-४८, ५१ नथी । आदि रागाद्यरातिविजयाप्तजिनाभिधानं देवाधिदेवमभिवंद्य निराकृताघः । तच्चैत्यवंदननियुक्तमशेषसूत्रं शक्रस्तवादि विवृणोमि यथावबोध ॥ सत्य संति नयप्रमाणविषयक्षोदक्षमाः पंजिकाः सूत्रस्यास्य चिरंतनैः कविवर्दब्धाः परं भेदवान् । नानासूरिनिमित्तकोऽपि विविधो मे संप्रदायोऽस्ति यत्प्रायस्तस्य निवेदनं परकृती कतं तु नो शक्यते ॥ तस्मादेष समारम्भस्तत्प्रकाशाय युक्तिमान् । पूर्वसूरिभिरप्येवं रचिता वृत्तयः पृथक् ॥ नानंतार्थमिदं सूत्रं व्याख्यातं पूर्वसूरिभिः । नियतार्थप्रकाशेऽतो नोपालंभोऽस्ति कोऽपि नः ॥ साधुश्रावकयोरत्र न विशेषोऽस्ति कश्चन । क्वचित्सूत्रे क्रियायां च विशेषः साधुगोचरः ।। क्रमाङ्क १४३ यतिप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति पत्र २८ । भा. सं.। ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्ध [धरणाक लेखित ?] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५/४२. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १४७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र आदिनत्वा श्रीवीरजिनं संक्षिप्तरुचीननुग्रहीतुमनाः । सुगमीकरोमि किंचिद् यतिप्रतिक्रमणसूत्रमहम् ॥१॥ __ अथ प्रतिक्रमणमिति कः शब्दार्थः ? उच्यते । अन्त ननु रात्राविच्छामि पडिक्कमिउं गोयरचरियाए इत्यादि सूत्रमपार्थकमसंभवादिति चेन्न, स्वप्नादौ तत्संभवाददोषः, अखंड वा सूत्रमुच्चारणीय, कथमन्यथा योगवाहिनोऽपि पारिष्ठापनिकाद्याकारानुच्चारयंतीति सर्वमनवा ॥ समाप्ता चेयं यतिप्रतिक्रमणवृत्तिः ॥श्रीः ॥छ॥ क्रमाङ्क १४४ पाक्षिकसूत्रचूर्णी पत्र २६ । भा. प्रा.। ग्रं. ४१५। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२. क्रमाङ्क १४५ पाक्षिकसूत्र वृत्तिसह पत्र ९६। भा. प्रा. सं.। व.क. यशोदेवसूरि । र. सं. ११८० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १४॥४२।.। प्रशस्ति अपूर्ण छे. क्रमाङ्क १४६ (१) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र १-६ । भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणि । गा. ६३ । आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक पत्र ६-१२ । भा. प्रा. । क. वीरभद्रगणि। गा. ७७ । भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णक पत्र १२-२६ । भा. प्रा. । क. वीरभद्रगणि । गा. १७२ । । संस्तारकप्रकीर्णक पत्र २६-३५ । भा. प्रा.। गा. १२२ । गच्छाचारप्रकीर्णक पत्र ३५-४६ । भा. प्रा.। गा. १३७ । । मरणविधिप्रकीर्णक पत्र ४६-९७ । भा. प्रा. । गा. ६५३ ।। (७) गणिविद्याप्रकीर्णक पत्र ९७-१०२ । भा. प्रा. । (८) चंद्रवेध्यकप्रकीर्णक पत्र १०२-११५ । भा. प्रा. । गा. १७४ । (९) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्रं ११५-११८ । भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणि। ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी [धरणाक लेखित] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२. । पत्र ४, ८, १०, १२, ३२, ३६, ३९, ४२, ४४, ५७, ६७, ७०-७३, ७६, ७९, ८०, १०११०५, ११४ नथी। क्रमाङ्क १४७ सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय पत्र १५२ । भा. सं. । ग्रं. २३६४ । ले. सं. १४९३। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४१॥. (१) नंदीविषमपदपर्याय पत्र १-७ (२) आवश्यकवृत्तिविषमपदपर्याय पत्र ७-३९ पत्र ३९-५४ (४) दशवैकालिकविषमपदपर्याय पत्र ५४-६४ (५) ओघनियुक्ति पत्र ६४-६६ (६) पिंडनियुक्ति पत्र ६६-६८ (3) Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ દ્ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ (७) पिंडनिर्युक्ति कतिचिद्गाथावृत्ति पत्र ६८-७७ विषमगाथाविवरण पत्र ७७–८३ यावत् त्रैलोक्यशाल: कमठपतिवपुर्मूलजालप्रतिष्ठो (८) "" नागेन्द्रस्कन्धबन्धस्त्रिदशपतिनदीपल्लवश्चन्द्रगच्छः । आशाशाखा प्रशाखः शिवसदनशिलासत्कलो धिष्ण्यपुष्पो भारत्या मेष तावद्दलितकलिमलः पुस्तकः पठ्यमानः ॥ छ ॥ (९) उत्तराध्ययनबृहद्वृत्तिपर्याय पत्र ८३-९५ (१०) आचारांग पर्याय पत्र ९५ - १०३ (११) सूत्रकृतांगपर्याय पत्र १०३ - १०५ (१२) स्थानाङ्गपर्याय पत्र १०५ - ११४ (१३) समवायांगपर्याय पत्र ११५ - १२१ (१४) भगवती सूत्रपर्याय पत्र १२१ - १३१ (१५) जीवाभिगमसूत्रपर्याय पत्र १३१-१३७ (१६) प्रज्ञापनासूत्रपर्याय पत्र १३७ - १३९ (१७) प्रज्ञापनाविवरणविषमपदपर्याय पत्र १३९–१४३ ॥ प्रज्ञापनाविवरण विषमपदपर्यायाः समाप्ताः ॥ अंगोपांगपर्यायाः समाप्ताः ॥ छ ॥ (१८) जीतकल्पविषमपदपर्याय पत्र १४३ - १५२ अन्त---- ॥ संवत् १४९३ वर्षे श्रावण वदि १ गुरौ श्रीस्तंभतीर्थं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन प० गूर्जरपुत्रधरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन श्रीसिद्धांतकोशे समस्तसिद्धान्तविषमपदपर्यायपुस्तकं लिखापितं ॥ छ ॥ [ क्र. १४८ क्रमाङ्क १४८ ज्योतिष्करंडकसूत्र वृत्तिसह पत्र २३३ । भा. प्रा. सं । वृ. क. मलयगिरिसूरि । ग्रं ५०००। ले. सं. १४८९ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५४२. अन्त ॥छ॥ संवत् १४८९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ५ गुरुदिने श्रीमति स्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालन पटुतरे विजयिनि श्रीमत्खरतरगच्छे। श्रीजिनराजसूरि [पट्टे] लब्धिलीलानिलयबंधुरबहुबुद्धि [ बोधि ]तभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचन्दनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिभिरनिकरदिनकरप्रसरसमश्रीमद्गच्छेशभट्टारक श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशैन [ परीक्षगूजरसुतेन रेषा ]प्राप्तसुश्रावकेन परीक्षधरणाकेन पुत्रसाइयासहितेन श्रीसिद्धान्तकोशे ज्योतिष्करण्डकटीका लिापिता ॥ पुरोहितहरीयाकेन लिषिता ॥ छ ॥ क्रमाङ्क १४९ अंगविद्याप्रकीर्णक पत्र २४१ । भा. प्रा. । ग्रं. ९००० । ले. सं. १४८८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२. इति खलु भो महापुरिसदिन्नायमंगविज्जाय उपपत्तीविजयो णामज्झायो सद्वितिमो संमत्तो ॥ छ ॥ णमो भगवतो अरहतो यसवतो महापुरिसस्स महावीरवद्धमाणस्स । णमो भगवतीय महापुरिसदिन्नाय अंगविज्जाय सहस्स Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र परिवाराय भगवतीय अरहंतेहि अणतणाणीहि उवदिवाय अणंतगमसंगहसंजुत्ताय पण्णसमणसुतणाणिबीजमतिअणुगताय अणंतगमपज्जायाय ॥छ॥ णमो अरहताणं । णमो सिद्धाणं । णमो आयरियाण। णमो उवज्झायाणं । णमो लोए सव्वसाहणं ॥छ।। णमो भगवतीए सुतदेवताए ॥छ॥ एताओ गाथाओ संलावजोणीपडले आदिदितिकाओ पुढवी गत्ता जा कायी समायुत्ता कधा तवे । आधारित्ता णिसित्तढे कज्जेत्तणेव पुच्छति ॥ पसत्थ अप्पसत्था वा अत्थणिद्धा सुभासुभा । णिग्गुणगुणसुत्ता संमत्ता वा सुसंमता ॥ दूरा इति आसन्नदीहहस्सधुववेला । संपताणागतातीता उत्तमाऽधममज्झिमा ॥ जारिसी जाणमाणेण पुढवीसंकधा भवे । तेणेव पडिरूवेणं तं तधा वग्गमादिसे ॥ ग्रंथानं ९००० शुभं भवतु ॥ संवत् १४८८ वर्षे बैशाख सुदि ३ अयेह श्रीस्तंभतीर्थे खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये परीक्षगूजरसुतपरीक्षिधरणाकेन अंगविद्यापुस्तकं लिखापितं ॥छ॥ श्रीसाधुकीऍपाध्यायानां शिष्येण पं. महिमसुंदरगणिना अस्या उपरि शोधिता सा. थिरुकभंडारपुस्तिका ॥ क्रमाङ्क १५० प्रकरणपोथी पत्र २०५। भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२. (१) बृहत्संग्रहणीप्रकरण पत्र १-५७ । भा. प्रा. । क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. ५७९ । (२) बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण पत्र ५८-१२१ । भा. प्रा.। क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। ग्रं. ८७५ । गा. ६४० । (३) कर्मस्तव-प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ पत्र १२१-१३५ । भा. प्रा.। गा. ५८ । (४) कर्मविपाक-प्राचीन प्रथम कर्मग्रंथ पत्र १२६-१४० । भा. प्रा. । क. गर्गर्षि । गा. १६९ । (५) शतक-प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ पत्र १४०-१५० । भा. प्रा. । क. शिवशर्मसूरि । गा. १११ । (६) सित्तरी-षष्ठ कर्मग्रंथ पत्र १५०-१५८ । भा. प्रा.। गा. ९१।। (७) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रन्थ पत्र १५९-१७० । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. १०३ । (८) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण (सार्धशतक) पत्र १७०-१८५। भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. १६४ । (९) कर्मविचारसारप्रकरण पत्र १८६-२०० । गा. १६५। (१०) बंधस्वामित्व-प्राचीन तृतीय कर्मग्रंथ पत्र २००-२०५। भा. प्रा.। गा. ५४ । अन्त बंधस्सामित्तमिणं नेय कम्मत्थयं सोउं ॥५४॥छ॥ मंगलं महाश्री ॥छ॥छ॥छ॥छ॥छ॥ । अस्थि सुहपत्तकलिओ वरवित्तो पव्वसंजुओ सरलो। सिरिभिल्लमालवसो संपत्तीए इव विसालो ॥१॥ तम्मि य सिट्ठी मुत्तामणि व्व सत्थो विसालसोहिल्लो । पणयजणकयाणंदो जिणदेवो नाम वरसड्ढो ॥२॥ सोहिणि नाम पिया से सुहकम्मसमुज्जया विमलसीला । तीसे पुत्ताण तिगं एगा धूया अ......(अपूर्ण) क्रमाङ्क १५१ प्रकरणपोथी पत्र १५४ । भा. प्रा. सं. अप.। ले. सं. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२१, (१) पर्यन्ताराधनाप्रकरण पत्र १-९ । भा. प्रा.। क. सोमसूरि । गा. ६९ । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. १५१(२) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र ९-२९ । भा. प्रा. । क. आसड । र. सं. १२४८ । (३) चउसरण पत्र २९-३३ । भा. प्रा.। गा. २७ । (४) आतुरप्रत्याख्यान पत्र ३४-३९ । भा. प्रा.। । आराधनाप्रकरण पत्र ३९-५२ । भा. प्रा.। क. अभयदेवसूरि । गा. ८५ । आदि-- आलोयणा वयाणं उच्चारो खामणा अणसणं च । सुहभावणा णमुक्कारभावणा च त्ति मरणविही ॥१॥ अन्तइय अभयसूरिविरइयआराहणपगरणं पढ़ताणं । सत्ताण होई नियमा परमा कल्लाणनिष्फत्ती ॥८५॥छ।। ग्य कुलक-धर्माधर्मफलकुलक] पत्र ५२-५४ । भा. प्रा.। गा. १३ । आदि लधुण माणुसत्तं धम्माधम्मप्फलं च नाऊण । सयलसुहकारणंमी जत्तो धम्मम्मि कायव्यो ।॥१॥ अन्त संभाविऊण एवं वेरग्गनिबंधणं भवसरूवं । धम्मसमायरेणेणं करेह मणुयत्तणं सफलं ॥१३॥छ॥ (७) मिथ्यादुष्कृतकुलक पत्र ५४-५६ । भा. प्रा. । गा. १६ । आनां बीजां नाम असद्धयानक्षामणाकुलक तथा भावनाकुलक पण कुलककारे जणाव्यां छे।। आदि जो को वि य पाणिगणो दुक्खे ठविओ मए भमतेणं । सो खमउ मज्झ इहि मिच्छामिह दुकडं तस्स ॥१॥ अन्तमिच्छादुक्कडकुलय अहवाऽसज्झाणखामणा रइया । अहवा भावणकुलयं सम्मद्दिहिस्स जीवस्स ॥१६॥छ॥ (८) आलोचनाकुलक पत्र ५६-५८ । भा. प्रा.। गा. १२ । आदि ' जिणसिद्धकेवलीणं मणपज्जवनाणिओहिनाणीण । चउदसदसपुव्वीणं नियदुच्चरिय समालोए ॥१॥ अन्तएवं आलोएतो दढसत्तो अइविसुद्धपरिणामो । सुच्चरिएण समग्गो वच्चइ अयरामरं ठाणं ॥१२॥ आलोचनाकुलकं समाप्तम् ॥छ॥ (९) [आत्मविशुद्धिकुलक] पत्र ५८-६१ । भा. प्रा. । गा. २४ । आदि अरहंतसिद्धगणहरपमुहाणं अभिमुहो अहं ठाउं । अंजलि काऊण सिरे नियदुचरियं समालोए ॥१॥ अन्त अप्पविसोही एसा जो भावइ निच्चकाल उवउत्तो । सो अचिरेण साहइ नियजीयं सुद्धपरिणामो ॥२४॥ (१०) [आराधनाकुलक] पत्र ६१-६३ । भा. प्रा । गा. ११ । आदि रे जीव किं न याणसि चउगइसंसारसायरे घोरे । भमिहिसि चकाइद्धो चउरासीजोणिलक्वेसु ॥१॥ अन्त रे जीव भावणाओ नवनवसंवेगवढियपयावो । निट्ठवणं कम्माणं कुणसु धुवं थेवकालेणं ॥११॥छ। (११) [वैराग्यकुलक] पत्र ६३-६७ । भा. प्रा. । गा. २९ । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र आदि संसारम्मि असारे नत्थि सुहं वाहिवेयणापउरे । जाणतो इह जीवो न कुणइ जिणदेसियं धम्म ॥१॥ अन्तइय जाणिऊण एयं धम्मायत्ताई सव्वकज्जाई । तं तह करेह तुरियं जह मुच्चह सव्वदुक्खेहिं ॥२९॥ ॥कुलकं समाप्तम् ॥छ॥ (१२) [ उपदेशकुलक] पत्र ६७-७८ । भा. प्रा. । गा. ७४ । आदि भो भो महायस तुमं जीहाखलणेण संपयं मन्ने । पच्चासन्न मरणं ता संपइ होसु उवउत्तो ॥१॥ अन्त सावय महपुण्णेहि पुव्वकएहि तुम इहं पत्तो। एयावत्थगयस्स वि जम्मह आराहणा एसा ॥७४॥छ॥ (१३) नवकारफलकुलक पत्र ७८-८४ । भा. प्रा. । गा. ३३ । आदि घणघायकम्ममुक्का अरहंता तह य सव्वसिद्धा य । आयरिया उज्झाया पवरा तह सव्वसाहू य ॥१॥ अन्तअद्वेव य अट्ट सया अट्ठ सहस्सं च अट्ठ कोडीओ। जो गुणइ सयाकालं सो तइयभवे लहइ सिद्धी ॥३३॥ ॥ इति नवकारफलं ॥छ॥ (१४) मिथ्यादुष्कृतकुलक पत्र ८४-८६ । गा. २० । आदि संसारे संसरंता णं नाणाजोणिगया मए । जंतुणो ठाविया दुक्खे तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ अन्तएवं मिच्छाउक्कडवोसिरणविहीय सयलसत्तस्स । सग्गऽपवग्गसुहाइं सुलहाई नरस्स किं बहुणा ॥२०॥ ॥ मिच्छाउक्कडकुलय ॥छ। (१५) संवेगमंजरी पत्र ८७-९२ । भा. प्रा. । क. देवभद्रसूरि । गा. ३२ । आदि सद्देसणमलयानिलमंजरियविसुद्धभावसयारो। जयइ जणाणंदयरो वसंतसमउ व्व जिणवीरो ॥१॥ अन्तइय जइ संवेगपरो खणं पि रे जीव होसि ता तुज्झ । सुलहा सिवलच्छी लद्धमणुयसिरिदेवभहस्स ॥३१॥ संवेगमंजरीमिमं सवणावयंसभावं नयंति सुयणा अमिलाणसोहं । ते निच्चमेव सिरिसिद्धिवहूकडक्खलक्खोवलक्खियतणुं खलु ते हवंति ॥३२॥ ॥छ। संवेगमंजरी समत्ता ॥छ॥ (१६) संजममंजरी पत्र ९२-९७ । भा. अप. । क. महेश्वरसूरि । गा. ३५ । आदि नमिऊण नमिरतियसिंदविंदसिरिमउडलीढपयवीढं । पासजिणेसर संजमसरूवसंकित्तणं काहं ॥१॥ अन्तसमणह भूसण गयवसण संजममंजरि एह । कहइ महेसरसूरिपहु कत्ति कुगंति स एह ॥३५।। ॥छ। संजममंजरीप्रकरणं समत्तं ॥छ।।ॐ॥छ। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. १५१(१७) [भावनाकुलक-वैराग्यकुलक] पत्र ९८-१०१। भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि । गा. २२ । आदि जम्मजरामरणजले नाणाविहवाहिजलयराइन्ने । भवसायरे अपारे दुलहं खलु माणुस जम्मं ॥१॥ अन्तता मा कुणसु कसाए इंदिअवसगो अ मा तुम होसि । देविंदसाहुमहियं सिवसुक्खं जेण पाविहिसि ॥२२॥छ।। (१८) [भावनाकुलक] पत्र १०१-१०५ । भा. अप.। गा. २१ । आदि जहिं जिणधम्मु न जाणीयइ न वि देवह गुरु भत्ति । तहिं तुहुं जीवा दन्नडई वससि म एकइ रत्ति ॥१॥ अन्तजं दिज्जइ पंचंगुलिहि तं परिअग्गइ थाइ । हल्लोहलियइ जीवडइ मुड्ढ कि बंधण जाइ ॥२१॥ ॥शुभं भवतु श्रमणसंघस्य ॥ छ ॥ छ । (१९) [उपदेशकुलक] पत्र. १०६-११३ । भा. अप. । क. जिनप्रभसूरि। गा. ३२ । आदि सुगुरु न सेविउ जंगमु तित्थु, सुणिय न आगमवयणु महत्थु । को वि न पाविउ परमपयत्थु, हा हा जम्मु गयउ अकयत्थु ॥१॥ अन्त ण्हाणु निम्मल नाणु सम्मत्तु, सिंगारु जीवह अभउ, सच्चु वयणु तबाल इट्ठउ । परदव्वज्जणु पियलि सुद्ध सीलु आभरणु लट्ठउ । आरूढउ संतोसरहि दप्पणु गुरुउवए। जिणपहु सारहि जो करइ सु लहइ सिद्धिपवेसु ॥३२॥छ॥ ) [आराधना] पत्र ११३-१२० । भा. सं. । ग्रं. ४०।। आदि स निष्कलंक श्रामण्यं चरित्वा मूलतोऽपि हि । आयुःपर्यन्तसमये व्यधादाराधनामिति ॥१॥ अन्त नित्यमेव सुधीः साम्यश्रद्धासंशुद्धमानसः। क्षणभंगुरे [हि] संसारे कुर्यादाराधनामिति ॥४०॥छ। (२१) भावनासंधि पत्र १२१-१३६। भा. अप.। क. जसदेवमुनि (यशोदेवमुनि)। गा. ११ । आदि पणमवि गुणसायर, भुवणदिवायर, जिण चउवीसइ एकमणि । अप्पडं पडिबोहइ, मोहु निरोहइ, कोइ भव्वु भावणवयणि ॥ अन्त निम्मलगुणसूरिहि, सिवदिनसूरिहिं, पढमु सीसु जसदेवमुणि । किय भावणसंधी, भावविसुद्धी, निसुणवि अण्णु वि धरउ मणि ॥११॥ ॥छ॥ शुभं भवतु श्रीश्रमणसंघस्य ॥ (२२) आराधना पत्र १४८-१४९ । भा. प्रा.। गा. ८। पत्र १३७-१४७ नथी । आदि नाणे देसण चरणे तव विरिए सिद्धसक्खियं सुद्धि । गिण्हामि उच्चरामी वयाई जहगहियभंगाई ॥१॥ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अन्तनाहं कस्स न मज्झ य को वि अहं निम्ममो सदेहे वि। किंतु सिरिवीरपाया गई मई हुंतु सयकालं ॥८॥ ॥आराधना समाप्ता ॥छ॥ (२३) भावनाकुलक पत्र १४९-१५१। भा. प्रा.। क. सोमदेव । गा. १७ । आदि नमिऊण सुरिंदनरिंदविंदनागिंदवंदियं वीरं । भवभावणवरकुलयं पबोहगं भणमि जीवस्स ॥१॥ अन्तएवं भावणकुलयं वल्लहजणमरणसोगभीएण । नियजीवबोहणत्थं रइअमिगं सोमदेवेण ॥१७॥ ॥भावनाकुलकं ॥छ॥ (२४) [महर्षिकुलक] पत्र १५१-१५४ । भा. अप. । गा. २७ । आदि-- भयवं दसन्नभद्दो सुदसणो थूलभद्द वयरो य । सफलीकयगहचाया साहू एवंविहा हुति ॥१॥ अन्त ए एवमाइमुणिपुंगवह भत्तिहिं वंदण जो करइ । मणु वयणु काउ निम्मलु करिवि भवसायरु लीलइ तरइ ॥२७॥छ। क्रमाङ्क १५२ प्रवचनसारोद्धार पत्र १७४ । भा. प्रा. । क. नेमिचन्द्रसूरि । ग्रं. २०००। ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४:४२।. क्रमाङ्क १५३ (१) उपदेशपदप्रकरण पत्र १-८५। भा. प्रा.। क. आचार्य हरिभद्र । गा. १०४० । (२) जीवसमासप्रकरण. पत्र ८५-११४ । भा. प्रा. । गा. २७० ।। (३) प्रवचनसंदोह. पत्र ११४--१३७ । भा. प्रा.। ले.सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५।४२१. क्रमाङ्क १५४ प्रकरणपोथी. पत्र १६५+१५+८=१८८ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १२१० तथा १२१५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२ (१) श्रावकषडावश्यकसूत्र पत्र १-१४ । भा. प्रा. सं । (२) पंचलिंगीप्रकरण. पत्र १४-२६। भा. प्रा.। क. जिनेश्वरसूरि । गा. १०१ । (३) श्रावकवक्तव्यताप्रकरण. पत्र २३-३५ । भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. १०३ । (४) पिंडविशुद्धिप्रकरण. पत्र ३५-४५ । भा. प्रा. । क. जिनकलभगणि । गा. १०३ । (५) आगमोद्धारगाथा. पत्र ४५-५१ । भा. प्रा. । गा. ७१ । (६) पौषधविधिप्रकरण. पत्र ५२-६४ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । (७) पंचकल्याणकस्तोत्र. पत्र ६५-६७ । भा. प्रा.। गा. २६ । (८) लघुअजितशांतिस्तव पत्र ६७-७० । भा. प्रा. । क. ज़िनवल्लभगणि । गा. १७ ॥ Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थं [ क्र. १५४ आदि-उल्लासिक्कमनक्ख० (९) अजितशांतिस्तोत्र पत्र ७०-७५ । भा. प्रा.। क. नंदिषेण । गा. ४० । । (१०) पर्यन्ताराधनाप्रकरण पत्र ७५-८२। भा. प्रा.। गा. ८४ । सोमसूरिकृतथी अन्य छ। (११) आउरपञ्चक्खाण पत्र ८२-८६ । भा. प्रा.। (१२) धर्मलक्षण पत्र ८६-८७ । भा. सं.। (१३) प्रश्नोत्तररत्नमालिका. पत्र ८७-९० । भा. सं.। क. विमलाचार्य। आ. २७ । (१४) नवतत्त्वप्रकरण भाष्यसह (नवतत्त्वप्ररूपणाप्रकरण) पत्र ९१-१०३ । भा. प्रा. । देवगुप्तसूरि । भा. अभयदेवसूरि । गा. १५२ । (१५) नवपदप्रकरण पत्र १०३-११६ । भा. प्रा. । क. जिनचन्द्रगणि। गा. १३९ । (१६) श्रावकधर्मविधिप्रकरण पत्र ११६-१२१ । भा. प्रा. । गा. १७० । (१७) कर्मप्रकृतिसंग्रहणी पत्र १२१-१६२ । भा. प्रा.। क. शिवशर्मसूरि । गा. ४७७ । अन्त पएससतं सम्मत्तं ॥छ॥ सम्मत्ता कम्मपयडिसंगहणी ॥छ॥ गाहग्गं चारि सया अहिया पुण पंचसयरीएछ। संवत् १२१० माघ सुदि ३ सोमदिने ॥छ।। (१८) जिनविज्ञप्तिका पत्र १६२-१६५। भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि। गा. ३७ । आदि-- लोयालोयविलोयणवरकेवलनाणनायनायव्वं । जिणचंदं वदिय विष्णवेमि तं चेव तिजयगुरुं ॥१॥ अन्त इच्चाइ रुच्चइ किमेत्थ समत्थवत्थुवित्थारसव्वपरमत्थविउस्स तुज्झ । सम्भावगब्भभणिएहि पसीय देहि दिलुि सया सुहकरि जिणवलहं मे ॥३७॥ ॥ इति विज्ञप्तिका समाप्ता ॥छ॥ (१९) स्वप्नसप्ततिकाप्रकरणगत गाथा सटीक पत्र १-१५। भा. प्रा. सं। पं. २५० । मु. गा. ३८ । आदिकिंचोदाहरणाई बहुजणमहिगिच्च पुव्वसूरीहिं । एत्थं णिसियाइं एयाइं इमम्मि कालम्मि ॥१॥ किंचेत्यभ्युच्चये ॥ अन्त ॥ इति गाथार्थः ॥छ॥ इति.........कृतिश्री.........समाप्तमिति ॥छ॥ ग्रंथाग्रं श्लोका जात २५०॥ संवत् १२१५ माघ सुदि ९ बुधे पुस्तिका लिखितमिति ॥छ॥ श्रीमत् जिनदत्तसूरिसिसिन्याः शांतमतिगणिन्याः सज्झायपुस्तिका श्रीः ॥ (२०) बोट्टिकनिराकरण पत्र. १-८ । भा. प्रा. । गा. ११५। आदि ५ नमो वीतरागाय ॥ निच्छिद्दा पाणिपुडा संघयणं वज्जरिसभनारायं । अइसयजुत्ता य जिणा करभोई तेण ते होति ॥१॥ अन्तजुन्नेहि खंडिएहिं य असव्वतणुपाउएहिं नणु निच्चं । चेलेहिं सचेला वि हुअचेलया हुति मुणिवसभा ॥११५॥ ॥बोट्टिकनिराकरण समाप्तम् ॥छ।। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क १५५ प्रकरणपोथी पत्र १६२+१७+३१=२१० । भा. प्रा.। ले. सं. १२२२ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४।४२॥ (१) श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण पत्र १-३७ । भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि । गा. ५७० । (२) धर्मरत्नप्रकरण पत्र ३७-४७ । भा. प्रा.। क. शान्तिसूरि । गा. १४५ । (३) नवतत्त्वप्रकरण भाष्यसह पत्र ४७-५९ । भा. प्रा.। मू. क. देवगुप्तसूरि । भा. क. अभयदेवसूरि। गा. १५२ । (४) धर्मोपदेशमालाप्रकरण पत्र ६०-९५। भा. प्रा.। क. वीरचन्द्र शिष्य । गा. ५०२ । (५) शालिभद्रचरित्र गाथाबद्ध पत्र ९५-१०५। भा. प्रा.। आदि सुरनरकयमाणं नटनीसेसमाणं भवजलहिसुजागं सत्तहत्यप्पमाणं ।। वियरियवरदाणं छिन्नकम्मारिताणं पयडियवरनाणं वंदिउं वद्धमाणं ॥१॥ वोच्छामि सालिभद्दस्स पवित्तं वरमंगलं चरित्तमुत्तमाइन्न । अन्त इइ परमपवित्तं सालिभद्दस्स एवं चरियमइविसिटुं जे पढंती मणुस्सा । तह य अणुगणंती तीए वक्खाणयंती नरसुरवरसोक्खं भुजिउं जंति मोक्खं ॥ ॥सालिभद्रचरितं समाप्तम् ॥ छ । (६) [श्रावकवतभंगकुलक] पत्र १०५-१०७ । भा. प्रा.। गा. ३०। आदि दुविहा अट्ठविहा वा बत्तीसविहा व सत्त पणतीसा । अन्त तेरस कोडिसयाई चुलसीइजुयाई बारस य लक्खा । सत्तासीइसहस्सा दो य सया तह दुरग्गा य ॥३०॥छ। (७) उपदेशमालाप्रकरण-पुष्पमालाप्रकरण पत्र १०७-१५५ । भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि। गा. ५०५। ले. सं. १२२२ । ॥श्रीहेमचन्द्रसूरिविरचिता समाप्ता ॥ सवत् १२२२ पोष वदि १ ॥ (८) तपश्चरणमेदस्वरूपप्रकरण पत्र १५६-१६१। भा. प्रा.। क. चक्रेश्वरसूरि । गा. ५४ । र. सं. १२१३ । आदि नमिऊण जिणं निज्जरभिहाणतत्तस्स सत्तमस्साहं। वोच्छं विवरणगाहाओ पुव्वसुत्ताणुसाराओ ॥१॥ अन्ततवमेयाण सरूवं सिरिमंचकेसरेहि सूरीहि । मडाहडम्मि रइयं बारसतेरुत्तरे वरिसे ॥५४॥ ॥तपश्चरणभेदस्वरूपप्रकरणं समाप्तम् ॥छ । (९) त्रयोदशभेदनवकारस्वरूपकुलक पत्र १६१-१६२ । भा. प्रा.। गा. १४ । आदि इगदुतितिचउपणछसगसोलसपणतीसअट्ठसट्ठीहिं । सगवीससयतिसहस्सएण वन्नाण निप्फन्ना ॥१॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ अन्त सगवीसई सई अक्खरहं पणतीस खरजुत्त । इह तेससय अक्खरउ दुहहरु सुमरहं मंतु ॥१४॥ ॥त्रयोदसभेदनवकारस्वरूपफलं ॥छ ॥छ । (१०) विचारमुखप्रकरण पत्र १-१७। भा. प्रा.। क. अमरचन्द्रसूरि। गा. १४१ । आदि ॥०॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ निम्मलनाणपयासियवत्थुविभत्ति नमित्तु वीरजिणं । किंचि विभत्तिवियारं वोच्छं बालावबोहत्थं ॥१॥ अन्त इय छब्भेयविभत्तिं पवंचियं अमरचंदसूरीहि । निसुणंताणं जायइ उम्मेसो नाणलेसस्स ॥१४१॥ ॥एकचत्वारिंशदधिकं शतं ॥ छ ॥ इति विचारमुखप्रकरणं समाप्तम् ॥ (११) बृहत्संग्रहणीप्रकरण पत्र १-३१। भा. प्रा. । क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. ३६६ । क्रमाङ्क १५६ प्रकरणपोथी पत्र १२७+४+१०+६+३४=१८१ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. ११९२ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२४२। (१) श्रावकवक्तव्यता-पटस्थानकप्रकरण पत्र १-७। भा. प्रा.। क. जिनेश्वरसूरि। गा.१०३। पत्र १, ४ नथी। (२) पंचलिंगीप्रकरण पत्र ७-१५ । भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. १०१। (३) आगमोद्धारगाथा पत्र १५-१९। भा. प्रा. । गा. ७१।। मिथ्यात्वमथनाकुलक पत्र १९-२१ । भा. प्रा. | गा. २६ । आदि न गुले भणिए गुलिय निबे कडुयं कया वि हवइ मुहं । न गुणे हवंति दोसा वायामेत्तेण कइया वि ॥१॥ अन्तबहुकालिओ अणाई संसारो मिच्छदंसणं एयं । जेहि न चत्तं अइरा बहुकालं ते भमीहिंति ॥२६॥ ॥ इति मिथ्यात्वमथना ॥छ॥ विधिकुलक] पत्र २१-२३ । भा. प्रा.। गा. २५ । भादि ) [ दानविधिक धम्मोवग्गहदागं दिज्जइ धम्मट्ठियाण नरनाह । जे खंतिमद्दवज्जवनियमपरा गुत्तिबंभधरा ॥१॥ अन्त .........हो गम्मइ नरयमि जेण धम्मेण । सो मिच्छच्छाइयलोयणाण धम्मो मणे हाइ ॥२५॥ (६) धूमावलि पत्र २३-२७ । भा. प्रा. अप. । गा. ५४ । आदि ......हिं सिद्धजयमंगलमंगलेहि कलाणसंपयपरंपरकारएहि। मोहंधयारणियरेक्कदिवायरेहिं... .......णेहिं ॥१॥ अन्तनिव्वत्तियमज्जणसुरसरिच्छणेवत्थवड़ढियच्छायं । जयभूसणं विभूसियभूसणसोहं जिगं नमह ॥५४॥ ॥छ॥ धूमावलिया समाप्ता ॥ॐ॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (७) जिनस्नात्रविधि चतुष्पर्धात्मक पत्र २७-३३ । भा. सं. । क. वादिवेताल शांतिसूरि । का. ७४ । आदि श्रीमत्पुण्यं पवित्रं कृतविपुलफलं मंगलं लक्ष्मलक्ष्म्याः क्षुन्नारिष्टोपसर्गग्रहगतिविकृतिस्वप्नमुत्पातघाति । संकेतः कौतुकानां सकलसुखमुखं पर्व सर्वोत्सवानां । स्नात्रं पात्रं गुणानां गुरुगरिमगुरोर्वचिता यैन दृष्टम् ॥१॥ इति धनरत्नसुवर्णस्रग्वस्त्रविलेपनाद्यलंकारैः । जनितादरो विजयते जगद्गुरोर्जन्मसंतानम् ॥१८॥ ॥छ।। इति जिनस्नात्रविधौ चतुर्थ पर्व समाप्तमिति ॥ॐ॥छ। (८) प्रातिहार्यस्तोत्र कुसुमाञ्जलिस्तोत्र नंदीश्वरस्तोत्र पत्र ३४-३७ । भा. प्रा. । क. मानतुंगसूरि त्रणेना। कडी ९+५+१०-२४ । आदि १ पवणकंपिरपत्तपब्भारुप० २ बहलपरिमलमिलियमुहलालि. ३ कल्लाणयदिणेसु सव्वेसु वि० (९) थेरावली-नन्दीसूत्रगता पत्र ३७-४० । भा. प्रा.। क. देववाचक । गा. ५० । (१०) श्रावकधर्मविधितन्त्रप्रकरण पत्र ४०-४८ । भा. प्रा. । क. हरिभद्रसूरि । गा. १२० । (११) नाणाचित्तयप्रकरण पत्र ४८-५३ । भा. प्रा.। ग (१२) कथानककोशसूत्र पत्र ५३-५६ । भा. प्रा.। क. जिनेश्वराचार्य। गा. ३० । (१३) जिनदत्तसूरिस्वाध्याय अपूर्ण पत्र ५७-५९ । भा. अप.। पत्र ६० मुं नथी। आदि जो अमाणु सिरिवद्धमाणु मयमाणविवज्जिउ सिद्धिपुरंधिनिबद्धमाणु भवपंजरु भंजिउ । लोयालोयपयासणेक्कगुरुभुयणदिवायरु सो जिणिंदु नयअमरविंदु वंदिवि करुणायरु । संथुणहिं वीर जुगपवरगुरु गुरुभावहं सठविय मणु । जिणसासणगयणंगणतरणि सिवपहगमणमहासमणु ॥१॥ (१४) [Jटक कुलक] पत्र ६१-६२ । भा. प्रा.। गा. ३२ । पत्र ६३-६५ नथी। अन्त गिम्हुम्हहयस्स दुयं जह धावंतस्स विरलतरुहेट्ठा। छायासुहमप्पं चिय इंदियसोक्खं पि तह जाण ॥३२॥छ। (१५) आराधना पत्र ६६-६९ । भा. प्रा.। गा. ३६ । आदि जमणंतम्मि वि न कयाइ पत्तपुव्वं अईयकालम्मि । लंधिज्जइ गोपयमिव जस्सामत्थेण भवजलही ॥१॥ अन्तएकेकगोयरा वि हु अरिहाइसु सुहपरंपरं जणइ । भत्ती उ कीरमाणा कणगरहनिवो इहं नायं ॥३६॥ ॥छ॥ आराहणा ॥ (१६) ज्ञानमाहात्म्यप्रकरण पत्र ६९-७३ । भा. प्रा.। गा. ५६ । आदि नाणं चक्खू नाणं पईवओ नाणमो य दिणनाहो। तिहुयणतिमिसगुहाए पगासरयणं परं नाणं ॥१॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. १५६ - अन्त जह मकडओ पक्काफलाई दळूण धाइ धाओ वि। इय जीवो पर विहवं विविहं दठूण अहिलसइ ॥५६॥छ॥ (१७) [आराधनाप्रकरण अपूर्ण] पत्र ७३-७५ । भा. प्रा. । आदि आजम्म पि करिता कडमह रइयपावपब्भारं। पच्छा पंडियमरणं लहिऊण विसुज्झए जीवो ॥१॥ (हवे पछीनां पानां कोई बीजी पोथीनां होवाथी आ प्रकरण अपूर्ण छे.) __ (१८) चतुर्विशतिजिनकल्याणकस्तोत्रचतुर्विशतिका पत्र ७६-८४ । भा. प्रा. । आदि भीमभवसंभमुब्भतजंतुसंताणताणदाणखमं। उसमें जिणवरवसभ थुणामि भावेण भुवणगुरुं ॥१॥ अन्त इय चवणपभिइपनरसपयत्थपयडणथुईए संथुणिओ। वछिय पयं पयच्छउ वीरो सेसा वि तित्थयरा ॥७॥२४॥ॐ॥ (१९) ऋषभ-शान्ति-नेमि-पार्श्व-महावीरजिनपंचकस्तोत्रपंचक पत्र ८४-९० । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभसूरि । गा. २५+३३+१५+१५+१५%१०३। (२०) अजितशांतिस्तव पत्र ९०-९२ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभसूरि। गा. १७ । (२१) जिनविज्ञप्तिका पत्र ९२-९४ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभसूरि । गा. ३७ । आदि-लोयालोयविलोयणवरकेवलनाणनायनायव्वं ।। (२२) लघुशांतिस्तोत्र पत्र ९५-९५/२ । भा. सं.। क. मानदेवसूरि । आ. १७ । (२३) महावीरपंचकल्याणकस्तोत्र पत्र ९५/२-९६ । भा. प्रा. । गा. १३ । आदि-ओहिन्नाणमुणियतित्थेसर मणुय० (२४) प्रव्रज्याविधानकुलक पत्र ९६-९८ । भा. प्रा.। गा. २८ । (२५) चउसरण पत्र ९८-१०० । भा. प्रा. । गा. २५ । (२६) चतुर्जिनकल्याणस्तोत्र पत्र १०० मुं। भा. प्रा. । गा. १० । आदि आसाढपढमचउत्थीए चविय सव्वट्ठवरविमाणाओ। (२७) जयतिहुयणस्तोत्र पत्र १०१-१०४ । भा. अप. । क. अभयदेवसूरि। कडी. ३० । (२८) सुगुरुगुणसंथवसत्तरिया पत्र १०४-१०९। भा. प्रा.। क. सोमचंद्रसूरि। गा. ७५ । आदि गुणमणिरोहणगिरिणो रिसहजिणिंदस्स पढममुणिवइणो। सिरिउसभसेणगणहारिणोऽणहे पणिवयामि पए ॥१॥ अन्त इय सुहगुरुगुणसंथवसत्तरिया सोमचंदजुन्ह व्व । भवभक्खरतावहरा भणिज्जमाणा लहुँ होउ ॥७५॥ ॥छ॥ इय सुगुरुगुणसंथवसत्तरिया समाप्ता ॥ छ । (२९) चतुस्त्रिंशदतिशयस्तोत्र पत्र १०९ मुं। भा. प्रा. । गा. १३ । आदि-थोसामि जिणवरिंदे अभुयभूएहिं. (३०) युगप्रधानगुरुसुरूपदेशिकुलक पत्र ११०-१११ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि। गा. ३४ । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र आदि वंदिय दियसत्तभयं भयवंतं वद्धमाणमसमाणं । वोच्छं जुगपवरागमगुरुपरिमाणं सुरूवं च ॥१॥ अन्तइय जिण जिणदत्तसुमुत्तिमग्गदेसीण जुगपहाणाणं । ससरूवं परिमाणं महानिसीहाओ भणियमिणं ॥३४॥ ॥युगप्रधानगुरुसुरूपदेसिकुलकं समाप्तमिति॥ॐ॥ (३१) विश्रुतश्रुतस्तव पत्र १११-११३ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. २७ । आदि निम्महियमोहमाएण कणयकाएण विगयराएण । उवलद्धविमलकेवलनाणेण विसुद्धझाणेण ॥१॥ अन्तसूरु व्व सूरिजिणवलहो य नाओ जए जुगप्पवरो। जिणदत्तगणहरपयं तप्पयपणयाण होइ फुडं ॥२७॥ ॥ इति विश्रुतश्रुतस्तवः समाप्तः ॥ॐ॥ (३२) श्रावकआवश्यकसूत्र पत्र ११३-१२२ । भा. प्रा. । पत्र १२२ मां-॥ संवत् ११९२ भाद्रपद वदि १. (३३) आलोयणाविधिप्रकरण पत्र १२२-१२३ । भा. प्रा.। क. अभयदेवसूरि। गा. २५ । आदि __ आलोयणा उ विहिणा चउछक्कन्ना य संजमजुयाणं । जाणतएण देया विसुद्धभावेण निस्सल्ला ॥१॥ अन्तइय वरनवंगविवरणकारयसिरिअभयदेवसूरीहि । भव्वाणुग्गहणकए कयमिणमालोयणविहाणं ॥२५॥ ॥ आलोअणाविधिप्रकरणं समाप्तम् ॥ (३४) नमिऊणस्तोत्र पत्र १२४-१२५ । भा. प्रा. । गा. २१ । (३५) पार्श्वनाथस्तोत्र पत्र १२५-१२६ । भा. प्रा.। क. जिनचन्द्रसूरि। गा. ११ । आदि-भवगत्तंतोनिवडतसत्तहत्थावलंबदाणपर । (३६) गुरुपारतंत्र्यकुलक पत्र १२६-१२७ । भा. प्रा. । गा. २१ । ले. सं. १११५ । ॥ संवत् १११५ वर्षे ॥ नोंध-आ १११५ संवत् नवो लखेलो होवाथी बनावटी छे। आ कल्पित संवत् लखनारना ध्यानमा ए हकीकत नथी आवी के प्रतिनो साचो लेखनसंवत् प्रतिना १२२ मा पानामां ११९२ उल्लिखित छे। (३७) गुरुपरिवाडी पत्र ४ । भा. अप.। क. पल्हकवि । कडी १० । आदि जिण दिट्टई आणंदु चडइ अइरहसु चउग्गुणु । जिण दिइ झडहडइ पाउ तणु निम्मल हुइ पुणु ।। जिण दिइ सुहु होइ कठ्ठ पुव्वुक्किउ नासइ । जिण दिइ हुइ रिद्धि दूरि दारिदु णासइ । जिण दिइ हुइ सुइ धम्ममइ अबुहहु काइ उइक्खहु । पहु नवफणि मंडिउ पासजिणु अजयमेरि कि न पिक्खहु ॥१॥ अन्तवक्खाणियइ त परमतत्तु जिण पाउ पणासइ । आराहियइ त वीरनाहु कइ पल्हु पयासइ । धम्मु त दयसंजुत्तु जेण वर गइ पाविज्जइ । चाउ त अणखंडियउ जु वंहिणु सलहिज्जा । जइ ठाउ त उत्तिमु मुणिवरह वि पवरवसहिहो चउरनर । तिम सुगुरुसिरोमणि सूरिवर खरतर सिरिजिणदत्तवर ॥१०॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. १५७ ॥ इति श्रीपट्टावली ॥ संवत् ११७१ वर्षे पत्तनमहानगरे श्रीजयसिंहदेवविजयराज्ये । श्रीखरतरगच्छे । योगीन्द्रयुगप्रधान वसतिवासिनां श्रीजिनदत्तसूरीणां शिष्येण ब्रह्मचन्द्रगणिना लिखिता ॥ ॐ ॥ शुभं भवतु ॥ ॐ ॥ श्रीमत्पार्श्वनाथाय नमः ॥ सिद्धिरस्तु ॥ ५८ नोंध - आ गुरुपरिवाडीमां मूळ चोथा पानाने बदलीने नवुं चोथुं पानुं उमेरेलं होई गुरुपरिवाडीनो आ ११७१ लेखन संवत् विश्वासपात्र नथी । (३८) अजितशान्तिस्तोत्र पत्र ५-१० । भा. प्रा. क. नंदिषेण । गा. ३९ । (३९) चतु विंशतितीर्थकर स्तुतिचतुर्विंशतिका पत्र ६ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. ९६ । आदि मरुदेविनाभितणयं वसहकं पंचधणुसयपमाणं । सव्वचुयं पणमह उत्तरसाढाहि उसभजिणं ॥१॥ अन्त (४०) आत्मानुशासन पत्र १-४ । भा. प्रा. क. जिनेश्वराचार्य । गा. ४० । आदि - ९० ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ लक्षूण माणुसत्तं कहिंचि अइदुलहं पि रे जीव । धी धी अणज तुज्झं अज्ज वि विसएस जं घुलसि ॥१॥ गयवाहणो गयगई कुवलयकालो वि न कुवलयकालो । कयनयरक्खो जक्खो धणओ लहु होउ सुहधणओ ॥४॥२४॥ ॥ छ ॥ समत्ताओ चउव्वीसतित्थयरथुईओ ॥ छ ॥ कृतिर्जिनवल्लभगणेः ॥ छ ॥ अन्त इय सूरिजिणेसर अप्पसासणं पढइ निच जो सम्मं । सो संसारमहण्णवपारं खिष्पं समलियइ ॥४०॥ छ ॥ (४१) उपदेशमालाप्रकरण पत्र ४-३४ । भा. प्रा. क. धर्मदासगणि । गा. ५४१ । क्रमाङ्क १५७ प्रकरणपोथी पत्र २६१ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १३१० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५।। ५२१. क. धर्मदासगणि । गा. ५४३। (१) उपदेशमालाप्रकरण पत्र १-४७ । भा. प्रा. (२) बृहत्संग्रहणीप्रकरण पत्र ४८ - १०२ । भा. प्रा. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. ५२४ । (३) योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १०२ - १५० । भा. सं. । क. आचार्य हेमचंद्र | (४) पुष्पमालाप्रकरण पत्र १५० - २०६ । भा. प्रा. क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि । गा. ५०५ । (५) हितोपदेशामृतप्रकरण पत्र २०७ - २६१ । भा. प्रा. । क. प्रभानन्दसूरि । गा. ५२५ । आदि - ५० ॥ नमः परमात्मने ॥ नमिरसुरासुरसिरल्हसिरसरसमंदारकुसुमरेणूर्हि । निम्मज्जियपयनहृदप्पणे जिणे पणमिमो सिरसा ॥१॥ अन्त सिरिअभयदेवमुणिवइविणेयसिरिदेवभद्दसूरीण । अनिउणमईहिं सीसेहिं सिरिपभाणंदसूरीहिं ॥ ५२१ ॥ उवजीविऊण जिणमयमहत्थसत्थत्थसारलवे । सपरेसि हिउवएसो हिओवएसो विणिम्मविओ ॥५२२ ॥ निसुणंतपढंतगुणंतयाण कल्लाणकारणं एसा । गाहाणं संखाए पंच सया पंचवीसहिया ॥५२५ ॥ ॥छ ।। इति हितोपदेशप्रकरणं समाप्तमिति । भद्रम् ॥छ || Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ॥५०॥ ऊकेशान्वयमंडनं समभवन्माणिक्यनामा पुरा साधुः स्वर्गधुनीप्रवाहविमलास्तस्यात्मजास्तु त्रयः । आद्यो बिल्हण इत्यनिंद्यचरितः साधुस्ततो रुल्हणस्तार्तीयः पुनरस्ति साल्हण इति स्यूताः पुमर्था इव ॥१॥ अस्ति रुल्हणसाधोश्च नन्दनश्चन्दनाभिधः। स सुधीः पुस्तिकामेनां स्वश्रेयोर्थमलीलिखत् ॥२॥ ॥ संवत् १३१० वर्षे मार्गपूर्णिमायामोह महाराजाधिराजश्रीविश्वलदेवकल्याणविजयराज्ये। तत्पादपद्मोपजीविनि महामात्यश्रीनागडप्रभृतिपंचकुलप्रतिपत्तौ एवंकाले प्रवर्त्तमाने प्रकरणपुस्तिकेयं साधुचंदनेन लि[ले]खिता ॥ लिखिता च उ० सांगाकेनेति भद्रम् ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ।॥छ। क्रमाङ्क १५८ प्रकरणपोथी पत्र २०४ । भा. प्रा. सं। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४१॥ (१) उपदेशमालाप्रकरण टिप्पणीसह पत्र १-४३ । भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि। गा. ५४१ । पत्र १ तथा २ मां चित्र छ। (२) योगशास्त्रआद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र ४४-७५ । भा. सं.। क. हेमचन्द्राचार्य । (३) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र ७५-८६ । भा. प्रा. । क. आसड। गा. १४४ । र. सं. १२४८ । (४) धर्मोपदेशमालाप्रकरण पत्र ८६-९४ । भा. प्रा.। गा. १०३। (५) षट्स्थानकप्रकरण पत्र ९४-१०८ । भा. प्रा.। क. प्रद्युम्नसूरि। ग्रं. २२० । (६) जंबूद्वीपक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र १०९-११६ । भा. प्रा. । गा. ८६ । (७) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र पत्र ११६-१२० । भा. प्रा.। गा. ६१ । (८) पंचसूत्रसत्क प्रथमसूत्र पत्र १२०-१२३ । भा. प्रा.। (९) गौतमपृच्छा पत्र १२३-१२७ । भा. प्रा. । गा. ५३ । (१०) थेरावली (नंदीसूत्रान्तर्गता) पत्र १२७-१३१ । भा. प्रा. । क. देववाचक । गा. ५० । (११) अजितशांतिस्तोत्र पत्र १३१-१३६ । भा. प्रा. । क. नंदिषेण । गा. ४० । (१२) प्रश्नोत्तररत्नमाला पत्र १३६-१३८ । भा. सं. । क. विमलाचार्य । आ. २८ । (१३) धर्मलक्षण पत्र १३८-१३९ । भा.सं.। (१४) उपदेशमालाप्रकरण-पुष्पमालाप्रकरण पत्र १४०-१८०। भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि। गा. ५०५ । (१५) आत्मानुशासन पत्र १८.--१८७ । भा. सं. । क. पार्श्वनाग। आ. ७७ । र.सं. १०४२ । (१६) उपदेशकंदली पत्र १८७-१९८ । भा. प्रा.। क. आसड । गा. १२४ ।। (१७) भक्तामरस्तोत्र पत्र १९८-२०३ । भा. सं. । क. मानतुंगसूरि । का. ४४ । (१८) नवकारसारस्तव पत्र २०३-२०४ । भा. प्रा. । क. मानतुंगसूरि। गा. ३१ । आदि भत्तिभरअमरपणयं पणमिय परमेट्ठिपंचयं सिरसा । नवकारसारथवर्ण भणामि भव्वाण भयहरणं ॥१॥ अन्तपंचनवकारतत्तं लेसेण य संसिय अणुहवेण । सिरिमाणतुंगमाहि......लं सिवसुहं देउ ॥२८॥ ता किमिह बहुविहेहि पुत्थयभारेहिं पढिएहिं ॥३१॥छ। __ क्रमाङ्क १५९ प्रकरणपुस्तिका पत्र १६७ । भा. प्रा. । ले. सं. १३४५। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । ले. प. १२४२ । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. १६०(१) उपदेशमालाप्रकरण पत्र १-६९ । भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । गा. ५४४ । शमालाप्रकरण पत्र ६९-८२ । भा. प्रा.। क. जयसिंहसूरि । गा. १०३ । (३) षट्स्थानप्रकरण पत्र ८२-१०८। भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. १९१ । (४) मूलशुद्धिप्रकरण पत्र १०८-१११। भा. प्रा. । गा. २२ ।। (५) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र (वंदित्तासूत्र) पत्र १११-११७ । भा. प्रा.। गा. ५० । (६) प्रव्रज्याविधानप्रकरण पत्र ११८-१२० । भा. प्रा.। गा. २४ । (७) पंचसूत्रसत्क पापप्रतिघातगुणबीजाधाननामक प्रथम सूत्र पत्र १२०-१२५ । भा. प्रा.। (a) संक्षिप्त आराधना पत्र १२५-१३० । भा. प्रा.। गा. ३५ । (९) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र १३१-१३४ । भा. प्रा. । गा. २७ । (१०) भावनाकुलक पत्र १३४-१३७ । भा. प्रा. । का. २२ ।। (११) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र १३८-१५८ । भा. प्रा. । क. आसड। गा. १४४। र. सं. १२४८ । (१२) अजितशांतिस्तोत्र पत्र १५८-१६७ । भा. प्रा.। क. नंदिषेण । छं. ४० । पत्र १ मां पार्श्वनाथर्नु, पत्र २ मां समवसरणनु, पत्र १६६ मां अजित-शांतिजिननुं अने पत्र १६७ मां जिनमंदिरचं चित्र छे । आ चित्रोमां सोनेरी रंगनो उपयोग करवामां आव्यो छे । संवत् १३४५ वर्षे आषाढ बदि ९ भौमे पंडि० सादेवेन पुस्तिका लेखि० ॥ __ क्रमाङ्क १६० प्रकरणपुस्तिका पत्र १६१ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२. (१) कर्मस्तव-प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ पत्र १-५ । भा. प्रा. । गा. ५७ । (२) कर्मविपाक-प्राचीन प्रथम कर्मग्रंथ पत्र ५-१८ । भा. प्रा.। क. गर्गर्षि । गा. १६६ । ३) शतक-प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ पत्र १८-२५ । भा. प्रा.। क. शिवशर्मसूरि । गा. १०७ । (४) सित्तरी-षष्ठ कर्मग्रंथ पत्र २५-३१ । भा. प्रा. । गा. ९१।। क्षेत्रसमासप्रकरण पत्र ३१-३६ । भा. प्रा.। गा. ९० । (६) प्रवचनसंदोह पत्र ३६-५४ । भा. प्रा. । (७) श्रावकप्रशप्तिप्रकरण पत्र ५५-८० । भा. प्रा.। क. उमास्वाति वाचक । गा. ४०१ । (८) पंचाणुवतप्रकरण पत्र ८१-१०१ । भा. प्रा.। गा. २०९ । आदि ।ॐ नमो वीतरागाय । णमिऊण णाणदंसणचरित्तसंमत्तसत्तसंजुत्ते । छच्छच्चसिरिवच्छधारए छच्च जिणयंदे ॥१॥ किचि किर वायगं अचिरसावगो धम्मसत्थमइकुसलो। सिक्खेजऽणु व्वयाई पडिपुच्छइ आणुपुवीए ॥२॥ अइ मे सावगधम्मो उवलद्धो जइ य मे अणुवरोहो। बारसविहं अणूणं गिहिधम्म इच्छिमो णाउं ॥३॥ एवपडिपुच्छिओ सावगेण सो वायगो इणमुदासी। सावग! सावगधम्म वण्णे हं ते समासेणं ॥४॥ अन्तएयं अणथमियभोयणं च जो कुणइ भत्तिसंजुत्तो। सो विगयरागदासो बच्चइ अयरामरं हाणं ॥२०॥ ॥ पंचाणुव्रतं समाप्तमिति ॥छ॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १६४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (९) स्थविरावली (नंदीसूत्रगत) पत्र १०१-१०५ । भा. प्रा.। क. देववाचक। गा. ५० । (१०) नवपदप्रकरण पत्र १०५-११३ । भा. प्रा.। क. उपकेशगच्छीय जिनचंद्रसूरि । गा. १३८ । (११) आराधनाप्रकरण पत्र ११३-१२४ । भा. प्रा.। क. अभयदेवसूरि । गा. १५९ । (१२) उपदेशमालाप्रकरण पत्र १२४-१६१ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि । गा. ५४० । क्रमाङ्क १६१ (१) प्रवचनसारोद्धार पत्र ९४ । भा. प्रा. । क. नेमिचंद्रसूरि। गा. २००० । (२) श्रावकधर्मप्रकरण पत्र २५ । भा. सं. । क. जिनेश्वरसूरि । ग्रं. २५०। र. सं. १३१३ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १४४२१. आदि॥५०॥ अर्हम् ॥ नमः सरस्वत्यै ॥ मेजुर्यस्यांह्रियुग्मं पथि मथितरिपोर्जातरूपस्य यातः प्रोत्फुल्लान्यंबुजानि प्रमदपुलकितैर्निरैर्निर्मितानि । लक्ष्मांभोजन्मलक्ष्मीमिव कुतुकवशात् प्रेक्षितुं कांतकांतिः शांतिः क्लांतिप्रशांतिप्रवितरणचणः प्राणिजातं स पायात् ॥१॥ अन्तविक्रमवर्षे शिखिशशिशिखिशशिसंख्ये प्रभावतः शशिनः । श्रीप्रहादनपुरमनु विजयदशम्यां धनिष्ठामे ॥२४१॥ श्रावकधर्मप्रकरणमुपकारकर विशेषतो गृहिणां । परिपूर्णीकृतमनघं भवतु मुदे सकलसंघस्य ॥२४२॥ यावन्नंदीश्वरद्वीपनिष्प्रतीपजिनवजः । तावत् प्रकरणं नंद्यादानंद्यात् संघमानसं ॥२४५॥ ॥छ॥ शुभं भवतु श्रीश्रमणसंघस्य ॥छ॥ क्रमाङ्क १६२ (१) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण-सार्द्धशतकप्रकरण पत्र १-१५। भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. १५३ । ॥ इति टप्पत्तकुवादिमत्तमहामातंगभंजनसज्जकण्ठीरवकलशसदृशश्रीजिनवल्लभमहापंडितकृतिः ॥छ॥ (२) सूक्ष्मार्थविचारसारचूर्णि पत्र १-६७ । भा प्रा.। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । (३) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-षडशीति चतुर्थ कर्मग्रंथ पत्र ८। भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. ९३। (४) जंबूद्वीपक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र ८-१५ । भा. प्रा.। गा. ९० । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । ल. प. १३॥४२. क्रमाङ्क १६३ उपदेशपदप्रकरण पत्र ११२ । भा, प्रा. । क. हरिभद्रसूरि । गा. १०४०। ले. सं. ११७८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १३॥x१m. अन्त- ॥संवत् ११७८ वर्षे ॥ क्रमाङ्क १६४ पंचवस्तुकप्रकरण पत्र १५२ । भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि । गा. १७१०। ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १३४१॥.। पत्र १३६, १३७, १४६ नधी [अन्त-श्रीब्रह्माणगच्छे पं. अभयकुमारस्य पंचवस्तुकपु.] Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्रमाङ्क १६५ उपदेशमालाप्रकरण पत्र ११३। भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । गा. ५४० । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२॥.। पत्र १-३, ८, ९, ११, १७, ४३ नथी । क्रमाङ्क १६६ उपदेशपदप्रकरण पत्र १०९। भा. प्रा. । क. हरिभद्रसूरि । गा. १०४० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. ११॥४२. पत्र १०८ तथा १०९ मां चक्र अने चोकडीनां शोभनो छ । क्रमाङ्क १६७ प्रवचनसारोद्धार पत्र १२७ । भा. प्रा.। क. नेमिचंद्रसूरि। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥x२।। पत्र ८३, १०० नथी । क्रमाङ्क १६८ उपदेशपदप्रकरण पत्र ११३ । भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि। गा. १०४३ । ले. सं. १३५४ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२. अन्त-- संवत् १३५४ वर्षे का० १४ बुधेऽद्येह श्रीपत्तने गूर्जरज्ञातीय श्रावक महं० देवाउ ठ. मालदेवेन श्रीखरतरगच्छे स्वगुरुप्रभुश्रीजिनचन्द्रसूरिपादानां तपस्विनां पठनाय धर्मोपदेशशास्त्रपुस्तिका पादौ प्रणम्य विधिना समर्पिता इति ॥ क्रमाङ्क १६९ कर्मप्रकृतिचूर्णी पत्र ३०६ । भा. प्रा.। ले. सं. १२२२ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १४॥४२॥.। अंत्य पत्रमा शोभन छ। अन्त- ॥ संवत् १२२२.........(पुष्पिकाने भूसी नाखवामां आवी छे.) क्रमाङ्क १७० कर्मप्रकृतिचूर्णी पत्र १०४ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं प. १५॥४२॥ क्रमाङ्क १७१ प्रकरणपुस्तिका पत्र १८+१७+४+४+२=४५ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. ११६९। संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२। (१) जीवोपदेशपंचाशिका पत्र १-३ । भा. सं । का. ५० । ) उपदेशकुलक पत्र ३-५ । भा. प्रा.। गा. २५।। (३) हितोपदेशकुलक पत्र ५-६ । भा. प्रा.। गा. २५ । पत्र ६-७ । भा. प्रा.। गा. २५ । ५) पंचपरमेष्ठिस्तव पत्र ७-९ । भा. प्रा.। गा. ३७ । (६) नवतत्त्वप्रकरणभाष्य पत्र ९-१७ । भा. प्रा.। क. अभयदेवसूरि । गा. १५१। (७) प्रकीर्णकगाथाव्याख्या पत्र १८ मुं। पत्र १७ मुं नथी। अंत्य पत्रमा शोभन छ । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १७६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (८) हरिवंशपुराणगत उद्देशद्वय पत्र १७ । भा. अप. । (९) संजमाख्यानक पत्र ४ । भा. प्रा. । (१०) पश्नोत्तररत्नमालिका पत्र १५ मुं। भा. सं.। क. विमलाचार्य। आ. २८ ।। (११) नेमिनाथस्तोत्र पत्र १५-१८ । भा. सं.। क. विजयसिंहाचार्य। का. २३ । ले. सं. ११६९। पत्र १७ मुं नथी। आदि- नेमिः समाहितधियां यदि दैवयोगाञ्चित्ते. अन्त- दुरितविजयसिंघः स्तोतु नेमिः शिवाय ॥२३॥ ॥कृतिरिय श्रीविजयसिंहाचार्याणां ॥ मंगलं महाश्रीः॥ संवत् ११६९ द्वि. श्रावण सुदि १ शुक्रे ॥ चंडप्रसादे ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ (१२) पद्मावतीस्तोत्र पत्र १। भा. अप. । आदि- नमिरनरामरेद्रविद्याधरकुसुमसमूहअंचिय । (१३) सरस्वतीस्तोत्र पत्र १-२ । भा. अप. । नमो सरयससिसरिससंपुण्णवयणे । नमो विमलवरकमलदलदीहनयणे ॥ क्रमाङ्क १७२ प्रशमरतिप्रकरण सटीक अपूर्ण पत्र २०१। भा. सं.। क. उमास्वाति वाचक। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ -। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२१.। २४५ आर्या पर्यन्त छ। क्रमाङ्क १७३ । कर्मप्रकृति वृत्तिसह अपूर्ण पत्र २२६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. शिवशर्मसूरि। वृ. क. मलयगिरिसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२।.। पत्र १, २, ४-११, २२, २३, २७, २९, ३२, ३५, १२१, १६४, १६७, १७२, १७४, १७५, २२२ नथी. क्रमाङ्क १७४ पंचसंग्रह सटीक प्रथमखंड पत्र ४३२ । भा. सं. । मू. क. चन्द्रर्षि महत्तर । टी. क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २२॥४२॥.।। पत्र १, ३४, ३८, ३९, ४५, ७०, १९९, २०० नथी । अंक विनानां २ पत्र वधारानां छे। क्रमाङ्क १७५ कर्मविपाक-प्राचीन प्रथमकर्मग्रंथ विवरण सहित पत्र ७१ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १२२१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२॥. अन्त चेति गाथार्थः ॥छ॥छ॥ कर्मविपाकविवरणं समाप्तमिति ॥ मंगलं महाश्रीः॥ शिवमस्तु सर्वजगतः ॥छ॥छ॥ छ॥ संवत् १२२१ वर्षे माघ सुदि ६ भौमे ॥छ॥छ। क्रमाङ्क १७६ (१) कर्मविपाक-प्राचीन प्रथम कर्मग्रंथ वृत्ति पत्र ४३ । भा. सं.। (२) कर्मस्तव-प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ वृत्ति पत्र १-५२ । भा. सं. । क. गोविंदगणि ।। (३) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणवृत्ति-प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ वृत्ति पत्र ४३ । भा. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. १७७सं.। क. हरिभद्रसूरि बृहद्गच्छीय । र. सं. ११७२ । ग्रं. ८५० । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १४॥४२॥ क्रमाङ्क १७७ (१) कर्मस्तव-प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ वृत्ति पत्र १०६ । भा. सं.। क. गोविंदगणि । ग्रं.१०९०। (२) कर्मविपाक-प्राचीन प्रथम कर्मग्रंथवृत्ति पत्र १११। भा. सं । ले. सं. १२९५। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२. अन्त कालादेवेति गाथार्थः ॥छ॥ कासद्रहीयगच्छे वंशे विद्याधरे समुत्पन्नः । सद्गुणविग्रहयुक्तः सूरिः श्रीसुमतिविख्यातः ॥ तस्यास्ति पादसेवी सुसाधुजनसेवितो विनीतश्च । धीमान् [सु]बुद्धियुक्तः सवृत्तः पंडितो वीरः ॥ कर्मक्षयस्य हेतोः तस्याज(3) धीमता विनीतेन। मदनागश्रावकेणैषा लिखिता चारुपुस्तिका ॥छ । संवत् १२९५ वर्षे अद्येह श्रीमन्नलके। समस्तराजावलीविराजितमहाराजाधिराजश्रीमज्जयतुग्निदेवकल्याणविजयराज्ये महाप्रधान पंच०श्रीधर्मदेवे सर्वमुद्राव्यापारान् परिपंथयतीत्येवं काले प्रवर्त्तमाने। श्रीउपकेशवंशीय सा. आसापुत्रेण श्रीचित्रकूटवास्तव्येन चारित्रिचूडामणिश्रीजिनवल्लभसूरिसन्तानीयश्रीजिनेश्वरसूरिपदपंकजे मधुकरेण श्रीशत्रुञ्जयोज्जयन्तादिमहातीर्थसार्थयात्राकारणसफलीकृतसंघमनोरथेन सुगुरूपदेशश्रवणसजातश्रद्धातिरेकप्रारब्धसिद्धान्तादिसमस्तजैनशास्त्रोद्धारोपक्रमेण संघ० सा० राल्हाकेन भ्रातृदेदासहितेन कर्मस्तव-कर्मविपाक लेखिता ॥ पं. धरणीधरशालायां पं० चाहडेन । मङ्गलं महाश्री ॥ छ ॥ छ ॥छ । क्रमाङ्क १७८ (१) बंधस्वामित्वप्रकरण-प्राचीन तृतीय कर्मग्रंथ वृत्ति पत्र ४-५० । भा सं.। क. हरिभद्राचार्य बृहद्गच्छीय। ग्रं. ५६० । र. सं. ११७२। ले.सं. ११७२। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १३॥४१॥ अन्त इति बंधस्वामित्वप्रकरणवृत्तिः समाप्ता ॥ॐ॥ संवत् ११७२ ॥छ । (२) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण वृत्तिसह पत्र १-७८ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनवल्लभगणि। वृ. क. हरिभद्राचार्य बृहद्गच्छीय। ग्रं. ८५० । र. सं. ११७२ । ले. सं. ११७२ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३१४१॥ संवत् ११७२ ॥छ । मंगलं महाश्रीः ॥छ । ग्रंथाग्रं ८५० ॥अभयकुमारस्य । ___ क्रमाङ्क १७९ (१) कर्मस्तव-प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ वृत्ति पत्र १-५६। भा. सं.। क. गोविंदगणि । ग्रं. १०९। (२) शतक-प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ चूर्णी पत्र ५७-१७५ । भा. प्रा.। ले. सं. ११७५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२.। अंत्य पत्रमा शोभन छ। अन्त ॥शतकचूर्णिः समाप्ता इति ॥ संवत् ११७५ कार्तिक वदि ५ रवौ ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क १८० शतक- प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ चूर्णी पत्र १४७ । भा. प्रा. ग्रं. २२०० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३ ॥ ४२ ॥ क्र. १८६ ] क्रमाङ्क १८१ शतक - प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ चूर्णी पत्र १७३ । भा. प्रा. । ले. सं. ११९६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२ ।४२. पत्र ८३-८७, ९३-९८, १००-१०४, १२०-१२३ नथी । अन्त--- ॥ शतकचूर्णिः समाप्ता ।। संवत् ११९६ श्रावण वदि २ गुरौ लिखितं पारि देवराजेन ॥ छ ॥ ६५ क्रमाङ्क १८२ शतक - प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ सटीक त्रूटक अपूर्ण पत्र २४४ । भा. प्रा. सं । मू. क. शिवशर्मसूरि । वृ. क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि । ले सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ | लं. प. १४४२. । आ प्रतिमां अद्ध अर्द्ध पानां नथी । क्रमाङ्क १८३ शतक - प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ वृत्ति सहित पत्र २९१ । भा. प्रा. सं. । मू. क. शिवशर्मसूरि । वृ. क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि । ले. सँ. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४ ॥ ४२. अन्ते नव्यलिखिता पुष्पिका सं० १४२३ वर्षे सा० मेहा सुश्रावकपुत्र सा० उदयसिंहेन पुत्र सा० लूणावयराभ्यां युतेन स्वपुत्रिकायायांपूश्राविकायाः पुण्यार्थ शतकवृत्तिपुस्तिका मूल्येन गृहीता । निजखरतरगुरुश्रीजिनोदयसूरीणां प्रादायि ॥ शुभं भवतु ॥ क्रमाङ्क ९८४ शतक-प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ वृत्ति अपूर्ण पत्र १८४ । भा. सं. । क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि । . सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७ । × २ । आ पत्र १, ३, ५, ८१, ९५-१०३, १०८, ११०, ११२, १२९, १३१, १३४, १३८, १४७ - १४८, १५०–५३, १५७-१६०, १६३, १६४, १७६, १८२, १८३ नथी । पत्रांक कपाएल १४ पानां छे । प्रतिमां घणां पानाना टुकडा थइ गया छे । क्रमाङ्क १९८५ शतक- प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ वृत्ति सहित पत्र २३९ । भा. प्रा. सं । मू. क. शिवशर्मसूरि । वृ. क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५ । × २ । क्रमाङ्क १८६ सार्द्धशतकप्रकरण- सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणवृत्ति सह पत्र २४६ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनवलभगणि । वृ. क. चक्रेश्वरसूरि । र. सं. ११७१ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ | संह. श्रेष्ठ । द.. श्रेष्ठ । लं. प. १६x२ । प्रथम पत्रमां तथा अंत्य पत्रमां सरस्वती, भगवान् तथा श्रावक श्राविकानां चार चार मळीने कुल आठ अतिसुंदरतम चित्रो छे । Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. १८७क्रमाङ्क १८७ शतक-नव्य पंचम कर्मग्रंथ स्वोपक्षवृत्तिसह पत्र १२८ । भा. प्रा. सं. । क. देवेन्द्रसूरि स्वोपन । ग्रं. ४३४० । ले. सं. १३५४ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १८॥४२॥ अन्त-॥छ॥ सं १३५४ वर्षे कार्तिक वदि ८ भौमे ठ. सलषाकेन श्रेयसे लिखापितमिति ॥छ॥ॐ॥ क्रमाङ्क १८८ ___आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ सटीक त्रूटक पत्र ७४ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनवल्लभगणि। वृ. क. हरिभद्रसूरि । र. सं. ११७२ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥ १॥। आ प्रतिमां चोथा भाग जैटलां ज पानां छे । क्रमाङ्क १८९ सप्ततिका-षष्ठ कर्मग्रंथ टिप्पनक गाथाबद्ध पत्र ५६ । भा. प्रा.। क. रामदेवगणि। ले. सं. १२११। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४२ आदि सुगइगमसरलसरणिं वीरं नमिऊण मोहतमतरणिं । सत्तरिए टिप्पेमी किंची चुन्नी उ अणुसरि ॥ अन्त इय एउ सुमरणत्थं टिप्पणमिस पि कि पि उद्धरियं । लक्खणछंदवियारो न य कायव्वो य को वि इहं ॥ इत्थ य सुत्तविवन्नं मइमोहा कि पि उद्धरिय होजा। सोहिंतु जाणमाणा मज्झ य मिच्छुक्कडं होउ ॥ कृतिरिय श्रीरामदेवगणेः ॥ संवत् १२११ अश्विन वदि १ बुधदिने पूर्वभद्रपदनाम्नि मूलयोगे पं. माणिभद्रशिष्येण यशोवीरेण पठनार्थ कर्मक्षयार्थ च लिखितं ॥छ। क्रमाङ्क १९० .. पंचसंग्रह त्रूटक अपूर्ण पत्र १३२ । भा. प्रा.। क. चंद्रर्षि महत्तर । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ८॥x २।। पत्र १थी ३, ६थी १०, १२, १४, १६, २०, २६, २७, २९, ३२, ३४, ३५, ४९, ४४, ४८, ५५, ५७, ५८, ६४, ६५, ६८, ६९, ७१थी ७८,८०, ८१, ८३, ९७थी९९, ११८, १२२, १२४, १२५, १२९, १३० नथी। क्रमाङ्क १९१ प्रकरणपुस्तिका पत्र ६८+१४+२+२=८६ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ८४२॥ (१) जीवसमासप्रकरण पत्र. १-१७। भा. प्रा. । गा. २९१ । (२) पुलाकोद्देशसंग्रहणी-पंचनिग्रंथीप्रकरण पत्र १७-२४ । भा. प्रा.। क. अभयदेवरि । गा. १०६। प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणी पत्र २४-३२। भा. प्रा.। क. अभयदेवसूरि। गा. १३३ । (४) श्रापकप्रज्ञप्तिप्रकरण पत्र ३२-५८ । भा. प्रा.। क. उमास्वाति वाचक। गा. ३९६ । नाणाचित्तप्रकरण पत्र ५९-६४। भा. प्रा.। गा. ८१ । . (६) श्रावकविधिप्रकरण पत्र ६४-६६ । भा. प्रा. । गा. २२ । waper Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (७) संजममंजरीप्रकरण पत्र ६६-६८ । भा. प्रा. । गा. ३५ । (८) धर्मपद-धर्मशिक्षाप्रकरण पत्र १ - ११ । भा. सं. । क. जिनवल्लभगणि । का. ४० । आदि क. १९२ ] ॥ ॐ नमो वीतरागाय । त्वा भक्तिनतांगकोऽहमभयं नष्टाभिमानकुधं विज्ञ वर्द्धितशोणिमक्रमनखं वर्ण्य सतामिष्टदम् । विद्याचक्रविभुं जिनेन्द्रमसकृलब्धार्थपादं भवे वंद्यं ज्ञानवतां विमर्थं विशदं धर्म्यं पदं प्रस्तुवे ॥१॥ भक्तिचैत्येषु १ शक्तिस्तपसि २ गुणिजने सक्ति ३ रर्थे विरक्तिः ४ प्रीतिस्तत्त्वे ५ प्रतीतिः शुभगुरुषु ६ भवाद् भीति ७ रुद्धाऽऽत्मनीतिः ८ । क्षान्ति ९ दन्तिः १० स्वशान्तिः ११ सुखति १२ रबलावान्ति १३ र भ्रान्तिराप्ते १४ ज्ञीप्सा १५ दित्सा १६ विधित्सा १७ श्रुतधनविनयेष्वस्तु धीः पुस्तके च १८ ॥३॥ अन्त--- संसारार्णवनौर्विपद्वन्दवः कोपाग्निपाथोनिधिर्मिथ्यावासविसारिवारिदमरुन्मोहान्धकारांशुमान् । तीव्याधिलताशिता सिरखिलांतस्तापसर्पत्सुधासार : पुस्तकलेखनं भुवि नृणां सज्ज्ञानदानार्पणम् ॥३८॥ मिथ्यात्वोदचदौर्वे व्यसनशतमहाश्वापदे शोकशंकाकाद्यावर्त्तगते मृतिजननजरापारविस्तारिवारि । आधिव्याधिप्रबन्धोद्धरतिमिनिकरे घोरसंसारसिंधौ पुंसां पोतायमानं ददति कृतधियः पुस्तकज्ञानदानम् ॥३९॥ शिक्षा भव्यनृणां गणाय मयकाऽनर्थप्रदर्मस्तकं दग्धं वह्निरभाणि येयमनया वर्त्तत यो मत्सरः । नम्यं चक्रभृतां नित्वमपि सल्लब्धाभ्यपादः परं रंताऽसौ शिवसुन्दरीस्तनतटे रुंदे नरः सादरम् ॥४०॥ चक्रम् ॥ ॥ धर्मशिक्षेयम् ॥ छ ॥ (९) सिग्धमवहरउस्तोत्र पत्र ११ – १२ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. १४ । (१०) पार्श्वनाथस्तोत्र पत्र १२ - १४ । भा. सं । क. जिनदत्तसूरि । का. १२ । आदि- तव जिनपते स्तोत्रं कर्तु क्षमोऽस्मि न मंदधी अन्त अवृजिन जिनदत्तोदारनिर्वाणरामा समरससविलासा भूयसी भक्तिरस्तु ॥१२॥ ॥ छ ॥ पार्श्वस्तवनम् ॥ छ ॥ (११) सुभाषितगाथा पत्र २ । भा. प्रा. । गा. १५ । (१२) नेमिनाथस्तोत्र पत्र २ । भा. सं । क. जिनचन्द्रसूरि । ग्रं. १४ । आदि - नरनाकिनभश्वरयोगिनतं । ६७ क्रमाङ्क १९२ बृहत्क्षेत्र समासप्रकरण सटीक पत्र ३४२ ॥ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५॥४२॥ | पत्र २, ५ नथी । भा. प्रा. सं. । मू. क. अन्त संवत् १४८९ वर्षे अश्विनशुदि ३ बुधे अवेह श्रीस्तम्भतीर्थे श्रीखरतरगच्छे भट्टारक श्री श्रीजिनभद्रसूरिविजराज्ये । परी • गुर्जरसुत परी० धरणाकेन क्षेत्रसमासटीकापुस्तकं पुरोहितहरियाकेन लिखितं ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥ अर्हतो मंगलं सिद्धा मंगलं मम साधवः । मंगलं मंगलं धर्मस्तान् मंगलमशिश्रियमिति ॥ १॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. १९३क्रमाङ्क १९३ बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण सटीक टिप्पणीसह पत्र २४९ । भा. प्रा. सं। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। टी. क. मलयगिरिसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२१.। प्रति अतिशुद्ध छ । क्रमाङ्क १९४ बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण सटीक अपूर्ण पत्र २६७ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । टी. क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२ पत्र ३-७, ६१,६२, ७२, ७४, ७५, १२०, १२१, १२३-१४४, १५४, १५७, १५८ नथी । क्रमाङ्क १९५ बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण सटीक पत्र २११ । भा. प्रा. सं। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । वृ.क. र उपकेशगच्छीय। ग्रं. ३०८० । र. सं. ११९२ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२॥.। पत्र ७, ३१, ७५, ७८, ७९, १०५, १२४-१२७, १५० नथी. आदि ॐ नमो वीतरागाय ॥ नत्वा वीरं वक्ष्ये जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणपूज्यः । रचिते क्षेत्रसमासे वृत्तिमहं स्वपरबोधार्थम् ॥१॥ जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणो मङ्गलाभिधेयाथै गाथामाह । क्षेत्रसमासप्रकरणवृत्तिः श्रीमदूकेशीयश्रीसिद्धाचार्यकृता समाप्तेति ॥छ॥छ॥ प्रसिद्ध केशपुरीयगच्छे श्रीकर्कसूरिर्विदुषां वरिष्ठः । साहित्यतर्कागमपारदृश्वा बभूव सल्लक्षणलक्षिताङ्गः ॥१॥ तदीयशिध्योऽजनि सिद्धसूरिः सद्देशनाबोधितभव्यलोकः । निर्लोभतालङ्कृतचित्तवृत्तिः सज्ज्ञानचारित्रदयान्वितश्च ॥२॥ श्रीदेवगुप्तसूरिस्तच्छिष्योऽभूद्विशुद्धचारित्रः । वादिगजकुम्भमेदनपटुतरनखरायुधसमानः ॥३॥ तच्छिष्यसिद्धसूरिः क्षेत्रसमासस्य वृत्तिमयमकरोत् । गुरुभ्रातृयशोदेवोपाध्यायज्ञातशास्त्रार्थः ॥४॥ उत्सूत्रमत्र किञ्चिन्मतिमान्द्याज्ञानतो मयाऽलेखि । निर्व्याजं विद्वद्भिस्तच्छोध्यं मयि विधाय दयाम् ॥५॥ खैः षण्णवत्याकैश्चतुःषष्ट्या द्वात्रिंशताक्षरैः । श्लोकमानेन चैवं त्रिसहस्रा ग्रन्थसङ्ख्याऽत्र ॥६॥ अब्दशतेष्वेकादशसु द्विनवत्याधिकेषु ११९२ विक्रमतः । चैत्रस्य शुक्लपक्षे समर्थिता शुक्लत्रयोदश्याम् ॥७॥ यावज्जैनेश्वरो धर्मः समेरुवर्तते भुवि । भव्यैः पापठयमानोऽयं तावन्नन्दतु पुस्तकः ॥८॥ प्रन्थसख्या ३०८० । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥छ॥ क्रमाङ्क १९६ जंबूद्वीपक्षेत्रसमासवृत्ति पत्र २६ । भा. प्रा. सं.। क. हरिभद्राचार्य । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १५।४२। आदि नत्वा जिनेन्द्रवीरं चतुर्विधातिशयसंयुतं धीरम् । वक्ष्ये सुखावबोधां क्षेत्रसमासस्य वृत्तिमहम् ॥ इहाचार्यो मङ्गलादिप्रतिपादिकां प्रथमगाथामुवाच । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २०२] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अन्त इति क्षेत्रसमासवृत्तिः समाप्ता । विरचिता श्रीहरिभद्राचार्यैरिति ॥छ॥ लघुक्षेत्रसमासम्य वृत्तिरेषा समासतः। रचिता बुधबोधार्थ श्रीहरिभद्रसूरिभिः ॥१॥ पञ्चाशीतिकवर्षे विक्रमतो व्रजति शुक्लपञ्चम्याम् । शुक्रस्य शुक्रचारे शस्ये शस्ये च नक्षत्रे ॥२॥ धात्री धात्रीधरा यावत् यावञ्चन्द्रदिवाकरौ। तावदज्ञानविध्वंसानंद्यादेषा सुवृत्तिका छ॥छ।॥छ॥ क्रमाङ्क १९७ जंबूद्वीपक्षेत्रसमासवृत्ति पत्र ११४ । भा. प्रा. सं.। वृ. क. विजयसिंहसूरि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२. । आ प्रतिमां अर्धा करतां पण ओछां पानां छे तथा प्रशस्ति अपूर्ण छ। क्रमाङ्क १९८ बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र ११९ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । टी. क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१४२|| क्रमाङ्क १९९ बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र २६१ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । टी. क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ५०००। ले. सं. १२९६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२॥. अंतिम पत्रमा शोभन छ । अन्त संवत् १२९६ वर्षे आसोय शुदि ३ गुरावयेह राजावलीसमलंकृतमहाराजाधिराजश्रीमत्भीमदेवकल्याणविजयराज्ये प्रवर्तमाने महामण्डलेश्वरराणकश्रीवीरमदेवराजधानौ विद्युत्पुरस्थितेन श्री......... क्रमाङ्क २०० बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक किंचिदपूर्ण पत्र १५६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। टी. क. शालिभद्रसूरि। ग्रं. २५०० । र. सं. ११३९ । ले. सं. अनु १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५ x २१ क्रमाङ्क २०१ बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र १८९ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । टी. क. शालिभद्रसूरि। ग्रं. २५००। र. सं. ११३९ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२.। अंत्य पत्र जीर्ण छ। क्रमाङ्क २०२ बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र १५० । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण। टी. क. शालिभद्रसूरि । ग्रं. २५०० । र. सं. ११३९ । ले.सं. १२०१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं.प. १४॥४२ आदि नमो वीतरागाय । केवलविमलज्ञानावलोकलोचनसुदृष्टसर्वार्थम् । त्रिदशासुरेन्द्रवन्दितमानम्य जिनं महावीरम् ॥ वक्ष्यामि संग्रहण्या जिनभद्रगणिक्षमाश्रमणपूज्यैः। रचिताया विवृतिमहं गुरूपदेशेन संक्षिप्ताम् ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २०३हरिभद्रसूरिभिरिह व्याख्याताभ्योऽधिकान्यगाथानाम् । दृष्टानां व्याख्यानात् प्रयाससाफल्यमस्माकम् ॥ तत्र चादावेवाचार्यः शिष्टसमयपरिपालनाय विघ्नविनायकोपशमनाय च परममङ्गलभूतमिष्टदेवतानमस्कारं श्रोतृजनप्रवर्तनाङ्गभूतमभिधेयप्रयोजनसम्बन्धत्रयं च प्रतिपिपादयिषुरिदं गाथात्रितयमाह ॥छ॥ अन्त तत् क्षन्तव्यं श्रुतदेवतयेति ॥छ॥ यदनवबोधानुपयोगतः किमपि विवृतमन्यथाऽत्र मया। तच्छोध्यं सूरिवरैः कृताञ्जलिः प्रार्थयेऽहमिति ॥ संग्रहणीविवृतिमिमां कृत्वा यदवापि पुण्यमत्र मया । तेनागमसंग्रहणप्रवणोऽस्तु सदैव भव्यजनः ॥ थारापद्रपुरीयगच्छनलिनीषण्डेकचण्डद्युतिः, सूरिः पण्डितमू मण्डितमणिः श्रीशीलभद्राभिधः । आसीत्तस्य विनेयतामुपगतः श्र पूर्णभद्राहवयस्तेषां शिष्यलवेन मन्दमतिना वृत्तिः कृतेयं स्फुटा ॥१॥ एकादशवर्षशतैर्नवाधिकत्रिंशताऽधिकर्यातैः। विक्रमतोऽरचयदिमा सूरिः श्रीशालिभद्राख्यः ॥२॥ सहस्रद्वितयं सार्द्ध ग्रन्थोऽयं पिण्डितोऽखिलः। द्वात्रिंशदक्षर लोकप्रमाणेन सुनिश्चितम् ॥छ। संग्रहणिवृत्तिः समाप्ता ॥छ। सम्बत् १२०१ माघ वदि १४ भौमे विजयचन्द्रगणिजोग्या लिखितेति ॥ ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ।। क्रमाङ्क २०३ संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र १३०-२५९ । भा. प्रा. सं.। मू क. श्रीचन्द्रसूरि। वृ. क. देवभद्रसूरि। ग्रं. ३५.०। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥xm. आदिनां १२९ पत्र नथी. क्रमाङ्कः २०४ प्रवचनसारोद्धारवृत्ति प्रथमखंड पत्र १९५ । भा. सं.। भू. क. नेमिचंद्रसूरि। वृ. क. सिद्धसेनाचार्य। ले. सं. अनु. १४ शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२ क्रमाङ्क २०५ पिंडविशुद्धिप्रकरण सटीक पत्र १८४ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनवल्लभगणि । टी. क. यशोदेवसूरि । टी. ग्रं. २८०० । र. सं. ११७६ । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२. आदि यदुदितलवयोगाद्देहिनः स्युः कृतार्थास्तमिह शुभनिधानं वर्द्धमानं प्रणम्य । स्वपरजनहितार्थ पिण्डशुद्धविधास्ये जिनपतिमतनीत्या वृत्तिमल्पां सुबोधाम् ॥ तत्र चाहत्प्रणीतसमयसम्पर्कावदातमतिजलधिर्भगवान् जिनवल्लभगणिर्दुःषमाकालदोषादत्यन्तं हीयमानायुर्बुद्धयादीन सम्प्रतिकालसाध्वादीनवलोक्य तदनुग्रहार्थ विस्तरवपिण्डैषणाध्ययनसारमादाय संक्षिप्ततरं पिण्डविशुद्धयाख्य प्रकरणं चिकीर्षुरादावेव विघ्नवातनिरासार्थ शिष्टसमयपरिपालनार्थ च इष्टदेवतास्तुतिरूपमत्यन्ताव्यभिचारि भावमहुलं श्रोतृजनप्रवृत्त्यर्थमभिधेयादि च प्रतिपादयन्निमां गाथामाह ॥छ॥ अन्त चशब्दो बोधनक्रियापेक्षया समुच्चयार्थ इति । शार्दूलच्छन्दोवृत्तार्थ इति ॥१०॥॥ आसीच्चन्द्रकुलोद्गतिः शमनिधिः सौम्याकृतिः सन्मतिः, संलीनः प्रतिवासरं निलयगो वर्षासु सुध्यानधीः । हेमन्ते शिशिरे च शार्वरहिम सोढुं कृतोर्धस्थितिः, भास्वच्चण्डकरे निदाघसमये चाऽऽतापनाकारकः ॥१॥ भादेयतातपस्त्यागव्याख्याकृत्त्वादिसद्गुणैः । लोकोत्तरैर्विशालश्च श्रीमद्वीरगणिप्रभुः ॥२॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २०६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र श्रीचन्द्रसूरिनामा शिष्योऽभूत्तस्य भारतीमधुरः । आनन्दितभव्यजनः शंसितसंशुद्ध सिद्धान्तः ॥३॥ तस्यान्तेवासिना दृब्धा श्रीयशोदेवसूरिणा । सुशिष्यपार्श्वदेवस्य साहाय्यात् प्रस्तुता वृत्तिः ॥४॥ श्रुतोपयोगोऽशुभकर्मनाशनो विपक्षभावप्रतिबन्धसाधनः । परोपकारश्च महाफलावहो विचिन्त्य चैतद्विहितोऽयमुद्यमः ॥५ पिण्डविशुद्धिप्रकरणवृत्तिं कृत्वा यदवाप्तं मया कुशलम् । तेनाऽऽभवमपि भूयाद्भगवद्वचने ममाभ्यासः ॥६॥ श्रुतमनिकषपट्टेः श्रीमन्मुनिचन्द्रसूरिभिः पूज्यैः । संशोधितेयमखिला प्रयत्नतः शेषविबुधैश्च ॥७॥ ग्रन्थानं २८०० ॥ छ ॥ ग्रन्थानं प्रतिवर्णतो गणनया न्यूनं सहस्रत्रयं शतद्वयेनेति । षड्वाजीं बुद्दिमांशुभिः ११७६ परिमिते वर्षे गते विक्रमान्निष्पन्नेयमिति ॥ छ || पश्चाल्लिखिता संवत् १३९४ वर्षे माघ शुदि ११ दिने सा. नयणाश्रावकपुत्रेण श्रीदेवगुर्वाज्ञाचिन्तामणिभूषितमस्तकेन सा. सेल श्रावण मौल्येनादाय श्रीजिनपद्मसूरीणां पिण्डविशुद्धिवृत्तिपुस्तिका प्रत्यलाभि । क्रमाङ्क २०६ प्रवचनसारोद्धार वृत्तिसह पत्र ४३८ । भा. प्रा. सं. । मू. क. नेमिचन्द्रसूरि । वृ. क. सिद्धसेनगणि। ग्रं. १८०००। घृ. र. सं. १२४२ । ले. सं. १२९५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२॥॥. पत्र २ जामां भगवान् महावीरनुं पारिपार्श्विकसहित चित्र छे, पत्र ४३६ मां देवीनुं चित्र छे अने पत्र ४३७ मां आचार्य शिष्यने वाचना आपे छे । आ त्रणेय चित्रो अतिसुंदर छे । ७१ अन्त - श्रीप्रवचनसारोद्धारवृत्तिः समाप्ता ॥ छ ॥ छ ॥ छ ॥ इषुग्रहरविसंख्ये [ १२९५ ] श्रीविक्रमनृपतिवत्सरे पौषे । शुक्लाष्टम्यां गुरुवारे लिखिताऽसौ प्रतापसिंहेन ॥ ॥छ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ छ ॥ छ ॥ शिवमस्तु ॥ छ ॥ श्रियं पुष्णन्तु वः शान्तेः पादांबुरुहरेणवः । कर्मद्रन्मूलने विश्वे मदोन्मत्तकरेणवः ॥१॥ कल्याणैकनिकेतनं सुमनसां वासो गुरुष्वग्रणीः सेव्यः पुण्यजनैः प्रतीतधनदैर्गोत्रेषु जातोन्नतिः । यः सानुग्रहसूरसौम्यकविभिस्तेजस्विभिः सेवितः सोऽयं मेरुरिवास्ति नन्दनवरः प्राग्वाटनामान्वयः ॥ २ ॥ तत्राऽऽसीद् वैरसिंहः सकलजनमनः कल्पनाधिक्यदानाज्जेता कल्पद्रुमस्य प्रतिदिवसमसौ भग्नदारिद्र्यमुद्रः । नीरक्षीरोदताराशशिविशदतरैः पूरिते यद्यशोभिर्लक्ष्यन्ते नैव भावास्त्रिभुवनकुहरे नीलपीतादयस्ते ॥ ३ ॥ तस्य सूनुरनूनश्रीः सीहकोऽभूद्विवेकधीः । स्पर्द्धयेव व्यवर्द्धन्त गुणाः सर्वे परस्परम् ॥४॥ भार्या सुषमता तस्य शस्यशीलव्रताऽभवत् । मण्डनं हि कुलस्त्रीणां शीलमेव विदुर्बुधाः ॥५॥ सिंहशाव इवोर्जस्वी तेजस्वी भानुमानिव । यशस्वी सकले विश्वे जगत्सिंहस्तयोः सुतः ॥६॥ जगत्सिंहस्य जायाsस्ति मायावचविवर्जिता । नागिनी नागवल्लीव प्रसृता पुत्रपत्रकैः ॥ ७ ॥ तथाहि चंडांशुप्रौढतेजाः स जयति सुकृती चण्डसिंहाभिधानो, जीयात् सामंतसिंहो नयविनयकलालंकृतिस्तु द्वितीयः । तार्तीयीकोऽरिसिंहः सकलजनमनोहारि चारित्रपात्रं, पुत्राश्चैते पवित्राः शशिविशदयशोराशिभिर्भासिताशाः ॥८॥ लाका लूणदेवीति तथा शृङ्गारदेविका । धर्मकर्मरताः पुत्र्यस्तयोस्तिस्रः क्रमादिमाः ॥९॥ चण्डसिंहस्य भार्याऽस्ति पद्मलेत्यभिधानतः । प्रतापसिंहस्तत्पुत्रः पुत्री धांधलदेविका ||१०|| आया प्रतापसिंहस्य भार्या पृथिविदेविका । प्रतापदेवीत्यपरा तस्यास्ति प्रथिता पुनः ॥११॥ ख्याता सामंतसिंहस्य पत्नी सहजलाभिधा । तत्पुत्रौ विजयसिंहपूनसिंहाविमौ पुनः ॥१२॥ द्वे इमे च तयोः पुत्र्यौ नाल - माधलदेविके । सर्वज्ञचरणाम्भोज सुरभीकृतमानसे ॥१३॥ इतश्चात्रैव वंशेऽभूद् धनपालः स मन्त्रिराट् । यश्चाऽऽत्मसदृशो मेने श्रीदेवान॒न्दसूरिभिः ॥१४॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २०७पूनाकस्तनयस्तस्य पुत्रिका लीलुकाभिधा । नाम्ना बउलदेवीति पूनाकस्य सधर्मिणी ॥१५॥ पद्मसिंह-भीमसिहौ पुत्रौ तत्कुक्षिजाविमौ । तनया च तयोरस्ति गङ्गानामेति विश्रुता ॥१६॥ अरसिंहस्य सा पाणिगृहीती प्रथिता ततः। सीतादेवी सतीरत्न शीलादिगुणभूषिता ॥१७॥ प्रवाहा इव जाह्नव्याः पुरुषार्था इवाङ्गिनः । तत्कुक्षिसरसीहंसास्त्रयः पुत्रा जयन्त्यमी ॥१८॥ आद्यः कुमरसिंहाख्यो द्वितीयः पेथडाभिधः। सोमसिंहस्तृतीयोऽयं सर्वेऽपि गुणशालिनः ॥१९॥ सूमला वीण्हुका चैव राणिका चांपला तथा । सन्ति पुयश्चतस्रोऽपि विनयादिगुणान्विताः ॥२०॥ प्रिया कुमरसिंहस्य नाम्ना सूहवदेविका । अस्ति नायकदेवीति पेथडस्यापि गेहिनी ॥२१॥ श्रीमन्माणिक्यसूरीणां वचनामृतमन्यदा । सुधीः कुमरसिंहोऽयं शुश्राव श्रावकाप्रणीः ॥२२॥ तीर्थकरा हि प्रययुः शिवपदमुपदिश्य धर्मतत्त्वानि । सम्प्रति तु तदुपदिष्टं पुस्तकगतमेव जागर्ति ॥२३॥ तद् यः खलु लेखयति श्रुतं विशुद्धेन चेतसा मतिमान् । मिथ्यात्वपङ्कमग्नं स एष...............॥२४॥ इत्याकर्ण्य....... ...........। जनकस्यारसिंहस्य स्वश्रेयोवृद्धये सुधीः ॥२५॥ आवश्यकस्य वृत्तिं वृत्ति भवभावनाप्रकरणस्य ।.................... ..............॥२६॥ युग्मम् ।। राजहंसाविमौ यावयोमाभोगसरोवरे। स्वेच्छया क्रीडतस्ताव.. .........॥२७॥छ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ पश्चाल्लिखित संवत् १४८४ वर्षे प्रथमाषाढ सुदि दशमीदिने श्रीस्तंभतीर्थे ठ. विजयसिंहसत्पुत्रेण ठ. बल्लालसुश्रावकेण श्रीप्रवचनसारोद्धारवृत्तिपुस्तकं मूल्येन गृहीतं ।। क्रमाङ्क २०७ चैत्यवंदनभाष्य संघाचारटीकासह पत्र २६१ । भा. प्रा. सं.। मू. क. देवेन्द्रसूरि। टी. क. धर्मघोषसूरि । ग्रं. ७८०८। ले. सं. १३२९ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०॥४२॥. नोध-आ पोथी टीकाकार आचार्य श्रीधर्मघोषसूरिनी पीतानी छ । अन्त ॥छ॥ इति श्री...............रचितायां श्रीसंघाचारटीकायां चैत्यवन्दनाधिकारः प्रथमः समाप्तः ॥छ।। ग्रन्थानं ७८०८ ॥छ॥ संवत् १३२९ वर्षे पौष वदि १२ भौमेऽयेह षयरोडग्रामवास्तव्य गूर्जराभिज्ञवालज्ञातीय ठ० चण्डसुत ठ० लक्ष्मणेन लिखितं ॥ इदं पुस्तकं पु............तिलकश्रीधर्मघोषसूरीणां आचंद्राकै नंदतु । यदक्षरपरिभ्रष्टं मात्राहीनं च यद् भवेत् । क्षतव्यं तद् बुधैः सर्व कस्य न स्खलते मनः ॥१॥ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया। यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥२॥ शुभं भवतु सकलसंघ........ क्रमाङ्क २०८ पंचाशकप्रकरण वृत्ति पत्र २६२ । भा. सं.। वृ. क. अभयदेवाचार्य । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. २५४२. नोंध-सं० १२०७ मां अजयमेरुना भंग पछी फरीथी आ प्रतिने पूर्ण करवामां आवी छे. आ प्रतिमां दरेक पंचाशकनी समाप्तिना सूचन तरीके पत्र ४०, ५५, ७१, ८५, १०२, ११३, १२३, १३३, १४३, १५५, १७२, १८६, २००, २१२, २२५, २३७, २४५, २५५, २६२ मां विविध शोभनो छे। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २१० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र सप्तोत्तरसूर्यशते विक्रमसंवत्सरे त्वजयमेरौ। पालीभने त्रुटितं पुस्तकमिदमग्रहीत् तदनु॥ अलिखत् स्वयमत्र गतं श्रीमज्जिनदत्तसूरिशिष्यलबः । स्थिरचन्द्राख्यो गणिरिह कर्मक्षयहेतुमात्मनः॥ क्रमाङ्क २०९ पंचाशकप्रकरणवृत्ति पत्र. १८१ । भा. सं. । क. अभयदेवाचार्य । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०॥४२॥. पत्र ३७, ४२, ६२, ८४, ८७, ९५, १२०, १२१, १२८, १३०, १३२-१३५, १५४, १५६, १५७, १५९, १६१-१६५, १६८-१७०, १७२, १७३, १४७, १७९, १८० नथी. आसीदसीमगुणगौरवरज्यमाननानाप्रकारनरनाथनमस्कृताहिः । घडेरकीयगुरुगच्छशिरःकिरीटमाटीकमानमहिमा भुधि शान्तिसूरिः ॥ तस्याहिपक्कजरजःकणकीर्णभालो व्यालोकिताखिलविलोलभवस्वभावः । ख्यातः क्षमी जगति जेल्लक इत्यभूत् स वाग्मी वणिग्भणितमुख्यकलासु दक्षः ॥ पत्नी विनीतवनितावलिमौलिरत्नमन्यायजल्पनजडा जिनदेविनाम्नी । तस्याऽभवन्नवनवश्रुतसझहैकलीलाविनोदरसिका वसिकानुकामा ॥ पार्श्वनागो यशोनागो वीरनागस्तथाऽपरः । इति त्रयस्तयोर्जजुः पुत्राः पात्रं परं श्रियाम् ॥ तिष्ठभशेषशमिना धुरि वीरनागनामाऽनुजः सुजनभूषणमेषु मध्ये । लेमे शुचिः सहचरी गुणदेविसंज्ञामज्ञानपातकनिकारकथां यथावत् ॥ धर्मे पथि प्रथितपुण्यमनोविनोदौ तौ दम्पती निपुणपालितशीलसारौ । उच्चख्नतुः स्वजनचेतसि शोकशंकुं प्रद्युम्नशम्बसुतजन्ममहोत्सवेन ॥ तस्याः सदोदितमुदो हृदि दुःखलक्षदावानलोपशमवारिधरोपमानम् । [...] भवत्यवितथं कुपथापहारि सारं सुबोधविबुधाहितमुद्वहन्त्याः ॥ - जज्ञेऽवज्ञासमानः कृतवितनुतिन त्रासहासोऽसमान...र्तेकः काललीलावशत इति ततोऽस्या विशुद्धधियश्च । निश्चित्यातश्च मृत्यु निकटतममयाचिष्ट शिष्टं पति स्वं, श्रेयोऽर्थ जीवशब्दोपपदमिह भवाल्लेखयेत् पुस्तकं मे ॥ ततश्च सुचिरारूढप्रौढधर्मभरः सुधीः। वेहको लेखयामास [श्रीपञ्चाशकपुस्तकम् ॥छ॥ पश्चाल्लिखितनवाशीवृत्तिकारखरतरगुरुश्रीअभयदेवसूरिकृता पञ्चाशकवृत्तिः सम्पूर्णा । चारित्रसिंहगणि लि. ॥ क्रमाङ्क २१० पिंडविशुद्धिप्रकरण सटीक पत्र २०६। भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनवल्लभगणि। टी. क. यशोदेवसूरि । वृ. ग्रं. २८०० । र. सं. ११७६ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२॥ पत्र १, १९, २१-२४, २७, ३५, ४१-४३, ४७, ६०, ६१-६४, ६८, ७३-७६, ७०-८६, ८८-९०, ९३, १०३, १०४, १०८, १११, ११२, ११४, १२४, १२७, १७७, १८१-१८४, १८६-१९२, १९४, १९५, १९७ नथी. अन्त- श्रीप्रभावतीमहत्तरासत्कपुस्तिका ॥ १० . Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2 श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्रमाङ्क २११ पंचाशकप्रकरणलघुवृत्ति अष्टादशपंचाशकपर्यन्त पत्र २६५ । भा. प्रा. । वृ. यशोभद्रसूरि । नं. ३९२५ । ले. सं. ११२१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥॥४२ ।. आदि ....विच्छेदचतुरं वचः ॥ ... .... सर्वातिशयसम्पन्नमनादिनिधनस्फुटम् | जैनं.... स्तुत्यं सरस्वति न .... देवि भूया यस्याः प्रसादवशतो भुवि निर्मलत्वम् । वाचां भवत्यवितथास्फलितप्रबन्धं विद्वद्भिरचितगुणं गुणवद्भिरम्यम् ॥ www. [ क्र. २११ अन्त ॥ छ ॥ साधुप्रतिमा प्रकरणम् ॥ छ ॥ छ ॥ १८ ॥ ग्रंथमानं ३९२४ ॥ छ ॥ कृतिरियं श्रीश्वेतांबराचार्ययशोभद्रस्येति ॥ छ ॥ संवत् ११२१ ज्येष्ठ सुदि ११ बुधदिने जसोधरेण लिखितं ॥ छ ॥ ससहरकुलम्मि विउले आसि ससहरकरसरिसगुणकलिओ । कलिमलकलंकमुक्को सिरिसूरिजिणेसरो नाम ॥१॥ तस्सऽत्थि सीसपवरो सीसो जिणसासणसाहणेक्कतलेसो । जिणचंदसूरिनामो दिणनाहो व्व पसिद्धओ तवसा ॥२॥ अण्णो वि अत्थि पवरो भव्वो भव्वाण बोहणिक्करओ । सिरिअभयदेवसूरी थिरो थेरो इव अत्थि वेयविऊ ॥३॥ तत्तो वि य दधम्मो धम्मरुई धम्मदेसओऽत्थि मुणी । लद्ध्रुवज्झायपओ सीसो सिरिधम्मदेवो ति ॥४॥ अह लाडयमि देसे अस्थि पुरं सुद्धजणवयसमिद्धं । नरवइरयणसमुदं वडउद्दं जिणहरसमिद्धं ||५|| तत्थ य निवसइ सड्ढो सम्मत्तदढो वियड्ढगुणजुत्तो। जीवायपयत्थविऊ घणघण्णसमाउलो विमलचितो ॥६॥ णाऊण मञ्चलोए अणिच्चयं जोव्वणं धणं धणं । अम्मच्चो कयकिच्चो अम्मो णामेण वरसड्ढो ॥७॥ तस्सऽत्थि थिरसहावा भावियभवभावणा विमलचित्ता । संवेयपरा वि तहा अवितवक्का वि वियरया ॥ ८ ॥ जिणपूयकज्जनिरया निरया गुरुसाहुदाणकज्जेसु । धम्मेसु चेव निरया तवसंजमउज्जुया चैव ॥९॥ दाई रूमई सहावकरुणापवन्नचित्ता वि । जिणवयणभावियमई होल्ला णामेण भज्ज त्ति ॥१०॥ वीमंसिऊण तेणं सह णियजायाइ सम्मभावेण । कयणाणदाणराओ जिणधम्मपवन्नओ पवरो ॥११॥ ततो सुअसद्धाए निज्जरहेउ त्ति अ[म्मs] मच्चेण । सिरिधम्मएवउज्झायकारणे कलिय कलिकालं ||१२|| पंचासयाण वित्ती असुभनिवित्तीय भवविरहकित्ती । सुत्तसहिया वि[लिहिया ] विमला वण्णजसकित्ति व्व ॥ १३ ॥ जाव य मेरुस्स सिहा जाव य ससिसूरमंडलपयारो । जाव य गहनक्खत्ता ताव य नंदउ इमं पोत्थं ||१४| सुकयत्थो होइ नरो सुयणाणपयाणओ असंदेहं । लहइ पसंसं लोए ण य आवइभायणं होई ॥१५॥ णाणेण होइ णाया सव्वपयत्थाण मच्चलोयम्मि । णाणेण पूयणिज्जो सलाहणिज्जो वि लद्धजसो ॥१६॥ ाणं विवेयजणयं णाणं सिंवसोक्खकारणं परमं । णाणं जिणवरभणियं णरयगइणिवारणं एकं ॥१७॥ गाणं दितो वि नरो ण पावए अयसपंकयं कह वि । लंघेइ भवपवंचं सुणाणदाणेण अवियारं ॥ १८ ॥ णास फलं विरई विरइभावाओ आसवनिरोहो । आसवनिरोह संवर संवरओ होइ तव विउलो ॥१९॥ तवसो फलं च निज्जर निज्जरओ होइ कम्महाणी वि। कम्माण खये जीवो सिद्धो बुद्धो हवइ निच्चो ॥२०॥ क्रमाङ्क २१२ प्रथमपंचाशकप्रकरण चूर्णि सह अपूर्ण पत्र २१० । भा. प्रा. । चू. क. यशोदेवसूरिं । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५५२१. पत्र ७, ८, १२-१४, १७, १९-२५, २७, ३२, ३६, ४१-४७, ५०, ५३-५५, ५७, ५८, ६२, ६३, ६५, ६७, ६९-७१, ७५–७७, ८०, ८१, ८३, ८४, ८६, ८७, ८९, ९४, ९५, १२४, १२५, १६१, १६६, १९९, २०० नथी Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २१४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क २१३ द्रव्यसंग्रह सटीक प्रथमखंड पत्र ६८। भा. प्रा.। क. नेमिचंद्रसूरि दिगंबर। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥x२. । पत्र १, ७, ८, २२ नथी। क्रमाङ्क २१४ (१) उपदेशपदप्रकरणलघुटीका पत्र १९२ । भा. सं.। टी. क. वर्धमानसूरि। ग्रं. ६५१३ । टी. र.सं. १०५५। ले. सं. १२१२ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४॥४२१. । अंत्य पत्रमा शोभन छे। आदि ॥५०॥ ॐनमः सर्वज्ञाय ॥ वन्दे देवनरेन्द्रवृन्दविनुतं स्वर्गापवर्गास्पदं लोकालोकविसपिकेवलकरप्रश्वस्तदोषोदयम् । भव्यांभोरुहषंडमोहमुकुलध्वंसोष्णरश्मिं जिनं कर्माद्रि द्रुतदारणैककुलिशं श्रीनाभिभूपांगजम् ॥ सिद्धं सर्वज्ञसार्वीयं वीरं नत्वा जिनेश्वरम् । उपदेशपदव्याख्यां प्रत्यात्मस्मृतये यते ॥ हरिभद्रवचोव्याख्यां कः कुर्याद् यो विचक्षणः । स्वशक्तिमविचार्यैव तथाप्यभ्युद्यतोऽत्र यः॥ इहोपदेशपदाख्यप्रकरणमारिप्सुराचार्यः शिष्टसमयानुसरणाय विघ्नविनायकोपशांतये प्रयोजनाद्यभिधानार्थ चेदं गाथायुगलमाह ॥छ। णमिऊण. वोच्छं उव० गाथे॥ तत्राद्यगाथयेष्टदेवतास्तवो वाच्यः, अयं च भावमंगलरूपी वर्त्तते ॥ वोच्छं उवएसपए इत्यादिनाऽमिधेयपदमुक्तम् । येन किन्नाम्नेत्याह । श्रीहरिभद्राचार्याभिधानेन जगद्विश्रुतेन जैनेन्द्रशासनमन्दिरप्रदीपकल्पेन । किमर्थमित्याह । भवः संसारस्तस्य विरहोऽभावस्तमिच्छताऽभिलषता, अन्यत्र किल द्वितीयनाम्ना भवविरहाइवयोऽप्यसौ सूरिरभिधीयत इति ॥छ॥ सिद्धयै संसारभयात् पाविलगणिवचनतः प्रथममेषा । स्नेहादलेखि शीघ्र मुनिना नन्वाम्रदेवेन ॥ कर्मक्षयाय वृत्तियैरेषा वर्णिता यशोविमुखैः । पाविलगणिना तेषां स्तुतिरियमुपवर्णिता भक्त्या ॥ प्रशमविजितकोपविन्यस्तमानैः ऋजुगुणहतमायैस्तोषसन्त्यक्तलोभैः ।। जिनवचनविचारे नित्यमासक्तयोगैः सुविमलगुणरत्यैर्वर्द्धमानव्रतीन्द्रैः ॥ इयमुपदेशपदानां टीका रचिता जनावबोधाय। पञ्चाधिकपञ्चाशयुक्त संवत्सरसहस्र १०५५॥ कृतिरिय जैनागमभावनाभावितान्तःकरणानां श्रीवर्द्धमानसूरिपूज्यपादानामिति ॥२॥ अक्षरघटनामात्रं सम्यगविज्ञाय यत् कृतं धाटात् । गम्भीरपदार्थानामुपदेशानां मया स्मरणहेतोः ।। विद्वद्भिरागमधरैरवधानपरैः परोपकाररतैः । मय्यनुकम्पैकरसैस्तच्छोध्यं मर्षणीयं च ॥छ॥ उपदेशपदटीका समाप्ता ॥छ॥ ग्रन्थानमुद्देशतः सार्धा षट्सहस्री ॥६५१३॥छ।। संवत् १२१२ चैत्र सुदि १३ गुरौ अयेह श्रीअजयमेरुदुर्गे समस्तराजावलीविराजितपरमभट्टारकमहाराजाधिराजश्रीविग्रहराजदेवविजयराज्ये उपदेशपदटीकाऽलेखीति ॥छ॥ कल्याणमस्तु ॥ (२) पंचवस्तुकप्रकरणवृत्ति अपूर्ण पत्र १९३-३५० । भा. सं.। क. हरिभद्रसूरि स्वोपज्ञ । ले. सं. अनु. १२मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं.प. २४॥४२१. पत्र २२२, २२३, २३५, २३६, २३८, २७९, २८८, २९८, २९९, ३०२, ३०६, ३०७, ३०९, ११२, ३४८ नथी। आ ग्रंथनो प्रारंभ १९३ मा पत्रथी थाय छ । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेर दुर्गस्थ क्रमाङ्क २१५ उपदेशपदप्रकरणलघुटीका संपूर्ण पत्र १४९ - २९९ । भा. सं. । टी. क. वर्धमानसूरि । टी. ग्रं. ६५१३ । र. सं. १०५५ । ले. सं. ११९३ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५४२ ॥ अन्त - संवत् ११९३ ज्येष्ठ सुदि २ खौ ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ [ क्र. २१५ क्रमाङ्क २१६ योगशास्त्र स्वोपशवृत्तिसहित पत्र ३१९ । भा. सं. । क. हेमचन्द्रसूरि स्वोपज्ञ । ले. सं. १४०७ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३२॥४२॥ पत्र. १११, १३०, १३२, १३५, १४२ - १४४, १४६, १४८, १५६, २२६, ३०८, ३१०-३१२, ३१४-३१७ नथी. क्रमाङ्क २१७ प्रश्नोत्तररत्नमालिका वृत्तिसहित पत्र १८२ । भा. स. । मू. क. विमलसूरि । वृ. क. हेमप्रभसूरि । ग्रं. २१३४ । र. सं. १२२३ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ । लं. प. १२।४२ । । पत्र १, २, ५, १६१, १६६, १६७, १७०-७२, १७४ नथी । आ पोथी कागळ उपर लखेली छे । रचिता सितपटगुरुणा, विमला विमलेन रत्नमालेव । प्रश्नोत्तरमालेयं, कण्ठगता कं न भूषयति ॥ अस्य व्याख्या -- विभूषयति अलङ्करोति कं कं न ?, अपि तु सर्वमपि । काऽसौ कर्त्री ? इयं प्रश्नोत्तररत्नमाला । केव ? रत्नमालेव । किंविशिष्टा ? 'विमला' प्रश्नोत्तराणामविरोधित्वान्निर्दोषा, उपमानपक्षे पुनः 'विमला ' त्रासहीनत्वादवदाता | पुनः किंविशिष्टा ? ' रचिता' निर्मिता । केन ? 'सितपटगुरुणा सिताः श्वेताः पटाः aarfण येषां ते सितपटास्तेषां गुरुः सितपटगुरुस्तेन सितपटगुरुणा श्वेताम्बराचार्येण । किंविशिष्टेन ! विमलेन विगतो मलः पापरूपो यस्मात् स विमलस्तेन विमलेन निःपापेन, अथ च ग्रन्थकारो गम्भीरोक्तिरस्मिन् पदे निजनामाऽपि प्रतिपादयाञ्चकार, विमलेन बिमलाचार्येणेत्यर्थः । अत्र च बिमलनेति नामैकदेशप्रयोगेऽपि विमलाचार्य इति समुदायो गम्यते, यथा भीमो भीमसेन इति ॥ अधुना रत्नमालया सह प्रश्नोत्तररत्नमालाया श्लेषो भण्यते । तथा हि अत्यन्तविशदवर्णा, गुणगणरम्या महार्थविषया च । योग्या क्षमाधराणामनेकार्यप्रभावयुता ॥१॥ प्रश्नोत्तरमालेयं धत्ते वररत्नमालया समताम् । वर्यार्थाश्चर्यकरी, दत्तमहानन्दपदविभवा ॥२॥ एवं समर्थिताऽसौ प्रश्नोत्तररत्नमालिकावृत्तिः । विबुधामन्दविधात्री, शुभरसपात्री च गङ्गेव ॥३॥ लक्ष्मीर्गुणानुबन्धान्नृत्यति यस्मिन् मुदा समागत्य । वंशः प्राग्वाटाख्यो गुरुपर्वाssस्ते स उत्तुङ्गः ॥१॥ आसीत् तत्र सरस्वतीव विबुधव्याख्यातशास्त्रावलिबल्यात् पालितसप्रभावविमलश्रीब्रह्मचर्यव्रता । विख्याता गुणिनां गणे निजगुणैः सा नागिणी श्राविका, यस्याः सर्वगुणावधेः कथयितुं शक्यः क एको गुणः ! ॥२॥ भ्रातृजपुत्रस्तस्याः ऊदलनामा बलाधिपो जज्ञे । वास्तव्यो झेरिंडकनगरे धार्मिकजनप्रवरे || ३ || प्रकटितकमलोलासा निर्मलपक्षद्वया सदाचारा । ऊदलभार्या समभूदूदयश्री राजहंसीव ||४|| श्रीमद्देवगुरुक्रमार्चनविधिप्राप्तप्रतिष्ठावधिः, सौजन्यादिगुणौघरत्नजलधिनीतिश्रुतीनां निधिः । गाढं दानरतः सदागममतिः सर्वत्र लब्धोन्नतिः, संजातो हरिपाल इत्यभिध्या ख्यातस्तयोर्नन्दनः ||५|| बभूव शुल्क शालायाम शापलयां महत्तमः । सर्वतो मुखनिष्क्रान्तसाधुवादः स भूतले ॥६॥ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क..२१७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्रं अन्यच्च श्रीजैनशासनाम्भोधिसमुल्लाससुधांशवः । जज्ञिरे जगति ख्याताः श्रीचन्द्रप्रभसूरयः ॥७॥ धर्माधारतया सुदुश्वरतपश्चारित्रतेजस्तया नानासूरिविनेयसेविततया तैस्तैर्गुणर्विश्रुतः। श्रीचन्द्रप्रभसूरिपट्टतिलको निर्ग्रन्थचूडामणिर्जज्ञे श्रीजयसिंहभूपतिनुतः श्रीधर्मघोषः प्रभुः ॥८॥ तदीयहस्तप न लब्धश्रीसूरिसम्पदः । बभूवुर्जगमं तीर्थ, श्रीयशोघोषसूरयः ।।९।। आवर्जिते गुणग्रामैर्येषां गम्भीरिमादिभिः । रूपलक्ष्मीसरस्वत्यौ समायातां स्वयं तले ॥१०॥ तेषां सपुण्यलावण्यरूपपाण्डित्यसम्पदाम् । स्वहस्तदीक्षितैः शिष्यैः श्रीहेमप्रभसूरिभिः ॥११॥ भुवनश्रुतिरविसङ्घये १२२३] वर्षे हरिपालमन्त्रिविज्ञप्तैः । एषा चके वृत्तिः प्रश्नोत्तररत्नमालायाः । १२॥ कनकगिरिकनकदण्डं, धत्तेऽम्बरमेघडम्बरं छत्रम् । जगति जयतो यावत् , वृत्तिरिय वर्त्ततां तावत् ॥१३॥ ग्रन्थाग्रन्थ २१३४ । प्रश० १८ एवं ॥छ। मङ्गलं महाश्रीः ॥छ। ॥ शुभं भवतु श्रीसङ्घस्य ॥ ५० ॥ अहम् ॥ गुरुगिरिविहितास्थः साधुराजप्रतिष्ठोर्जितसुगुणपताकोऽत्यन्तचैत्यो भक्त्या । सरलतर उरुः सल्लक्षणश्चारुपर्वोन्नत उदित इहोयो श्रीमदकेशवंशः ॥१॥ तत्राभिजात्यशुभवृत्तमहार्घताढयो, मुक्तोपमोऽजनि महर्दिकसाढसाधुः। यः प्रत्यहं पथिकयाचकपञ्चशत्या, माहेश्वरोऽन्नघृतदानमदीदपत् सदा ॥२॥ काले कियत्यपि गते लघुकर्मकत्वान्माहेश्वरत्वमुपकेशपुरे विहाय । श्रीवीतरागमुनिपुङ्गवभक्तिशाणैः, सम्यक्त्वरत्नमुददीदिपदन्वहं यः ॥३॥ युग्मम् ॥ पुत्रस्तस्य सहस्रपत्ररुचिरः श्रीपद्मदेवाभिधः, साधुः सौरभवासितत्रिभुवनः पद्मानिवासोऽजनि । यः श्रीनागपुरोपकण्ठकुडिलूपुर्यो मुदाऽकारयत् तीथे......देवसद्म विदधात्यद्यापि यत्कौतुकम् ॥४॥ क्षेमंधरः साधुरजायताऽस्य, सूनुर्गुरुं श्रीजिनचन्द्रसूरिम् । विध्यध्वधर्म च शशिप्रतिष्ठामालां ललौ यो मरुकोट्टदुर्गे ॥५॥ यो दा...त् षोडश श्रीअजयपुरि विधेर्मन्दिरे मंडपाथे. पारुत्थानां सहस्रान् सकलनिजकुलश्रेयसे तीर्थयात्राम् । कृत्वा प्रद्युम्नसूरि विविधमपि जनाध्यक्षमेवाऽऽत्मपुत्रं. थ्याशापल्ल्यां श्रुतोक्त्या जिनपतिगुरुभिर्मानयामास चैत्यम् ॥६॥ युग्मं ॥ जगद्धरः साधुरभूत्तदङ्गभूः, कृत्वा श्रियं यश्चपलामपि स्थिराम । अत्यद्भुतं श्रीजिनपार्श्वमन्दिरं, व्यधापयज्जेसलमेरुपत्तने ॥७॥ पुत्रास्तस्य त्रयोऽभूवन् , यशोधवल आदिमः । साधुर्भुवनपालोऽन्यः, सहदेवाभिधः परः ॥८॥ यशोधवलिताखिलत्रिजगदुच्चकैः पुण्यवान् , यशोधवलसाधुराट् समजनिष्ट सत्याभिधः । मरुस्थलसुरुदमः प्रतिदिनान्यदेशागतप्रभूतसमधार्मिकाद्यशनदानसम्मानतः ॥९॥ अजनि भुवनपालः साधुराट् पुण्यलक्ष्म्या, कलितविपुलभालः कीर्तिवल्ल्यालवालः । अधरितसुधवाण्यावर्जितक्षोणिपालः, स्वधनसुकृतकृत्यज्ञाफ्तिात्मत्रिकालः ॥१०॥ षण्मासान् भूमिशय्यां स्वशिरसि कुसुमाक्षेपमेकाशनत्वं, चास्नानं ब्रह्मचर्यादिमबहुनियमान् बिभ्रता येन यूना। निर्जित्याऽरीन् विधाप्य स्वगुरुजिनपतेः स्तूपरत्नं पताका ऽऽरोपि श्रीसोमसिंहप्रतितनुकजगत्सिहसाहाय्यमाप्य ॥११॥ श्रीमान्माण्डलिकं विहारमपरं श्रीभीमपल्ल्यां पुरि, प्रासादं गगनाग्रलग्नशिखरं निर्माप्य लोकोत्तरम् । श्रीमत्सरिजिनेश्वरयुगवरेस्तस्य प्रतिष्ठाप्य यः, श्रीषीरप्रभुमूर्तिमभुततमा संस्थापयामासिवान् ॥१२॥ - त्रिभिर्विशेषकम्।। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २१८तत्पत्नी पुण्यिनी नाम्ना, नित्योपार्जितपुण्यका। त्रिभुवनपालधीदा, जज्ञे पुत्रद्वयप्रसूः ॥१३॥ तदाद्यः क्षेमसिंहोऽभूत्, सिंहवत् सज्जितक्रमः । लीलया दलयामास, यः प्रतिपक्षदन्तिनः ॥१४॥ द्वितीयोऽभयचन्द्रोऽस्ति,साधुराजो द्विधा भुवि । द्रव्यतः श्रीपतित्वेन, शिष्टाचारेण भावतः ॥१५॥ श्रीमत्सूरिजिनेश्वरस्वगुरुणा चक्रेशिना तन्वता, यात्रां मोहनरेन्द्रनिग्रहकृते श्रीसङ्घसैन्ये कृतः । यः सेनाधिपतिः स्वविक्रमनयैस्तद्गृह्यभौताधरीन् , स्वस्वाम्यंहितले प्रपात्य तदिम दासं व्यधात् स्वप्रभोः ॥१६॥ येनात्यद्भुतदानमानविनयैः श्रीतीर्थसङ्घार्चनावात्सल्यादिगुणैश्चमत्कृतिकरं श्रीतीर्थयात्रोत्सवम् । निर्माया नरिनत्ति कीर्तिवनिता त्रैलोक्यरङ्गागणे, चन्द्रेऽलेखितमा स्वनामकलशः स्वीये कुले चाटितः ॥१७॥ कर्णेऽभ्यर्णमुपागते सुरपतौ पातालमूलं बलौ, नष्टेष्वत्र कलौ सुरममुखेष्वन्देषु तुच्छेष्वपि । पश्यत्यूर्ध्वमधश्च याचकजने दीनानने दुःखिते, तत्पुण्यादुदितो य एव भुवने दाता तदस्मारकः ॥१८॥ कल्पद्रोऽभयचन्द्र ! कल्पलतिका ते प्रेयसी लक्ष्मिणी, श्रीधींधाजगसिंहसूरविलसत्तेजोऽभिधानाङ्गजैः । पुत्रीभ्यामपि पद्मिनीकुमरिकाभ्यां सत्फलैरिष्टदा, स्तात् साचाप्रमुखैभवांश्च सुफलैः पौत्रप्रपौत्रादिभिः ॥१९॥ ............... [श्रीजिनेश्वरसूरीणां पादाभोजमधुव्रतैः। श्रीदेवमूलुपाध्यायैर्निर्मितैषा प्रशस्तिका ॥२५॥ ॥ इति प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति पु० साधुअभयचन्द्रलेखितायाः प्रशस्तिः समाप्ता ॥] क्रमाङ्क २१८ (१) द्वादशकुलक विवरणसहित पत्र १-१५७ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनवल्लभसूरि । वि. क. जिनपालोपाध्याय । ग्रं. ३३६३ ।। (२) रत्नचूडकथा विषमपदविवरण टिप्पनक पत्र १५७-१५८ । भा. सं.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १११४३. । आ प्रति कागळ उपर लखेली छे । क्रमाङ्क २१९ स्वप्रसप्ततिका वृत्तिसहित अपूर्ण पत्र. ४८ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १४ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७४१. पत्र ३, ४, ७, १६, १८, २१, २३. २४, २७. २९, ३१, ४५-४७ नथी अने केटलांक पानांना टूकडा थई गया छ। क्रमाङ्क २२० उपदेशमाला अवचूरि जूटक अपूर्ण पत्र १११ । भा. सं.। ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी। संह जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३१x१ पत्र. ५६, ६६, ६८, ७०-७६, ७८-८०, ८२, ८४, ८६, ८९, ९१, ९२, ९४, ९७, ९८, १०२, १०५-११० नथी। क्रमाङ्क २२१ नवपदप्रकरण बृहद्वृत्ति सहित पत्र २६६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनचंद्रसूरि । वृ. क. यशोदेवसूरि। ग्रं. ९५००। ले. सं. अनु. १३मी शताब्दीनो अंत । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३४२।। पत्र २५६ मुं नथी। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २२४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क २२२ नवपदप्रकरण बृहवृत्तिसहित पत्र २५९ । भा. प्रा सं.। मू. क. जिनचंद्रसूरि। वृ. क. देवेंद्रसूरि । ग्रं. ९०००। र.सं. ११८२ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ। सं. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३२४२.। पत्र १००, २४०, २४८, २४९, २५१, २५७ नथी । अन्त नवपदप्रकरणं समाप्तमिति ॥छ॥ दूरापास्तसमस्तकुश्रुतितमाः स्फीतप्रभः स्फारधीः सवृत्तो गतलाञ्छनोऽपि शशिनः साम्यं परं धारयन् । आसीच्चन्द्रकुले हृताङ्गिकुमुदव्यामोहनिद्राभरः, सूरिः सद्गुणपूगपूरिततनुः श्रीसर्वदेवाभिधः ॥१॥ लब्धप्रतिष्ठः प्रथितोरुकीर्तिः पापैणकोऽत्रासनबद्धकक्षः । दुन्तिवादिद्विपभङ्गदक्षः तस्मादभूच्छ्रीजयसिंहसूरिः ॥२॥ आनन्दसत्त्वापहृताघपूरात् सर्वोपकारप्रकृतिप्रवृत्तेः । तस्मान्मनोज्ञाच्छुभसंयमश्रियः देवेन्द्रसूरिः समजायताऽत्र ॥३॥ अभिनवनवपदसूत्रं वृत्तिश्च कृता सुखावबोधेयम् । देवेन्द्रसूरिणा श्रीजयसिंघाचार्यशिष्येण ॥४॥ यदत्र किञ्चिद्वितथं मयोक्तं व्यामोहतो वा मतिमान्द्यदोषात् । सदागमज्ञैः स्वधिया विमृश्यं संशोधनीयं महताऽऽदरेण ॥५॥ एकादशवर्षशते विक्रमकालाद् द्वयशीतिसंयुक्ते ११८२। सितपक्षे मार्गसिरे गुरुवारे प्रतिपदादिवसे ॥६॥ संगमखेटकनगरे स्थितैरिवातिरचिता वरा वृत्तिः । प्रथमा च प्रतिः पूर्णा तत्स्थैः श्राद्धैर्विलेखिता ॥७॥ ग्रन्थोऽयं लोकमानेन सहस्रनवनिश्चितः। गणित्वाऽमरचन्द्रेण स्थाने स्थाने निदर्शितः ॥८॥ यावच्चन्द्रार्कबिम्बे विचरणनिरते व्योम्नि विद्योतमाने, यावन्मेरुः शिखाग्रस्थितजिनसदनश्चारुशोभा बिभर्ति । अपूर्ण क्रमाङ्क २२३ दर्शनशुद्धिप्रकरण विवरणसहित पत्र १८६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. चन्द्रप्रभसूरि । वि. क. देवभद्रसूरि । ले. सं. है. सं. १४ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२।। पत्र ५५, ६८, ६९, ८३, ११२, १३९. १४५, १७७ नथी। क्रमाङ्क २२४ - प्रकरणपुस्तिका पत्र १५+६४ । भा. प्रा. स.। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२. (१) सुबाहुचरित पत्र १५ । भा. प्रा. । गा. २१६ । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । (२) लोकतत्त्वनिर्णय पत्र १-१६। भा. सं.। क. आचार्य हरिभद्रसूरि । ग्रं. १४४ । (३) बोधप्रदीपपंचाशिका १६-२५ । भा. सं. । का. ५० । आदि-चूडोत्तंसितचारुचन्द्रकलिकाचञ्चच्छिखाभास्वरो० । (४) पार्श्वजिनस्तोत्र पत्र २५-२९ । भा. सं.। क. जिनवल्लभगणि । का. २४ । आदि-समुद्यन्तो यस्य क्रमनखमयूखाः विदधिरे. इत्थं तीर्थपतेः पितुस्त्रिजगतः श्रीआश्वसेनेः पुरः, प्राज्ञः संक्षुभदअलिविलसदानन्दोल्लसल्लोचनः। प्रोद्गच्छत्पुलकच्छलप्रविकसत्पुण्याकुरो यः स्तुयाल्लीलाभाजिन वल्लभो न स वसेत् स्वःश्रीशिवश्रीहृदि ॥२४॥ ॥ इति पार्श्वस्तोत्रम् ॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २२५(५) पार्श्वनाथस्तोत्र पत्र २९-३२ । भा. सं. । क. जिनवल्लभगणि । का. १७ । आदि-विनयविनमदिन्द्रं मन्मनोऽम्भोधिचन्द्र० अन्त–स खल्लु निखिले न स्याल्लोकेशराजि न वल्लभः ॥१७॥ ॥ इति पार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ (६) पंचकल्याणकस्तव पत्र ३२-३५। भा. सं.। क. जिनवल्लभगणि । का. १२॥ आदि-प्रीतद्वात्रिशदिन्द्रोदितविततगुणाधारपुत्रावतारं. अन्त-स्वःसाम्राज्यादि भुक्त्वा जिनपदसहितं वल्लभं सल्लभन्ते ।।१२॥ ॥ पंचकल्याणकस्तवः ॥ (७) धर्मशिक्षाप्रकरण पत्र ३५-४३ । भा. सं.। क. जिनवल्लभगणि। का. ४०। अं. १०५। अन्त-॥४०॥ चक्रम् ।। धर्मशिक्षाप्रकरणम् ॥ कृतिर्जिनवल्लभगणेरिति ॥ ग्रं. १०५ । (८) धर्मबिंदुप्रकरण पत्र ४३-६४ । भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्रसूरि । अन्त-समाप्तं चेदं धर्मबिन्द्वाख्यं प्रकरणं कृतिराचार्यश्रीहरिभद्रस्य ॥छ। मंगलं महाधी; ॥ क्रमाङ्क २२५ धर्मबिंदुप्रकरण वृत्तिसह पत्र १५५ । भा. सं.। मू. क. हरिभद्रसूरि । वृ. क. मुनिचंद्रसूरि । अं. ३०००। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२॥. अन्त इति श्रीमुनिचन्द्रसूरिविरचितायां धर्मबिन्दुप्रकरणवृत्तौ विशेषतो धर्मफलविधिरष्टमोऽध्यायः समाप्तः ॥छ॥ नाविःकर्तुमुदारतां निजधियो वाचां न वा चातुरीमन्येनापि च कारणेन न कृता वृत्तिर्मयाऽसौ परम् । तत्त्वाभ्यासरसादुपात्तसुकृतोऽन्यत्रापि जन्मन्यहं, सर्वादीनवहावितोऽमलमना भूयासमुच्चैरिति ॥छ। इति श्रीमुनिचन्द्रसूरिविरचिता धमबिन्दुप्रकरणवृत्तिः समाप्ता ॥छ।। प्रत्यक्षरं ग्रन्थ ३००० ॥ ५० ॥ अहम् ॥ सदा नवप्रवालश्रीवंशोऽस्त्यकेशसंज्ञकः । यस्याहार्यस्थिति दृष्ट्वा कस्य न प्रीयते मनः ॥१॥ देवनागाभिधः श्राद्धस्तत्राऽभूद्धर्मकर्मभूः । तस्याऽपि दृअकनामा तुक् जज्ञेऽथ विरक्तधीः ॥२॥ तस्यापि भुवणिग-सुमति-लुणिग-पद्माभिधाश्च चत्वारः । धर्मार्थकाममोक्षप्रसाधनार्थ ध्रुवं सुता जजः ॥३॥ महेन्द्रधीदा धणदेवीनाम्नी पत्नी सपत्नीकृतकृष्णकान्ता । तत्रादिमस्येह यथा वृषस्याऽभूत् सद्गतिः सातनिखातकल्पा ॥४॥ श्रीतीर्थनाथपदपङ्कजभागिभालः संस्फूर्तिकीर्तिसितपद्मवनीमरालः । धैर्यादिलक्षणगुणाऽभयवासशालस्तस्याः सुतः समुदपादि कुमारपालः ॥५॥ द्वितीयः सुमतिनामाऽभूद् यः परीक्ष्य क्षमातले । श्रीमज्जिनपति सूरि गुरुबुद्धया न्यषेवत ॥६॥ जगमतगणिनीपुत्री श्रीजिनपतिसूरिभिर्दिदीक्षेऽस्य । पुत्रश्च जिनेश्वरसूरिभिरिह जयसेमनामर्षिः ॥७॥ मातृश्रेयोहेतोः कुमारपाल: प्रधानपुस्तिकयोः। पञ्चनमस्कारविवरण-धर्मबिन्दुविवृती अलेखयत ॥८॥ अदोद्विपुस्तिकाव्याजाद् भव्यदर्शनशुद्धये। कृते कुमारपालेन सुधाअनशलाकिके ॥९॥ ततश्च यत्कीया धवलीकृते त्रिभुवने कैलासलीलान् नगाच्छीकण्ठानिव तद्गणांस्तत इतः प्रेक्ष्यांबिका विस्मिता। रुदा स्क्सतीत्वखण्डनभिया त्यक्त्वा हिमाद्रावगात्, तत्रास्यानुपलक्षणाकुलतया ब्रूते हहा कि विदम् ॥१०॥ श्रीजिनेश्वरसूरीणां तेषां भक्तिपुरस्सरम् । दत्ते कुमारपालेन ते च द्वे अपि पुस्तिके ॥११॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २२८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र यावयोमकटित्रकेतन इतः स्रष्ट्रेव यानादरात् , क्षिप्तानृक्षवलक्षिताक्षतकणान् भोक्तुं परिभ्राम्यतः । पक्षद्वन्द्वविकाशनप्रतिदिने द्वौ राजहंसौ मुदा, तावद् द्वे अपि पुस्तिके बुधजनैः स्तां वाच्यमाने इमे ॥१२॥ स्वगुरुवचःसारस्वतमन्त्रध्यानात् प्रशस्तिमकृतेमाम् । सुगुरुजिनेश्वरसूरेरन्तेवासी प्रबोधचन्द्रगणिः ॥१३॥छ।। क्रमाङ्क २२६ श्राद्धदिनकृत्य बृहद्वृत्तिसह अपूर्ण पत्र २४८ । भा. प्रा. सं. । क. देवेंद्रसूरि स्वोपज्ञ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २६॥४२॥1.। पत्र १, ३, ५, १५१-१७१, १७३-२२१, २२३-२२७, २३१, २३९ नथी। क्रमाङ्क २२७ उपदेशमालादोघट्टीवृत्ति पत्र ३१८। भा. प्रा. सं. अप.। क. रत्नप्रभाचार्य। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संत. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२॥. प्रशस्ति अपूर्ण छ । क्रमाङ्क २२८ उपदेशमाला बृहद्वृत्तिसह प्राकृतकथासह पत्र ३३१ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उतरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९॥४२॥ । पत्र २ जुं नथी. प्रथमपत्रमा बे पारिपाश्विक चामरधरसहित शांतिनाथ भगवाननुं चित्र छे। ॥छ। उपदेशमालाविवरणं समाप्तम् ॥छ।। कृतिरियं जिनजैमिनिकणभुक्सौगतादिदर्शनवेदिनः सकलग्रंथार्थनिपुणस्य श्रीसिद्धषमहाचार्यस्येति ॥छ। सिद्धविरचिता वृत्तिः कथानकेोजिता स्वबोधार्थम् । प्राक्तनमुनीन्द्ररचितैश्चारुभिरुपदेशमालायाः॥ यदविधिना सूत्रोक्तं न सम्यगिह लिखितम् । जैनेन्द्रमताभिहस्तच्छोध्यं मर्षणीयं च ॥छ।। सत्यर्था (१) सगुणः कलंकरहितः पत्रावलीसंयुतः, सच्छायः सुमनोहरः सुखकरः श्रेयस्करः प्राणिनाम् । शाखाभिर्विततः सदैव सरल: सद्रत्नपूर्णान्तरः, श्रीमद्धर्कटनामधेयवणिजां वंशोऽस्ति वंशोपमः ॥१॥ अत्र ख्यातो धरणिरमणीमौलिकोटीरकल्पः, सत्कल्याणप्रकटमहिमापुण्यसंप्राप्यमूर्तिः । अस्त्यासेव्यो विविधविबुधैरुत्सवैरहतां च, प्राज्याश्चर्यः सुरगिरिसमः श्रीमदूकेशगच्छः ॥२॥ गच्छस्यास्य विशेषकोऽस्ति विदुषां शस्यः प्रशस्तैगुणैः, सूरिः श्रीककुदाभिधः सुचरितश्चारित्रचूडामणिः । शस्याख्यावरमंत्रसंस्मरणतो भव्या लभंते क्षितौ, मादित्यशिवोद्भवा द्रुततर सर्वा इमाः संपदः ॥३॥ जयतु जितकंदपों वृषार्यागणधारकः। ईशान इव सत्पूज्यः सूरिः श्रीककुदाभिधः ॥४॥ गच्छेऽत्र पाररहित बहुसत्त्वयुक्तं, लब्धप्रभावपुरुषोत्तमसेव्यमध्यम् । पाथोधिकल्पमसमं गुणरत्नपूर्ण, गोत्रं समस्ति हरिपाटकनामधेयम् ॥५॥ बभूव गोत्रेऽत्र गुणैरुपेतः, सुश्रावकः स्थेहडनामधेयः । सद्दान-सद्धथान-जिनेन्द्रपूजा-गुर्वहिसेवादिषु धर्मयुक्तः॥६॥ तस्य पत्नी सदाचारा, देवश्रीर्देवपूजिका। विनयादिगुणोपेता, शुद्धशीला सुदर्शना ॥७॥ जज्ञाते द्वौ सुतौ तस्याः, प्राच्याश्चन्द्रोष्णभाविव । प्रथमो देवचंद्रावो, देवपूजाकृतोद्यमः॥८॥ द्वितीयः कोल्हणाहवानः, स्वजनालादकारकः । द्वावप्येतौ शुभाचारौ, चन्द्रचारुयशोधनौ ॥९॥ प्रथमस्याभवत् पत्नी, देवकी देवकी यथा । जिनकथाकृताश्चर्या, यशोदानंददायिका ॥१०॥ गुरुजनपदसेवा निश्चला काऽप्यपूर्वा, मधुमधुरिमसारा काऽपि वाणी च यस्याः । ... ११ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ श्रीजेसलमेरु दुर्गस्थ उपशमदमयुक्ता सुव्रता शीलरम्या, स्खलितजलधिगर्वा चारुगंभीरिमा च ॥११॥ तस्या जज्ञे तनूजोऽथ, जिल्हणाख्यः समोनिधिः । दयादानकृतोद्योगः, स्थिरधी जैनदर्शने ॥१२॥ द्वितीयस्याऽभवद्भार्या, भव्या देवतपुत्रिका । भुवनी भवनिर्विन्ना, शुभभावा जिनाचिका ॥१३॥ संजाता जिल्हणस्यापि प्रेयसी रासलाभिधा । तिहुणीनामिका पुत्री, तयोर्जाता गुणान्विता ॥ १४ ॥ अन्यदा भावयामास, देवकी श्राविकाऽथ सा । जिल्हणेन भुवण्या च सहेदं भवविस्तरम् ||१५|| यथा - असारः संसारः पवनचपलं जीवितमिदं धनं क्षाराम्भोधिप्रचललहरीपूरललितम् । इमे भोगाः रोगाः कुगतिनिगमा दुःखजनकाः, स्वबंधूनां संगं तरुणरमणीचित्तचटुलम् ॥१६॥ तन्नास्ति जीवलोकेऽस्मिन् प्रतिबंधो विधीयते । यत्र वस्तुन्यपास्यैकं, जिनधर्म सनातनम् ||१७|| धर्मस्याऽस्य भवंति साधनविधौ यद्यप्युपायाः शुभा, दानाया अपरेऽपि कर्ममथकाः संसारविच्छेदिनः । श्रेष्ठं मुख्यतया तथापि गदितं ज्ञानं तु तेषां जिनैयेनेदं प्रविलोक्यते सुकृतिभिः सर्व त्रिलोकीतलम् ॥१८॥ यतः- [ क्र. २२९ ज्ञानं मोहमहामहीधरशिरः संक्रंदनास्त्रोपमं संसारार्णवमध्यमग्नजनतासत्पोतलीलास्पदम् । ज्ञानं मुक्तिनितंबिनीकुचयुगव्यासंगसत्कार्मणं, धन्यास्ते तदहो त्रिलोकनयनं यैलखितं पुस्तके ॥१९॥ समस्तजनसद्बोधदायकं पुस्तके शुभे । लेखयामि महाशास्त्रं, किंचित् सिद्धान्तसुन्दरम् ॥२०॥ इत्येवं बहुधा विचिन्त्य मनसा बहूवेनसां वेश्मनो वृत्तान्तं विदुषां मनः स्थिरकरं संसारवारांनिधेः । सार्द्ध जिल्हणसूनुना वरधिया तस्या भुवण्यास्तथा, श्रेयोऽर्थं स्वकुटुम्बकस्य च ततः सा देवकी श्राविका ॥ २१॥ सिद्धान्तोद्धारभूताया, निर्वाणपथदीपकम् । वृद्धोपदेशमालायाः, लेखयामास पुस्तकम् ॥ २२ ॥ यावद्दैवतमार्गवर्यमुरजं काष्टासु वधीदृढं मूढं गाढदिनेशचन्द्रपुटकं वातः स्फुटो वादकः । नित्यं शब्दयति स्वभावपुरतः संसाररंगक्षितौ तावन्नन्दतु पुस्तकं शुभमिदं व्याख्यायमानं बुधैः ॥ छ ॥ २३॥ ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ श्रीवीरमस्तु ॥ छ ॥ ॥ शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ क्रमाङ्क २२९ उपदेशमाला बृहद्वृत्तिसह प्राकृतकथासह अपूर्ण पत्र २७२ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरावे । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८४२ ॥ क्रमाङ्क २३० उपदेशमाला बृहद्वृत्ति प्राकृतकथासह पत्र २९० । भा. प्रा. सं. ग्रं. ९५०० । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३३॥४२ अन्त उपदेशमालाविवरणं समाप्तम् ॥ छ ॥ छ ॥ कृतिरियं जिनजैमनिकणभुक्सौगतादिदर्शनवेदिनः सकलग्रन्थार्थनिपुणस्य श्रीसिद्धर्षेर्महाचार्यस्येति । सिद्धर्षिकृता वृत्तिः कथानकैर्योजिता स्वबोधार्थम् । प्राक्तनमुनीन्द्ररचितैश्चारुभिरुपदेशमालायाः ॥ यदविधिना सूत्रोक्तं न सम्यगिह लिखितम् । जैनेन्द्रमताभिज्ञैस्तच्छोध्यं मर्षणीयं च ॥ छ ॥ उपदेशमालाविवरण समाप्तमिति ॥ छ ॥ ग्रन्थानं सहस्र ९५०० ॥ मङ्गलमस्तु ॥ छ ॥ शोभाञ्जनोऽर्जुनाभिख्यस्तुङ्गश्च प्रियकस्तथा । अहो ऊकेशवंशोऽस्तितरां पृथ्वीतले कलिः ॥१॥ महीन्द्रः श्रावकस्तत्र मुक्ताकारत्वमाश्रयत् । उत्सङ्गालिङ्गनं प्रेप्सुः शङ्के निर्वृतियोषितः ॥२॥ चत्वारश्चतुराः पुत्राः पवित्रास्तस्य जज्ञिरे । विश्रान्तधर्मकारुण्यपल्यङ्कस्य पदा इव ॥३॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २३१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र प्रथमोऽभूत् कुलधरः सञ्चतुर्विधधर्मभाक् । क्रोधारिघातुकेष्वद्धामोहारेरङ्गरक्षभृत् ॥४॥ द्वितीयो जेसलाख्योऽभूद् यस्य जन्म परार्थकृत् । नहि चन्दनवृक्षस्य स्वोपकाराय सौरभम् ॥५॥ नामश्रान्त्येव यं कामो नादर्शञ्चाश्रयद् वृषः। स कपर्दी तृतीयोऽभूत् परस्त्रिभुवनाऽभिधः ॥६॥ जिनागराख्याय दीक्षां श्रीजिनपतिसूरयः। कपर्दिने ददुर्बाहां मुक्तिपुर्यापने ध्रुवम् ॥७॥ शङ्के सजमभूपस्य मोहमुन्मूल्य तस्थुषः । बभौं पञ्चकुली तस्य पुरे पञ्चमहाव्रती ॥८॥ द्वितीया दुलही केषां भोजनामोदिकाऽभवत् । नो आयस्थ शुभोजस्य कलाद्वन्द्वविभूषिता ॥९॥ एकस्तस्याऽम्बडाख्योऽभूत् पुत्रः शृङ्गवत् खड्गिन। यथा विद्या विनीतस्य गोमीनाम्नी च पुत्रिका ॥१०॥ शीलालङ्कारमाश्रित्य स्वर्णभूषोत्करं हृदि। मन्यते या शिलारू शिवं गोतमगीरिव ॥११॥ कल्याणकार्थ पञ्चाशद् द्रमी नाभिभुवे ददौ । लातुं वृष मुक्तिपुर्यो गन्तुकामापणं ध्रुवम् ॥१२॥ जेसलस्याऽभवद् रत्नी वल्लभा या स्वमानसम्। यशोहंसाभिलाषेत्र शोलक्षीराञ्चित दधे ॥१३॥ तस्य पुत्रत्रयी वेदत्रयीवाऽत्र जगत्त्रयीम् । क्रमेण पवते धर्मरथचक्रत्रयीव या ॥१४॥ आद्यो विद्याविदां वर्ण्य आस्ते सोमटिनामकः । द्वितीयः कुलचन्द्राख्यः परो वोहडिसंज्ञकः ॥१५॥ इतश्व वंशेऽस्मिन्नेव संजज्ञे थीदुकः श्रावकः सुधीः। आसीनानंधराख्योऽस्य तनयो विनयी नयी ॥१६॥ कूपरूपा रसे शान्ते दीपरूपा निजे कुले। नीरूपा यशःपुष्पे गोमी तस्य प्रियाऽभवत् ॥१७॥ गुणयन्त्या नमस्कारान नयाऽसौ पराजिता । इति शङ्के करं यस्या अक्षमाला निषेवते ॥१८॥ इतश्व कल्पलक्ष्मीविमुक्तं न न कलङ्करवश्रितम् । न श्यामासङ्गतं भूम्यामास्ते चान्द्रं कुलं नवम् ॥१९॥ उद्गच्छन्ति स्म ते तत्र श्रीजिनपतिसूरयः। यत्कीर्तरूवंगामिन्या वर्तिनीव सुरापगा ॥२०॥ ते तत्पट्टप्रकटकाः श्रीजिनेश्वरसूरयः। पुष्करं समलञ्चके येषां कीर्तिमरालिका ॥२१॥ येषां रससरस्वत्या सरस्वत्या जिताविव । इक्षुखण्डसुधासारौ वप्राजाधितौ स्थितौ ॥२२॥ गोमी सुश्राविका श्रद्धाबन्धुरा सा तदन्तिके। चकार दर्शनादर्श भूतिदानलोज्झितम् ॥२३॥ यातारममृतस्थानमितीवासी मुदाऽन्यदा। तेषां कर्णकलशीस्यां वचोऽमृतरयं श्रिता ॥२४॥ कल्पनु : समयो नृणां मरौ कालेऽत्र लेखनम् । तस्य हेतुः श्रियो धर्मे केतुः सेतुर्भवार्णवे ॥२५॥ श्रुत्वेत्थं सा मनश्चके संविग्ना तस्य लेखने। उपाध्यायस्य हि प्राज्ञो न वचो द्विरपेक्षते ॥२६॥ श्रीकथारत्नकोशस्य सा पुस्तकमलेखयत् । तथोपदेशमालोरुवृत्तेर्जग्राह मूल्यतः ॥२७॥ सिद्धान्तलेखने तस्या धर्मपुत्रमजीजनत् । भावनाढयेति यौ यूपमुशलावुच्छ्रितौ ध्रुवम् ॥२८॥ श्रीजिनेश्वरसूरिभ्यो गुरुभ्यस्तत्पणेन सा। अक्रोणादिव महाध्ये ते रत्ने तत्त्वे विशारदा ॥२९॥ यावत्तारान् कपर्दान् हिमरुचिकितवं पद्मिनीकान्तधूर्तः, प्रातर्जित्वा गृहीत्वांशुकमपि च करैः पद्मिनीषु प्रियासु। दाता प्रोन्नीयतेऽसौ नवजयफलिका तत्र वाराटकश्रीलोकालोकेन तावज्जगति विजयते पुस्तकद्वन्द्वमेतत् ॥३०॥ श्रीमत्सूरिजिनेश्वरपादाम्भोजेषु भृङ्गतां बिभ्रत् । शस्तां प्रशस्तिमेतां विरचितवानभयतिलकगणिः ॥३१॥छ। क्रमाङ्क २३१ भवभावनाप्रकरण स्वोपक्षवृत्तिसह पत्र ३५० । भा. प्रा. सं. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं. १३०००। र. सं. ११७० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह श्रेष्ठ। द.श्रेष्ठ । लं. प. २९॥४२।। पत्र ११-१३, १५, ३३२ नथी. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. २३१ श्रावणरविपश्चमीदिवसे ॥११॥ॐ॥ शुभं भवतु ॥ॐ॥ वंशः प्रांशुरसौ समस्ति भुवने शाखाभिरामद्युतिः, पात्रश्रेणिफलावलीढतनुना प्राप्तप्रभावो महान् । प्रोच्चैर्भूधरराजलब्धमहिमा श्रीमल्लतावेष्टितः, प्राग्वाटः प्रथितः सदा सुकवितापात्रं पवित्रोदयः ॥१॥ तस्मिन्नस्ति समस्तविश्वविदितः सूक्तिप्रियः शरणिगो मुक्तारत्नमिवातिकोमलरुचिः श्राद्धः प्रसिद्धः सुधीः । स्वच्छत्वेन परेण यः स्वकजनेऽलंकारचूडामणित्वाप्तोऽप्युज्ज्वलतां न च प्रचकटे छिद्रावलेपं पुनः ॥२॥ ब्रह्मदेव इति नाम विश्रुतस्तस्य सूनुरभवन्निरामयः। योऽश्वसाधनविराजितो भुवि, संचचारनृपदत्तविक्रमः ॥३॥ वीतरागपदपद्मरजोभिर्यो बभार किल देहपुंशनम् । भूषणं च शिरसो गुरोर्नतिः, शीलमेव परमं तनोः सदा ॥४॥ त्यक्त्वा प्रेमपरम्पराक्रमयशःप्रज्ञाभिमानोद्धतान्. राज्ञां श्रीः पुरुषान् सदार्जवगिरा पूतं विमृश्येव यम् । चापल्येऽस्थिरतां विधाय सहसा शिधाय हृष्टा सती, स्वच्छं धर्मरतं विवेककलितं सत्त्वोपकारक्षमम् ॥५॥ यथार्थनामिका तस्य बभूव श्रीरिति प्रिया । प्रसन्नवदना वंश्या दानतोषितमार्गणा ॥ ६ ॥ गेहिण्या च तया रेजे ब्रह्मदेवोऽधिकाधिकम् । विद्युतेव नवांभोदः स्वायेव हुताशनः ॥७॥ तथा भोगास्तुंगगिरीन्द्ररोहविषमा लक्ष्म्योऽप्यसद्यौवन, ज्ञात्वा मंटजिनेशमंदिरवरे श्रीवीरदेवगृहम् । श्रीचक्रेश्वरसूरिसद्गुरुवचः श्रुत्वा च सत्पुस्तकं, वैराग्योपनिषद् धनैः प्रमुदितौ तौ कारयामासतुः ॥ ८॥ सुतमजनिषातां तावांवसरणनामकम् । पवित्रमक्षयं वृत्तमद्वितीय कलानिधिम् ॥ ९ ॥ प्रामाध्यक्षपदं प्राप्य यः सदा नृपशासनात् । जनानुरागतामेव धत्ते विस्फारमानसः॥१०॥ सरोवरस्येव जलं फलं पुण्यतरोरिव । यस्यैश्वर्यमभूत् केषां केषां नैव विभूतये ॥११॥ यः शश्वजिनपूजने कृतमतिः प्रायस्त्रिसन्ध्यं गुरौ, शुश्रूषानिरतः परोपकृतिषु स्वाध्यायबद्धादरः । श्रीमन्मंटजिनेशितुः प्रतिपदं यात्रासु कल्याणिके, भक्त्युत्साहमनाश्चकार नितरां द्रव्यव्ययं चाधिकम् ॥१२॥ यस्योदयमती कान्ता प्रथमा वल्लभाऽभवत् । यस्यामजायत सुतः पुण्यराशिरिवांगवान् ॥१३॥ जयतक इति नाम्ना विश्रुतश्चारुमूर्ति पतिजनपदानां चेतसो वृत्तिपूत्तिः । सकलगुणसमुद्रो दिक्षु विख्यातकीतिर्जिनचरणसरोजद्वंद्वभावाद् गतात्तिः ॥१४॥ द्वितीयाऽपि द्वितीया स्याद् द्वितीयेव हि तेउका । कलामात्रोऽपि पूज्यः स्याद् जयाचंद्र इव प्रियः ॥१५॥ लक्ष्मसीह इति ख्यातः सुतः सर्वजनप्रियः । धर्मज्ञः सत्यवादी च बभूव प्रियदर्शनः ॥१६॥ अथांबशरणे स्वगै प्राप्ते स्वगृहमुत्तमम् । अवीवृधज्जयतको वित्तश इव धीधनः ॥१७॥ मायूरातपवारणः परिचलच्चचत्तुरंगास्पदः, सूक्ष्मक्षोमविभूषितोऽतिविलसन् ग्रेवेयकणिकः । यो वैतालिकवृंदकोमलगिरा प्रस्तूयमानोऽनिशं, प्रौढप्रेमपदातिभिः परिवृतः स्वेरं चचार क्षमाम् ॥१८॥ तस्याभवत् प्रिये द्वे तु चांदु-सीतू मनोहरे । धर्मिष्ठे कुलजे दक्षे प्रियभाषणतत्परे ॥१९॥ वोसरिलिम्बचन्द्राख्य...............स्तृतीयकः । पुत्री सज्जननामाऽस्ति सीतुकाया............॥२०॥ ब्रह्मदेवाऽऽमचंद्राख्यकीकाह्वबालचन्द्रकाः। चांदुकाया इमे पुत्राः पूनसीहस्तु पंचमः ॥२१॥ आद्ययोः पुत्रयोः पत्न्यौ कुलजे रूपसंयुते। हंसलाऽनुपमादेवी समभूतां मनोहरे ॥२२॥ भवे परपरस्याश्च तनयो जनवल्लभः । दृष्ट्वा धर्मफलं पुत्रे तत्परा सज्जनाऽप्यभूत ॥२३॥ तथाहि उपधानतपश्चके तदुद्यमनकं तथा। तीर्थेषु संघयात्रासु धनव्ययमचीकरत् ॥२४॥ उपद्रवविनट च श्वश्वा पुस्तकमादिमम् । ययोद्धृतं च पुण्याय जीर्णोद्धारे यथा महत् ॥२५॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २३२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र भवभावनायाः सत्कं श्रिया यल्लेखितं पुरा । पुस्तकं सा तदुद्धारं कारयामास भक्तितः ॥ २६ ॥ इतश्च बृहद्गच्छेऽस्मिन् सर्वदेवाख्यसूरयः । शालिभद्रास्ततोऽपि स्युर्वर्द्धमानास्तु सूरयः || २७॥ यः सिद्धान्तसमुद्रतो मणिमिव स्वीकृत्य सारं सुधीर्नानार्थप्रभृतिप्रबंधघटनामासूत्र्य तद्वैभवम् । क्षुद्रक्षुद्रधियामपि प्रतिपदं दत्ते स्म कीर्तिप्रियः, श्रीचक्रेश्वरसूरिरभवत्ततश्चारित्रचूडामणिः (?) ॥२८॥ ततोऽपि परमानन्दसूरयः प्रथितौजसः । यद्वक्त्रशैलात् प्राभूद् वज्रस्वामिकथानदी ||२९|| तदनु निरुपमश्रीः श्रीयशः सूरिव, विबुधहृदयहारी वीरसूरिस्ततोऽपि । समजनि जयसिंहाचार्यपर्यस्तपापः, सुविहितजिनदत्ताचार्यवर्यस्ततश्च ॥ ३०॥ श्रीपद्मचन्द्रमुख्यान् सुप्रसन्नमनास्ततः । अवीवदच्चतुर्दिक्षु सुयशोडिंडिमं गुणैः ॥ ३१॥ श्रीपद्मचंद्रमुनिपतेपट्टपूर्वाद्रिदिनपतिसमानः । जयति जयदेवसूरिर्भव्यांभोजप्रबोधनः ||३२|| क्रमागतगुरूणां सा क्रमसेवापरायणा । उपदेशामृतं चेयं कणीजलिपुटैः पपौ ॥३३॥ तथा च पीठकं फलकं शय्या वस्त्रं पात्रं च कम्बलम् । पुस्तकं चान्नपानं च दत्तं स्याच्छ्रेयसेतराम् ॥ ३४ ॥ इत्थं वचश्चेतसि सज्जनाऽसौ वाचंयमानां बहुधा विचार्य । तदुद्धृतं पुस्तकमद्वितीयं ददौ गुरुभ्यः कृतसाधुपूजना ||३५|| युगमुनिरविसंख्ये १२७४ वर्षे विक्रमतो गते । सत्पत्र पाठकाढ्यं समुद्धारः शुभाक्षरैः ॥ ३६ ॥ शेषो निश्शेषमेष क्षितिभरमतुलं संवहन् यावदास्ते, यावन्मेरुर्नमेरुदुमकलिततलः स्वर्गिणां सन्निवासः । चंद्रा यावदेत निविडतरतमो ध्वंसहेतू चकास्तस्तावन्नद्यान्मुनीशैः सुनिपुणधिषणैः पुस्तकः पठथमानः ॥ ३७॥ लिखितं रामदेवेन || शुभं भवतु ॥ क्रमाङ्क २३२ भवभावनाप्रकरण स्वोपज्ञवृत्तिसह पत्र ३८६ । भा. प्रा. सं.। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि स्वोपज्ञ | र. सं. ११७० । ग्रं. १३००० । ले. सं. १२४० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३० ॥४२॥ अन्त आसीन्मेडतकस्थाने बोधिस्थः श्रावको धनी । पाहिका नाम तद्भार्या शीव्यादिगुणसंयुता ॥१॥ सौवर्णिकः प्रसिद्धोऽत्र समायातः सुतस्तयोः । सामनामाऽन्यनामा तु साधारणसमाह्वयः ॥ २ ॥ सोहिणिनाम्नी भार्या पुत्रो लक्ष्मीधरोऽस्ति तस्येह । छत्रापल्ल्यां च तथा वीरश्रेष्ठयङ्गसम्भूतः ॥३॥ श्रेष्ठी यशोदेव इति प्रसिद्धो गेहे तयोर्वृत्तिरियं समप्रा । स्थितैर्गृहे वेलकनामकस्य श्रेष्ठेस्तथा वीरकनन्दनस्य ॥४॥ निष्पादिताऽस्माभिरतोऽप्यमीषां निःशेषकाणामपि मुक्तिहेतुः । सम्पद्यतां शीघ्रमसौ सहायकर्माश्रितानामपराङ्गिनां च ॥५॥ छ ॥ अत्र प्रत्यक्षरगणनया ग्रंथाग्रं १३००० ॥ छ ॥ छ ॥ छ ॥ प्रथमा प्रशस्ति आसीह बंभगच्छे पद्रउरे अम्मसायवरसेट्ठी । अइहवदेवी भज्जा ताणुप्पन्ना सुया तिन्नि ॥१॥ सज्जण - केल्हण - पासुयनामाणो तह धूया य चत्तारि । नन्नी लड्डी देदी फूदी नामा य अणुकमसो ॥२॥ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २३२ वासप्पयम्मि गामे सड्ढो बालप्पसायनामो ति। जयसिरिभिहाण कन्ना ताण सुओ अम्मओ नाम ॥३॥ तस्स य जाया जाया नन्नीनामा विसुद्धवरसीला । पसवइ कमेण वीसल-जयतीनामं च सुय-धूयं ॥४॥ वीसलमहिला पउमी आणंदो नाम ताण अंगरुहो । तवचरणकरणनिरया एव ठिए चितए नन्नी ॥५॥ अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वतः । नित्यं सन्निहितो मृत्युः कर्तव्यो धर्मसङ्ग्रहः ॥६॥ इय चितिऊण तीए संवेगकरी लिहाविया रम्मा। भवभावणा य एसा भवदुक्खनिवारिणी निच्चं ॥७॥ सुन्नसमुद्दाइच्चे १२४० गयम्मि कालम्मि विक्कमनिवाओ। वक्खाणियं च पद्रे भवणे सिरिरिसहनाहस्स ॥८॥ सिरिदेवसूरिमुणिवइविणेयमुणिचंदसूरिनामेहि । सिरिवीरसूरिपयसंठिएहिं भव्वाण बोहत्थं ॥९॥ वसुसायरआइन्चे १२४८ गयम्मि कालम्मि दुइयवेलाए। तह कालसराइच्चे १२५३ वखाणिय तइयवेलाए॥१०॥ जाव य जिणिदवयणं भव्वाण मणम्मि कुणइ परिओस । ताव य नंदउ एयं भवभावणपुत्थयं पवरं ॥११॥ द्वितीया प्रशस्ति सच्छायः सरल: समुन्नतिधरः शाखाभिरापूरितो भूभृलब्धपदः सुपर्वनिचितः सद्धर्मकर्मक्षमः । सद्वृत्तोचिततास्पदं सुमनसामापत्ररम्याकृतिवंशो वंश इवोत्तमोऽस्ति जगति श्रभिल्लमालाहवयः ॥१॥ आम्बप्रसाद इति तत्र वणिक् प्रधान पद्राभिधे समजनिष्ट......कीर्तिः । तस्य प्रियाऽविधवदेव्यनघा बभूव श्रेयोमतिर्गजगतिर्वसतिगुणानाम् ॥२॥ गुणत्रयं च कृतिवत् सृष्टिवद् भुवनत्रयम् । रत्नत्रय क्षमावच्च सा सुषुवे सुतत्रयम् ॥३॥ तत्राद्यः सज्जनाइवानः सज्जनाम्भोजभास्करः । गाम्भीर्यस्थैर्यधैर्यादिगुणरत्नमहोदधिः ॥४॥ कौशल्यं हृदि पौरुषं भुजयुगे दानप्रसङ्गः करे, सत्या वाग् वदने गुरोर्गुणनुतिः कण्ठे मतिर्मस्तके। आस्ते यस्य विनाऽपि काञ्चनमहो! स्वाभाविकं भूषणं, सोऽय केल्हण इत्युदारचरितो जातो द्वितीयः सुतः ॥५॥ विशालवंशः करुणाभिरामः, सश्रीफलः सत्तिलकः सुजातिः । आरामभूभागसमस्तृतीयो, विराजते पासुकनामधेयः ॥६॥ नीतय इव शस्यतरा बुद्धय इव सवेकामदायिन्यः । नानी लाडी देदी फदी पुत्र्यश्चतस्रश्च ॥७॥ श्रेष्ठी बालप्रसादाख्योऽभूद् ग्रामे वासपाभिधे । जयश्रीनाम तद्भार्या तयोः पुत्रौ बभूवतुः ॥८॥ ज्येष्ठः सच्छृष्ठ आमाको द्वितीय आसकाभिधः । आमाकस्य प्रिया जज्ञे नानी धर्मप्रिया सुधीः ॥९॥ वीसलाख्यः सुतस्तस्याः पुत्री मूर्तिमती रमा। जयतीति गुणैराढ्या शीलालङ्कारशालिनी ॥१०॥ बीसलस्य प्रिया पनी पुत्रश्च गुणमन्दिरम् । बालोऽप्यबालचरित आनन्दाख्यो जनप्रियः ॥११॥ नानी नित्यं तपोदानशीलसद्भावनामयम् । धर्म चतुर्विध चके विजितेन्द्रियमानसा ॥१२॥ विज्ञाय धनमनित्यं तप उद्यापनानि च। तीर्थयात्रा मुकुटं तु पदे नाभेय-नेमिनोः॥१३॥ युग्मम् ।। ज्ञानफलमतिश्रेष्ठं श्रुत्वा सद्गुरुसन्निधौ। अलेखयदिमां भव्यचमत्कृद्भवभावनाम् ॥१४॥ .. श्रीमान् ब्रह्माणगच्छेऽस्ति चन्द्रशाखासमुद्भवः । रोहणादिरिवात्युच्चैः साधुरत्नविभूषितः ॥१५॥ तत्राभवन् गुणैः ख्याताः श्रीदेवचन्द्रसूरयः । तत्पदृश्रीललामानो जाताः श्रीचीरसूरयः ॥१६॥ तदनु विदिततत्त्वः पालिताशेषसत्त्वः कुमतकुमुदसूर्यः पञ्चधाचारधुर्यः । परहितरतचित्तः साधुधर्मेकचित्तः समजनि मनिचन्द्रः सूरिरत्नं मुनीन्द्रः ॥१७॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २३५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र तैः शून्याब्धिरवौ १२४० वर्षे सजाते विक्रमादिदम्। व्याख्यातं पुस्तकं पद्ग्रामे नामेयमन्दिरे ॥१८॥ तच्छिष्यवाचनाचार्याभयकुमारसंज्ञिना। व्याख्यायि वसुसिन्ध्वक १२४८ वर्षे द्वितीयवेलया ॥१९॥ [तथा कालशरा]दित्ये वर्षे तृतीयवेलया। व्याख्यातं श्रेयसे स्वस्य त्रिर्नानीदमवीवचत् ॥२०॥ व्याख्यापितं जयत्या गत्वे तिमिरपाटके तुर्याम् । वेलां बाणरसार्के १२६५ वर्षे नान्याः सुकृतहेतोः ॥२१॥ पंडितनेमिकुमारो नभोवस्वर्कवत्सरे १२८० । व्याचख्यौ पञ्चमों वेलामिदं परमवीवचत् ॥२२॥ जयती स्वकुलाम्भोजहंसी भक्तिमती गुरौ। आत्मनः श्रेयसे पद्रे समेत्य देवपत्तनात् ॥२३॥ युग्मम् ।। पण्डिताभयकुमारगणये पुस्तकं ददे । वाचनार्थ जयत्येदं स्वमात्रोः पुण्यवृद्धये ॥२४॥ भानुर्भाभि वनवलयं यावदिद्धं विधत्ते, चन्द्रो यावत् कुमुदकलिका बोधयत्यंशुभिस्तु । यावज्जैन वचनममलं भव्यचेतः प्रमाष्टि, तावन्नन्द्यात् सुमतिभिरिदं पुस्तकं वाच्यमानम् ॥२५॥ शुभमस्तु ॥ छ । ॐ॥छ । क्रमाङ्क २३३ भवभावनाप्रकरण स्वो वृत्तिसह पत्र ३८५। भा. प्रा. सं । क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं. १३००० । र. सं. ११७० । ले. सं. १२६० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२॥ । आदिनां दस पानांना टुकडा छ, तथा पत्र ३३९ नो टुकडो नथी। अन्त श्रावणरविपंचमीदिवसे ॥१५॥छ।। ग्रंथाग्रं ॥ १३१००॥ ॐ ॥छ।। संवत् १२६० वर्षे श्राम्वण सुदि १४ गुरावयेह श्रीमदणहिलपाटके महाराजाधिराजभीमदेवकल्याणविजयराज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि महामात्य राण. श्रीचाचाकः श्रीश्रीकरणादिसमस्तमुद्राव्यापारान् परिस्थयतीत्येवं काले प्रवर्त्तमाने रुद्रपल्लीयश्री......... देवसूर्यादेशेन भवभावनावृत्तिपुस्तकं विषयपथके कांसाग्रामवास्त. लेख. मोहडउत्रमहिपालेन भव्याक्षरैः शुद्धाक्षरैश्च लिखितमिति ॥छ। शुभं भवतु ॥ क्रमाङ्क २३४ धर्मरत्नप्रकरण बृहवृत्तिसहित चुटक अपूर्ण २९४ । भा. प्रा. सं. । मू. क. शांतिसूरि । वृ. क. देवेन्द्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी। संह. जीर्णप्राय । द. मध्यम । लं. प. ३२॥४२. । आ प्रतिनां लगभग अर्धा जेटलां पानां नष्ट थइ गयां छे । क्रमाङ्क २३५ संवेगरंगशाला पत्र ३४८ । भा. प्रा.। क. जिनचंद्रसूरि । गा. १००५३ । र. सं. ११२५।। ले. सं. १२०७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२। एवमिमेह समप्पइ संपइ संवेगरंगसाल ति। आराहणा इयाणि तस्सेसं कि पि जंपेमि ॥ आसि उसभाइयाणं तित्थयराणं अपच्छिमो भयवं । तेलोकपहियकित्ती चउवीसइमो जिणवरिंदो। दित्तंतरंगरिउवम्गगंजणज्जियजहुत्तवीरत्थो। तेलोकरंगमज्झे अतुल्लमल्लो महावीरो। लीलाललणसुहम्मो संजमलच्छीए तस्स य सुहम्मो। सीसो तत्तो जंबू गुणिजणसउणीण वरजंबू ॥ णाणाइगुणप्पभवो तत्तो य अभू महापभू पभवो। तयणंतरं अभयवं आसी सेज्जंभवो भयवं ॥ अह तस्स महापहुणो मूलाओ चेव न हु जडाणुगए। न जहुत्तरं तणुतरे परिमियपव्वे चिय न चेव ॥३०॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २३५ सव्वंग सारे श्चिय न अप्पवोच्छेयदच्छतुच्छफले । पत्तग्गसाडरहिए समंतओ निश्चच्छाए || न य अन्नेसि गम्मे अकंटए निरवसाणवुढिगुणे । तुंगमहीधरमुद्धाणुगे वि भुवि पावियपइट्ठो ॥ अच्चतं सरले श्चिय अपुव्ववसम्म परिवहंतम्मि । जातो य वइरसामी महापभू परमपयगामी ॥ तस्साहाए निम्मलजसधवलो सिद्धिकामलोयाणं । सविसेसवंदणिज्जो य रोयणा थोरथवगो व्व ॥ काणं संभूओ भयवं सिरिषद्वमाणमुणिवसभो । निप्पडिमपसमलच्छीविच्छड्डाखंडभंडारो ॥ ववहारनिच्छयनय व्व दव्वभावत्थय व्व धम्मस्स । परमुन्नइजणगा तस्स दोण्णि सिस्सा समुप्पण्णा ॥ पढमो सिरिसूरिजिणेसरो त्ति सूरे व्व जम्मि उइयम्मि । होत्था पहावहारो दूरं तेयरिसचक्कस्स ॥ अज्ज वि य जस्स हरहासहंसगोरं गुणाण पब्भारं । सुमरंता भव्वा उव्वहंति रोमंचमंगेषु ॥ बीओ उण विरइयनिउणपवरवागरणपमुहबहुसत्थो । नामेण बुद्धिसागरसूरि ति अहेसि जयपयडो ॥ तेसि पयपंकउच्छंगसंगसंपत्तपरममाहप्पो । सिस्सो पढमो जिणचंदसूरिनाम समुप्पन्नो ॥४०॥ अन्नो य पुन्निमाससहरो व्व निव्ववियभव्वकुमुयवणो । सिरिअभयदेवसूरि त्ति पत्तकित्ती परं भुवणे ॥ जेण कुबोहमहारिउविहम्ममाणस्स नरवइस्सेव । सुयधम्मस्स दढत्तं निव्वत्तियमंगवित्तोहिं ॥ तस्सऽभत्थणवसओ सिरिजिणचंदेण मुणिवरेण इमा। मालागारेण व उच्चिणित्तु वरवयणकुसुमाई ॥ मूलसुकाणणाओ गुंथित्ता निययमइगुणेण दढं । विविहत्थसोरभभरा निम्मवियाऽऽराहणामाला ॥ एयं च समणमहुयर हिययरं अत्तणो सुहनिमित्तं । सव्वायरेण भव्वा विलासिणो इव निसेवंतु ॥ एसा य सुगुणमुणिजणपयप्पणामप्पवित्तभालस्स । सुपसिद्धसेडिगोदणसुयविस्सुयजज्जणागस्स ॥ अंगुन्भवाण सुपसत्थतित्थजत्ताविहाणपयडाणं । निप्पडिमगुणज्जियकुमुयसच्छहा तुच्छकित्तीणं ॥ जिणविबपइद्वावणसुयलेहणपमुहधम्मकिच्चेहिं । अत्तुक्कासगदुक्कुहचित्तचमक्कारकारीणं ॥ जिणमयभावियबुद्धीण सिद्धवीराभिहाणसेट्ठीणं । साहेज्जेणं परमेण आयरेणं च निम्मविया || एईए विरयणेण य जमज्जियं किं पि कुसलमम्हेहिं । पाविंतु तेण भव्वा जिणवयणाराहगं परमं ॥ ५० ॥ छत्तावलिपुरीए जज्जयसुयपासणागभवणम्मि। विक्कमनिवकालाओ समइकंतेसु वरिसाण ॥ एक्कारससु सएसुं पणुवीसासमहिएसु निष्पत्ति । संपत्ता एसाऽऽराहण त्ति फुडपायडपयत्था ॥ लिहिया य इमा पढमम्मि पोत्थए विणयनयपहाणेण । सिस्सेणमसे सगुणालएण जिणदत्तगणिण ति ॥ छ ॥ तेवष्णभहियाई गाहाणं इत्थ दस सहस्साई । सव्वग्गं ठवियं निच्छिऊण सम्मोहमहणत्थं ॥ छ ॥ ॐ ॥ छ ॥ अंकतोपि ॥ छ ॥ सर्वाग्रं गाथा १००५३ ।। छ । ।। इति श्रीजिनचंद्रसूरिकृता तद्विनेयश्री प्रसन्नचंद्राचार्यसमभ्यचिंतगुण चंद्रगणिप्रतिसंस्कृता जिनवल्लभगणिना च संशोधिता संवेगरंगशालाभिधानाराधना समाप्ता ॥ छ ॥ ॐ ॥ छ ॥ मंगलं महाश्रीः ||५० || संवत् १२०७ वर्ष ज्येष्ठ शुदि १४ गुरौ अवेह श्रीवटपद्रके दंड० श्रीवोसरिप्रतिपत्तौ संवेगरंगशालापुस्तकं लिखितमिति ॥छ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयतु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ छ ॥ ५० ॥ जन्मदिनचरणभाराक्रान्तशिरः सुरगिरेरिवात्तेन । रुक्मरुचिसंचयेन स्फुरत्तनुर्जयति जिनवीरः ॥१॥ सद्राजहंसचक्रक्रोडाक्रमवति विलासिदलकमले । श्रीमत्यणहिलपाटकनगरे सरसीव कृतवासः ॥२॥ श्रीभिलमालगुरुगोत्रसमुद्धृति यश्चक्रेऽभिरामगुणसम्पदुपेतमूर्तिः । ताराधिनाथकमनीययशाः स धीरः श्रीजांबवानिति मतो भुवि ठक्कुरोऽभूत् ॥३॥ भद्रः प्रकृत्यैव यथाग्यनागः सदाऽभवत् सत्कृतवीतरागः । कटप्रविस्तारितभूरिदानस्तन्नन्दनः ठक्कुरवर्धमानः ॥४॥ तस्य वाजनि सत्पत्नी नदीनाथप्रियागमा । यशोदेवीति गंगेव सुमनोहरचेष्टिता ॥ ५॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २३५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पुत्रः प्रेयानेतयोश्चन्द्र तुल्यो जज्ञे शश्वत्कौमुदाप्यानहेतुः । प्राप्तः स्फाति वृद्धये वैबुधानामीशश्लाघ्यः ठक्कुरः पार्श्वनामा ॥६॥ यत्कारित वीरजिनेन्द्रसद्म चतुर्मुखं भाति कुमारपल्ल्याम् । शुभ्रं कनकांचनकुंभमुच्चैः शंग हिमाद्रेवलदोषधीव ॥७॥ सत्पादजंघिकात्रिकमध्यमुखाभरणबहुविधविलासम् । यच्छालिभंजिकागणमुद्वहति स्वमिव सुशिरस्कम् ॥ ८॥ निःसपत्नाऽभवत् पत्नी तस्य शस्यचरित्रभूः। गौरीव गिरिशालीना धंधिका बन्धुवत्सला ॥९॥ पुत्राः पंचाजनिषुरनयोर्लोकपालायमाना मानम्लानिप्रथनपटवः क्षुद्रजिहवालतानाम् । सर्वज्ञा_मुनिवितरणन्यायसंस्थापनोत्था कीर्तिर्येषां विचरति शरच्चंद्रकुन्दावदाता ॥१०॥ महत्तमो नन्नुक एषु पूर्वजो द्वितीयकः ठक्कुरलक्ष्मणः सुधीः । वज्रीव नासत्यकृतप्रतिष्ठितिस्तृतीय आनन्दमहत्तमः कृती ॥११॥ वाणी यस्य प्रसरति रसात् सोदरी शर्करायाः चेतोवृत्तिर्विलसति तुलां कल्पयन्ती सुधायाः। सत्कर्पूरांजनमिव लसच्चेष्टितं शिष्टदृष्टीः पुष्टि नित्यं नयति यदि वा सुन्दरं कि न यस्य ॥१२॥ धनपालनागदेवौ ठक्कुरौ तुर्यपचमौ। श्रियादेवी च सत्पुत्री जातका शीलशालिनी ॥१३॥ एतेष्वानंदमहत्तमस्य पत्न्यौ क्रमादभूतां द्वे। धृतशस्यशैलसंपत् पूर्वा वसुधेव विजयमतिः ॥ १४॥ . इतश्चभिल्लमालकुलव्योमसोमः श्रावकसोहिकः । ज्योत्स्नेव लक्खुका तस्य पत्नी सन्नीतिभूरभूत् ॥१५॥ गुरूत्तरः सौम्यकान्ति छड्डकस्तनयस्तयोः । मतिबुद्धिसमे जाते राजिनीसीलुके सुते ॥ १६ ॥ तत्रोपयेमे विधिवद् विनीतामानन्दमंत्री किल राजिनीं ताम् । पतिव्रतां यां प्रविलोक्य लोकाः स्मरंति शीतादिमहासतीनाम् ॥ १७॥ अजनि सचिवाऽऽनन्दस्यांगोद्भवो भुवि ठक्कुरः शरणिग इति ख्यातो नाम्ना महीशपुरस्कृतः। विजयमतितस्त्रासापेतः स रोहणसद्रेिमणिरिव खनेर्यस्तेजस्वी स्वगोत्रविभूषणः ॥१८॥ सोदरा भगिनी चास्य शांताऽपीष्टसतीव्रता । सदुत्तराऽपि सर्वेषां दक्षिणा धांउकाभिधा ॥ १९ ॥ राजिन्यथांगजमसूत वराकलंक पूर्णप्रसादकृतनामकमिष्टबंधुम् । । भ्रातुः प्रियं शरणिगस्य नमस्यनम्रां रामस्य लक्ष्मणमिव प्रसरत्सुमित्रम् ॥ २० ॥ तनया पूर्णदेवी च तस्याः समुदपद्यत । नदांभःस्थाननिरता हंसीव मृदुवादिनी ॥ २१॥ अथान्यदाऽऽनन्दमहत्तमोऽसौ शुश्राव सम्यग् गुरुसन्निधाने । धर्म श्रुतज्ञानचरित्ररूपं मोक्षार्थिसंपादितमोक्षमुच्चैः ॥ २२॥ तत्रापि विज्ञानविनाकृतायाः साफल्यमाहुर्न जिनाः क्रियायाः ।। तद्दानमादावत एव सर्वदानेषु शंसंति पठन्ति चैवम् ॥ २३ ॥ ये ज्ञानदानमपरं परिपाठय यद्वा सत्पुस्तकादि च विलेख्य समाचरंति । ते नष्टमोहतिमिराः किल केवलेन सम्यग् विलोक्य भुवनं विभवा भवन्ति ॥ २४ ॥ न ते नरा दुर्गतिमाप्नुवन्ति न चान्धतां बुद्धिविहीनतां च । न मूकतां नैव जडस्वभावं ये लेखयन्तीह जिनस्य वाक्यम् ॥२५॥ श्रुत्वेदमिमां संवेगरंगशालामलीलिखद् रम्याम् । निजपत्न्या राजिन्याः पुण्याय महत्तमाऽऽनन्दः ॥ २६ ॥ प्रासादः सिद्धिरर्हन् नृपतिरनुपमा तत्प्रिया ज्ञानलक्ष्मी नीतिः सिद्धांतगीः श्रीव्ययकरणसमौ साधुसद्मस्थधर्मों। . Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २३६ कारा घर्मादिरादीनविषु गुणिषु तु स्वःशिवश्रीनियोगः साम्राज्यं यावदित्थं प्रतपतु भुवने पुस्तकस्तावदेषः ॥२७॥ ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ । क्रमाङ्क २३६ धर्मविधिप्रकरण पत्र १८६ । भा. प्रा.। क. नमसूरि । ग्रं. ६९५० । र. सं. ११९० । ले. सं. ११९० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८॥४२॥. आदि- नमो जैनागमाय ॥ विजाहरनरकिन्नरदणुवइसिरमउडघट्ठपयवीढं। सिरिवच्छंकियवच्छं पणमामि जिणेसरं रिसहं ॥१॥ निद्दलियअट्ठकम्मं अट्ठमहापाडिहेरकयसोहं । अट्ठदसदोसरहियं थुणामि देवं महावीरं ॥२॥ बावीसं तित्थयरे सम्म परिमलियरायमयणोहे । वदामि अहं निच्चं संसारसमुद्दवरपोए ॥३॥ गोयमगणहरपमुहे पयडजसे सयलभुवणविक्खाए। सुयसागरपारगए नमिउं सेसे वि कइवसहे ॥४॥ कमलदलदीहनयणं कमलमुहीं कमलगभसमकति। कमलंकियकरचरणं नमिउं वागीसरि देवि ॥५॥ वोच्छमहं धम्मविहि समत्थसत्थाण उद्धरेऊणं । सुविचारसारदिटुंतनिवहजहलिहियअत्थेहि ॥६॥ दाणेण य १ सीलेणं २ तवेण ३ तह चेव भावणाए य४ । जिणपूयाए ५ य तहा दंसणसुद्धी हवइ जम्हा ॥७॥ सावजवयणपरिवजणम्मि जीवाण सोक्खहेउम्मि ६। जिणपन्नत्तो धम्मो होइ इमो मोक्खफलजणओ ॥८॥ परपीडकारयम्मि वि कज्जे हासेण वज्जिए धम्मो ७ । चेइयदव्वस्स तहा परिरक्खण ८ वुढिकरणे य ९॥९॥ विसयपमायस्स तहा चाइम्मि य १० एत्थ दस य दिटुंता । मंगलकलसाईया जहक्कम चेव नायव्वा ॥१०॥छ। अन्त-- दाणाइयम्मि धम्मे मंगलकलसाइणो य दिटुंता। विविहफलसाहगा इह भणिया तह मोक्खहेउ त्ति ॥ नाणाविहगंथेसु विभिन्नसम्बन्धबद्धअत्थेसु । जह लिहिया चेव इमे सुपसिद्धा एत्थ गंथम्मि ॥ दिद्वंताण परोप्परसंबंधा मेलिऊण सुहबोहा। भवियजणबोहणत्थं सुसंचिया नन्नसूरीहि ॥ धम्मविहिपगरणमिमं विसोहगं नाणदंसणगुणाणं । दसदिढतेहि जयं सम्मत्तं देउ सिवसोक्खं ॥छ । एकारसनउएहिं ११९० [विक्कमनिवकालओ अईयम्मि । कत्तियपडिवइयाए निप्फ पगरणं एयं ॥छ॥ उयहिकुलगिरिंदा सूरदेविंदचंदा धरणियलममाणं जाव धम्मो जिणाणं । मुणिवरनियरेहिं ताव वक्खायमाणं वरपगरणमेयं.................. ॥ [धम्मविहिपगरणं] सम्मत्तं ॥छ ॥ छ । ग्रन्थानं ६९५० ॥छ॥ सम्बत् ११९० पोष वदि ३ शुक्रे ॥ नहगहरुइंकजुए ११९० काले सिरिविक्कमस्स वट्टते। पोसासियतइयाए लिहियमिणं सुक्कवारम्मि ॥छ । कीर्त्या कुन्दसमत्विषा धवलिते विश्वत्रय...त्त्वया, तस्मान्नाथ ममापि पापतिमिरं निर्मूलमुन्मूलय ।। इत्युच्चैः कथयन्ति कुन्तलसटाव्याजेन भृङ्गाङ्गनाः, कर्णान्ते कलधौतचम्पकरुचि तं नाभिसूनुं स्तुवे ॥१॥ मिथ्यात्वांबुधिमज्जमानभविनां निश्छिद्रपोतायते, दुष्टाष्टाशुभकर्मकुञ्जरघटाव्यापादने केसरी ॥ यस्याद्यापि सुतीर्थमत्र विमलं क्लेशापहं वर्तते, स श्रीवीरजिनेश्वरो भवभयं छिन्द्यादरं देहिनाम् ॥२॥ सवृत्तः सरलः सुवर्णमहिमः पर्वाभिरामः सदा, सच्छायः सफलो मनोहरगिरिप्राप्तप्रतिष्ठोदयः । धर्मार्थः परपत्रवान् गुरुतरः संराजते वंशवद्, वंशो हुंबटसंज्ञकः स्फुटतरं ख्यातो धरित्रीतले ॥३॥ अस्मिन् वंशे समुत्पन्नः श्रेष्ठी श्रेष्ठगुणालयः । सुधामा धामनामेति पुरा सद्गुरुसेवकः ॥४॥ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २३६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र सोहिणिर्नामतः ख्याता भार्या तस्य वरानना। तयोः पुत्रास्त्रयो जाता दातारो लोकवल्लभाः ॥५॥ प्रथम आमणागाख्यो द्वितीयो बाहडस्तथा। तृतीय आम्रदत्ताइवस्ततः पुत्र्यौ सुलोचने ॥६॥ प्रथमा मुजला नाम्ना सीतासंज्ञा द्वितीयका। तत्राऽऽम्रदत्तसत्पत्नी सुधवा नाम विश्रुता ॥७॥ त्रयः पुत्राः समुद्भूताः सजनानन्ददायकाः। ताभ्यां धर्मार्थकामानां प्रत्यक्षा इव मूर्तयः ॥८॥ अग्रज आसदेवाख्यः सर्वदेवो द्वितीयकः। पार्श्वदत्तस्तृतीयश्च तेषां भग्न्यः शुभाशयाः ॥९॥ प्रथमा केलिका नाम्ना द्वितीया च सलक्षणा। सरस्वती तृतीया च आमीसंज्ञा चतुर्थिका ॥१०॥ कलत्रमासदेवस्य पद्मी सुकुलसम्भवा। सर्वदेवस्य सद्भार्या रली रमणभूषिता ॥११॥ सा पुनः श्रेष्ठिनः पुत्री सिद्धस्य क्षमया युता। राजुकया धृता कुक्षौ विज्ञातव्या पितुगृहे ॥१२॥ श्रियादेव्यभिधानेन केतकीव विराजते। दधाना शीलसौरभ्यं गुणालीनां तु याऽनिशम् ॥१३॥ गृहिणी पार्श्वदत्तस्य लक्ष्मीर्लक्षणलक्षिता। सर्वदेवस्य रत्न्याश्च पुत्राः पञ्च सबुद्धयः ॥१४॥ आद्यो यशोधवलाख्यो जेसलश्च द्वितीयकः। तृतीयः साभटाख्यश्च आमेश्वरश्चतुर्थकः ॥१५॥ पञ्चमो नागदेवश्च तेषां भग्न्यः सुनिर्मलाः। चतस्रो गुणसम्पूर्णा नामतः कथ्यतेऽधुना ॥१६॥ सम्पूर्णा प्रथमा ज्ञेया चाहिणिश्च द्वितीयका। राणूस्तृतीयका जज्ञे लाखूनाम्नी चतुर्थिका ॥१७॥ केसवस्य यथाऽभीष्टा कमलेन्दुमुखी तथा । सलक्षणाऽभिधा जाता जेसलस्य प्रियाऽवरा ॥१८॥ साभडस्यापि संजज्ञे गृहिणी सज्जनिस्तथा। यशोराजाहवकः पुत्रो जेसलयाऽजनि प्रियः ॥१९॥ जेसलसाभडाह्वानौ श्रुत्वा ज्ञानस्य देशनाम् । गुरुप्ररूपितां हृद्यां ज्ञानदानं शिवप्रदम् ॥२०॥ सज्ज्ञानाज्जायते सर्वा कृत्याऽकृत्यविचारणा । तस्मात् सर्वप्रयत्नेन ज्ञाने यत्नो विधीयताम् ॥२१॥ ज्ञात्वेदमलीलिखतां सद्वर्णवरपत्रकम् । श्रेयसे मातृपित्रोस्तौ धर्मविधेः सत्पुस्तकम् ॥२२॥ उक्तं च ते धन्या धनिनस्त एव भुवने ते कीर्तिपात्रं परं, तेषां जन्म कृतार्थमर्थनिवहं ते चाऽऽवहन्त्वन्वहम् । ते जीवन्तु चिरं नराः सुचरिता जैन शुभं शासनं, ये मजद्गुरुदुःषमांबुधिपयस्यभ्युद्धरन्ति स्थिराः ॥२३॥ कि कि तैर्न कृतं न कि विढपितं दानं प्रदत्तं न कि, का वाऽऽपन्न निवारिता तनुमतां मोहार्णवे मज्जताम् । नो पुण्यं किमुपार्जितं किमु यशस्तारं न विस्तारित, सत्कच्याणकलापकारणमिदं यैः शासनं लेखितम् ॥२४॥ इतश्च चन्द्रवञ्चन्द्रगच्छोऽयं तमोभीतो गवालयः। साधूनामुदयाभीष्टोऽस्मिन् लोके विराजते ॥२५॥ सुरयो वर्द्धमानाख्या वर्द्धमाना इवाऽभवन् । गच्छे चन्द्राभिधे तस्मिन् मङ्गल्या भक्तिपूरिताः ॥२६॥ तद्विनेयो देवसूरिः संजज्ञे देवसूरिवत् । विबुधैः संस्तुतो वन्द्यो विद्यया निरवद्यया ॥२७॥ गेहं रूपस्य तच्छिष्या बभूवुखैमसूरयः। कामो दृष्ट्वाऽऽत्मसं...ग तत्याज लज्जयेव तान् ॥२८॥ नाम्ना सूरियशश्चन्द्रो जातस्तत्पभूषणः। ...... .....वैरिणम् ॥२९॥ सूरयस्तस्य चिद्रूपाः श्रीमुनिचन्द्रसंज्ञकाः। सरस्वत्या निजा विद्या मन्ये तेषां समर्पिता ॥३०॥ यतः नित्यं व्याकरणे कृतोद्यमवशाः काव्येषु शास्त्रेषु च, दक्षा छंदसि ज्योतिषे पटुधियस्त वितर्काः सदा । काव्यालङ्करणे रताश्च समये तन्नेह शास्त्रं क्षितावस्ति............मुरुधिया ज्ञातं न शम् ॥३१॥ सूरिः श्रीकमलाख्योऽलिसमस्तत्पादपद्मसेवायाम्। नो दत्ते यो वासं स्वपुरे कामादिशत्रणाम् ॥३२॥ श्रेष्ठिना पासडाख्येन श्रीधर्मविधिपुस्तकम् । स्वमातृपितृपुण्यार्थ दत्तं कमलसरये ॥३३॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २३६अवनितलमिदं हि यावदासप्तलोकं........... निपुणमतिभिरेतत् पुस्तकं वाच्यमानं विमलगुणनिधानं नन्दतात् तावदेव ॥३४॥ ॥मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥छ। गृहिणी पार्श्वदत्तस्य लक्ष्मीर्लक्ष्मीरिवापरा । प्रथमः सूमकः पुत्रो यशश्चन्द्रो द्वितीयकः ॥१॥ यशोवीरस्तृतीयस्तु वर्द्धमानश्चतुर्थकः । पञ्चमाम्रकुमाराख्यो आम्रवृक्ष इवोत्तमः ॥२॥ प्रथमं सूमशाखायाम् सूमाकस्य हि भार्याऽभूत् साईनाम्नेति विश्रुता। पुत्रः षयराऽभिधस्ताभ्यां पत्नी सावित्री तस्य हि ॥३॥ तयोः पुत्राश्च चत्वारः पुरुषार्था इव क्षितौ । नायकः व्यवहारी तु द्वितीयस्त्वीश्वराभिधः ॥४॥ तृतीयो लाखणश्रेष्ठी बहुदेवो बहुदायकः । नायकेन सुतो जज्ञे खेतसिंहोऽभिधानतः ॥५॥ बहुदेवस्य भार्याऽभूत् श्रियादेवीति विश्रता। द्वौ पुत्रौ तु तयोर्जातौ सहदेवाऽऽसाख्यसंज्ञकौ ॥ ६॥ पार्श्वदत्तस्य पुत्रोऽभूत् यशश्चन्द्रो द्वितीयकः । तस्य पुत्रद्वयं जातं पवित्रं पुण्यकारकम् ॥ ७॥ यशोधवलस्तु प्रथमः स्वकीर्त्या धवलितक्षितिः। द्वितीयो वयरसिंहाख्यः सिंहः सर्वेषु कर्मसु ॥ ८ ॥ यशोधवलस्य सद्भार्या मोषू मोक्षाभिलाषिणी। पवित्रा पञ्चपुत्रास्तु तयोः पञ्चाननोपमाः ॥९॥ ऊदलः प्रथमः श्रेष्ठी पुण्यकर्मरतः सदा । प्रह्लादनः द्वितीयस्तु विश्वस्याह्लादकारकः ॥ १०॥ जगत्सिहस्तृतीयस्तु श्रेष्ठी रत्नश्चतुर्थकः । पुण्याख्यः पञ्चमो जज्ञे पुण्यपूरितमानसः ॥११॥ ऊदलस्य हि भार्याऽभूद् रुक्मिणी रूपशोभिता । प्रह्लादनस्य सत्पत्नी हंसला हंसगामिनी ॥ १२॥ जयतसिंहस्तयोः पुत्रः प्रथमः पृथिवीतले । द्वितीयो विजयसिंहस्तु देदाख्यस्तु तृतीयकः ॥ १३ ॥ विजयसिंहस्य सद्भार्या राणी शीलसमन्विता । तया पुत्रत्रयी जज्ञे रत्नत्रयविभूषिता ॥ १४ ॥ प्रथमः खीमसिंहाख्यः खेतलस्तु द्वितीयकः । तृतीयो वीरमश्रेष्ठी शिष्टः सर्वेषु कर्मसु ॥१५॥ श्रेष्ठिनो जगसिंहस्य भार्या वयजलदेविका। सप्त पुत्रास्तयोः जाताः सप्तऋक्षोपमा भुवि ॥१६॥ धांधाख्यः प्रथमो जज्ञे भार्या तस्य हि माणिकिः । पुत्रस्तु देवसिंहाख्यः देवार्चनरतः सदा ॥ १७ ॥ द्वितीयः वीरधवलश्च भार्या सहिजलाऽभिधा । आसकाख्यस्तृतीयस्तु चतुर्थो मदनाभिधः ॥ १८॥ पञ्चमो भीमसंज्ञस्तु निर्भयः सर्वकर्मसु । पुत्रस्तु मूलकः श्रेष्ठी धनसिंहस्तु सप्तमः ॥ १९ ॥ रतस्य श्रेटिनो भार्या रत्नादेवीति विश्रुता । तयोः पुत्राश्च चत्वारः ज्येष्ठो साहणसंज्ञकः ।। २० ।। द्वितीयः सीहडश्चाऽभूत् साङ्गणश्च तृतीयकः । चतुर्थः पासडाख्यस्तु स प्राप्तः परलोकताम् ॥२१॥ अथ वैरिसिंहस्य भार्याऽभूत् ललतू लावण्यपूरिता । षट् पुत्राश्च तयोर्जाता षडदर्शनपूजकाः ॥२२॥ प्रथमो वयजलः श्रेष्ठी अरसिंहो द्वितीयकः । तृतीयो लूणकाख्यस्तु आमसिंहश्चतुर्थकः ॥२३॥ तिहुणाख्यः पञ्चमो जज्ञे षष्ठो वालाकनामतः । वयजलस्य हि भार्याऽभूत् पद्मला पद्मिनीसमा ॥२४॥ पञ्च पुत्रास्तयोर्जाताः पञ्चाननपराक्रमाः । झांझणः षीमसंज्ञस्तु अजेसीहस्तृतीयकः ॥ २५॥ साहडश्च चतुर्थोऽभूत् पञ्चमो मोक्षनामतः । अरसिंहस्य शाखायां रम्यो रामाभिधः सुतः ॥२६॥ लूणकस्य हि भार्याऽभूत् जासला जिनपूजिका। पुत्रः प्रतापसिंहाख्यः सामन्ताख्यो द्वितीयकः ॥२७॥ तिहुणाकस्य हि भार्या लक्ष्मीर्लक्ष्मीरिवाऽपरा । पुत्रस्तु मण्डलीकाख्यः पद्मनामा द्वितीयकः ॥२८॥ त्रीकमश्च तृतीयोऽभूद् अभयसिंहश्चतुर्थकः। पील्हाकस्य हि भार्याऽभूत् तिहणदेवीति विश्रुता ॥२९॥ तयोः पुत्रः पवित्रोऽभूत् भीमो भीमपराक्रमः ।.... .........[ अग्रे अपूर्णा ] Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क २३७ चपन्न महापुरिसचरिय पत्र ३२४ । भा. प्रा. । क. मानदेवसूरिशिष्य शीलांकाचार्य । ग्रं. १४००० । ले. सं. १२२७ । संह श्रेष्ठ । द श्रेष्ठ । लं. प. २९ ॥ ४२ ॥ पत्र ३२१मां शोभन छे । अन्त क्र. २३७ ] ९३ इय निययमाउयं पालिऊण संबोहिऊण भवियजणं । कम्मावलेवमुको गणहारी सिवपयं पत्तो ॥ छ ॥ ॥ इति महापुरिसचरिए वद्धमाणसामिचरियं परिसम्मत्तं ॥ छ ॥ उपण्णमहापुरिसाण एत्थ चरियं समप्पए एयं । सुयदेवयाए पयकमलकंतिसोहाणुहावेण ॥ आसि जसुज्जलजोन्हा धवलियाने व्यकुलंब रामोओ। तुहिणकिरणो व्व सूरी इहई सिरिमाणदेवो ति ॥ सीसेण तस्स रइयं सीलायरिएण पायडफुडत्थं । सयलजणबोहणत्थं पाययभासाए सुपसिद्धं ॥ छ ॥ ग्रन्थाग्रे १४००० ॥ छ ॥ संवत् १२२७ वर्षे मागसिर सुदि ११ शनौ अवेह श्रीमदणहिलपाट के समस्तराजावलीसमलंकृतमहाराजाधिराजश्रीमत् कुमारपालदेवकल्याणविजयराज्ये तत्प्रसाद मा. हं. बाहूबलश्रीश्रीकरणादौ समस्तव्यापारान् परिपंथयति विषयदण्डाज्यपथके पालउद्रग्रामे वास्तव्य ले. आणंदेन महापुरिषचरितेन पुस्तकं समर्थयति ॥छ॥ . प्येकवद्रे मार्गे सद्यो जडा अपि जनाः परिसञ्चरन्ति । अन्तः स्फुरन्ति किल वाङ्मयतत्त्वसारास्तामिन्दुधामधवलां गिरमानतोऽस्मि ॥१॥ वंशे श्रीमति हैं बटे समभवत् सत्सर्वदेवाभिधः, श्राद्धः शंकरवत् सदा गतनया स... .. विशुद्धाशया, जातास्सप्त तयोस्सुतास्सुचरिता भूमण्डले विश्रुताः ॥२॥ चक्रेश्वरसाधारणशान्तिसज्जनबन्धकाः । सुस्वच्छाऽम्मुकसिद्धकयुक्ता मिथ्यात्वनिर्मुक्ताः ॥३॥ अत्यन्ताद्भुतदाननिर्जितबलेस्स बुद्धिवाचस्पतेः, गाम्भीर्याम्बुनिधेः प्रतापकलितस्फूर्जेत्सुतेजोरवेः । जाता............स्य गृहिणी सन्नायिकाख्या दयादाक्षिण्यादिगुणान्विता गतमदद्वेषादिदोषोत्करा ||४|| कमलिनीवनवत् कमलाश्रिता न पुनराश्रितकण्टकविग्रहाः । त्रिनयना इव भूतिविभूषिताः परमसंवर वैरिपराजिताः ॥ ५ ॥ शमि-सन्तुक नेमकुमार - सिद्धधवलाभिधास्सदाचाराः । चत्वारः प्रवरसुता जिनमतनिरतास्तयोर्जाताः ॥ ६ ॥ गाम्भीर्यदाक्षिण्यदया दमाद्यैः शश्वद् गुणैः स्वैरमलैरसंख्यैः । संस्मारयामास जनस्य सम्यगानन्दमुख्यान् सदुपासकान् यः ॥७॥ सन्तुक श्रेष्ठिनस्तत्र तस्याऽऽसीत् प्रेयसी प्रिया । लावण्याढ्याऽब्धिवेलेव शुद्धशीला सलक्षणा ॥८॥ जातौ तयोः शाठ्यविमुक्तचित्तौ कान्तौ सुतौ धर्मरतौ विनीतौ । सामायिका युत्तम धर्मकृत्यनित्योद्यतौ श्रीजिनसाधुभक्तौ ॥९॥ मतिविभवविजितसुरगुरुमाहात्म्योऽभयकुमारनामाऽऽद्यः । अपरः पार्श्वकुमारः सुविचारश्चारुचरितरतः ॥१०॥ अभूत् पार्श्वकुमारस्य सुन्दरी नाम गेहिनी । शुद्धसत्पात्रदानेन यत्करे कङ्कणायितम् ॥११॥ पुण्यः कोऽपि संजज्ञे साधारणस्तदङ्गजः । हृदये यस्य निःशेषे जिनो वासमसूत्रयत् ॥१२॥ यशोधक: कीर्त्तिवल्लीप्रारोहभूरुहः । विमलो दर्पणः श्रीणां कुसुमं नीतिवीरुधः ॥ १३॥ समभूत् पद्मिकासंज्ञा तनया विनयास्पदम् । खानिर्विवेकरत्नस्य जन्मभूः शीलसम्पदः ॥१४॥ अन्या सीताभिधा पुत्री मूर्तिमती कीर्त्तिरविहतप्रसरा । कुलकमलभानुरन्या समजायत संपिका नाम्नी ॥१५॥ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २३७कान्ता साधारणस्याभूद् रोहिणीव हिमातेः । इन्द्राणीव सुरेशस्य लक्ष्मीरिव मुरद्विषः ॥१६॥ शीलेन सुलसा सीता रेवती च सुभद्रिका। शीलमत्यभिधानेन चैता उपमिता यया ॥१७॥ तस्यैवान्यतरा भार्या जज्ञरे (जज्ञेऽथ ?) शीलशालिनी। प्रतीता सहवा नाम्नी सुभक्ता निजभर्तरि ॥१८॥ शीलमत्याः सुतो जातः प्रधनः श्रीकुमारकः । द्वितीयो नागदेवाहवः प्राप्ता साऽथ दिवौकसम् ॥१॥ चान्द्रे कुले श्रीमति सोमकल्पे समुज्ज्वले शुद्धयशोमयूखे । सवृत्तशालिन्यकलङ्कभाजि सदोदयानन्दितसज्जने च ॥२०॥ गणधर इव साक्षागौतमादि व्यहार्षोंदतिशयगुणगेहं यो धरायामधृष्यः । स्वपरसमयसिन्धोः पारदृश्वा प्रसिद्धोऽजनि जितमदनः श्री...............॥२१॥ सुविहितशिरोरत्नं श्रीमज्जिनेश्वरसूरिरित्यगणितभयो दुःसंघीयाद् गणाद् गुणसागरः । नृपतिविदितः सत्साधूनां प्रवृत्तिविधायकोऽणहिलनगरे पट्टे तस्याभवद् बुधसम्मतः ॥२२॥ जाता जिनेश्वरमुनीश्वरमुख्य........... ..........सा। आराधनाभिधकृति सुरसुन्दरी च चक्रे क्रमेण हि ययेह नवाङ्गवृत्तीः ॥२३॥ आद्यः श्रीजिनचन्द्रसूरिरखिलाचारप्रचारे चिरं, स्कन्धं बिभ्रददभ्रनिर्मलयशा धौरेय............। ख्यातः श्रीजिनभद्रसूरिरपरः प्राज्यप्रभावान्वितस्तस्माद्विस्मयकारिचित्रचरितश्चारित्रचूडामणिः ॥२४॥ प्राप्तो नव्ययुगप्रधानपदवीं तैस्तैगुणर्भारतेऽस्मिन् क्षेत्रेऽभयदेवसूरिरभयो निर्मीतजैनागमः । मान्योऽन्यस्तु ततः समस्तजगतः प्रोत्सर्पिताइन्मतः संघस्याभिमतः समुन्नतिमतः श्रीदेवताध्यासितः॥२५॥ पट्टे श्रीहरिभद्रसूरिरभवत् तस्याथ पूज्यक्रमाम्भोजस्याभयदेवसूरिसुगुरोर्नव्याङ्गवृत्तेवराम् । यो व्याख्यां विदधेऽणहिल्लनगरे विद्वन्मुनिष्वग्रतो, बिभ्राणेषु घनध्वनिः कपरिकाशीतिं चतुःसंयुताम् ॥२६॥ तच्छिष्यः श्रीयशश्चन्द्रसूरिभूरिसमश्रियाम् । जातः पदं पदे तस्य पद्मदेवमुनीश्वरः ॥२७॥ श्रीमान् समुज्झितसमग्रधनोऽप्युपात्तधा न शस्त्रकलितः कलिकाममुक्तः । कामाकृतिः खलु कलावपि पूर्णकामः, पार्श्वप्रभोरभयसूरिगुरोः प्रसादात् ॥२८॥ बभूव भूमण्डलमण्डनककीर्तिः स्वमूर्त्या जनयन् जनानाम् । अमन्दमानन्दमिवाऽऽत्मबन्धुरनन्यलावण्यगुणेन सिन्धुः ॥२९॥ चरणकमलभृङ्गस्तस्य निर्मुक्तसङ्गः समजनि जिनभद्राचार्यवर्योऽजितश्रीः । इति गुरुजनवंशं शीलुका सप्रशंसं स्म कथयनिमित्तं लेखने पुस्तकस्य ॥३०॥ ज्ञात्वा ज्ञान प्रबोधोदधिशितकिरणः दुर्गतिद्वाःपिधानं, रागद्वेषद्विपेन्द्रांकुशसदृशमुरोरप्रमादस्य हेतुम् । सेतं दःखाम्बराशेः प्रथितसुरसुखश्रीविधानं निधानं कल्याणानां प्रधानं शिवपुरगमने पूर्णकुम्भोपमानम् ॥३१॥ त्रिदिवप्रयाणसमये शीलमती प्राह सुसुरभर्तारौ। मम श्रेयसेऽथ पुस्तकलेखनविषये प्रयतनीयम् ॥३२॥ तथा श्रीशान्तिनाथस्य बिम्बमुत्तमकारितम् । यतो जन्मान्तरे बोधि प्राप्नुयाम् विमले कुले ॥३३॥ नागदेवस्य श्रेयोथै शीलमत्यास्तथैव च। पार्श्वकुमारकः श्रेष्ठी साधारणसमन्वितः ॥३४॥ चतुःपन्नमहापुरुषचरिताख्यां देवद्वराम् । लेखयामास सद्वर्ण सुपत्रं पुस्तकं वरम् ॥३५॥ जम्बूद्वीपसुमेरुसागरमहानद्यो महीमण्डले यावद् व्योमतले मृगाङ्कमिहिरौ नक्षत्रमालास्तथा । राजन्ते जिनशासनोन्नतिकरं मोहव्यपोहाय वः स्तात् तावद् वचनामृतं श्रवणयोः पुष्णन्नघं पुस्तकः ॥३६॥ शीलमत्याः पितृपक्षी कथ्यते। यथाकटुकासनवास्तव्यो अश्वदेवाभिधानकः । वासः समप्रनीतीनां अभूतां होबटे कुले ॥३७॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २३९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र सद्धर्मकर्मसंयुक्तः सर्वदेवस्ततोऽपरः । सर्वदेवो दयाधाम दाक्षदाक्षिण्यवानतः ॥३८॥ तृतीयो बाहडो नाम प्रष्ठः श्रेष्ठगुणैः सताम् । दृढधर्मानुरागेण शंके यं श्रेणिकात्मजम् ॥३९।। अश्वदेवस्य भार्याऽभूत् समग्रगुणशालिनी। सूहवेति प्रतिख्याता चन्द्रलेखेव निर्मला ॥४०॥ चत्वारस्तनयाश्चतुषु विदिता दिग्मण्डलेष्वेतयोर्जातास्तत्र पवित्रचित्रचरितश्चारित्रिषु प्रीतिमान् । ज्येष्ठः श्रेष्ठतमं नयस्य भवनं लक्ष्मीधरो विश्रुतः, ख्याति बिभ्रददभ्रशुभ्रयशसा -वेतीकृतः स्वान्वयः ॥४१॥ मुलदेव-धवलाख्यौ यशश्चन्द्रस्ततस्त्रयः। त्रिकालं पूजयामासुर्ये त्रिकालविदो जिनान् ॥४२॥ राजीमतीति विख्याता तनया गुणराजिनी। सैव शीलमती जाता पाणिग्रहणादनन्तरम् ॥४३।। यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया। यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयताम् ॥४४॥ भग्नपृष्ठिकटिग्रीवा तथा दृष्टिरधोमुखी । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥४५॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ।। ॥छ॥छ॥ मगलं महाश्रीः ॥छ॥छ।॥छ।। क्रमाङ्क २३८ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र तृतीयपर्वपर्यन्त-शीतलनाथस्वामिचरित्र पर्यत पत्र २४८ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१।४२॥.। प्रथमपर्व पत्र १-१२३ । द्वितीयपर्व १२४-२०६ । तृतीयपर्व पत्र २०७-२४८ । ___ क्रमाङ्क २३९ (१) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रथमपर्व पत्र १-१३१ ।। , दशमपर्व पत्र १३२-३०९ । भा. सं.। क. आचार्य हेमचंद्र। ग्रं. १३८६६ । ले. सं. १३१९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं प. ३१४२।। आ प्रतिमा घणां पानांना टुकडा थयेला छे अने घणां पानां खूटे छ। अन्त ॥ग्रं. ५२०० ॥छ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ शुभं भवतु लेखक-पाठका-ऽवधारणादिसमस्तजनश्रावकाणां ॥छ॥ सं. १३१९ वर्षे माघवदि १० शुक्र ठः विक्रमसिंहेन पुस्तकमिदं लिखितमिति ॥छ।छ।। सवृत्तः सरलस्तुंगः शोभितश्च सुपर्वभिः । श्रीमान् प्राग्वाटवंशोऽस्ति भूभृल्लब्धमहोदयः ॥१॥ सद्गुस्तत्र गतत्रासो मुक्तामणिरिवामलः। मंत्री कुमरसिंहस्त्रिभुवनदेवी तत्प्रिया ॥२॥ आसराजामृतपालौ तत्पुत्रौ नयशालिनौ । पुत्री च सुभटादेवी सुभटा धर्मकर्मसु ॥३॥ प्रियाऽनुपमदेवीति ज्येष्ठस्यानुपमा गुणैः । सुता च पद्मलदेवी धर्मपद्ममरालिका ॥४॥ कनिष्ठस्यामृतदेवी भार्याऽऽल्हाकश्च तत्सुतः। जज्ञे केल्हणदेवीति द्वितीया तस्य वल्लभा ॥५॥ मंत्री कुमरसिंहोऽथ सकुटुम्बोऽपि शुद्धधीः । क्रियायाः प्रथमं ज्ञानं श्रुत्वेति सुगुरोमुखात् ॥ ६॥ त्रिषष्टिशलाकापुंसां प्रथमान्त्याहत्पुस्तकम् । अलेखयदिदं धन्यो मुक्तिश्रीशासनोपमम् ॥ ७ ॥ द्वियुग्माक्षीदुसंख्याने १३२२ वर्षे श्रीसंघमध्यतः । व्याख्यानयच्च तं भक्त्या श्रीमद्देवेन्द्रसूरिभिः ॥८॥ यावद् व्योमसरःकोडे राजहंसौ विराजतः । तावत् कृतिकृतानन्दो नन्दतादेष पुस्तकः ॥९॥ ७० ॥ संवत् १३४३ आषाढ सुदि १ साधुवरदेवसुतेन सकलदिग्वलयविख्यातावदातकीर्तिकौमुदीविजितामचंद्रसाधुश्रीचंद्रभ्रात्रा अमलगुणरत्नरोहणेन साधुमहणश्रावकेण स्वेन श्रीयुगादिदेवचरित्रादिपुस्तकं गृहीत्वा श्रीजिनचन्द्रसूरिसुगुरुभ्यः प्रदत्तं व्याख्या[ पितं च ॥] (२) " Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २४०क्रमाङ्क २४० त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र तृतीयपर्व संभवनाथचरित्रथी शीतलनाथचरित्र पर्यन्त पत्र २-१४० । भा. सं. । क. आचार्य हेमचन्द्र । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२. क्रमाङ्क २४१ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र महाकाव्य द्वितीयतृतीयपर्व-संभवनाथ-अभिनन्दनचरित पत्र १०१। भा. सं.। क. हेमचन्द्राचार्य । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२.। पत्र ६१मुं नथी। क्रमाङ्क २४२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र सप्तमपर्व-रामायण प्रकीर्णक पत्र । भा. सं.। क. हेमचन्द्राचार्य । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२।। आ पोथीमा २५ जेटलां पत्र छ। क्रमाङ्क २४३ कथाकोश सटीक टक अपूर्ण पत्र १८५-३३९ । भा. प्रा.। मू. क. जिनेश्वरसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. जीर्ण। द. श्रेष्ठ । लं. प. १२१४२.। आ पोथीमा लगभग १०० जेटलां पानां छे। क्रमाङ्क २४४ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र अष्टमपर्व नेमिनाथ चरित अपूर्ण पत्र २६२ । भा. सं. । क. हेमचन्द्रसूरि । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. २०॥४२॥ पत्र १लामां नेमिनाथ भगवाननुं चित्र छे अने पत्र २जामां आचार्य शिष्यने वाचना आपे छे ते भावन सामान्य कलामय चित्र छे। पत्र २५२थी ६१ नथी। क्रमाङ्क २४५ जंबूस्वामिचरित्र गाथावद्ध पत्र ३२६ । भा. प्रा. । क. गुणपाल। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२. । पत्र २६१ मुं नथी। आदि-॥ नमो वीतरागाय ॥ नमिउं दुक्खत्तसमत्थसत्तभवजलहितारणसमत्थे। पाए चक्कुसकुलिसलंछिए जिणवरिंदाणं ॥१॥ नमिडं पणयामरमउडकोडिसंघट्टघट्टकमकमलं । मिच्छत्तविसविणासं भत्तीए जुयाइतित्थयरं ॥२॥ संगमयामरबहुजणियबहुविहउवसग्गकरणअक्खुहियं । नमिउं भवभयमहणं जएकबंधू महावीरं ॥३॥ मिच्छत्तामयसंघत्थजंतुसिवदाणअगयदुल्ललिए। सेसे वि य जिणवज्जे बावीसं भावओ नमिउं ॥४॥... इय जंबुणामचरिए पयवन्नपसत्थविविहनिम्मविए । नामेण कहावीढो पढमुद्देसो समत्तो त्ति ॥छ॥ भव्वकुमुओहपडिबोहपच्चलो पावतिमिरनिट्ठवणो। आसी ससि व्य सयलो सूरी पज्जुन्नवरनामो ॥१॥ जो दंसणनाणचरित्तसीलतवसंजमेसु कुसलमई । जइयणगुणगणकलिओ मुत्तो धम्मो व अवयरिओ ॥२॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २४९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र तस्स य पयम्मि जाओ आयरिओ वीरभद्दनामो त्ति । परिचितियदिन्नफलो आसी सो कप्परुक्खो त्ति ॥३॥ सेसेण व भुवणभरं धरियं लीलाए नियगण जेण। जिणभवणसाहुसावयभिच्चं विय वच्छलो जो य ॥४॥ संदसणे य जस्स य परिमुइओ होइ जो अभव्वो वि । अमयं व जस्स वाणी सुहजणणी सव्वसत्ताणं ॥५॥ जस्स य सीसो पयडो पयडियगूढत्थसत्थपरमत्थो । दसणचारित्तधरो सूरी पज्जुन्ननामो त्ति ॥६॥ अन्ने वि जस्स बहवे सीसा जइयणगुणेहि परिकलिया। संजाया धम्मरया सईसणनाणचरणड्डा ॥७॥ गुणपालणेक्कनिउणेण साहुणा पवयणत्थभत्तेण । सीसेण तस्स रइयं चरियमिमं जंबुनामस्स ॥८॥ इय मंगलमालियमुत्तमयं परमेट्ठिमहामुणिकित्तणयं । गुणपालणखंतिसमाहिरया पढिऊण सिवं जह जंति नरा ॥छ॥ एयाई मंगलाई पुरिसोत्तमथुइपहाणवयणाई । भवियाणं हुतु सया जिणभणियत्थं सुणंताणं ॥छ॥छ॥ क्रमाङ्क २४६ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र गद्य-शांतिनाथ चरित्र पर्यन्त पत्र १६१। भा. सं.। क. विमलसूरि। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १५॥४२॥ पत्र ५४ मां ऋषभदे चरित पूर्ण थाय छे त्यां ग्रंथकारनुं नाम छ। पत्र १५९ मुं नथी। आदि देवः स वः स्वपदमायति नो ददातु यस्यांसयोरसितकेशसटे चकास्तः । ऊरुस्थलांछनवृषस्य ययोः कलापौ दूर्वावणद्वितयसंभ्रममादधाते ॥ श्रीहेमसूरेमुनिवृन्दवृन्दारकस्य तस्यास्तु नतिर्मदीया । यद्ग्रंथसिद्धांजनसज्जबोधचक्षुभिरीक्षेत जनोऽखिलार्थम् ॥ अन्त विद्योतते हृदयवेश्मनि यस्य दीप्रः श्रीशान्तिनाथसुचरित्रमणिप्रदीपः । तद्दर्शनस्य महिमा प्रसरन् कदापि व्यालुप्यते न खलु मोहमहांधकारे ॥ क्रमाङ्क २४७ द्वादशव्रतकथा गाथाबद्ध अपूर्ण पत्र १२१ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १२॥४२।। पत्र ५१, ५५, ५७-५९, ६१, ६३-७०, ७३-७५, ७८-८२, ८४-८८, ९०, ९३, १०१, १०३, १०७-१११, ११३, ११४, ११६ नथी। क्रमाङ्क २४८ महावीरचरित्र गाथाबद्ध पत्र १५७ । भा. प्रा.। क. नेमिचंद्रसूरि । ग्रं. ३००० । र. सं. ११४१। ले. सं. ११६१। संह. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४१॥ अन्त-॥ संवत् ११६१ चैत्रवदि ११ भौमे ॥छ। मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ ___ क्रमाङ्क २४९ (१) अतिमुक्तकचरित्र पत्र १-२१ । भा. सं. । क. पूर्णभद्रगणि । ग्रं. २११। र. सं. १२८२॥ (२) धन्यशालिभद्रचरित्र पत्र २२-१३८ । भा. सं.। क. पूर्णभद्रगणि। ग्रं. १४९० । र. सं. १२८५। १३ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २५०(३) कृतपुण्यचरित्र पत्र १३९-२२१ । भा. सं.। क. पूर्णभद्रगणि । र. सं. १३०५ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४।४२।. आ प्रति कागळ उपर लखाएली छे।। क्रमाङ्क २५० आदिनाथचरित्र गाथाबद्ध पंचावसरमय पत्र ३६३ । भा. प्रा. । क. वर्धमानसूरि । ग्रं. ११०००। र.सं. ११६० । ले. सं. १३३९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३३४२।। आदि-॥ नमो वीतरागाय ॥ नमह जुगाइजिणिदं पुरिसोत्तिमनाभिसंभवं पयर्ड । वरनाणदसणरवि सुगयमणंत महादेवं ॥१॥ एगमणेगसरूवं दुल्लक्खं परमजोगिपच्चक्खं । अव्वयमसंखमक्खयमोसप्पिणिपढमतित्थयरं ॥२॥ संकुद्धसक्कविक्खित्तदित्तदंभोलिदहणभयभीओ। सरणं सरणं ति तुमं भगवं ! मह होह जपतो ॥३॥ जस्स भुवणेक्कगुरुणो पयंतरं पाविऊण असुरिंदो। सक्काओ वि न संकइ सो सरणं मह महावीरो ॥४॥ अजियाई जयपयडे अरिहंते परमपूयमरिहंते । अरहते अरुहंते नमामि सिरिपासनाहंते ॥५॥ सुयसायरपारगयं भरहसुयं रिसहगणहरं पढमं । वियसियपुंडरियमुहं पुंडरियं गणहरं वदे ॥६॥ खंतिखमं विजियक्खं दक्खं किरियासु मोक्खगयलक्खं । वीरस्स पढमसीस गोयमगणहारिणं नमिमो ॥७॥ जाओ अजोग्गयस्स वि जाण पसाएण मज्झ गुणजोगो। ताणमणतगुणाणं गुरूण पयपकयं सरिमो ॥८॥ अण्णे य महाकइणो वरमुणिणो जे य के वि इह गुणिणो । कलिकयवरकमलसमा जयन्तु ते पिंडिया सव्वे ॥९॥ एगेण वामहत्थेण पोत्थयं बीयएण मणियालिं । तयएण य वरपत्तं करेण कमलं धरेमाणी ॥१०॥ सरलंगुलिविवरविणिस्सरतलायन्नजलपवाहेण । तुरिएण तिहयणस्स वि वरप्पयाणं करेमाणी ॥११॥ वियसियवरकमलगया सियवसणा कुंदकलियसमदसणा । कवियणमुहकयवासा सरस्सई जयइ सुपसाया ॥१२॥ अन्त पुन्ने परे पवित्ते कलाणे भंगले सिवे धन्ने । सिरिरिसहनाहचरिए समथिओ पंचमोऽवसरो॥ पंचावसरनिबद्धं कल्लाणयपंचरयणचिंचइयं । वोच्छामि रिसहचरियं जं भणियं त ठियमियाणि ॥ एत्तो य सम्ममूलस्स साहुजणधम्मकप्परुक्खस्स । सीलंगकुसुमवरपत्तफलभरोणमियडालस्स ॥ खंधाओ निग्गयाए बहुविहसमणसयसउणभरियाए। दूरण्णयखरलाए जयपायडवइरसाहाए ॥ चंदकुले चंदजसो दुक्करतवचरणसोसियसरीरो। अप्पडिबद्धविहारो सूरु व्व विणिग्गयपयावो ॥ एणपरिग्गहरहिओ विरहियसारंगसंगहो णिच्चं । सयलक्खविजयपयडो एगसंसारभयभीओ॥ इंदियतुरियतुरंगमवसियरणसुसारही महासत्तो। धम्मारामुळूरणमणमक्कडरुद्धवावारो॥ खमदमसंजमगुणरयणरोहणो विजियदुज्जयाणंगो। आसि सिरिवद्धमाणो सूरी सव्वत्थ सुपसिद्धो । सूरिजिणेसर-सिरिबुद्धिसागरा सागरो व्व गंभीरा। सुरगुरुसुक्कसरिच्छा सहोयरा तस्स दो सीसा ॥ वायरण-च्छंद-निघंट-कव्व-नाडय-पमाण-समएसु । अणिवारियप्पयारा जाण मई सयलसत्थेसु॥ ताण विणेओ सिरिअभयदेवसूरि ति नाम विक्खाओ। विजियक्खो पच्चक्खो कयविग्गहसंगाहो धम्मो । जिणमयभवणब्भतरगूढपयत्थाण पयडणे जस्स । दीवयसिहि व्व विमला विसुद्धबुद्धी पवित्थरिया ।। ठाणाइनवंगाणं पंचासयपमुहपगरणाणं च । विवरणकरणेण कओ उवयारो जेण संघस्स ॥ एको व दो व तिण्णि व कह व तुलग्गेण जइ गुणे होति । कलिकाले जम्मि पुणो वुत्थं सव्वेहि वि गुणेहि ॥ सीसेहि तस्स रइयं चरियमिणं वद्धमाणसूरीहिं। होउ पढंतसुणंताण कारणं मोक्खसोक्खस्स ॥ U Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कं. २५२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पणमामि पासपाए दुहग्गिसंतत्तसत्तसुहछाए । गुणगरुयनियगुरूण वि नमामि पयपंकय पयओ ॥ तिहुयणभरिउव्वरिएण नियजसेणं धवलियसरीरा । कवियणमुहकयवासा सरस्सई जयउ सुपयासा ।। गिरिसरियापूरपरज्झमाणपखलंतपयपयारिल्ला । दुब्बलगोणि व्व गिरा मह जेण सुधीवरेणेव ॥ संवाहिऊण तीरं नीया नीसेसगुणनिहाणेण । आचंदं सो नंदउ विमलमई विमलजसनिलओ॥ पढम चिय लिहियमिणं पोत्थयपत्तेसु पासचंदेण । गणिणा गुणढिएणं कुसग्गमइणा विणीएण ॥ अबुहजणबोहणट्ठा नियचित्तनिरोहणट्ठया चेव । सुचरियसंभरणहाए एस पयासो मए विहिओ ।। अवहत्थिया वि वंका तुच्छा पयईय बीयचंद ब्व । भीरु सुणग व्व भसणा मसगो विव तिक्खतुंडाला ॥ पिसुणा ता ताणऽभत्थणा वि विहला न तीए मह कज्जं । अत्थाणपत्थणे जं गरुयाण वि होइ लहुयत्तं ॥ ता जमिहासंबद्ध छंदालंकारवज्जियं जं च । जं सिद्धंतविरुद्धं सुयणा सोहिंतु तं सव्वं ॥ सिद्धतसारकुसला खरंतु सुयदेवया वि मह खमउ । जं डिभविहियदुव्विलसिएसु गरुया न दीसंति ॥ विक्कमनिवकालाओ सएसु एक्कारसेसु सटेसु ११६० । सिरिजयसिंहनरिंदे रज्जं परिपालयतम्मि ॥ खंभायत्थठिएहि सियपक्खे चित्तविजयदसमीए। पुस्सेणं सुरगुरुणा समत्थिय चरियमय ति॥ लोगोत्तमचरियमिणं काऊण जमज्जियं सुहं कि पि। उत्तमगुणाणुराओ भवे भवे तेण मह होज । पुव्वावरेण गणियस्स सव्वसंखा इमस्स गंथस्स । एक्कारस उ सहस्सा सिलोगसंखाए नायव्वा ॥छ॥ ॥ श्रीवर्द्धमानाचार्यविरचिते पञ्चमोऽवसरः समाप्तः ॥छ। मङ्गलं महाश्रीः ॥ अक्षरमात्रपदस्वरहीनं व्यञ्जनसन्धिविवर्जितरेफम् । साधुभिरेव मम क्षमितव्यं को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे ॥छ।। सं. १३३९ वर्षे लौकिक आषाढ सुदि प्रतिपद्दिने रवौ पुष्यनक्षत्रे दिक्कूलङ्कषकीर्तिकल्लोलिनीजलधिश्रीमहाराजाधिराज श्रीमत् सारङ्गदेवकल्याणविजयराज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि महामात्यश्रीकान्हे समस्तश्रीश्रीकरणव्यापारान् परिपंथति सति चतुरोत्तरमण्डलकरणमध्यस्थितवदरसिद्धिस्थानस्थितेन धीप्राग्वाटज्ञातीय ठ. हीराकेन दिदेवचरितपुस्तकं लिखितमिति ॥छ॥श्रीः॥७४॥ पट्टिका उपर श्रीआदिनाथदेवप्राकृतचरित्रपुस्तकं नवलक्षकुलोद्भवेन सा. जावडसुश्रावकेण द्रव्येण गृहीत्वा श्रीखरतरगच्छे प्रदत्तम् । नवांगीवृत्तिकारकधीअभयदेवसूरिशिष्यैः श्रीवर्धमानसूरिभिः कृतः । क्रमाङ्क २५१ सुपार्श्वनाथचरित्र गाथाबद्ध अपूर्ण पत्र ३०१। भा. प्रा. । क. लक्ष्मणगणि । ले.सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३४॥x२।। पत्र २४३ सुधी व्यवस्थित छे. अने ते पछी अव्यपस्थित अने केटलाक पानाना टुकडा छे। क्रमाङ्क २५२ चंद्रप्रभस्वामिचरित्र गाथाबद्ध दशपर्वात्मक पत्र १७८ । भा. प्रा. । क. यशोदेवरि । ग्रं. ६४०० । र. सं. ११७८ । ले. सं. ११७८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥ आदि ॥९०॥ नमो वीतरागाय ॥ जस्सारुणचरणनहप्पहाणुरत्ता नमंतअमरपहू। अंतोअमंतनीहरियभत्तिराग व्व बीसति ॥१॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २५२ सो जयउ जयप्पवरो वरकंचणकमलकनियागोरो। गोरयणअंकिओरू रिसहजिणो जिणियकम्मरिऊ ॥२॥ जुयलं ।। ससिकिरिणविमलदेहप्पहाए ओहाडिया उ जन्नियडे । रयणीए वि रयणपईवपंतियाउ व्व रेहति ॥३॥ तं पणमह पणयसुरासुरिंदअइरुंदविहियजम्ममहं । महमंदरम्मि सियकिरणलक्खण लक्खणातणयं ॥४॥ जुयलं ॥ असिवोवसमो जाओ जयस्स गब्भागए वि जम्मि लहुं । संतिजिणिदो संति करेउ सो सयलसंघस्स ॥५॥ जन्नामपईवम्मि वि मणभवणगए जणस्स जाइ खयं ।। दुरियगणो तिमिरभरो ब्व हरउ पासो स मह विग्धं ॥६॥ कलिकालमारुएण वि जस्स न विज्झाइ सासणपईवो। सो वट्टमाणतित्थस्स नायगो जयइ जिणवीरो ॥७॥ इयरनरा वि हु आणाइ जाण निक्कंदिऊण कम्मरिऊ। पत्ता सासयठाणं ते वंदे सेसजिणचंदे ॥८॥ खयरिंदपणयपाया गोविंदपसायणी सुराणंदा । कयणतनमोक्कारा सिरि ब्व वाणी सया जयउ ॥९॥ जाण पसाएण जडो वि किं पि जाओ बुहोहमज्झे हं । गणणिज्जपए तेसि गुरूण पाए पणिवयामि ॥१०॥ इय सयलनमोकारप्पहावपडिहणियविग्घसंघाओ। सिरिचंदप्पहजिणवरचरियमह संपवक्खामि ॥११॥ एयं च दुक्करं जइ वि मज्झ पडिहाइ मंदबुद्धिस्स । दिटेण पहेण तहा वि संचरंतस्स किं विसमं ॥१२॥ जओ जह विजयसिंहसूरित्तईपबंधम्मि दिट्ठमेयं मे। सत्तभवप्पडिबद्धं तहेव गाहाहिं वोच्छमहं ॥१३॥ सव्वं पुण एयं चिय जम्हा सव्वन्नुगोयरं चरियं । चंदप्पहस्स कत्थ व कत्थ व मइदुब्बलो अयं ॥१४॥ एवं च मए जलही भुयाहि तरिउं इमो समाढत्तो। एएण पंडियाणं उवहासपयं भविस्समहं ॥१५॥ जइ वा आहारवसेण गुणाण पयरिसो सो य एत्थ ससिनाहो। ता तप्पहावउ च्चिय होहामि न सूरिहसणिजो ॥१६॥ एत्थ य सुयणपसंसा निक्कज्ज च्चिय जओ स पयईए । अपसंसिओ वि गुणगहणवावडो दोसविमुहो वा ॥१७॥ दुज्जणजणो य पायं पसंसिओ वि हुन मुंचए पयई। निद्दोसे विहु कव्वे जो कह वुप्पायए दोसं ॥१८॥ ता किं इमाए चिताए मज्झ पारद्धविग्घभूयाए । जो जस्स सहावो तं स माणऊ इत्थ किमजुत्तं ॥१९॥ नियगुणविक्खाय च्चिय महाकई तेसि मह सलाहाए । कि होज्ज भुवणपायडजसाण मइहीणरइयाए ॥२०॥ पत्थुयमेव भणिज्जइ अओ इमं विजयसिंहसूरीहि । रइयं सक्कयभासाए सग्ग धेण महकव्वं ॥२१॥ अयं पुणऽप्पसत्ती पाइयभासाए तेण विरइस्सं । दसपव्वरइयअत्थाहिगारगाहाहिं पाएण ॥२२॥ तत्थ य पढने पव्वे रन्नो कणगप्पहस्स जह जायं। वेरग्गं निययसुयस्स रजदाणं च पव्वज्जा ॥२३॥ बीए तत्तणयस्सेव पउमनाहस्स पुव्वभवसुणणं । सिरिहरमुर्णिदपासे सिरिधम्मो तत्थ पढमभवे ॥२४॥ जह जाओ जह से रज्जसंपया जह वयं च देवत्तं ।। तइयम्मि य तइयभवे जह जाओ अजियसेणो सो ॥२५।। जुवरायत्तम्मि ठिओ य जह हिओ पिउसहाए मज्झाओ। हणिऊण महिंदनिवं धरणिद्धयखयरनाहं च ॥२६॥ परिणइ ससिप्पहं दिव्वकन्नयं नियपुरि च जह एइ । तुरियम्मि य अजियजयतप्पिउणो जह वयग्गहणं ॥२०॥ पचमएजियसेणस्स चेव जह अच्चुयम्मि उप्पत्ती। छठ्ठम्मि वेजयते उप्पाओ पउमनाहस्स ॥२८॥ सत्तमए चंदप्पहजिणस्स गब्भागमो य जम्ममहो। अट्ठमए रज्जं तित्थकरणउच्छाहणा दिक्खा ॥२९॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २५३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र શ્ नवमम्मि केवलं देणा य दसमम्मि जह य मोक्खगमो । तह सपबंधं सव्वं पव्वे पव्वे भणिस्सामि ॥ ३० ॥ इइ चंद पहचरिए पढमे पव्वमि पीढियाबंधो । भणिओ एत्तो उड्ढं कहासरीराणुगं वोच्छं ॥३१॥ अन्त ss चंद पहचरिए. !...... . जसदेवसारविंबम्मि । सपसंगुद्दित्थं दसमं पव्वं परिसमत्तं ॥ इय चउवीसमतित्थंकरस्स तित्थम्मि अत्थि सुपसिद्धो । चंदकुले वरगच्छो ऊएसपुराओ नीहरिओ ॥ जो साहुरयणनिओ गुरुसत्ताहिडिओ समज्जाओ । जलहि व्व नदीणवई गंभीरो विबुहजणमहिओ ॥ उव्वहियखमो नरयंतकारओ तत्थ आसि विण्हु व्व । सिरिदेवगुत्तसूरी अवहत्थियदानवारी वि ॥ सिद्धंतमहोयहिपारगेण पुरिसोत्तमत्तणं पहुणा । अखलियपयरणकरणेण अत्तणो जेण सच्चवियं ॥ सिद्धत - कम्मगंथाण जेण नाणाविहाणुओगपडा । सीसजणस्स हियहा उद्धरिया जिणमयाहिंतो ॥ २९० ॥ जस्स य नवपय - नवतत्तपयरणत्थस्स किं पि अवगम्म । अइधिट्टिमाए अहमवि पत्तो तव्वित्तिगारपयं ॥ सिद्धंत-तक्क-लक्खण-साहित्चविसारओ महाबुद्धी । तस्साऽऽसि पवरसीसो विक्खाओ कक्कसूरि ति ॥ चिणमीमंसा पंचपमाणी य दो वि वित्तिजुए। भवियावबोहणत्यं विणिम्मिए जेण जिणमयओ ॥ तस्स वि अंतेवासी सुपसिद्धो सिद्धसूरिनामो ति । जाओ असावओ वि हु जो जुत्तो सावयसएहिं ॥ गग्गय- चंदापहमाइसावए जेण किंच भणिऊण । रिद्धिसमिद्धे चउवीसजिणवराययणपरिगरियं ॥ अहिलवाडपुरपट्टणम्मि सिरिवीरनाहजिणभवणं । कारवियं विबुहमणोरमं व जियसुरवइविमाणं ॥ सिरिदेवगुप्तसूरी तस्स वि सीसो अहेसि सच्चरणो । तस्स विणेएण इमं आइमधणदेवनामेगं ॥ उज्झायपए पत्तम्मि जायज सएवनामवेज्जेण । सिरिचंदम्पहजिण चरियमह कयं मंदमइणा वि ॥ सिरिधवलभंडसालियकारविए पाससाभिजिणभवणे । आसावलीपुरीए ठिएण एयं च आदत्तं ॥ अणहिलवाडपत्ते तयणु जिणवीरमंदिरे रम्मे । सिरिसिद्धरायजयसिंहदेवरज्जे विजयमाणे ॥ एक्कारसवाससएसु अइगएसुं च विक्कमनिवाओ | अडसत्तरीए अहिए ११७८ किन्हतेरसिए पोसस्स ॥ ३००॥ निष्पत्ति उवणीयं च एयमिह देवगुत्तसुरिस्स । अंतेवासिम्मि गगं पालिते सिद्धसूरिम्मि ॥ सुकवित्तपत्तनिम्मलकित्तीहिं असेससत्यकुसलेहिं । सोहियमिमं च गुणिगुणजुएहिं सिरिवीरसूरीहिं ॥ जीए पसाएण अविग्घमस्स पारं गओ म्हि चरियस्स । सयलजणसलहणिज्जा सा जयउ सया वि सुयएवी ॥ काऊण चरियमेयं च जं मए सुकयमज्जियं किंपि । तत्तो जिणचरियरओ होउ जगो सुणणकरणेहिं ॥ ३०५ ॥ गंथग्गमिस्स पुणो छ सहस्सा समहिया चउसएहिं ॥६४०० ॥ नाया उसेहिं गाहाहि सवायमाणेण ॥३०६॥ ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥ मङ्गलमस्तु ॥ छ ॥ संवत् १२१७ चैत्र वदि ९ बुधौ ॥ छ ॥ श्रीब्रह्माणगच्छे पं. अभयकुमारस्य ॥ क्रमाङ्क २५३ चंद्रप्रभस्वामिचरित्र पद्य पत्र २३९ । भा. सं. । क. देवेन्द्रसूरि । लें. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तराध । संह जीर्णेप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१।४२ पत्र १, ५-१२, १६, १७, १९, ७१, ९३, १०१, १०२, १४१-१७०, १७२-१७४, १७६, १७८-१८१, २२९, २३१, २३३-२३८ नथी । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २५४ क्रमाङ्क २५४ वासुपूज्यस्वामिचरित्र पद्य पत्र ३५९ । भा. सं. । क. वर्धमानसूरि । ग्रं. ५४९४ । र. सं. १२९९ । ले. सं. १३२७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. २१:४२ अन्त नृपविक्रम संवत् १३२७ वर्षे अश्विनवदि १० बुधे श्रीमदर्ज(ज)नदेवकल्याणविजयराज्ये श्रीवासुपूज्यचरितं लिखितं ॥ क्रमाङ्क २५५ ___ शांतिनाथचरित्र गाथाबद्ध पत्र ३९७ । भा. प्रा. । क. देवचन्द्रसूरि। ग्रं. १२१०० । र. सं. ११६० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२।। पत्र ३७७, ३७९ ना टूकडा नथी । क्रमाङ्क २५६ मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र पद्य पर्वत्रयात्मक पत्र १५७ । भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि । ग्रं. ५५६८ । र. सं. १२९४ । ले. सं. १३०४। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१४२॥। प्रति शुद्ध छ । इत्याचार्यश्रीपद्मप्रभविरचिते श्रीमुनिसुव्रतस्वामिचरिते भवत्रयनिबद्ध पर्वत्रितयप्रमाणे स्वामिनिर्वाणकल्याणकप्रपचः पंचदशः प्रस्तावः ॥छ॥ समर्थितं चेदं तृतीयं पर्व ॥छ॥ शुभं भवतु ॥छ।। पूर्व चंद्रकुले बभूव विपुले श्रीवर्द्धमानप्रभुः सूरिमंगलभाजनं सुमनसां सेव्यः सुवृत्तास्पदम् । शिष्यस्तस्य जिनेश्वरः समजनि स्याद्वादिनामग्रगीबैधुस्तस्य च बुद्धिसागर इति त्रैविद्यपारंगमः ॥१॥ सूरिश्रीजिनचंद्रोऽभयदेवगुरुर्नवांगवृत्तिकरः । श्रीजिनभद्रमुनीन्द्रो जिनेश्वरविभोस्त्रयः शिष्याः ॥२॥ चक्रे श्रीजिनचंद्रसूरिगुरुभिधुर्यः प्रसन्नाभिधस्तेन ग्रन्थचतुष्टयीस्फुटमतिः श्रीदेवभद्रप्रभुः । देवानन्दमुनीश्वरोऽभवदतश्चारित्रिणामग्रणीः संसारांबुधिपारगामिजनताकामेषु कामं सखा ॥३॥ यन्मुखावासवास्तव्या व्यवस्यति सरस्वती। गंतु नान्यत्र स न्याय्यः श्रीमान् देवप्रभप्रभुः ॥४॥ मुकुरतुलामंकुरयति वस्तुप्रतिबिंबविशदमतिवृत्तम् । श्रीविबुधप्रभचित्तं न विधत्ते वैपरीत्यं तु ॥५॥ तत्पदपद्मभ्रमरश्चक्रे पद्मप्रभश्चरितमेतत् । विक्रमतोऽतिक्रांते वेदग्रहरविमिते समये १२९४ ॥६॥ क्षितिभृत्कृतप्रतिष्ठे गूर्जरवंशेऽजनिष्ट पाजाकः । लेमे स यशःपालं नयपालनलालसं तनयम् ॥७॥ गुणधवलितदिग्वलयं तदनु यशोधवलमंगजमलब्ध। येन किल राजनगरे प्रथितं श्रीपाचैत्यं च ॥८॥ अजनि यशःपालसुतो विश्वाबालस्फुरद्यशःशाखी। श्रीपाश्वजिनपदांबुजयुगहंसः पार्श्वदेवोऽथ ॥९॥ अजनिषत तस्य पुत्रास्त्रयश्चरित्रैः सतां पवित्रहृदः। प्रथमोऽत्र रत्नसिंहस्ततो जगत्सिहसामन्तौ ॥१०॥ लघुनाऽप्यलधुसहोदरभक्तिभृता येन राजनगरेऽत्र। अप्रतिबिंबमकार्यत मुनिसुव्रततीर्थकृद्घिबम् ॥११॥ नन्दीश्वरस्य नयनानन्दी जगताममंदविनयेन। सुजनप्रियेण विजितेन्द्रियेण पार्श्वप्रभोश्चैत्ये ॥१२॥ स्फटिकवैडर्यबिंबद्यत्या नित्यं विनिर्ममे येन । गंगायमुनावणीसंगम इव दलितकलुषभरः ॥१३॥ जीर्णोद्धारधुरीणः सप्तक्षेत्रोपयुज्यमानधनः। अभवदिह हेतु कर्ता सामन्त[:] स्वपरशुभवृद्धथै ॥१४॥ यावत् तपति दिनपतिर्विश्वं धवलयति वा सुधारश्मिः । अपनुदतु तमस्तावच्चरितमिदं शुभदशामनिशम् ॥१५॥ प्रथमादर्शालेखनसाहाय्ये धर्मकीर्तिगणिनाऽत्र । विहितेऽपूर्यत पंचकचतुष्टयांक चरित्रमदः ॥१६॥ ॥छ॥ ग्रंथाग्रं ५५६८ ॥छ। Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ क्र. २५६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ॥ प्रख्याते विमलेऽत्र धर्कटकुले यस्योन्नतिः शर्मदा वांछातीतवितीर्णदाननिकरप्रीतार्थिकल्पद्रुमः । आधिव्याधिनिरस्तमानसगतिः सर्वज्ञधर्मे रतिः स श्रीमान् सुमतिर्बभूव सुमतिस्तस्याम्रवीरात्मजः ॥१॥ अम्बेश्वरस्तस्य सुतः प्रतीतो गांभीर्यमाधुर्यगुणैरगाधः ।। दानादिधर्मेषु विवृद्धचेता धुर्यो हि यो धर्ममहारथस्य ॥२॥ अम्बेश्वरस्य चत्वारः पुत्राः सन्ततिशालिनः । उपया इव भूभर्तुर्बभूवुरुदयोन्मुखाः ॥३॥ आद्यस्तेषां शालिगः साधुवृत्तः स्फीतः पुण्यैः पार्श्वदेवो द्वितीयः । सूमाकः श्रीसौम्यमूर्तिस्तृतीयो वर्यस्तुर्यो स्याद् यशोवीरनामा ॥४॥ शालिगस्य च चत्वारः पुत्राः प्राज्यगुणान्विताः। वरदेवो(वः) कालकोऽथ वीरडश्च तथाऽम्बडः ॥५॥ लीनं यशोवीरमनो जिनेन्द्र श्लाघ्ये च संघे विशदातिभक्तिः । सुधानिधानं वचनं यदीयं परोपकारकरसं वपुश्च ॥६॥ यशोवीरस्य षट पुत्राः षडगुणा इव विश्रुताः । शोल्लिकायां महासत्यां नीतौ जन्माऽऽपुरद्भुतम् ॥७॥ तदाद्यो बोहडिः श्रेष्ठी द्वितीयो राउतस्ततः । तृतीयो गांगदेवस्तु चतुर्थो देल्हकः सुधीः ॥८॥ पंचमो धांधुकस्तेषु षष्ठः षोषन इत्यमी। सर्वेऽप्यवृजिना धर्मकर्मण्युद्यतमानसाः ॥९॥ बोहडिप्रेयसी देविण्यभूद् युवतिमंडनम् । आम्रसीहः सुतस्तस्याः पौत्रो धीणिग इत्यथ ॥१०॥ राजपुत्रस्य षट् पुत्रा राहू-मोहिणिसंभवाः। आमणो वोडसिहोऽभयडो नउलकस्तथा ॥११॥ सेवाको मोहणश्चाथ शान्ती वइजू सुते शुमे। सेवाप्रिया भोपला तु करला कालकस्य च ॥१२॥ शतपत्राभिधग्रामे वोहडिप्रमुखः सुतः। नेमिश्रीपाश्वयोबिबे पित्रोः पुण्याय कारिते ॥१३॥ अभयडस्य लक्ष्मश्रीः प्रिया पुत्रश्च गोल्हणः । मूलदेवोऽपरः सीलू पुत्री राउतसन्ततौ ॥१४॥ प्राचीनसीतादिसतीगणस्य मध्ये ययाऽऽत्मा विहितः स्वशुद्धया । सा सूमिणिदेल्हुकगेहलक्ष्मीरभूत् पुनश्चापलतां न भेजे ॥१५॥ तस्याश्चतस्रस्तनया बभूवुरुन्निद्रशीलाभरणप्रकाशाः । यासां ध्वनिः श्रोत्रपुटैनिपीय सौहित्यमापुः पशवोऽनभिज्ञाः ॥१६॥ आये चंपलचाहिण्यौ गीतविज्ञानकोविदे। अन्ये सोहिणिमोहिण्यावेताः कस्य मुदाय न ॥१७॥ धांधूकस्य प्रिया पातू संतानी नैव सोऽभवत् । षोषनस्य प्रिया लाडी पंच पुत्राः सुताद्वयम् ॥१८॥ साढणः प्रथमः पुत्रस्तथा धरणिगोऽपरः। यशोधवलस्तृतीयस्तु खीमसिंहश्चतुर्थकः ॥१९॥ पंचमो भीमसिंहोऽथ लाछूरूपलपुत्रिके। षोषनस्य बभूवेयं संततिः शुभशालिनी ॥२०॥ इतश्च देल्हुकसुता प्रागुक्ता प्रथमोद्भवा । पित्रोः श्रेयोऽर्थमत्यर्थ धर्मकर्मणि सा वरा ॥२१॥ आबाल्यात् कुमुदेन्दुकांतिविशदं यच्छीलमापालितं यद्भक्तिस्त्रिजगत्प्रतीतमहसि श्रीवीतरागेऽधिका। यत्पूजा च चतुर्विधे भगवति श्रीसंघभट्टारके तेनेयं विशदान्वयेति सुदती संलक्ष्यते चांपला ॥२२॥ तया तु छत्रापल्लीयश्रीपद्मप्रभसूरितः। देशनामृतमाकर्ण्य वैराग्योत्सुकयाऽधिकम् ॥२३॥ स्वभुजार्जितवित्तेन श्रीपार्श्वप्रतिमा गृहे। कारिता सुव्रतस्येदं चरित्रं लेखितं तथा ॥२४॥ पूर्वोक्तबिबयोः पावें श्रीयगादिजिनालये। श्रीमहावीरबिंबं च कारितं सपरिच्छदम् ॥२५॥ विह्निक्षितिजे १३०४ नृपविक्रमवत्सराद् गते वर्षे । परिपूर्णमिदं जातं सद्गुरूणां प्रसादतः ॥२६॥कुलकम्।। चंद्रार्कावुदयं यावत् कुरुतः प्रतिवासरम् । मेदिनी विद्यते यावत् तावन्दतु पुस्तकः ॥२७॥ . प्रशस्तिः समाप्तेति । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २५७७॥ संवत् १३४३ आषाढ शुदि १ साधुवरदेवसुत दिग्वलयविख्यातकीर्त्तिकौमुदीविनिर्जित आमचंद्र साधुहेमचंद्रभ्रात्रा विशदगुणरत्नरोहणेन सा महणश्रावकेण श्रीमुनिसुव्रतनाथचरित्रादिपुस्तकसप्तकं माल्येन गृहीत्वा श्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरुभ्यो व्याख्यानाय प्रदत्तं ॥छ।। विप्रकीर्णपत्रगता प्रशस्तिः -- .................... पूर्व चन्द्रकुले विशालविलसद्भव्यालिपद्माकरोल्लासे भानुनिभो बभूव यतिपः श्रीवर्द्धमानाभिधः ॥ श्रीजिनेश्वरसूरिश्रीबुद्धिसागरसूरिसुविहितवेद्याः। प्रभो.............. .......................॥ पंचाशकानिश्रीपार्श्व......... ........श्रीदंडछत्रापल्लीयता ।। भारत्याः कति नाम नामलधियः पुत्राः पवित्राः परं श्रीदेवप्रभसूरिणैव हृदयं तस्याः समावर्जितम् । वक्तृत्वं कविता विवेचनमिति स्वं सारमस्मै स्वयं देव्या येन वितीयते स्म जननादारभ्य सं......।। रूपं वापि मनोहरं क्वचिदपि..................सकला क्वचित् क्वचिदपि प्रौढाथकाव्यक्रिया । चातुर्य वचसां कचित् परमहो येष्वेव सर्वे गुणा अन्योन्य विरहासहा इह सभ सर्वात्मनाऽपि स्थिताः ॥ संसारार्णवपातमीतभविनां रक्षाव्रतं बिभ्रतं सिद्धान्तांबुधिपारगां यतिजने कल्पद्रुकल्पां कलौ । ......... महं० मुंजालदेवाख्यः श्रद्धासंबंधबन्धुरः। मातुः श्रेयोविधानाय व्याख्यापयति पुस्तकम् ॥ [ अपूर्णा ] क्रमाङ्क २५७ मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र पद्य पर्वत्रयात्मक पत्र. १९१। भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि। ग्रं. ५५६८ । र. सं. १२९४ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३१॥४२॥ । पत्र १९०मां द्विभुजा सरस्वतीदेवी उभी मुद्रामा चित्र छ। पत्र १९१ मां मुनिसुव्रतस्वामिनी अधिष्ठात्री वैरोट्यादेवीन चित्र छ । क्रमाङ्क २५८ मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र पद्य पर्वत्रयात्मक पत्र २२१ । भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि । ग्रं. ५५६८। र. सं. १२९४ । ले. सं. १४ मी शताब्दी। संह. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ। लं. प. ३१॥४२॥ पत्र १-६, ९०-२२१ प्राचीन पत्र खोवाइ जवाथी लगभग ते ज समयमां कागळ उपर लखावीने मूकेला छ। प्रति शुद्ध छ । क्रमाङ्क २५९ नेमिनाहचरिउ पत्र ३०४ । भा. अप.। क. बृहद्गच्छीय हरिभद्रसूरि। ग्रं. ८०३२। र. सं. १२१६ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. २९॥४२।। पत्र ३०४ मां शोभन छ। पह अणंतरु हुयउ पासु पासाउ वि वीरजिणु, इंद्रभूइ अह तह सुहम्मु वि। ता जंबूसामि अह पहवु तयणु गुरुगणु असंखु वि । अह कोडियगणि चंदकुलि, विउल वइरसाहाए । अइगच्छंतिहि अणुकमिण, बहुगणहरमालाए॥ हुयउ ससहरहारनीहारकुंदुज्जलजसपसरभरियभुवण वडगच्छमंडणु। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २५९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र जिणचंदमुणिदु धरवलयभवियजणहिययरंजणु । तसु पुणु पट्टह जसकलसु, आसि जगुत्तिमु सीसु । अवितहत्थनामिण पयड, सिरिसिरिचंदमुणीसु ॥ पहु पयडु वि हुयउ हरिभद्दसूरि प्ति [वि]णेयलवु असमविविहगुणरयणभूरिहि । सारयससिविमलजसभरियधरह सिरिचंदसूरिहि । १४ तह सिरिमालपुरुब्भविउ, पोरुयाडअभिहाणु । चिट्ठइ वंसु असंखगुणनरमाणिक्कनिहाणु ॥ जो य संठिउ नयरि सिरिमालि लच्छीए पयडीहविवि विहियअसम सव्वंगरिद्धिउ । गंभूयपुरीए गउ वट्टमाणसुहिसयणबुद्धिउ । हत्थ तुरंगम सहसय, नय - किरियाण य धामु । तम्मि वंसि सुपसिद्धु हुउ, ठक्कुरु निन्नयनामु ॥ अवर अवसरि जणयबुद्धीए वणरायनराहिविण नीउ संतु अणहिलवाडइ । विज्जाहरगच्छि कय सहभवणझयछलि भम्वाडइ । निययकित्तिकाभिणि दिसिहिं, नीसेसिहि वि ललंत । जइ अज्ज वि कोउगु कासु वि, तासु नियउ पसरत ॥ तयणु सरयसमयरयणियर किरणावलिनिम्मलिहि गुणिहि पत्तअसरिसमडप्फरु | हु निन्नयअंगरु लहरनामु दंडधरु मणहरु | तेण य विज्झगिरिहिं गइण, गहिय अणेग करिंद । निज्जिय पुणु करिहरणमण, बहुविह समरि नरिंद ॥ - धनुहि विहिय जीए अवयारि लीलाइ वि रिउ जिणिय अजु वि देवि सा विज्झवासिणि । तिण कारिय संडथल गामि अत्थि दुरिओहना सिणि । किंतु लहर नामिण स तहिं, धगुहावि त्ति पसिद्ध । हूय सयलधरणियलकयपूयविसेससमिद्ध ॥ तत्थ पत्ति हत्थिदंसणिण वणरायनराहिविण सुप्पसन्नचित्तेण लहरह । तं चैव य संडथल गामु दिष्णु कज्जे थइयह । तसु पुणु लच्छि - सरस्सइहि, देविहि विहिय पसाउ । महियलविलसिर जसपसरु, असमगुणिहिं विक्खाउ || टकसालहं सिविरुद्ध जिण ठवियउ चित्तपडु लच्छि निवेसिय मुद्दासु जेण य । जसु संचिण वह इह मूलराय मज्जाय तेम्वय । मूलराय चामुंडनिव, वल्लहरायहं कालि | दुल्लहरायह चुलुगकुलतिलयहं रज्जि विसालि ॥ दसहं एगहं सचिवपयभारउद्धारणि सु धुरधवल वीरनामु हुउ सचिवपुंगवु । अंतम्मिय सुगुरुपयमूलि चरणु सेविवि अणासवु । जाणिव पुन्नु सव्वायरिण, नियजीवियफल लेइ । सरवसुदिसिवरिसम्म १०८५, जससेसत्तणु पावेइ ॥ तसु वि नंदणु विउ सुकुलीणु सुसमत्थउ खंतिपरु सीलवंतु सोहग्गसुंदरु । नेदु त्ति अमच्चु हुउ जसु पसन्नु सिरिभीमनरवरु । बीउ वि दंडाविपयपावियअसमपइड । विमलनामु नंदणु हुयउ, असरिसगुणिहिँ गरिडु ॥ अवर अवसर भीमनररायवयणेण विवक्खजयहेउ विमल चउरंगसेन्निण । सिरिचडावल्लिवरविसइ पत्तु नियसत्तिजोगिण | अह संगहियविवक्खसिरि कयनियपहु अ [.] । तत्थ वसंतु सु सच्चवर, अब्बुर सिहरिविसे ॥ तयणु पसरियगरुय उच्छाहु सिरिअंबाएविवरवसिण दिअसरिसवसुंधरु । तक्काल वि लगु सिरिभीम - नेढआए सुंदरु । अब्बुयगिरिरायसिहरि, निम्मलफालिहवन्नु । उसहजिणेसरचेइहरु, कारावे वन्नु ॥ तयणु हरिकरिरयणसंगयहं सव्वंगियलक्खणहं निलउ संडनामिण य तियसिण । १०५ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ निच्चं पि हु विहियबहुसन्निहाणु गुरुभत्तितरसिण । निरु नचावि कित्तिवहु, भुवणरंगमज्झम्मि । उवजुंजिय मणि - कणय - धणु, सयण-सुयणकज्जम्मि ॥ gas ace des धवलु त्ति सिरि भीमएवंगरुहकन्न एवनिवइहि महामइ । तसु वि जयसिंहनिवरज्जसमइ पसरंतसंपइ । धणुहाविहिं पविइनवरु, कय रेवतपसाउ । आणंदु त्ति जहत्थअभिहाणु सचिव संजाउ || चंदनिम्मलसीलकयसोह निक्कारणकारुणिय सुगुणवंत पणमंतवच्छल । पउमावर नाम तसु हूय दइय सद्धम्मपश्ञ्चल । अह सिद्धाहिव - कुमरनिवसुकयभरिण भज्जंत । नं अवलोइवि सयल धर असुहियजणसंजुत्त ॥ विहिण करुणारसिण सित्तेण सिद्धाहिव - कुमरनिवरज्जकालि नयमग्गनिडिउ । वयगरणस्सिरिगरणभारधवलु ससिसमदिट्ठिउ । क्र. २६० सचिवाहिवइ विणिम्मविउ, सिरिआनंदह पुत्तु । सरसइवरज्वलद्धसिरि पुहइपाल निरुत्तु ॥ ते अब्बुयगिरिहिं सिरिविमलनिम्मावियजिणभवणि असमरूवु मंडवु कराविव । तसु पुरउ करेणुग्य सत्त मुत्ति पुव्वयहं ठाविवि । नियजणयह पुणु सि... कइ, जालिहरइ गच्छम्मि । जणणीए वि पंचासरइ, पासजिगंदगिम्मि || मायमायह सीणिनामाए पुणु चट्टावलियह वीरनाहजिणहरह पंगणि । इह मंडव कारविय असमरूव अणहिल्लपट्टणि । तह रोहाइय वारहइ, सायणवाडइ गामि । सजणणि - जणयह वोल्हयह, सेयकज्जि अभिराम ॥ तिजयतिलयह संतिनाहस्सु काराविउ जिणभवणु सयलनीइसत्थुत्तविहिण । नर-नारि-तुरंग - करिरयणविसयलक्खणविसिट्ठिण, तयणु लिहाविवि पुत्थयहं सइहि सयल सिद्धंत । आराहिवि तित्थाहिवहं, चलण जणियजम्मंत ॥ मणसंघुवि विविवत्थूहिं पडिलाहिवि अप्पु कयकिच्चु करिवि सद्धम्मकम्मिण । नियजणणी जणयई वि धम्महेउ जिणनाहभत्तिण । पुहइपाल महामहं अब्भत्थणह वसेण । इहु हरिभद्दमुणीसरिण, चरिउ रइउ लेसेण ॥ मह न तारिसु वयणविन्नाणु न य मंत-तंतप्फुरण जइ वि तह वि पहुभत्तिजोगिण । इहु ने मजिणेसरह चरिउ रइउ मई गुरुपसाइण । इय इहु भुवणसुहावणउं सुयणहु सुणहु चरितु । अहव सयं पि हु ते विबुह, चिंतामणिसुपवि कुमरवालह निवह रज्जम्मि अणहिलवाडइ नयरि अनणुसुयणबुहयणहं संगमि । सोत्तर बारसई १२१६ कत्तियम्मि तेरसि समागमि । अस्सिणि रिक्खिण सीमदिणि, सुष्पवित्ति लग्गम्मि । एहु समत्थिउ कह वि नियपरियणसाहज्जम्मि ।। पच्चक्खर गणणाए, सिलोगमाणेण इह पधम्मि । अट्ठेव य स्सहस्सा, बत्तीस ८०३२ सिलोगया होंति ॥ जं किंचि भए अणुचियमुवइटुं तुच्छमइविसेसाओ । तं पसिउ मह सुयणा, सोहंतु कयप्पसायति ॥ यस्यांह्रिद्वयनखमणिमयूखसंक्रांत सुरपतिश्रेणिः । निजलघुतामिव कथयति, वपुषाऽपि जयत्वसौ नेमिः ॥ यावच्चन्द्रो यावद् दिवाकरो यावदमरगिरिरत्र । राजति तावज्जीयात् श्रीने मिजिनेन्द्रचरितमदः || उद्यलक्षणशास्त्र संचयनिधीन् सद्धर्ममुद्रावधीन्, सिद्धान्तैकसहस्रपत्रतरणीन् सद्वादिचूडामणीन् । तर्काध्वन्यतरून् मनोभववधूवैधव्यदीक्षागुरून्, साहित्यामृतसागरान् मुनिवरान् श्रीचन्द्रसूरीन् स्तुवे ॥ ॐ ॥ ॥ इति श्री चन्द्रसूरिक्रमकमलभसल श्री हरिभद्रसूरिविरचितं नवभयोपनिबद्धं श्री नेमिनाथचरितं समाप्तम् ॥छ॥ 11 Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . क. २६० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १०७ क्रमाङ्क २६० (१) अरिष्टनेमिचरित्र (भवभावनावृत्त्यंतर्गत.) पत्र २५५। भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि। ग्रं. ५१००। र. सं. ११७० । ले. सं. १२४५। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४॥४२॥ आदि द ॥ नम : श्रीमदरिष्टनेमये ॥ अज्ज वि जस्स पवत्तइ धम्मो नीई य भरहवासम्मि। तं पढमजिणवरं पणिवयामि निद्दलियदुरिओहं ॥१॥ निभिन्नसक्कहियया वि जस्स हिययम्मि वज्जघडिए व्य । कुंठत्तं पडिवन्ना मयणसरा जयउ सो नेमी ॥२॥ धरणिदसणाहाओ जं विजादेवयाओ सेवंति । सो मज्झ पसीयउ पासजिणवरो जणियजयसोक्खो ॥३॥ नामग्गहणम्मि वि जस्स ल्हसइ सयलो वि दुरियसंघाओ। उवसग्गकरिघडाकढिणकेसरी जयउ सो वीरो॥४॥ अजियाइणो जिणिंदा सेसा वि जयंति निज्जियारिगणा। नरसुरपहहिं पयपंकएसु भसलाइयं जाण ॥५॥ सिरिगोयमाइयाणं सूरीण समत्थसत्थजलहीण । पत्थियफलाई पयपंकयाइं पणमामि पयओ ह ॥६॥ लेसं पि जस्स उवजीविऊण पावंति निव्वुइं जीवा । वीरवयणामयं तं सया वि परिणमउ मह सव्वं ॥७॥ गुरुणो जयंति परमोवयारिणो जाण तोसलेसेण । एवं जंपेमि कइ व्व किपि अहमवि अमुणियप्पा ॥८॥ सा जयउ जीए सुयदेवयाए सुयभत्तितोसियमणाए। असरिसपारद्धाई वि सिग्घमविग्धं समप्पंति ॥९॥ थोयव्ववत्थुसंथववज्जविणिद्दलियविरघवग्गोह।नित्थिण्णदुत्थसत्थो पत्थुयमत्थं पक्क्खामि ॥१०॥ धम्मो अत्थो कामो पुरिसत्था एत्थ तिणि सुपसिद्धा। चंचापुरिससरिच्छा होंति नरा ताण विरहम्मि ॥११॥ कामाओ तत्थ गरुओ अत्थो तबज्जियाण जं कामो। अहिलसमाणाणं पि हु न होइ दारिद्ददड्ढाण ॥१२॥ अत्थाओ वि हु गरुओ धम्मो च्चिय जेण सयलधन्नाणं । मेहो व्व इमो हेऊ नीसेससमीहियत्थाण ॥१३॥ अणुहविऊणं अइसयजुयाई सुरनरसमिद्धिसोक्खाई। धम्माउ च्चिय निव्वुइसुहं पि पावंति जं जीवा ॥१४॥ सोहगारोग्गजणाणुरायबलरूवरिद्धिमाईयं । धम्मेण सुहं सयलं पि अण्णहा अइपसंगो उ ॥१५॥ धम्मो य दाणसीलाइमेयओ भन्नए चउवियप्पो। तत्थ वि तवो विसिस्सइ जं भणियं वीयरागेहि ॥१६॥ पुवि दुच्चिण्णाण मोक्खो कम्माण वेइयाणऽहवा । तवसोसियाग तेर्सि वोच्छेओ होइ सयलाण ॥१७॥ सज्झायझाणम्मि रयस्स ताइणो, अपावभावस्स तवे रयस्स । विसुज्झई जं सि रयं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥१८॥ जहा महातडागस्स सन्निरुद्ध जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे ॥१९॥ एमेव संजयस्सावि पावकम्माणऽणासवे । भवकोडीसंचियं कम्म तवसा निज्जरिज्जइ ॥२०॥ सव्वासि पयडीणं परिणामवसादुवकमो भणिओ। पायमनिकाइयाणं तवसा उ निकाइयाणं पि ॥२१॥ बारसमेए य तवे धम्मज्झाणाइहेउभावेण । सज्झाओ च्चिय दिट्ठो बहूवयारि त्ति जं भणियं ॥२२॥ बारसविहम्मि वि तवे सब्भितरबाहिरे जिणक्खाए। न वि अत्थि न वि अ होही सज्झायसमं तवोकम्मं ॥२३॥ एत्तो सव्वन्नुत्तं तित्थयरत्तं च जायइ कमेण । इय परमं मोक्खंगं सज्झाओ होइ नायव्वो ॥२४॥ त नत्थि जं न पासइ सज्झायविऊ पयत्थपरमत्थं । गच्छद य सुगइमूलं खणे खणे परमसंवेयं ॥२५॥ कम्ममसंखेजभव खवेइ अणुसमयमेव आउत्तो। अण्णयरम्मि वि जोगे सज्झायम्मी विसेसेणं ॥२६॥ वायण पुच्छण परियट्टणाऽणुपेहा तहेव धम्मकहा । पंचविहो सज्झाओ विसिस्सए तत्थ धम्मकहा ॥२७॥ जम्हा अत्तवगारो परोवयारो य जायइ इमीए । अत्तवगारफल चिय पाय सेसा भवे मेया ॥२८॥ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २६०अक्खेवणी य विक्खेवणी य संवेयणी य तह चेव । निव्वेयणी चउत्थी धम्मकहा होइ नायव्वा ॥२९॥ इय भावेऊण अहं धम्मकहं भणियरूवमक्लेमि । उत्तमपुरिसोदाहरणसंगता सा वि उक्करिसं ॥३०॥ जंतूण जणइ निच्चं लोए सव्वुत्तमा य तित्थयरा । तन्नामग्गहणं पि हु सुहयं जंतूण तो जम्हा ॥३१॥ ते केवि जए जायंति जाण नामक्खरोवलंभे वि । हरिसियमणं कयत्थं अप्पाण मन्नइ जयं पि ॥३२॥ नामे च्चिय संकेता नूण गुणा परिभमंति गरुयाणं । जं तग्गहणे वि बुहा मुणंति कयकिच्चमप्पाणं ॥३३॥ अन्नेसि पि हु सुहयाइं होंति चरियाई जिणवरिंदाणं। सोहग्गमहानिहिणो विसेसओ नेमिनाहस्स ॥३४॥ पिकाई चूयतरुणो केवलयाणि वि फलाणि सरसाइं। सहियाणि सकराए सरसत्तं ताण किं भणिमो? ॥३५॥ सुहयाई केवलस्स वि सिरिनेमिजिणस्स विमलचरियाई। राइमईसहियस्स उ ताई जए कं न सुहयंति? ॥३६॥ इय राइमईए समन्नियस्स सिरिनेमिजिणवरिंदस्स । सम्मत्तुवलंभाओ नवभवसंबद्धचरियमिणं ॥३७॥ हरिवंसपमुहबहुसत्थदुद्धजलहीओ उद्धरेऊणं । अमयं पिव सुहजणयं सज्जणजंतूण वियरेमि ॥३८॥ न जओ अमएण समं जुज्जइ कइया वि कालकूडविसं । तो अमयतुल्लमेयं न अरिहए दुज्जणो सोउं ॥३९॥ न य जणइ मणे सोक्खं कयाइ सूरुनगमो उलूयस्स । ससिजुण्हा विन निव्वुइमावहइ कुसीलवग्गस्स ॥४०॥ असओ वि जणइ दोसे सते वि गुणे पणासए सव्वे । विहिपरिणामस्स व दुज्जणस्स विसमा गई लोए ॥४१॥ खलसंथवे य अलिय पावं निंदाए होइ विहियाए। तह जत्तसंथुओ वि हु दोसे च्चिय जंपए एसो ॥४२॥ निदिज्जतो य पुणो दोसं सविसेसमेव सो जणइ । पावाण खलाण तओ अलं कहाए वि पावाए ॥४३॥ खलनिंदणे य जायइ खलत्तणं अप्पणो वि थुइवाए। तस्स य अलिय तम्हा जुत्ता अवहीरणा तेसिं ॥४४॥ तो गंभीरा लहुकम्मुणो य मज्झत्थमाणसा धीरा । सवणम्मि सज्जण च्चिय जोग्गा एयस्स चरियस्स ॥४५।। तेसिं पुण निंदाए गरुयं पाव थुई वि अम्हेहि। तुच्छमईहिं असक्का ताणमणंतगुणनिलयाणं ॥४६॥ थुइविरहे वि य गिण्हंति ते गुणं छाययंति पुण दोसं । कव्वस्स जेण एसा पगइ च्चिय ताण धीराण ॥४७॥ अब्भत्थेयव्व च्चिय तो ते सुयणा सकव्वसवणम्मि । तेण भणामि निसामह अवहियचित्तेण भो सुयणा ! ॥४८॥ सिरिनेमिजिणस्स तहा सिरिरायमईए नवभवसमेयं । वोच्छामि चरियमेयं ते य इमे नव भवा कमसो ॥४९॥ धण धणवइ १ सोहम्मे २ चित्तगई खेयरो य रयणवई ३।। माहिंदे ४ अपराजिय पीइमई ५ आरणे तत्तो ६ ॥५०॥ संखो जसमइभजा ७ तत्तो अपराजिए विमाणम्मि ८ । नेमी राइमई वि य ९ नवमभवे दो वि वंदामि ॥५१॥ आसि इह भरवासे कालवणं पिव सुपत्तसंकिन्न । कयरायहंससोहं भमरहियं सिरिनिवासं च ॥५२॥ अम्त॥ इति नवभवप्रतिबद्धं श्रीमन्नेमिजिनचरिताख्यानक समाप्तम् ॥छ।। ॐ ॥छ।। ग्रंथाग्रं ५१०० ॥छ।। श्रीप्रश्नवाहनकुलांबुनिधिप्रसूतः क्षोणीतलप्रथितकीर्तिरुदीर्णशास्त्रः । विश्वप्रसाधितविकल्पितवस्तुरुच्चै छायाश्रितः प्रचुरनिवृतभव्यजन्तुः ।।१।। ज्ञानादिकुसुमनिचितः फलितः श्रीमन्मुनींद्रफलवृन्दैः । कल्पद्रुम इव गच्छः श्रीहर्षपुरीयनामाऽस्ति ॥२॥ एतस्मिन् गुणरत्नरोहणगिरिगीभीर्यपाथोनिधिस्तुगत्वानुकृतक्षमाधरपतिः सौम्यत्वतारापतिः । सम्यग्ज्ञानविशुद्धसंयमतपःस्वाचारचर्यानिधिः शान्तः श्रीजयसिंहसूरिरभवन्निःसंगचूडामणिः ॥३॥ रत्नाकरादिवैतस्माच्छिष्यरत्नं बभूव तत् । स वागीशोऽपि नो मन्ये यद्गुणग्रहणे प्रभुः ॥४॥ श्रीवीरदेवविवुधैः सन्मंत्रायतिशयप्रवरतोयैः । द्रुम इव यः संसिक्तः कस्तद्गुणकीत्तमे विबुधः ।।५॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २६३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १०९ तथाहि आज्ञा यस्य नरेश्वरैरपि शिरस्यारोप्यते सादरं यं दृष्ट्वाऽपि मुदं व्रजन्ति परमां प्रायोऽतिदुष्टा अपि । यद्वक्राम्बुविनिर्यदुज्ज्वलवचःपीयूषपानोद्यतैर्गीर्वाणरिव दुग्धसिंधुमथने तृप्तिर्न लेभे जनैः ॥६॥ कृत्वा येन तपः सुदुष्करतरं विश्वं प्रबोध्य प्रभोस्तीर्थ सर्वविदः प्रभावितमिदं तैस्तैः स्वकीयगुणैः । शुक्लीकुर्वदशेषविश्वकुहरं भव्यैर्निबद्धस्पृहं यस्याशास्वनिवारितं विचरति श्वेतांशुशुभ्रं यशः ॥७॥ यमुनाप्रवाहविमलश्रीमन्मुनिचन्द्रसूरिसंपर्कात् । अमरसरितेव सकलं पवित्रितं येन भुवनतलम् ॥८॥ विस्फूर्जत्कलिकालदुस्तरतमःसंतानलुप्तस्थितिः सूर्येणेव विवेकभूधरशिरस्यासाद्य येनोदयम् । सम्यग्ज्ञानकरैश्चिरंतनमुनिक्षुण्णः समुद्योतितो मार्गः सोऽभयदेवसरिरभवत् तेभ्यः प्रसिद्धो भुवि ॥९॥ निजशिष्यलवश्रीहेमचन्द्रसूरेर्मुखेन तेनेदम् । श्रीरिष्टनेमिचरितं विहितं श्रुतदेवतावचनात् ॥१०॥ सप्तत्यधिकैकादशवर्षशतैः ११७० विक्रमादतिक्रान्तैः । निष्पन्नं चरितमिदं श्रावणरविपंचमीदिवसे ॥११॥छ।। ॥ सं. १२४५ वर्षे चैत्र शुदि १४ रवौ चरितमिदं लिखितमिति ॥छ।। (२) जिनदत्ताख्यान पत्र २६५-२९४ । भा. प्रा.। क. सुमतिगणि। ग्रं. ७५०। ले. सं. १२४६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४॥४२।।। पत्र २५६-२६४ सुधीना अंको लेखकनी भूलथी रही गया छे. अन्त संवत् १२४६ वर्षे ॥ श्रावणवदि ६ गुरावद्येह श्रीमदणहिलपाटके श्रावकरांवदेवेन निजपितृव्यश्रेयोर्थ श्रीमदरिष्टनेमिचरितं जिनदत्तकथासमं लिखापित पुस्तकं ॥छ।। क्रमाङ्क २६१ पार्श्वनाथचरित्र पत्र २२९ । भा. प्रा.। क. देवभद्रसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८४२॥। पत्र ३४ मुं नथी। ग्रन्थकारनी प्रशस्ति अपूर्ण छ । क्रमाङ्क २६२ पार्श्वनाथचरित्र किंचिदपूर्ण पत्र २९२ । भा. सं.। क. माणिक्यचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध। संह. जीर्णप्राय। द. श्रेष्ठ । लं. प. २०४२॥ जुना पानां १०६ नी साथे नवां लखेलां १२६ पानानो संबंध जोडाय छे। पत्र १५, १२६, २६९, २८५, २८६ नथी । क्रमाङ्क २६३ महावीरचरित्र गद्यपद्यबद्ध पत्र ३६३ । भा. प्रा.। क. गुणचन्द्रसूरि। ग्रं. १२०२५। र. सं. ११३९। ले. सं. १२४२। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२॥ पत्र ३६२ मां सिद्धायिकादेवीचें चित्र छे।। पत्र ३६३ मांनां त्रण चित्रो पैकी एकमां आचार्यने महावीर चरित्रनुं व्याख्यान करता बताववामां आव्या छे, बीजामां श्रावको अने श्राविकाओनुं चित्र छे अने पाछळ पूर्णकळशन अधैं उखडीगएलुं चित्र छ । अन्त ॥छ । संवत् १२४२ कार्तिक सुदि १३ गुरौ ॥छ ॥ॐ॥ छ । छ । विकमनिवगयकाले बायालहिए य बारससए य। कत्तियतेरसिए गुरुवासरे सोहणमुहुत्ते ॥ संसारोयहितरिय सयस्थभरियं दुहोहपरिहरियं । सिरिवीरनाहचरियं लिहियमिणं सूमणबुहेण ॥ छ । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २६४क्रमाङ्क २६४ पउमचरियं गाथाबद्ध पत्र २६ । भा. प्रा.। क. विमलाचार्य। ग्रं. १०३००। र. सं. वीरसंवत् ५३० । ले. सं. ११९८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २८४२।। अंत्य पत्रमा शोभन छ। अन्त यच्छब्दैकसमाश्रयो यदपि च द्रव्यत्वपात्रं परं, यद्भास्वत्खचितं यदङ्गविभुतासम्भावितं सर्वतः । यत् प्रोद्यत्कविमण्डलैकनिलयं यन्मङ्गलोल्लासभूस्तद्वयोमप्रतिमं समस्ति जगति श्रीभैल्लमालं कुलम् ॥१॥ अभूच्चन्द्रप्रभस्तत्र दीप्रः सत्करशोभितः। स्वकुलोत्पलिनीषण्डचण्डमार्तण्डसन्निभः ॥२॥ लज्जामन्दिरमुद्यमैकवसतिः शीलैकसंवासभूधर्मारामपयःप्रबुद्धजनतानेत्रोत्सवेंदुद्युतिः । प्रावीण्याम्बुजहंसिकाकुलवधूः धर्मेकपुण्याश्रमः, पत्नी तस्य वभूव राजिणिरिति श्रद्धाविशुद्धाशया ॥३॥ या च रोमाञ्चकञ्चकचिताञ्चितगात्रयष्टिः, स्पष्टोल्लसद्विशदमोक्षसुखाभिलाषा । श्रीमन्मुनीन्द्रमुनिचन्द्रगुरोः समीपे सुश्रावकव्रतधुरां विधिना प्रपेदे ॥४॥ ज्येष्ठं सा च यशोधनं निरुपमप्रावीण्यपण्यापणं, पुत्रं पुण्यनिबन्धनकवसतिं प्रासूत नीतिप्रियम् । यत्राऽऽरोप्य कुटुम्बभारमखिलं स न्यस्तचित्तव्यथः, सत्साधून सदुपासकानहरहः सम्यक् सिषेवे पिता ॥५॥ आराधितजिनदेवं शोभनदेवं तथा परं पुत्रम् । पित्रोर्येन पवित्रं पदाम्बुजं सेव्यते सततम् ॥६॥ अन्यदा राजिणिश्चक्रे पुत्रवर्गसमन्विता। संसारासारतां ज्ञात्वा ज्ञाने स्वनिर्मलं मनः ॥७॥ तथाहि प्रादुर्भवद्विविधकोविदबुद्धिवृद्धौ, दुर्बोधयोधयुधि लब्धजये यतन्ते । जैनेन्द्रशासनमवाप्य न के मनुष्या, हृष्टा विलेखनविधौ जिनपुस्तकानाम् ॥८॥ प्रायेण प्रतिवासरं सरभसं दोषान्धकारोदये, छन्नाशेषगुणालये हतकलौ कालेऽत्र संसर्पति । सर्वज्ञैः प्रतिपादितो यदि परं त्राता भवेन्मादशां, विश्वव्याप्यनुभावसम्पदुचितो ज्ञानांशुमाली किल ॥९॥ राजिणिः परिभाव्येदं ज्ञानस्य गुणमुत्तमम् । इदं पुस्तकमत्युच्चविधानेन व्यलीलिखत् ॥१०॥ यावद्विद्योतमानस्त्रिभुवनभवनाभ्यन्तरे बोधदीपः, सद्ध्यानस्नेहपूर्णः शमितमनसिजोत्तापचञ्चत्पतङ्गः । सद्दृष्टीनां विशिष्टस्फुरितरुचिगुणो विद्यते तावदत्र, प्राज्ञैः पापठ्यमानो जगति विजयतां पुस्तकोऽयं प्रशस्तः ॥छ।। सम्वत् ११९८ कार्तिक वदि १३ ॥छ। महाराजाधिराजश्रीजयसिंघदेवविजयराज्ये भृगुकच्छसमावस्थितेन लिखितेयं सिल्लणेन ॥छ । मङ्गलं महाश्रीः ॥ क्रमाङ्क २६५ समराइच्चकहा पत्र ३०७ । भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. १००००। ले. सं. १२५० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०४२। अन्त-॥छ॥ संवत् १२५० वर्षे लिखितं क्रमाङ्क २६६ कुवलयमालाकथा पत्र २५४ । भा. प्रा.। क. दाक्षिण्यांक उद्योतनसूरि । ग्रं. १३०००। र. सं. ७०० शाके। ले. सं. ११३९ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. २५।४२ अन्त ॥ इति कुवलयमाला नाम संकीर्णकथा परिसमाप्ता ॥ मंगलं महाश्री ॥ छ । संवत् ११३९ फाल्गु वदि १ रविदिने लिखितमिदं पुस्तकमिति ॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २६७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क २६७ विलासवाईकहा पत्र २०६। भा. अप.। क. साधारणकवि। र. सं. ११२३ । ग्रं. ३६२० । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४२।। पत्र १०८ मुं नथी। आदि ५० ॥ बहुरयणमणोहरु निम्मलपहयरु सगुणु सुवन्नाहिट्ठियउ । भण कस्स न सोहइ जणमणु मोहइ कव्वहारु कंठट्ठियउ ॥१॥ पढमउं पणमेप्पिणु उसहसामि पुणु अजिउ विणिज्जियभय थुणामि । संभवु भावेविणु भवविणासु वंदेवि अभिनंदणु गुणनिवासु ॥ सुमरेमि सुमइ सुगिहीयनामु कीरइ पउमप्पहजिण पणामु । आएवि जिण सुपसंसिउ सुपासु चंदप्पहु चितिवि चत्तपासु । विप्फुरियकंतु जिणु पुप्फयंतु सीयलु दुरियारिमहक्कयतु । सेयंसु असेससुहाण खाणि वसुपुज्जो विरंजियसयलपाणि । जिणविमलु अणंतु वि संभरेवि तह धम्म संति संथुइ करेवि । पय नमवि कुंथु-अरसामियाहं गउ सरणु मल्लि-मुणिसुव्वयाहं । नमि पणमवि तह य अरिट्टनेमि पुणु पास वीर वंदणु करेमि । पणमेप्पिणु सिद्धहं नाणसमिद्धहं आयरिउज्झहं मुणिहि । कयपोत्थयहत्थहि नाणमहत्थहि सुमरेप्पिणु सुयसामिणिहि ॥१॥ अन्त ए कह निसुणेविणु सारु मुणेविणु सयलय पावई परिहरहु । असुह मणु खंचहु जिणवरु अंचहु साहारणु मणु थिरु धरहु ॥छ ॥ॐ॥ ॥ ईय विलासवईकहाए एगारसमा सन्धी समत्ता॥छ। समत्ता विलासवइकहा ॥ पाणिज्जे मूलकुले कोडियगणविउलवइरसाहाए । विमलंमि य चंदकुले वसंमि य कञ्चकल्लाणे ॥ संताणे रायसहासेहरिसिरिबप्पहट्टिसूरिस्स। जसभद्दसूरिगच्छे महुरादेसे सिरोहाए ॥ आसि सिरिसंतिसूरी तस्स पए आसि सूरिजसदेवो । सिरिसिद्धसेणसूरी तस्स वि सीसो जडमई सो ॥ साहारणो ति नामं सुपसिद्धो अत्थि पुव्वनामेणं । थुइथोत्ता बहुमेया जस्स पढिज्जंति देसेसु ॥ सिरिभिल्लमालकुलगयणचंदगो वइरिसिहरनिलयस्स। वयणेण साहुलच्छीहरस्स रइया कहा तेण ॥ समराइच्चकहाओ उद्धरिया सुद्धसंधिबंधेण। कोउहल्लेण एसा पसण्णवयणा विलासवई ॥ एकारसहि सएहि गएहि तेवीसवरिसअहिएहिं। पोसचउद्दसिसोमे सिद्धा धंधुक्कयपुरंमि ॥ एसा य गणिज्जती पाएणाणुट्ठभेण छंदेण। संपुण्णाई जाया छत्तीस सयाइं वीसाई ३६२० ॥ जं चरियाओ अहियं कि पि इहं कप्पियं मए रइयं । पडिबोहकारणेणं खमियव्वं मज्झ सुयणेहि ॥ जयइ तियसिदसुंदरिवंदियपयपंकया कयारूढा। बुहयणविदिन्नवाणी सरस्सई सयलसुहखाणी ॥छ। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २६८ क्रमाङ्क २६८ विलासवईकहा पत्र २०३ । भा. अप.। क. साधारण कवि । र. सं. ११२३ । ग्रं. ३६२० । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२।। प्रशस्ति अपूर्ण छ। क्रमाङ्क २६९ _ आवश्यकादिगतकथासंग्रह गद्यपद्य पत्र २५७ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४१॥.। पत्र १६२, १८९ नथी। क्रमाङ्क २७० (१) धन्यशालिभद्रचरित्र पत्र १-१५६ । भा. सं.। क. पूर्णभद्र । ग्रं. १४६० । प्रशस्तिसह अं. १४९० । र. सं. १२८५ । ले. सं. १३०९। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४१॥ आदि द० ॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ श्रीनाभिनन्दनो भास्वान् सत्पथं प्रथयत्वसौ। गोभिराविश्चकारार्थान् यः सच्चक्राभिनन्दनः ॥१॥ हरिं यः प्रीणयामास मधुरैर्वचनामृतैः। श्रीमान् पार्श्वजिनो नेमिर्वीरः स भवतोऽवतात् ॥२॥ मनोरमपदन्यासा सदंगरुचिरा सदा। नन्धाद् गीविशदश्लोका जिनमूतिरिवामला ॥३॥ वाग्मिग्रामशिरोरत्नं वन्दे मत्र्येश्वरस्तुतम् । भक्त्या सुमेधसां धुर्य श्रीमज्जिनपति गुरुम् ॥४॥ इतिस्तुत्यस्तुतिक्षुण्णप्रत्यूहव्यूहसम्भवः। ग्रथयामि कथापीठं सूत्रधार इवाऽऽदितः ॥५॥ मानुष्यं प्राप्य दुःप्रापं भ्रष्टं रत्नमिवाम्बुधौ। धर्म एव विधातव्यो नरैः स्वहितकामिभिः ॥६॥ दानशीलतपोभावभेदैः स च चतुर्विधः। कथितस्तीर्थनाथायनिःश्रेयससुखप्रदः ॥७॥ तत्र शीलं सुदुष्पालं गृहिभिहसंस्थितैः । बाह्यमाभ्यन्तरं चैव तपोऽप्यत्यन्तदुश्चरम् ॥८॥ कुटुम्बचिन्तनव्यग्रमानसानां निरन्तरम्। सदारम्भप्रवृत्तानां भावनाऽपि सुदुर्लभा ॥९॥ तस्माद्दानं गृहस्थानामुचितं रुचित हितम् । भवसर्वकषं हेतुर्मामामृतश्रियः ॥१०॥ धन्यश्च शालिभद्रश्च कृतपुण्यादयो नराः । साधुदानप्रभावेण बभूवुः सुखभाजनम् ।।११।। सरसानि चरित्राणि तेषामेकैकशोऽपि हि । खण्डाज्यपायसानीव किं पुनर्मिलितान्यहो ॥१२॥ आदौ धन्यमुनेस्तत्र चरित्रं परिकीर्त्यते। शालिभद्रचरित्रेण पवित्रेण विमिश्रितम् ॥१३॥ अन्त ज्ञात्वैवं निर्निदानव्रतिवितरणतः सच्चमत्कारकारि, श्रीसंप्राप्ति नरत्वेऽनुपमसुररमासंगमं स्वर्गलोके । सर्वोपाधिप्रमुक्तातुलममृतसुखं चेभ्य-गोभद्रसून्वोः, पात्रेभ्यो दत्त दानं ननु सकलशिवान्याप्तुमिष्टानि वश्चेत् ।।१३७॥ नम्यं पूज्यमनेकनर्मलियशःशीलं सुरेन्द्रस्तुत, सद्वर्ण गुणदं जिनं कलरवं दुःकृच्छ्रभङ्गप्रदम् । मित्रं भव्यतमस्तमिस्रलवने शान्तं सुपाणि ध्रवं, वन्दे मानमहिंसकं भ्रमिगदातंकच्छिदं सुस्तवम् ॥१३८॥ पूर्णभद्रगणिनेदमलंकृतं इति नामाकं चक्रम् । इति श्रीधन्यशालिभद्रमहर्षिचरिते शालिभद्रपूर्वजन्मभणनादिधन्यशालिभद्रसर्वार्थसिद्धिगमनमहाविदेहविजयभाविमुक्तिप्राप्तिफलप्रतिपादनपर्यन्तव्यावर्णनो नाम षष्ठः परिच्छेदः ॥६॥ समाप्तं चेदं धन्यशालिभद्रमुनिपुङ्गवयोश्चरित्रमिति ॥छ।। अनुष्टुभां १४६० ॥छ।। श्रीमद्गुर्जरभूमिभूषणमणौ श्रीपत्तने पत्तने, श्रीमद् दुर्लभराजराजपुरतो यश्चैत्यवासिद्विपान् । निर्लोठ्यागमहेतुयुक्तिनखरैः वासं गृहस्थालये, साधूनां समतिष्टिपन्मुनिमृगाधीशोऽप्रधृष्यः परैः ।।१॥ सूरिः स चान्द्रकुलमानसराजहंसः श्रीमज्जिनेश्वर इति प्रथितः पृथिव्याम् । जज्ञे लसच्चरणरागभृदिद्धशुद्धपक्षद्वयः शुभगति सुतरां दधानः ॥२॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २७.1 जैन ताडपघीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १९३ तच्छिष्यो जिनचन्द्रसूरिरमृतज्योतिनवीनोऽभवत्, पद्मोद्भासनभृत्कलंकविकलो दोषोदयध्वंसनः । सुस्थयों जडिमापहारचतुरः सच्चक्रमोदावहो, दूरीभूततमोवृतिन कुटिलो न व्योमसंस्थानकृत् ॥३॥ __ अन्योऽपि शिष्यतिलकोऽभयदेवसूरिः, श्रीमज्जिनेश्वरगुरोः श्रुतकेतुरासीत् । पञ्चाशका-ऽष्टक-नवागमनोज्ञटीकाकारः सुचारुधिषणः सुमनःप्रपूज्यः ॥४॥ आकाऽभयदेवसूरिसुगुरोः सिद्धान्ततत्त्वामृतं, येनाज्ञायि न सङ्गतो जिनगृहे वासो यतीनामिति । तं त्यक्त्वा गृहमेधिगेहवसतिनिर्दूषणा शिश्रिये, सूरिः श्रीजिनवल्लभोऽभवदसौ विख्यातकीत्तिस्ततः ॥५॥ भास्वस्तितः समुदगाजिनदत्तसूरिभव्यारविन्दचयबोधविधानदक्षः । गावः स्फुरन्ति विधिमार्गविकासनकतानास्तमोविदलनप्रवणा यदीयाः ॥६॥ बाल्ये श्रीजिनदत्तसूरिविभुभिये दीक्षिताः शिक्षिता, दत्त्वाऽऽचार्यपदं स्वयं निजपदे तैरेव संस्थापिताः । ते श्रीमज्जिनचन्द्रसूरिगुरवोऽपूर्वेन्दुबिम्बोपमा, न प्रस्तास्तमसा कलङ्कविकलाः क्षोणौ बभूवुस्ततः ॥७॥ यैर्वादीन्द्रकरीन्द्रदर्पदलने सिहेरिव स्फूर्जितं, मोहध्वान्तविनाशने भुवि सदा सूयरिवोज्जम्भितम् । भव्यप्राणिसमूहकैरववने चन्द्रैरिवेहोद्गत, ते श्रीमज्जिनपत्यभिख्यगुरवोऽभूवन् यतीशोत्तमाः ॥८॥ तेषु स्वर्गाधिरूढेष्वहह बहुगुणस्तद्विनेयावतंसः, साधुऊरप्रभाष्यः सकलगणधुराधुर्यवोर्जितश्रीः। आचार्यैः सर्वदेवैर्विहितगुरुपदोऽधिष्ठितस्तन्महिम्ना, नामानं लम्भितः श्रीवसतिनिवसतिस्थापनाचुंचुसूरेः ॥९॥ श्रीचन्द्रगच्छमभिनन्दति शास्ति पाति तीर्थ प्रभावयति सम्प्रति जैनचन्द्र । यः श्रीजिनेश्वर इवाप्रतिमैर्वचोभिर्वतैरिव त्रिभुवनं पृणति प्रतीतः ॥१०॥ तदाज्ञया सद्गुणसवदेवाचायः समं जेसलमेरुदुर्गे । स्थितो गिरैषां स्वपरोपकारहेतोः समाधि मनसोऽभिलष्यन् ॥११॥ शरवसुरविसंख्ये १२८५ वैक्रमे वत्सरेऽस्मिन् , वहति तपसि मासे शुक्लपक्षे दशम्यां । जिनपतिगुरुशिष्यः पूर्णभद्राभिधानो, गणिरकृत चरित्र धन्यगोभद्रसून्वोः ॥१२॥ चरितमिदमखिलनिर्मलविद्याकूपारपारदृश्वानः । वाचकमुख्याः सूरप्रभाभिधाः शोधयाञ्चकुः ॥१३॥ धन्यसाधुमुनिशालिभद्रयोः प्रीतिकारि चरितं विधाय यत् ।। पुण्यमत्र समुपार्जितं मया स्तात्ततो जगदिदं सुखास्पदम् ॥१४॥ गगनसरसि यावन्निर्मले शारदेन्दुः, कलयति कलहंसस्फारलीलातिरेकम् । जगति जयति तावत् पठयमानं सुधीभिः, सुचरितमिदमुच्चेर्घन्यगोभद्रसून्वोः ॥१५॥छ।। सर्वसंख्यया प्रशस्तिरियं श्लोक २९ चरितं तु सर्वसंख्यया श्लोक १४९० ॥ (२) कृतपुण्यचरित्र पत्र १५७-३२८ । भा. सं.। क. पूर्णभद्र । र. सं. १३०५ । आदि ॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ अहं ॥ प्रथमजिनवरेन्द्रः प्रहृवसर्वामरेन्द्रः प्रदिशतु स सुखानि श्रायसश्रीसुखानिः । व्रतमहसि महिष्ठे सद्यांकूरपूराविव चिकुरवतंसौ व्यावभस्तां यदंसौ ॥१॥ श्रीशान्तिः शान्तये सोऽस्तु यत्पादौ सरलायतौ। धत्तः सिद्धिमहासौधतोरणस्तम्भविभ्रमम् ॥२॥ सद्धर्मचक्रनेमिर्वो नेमिर्बोधिश्रियं क्रियात् । येनालावि कलाकेलिलीलाकोमलकन्दली ॥३॥ श्रीमतेऽस्तु नमः पार्श्वचन्द्रायामृतहेतवे। सदैव कौशिकव्यूहलोचनानन्ददायिने ॥४॥ महावीरः श्रियं दिश्यात् स्वपुराद् भूतवातिनी। येनान्तरारिपटली धर्मद्वारा प्रवासिता ॥५॥ धन्यश्च शालिभद्रश्च कृतपुण्यादयो नराः। मुनिदानप्रभावेन बभूवुः सुखभाजनम् ॥६॥ १५ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २७०इत्युक्तं यत्तत्र तावद्धन्यश्रीशालिभद्रयोः। कथोक्ता कृतपुण्यस्य चरितं कीर्तयिष्यते ॥७॥ विशेषः पुनरत्राय पुरा दानान्तरायतः। प्राप्तानामपि भोगानां विघ्नोऽभूदन्तराऽन्तरा ॥८॥ रमणभवसुमुनिपायसदानावसरे त्रिभागकरणेन । दानान्तरायदोषादस्याभूद्धोगविघ्नोऽपि ॥१८॥ तदन्तरायोज्झितमेव दानं पात्राय दत्ताऽऽदरतो विशुद्धम् । येनामरी सम्पदमाप्य शस्यां सम्पूर्णभद्रं शिवमाप्नुत द्राक् ॥१८१॥ पूर्णज्ञानरमो भयापहतिकृद् रम्याङ्गचङ्गः स्फुटं, सत्पाणिद्वितयः स्वनेकपगमोऽदम्भोऽस्तशीर्षव्यथः । छिन्नारव्रततिः सुराञ्चितपदो वर्णक्षतेन्दीवरः, स्यान्माने च हरिविमुक्तिविधये संघाय पार्थो जिनः ॥१८२॥ पूर्णभद्रगणिनेदं व्यरचि इति नामाकं छत्रम् ॥छ।। श्रीहरिभद्रजिनेश्वरसूरिकृतौ प्रचुरकथकथाकोशौ । आवश्यकवृत्तिकथां दृष्ट्वैतच्चरितमतिरम्यम् ॥१८३॥ एतदनुसारतोऽपि हि कृतपुण्यमहामुनेर्मया चरितम् । व्यरचि यदत्रानुचितं तन्मिथ्यादुष्कृतं मेऽस्तु ॥१८४॥ युग्मम् ॥ धन्यसाधुमुनिशालिभद्रयोरादितश्चरितमादधे मया । साम्प्रतं तु कृतपुण्यसन्मुनेः सच्चरित्रमिदमादरात् कृतम् ॥१८५॥ इति चरमजिनश्रीवीरशिष्यावतंसत्रितयचरितमेतच्चारुवर्णावलीकम् । नगरमिव विशालं पूरितं भूरिकालं जयति जगति विज्ञैः पठ्यमानं सदैव ॥१८६॥ इति युगप्रवरागमश्रीमज्जिनपतिसूरिशिष्यवाचनाचार्यपूर्णभद्रगणिविरचिते कृतपुण्यमहर्षिचरिते देवदत्ताकृतसर्वस्वापहारपृच्छोत्तरकृतपुण्यजातिस्मरणदीक्षाभिलाषामारिघोषणादिसंघवात्सल्यपर्यन्तदीक्षामहोत्सवद्विविधशिक्षाग्रहणविहारकरणानशनप्रतिपत्तिकरणस्वर्गगमनभाविप्रत्यागमनसिद्धिसौधाधिरोहव्यावर्णनो नाम सप्तमः परिच्छेदः ॥छ॥ समाप्त चेदं श्रीकृतपुण्यमहर्षिचरितमिति ॥छ॥ नमः श्रीजिनपतिपादपद्मभ्यः ॥ मङ्गलमस्तु ॥छ।। आसीच्चान्द्रकुले जिनेश्वरगुरुर्निधूतवादिद्विपाहकारो हरिणेशितेव भुवने निर्भीकचूडामणिः । तच्छिष्यो जिनचन्द्रसूरिरभवत् संवेगशास्त्रामृतत्रिस्रोतोहिमवन्महीधरनदः प्रोद्दामपद्मालयः ॥१॥ स श्रीसूरिजिनेश्वरस्य सुगुरोरन्योऽपि शिष्याग्रणीरास्ते स्माऽभयदेवसूरि निपः प्रज्ञालचूडामणिः । अङ्गानां विवृति वरां विरचयन् यो जैनचन्द्रागमप्रासादोपरि शातकुम्भकलशं नूनं समारोपयत् ॥२॥ श्यामां मूर्तिमवेक्ष्य यस्य सुतपःशंपाप्रभाभासुरां निस्वानं च निशम्य भव्यशिखिनः सान्द्रं दधुः संमदम् । प्रावृटकालमहापयोमृत इवाशेषाङ्गिनां वल्लभो जज्ञेऽसौ जिनवल्लभो मुनिपतिः क्षिप्तारिभीतिस्ततः ॥३॥ पट्टे श्रीजिनवल्लभस्य सुगुरोः श्रीदेवभद्रप्रभुस्तत्कैः सर्वगुणैरलंकृततनून् संस्थापयामास यान् । यद्वा सिंहपदे मृगाधिपतयो योग्याः शगाला न वै, ते श्रीमज्जिनदत्तसूरिगुरवोऽभूवन् मुनिस्वामिनः ॥४॥ जल्पन्तोऽतिविकल्पजालजटिलं मध्येमहीभृत्सभं, बालेनापि सता जिता मतिमता येनेह वादीश्वराः । भज्यन्ते लघुना न कि बलवता सिंहेन तुङ्गा गजाः, स श्रीमान् जिनचन्द्रसूरिरभवद् रूपास्तदेवाधिपः ॥५॥ ये भव्यप्राणिराजीनवकुमुदवनीबोधने चन्द्रपादा मिथ्यामार्गान्धकारप्रकरविमथने भानवो भानवीयाः । स्फूर्जेद्वादीभकुम्भस्थलदलनविधाविद्धसारंगराजाः श्रीमन्तस्ते बभूवुः प्रभुजिनपतयोऽनन्तरं सूरिवर्याः ॥६॥ तेषां शिष्यवरा मुदं विदधते सम्प्रत्यपि प्राणिनां, श्रीमत्सूरिजिनेश्वरा ध्वनिजितप्रावृटपयोदस्वराः । सम्यग्ज्ञानमहानिधानकलशाः सद्देशनालङ्कृताः, सच्चारित्रपवित्रगात्रवचनस्वान्तारविन्दाः सदा ॥७॥ तेषामाज्ञाकरः श्रीजिनपतिसुगुरोः पूर्णभद्रो विनेयो, भद्रासूनोः सुसाधोश्चरितमिह गणिर्वाचनासूरिराधात् । दुर्गे श्रीजेसलाख्यावनिपतिनगरे बाणशून्यानलग्लौसंख्येऽन्दे मार्गशीर्षासितदशमदिने स्वान्यनिःश्रेयसाय ॥८॥ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २७० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ११५ कृतपुण्यमहामुनिसच्चरितं प्रविधाय यदर्जितमत्र शुभम् । विधिधर्मरतो लघु तेन जनः सुखितो भवतादरिभीरहितः ॥९॥ यावनक्षेत्रमेतद् वरविजयमुखस्फारकेदाररम्य, सीतासीतोदकादिप्रचुरतरनदीचारुकुल्यावलीकम् ।। नानाहत्त्वादिलक्ष्मीफलदलपटलैनन्दप्रत्यङ्गिचेतस्तावच्चित्रं पवित्रं जगति विजयतां कातपुण्यं चरित्रम् ॥१०॥ ॥ प्रशस्तिः समाप्ता ॥छ । शिष्याः सूरिजिनेश्वरस्य सकलग्रन्थार्थसंवेदिनस्तर्कव्याकरणद्वयावगमनाविर्भूतविस्फतिना । सल्लक्ष्मीतिलकाहवयन गणिना सार्द्ध परार्थोद्यता, आचार्या जिनरत्नसूरय इदं संशोधयांचक्रिरे ॥१॥ गणिरपि च पूर्णकलशः प्रमोदमूर्तिमुनिश्च शास्त्रचणः । संशोधितवानेतद् बोधिकृते भवतु भव्यानाम् ॥२॥ गणिना माणिभद्रेण चरित्रप्रथमा प्रतिः। उधेऽमलपत्रेभ्यः कर्ममुक्त्यै सदक्षरैः ॥छ॥ शुभमस्तु ॥छ॥ (३) अतिमुक्तकचरित्र पत्र ३२९-३४७ । भा. सं.। क. पूर्णभद्र । र. सं. १२८२ । आदि- ॥नमः श्री सरस्वत्यै । श्रीमद्विश्वत्रयीनाथं नाथं कल्याणसम्पदाम् । वर्द्धमानगुणश्रेणि वर्द्धमानमुपास्महे ॥१॥ नत्वा जिनपती देवान् गुरूनप्याहतीं गिरम् । अतिमुक्तकबालश्चरित परिकीर्त्यते ॥२॥ अन्त स्थानाङ्गपञ्चमसदङ्गऋषिस्तवेभ्यो दृष्ट्वा जडप्रकृतिनाऽपि मया विदृब्धम् । चित्रं चरित्रमिह देवगुरुप्रसादाच्चञ्चन्मतेवरमुनेरतिमुक्तकस्य ॥१८॥ श्रीमत्प्रहादनपुरवरे पूर्णभद्रो गणिक, शिष्यः श्रीमज्जिनपतिगुरोश्चारु चक्रे चरित्रम् । चित्राश्चर्य विजयतनयस्यातिमुक्तस्य साधोद्वर्यष्टाब्देि दितिसुतगुरौ कात्तिके पूर्णमास्याम् ॥२११॥छ॥ समाप्तं चेदमतिमुक्तकमुनिचरितम् ॥छ॥ (४) दशश्रावकचरित्र गाथाबद्ध पत्र ३४८-३७८ । भा. प्रा.। क. पूर्णभद्र । र. सं. १२७५ । आदि-५० ॥ जस्स पयनहपहाभरपञ्जरमज्झट्ठिया तिलोई वि। पडिहासइ निच्चलसालहि व्व तं नमिय जिणवीरं ॥१॥ आणंदाइदसण्हं उवासगाणं कहाउ वुच्छामि । दटठूण सत्तमंग समासओ आयसरणत्थं ॥२॥ तत्थ संगहणिगाहाओआणंदे १ कामदेवे य २ गाहावइ चुलणीपिया ३ । सुरादेवे ४ चुलसयए ५ गाहावइकुंडकोलिए ६ ॥३॥ अन्तसोहम्मे चउपलिओऽरुणकीलविमाणअहिवई देवो। होउं महाविदेहे सिज्झिस्सइ खीणकम्ममलो ॥५॥ लंबियापियाकथानकं ॥छ॥ ५० मंगलं महाश्री ॥ आणंदाईण एवं सुचरियदसग सत्तमंगाणुसारा, संखेवेगं विचित्तं कयमिह गणिणा पुनभदेण भई । सीसेणं वाइविंदप्पहजिणवइणो विकमाइच्चवासे, वटुंते बाणसेलासिसिरकरमिए कण्हछट्ठीए जिढे ॥१॥ ग्रन्थाग्रं गाथा ३४४ ॥छ॥ गुरुगिरिविहितास्थः पुण्यपर्वप्रवालः सुभगविमलमुक्ताशब्दधपैंकहेतुः । सफलमृदुलताब्यः स्फारतेजोविभूतिस्त्रिजगति वरिविर्ति श्रीमद केशवंशः ॥१॥ साधुस्तत्र बभूव भूमिविदितः क्षेमंधरः श्रीधरः, सत्यासक्तमना वृषप्रणयवान् कौमोदकीभावभृत् । यश्चक्रेऽजयमेरुनाम्नि नगरे श्रीपावनेतुः पुरः, प्रेम्णा सहजकष्टवृष्टिहतये शैलं महामण्डपम् ॥२॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. २७२ रेजुर्यस्य महोदधेर्बहुतरा रत्नोपमाः सूनवः सम्पूर्णा गुणसद्वजैः सुरुम्चयो देवश्रियः कुक्षिजाः । कोऽप्येतेषु जगद्धरः सुकृतिनामग्रेसरः कौस्तुभः, श्रीश्रीमत्पुरुषोत्तमैकहृदये वासित्वमैद् यो गुणैः ॥३॥ श्रीमत्पार्श्वस्य नेतुः सदनममदनं भव्यनेत्राब्जमित्रं, पुर्यो श्रीजेसलस्य व्यरचयदचिराच्चाभितो भूषणानि । गेहे साधर्मिकोर्वीरुहवनमनु चाछिन्नवात्सल्यकुल्यां, पूरेणावीवहद् यो मरुषु किमपरं प्राप कल्पद्रुमत्वम् ॥४॥ शालीनतालीश्रीशीलं यदात्मजमपालयत् । तस्य साढलही नाम्ना सा बभूव सधर्मिणी ॥५॥ तस्याऽऽसतेऽक्षतनयास्तनयास्त्रयोऽमी, तेषामयं धुरि यशोधवलो यशोब्धिः । माध्यंदिनो भुवनपाल इलापसंसदुज्ज्वालकीर्तिरनुजः सहदेव एषः ॥६॥ इह हि भुवनपालः प्रीतदिक्चक्रवालः सुगुरुजिनपतीशस्तूपमूर्ध्नि ध्वजस्य । विघटितमधिरोहं कारयामास यष्ट्या जिनपतिरथयानं चक्रर्तीव पद्मः । ॥७॥ तस्य प्रिया त्रिभुवनपालधीदा रघुप्रभोरिव जनकस्य धीदा । पुत्रद्वयं समजनि खीम्वसिंहा-ऽभयाहवयं कुशलवलीलमस्य ॥८॥ स धन्यकृतपुण्यतां सततशालिभद्रात्मतां किलातनितुमात्मनो मुनिचरित्ररम्यामिमां । सुधार्मिकजनवजोपवनसारणिः श्रीभरः स्म लेखयति पुस्तिकां भुवनपालसाधुर्मुदा ॥९॥ मेघास्याम्बुदवृन्दमुक्तसलिलापूरे मणिज्योतिरुद्योतिच्छत्रपरीतचक्रिपृतनाभृचर्मरत्नश्रियम् । मध्येम्भोधिमहीतलं दिनमणीभास्वन्नभः संवृतं, यावद् विन्दति तावदत्र जयतादेषाऽधिकं पुस्तिका ॥१०॥ (५) दशश्रावकचरित्रचूणि पत्र ३७८-३८४ । भा. सं. । क. पूर्णभद्र । ले. सं. १३०९ । सं. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४१॥ आदि आनन्दकथायां किञ्चिल्लिख्यते । दिसिजत्तियगाहा ॥२७॥ दिसिजत्तियाणं ति। दिग्यात्रा देशांतरगमनं प्रयोजन येषां तानि दिग्यात्राणि । संवहणियाणं ति। संवहनं क्षेत्रादिभ्यस्तृणकाष्ठधान्यादेहादावानयनं तत्प्रयोजनानि सांवहनिकानि । अन्त पभणेइ० गाहा ॥३९॥ अलसरोगअभिभूय त्ति अलसकेन विसूचिकाविशेषलक्षणरोगेण प्रस्ता। तल्लक्षणे चेदम्-नोद्ध ब्रजति नाधस्तादाहारो न च पच्यते। आमाशयेऽलसीभूते तेन सोऽलसकः स्मृतः ॥सप्तमागचूर्णिः॥ "ग्रन्थानं श्लोक १०१ ॥छ। मेदपाटे वरग्रामवास्तव्य श्रे०अभयीश्रावकपुत्रसमुद्धरश्रावकभार्यया कुलधरपुश्या सावितिश्राविकया धन्यशालिभद्रकृतपुण्यमहषिचरितादिपुस्तिका स्वश्रेयोनिमित्तं लेखिता॥छ। संवत् १३०९॥ क्रमाङ्क २७१ पृथ्वीचंद्रचरित्र पत्र २६० । भा. प्रा. । क. शांतिसूरि। ग्रं. ७५०० । र. सं. ११६१ । ले. सं. १२२५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २७४२॥ संवत् ११२५ वर्षे पौष शुदि ५ शनौ अद्येह श्रीमदणहिलपाटके समस्तराजावलीविराजितमहाराजाधिराजपरमेश्वरपरमभट्टारिकउमापतिवरलब्धप्रसादप्रौढप्रतापनिजभुजविक्रमरणांगणविनिर्जितशाकंभरीभोपालश्रीमत्कुमारपालदेवकल्याणविजयिराज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि महामात्यश्रीकुमरसीहे श्रीश्रीकरणादौ समस्तमुद्राव्यापारान् परिपंथयति सति ॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क २७२ क. लक्ष्मीतिलक | प्रत्येकबुद्धचतुष्कचरित्र पद्य पत्र २७० । भा. सं. । र. सं. १३११ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८॥४२॥ आदि - ॥ अहं ॥ ॥२॥ कांतोदारानतिशयान् य ऊहेऽष्टसहस्रशः । युगपच्छैशवेऽपि श्रीवीरः स श्रेयसेऽस्तु वः ||१|| जिनेन्द्राय मुनीन्द्राय महेन्द्राभ्यर्हिताये । मिथिलामेरुभूक. मातदेवि ! मद्वाचि सौमनस्यं नवं क्रियाः । ग्रथ्नामि येन सत्काव्यस्रजं सहृदयप्रियाम् ॥ ३॥ अथातः श्रीनमिमहाराजर्षिचरितामृतम् । वचसाऽमन्दरागेण श्रुताम्भोधेः प्रकाश्यते ॥४॥ - क्र. २७२ ] अन्त इति श्रीप्रत्येकबुद्धमहाराजर्षिचतुष्कचरिते जिनलक्ष्म्यङ्के महाकाव्ये श्रीकरकण्डुश्रीद्विमुखश्रीनमिश्रीनग्गतिमहाराजर्षिचतुष्कमिथःसम्बन्धमोहराजपराजयप्रबन्धकेवलज्ञानोल्लाससद्देशनाप्रकाशभवोपग्राहिकर्मनिर्मूलनश्रीसिद्धिमहासौधाघ्यासनव्यावर्णनो नाम सप्तदश चूलिकासर्गः समाप्तः । तत्समाप्तौ च समाप्तं श्री प्रत्येकबुद्ध महाराजर्षिचतुष्कचरितं ॥ नमः श्रीगुरुपादुकाभ्यः । नमः सप्रसादायै श्रीसारदायै ॥ छ ॥ छ ॥ सप्रशस्तिचूलिका सर्गग्रन्थाग्रं १३२० ॥ तत्र .... ॥ अर्हम् ॥ यत्तीर्थे मुक्तितीर्थे त्रिभुवनभवनामोदिगानावदाना धर्माख्यानैकतानाः प्रतिपदयुगपद्भावचित्रं दधानाः । एते प्रत्येकबुद्धा ययुरुदयपदं यत्प्रतिच्छंदका नु स्थेयः श्रेयः स वीरश्वरमजिनपतिः स्राग् वितेतीर्यतां वः ॥१॥ शिष्यास्तस्येन्द्रभूतिर्भृतभुवनयशा अग्निवाय्वोश्च भूती, श्रीव्यक्तः श्रीसुधर्मा युगवर तिलको मण्डिको मौर्यपुत्रः निष्कम्पोऽकम्पितश्चाचलमतिर चलभ्रातृमेतार्यसंज्ञौ, ज्ञानोल्लासः प्रभासः स च गणपतयोऽव्यासुरेकादशैते ॥ २ ॥ सौधर्मः स्वामिजम्बूर्यमतिसुभगमाप्यान्यमेनेह मुक्तिर्मूर्तो न्वस्य प्रभावः प्रभवगुरुरिदं धाम शय्यम्भवश्च । एतद्भद्रं तु भद्रो यशउपपदभाक् तस्य सम्भूत-भद्रबाहू श्रीस्थूलभद्रोऽन्तिषदजनि तयोः षट् समस्त श्रुतज्ञाः॥३॥ तच्छिष्यौ च महागिरिः स दशपूर्वीन्द्रः सुहस्ती तथा यत्पादाब्जपराप्तबोधकमलः श्रीसम्प्रतिर्भूपतिः । मिथ्यात्वारिविनिप्रहादिव जयस्तम्भान् विहारान् जिनाधीशानां व्यतनोत् त्रिखण्डभरतावन्यां मुनीनामपि ॥ ४ ॥ अथ सुस्थितसु प्रतिबद्धगुरुर्गणनायकता मुररीकृतवान् । यत एष गणो धुरि कोटिक इत्यवनौ विदितोऽजनि नन्दितया ॥ ५॥ जज्ञे तत्र गणेऽगणेयमहिमावासे घुसत्पादपे, सद्वृन्दारकवृन्दनित्यरुचिते शाखा प्रशाखाद्भुते । नानाश्रीदशपूर्वधारिषु फलेषूद्भूतवस्तुक्रमाद्, वज्रस्वामिगुरुर्वरिष्ठफलवत् श्रीसिंहगिर्यन्तिषत् ॥ ६॥ यः कर्णाभ्यनेन पालनगतोऽप्येकादशाङ्गीं पपौ, शैक्ष्ये भक्षविधौ परीक्ष्य विबुधा यस्मै च विद्ये ददुः । यस्याचार्यपदे महामहिमते व्यातेनिरे लब्धिभिस्तीर्थं योऽत्यदिदीपदत्र दशपूर्वीभृच्च यः पश्चिमः ॥७॥ तस्मान्नाम हिमालयान्मुनिजनैः संसेव्यपादावनेरत्र ज्ञानचणे गणे त्रिपथगा वाज्रीति शाखाऽभवत् । भग्नीभिर्नु सोच्च नागरिकया विद्याधरी - मध्यमाभ्यां शाखाभिरिलातलं परिपुनत्यावाद्धि या पप्रथे ॥ ८ ॥ उदन्वत्कल्पायाभह जिनपदोपास्तिरसिकं, सदा मन्दक्ष्मानन्दनकविमहा सौम्यगुरुभृत् । दधत्प्रादक्षिण्यं सततमचले तत्र च शिवे, कुलं चान्द्रं सान्द्रप्रभमुदयमासादयदथ ॥ ९ ॥ ज्योतिःस्वरूपाः प्रतिपदममृतश्राविणः श्रीमुनीन्द्रा, नैकेऽनेके प्रथीयोऽतिशयमहिमभिर्विश्वमाभासयन्तः । तद्वंश्यो देवसूरिस्तदनु समुदगान्नेमिचन्द्रो यतीन्द्रः, ११७ श्रीमानुद्योतनोऽतः परमगुरुपदं द्योतयामास पृथ्व्याम् ॥ १० ॥ ग्रं. १०१३० । Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २७२को नामामुत्र मंत्रे वसति सुर इति ध्यानलीनोऽहिराजा, सद्यो दिष्ट्या प्रभोऽस्मि स्मृत इति वदताऽभ्येत्य संस्तूयमानः । यो न्यांजीद् दुःषमायां निशि बत महिमाचार्यमन्त्रैकभानोः, स्वामी श्रीवर्द्धमानः स पदि सपदवीं सूरिराजामविन्दत् ॥ ११ ॥ चातुर्वैद्य विदग्रणीरपमलब्राह्मण्यभृग्रामणीर्यः श्रीगौतमवद्विलोक्य विलसद्धाम्नां निधि तं प्रभुम् । सद्यः सोदरबुद्धिसागरपरीवारान्वितः प्रावजत् , स श्रीसूरिजिनेश्वरः खरतरत्वं साध्वथासेदिवान् ॥ १२ ॥ मिथ्याज्ञानदुरन्तशक्तितरसा श्रीपत्तने पत्तने, गाढाधिष्ठितकारिणश्चतुरशीत्याचार्यदु-चेटकान् । यः श्रीदुर्लभराट्समे श्रुतमहामन्त्रनिगृह्य क्षणादक्षीणां शिवसंपदं सुविहितश्रेणीविहारैर्व्यधात् ॥ १३ ॥ तर्कादीन् बहु यः स्वयं यदनुजः शब्दानुशास्त्यादिकानेता श्रीसुरसुन्दरों च जिनभद्राख्यो यदाद्यान्तिषत् । यच्छिष्यान्तिषदुत्तराध्ययनसद्याख्यामशोकेन्दुरातेने वागधिदेवताकुलमिव क्षोणीतले यत् कुलम् ॥१४॥ ज्योतिश्चक्र इवास्य शिष्यपटले शीतांशुसूर्यप्रभौ जज्ञाते स्वपरागमामरपथाध्वन्यौ विनेयावुभौ । तत्राऽऽद्यो जिनचन्द्रसूरिरसृजत् संवेगरङ्गोतरां, शालां सर्वसमानमत्र भुवने संवेगसत्रं तु यः ॥१५॥ अन्यश्चाऽभयदेवसूरिरुदयल्लोकोत्तरप्रातिभः, कतु स्वात्मनि संयमश्रियमविश्रान्तां प्रसन्नामिव । अत्यन्तं सहचारिणीं प्रियसखीं तस्या नवाङ्गीमिमां, व्याख्यारत्नविभूषणैः किमपि यः प्रासीसदत् सर्वतः ॥१६॥ साक्षाच्छासनदेवतावचनतः प्रस्थाय दूरान्मुदा, श्रीसंघेन चतुर्विधेन सहितः श्रीधर्मचक्रीव यः। सेढीस्वस्तटिनीतटे प्रकटयामासेह तात्कालिकश्रीद्वात्रिंशिकया द्रुतं नवनिधिप्राय च पार्श्वप्रभुम् ॥१७॥ मुक्त्वा काककुलायवज्जनिभुवं तं चैत्यवास्यालयं, यः पुंस्कोकिलकान्तिरात्मविदुरो वतिष्णु तत्र प्रभौ । माकन्दे परपुष्टसाधुकुलमाशिधाय सत्सिद्धये, स श्रीमान् जिनवल्लभस्तत उदै विश्वत्रयीवल्लभः ॥१८॥ यः श्रीमान् मन्दरागो विबुधसमुदयैः पर्युपास्यः समन्तात् , सिद्धान्तक्षीवार्द्धरतिदुरधिगमागाधमध्य विगाह्य । साक् कर्मग्रन्थ-पिण्डप्रकरणमुखसद्ग्रन्थपीयूषकुण्डैः, प्रत्नरत्नैश्च धिन्वन् सकलसुमनसोऽभूत् क्षमाभृद्वतंसः॥१९॥ तत्पट्टे जिनदत्तसूरिरुदभूत् श्रीकृष्णमूत्ति धिद्, विध्यादित्रिपदों य एष नरकप्रष्टान् वृषद्वषिणः । बिभ्राणान् भुवि भावभासुरमपाचके परानित्यतः, स्थानेऽसेव्यत यो निदेशमनिशं दिष्टयेच्छुभिर्देवतैः ॥२०॥ तदनु च जिनचन्द्रसूरिसिंहः समजनि शैशवशालिनाऽपि येन । प्रबलमदभरान्धवादिदंतावलदलना खलु लीलयैव चक्र ॥२१॥ सकलज्योतिरुदयलक्ष्मीकृतिकामिकतीर्थमद्भुतं शुभतमसततभाविपूर्वस्थितिसुभगम्भावुकोन्नतम् । तत्पदमेतदुदयधरणीधरमलमकृतातिभास्वरस्त्रिभुवनरञ्जनकधामद्धिजिनपतिसूरिभास्करः ॥२२॥ यस्याग्रे न परो गुरुन च कविनों वा बुधः प्रायुतत् , प्रागल्भी न कलावतो न तमसः क्षुद्रग्रहाणां न च । वादीन्द्राश्च भयंकरा अपि ययुः साग घूकवन्मूकतां, धाम्नां धाम य एक एव भुवने किन्तूद्दिदीपेऽभितः ॥२३॥ सूरिः श्रीसवदेवः सहविजयपदी देवसूरिः कृतीन्द्र स्तम्रिोद्यानपालः स जगति जिनपालोऽभिषेकावतसः । श्रीमान् सूरप्रभः संघहितयुत उपाध्याय इत्येवमाया, विद्यानद्यर्णवाः क्ष्मातलमतिलकयन् यस्य शिष्यांशुदण्डाः ॥२४॥ श्रसंघपट्टकपरिष्कृतपञ्चलिपयाः, सिद्धान्तदिव्यसरसीसरसी रुहिण्याः । अश्रान्तसन्तमससंहतिहृद्वीभिर्विस्तार्य यः परिमलं प्रकटीचकार ॥२५॥ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २७२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ११९ त्रिभुवनसुभगम्भविष्णुमूर्तिः प्रतिदिशमेदुरकीर्तिकौमुदीकः । अयमुदयमिहाऽऽससाद सद्यस्तदनु जिनेश्वरसूरिपूर्णिमेन्दुः ॥२६॥ अनन्तान् सिद्धान्तान् बहुतिथभिदं लक्षणविदं, तमस्यर्कस्तर्कान् जननि ! सदलंकारपटलम् । कथं धत्से स्वच्छे गिरमिति नुवन् हृद्यतनवं, तदास्यं यस्यास्यं तदनु कुतुकाद्वैतमचकात् ॥२७॥ यस्यास्ये शारदाऽऽस्ते ध्रुवमयमिति निर्माति सद्यः प्रबन्धं, वाक्ये वाचस्पतिश्च स्पृहयति विबुधश्रेणिरुच्चैस्तदस्मै । हस्ते सर्वाऽपि सिद्धिस्तदिह शिरसि सत्येव सा स्फूर्तिमीत, मूर्ती पर्वेन्दुबिम्बं क्षिपति जनदृशोस्तेन पीयूषमेषा ॥२८॥ तस्यास्य स्वगुरोः परस्वसमयालंकारतर्कादिसद्विद्यास्वर्णमहाखनेरविरतोपास्त्या सुवर्णोत्करान् । प्राप्य श्रीजिनरत्नसूरिरुदयत्सारस्वतप्रातिभोऽसौ लक्ष्मीतिलको गणिश्च किमपि त्रैविद्यचूडामणिः ॥२९॥ श्रीलीलास्पदपद्मदेवतनयक्षेमंधरोद्धान्वयक्षीराम्भोधिसुधांशुना जगधरश्राद्धेशितुः सूनुना । श्रीप्रहादनपत्तने भुवनपालेनामुना साधुना, पद्माकस्य सुतेन साढलमहाश्राद्धेन चाभ्यर्थितः ॥३०॥ स्वपूर्वजश्रीमदशोकचन्द्र-श्रीनेमिचन्द्रादिमसूत्रधार- । दृब्धोत्तराध्यायविवृतिसूत्रानुसारतश्चार्वतिसंघटय्य ॥३१॥ यस्मिन् भान्त्यनुपर्वकाननमहो श्रीसर्गसिद्धालयाश्चत्वारः स्फुरदद्भुतायतनभूः सर्गोऽन्तिम चूलिका। विष्वग्वैबुधहृन्मनोरमतमं प्रत्येकबुद्धर्षिराट्चातुर्यस्य चरित्रमेतदतुलं चक्रे सुवर्णाचलम् ॥३२॥ चतुर्भिः कलापकं ॥ श्रीमत्सूरिजिनेश्वरप्रभृतिभिः साहित्यसिंधोः पिवैः, श्रीद्विव्याकरणः(१)सुधीभिरमलीचक्रे प्रयत्नाच्च तत् । प्रेक्षावत्प्रवरैः परैश्च विमलीकार्य विचार्याऽऽदराद् , रुद्राग्नींदु १३११ शरत्तपस्यविमलैकादश्यहेऽपूरि च ॥३३॥ सोदयौँ गणिवीर-कीर्तिकलशौ धुर्यों मनीषावतामात्मोपज्ञवदादरेण तदिदं श्रेयोमुखं स्वात्मनः । आदर्श प्रथमे समक्रमयतां निवर्णनायाभितो, मानं स्पष्टमनुष्टुभाऽयुतमिह त्रिशैकशत्या युतम् ॥३४॥ अङ्कतोऽपि १०१३० ॥ हारस्तेजस्विसारः किमपि सरभसान् रत्नवाणिज्यभाजः, सद्यो यद्वद्विदध्यान्न चणकवणिजोऽप्येवमेतत् प्रतीतम् । तच्चेच्चेतस्सु सौधद्रव इव सहृदां मद्वचस्तत्किमन्यैः, यद्वाऽन्येऽप्येतदुक्त्या सहृद इदमतः साविकं सौधसत्रम् ॥३५॥ मध्येस्वर्गितरङ्गिणीपरिवृढोद्यत्पद्मपद्माकर, क्षोणीपृष्ठबकस्थले नवनवारामाभिरामेऽभितः । यावद्देवगृहश्रियं कलयति स्वर्धामलीलाचलस्तावच्चित्रमिदं चरित्रमुदियाद् विश्वस्य कर्णोत्सवः ॥३६॥ गुरुगिरिविहितास्थः पुण्यपर्वप्रवालः, सुभगविमलमुक्ताशब्दधर्मैकहेतुः । सफलमृदुलताढयः स्फारतेजोविभूतिस्त्रिजगति वरिवत्ति श्रीमदूकेशवंशः ॥१॥ साधुस्तत्रास्त्यसाढः किमपि परममाहेश्वरः श्रीनिवासः. प्रेक्ष्य व्यासस्य दौष्टयं समजनि सकुलः श्राद्धरत्नं क्षणाद् यः । तत्सूनुर्जामुणागो निरवधिविभवस्तस्य वोहित्थसाधु स्तत्पुत्रः पद्मदेवोऽग्रजनन इतरः शुद्धधीर्वील्हनामा ॥२॥ दीपः प्रदीपादिव पद्मदेवात् क्षेमंधरोऽभूदनुरूपरूपः ।। यद्वाहुगेहं गुणलिप्सयेव चक्रे रमा साध्व्यपि नित्यवासं ॥३॥ महेन्द्र-प्रद्युम्नौ यतिपरिवृढौ स्वाग्रजसुतौ, य उत्प्रेक्ष्योत्सूत्राचरितभणिती सात्त्विकमणिः । परौ वा संत्यज्याऽऽश्रयत जिनचंद्र गुरुमथो, महेन्द्रप्रद्युम्नौ न हृदि जिनचंद्रेक्षणकणे ॥४॥ यो व्यातनोदजयमेरुपुरे पुरस्तात् पार्श्वप्रभोः किमपि मण्डपमद्भुतंधि । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [प्र. २७३विश्वत्रयभ्रमपरिश्रमविहवलाया विश्राममन्दिरमिव स्वककीर्तिलक्ष्म्याः ॥५॥ कलत्रद्वयमस्याभूत् क्रमशः क्रमशालिनः । पुण्यश्रीर्नु यशोदेवी फलश्रीरिव हंसिनी ॥६॥ जजुस्तस्य महोदधेबहुतरा रत्नोपमाः सूनवः, सम्पूर्णा गुणसम्पदा भुवि यशोदेवीसरित्कुक्षिजाः । कोऽप्येतेषु जगद्धरः सुकृतिनामग्रेसरः कौस्तुभश्रीः श्रीमत्पुरुषोत्तमस्य हृदये वासित्वमैद् यो गुणैः ॥७॥ श्रीमत्पार्श्वस्य नेतुः सदनममदनं स्वर्विमानोपमान, पुर्या श्रीजेसलस्य व्यररचदचिराच्चाभितो भूषणानि । गेहे साधर्मिकोर्वीरुहवनमनु चाच्छिन्नवात्सल्यकुल्यां, पूरेणावीवहद् यो मरुषु किमपरं प्राप कल्पद्रुमत्वम् ॥८॥ शालीनतालीश्रीशीलं यदात्मजमपालयत् । तस्य साढलही नाम्ना सा बभूव सधर्मिणी ॥९॥ तस्याभवन्मतनयाः सुनयास्त्रयोऽमी, तेषामयं धुरि यशोधवलो यशोब्धिः। माध्यंदिनो भुवनपाल इलापसंसदुज्ज्वालकीर्तिरनुजः सहदेवनामा ॥१०॥ आसुला हीरलेत्येषां भग्न्यौ चन्दनवर्द्धिके। भारतीश्रीश्रियौ ये च कुलद्वयमभूषताम् ॥११॥ इह च भुवनपालः प्रीतदिकचक्रवालः, स्वगुरुजिनपतीशस्तूपमूनि ध्वजस्य । विघटितमधिरोहं कारयित्वा बलाद् यो, जगति जयपताकां प्रापयामास संघम् ॥१२॥ नित्यं श्रीगुरुपर्युपास्तिरसिकः संप्रीतसाधर्मिकः, षोढावश्यककर्मशौचरुचितः सद्ब्रह्मचर्याहतः । अश्रान्तं स्मृतवान् नमस्कृतिमहामंत्र प्रतिष्ठापनाव्याजाद्वीरजिनं सुवर्णपुरुष संशोधयामास यः ॥१३॥ तस्य प्रिया त्रिभुवनपालधीदा रघुप्रभोरिव जनकस्य धीदा। पुत्रद्वयं समजनि खीम्वसिंहाऽभयाहवयं कुशलवलीलमस्य ॥१४॥ आश्चर्यवर्यमणिरोहणरोहणाद्रि प्रत्येकबुद्धचरित ललितं विधाप्य । साधुः सुधीर्भुवनपाल उदारचेता एष स्वपुण्यमिव लेखयति स्म मूर्तम् ॥१५॥ सूरिजिनवल्लभः सुगुरुजिनदत्त इत्यनु च जिनचन्द्र उदगाततो जिनपतिः । तत्पदोदयिजिनेश्वरसुगुरुसूरये पुस्तिकाद्वयमदोऽसौं ददे ध्रुवविदे ॥१६॥ एकस्तम्भे सुरशिखरिणा भूर्भुवःस्वस्त्रयेऽस्मिन् प्रासादेऽर्केन्दुसपरिवृतोऽहत्प्रतापः सुराजा। यावद् राज्य सृजति भृशमेकातपत्रं हि तावत् सूरिव्यासाः प्रतिपदमिद तत्पुरो वाचयतु ॥१७॥ छ । ॥ मङ्गलमस्तु ॥छ। क्रमाङ्क २७३ प्रत्येकबुद्धचरित्र पद्य पत्र २४८ । भा. सं.। क. लक्ष्मीतिलक । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी पूर्वाध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १८४२। पत्र ६३-६५, ६७, ६९, ७५, ७७-७९, ८३, ८५, ८७, ९३, ९५, ९७, ९८, १००, १०१, १३०, १३१, १४५, १४९, १५३-१५८, १८४-१८९, १९१, १९२, १९४, २०३, २०४, २११, २१३२१५, २१७, २१८, २३३-२३७, २४०, २४२, २४४, २४७ नथी। क्रमाङ्क २७४ नरवर्मचरित्र-सम्यक्त्वालंकार अपूर्ण पत्र ३२४ । भा. सं.। क. वाचनाचार्य विवेकसमुद्रगणि । ले. सं. १५ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १८॥४२ । पत्र ५८, ६०, ६४, ६५, ७२, ८२, ८६, ८७, १३२, १४९, १५१, १६६, १९१, १९४, २१३, २१४, २१८, २२०, २२१, २२२, २३४, २३७, २४४, २६४, २६९, २७१, २७४, २७६, २७८, २७९, २८१, २८६, २८८, २८९, २९२, २९३, ३०२-३०४, ३२३ नथी । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क २७५ सामाचारी बीजकसह पत्र १८८ । भा. सं. । क. तिलकाचार्य । ले. सं. १४०९ | संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११४२ | अन्त क्र. २७९ ] इति श्रीतिलकाचार्यविरचिता सामाचारी समाप्ता ॥ छ ॥ श्रीः ॥ संवत् १४०९ वर्षे पोष शुदि १० खौ श्रीपूर्णिमापक्षीय प्रथमशाषीय । श्रीसर्व्वाणंदसूरिपट्टे श्रीजयसमुद्रसूरिपट्टे श्रीगुणप्रभसूरि शिष्य वीरचंद्रेन वचावाप्रामे सामाचारीपुस्तिका लिखिता ॥ छ ॥ श्रीः ॥ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥१॥ भग्नपृष्ठिकटिग्रीवा हन्युमन्युस्तथैव च । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥२॥ उदकानलचौरेम्यो मूषकेभ्यस्तथैव च । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपालयेत् ॥३॥ क्रमाङ्क २७६ अभयकुमारचरित्र पत्र २२० । भा. सं. क. चंद्रतिलकोपाध्याय । ग्रं. ८९६४ । र. सं. १३१२ | ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६ ॥ ४२१. पत्र २८, ३४, ५४, ५५, १११, १४२. १४४ नथी । १२१ क्रमाङ्क २७७ अभयकुमारचरित्र टक पत्र २९४ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी । संह. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८४२ । । वचमां केटलांक पानां नथी । क्रमाङ्क २७८ ऋषिमंडलप्रकरण वृत्तिसह प्रथमखंड पत्र १९९ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १३८० । संद. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७॥४२ । अन्त-संवत् १३८० आषाढ सुदि ५ भौमे ॥ छ ॥ क्रमाङ्क २७९ (१) आशापल्लीयउदयनविहारस्थजिनबिम्ब अवन्धत्बमतव्यवस्थापन पत्र २-४२ । भा. सं. क. प्रद्युम्नसूरि । पत्र ३१-३२ नथी आदि स्याद्वादामृतसंसिक्ताः कदाग्रहविषापहाः । वन्दे जैनेश्वरीर्वाचः परास्तसुमनः शुचः ॥१॥ अन्त- ततश्च निःशेषदोषप्रमोषपोषितः परतीर्थिकापरिगृहीतत्वे सति श्वेताम्बरयतिप्रतिष्ठितार्ह द्विम्बत्वादिति हेतुः स्वसाध्यं साधयन्न गीर्वाणप्रभुणाऽप्यपहस्तयितुं पार्यते इति । तथा च औष्ट्रिक मतकालकूटकुम्भो भुवनातनिमित्तमत्र योऽभूत् । उपपत्तिपरम्पराप्रहारैः सोऽयमभजि सभासदां समक्षम् ॥१॥ आसीत् चर्वितवादिगर्वगरिमा श्रीदेवसूरिप्रभुस्तत्पादाब्जमधुत्रतः समजनि श्रीमन्महेन्द्रप्रभुः । शिष्यस्तस्य पितुः प्रबोधविधये सिद्धान्तसिन्धोः सुधामुद्धृत्यास्खलितं विचारमचिरात् प्रद्युम्नसूरिव्यधात्। ॥ १६ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २८५(२) आशापल्लीयउदयनविहारस्थजिनबिम्बाघन्धत्वमतनिरास (अपूर्ण) पत्र ४३-१३० । भा. सं.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२॥ । पत्र ८४-८६ नथी आदि ५०॥यस्यान्तःसभमायतांसलभुजास्तन्वंश्चतस्रः समं, भान्ति स्म च्युततान्तिकान्तिलहरीलोलत्रिलोकश्रियः । शंके वल्गदुदप्रविप्रहभवोपग्राहिकर्मद्विषाऽमा स्यूता विजिगीषया भगवता पायात् स वीरो जिनः ॥१॥ इह हि भगवदागमेषु बहुधा निर्णीतमायतनानायतनविभागं धीशतया यथावदधिगामुका अप्यधीशतया कदभिनिवेशावेशास्कन्दितमानसा मानसानुमच्छिखराधिरोहप्ररोहदुच्चावचवचनाम्बराः केचित् सिताम्बराः 'आयतनमेवाद्बिम्बम् न तु कथञ्चिदनायतनमपीति बाहुदण्डमुद्धृत्य मुग्धेभ्यः प्रतिदिशमनिशमुपदिशन्तः श्रीगूर्जरत्रोदरे श्रीमदाशापल्लीपुरेऽसंख्यसंख्यावन्मुख्यस्वपक्षपरपक्षसामाजिकसमाजसमक्षं बहुशो निःप्रश्नव्याकरणीकृत्यास्माभिः सिद्धान्तरहस्यसुधारसं पायिता अपि भाग्यविपर्ययात् तमुदम्य स्ववसतिकोणके प्रविश्य प्रतिपदमसभ्यवावर्षणेन स्वयमेव प्रकृतप्रमेयस्य सभानहतां सूचयन्त आजन्मप्रपीतोत्सूत्रसूत्रणविषोद्गारप्रकारं प्रेक्षावतामनुपादेयं प्रमेयं चिकीर्षन्तः प्रकृतिस्वच्छस्य कजलसन्निधेः कालिम्नावभासिनः स्फटिकस्येव निसर्गायतनस्य पार्श्वस्थादिपरिग्रहेणानायतनतया प्रतिभास्वरस्यापि तस्यायतनत्वसिद्धयेऽनुमानप्रमाणमेवमुपन्यस्यन्ति-आशापल्लीवदनतिलकायमानोदयनविहारान्तर्वतीन्यहबिम्बानि यतिगृहिणां वन्दनीयानि, परतीथिंकापरिगृहीतत्वे सति श्वेताम्बरयतिप्रतिष्ठितार्हद्विम्बत्वात् । यदेवं तदेवं यथोभयवादिसम्प्रतिपन्नमनिश्राकृतं, तथा चैतानि, तस्माद् वन्दनीयानि इति ॥ अन्त उद्धृत्य श्रुतवारिधेर्निरवधेः प्राक्सूरिवृन्दारकैयस्ता शस्यरहस्यसंहतिसुधा सद्ग्रन्थकुण्डेष्वियम् । तामेतां असमान उद्धततमोरूपो निरूप्येषको, निष्कण्ठः कठिनेतराद्भुतनि(गि)राचक्रेण चक्रि(के) बुधाः॥ पूज्यश्रीजिनवल्लभप्रभुपदाध्यारोहरोहद्यशःसूरिश्रीजिनदत्तदत्तपदवीराजीवनीभास्वता (तः)। शिष्यः श्रीजिनचन्द्रसूरिसुगुरोविद्यासरस्वानिति, व्यध्वध्वंसविधेय॑धाज्जिनपतिः सूरिः प्रबोधोदयम् ॥ क्रमाङ्क २८० गणधरसार्द्धशतकप्रकरण वृत्तिसह द्वितीय खंड पत्र ३१६ । बीजी गाथाथी शरु। भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनदत्तसूरि। ७. क. सुमतिगणि। ले.सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १५॥४२ आदि आधजिनप्रथमगणधरनमस्कारमाविष्कृत्येदानी शेषतीर्थकृदशेषगणधारिणः स्तुवनाह ॥ अजियाइजिणिदाणं जणियाणंदाण पणयपाणीणं । थुणिणोऽदीणमणो हं गणहारीणं गुणगणोहं ॥२॥ अन्त इति श्रीयशोभद्राचार्य-संभूतविजयाचार्य-भद्रबाहुस्वाम्याचार्य-स्थूलभद्रस्वाम्याचार्याणां युगप्रधानानां चरितानि समाप्तानि ॥१३॥छ।॥ॐ॥ शुभं भवतु ॥छ॥छ॥ क्रमाङ्क २८१ गणधरसार्द्धशतकप्रकरण वृत्तिसह तृतीयखंड पत्र ३९३ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनदत्तसूरि। प्.क. सुमतिगणि । र. सं. १२९५। पं. १२१०५। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । संद. श्रेष। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२॥ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २८२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १२३ आदि इह च यद्यप्यार्यसम्भूतविजयादीन् सूत्रकारो भगवानग्रे प्रणस्यति, तेषामपि चरितानां यशोभद्रयुगप्रवरचरितानुषक्तत्वेन तान्यप्यत्रैव प्रतिपादितानीति । अत्र च यशोभद्राचार्यस्य गृहस्थपर्यायो द्वाविंशति २२ वर्षाणि, व्रतपर्यायश्वतुर्दश १४ वर्षाणि, युगप्रधानपदं पञ्चाशत् ५० वर्षाणि, सर्वायुष्कं षडशीति ८६ वर्षाणि मास ४ चतुष्कं दिन ४ चतुष्टयं च। तथा सम्भूतविजयाचार्याणां द्विचत्वारिंशत् ४२ वर्षाणि गृहस्थपर्यायः, चत्वारिंशत् ४० वर्षाणि व्रतपर्यायः, अष्टौ ८ वर्षाणि युगप्रधानपदम्, सर्वायुः ९. नवतिवर्षाणि मास ५ पंचकं दिन ५ पञ्चकं च ॥ अम्त इति श्रीजिनदत्तसूरियुगप्रवरविरचितस्य श्रीगणधरसार्धशतकाख्यप्रकरणस्य वृत्तिः समाप्ता ॥छ॥ जज्ञे श्रीजिनदत्तसूरिसुगुरोः पट्टाचलोद्योतनस्फूर्जज्ज्ञानरुचिप्रतानतनुतानीता नतोद्यत्तमाः । सूरिः श्रीजिनचन्द्र इत्यपमलप्राश्चत्सुवृत्तातुल:, सौन्दर्यादिकवर्यनिर्मलगुणैश्चित्रीयितक्ष्मातलः ॥१॥ तस्याऽभूद् भूपमूर्होद्भटमुकुटतटीकोटिघृष्टांहिपद्मः, शिष्यः शस्यो बुधौधैजिनपतिरिति सन्नामतः सूरिरुच्चैः । विख्यातः क्षोणिपीठे सुविहितयतिराट्चक्रचक्राधिनाथश्छन्दोलङ्कारतर्कप्रमुखनिखिलसद्ग्रन्थविस्तारितार्थः ॥२॥ प्रतिदिनमपि सिद्धिप्रेयसीसंगसौख्यानुगतनवकथास्वाक्षिप्तचित्तं निरीक्ष्य । क्षणमपि दयितं तज्ज्ञानचारित्रलक्ष्मौ मुमुचतुरुदिता......त्मभीत्येव यं च ॥३॥ सगुणनिजपतीनां कालदोषादभावे ध्रुवमतिगुरुशोकात् सर्वविद्याः समेत्य । बत हृदयसमुद्रेऽस्ताघगाम्भीयभाजि प्रकटितगुरुसत्त्वे यस्य सद्यो निपेतुः ॥४॥ तस्य स्वाचारनिष्ठाप्रसरगुरुतराबद्धकक्षस्य शश्वत् , निःक्लेशः शिष्यलेशः सुमतिगणिरिति ज्याप्रसिद्धाभिधानः । निर्देशात् सद्गुरूणां सुनिबिडजडताश्लिष्टधीरप्यधीताऽल्पग्रंथस्तत्प्रसादाद् व्यरचयदमलां वृत्तिमेतां सुचेताः ॥५॥ प्रारब्धा श्रीस्तम्भतीर्थवेलाकूले कुले श्रियाम् । मण्डपदुर्गे विबुधैः स्वर्गे चेयं समर्थिता ॥६॥ तथा प्रायः प्रथमादर्श लिखिता वृत्तिरियं श्रीजिनेश्वरगुरूणाम् । अस्मद्गुरुगुरुपट्टप्रतिष्ठितानां प्रभाववताम् ॥७॥ शिष्येण परोपकृतौ तपसि च बद्धोद्यमेन सदमेन । कायोत्सर्गेऽतन्द्रेण साधुना कनकचन्द्रेण ॥८॥ किञ्चिच्च हेमप्रभः शालिभद्रोऽमृतमूर्तिरिहाभवन् । लेखनात् पट्टिकामाष्टें घुटनाच्चोपकारिणः ॥९॥ इह यदनवबोधादाभसिक्यान्मया वा उत पतदुपयोगादन्यथा किञ्चिदुक्तम् । तदलमनलसाः स्राग् ज्ञातसिद्धान्ततत्त्वा, भयकि कृतकृपाः श्रीधीधनाः शोधयन्तु ॥१०॥ कृत्वेमां विवृति यत्पुण्यं समुपार्जितं मया किमपि। तेन विधिधर्मरागी भूयाल्लोकः समस्तोऽयम् ॥११॥ शरनिधिदिनकरसंख्ये १२९५ विक्रमवर्षे गुरौ द्वितीयायाम् । राधे पूर्णीभूता वृत्तिरिय नन्दतात् सुचिरम् ॥१२॥ इति श्रीजिनपतिसूरियुगप्रवरविनेयपण्डितसुमतिगणिनामधेयविरचिता श्रीगणधरसार्द्धशतक वृत्तिः समाप्ता ॥२॥ मालमस्तु समस्तसंघस्येति ॥छ॥ संवत् १२९५ वर्षे श्रीमद्धारापुरीनलकच्छकादिकृतविहारक्रमेण समतिगणिना श्रीमण्डपदुर्गे वृत्तिरिय समर्थितेति । अथाग्रं १२१०५ श्लोकमानेन ॥छ॥ॐ॥छ॥ यादशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ भग्नपृष्ठिकटिग्रीवा स्तब्धदृष्टिरधोमुखः । कष्टेन लिखितं शास्त्रं यत्नेन प्रतिपालयेत् ॥छ॥ विदुषा जल्हणेनेदं जिनपादाम्बुजालिना। प्रस्पष्टं लिखितं शास्त्रं वन्य कर्मक्षयप्रदम् ॥शुभं भवतु ॥छ॥ क्रमाङ्क २८२ सुखबोधासामाचारी पत्र १११ । भा. प्रा.। क. श्रीचंद्रसूरि। ग्रं. १३११ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२.। पत्र १-५, ८१, ९२-९५, ९७ नथी। Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. २८३क्रमाङ्क २८३ अणुव्रतविधि पत्र ७७ । भा. प्रा.। ग्रं. १७०० । ले. सं. ११६९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२॥ आदि-नमो जिनागमाय ॥ नमिऊण भुवण.... ...........महावीरं । वोच्छं साधगधम्मं जिणवरदिष्टुं समासेणं ॥ तुम्मे पुण तवचरणं काऊण गेवेज्जेसु अहमिदा देवा भविस्सह । एवं कागरिए एयाओ सोउं वंदिअण गया देवयं ॥ ग्रंथ श्लोक। १७०० ॥ एयं अणुव्वयविहि जो पढइ सुणेइ भावए णिच्चं। सो सयलमलविमुको सासयसुहभायणं होइ ॥छ॥ अणुब्वयविही सम्मत्ता ॥छ।छ॥ॐ॥ संवत् ११६९ अश्वयुज सुदि ५ शुक्रदिने लिखितेति ॥छ॥ अणुव्रतानां सुविधेर्विवृत्तेः श्राद्धवजस्याऽत्युपकारिकायाः । श्रेयःकृते श्राद्धवरेण शुद्धश्रद्धाभृता वेल्हफदेहजेन ॥१॥ ऊकेशवंश्येन विवेकधाम्ना सत्पुस्तिका देवडशस्तनाम्ना । व्यतीर्यतैषा जिनपत्यभिख्याचार्याय वर्याय गुणौघभाजा ॥२॥ कांतकमलांकममलं चंद्रसरस्तरुणनयनमृगयूथाः । सतृषः सरंति यावत्ताव नंद्यादियं लोके ॥३॥छ।। क्रमाङ्क २८४ । (१) तपोटमतकुट्टनशत पत्र १-७ । भा. सं.। क. जिनप्रभसूरि। आदि निर्लोठितशठकमळं त्रैलोक्यप्रथितचारुकारुण्यम् । प्रणिपत्य श्रीपाश्र्व तपोटमतकुट्टनं वक्ष्ये ॥१॥ अन्त इति जिनप्रभसूरिकृतं तपोमतविकुट्टनशास्त्रममत्सरः । भवति सूक्ष्मधिया परिभावयन् बुधजनो विधिमार्गविचक्षणः ॥१०२॥ ॥ इति तपोटमतकुट्टनशतम् ॥ (२) तपोटर्षिमतखंडन स्वोपज्ञवृत्ति सह पत्र ७-२० । भा. सं. । क. गुणप्रभसूरि । ले. सं. अनु. १६ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५।४२।। आ प्रतिना अक्षरो घसाइ गया छे। आदिश्रीवर्धमानमानम्य तथा जिनप्रभं गुरुम् । स्वोपज्ञकाव्यटीकेयं क्रियते बोधहेतवे ॥१॥ प्रोद्भूतः सगुणो गणो खरतरोऽशीत्यभ्रचन्द्रप्रमे १०८० वर्षे नन्दखरुद्र ११०९ कालजनितो राकीयपक्षोऽपरः । अब्ध्येकांशुमिते तदाऽञ्चलमतं विश्वाग्निके ग्रस्तुतः कायाग्नीनमिते १२३६ यतिक्षणिगुणो दृग्वहिचैवेसरः ॥१॥ व्याख्या-पूर्व सुविहितत्वेन प्रसिद्धो ( इत्यादि ) अन्त अतस्तपोटर्षीणां जमाल्यन्वयोद्भूतित्वं न विरुद्धमिति। यदुक्तं श्रीगुरुभिःएषां जमालिसाधयें पूर्वयुक्त्या प्रतिष्ठिते । निह्नवत्वं कथंकारं न श्रद्धेयं विवेकिभिः ॥ इत्यादि मत्वा एतान् तपोटर्षीन् परिहृत्य सर्वसुविहितेष्वादरः कार्य इति ॥छ।। श्रीमजिजनप्रमसिौत्रेण गणप्रमेण कृतं तपोटर्षिमतखंडन समाप्तं ॥छ।।शुभं भवतु ॥छ।। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २८८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १२५ - क्रमाङ्क २८५ कातंत्रव्याकरण दुर्गसिंहवृत्ति विवरणपंजिका टिप्पणी सह-तद्धितपाद पर्यंत अपूर्ण पत्र १८१ । भा. सं. । क. त्रिलोचनदास । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२॥ आदि॥ॐ नमः सरस्वत्यै ॥ प्रणम्य सर्वकर्तारं सर्वदं सर्ववेदिनम् । सर्वीय सर्वगं शर्व सर्वदेवनमस्कृतम् ॥ दुर्गसिंहोक्तकातंत्रवृत्तिदुर्गपदान्यहम् । विवृणोमि यथाप्रज्ञमज्ञसंज्ञानहेतुना ॥ तत्रादौ तावदिष्टदेवतानमस्कारप्रतिपादनार्थ शास्त्रस्य सम्बन्धप्रयोजनाभिधानार्थ च वृत्तिकारः श्लोकमेक चकार । देवदेवमित्यादि ॥ क्रमाङ्क २८६ कातंत्रव्याकरण दुर्गसिंहवृत्ति विवरणपंजिका-आख्यातवृत्ति पत्र २०३ । भा. सं. । क. त्रिलोचनदास । ले. सं. १३०८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥॥४२॥ आदि ॐ सिद्धिः ॥ अथ इह यद्यपि प्रश्नानंतर्यमंगलाधिकारेष्वथशब्दो वर्तते तथाऽप्यानंतर्यार्थ एव युज्यते। तथाहि-प्रश्नः पर्यनुयोग उच्यते। स च सामान्यरूपेणावगतस्य विशेषरूपतयाऽनवधारितस्य वस्तुनो भवति । यथा अथ किमिदमिति। त्यादीनि तु सर्वथाऽविदितान्येव, न तस्यावकाशः । अधिकारार्थोऽपि न युज्यते। अन्त - इति त्रिलोचनदासविरचितायां दुर्गसिंहोक्तकातंत्रवृत्तिपंजिकायामाख्यातेऽष्टमः पादः समाप्तः ॥ छ । संवत् १३०८ वर्षे आषाढ वदि १ गुरावयेह नलकच्छकपुरे समस्तराजावलीविराजिमहाराजाधिराजप्रौढप्रतापलिम्बार्यावरलब्धश्रीकश्रीमज्जयवर्मदेवराज्ये आख्यातवृत्तिपंजिका लिखिता ।। क्रमाङ्क २८७ कातंत्रव्याकरणदुर्गसिंहवृत्तिविवरणपंजिका-आख्यातवृत्ति तथा कृवृत्ति पत्र १९६ । भा. सं. । क. त्रिलोचनदास । ले. सं. १४११ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १५४२। अन्त छ॥ इति त्रिलोचनदासविरचितायां दुर्गसिंहविरचितकातंत्रवृत्तिविवरणपंजिकायां कृत्सु षष्ठः पादः समाप्तः ॥छ॥छ॥छ। संवत् १४११ वर्षे पौष शुदि ७ सोमे अयेह श्रीमदगहिल्लपुरपत्तने खरतरगच्छीय भट्टारिकश्रीजिनचंद्रसूरिशिष्येण पं. सोमकीतिगणिना आत्मावबोधनार्थ वृत्तित्रितयपंजिका लिखापिता ॥ लिखितं पं. महिपाकेन ॥छ॥छ॥छ। यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥१॥ क्रमाङ्क २८८ (१) कातंत्रव्याकरणदुर्गसिंहवृत्ति विवरणपंजिका-आख्यातवृत्ति पत्र २७० । भा. सं.। क. त्रिलोचनदास । (२) कातंत्रव्याकरणदुर्गसिंहवृत्ति विवरणपंजिका-कृवृत्ति पत्र १६४। भा. सं. । क. त्रिलोचनदास । ले.सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १४॥४२१. पत्र ५९-६. नथी । Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ ... क्रमाङ्क २८९ कातंत्रव्याकरणदुर्गसिंहवृत्ति दुर्गपदप्रबोध पत्र १९१। भा. सं.। क. प्रबोधमूर्ति गणि। ग्रं. ७४९१। र. सं. १३२८ । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४२ आदि ॥ अहम् ॥ अथ। सूत्रे द्योतकादथशब्दात् सिः। कश्चित्तु वृत्तावनन्तराणीति दर्शनाजसित्याचष्टे । द्वयस्याऽप्यव्ययाच्चेति लोपः। परस्मैपदानीत्यत्रालुक्समासः ॥१॥ अथशब्द आनन्तर्य च तद्धितपादमपेक्ष्य वेदितव्यम् । तादृशं चानन्तर्य त्यादीनामेवास्ति, न तु सन्नादीनामपि, तेषामनेन पादेन व्यवहितत्वादित्याह । अथानन्तराणि स्यादीनि स्यामहिपर्यन्तानीति । अन्त इति श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यलेशप्रबोधमूतिगणिविरचिते वृत्तिदुर्गपदप्रबोधे कृत्सु षष्ठः पादः समाप्तः ॥छ। ग्रन्थं सम्यग, विभाव्य निखिलां वृत्ति प्रसङ्गात्तथा, क्वापि क्वापि च पञ्जिकामपि सभावार्थी विदित्वा जनाः। विज्ञाय क्रमशस्ततोऽखिलमतग्रन्थार्थसारं समालोच्याऽऽसेव्य च मुक्तिमार्गमचिराज्ज्ञानं लभन्तां परम् ॥१॥ चान्द्रे कुलेऽजनि गुरुर्जिनवल्लभाख्योऽर्हच्छासनं प्रथयिताऽद्भुतकृचरित्रः । तच्छिष्यमौलिजिनदत्तगुरुप्रवीरश्चक्रेऽखिलं विधिपथं सुवहं समन्तात् ॥२॥ तच्छिष्यो जिनचन्द्रसूरिरुदगाच्चित्रैरनन्तैर्गुणैः, सौन्दर्यादिभिरुच्यते स्म कृतिभिर्यः पञ्चविंशो जिनः । तत्पट्टाब्जसितच्छदो जिनपतिः सूरिः प्रतापाद्भुतो, माद्यद्वादिगजेन्द्रसिंह उदयत्सौभाग्यभाग्यावधिः ॥३॥ ज्ञानस्वर्दुभवैर्वरस्तवसुमैः सत्सौरभैरद्भुतैस्तत्कालग्रथितैर्जिनौकसि जिनान् येऽभ्यर्चयन्त्यन्वहम् । यत्कीर्तिप्रसवस्रजा तु जनता भूषत्यशेषा दिशस्ते श्रीसूरिजिनेश्वरा युगवरास्तत्पट्टमध्यासते ॥४॥ वृत्तेर्दर्गपदप्रबोधरसवत्येषा जगत्यै भृशं निःस्वेनापि धिया व्यधायि सुगुरोरस्य प्रसादान्मया । तन्निःशेषविशेषबोधनिपुणैरेषाऽधिकं सस्पृहः सद्बुद्धयङ्गविवृद्धये रविविभा यावन्मुदा स्वाद्यताम् ॥५॥ षटतर्कागमशब्दलक्ष्ममुखसद्विद्याब्धिकुम्भोद्भवैयः काव्यं मुखशुक्तिजं कृतधियां निर्दूषणं सद्गुणम् । दीप्रं चाऽपि कृतं सतामधिहृदं हारायते तैरसौ, श्रीलक्ष्मीतिलकाभिषेकतिलकैर्ग्रन्थो ह्यदज्वल्यत ॥६॥ विक्रमनृपवर्षेऽष्टाविंशत्यधिके त्रयोदशशतेऽसौ १३२८ । पूर्णः शुच्यां प्रतिपदि राधेऽश्विन्यां गुरौ वारे ॥७॥ चतुःसप्ततिशत्यस्यैकनवत्यधिका मितिः । चतुःसप्ततिमाधत्तां............मतां मताम् (2) ॥८॥ सप्रशस्तिग्रन्थाग्रं ७४९१ ॥छ।। क्रमाङ्क २९० (१) कातंत्रोत्तर विद्यानंदिवृत्ति-पंचसंधिपर्यंत अपूर्ण पत्र ७४ । भा. सं. । क. विजयानंद । (२) कातंत्रोत्तर विद्यानंदिवृत्ति-नामद्वितीयपादपर्यंत टिप्पणीसह पत्र ४६ । भा. सं.। क. विजयानंद । ले. सं. १२४५ । ॥छ। इति विजयानन्दविरचिते कातंत्रोत्तरे विद्यानंदापरनाम्नि नाम्नि द्वितीयः पादः समाप्तः ॥ संवत् ११४५ अशिनि (अश्विन) सुदि २ शुक्रे । शिवमस्तु सर्वेषाम् ।। (३) कातंत्रोत्तर विद्यानंदिवृत्ति-कारकप्रकरण पत्र २७ । भा. सं. । क. विजयानंद । ले. सं. १२४५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२१४२१. । Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २९७] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १२७ ॥छ॥ इति विजयानन्दविरचिते कातंत्रोत्तरे विद्यानंदापरनाम्नि कारकप्रकरणं समाप्तमिति छ॥छ। सम्वत् १२४५ ॥छ॥छ॥छ।। क्रमाङ्क २९१ कातंत्रोत्तर विधानंदिवृत्ति-तद्धितप्रकरण पर्यन्त पत्र २०९ । भा. सं.। क. विजयानन्द । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी अन्त । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८४२॥ क्रमाङ्क २९२ पंच ग्रंथी-बुद्धिसागरव्याकरण पत्र ३७४ । भा. सं. । क. बुद्धिसागरसूरि । र. सं. १०८० । ग्रं. ७०००। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७४२।। पत्र २०१ नथी । क्रमाङ्क २९३ सिद्ध हेमशब्दानुशासन बृहद्वृत्ति सप्तमाध्याय पत्र १९३ । भा. सं. । क. हेमचन्द्राचार्म। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२॥ क्रमाङ्क २९४ सिद्धहेमशब्दानुशासन बृहवृत्ति-आख्यातवृत्ति तथा कृवृत्ति पत्र २०७। भा. सं. । क. हेमचन्द्राचार्य। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२॥ क्रमाङ्क २९५ सिद्धहेमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति-तद्धितप्रकरण अपूर्ण पत्र २६५। भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १९॥४२॥.1 पत्र २०, २५ नथी । क्रमाङ्क २९६ (१) सिद्धहेमशब्दानुशासन बृहद्वृत्ति द्वितीयाध्याय तृतीयपाद पत्र ५४-८६ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य। ले. सं. १३मी शताब्दी अंत । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२॥ अन्त ॥छ॥ मंगलमस्तु आचार्यश्रीचंद्रप्रभसूरेः ॥छ॥छ॥ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन बृहद्वृत्ति तृतीयाध्याय द्वितीयपाद पत्र २०४-२४८ । भा. स । क. हेमचंद्राचार्य। ग्रं. ८१२ । ले.सं. अनु. १३मी शताब्दी अंत । संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ । लं.प. १३४२॥ पत्र २४८ मां सरस्वतीदेवीनुं ऊभीमुद्रामां सुंदर चित्र छ । क्रमाङ्क २९७ सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्ति पंचमाध्याय-कृवृत्ति पत्र ९१ । भा. सं.। क. हेमचंद्रसूरि । ग्रं. १६७८ । ले. सं. १२०६ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४१॥ अन्त छ॥ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचंद्राभिधानस्योपशशब्दानुशासनलघुपत्तौ पंचमोऽध्यायः समाप्तः ॥छ॥ शिवमस्तु सर्वभूतानां ॥छ॥ पं. श्लो. १६७८ । संवत् १२०६ भाषाढ बदि ५ सोमे ॥॥॥ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ श्रीजैसलमेर दुर्गस्थ क्रमाङ्क २९८ सिद्ध शब्दानुशासन लघुवृत्ति तृतीयाध्याय तृतीयपादधी पंचमाध्याय चतुर्थपादपर्यन्तआख्यावृत्ति तथा कृवृत्ति पत्र १२३ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । ग्रं. १६०० । लें. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४२ क्रमाङ्क २९९ सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्ति-तद्धितवृत्ति अपूर्ण पत्र १७१ । भा. सं. क. हेमचन्द्राचार्य । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११२ । पत्र ९९ - १३२ नथी । क्रमाङ्क ३०० सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्ति षष्ठ सप्तमाध्याय - तद्धितवृत्ति टिप्पणीसह पत्र १९८ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी उत्तरार्ध । संह. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११२ । । टिप्पणी बृहद्वृत्त्यनुसारिणी । क्रमाङ्क ३०१ सिद्धमशब्दानुशासन रहस्यवृत्ति ( सिद्धहेम लघुवृत्तिसंक्षेप) पत्र ले. सं. १२१८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३ ॥ ४२ ॥ अन्त [ क. १९८ ॥छ॥ इत्याचार्यश्री हेमचंद्रविरचितायां स्वोपज्ञसिद्ध हेमचन्द्रशब्दानुशासन रहस्यवृत्तौ सप्तमस्याध्यायस्य चतुर्थः पादः समाप्तः ।। सप्तमोऽध्यायः ॥ छ ॥ शुभं ॥ छ ॥ संवत् १२१८ वर्षे || श्रावण वदि ७ रखौ मंडली वास्तव्यश्रीजाल्यो धरगच्छ संतानके आसदेवसुत ले० पल्हणेन श्रीभद्रेश्वरसूरियोग्या पुस्तकं लिखितमिति ॥ छ ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ३०२ सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुन्यास ( दुर्गेपदव्याख्या) - व्याकरणचतुष्कावचूर्णि षष्ठपादपर्यन्त पत्र १८६ | भा. सं. । क. कनकप्रभसूरि । ग्रं. २८१८ । ले. सं. १२७१ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५x२. । प्रथम आदर्श (?) । अन्त व्याकरणचतुष्कावचूर्णिकायां षष्ठः पादः समाप्तः ॥ प्रथमपुस्तिका प्रमाणीकृता ॥ छ ॥ संवत् १२७१ वर्षे कार्तिक शुदि षष्ठयां शुक्रे श्रीनरचन्द्रसूरीणां आदेशेन पं. गुणवल्लभेन समर्थितेयं पुस्तिकेति ॥ छ ॥ ग्रन्थानं २८१८ ॥ मंगलमस्तु ॥छ॥ १२।४२ आदि १६० । भा. सं. 1 क्रमाङ्क ३०३ (१) धातुपाठ पत्र १८ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. श्वेताश्वाश्वतरगालोडितारकाणामश्वतरेतकलोपश्वपुच्छादिषु धात्वर्थं इति सिद्धम् ॥४॥ चुरादयो ण्यन्ताः ॥ छ ॥ इति धातवः सम्पूर्णाः ॥ छ ॥ ॐ नमः शिवाय ॥ भू संत्तायामुदात्तः । एध वृद्धौ । स्पर्द्ध संहर्षे । गाट प्रतिष्ठा लिप्सयोर्ग्रन्थे च । बा लोटने । नाथू याच्ञोपतापैश्वर्याशीःषु । अन्त Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३०५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १२९ (२) विभक्तिविचार पत्र १६ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२ आदि ७॥ नमोजिनाय ॥ सुप्तितं पदं । अत्र सुपिति स्यादयः सप्त विभक्तयो युज्यंते । तत्र प्रथमा, प्रथममवगता प्रथमेव तावद्विचार्यते, का पुनरियं प्रथमा ? सि औ जसिति । तस्याः पुनरेतल्लक्षणं, प्रातिपदिकार्थेत्यादि, तत्र प्रातिपदिकार्थः सत्ताऽद्वयवादीनामेतद्दर्शनं, सत्ता प्रातिपदिकार्थ इति, तथा च तेषां दर्शनं सत्ता नाम काचिदनादिनिधनरूपा नित्यस्वेन व्यवस्थिता सर्वशब्दरभिधीयत इति । तदुक्तं संबंधिभेदात्सत्तव विद्यमाना गवादिषु जातिरुच्यते । तस्यां सर्वे शब्दा व्यवस्थिताः प्राप्तक्रमविशेषेषु क्रियैवाभिधीयते । क्रमरूपस्य संहारे तत्सत्त्वमिति चोच्यते । अतस्तासां प्रातिपदिकार्थ धात्वर्थे च प्रचक्षते । सा नित्या सा महानात्मा तामाहुस्तत्वलादयः । , अन्त तथाहि - पाकोऽधिश्रयणं तुषसंप्रक्षेपेण दर्विघटनलक्षणो देवदत्तव्यापारो नासौ काष्ठादीनां भवितुमर्हति । काष्ठस्य व्यापारो ज्वलनं । स्थाल्याश्च संभवधारणं । तस्मात्प्रतिकारक क्रियाभेदो अंगीकर्तव्यः । यद्येव क्रियाभेदेन परस्परासंबंधादसत्येकवाक्यत्वे देवदत्तः काष्ठैः स्थाल्यामोदनं पचतीति ॥ छ ॥ विभक्तिविचारः समाप्तः ॥ ० ॥ श्रीमज्जिनचंद्रसूरिशिष्येण जिनमतसाधुना पुस्तकभिदमलेखि ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ३०४ स्याद्यतप्रक्रिया पत्र ९४ । भा. सं. 1 क. सर्वधरोपाध्याय । ले. सं १२०७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२x२ | आदि ॐ ॥ सर्वज्ञाय नमः ॥ प्रणम्य शिरसा सार्धं सर्वज्ञ जगतां गुरुं । स्याद्यन्तप्रक्रियां वक्ष्ये सविशेषं समासतः ॥ रूढिशब्दाः प्रकीर्त्यते पुंसि क्लीबे स्त्रियामपि । गुणद्रव्यक्रियायोगात् त्रिलिंगास्तदनंतरम् ॥ विप्राग्निसखिपत्यंशु क्रोष्टुप्रतिभुवः पिता । ना प्रशास्ता च रा गो ग्लौः स्वरान्ताः पुंसि कीत्तिताः । तत्र विप्रशब्दस्य धातुविभक्तिवर्जमर्थवलिंगनिति लिंग संज्ञायामेकवाक्यतापक्षे तस्मात् परा विभक्तय इत्यादिना सि औ जसित्यादीनि सप्त त्रयाणि सप्त विभक्तयः प्रथमादिशब्दवाच्या भवति ॥ अन्त ॥ छ ॥ भवति चात्र संग्रह श्लोकाः ॥ एकादिका भवेत्संख्या संख्येये च दशावधेः । ऊनविंशत्यादिस्त्वेके सदा संख्येयसंख्ययोः ॥ ऊनविंशत्यादेर्भेदे वृत्तिर्द्वित्वादिकेष्वपि । आद्यंतरं त्रिलिगेषु निर्लिङ्गान्तदशावधेः ॥ स्त्रियां वा नवतेस्तत्र शतादिस्तु नपुंसके । स्त्रीनपुंसकयोर्लक्षमर्बुदं पुनपुंसकम् ॥ स्त्रियामेव भवेत्कोटिर्भूम्नि कतिरलिंगकः । यतिस्ततिरपीत्येके स्त्रियां पंक्तिर्दशार्थिका ॥ छ ॥ इत्युपाध्यायसर्वधरविरचितस्याद्यं तप्रक्रियायां त्रिलिंगकाण्डश्चतुर्थः समाप्तः ॥ छ ॥ संवत् १२०७ माघ सुदि २ खौ मंगलम् ॥ क्रमाङ्क ३०५ प्राकृतप्रकाश अपूर्ण पत्र २८ । भा. सं. क. वररुचि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संद्द. जीर्णप्राय । द श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२ १७ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. ३०६ क्रमाङ्क ३०६ हम लिंगानुशासन स्वोपविवरणसह पत्र १०३। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ। ग्रं. ३३८४ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी अंत। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५४२। क्रमाङ्क ३०७ हैम उणादिगण स्वोपज्ञ विवरणसह पत्र ८३ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य। ग्रं. ३००२ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी अंत। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५४२। क्रमाङ्क ३०८ धातुपारायण पत्र १८१। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ । ग्रं. ५५००। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी अंत । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४॥४२॥ क्रमाङ्क ३०९ हैम अनेकार्थकोश अनेकार्थकैरवाकरकौमुदीटीकासह प्रथमखंड त्रिस्वरकांड१२६श्लोकपर्यन्त पत्र ३३६ । भा. सं.। मू.क. हेमचंद्राचार्य । टी. क. महेन्द्रसूरि । ले.सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १९४२।। क्रमाङ्क ३१० हैम अनेकार्थकोश अनेकार्थकैरवाकरकौमुदीवृत्तिसह द्विस्वरकांडपर्यन्त प्रथमखंड अपूर्ण पत्र २६४ । भा. सं. । मू. क. हेमचंद्राचार्य। वृ. क. महेन्द्रसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४२ । पत्र १९५, २०५, २२२-२२७ नथी। आदि-९०॥ अहम् ॥ परमात्मानमानम्य निजाऽनेकार्थसङ्ग्रहे । वक्ष्ये टीकामनेकार्थकैरवाकरकौमुदीम् ॥१॥ विश्वप्रकाश-शाश्वत-रभसा-ऽमरसिंह-मंख-दुर्गाणाम् । व्याडि-धनपाल-भागुरि-वाचस्पति-यादवादीनाम् ॥२॥ शास्त्राणि वीक्ष्य शतशो धन्वंतरिनिर्मित निघण्टुं च। लिङ्गानुशासनानि च क्रियतेऽनेकार्थटीकेयम् ॥३॥ लिङ्गानुशासनेऽस्माभिवर्णितो लिङ्गनिर्णयः । अतो न ग्रथितः सूत्रे ग्रन्थगौरवभीरुभिः ॥४॥ इह सोऽप्यज्ञविज्ञानहेतवे दर्शयिष्नते । गुणशब्दो गुणे पुंसि वाच्यलिङ्गस्तु तद्वति ॥५॥ प्राणिजातिध्वनियस्तु पुल्लिङ्गः पुंसि दर्शितः। तस्यव वर्तमानस्य स्त्रियां स्त्रीलिङ्गता मता ॥६॥ कुत्राऽपि रूपभेदेन क्वचिच्च प्रत्ययादिभिः । लिङ्गानां निर्णयो ज्ञेयो विशेषस्त्वभिधास्यते ॥४॥ व्युत्पत्तिर्लिङ्गनिर्णीतिर्विषमार्थप्रकाशनम् । प्रायेण दृष्टदृष्टान्तो वाच्यमत्र चतुष्टयम् ॥८॥ अथ ग्रन्थारम्भे सूत्रकारः शिष्टसमयपरिपालनाय प्रत्यूहव्यूहोपशान्तये अभिधेयप्रयोजनसम्बन्धप्रतिपादनाय च समुचितेष्टदेवतानमस्कारपूर्वकमुपक्रमते । ध्यात्वाऽर्हतः कृतैकार्थशब्दसन्दोहसङ्ग्रहः । एकस्वरादिषट्काण्ड्या कुर्वेऽनेकार्थसङ्ग्रहम् ॥१॥ क्रमाङ्कः ३११ हैम अनेकार्थकोश अनेकार्थकैरवाकरकौमुदीवृत्तिसह त्रिस्वरकांड द्वितीयखंड पत्र २३९ । भा. सं.। मू. क. हेमचंद्राचार्य । वृ. क. महेन्द्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वाध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३१२ ]] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २१ आदि ९. ॥ अहं ॥ अथ तृतीयं त्रिस्वरकांडमारम्यते ॥ तत्रादौ कांताः ॥छ। अणुको निपुणेऽल्पे च । निपुणोऽणुकः । अन्त____ इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायामनेकार्थकरवाकरकौमुदीत्यभिधानायां स्वोपज्ञाऽनेकार्थसाहटीकायां त्रिस्वरकाण्डस्तृतीयः परिपूर्णः ॥छ।। श्रीहेमसूरिशिष्येण श्रीमन्महेन्द्रसूरिणा। भक्तिनिष्ठेन टीकेयं तन्नाम्नैव प्रतिष्ठिता ॥१॥ सम्यग्ज्ञाननिधेर्गुणैरनवधेः श्रीहेमचन्द्रप्रभोर्ग्रन्थे व्याकृतिकौशलं विलसति क्वास्मादृशां तादृशम् । व्याख्यामः स्म तथापि तं पुनरिदं नाऽऽश्चर्यमन्तर्मनस्तस्याऽजसमपि स्थितस्य हि वयं व्याख्यामनुब्रमहे ॥२॥ यल्लक्ष्य स्मृतिगोचरे समभवद् दृष्टं च शास्त्रान्तरे, तत् सर्व समदर्शि किन्तु कतिचिन्नो दष्टलक्ष्याः क्वचित् । अभ्यूह्य स्वयमेव तेषु सुमुखः शब्देषु लक्ष्य बुधैर्यस्मात् सम्प्रति तुच्छकश्मलधियां ज्ञानं कुतः सर्वतः ॥३॥ एकत्रापि कृताऽभिधेयविषये व्युत्पत्तिरर्थान्तरे, कर्तव्या स्वयमेव दर्शितदिशा निवेदवन्ध्यबुधः । वर्णाद्य क्रमवर्णनं च न कृतं तच्चापि कार्य स्वयं, यत्कृत्स्नप्रतिपादनेन विवृतिः कामं वरीवृध्यते ॥४॥ मङ्गलं महाश्रीः।। क्रमाङ्क ३१२ __ हैम अनेकार्थकोश अनेकार्थकैरवाकरकौमुदीवृत्तिसह तृतीयखंड चतुःस्वरकांडथी अंतपर्यत पत्र १३४ । मू. क. हेमचंद्राचार्य । वृ. क. महेन्द्रसूरि । ले. सं. १२८६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२। आदि ए० ॥ अहं ॥ अथ चतुर्थ चतुःस्वरकांडमारभ्यते ॥ तत्रादौ कान्ताः ॥छ॥ अन्त इत्याचार्यश्री हेमचन्द्रविरचितायामनेकार्थकैरवाकरकौमुदीत्यभिधानायां स्वोपज्ञाऽनेकार्थसंग्रहटीकायामनेकार्थशेषाव्ययकाण्डः सप्तमः ॥छ॥छ॥ श्री हेमसूरिशिष्येण श्रीमन्महेन्द्रसूरिणा। भक्तिनिष्ठेन टीकेयं तन्नाम्नव प्रतिष्ठिता ॥१॥ सम्यग्ज्ञाननिधेगुणरनवधेः श्रीहेमचन्द्रप्रभोपॅन्थे व्याकृतिकौशलं विलसति क्वास्मादृशां तादशम् । व्याख्यामः स्म तथापि तं पुनरिदं नाऽऽश्चर्यमन्तननस्तस्याजस्रनपि स्थितस्य हि वयं व्याख्यामनुब्रमहे ॥२॥ यल्लक्ष्य स्मृतिगोचरं समभवद् दृष्टं च शास्त्रान्तरे, तत् सर्व समदर्शि किन्तु कतिचिन्नो दृष्टलक्ष्याः क्वचिद् । अभ्यूह्य स्वयमेव तेषु सुमुखः शब्देषु लक्ष्य बुधैर्यस्मात् सम्प्रति तुच्छकश्मलधियां ज्ञानं कुतः सर्वतः ॥३॥ एकत्रापि कृताऽभिधेयविषये व्युत्पत्तिरर्थान्तरे, कर्तव्या स्वयमेव दर्शितदिशा निर्वेदवन्ध्यैर्बुधैः । वर्णाद्यक्रमवर्णन च न कृतं तच्चापि क य स्वयं, यत्कृतप्रतिपादनेन विवृतिः कामं वरीवृद्धयते ॥४॥छ। परिपूर्णा चेयमनेकार्थसंग्रहटीकाऽनेकार्थकरवाकरकौमुदीत्यभिधानेति ॥छ॥छ।।छ। लेखकप्रशस्ति सुदृढश्रेयोमलः पराय॑शाखाप्रपञ्चरोचिष्णुः। वंशोऽस्ति धर्कटानां फलभृदपि न नश्वरप्रकृतिः ॥१॥ तत्राऽऽसीत् पार्श्वनागाख्यः श्राद्धः श्रद्धालु तानिधिः। तस्याङ्गजः सतां मुख्यो गोलः प्रोल्लासिकी र्तिमाक ॥२॥ जिनदत्तसूरिसुगुरोराज्ञां चूडामणीमिव प्रवराम् । बिभराञ्चकार निजमूनि दलितदारिद्य मुद्रां यः ॥३॥ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. ३१३यः प्रातरेव रचयाञ्चकार चिन्तां सधर्मणां नृणाम् । ग्लानानां निःस्वानां निजौषधार्मिहाश्राद्धः ॥४॥ पुरे च यः श्रीमरुकोहनामनि क्षोणीपतेः सिंहबलस्य सन्मतेः । कान्तं निशान्तं नितरामचीकरच्चन्द्रप्रभस्योत्तमतुङ्गशृङ्गभृत् ॥५॥ तञ्च शुचिरुचिरचरितगुरुणा वादिद्विपेन्द्रकेसरिणा। जिनचन्द्रसूरिगुरुणा मुदा प्रतिष्ठापयामास ॥६॥ तस्याऽऽसंश्चत्वारः पुत्राः प्रत्यस्तनिखिलमिथ्यात्वाः । सम्यक्त्वाद् यच्चेतो न चलति सुरशिखरिशिखरमिव ॥७॥ लक्ष्मीधरो लक्षितधर्मलक्ष्यः समुद्धरः सद्गुरुभक्तिदक्षः। नाम्ना मुणागः कृतमुक्तिरागस्तथाऽऽसिगो बन्धुरशुद्धबुद्धिः ॥८॥ तत्राऽऽसिगस्य पुत्रास्त्रयोऽभवन् वीरपालनामाऽऽद्यः । आशापालः शुभधीस्तार्तीयीको नयतिपालः ॥९॥ तेषामाशापालः साधुः श्राद्धः प्रवर्द्धितश्रद्धः । यः शेषामिव जिनपतिसुगुरोराज्ञा वहति मूर्ना ॥१०॥ देवगुरुकृत्यकुशलो गाम्भीर्यदार्यधैर्यमुख्यगुणैः। रत्नालङ्कारैरिव नितरां यो भूषयाञ्चके ॥११॥ कुलचन्द्र-वीरदेवाख्य-पद्मदेवैः सुतैर्विहितसेवः । साधूनां साध्वीनां श्राद्धानां श्राविकाणां च ॥१२॥ प्रचकारोपष्टम्भं योऽशनवरपानवस्त्रपात्रायः। शुषमिणिनाम्नी भार्या शीलनिधिोजते यस्य ॥१३॥ स बुद्ध्वा सज्ज्ञानप्रवितरणमत्यस्तकलु भवक्षाराम्भोधिप्रतितजनोत्तारतरणिम् । महामोहव्यूहव्यपनयनदक्षं क्षतभयः समस्तानां श्रीणां प्रभवमवदातोत्तमगुणम् ॥१४॥ स्वर्गापवर्गसंसर्गकारणं पापवारणम् । कल्याणानां पराया॑नां निधानं ध्यानवर्द्धनम् ॥१५॥ अभिधानकोशभेतदनेकार्थ लिलेख भोः। दृष्टिवसुसूरसंख्ये १२८६ विक्रमभूपवत्सरे ॥१६॥ सुलेखकोऽत्र लावण्यसिंहनामा प्रसिद्धिभाक् । सदक्षरविनिर्माता ब्राह्मणोऽयं प्रकीर्तितः ॥१७॥छ। ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥ क्रमाङ्क ३१३ (१) अभिधानचिंतामणिनाममाला स्वोपशवृत्तिसह चतुर्थकांड पत्र १८३ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ। ग्रं. २६३० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४।४२ (२) अभिधानचिंतामणिनाममाला स्वोपज्ञवृत्तिसह पंचमषष्ठकांड पत्र ८९ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ । ग्रं. ११२० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२ क्रमाङ्क ३१४ (१) जयदेवछंदःशास्त्र पत्र १०। भा. सं.। क. जयदेव। ले. सं. ११९०। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४१॥ आदि ९॥ गायत्रं छन्दसां पूर्व वर्द्धमानाक्षरं परम् । वाग्मण्डनकर नौमि चित्रवृत्तप्रसिद्धये ॥१॥ अन्त इति जयदेवच्छन्दसि अष्टमोऽध्यायः समाप्तः ॥छ॥छ।। संवत् ११९० मार्ग शुदि १४ सोम दिने श्रीसर्वदेवाचार्यशिष्यस्य देवचन्द्रस्यार्थे पं. श्रीधरेण जयदेवच्छन्दमूलसूत्रमलेखि ॥ पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थयोः । षष्ठं गुरुं विजानीयादेतच्छ्लोकस्य लक्षणम् ॥१॥छ। (२) जयदेवछंदःशास्त्र वृत्तिसह पत्र १-५५ । मू. क. जयदेव। . क. हर्षट। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२। Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३१४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र । १३३ आदि-५०॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ सङ्करं शाश्वतं सौरिं प्रणम्य विवृणोम्यहम् । जयदेवानि सूत्राणि स्वरूपविधिना स्फुटम् ॥१॥ अन्त भट्टमुकुलकात्मजहर्षटविरचितायां जयदेवच्छन्दोविवृतावष्टमोऽध्यायः ॥छ।। समाप्तं जयदेवच्छन्दोविवरणं ॥छ॥ शुभमस्तु ॥छ॥छ।। मङ्गल महाश्रीः ॥छ॥छ।। (२) कइसिट्ठ छंदःशास्त्र प्राकृत गाथाबद्ध पत्र ५६-८९ । भा. प्रा. । क. विरहाक। आदि-५०॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ देई सरस्सइं पणमिऊण गरुअकइगंधहत्थि च। सब्भावलंछणं पिंगलं च अवलेवइण्हं च ॥१॥ अन्त इअ कविसिट्ठवित्तजाईसमुच्चये छट्ठो णिअमो समत्तो ॥छ॥ कइसिद्वछंदं समत्तं ॥छ।।छ। सुभमस्तु ॥छ। मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥५॥ (४) कइसिहछंदःशास्त्रवृत्ति पत्र ९०-१८३ । भा. सं.। क. भट्ट गोपाल । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी पूर्वाद्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२। आदि-५०॥ एतै[...]दामितसरोजदलाभिरामा कान्तिजितेत्यसहमान इवाञ्जनेन । शून्यानि यस्त्रिदशवैरिविलासिनीनां नेत्रोत्पलानि विदवेऽस्तु स वो हिताय ॥१॥ नत्वा पिङ्गलसैतवकात्यायन भरतकम्बलाऽश्वतरान् । विरहाङ्कविरचिताया छन्दोविचितेः करोम्यहं व्याख्याम् ॥ पुस्तकलेखकदोषादसंस्कृतानां मुखे च पतितत्वात् । प्रभ्रष्टा ये पाठाये चान्येरन्यथा रचिताः ॥ तानाप्तेभ्यो नामा (ज्ञात्वा) पुस्तकसंदर्शना[त् ] समाहृत्य । अन्येभ्यः शास्त्रेभ्यः स्वधिया च विचार्य रचितेयम् ॥ प्रथमं तावद्दाथायुगलेनाभिमतदेवादिनमस्कारश्चव्यापारो(१) दर्शयितुमाचार्य आह ॥छ।। देई सरस्सइमिति ॥ देवी सरस्वती प्रणम्य गुरुककविगन्धहस्तिनं च । सद्भावलाञ्छनं पिङ्गलं चाऽवलेपचिह्नं च ।। कामिनीकपोलपद्मपरितनुबुद्धिविभवोऽपि दयिताये। साधयति समुच्चय विरहलाञ्छनो वृत्तजातीनाम् ॥ वृत्तजातीनां समुच्चयं छन्दोऽवचयविशेषसारसङ्ग्रह विरहलाञ्छनाख्य आचार्य दयितायै साधयति कथयति । कि कृत्वा ? देवी सरस्वती भगवती वागीश्वरी प्रणम्य स्तुत्वा, सद्भावलाञ्छनं स्वगुरुं च स्तुत्वा, कीदृशम् ? गुरुकविगन्धहस्तिनम्, गुरव एव गुरुकाः, स्वार्थे कः, अन्ये स्वाहुः प्राकृतभाषायामेव लालित्यार्थमेव रूपम् , न तु संस्कृते, अर्थान्तरासम्भवात्, तेन गुरवश्च ते कवयः गुरुकवयः इत्येव साधीयः, गन्धहस्ती वरगन्धहस्ती, गुरुकवीनां गन्धहस्ती गुरुकविगन्धहस्ती, तं हि गन्धहस्तिभयाद्धि सामान्यद्विपाः स्वजन्मभूमि वनमप्युत्सृजन्ति, किमु सम्मुखा भविष्यन्ति ?। किञ्च-पिङ्गलं प्रणम्य छन्दःशास्त्राचार्यम् । अवलेपचिहं च कविमुख्य विशेषेण नत्वेति योजनीयम् । किम्भूतो विरहलाञ्छनः? कामिन्या उत्तमाया योषितः कपोललक्ष्मणा गण्डशोभावयवेन सदृशः परितनुबुद्धिविभवो मतिविस्तारो यस्य, अनेन स्वविशेषणद्वारेण नासूक्ष्मदर्शितारोऽस्मिन् सुखेनावगतिरिति दर्शिता । देवतादिनमस्कारेणानेककल्मषप्रभवविघ्नोपशमार्थ सर्वकार्यारमेषु अभिमतदेवतानमस्कारो विधेयः । अन्त चक्रपालात्मजगोपालविरचितायां कृतशिष्टविकृतौ षष्ठो नियमः ॥छ॥ समाप्तेयं कैसठ्ठटीका छ॥ कृतिर्भट्टपक्रपालसुनोगर्गोपालस्य ॥छ। मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥छ।। Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. ३१५ (५) छंदोनुशासन पत्र २८ । भा. सं. । क. जयकीर्तिसूरि । ले. सं. ११९२ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२॥ आदि नमः शिवाय ॥ श्रीवर्द्धमानमानम्य छन्दसां पूर्वमक्षरम् । लक्ष्यलक्षणमावीक्ष्य वक्ष्ये छन्दोऽनुशासनम् ॥ छन्दःशास्त्रं वहित्र तद् विक्षोः काव्यसागरम् । छन्दोभाग् वाङ्मयं सर्वे न किञ्चिच्छन्दसा बिना ॥ अन्त माण्डव्य- पिङ्गल-जनाश्रय -सेतवाख्य- श्रीपादपूज्य- जयदेवबुधादिकानाम् । छन्दांसि वीक्ष्य विविधानपि सत्प्रयोगान् छन्दोनुशासनमिदं जयकीर्त्तिनोक्तम् ॥ इति जयकीर्त्तिकृतौ छन्दोनुशासने.. ......। नमो देवेभ्यः । स्वस्ति प्रज्यभ्यः । ॐ नमः शिवाय । ॐ नमो नारायणाय । ॐ नमो ब्रह्मगे । ॐ नमो सर्वदेवेभ्यः । शिवमस्तु पाठकलेखकयोरिति । संवत् ११९२ आषाढ शुदि १० शनौ लिखितमिदमिति ॥ छ ॥ 1 (६) वृत्तरत्नाकर पत्र १५ । भा. सं. । क. भट्ट केदार । ले. सं अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२ । । पत्र १० मुं नथी । क्रमाङ्क ३१५ छंदोनुशासन स्वोपज्ञ छंदचूडामणिवृत्तिसह पत्र २१४ । भा. सं. । क. हेमचन्द्राचार्य स्वोपज्ञ | ग्रं. ४१०० । ले. सं. १४९० । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४१ ॥ अन्त इत्याचार्यश्री हेमचन्द्रविरचितायां स्वोपज्ञच्छन्दोऽनुशासनवृत्तौ प्रस्तारादिव्यावर्णनो नामाष्टमोऽध्यायः समाप्तः ॥ छ ॥ संपूर्ण छंदोऽनुशासनमिति ॥ छ ॥ ग्रन्थाग्रं ४१०० ॥ छ ॥ संवत् १४९० वर्षे आषाढ शुदि ६ शनिदिने श्रीमति स्तंभतीर्थे अविचलत्रिकालज्ञाज्ञापालनपटुतरे विजयिनि श्रीमतखरतरगच्छे जिनराजसूरिपट्टे लब्धिलीलानिलय बंधुर बहुबुद्धिबोधितभूवलयकृतपापपूरप्रलयचारुचारित्रचंदनतरुमलययुगपवरोपममिथ्यात्वतिमिरनिकर दिनकरप्रसरसम श्रीमद्गच्छेशभट्टारकश्री जिनभद्रसूरीश्वराणामुपदेशेन प. गूजरसुतेन रेषाप्राप्तसुश्रावकेन प. धरणाकेन पुत्रसाईयासहितेन च्छंदचूडामणिपुस्तकं लखापितं ॥ छ ॥ छ ॥ श्रीः ॥ पुरोहित हरीयाकेन लिखितम् ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ छ ॥॥॥ श्रीः ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ३१६ (१) कल्पलताविवेक ( कल्पपल्लवशेष) तृतीयपरिच्छेद अपूर्ण पर्यन्त पत्र २५९ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वाद्धं । (२) कल्पलताविवेक ( कल्पपल्लवशेष) चतुर्थ परिच्छेद पत्र १४८ । अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६x२। क्रमाङ्क ३१७ कल्पलताविवेक ( कल्पपल्लवशेष) पत्र ३८९ । भा. सं. । ग्रं. ६५०० । ले. सं. १२०५ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५/४२ ॥ | अंत्य पत्रमां शोभन छे । आदि यत् पल्लवे न विवृतं दुर्बोधं मन्दबुद्धिभिचापि । क्रियते कल्पलतायां तस्य विवेकोऽयमतिसुगमः ॥ भा. सं. । ले. सं. Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३२० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र सूर्याचन्द्रमसाविति। "खद्योतपोतको यत्र सूर्याचन्द्रमसावपी"ति पाठे प्राकरणिकानुवादेनाप्राकरणिकस्य स्वगुणोपसंक्रमणद्वारेण विधेयता न भवेदित्यनुवाद्ययोः सूर्याचन्द्रमसोरादावुपादानमिति। एष चार्थों रूपके कल्पलतायामविमृष्टविधेयांशवाक्यदोषे कल्पपल्लवे च वितत्य वक्ष्यते । अन्त - अनुद्भटमतमिति । उद्भटो ह्यलङ्कारान्तरप्रतिभोत्पत्तिहेतुमेव श्लेषं प्रतिजानीते । तेन “येन ध्वस्तमनोभवेने"त्यत्रापि तुल्ययोगिताप्रतिभया सङ्कर एव स्यादिति श्लेषस्य निर्विषयत्वापत्तिस्तदवस्थवेति । जयतीति । सर्वोत्कर्षण वर्तते ॥छ॥ इति कल्पपल्लवशेषे कल्पलताविवेकेऽर्थालङ्कारनिर्णयो नाम चतुर्थः परिच्छेदः समाप्तः ॥छ॥ इति समाप्तः कल्पलताविवेकाऽभिधानः कल्पपल्लवशेषः ॥छ।।छ।। कल्पपल्लवमात्रेण न ये कल्पलतां विदुः । कल्पपल्लवशेषोऽयं निर्मितस्तद्विदेऽपरः ॥छ॥१॥छ।। अपर इति । एकस्मिन् विवरणे कृतेऽपरविवरणकरणं श्रोतणामबोधहेतुतया श्रेयस एवेत्यर्थः ॥छ॥ पल्लवकलशविराजिनि कल्पलताविबुधमन्दिरे रचितः । शेषध्वजो विजयतां छेदपरुर्ध्वनिपताकोऽयम् ॥छ।। सम्वत् १२०५ श्रावण शुदि १४ शनौ ॥छ।। मङ्गलं महाश्रीः ॥छ।। ___ क्रमाङ्क ३१८ काव्यमीमांसा (कविरहस्य) पत्र ९०। भा. सं. । क. राजशेखर । ले. सं. १२१६ । संह. अतिजीर्ण । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४२॥ अन्त इह सिद्धो महाकविः ॥छ॥ इति श्रीराजशेखरकृतौ काव्यमीमांसायां कविरहस्ये प्रथमेऽधिकरणे कालविभागो नाम समीक्षा अष्टादशोऽध्यायः ॥छ।। समाप्त चेदं कविरहस्य प्रथममधिकरणमष्टादशोऽध्यायः ॥छ॥ शुभमस्तु ।। लेखकपाठकयोः ॥छ।। मंगलं महाश्री ॥छ॥छ।। संवत् १२१६ फाल्गुन बदि ९ सोमदिने ॥छ॥छ॥ क्रमाङ्क ३१९ काव्यादर्श (काव्यप्रकाशसंकेत) सप्तम उल्लास पर्यन्त पत्र २०७ । भा. सं.। क. सोमेश्वर भट्ट । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४१॥ आदि- स्वस्ति ॥ पदार्थकुमुदवातसमुन्मीलनचन्द्रिकाम् । वन्दे वाचं परिस्पन्दजगदानन्ददायिनीम् ॥ समुचितेति यत् किल प्रस्तुतं वस्तु काव्यालङ्करणं तदधिदैवतरूपा च वक्ष्यमाणरामणीयकहृदयहारिणी वाणी। अनन्यपरतन्त्रामिति । कवेरपेक्षयाऽन्यशब्दनिर्देशः । येषां ताण्डवमाधत्ते चित्ताध्वनि रसध्वनिः । त एवास्य सुवर्णस्य परीक्षाकषपट्टकाः ॥ इति भट्टश्रीसोमेश्वरविरचिते काव्यादर्श काव्यप्रकाशसङ्केते सप्तम उल्लासः ॥छ॥ शुभं भवतु ॥छ॥ क्रमाङ्क ३२० काव्यादर्श ( काव्यप्रकाशसंकेत ) पत्र २२२ । भा. सं.। क. सोमेश्वर भट्ट। ले. सं. १२८३ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२॥ अन्त इत्येष इति। एष मार्गोऽद्भुतं वर्त्म विदुषां ध्वनिकारादीनां नानाग्रन्थतया विभिन्नोऽप्यनेकरूपोऽपि एकरू Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३२१पतया यद्भाति तत्र सङ्घटनाविसंस्थुलस्य सुखप्रतीत्यर्थमेकत्र संग्रहः सैव हेतुस्तदशादेकात्मता प्रतीतेः, तत्तप्रन्थानामत्रान्तर्भाव इति भावः। अथ च सुधियां विकासहेतुग्रन्थोऽयं कथञ्चिदपूर्णत्वादन्येन पूरितशेष इति द्विखण्डोऽप्यखण्ड इव यद्भाति तत्रापि सङ्घटनैव सन्निमित्तम् ॥ स्वीकृत्य कल्पतरुतो मरुतः परागं दृष्टेः क्षति विदधते जगतोऽपि किं तैः। भृङ्गः कृती तु परितः सुमनोमुखेभ्यः पीतं मधूदुमति येन मदं करोति ॥छ। इति भट्टश्रीसोमेश्वरविरचिते काव्यादर्श काव्यप्रकाशसङ्कते दशम उल्लासः ॥छ॥ भरद्वाजकुलोत्तंसभट्टदेवकसूनुना। सोमेश्वरेण रचितः काव्यादर्शः सुमेधसा ॥१॥ सम्पूर्णश्च काव्यप्रकाशसङ्केत इति शुभम् ॥छ। मङ्गलं महाश्रीः। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥छ॥ संवत् १२८३ वर्षे आषाढ वदि १२ शनी लिखितमिति ॥छ॥ क्रमाङ्क ३२१ काव्यप्रकाशअवचूरि पत्र ५३ । भा. सं.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८६४२.। पत्र १ नो टूकडो ८, ११, १६, १९, २९,३३, ३७, ४१, ४३ नथी। इतीति। विदुषां ध्वनिकृत्प्रभृतीनां एष मार्गः स्वसिद्धान्तस्तत्तद्ग्रन्थमतत्वेन पृथक्पृथगवस्थितोऽप्येकरूपतया प्रतिभाति तत्र सघटनैव निमित्त, विक्षिप्तस्य सुखाऽवबोधायकत्र संग्रहण या सङघटना तद्वशादेवकात्मताप्रतिभासात्। एतेन च महामतीनां प्रसरणहेतुरेष ग्रन्थो ग्रन्थकृता [कृतः,] तेन कथमप्यसमाप्तत्वादपरेण च पूरितावशेषत्वाद् द्विखण्डोऽप्यखंडात्मतया यदवभासते तत्र सब्घटनैव साध्वी हेतुः। नहि सुघटितस्य सन्धिबन्धः कदाचिलक्ष्यत इत्यर्थशक्त्या ध्वन्यते ॥छ॥ काव्यप्रकाशसङ्केते दशम उल्लासः ॥छ॥ अन्त क्रमाङ्क ३२२ काव्यप्रकाश टिप्पणीसह पत्र १७८ । भा. सं.। क. राजानक मम्मट्ट अने अलक । ले. सं. १२१५ । संह. श्रेष्ठ । द.श्रेष्ठ। लं. प. १५॥४१॥ अन्त संपूर्णमिदं काव्यलक्षणम् । काव्यप्रकाशे अर्थालंकारनिर्णयो नाम दशम उल्लासः ॥ इत्येष मार्गो विदुषां विभिन्नोऽप्यभिन्नरूपः प्रतिभासते यत् । न तद्विचित्रं यदमुत्र सम्यग्विनिर्मिता संघटनैव हेतुः ॥छ।। समाप्तोऽयं काव्यप्रकाशः काव्यलक्षणम् । कृती राजानकमम्मटालकयोः ।। संवत् १२१५ अश्विन सुदि १४ बुघे अयेह श्रीमदणहिलपाटके समस्तराजावलीविराजितमहाराजाधिराजपरमेश्वरपरमभट्टारकउमापतिवरलब्धप्रसादप्रौढप्रतापनिजभुजविक्रमरणांगणविनिर्जितशाकंभरिभूपाल श्रीकुमारपालदेवकल्याणविजयराज्ये पंडित लक्ष्मीधरेण पुस्तक लिखापितम् ॥ क्रमाङ्क ३२३ काव्यप्रकाश पत्र १३९ । भा. सं.। क. राजानक मम्मट अने अलक। ले. सं. १४ मी शताब्दी। सं. जीर्णप्राय। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२।। वचमां वचमा थईने ९. जेटलां पाना नथी । अन्त विनिर्मिता संघटनैव हेतुः ॥छ॥छ॥ समाप्तोऽयं काव्यप्रकाशाभिधानोऽलंकारः ॥स्वस्ति ॥ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३२५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ३२४ काव्यप्रकाश अवचूरि पत्र ९२ । भा. सं. । ग्रं. १२५० । ले. सं. अनु. १४ शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १३४२ । प्रथम पत्रनो टूकडो नथी। आदि प्रभावनिर्माप्यत्वात् भारतीसमुचिता । परामृशतीति स्मरति । नियतीत्यादि अन्त इतीति । विदुषां ध्वनिकृत्प्रभृतीनां य एष मार्गः स्वसिद्धान्तस्तत्तद्ग्रन्थमतत्वेन पृथगवस्थितोऽपि एकरूपतया प्रतिभाति । तत्र संघटनैव निमित्तम् , विक्षिप्तस्य सुखावबोधायकत्र संग्रहणं संघटना, तद्वशादेवकात्मताप्रतिभासादिति ॥छ। इति काव्यप्रकाशावचूर्णौ दशम उल्लासः समाप्तः ॥छ॥ यत्रार्थः शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृतस्वाौँ । व्यक्तः काव्यविशेषः स ध्वनिरिति सूरिभिः कथितः ॥॥छ॥ प्रन्धानं १२५० ॥ क्रमाङ्क ३२५ व्यक्तिविवेक काव्यालंकार पत्र १९८ । भा. सं. । क. राजानक महिम। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी अंत । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२ पत्र-२, ३, ५, ६, ८, १९, २०, २३, ३१, ३४, ३७, ३९, ४१, ४४, ४०-५०, ५३, ५७, ६४-६६, ७१, ७८, ८०-८२, ८६, ९१, ९२, ९५, ९७, १०४, ११२, ११८, १२२, १२८, १२९, १४७ १४९, १५०, १८० गथी । आदि-॥ स्वस्ति ॥ अनुमानान्तर्भाव सर्वस्यैव ध्वनेः प्रकाशयितुम् । व्यक्तिविवेकं कुरुते प्रणम्य महिमा परं वाचम् ॥ युक्तोऽयमात्मसदृशा प्रति मे प्रयत्नो नास्त्येव तजगति सर्वमनोरमं यत् । केचिज्ज्वलन्ति विकसन्त्यपरे निमीलन्त्यन्ये यदभ्युदयभाजि जगत्प्रदीपे ॥ इह सम्प्रतिपत्तितोऽन्यथा वा ध्वनिकारस्य वचोविवेचनं नः । न च तं यशसे प्रपत्स्यते यन्महतां संस्तव एव गौरवाय ॥ सहसा यशोऽभिसर्तुं समुद्यता दृष्टदर्पणा मम धीः। स्वालङ्कारविकल्पप्रकल्पने वि...कथमिवावद्यम् ॥ ध्वनिवर्मन्यतिगहने स्खलित वाण्याः पदे पदे सुलभम् । रभसेन यत्प्रवृत्त्या प्रकाशकं चन्द्रिकाद्यदृष्ट्वैव ॥ व्यक्तिविवेके काव्यालङ्कारेऽन्तर्भावोपदर्शन नाम तृतीयो विमर्शः ॥छ॥ समाप्तश्चायं व्यक्तिविवेकाख्यः काव्यालङ्कारः ॥छ।। भाधार्य व्युत्पत्ति नप्तॄणां क्षेमयोगभोगानाम् । स सुप्रथितनयानां भीमस्यामितगुणस्य तनयनम् ॥छ॥ श्रीधर्ण्यस्यानभुवा महाकवेः श्यामलस्य शिष्येण । व्यक्तिविवेको विदधे राजानकमहिमनाम्नाऽयम् ॥ प्रतिपाद्यबुद्धथपेक्षौ प्रायः संक्षेपविस्तरौ वक्तुः । तेन न बहुभाषित्वं विद्वद्भिरसूयितव्यं नः ॥ इति ॥ अन्यैरनुल्लिखितपूर्वमिदं ब्रुवाणो न्यून स्मृतेविषयतां विदुषामुपेयात् । हासैककारणगवेषणया नवाथेतत्त्वावमर्शपरितोषसमीहया वा ॥छ॥ ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३२६ क्रमाङ्क ३२६ (१) काव्यादर्श तृतीय परिच्छेद पर्यन्त पत्र ३९ । भा. सं.। क. दंडी कवि । ले. सं ११६१। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४१॥ आदि-५० ॥ नमः सरस्वत्यै ॥ चतुर्मुखमुखाम्भोजवनहंसवधूर्मम । मानसे रमतां दीर्घ सर्वशुक्ला सरस्वती॥ पूर्वशास्त्राणि संहृत्य प्रयोगानुपलक्ष्य च । यथासामर्थ्यमस्माभिः क्रियते काव्यलक्षणम् ॥ इह शिष्टानुशिष्टानां शिष्टानामपि सर्वथा। वाचामेव प्रसादेन लोकयात्रा प्रवर्तते ॥ अन्त व्युत्पन्नबुद्धिरमुना विधिदर्शितेन मार्गेण दोषगुणयोर्वशवर्तिनीभिः । वाग्भिः कृतानुशरणो मदिरेक्षणाभिर्धन्यो युवेव रमते लभते च कीर्तिम् ॥छ॥ इत्यतिशयकवेराचार्यदण्डिनः कृतौ काव्यादर्श दुःकरदोषविभागो नाम तृतीयः परिच्छेदः ॥छ। सम्वत् ११६१ भाद्रपदे ॥ (२) अलंकारदर्पण पत्र १३ । भा. प्रा.। गा. १३४ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १२६४२ आदि-ॐ नमः सरस्वत्यै ॥ सुंदरपअविण्णासं विमलालंकाररेहिअसरीरं। सुइदेविअं च कव्वं च पणविअं पवरवण्णडढं ॥१॥ सव्वाइं कव्वाइं सव्वाइं जेण होंति भव्वाई । तमलंकारं भणिमोऽलंकारं कुकविकव्वाणं ॥२॥ अच्चन्तसुन्दरं पि हु निरलंकारं जणम्मि कीरतं । कामिणिमुहं व कव्वं होइ पसण्णं पि विच्छाअं ॥३॥ ता जाणिऊण णिउणं लक्खिज्जह बहुविहे अलंकारे। जेहिं अलंकरिआई बहुमण्णिजंति कव्वाइं ॥४॥ अन्त-सअलपअजमअं जहातुह कज्जे साहसिआ केण कआ वंदणेण साहसिआ। भणिऊणं सा हसिआ सहिआहिं फुडं साहसिआ ॥१३३॥ अंसेविऊण असेसाण होंति सम्मग्गआधिणो कव्वे । तेण वि अन्नो भावोपएसो चेअ दट्ठव्वो ॥१३४॥ ॥ इति अलंकारदर्पणं समत्तं ॥ शुभं भवतु ।। (३) काव्यादर्श तृतीयपरिच्छेदटिप्पनक पत्र २४ । भा. सं. । ग्रं. ४५० । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वाद्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२१४२ आदि-७० ॥ॐ॥ नमो जिनाय । अव्यपेतव्यपेतात्मेत्यादि । अव्यपेतात्मा अव्यवहितस्वरूपः । यथा वक्ष्यति । मानेन मानेनेत्यादि । व्यपेतात्मा व्यवहितस्वरूपः। यथाऽभिधास्यति। मधुरेण दृशामित्यादि । अन्त ___ पूर्वाचार्यरेताः षोडश प्रहेलिका निर्दिष्टाः । ताश्च व्याख्याताः सोदाहरणाः। किमेता एव ? न, दुष्टा अपि चतुर्दश तैरभिहिताः। भवता कि नाभिहिताः ? तदाह । दोषानपरसख्येयानित्यादि । ताः पुनः कथं विज्ञेयाः? तदाह । ता दुष्टा यास्त्वलक्षणा इति ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥ क्रमाङ्क ३२७ वक्रोक्तिजीवित (काव्यालंकार) सटीक घटक अपूर्ण पत्र २३४ । भा. सं.। क. कुत्तक कवि। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४२॥ । पत्र १०८ मां ग्रंथना नामनो उल्लेख छ। प्रति आखी भांगी गएली अने अतिजीर्ण छ। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३३१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ३२८ वकोक्तिजीवित ( काव्यालंकार) सटीक अपूर्ण पत्र ३०० । . सं. अनु १४ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२ ।। ४१ ।। आदि जगत्त्रितयवैचित्र्यचित्रकर्म विधायिनम् । शिवं शक्तपरिस्पन्द.... .11 यथातत्त्वं विविच्यन्ते भावास्त्रैलोक्यदर्शिभिः । यदि तन्नाद्भुतं नाम दैवरक्ता हि किंशुकाः ॥ वन्दे कवीन्द्रवक्त्रेन्दुलास्यमन्दिरनर्तकीम् । देवीं सूक्तिसुन्दराभिनयोज्ज्वलाम् ॥ वाचा विषय यत्यमुत्पादयितुमुच्यते । आदिवाक्येऽभिधानादि निर्मितेर्मानसूत्रवत् ॥ लोकोत्तरचमत्कारका रिवैचित्र्यसिद्धये । काव्यस्याऽयमलङ्कारः कोऽप्यपूर्वोऽभिधीयते ॥ पत्र २५२ मध्ये - इति कुत्तकविरचिते वक्रोक्तिजीविते द्वितीयोन्मेषः ॥ अन्त तस्य स्वात्मनि क्रियाविरोधादलङ्करणत्वानुपपत्तेः । अथवा रसस्य संश्रयो रसेन संश्रयो यस्तस्मा... क्रमाङ्क ३२९ उद्भटकाव्यालंकारलघुवृत्ति पत्र ८६ । भा. सं । वृ. क. प्रतीहारेंदुराज । ग्रं. १६३९ । ले. सं. ११६० । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८४१ ॥ अन्त एतच्चेह बहुवक्तव्यत्वान्न वैतत्येन प्रपञ्चितम् । कुशाग्रीयबुद्धीनां हि दिग्मात्र एवोपदर्शिते सति बुद्धिवल्ली प्रतानशतैर्नानादिग्व्यापित्वेन विस्तारमासादयतीति ॥छ । महाश्री ॥ प्रतीहारेन्दुराजविरचितायामुद्भटालङ्कारसारसङ्ग्रहे लघुविवृतौ षष्ठोऽध्यायः ॥ छ ॥ मीमांसासारमेघात् पदजलधिविधोस्तर्कमाणिक्यकोशात् साहित्यश्रीमुरारेर्बुधकुसुममधोः सौरिपादाब्जभृङ्गात् । श्रुत्वा सौजन्यसिन्धोर्द्विजवर मुकुलात् कीर्त्तियल्ल्यालवालातू १३९ भा. सं. । क. कुत्तक कवि । काव्यालङ्कारसारे लघुविवृतिमधात् कौङ्कणः श्रीन्दुराजः || || मङ्गलं महाश्रीः ॥ छ ॥ प्रन्थानं १६३९ उद्देशतः । संवत् ११३० कार्तिकवदि ६ सोमे लिखितमिति ॥ क्रमाङ्क ३३० उद्भटालंकारलघुवृत्ति पत्र १४२ । भा. सं. । वृ. क. प्रतीहारें दुराज । ग्रं. १६३९ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३।४२ क्रमाङ्क ३३१ अभिवावृत्तिमातृका पत्र ३१ । भा. सं. शताब्दी पूर्वाद्धं । संद. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. अन्त क. भट्ट मुकुल । प्रं. ५१४ । ले. सं. अनु. १४ मी [११४२ ] ग्रंथा ५१४ । भट्टकलात्मजमुकुलविरचिता अभिधावृत्तिमातृका समाप्तेति ॥ छ ॥ श्रीमज्जिनपतिसूरीणां पुस्तिकेयम् ॥ छ ॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३३६ क्रमाङ्क ३३२ रुद्रटालंकारटिप्पनक तृतीयाध्यायथी पंचमाध्याय पर्यत पत्र ४६ । भा. सं.। क. श्वेतांपर [ नमिसाधु ] । ले. सं. १२०६ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १३४२। आदि द०॥ॐ नमः शिवाय ॥ अथेदानीं यमकलक्षणमाह । तुल्यश्रुतीत्यादि । अन्त ॥ इति श्वेताम्बरविरचिते रुद्रटालंकारटिप्पणके चित्राध्यायः पंचमः समाप्तः॥ मंगलं महाश्रीः ॥ संवत् १२०६ आषाढ वदि ५ गुरुदिने लिखितमिति ॥ शुभमस्तु ॥ सर्वकल्याणं ।। क्रमाङ्क ३३३ वामनीय काव्यालंकार स्वोपशवृत्ति टिप्पणीसह पत्र १२० । भा. सं.। क. वामन स्वोपन । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. मध्यम। द. श्रेष्ठ। उंदरे करडेली पोथी. आदि-९०॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ प्रणम्य परमं ज्योतिमिनेन कविप्रिया । काव्यालंकारसूत्राणां स्वेषां वृत्तिर्विधीयते ॥छ। काव्य प्रायमलंकारात् ।। अन्त-।। इति काव्यालंकारे प्रायोगिके पंचमेऽधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः समाप्तः ॥छ।॥छ।। क्रमाङ्क ३३४ रघुवंश महाकाव्य पत्र २३० । भा. सं.। क. महाकवि कालिदास। ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी पूर्वाद्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ९४२॥ __ क्रमाङ्क ३३५ द्वयाभयमहाकाव्य वृत्तिसह प्रथमखंड पंचम सर्ग पर्यन्त पत्र २९७ । भा. सं.। मू. क. हेमचंद्राचार्य । वृ. क. अभयतिलकगणि । व. क. अभयतिलकगणि। व. र. सं. १३१२। ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८॥४२ पत्र १मां भगवान पार्श्वनाथन चित्र छ । पत्र २मा हेमचंद्रसूरि तथा अभयतिलकगणिर्नु चित्र छे। द्वयाश्रयमहाकाव्य वृत्तिसह द्वितीयखंड. सर्ग ६थी १२मा सर्ग पर्यन्त. पत्र ३०० । भा. सं.। मू. क. हेमचंद्राचार्य । वृ. क. अभयतिलकगणि । वृ. र. सं. १३१२ । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८x२। क्रमाङ्क ३३७ कविरहस्य सटीक (कविगुह्यकाव्य अपरनाम अपशब्दाभास कूटकाव्य सटीक) पत्र ७४ । भा. सं.। म.क. हलायुध । टी. क. रविधर्म । ग्रं. १४०० । ले: सं. १२१६ । संह. जीर्ण । द.श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४२।। अंत्य पत्रमा सुंदर शोभन छ । आदि-॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ पीत्वैव श्रुततोयानि यस्याः शुध्यन्ति देहिनः । मुनिहंससमाकीर्णा तां नमामि सरस्वतीम् ॥१॥ कविगुह्यं प्रसत्त्यादिभावगम्यमनेकधा । यस्य येनोपसर्गेण धातोः कविपदं च यत् ॥२॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३४० जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र अर्थतः शब्दतो वाऽपि समान् धातून् निबनता। तथा इलायुधेनेदं कृतं कविरहस्यकम् ॥३॥ आभासन्ति पदान्यत्र प्रचुराण्यपशब्दवत् । तद्विषमं स्वभावेन निबन्धनमपेक्षते ॥४॥ ततष्टीका प्रसिद्धार्था व्याख्यातुरुपयोगिनी । मुग्धबुद्धिप्रबोधार्थ क्रियते रविधर्मणा ॥५॥ गुणान्वितां सुवर्णान्यां बहवी विपुलां घनाम् । इमामहं न मुञ्चामि क्षुद्रभीतेयुगामिव ॥६॥ नौरिवेह भवाम्भोधिरुत्ताराय सतामियम् । गाढबंधसमायोगा भिद्यते न जडैर्दढा ॥७॥ विचारयन्तु तां सन्तो मात्सर्येण विवर्जिताः । हलायुधकथाख्याने नूनं नारायणः क्षमः ॥८॥ कविः स्वकाव्यस्यादाविष्टदेवतानमस्कारं करोति। तन्नमस्कारकरणात् पुण्यसम्भारो भवति । पुण्यसम्भाराद् विघ्ननाशो जायते। तं विघ्नविनाशं मन्यमानो हलायुधः प्राह ॥छ॥ जयन्ति मुरजित्पादनखदीधितिदीपिकाः । मोहान्धकारविध्वंसान्मुक्तिमार्गप्रकाशिकाः ॥ अन्त श्रीशब्दः समाप्तौ मंगलवाचको दर्शितः छ।। काव्य हलायुधकृतं कविगुह्यनामख्याते.........रविधर्मकृताऽस्ति टीका । अभ्यस्यतां यदि वदति बुधा विवादे स्पष्टक्रियेतरपदैविजयं लभते ॥ अपशब्दाभासाख्ये काव्ये टीका शतानि चतुर्दशानि। रचितानि कविरहस्यं नामक............ संवत् १२१६ चैत्र सुदि ५ सोमे। श्रीअजयमेरुदुर्गे पुस्तकमिदं लिलिखे ॥ क्रमाङ्क ३३८ भट्टिकाव्य (रामकाव्य) पत्र १४४ । भा. सं.। क. भट्टि कवि वल्लभीवास्तव्य । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १४४२१. । अंत्य पत्रमा शोभन छे। अन्त-- काव्यमिदं विहित वलभ्यां श्रीधरसेननरेन्द्रपालितायाम् । कीर्ति.........वतान्नृपस्य क्षेमकरः क्षितिपो यतः प्रजानाम् ॥ ॥ इति वलभीवास्तव्यश्रीस्वामिसूनोभट्टि ब्राह्मणस्य कृतौ रामकाव्यं समाप्तम् ॥छ॥ क्रमाङ्क ३३९ भट्टिकाव्य वृत्ति सर्ग ८थौ १५ पर्यन्त. पत्र १८९-४१५ । भा. सं.। वृ. क. पंडित अनिरुद्ध । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२३४२ क्रमाङ्क ३४० व्याश्रयमहाकाव्य वृत्तिसह तृतीयखंड १३मा सर्गथी संपूर्ण पत्र २७३ । मू. क. हेमचंद्राचार्य। वृ. क. अभयतिलकगणि । सर्वग्रं. १७५७४ । वृ. र. सं. १३१२ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १८x२. ! पत्र २७३मां जिनेश्वरसूरि अने सा. विमलचंद्रनुं चित्र छ। अन्त इति श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्यलेशाभयतिलकगणिविरचितायां श्रीसिद्धहेमचंद्राभिधानशब्दानुशासनद्याश्रयवृत्तौ विंशतितमः सर्गः समर्थितः ॥छ॥ संपूर्ण चेदं याश्रयमहाकाव्यं । तत्संपूर्णो(ते) च तद्वृत्तिरपीति शुभमस्तु ॥छ॥ नमः श्रीपार्श्वनाथश्रीजिनदत्तगुरुपादपद्मभ्यः ।। प्रसीदतु श्रीजिनेश्वरसूरिगुरुपादाः॥ सदासप्रसत्त्यै तत्रभगवत्यै सरस्वत्यै नमोऽस्त्विति ॥छ॥ ग्रंथाग्रं ८६१ ॥छ॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. ३४०श्रीचांद्रे विपुले कुलेऽतिविमले श्रीवर्धमानाभिधाऽऽचार्येन्द्रस्य जिनेश्वरोऽन्तिषदभूत् सूरिजिानापतिः । श्रीमद्दुर्लभसम्मुखं खरतरप्रख्यातिमुद्योत्य यः साधून साधुविहारिणो व्यरचयच्छ्रीगूर्जरत्रावनी ॥१॥ संवेगरंगशालां सुधाप्रपां त्वकृत शिवपथिकहेतोः। योऽन्तःसिद्धिपथ तत्पदे स जिनचंद्रसूरिरुदैत् ॥२॥ तत्पट्टेऽभयदेवसूरिरभवद् यः पार्श्वकल्पद्रुमं सच्छायं श्रितदत्तवांछितफलं श्रीस्तंभनेऽरोपयत् । जंतूनां हितहेतवेऽत्र सुघटा अर्थः सदोघद्रस: संपूर्णाश्च नवांगवृत्तिसरसीः श्रेयोर्थ्यसोसूश्यत ॥३॥ तच्छिष्यो जिनवल्लभो गुरुरभाच्चारित्रपावित्र्यतः सारोद्धारसमुच्चयो नु निखिलश्रीतीर्थसार्थस्य यः । सिद्धाकर्षणमंत्रको न्वखिलसद्विद्याभिरालिंगनात् कीर्त्या सर्वगया प्रसाधितनभोयानाम्यविद्यो ध्रुवम् ॥४॥ तत्पट्टांबरसूरडंबरधरः कृष्णातिदैवतैः सेव्यः श्रीजिनदत्तसूरिरबिभः प्राग्यां युगाग्रीयताम् । केनाप्यस्खलितः प्रतापगरुडो यस्य त्रिलोक्यां स्फुरस्त्रोटंत्रोटमपास्यते श्रितवतां विघ्नाहिपाशान् क्षणात् ॥५॥ तत्पट्टाचलचूलिकांचलमलंचक्रेऽष्टवर्षोऽपि स श्रीसांद्रो जिनचंद्रसूरिसुगुरुः कंठीरवाभोपमः ।। यं लोकोत्तररूपसंपदमपेक्ष्य स्वं पुलिदोपमं मन्वानो नु दधौ स्मरस्तदुचितं चापं शरान् पंच च ॥६॥ आरुह्य क्षितिभृत्समाचतुरिकां निर्जित्य दुर्वादिनस्तेजोऽग्नौ ज्वलिते लसत्यनुदिशं नादे यशोदुंदुभेः । पाणौकृत्य जयश्रियो गुरुमहर्यः शारदां मातरं पृथ्वी चोन्मुदितां व्यधाजिनपतिः सूरिः स जज्ञे ततः॥७॥ प्रासादोत्तमतुंगशृंगसुभगं पर्यष्करोत् तत्पदं श्रीमान् सूरिजिनेश्वरोऽत्रभगवान् गांगेयकुंभप्रभः । माधुर्यातिशयश्रिया निरुपमा यद्वाचमन्वहतो नूनं साऽपि सिता सुधा च लवणं वारीव चोत्तारणाम् ॥८॥ यो रूपातिशयाद् विदूषकमिवानगं हसत्यंजसा सौम्यत्वान्नु ददाति लक्ष्ममिषतः पत्रावलंबं विधौ । नानासिद्धिरमाद्भुतात् करकजाजित्वैकलक्ष्म्याश्रितं पद्मं चात्ततृणाननं वितनुते मन्ये मृणालच्छलात् ॥९॥ सूरिजिनरत्न इह बुद्धिसागरसुधीरमरकीर्तिः कविः पूर्णकलशो बुधः । ज्ञौ प्रबोधेदुगणिलक्ष्मितिल को प्रमोदादिमूर्त्यादयो यद्विनेयोत्तमाः ॥१०॥ स्वस्य गुरोरादेशात् सकर्णकर्णोत्सवं विवृतिमेताम् । स्वमतिविभवानुसारान्मुनिर्व्यधादभयतिलकगणिः ॥११॥ आम्नाती सर्वविद्यास्वविकलकविताकेलिकेलीनिवासः कीर्त्याऽब्धेः पारदृश्वा त्रिभुवनजनतोपक्रियास्वात्तदीक्षः । निःशेषग्रंथसाथै मम गुरुरिह तु द्वयाश्रयेऽतिप्रकामं टीकामेतां...लक्ष्मीतिलककविरविः शोधयामास सम्यक्॥१२॥ अय्ये द्वादशभिस्त्रयोदशशते १३१२ श्रीविक्रमाब्देष्वियं श्रीप्रहादनपत्तने शुभदिने दीपोत्सवेऽपूर्यत । मेधामांद्यमदात् कथंचिदिह यच्चायुक्तमुक्तं मया शोध्यं स्वल्पमतौ प्रसद्य मयि तन्निर्मत्सर, धिरैः ॥१३॥ सप्तदश सहस्राणि श्लोकाः पंच शतानि च। चतुःसप्ततिरप्यस्या वृत्तानं च निश्चितम् ॥१४॥ प्रक्रीडत्परिमाद्यदगिसुभगा श्रीभूर्भुवःस्वस्त्रयी सर्वेषां परमेष्ठिनां सितयशोभिः श्वेतिताः सर्वतः । यावद्दीपमहोत्सवं प्रबिभृते तेषां प्रतापज्वलद्दीपस्तावदियं करोतु विवृतिः प्राज्यं सुराज्य भुवि ॥१५॥ तृतीयखंडग्रंथाग्रं ८८५८ सकलग्रंथग्रंथाग्रं १७५७४ ॥छ।। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥छ।मंगलं महाश्री ॥७॥ विस्फूर्जत्क्षीरवारांनिधिविविधलसल्लोलकल्लोललीलालुंटाकोद्दामदेहातिततिललितोत्संगसंगेन रंगत् । यस्यांकस्थः शशांको जनयति जनताचक्षुषां सौधवर्ष हर्षोत्कर्ष जनानां स जिनपरिवृढश्चन्द्रचिह्नः प्रतन्यात् ॥१॥ प्रद्विष्टानां स्वमुपरितनं जानतां सप्तलोक्यां मन्ये वकप्रहतिविधये वक्रवक्राश्चपेटाः । एषां केषामपि नतिमतां पृष्टहस्तायमाना नृणां लक्ष्मी प्रददतु फणा: सप्त पार्वाधिनेतु: ॥२॥ आरक्तोत्पलहेमकंदलमहःसर्वस्वसर्वकषं यस्यांग जनुरुत्सवेषु पयसां किर्मीरितं बिदुभिः ।। रक्ताशोकतरोनवीनजलभृत्पाथःकणोत्कषिणो लक्ष्मीमाबिभरांबभूव स भवेत् श्रीवासुपूज्यः श्रिये ॥३॥ यन्नाम्नः स्मरतां नृणां वनमपि श्रीपत्तनोायतेऽनूपायेत च जंगलोऽपि विषयः सोऽयं गणाधीश्वरः । निःशेषाभिमतप्रपूरकतया स्वर्धनुचिंतामणिस्वर्भूणामपि चित्रमादधदलं श्रीगौतमः स्तान्मुदे ॥४॥ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ४०] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पदानी दुर्गतानां समदगदगणैर्वाधितानां च नृणां हस्तालंबायमानो हृदयमपि महीभृत्ततेरावसंश्च । भईद्धिब प्रतिष्टाप्रथिमसुपृथुला पाथमी बिभ्रदुच्चः श्रीमानकेशवंशः क्षितितलमखिलं लीलया पोपवीति ॥५॥ कीर्तिश्चैत्यप्रसररमयोद्योतिता कुंदु...वः स्फारस्फूर्जत्तमगुणगणविश्वविश्वे प्रसिद्धः । मांगल्यश्रीपरिचयचणो विश्वदृक्पीयमानः पार्थः साधुप्रवर इह च श्रीध्वजायां बभूव ॥६॥ चत्वारस्तस्य पुत्रा अजनिषततरां तत्र चाद्यः श्रियाख्यः श्रेयःसद्मा प्रणिद्यस्मरपरिचरणो मानदेवः शिवार्थी । नामान्वर्थ दधानः कलधर इतरः सर्वसामान्यलक्ष्मीरन्यौ मान्यौ वदान्यौ त्रिजगति बहदेवो यशोवर्द्धनश्च ॥७॥ व्यद्योतंततमा त्रयोऽत्र धनदेवो राजदेवस्तथा नींबाकोऽपि च मानदेवतनयास्तेजोजिताग्नित्रयाः । माहात्म्यात् त्रितया इवादिपुरुषाः पावित्र्यतः किं त्रये वेदा ये बिभरांबभूवुरखिलां लोकत्रयीं कीर्तिभिः॥८॥ पुण्यापुण्यविवेचनकचतुरं विश्वोपकारोत्तरं क्रीडावेश्म वसुव्रजस्य विबुधावन्यध्वनीनं सदा । सूर्येन्दुद्वितयं यथा कुलधरस्याऽऽसीत्तनूजद्वयं साधुदेवधरो[......]स्मिल्लोहदेवस्तथा ॥९॥ तुग याशोवर्धनः श्रीजिनपतिसुगुरुजज्ञिवान् जैनचंद्रे पट्टेऽनते कृताभ्युन्नतिरपि लघुकः पूर्ववातप्रतापात् । सर्वस्वद्वयां(?) प्रसृत्य क्षितितलमतनो वाक्सुधावृष्टिसृष्ट्या श्रेयोंकूरोद्भिदाकृत्प्रमदपरवशं पुष्करावर्त्तवद् यः ॥१०॥ शश्वत्सद्गुरुवपार्वणसुधाभीशूच्छलद्देशनाज्योत्स्नापानविधौ चकोरचतुरो दासानुदासोऽर्हताम् । नाव्यप्रेक्षणकक्षणेऽतिरसिकाक्षो बाहुदेवायनिः संजज्ञे जयदेवसाधुरमलार्थोत्पादनासत्कविः ॥११॥ लक्ष्मी म्नाऽस्य धुर्या समजनि दयिता रूपलावण्यलक्ष्म्या लक्ष्म्या मानं लुनाना प्रगुणगुणखनिः शीलभूषाधिर सर्वागीणं प्रवीणं परिदधतितमा या तथाऽभात् त्रिलोकीचूडामण्याऽपि मुक्त्या झगिति निजसखीत्वे यथोत्कंठ्यते स्म ॥१२॥ बलेन धर्मस्य चतुर्भिदः क्षिपत्तमा चतुदुर्गतिनो मुखे रजः । याऽनंतरायं विचरेच्छिवाध्वनि प्रिया द्वितीयाऽस्य च साऽस्ति लक्षिका ॥१३॥ मदनापमानावहरूपधेयौ वरदेव-धोंधीतिसुनामधेयौ ।। जयदेव-लक्ष्म्योः शुभभागधेयौ तनयावभूतां रमयाऽभिधेयौ ॥१४॥ तत्राऽऽद्योऽजनि दीर्घदर्शितिलकः प्राज्ञः सभावर्जकः प्रष्टव्यः समुपस्थितेऽतिविषमे कार्ये गुरुर्वाग्मिनाम् । उद्यत्प्रातिभवैभवश्च समवातीणों विदेशे महीपृष्ठे द्योतयितुं ध्रव सुरगुरुः सौवं मतेवैभवम् ॥१५॥ श्रीजाबालिपुरे च वीरभवने श्रीपार्श्वतीथेशितुः सौवं पुण्यमहो नु देवगृहकं नैर्मल्यशाल्युन्नतम् । यः प्राचीकरदुद्ध्वजं हिमवता कूटं तनूजं निजं स्वर्णद्याऽऽत्मजया सह प्रहितमद्वार्दोपचारेः कृते(१) ॥१६॥ संतुष्टोदयसिंहराटप्रहितया नांदीनिनादस्पृशा श्रीकर्याऽलमकारि धींध इतरः स्थास्नुः स्व एवौकसि । श्रीदेव्या स्वयमेतया कुलकलाद्रव्यर्जुतासत्यतासाधुत्वप्रियवादितादिकगुणैराकृष्टयेवोच्चकैः ॥१७॥ आद्याऽभूद् वरदेवसाध्वधिपतेः प्राणेश्वरी चाहिनी शालिन्यद्रुवनीगुणोल्वणमणीखानी जनानंदिनी । अम्लाना शुभसौरभां विकसितां श्रीशीलमालां सदा बिभ्राणा हृदये भृशं दश दिशो या मोदयांचक्रुषी ॥१८॥ तस्याश्च पुण्यजलधेस्तनयस्त्रिलोक्या आबादने किल गृहीतसुचिह्नपट्टः । पद्मापदं विमलचंद्र इहास्ति कामायुष्टोमयज्वनृपतिर्वसतिः कलानाम् ॥१९॥ नाचित्रीयत कस्य यः प्रणयिनां दारिद्रयचूडोत्खनौ निष्णातो व्यवहारिधार्मिकजने धुर्यासनं प्राप्नुवन् । नित्याराधनयाऽहंतः सुरतरोः संपूर्यमाणेप्सितस्तिष्ठन् सद्गुरुशासनस्य विधये चोत्पाटितैकांहिणा ॥२०॥ श्रीप्रहादनपत्तने जिनपति शांति प्रतिष्ठापयाञ्चक्रे सूरिजिनेश्वरैस्तदनु यः संस्थापयामासिवान् । प्रासादे प्रवरे सुशर्मनगरे मन्ये प्रतिष्ठां जने स्वं प्रापथ्य ततः सुशर्मनगरे संस्थापयिष्यन् शिवे ॥२१॥ अंभोधी विमलः स्थलेऽपि विमलो द्वेधा धरित्रीमृतामप्यतविमलस्तथैव विमलो प्रामे पुरे नीवृति । यद्वोच्चैविमलैकमय्यजनि यत्कीर्त्या त्रिलोकी ततः "सर्व विष्णुमयं जगत्" स्मृतिरिय मिध्येव जोऽवनौ ॥२२॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ક श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ तस्याः साऊ - रूयडे नाम पुत्र्यौ श्रेयोधात्र्यौ [......]गुणानाम् । धर्मग्रंथाधीतिमार्गाध्वनीने प्रज्ञापाने श्राद्धसद्धर्म्मलीने ॥२३॥ वर्षती वसुसंचयं बहु चतुर्वर्णेऽत्र संघे सती भूयस्तारकुटुंबडंबरवती पीयूषनिर्मातगुः । सौम्याऽतीव च कौमुदी कुमुदिनी प्राणेशमूर्तेः प्रतिराजूर्नाम रमैकधामविमलेत्यस्य द्वितीया प्रिया ॥ २४ ॥ विश्वव्याप्तिकृतो यशोव्यवहृतैः कामं मिथःसंगताः षट् पुत्रा गुणधाभिधो भुवनकोऽसौ हेमचंद्रस्तथा । संत्यस्या महिपाल - रत्न - महनाख्याः षट् पदार्था यथा तिस्रः पुत्रितमाश्च धांध्यथ परा नोतूस्तथा तील्हिका ॥ २५ ॥ एकच्छत्र नृपत्वं जगति विदधतः श्राद्धधर्मक्षितदोरौचित्येन प्रयोगेऽभिमतसकलसत्कर्मनिर्माणशूराः । षट् पुत्रास्ते पवित्राः सुभृशमबिभरुर्मूर्त्तषाड्गुण्यलक्ष्मीमेताः पुत्र्यस्तु तिस्रोऽप्रतिहतमहसो मूर्तशक्तित्रयाभाम् ॥ २६ ॥ अर्कस्यापि करासहेव वसनैः सर्वागमंगात्रता नीरंगीस्थगितानना वितरणे कंडूलहस्तद्वया । आघाटः कुलयोषितां विमलचंद्रस्य प्रिया प्रेयसी षोढावश्यककृत्यकृद् विमलमत्याख्या विजेजीयते ॥२७॥ मन्ये ज्ञापयितुं जने गुणधनश्रीलक्षनाथं निजं या दीप्रं बिभृते सदा हृदि गृहे सम्यक्त्व दीपाधिपम् । शंकेऽन्तर्वसतः सदा जिनगुरू कांतं च दष्ट्वांतिके लज्जालुर्मितभाषिणी विनयभाग् योत्तिष्ठते श्रेयसे ॥ २८ ॥ एतस्याः स्तः क्षेमसिंहना मोद्दामश्चाहडनामकश्च पुत्रौ । विधिधर्म महामहीभृतः श्रीकरणिव्ययकरणिश्रियं श्रयतौ ॥ २९ ॥ तत्र च- ज्येष्ठो वैकिलब्धिमानिव समं स्वांते गुरूणां वसेद् ज्ञात्वाऽस्मादिव हेतुतो गुरुजनच्छंदोऽनुवर्तेत सः । हस्तालं मसौ ददाति पततो दानस्य पंके कलौ प्रत्यष्टान्निजधर्ममत्र च जिन धर्म प्रतिष्ठाप्य सः ||३०|| पाणौकृत्य द्वितीयः सुखयति पुरुषद्वेषिणीं दानलक्ष्मी साधूनां स्वांतसारं हरति स लभते साधुवादं बतोच्चैः । दष्टृणां दृक्षु वर्षत्यमृतमति सदा न च्छिनत्येव तृष्णां नैकोऽप्युद्यद्गुणौघैर्जगति विजयते कीर्त्तिभिः सैक एव ॥ ३१॥ भांति स्वर्णविभूषणाः सुवसना रूप्याधिपा भोपला देदी नाम च लोहिनी त्रिभुवनी चास्याश्चतस्रः सुताः । मूर्त्ताः किं प्रहिता निजाश्चतसृभिर्दिग्देवताभिः श्रियस्तुष्टाभिर्विमलस्य कीर्तिकुसुमैरभ्यर्चनेनान्वहं ॥३२॥ इतश्व [ क्र. ३४० श्रीमान् सूरिजिनेश्वरोऽजनि कुले चांद्रेऽतिसांद्रे श्रिया यः श्रीदुर्लभभूपतेरधिसभं श्रीपत्तनेऽस्थापयत् । लुप्त चैत्यनिवासिभिर्गृहिगृहे वासं मुनीनां भृशं तान् न्यत्कृत्य कृती प्रतीतिसहितैः सिद्धान्तपत्राक्षरैः ॥३३॥ जज्ञेऽथ जिनचंद्रसूरिरिह यः संवेगशास्त्रामृतैरात्मारामगणं नृणामसिचत श्रेयः फलप्राप्तये । पट्टेऽस्याभयदेव आविरभवत् श्रीसूरिचक्रेश्वरो यश्चक्रेऽङ्गनिधीन् नव स्फुटतमार्थान् पुण्यवृत्तिश्रिया ॥ ३४॥ तत्पट्टे जिनवल्लभः प्रभुरुदैच्छ्रीमान युगाग्रेसरः सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शनदलैः कि केवलैर्निर्मितः । जे श्रीजिनदत्तसूरिरथ तत्पट्टाचले ययशोढक्कानां निनदः प्रबोधयति दुर्मोहेन सुप्तान् जनान् ॥३५॥ आसीच्छ्रीजिनचंद्रसूरिरथ तत्पट्टोदयाद्रौ रविर्यो रूपेण समाधिनाऽनवधिनाऽप्युच्चैर्विजिग्ये स्मरम् । सूरींद्रोऽजनि तत्पदे जिनपतिर्यस्योच्छलन् दुर्द्धरो गीष्पूरोऽस्खलि वादिभिर्नृपसमे स्राग् मौनमुद्राविथेः ॥ ३६॥ गुरुगुरुप्रवरोऽथ जिनेश्वरः समनुशास्ति जिनेश्वरशासनम् । कृतयुगं त्ववतीर्णमिहानुजं कलिकृतं प्रतिबोधयितुं कलिम् ॥३७॥ वृत्तोतुं गमिहोत्तमाङ्गमभवच्छत्रं यदस्या मुखं पूर्णेन्दुप्रतिमं च नर्ममुकुरः प्रेते प्रलंबे श्रुती । सौवर्णोऽज्वलनालकेलिकमलौ रक्तौ करौ सद्भुजौ न्यूढोरः कृशमध्यपीवरकटीयुक्तासनं चूडिकम् ॥३८॥ ऊरू क्रीडास्थले चांगुलिनखघुटि कभ्राजिता वय्यजंघौ पादौ केल्यौ च शाखा किशलफलकलौ पादपौ सुप्रकांडौ । Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३४१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र सेवाकारी जनश्चागणितगुणगणः संजमश्रीर्वयस्या तस्माद् यस्याऽऽत्मसोधे विलसति बत योगाम्यलक्ष्मीः सुखेन ॥३९॥ युग्मम् ॥ अमुष्य सुगुरोगिरो विमलचंद्रसाधुः सुतृट सुधामधुरिमस्पृशः परिपपी मनोहत्य ये । परेचवि कथाक्षणेऽहनि रवित्विषा तापितश्चकोर इव चंद्रिकां शरदि पूर्णिमाया निशि ॥४०॥ तथाहि निबिडतिमिरपूणे दुःषमाकालदर्श जिनसुसमयदीपो वस्तुसार्थावभासी । इह न तदवबोधः शब्दसाहित्यविद्यासु तद्रतवहस्थोद्वोधनामंतरेण ॥४१॥ साहित्योद्यल्लक्षणोद्वोधरूपा चैषा हैमद्वयाश्रयग्रंथवृत्तिः । भो भो भव्या नव्यसृष्टेरमुष्याः श्रेयः श्रेयोऽकारणं लेखनं तत् ॥ ४२ ॥ युग्मम् ॥ स्वादुं कृत्वेति पीत्वा गुरुवचनसुधां हर्षनृत्यन्मनोब्धिः साधूद्धो वारदेविर्धनमुपललवायापि नो मन्यमानः । पत्रेषु श्रीपवित्रेवतुललिपिकृताऽस्याः प्रती अप्रती द्वे वृत्तेः श्रेयस्कृतेऽलीलिखदमृतकरेऽङ्कच्छलान्नाम च स्वम् ॥४३॥ अर्धगे वासवत्या सहभुविलसतः शब्दविद्याधिराश्या साहित्यक्षोणिनेतुर्वशितदिश इदं पुस्तकानां चतुष्कम् । पुष्णात्याशाचतुष्के न्यसितुमुरुयशःस्तंभसंरभभंगी नृत्तस्तंभप्रभां चाधिकलयति चतुर्वर्णचक्षुर्नटानाम् ॥४४।। चतुर्गतिचतुर्वाद्धस्तरीतुं तरणिश्रियः। गुरवे लेखयित्वाऽसौ चतुरः पुस्तकानदात् ॥४५॥ कोडाक्रीडेऽन्तरिक्षे विकसितकुसुमे तारकस्तारतारैः स्वर्णद्या केलिनद्या रुचिरपरिसरे ज्योत्स्नया पट्टदेव्या । राजा नु क्रीडमानो विविध विलसितैर्यावदुत्कंठयेन् नृनेते श्रीपुस्तकाः स्वश्रवणमनुबुधास्तावदुत्कंठयतु ॥४६॥ प्रातः प्रातर्निवेश्य त्रिभुवनजननीं भारती चित्तपट्टे भक्तिक्षीरः प्रधाव्य क्रमकमलयुगं सन्नमस्यन्नमुष्याः। दासः पार्श्वस्य जैनेश्वरचलनकजासेवने षट्पदश्रीरेतां सोसूयते स्माभयतिलकगणिः सुप्रशस्तां प्रशस्तिम् ॥४७॥ पश्चाल्लिखिता __संवत् प्रहर्तुरसेंदु१६६९प्रमिते आश्विनमासि सकलतार्किकचक्रचूडामणिश्रीसाधुकीलुपाध्यायानां विनेयवरेण्यपंडितविमलतिलकगणिशाब्दिकविद्यासाक्षात्कृतगोनर्दीयोपमानवाचनाचायवय्यश्रीसाधुसुंदरगणीनां शिष्येण पं. विमलकीर्तिमुनिना प्रतिरियमस्माद् भांडागारपुस्तकाल्लिखिता पठिता च । पं. विजयकीर्तिसहितानाम् तेषां श्रीविमलकीतानां शिष्य पं. विमलचंद्रगणिः। तच्छिष्यो वाचकश्रीविजयहर्षगणिविजयमानस्तस्य शिष्य उपाध्यायश्रीधर्मवर्धनगणिभिः शिष्यजयसुंदर-कीर्तिसुंदराभ्यो सहितैः शोधिता विकीर्णपत्राणामनुक्रमांकीकरणात् । सं. १७४५श्रावण सुदि १३ दिने जेसलमेरमध्ये ॥ क्रमाङ्क ३४१ नैषधचरितमहाकाव्य (शशांकसंकीर्तन महाकाव्य) पत्र ३१७ । भा. सं.। क. श्रीहर्षकवि । ले. सं. १३७८ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२॥ अन्त श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् । द्वाविंशो नवसाहसाङ्कहसाचरिते चम्पूकृतोऽयं गतः, काव्ये तस्य कृतौ नलीयचरिते सगों निसोज्ज्वलः ॥१४॥ शशाङ्कसङ्कीर्तनं नाम ॥छ॥ सम्वत् १३७८ श्रीश्रीमालकुलोत्तंसेन श्रीजिनशासनप्रभावनाकरणप्रवीणेन सा. देदापुत्र रत्नेन सा० आनासुश्रावकेण सत्पुत्र उदारचरित्र सा राजदेव सा• छजल सा जयतसिंह सा. अश्वरान प्रमुखपरिवारपरिसतेन युगप्रवरागमश्रीजिनकुशलसूरिसुगुरूपदेशेन श्रीनैषधसूत्रपुस्तिका मूल्येन गृहीता ॥७॥ ११ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३४२क्रमाङ्क ३४२ नंषधचरित्रमहाकाव्य पत्र ३४९ । भा. सं.। क. श्रीहर्षकवि। ले. सं. अनु १४ मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४१॥.। पत्र १८३ मुं नथी। अन्त शशाङ्कसङ्कीर्तनं नाम ॥छ। यथा यूनस्तद्वत् परमरमणीयाऽपि रमणी कुमाराणामन्तःकरणहरणं कैव कुरुते । मदुक्तिश्चेतश्चेन्मदयति शुचीभूय सुधियः किमस्या नाम स्यादरसपुरुषानादरभरैः ॥१४९॥ दिशि दिशि गिरिग्रावाणस्तां वमन्तु सरस्वती तुलयति मिथस्तामापातस्फुरद्ध्वनिडम्बराम् । न परमपरः क्षीरोदन्वान् यदीयमुदीयते मथितुरमृत खेदच्छेदिप्रमोदनमोदनः ॥१५॥ ॥ मगलं महाश्रीः लेखकपाठकयोः ॥ क्रमाङ्क ३४३ नैषधीयमहाकाव्य साहित्यविद्याधरीटीका प्रथमखंड द्वादश सर्ग पर्यन्त पत्र ३७७। भा. सं.। क. विद्याधर पंडित । ले. सं. अनु १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५||४२॥ क्रमाङ्क ३४४ नैषधीयमहाकाव्य साहित्यविद्याधरीटीका द्वितीयखंड १३ मा सर्गथी चालु पत्र ७७ बेटक अपूर्ण । भा. सं.। क. विद्याधर पंडित । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५॥४२१. । वचमा घणां पानां नथी। क्रमाङ्क ३४५ नैषधचरित्रमहाकाव्य साहित्यविद्याधरीटीका चतुर्थसर्ग पर्यन्त पत्र ६-२१८ । भा. सं.। क. विद्याधर पंडित। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५॥४२ क्रमाङ्क ३४६ (१) विक्रमांककाव्य टिप्पणीयुक्त पत्र १५८ । भा. सं.। क. बिल्हणकवि । पं. २५४५ । आदि भुजप्रभादंड इवोर्द्धगामी स पातु वः कंसरिपोः कृपाणः । यः पाश्चजन्यप्रतिबिम्बभङ्ग्या धाराम्भसः फेनमिव व्यनक्ति ॥१॥ श्रीधाम्नि दुग्धोदधिपुण्डरीके यश्चञ्चरीकातिमातनोति । नीलोत्पलश्यामलदेहकान्तिः स वोऽस्तु भूत्यै भगवान् मुकुन्दः ॥२॥ वक्षःस्थली रक्षतु सा जगति जगत्प्रसूतेर्गरुडध्वजस्य । श्रियोऽङ्गरागेण विभाव्यते या सौभाग्यहेम्नः कषपट्टिकेव ॥३॥ अन्त बस्य स्वेच्छाशबरचरितालोकनत्रस्तयेव, न्यस्तश्चूडाशशिकलिकया क्वापि दूरे कुरङ्गः। स व्युत्पत्ति सुकविवचनेष्वादिकर्ता श्रुतीनां देवः प्रेयानचलदुहितुनिश्चलां वः करोतु ॥१०॥ इति श्रीत्रिभुवनमल्लदेवविद्यापतिकाश्मीरकभट्टश्रीबिल्हणस्य कृतिविक्रमाङ्काभिधानं समाप्तम् ॥छ॥ एवं जात प्रन्थानं २५४५। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ क्र. ३४६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (२) घटकर्परकाव्य पत्र २। भा. सं.। का. २१ । आदि निचित खमुपेत्य नीरदैः प्रियहीना हृदयावनीरदैः । सलिलैर्निहितं रजः क्षितौ रविचन्द्रावपि नोपलक्षितौ ॥१॥ भावानुरक्तवनितासुरतैः सपेयं आलभ्य चाम्बु तृषितः करकोशपेयम् । जीयेय येन कविना यमकैः परेण तस्मै वहेयमुदकं घटकपरेण ॥२१॥ ॥ घटकपरकाव्यं समाप्तम् ॥छ॥ (३) मेघाभ्युदयकाव्य पत्र ३-६ । भा. सं.। का. ३८ । आदि काचित् काले प्रमुदितनदन्नीलकण्ठर्घनागे व्योमाटव्यां प्रतिदिशमलं सञ्चरन् मेघनागे । बद्धारम्भं वदति वनिता स्म प्रवासाय कान्तं कामश्चापं वहति हितदा विस्फुरच्छायकान्तम् ॥१॥ अन्त विद्युल्लता लसति काञ्चनसन्निभाऽरं धाम्नो वहन्ति घनवन्ति न भानि भारम् । उच्चै रसत्यविरत जलदोऽस्तवारिरस्मिन् प्रयातु समये प्रिय यस्तवारिः ॥३८॥छ।। ॥ इति मेघाभ्युदयकाव्य समाप्तमिति ॥छ।।२।। (४) वृन्दावनमहाकाव्य पत्र ६-१०। भा. सं.। क. मानांक कवि। का. ५२ । आदि वरदाय नमो हरये पतति जनोऽयं स्मरन्नपि न मोहरये । बहुशश्चक्रद हता मनसिदितियेन दैत्यचक्रं दहता ॥१॥ इत्याह पीतवाससमायतनेत्रस्तं कंसासुरात् पशुमतामायतने त्रस्तम् । हसितानां विमलतया सहलीलाजानां छायां विकरन् दशनैः सह लीलाजानाम् ॥५२॥छ॥ ॥ इति वृन्दावनमहाकाव्यं समाप्तम् ॥छ।। (५) मघुवर्णनकाव्य पत्र १०-१५। भा. सं.। क. केलिकवि । का. ६९ । आदि मुदमुपैतु बुधो मधुवर्णनात् सुकविकेलिकृतात् कृतनिस्वनात् । अलिकुलादिव बद्धसचम्पकविमरकेसरकेसरकेलितः ।।१।। अन्त अदयमयमभूत् कृतप्रकामविधुरतनुमधुरा वयो रटन्ति । प्रियतम दिवसा वृथा च येषु विधुरतनुमधुरा वयो रटन्ति ॥६॥ ॥ इति केलिकृतं मधुवर्णनं नाम काव्यं समाप्तम् ।।छ। (६) विरहिणीप्रलापकाव्य (षड्ऋतुवर्णनकाव्य) पत्र १५-१८। भा. सं.। क. केलिकवि । का. ५५। मादि सा बोध्या भारती भव्या न नताऽमरसेनया । एकया भक्तिपरया न न तामरसेन या ॥१॥ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भन्त अन्त- श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ अकार्षीत् स इदं काव्यं केलिः सज्जनयोगतः । वाध्यतां यस्य सत्काव्यकेलिः सज्जनयोगतः ॥५५॥ ॥ इति केलिकृतं विरहिणीप्रलापनाम काव्यं समाप्तमिति ॥ छ ॥ (७) चंद्रदूतकाव्य पत्र १८ - २० । का. २३ । ले. सं. १३४३ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२ । आदि यदतिसितशराग्रग्रस्तमापन्नदुःखं त्यजति जगदशेषं दीनमापन्नदुःखम् । स्मरत तदत नूनं सर्वदा शासनस्य प्रभुमजरमनन्तं श्रीभिदाशासनस्य ॥१॥ [क्र. ३४७ इति विविधवचोभिश्चन्द्रमायामवत्यां गदित उदयमानो दीनमायामवत्याम् । कथयितुमिव तस्मै तूर्णमध्वन्यवध्वा सरति रतिमिलानृत्यम्बराध्वन्यवध्वाः ॥२३॥ ॥इति चन्द्रदूताभिधानं काव्यं समाप्तम् ॥ छ ॥ सम्वत् १३४३ वैशाख शुदि ६ भां. धांधलसुत भो. भीम भां. श्रीछाहडसुत भां. जगसिंह भां. खेतसिंह श्रावकैः श्री चित्रकूट वास्तव्यैः मूल्येनेयं पुस्तिका पुनर्गृहीता ॥ क्रमाङ्क ३४७ (१) वृन्दावनकाव्य सटीक पत्र १-३१ । भा. सं. । मू. क. मानांक । टी. क. शांतिसूरि पूर्णतलगच्छीय । ले. सं. १२१५ । आदि - ॥ नमः सर्वज्ञाय । वर्द्धमानं सुधामानं देवेन्द्रः कृतसत्क्रियम् । वर्द्धमानं महामानं तथा देशितसत्क्रियम् ॥१॥ वृन्दावनादिकाव्यानां यमकैरतिदुर्विदाम् । वक्ष्ये मन्दप्रबोधाय पञ्चानां वृत्तिमुत्तमाम् ॥२॥ आदौ तावत् काव्यकरणे प्रवर्त्तमान उग्रसेनतनयो मानाङ्को मङ्गलप्रतिपादनाय शिष्टसमाचारपरिपालनाय चेष्टदेवतायै विष्णवे नमस्कारमाह । वरदाय नमो हरये पतति जनोऽयं स्मरन्नपि न मोहरये । बहुशचक्रंद हता मनसिदितियेन दैत्यचक्रं दहता ॥१॥ अन्त वृन्दावनाव्यकाव्यस्य कृत्वा वृत्ति सुनिर्मलाम् । यदर्जितं मया पुण्यं तेन निर्वान्तु देहिनः ॥ श्री पूर्णतल्लगच्छ सम्बन्धिश्रीवर्द्धमानाचार्यस्थापितश्रीशान्तिसूरिविरचिता वृन्दावनकाव्यवृत्तिः समाप्तेति ॥ ॥ मङ्गलं महाश्रीः || शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ (२) घटकर्परकाव्य सटीक पत्र ३२- ४२ = ११ । भा. सं. । टी. क. शांतिसूरि पूर्णतल्लगच्छीय | आदि || नमो जिनाय ॥ निचितं खमुपेत्य नीरदैः प्रियहीना हृदयावनीरदैः । सलिलैर्निहितं रजः क्षितौ रविचन्द्रावपि नोपलक्षितौ ॥१॥ प्रोषितप्रमदयेदमुच्यते इति वक्ष्यति । ततश्चायमर्थः । प्रोषितप्रमदया गतभर्तृकया संख्याऽप्रत इदं पूर्वोक निचितमित्यादिकं वक्ष्यमाणं चोच्यते ॥ अन्त श्रीपूर्णतल्लगच्छ सम्बन्धिश्रीवर्द्धमानाचार्यनिजपदस्थापितश्रीशान्तिसूरिविरचिता घटकर्पूराख्यकाव्यवृत्तिः समाप्ता ॥ घटक काव्यस्य वृतिं कृत्वा सुनिर्मलाम् । यदर्जितं मया पुण्यं तेन निर्वान्तु देहिनः ॥ छ ॥ (३) शिवभद्रकाव्य सटीक पत्र ४३-०७ ४५ । भा. सं. । मू. क. शिवभद्र कवि । टी. क. शांतिसूरि पूर्णतलगच्छीय । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३४७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १४२ आदि-७०॥ॐ नमो वीतरागाय ॥ साम्प्रतं शिवभद्राख्यकाव्यस्य वृत्तिः क्रियते । तत्र चादौ शिवभद्रनामा कविरिष्टदेवताय नमस्कारं मङ्गलार्थमाह ॥छ।। प्रणमत सदसिगदंतं चैद्ममहन्योऽप्रियाणि सदसिगदतं । चूर्णितचक्रतुरंग रुक्मिणममुञ्चच्च यस्य चक्रतुरंग ॥१॥ अन्त वीक्ष्य शरन्मुखमुडपतिविशेषकोपे तं प्रणयेन वर्तमान विशेषकोपेतम् । कृत उपकारः सख्यं न वञ्चनामेति अस्मद्विधमनुगमयन् नवं च नामेति ॥४६॥ स लक्ष्मणो न वञ्चनां स्खलनामेति गच्छति। किं कारयन् अनुगमयन् योजयन् । कथमस्मद्विधं मांसदृशं । कमनुगमयन् तं रामं। कथं कृत उपकारः सख्यं न वञ्चनामेति कृतो विहितोऽस्माभिर्भवतामुपकारस्तारामसर्पणलक्षणः तथा सख्यं मित्रत्वं च नवं नूतनं कृतं भवद्भिः सहास्माभिः कथं नाम व्यक्तमित्यनेन प्रकारेण । कीदृशं तं वर्तमानं तिष्ठन्तं। क विशेषकोपे। किं कृत्वा वीक्ष्यावलोक्य । किं तत् शरन्मुखं शरत्कालप्रारम्भ। कीदृशमुडुपतिविशेषकोपेतं चन्द्रतिलकयुकं । केन वीक्ष्य प्रणयेन प्रीत्या ॥छ॥ श्रीपूर्णतालगच्छसम्बधिश्वेताम्बरश्रीशान्तिसूरिविरचितायां शिवभद्रकाव्यवृत्तौ द्वितीय आश्वासकः समाप्तः ॥छ।। (४) मेघाभ्युदयकाव्य सटीक. पत्र ८८-११४२७ । भा. सं.। टी. क. शांतिसूरि पूर्णतल्लगच्छीय । आदि शिवभद्रवृत्तिरुक्ता। साम्प्रतं मेघाभ्युदयस्य वृत्तिः क्रियते। तत्र चाय सम्बन्धः । काचिद्वनिता मेघागमसमये प्रियतमं प्रवसन्तं वदति समाप्तिं यावदाह । तत्र चाद्यः श्लोकः ॥छ। अन्त श्रीपूर्णतल्लगच्छसम्बन्धिश्रीवर्द्धमानाचार्यस्वपदस्थापितश्रीशान्तिसूरिविरचिता मेघाभ्युदयकाव्यवृत्तिः समाप्ताः ।। (५) चंद्रदूतकाव्य सटीक पत्र ११५-१३२=१८। भा. सं.। मू. क. जंबूनाग। टी. क. शांतित्रि पूर्णतल्लगच्छीय । आदि-७०॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ जम्बूनागकविश्चन्द्रदूतकाव्यकरणे प्रवर्त्तमान आदौ मङ्गलार्थ इष्टदेवतायै नमस्कारमाह ॥छ।। अन्त चन्द्रदूतस्य काव्यस्य वृत्तिं कृत्वा सुनिर्मलाम् । यदर्जितं मया पुण्यं तेन निर्वान्तु देहिनः ॥१॥छ। (६) राक्षसकाव्य सटीक पत्र १३३-१४६=१४ । भा. सं.। क. जिनचन्द्र । आदि-नमः सरस्वत्यै ॥ कश्चिद्वनं बहुवनं विचरन् वयस्थोऽवश्यां वनात्मवदनां वनितां वनाम् । तर्वर्यरिप्रदमुदीक्ष्य समुत्थितं खे नागामिमां मदकलः सकलां बभाषे ॥१॥ कश्चिदित्यनिर्दिष्टनामधेयः । ना इति पुरुषः । वनं काननम् । बहूनि वनानि जलानि यत्र तद् बहुवनम् । अन्त काव्यराक्षसस्य टीका परिसमाप्ता ॥ मङ्गलमस्तु ॥छ॥ चरणकरणदक्षः क्षीणदोषो जिताक्षः क्षपितविधिविपक्षः क्षान्तिमान् बद्धकक्षः । यतिपतिजिनदत्ताचार्यदत्तोपदेशास्खलितमहिमयोगात् कान्तकीर्तिर्मुनीन्द्रः ॥१॥ समजनि जिनचन्द्रश्चन्द्रवच्चारुरोचिगणधरपदलाभाल्लब्धलोकप्रतिष्ठः । जिनमतयतिरेतत् तद्विनेयः सुशान्तो व्यलिखदमलबुद्धिः कृत्स्नकर्मक्षयाय ॥२॥ शरचन्द्रसूर्यसञ्जथे १२१५ सम्वद्विक्रमभूपतेः । अतियाति नभोमासे पञ्चदश्यां तिथौ रवी ॥३॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रोजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३४८यावज्जिनप्रवचनं प्रवरप्रभावं यावज्जिनागमविदो यतिनोऽपपापाः । यावत् सुदर्शनभृतः स्थिरधीरचित्ताः तावत् सुपुस्तकमदः सुधियः पठन्तु ॥४॥ ॥ इति शुभम् ॥ (७) घटकर्परकाव्य सटीक पत्र ३९-५३ । भा. सं.। टी. क. पूर्णतलगच्छीय शांतिसूरि । ले. सं. संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४१॥ क्रमाङ्क ३४८ वासवदत्ता आख्यायिका टिप्पणी सहिता पत्र ४७ । भा. सं.। क. सुबंधु महाकवि । ले.सं. १२०७ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १२४२।। अन्त इति महाकविसुबंधुविरचिता वासवदत्ता नाम कथा समर्थिता ॥ संवत् १२०७ श्रावण वदि १४ सोमे । रुद्रपल्लीसमावासे राजश्रीगोविंदचंद्रदेवविजयिराज्ये श्रीयशोधरेण आचार्याणां कृते लिखितेयं वासवदत्तति ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवंतु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥ छ। मंगलं महाश्रीः ॥छ।। क्रमाङ्क ३४९ चक्रपाणिविजयमहाकाव्य पत्र ११७। भा. सं.। क. लक्ष्मीधर भट्ट । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४।।१।। आदि-द० ॥ स्वस्ति ॥ ॐ नमः सर्वविदे ॥ कालिंदीजलकालकालियकुलक्रीडाविनाशैषिणा दुष्टारिष्टकठोरकंठवलनव्याश्लिष्टकंठसजा । रोहत्केशिकिशोरदत्तपदवीक्लिष्टेन पुष्णातु वो दोष्णा दुर्द्धरदैत्यदर्पदलनद्वारेण दामोदरः ॥१॥ अन्त पुष्पश्रीसमलंकृतं मधुमिव प्राप्यानिरुद्धं ततः साद्धे दानवकन्यया त्रिभुवनभ्रान्तप्रतापोदयः । बिभ्राणः स्वरविभ्रमं स भगवानन्तः प्रविश्याखिलामुन्मत्तामिव तां चकार परितः पौरोत्सवैरिकाम् ॥६३॥ ॥छ।। इति भट्टलक्ष्मीधरकृतौ चक्रपाणिविजये महाकाव्ये बाणदोःखंडन नाम विशतितमः सर्गः समाप्तः ।। ॥छ। मंगलं महाश्री ॥ क्रमाङ्क ३५० शब्दमेदप्रकाश नाममाला पत्र ३६ । किंचिदपूर्ण। भा. स.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४१॥ भादि-॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ प्रबोधमाधातुमशाब्दिकानां कृपामुपेत्यापि सतां कवीनाम् । कृतो मया रूपमवाप्य शब्दभेदप्रकाशोऽखिलवाङ्मयाब्धेः ॥१॥ श्रीसाहसाङ्कचरितप्रमुखाः सुगद्यपद्यप्रवन्धरचनासु वितन्वते......। व्युत्पत्तिमुज्ज्वलतमां परमां च शक्तिमुल्लासिता जगति येन सरस्वतीयम् ॥ निःशेषवैद्यकमताम्बुधिपारदृश्वा शब्दागमांबुरुहषण्डरविः कवीन्द्रः । यत्नान्महेश्वरकविनिरमात् प्रकामं आलोच्यतां सुकृतिभिस्तदसावनर्घः ॥४६॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३५१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र नामपारायणोणादिनिरुक्तोक्तर्विकल्पितः । शब्दवर्णविधेश्चान्तः सन्हब्धोऽप्येष साधुभिः ॥४॥ कर्तुं चेतश्चमत्कार............[ अपूर्ण ] क्रमाङ्क ३५१ निर्वाणलीलावतीमहाकथाउद्धार (लीलावतीसार) पद्य पत्र २६७ । भा. सं.। क. जिनरत्णसूरि। र. सं. १३४१। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द.श्रेष्ठ। लं. प. ११॥४२॥ आ पोथी कागळ उपर लखेली छ। आदि .........त्संगसंगिपादांबुजन्मने । नमो..... ........शसेव्यायने.........॥१॥ वर्द्धमानप्रभोः पादाः स्ताद् दृगोन्नत्यशालिनः । मोक्षाचलारोहि...............श्रये ॥२॥ द्वाविशतेजिनेन्द्राणां गावः पातु वेरिव ।......... ...यो वासरसंगताः ॥३॥ अन्त तदिदमनुपमानं मुक्तिशर्मातिमान सततमनुभवन्तः सर्वतः क्षेमवन्तः । सुगुरुसमरसेनाढया मुनीन्द्राश्चतुर्विंशतितमजिनरत्नश्रीसुसङ्गं पृणंतु ॥५९॥ इति श्रीनिर्वाणलीलावतीमहाकथेतिवृत्तोद्धारे लीलावतीसारे जिनाङ्के श्रीसिंहसूरिश्रीपद्मकेसरराजर्षिलीलावतीसुरसुन्दरीरमणमतीश्रीकार्तवीर्यसद्गुरुकेवलज्ञाननिर्वाणव्यावर्णनो नाम एकविंशतितम उत्साहः समाप्तः ॥छ॥ तत्समाप्ती च समाप्तोऽयं श्रीलीलावतीसारो नाम महाकथाविशेषः। एवं च कौशाम्ब्यां विजयादिसेननृप इत्यादौ मया यत् प्रतिज्ञातं तन्महसा जिनेश्वरगुरुश्रीपादपक्केरुहाम् । गीर्देव्याः स्फटिकेन्दुकुन्दकुमुदप्रालेयशङ्कयतेरश्रान्त प्रणिधानतश्च सुधिया सिद्धिं समध्यासितम्॥१॥छ।.११५॥ तीर्थे श्रीवर्धमानस्य सुधर्मस्वामिनोऽन्वये । श्रीवर्धमानः सुगुरुः सुधर्मस्वाम्युदैयत ॥१॥ तच्छिष्यमौलिमणिरैधत गूर्जरत्रासुत्रामदुर्लभनरेश्वरमूर्द्धसेव्यः । श्रीमान् जिनेश्वरगुरुर्गुरुधामपूरैः सूरं विजित्य बत सत्पथमैक्षयद् यः ॥२॥ सन्नीतिरत्नाकरमुख्यतर्कान् श्रीअष्टकादेर्विवृतीश्च सृष्ट्वा ।। चम्पूमिमामद्भुतवाग्विलासां लीलावती यः सुकथामसूत ॥३॥ तत्पादपद्ममधुपो जिनचन्द्रसूरिराद्योऽद्युतन्निखिलवाङ्मयसिन्धुसिन्धुः । संवेगसारसरितो............त्तन्निबन्धमिषतः परितो निरीयुः ॥४॥ श्रीस्तम्भनाभिधसुतीर्थमणिप्रदीपोऽनू.....................रोऽभयदेवसूरिः । आशैशवादपि हि यो विमुखो नवाझ्या वृत्ति......त काश्चिदहो नवायाः ॥५॥ तत्पडनेताऽतुलसौविहित्यज्ञानाम्बुधिः श्रीजिनवल्लभोऽभूत् । यद्दत्तसग्रन्थसुधाप्रपास्ताः सेव्याः समस्तैरपि मुक्तिपान्थः ॥६॥ तदीयगच्छाम्बुजषण्डचण्डभानुबभौ श्रीजिनदत्तमरिः । यत्पादसेवा बत राजभिस्तैः सर्वोगसम्पूर्णतमैर्वितेने ॥७॥ तदनु च जिनचन्द्रसूरिसिंहः समजनि शैशवशालिनाऽपि येन । प्रबलमदभरान्धवादिदन्तावलदलना खलु लीलयैव चके ॥८॥ तत्पट्टपूर्वाचलहेलिकेलिः प्रद्योतनः श्रीजिनपत्यधीशः । यस्योदये संप्रससार धाम नान्यस्य कस्यापि हि सर्वदिक्ष ॥९॥ जिनेश्वरगुरु श्रीअष्टका मुकथाम Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३५२ अथाभ्युदयमासदत् प्रभुजिनेश्वरश्चन्द्रमा रमास्पदमिदं गणाम्बुधिविलासजाग्रत्करः । जिनेन्द्रभवनाचलाः प्रतिपदं यदीयोदये बभुः प्रथमचन्द्रिकात् कनककुम्भचण्डाद्भुताः ॥१०॥ यस्तात्कालिकनव्यकाव्यकुसुमैरार्चीत् त्रिसन्ध्यं जिनान् नानालब्धिनदीनदीपरिवृढो योऽनुव्यधागौतमम् । श्रीक्ष्माऽभूष्यत यत्प्रतिष्ठिततमः शिष्यविहारैद्विधा, यद्वा यो विधिधर्मसीम्नि सुकृताद्वैत बताऽधात् कलौ॥19॥ सुगुरुसुरतरुस्ततोऽभ्युदीतः पृणति जगति जिनप्रबोधसूरिः ।। समयमसुमति प्रभावनाभिर्बत सुषमासुषमा न य............॥१२॥ ... वाक्यात् सततं मनीषितलताविस्तारधाराधरान् श्रीसूरीन्द्रजिनेश्वरस्य सुगुरोः शिष्यावतंसाग्रणीः । एष श्री..................जन्निर्वाणलीलावतीसारं सारमुदारभक्तिमधुरः प्राक् सूरिपादाम्बुजे ॥१३॥ स्तुमः प्रभु जिनेश्वरं............ ..........गुरुं कवित्वपदविद्गुरुं यतिपसर्वदेवप्रभुम् । प्रमाणपदवीगुरुं विजयदेवसूरि महाभिषेक.................................गमगुरु नमस्कुर्महे ॥१४॥ लीलावती द्विनवते शरदां सहस्र श्रीवैक्रमेऽरचि जिनेश्वरसूरि......। .........संचितिरिय पुनरेकचत्वारिंशत्त्रयोदशशतेषु मया वितेने ॥१५॥ सहैव लक्ष्मीतिलकानु[जेन प्रत्येक बुद्धं चरितं व्यधाम । लीलावतीसारममुं तु जैनेश्वरप्रबंधेन सहाग्रजेन ॥१६॥ प्राचीनसद्गुरुजिनेश्वरसूरि......लीलावतीसमभिधानकथेति वृत्तम् । पीयूष.........विदधे मयेति हस्ते प्रगृह्य तदिदं सुधियो धयंतु ॥१७॥ मार्गा...दि......शि पुष्ययोगे, जाबालिपत्तनवरेऽथ समर्थितोऽयम् । प्रत्यक्षरं गणनया......पञ्चाशतार्द्ध, सार्द्धत्रिशत्यधिकमुक्तमनुष्टुमां भोः ॥१८॥ अङ्कतोऽपि ५३५० ॥ व्या......श्रुतपथपथिकेन जिनप्रबोधयतिपतिना । समशोधि रा...गणिनाऽसौ सौम्यमूर्तिगणिना च ॥१९॥ छदोव्याकरणप्रमाण............कारपारीणधीः काव्यज्ञानविधानशोधनकलाचातुर्य............। आदर्श प्रथमे समक्रमयता सौम्यमूर्तिर्गणिः साहाय्य............रगणिप्रष्ठा: समेऽप्यादधुः ॥२०॥ सर्वद्वीपसरस्वतां क्षितिभृतां मेलं मिथो वि......, ...............जन्मरत्नकनकप्राग्भारसारश्रियम् । यावत् प्राञ्चति रत्नसानुशिखरी निर्वाणलीलावतीसारस्तावदयं नितांतमुदियाद् व्याख्यायमानो बुधैः ॥२१॥ इतिग्रन्थप्रशस्तिः सम्पूर्णा ॥छ॥ शुभमस्तु चतुर्विधश्रीश्रमणसङ्घस्य ॥छ॥ [श्रीयुत ची. डा. दलाले जणाव्यु छ के-आ प्रतिमां एक कागळनी चीरमां "श्रीजिनरत्नाचार्यविरचिता निर्वाणलीलावतीकथा।" एम लखेल छे. पण आ चीर त्यां मारा जोवामां आवी नथी।] __ क्रमाङ्क ३५२ लीलावतीकथा गाथाबद्ध-महाराष्ट्रीय देशीभाषामय पत्र १४३। मा. प्रा.। क. भूषणभट्ट पुत्र कुतूहल कवि । ले. सं. १२६५ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४१॥ अन्त॥ संवत् १२६५ वर्षे पौष शुदि द्वादश्यां शनौ लीलावती नाम कथा समाप्तेयम् ॥छ। भद्रमस्तु ॥७॥ क्रमाङ्क ३५३ अपभ्रंशकाव्यत्रयी त्रूटक पत्र १०७ । भा. अप. । (१) चर्चरीरासक सटीक. पत्र १-३७ । भा. अप. सं. । मू. क. जिनवल्लभगणि। टी. क. जिनपाल । टी. र. सं. १२९४ । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३५७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (२) धर्मरसायनरासक सटीक पत्र ३८-(१)। भा. अप. सं.। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध। संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । पत्र १७, १९, २०, २२, २४, ५३, ६१-६३, ६५, ६८, ७०, ७१, ७३, ७४, ७६, ७८-८१, ८३-८७, ८९, ९४, ९६-१०३, १०५ नथी. क्रमाङ्क ३५४ गउडवहोमहाकाव्य सटीक पत्र २४८ । भा. प्रा. सं.। मू. क. वाक्पतिराज । टी. क. भट्ट उपेन्द्रहरिपाल । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी अंत । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३॥४२ क्रमाङ्क ३५५ अनर्घराघवनाटक पत्र १६९ । भा. प्रा. सं.। क. मुरारि कवि। ले.सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४२॥ ___ क्रमाङ्क ३५६ मनर्घराघवनाटक टिप्पनक पत्र २०३ । भा. सं. । क. मलधारी नरचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तराद्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४१॥ आदि परब्रह्मयं ज्योतिः प्रणिधाय विधीयते। इदं मुरारिमाहात्म्यव्याख्यानोत्साहसाहसम् ॥१॥ नमस्तेभ्यो मतियषां जगदुलध्य वतते। मादृशाः सन्ति ये केचित्तदर्थमयमुद्यमः ॥२॥ उत्साद्य मत्सरध्वान्तं विवेकालोकसम्पदा । अस्मिन् गुणांश्च दोषांश्च विचिन्वन्तु सचेतसः ॥३॥ अन्त समाप्तमिदमार्घराघवटिप्पनकम् ॥छ। जज्ञे हषपुरीयगच्छसविता श्रीमान्मुनीन्दुप्रभुदेवानन्द इति प्रभुः स विजयी देवप्रभश्च प्रभुः । तत्पादाब्जनखांशुभिः प्रशभिते ध्वान्तेऽमरेन्दोमतिमात्रेऽस्मिन् पदपद्धर्ति न्यपगतव्यासंगमासूत्रयत् ॥१॥ मुरारिवाचामुच्चेयो महिमा नहि मादृशः । किन्तु किञ्चिन्निबन्धोऽयं यथाबुद्धि व्यधीयत ॥२॥ शब्दप्रमाणसाहित्यत्रिवेणीसङ्गमश्रियाम् । श्रीमद्विमलसूरीणामिदमुद्यमवैभवम् ॥३॥ ॥ समाप्तमिदं टिप्पनकम् । कृतिरियं श्रीनरचन्द्रसूरीणाम् ॥ ग्रं. ६६१ ॥छ। __ क्रमाङ्क ३५७ (१) मुद्राराक्षसनाटक टिप्पणी सह पत्र १-९५ । मा. प्रा. सं. । क. विशाखदेव । ले. सं. १३१४ । अन्त ॥संवत् १३१४ वर्षे लौ. आषाढ वदि शनी अद्यह श्रीवामनस्थल्यां स्थित महं० देयड सुत ठ. आसादीतेन पुस्तकं लिखितमिति । शुभं भवतु लेखकपाठकवाचकानां अन्येषामेव ॥ (२) प्रबोधचन्द्रोदयनाटक टिप्पणी सह पत्र ९६-१६५ । भा. प्रा. सं.। क. कृष्णमिश्र । ले. सं. १३१८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२॥ भन्त ॥ संवत् १३१८ वर्षे...शुदि ६ रवौ अद्येह श्रीभृगुकच्छे सा. महं. देयड सुत ठ. आसादीत्यस्य स्वार्थे प्रबोधचंद्रोदय नाम नाटकं लिखितं ॥छ। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ २. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३५८ क्रमाङ्क ३५८ वेणीसंहारनाटक पत्र ७३ । भा. प्रा. सं.। क. भट्ट नारायणकवि। ग्रं. १३५० । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४॥४१॥ . क्रमाङ्क ३५९ (१) हम्मीरमदमर्दननाटक पत्र ९० । भा. प्रा. सं.। क. जयसिंहसूरि। ग्रं. ९००। ले. सं. १२८६ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८४२ अन्त ॥ संवत् १२८६ वर्षे आषाढ वदि ९ शनौ हम्मीरमर्दनं नाम नाटकं ॥छ॥ ग्रं. ९.०॥ (२) पस्तुपालप्रशस्ति पत्र १-१३। भा. सं.। क. जयसिंहसूरि। का. ७७ । ग्रं. १८०। (३) वस्तुपालस्तुतिकाव्य पत्र १३-१६ । भा. सं.। का. १३। अंत्य पत्रमा शोभन छ। क्रमाङ्क ३६० नागानंदनाटक पत्र ५६ । भा. प्रा. सं.। क. श्रीहर्षकवि।। ले. सं अनु. १३मी शताब्दी उत्तरार्द्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४१४२ क्रमाङ्क ३६१ चंद्रलेखाविजयप्रकरणनाटक पत्र २०३। भा. प्रा. सं. । क. देवचंद्रमुनि हेमचंद्रशिष्य । ले. सं. अनु. १३ शताब्दी पूर्वार्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ९।१।। आदि-- ॥ अहम् ॥ चिन्मयमूर्तिः परमो ब्रह्मादिभ्योऽपि यः परः पुरुषः । अकलितकलाभिरामो दिशतु शिवं नाभिसूनुः ॥१॥ अपि च त्रिभुवनजयोद्दामभ्राम्यच्छिलीमुखशालिनः कुसुमधनुषः प्रध्वसेनाजितो विदितः प्रभुः । भवजलनिधौ मजद्विश्वं समुद्धरति स्म यः सुभगहृदयः स श्रेयांसि द्वितीयजिनः क्रियात् ॥२॥ (नान्द्यन्ते) सूत्रधारः-(समन्तादवलोक्य) कथं प्रभातप्रारम्भः ? । तथाहिव्योमाभोगविजम्भिभास्वरमहःस्फारस्फुरत्केसरं विश्वव्यापिसहस्रपादमुदितं प्राचीगुहामभ्यतः । दृष्टवा नव्यहरि विहङ्गमरुतैश्चीत्कारमुच्चस्तरां मुञ्चन्नेष निलीयते गुरुगिरिद्रोण्यां तमोवारणः ॥३॥ अपि च दृष्ट्वाऽन्धकारकलितं पङ्कमग्नमिवाम्बरम् । अरुणेन गिरेमुनि क्षणं दधे रवे रथः ॥४॥ येनाशेषमपीदमन्धतमसं ज्योत्स्नाजलेः क्षालितं कामोऽनङ्गतयापि येन विलसत्याकल्पमुर्वीतले । स श्रीकण्ठविभूषणं शशधरः शङ्गारलीलागृहं धत्ते राजतदर्पणश्रियमयं प्रातः प्रतीच्यां दिशि ॥५॥ इति । (नेपथ्याभिमुखम् ) आयें! इतस्तावत् । ( प्रविश्य ) नटी-आणवेदु अज्जो। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३६१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १५५ सूत्रधारः-आदिष्टोऽस्मि सततार्चिततरुणरोहिणीरमणचूडामणिप्रसादसमासादितोत्कटप्रतापालंकृतराज्यकमलाविलाससदनस्य समराजिरविज़म्भमाणप्रचण्डदोर्दण्डकलितकोदण्डविस्तृतशिलीमुखमण्डलखण्डितशाकम्भरीश्वरकीर्तिकुसु. मस्य मालवभूपालवलालमौलिकमलार्चितरणागणाधिदेवतस्य आजन्मनिर्वाहितसत्यव्रततिरस्कृतकुन्तीसुतस्य प्रत्यर्थिभूपालविलासिनीनिःश्वासपवनप्रेखोलनानवरतप्रज्वलिताद्भुतप्रतापदहनस्य निरन्तरदानवाहिनीप्रवाहपूरप्लवमानयशोराजहंसस्य अमन्दकीर्तिमन्दाकिनीपूरपवित्रितत्रिभुवनस्य सर्वतोमुखप्रसरदमेयमहिमचमूचक्राकान्तसकलभूपालमौलिमण्डलीमुकुटमणीकिरणचुम्बितचरणनखचन्द्रस्य श्रीकुमारपालदेवनरेन्द्रस्य परिषदा, यदद्य श्रीकुमारविहारवामपा वस्थितश्रीमदजितनाथदेवस्य वसन्तोत्सवे त्रैविद्यस्य श्रीदेवचन्द्रमुनेः कृतिः चन्द्रलेखाविजयं नाम प्रकरणमभिनेतव्यमिति। (सचमत्कारम् ) दृष्टः क्वापि श्रुतो वा कथयत सदसि प्रेक्षकाःकोऽपि भूपः सत्ये शौर्ये सदाने शरणमितवतां रक्षणे बद्धकक्षः । एनं मुक्त्वा नरेन्द्र समिति हठहृतारातिलक्ष्मीप्रसक्त्या बिभ्राणं विक्रमाकं दिशि दिशि निहितप्रस्फुरत्कीतिहारम् ॥६॥ भपि च एकाकिनैव वीरेण येनाऽर्णोराजमन्थनात् । अनात्तमन्दरागेण हठालक्ष्मीः करे धृता ॥७॥ नटी-(सविस्मयम् ) अज्ज ! एदस्स संपदं को नरवदी समाणो भोदि । सूत्रधारः-मुग्धे ! मान्धातृप्रमुखान् विहाय महतः षट्चक्रवर्तिप्रभूनेतस्याऽद्य कुमारपालनृपतेः कस्तुल्यतामञ्चति ? । यः कान्तैर्विजयाक्षत रणमखप्राप्तैर्महासिद्धये कीर्तिक्षीरभरेण वाञ्छति चरुं सिद्ध प्रतापाग्निना ॥८॥ नटी-अहो ! अजसुअस्स सा का वि उत्तिवेचित्ती जं रन्नो वन्नणे वि पत्थुदपबंधत्थो वित्थरीयदि । इति। (सचिन्तम् ) अज ! कह इत्थ मए सुत्थिदाए वन्नियापरिग्गहो कादव्वो? जं मज्झ गुरू केणावि रत्तवडधारिणा मुंडियसीसेण पलोहिय देसंतरं णीदो। तत्थगदस्स य अन्नेण धुत्ततिलएण किं पि अपुवं इंदजालं दसिऊण काम्व गहिलत्तणं संपादिदं । सूत्रधारः-प्रिये! अलमनया चिन्तया, विकल: स्वस्थितचेष्टो मितवागपरिग्रहो द्विधा चित्तः। परमस्पृहणीयोऽयं भविता तत्त्वप्रपञ्चनात्यागात् ॥९॥ नटी-अय्य! एवं उवदिसंतेण तए मज्झ कि संबोहणं कदं भोदि ? जं सो परं असलाहणीयो भविस्सदि। सूत्रधारः-( विहस्य ) प्रिये! मुग्धाऽसि, उक्तस्यास्य व्याख्या इत्थमवगन्तव्या, यत्-विशिष्टकलावान् स्वर्गायावस्थितव्यापारः मितवाग् निस्सङ्ग एकमनास्तत्त्वप्रपञ्चनया अविमुक्तः प्रकृष्टस्पृहणीयो भविष्यति । नटी-(सानन्दम् ) अय्य! अन्नं च मे सुम्वरिद, जेग सो विप्पयारिय देसंतरं णीदो तस्स वि तत्तपबंधो णाम, ता कि तस्सेव संगेण सलाहणिजो भविस्सदि ? । सूत्रधारः-प्रिये ! एवमपि । अन्यच्च अनुज्झतस्तत्त्वहितोपदेशं प्रवर्तमानस्य यथातथापि । पुंसोऽभियुक्तस्य महत्यपीह सिद्धिः खलु स्यान्ननु सम्मुखी ना ॥१०॥ नटी-(सविस्मयम् ) एदं पि मह पडिबोहण तारिसं उजेव इति । ( सकौतुकम् ) अवि एदस्स कइणो पबंधेण रंजिदव्वा एसा सहा । सूत्रधारःगो भाष्यार्णवमन्थमन्दरगिरिः पटतर्कविद्यागुरुः साहित्यामृतसिन्धुरभुतमतिप्रेत्पतकाधितः । रक्तस्तस्य पवित्रितत्रिभुवनैः श्रीचित्रचिन्तामणिश्लोकोन्मीलितषप्रबन्धललितैः को नाम न प्रीणितः ? ॥११॥ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ३६२अपि च श्रोतोभिः क्रमश स्त्रिभिस्त्रिभुवनं दृष्ट्वा विगाह्य स्थितामेतां स्वर्गतरङ्गिणी हरिदिशो हारश्रिय बिभ्रतीम् । एकश्लोकपथप्रवृत्तिमभजदू यस्याऽऽस्य सारस्वत श्रोतः प्लावयितुं जगन्ति युगपत् कल्लोललीलायितैः ॥१२॥ अथवा कि तस्य कवेवर्णनया ? संसारोर्जितकर्ममर्मभिदुर वेतांशुबिम्बामलध्यानोन्मीलितविन्दुमध्यविलसन्निःशेषदृश्वप्रभुः । लीलानिदलितत्रिलोकविकसत्कन्दर्पदपंग्रहः कारुण्यावनिरेष यस्य स गुरुः श्रीहेमचन्द्रो मुनिः ॥१३॥ नटी-अज्ज! कधं एस कई नाडयपबंधपयट्टो पयरणं वित्थरेदि ? । सूत्रधारः-प्रिये! नाटकरचना हि इतिवृत्तमनुसरन्ती क्षुण्णक्षोदनमावहति । तथाहिक्षुण्णे मागें सूत्रयन्तः पदानि के वाऽभूवन्नात्र यातानुयाताः । यन्नैवाऽऽसीत् सर्वथा यन्न भावि तत्तत् किञ्चित् क्लुप्तमस्मिन्ननेन ॥१४॥ अन्यच्च भाषाः प्रपञ्चितरसा मसृणाश्चतस्रः श्रव्य वचो भणितिरप्रतिमव यस्याम् । एतस्य विश्रुतकवीनपि मुद्रयन्ती सेय कृतिविजयते जयवैजयन्ती ॥१५॥ नटी-(अग्रतो विलोक्य) एस आणासिद्धभूमि चित्तण नाणबोहखंधणिवेसिदहत्थो पत्तो य्येव रंगनिही। सूत्रधारः-आय : तदेह्यावामपि अनन्तरकरणीयाय सजीभवावः। ( इति निष्क्रान्तौ।) ॥ प्रस्तावना ॥छ॥ अन्त धवलयति सुधाभिर्यावदिन्दुस्त्रिलोकी जनितजनसमृद्धी शेषराजा-ऽगराजौ। कृतसकल विशेषौ नन्दतस्तावदेषा विलसतु जगति श्रीदेवचन्द्रस्य कीर्तिः ॥ अपि च विद्याम्भोनिधिमन्थमन्दरगिरिः श्रीहेमचन्द्रो गुरुः सान्निध्यकरतिविशेषविधये श्रीशेषभट्टारकः । यस्य स्तः कविपुझवस्य जयिनः श्रीदेवचन्द्रस्य सा कीर्तिस्तस्य जगत्त्रये विजयतां शार्दूललीलायितैः ॥छ। ॥ इति श्रीदेवचन्द्रमुनिप्रणीतचन्द्रलेखाविजयप्रकरणे निर्वहणसन्धौ महासिद्धिलाभो नाम पञ्चमोऽङ्कः ॥ॐ॥ कलयति भुजगेद्रो मौलिना यावदुर्वी प्रमदमुकुलिताक्षा यावदेते कवीन्द्राः। नवरसवसतिश्रीदेवचन्द्रप्रतीतप्रकरणमधुधारां श्रोत्रपात्रः पिबन्तु ॥छ।। क्रमाङ्क ३६२ अनेकांतजयपताका टिप्पनक पत्र १३१ । भा. सं.। क. मुनिचंद्रसूारे। ले. सं. ११७१। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४१॥ आदि-॥ॐ नमः सबंज्ञाय ॥ शेषमतमतिशयाना यस्याऽनेकांतजयपताकेह । हर्तुमशक्या केनापि वादिना नौमि तं वीरम् ॥१॥ कतिपयविषमपदगत वक्ष्येऽनेकांतजयपताकायाः । वृत्तेविवरणमहमल्पबुद्धिबुद्धथै समासेन ॥२॥ ननु शब्दार्थयोस्तादात्म्यतदुत्पत्तिसंबंधविरहात् वाच्यवाचकभाव एव नास्ति, ततः कथं सद्भुतवस्तुवादित्वलक्षणश्चतुर्थोऽतिशयो घटते इत्याशंक्योक्तम् । अन्त... इति श्रीमनिचंद्रसूरिविरचितेऽनेकांतजयपताकावृत्तिटिप्पणके मुक्तिवादाधिकारः समाप्तः ॥छ॥ तत्समाप्तौ च समाप्तमिदं निजविनेयरामचंद्रगणिकृतात्यतान्तरंगसाहाय्येन श्रीमदनेकांतजयपताकाबृत्तिटिप्पणकमिति ॥छ।। Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३६५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र कष्टो ग्रंथो मतिरनिपुणा संप्रदायो न ताहक शास्त्रं तन्त्रान्तरमतगतं सन्निधौ नो तथापि । स्वस्य स्मृत्यै परहितकृते चात्मबोधानुरूपं मा गामागःपदमहमिह व्यावृतश्चित्तशुद्धया ॥छ॥ ॥ इत्यनेकांतजयपताकाटिप्पणकं समाप्तमिति ॥छ।। संवत् ११७१ ज्येष्ठ वदि ४ शुक्र । लिखितेय रामदेवनेति ॥छ॥ क्रमाङ्क ३६३ सन्मतितर्कप्रकरण तत्त्वबोधविधायिनी वृत्ति सह द्वितीयखंड किंचिदपूर्ण पत्र २-२५२ । भा. प्रा. सं.। मू. क. सिद्धसेन दिवाकर । वृ. क. अभयदेवसूरि तर्कपंचानन । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी पूर्वाद्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. २३४२. । पत्र १, ८, १५, २२, ७६, १०९, २३०-२३३ नथी । क्रमाङ्क ३६४ (१) न्यायावतारसूत्रवृत्ति टिप्पणी सह पत्र १-१३७ । भा. स.। वृ. क. सिद्ध साधु । टि. की ज्ञानधी आर्यिका (?)। अन्त इति संनिधाय चित्त ज्ञानश्रीरार्यिका गुणैर्वर्या । आचार्यसर्वदेवर्निजगुरुभिः प्ररिता सपदि ॥छ॥ (२) न्यायबिंदवत्ति टिप्पणी सह पत्र १३७-२४५ । भा. सं.। क. धर्मोत्तर ।। (३) न्यायप्रवेशवृत्तिपंजिका पत्र २४५-३४७ । भा. सं. । क. पार्श्वदेवगणि । आदि--॥ॐ नमः सरस्वत्ये ॥ दुर्वारमारकरिकुम्भतटप्रभेदकण्ठीरव जिनपति वरदं प्रणम्य । न्यायप्रवेशक इति प्रथिते सुशास्त्रे प्रारभ्यते तनुधियाऽपि हि पञ्जिकेयम् ॥१॥ येऽवज्ञां मयि विदधुः किञ्चन जानन्ति तानपास्यैषः । मत्तोऽपि जडमतीनामुपकाराय प्रयासो मे ॥२॥ इह हि शिष्टानामयं समाचारो यदुत शिष्टाः क्वचिदिष्टे वस्तुनि प्रवृत्तिमभिलषन्तो विघ्नविनायकोपशान्तये इष्टदेवतानमस्कारपूर्वक प्रवर्तन्ते । अतोऽयमपि हरिभद्राख्यः सूरिनहि न शिष्ट इति न्यायप्रवेशकाख्यशास्त्रविवरणकरणे प्रवर्तमान इष्टदेवतानमस्कारार्थ श्रोतृजनप्रवृत्तये शास्त्रस्याभिधेयादिप्रदर्शनार्थ च श्लोकद्वयं चकार । सम्यगित्यादि । व्याख्या । अन्त-न्यायप्रवेशकपब्जिका समाप्तेति ।। न्यायप्रवेशशास्त्रस्य सवृत्तेरिह पञ्जिका । स्वपरार्थ दृष्टवा (दृब्धा) स्पष्ट पाश्वदेवगणिनाम्ना ॥छ। (४) न्यायावतारसूत्र पत्र ३४८-३५० । भा.सं। क. सिद्धसेन दिवाकर। ग्रं.३२ । (५) न्यायबिंदू पत्र ३५०-३५९ । भा. सं.। क. आचार्य दिग्नाग । ले. सं. १४९० । सं. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६॥४१॥ अन्त संवत् १४९० वर्षे मार्गशिर शुदि ३ रवौ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे श्रीश्रीजिनभद्रसूरिराज्ये परीक्षगूर्जरसुत प० धरणाकेन लिखापित ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ न्यायबिंदुसूत्रवृत्ति न्यायावतारसूत्रवृत्ति ॥......पुरोहित हरियाकेन लिखितं ।।छ॥छ।। क्रमाङ्क ३६५ न्यायकंदली टीका अपूर्ण पत्र ३८७ । भा. सं.। क. श्रीधर भट्ट। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १२२४२ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. ३६६ क्रमाङ्क ३६६ (१) द्रव्यालंकार सटीक द्वितीयपरिच्छेद पत्र १९७ । भा. सं. । क. रामचंद्र-गुणचंद्र स्वोपज्ञ । पत्र ९१-९२, १२८ नथी। आदि-॥९ अर्हम् ॥ एवं तावद् द्रव्यपंचकमध्याज्जीवद्रव्यं स्वपरपरिज्ञानसंपदा सकलद्रव्याणां मूर्धाभिषिक्तं प्रथमं व्याख्यायाधुना तदत्यंतोपकारकं पुद्गलद्रव्यं व्याख्यातुं तल्लक्षणमुच्यते। लक्षणं च क्वचिदभिन्नं भवति यथानेरौष्ण्यं । क्वचितु भिन्न यथाऽमेरेव धूमः। तदत्र पुद्गलद्रव्यस्याभिन्नं लक्षणमभिधातुकामः प्राह । अन्त रूपं च सत्त्वमथ वादिविटैविलुप्तमित्थं यदा स्थितिमनीयत पुद्गलानाम् । तन्मा कदाचिदपि पुद्गलताममी नौ संदीदृशन् यदि भवंतितमां कृतज्ञाः ॥ ॥ इति रामचंद्र-गुणचंद्रविरचितायां स्वोपज्ञद्रव्यालंकारटीकायां द्वितीयः पुद्गलप्रकाशः समाप्तः ॥छ॥ॐ॥छ॥ (२) द्रव्यालंकार सटीक तृतीयपरिच्छेद पत्र ११३ । भा. सं.। क. रामचंद्र-गुणचंद्र स्वोपज्ञ । ले. सं. १२०२। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १४॥४१॥ आदि ॥अहम् ॥ प्रथमप्रकाशे तावदशेषद्रव्याणां प्रधानमात्मा स्वरूपमेदैः प्रमाणप्रतिष्ठितः कृतः, तदनु द्वितीयप्रकाशे तदत्यंतोपकारकाः पुद्गलाः । संप्रति पुनर्गतिस्थित्यवगाहदानेनोभयोपकारकाणां धर्मादीनामवसरः, ततस्तेऽपि स्वरूपतः प्रमाणप्रतिष्ठिताः क्रियन्ते। तत्र प्रत्येक परिसमाप्त लक्षणमनुदाहृत्येव सर्वेषामेकप्रकाशप्रपंचनानिबंधनं सामान्यधर्माभिधायि प्रथममधिकारसूत्रमाह ॥ अथाकंपानीति। अथध्वनिरधिकारार्थो मंगलार्थो वा, अस्मिन् प्रकाशेऽकंपानि त्रीणि द्रव्याण्यधिक्रियते। अन्त अकंपानां वृत्तौ यदनि शुभं तेन पदवों रिपुर्वा मित्रं वा सपदि लभतां तां जनगणः । अकांडे क्रोधांधप्रभुविहितदंडप्रतिभयान्न कंपते यस्यां परिजनवपूषि क्षणमपि ॥ पूर्वर्यस्य समुद्धृतिर्न विहिता धीरैः कुतोऽप्याशयादावाभ्यां स समुद्धृतः श्रुतनिधेद्रव्योत्करो दुर्लभः । एनं यूयमनंतकार्यनिपुणं गृहीत तत्कोविदाः स्वातंत्र्यप्रसवां यदीच्छत चिरं सर्वार्थसिद्धि हृदि । मध्य बौद्धामृतजलनिधेर्गाढवान् भ्रांतवांश्च न्यायाटव्यां वचनशठताप्रोत्थसत्कंटकायाम् । आम्नातीवाविषमविफलप्रक्रिये यो विशेषे शास्त्रारंभे यदि परमसौ दक्षतां लक्षयन्नौ ॥ नोत्प्रेक्षाबहुमानतो न च परस्पर्धासमुल्लासतो नापोंदुद्युतिनिर्मलाय यशसे नो वा कृते संपदः । आवाभ्यामयमादृतः किमु बुधा द्रव्यप्रपंचश्रमः संदर्भातरनिर्मितावनवमप्रज्ञाप्रकर्षश्रिये ॥छ॥ इतिश्रीरामचंद्र-गुणचंद्रविरचितायां स्वोपज्ञद्रव्यालंकारटीकायां तृतीयोऽकंपप्रकाश इति ॥छ॥ संवत् १२०२ सहजिगेन लिखितमिति ॥छ । क्रमाङ्क ३६७ (१) प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञ टीका सह। पत्र १-१११। भा. सं । क. हेमचन्द्राचार्य स्वोपश । (२) परीक्षामुखसूत्र पत्र ११२-११९ । भा. सं. । (३) सर्वज्ञसिद्धि पत्र १२०-१३९ । भा. सं.। क. हरिभद्रसूरि । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष। द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४२।। पत्र १३८ मुं नथी । आदि-॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय। लक्ष्मीभृद्वीतरागः क्षतमतिरखिलार्थज्ञताश्लिष्टमूर्तिः Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ३७१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ३६८ रत्ना करावतारिका पत्र २६१। भा. सं.। क. रत्नप्रभाचार्य । ले. सं. १२२५। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १८४२॥ अन्त ॥ संवत् १२२५ वर्षे कात्तिक शुदि ७ बुधे अद्येह श्रीवटपद्रके पंडितप्रभाकरगणिनाऽऽत्मार्थे रत्नाकरावतारिकापुस्तकं लिखापितमिति ॥छ।। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥शांतिर्भवतु ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ। क्रमाङ्क ३६९ प्रमालक्ष्मलक्षणसटीक पत्र २७२ । भा. सं.। क. बुद्धिसागरसूरि । ले.सं. १२०१। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४२॥ भन्त छव्वाससएहिं नउत्तरेहिं तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स । कंबलियाणं दिट्ठी वलहिपुरीए समुप्पन्ना ॥छ।। तस्मान्नाय मोक्षावहः पंथा इति । तथा च किं जातमित्याह ॥ श्रीबुद्धिसागर ताकरणं कृतम् । अस्माभिस्तु प्रमालक्ष्म वृद्धिमायातु सांप्रतम् ॥ श्रीबुद्धिसागराचार्यः पाणिनि-चंद्र-जैनेन्द्र-विश्रांत-दुर्गटीकामवलोक्य वृत्तबंधैर्धातुसूत्रगणोणादि वृत्तबंधैः कृतं व्याकरणं संस्कृतशब्द-प्राकृतशब्दसिद्धये । अस्माभिस्तु प्रमालक्ष्मलक्षणम् अत एव पूर्वाचार्यगौरवदर्शनार्थ वार्तिकरूपेण । तत्रापि स्वाभिप्रायनिवेदनार्थ बृत्तिकरणेन च । ततः किम् ? वृद्धिमायातु सांप्रतमधुनेति ॥ छ ॥छ।।छ।। मंगलं महाश्रीः ॥छ। संवत् १२०१ माह वदि ८ बृहस्पति लिखितेति ॥ सोपनाया क्रमाङ्क ३७० धर्मोत्तरटिप्पनक पत्र ९४ । भा. सं.। क. आचार्य मल्लवादी। ग्रं. १३०० । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी उत्तरार्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १५४१॥.। पत्र ८७ थी ९३ नथी। आदि-५०॥ॐ नमो वीतरागाय ॥ प्रणिपत्य जिना [धीशान् ].......... [श्री]न्यायबिन्दुटीकायाः क्रियते टिप्पनकं (नं) मया ॥१॥ इह हि शिष्टाः क्वचिदिष्टे वस्तुनि प्रवर्त्तमानाः शिष्टसमयपरिपालनाय विघ्नविनायकोपशान्तये चेष्टाभीष्टाधिकृतदेवतानां मध्येऽन्यतरस्या एकस्या अपि नमस्कारपुरस्सरमेव प्रवर्तन्ते। ततश्च धर्मोत्तरन्यायबिन्दुप्रकरणविकरणनिवेशितान्तःकरणः सन्निष्टदेवतास्तवमाह जयन्तीत्यादि । ___ इति धर्मोत्तरटिप्पनके श्रीमालवाद्याचार्यकृते तृतीयपरिच्छेदः समाप्तः ॥छ॥ ग्रन्थानं १३०० ॥छ।। मंगलं महाश्रीः ॥ॐ॥ क्रमाङ्क ३७१ धर्मोत्तरटिप्पनक पत्र ७७। भा. सं.। क. आचार्य मालवादी। नं. १३००। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्ध । संह. जीर्ण। द. श्रेष्ठ । पत्र १-४, ६, ७, ३०, ४४, ५४, ७५ नथी। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्रमाङ्क ३७२ वार्त्तिकवृत्ति पत्र १५५ । भा. सं. । क. शांतिसूरि । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२१४१ ।।। । अंतनां ५ पत्र अति जीर्ण छे । क्रमाङ्क ३७३ सर्वसिद्धांत प्रवेश (षड्दर्शनसमुच्चय जेवो गद्य ग्रंथ) पत्र १७ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. जीर्ण । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२ ॥ ४१ ॥ आदि - द० ॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ सर्वभावप्रणेतारं प्रणिपत्य जिनेश्वरम् । वक्ष्ये सर्ववि (र्वाधि ?) गमेषु यदिष्टं तत्त्वलक्षणम् ॥१॥ सर्वदर्शनेषु प्रमाणप्रमेयसमुच्चयप्रदर्शनायेदमपदिश्यते – नैयायिकदर्शने तावत् प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितंडा हेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानान्निःश्रेयसाधिगमः । अन्त-इति लौकायतिकानां सङ्क्षेपतः प्रमाणप्रमेयस्वरूपम् । इति लोकायतराद्धान्तः समाप्तः ॥ छ ॥ नैयायिकवैशेषिक - जैन- सांख्य-बौद्ध-मीमांसक-लोकायतिकमतानि सङ्क्षेपतः समाप्तानि ॥ छ ॥ [ क्र. ३७२ क्रमाङ्क ३७४ संह. न्यायप्रवेश पत्र ११ । भा. सं. । क. आचार्य दिङ्नाग | ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी । श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १३१४१ ॥ क्रमाङ्क ३७५ (१) न्यायप्रवेशसूत्र पत्र १-१७। भा. सं.। क. दिङ्नाग । (२) सर्वसिद्धांत प्रवेश पत्र १७-४१ । भा.सं : (३) न्यायप्रवेशटीका पत्र ४२ - १३४ । भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्र । ले. सं. १२०१ । ग्रं. ५९७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४१ ॥ अन्त न्यायप्रवेशकं यद् व्याख्यायावाप्तमिह मया पुण्यम् । न्यायाधिगमसुखरसं लभतां भव्यो जनस्तेन ॥ छ ॥ कृतिः श्वेताम्बर श्रीहरिभद्राचार्यकृतन्याय प्रवेशप्रवेशकटीका समाप्तेति ॥ छ ॥ छ ॥ ग्रंथ ५९७ ॥ संवत् १२०१ वर्षे माघमासीयचरमशकले तुरीयतिथौ तिमिरासहनवासरे भृगुकच्छस्थितिमता पण्डितेन यशसा सहितेन धवलेन पुस्तिकेम लेखि ॥ क्रमाङ्क ३७६ (१) न्याय बिंदु (लघुधर्मोत्तरसूत्र ) पत्र । भा. सं. । क. आचार्य धर्मकीर्ति । (२) "" टीका पत्र ८१ । भा. सं. । क. आचार्य धर्मोत्तरपाद । ग्रं. १४७७ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । क्रमाङ्क ३७७ तत्व संग्रह सूत्र पत्र १८७ । क. शान्तरक्षित । भा. सं. । ग्रं. ३९९७ । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६ ॥ ४२॥ । पत्र १८६ मुं नथी । क्रमाङ्क ३७८ तत्व संग्रहपंजिकावृत्ति पत्र ३१३ । भा. सं । क. आचार्य कमलशील । ले सं. अनु. १२ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ । लं. प. २५ ॥ ४२ ॥ पत्र ६१, ११३, ३०२, ३११ नथी । Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३८३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १६१ क्रमाङ्क ३७९ म्यायकंदलीटीका पत्र २८९ । भा. सं.। क. श्रीधर भट्ट । र. सं. शाके ९१३ । ग्रं. ३७१६ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. १४॥४२॥ क्रमाङ्क ३८० न्यायकंदलीटीका पत्र २३९ । भा. सं। क. श्रीधर भट्ट । र. सं. शाके ९१३। ग्रं. ३७१६ । ले सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४।४२ क्रमाङ्क ३८१ (१) न्यायकंदलीटिप्पनक पत्र १-१६४। भा. सं.। क. नरचंद्रसूरि मलधारी। अन्त ॥ इति श्रीमलधारिशिष्यपंडितश्रीनरचंद्रकृतौ कंद लीटिप्पनके समवायः पदार्थः समाप्तः ॥छ।। प्रथ्वीधरः सकलतर्कवितर्कसीमा धीमान् जगौ यदिह कंदलीकारहस्यम् । व्यक्तीकृतं तदखिलं स्मृतिबीजबोधप्रारोहणाय नरचंद्रमुनीश्वरेण ॥ समाप्तमिदं कंदलीटिप्पनकम् ॥ मंगलं महाश्री ॥छ॥श्रीः॥ (२) न्यायावतारटिप्पनक पत्र १६५-२३० । भा. सं । क. मलधारी देवभद्रसूरि हर्षपुरीयगच्छ । ले. सं. अनु. १४८९ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४।४२. । [ धरणाक लेखित ] । - अन्त अक्षामधाम्नोऽभयदेवसूरे नोरिवोज्जृम्भितभव्यपद्मात् । अभूत्ततो हर्षपुरीयगच्छे श्रीहेमचन्द्रप्रभुरंशुराशिः ॥१॥ जीयात्तणीकृतजगत्रितयो महिम्ना श्रीचन्द्रसूरिरिति शिष्यमणिस्तदीयः ।। क्षीरोदविभ्रमयशःपटलेन येन शुभ्रीकृता दश दिशो मलधारिणाऽपि ॥२॥ शैशवेऽभ्यस्यता तक रति तव वाञ्छता । तस्य शिष्यलवेनेदं चक्रे किमपि टिप्पनम् ॥३॥ न्यायावतारविवृतौ विषमं विभज्य किञ्चिन्मया यदिह पुण्यमवापि शुद्धम् । सन्त्यज्य मोहमखिलं भुवि शश्वदेव भट्टैकभूमिरमुनाऽस्तु समस्तलोकः ॥४॥छ।। इति न्यायावतारटिप्पनकं समाप्तम् ॥छ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥श्री॥छ। संवत् १४८९ वर्षे श्रावण शुदि त्रयोदश्यां तिथौ लिखितम् ॥छ॥श्री॥ क्रमाङ्क ३८२ न्यायपातिक पत्र २-१५५। भा. सं.। क. उद्योतकर । ले. सं. अनु. १४मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२४२१.। वचमां वचमां थईने लगभग अ?अर्ध पानां नथी।। क्रमाङ्क ३८३ (१) प्रशस्तपादभाष्य पदार्थधर्मसंग्रह अपूर्ण पत्र २३ । भा. सं. । क. प्रशस्तपाद । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२ (२) न्यायकन्दलीटीका अपूर्ण पत्र ८७ । भा. सं. । क. श्रीधर भट्ट । र. सं. शाके ९१३ । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२.। पत्र ८५ मुं नथी। २१ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्रमाङ्क ३८४ खंडनखंडखाद्यशिष्यहितैषिणीवृत्ति टिप्पणीयुक्त पत्र १८१ । भा. सं.। ग्रं. ७०२५ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी अंत । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६ ॥ ४२१ । प्रति शुद्ध छे । खंडनखंडखाद्य पत्र २६१ । भा. न्यायमंजरी ग्रंथिभंग पत्र संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. लं. प. १४४२ अन्त--- ॥ इति श्रीश्रीहर्षकृतावनिर्वचनीय सर्वस्वे खंडनखंडखाये तुरीयः संकीर्णपरिच्छेदः समाप्तः ॥ छ ॥ । संवत् १२९१ वर्षे श्रावण वद बुधे पुस्तिका लिखितेति भद्रम् ॥ छ ॥ ७ क्रमाङ्क ३८५ सं. । क. श्रीहर्ष । ले. सं. १२९१ । संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ । [ क्र. ३८४ पत्र २ ५, १०, ३३, ३४, १०२, ११५, १२२, १३१, १३३, १३५, १३६, १३९, १७०, १७२, १७८, १८१ नथी । आदि -॥ नमः शिवाय ॥ नमोऽनवसितासक्तचित्क्रियाशक्तिसंपदे । विष्णवे त्रिजगध्यापिपरमाश्चर्यमूर्तये ॥ संकल्पितफलावाप्तिकल्पपादपमंजरीम् । स्वान्ततापतमस्सां... दकां नौमि चंडिकाम् ॥ मधुरासु प्रसन्नासु ग्रंथयोऽतिरसास्वपि । जयन्तोक्तिषु दृश्यन्ते क्वचिदिक्षुलतास्विव ॥ सुकुमाराशयाः केचित्संति तभंगविक्लवाः । अतस्तेभ्यो व्यधत्ते... श्रीशंकरात्मजः ॥ प्राप्य चक्रधरचक्रमिव सर्वविदः श्रुतम् । शशांकधरतोऽमेद्यग्रंथिमेदाहितोद्यमः ॥ क्रमाङ्क ३८६ १८६ | भा. सं. 1 क. चक्रधर । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी पूर्वार्ध । १३।४२ ॥ पत्र ७९, ८०, १८५, १८६ मां शोभनो छे । आदि अन्त 'सति वेदाङ्गत्वेन व्याकरणात् प्रमाणभूतादर्थनिश्चये वेदस्याप्रतिपादकत्वाभावात् प्रामाण्यम् । सति च तत्प्रामाण्ये तदंगत्वेन व्याकरणप्रामाण्यमिति यदितरेतराश्रयं तत् कुतस्त्यम् । भोगिमतश्रुतसंगिभिः भोगी शेषः तन्मतं महाभाष्यं तच्छतेन संगशीला ये भर्तृहरिप्रभृतयः आर्या इति भद्रम् ॥ भट्टश्रीशंकरात्मज चक्रधरकृते न्यायमंजरीग्रंथिभंगे षष्ठमाह्निकं समाप्तम् ॥ छ ॥ ॥ॐ ॥ जयत्येकशराघातविदारितपुरत्रयः । धनुर्द्धराणां धौरेयः पिनाकी भुवनत्रये ॥ छ ॥ क्रमाङ्क ३८७ (१) शावर भाष्य प्रथम अध्याय पत्र ५१ । भा. सं. । - द ० ॥ नमः सर्वज्ञाय || अथातो धर्मजिज्ञासा । लोके येष्वर्थेषु प्रसिद्धानि पदानि तानि सति सम्भवे तदर्थान्येव सूत्रेष्वित्यवगन्तव्यम् । नाध्याहारादिभिरेष्यकल्पनीयोऽर्थः परिभाषितव्यो वा । एवं वेदवाक्यान्येभिर्विचार्यन्ते । इतरथा वेदवाक्यानि च व्यारेष्ठयानि (?) स्वपदार्थाश्च व्याख्येयास्तद्यत्र रौरवं प्रसज्येत । तत्र लोकेऽयमथशब्दो वृत्तादनन्तरस्य प्रक्रियार्थे दृष्टः, न किञ्चिदिह वृत्तमुपलभ्यते, भवितव्यं तु तेन, यस्मिन् सत्यनन्तरं धर्मजिज्ञासा च कल्पते । अन्त कथं वनस्पतयः सर्पा वा सत्रमासीरन्निति, उच्यते, विनियुक्त हि दृश्यते परस्परेण सम्बन्धार्थ ज्योतिष्टोम Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३८७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १६३ इत्यभिधाय कर्तव्यः इत्युच्यते । केनेत्याकाङ्क्षिते सोमेनेति । किमर्थमिति स्वर्गायेति । कथमिति चेत्थमिति । एवमवगच्छन्तः पदार्थैरभिसम्भूतं पिण्डितं वाक्यार्थे कथमुन्मत्तवाक्यसदृशमिति वक्ष्यामः । नन्वनुपपन्नमिदं दृश्यते वनस्पतयः सत्रमासतेत्येवमादिनाऽनेनानुपपन्नेनाग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकाम इत्येवमाद्याः उपपन्नाः स्युः । अपि च वनस्पतयः सत्रमासतेत्येवमाद्यापि नाऽनुपपन्नाः, स्तुतयो येताः सत्रस्य, वनस्पतयोऽपि नानाचेतनाः इदं समुपासितवन्तः कि पुनर्विद्वांसो ब्राह्मणा इति, तद्यथा, लोके सन्ध्यायां मृगा अपि न चरन्ति किं पुनः, ब्राह्मणाः इति । अपि चाविगीतः सुहृदुपदेशः कथमिवाशङ्क्यतोन्मत्तबालवाक्यसदृश इति तस्माच्चोदना लक्षणो धर्म इति ॥ ॥ प्रथमस्य प्रथमः पादः समाप्तः ॥ छ ॥ श्रेयोऽस्तु ॥ (२) प्रमाणान्तर्भाव पत्र ५१- ९७ । भा. सं. । क. देवभद्र तथा यशोदेव । ले. सं. १११४ । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प १२॥॥४२॥ आदि- -पत्र ५१ यस्य प्रज्ञाप्रकाशः कवलयति जगच्चक्रमेवाकलङ्कः, सत्त्वार्थ वा विधातुं यदपर उदयी नासमर्थोऽकलङ्कः । तन्नत्वा स्वार्थसम्पत्सुहितमनुपमो मजुवाग् यो न दीनः, प्रत्यक्षं वाऽनुमा घे (वे ) त्यत उदितमिदं येन तुल्यो नदीनः ॥ प्रत्यक्षं चानुमानं च प्रमाणमिदमेव हि । प्रमाणसंप्लवायोगात् प्रमेयद्वयसङ्गतेः ॥ शब्दादिकं प्रमाणं हि भ्रान्तिमात्रात्तदन्यथा । प्रमाणलक्षणायोगात् प्रमाणाभं वहिः स्थितेः ॥ पत्र ६४-६५ मां इत्यर्थिसङ्गिव्यवहार सिद्धं शाब्दं निजाथऽनुतिप्रथसि (प्रया से ) । बाह्ये तु नैवास्य परं प्रमाणं यथाकथञ्चिज्जगतामिहाssस्था ॥ प्रमाणान्तर्भावे शाब्दः । प्रमाणान्तर्भावे शाब्दप्रमाणान्तर्भावः प्रथमः परिच्छेदः ॥ छ ॥ उपमाऽपि प्रमा कैश्विदिष्यते न्यक्षबुद्धिभिः । सादृश्येन परिच्छेदः परोक्षेऽर्थे न तां विना ॥ सादृश्यस्य च वस्तुत्वं न शक्यमपबाधितुम् । भूयोऽवयवसामान्ययोगो जात्यन्तरस्य तत् ॥ उपमाऽपि हि सादृश्ये परोक्षे वित्तिरीक्ष्यते । नानुमालक्षणं तत्र प्रथमं सदृशमहात् ॥ पत्र ७१ मां इत्यनिन्द्य विधिना निरूपितं नोपमानमनुमानतः परम् । एवमन्यदपि तेन गीयता प्रज्ञया नहि स दृश्यतेऽधिकः ॥ उपमानान्तर्भावो द्वितीयः परिच्छेदः ॥ छ ॥ प्रमाणबद्द्वविज्ञातो यत्रार्थो नान्यथाभवन् । अदृष्टं कल्पयेदन्यं साऽर्थापत्तिरुदाहृता ॥ ननु दृष्टः श्रुतो वाऽर्थ इति भाष्यकृतो वचः । तत्कथं दृष्टिमात्रेण साऽर्थापत्तिर्निरूपिता । अग्रे कृत्वा स नियमममुं संयमं वत्सकं तं पूता शान्तिः सुरभिरभितो लिप्सुना वत्सलोच्चैः । दुग्धा स्निग्धं मधुरमधिकं ज्ञानदुग्धं...मुग्धं, येनानूनं जिनपतिमिनं नाभिसूनुं प्रणम्य ॥१॥ पत्र ८२ या तन्त्रमन्त्रजडधीर्न विवेकभाजि तत्त्वे प्रवर्तनमुपैति न मे कथञ्चित् । अन्धस्य तस्य न जातु मतेविंशेषस्तस्य स्खलद्गतिनिवत्तेनमेतदस्तु ॥ प्रमाणान्तर्गतौ तृतीयोऽर्थापत्तिपरिच्छेदः ॥ छ ॥ प्रमाणान्तरभावोऽपि भाष्यकृत्प्रतिपादितः । अभावोऽपि प्रमाभावो नास्तीत्येतद् विनिश्वये ॥ अर्थस्यासन्निकृष्टस्य तथा चाह कुमारिलः । भाष्यकारोक्तमेवार्थमुपपत्त्योपदर्शयन् ॥ प्रमाणपंचकं यत्र वस्तुरूपे न जायते । वस्तुसत्तावबोधार्थ तत्र ( त्रा ) भावप्रमाणता ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ पत्र ९६, ९७ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ प्रतीतिसंस्पर्शितया प्रबन्धात् । इत्यद्भुताभावनिराक्रियेयं विपरीत्य फल्गु स्फुरितं परेषां सदर्थनीतेरयमेव सारः ॥ छ ॥ प्रमाणान्तर्भावः समाप्तः ॥ छ ॥ श्रीदेवानन्दगच्छान्वयशिशिरकरे काशिभव्यारविन्दे, सूरावुद्योतनाख्ये प्रतपति तपने वादिकुमुदा ( कुन्दा) वलीनाम् । हारीज्ये सानुभावा समभवदमला साधुकूलवाणी, वन्या विद्यारविन्दस्थितचरणयुगा सद्यशोवर्द्धनाख्या ॥१॥ तत्पुत्रौ साधुशिष्य गुरुपरिचरणप्राप्तबुद्धी विबोद्धुं ज्येष्ठोऽसौ देवभद्रोऽपरलघुकवयाः सद्यशोदेवनामा | एनामुन्नाम्यमानां कतिपयरचनां बौद्धमीमांसकानां व्यालेखिष्टां विशिष्टां निजगुरुपदवीमीप्समानौ प्रतीताम् ॥२॥६॥ सं. ११९४ भाद्रपदे ॥ छ ॥ [ क्र. ३८८ प्रकीर्णकपत्रे श्लोकत्रयमधिकम् - पादाः पापावसादा विदलितदुरिताः सन्तु सन्तानवृद्धि, कर्त्तारः कीर्त्तिवल्लीवलयपरिपुषः सद्यशोवर्द्धनानाम् । येषां पुण्यप्रसादैरुपचितमतयो मादृशा मन्दमेधा, अप्येते सम्भवन्ति त्वरितकवियशोदेवलक्ष्मीभृतस्ते ॥३॥ बुद्धिर्बोधे विशुद्धा विनयिनि विहित.... .. आदेयं कर्मकान्तं कविसदसि लसत्साधुवादं सदैव । वाणी व्यापारसिद्धिः समधिकगुणिना साधुसन्तानवृद्धिः, .. ... जगति गुरुः सद्यशोवर्द्धनानाम् ॥४॥ पूत्तिः सर्वमनोरथस्य लसिता धूर्तिर्महाव्यापदां, गूर्त्तिगौरवकारिणी गुणगणे जूतिदीनवे । तूर्ति. चूतिर्द्विषत् सन्ततेर्मूत्तिः संस्मृतिमीयुषी हि भवतामस्मासु लक्ष्मीपुषाम् ॥५॥ क्रमाङ्क ३८८ (१) इष्टसिद्धि वृत्ति सह अपूर्ण पत्र ८९ । भा. सं. । क. परमहंस विमुक्तात्माचार्य स्वोपज्ञ । आदि-ॐ स्वस्ति ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ याऽनुभूतिरजाऽमेयाऽनन्ताऽऽत्मानन्दविग्रहा । महदादिजगन्मायाचित्रभित्तिं नमामि ताम् ॥ इष्टानिष्टाप्तिहानीच्छोस्तत्सिद्धिर्यदृशा श्रुतेः । तं मां नत्वेष्टसिद्ध्यर्थे विवृणोम्यात्मसदृशे ॥ येति स्वतः प्रसिद्धतां द्योतयत्यनुभूतेः, अनुभाव्यत्वे घटादिवदननुभूतित्वप्रसङ्गात् । न च स्वतः प्रसिद्धस्य प्रागभावादयस्स्वतोऽन्यतो वाऽभिव्यत्त्यतोजा । अतो स्थानान्येऽपि भावविकाशः जन्मादित्वात्तेषाम् । चेत्यानां च न चिद्धर्मत्वं रूपादिवत् । अतोऽमेया नास्यामेयो धर्मोऽप्यस्तीत्यर्थः । अतोऽनन्ताः, तस्यापि मेयत्वे तद्धर्मत्वादमेयत्वेप्यनन्यत्वान्न तद्वत्ता, चितः कालतस्तावदानन्त्यं सिद्धं जन्माभावात् । अत एव देशतोऽधस्ततोऽपि अन्यथा घटादिवज्जन्मप्रसङ्गात् । नह्यजं विभाग्यस्ति । नाणूनां चाजत्वम् । रूपादिमत्त्वाद् घटादिवत् । न चानंशत्वं समस्तदिक्सम्बन्धात् । मध्ये - ब्रह्मेति सिद्धं कर्मोपासनादिवाक्यानां चाविद्यावत् कल्पितेष्टानिष्टप्राप्तिपरिहारोपायज्ञापकानामविद्यावत् छायामेव प्रत्यक्षादीनामिवाबोधाबोधात् स्वप्नवत् छायामिव प्रामाण्यमिति । न वेदान्तवेद्यवस्तुविरुद्धरूपवस्तु संस्यतेत्यात्मैव सम्यक्प्रमाणवस्तु नान्यत् किञ्चिदिति स्थितम् ॥ छ ॥ श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाव्ययात्मपूज्यपादशिष्यविमुक्तात्माचार्यस्य कृताविष्टसिद्धौ प्रथमोऽध्यायस्समाप्तः ॥ छ ॥ छ ॥ (२) भगवद्गीता भाष्य सह पत्र १३० । भा. सं. भा. क. शंकरस्वामी । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी अंत । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २४॥४२ । । पत्र १२९ - १३० मां शोभन छे । Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६५ क्र. ३९२ ] जैन साडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ३८९ गौतमीयन्यायसूत्रवृत्ति पत्र १२४ । भा. सं.। ले.सं. १२०८। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १४४२।। पत्र १२३ मां शोभन छ । आदि-ॐ नमः सर्वज्ञाय । __एवं किलात्र शब्द्यते। यदशक्यानुष्ठानोपायोपदेशकं तदशक्यार्थकम् । यथा ज्वरहरतक्षकचूडारत्नालङ्कारोपदेशक वचनं तादृशं चेदं शास्त्रमिति ।..................न तावदर्थे प्रतिपत्तिः प्रवृत्तिहेतुः, अपि तु तदर्थजातीयश्रेयोहेतुतामसकृदुपलभ्य सम्प्रत्युपलभ्यमानस्यार्थस्य तज्जातीयतया श्रेयोहेतुभावानुमानसहितो विनिश्चयः प्रवृत्तिहेतुः, सेयं श्रेयःसाधनतानुमानसहिता प्रमाणतोऽर्थप्रतिपत्तेर्विनिश्चितः समर्थप्रवृत्तिनिमित्तमुक्ता। न चार्थविनिश्चयः प्रामाण्यावधारणमन्तरेण, प्रामाण्यावधारणं चार्थश्रेयोहेतुतानुमाननिमित्तव्याप्तिग्रहणं च न समर्थी प्रवृत्ति विना । अन्त परमाणुवियती द्विधा घटबुद्धी इव द्वेधा ॥छ॥ संवत् १२०८ वैशाख वदि ३ बुधे। यादृशं पुस्तकं दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ क्रमाङ्क ३९० भाष्यवात्तिकवृत्तिविवरणपंजिका द्वितीयाध्यायथी पंचमाध्याय पर्यन्त पत्र ११७। भा. सं. । क. अनिरुद्ध पंडित । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १३॥४१॥ आदि ॥९॥ ॐ नमः शिवाय ॥ स्यादेतत्प्रथमाध्याये प्रमाणादयः पदार्था उद्दिष्टाः, यथोद्देशञ्च सजातीयव्यावृत्ता लक्षणतोऽधिगतास्तत्किमपरमवशिष्यते यदर्थ द्वितीयाद्यध्यायत्रयमारभ्यत इत्यत आह वार्तिककारः।। त्रविध्येत्यादि । अन्तपण्डितश्रीअनिरुद्धविरचितायां भाष्यवार्तिकटीकाविवरणपंजिकार्या पंचमोऽध्यायः समाप्तः।। शुभमस्तु ॥छ। ___ क्रमाङ्क ३९१ (१) सांख्यसप्ततिकाभाष्य पत्र १२-८३। भा. सं। क. गौडपाद । ले. सं. १२००। पत्र-३६-४०. ४२, ४३, ४५-४७, ४९, ६६-७५, ८२ नथी. अन्त सांख्यं कपिलमुनिप्रोक्तं संसारमुक्तिकारण, यत्र सप्ततिरार्यामूलसूत्रमेतद् भाष्यं गौडपादकृतं इति ॥ संवत् १२०० श्रावणवदि ८ गुरौ अद्येह श्रीमूलनारायणदेवीयमठावस्थितपरमभागवततपोधनिकश्रीऋषिमुनींद्रशिष्यस्य मध्यदेशरत्नाकरकौस्तुभस्य परमार्थविदः श्रीसल्हणमुनेराज्ञया पण्डितधारादित्येन सांख्यसप्ततिभाष्यपुस्तकं . लिखितमिति मंगलं । (२) सांख्यसप्ततिकाटीका-सांख्यतत्त्वकौमुदी पत्र ९०-१८४ ( ७..९१)। भा. सं.। क. वाचस्पतिमिश्र । पत्र ९३, ९४, ९६-९८, १०१-१०४, १०७, १०९, ११६-१३० नथी । (३) सांख्यसप्ततिका पत्र ९। भा. सं.। क. ईश्वरकृष्ण। आर्या. ७२। ले. सं. [१२०० । संह. श्रेष्ट । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४२ । क्रमाङ्क ३९२ (१) सांख्यसप्ततिका पत्र । भा. सं.। क. ईश्वरकृष्ण । आर्या....७२ । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૬૬ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ (२) सांख्यसप्ततिकाटीका - सांख्यतत्त्वकौमुदी पत्र १ ८० । क. वाचस्पतिमिश्र । पत्र ८० मां शोभन छे. (३) सांख्यसप्ततिकाभाष्य पत्र १-७० । भा. सं. क. गौडपाद । ग्रं. ८५५ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प १२॥४२ क्रमाङ्क ३९३ सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह पत्र ८९ । भा. सं. । ग्रं. १३०० । ले. सं. ११७६ । संह. श्रेष्ठ | द. श्रेष्ठ । लं. प. १२ ॥ ४१ ॥ । पत्र ५७, ५८, ६० - ६३, ६६-७४, ७६-७९ नथी. आदि [ क्र. ३९३ दुःखत्रयाभिघाताज्जिज्ञासा तदपघातके हेतौ । दृष्टे साsपार्था चेत् नैकान्तात्यन्ततोऽभावात् ॥१॥ अस्या आर्याया उपोद्धात इत्यत्र कपिलो नाम भगवान् महर्षिः तस्योत्पन्नशरीरः, तस्योत्पद्यमानस्य सकाशाच्चत्वारो भावाः सहोत्पन्नाः धर्मो ज्ञानं विरागमैश्वर्यमिति । तेनाऽऽत्मगतेन ज्ञानेन स भगवानिदं जगदन्धे तमसि वत्तमानं ददर्श । | तदा कारुण्यादुत्पन्नम् - अहो खल्विदं जगदन्धे तमसि वर्त्तते संसारपारम्पर्येणेति उत्पन्नकारुण्यः ब्राह्मणविशेष वर्षसहस्रयायिनं अन्तर्हितो गत्वोवाच भो आसुरे ! रमसे गृहस्थधर्मे । ' अस्मि' स तमुवाच आसुरिः - रमे भोः ! । स एवमुक्तो निर्जगाम । भूयो वर्षसहस्रे पूर्णे प्रत्यागम्य स तमुवाच भो आसुरे! रमसे गृहस्थ ? इति । तं प्रत्युवाचासुरिः - रमे भोः ! स भगवान् ततो निर्जगाम । भूयो [sपि ] तृतीये वर्षसहस्रे पूर्णे प्रत्यागम्य स तमुवाच - आसुरे ! रमसे गृहस्थधर्मे इति । तमुवाच भगवन्तं कपिलमासुरिः-न रमे भोः ! । तथोक्तो भगवता - उत्सहसे ब्रह्मचर्यं कर्तुमिति । तं प्रत्युवाचाssसुरि:- बाढमित्थमिति । स एवं गृहस्थधर्म परित्यज्य कपिलस्य शिष्यो बभूव । तत्र कश्चिद् ब्रूयात् कुतस्तस्य जिज्ञासा समुत्पन्ना आसुरिसगोत्रस्य ब्राह्मणविशेषस्य ? यया जिज्ञासया गृहस्थधर्म परित्यज्य गुरुमभिगत इति । अत्रोच्यते - " दुःखत्रयाभिघाताजिज्ञासा" । अन्त शिष्यपरम्परयागत ईश्वरकृष्णेन चैतदार्याभिः । संक्षिप्तमार्यमतिना सम्यग् विज्ञाय सिद्धान्तम् ॥ अत्र शिष्यपरम्परयाऽऽगत इत्यत्र कपिलादासुरिं प्राप्तः, आसुरेरपि पंचशिखम्, पञ्चशिखाद् गार्ग्यम्, खूकचंचलिप्रभृतीनां शतं तेभ्य ईश्वरकृष्णेन एतद् ज्ञानमार्याभिः आर्याणां सप्ततिः प्रमाणं दुःखत्रयाभिघातादित्येवमादि । एतत् पवित्रमित्येवंप्रमाणं सप्ततिः कृत्वा एभिरार्याभिः संक्षिप्तमार्यमतिना । आर्या मतिर्यस्य स भवत्यार्यमतिः, भावितमतिनेत्यर्थः । सम्यग् विज्ञाय सिद्धान्तमिति ॥ सांख्यवृत्तिः समाप्ता ॥ छ ॥ ग्रन्थानं प्रन्थमानेन श्लोक १३०० ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ संवत् ११७६ ॥ क्रमाङ्क ३९४ सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह पत्र १०२ । भा. शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. आदि - ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ कपिलाय नमस्तस्मै येनाविद्योदधौ जगति मग्ने । कारुण्यात् साङ्ख्यमयी नौरिव वहिता प्रतरणाय ॥ दुःखत्रयाभिघाताज्जिज्ञासा तदपघातके हेतौ । दृष्टे साऽपर्या चेन्नैकान्तात्यन्ततो भावात् ॥ छ ॥ सं. । मू. क. ईश्वरकृष्ण । ले सं. अनु. १२ मी १२९१ । । अंत्य पत्रमां शोभन छे । अस्यामार्यायामुपोद्धात उच्यते-इह हि भगवान् महर्षिः कपिलो नाम बभूव । तस्योत्पद्यमानस्याकस्माच्चत्वारो भावाः समुत्पन्नाः- धर्मो ज्ञानं वैराग्यमैश्वर्यमिति । स तेनात्मज्ञानेन सहोत्पन्नज्ञानो भगवानिदं जगदन्धे तमसि वर्त्तमानं ददर्श । तद् दृष्ट्वा तस्य कारुण्यमुत्पन्नम् -- अहो खल्विदं जगदन्धे तमसि वर्त्तते संसारपारम्पर्ये - Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३९५] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र णेति । स एवमुत्पन्नकारुण्यो भगवान् महर्षिश्चिन्तयितुमारब्धः-कथं मयाऽस्यान्धस्य जगतोऽनुग्रहः कर्तव्य इति । एवं विचिन्त्यासुरिसगोत्रब्राह्मणविशेषं वर्षसहस्रयायिनं दृष्ट्वाऽन्तर्हितो भूत्वा वाचमुवाच-भो भो आसुरे रमसे गृहस्थधर्मेणेति। स तमुवाच-रमेऽहं भोः । स एवमुक्तो निर्जगाम । भूयोऽपि द्वितीयवर्षसहस्रे पूर्णे प्रत्यागम्योवाच-भो भो आसुरे रमसे गृहस्थधर्मेणेति। स तमुवाच-रमेऽहं भोः। तत् श्रुत्वा पुनः स भगवान् निर्जगाम । भूयोऽपि तृतीयवर्षसहस्रे पूर्णे प्रत्यागम्योवाच-भो भो आसुरे ! रमसे गृहस्थधर्मेण ? । स तमुवाचन भो रमेऽहम् । स तेनोक्तः किं भूत्वाऽब्रबीत्-दुःखत्रयाभिघातादिति । ततः स तेनोक्तो भगवता-उत्सहसे ब्रह्मचर्यवासं वस्तुमिति । तदमीषां दुःखानां नि...............मुपदेश्यामः । सोऽब्रवी...............क्त इति । स एवं गृहस्थधर्म परित्यज्य पुत्रदारांश्च प्रवजितो भगवतः कपिलस्य शिष्यो बभूव। तत्र यदि कश्चिद् ब्रयात्-कुतोऽस्य जिज्ञासा समुत्पन्ना यया जिज्ञासया गुरुकुलमभिगत इति। तस्यैव वक्तव्यम्-दुःखत्रयाभिघाताद् जिज्ञासेति। तत्र दुःखानां त्रयं दुःखत्रयम्, त्रीणि वा दुःखानि दुःखत्रयम् , दुःखत्रये अभिघातो दुःखत्रयाभिघातस्तस्मात् दुःखत्रयाभिघाताजिज्ञासा समुत्पन्ना। ज्ञातुमिच्छा जिज्ञासा, यथा पातुमिच्छा पिपासा सोऽर्थः । किमिह परलोके याथातथ्यं कि निःश्रेयसं किं कृत्वा कृतार्थतामेतीति मत्वा गुरुकुलमभिगत इति । अन्त शिष्यपरम्परयागतमीश्वरकृष्णेन चैतदार्याभिः । संक्षिप्तमार्यमतिना सम्यग विज्ञाय सिद्धान्तम् ॥७२॥ शिष्यपरम्परयागतमिति। कपिलादासुरिणा प्राप्तम् , आसुरेः पञ्चशिषेन, पञ्चशिखाद् भार्गवोलूकवाल्मीकिहारीतप्रभृतीनां गतम्, ततस्तेभ्यः ईश्वरकृष्णेन प्राप्तम् । तेनेदं षष्टितन्त्रमार्याभिः संक्षिप्तमार्यमतिना विस्तीर्णमतिना सम्यग विज्ञाय सिद्धान्त कार्यकारणसिद्धस्य शरीरस्यान्तो न पुनर्भावो मोक्ष इति तत् सिद्धान्तं षष्टितन्त्रमिति |॥७३॥ सप्तत्या किल येऽस्तेिऽर्था कृत्स्नस्य षष्टितन्त्रस्य । आख्यायिकाविरहिता परवादविवर्जिताश्चेति ॥७३॥ ये षष्टितन्त्रे पदार्था अभिहितास्ते सप्तत्या व्याख्याताः कथितास्तदुच्यते ॥ पञ्च विपर्यय...भ...............परार्थमन्यत्वमथो निवति । योगो वियोगि पुमांस: स्थितिः झरीरस्य च शेषवृत्तिः ॥ तत्र मेदानां परिमाणादित्येभिः पञ्चभिरर्थी । तेहेतुभिः प्रधानस्यास्तित्वमेकत्वमथार्थत्वं सिद्धम् । सङ्घातपरार्थत्वादिति परार्थता सिद्धा । तद्विपरीतस्तथा च पुमानिति प्रधानपुरुषयोरन्यत्वं सिद्धम् । रागस्य दर्शयितेति निवृत्तिः सिद्धा। पुरुषस्य दर्शनार्थमिति संयोगः सिद्धः। प्राप्तशरीरभेद इति वियोगः सिद्धः । जन्ममरणकरणानामिति पुरुषत्वबहुत्वं सिद्धम् । चक्रभ्रमवदिति शेषवृत्तिसिद्धः । एकषष्टिपदार्थाः षष्टितन्त्रे, सप्तत्यामप्येतदेव । किश्चान्यत्आख्यायिकाविरहिता स्थापनाया शिष्यायस्तद्यथा परवादविवर्जिताश्चेति परेण संवादाः परवादास्ते वर्जिताः परवादविवर्जिताश्चेति। परिसमाप्तिमित्यत्राह । कथमेतत् कल्पग्रन्थ शास्त्रं कृत्स्नार्थवाचकं भवतीत्यत्रोच्यते ॥७३॥ तस्मात् समासदृष्टं शास्त्रमिदं नार्थतश्च परिहीणम् । तन्त्रस्य बृहत्सूत्रे दर्पणसक्रान्तिमिव बिम्बम् ॥छ॥ यस्मात् षष्टितन्त्रमिति हेतुः समासदृष्टं संक्षेपतो ग्रन्थितमित्यर्थः । शास्त्रमिति शास्त्रं तीर्थोदकमहबलं कर्ता भोक्ता भोज्यो मोक्षश्चिन्त्यते । अथवा दुःखानां शास्त्रवच्छास्त्रमिति इदं इमां सप्तति दर्शयति । नार्थतश्च परिहीणम् । तेन प्रतिषेधः । अर्थ इति षष्ठीप......परिहीणमित्यर्थः । तन्त्रस्य बृहन्मूतॊ दर्पणसङ्क्रान्तमिव बिम्बम् । यथा खल्वेति दर्पणे महतो रूपस्य व्यक्तिरूपेणा.....................शास्त्रे कृत्स्नस्य षष्टितन्त्रस्याभिव्यक्तं भवतीति समाप्ताऽऽचार्येश्वरकृष्णप्रोक्तायाः साङ्ख्यसप्तत्या वृत्तिः। कृतिराचार्यम......स्येति ॥छ॥ साङ्ख्यसप्ततिवृत्तिः ॥छ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ। क्रमाङ्क ३९५ (१) पातंजलयोगदर्शनभाष्य वृत्ति पत्र १-१६० । भा. सं. । वृ. क. वाचस्पतिमिश्र। . Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. ३९६(२) पातंजलयोगदर्शनभाष्य किंचिदपूर्ण पत्र १६१-२१७=५७ । भा. सं. । भा. क. व्यासर्षि । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२॥ पत्र १, ३४, ६६, ६७-७३ ८५, ९५, १०५, १२५, १२६, १३०, १३३, १३६-१४०, १४३, १४४, १४९, १५२, १६६, १८०, १८२, १८९, १९२, १९३, २०५, २०७, २११, २१२ नथी । क्रमाङ्क ३९६ (१) सुपार्श्वनाथ चरित्र (सुपासनाह चरिय) गाथाबद्ध। भा. प्रा.। लं. प. ३१॥४२१. । पत्र अस्तव्यस्त अने टुकडा थएल छ । (२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र अने वृत्ति जीर्ण अस्तव्यस्त पानां (३) कल्पलघुभाष्य पत्र १५ त्रूटक-अपूर्ण । (४) कल्पचूर्णि पत्र ६ जूटक पानां । क्रमाङ्क ३९७ (१) प्रत्यंगिरास्तोत्र संपूर्ण पत्र ४-७। भा. सं.। का. २५। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध। लं. प. १५४२।। आदि-स्तोत्रं गोत्रभिदादिकैरपि सुरै. (२) सुभाषितषट्पंचाशिका पत्र १२ । भा. सं.। का. ५६ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध। लं. प. १३॥४१॥ (३) भक्तामरस्तोत्र पत्र ५। भा. सं. । क. मानतुंगसूरि। का. ४४ । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वाद्ध। लं. प. १३॥४१॥ (४) श्वानशकुनावलि पत्र ३। भा. सं.। ग्रं. ३७। ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । लं. प. १३॥४१॥ (५) श्रावक विध्युपदेश पत्र २। भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । लं. प. १३॥४१॥ आदि भो भो महाणुभावा ! अच्चतं भवविरत्तचित्तेहि । तुब्भेहि पढमसत्तट्रिएहि परिचितियव्वमिणं ॥ अन्त हियबुद्धीए अम्हेहि तु संसारसुहविरत्ताण । एसुबएसो दिन्नो जं जाणह तं करिजासु ॥छ। (६) ज्ञाननमस्कार पत्र १७४ मुं । भा. प्रा. । गा. ७ । आदि-साणंद सुरासुरराय. (७) ज्ञानस्तोत्र पत्र १७४-१७५ । भा. प्रा.। गा. ६ । आदि-अट्ठावीसवियप्पं (८) ज्ञानलवणादिवृत्तानि पत्र १७५-१७६ । भा. सं । का. १३ । आदि-ऊप्फुल्लफुल्लरसलुद्धभमंतभूरिभिंगावलिविहियगेयरवाभिरामा । (९) ज्ञानपरिधापनिकावृत्त पत्र १७६ मुं । भा. सं. । का. २ । (१०) पञ्चक्खाण पत्र १७७-१७८ । Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ४०३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (११) गृहप्रतिमास्नात्रविधि पत्र १७८ मुं । का० ३ । आदि - मीनकुरंगमदागुरुसारं सारसुगंधिनिशाकरतारम् । (१२) सर्वजिनस्तोत्र पत्र १७८ मुं । भा. प्रा. । गा. ६ । ले. सं. उत्तरार्द्ध । लं. प. १३४२। मादि (- जय जय तिहुयणसामिय | जय जय जियरागरोसमयमोह !। क्रमाङ्क ३९८ अर्थशास्त्रवृत्ति पत्र १२ - ८८ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । लं. प. १३।।४१।।। । आ प्रतिनां छूटक छूटक बधां मळीने ३२ पानां छे । क्रमाङ्क ३९९ शृंगारमंजरी पत्र ३ ( पत्र ३९, ९७, १५५ ) । भा. सं. । क. महाराजा भोजदेव । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११।।।४२ क्रमाङ्क ४०० (१) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण- सार्द्धशतकप्रकरण पत्र ११ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १५१ । ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११।४२। पत्र २जुं नथी । (२) श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण पत्र ८ । भा. प्रा. । क. हरिभद्रसूरि । गा. ७७ । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥ ४२ (३) श्रावकविधिप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा. । गा. २२ । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी उत्तराई । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४२ (४) ॐकारपंचाशिका अपूर्ण पत्र ५ । ग्रं. श्लोक ३९ पर्यन्त । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४२ (५) सुभाषितपद्यसंग्रह पत्र ३ । भा. सं. १२ १६९ अनु. १५ मी शताब्दी क्रमाङ्क ४०१ दशवैकालिकलघुवृत्ति अपूर्ण पत्र २५२ । भा. सं.। क. सुमतिसूरि । ले. सं. अनु. १४ मी शताब्दी प्रारंभ । संह. जीर्णप्राय । द. मध्यम । लं. प. १५४१ ॥ । आ प्रतिमां वचमां वचमां बर्धा मळीने अर्धा उपरांत पानां नथी । क्रमाङ्क ४०३ उपमितभव प्रपंचाकथाप्रतित्रिकपुष्पिकात्रिक आदि । ० (१) प्रथमप्रतिपुष्पिका ले. सं. १३०५ क्रमाङ्क ४०२ तिलकमंजरी कतिचित् अतिजीर्ण अने टूकडा थएलां पानां । भा. सं. । क. धनपाल । ले. सं. [११३० श्री. डा० दलाल] संह. अतिजीर्ण । द. श्रेष्ठ । लं. प. २२x२ परस्परपरिस्यूतनयगोचरचारिणी । अनेकान्तामृतं दुग्धे यद्गवी तं जिनं स्तुमः ॥१॥ अस्त्यस्ताघः पूर्णराजप्रसादाद् वृद्धि प्राप्तः सुस्थितश्रीनदीनः । श्रीश्रीमालो नाम वंशो विशालवित्रं जाडयानाश्रयोऽपारिजातः ॥ २ ॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MO [क्र. ४०३ श्रोजेसलमेरुदुर्गस्थ पेशेऽत्र तेजोगुणवृत्तशाली मुक्तामणिः पाल्हणठक्कुरोऽभूत् । रामाभिरामश्चरितेन सीतादेवीधवत्वेन च यश्चकासे ॥३॥ .........सनजैत्रसिंहस्तदङ्गजः ठक्कुरजैत्रसिंहः । श्रीदेहिनीव स्फुटगेहनीतिज्ञा गेहिनी जाल्हणदेविरस्य ॥४॥ तत्सूनुरायो रणसिंहनामधेयो जगत्सिह इति द्वितीयः । भाभ्यां रदाभ्यामिव हस्तिराजो विराजते ठक्कुरजैत्रसिंहः ॥५॥ श्रीचन्द्रप्रभसूरिंगच्छविभवक्षीरोदचन्द्रोदयः, पूज्यश्रीगुरुधर्मघोषगणभृवंशावतंसध्वजः । श्रीचक्रेश्वरसूरि......कुलोद्योतप्रदीपः पदे, पूर्वाद्रौ दिवसेश्वरः सुमतिसिंहाचार्यचूडामणेः ॥६॥ नृपसभासु कृताखिलदिग्जयः प्रबलवादिमरट्टविघट्टनः । विविधदेशविहारपरायणोऽजनि कुलप्रभसूरिरिह प्रभुः ॥७॥ तत्पट्टलक्ष्मीतिलकानुकारः प्रणाशिताशेषमहाविकारः । ज्ञानादिकानध्यगुणौघभूरिरजायत श्रीमहसेनसूरिः ॥८॥ तत्पष्टपूर्वाचलचूलिकावचूलायमानो जयताज्जगत्याः । प्रबोधनः श्रीजयसेनसूरिसूरश्चिरं दूरमपास्ततेजाः ॥९॥ ततब तदेव सारं सारं हि सप्तक्षेश्यां यदुप्यते। कुन्तस्य नवहस्तस्य सारमय्यं यदुच्यते ॥१०॥ दालिई दोहग्गं कुजाइ-कुसरीर-कुमइ-कुगईओ। अवमाण-रोग-सोगा न हुति जिणबिबकारीणं ॥११॥ ज्ञानावारकमोहसङ्गतनिरन्ताणुक्षये जायते, श्रीसामायिकदण्डकोक्तिसमये केत्यक्षरोच्चारणा । एकस्यापि तदक्षरस्य महते पुण्याय दानं ततो, यस्त लेखयते ददाति गुरवे तत्पुण्यमानं कुतः ॥१२॥ - दीपः सद्गतिमार्गस्य तृतीय नेत्रमागमः । सद्गुरूणां मुखाम्भोजात् श्रुत्वैवं देशनागिरः ॥१३॥ माणिक्यपाटकपुरस्फुरदालवाले श्रीवीरसद्मसुकृत द्रुममूलकन्दः । आरोपितः पितुरनीयत येन वृद्धि खेलायते यदुपरि ध्वजपल्लवोऽयम् ॥१४॥ उपमितभवप्रपञ्चं लेखितवरभूरिपुस्तकः स कथाम् । बाणखगुणैकवर्षे १३०५ स्वस्य च पत्न्याश्च पुण्याय ॥१५॥ अलीलिखज्जैत्रसिंहः श्रीजयसेनसूरयः। व्याख्युः प्रशस्ति चक्रेऽस्या महीतिलकपण्डितः ॥१६॥ तमःपुजं यावद्विकिरति करैरम्बरमणिः शशी यावज्ज्योत्स्नालहरिभिरभिप्लावयति च । स्फुरत्तारापुष्पप्रकररचना खेलति नभोऽङ्गणे यावत्तावज्जयतु भुवने पुस्तकमिदम् ॥१७॥ संवत् १३०५ वर्षेठ. पाल्हणसुत ठ. जैत्रसिहेन श्रीउपमितभवप्रपंचाप्रतिरलेखि। शुभमस्तु ॥छ॥ (२) द्वितीयप्रतिपुष्पिका ले. सं. १३०५ ..........ग्रणीः स्यात् ॥१२॥ हप्टे बिम्बे साक्षाजिनो गृहेऽस्येक्षते समवसरणम् । लोकालोकालोकः श्रुतलेखनया तु केवलविदेव ॥१३॥ महर्द्धिकं श्रुतज्ञानं केवलं तदनन्तरम् । आत्मनश्च परेषां च यस्मात्तदवभासकम् ॥१४॥ रागद्वेषहरो रुषादिव...भूभृत्कुञ्जगते भवारण्ये घोरपरीषहोग्रचरटे स्पर्शादिकिपाकिनि । सन्नद्धाः शिवधाम गन्तुमनसाऽर्हत्सार्थवाहेन ये, यातास्तेन तु यान्ति सम्प्रति पुनः कल्पोपमादागमात् ॥१५॥ पुस्तके वाच्यमाने यत् सम्यक्त्वारोपणादिकम् । श्रोतृणां स्यात्तदंशेन गृह्यते पुस्तकार्पकः ॥१६॥ माल्यं निर्माल्यं स्वल्पतृप्तये भोजनादि स्यात् । क्षणकृतभावा यात्रा श्रुतदान स्थिराय पुण्याय ॥१७॥ अन्नदानात् सुखी नित्यं नीरुगौषधदानतः । ज्ञानदानाद् भवेज्ज्ञानी निर्भयोऽभयदानतः ॥१८॥ ज्ञानावारकमोहसङ्गतनिरन्ताणुक्षये जायते, श्रीसामायिकदण्डकोक्तिसमये केत्यक्षरोच्चारणा। एकस्यापि तदक्षरस्य महते पुण्याय दानं ततो, यस्तं लेखयते ददाति गुरवे तत्पुण्यमानं कुतः ॥१९॥ . ... ... Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का ले. सं.[ १३० अष्ट शता" शिवमस्तु क. ४०३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र दालिरं दोहग्ग-कुजाइ-कुसरीर-कुमइ-कुगईओ। अवमाण-रोग-सोगा न हृति जिणबिम्बकारीण ॥२०॥ दीपः सद्गतिमार्गस्य तृतीयं नेत्रमागमः । सद्गुरूणां मुखाम्भोजात् श्रुत्वैवं देशनागिरः ॥२१॥ माणिक्यपाटकपुरस्फुरदालवाले श्रीवीरसद्मसुकृतद्रुममूलकन्दः । आरोपितः पितुरनीयत येन वृद्धि खेलायते यदुपरि ध्वजपल्लवोऽयम् ॥२२॥ उपमितभवप्रपञ्चां लेखितवरभूरिपुस्तकः स कथाम् । बाणखगुणैकवर्षे १३०५ स्वस्य च पत्न्याश्च पुण्याय ॥२३॥ अलीलिखज्जैत्रसिंहः श्रीजयसेनसूरयः। व्याख्युः प्रशस्ति चक्रेऽस्या महीतिलकपण्डितः ॥२४॥ तमःपुजं यावद् विकिरति करैरम्बरमणिः, शशी यावज्ज्योत्स्नालहरिभिरभिप्लावयति च । स्फुरत्तारापुष्पप्रकररचना खेलति नभोऽङ्गणे यावत्तावज्जयतु भुवने पुस्तकमिदम् ॥२५॥ संवत् १३०५ वर्षे ठ. पाल्हण सुत ठ. जैत्रसिंहेन श्रीउपमितभवप्रपञ्चाकथापुस्तक लेखयाञ्चके । शुभं भवतु श्रीचतुर्विधश्रमणसंघस्य ॥छ॥छ। (३) तृतीयप्रतिपुष्पिका ले. सं.[ १३०५ ? ] ९. ॥ शिवमस्तु ॥छ। एवं प्रत्यक्षरगणनया सर्वग्रंथाग्रंथ जातानि त्रयोदश सहस्राणि अष्टषष्टयधिकानि अष्ट शतानि च । अङ्कतोऽपि १३८६८ ॥छ। परस्परपरिस्यूतनयगोचरचारिणी । अनेकान्तामृतं दुग्धे यद्गवी तं जिनं स्तुमः ॥१॥ अस्त्यस्ताघः पूर्णराजप्रसादाद् वृद्धि प्राप्तः सुस्थितश्रीनदीनः । श्रीश्रीमालो नाम वंशो विशालश्चित्रं जाड्यानाश्रयोऽपारिजातः ॥२॥ वंशे तस्मिन्नुदयनसुत........ ......बिभ्रद् गुणमनुपमं यः सुवृत्तः सुतेजास्तस्थौ केषां नहि हृदि जलच्छायया किन्तु मुक्तः ॥३॥ श्रीदेवी तद्भार्या पद्मपरीक्षकसुता विरेजे या। निजवंश......... ..........॥४॥ ..........ये गवीश्रिया विवये। कलहंसकगामितया भातो नालीकगेहतया ॥५॥ भीमसिहोऽथ विक्रमसिंहो विजयसिंहकः । तथाऽऽहादनसिंहाख्य....... ..........॥६॥ ............. । तनयैस्तथा चतुर्भिांति श्रीदेवसिंहोऽयम् ॥७॥ श्रीचन्द्रप्रभसूरिगच्छविभवक्षीरोदचन्द्रोदयः, पूज्यश्रीगुरुधर्मघोषगणभृवंशावतंसध्वजः । श्री चक्रेश्वरसूरि............कुलोद्योतप्रदीपः पदे, पूर्वाद्रौ दिवसेश्वरः सुमतिसिंहाचार्यचूडामणेः ॥८॥ नृपसभासु कृताखिलदिग्जयः प्रबलवादिमरदृविघट्टनः । विविधदेशविहारपरायणोऽजनि कुलप्रभसूरिरिह प्रभुः ॥९॥ तत्पट्टलक्ष्मीतिलकानुकारः प्रणाशिताशेषमहाविकारः । ज्ञानादिकानयगुणौधभूरिरजायत श्रीमहसेनसूरिः ॥१०॥ तत्पट्टपूर्वाचलचूलिकावचूलायमानो जयताज्जगत्याः । प्रबोधनः श्रीजयसेनसूरिसूरश्चिरं दूरमपास्ततेजाः ॥११॥ ततश्च तदेव सारं सारं हि सप्तक्षेत्र्यां यदुप्यते। कुन्तस्य नवहस्तस्य सारमय्यं यदुच्यते ॥१२॥ विशेषतश्चदालिहं दोहग कुजाइ-कुसरीर-कुमइ-कुगईओ। अवमाण-रोग-सोगा न हुँति जिणबिम्बकारीणं ॥१३॥ ..........नेश्वराणाम् । स्वर्गाधिपत्यफलरिद्धिसुखानि भुक्त्वा पश्चादनुतरगति समुपैति धीमान् ॥१४॥ यस्तृणमयीमपि कुटी कुर्याद्दद्यात्तथैकमपि पुष्पम् । भक्त्या परमगुरुभ्यः पुण्योन्मानं कुतस्तस्य? ॥१५॥ ............गृहिणस्तप्तुं तपो न क्षमाश्चित्तान्तेषु न तेषु भावघटना दानं घटेताप्यतः । साफल्याय धनस्य तस्य विषयः क्षेत्राणि सप्तोदितस्तत्राऽपि स्फुटमा...............॥१६॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क. ४०३.......धर्ता नैव जडस्वभावम् । न मूकता बुद्धिविहीनतां च ये लेखयन्तीह जिनस्य वाक्यम् ॥१७॥ ज्ञानत्रये श्रुटिमिते तरणेरिवास्ते छन्ने तमोभिरिह मोक्ष............। ..........ग्रणीः स्यात् ॥१८॥ हष्टे बिम्बे साक्षाज्जिनो गृहेऽस्येक्षते समवसरणम् । लोकालोकालोकः श्रुतलेखनया तु केवलविदेव ॥१९॥ महर्द्धिकं श्रुतज्ञानं केवलं तदनन्तरम् । आत्मनश्च परेषां च यस्मात्तदवभासकम् ॥२०॥ रागद्वेषहरो रुषादिव...भूभृत् कुञ्जगत्तै भवारण्ये घोरपरीषहोग्रचरटे स्पर्शादिकिम्पाकिनी । सन्नद्धाः शिवधाम गन्तुमनसाऽर्हत्सार्थवाहेन ये, यातास्तेन तु यान्ति सम्प्रति पुनः कल्पोपमादागमात् ॥२१॥ पुस्तके वाच्यमाने यत् सम्यक्त्वारोपणादिकम् । श्रोतृणां स्यात्तदेशेन गृह्यते पुस्तकार्पकः ॥२२॥ माल्यं निर्माल्यं स्वल्पतृप्तये भोजनादि स्यात् । क्षणकृतभावा यात्रा श्रुतदानं स्थिराय पुण्याय ॥२३॥ ...........भीतानां तत्प्रतीकारमिच्छताम् । धर्मोपदेशा........................ ॥२४॥ ज्ञानावारकमोहसजतनिरन्ताणुक्षये जायते, श्रीसामायिकदण्डकोक्तिसमये केत्यक्षरोच्चारणा । एकस्यापि तदक्षरस्य महते पुण्याय दानं ततो, यस्तं लेखयते ददाति गुरवे तत्पुण्यमानं कुतः ॥२५॥ दीपः सद्गतिमार्गस्य तृतीयं नेत्रमागमः । सद्गुरूणां मुखाम्भोजात् श्रुत्वैवं देशनागिरः ॥२६॥ श्रीदेवसिंहमन्त्री स्वसुभा............ । ........... .......... ॥२७॥ ..............सङ्ख्ये ॥२८॥ युग्मम् ॥ अस्मिन् ........ ................. । ..................... ... ... ... ... ... ॥२९॥ तमःपुजं यावद्विकिरति करैरम्बरमणिः, शशी यावज्ज्योत्स्नालहरिभिरभिप्लावयति च । स्फुरत्तारापुष्पप्रकररचना खेलति नभोऽङ्गणे यावत्तावज्जयतु भुवने पुस्तकमिदम् ॥३०॥छ॥ (४) प्रकीर्णकपत्रगता पुष्पिका ले. सं. १३४८. .....................पयः। यन्नतिः क्षारसंसारसिन्धौ पीयूषकूपिका ॥१॥ इहाऽऽस्ते निस्तीर्णक्षतिरतिथिसंपर्करुचिमान्न नक्षत्रस्पर्शी न खलु कलयाऽपीप्सितभवः । विदोषः प्राग्वाटान्वय उदयवानस्तविकलः, कुरङ्गाङ्को नै..... ......... .. ॥२॥ ..............शे स्वकीयकुलकासनसुप्रदीपः । श्वेताजनैकरुचिरां सगुणां दशान्तामत्यद्भुतां दधदजायत पूर्णदेवः ॥३॥ अपि च शशिन इव कलकं क्षालितुं कुन्दकान्तिः सवितुरिव निहन्तु तापमेकान्तसीता । विष....... .........म ॥४॥ यशोधनसुता तेन परिणिन्ये प्रिया प्रिया। दयेव जिनधर्मेण सोभना सत्यसोभना ॥५॥ तथाहि वरं वपुःक्लेशमुपेयिवानहं न चापि दन्यं वचसाऽपि दर्शितम् । इति प्रियं सत्त्वमगत्वरव्रतामु............ ................... ॥६॥ ............भिधा । प्रातः सन्ध्येव निस्तन्द्रा प्राची वासरयोरिव ॥७॥ आसाधरस्तनूजश्च प्रद्योतन इवैनयोः । साधुचक्रार्पितानन्द उपर्येव .................. ॥८॥ ...................र्वाहिता, दाने तत्परता गुरौ विनयिता विद्यार्जने लौल्यता । बन्धौ स्नेहलता श्रुतौ चतुरता तीर्थं च वन्दारुता, सन्तोषे सुखितव यस्य स न कि लोकोत्तरः सद्धरः ॥९॥ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ४०३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १७३ .. . . ..... ... भन्यथ वक्त्रं सत्यलतालवालरचना....... कर्णों याचकगी:पयोदविगलद्धारोन्नमच्चातको, पाणिस्त्यागकलाशशी किमपरं यस्याऽखिलाङ्ग गुणि ॥१०॥ भासामती नाम पतिवरा प्रिया तेनोपयेमे पतिवृद्धिशंसिनी । बेलेव दुग्धोदधिना स ................................. ॥११॥ ..................भूत् कालेन देगाभिधः, पुत्रो देवधरश्च देसल इति ख्याता जगहेविका । ज्योत्स्नायाममृतातेरिव जनालोकः प्रमोदः शुचिन्यायः सीतलतेति कार्यपटली विश्वप्रिया स्वैर्गुणैः ॥१२॥ देमतिः स्थिरमति........................ । ......... .........॥१३॥ इति सकलकुटुम्बाडम्बरेणाधिकाभोऽभवदभिसरणीयच्छाययाऽऽशाधरोऽसौ । वरतरुरिव वल्ली वैभवेनावृतात्मा प्रतिजनमुपकारी साधु तैस्तैर्गुणैः स्वैः ॥१४॥ .......... [अत्रान्तरे पत्रं विनष्टम् ] । तुरछानि दुःखमूलानि भवभावसुखानि विरसनिधनानि । पामाकण्डूयनसुखसमानि हेयानि तत्त्वविदाम् ॥२३॥ एकतरुपरितशकुनैः सन्ध्यासमयागतैरिव स्वजनैः । प्रातर्दिक्षु गतेस्तैः संवासः केवलं मोहः ॥२४॥ पापानि यन्निमित्तं कुर्वन्ति जनाश्चलं परायत्तम् । परमार्थतो विचिन्त्यं वपुरपि स्वजनैरशुचिगेहम् ॥२५॥ . सा मूढता किल जरोपरि जर्जराङ्गा यद् भुञ्जतेऽर्थविषयान् स्थिरवस्तुबुद्ध्या ।। शुद्धं विशुद्धमनसां परिहृत्य मनसा (१) कार्य न कार्यमपरं भुवने यतोऽस्ति ॥२६॥ तप्तिर्नास्ति सुखनं चाप्यभिमुखदुःखैर्घनैः खिन्नता, पुंसां मोहविषातचित्तवपुषी सोपक्रमाल्पायुषाम् । लक्ष्मीय वनजीवितादि सकलं यच्च प्रियं प्राणिनि, तत्सर्व क्षणदृष्टनष्टमहहा मोक्षस्य सौख्यं विना ॥२७॥ स्पृहयति सुखानि जीवः सर्वः सर्वत्र वित्तपरिणामः । तत्कारकं न धर्म करोति करुणादिकारणजम् ॥२८॥ गमयति दिनानि जन्तुः प्रमादमदिरामदेन संयुक्तः। सांसारिकसुखकारणमसाधुदेहार्थमभिलषति ॥२९॥ त्राणं न तेन किश्चित् स्वकुर्चकेनेव मरणकालेऽपि । तस्मादवश्यमेव हि सुधर्मकर्मोद्यमः कार्यः ॥३०॥ सच्चारित्रपवित्रचारुचरिताः श्रीभद्रगुप्ताभिधास्तत्पादाम्बुजसेवनकनिरतः श्रीभद्रबाहुप्रभुः। दक्षाः श्रीजिनभद्रसूरय इति तेषां च पट्टे वरस्तत्पादाम्बुजबोधनकतरणिः श्रीहेमभद्राभिधः ॥३१॥ श्रीहेमभद्रसरिभ्यो धर्म श्रुत्वाऽथ नाइकिः । धर्म चकार दानाद्यं भवदुःखौथनाशनम् ॥३२॥ कार्यविदा स चतुर्द्धा धर्मः कार्यः सदैव दानाद्यः। दाने त्रिविधेऽपि परं दातव्यं तच्छृतज्ञानम् ॥३३॥ यतयत समस्तपुरुषार्थसाधनं बोधनं भवनिधानबुद्धीनाम् । तच्छास्ति कथापुस्तकधृतिमिति तल्लेखनं युक्तम् ॥३४॥ इत्यायं भवरूपं च विभाव्य चित्रं यद्धदि । नाइकिर्विमला सप्तक्षेत्राराधनहेतवे ॥३५॥ एवं विभाव्य चित्तेन अपुत्रवृषभप्रभु-चरित्रं लेखयामास स्वपत्युः श्रेयसे वरम् ॥३६॥ प्रयोदशशते जातेऽष्टचत्वारिंशताऽधिके । वैशाखश्वेतपञ्चम्यां वासरे विक्रमान्नृपे ॥३७॥ व्याख्याप्य विस्तरेण श्रीमद्भयो हेमभद्रसूरिभ्यः। भव्यान् प्रबोधाय ददौ प्रभावभावनापूर्वम् ॥३८॥ तिथिश्रीपत्र श्रीसुहृदमुडपुष्पस्तबकितां , वियद्वाटी सन्ध्याकिसलयवती मालिक इव । प्रतिप्रातस्तिग्मद्युतिरिव चिनोति प्रसृमरैः, करर्यावत्ताव भुवि विजयतां पुस्तकमिदम् ॥३९॥ ॥ शुभं भवतु । मङ्गलं महाश्रीः ॥श्रीः॥ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचनो भंडार-जेसलमेर क्रमाङ्क ४०४ योगशास्त्र स्वोपशटीकासह पत्र ३१८। मा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ । ले. सं. १३४३ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. २९४२। अन्त ॥७॥ संवत् १३४३ आषाढ सुदि १ साधु वरदेवसुतेन साधु गुणचंद्र सा० भुवनचंद्रसकलदिग्वलयविख्यातावदातकीर्तिकौमुदीविनिर्जिताम[ल]चंद्र साधु हेमचंद्र-महिपाल सा. रत्न भ्रात्रा सकलगुण.... णेन सा. महणश्रावकेण श्री......जिनप्रबोधसूरिशिघ्यावतंसानां श्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरूणां व्याख्यानाय प्रदत्तं ॥छ॥ क्रमाङ्क ४०५ स्याद्वादरत्नाकर प्रथमखंड पत्र ३७३ । भा. सं.। क. वादी देवसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं. १६०००। ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१४२। क्रमाङ्क ४०६ मनिसुव्रतस्वाभिचरित्र गाथाबद्ध पत्र ३७९ । भा. प्रा. । क. श्रीचंद्रसूरि । गा. १०९९४ । र. सं. ११९३ । ले. सं. ११९८ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. २९॥४२॥ अन्त संवत् ११९८ अश्विन वदि १ गुरौ ॥ अद्येह श्रीमदणहिल्लपाटके समस्तराजावलीसमलंकृतमहाराजाधिराजत्रिभुवनगण्डसिद्धचक्रवर्तिश्रीमज्जयसिंहदेवकल्याणविजयराज्ये। तस्मिन् काले प्रवर्तमाने श्रीश्रीचंद्राचार्याणामादेशेन ऊमताप्रामावस्थितेन ल .....श्रीमुनिसुव्रतस्वामिचरितपुस्तकं लिखितम् । क्रमाङ्क ४०७ (१) पंचकल्पमहाभाष्य पत्र १-१०६ । भा. प्रा.। क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । गा. २५७४। ग्रं. ३२१८ । (२) पंचकल्पचूर्णी पत्र १०७-२०१। भा. प्रा.। ग्रं. ३१२५ । ले. सं. अनु. १३ मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९॥४१॥ अन्त पंचकल्पचूर्णि: समाप्ता ॥छ। ग्रन्थप्रमाणं सहस्रत्रयं शतमेकं पंचविशत्युत्तरं। लिखित श्रीमहानदेवाचार्यकृते पंचकल्पपुस्तकं । अंकतोपि ग्रंथप्रमाणं ३१२५ ॥छ॥ मंगलमस्तु ॥छ॥ क्रमाङ्क ४०८ हरविजयमहाकाव्य पत्र १०७ । भा. सं.। क. रत्नाकरकवि वागीश्वराङ्क। ले. सं. १२२८ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २९४२॥ अन्त __ इति श्रीबालबृहस्पत्यनुजीविनो वागीश्वरांकस्य कवे रत्नाकरस्य कृतौ हरविजये महाकाव्ये देवदेवप्रतिष्ठापनो नाम पंचाशः सर्गः ॥छ॥ श्रीदुर्गदत्तनिजवंशहिमाद्रिसानुगंगाहदोदयसुतामृतभानुसूनुः । रत्नाकरो ललितबंधमिदं व्यधत्त चंद्रावचूलचरितस्रजचारु काव्यम् ।। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ४१२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १७५ स किल कविरेवमुक्तवान्ललितमधुराः सालंकाराः प्रसादमनोरमाः, विकटयमक लेषोदारप्रबंधनिरर्गलाः। असदृशगतीश्चित्रे मागें समुगिरते गिरो, न खलु नृपते!] चेतो वाचस्पतेरपि शंकते ॥ सान्द्रानंदामृतरसपरिस्पंदनिष्यंदिनीनामस्मद्वाचामतिशयजुषां वस्तुतत्त्वाभिधाने । प्रौढा ज्योत्स्ना धवलविकसद्दिग्वधूकर्णपूर .........] ब्रह्मस्तबकयशसां कोऽपि टंकारटकः ॥ नानाकाव्यप्रबंधप्रणिहितमनसः श्रोत्रपेयः कवीनां, भाषापकेऽपि यस्य क्वचिदपि न गता भारती भंगुरत्वम् । प्राप्तझेयावसाईस्फुरदमलतरप्रातिभज्ञानसंपत् , सोऽहं रत्नाकरस्ते सदसि कृतपदः क्षमाप ! वागीश्वरांकः ॥ यस्योदयेऽन्धतमसन्नुदतो विशुद्धिराविर्भवत्यनिशमेव जलाशयानाम् । उग्रस्तवाङ्मयसमुद्रमवैहि राजरत्नाकर सदसि साद्यमगस्त्यमौर्व्यम् ।। इन्धं सत्प्राज्ञकर्यन्न जगति कविभिर्वस्तु नास्तीहि(ह) किचित् , क्षुम्नो क्षुन्नत्वभिन्ना गहनविषयता तस्य दूरेऽस्तु तावत् । तत्संदर्भप्रगल्भप्रसरगुरुगिरामग्रणीर्बाण एको, राजन् ! रत्नाकरश्च ज्वलनवदन नौ जाज्वलीति द्वितीयः ॥ ॥ इति हरविजयं नाम महाकाव्यं समाप्तम् ॥छ॥ ॥ मंगलं महाश्रीः ॥ संवत् १२२८ वैशाख सुदि १ अधेह श्रीमदणहिलपाटकस्थितेन विविधलिपिज्ञेन पंडितसुपटेन लिखितमिति॥ क्रमाङ्क ४०९ वसुदेवहिंडी प्रथमखंड पत्र १५८ । भा. प्रा. । क. संघदासगणि वाचक। ग्रं. ११२०० । ले. सं. [१२२८] । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प २९४२। भन्त तस्स एसा दारिया दायब्व त्ति ॥छ॥ बालयंदालंभो सम्मत्तो॥ॐ॥छ। वसुदेवचरितप्रथमखंड समाप्तम ॥ॐ॥छ। मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ ग्रंथाग्रंथ ११२०० ॥ उ. श्रीक्षमाप्रमोदैर्वाचितं ॥५० लक्ष्मीरंगैर्वाचितं ॥ सं. १८५५ फाल्गुण सुदि २ क्रमाङ्क ४१० (१) दशवकालिकसूत्रचूणि पत्र १८४ । भा. प्रा. । क. स्थविर अगस्त्यसिंहसूरि। (२) नंदीसूत्रचूणि पत्र १८५-२२३ । भा. प्रा.। क. जिनदासगणि महत्तर। र. सं. शाके ५९८ । (३) अनुयोगद्वारसूत्रचूर्णी पत्र २२४-२७५ । भा. प्रा.। क. जिनदासगणि महत्तर । ले.सं. अनु. १३ मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. २५४२॥ क्रमाङ्क ४११ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य अष्टमपर्व-नेमिनाथचरित्र पत्र १६१। भा. सं। क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. अनु. १३मी शताब्दी पूर्वार्द्ध। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०॥४२॥ क्रमाङ्क ४१२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य दशमपर्व-महावीरचरित्र पत्र १७१। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । के. सं. अनु. १३मी शताब्दी पूर्वार्द्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३०॥४२॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [क्र. ४१३क्रमाङ्क ४१३ (१) स्कंदपुराण उत्कलखंडगत पुरुषोत्तम माहात्म्य पूर्वार्द्ध २० मा अध्याय पर्यंत पत्र १-८५ । भा. सं.। ले. सं. अनु. २० मी शताब्दी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ। लं. प. १६४१॥ (२) स्कंदपुराण उत्कलखंडगत पुरुषोत्तममाहात्म्य उत्तरार्द्ध २१ मा अध्यायथी संपूर्ण. पत्र ८६-१६५ । भा. सं. ले. सं. अनु. २० मी शताब्दी । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १६४१॥ अन्त ॥ इति श्रीस्कंदपुराणे चतुरशीतसाहस्र उत्पलखंडे जैमिनिऋषिसंवादे पुरुषोत्तममाहात्म्ये अष्टचत्वारिशत्तमोण्याय : ४८ ।। पुरुषोत्तममाहात्म्यं संपूर्ण ! श्रीकृष्ण रक्षा करिवे नीलकंठ रथकुं ॥ ॥श्रीकृष्णाय नमः ।। क्रमाङ्क ४१४ अंगविज्जा प्रथमखंड ३१ अध्यायपर्यंत पत्र २९९ । भा. प्रा.। ले. सं. १४ मी शताम्बी। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १७१४ २ क्रमाङ्क ४१५ (१) पंचाशकप्रकरण पत्र १-५४ । भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि। गा. १०००। (२) कर्मप्रकृतिसंग्रहणी पत्र ५४-७८ । भा. प्रा. । क. शिवशर्मसूरि । गा. ४७५ । (३) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ पत्र ७८-८३ । भा. प्रा.क. जिनवल्लभगणि। (४) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण-सार्धशतकप्रकरण पत्र ८३-९० । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १५० । (५) बृहत्संग्रहणीप्रकरण पत्र ९१-१२० । भा. प्रा.। क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. ५१४। (६) प्रवचनसंदोह पत्र १२९-१३८ । भा. प्रा. । (७) कर्मस्तवकर्मग्रंथ-प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ पत्र १३९-१४२ । भा. प्रा.। (८) कर्मविपाककर्मग्रंथ-प्राचीन प्रथम कर्मग्रंथ पत्र १४२-१५१ । मा. प्रा.। क. गर्षि । गा. १६६। (९) शतककर्मग्रंथ-प्राचीन पंचम कर्मग्रंथ पत्र १५१-१५६ । भा. प्रा.। क. शिवशर्मसूरि । गा. ११०। (१०) सप्ततिका कर्मग्रंथ-षष्ठ कर्मग्रंथ पत्र १५६-१६१ । भा. प्रा. । (११) भवभावनाप्रकरण पत्र १६२-१९१ । भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचंद्ररि । गा. ५११। ले.सं. १२०६। संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४२॥ संवत् १२०६ कार्तिक शुदि १३ रखो लिखितेति ॥छ॥ शिवमस्तु सर्वसंघस्य ॥छ। मंगलं महावीः॥ उदाहीरलतणयाइ सुद्धसीलंगजलसमिद्धीण । चाहीए रयणप्पहसुगुरूणं पुत्थिया दिन्ना ॥१॥ क्रमाङ्क ४१६ पाक्षिकसूत्र वृत्तिसह पत्र २४० । भा. प्रा. सं. । वृ. क. यशोदेवसूरि । नं. २... र. सं. ११८०। ले.सं. अनु. १४ मी शताब्दी पूर्वाद्ध। संह. श्रेष्ठ । ६. श्रेष्ठ। लं. प. १४४२ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ क. ४२० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्रमाङ्क ४१७ (१) जीतकल्प चूर्णीसहित पत्र १-११६ । भा. प्रा.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । चू. क, सिद्धसेनसूरि। ग्रं. ११०।। (२) जीतकल्पचूर्णीटिप्पनक पत्र ११६-१८७ । भा. स.। क. श्रीचंद्रसूरि। ग्रं. ११२० । र. सं. १२२७ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. १९॥४१॥ क्रमाङ्क ४१८ (१) जीतकल्पसूत्र पत्र १-८ । भा. प्रा. । क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. १०५ । (२) जीतकल्पसूत्र वृत्ति सह पत्र ८-१०१। भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. तिलकाचार्य । ग्रं. १७०० । र. सं. १२७४ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्द्ध । (३) श्राद्धजीतकल्पसूत्र-श्रावकसामाचारी पत्र १०१-१०३ । भा. प्रा.। क. तिलकाचार्य । गा. २० । (४) श्राद्धजीतकल्पसूत्र-श्रावकसामाचारी वृत्ति स्वोपज्ञ पत्र १०३-१०९। भा. सं. । वृ.क. तिलकाचार्य स्वोपज्ञ । ले. सं. अनु. १५ मी शताब्दी उत्तरार्ध । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १९॥४२ क्रमाङ्क ४१९ पांडवचरित्रमहाकाव्य पद्य पत्र २४६ । भा. सं.। क. मलधारी देवप्रभसूरि । ले. सं. १४२९ । संह. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. २०४८.। आ प्रति कागळ उपर लखेली छे। पत्र १ मां भगवान् श्रीनेमिनाथन चित्र छे। पत्र २ मां पांच पांडवो मोक्ष सिधाव्यानुं चित्र छ। पत्र ३ मां अर्धं उखडेलुं सुंदर चित्र छे। पत्र २४६ मा भगवान् श्रीनेमिनाथ अने पांडवचरित्रनुं व्याख्यान करता आचार्य अने व्याख्यान सांभळता चतुर्विध श्रीसंघर्नु अतिसुंदर अने सहज घसाएलु आखा पाना उपर लांबुं चित्र छ। अन्त इति मलधारिश्रीदेवप्रभसूरिविरचिते पांडवचरिते महाकाव्ये बलदेवस्वर्गगमनश्रीमन्नेमिनाथमोक्षगमनपांडवनिर्वाणवर्णनो नामाष्टादशमः सर्गः ॥छ॥ श्रीकोटिकाख्यगणभूमिरहस्य शाखा या मध्यमेति विदिता विटपोपमेऽस्याः । श्रीप्रश्नवाहनकुले सुमनोऽभिरामः ख्यातोऽस्ति गच्छ इह हर्षपुरीयगच्छः ॥१॥ तत्राऽजनि श्रुतसुधांबुधिरिन्दुरोचिःस्पर्धिष्णुकीर्तिविभवोऽभयदेवसूरिः। शान्तात्मनोऽप्यहह निस्पृहचेतसोऽपि यस्य क्रियाऽखिलजगज्जयिनी बभूव ॥२॥ संवत् १४२९ आखाढादिशावर्ण भाद्रवा वदि ६ षष्ठयां तिथौ गुरुदिने श्रीपूर्णिमापक्षीयभट्टारकश्रीअभयदेवसूरिशिष्यैः श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः आत्मपठनार्थ श्रीपाण्डवचरित्रपुस्तकं सद्गुरु श्रीअभयदेवसूरिपुण्यविवर्द्धये पुस्तकं लिखितं लेखयांचके। श्रीचतुर्विधसंघस्य शान्तिर्भवतु । शुभं भवतु । मंगलमस्तु । कल्याणमस्तु लेखकपाठव अक्षरमात्रपदस्वरहीनं वर्णविवर्द्धितवर्जितरेफम्। साधुभिरत्र मम क्षमनीयं कोऽपि न मुह्यति शास्त्रसमुद्रे ॥१॥ चौराद् रक्ष जलाद् रक्ष रक्ष मां श्लथबंधनात् । परहस्ताच्च मां रक्षेत्येवं वदति पुस्तकम् ॥२॥छ॥ क्रमाङ्क ४२० कल्पसूत्र सचित्र रौप्याक्षरी पत्र १६९ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. १२१६ । ले. सं. १५६२ । संह. जीर्णप्राय। द. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥.। आ प्रति कागळ उपर लखेली छे। २३ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ अन्त श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ पज्जोसवणाकप्पो दसासुयक्खंधस्स अट्ठमज्झयणं सम्मत्तं । ग्रन्थानं १२१६ शुभं भवतु ॥ संवत् १५६२ वर्षे चैत्र सुद ७ दिने श्रीउपकेशज्ञातौ मंडोवरासंज्ञायां सा सांगण तद्भार्या बाई कुंअरिनाम्या तयोः पुत्र सा. राजपालसहितया रूपाक्षरैः श्रीकल्पपुस्तिका लिखापिता । प्रदत्ता स्वपित्रोः गुरवे । शुभं भूयात् कल्याणं च । लिखिता जो० बडुआकेन ॥ पत्र २, १९, ४४, ४५, ६०, ६६-७९, ९६, ९७, १००, १११, १२३, १२९, १३२, १४८, १५३, १६८, नथी. [ क्र. ४२१ क्रमाङ्क ४२१ कालिकाचार्यकथा सचित्र रौप्याक्षरी पत्र १५ । भा. प्रा. । क. भावदेवसूरि । गा. १०० । संह. जीर्ण । द. श्रेष्ठ । लं. प. १०१४४ ॥ । आ प्रति कागळ उपर लखेली छे । क्रमाङ्क ४२२ कालिकाचार्यकथा सचित्र गद्यपद्य किंचिदपूर्ण पत्र २१ । श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥४४॥ | कागळ उपर लखेली प्रति । क्रमाङ्क ४२३ प्रकरणपोथी पत्र ९८-४४० । भा. प्रा. सं. अप. । ले सं. अनु १४ शताब्दी | कागळ उपर लखेली । क्रमाङ्क ४२४ देववंदन भाष्यादि प्रकरणसंग्रह पत्र १२० । भा. प्रा. सं । कागळ उपर लखेली प्रति । भा. प्रा. । संह. जीर्ण । द. क्रमाङ्क ४२५ (१) कल्पसूत्र सचित्र पत्र १-११२ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. १२१६ । (२) कालिकाचार्यकथा गद्यपद्य सचित्र पत्र ११३ - १४६ । भा. प्रा. ग्रं. ३६९ । संह मध्यम । द. अतिश्रेष्ठ । आ प्रतिनां चित्रो अतिसुंदरतम अने अतिसुरक्षित छे । आ प्रति कागळ उपर लखेली छे । क्रमाङ्क ४२६ कल्पसूत्र संदेहविषौषधि वृत्ति पत्र १०२ । भा. सं । क. जिनप्रभसूरि । र. सं. १३६४ । ले. सं. १४९७ । संह. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. १२४३ अन्त संवत् १४९७ वर्षे माघ शुदि ५ दिने श्री जिनभद्रसूरीणामुपदेशेन सं. जगपालभार्यया सं. नायकदेश्राविकया निजपुण्यार्थ श्रीसंदेहविषौषधी नाम श्रीपर्युषणाकल्पपंजिका लेखिता । वाच्यमाना चिरं नंयात् ॥ छ ॥ वा. कमलराजगणिभिः संवत् १५१६ वर्षे करूपपुस्तकं इदं वाचितम् ॥ ॥ श्रीगौतमाय नमः ॥ वृक्षवच्चारुशाखायुग् श्रियो वासः पयोजवत् । श्रीमानू केशवंशोऽयं चिरं नंयान्महीतले ॥१॥ तत्र चश्रेष्ठिरंककशाखायां यक्षदेवस्य नन्दनः । अभूत् झांबटकाभिख्यस्तत्सूनुर्धांधलोत्तमः ॥२॥ श्रीगजू - भीमसिंहाख्यावभूतां धांधलांगजौ । गजूकस्य गणदेवो मोक्षदेवस्तथा सुतौ ॥३॥ मेघा - जेसल मोहण - वेडूनामान इति च विख्याताः । गणदेवस्य रसालाश्चत्वारो जज्ञिरे पुत्राः ॥४॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ क्र. ४२६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र जेसलभार्या पूरी तत्पुत्रास्त्रय इमे गुणैः ख्याताः । लक्ष्मीवंतो यशसा भुवनत्रयमंडनप्रवराः ॥५॥ आंबाकः प्रथमस्तत्रापरो जींदाभिधस्तथा। तृतीयो मूलराजाख्यो जातः पुण्यजनाग्रणीः ॥६॥ आंबराजस्य भार्येयं बहुरी तत्सुताविमौ। शिवराज-महीराजौ राणी स्याणी च पुत्रिके ॥७॥ वल्लभा मूलराजस्य माल्हणदेऽभिधा बुधा । सहस्रराजस्तत्सूनुः श्रीदेवगुरुभक्तिभाक् ॥८॥ मोहणभार्या पुंजी चतुरास्तत्सूनवश्च चत्वारः। कीट-पासा-देल्हा-धन्नाः संघाधिपतयोऽमी ॥९॥ कीहटभार्या जाता कपूरी तत्सुताश्च चत्वारः। प्रथमश्चोसभदत्तो धामा-कान्हाख्य-जगमालाः ॥१०॥ सरसति-कउतिगदेव्यौ द्वे भार्ये साधुपासदत्तस्य । वील्हा-विमला बंधू सरस्वतीनंदनौ जातौ ॥११॥ कउतिगदेवीपुत्राः कर्मण-हेमाख्य-ठक्कुराः प्रवराः । देल्हाकस्योत्पन्नौ पुत्रौ जीवंद-कुंपाख्यौ ॥१२॥ आल्ही सुवल्लभा जज्ञे धन्नासंघपतेस्तयोः । जगपालस्तथा नाथू-अमराख्यौ सुता इमे ॥१२॥ धन्यस्य जगपालस्य सती नायकदे प्रिया। सुते चंद्रावली हस्तू इत्याख्ये च मनोहरे ॥१॥ नायकदेश्राविकया गुरुवरजिनभद्रसूरिवचनेन । पुण्यार्थमलेखि तया संदेहविषौषधीग्रंथः ॥२॥ इतश्च आंब्रको भुवि चतुर्दशे शते बाणबाहुमितवत्सरेऽकरोत् १४२५ । देवराजपुरि यात्रयोत्सवं श्रीजिनोदयगुरूपदेशनात् ॥१४॥ उच्चानगर्या यवनाकुलायां यः कारयामास महाप्रतिष्ठाम् । मुनिद्विविद्याप्रमिते १४२७ शुभाब्दे विस्तारतः सूरिजिनोदयास्यैः ॥१५॥ तथा मनुष्यलक्षं यः स्फुटघोटकपेटकम् । शकटानां सहस्राणि मीलयित्वा महाजनम् ॥१६॥ मार्गणानां समस्ताशासर आपूरयन् घनम् । सद्दानधारया वर्षन् मार्ग भाद्रपदाम्बुवत् ॥१७॥ चतुर्दशशते वर्षे षट्त्रिंशदधिके वरे १४३६ । श्रीजिनराजसूरीणां पादाब्जं शिरसा स्पृशन् ॥१८॥ श्रीआंबराज आदाय संघेशपदमुत्तमम् । शत्रुञ्जयोज्जयंतादितीर्थ यात्रा विनिर्ममे ॥१९॥ श्रेष्ठिकीहटधन्नाद्यैर्मातृयुंजीयुतैस्तथा । श्रीशत्रुजय-तारंगा-ऽऽरासणेषु नुता जिनाः ॥२०॥ पुनरस्तोकलोकं यो धनेश्वरमनोहरम् । अत्याडंबरतः संघं विधाय शकटोद्भटम् ॥२१॥ साधर्मिकादिवात्सल्यं कुर्वन् दानं ददन्मुदा। श्रीसंघेशपदं लात्वा श्रीजिनराजसूरियुक् ॥२२॥ चतुर्दशशते वर्ष नंदवेदमितेऽकरोत् १४४९ । यात्रां शत्रुजये तीर्थ रेवते चापि कीहटः ॥२३॥ तथा श्रीकीहटाद्यैश्च पुंजीमातुः सुबांधवैः । मालारोपोत्सवोऽकारि श्रीजिनराजसूरिभिः ॥२४॥ तदा व्रतोत्सवो भावसुदरस्य यतेरपि । चतुर्दशशते वेदबाणप्रमितवत्सरे १४५४ ॥२५॥ धन्ना-धामाभिधानाभ्यां पंचम्युद्यापनं महत् । सागरचंद्रसूरीणामुपदेशात् कृतं वरम् ॥२६॥ इतश्चास्मिन् महादुर्गे चतुर्दशशते मुदा। त्रिसप्ततितमे १४७३ वर्षे सफलीकुर्वता धनम् ॥२७॥ संघाधिपतिना श्रेष्ठिधनराजेन साधुना। मगपालसुताद्यात्मपरिवारयुतेन वै ॥२८॥ सर्वसंघं समाकार्य मानादेशनिवासिनम् । विशिष्टा सुप्रतिष्ठेयं बिंबानां कारितोत्तमा ॥२९॥ एवंविधानि सद्धर्मकार्याणि प्रतिवासरम् । कुर्वाणास्ते चिरं श्राद्धा विजयंते महीतले ॥३०॥ इतश्च श्रीवीरतीर्थकरराजतीर्थ स्वामी सुधर्मा गणभृदू बभूव । तदन्वये चंद्रकुलावतंस उद्योतनः श्रीगुरुवर्द्धमानः ॥३१॥ जिनेश्वरः श्रीजिनचंद्रसूरिः संविग्नभावोऽभयदेवसूरिः। वैरंगिकः श्रीजिनवल्लभोऽपि युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ॥३२n Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ 1 भाग्याधिकः श्रीजिनचंद्रसूरिः क्रियाकठोरो जिनपत्तिसूरिः जिनेश्वरः सूरिरुदारचेता जिनप्रबोधोऽपि तमोऽपनेता ॥ ३३ ॥ प्रभावकः श्रीजिनचंद्रसूरिः सूरिजिनादिः कुशलावसानः । पद्मापदं श्रीजिनपद्मसूरिर्लब्धेर्निधानं जिनलब्धिसूरिः ॥ ३४ ॥ सैद्धांतिक: श्रीजिनचंद्रसूरिजिनोदयः सूरिरभूदभूरिः । ततः परं श्रीजिनराजसूरिर्वाक्चातुरीरंजितदेवसूरिः ॥३५॥ स्वबंधुजीदाभिधमूलराजसंयुक्तसंघाधिप आंवराजः । अलेखयत् पुस्तकमात्ममातृपूरीसुपुण्याय गिराऽथ तेषाम् ॥ ३६ ॥ छ ॥ शुभं भवतु ॥ श्री चतुर्विधसंघस्य ॥ छ ॥ यावन् मेरुर्महीप (पी)ठे यावद्दिवि शशी रविः । वाच्यमानो बुधैस्तावन्नंधात् पुस्तक एषकः ॥३७॥ श्रीरस्तु ॥ छ ॥ संवत् १४९७ वर्षे अश्वयुजि मासि बलक्षपक्षे १० विजयदशम्यां सोमेऽद्येह श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीवैरिसिंहभूभृति राज्यं प्रतिपालयति सति श्रीखरतरगणगगनदिननाथायमानश्री जिनराजसूरिपट्टसारसहकार वनवसतायमानप्रभुश्रीमत् श्रीजिनभद्रसूरीश्वरविजयराज्ये श्रीकल्पपुस्तकप्रशस्तिः समर्थिता ॥ छ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः ॥ श्री ॥ छ ॥ [ क्र. ४०३ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अर्हम् ॥ २ कागळ उपर लखेली प्रतिओ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ खरतरगच्छीय युगप्रधान श्रीजिनभद्रसूरि ज्ञानभंडारस्थित कागळ उपर लखेल ग्रंथोनुं सूचीपत्र पोथी १ ली क्र. १ आचारांगसूत्र पत्र ५-२७ [५ थी २७] । भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी। ग्रं. २५५४ । स्थि. अतिजीर्ण । पं. २१। लं. प. १३॥४५॥.। उंदरे खाधेली अने कपाई गएली छे। क्र. २ आचारांगसूत्रनियुक्ति पत्र ४ [२८ थी ३१] । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. ४०० । पं. २३ । लं. प. १३॥४५॥ । अतिजीर्ण अने कपाई गएली छे।। क्र. ३ आचारांगसूत्रवृत्ति प्रथम खंड पत्र १०३ [३२ थी १३४]। भा. सं.। क. शीलांकाचार्य । ग्रं. ९६६१ । र. सं. गुप्तसंवत् ७७२ । ले.सं. १४८८ । स्थि . जीर्णप्राय । पं. २०। लं. प. १३॥४५॥। प्रथम तस्कंधवृत्त्यात्मक प्रथम खंड । अन्त संवत् १४८८ वर्षे चैत्र सुदि २ भौमदिने श्रीमदणहलपुरपत्तने लिखितम् । शुभं भूयात् लेखकपाठकयोः ॥छ ॥ श्री॥ ___ क्र. ४ आचारांगसूत्रवृत्ति द्वितीय खंड पत्र २७ [१३५ थी १६१] । भा. सं.। क. शीलांकाचार्य। ग्रं. २३३९ । [समग्र टीका ग्रं. १२०००] । र. सं. गुप्त सं. ७७२ । [ले. सं. १४८८] । स्थि . मध्यम । पं. २१। लं. प. १३॥४५॥ । प्रति शोधेली छे । अन्त संवत् १५१७ वर्षे माघ शुक्ल ७ दिने श्रीरादहनगरे श्रीकीर्तिरत्नसूरीन्द्राणां पार्श्व शिष्यधर्मधीरगणिकल्याणचन्द्राभ्यां अर्थतो वाचितोऽयं ग्रन्थः । प्रतिश्चेय ताभ्यां शोधितेति ॥श्रीः॥ क्र. ५ सूत्रकृतांगसूत्र पत्र २२ [१६२ थी १८३] । भा. प्रा. । क. सुधर्मस्वामी। स्थि. जीर्णप्राय । पं. २३ । लं. प. १३॥॥४५॥ । प्रति शुद्ध करेली छे । अन्त पद्मोपमं पत्रपरम्परान्वितं वर्णोज्ज्वलं सूक्तमरन्दसुन्दरम् । मुमुक्षुभृङ्गप्रकरस्य वल्लभं जीयाच्चिरं सूत्रकृदङ्गपुस्तकम् ॥छ॥ क. ६ सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति पत्र ३ [१८४ थी १८६]। भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । गा. २०८ । स्थि . जीर्णप्राय । पं. २१। लं. प. १३॥॥४५॥ क्र. ७ सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति पत्र १३४ [१८७ थी ३२२] । भा. सं. । क. शीलांकाचार्य । ग्रं. १२८५३ । ले. सं. १४८९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१। लं. प. १४४५॥ अन्त- . संवत् १४८९ वर्षे पोष वदि ३ शुक्र श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि शिष्य सुमतिसेन श्रा. तेजा ल.। क्र. ८ स्थानांगसूत्र पत्र ३९ [३२३ थी ३६०] । भा. प्रा. । क. सुधर्मस्वामी। ग्रं. ३७५० । ले. सं. १४८९ स्थि . मध्यम । पं. २१। लं. प. १४४५॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. ९ अन्त ॥सम्मत्तं च द्वाणमिति ॥छ॥ ग्रन्थाग्रं ३७५० प्रतिशुद्धं कृतम् ॥ संवत् १४८९ वर्षे मार्गशीर्ष वदि त्रयोदश्यां रवौ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये श्रीठाणांगसूत्रं भांडागारे लिखितं ॥ क्र. ९स्थानांगसूत्रवृत्ति प्रथम खंड पत्र ६० [३६१ थी ४२०] । भा. सं. । क. अभयदेवसूरि । स्थि. श्रेष्ठ। पं. २१ । लं. प. १४४५॥ क्र.१० स्थानांगसूत्रवृत्ति द्वितीय खंड पत्र ९०४२१ थी ५१०] । भा. .। क. अभयदेवसूरि। ग्रं. १४२५० । र. सं. ११२० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. १४४५॥ क्र.११ समवायांगसूत्र पत्र १७ ५११ थी ५२७] । भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी। ग्रं. १६६७। स्थि . जीर्णप्राय । पं. २१ । लं. प. १४४५॥॥ क्र. १२ समवायांगसूत्रवृत्ति पत्र ३९ [५२८ थी ५६५] । भा. सं.। क. अभयदेवसूरि। ग्रं. ३५७५ । र. सं. ११२० । ले. सं. १४८९ । स्थि . जीर्णप्राय । पं. २१ । लं. प. १३॥४५॥॥ अंत्य पत्रना बे टूकडा छ। अन्त संवत् १४८९ वर्षे माघ वदि १३ त्रयोदश्यां भौमे अद्येह श्रीपत्तनमध्ये श्रीषरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये श्रीभांडागारे श्रीसमवायांगसूत्र-वृत्ती लेखिते । वाच्यमानमिदं चिरं नन्दतात् ॥छ॥ शुभं भवतु ॥ समवायांगवृत्ति प्रतिशुद्धीकृता ॥ क्र. १३ भगवतीसूत्र पत्र १५८ [५६६ थी ७२३] । भा. प्रा. । क. सुधर्मस्वामी। ग्रं. १६००० । ले. सं. १४८९ । स्थि . जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३॥॥४५॥। आदिनां बे पानां टूकडा थएलां छे । संवत् १४८९ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १० दशम्यां शुक्र अद्येह श्रीपत्तने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभाण्डागारे श्रीभगवतीसूत्रं लिखा पितं ॥ ग्रन्थाग्रं १६००० ॥छ॥ राज्ये जेसलमेरुदुर्गनगरे श्रीजैत्रकर्णेशितुः पूज्यश्रीजिनहससूरिषु गणैश्वर्यं दधानेषु च । वर्षेऽष्टाक्षतिथिप्रमे १५५८ भगवतीसिद्धान्त एष प्रगे व्याख्यायां मुनिमेरुवाचकवरैः प्रस्तावितः सोत्सवम् ॥१॥ क्र. १४ भगवतीसूत्रवृत्ति पत्र २०७ [७२४ थी ९३०] । भा. सं.। क. अभयदेवसूरि। ग्रं. १८६१६ । र. सं. ११२८ । ले. सं. १४८८ । स्थि . जीर्णप्राय । पं. २१ । ल. प. १३॥४॥ अन्त स्वस्ति संवत् १४८८ वर्षे वैशाख वदि द्वितीयायां गुरौ श्रीषरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां भाण्डागारे भगवतीवृत्ति लिखिता प्रतिशुद्धीकृता ॥छ॥ शुभं भवतु ॥ ग्रन्थाग्रं १८६१६ ॥ शुभं भूयात् ॥छ॥ १.१५ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पत्र ४७ ६९३१ थी ९७७] भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी। ग्रं. ५४६५। स्थि . सारी। पं. २१ । लं. प. १४४५।। पोथी २ जी __ क्र. १६ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र ४५ [९७८ थी १०२२] । भा. सं.। क. अभयदेवसूरि । र. सं. ११२० । ले. सं. १४८९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. १४४५॥। अन्तनां पानां बे फाटी गयां छे। अन्त स्वस्ति । संवत् १४८९ वर्षे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ गुरुदिने स्वातिनक्षत्रे प्रीतियोगे भट्टारक Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २२] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र प्रभुश्री[जिनमद सूरिपुस्तकभाण्डागारे ज्ञाताधर्मकथांगटीका मंत्रि आसा लिखितं ॥छ॥श्री॥ क्र. १७ उपासकदशांगादि सूत्र पत्र ४३ [१०२३ थी १०६६] । (१) उपासकदशांगसूत्र पत्र १ थी ९ [१०२३ थी १०३२] । भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी । ग्रं. ८१२। (२) अंतकृद्दशांगसूत्र पत्र ९ थी १७ [१०३२ थी १०४०]। भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी । ग्रं. ७९० । ___(३) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र १७ थी १९ [१०४० थी १०४२] । भा. प्रा. । क. सुधर्मस्वामी। ग्रं० १९२। (४) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र १९ थी ३९ [१०४२ थी १०५४] । भा. प्रा. । क. सुधर्मस्वामी। (५) विपाकसूत्रांग पत्र ३२ थी ४३ [१०५५ थी १०६६] । भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी। ग्रं. ११७० । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३॥४५॥ क्र. १८ उपासकदशांगादिपंचांगीसूत्रवृत्ति पत्र ७५ [१०६७ थी ११४२] । (१) उपासकदशांगसूत्रवृत्ति पत्र १ थी ११ [१०६७ थी १०७७] । भा. सं. । क. अभयदेवसूरि । (२) अंतकृद्दशांगसूत्रवृत्ति पत्र ११ थी १५ [१०७७ थी १०८१]। भा. सं. । क. अभयदेवसूरि । (३) अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्रवृत्ति पत्र १५-१६ [१०८१ थी १०८२] । भा. सं.क. अभयदेवसूरि । त्रणेय वृत्तिना ग्रं. १३०० । (४) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रवृत्ति पत्र १६ थी ६६ [१०८२ थी ११३३]। भा. सं.। क. अभयदेवसूरि। (५) विपाकसूत्रवृत्ति पत्र ६६ थी ७५ [११३३ थी ११४२] भा. सं.। क. अभयदेवसूरि । पंचांगीवृत्ति ग्रंथाग्रम् ६४०० । स्थि. जीर्ण । पं. २० थी २६ । लं. प. १४४५॥ क्र. १९ औपपातिकोपांगसूत्र पत्र १२ [११४३ थी ११५४] । भा. प्रा. । ग्रं. ११६७ । स्थि. सारी। पं. २१ । लं. प. १४४५॥ क्र. २० औपपातिकोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ३१ [११५५ थी ११८५] । भा. सं. । क. अभयदेवसूरि। अ. ३१३५। ले. सं. १४८९ । स्थि. सारी। पं. २१ । लं. प. १४४५॥ अन्त संवत् १४८९ वर्षे मार्गशीर्ष शु[दि] तृतीयायां भौमे अद्येह श्रीपत्तनमध्ये भट्टारकश्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये श्रीखरतरगच्छे भाण्डागारे श्रीऔपपातिकसूत्रवृत्ति प्रतिशुद्धा कृता लिखिता ॥ छ ॥ श्री ।। छ । ___ क्र. २१ राजप्रश्नीयोपांगसूत्र पत्र २२ [११८६ थी १२०७] । भा. प्रा.। ग्रं. २०७९ । [ले. सं. अनुमान १५ मा सेका, अन्त्य चरण] । स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १५॥४५॥ अन्त ॥श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिराज्ये लिखितं भाण्डागारे राजप्रश्नीयसूत्रं लिखितं ॥छ॥श्री॥ शुभं भवतु ॥ जिनभद्रसूरि चिरं राज्यं कुरु ॥छ॥श्री॥छ।। क्र. २२ राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ३७ [१२०८ थी १२४४] । भा. सं.। क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ३७०० । ले. सं. १४८९ ! स्थि. जीर्णप्राय । पं. २१ । लं. प. १४४५॥ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. २३ स्वस्ति श्री संवत् १४८९ वर्षे प्रथम आषाढ शुदि ६ बुधे अह श्रीपत्तनमध्ये सर्वदर्शनप्रधानोत्तमजिनानां सर्वेषां मध्ये श्रीश्री शृंगार - हारखरतरगच्छेश श्री जिनभद्रसूरीश्वरविजयराज्ये भाण्डागारे राजप्रश्नीयोपांगवृत्तिः प्रतिशुद्धा कृता ॥ क्र. २३ जीवाभिगमोपांगसूत्र पत्र ४८ [१२४५ थी १२९२] । भा. प्रा. । ग्रं. ४७०० । स्थि. सारी । पं. २५ । लं. प. १४४५ ।।। क्र. २४ जीवाभिगमोपांगसूत्रवृत्ति पत्र १३० [१२९३ थी १४२२ ] । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४८९ । स्थि. सारी । पं. २२ । लं. प. १४४५।।। अन्त ૮૪ अन्त संवत् १४८९ वर्षे चैत्र शुदि प्रतिपत्तिथौ रविवासरे अयेह श्रीपत्तनमध्ये श्रीषरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये श्रीभाण्डागारे श्रीजीवाभिगमटीका लिखिता प्रतिशुद्धा कृता । वाच्यमाना चिरं नन्दतात् ॥ छ ॥ क्र. २५ प्रज्ञापनोपांगसूत्र पत्र ८३ [१४२३ थी १५०५ ] । भा. प्रा. । क. श्यामाचार्य । ग्रं. ७७८७ । ले. सं १४८९ । स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १४४५ ।।। अन्त प्रत्यक्षरगणनया अनुष्टुपच्छन्दसा मानमिदं ग्रन्थसंख्या ७७८७ ॥छ । संवत् १४८९ वर्षे वैशाख शुदि ११ गुरौ लिखितं || || श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये भाण्डागारे पण्णवणासूत्रं सुमतिसेनगणिना लिखापितं ॥ छ ॥ पण्णवणासूत्रं प्रतिशुद्धं कृतं ॥ क्र. २६ प्रज्ञापनोपांगसूत्रवृत्ति पत्र १४४ [ १५०६ श्री १६५० ] । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४८९ । स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १३ ॥ ॥ ४५ ॥ ॥ अन्त स्वस्ति संवत् १४८९ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १३ त्रयोदश्यां रखौ अद्येह श्रीपत्तने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां भांडागारे प्रज्ञापनावृत्तिलिंषिता ॥ छ ॥ यावलवणसमुद्रो यावन्नक्षत्रमण्डितो मेरुः । यावच्चन्द्रादित्यौ तावदिदं पुस्तकं जयतु ॥ || शुभं भवतु श्रीसंघस्य ॥ छ ॥ क्र. २७ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र ४६ [ १६५१ थी १६९६ ] । भा. प्रा. । ग्रं. ४४५४ ले. सं. अनु. १५ शताब्दी अन्त्य चरण । स्थि. सारी । पं. २० । लं. प. १४४५॥ अन्त श्रीजेसलमेरुपुरे स्कन्दाननजलधिरसशशि १६४६ मिताब्दे । श्री भीमभूपराज्ये विजयिषु जिनचन्द्रसूरिषु च ॥१॥ श्री पुण्यसागरमहोपाध्यायविनेयपद्मराजेन । संशोधितमिह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रमिदम् ॥२॥ पुस्तकमिदमतिकूटं विशोधितं स्युस्तथापि कूटानि । तान्यपनेयानि जवाद् वाचयता विबुधवृन्देन ॥३॥ क्र. २८ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्रचूर्णी पत्र १६ [१६९७-१७१२] । भा. प्रा. । ग्रं. १८६० । ले. सं. १४८९ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. २३ । लं. प. १३ ।।। ४५ ।।। अन्त - जंबुद्दीवकरणाणं चूर्पिण सम्मत्ता || || प्रथा शनौ श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणां जयः ॥ १८६० || श्री || संवत् १४८९ वर्षे भाद्रपद वदि ११ क्र. २९ चंद्रप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र १७ [१७१३ - १४२९] । भा. प्रा. । ग्रं. २००० । स्थि. जीर्ण । पं. २५ । लं. प. १३ ।। ४५ ।। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १८५ क्र. ३० चंद्रप्रशतिउपांग सूत्रवृत्ति पत्र ९६ [१७३०- १८२५] । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । अं. ९५०० । ले. सं. १४८९ । स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १३ ॥ ॥ ४५ ॥ क्र. अन्त - संवत् १४८९ वर्षे अश्विनमासे शुक्लपक्षे अष्टम्यां वारशुक्रे श्रीमत् अणल्हपुरे लिखितं ॥ क्र. ३१ (१) निर्यावलिकाउपांगसूत्र पत्र १२ [१८२६ - १८३७] । भा. प्रा. । ग्रं. ११०९ । (२) निरयावलिकाउपांगसूत्रवृत्ति पत्र १२ – १९ [ १८३७ - १८४४ ] । भा. सं. । क. श्रीचंद्रसूरि । नं. ६३७। स्थि. जीर्ण । पं. २३ । लं. प. १३ ॥ ५५ ॥ पोथी ३ जी क्र. ३२ बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति-लघुभाष्य - वृत्तिसह प्रथमखंड पत्र १७१ [१८४५ - २०१५]। भा. प्रा. सं. 1 मू. तथा नि. क. भद्रबाहुस्वामि । लघुभा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. आचार्य मलयगिरि तथा क्षेमकीर्ति । र. सं. १३३२ | ले. सं. १४८८ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३ ।।५।।। अन्त - इति श्रीकल्प प्रथमखंड पुस्तकं ॥ छ ॥ छ ॥ इदं पूर्वखंडं प्रतिशुद्धं कृतं ॥ छ ॥ संवत् १४८८ वर्षे वैशाख शुदि २ गुरौ । क्र. ३३ बृद्दत्कल्पसूत्र निर्युक्ति-लघुभाष्य-वृत्तिसह द्वितीयखंड पत्र १२८ [२०१६ - २१४६]। भा. प्रा. सं. भू. तथा नि. क. भद्रबाहुस्वामि । लघुभा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. आचार्य क्षेमकीर्ति । र. सं. १३३२ । ग्रं. १४१६० । स्थि. जीर्ण । पं. २३ । लं. प. १३॥४५॥ क्र. ३४ बृहत्कल्पसूत्र निर्युक्ति-लघुभाष्य-वृत्तिसह तृतीयखंड पत्र १२२ [२१४७ - २२६८]। भा. प्रा. सं.। भू. तथा नि. क. भद्रबाहुस्वामि । लघुभा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. आचार्य क्षेमकीर्ति । ग्रं. ९५५१ | ले. सं. १४८८ । स्थि. जीर्ण । पं. २५ । लं. प. १३ ॥ ४५॥ अन्त स्वस्ति संवत् १४८८ वर्षे प्रथम आषाढ वदि ३ सोमेऽद्येह श्रीपत्तने खरतरगच्छे भट्टारकप्रभुश्रीजिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये भांडागारे श्रीबृहत्कल्पटीकायां तृतीयखंड समाप्तं । प्रतिशुद्धं कृतं ॥ छ ॥ क्र. ३५ आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति पत्र ३३ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामि । ग्रं. ३१०० । ले. सं. १४८७ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३॥ ४५ ॥ ॥ अन्त संवत् १४८७ वर्षे चैत्र सुदि १४ भौमदिने पुस्तिका लषिता ॥ आवश्यकसूत्रं प्रतिशुद्धं कृतं ॥ शुभं भवतु ॥ क्र. ३६ आवश्यकसूत्रलघुवृत्ति पत्र १५३ [ ३४-१७४] । भा. सं. । क. तिलकाचार्य । ग्रं. १२३२५ । र. सं. १२९६ । ले. सं. १४८८ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३॥४५ ।। आदि अंतनां पत्र अतिजीर्ण अने फाटेलां छे. अन्त संवत् १४८८ वर्षे मार्गशीर्ष.... तिथौ गुरुवासरे श्रीपत्तनमध्ये श्रीखरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनभद्रसूरीणामादेशेन शिष्यपठनार्थं श्रीश्रीतिलकाचार्यविरचिता श्री आवश्यक सिद्धान्तलघुवृत्तिलेखकेन लिखिता ॥ अयं ग्रंथः प्रतिशुद्धः कृतः ॥ छ ॥ क्र. ३७ आवश्यकसूत्रबृहद्वृत्ति-शिष्यद्दिता प्रथमखंड पत्र १३४ [१७५–३०८]। भा. प्रा. सं. । वृ. क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. १२३८४ । ले. सं. १४८७ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३ ।।।५।। २४ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ४ अयं ग्रंथः प्रतिशुद्धः कृतः ॥ स्वस्ति संवत् १४८७ वर्षे श्रावण शुदि ९ बुधे श्रीमदणहिलपुरे श्रीजिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये श्री आवश्यकप्रथमखंड लिखितं ॥ ३०९ - ४०१] । भा. क्र. ३८ आवश्यकसूत्रबृहद्वृत्ति - शिष्यहिता द्वितीयखंड पत्र ९२ [ प्रा. सं. । वृ. क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. १०६१६ । स्थि. जीर्ण । पं. २०-२५ । लं. प. १३ ।। ४५ ।। क्र. ३९ आवश्यक सूत्र टिप्पनक पत्र ४१ [ ४०२ - ४४२] । भा. सं. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । नं. ४७२० । ले. सं. १४८८ । स्थि. जीर्ण । पं. २६ । लं. प. १३॥ ४५ ॥ अन्त- संवत् १४८८ वर्षे भाद्रवा वदि १० शुक्रे अग्रेह श्रीपत्तने खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां धर्मराज्ये पातसाह श्री अहमद विजयराज्ये श्री आवश्यक टिप्पनकं लिखितं ॥ छ ॥ क्र. ४० ओघनिर्युक्ति पत्र १४ ग्रं. १४३२। ले. सं. १४८९ । स्थि. [ ४४३ - ४५६ ] । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामि । गा. श्रेष्ठ । पं. २२ । लं. प. १३ ॥४५ ।।। अन्त १८६ अन्त स्वस्ति संवत् १४ आषाढादि ८९ वर्षे द्वि. आषाढ शुदि २ रवौ अवेह श्रीमदण हिलपुरे खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये भांडागारे ओघनिर्युक्तिसूत्रं लिखितं । प्रतिशुद्ध । चिरं नंदतु ॥छ । क्र. ४१ ओघनिर्युक्तिभाष्य पत्र ३० [ ४५७-४८६] । भा. प्रा. । गा. २५१७ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. २१ । लं. प. १३॥॥४५॥। क्र. ४२ ओघनिर्युक्तिवृत्ति पत्र ७३ [४८७-५५९ ] । भा. प्रा. सं. । क. द्रोणाचार्य । नं. ७०००। ले. सं. १४८८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. १३ ।।। ४५ ।।। अन्त खौ लिखिता ॥ श्री ओघनियुक्तिवृत्ति प्रतिशुद्धा कृता । [५६०-५६६ ] । भा. प्रा. क. शय्यंभवसूरि । ग्रं. संवत् १४८८ वर्षे भाद्रपद शुदि १२ क्र. ४३ दशवैकालिकसूत्र पत्र स्थि. जीर्णप्राय । पं. २५ । लं. प. १३॥४५॥॥ क्र. ४४ दशवैकालिकनियुक्ति पत्र ५ [ ५६७ - ५७१] । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामि । गा. ४४० । स्थि. जीर्ण । पं. २५ । लं. प १३॥ ४५ ॥ पोथी ४ थी क्र. ४५ दशवैकालिकसूत्रबृहद्वृत्ति पत्र ७२ [ ५७२–६४३] । भा. सं. । भद्रसूरि । ले. सं. १४८७ । स्थि. जीर्ण । पं. २० - २३ । लं. प. १३ ॥ ५५ ॥ अन्त ११४६ । ७ ७०० । स्वस्ति संवत् १४८७ वर्षे श्रावण वदि ८ अष्टम्यां बुधे श्रीमदणहिल्लपुरे खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये भांडागारे श्रीदशवेकालिकटीका हारिभद्री लिखिता ॥ चिरं नंदनात् ॥ श्रीः ॥ अयं ग्रंथः प्रतिशुद्धः कृतः ॥ छ ॥ क्र. ४६ दशवैकालिकसूत्रचूर्णी पत्र ७५ [ ६४४ - ७१७] । भा. प्रा. । ले. सं. १४८८ । स्थि. जीर्ण । पं. २५ । लं. प. १३ ।। ४५ ।।। अन्त क. आचार्य हरि संवत् १४८८ वर्षे माघ वदि १० अनंतरएकादश्यां सोमेऽयेह श्रीमदणहिलपुरे खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये भाण्डागारे दशवैकालिकचूर्णि प्रतिशुद्धा कृता चिरं नंदतात् ॥ छ ॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३८-५८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १८७ क्र. ४७ पिंडनिर्युक्ति वृत्तिसह पत्र ७४ [ ७१८- ७९०] । भा. प्रा. सं. । नि. क. भद्रबाहुस्वामि । वृ. क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ७००० । ले. सं. १४८९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. १३।। ४५ ।। अन्त संवत् १४८९ वर्षे श्रीविधिपक्षमुख्याभिधान ज्ञानदर्शनचारित्ररत्नत्रय सावधान श्रीखरतरगच्छेश्वरकुमततमोराशिनिरासनदिनेश्वर श्रीजिनभद्रसूरीश्वरसद्गुरूपदेश सुमतिसेनगणिना लषापिता श्रीपिंडनिर्युक्तिसूत्रवृत्ति ॥ पिंडनिर्युक्तिसूत्रवृत्ति प्रतिशुद्धा कृता ॥ क्र. ४८ नंदिसूत्र पत्र ८ [ ७९१-७९८ । भा. प्रा. क. देववाचक । ग्रं. ७०० । स्थि. अतिजीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३ ।। ४५ ।। क्र. ४९ नंदिसूत्रवृत्ति पत्र ८५ [ ७९९-८८३] । भा. सं । क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ७७३२ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३॥ ४५ ॥ । प्रति शुद्ध छे । क्र. ५० अनुयोगद्वारसूत्र पत्र १८ [८८४ - ९०१] । भा. स्थि. श्रेष्ठ । पं. २३ । लं. प. १३ ||५| प्रा. । क. आर्यरक्षितसूरि । ग्रं. २०००। क्र. ५१ अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति पत्र ५४ [९०२ - ९५५] । ग्रं. ५७०० । ले. सं. १४८९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २२ । लं. प. अन्त भा. सं । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । १३॥४५॥॥ संवत् १४८९ वर्षे शाके १३५४ श्रीखरतरगच्छे मुलासी लिखितं श्रीअणल्हपुरनगरे || छ || क्र. ५२ अनुयोगद्वारसूत्र लघुवृत्ति पत्र ३१ [ ९५६-९८६] । भा. सं. । क. आचार्य हरिभद्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ | पं. २१ । लं. प. १३ ॥४५॥ क्र. ५३ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र २४ [९८७ - १०१०] । भा. प्रा. । स्थि. जीर्ण । पं. २० । लं. प. १३ ।।। ४५ ।। क्र. ५४ उत्तराध्ययनसूत्रनिर्युक्ति पत्र ७ [१०११-१०१७ ] । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामि । ग्रं. ७०० । स्थि. जीर्ण । पं. २५ । लं. प. १३ ।।। ४५ ।। क्र. ५५ उत्तराध्ययन सूत्रबृहद्वृत्ति पाइयटीका क. वादिवेताल शांतिसूरि । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३ ।। ४५ ।।। अन्त पत्र १८४ [ १०९८ - १२०१ ] । भा. सं. । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे । श्रीपूज्यश्री जिनभद्रसूरिविजयराज्ये लिखिता शोधिता च ॥ श्रीजिनचंद्रसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ क्र. ५६ उत्तराध्ययनसूत्रचूर्णी पत्र ५८ [१२०२ - १२५९ ] । भा. प्रा. । क. गोपालिकमहत्तरशिष्य । ग्रं. ५८५० | ले. सं. १४८८ । स्थि. मध्यम । पं. २३ । लं. प. १३।। ४५ ।। अन्त संवत् १४८८ वर्षे वैशाख सुदि भूमेऽयेह श्रीपत्तनमध्ये खरतरगच्छे भट्टारकश्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये भांडागारे श्रीउत्तराध्ययनचूर्णिलिखिता ॥ चिरं नंदसात् ॥ प्रतिशुद्धा कृता चूर्णिः ॥ SIT. I क. जिनभद्रगणि क्र. ५७ विशेषावश्यकमहाभाष्य पत्र ४५ [१२६० - १३०४] । भा. क्षमाश्रमण | ग्रं. ३६५० । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३ ॥४५॥॥ क्र. ५८ सन्मतितर्कप्रकरण तत्वबोधविधायिनीवृत्ति सह प्रथम खंड पत्र १२६ [१६३३१७५७]। भा. प्रा. सं. । मू. क. सिद्धसेन दिवाकर । वृ. क. आचार्य अभयदेव तर्कपंचानन । अं. १२८३८। ले. सं. १४८७ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३ ॥ ४५ ॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૮ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ५-८ संवत् १४८७ वर्षे चैत्र सुदि द्वादश्यां तिथौ वाररवौ श्रीखरतरगच्छेन तेजा लिखितं ॥७॥ क्र. ५९ सन्मतितर्कप्रकरण तत्त्वबोधविधायिनीवृत्तिसह द्वितीय खंड पत्र ९६ [१७५८१८५३] । भा. प्रा. स.। म.क. सिद्धसेन दिवाकर राव.क. आचार्य अभयदेव तर्कपंचानन । ग्रं. १२१६२। स्थि . मध्यम। पं. २३ । लं. प. १३॥४५॥ अन्त-श्रीजिनभद्रसूरीणां ॥ ___ क्र. ६० ज्योतिष्करंडकप्रकीर्णक वृत्तिसह पत्र ५३ [१८५४-१९०८] । भा. प्रा. सं. । वृ.क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १४८८ । स्थि . जीर्ण। पं. २२ । लं. प. १३॥४५॥ अन्त संवत् १४८८ वर्षे माघ वदि तृतीयायां रवौ अयेह श्रीपत्तने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिविजयराज्ये भांडागारे ज्योतिःकरंडकटीका मंत्रिदुवे आकाकेन लिखिता ॥छ॥ पोथी ५ मी क्र. ६१ आचारांगसूत्रचूर्णी पत्र ८३ [१९०९-१९९१] । भा. प्रा.। ले. सं. १४८८। स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १३॥४५॥ अन्त संवत् १४८८ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ भूमे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये भांडागारे पं. सुमतिसेनगणिना आधारांगचूर्णिर्लिखापिता ॥छ॥ क्र. ६२ सूत्रकृतांगसूत्रचूर्णी पत्र ९८ [१९९२-२०८९] । भा. प्रा. : ले. सं. १४८८ । स्थि. जीर्ण। पं. २५ । लं. प. १३॥४५॥ अन्त संवत् १४८८ वर्षे प्र. आषाढ वदि १३ बुधेऽयेह श्रीपत्तने खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरीणां विजयराज्ये भांडागारे श्रीसूयगडांगचूर्णिलिखिता। प्रतिशुद्धा कृता ॥ __क्र. ६३ कल्पविशेषचूर्णी पत्र १०४ [२०९०-२१९८]। भा. प्रा.। ग्रं. ११००० । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १३॥x५॥ क्र. ६४ सूर्यप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र २५ [२१९९-२२३३]। भा. प्रा. । स्थि. जीर्ण। पं. २३ । लं. प. १३॥४५॥ क्र.६५ सूर्यप्रज्ञप्तिउपांगसूत्रवृत्ति पत्र ९३ [२२३४-२३३३]। भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ९५०० । ले. सं. १४८९ । स्थि . मध्यम । पं. २० । लं. प. १३॥॥४५॥.। अन्तनां बे पत्र अति जीर्ण छ । अन्त संवत् १४८९ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ चतुर्थी शनौ अयेह श्रीपत्तनमध्ये श्रीजिनभद्रसूरिविजयिराज्ये श्रीखरतरगच्छे श्रीभांडागारे सूर्यप्रज्ञप्तिटीका लिखिता प्रतिशुद्धा कृता ॥ चिरं नंदतात् ॥ क्र. ६६ दर्शनसप्ततिकाप्रकरणवृत्ति पत्र ५७ [२९३-३४९]। भा. प्रा. सं. । वृ. क. संघतिलकसूरि । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. १३॥४५॥ . क्र. ६७ न्यायभाष्य टिप्पणीसह पत्र ५७ । भा. सं. । क. वात्स्यायनमुनि । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १३४५ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ५९-८१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १८९ क्र. ६८ न्यायवार्तिक टिप्पणीसह पत्र १४२ [५८-२००] । भा. सं. । क. भारद्वाजमुनि । स्थि . जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १३४५ पोथी ६ ठी क्र. ६९ न्यायवात्तिकतात्पर्यवृत्ति टिप्पणीसह पत्र २०१ [२०१-४०१] । भा. सं. । क. वाचस्पति मिश्र । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १३४५. । अंतिम पत्रनो टूकडो छ ।। __क्र. ७० न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि टिप्पणीसह पत्र १६५ [४०२-५६६] । भा. सं. । क. उदयनाचार्य । स्थि. जीर्ण। पं. १५ । लं. प. १३४५.। पत्र ५४०, ५४९ मुं नथी।। क्र. ७१ न्यायटिप्पनक श्रीकंठीय पत्र ४९ [५६७-६१५] । भा. सं. । क. श्रीकंठ। स्थि. जीर्ण। पं. १५ । लं. प. १३४५ पोथी ७ मी क्र. ७२ पंचप्रस्थान न्यायमहातर्कविषमपदव्याख्या न्यायालंकार पत्र २०६ [ ६१६८२१]। भा. सं. । क. अभयतिलकगणि । स्थि. जीर्ण। पं. १५ । लं. प. १३४५ __ क्र. ७३ न्यायवात्तिकभाष्यवृत्तिविवरण पत्र २६ [८२२-८४७] । भा. सं. । क. अनिरुद्ध पंडित । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १३४५. । न्यायवार्तिक-भाष्य-टीकात्रयसंमिलित विवरण ।। क्र. ७४ नवतत्त्वप्रकरण भाष्यवृत्तियुक्त पत्र [?] । भा. प्रा. सं.। मू. क. देवगुप्तसूरि । भा. क. अभयदेवसूरि । ७. क. यशोदेवसूरि । र. सं. ११७४ । ले. सं. १४९९ । ग्रं. २४००। स्थि . अतिजीर्ण। पं. १५। लं. प. १३४५. । प्रति अस्तव्यस्त अने खवाएली छे।। अन्त संवत् १४९९ वर्षे चैत्र सित पूर्णिमास्यां भृगुदिने जेसलमेरौ खरतरगच्छाधीशश्रीजिनभद्रसूरिवरैः पुस्तकमिदं लेखितम् । लिखितं च विप्रपञ्चाननेन ॥छ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः छ॥ मङ्गलं महाश्रीः ॥छ॥श्रीः।। क्र. ७५ धर्मसंग्रहणीप्रकरण वृत्तिसह पत्र []। भा. प्रा. सं.। मू. क. आचार्य हरिभद्र । वृ.क. आचार्य मलयगिरि । स्थि. अतिजीर्ण । पं. १७ । लं.प. १३४५. । प्रति अस्तव्यस्त अने खवाएली छे। क्र. ७६ सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति षष्ठाध्यायपर्यंत पत्र ५१-१२२ । भा. सं.। क. हेमचन्द्राचार्य। स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं.प. १३४५. । पत्र ५१ थी ६७ उंदरे करडेला छ। क्र. ७९ सिद्धहेमशब्दानुशासन सूत्रपाठ, धातुपाठ तथा लिंगानुशासन पत्र २२ । भा. स. । क. हेमचंद्रसूरि। स्थि . मध्यम । पं. १७ । लं. प. १३४५।। __ क्र. ८० भगवतीसूत्र आलापक पत्र ५५ । भा. प्रा. । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १३४५॥ क्र. ८१ आचारांगसूत्रवृत्ति पत्र ३३२ । भा. स.। क. शीलांकाचार्य । ग्रं. १२०००। र. सं. ७९८ गुप्त संवत् । ले. सं. १९८३ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२४५॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ पोथी ९ आचार्याद् विदितात् समस्तभुवने श्रीमत् कृपाचन्द्रतः संस्था लोकदिगंकचंद्रगणिते संवत्सरे संस्थितिम् । लेमे जेसलमेरपत्तनवरे जीर्णागमोद्धारिणी भव्यानां सुविचारकारणमिदं लोके तयोल्लेखितम् ॥१॥ संवत् १९८३ रा मीती आसो सुदी ९ नवु वार सुकरवार चंदरमा मकरको ॥ पोथी ९ मी क्र. ८२ (१) उपासकदशांगसूत्र पत्र १-१६ । भा. प्रा. । क. सुधर्मास्वामी । ग्रं. ८१२ । (२) अंतकृद्दशांगसूत्र पत्र १६ - ३१ । भा. प्रा. क. सुधर्मास्वामी । ग्रं. ७९० । (३) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र ३१ - ३५ । भा. प्रा. । क. सुधर्मास्वामी । ग्रं. १९२ । (४) प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र ३५-५८ । भा. प्रा. । क. सुधर्मास्वामी । ग्रं. (५) विपाकसूत्र पत्र ५८ - ८१ । भा. प्रा. क. सुधर्मास्वामी । ग्रं. १२१६ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२।४५ १२५० । १९० अन्त श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्र. ८३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्रचूर्णी पत्र ४० । भा. प्रा. । ग्रं. १८६० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२१४५ क्र. ८४ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्रचूर्णी पत्र ३९ । भा. प्रा. ग्रं. १८६० । ले. सं. १९८३ | स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२॥५५॥ अन्त लेखक माहात्मा दुलीचंद नीवासी बीकानेर संवत् १९८३ मीती फागण सुद ५ श्रीरतुः । श्रीमान् सूरिवरो महामुनिकृपाचन्द्रः कलौ धर्मराट् प्राप्तो जेसलमेरनाम्नि नगरे क्ष्मां पावयन् स्थापिता । संसत्तेन वरा परोपकृतये जीर्णागमोद्धारिणी वर्षे वह्निवसुग्रहेन्दुगणिते ग्रन्थस्तथा लेखितः ॥१॥ क्र. ८५ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्रवृत्ति पत्र २३५ । भा. सं. । क. पुण्यसागर महोपाध्याय । ग्रं. १३२७५ । र. सं. १६४५ । ले. सं. १९८५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ । अन्त इति श्री बृहत् खरतरगच्छावतंस श्रीजिनहंससूरिशिष्यश्री पुण्यसागरमहोपाध्यायविरचिता श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृप्तिः समाप्ता ॥ श्रीमच्चन्द्रकुले सुधर्मगणभृत्पट्टानुपूर्वीभवाः, श्रीउद्योतनसूरयः समभवन् ज्ञानक्रियाशालिनः । ध्यानाराधितनागराट्प्रकटितश्रीसूरिमन्त्रस्फुरन्माहात्म्या गुरवस्ततो रुरुचिरे श्रीवर्द्धमानाभिधाः ॥१॥ श्रीमद् दुर्लभभूमिवल्लभसभाध्यक्षं पुरे पत्तने, वर्षे पुष्करदिग्गजाभवसुधासंख्ये सुसंख्यावता । जित्वा चैत्यनिवासिनः खरतरेत्याख्यां समासादयामासे येन जिनेश्वरः स भवतात् सूरीश्वरः श्रेयसे ॥२॥ संवेगरंगशाला विनिर्ममे यैः कथानकरसाला । तेऽभूवन् जिनचन्द्राः सूरिवराः प्रणतकविचन्द्राः ॥ ३ ॥ गुरुगमनयभंगीसंगरंगन्नवाङ्गीनवविवृतिविधान व्यक्तिविस्फारकीर्त्तिः । सुगुरुरभयदेवः स्तंभनाधीशपार्श्वप्रकटनपटुरासी चक्रवती बुधानाम् ॥४॥ चामुण्डिकाप्रकटबोधनबद्धकक्षाः सूत्रोक्तमार्गभणनाचरणैकदक्षाः । चित्ते वसंतु जिनवल्लभनामधेयाः सूरीश्वरा भुवनभासुरभागधेयाः ॥५॥ येषां रैवतकाचले कृततपः श्रीनागदेवाभिधश्राद्धाराधितयांचया किल युगप्राधान्यमाविः कृतम् । श्रीजैनेन्द्रमतप्रकाशनपटुप्रागल्भलक्ष्मीजुषस्ते श्रीमज्जिनदत्तसूरिगुरवो यच्छंतु मे वांछितम् ॥६॥ तत्पदकमलमरालं ददतं फलम तुलमीप्सितविशालम् । नरमणिमण्डितभालं स्तवीमि जिनचन्द्रसुरसालम् ॥७॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ८२-८८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र भूभृत्सभामध्यममध्यगच्छद् वादेषु षट्त्रिंशति यं जयश्रीः । अभूत् स विद्वज्जनवृन्दचक्री ततस्ततः श्रीजिनपत्तिसूरिः ॥८॥ श्रीमज्जिनेश्वरगुरुं जितवादियोधं सूरीश्वरं तदनु नौमि जिनप्रबोधम् । श्रीजैनचन्द्रसुगुरुं नुतनिर्विरोध सद्देशना कृतचतुर्नृपतिप्रबोधम् ॥९॥ यत्संस्मृतिप्रवणमानसमानवानामाविर्भवन्ति भुवि सर्वमुख प्रतानाः । प्रत्यूहसंहतिभुजंगमवैनतेयं सूरिं जिनाद्यकुशलं तमहं भजेयम् ॥१०॥ जिनपद्मसूरिराजं जिनलब्धिगुरुं नतोत्तमसमाजम् । जिनचन्द्रं निर्व्याज जिनोदयं नौमि जिनराजम् ॥११॥ पट्टे तब जिनभद्रसूरिः सौभाग्यभाग्यैकनिधिर्दिदीपे । सूत्रार्थजांबूनदसत्परीक्षाकषोपलप्रख्यविशुद्धबुद्धिः ॥१२॥ निरुपमप्रतिभाप्रतिभासनः स जिनचन्द्रविभुः शुभशासनः । तदनु तस्य प्रशस्यगुणोदधिजिनसमुद्रगुरुः सुपदंदधिः ॥१३॥ १९१ तदीयपट्टांबुजराजहंसाः सुरप्रसादाप्तजनप्रशंसाः । विचक्षणश्रेणिशिरोवतंसाः कृतोल्लसन्मुक्तिरमारिरंसाः ॥१४॥ यैव प्रथमाङ्गस्य दीपिकाऽर्थप्रदीपिका । ते जिनहंससूरीन्द्राः जीयासुर्गुवो मम ॥ १५ ॥ युग्मम् ॥ तत्पट्टलक्ष्मीतिलकानुकारा बभूवुरुद्दामगुणैरुदाराः । सूरीश्वरा लब्धनरेन्द्रमानाः श्रीजैनमाणिक्यवराभिधानाः ॥ १६ ॥ तत्पट्टोदयशैलराजशिखरप्रयोतनोद्योतिनो राजंते जिनचन्द्रसूरिगुरवस्ते सांप्रतं भूतले । यत्प्रतप्रकटप्रतापमहिमामुद्वीक्ष्य विस्तारिणों, प्रोन्मादिप्रतिवादिकौशिककुलं त्रस्तं समस्तं क्षणात् ॥१७॥ संप्राप्य तदादेशं श्रीमज्जिनहससू रिशिष्यवरैः । श्रीपुण्यसागरमहोपाध्यायैरल्पमतिगम्या ॥१८॥ एषा जंबूद्वीपप्रज्ञप्तेर्वृत्तिरादराद् विदधे । श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वर - निजगुरुविशदप्रसादवशात् ॥१९॥ श्री अभयदेवसूरि श्रीमन्मलयगिरिकृत विविधवृत्तीः । सम्यग् विचार्य बुद्धया विलोक्य चान्यानि शास्त्राणि ॥ २० ॥ त्रिभिः कुलकम् ॥ वाचकाः पद्मराजाख्या अत्र साहायकं व्यधुः । तथा विशुद्धिमेतस्या युक्तायुक्तविवेचकाः ॥२१॥ आलस्यमपास्य निजं प्रथमादर्शे लिलेख सोल्लासम् । वृत्तिमिमां सन्महिमां विशुद्धधर्ज्ञानतिलकगणिः ॥२२॥ मोहाद्यदत्राभिद्दितं विरुद्धं सत्संप्रदायस्य वियोगतो वा । दयालुचित्तैर्हृदयालुभिस्तन्मात्सर्यमुत्सार्य विशोधनीयम् ॥२३॥ श्रीमज्जेसलमेरुदुर्गनगरे श्री भीमभूमीपतौ, राज्यं शासति बाणवारिधिरसक्षोणी मते वत्सरे । पुष्यार्क मधुमास शुक्ल दशमीसद्वासरे भासुरे, टीकेयं विहिता सदैव जयतादाचन्द्रसूर्य भुवि ॥ २४॥ त्रयोदश सहस्राणि द्वे शते पंचसप्ततिः । प्रायेणास्या ग्रंथमानं प्रत्यक्षरनिरूपणात् ॥२५॥ ग्रंथा १३२७५ शुभं भवतु । संवत् १६५२ वर्षे राउल श्री भीमजीविजयराज्ये युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिसूरीश्वरविजयराज्ये आचार्यश्रीजिनसिंहसूरियौवराज्ये श्रीपुण्यसागरमहोपाध्यायानामुपदेशेन श्रीऊकेशवंशे श्रीशंखलवालगोत्रे सा. कोचरसंताने सा. राजा तत्पुत्र सा. सारंग तत्पुत्र सा. रतनसी सा. जइतसी तत्पुत्र सा. थिरराजसु श्रावकेण स्वपितुर्द्रव्यश्रेयोर्थ ज्ञानभक्त्यर्थे च श्रीजेसलमेरुसत्कज्ञानकोशे श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तिप्रतिरेषा ॥ सा वाच्यमाना चिरं नंदतु । इदं पुस्तकं लिखितं संवत् १९८५ वईशाखमासे कृष्णपक्षे १५ अमावास्या शुक्रवारे समाप्तम् ॥ लिखितं माहात्मा टीकमचंद नीवासी बीकानेर हाल जेसलमेर समाप्तम् । शुभं भवतु । श्री । श्री ॥ जयशील मेरुवास्तव्येन वैद्यमनःसुखदासात्मजेन व्यासज्येष्ठमलकाव्यतीर्थेन संशोधिता । क्र. ८६ चंद्रप्रशतिउपांगसूत्रवृत्ति पत्र १६५ । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ९५०० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ | पं. १५ । लं. प. १२।४५| क्र. ८७ (१) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका सटीक पत्र १ - १६ । भा. प्रा. सं. 1 क. रत्नशेखरसूरि स्वोपज्ञ | Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ • श्रोजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ११-१३ (२) बलिनरेन्द्रकथा-भुवनमानुकेवलिचरित्र(भवभावनावृत्त्यंतर्गत) पत्र १६-४० । भा. सं। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि। स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं. प. १२।४५। क्र. ८८ समरादित्यचरित्रसंक्षेप त्रूटक अपूर्ण पद्य पत्र ४२-८१ । भा. सं.। क. प्रद्युम्नसूरि । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १२३४५। क्र. ८९ शांतिनाथचरित्र पद्य पत्र ८० । भा. सं. । क. मुनिदेवसूरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । १२।४५।। पत्र ३-२७ नथी। क्र. ९० उपदेशमाला दोघट्टी वृत्ति पत्र ९२-२५४ । भा. प्रा. सं. अप. । क. रत्नप्रभसूरि । ग्रं. ११८२९ । र. सं. १२३८ । ले. सं. १४८१। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८। लं. प. १२३४५॥ अन्त आसीन्मन्त्रिदलीयवंशतिलकः सङ्ख्यातिरिक्तैर्गुणैस्तैस्तैः सद्भिरुपस्तुतः प्रतिदिनं स्वाचारमुद्रापरः । श्रीतीर्थङ्करधर्मकर्मनिपुणः सर्वार्थिसार्थप्रदः पुण्योपार्जितसत्पथः क्षतमलः श्रीगागदेवः क्षितौ ॥१॥ श्रीगाङ्गदेवतनयः सनयः सदयः सदाश्रितः सततम् । श्रीदेवचन्द्र इति यः ख्यातः कलिकालकल्पतरुः ॥२॥ जैनागमापारपयोधिसारसंभारसंस्कारविशिष्टबुद्धिः।। जीयाजिनेन्द्रार्चनलग्नचित्तः श्रीदेवचन्द्रः सुगुणाप्तचित्तः ॥३॥ चन्द्रवसुभुवनपरिमितविक्रमसंवत्सरे नभोमासि। श्रीदेवचन्द्रसुधियः पाठार्थमिदं व्यलीलिखद्धर्मः॥४॥छ॥ शुभमस्तु ॥छ। संवत् १४८१ श्रावणे मासि ॥छ।। ॥छ॥ पोथी १० मी क्र. ९१ आवश्यकसूत्रचूर्णी पत्र ३३८ । भा. प्रा. । ग्रं. ११५४५ । ले. सं. १९८५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२१४५। क्र. ९२ आवश्यकसूत्रबृहवृत्ति द्वितीयखंड पत्र २२३ । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि। ले. सं. १९८६ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२३४५। क्र. ९३ आवश्यकसूत्रवृहदुवृत्ति द्वितीयखंड पत्र २२१ । भा. सं. । क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. १९८५। पं. १४ । स्थि . श्रेष्ठ । ल. प. १२।४५। पोथी ११ मी क्र. ९४ आवश्यकसूत्रलघुवृत्ति प्रथमखंड पत्र १५० । भा. सं. । क. तिलकाचार्य । ले. सं. १९८५। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं.प. १२॥४५॥ क्र. ९५ दशवैकालिकसूत्रचूर्णी पत्र १५३ । भा. प्रा.। ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. १२१४५॥ क्र. ९६ दशाश्रुतस्कंधसूत्रनियुक्ति पत्र १-४ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। (१) दशाश्रुतस्कंधसूत्रचूर्णी पत्र ४-४१ । भा. प्रा. । (३) दशाश्रुतस्कंधसूत्र पत्र ४१-७४ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। ले. सं. १९८२ । पं. १६ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १२३४५। क्र. ९७ कल्पची पत्र २८५। भा. प्रा. । ग्रं. १४७८४ । ले.सं. १९८४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. पं. १२॥४५॥ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ८८-१०८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १९३ क्र. ९८ बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह पीठिकार्ध पत्र ७७ । भा. प्रा. सं. । मू. तथा नि. क. भद्रवाहुस्वामी । भा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. मलयगिरि । ग्रं. ४६०० । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२९५ ॥ क्र. ९९ बृहत्कल्पसूत्र निर्युक्तिभाष्यवृत्तिसह प्रथमखंड (पीठिकार्धथी आगळ ) पत्र १९१ । भा. प्रा. सं. । मू. नि. क. भद्रबाहुस्वामी । भा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. क्षेमकीर्ति । ग्रं. १५४०० । र. सं. १३३२ । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५| पोथी १२ मी क्र. १०० बृहत्कल्पसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह द्वितीयखंड पत्र ३०५ । भा. प्रा. सं. 1 मू. नि. क. भद्रबाहुस्वामी । भा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. क्षेमकीर्ति । ग्रं. १४१६० । र. सं. १३३२ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२९५ ॥ क्र. १०१ बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति भाष्यवृत्तिसह तृतीय खंड पत्र २८४ । भा. प्रा. सं. । मू. नि. क. भद्रबाहुस्वामी । भा. क. संघदासगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. क्षेमकीर्ति । ग्रं. १२६५१ । र. सं. १३३२ । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२४५॥ क्र. १०२ पंचकल्पचूर्णी पत्र ६४ । भा. प्रा. । ग्रं. ३२३५ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२।४५ | क्र. १०३ व्यवहारसूत्रचूर्णी पत्र २२७ । भा. प्रा. । ग्रं. १२००० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२।४५ । पोथी १३ मी क्र. १०४ व्यवहारसूत्रवृत्ति द्वितीयखंड पत्र २२७ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. आचार्य मलयगिरि । अं. १३७१९ । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५॥ क्र. १०५ निशीथसूत्र पत्र १५ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. ८१२ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ क्र. १०६ निशीथसूत्रभाष्य पत्र १४३ । भा. प्रा. ग्रं. ७४०० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ । क्र. १०७ निशीथसूत्रचूर्णी द्वितीयखंड पत्र २८३ । भा. प्रा. । क. जिनदासगणि महत्तर । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५ | पोथी १४ मी क्र. १०८ निशीथसूत्रचूर्णी द्वितीयखंड पत्र ३१९ । भा. प्रा. । क. जिनदासगणि महत्तर । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२/४५| अन्त जिणदासगणिमहत्तरेण रइया । नमो सुयदेवयाए भगवईए । वीसइमो उद्देसो समतो । नमस्तीर्थकरेभ्यः । शुभं भवतु। संवत् १६६९ वर्षे कार्तिक वदि ६ दिने शनिवारे श्रीमज्जेसलमेरुमहादुर्गे सकलक्षितिपालमणुन श्रीभीमभूमीपतौ विजयति श्रीखरतरविधिपक्षे सकलजिनशासन रक्षाकरणदक्षसाहिसलेमप्रदत्त सवाईयुगप्रधान जिनशासनपातसाह बिरदद्वयधारक जिनचन्द्र सूरीश्वरेषु तत्पट्टालङ्कार भट्टारकश्रीजिनसिंहसूरिषु विजयिषु भणसालीगोत्रीय २५ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १५-१६ श्रीमलसाह पुत्र थिरराजेन पुत्र हरिराजयुतेन स्वकृतनूतन भण्डागारे श्रीनिशीथचूणि द्वितीयखण्डो सम्मत्तो। श्रीजिनकुशलसुरसाखे वा. श्रीस्वर्णप्रभगणि पं. कमलोदय पं. देवसार पं. गुणराज पं. थिरराज पं. कर्मचंद पं. उदयसंघ लिपीकृतं। शुभं भवतु । कल्लाणमस्तु । सं. १६७१ वर्षे श्रीजेसलमेरुदुर्गे श्रीजयसोममहोपाध्यायशिष्यश्रीगुणविनयोपाध्यायैश्शोधितं स्वशिष्य पं. मतिकीर्तिकृतसहायकैनिशीथचूर्णेर्द्वितीयं खण्डं संविदासम्पदे श्रीरस्तुपदे पदे कल्याणमस्तु श्रीखरतरसंघस्य । चिरं जीव्यात् ज्ञानभाण्डागारविधायकसाहथिरराजश्चिरंजीवि साह हरिराज धेनडविराजितः श्रीविलास सबहुमानः श्रीयुगप्रधानश्रीजिनसिंहसूरिराज्ये प्रवर्त्तमाने सर्वदोदयं लभतामर्कवत् । स्वस्ति श्रीशुभकार्यसिद्धिकरणश्रीपार्श्वनाथाहति, चैत्ये सद्विधिना विवेकिनिकरैः संपूज्यमाने सदा । राज्ये राउलभीमनामनृपतेः कल्याणदासस्य च, वर्षे विक्रमतस्तु षोडशशते एकोनसप्तत्यति ॥१॥ वृद्धे खरतरगच्छे श्रीमज्जिनभद्रसूरिसन्ताने । जिनमाणिक्ययतीश्वरपट्टालङ्कारदिनकारे ॥२॥ जाप्रद्भाग्यजये प्रबुद्धयवनाधीशप्रदत्ताभये साक्षात् पञ्चनदीशसाधनविधौ सम्प्राप्तलोकस्मये । यावज्जैनसुतीर्थदण्डकरयोः सम्मोचनाख्यालये, गोरक्षाजलजीवरक्षणधनप्राप्तप्रतिष्ठाश्रये ॥३॥ साधुव्यंसकदोषदुष्टितमनःश्रीनुरदीरंजनात् , देशाकर्षणसाधुदुःखदलनात् कारुण्यपुण्याश्रये । श्रीमच्छीजिनचन्द्रसूरिसुगुरौ योगप्रधाने चिरं, राज्यं कुर्वति जैनसिंहसुगुरौ सद्यौवराज्ये किल ॥४॥ कोट्टे जेसलमेरे उपकेशज्ञातिमण्डनं जातः । भणसालिकगोत्रीयः आसासाहः सदोत्साहः ॥५॥ तत्पुत्रो वस्ताख्यः तत्तनयः पुंजराज इति नाम । तत्पुत्रो जसधवल: तत्सूनुः पूनसीसाहः ॥६॥ तत्कुलदीपप्रतिमः श्रीमल्लः तस्य पुत्रवररत्नम् । चाम्पलदेऽम्बाकुक्षिस्वर्णाचलकल्पवृक्षाऽस्ति ॥७॥ भुवि जन्तुजातरक्षास्मारितसुकुमारपालभूपालः । जिनवरगुरुपरमाज्ञातिलकितभालो विशालगुणः ॥८॥ धर्मस्थानव्ययितद्रविणप्रवरः प्रधानशीलेन । जीर्णोद्धारधुरीणो दीनानाथादिदुःखहरः ॥९॥ स्वालयदेवगृहे शंभवाधिपस्थापनामहे सम्यक् । प्रत्येकं श्राद्धानां प्रददे यो राजती मुद्राम् ॥१०॥ मिष्टानभोजनेऽनाथान् संतोष्य वर्षनिष्टासु(2)। अष्टाहिकासु घुसृणैः वर्गोंधैः पूजयाञ्चके ॥११॥ सार्द्धसहस्रचतुष्टयप्रमिताः प्रतिमाश्च सप्तचैत्येषु । द्रव्यस्तवाधिकारी भावस्तवसङ्गतः सततम् ॥१२॥ नगरजनराजमान्यो विधिपक्षाराधको विधिज्ञश्च । दुष्कालकंबहस्तो न दुर्वचनो गर्वमदरहितः ॥१३॥ श्रीथाहरूसुनामा अङ्गजहरिराजमेघराजाभ्याम् । युक्तः कनकां भर्ता आढयः सुश्रावको द्रव्यैः ॥१४॥ ज्ञानप्राप्तिनिमित्तं भवे भवे बोधिबीजशुद्धयर्थम् । सज्ज्ञानकोशमेनं शुद्ध संलेखयाश्चक्रे ॥१५॥अष्टभिः कुलकम्॥ चित्कोशलेखनेन हि पुण्यं यदवापि थाहरूकेण । हर्षात्तेन प्राज्ञाः जिनागमं वाचयन्तु सदा ॥१६॥ शुभं संवत् १९८३ मिति कार्तिक वदी ९ वार शुकरवार । श्रीमान् सूरिवरो महामुनिकृपाचन्द्रः कलौ धर्मराठ, प्राप्तो जेसलमेरनाम्नि नगरे क्षमा पावयन् स्थापिता। संसत्तेन वरा परोपकृतये जीर्णागमोद्धारिणी, वर्षेऽथाग्निवसुग्रहेन्दुगणिते प्रन्थस्तदा लेखितः ॥१॥ लेखक महात्मा दुलीचन्द निवासी बिकानेर। क्र. १०९ महानिशीथसूत्र पत्र ८० । भा. प्रा. । पं. ४५४४ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२३४५। क्र. ११० अंगविद्याप्रकीर्णक पत्र १८७ । भा. प्रा. । ग्रं. ९०००। ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५। क्र. १११ जीतकल्पसूत्र वृत्तिसह पत्र ३६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । व.क. तिलकाचार्य । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १२३४५। Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. ११२ (१) सिद्धप्राभृतसूत्र पत्र १-४ । भा. प्रा. । गा. १२१ । (२) सिद्धप्राभृतसूत्रवृत्ति पत्र ४-२२ । भा. प्रा. । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२।४५ क्र. ११३ (१) सिद्धप्राभृतसूत्र पत्र ४१-४४ । भा. प्रा. । गा. १२१ । (२) सिद्धप्राभृतसूत्रवृत्ति पत्र ४४ - ६३ । भा. प्रा. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५/ क्र. ११४ कर्मप्रकृतिचूर्णी पत्र क. १०९-१२७ ] लं. प. १२/४५| ११४ । भा. प्रा. । ले. सं. १९८३ । स्थि. सारी । पोथी १५ मी क्र. ११५ शतककर्मग्रंथ वृत्तिसह पत्र ७३ | भा. प्रा. सं. । मू. क. शिवशर्मसूरि । मलधारि हेमचंद्रसूरि । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५| क. ११६ नवपदप्रकरण बृहद्वृत्तिसह पत्र १८३ । भा. प्र. सं. । मू. जिनचंद्रसूरि । वृ. यशोदेवोपाध्याय । वृ. र. सं. ११६५ । ले. सं. १९८३ । ग्रं. ९५०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२/४५| क्र. ११७ उपदेशपदप्रकरणलघुवृत्ति पत्र १३७ । आ. सं. । क. वर्धमानसूरि । ग्रं. ६५०० । र. सं. १०५०। ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२।४५ | भा. सं. । क. वर्धमानसूरि । . ६५०० । र. सं. क्र. ११८ उपदेशप्रकरणलघुवृत्ति पत्र १४३ । १०५० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । १२५५ । १९५ प्रा. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । क्र. ११९ चैत्यवंदनाभाष्य संघाचारवृत्तिसह वृ. क. धर्मघोषसूरि । ग्रं. ७८०० । ले. सं. १९८३ । पत्र १८८ । भा. प्रा. सं. । मू. क. देवेन्द्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।५। क्र. १२० ऋषिमंडलप्रकरण वृत्तिसह प्रथम खंड पत्र ७१ । भा. प्रा. सं. । मू. धर्मघोषसूरि । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२।४५ पोथी १६ मी क्र. १२१ उपदेशमाला हेयोपादेयावृत्तिकथासह पत्र २११ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२।४५ क्र. १२२ संयमाख्यान पत्र ३ | भा. लं. प. १२/४५ । क्र. १२३ चउपन्नमहापुरिसवरिय पत्र १९६ । भा. प्रा. । क. शीलाचार्य । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. पं. १२।५। क्र. १२४ समराइच्चकहा पत्र २२७ । भा. प्रा. क. आचार्य हरिभद्रसूरि । ग्रं. ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५ । क्र. १२५ प्रत्येकबुद्धचरित्र पथ पत्र ११४ | भा. सं. । क. लक्ष्मीतिलकगणि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२/४५ | क्र. १२६ अतिमुक्तकचरित्र पद्य पत्र ७ । भा. सं । क. पूर्णभद्रगणि । ग्रं. २३० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२०४५/ वृ. क. पं. १६ । ग्रं. १३३०० । क्र. १२७ (१) दशउपासककथा पत्र १९ । भा. प्रा. क. पूर्णभद्रगणि । ग्रं. ३४४ । र. सं. १२७५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२/४५ । १०००० । Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ ग्रं. (२) दशउपासककथाचूर्णी पत्र १० - १२ । भा. सं. । क. पूर्णभद्रगणि । १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२/०५/ क्र. १२८ गणधरसार्धशतक बृहद्वृत्तिसह प्रथम खंड ( प्रथमगाथाव्याख्या) पत्र ६८ । भा. प्रा. सं । वृ. क. सुमतिगणि । र. सं. १२९५ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२।४५ पं. १५ । [ पोथी १७ १०१ । ले. सं. पोथी १७ मी क्र. १२९ गणधरसार्धशतकबृहद्वृत्तिसह द्वितीय खंड पत्र १९१ । भा. सं. 1 वृ. क. सुमतिगणि । ग्रं. १२१०५ । र. सं. १२९५ | ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं.प. १२१४५ ॥ १३६३ । क्र. १३० विधिप्रपा पत्र ७३ । भा. प्रा. सं. । क. जिनप्रभसूरि । ग्रं. ३५७४ । र. सं. ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२/४५/ क्र. १३१ कथासंग्रह पत्र ७५ । भा. प्रा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२४५ । क्र. १३२ अणुव्वयविहि पत्र ३२ । भा. प्रा. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ । क्र. १३३ (१) षडावश्यकसूत्र पत्र १-४ । भा. प्रा. (२) आवश्यकविधिप्रकरण- प्रतिक्रमणसामाचारी पत्र ४-५ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. ४० । (३) पंचलिंगीप्रकरण पत्र ५-७ । भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. १०१ । (४) षट्स्थानकप्रकरण-श्रावकवक्तव्यता पत्र ७-९ 1 भा. SIT. I क. गा. १०३ । (५) पिंडविशुद्धिप्रकरण पत्र १ - १२ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १०३ । (६) आगमोद्धारगाथा पत्र १२ - १३ । भा. प्रा. । गा. ७१ । (७) पौषधविधिप्रकरण पत्र १३ - १७ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । (८) पंचकल्याणकस्तोत्र पत्र १७ - १८ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. २६ । (९) लघुअजितशांतिस्तव - उल्लासिक्कमनक्व० स्तोत्र पत्र १८ मुं । भा. प्रा. क. जिन वल्लभगणि । गा. १७ । (१०) अजितशांतिस्तव पत्र १८ - २० । भा. प्रा. क. नंदिषेण । गा. ४० । (११) पर्यताराधनाप्रकरण पत्र २०-२२ । भा. प्रा. । क. अभयदेवसूरि । गा. ८३ । (१२) आतुरप्रत्याख्यान पत्र २६ मुं । भा. प्रा. । गा. १६ । (१३) धर्मलक्षण पत्र २२-२३ । भा. सं. | (१४) प्रश्नोत्तररत्नमालिका पत्र २३मुं । भा. सं. । क. विमलाचार्य | आर्या २७ । (१५) नवतत्त्वप्रकरणभाष्य पत्र २३ - २७। भा. प्रा. क. अभयदेवसूरि । गा. १५२ । (१६) नवपदप्रकरण पत्र २७-३१। भा. प्रा. । क. जिनचंद्रगणि । गा. १३९ । (१७) श्रावकधर्मविधिप्रकरण पत्र ३१ - ३२ । भा. प्रा. क. हरिभद्रसूरि । गा. ७० । (१८) कर्मप्रकृतिसंग्रहणी पत्र ३२- ४३ । भा. प्रा. । क. शिवशर्मसूरि । गा. ४७६ । (१९) विज्ञप्तिका पत्र ४३-४४ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. ३५ । (२०) बोटिकनिराकरणप्रकरण पत्र ४४-४७ । भा. प्रा. । गा. ११५ । जिनेश्वरसूरि । Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १२८-१३६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १९७ (२१) स्वप्नसप्ततिकागत अधिकार सटीक पत्र ४७-५१ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२३४५ क्र. १३४ (१) पर्यंताराधनाप्रकरण पत्र १-३ । भा. प्रा. । क. सोमसूरि । गा. ६९ । (२) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र ३-७ । भा. प्रा. क. आसड । गा. ११४ । र. सं. १२७८ । (३) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र ७-८ । भा. प्रा. । गा. २७ । (४) आउरपच्चक्खाणप्रकीर्णक पत्र ८-९ । भा. प्रा. (५) आराधनाप्रकरण पत्र ९-१२ । भा. प्रा. क. अभयदेवसूरि । गा. ८५ । (६) क्षामणाकुलक पत्र १२ मुं । भा. प्रा. । गा. १६ । आ कुलकनां बीजां नामो मिथ्यादुष्कृतकुलक अने भावनाकुलक पण छे । (७) आलोचनाकुलक पत्र १२-१३ । भा. प्रा. । गा. १२ । (८) आलोचनाकुलक पत्र १३ मुं । भा. प्रा. । गा. २४ । ( ९ ) भावनाकुलक पत्र १३-१४ । भा. प्रा. । गा. ११ । (१०) भावनाकुलक पत्र १४-१५ । भा. प्रा. । गा. २९ । (११) सुलसआराधनाप्रकरण पत्र १५ - १७ । भा. प्रा. । गा. ७४ । (१२) नवकारफलकुलक पत्र १७ - १८ । भा. प्रा. गा. ३३ । (१३) मिथ्यादुष्कृतकुलक पत्र १८ मुं । भा. प्रा. । गा. २० । (१४) संवेगमंजरीप्रकरण पत्र १८ - १९ । भा. प्रा. क. देवभद्र । गा. ३२ । (१५) संयममंजरीप्रकरण पत्र १९-२० । भा. प्रा. । क. महेश्वरसूरि । गा. ३५ । (१६) सुगुरुबांगडउ पत्र २०-२१ । भा. अपभ्रंश । गा. २१ । (१७) सुगुरुदांगडउ पत्र २१ - २३ । भा. अपभ्रंश । क. जिनप्रभसूरि । गा. ३२ । (१८) आराधना पत्र २३-२४ । भा. सं. । ग्रं. ४० । (१९) भावनासंधि पत्र २४ - २६ । भा. अपभ्रंश । क. यशोदेव । गा. ५६ । (२०) आराधना पत्र २६ मुं । भा. प्रा. गा. ८ । (२१) भावनाकुलक पत्र २६-२७ । भा. प्रा. क. सोमदेव । गा. १७। (२२) आराधनाकुलक पत्र २७-२८ । भा. प्रा. । गा. २७ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५ | क्र. १३५ हरिवंशपुराणगत उद्देशद्वय पत्र १० । भा. अपभ्रंश । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२४५॥ क्र. १३६ (१) जीवोपदेशपंचाशिका पत्र १-२ । भा. प्रा. । का. ५० ॥ (२) उपदेशकुलक पत्र २ - ३ | भा. प्रा. । गा. २५ । (३) हितोपदेशकुलक पत्र ३ जुं । भा. प्रा. । गा. २५ । (४) हितोपदेशकुलक पत्र ३-४ । भा. प्रा. । गा. २५ । (५) पंचपरमेष्ठिस्तव पत्र ४-५ । भा. प्रा. । गा० ३७ । (६) नवतत्त्वप्रकरणभाष्य पत्र ५-९ । भा. प्रा. क. अभयदेवसूरि । गा. १५१ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. . १२४५ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १८-२० क्र. १३७ व्याकरणचतुष्कावचूरि-हैमलघुन्यास द्वितीयाध्याय द्वितीयपादपर्यंत पत्र ५४ । भा. सं. । क. कनकप्रभसूरि । ग्रं. २०१८ | ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५ । क्र. १३८ अनेकार्थकोश अनेकार्थकैरवाकरकौमुदीढीकायुक्त तृतीय खंड पत्र ५२ । भा. सं.। मू. क. हेमचंद्रसूरि । टी. क. महेंद्रसूरि । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२/४५ क्र. १३९ कइसिट्ठवृत्ति पत्र ३४ । भा. सं. । क. गोपाल पंडित । ले. सं. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२।४५ । १९८३ । स्थि. क्र. १४० कविकल्पलताविवेक पत्र १५१ । भा. सं. । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ | पोथी १८ मी क्र. १४१ कविकल्पलताविवेक द्वितीयखंड पत्र ४७ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२१४५॥ क्र. १४२ कविकल्पलताविवेक पत्र ८५ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२०४५। । वचमानो केटलोक भाग आमां लखाएल नथी. क्र. १४३ अभिधावृत्तिमातृका पत्र ९ । भा. सं. । क. मुकुल भट्ट । १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२४५ ॥ क्र. १४४ (१) घटकर्परकाव्य पत्र. १-२ । भा. सं. । का. २१ । (२) मेघाभ्युदयकाव्य पत्र २ - ३ | भा. सं. 1 का. ३८ | (३) वृंदावनमहाकाव्य पत्र ३-५ । भा. सं. । का. ५२ । (४) मधुवर्णनकाव्य पत्र ५-७ । भा. सं. । क. केलिकवि । का. ६९ । (५) विरहिणीप्रलापकाव्य पत्र ७-९ । भा. सं. । क. केलिकवि । का. ५३ । (६) चंद्रदूतकाव्य पत्र ९-१० । भा. सं. 1 का. २३ । (७) विक्रमांक महाकाव्य पत्र १० - ६६ । भा. सं. । क. बिल्हणकवि । ग्रं. २५४५ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२/४५ | क्र. १४५ चक्रपाणिविजयकाव्य पत्र ४१ । भा. सं. । क. लक्ष्मीधर । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२।४५ । क्र. १४६ कविरहस्य - अपशब्दाभासकाव्य सटीक पत्र ३३ । भा. सं.। मू. क. हलायुध । टी. क. रविधर्म । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२/४५१ । अपरनाम कविकाव्य | क्र. १४७ न्यायकंदलीटिप्पनक पत्र ४७ । भा. सं. क. नरचंद्रसूरि । ले. सं. १९८३ । ग्रं. ५१४ । ले. सं. स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ । क्र. १४८ न्यायभाष्यविवरण पत्र ४६ । भा. सं. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२।४५ क्र. १४९ न्यायप्रवेशवृत्तिपंजिका पत्र ३४ । भा. सं । क. पार्श्वदेवगण । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ क्र. १५० द्रव्यालंकार स्वोपज्ञवृत्ति सह द्वितीयप्रकाश टिप्पणीसह पत्र ५५ । भा. सं. । क. रामचंद्र गुणचंद्र | ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १३७-१६५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र १९९ क्र. १५१ द्रव्यालंकार स्वोपज्ञवृत्ति सह तृतीय प्रकाश टिप्पणी सह पत्र ३५ । भा. सं. । क. रामचंद्र गुणचंद्र । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५॥ क्र. १५२ प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञ वृत्ति सह पत्र ३९ । भा. सं । क. आचार्य हेमचंद्रसूरि स्वोपज्ञ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२०४५ | क्र. १५३ (१) प्रमाणमीमांसा स्वोपज्ञवृत्ति सह पत्र १ - ४१ । भा. सं.। क. आचार्य हेमचंद्र | (२) परीक्षामुखप्रकरण पत्र ४१-४३ । भा. सं. (३) सर्वसिद्धिप्रकरण पत्र ४४ - ५० । भा. सं. । क. हरिभद्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ | लं. प. १२।४५/ क्र. १५४ अनेकांतजयपताकावृत्तिटिप्पनक पत्र ३४ । भा. सं. । क. मुनिचंद्रसूरि । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/४५ । पं. १५ । क्र. १५५ अनेकांतजयपताकावृत्तिटिप्पनक पत्र ३५ । भा. सं. । क. मुनिचंद्रसूरि । ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १२/०५/ क्र. १५६ परीक्षामुखप्रकरण पत्र ३ । भा. सं. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२।४५ क्र. १५७ सर्वसिद्धिप्रकरण पत्र ७ । भा. सं । क. हरिभद्रसूरि । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १२।४५ । क्र. १५८ सर्पसिद्धांत प्रवेश पत्र ४ । भा. सं. । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२।४५ पोथी १९ मी भद्र क्र. १५९ व्यवहारसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह पत्र ७१६ । भा. प्रा. सं. । मू. नि. क. बाहुस्वामी । वृ. क. आचार्य मलयगिरि । ग्रं. ३४००० । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. पं. १४ । प. ११॥४५ क्र. १६० परमात्मप्रकाश सस्तबक अपूर्ण पत्र ३० । भा. अप गू. । स्थि. जीर्ण । लं. प. ११। ५ । । वचमां घणां पानां नथी. क्र. १६१ (१) मीमांसासूत्र साबरभाष्य प्रथम अध्याय प्रथमपाद पत्र १ - १३ । भा. सं. 1 (२) प्रमाणान्तर्भाव पत्र १३-२३ । भा. सं. । क. देवभद्र यशोदेव । ले. सं. १९८२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ११४५ । क्र. १६२ सर्वशसिद्धि पत्र ४ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. पं. ११।४५॥ क्र. १६३ कृतपुण्यमहर्षिचरित्र पद्य पत्र ४८ । भा. सं. । क. पूर्णभद्रगणि । र. सं. १३०५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ११॥४५॥ क्र. १६४ शालिभद्रचरित्र पद्य पत्र ३६ । भा. सं. । १२८५ । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ११४५ ॥ क. पूर्णभद्रगणि । ग्रं. १४९० र. सं. पोथी २० मी क्र. १६५ भगवतीसूत्र पत्र २ - २६२ । भा. प्रा. क. सुधर्मस्वामि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ लं. प. १२॥४४॥ । अंतिम पत्र नथी । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी २१ क्र. १६६ उपदेशमाला कर्णिकावृत्तिसह पत्र २०-२७५ । मा. प्रा. सं.। मू. क. धर्मदासगणि। वृ. क. उदयप्रभसूरि। ग्रं. १२२७४ । र. सं. १२९९ । स्थि . जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १२४४। क्र. १६७ द्वीपसागरप्रज्ञप्तिसंग्रहणी पत्र ५। भा. प्रा. । ग्रं. २००। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १६ । लं. प. १२४४।। क्र. १६८ निर्यावलिकासूत्रवृत्ति पत्र ११ । भा. सं. । क. श्रीचंद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १२॥४४॥ क्र. १६९ धातुपारायण पत्र अस्तव्यस्त । भा. सं.। क. हेमचंद्रसूरि । ले सं. १४८६ । स्थि.। अतिजीर्ण । लं. प. १२४४॥ क्र. १७० वंदारुवृत्ति त्रूटक पत्र ४८ । भा. सं. । क. देवेंद्रसूरि । ग्रं. २२२७ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १८। लं. प. १२४४॥.। प्रतिमा मात्र १३ पत्र छ। क्र. १७१ संघपट्टकप्रकरण सटीक पत्र ४१। भा. सं.। भू. क. जिनवल्लभसूरि । व. क. जिनपतिसूरि । ग्रं. ३६००। स्थि. मध्यम। पं. १९ । लं. प. १२४४॥ क्र. १७२ ओघनियुक्तिवृत्ति पत्र ९८ । भा. प्रा. सं.। क. द्रोणाचार्य । ग्रं. ७००० । ले. सं. १६२९ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं प. १२४४॥ अन्तश्रीवेगडगच्छेऽभूत् श्रीजिनेश्वरनामकः । ततः शमसुधाम्भोधिर्बभूव जिनशेखरः ॥१॥ तत्पट्टे जिनधर्मसूरिरभवद्वादीन्द्रचूडामणिः सद्विद्याकरदामिनीचयातिप्रद्योतितक्ष्मोऽस्मरः । तत्पट्टे जिनमेरुसूरिसुगुरुजज्ञेऽत्र तन्त्रप्रदः, भव्याम्भोजवनप्रबोधनरविभूजानिमिवन्दितः ॥२॥ जिनगुणप्रभसूरिवरस्ततो विजयतेऽत्र महोज्ज्वलसंयमः । कुमतिमानतिमरतरणिणिः घनघनाघनघोषवरो ननु ॥३॥ भूपे श्रीहरिराजे राज्ये सति हस्तिवाजिरथपद्गैः । युक्त जेसलमेरौ वरजिनगृहमण्डिते तारे ॥४॥ ग्रहनेत्रकलावर्षे १६२९ इमां वृत्तिमलीलिखत् । शुक्रे कृष्णत्रयोदश्यां सुधीः कमलमंदिरः ॥५॥ यावद् व्योम्नि वरीवति यावद् राजति वारिधिः । तावन्नंदत्वियं प्रतिः प्रवरा पृथिवीतले ॥६॥श्री ॥ क्र.१७३ मरारिनाटक टिप्पणीसह पत्र ४० । भा. सं.। क. मुरारि कवि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १२४४॥ क्र. १७४ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र महाकाव्य सप्तमपर्व-रामायण पत्र १३९ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १२४४ । पोथी २१ मी क्र. १७५ मलयसुंदरीचरित्र-शानरत्नोपाख्यान पद्य पत्र ९३ । भा. सं. । क. जयतिलकरि। ग्रं. २४३० । ले. सं. १५६८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १७६ अभिधानचिंतामणि नाममाला द्वितीयकांड पत्र ६। भा. सं.क हेमचन्द्राचार्य। स्थि . जीर्ण। पं. १७। लं. प. ११॥४४॥ क्र. १७७ अभिधानचिंतामणि नाममाला अपूर्ण पत्र १३ । भा. सं. । क. हेमचन्द्राचार्य । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११॥४४॥ __क्र. १७८ अभिधानचिंतामणि नाममाला चूटक-अपूर्ण पत्र १० । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य। स्थि . मध्यम। पं. १९। लं. प. ११॥४४॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १६६-१८९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २०१ क्र. १७९ अभिधानचिंतामणिनाममाला पत्र १३-२८ । भा. सं.। क. हेमचंद्रसूरि। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १८० (१) पिंडविशुद्धिप्रकरण पत्र १-३ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १०३ । (२) षट्स्थानकप्रकरण-श्रावकवक्तव्यता पत्र ३-४। भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. १०२ । (३) पंचलिंगीप्रकरण पत्र ४-६। भा. प्रा.। क. जिनेश्वरसूरि। गा. १०२ । (४) दर्शनसप्ततिकाप्रकरण-श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण पत्र ६-८। भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि। गा. १२० । (५) आगमोद्धारगाथा पत्र ८-९ । भा. प्रा.। गा. ७१। (६) लघुक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र ९-११। भा. प्रा.। गा, १०९। (७) संदेहदोलावलीप्रकरण पत्र ११-१४ । भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि । गा. १५१। स्थि. मध्यम। पं. १७। लं. प. ११॥४४॥ क्र. १८१ संदेहदोलावलीवृत्ति पत्र ७३ । भा. सं. । ग्रं. ४७५० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १८२ शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा. । क. जयकीर्तिसूरि । गा. ११६ । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ११mx४ क्र. १८३ (१) शीलोपदेशमाला पत्र १-३ । भा. प्रा. । क. जयकीर्तिसूरि । गा. ११६।। (२) आत्मानुशासन पत्र ३-५ । भा. सं. । क. पार्श्वनाग । आर्या. ७७ । र. सं. १.४२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ११॥४४॥ क्र. १८४ कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति-तद्धितप्रकरणपर्यंत टिप्पणी सह पत्र ३६ । भा. सं. । क. दुर्गसिंह । स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. ११॥x४. आदिनां १६ पत्र चोंटेलां छे। क्र. १८५ सामाचारी-यतिदिनचर्या पत्र १२ । भा. प्रा.। क. देवसूरि । ग्रं. ७७५ । ले. सं. १५६२ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ अन्त इति श्रीमुक्तावलीरूपा यतिदिनचर्या सम्पूर्णा । ग्रं. श्लोक ७७५ । श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टालङ्कारश्रीजिनमेरुसूरिविजयराज्ये पं. ज्ञानमंदिरमुनिनाऽलेखि । सं. १५६२ वर्षे पोष मासे १५ । क्र. १८६ कर्मस्तवकर्मग्रंथावचूरि पत्र ११। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १८७ ओघनियुक्तिअवचूरि पत्र २८ । भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. १९। लं. प. ११॥४४॥ क्र. १८८ श्रावकप्रतिक्रमणचूर्णी पत्र ३६-८४ । भा. प्रा.। क. विजयसिंहसूरि । ग्रं. ४५९० । स्थि . मध्यम । पं. १७ । लं. प. ___ क्र. १८९ आवश्यकनियुक्ति पत्र ५९ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. १५५५ । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ११॥४४॥ अन्त संवत् १५५५ वर्षे श्रीखरतरगच्छे पूज्यश्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे पूज्यश्रीजिनेश्वरसूरिपट्टे श्रीजिनशेखरसूरिपट्टे २६ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी २२ श्रीजिनधर्मसूरिपट्टोदयाद्रिामणिपूज्यश्रीजिनचन्द्रसूरिवजयराज्य उपाध्यायश्रीदेवचन्द्रशिष्यउपाध्यायश्रीक्षमासुंदरशिष्य पं. नयसमुद्रेण लिखितम् । श्री॥ श्रीआवश्यकसूत्रम् ॥छ।।श्री। श्रीवीरमगामे ॥श्री॥ शुभं भवतु ॥छ॥ क्र. १९० कालिकाचार्यकथा गाथाबद्ध पत्र ४ । भा. प्रा. । क. भावदेवसूरि। गा. १०६ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १९१ कर्पूरमंजरीनाटिका टिप्पणीसह पंचपाठ अपूर्ण पत्र १६ । भा. सं. आदि । क. राजशेखर कवि । स्थि. मध्यम। पं. १४ । लं. प. ११॥४४॥ ____क्र. १९२ अध्यात्मकल्पद्रुम तथा अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका पत्र ९ । भा. सं । अध्या. क. मुनिसुन्दरसूरि । अ. द्वा. क. हेमचन्द्राचार्य । अध्या. का. २७८ । अ.हा. का. ३२। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १९३ कर्पूरप्रकर पत्र १० । भा. सं.। क. हरिकवि । ग्रं. ३४५ । स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. ११॥४४॥.। आ प्रति पाणीमां भीजाएली छे। क्र. १९४ (१) गणधरसार्द्धशतकप्रकरण पत्र १-३ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. १५० । (२) पंचनमस्कारफलस्तव पत्र ३-५। भा. प्रा. । क. जिनचन्द्रसूरि । गा. ११८ । (३) नाणोचित्तप्रकरण पत्र ५-७ । भा. प्रा.। गा. ८१ । (४) कथानककोश पत्र ७ । भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि। गा. ३०। (५) व्यवस्थाकुलक पत्र ७-८ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. ७५ । (६) षष्टिशतप्रकरण पत्र ८-११ । भा. प्रा. । क. नेमिचंद्र भंडारी। गा. १६१ । (७) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र ११-१४ । भा. प्रा. । क. आसड कवि । गा. १४४। र. सं. १२४८ । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. ११॥४४॥ ___ क्र. १९५ भावशतक पत्र २-६ । भा. सं. । क. नागराज। का. १०४। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १९६ कर्मस्तव द्वितीयकर्मग्रंथ पत्र २। भा. प्रा. । क. देवेन्द्रसूरि । गा. ३४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १९७ कर्मग्रंथचतुष्क पत्र ६ । भा. प्रा. । क. देवेन्द्रसूरि । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १६ । लं. प. ११४४॥ क्र. १९८ नवतत्वप्रकरण सावचूरि पंचपाठ पत्र ४ । भा. प्रा. सं. । मू. गा. २७। ले. सं. १५३८ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. २५ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १९९ आवश्यकसूत्रलघुवृत्ति पत्र २२५ । भा. स.। क. तिलकाचार्य। स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ । प्रथम पत्रना टुकडा छ । क्र. २०० नैषधमहाकाव्य अपूर्ण पत्र ३६ । भा. सं. । क. श्रीहर्ष। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. ११॥४४॥ । प्रति पाणीमां भींजाएली छे। पोथी २२ मी क्र. २०१ उपदेशमालाप्रकरण सावचूरि पंचपाठ पत्र ५४ । भा. प्रा. सं.। मू. क. धर्मदासगणि। मू. गा. ५४३ । ले. सं. १४४८ । स्थि . जीर्ण। पं. १४ । लं. प. १२४४m.। पत्र ३०, ३१, ५४ नथी। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ क्र. १९०-२१९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २०२ संग्रहणीप्रकरण सटीक अपूर्ण पत्र ४६ । भा. प्रा. सं. । मू. क. श्रीचन्द्रसूरि । वृ. क. देवभद्रसूरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १२४४॥ क्र. २०३ सप्तपदा टीका पत्र १९ । भा. सं. । ले. सं. १५४६ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १३ । लं. प. ११॥४४॥ ___ क्र. २०४ द्वादशकुलक पत्र ४ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभसूरि। ले. सं. १६३१ । स्थि. अतिजीर्ण चोंटेली। पं. २२ । लं. प. १२४४॥ क्र. २०५ योगशास्त्रविवरण पत्र २-३० । भा. सं.। क. हेमचन्द्राचार्य स्वोपज्ञ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. २० । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २०६ लघुसंघपट्टकप्रकरण पत्र ३ । भा. सं.। जिनवल्लभगणि । का. ४० । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २०७ सिंदूरप्रकर पत्र १० । भा सं । क. सोमप्रभाचार्य । का. ९८। स्थि. जीर्ण। पं. ११। लं. प. ११mx४॥ क्र. २०८ सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण-सार्धशतकप्रकरण टिप्पणीसह पंचपाठ पत्र । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २०९ सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरणटिप्पनक पत्र २४ । भा. प्रा.। ग्रं. १४५७ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१० पंचलिंगीप्रकरण विवरणसह पत्र १८। भा. प्रा.। मू. क. जिनेश्वरसूरि । वि. क. सर्वराजगणि वाचनाचार्य । ग्रं. १४०० । ले. सं. १५३५ । स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २११ सामाचारी पत्र ६। भा. प्रा. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५। लं. प. ११mx४। क्र. २१२ काव्यकल्पलता कविशिक्षावृत्तिसह पत्र ५२ । भा. सं.। क. अमरचंद्रसूरि । ले. सं. १५१६ । स्थि . मध्यम । पं. २० । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१३ काव्यकल्पलता पत्र ३१ । भा. सं। क. अमरचंद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. ८ । लं.प. ११mx४॥ क्र. २१४ वाग्भटालंकार पत्र ११ । भा. सं. । क. वाग्भट । ले. सं. १५४८ । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१५ साधुवंदनारास अपूर्ण पत्र १४। भा. गू। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १४ । लं.प. ११॥४४॥ __क्र. २१६ सूत्रकृतांगसूत्रावचूरि अपूर्ण पत्र ७५। भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १९ । लं. प. ११mx४॥ क्र. २१७ मुरारिनाटक टिप्पणीसह पत्र ५५ । भा. सं. । क. मुरारि कवि । ले. सं. १५५४ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१८ षडावश्यकबालावबोध अपूर्ण पत्र ३१-६२ । भा. प्रा. गू. । स्थि. जीर्ण । पं. २० । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१९ अमरुशतक टिप्पणीसह पत्र १० । भा. सं. 1 क. अमरुक कवि । ग्रं. २८० । ले. सं. १५४२ । स्थि . जीर्णप्राय। पं. १२। लं. प. ११॥४४॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी २३ क्र. २२० प्रयोगविवेकसंग्रह पत्र १५। भा. सं.। क. वररुचि। ले. सं. १५४४। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११mx४॥.। व्याकरणविषयक औक्तिक जेवो ग्रंथ । क्र. २२१ बलाबलसूत्र पत्र ४ । भा. स. । स्थि. मध्यम। पं. १५। लं. प. ११॥४४॥ ___क्र. २२२ बलाबलसूत्रवृत्ति टिप्पणीसह पत्र १४ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण। पं. १२ । लं. प. ११॥॥४४॥ क्र. २३३ अष्टप्रकारपूजाकथा (विजयचंद्रकेवलिचरित्रांतर्गत) पत्र ११ । भा. प्रा. । क. चंद्रप्रभ महत्तर । स्थि . मध्यम । पं. १९ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२४ दशवैकालिकसूत्र पत्र ११। भा. प्रा. । क. शय्यंभवसूरि । ग्रं. ७०० । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२५ सिद्धान्तविचारसंग्रह (सिद्धांतगत आलापक) पत्र १७ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२६ अंतकृद्दशांगसूत्रवृत्ति पत्र ६ । भा. सं.। क. अभयदेवसूरि। ग्रं. ३३७ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ११॥४४॥ क्र. २३७ (१) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र १-७४ । भा. सं.। क. अभयदेवसूरि । ग्रं. ४२५५ । ले. सं. १५५६ । र. सं. ११२० । पत्र ७४ मां-संवत् १५५६ वर्षे अश्विनि वदि ११ रवी लिखिता ॥ श्रीमद्दणहिल्लपत्तने ॥छ॥ (२) उपासकदशांगसूत्रवृत्ति पत्र ७४-८७। भा. सं.। क. अभयदेवसरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ११mx४॥ पोथी २३ मी क्र. २२८ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र महाकाव्य दशमपर्व-महावीरचरित्र पत्र ११३ । भा. सं. । क. हेमचंद्रसूरि । ग्रं. ५५८५ । ले. सं. १५३६ । स्थि . मध्यम । पं. १५ । लं. प. ११॥४४॥ अन्त संवत् १५३६ वर्षे वैशाखमासे सितपक्षे द्वितीयाकर्मवाट्या सोमवासरे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीपार्श्वतीर्थे राउलश्रीदेवकर्णविजयराज्ये श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरिसन्ताने श्रीजिनेश्वरसूरिशाखायां श्रीजिनशेखरसूरिपट्टोद्धरणश्रीजिनधर्मसूरिपट्टोदयाद्रिचूलासमलङ्करणश्रीपूज्यश्रीजिनचन्द्रसूरिशिष्याणु पं. देवभद्रगणिवरेण वाचनार्थ श्रीकुमारपालप्रतिबोधदायकश्रीहेमसूरिविरचितं श्रीमहावीरचरित्रपुस्तकमलेखि । श्रीभगवतीप्रसादादाचन्द्रार्क नन्दतादिति ॥छ॥ शुभं भवतु सर्वत्र देवगुर्वोः प्रसादतः श्रीः । ग्रामेशस्त्रिदशो मरीचिरमरः षोढा परिबाट सुरः संसारो बहुविश्वभूतिरमरो नारायणो नारकः । सिंहो नैरयिको भवे बहुसुरश्चकी सुरो नन्दनः श्रीपुष्पोत्तरनिर्जरोऽवतु भवाद् वीरस्त्रिलोकीगुरुः ॥१॥ वीरः सर्वसुरासुरेन्द्रमहितो वीरं बुधाः संश्रिताः वीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयो वीराय नित्य नमः । वीरातीर्थमिदं प्रवृत्तमखिलं वीरस्य घोरं तपो वीरे श्रीधृतिकीर्तिकान्तिनिचयः श्रीवीर ! भद्रं दिश ॥२॥ चन्द्राको गगने यावद् यावन्मेरुर्महीतले । तावत् सत्पुस्तकं ह्येतत् वाच्यमानं हि नन्दतात् ॥३॥ श्रीः क्र. २२९ सिद्धांतविचारगाथा पत्र २ । भा. प्रा.। स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २३० स्वप्नसप्ततिकाप्रकरण सावचूरि पत्र ३ । भा. प्रा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं.प. ११॥४४॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के. २२०-२४० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २०५ क्र. २३१ काव्यकल्पलता कविशिक्षावृत्तिसह पत्र ५७। भा. सं. । क. अमरचंद्रसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं. ३३५७ । ले. सं. १४८० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ११४४॥ क्र. २३२ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र २४ । भा. प्रा.। क. सुधर्मस्वामी । ग्रं. १२५० । ले. सं. १६१५ । स्थि . मध्यम । पं. १८ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २३३ सूत्रकृतांगसूत्र पत्र ४१ । भा. प्रा.। क. सुधर्मा स्वामी । ग्रं. २१०० । ले.सं. १५४३ । स्थि . जीर्णप्राय । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २३४ अनुत्तरोववाइयसूत्रवृत्ति ऋटक पत्र २। भा. सं. । क. अभयदेवसूरि । ग्रं. ११७ । स्थि. जीर्ण। पं. १८। लं. प. ११॥४४। क्र. २३५ आचारांगसूत्र पत्र ४८। भा. प्रा.। क. सुधर्मा स्वामी। ग्रं. २५७४ । ले.सं. १५४३ । स्थि . जीर्णप्राय । पं. १७ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २३६ स्थानांगसूत्र पत्र ५८ । भा. प्रा.। क. सुधर्मा स्वामी । ग्रं. ३७७७ । स्थि. जीर्ण । पं. १९ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २३७ अभिधानचिन्तामणिनाममाला पत्र ३९ । भा. सं.। क. हेमचन्द्रसूरि । ले. सं. १५४१। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १७। लं. प.११॥४४॥ । पत्र २७ थी ३६ नथी। अन्त संवत् १५४१ वर्षे पौष शुक्लाष्टमी कर्मवाटयां श्रीशक्रगुरुवासरे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालङ्कारश्रीजिनचन्द्रसूरिवराणामादेशेन पण्डितदेवभद्रगणिना शिष्यमहिममंदिरमुनिपठनार्थ श्रीहेमसूरिविरचितं श्रीनाममालाशास्त्रमलेखि । चिरं नन्दतादाचन्द्रार्कम् । क्र. २३८ पिंडनियुक्तिअवचरि पत्र ४७ । भा.स.क. जयकीर्तिसूरि पूर्णिमापक्षीय। ग्रं. २८३२। स्थि. मध्यम । पं. १७। लं. प. ११॥४४॥ अन्त इति श्रीपिण्डनियुक्तेरवचूरिः । इति श्रीविधिपक्षगच्छगगनरविमण्डलश्रीगच्छेश्वरश्रीजयकीर्तिसूरिशिष्यक्षमारत्नेन स्वपरावबोधाय श्रीपिण्डनियुक्तेरवचूरिरलेखि । यत् किञ्चिन्मतिदौर्बल्यादसङ्गतमिहागतम् । तच्छोधने विधातव्या कृपा सद्भिः सबुद्धिभिः ॥१॥ यावदिन्दुरवी विश्वे प्रमोद कुरुतो भृशम् । तावन्नन्दतु साधूनां हितैषाऽप्यर्थसन्ततिः ॥२॥ ॥ ग्रन्थाप्रम् २८३२ श्लोकसङ्ख्या ॥ क्र. २३९ भवभावनाप्रकरण वृत्तिसह पत्र १६४ । भा. सं.। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं. १३००० । र. सं. ११७० । ले.सं. १५९५ । स्थि . मध्यम । पं. १९ । लं. प.११॥४४॥ अन्त संवत् १५९५ वर्षे फागुणमासे सप्तमीवासरे सोमवारे श्रीविक्रमपुरे श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्तानीयश्रीजिनशेखरसूरिपट्टे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालङ्कार तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टोदयाद्रि श्रीजिनमेरुसूरि चारित्रचूडामणिश्रीजिनगुणप्रभसूरिविजयराज्ये पं. ज्ञानमन्दिरगणिनाऽऽत्मपुण्याय गुरूणां वाचनार्थे भवभावनाबृत्तिलिखितमस्ति शुभमस्तु । कल्याणं भूयात् ॥छ॥ क्र. २४० कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति टिप्पणीसह पंचपाठ चतुर्थपादपर्यंत पत्र १५६.। भा. सं.। क. दुर्गसिंह । ले. सं. १५६८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ११४४॥ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी २४ क्र. २४१ कातंत्रव्याकरण बालावबोधवृत्ति पत्र १६ । भा. सं.। क. मेरुतुंगसूरि अचलगच्छीय । ग्रं. ५०९ । र. सं. १४४४ । ले. सं. १५३२। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ११४४॥ क्र. २४२ शत्रुजयमाहात्म्य पद्य पत्र १७८ । भा. सं.। क. धनेश्वरसूरि । ग्रं. ८८१२। ले.सं. १४९१ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ११॥४४॥ अन्त-संवत् १४९१ वर्षे पोस सुदि ७ भूमे श्रीडूंगरपुरे लिखितं ॥ क्र. २४३ पार्श्वनाथविवाहलो पत्र ५। भा. अप. गू. । क. पेथो मंत्री। ग्रं. २५०। स्थि. मध्यम। पं. १७। लं. प. ११॥४४॥ __क्र. २४४ नैषधीयमहाकाव्यदीपिका द्वितीयसर्गपर्यन्त पत्र ३३ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १४। लं. प. ११४४॥ पोथी २४ मी ___ क्र. २४५ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति पत्र ३०६ । भा. सं.। क. दुर्गसिंह । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. ११४४॥ क्र. २४६ कर्पूरमंजरीनाटिका पत्र २० । भा. सं. आदि । क. राजशेखर कवि। ले. सं. १५३८ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११४४।। अन्त____ संवत् १५३८ वर्षे माघ शुक्ल पूर्णिमा गुरौ श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्तानीय श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनचन्द्रसूरिवराणामादेशेन पं. देवभद्रगणिना स्ववाचनाय कर्पूरमंजरीनाटिकाप्रकरणम लेखि श्रीदेवकर्णराज्ये श्रीपार्श्वतीर्थे शुभं भवतु ॥श्री।। क्र. २४७ कर्पूरमंजरीनाटिका कर्पूरकुसुमभाष्य पत्र ४६ । भा. सं. । क. प्रेमराज । ले. सं. १५३८ । स्थि . मध्यम । पं. १४ । लं. प. ११४४ आदि-॥५० ॐ नमो वीतरागाय ॥ कर्पूरमंजरी नाम नाटिका राजशेखरी । तद्वयाख्या प्रेमराजेन कपूरकुसुमे कृता ॥१॥ इति श्रीमत्सूर्यवंशोद्भवसहिगिलकुलावतंसश्रीमत्प्रयागदासाङ्गज श्रीप्रेमराजविरचिते कर्पूरकुसुमनाम्नि कर्पूरमंजरीभाष्ये चतुर्थ यवनिकान्तरं समाप्तमिति ॥छ॥ श्रीरस्तु शुभमस्तु श्रीदेवगुरुप्रसत्तेः ॥छ॥ संवत् १५३८ वर्षे श्रावण शुक्ल सप्तम्यां सोमवासरे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे राउलश्रीदेवीदासविजयराज्ये श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्तानीयश्रीजिनशेखरसूरिपट्टे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टोदयाद्रिचूलासमलङ्करणश्रीसहस्रकरावतारश्रीजिनचन्द्रसुरिवराणामादेशेन पं. देवभद्रगणिवरेण वाचनार्थ श्रीकर्पूरमंजरीभाष्यमलेखि नन्दतादाचन्द्रार्क वाच्यमानं । लेखकपाठकयोः कल्याणं भूयात् श्रीजिनधर्मप्रसादतः ॥छ॥ क्र. २४८ कातंत्रविभ्रम सटीक टिप्पणी सह पत्र १० । भा. सं.। वृ. क. जिनप्रभसूरि । ग्रं. २६१ । र. सं. १३५२ । ले. सं. १४७८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ११४४।। आदि प्रणम्य परमं ज्योतिर्बालानां हितकाम्यया । वक्ष्ये संक्षेपतः स्पष्टां टीकां कातन्त्रविभ्रमे ॥१॥ दुर्दान्तशाब्दिकम्मन्यदर्पसप्पैकजाङ्गुली । नित्यं जागर्तु जिह्वाग्रे विशेषविदुषामियम् ॥२॥ अन्त अमुना प्रकारेण विषमप्रयोगान् पर्यनुयुज्यमाना अलीककलितवैयाकरणताभिमाना अननुसृतप्रकृतप्रन्थपद्धतयः Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २४१-२५४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २०७ केचित् प्रतिप्रतिहतप्रतिभा विशेषतयोत्तरं वितरितुमपारयन्तः प्रश्रवन्ति प्रस्वेदबिन्दून् , स्वीकुर्वन्ति जृम्भाम् , आद्रियन्ते निद्रामुद्राम् , जल्पन्ति तथाविधाभिधेयवन्ध्यम्, निरीक्षन्ते हरितः, पश्यन्त्यन्तरिक्षम्, विलोकयन्ति मुहुमुहुर्महीतलमिति । तथा चाहुः श्रीसिद्धसेनदिवाकरपादाः स्वेदं समुद्वहति जम्भणमातनोति निद्रायते किमपि जल्पति वस्तुशून्यम् । आशा विलोकयति ख पुनरेव धात्री भूताभिभूत इव दुर्वदकः सभायाम् ॥ तदिदमवगम्य सम्यक् तदनुसारि चेतो विधेयम् । अभ्यर्थनां प्रथितमाथुरवंशवंशमाणिक्यठक्कुरकुले कुलदीपकस्य । कायस्थकैरवनिकायनिशाकरस्य स्वीकृत्य मङ्गलविधामिव खेतलस्य ।।१।। पक्षेषुशक्तिशशिभृन्मितविक्रमाब्दे १३५२ धात्र्यङ्किते हरतिथौ पुरि योगिनीनाम् । कातन्त्रविभ्रम इह व्यतनिष्ट टीकामप्रौढधीरपि जिनप्रभसूरिरेताम् ॥२॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्य ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । एकषष्टया समधिकं शतद्वयमनुष्टुभाम् ॥३॥ अङ्कतोऽपि ग्रन्थप्रमाणं २६१ ॥छ॥ श्री संवत् १४७८ वर्षे श्रावण सुदि अष्टमीदिने श्रीखरतरगच्छे आचार्यश्रीकीर्तिसागरसूरिशिष्येण धर्मशेखरेण मुनिनाऽऽत्मपठनार्थ विलेखितः कातन्त्रविभ्रमः पण्डितगुणीयापुत्रेण पुरुषाकेन लिखितः भूमवारे ॥श्रीः श्रीः ॥छ॥ क्र. २४९ कालापकव्याकरण वृत्तिसह पत्र ९५। भा. सं.। ले. सं. १५२६ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११४४॥ अन्त संवत् १५२६ वर्षे माघमासे शुक्लसप्तम्यां गुरुवासरे रेवतीनक्षत्रे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनदत्तसूरिसन्ताने श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनेश्वरसूरिपट्टप्रवर श्रीजिनशेखरसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनधर्मसूरिपट्टोदयाद्रिचूलासूर्यावतार श्रीजिनचन्द्रसूरिवराणामादेशेन प. देवभद्रगणिना स्वपठनार्थमन्येषां वाचनार्थ कालापकवृत्तित्रयीविवरणमलेखि श्रीपार्श्वतीर्थे राउलश्रीदेवकर्णराज्ये लिखितमिदं पुस्तकमाचन्द्राकै नन्दतादिति ॥छ।।श्रीः।। क्र. २५० पार्श्वनाथचरित्र पद्य पत्र ७९-१९१। भा. सं.। क. भावदेवसूरि । ग्रं. ७००० । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. ११४४॥ क्र. २५१ चंडीशतक सटीक पत्र ३९ । भा. सं.। टी.क. बाणभट्ट । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ११४४। क्र. २५२ नलदवदंतीचरित्र पद्य पत्र २४ । भा. सं. । ग्रं. ८५४ । ले. सं. १५३५ । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ११४४। अन्तइति श्रीसत्यशीलविषये नलदवदंतीचरित्रं समाप्तं । संवत् १५३५ वर्षे भाद्रपदकृष्णे नवम्यां शनिवारे छ श्रीजिनेश्वरसूरिसन्तानीय श्रीजिनशेखरसूरिपट्टे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालङ्कार श्रीश्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये पं. देवभद्रमुनिना लिखितं श्रीजागुसाग्रामे युगादिदेवतीर्थे श्रीशुभं भूयादिति। यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया। यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥ श्रीरस्तु ॥ क्र. २५३ अमर्घराघवनाटक पत्र ८६ । भा. सं. आदि । क. मुरारि कवि । ले. सं. १३७५ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. ११४३॥ पोथी २५ मी क्र. २५४ गौतमपृच्छा वालावबोधसह अपूर्ण पत्र ४० । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०x४|| Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी २५ क्र. २५५ संबोधसप्तति बालावबोधसह पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । स्थि. जीर्ण । पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २५६ सप्तस्मरण खरतरगच्छीय सावचूरिक पंचपाठ पत्र १२ । भा. प्रा. सं.। स्थि. जीर्णप्राय । पं. ९ । लं. प. १०॥४४॥ ___क्र. २५७ पर्युषणाकल्पनियुक्तिवृत्ति किंचिदपूर्ण पत्र ४५-६० । भा. प्रा. सं.। मू. क. भद्रबाहुस्वामी। वृ. क. जिनप्रभसूरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ । संदेहविषौषधिवृत्ति अंतभाग। क्र. २५८ श्रावकाराधना पत्र ६ । भा. सं. । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १२ । लं. प. १०॥४४॥ ___ क्र. २५९ तत्वसारगाथा पत्र ५ । भा. प्रा. । गा. ७४ । ले. सं. १७४५ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ८। लं. प. १०॥४४॥ ___क्र. २६० कल्याणमंदिरस्तोत्र सस्तबक पत्र ७ । भा. सं. गू. । मू. का. ४४ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ ___ क्र. २६१ (१) शत्रुजयकल्प पत्र १-५ । भा. सं.। क. जिनप्रभसूरि । ग्रं. १३५। ले. सं. १७३२ । पत्र ५ मां-संवत् १७३२ वा श्रीथिराख्यपुरे लिपीकृतोऽयं । (२) उपदेशशतक पत्र ५-८। भा. सं.। ग्रं. १०३ । आनुं अपरनाम धर्मोपदेशशत अने जिनोपदेशशत पण छे। (३) सूक्तसंग्रह पत्र ८-१३ । भा. सं. । ग्रं. ९९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २६२ उपदेशमालाकर्णिकावृत्ति अपूर्ण पत्र १४ । भा. सं.। क. उदयप्रभसूरि। स्थि. जीर्ण। पं. १७ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २६३ श्राद्धविधि विधिकौमुदीवृत्तिसह पत्र १२१ । भा. सं. । क. रत्नशेखरसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं.'६७६१। र.सं. १५०६ । ले.सं. १५३२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २६४ भगवतीसूत्रबीजक पत्र ३-१०। भा. सं. । क. हर्षकुलगणि। र.सं. १६११ । ले. सं. १६१८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १६। लं. प. १०॥४४॥ क्र. २६५ प्रवज्याविधानकुलक पत्र ८ । भा. प्रा. । गा. ३४ । ले. सं. १७२३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २६६ संघपट्टक सस्तबक पत्र ९ । प्रा. सं. गू.। ले. सं. १७३५ । स्थि . जीर्ण। पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ । प्रति चोटीने नकामी थयेली छे। ___ क्र. २६७ (१) इंद्रियपराजयशतक सस्तबक पत्र १-१० । भा प्रा. गू.। मू. गा. १०० । (२) भववैराग्यशतक सस्तबक पत्र १०-१९ । भा. प्रा. गू. । मू. गा. १०४ । __(३) आदिनाथदेशनोद्धार सस्तबक पत्र १९-२७ । मू. गा. ८८ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२ । लं. प. १०x४॥ क्र. २६८ विवेकमंजरीप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा. । क. आसड । गा. १४४ । र. सं. १२४८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. २६९ संदेहविषौषधि-कल्पसूत्रवृत्ति पत्र ५७ । भा. प्रा. सं.। क. जिनप्रभसूरि। र. सं. १३६४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०॥४४॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २५५-२८५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २७० जीतकल्पसूत्र पत्र ५ । भा. प्रा. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०/४४| क्र. २७१ जीतकल्पसूत्र सटीक पत्र ५२ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । वृ. क. तिलकाचार्य । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०।४४ ।। पत्र त्रीजुं नथी । प्रतिनां केटलांक पानां चोटेलां छे । क्र. २७२ बृहत्कल्पसूत्र पत्र ९ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. १६२३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ अन्त २०९ १०७ । स्थि. संवत् १६२३ वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदशीतिथौ श्रीखरतर वेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने श्रीजिनशेखरसूरिसन्ताने श्री जिनधर्मसूरिपट्टधुरन्धरश्रीजिनचन्द्रसूरिवर श्रीजिनमेरुसूरिपट्टधर श्रीजिनगुणप्रभसूरीश्वरविजराज्ये श्रीकल्पच्छेदप्रन्थसूत्रप्रतिः लिखिता । पं. भक्तिमंदिरेण लिपीकृता श्री ६ जिनगुणप्रभसूरीणां तच्छिष्याणां च वाचनाय । चिरं नन्दतु । शुभं भवतु | कल्याणमस्तु ॥ छ ॥ क्र. २७३ दशाश्रुतस्कंध सूत्रचूर्णी पत्र ४३ । भा. प्रा. ग्रं. २२२५ । स्थि. मध्यम । पं. १८. । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २७४ दशाश्रुतस्कंधसूत्र पत्र २६ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. १६६५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०/४४ ॥ क्र. २७५ दशाश्रुतस्कंधसूत्र पत्र १८ । भा. प्रा. क. भद्रवाहस्वामी । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २७६ दंडकप्रकरण स्वोपज्ञवृत्तिसह पत्र ३ । भा. प्रा. सं. । क. गजसार स्वोपज्ञ । ले. सं. १५७९ । स्थि. मध्यम । पं. २० । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २७७ दंडक प्रकरण सस्तबक पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । मू. क. गजसार । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. २७८ दंडकप्रकरणअवचूरि पत्र ६ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०।४४॥ क्र. २७९ कुमारसंभवमहाकाव्य सप्तमसर्गपर्यंत पत्र १६ । भा. सं. । क. कालिदास । ले.सं. १५७५ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. २८० कथासंग्रह पत्र १६ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २८१ कुमारसंभवमहाकाव्य अवचूरि सप्तमसर्गपर्यन्त पत्र ४५ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २८२ बिल्हणपंचाशिका पत्र १ । भा. सं । क. बिल्हण कवि । का. ५१ । स्थि. मध्यम । पं. २२ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २८३ बिल्हणपंचाशिका पत्र ६ । भा. सं. । क. बिल्हण कवि । का. १२३ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १४ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २८४ द्वादशकथा घटक अपूर्ण पत्र ८९ - १०० । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. २८५ सिन्दूरप्रकर पत्र ७ । भा. सं. । क. सोमप्रभाचार्य । का. ९९ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०।४४ ॥ २७ पं. १५ । Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी २६-२७ क्र. २८६ सिन्दूप्रकर पत्र ९ । भा. सं.। क. सोमप्रभाचार्य । का. १००। स्थि. मध्यम। पं. १२। लं. प. १०४४॥ क्र. २८७ सिन्दूरप्रकर पत्र ७ । भा. सं. । क. सोमप्रभाचार्य । का. १०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३॥ लं. प. १०x४॥ क्र. २८८ शाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १८-१५३ । भा. प्रा. । क. सुधर्मा स्वामी। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ पोथी २६ मी ___ क्र. २८९ आवश्यकसूत्रबृहवृत्ति पत्र ५५३ । भा. सं. । क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. २२००० । ले. सं. १६६४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०४४॥ पोथी २७ मी क्र. २९० कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति ढुंढिकासह पंचपाठ पत्र २०६ । भा. सं. । वृ.क. दुर्गसिंह । ले. सं. १४७४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. १०४४। क्र. २९१ कल्पसूत्र कल्पलतावृत्ति अपूर्ण पत्र २-११४ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २९२ कल्पसूत्र सस्तबक पत्र २-१०० । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २९३ पर्युषणाकल्पदुर्गपद्व्याख्या पत्र १३ । भा. सं.। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ __क्र. २९४ बृहत्कल्पसूत्र पत्र १० । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २९५ शीलोपदेशमालाप्रकरण सस्तबक पत्र १२ । भा. प्रा. गू. । मू. क. जयकीर्तिसूरि। मू. गा. ११६ । ले. सं. १५५३ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०४४॥ अन्त सं. १५५३ वर्षे तपागच्छनायकश्रीइंद्रनंदिसूरिविजयराज्ये महोपाध्यायश्रीअमरनंदिगुरुराजशिष्येण लिखितं सा. जीवा भार्या श्रा. रमाई पुत्री श्रा. म. गाई पठनार्थ ॥श्री॥ क्र. २९६ शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा.। क. जयकीर्तिसूरि । गा. ११५ । ले.सं. १५०५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४॥ अन्त-सं. १५०५ वर्षे पोस वदि ६ दिने घोघामध्ये लिखितम् ॥ . २९७ शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र १०। भा. प्रा. । क. जयकीर्तिसूरि। गा. ११५ । स्थि . मध्यम । पं. ९। लं. प. १०॥४४॥ अन्त संवत् १५२२ वर्षे चैत्र सुदि ५ शनिवारे श्रीबहादुरपुरस्थाने श्रीतपागच्छे भट्टारकश्रीहेमसमुद्रसूरीणां पण्डयाइंस (पन्यास) हरिषसुंदरगणि पण्ड्याइंस हंसरत्नगणि सपरिवारात श्राविका रूपा लिखापितम् । आत्मार्थे पठनीयात् ॥छ। लिखित साहमाहिराजेन ॥छ॥छ॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. २८६-३१५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २११ क्र. २९८ पुष्पमालाप्रकरण पत्र १५। भा. प्रा. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । गा. ५०५ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. २९९ श्रेणीकरास-सम्यक्त्व रास पत्र २२ । भा. गू. । क. सौभाग्यहर्षसूरिशिष्य। र. सं. १६०३ । ले. सं. १६३१ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०॥४४॥ क. ३०० गुणावलीकथानक रास पत्र ३ । भा. गू. । क. ज्ञानमेरु । र. सं. १६७६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २२ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३०१ ईषुकारीयचरित्ररास पत्र ३ । भा. गू.। क. क्षेमराजमुनि। कडी ४५। स्थि. मध्यम। पं. १२ । लं. प. १०४४॥ क्र. ३०२ जंबूस्वामिरास पत्र ९ । भा. गू.। क. देपाल। कडी १७८ । र. सं. १५२२ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३०३ साधुवंदनारास पत्र ६ । भा. गू. । क. पुण्यसागर । कडी १०२। स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३०४ जंबूस्वामिचरित्रबालावबोध पत्र २-१४ । भा. गू.। ले. सं. १५६८ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३०५ चंदनमलयागिरिकथा वासवदत्ताकथा तथा बारव्रतकथा पत्र ११। भा. सं.। ले. सं. १७३१। स्थि . मध्यम। पं. १८ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३०६ मृगापुत्रचरित्रसंधि पत्र ३ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि। गा. ४४ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १३। लं. प. १०॥४४॥ ___ क्र. ३०७ (१) वेलिपीराएली पत्र १। भा. गू. । क. सिंहो। कडी १५ । (२) जंबूस्वामिप्रबंध पत्र १-२। भा. गू.। गा. १७ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ . क्र. ३०८ श्रेणिकरास ऋटक अपूर्ण पत्र २-७। भा. गू। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३०९ ईश्वरशिक्षा पत्र ३। भा. गू। कडी २९। स्थि. मध्यम। पं. ११। लं. प. १०x४॥ । प्रति पाणीमां भींजाएली छे। क्र. ३१० रत्नसारकुमाररास पत्र ९ । भा. गू। क. सहजसुंदर। कडी ३१८ । र. सं. १५८२ । ले. सं. १६६२ । स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३११ रत्नसारकुमाररास पत्र १० । भा. गू.। क. सहजसुंदर। कडी ३०१। र. सं. १५८२ | ले. सं. १६२१ । स्थि. मध्यम । पं. १४। लं. प. १०x४॥.। प्रति पाणीमां भोंजाएली छे । क्र. ३१२ रत्नचूडरास पत्र १२ । भा. गू. । क. कमलप्रभसूरि । कडी ३०८ । र. सं. १५७१ । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०x४॥.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे। क्र. ३१३ कयवन्नारास पत्र १० । भा. गू. । क. गुणसागरसूरि । कडी ३२९ । ले.सं. १७३७॥ स्थि . श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३१४ कलावतीरास पत्र ७ । भा. गू.। क. संयममूर्ति अंचलगच्छीय। कडी १९४ । र. सं. १५९४ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३१५ चउगतिवेल पत्र ७ । भा. गू. । कडी १३५ । स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. १०x४॥ Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी २७-२८ क्र. ३१६ प्रत्येकबुद्धरास घटक अपूर्ण पत्र २२ । भा. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १७ । लं. प. १०।९४॥ वचमां घणां पानां नथी । २१२ क्र. ३१७ पाश्र्वनाथविवाहलो टक पत्र ४-५ । भा. गू. । ले. सं. १५५१ । स्थि. जीण । पं. १९ । लं. प. १०।४४ ॥ अन्त- सं. १५५१ वर्षे भीलमालागच्छे भट्टारक श्री श्री अमरप्रभसूरिशिष्य मु. कुलमंडन लिखितोऽयं रासः । श्रीजावालपुरनगरे | कल्याणं भवतु लेखकस्य । क्र. ३१८ कर्मग्रंथपंचक पत्र १८ । भा. प्रा. । क. देवेन्द्रसूरि । ले. सं. १४८५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. पं. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ३१९ पगामसज्जाय तथा हरियाली गीत पत्र ३ । भा. प्रा. गू. । हरि० क. रतनमुनि । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ३२० दर्शनसप्ततिकाप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा. । गा. ७० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ३२१ कर्मग्रंथपंचक पत्र १२ । भा. प्रा. । क. देवेन्द्रसूरि । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ३२२ कर्मस्तव द्वितीय कर्मग्रंथ पत्र ३ । भा. प्रा. । क. देवेन्द्रसूरि । गा. ३५ । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । क्र. ३२३ (१) पष्टिशतप्रकरण सावचूरि पत्र १ - १५ । भा. प्रा. सं. । भंडारी । अ. क. गजसार । (२) नवतत्त्वप्रकरण सावचूरि पत्र १५ - २६ । भा. प्रा. सं. । सं. गा. ४१ । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ भू. क. नेमिचंद्र . क्र. ३२४ चतुर्थ पंचम कर्मग्रंथ पत्र १८ । भा. प्रा. । क. देवेन्द्रसूरि । गा. १८६ | ले. सं. १६५७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ३२५ काव्यकल्पलता कविशिक्षावृत्तिसह अपूर्ण पत्र ४८ । भा. सं. । क. अमरचंद्रसूरि स्वोपज्ञ । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. १०/४४ ॥ क्र. ३२६ लघुसंघपट्टकप्रकरण पत्र २ । भा. सं । क. जिनवल्लभसूरि । का. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ गा. क्र. ३२७ पुष्पमालाप्रकरण पत्र २९ । भा. प्रा. क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ले. सं. १६८५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ ४० । स्थि. क्र. ३२८ कर्मविपाककर्मग्रंथ साबचूरि पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । मू. क. देवेन्द्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. १०॥४४॥ ५०८ । क्र. ३२९ संदेहदोलावलीप्रकरण संस्कृतस्तबक सह पत्र १० । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनदत्तसूरि । मू. गा. १५० । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क. ३३० (१) उपदेशमालाप्रकरण पत्र १ - १९ । भा. प्रा. । क. धर्मदासमणि । गा. ५४३ । ले. सं. १५७३ । (२) चैत्यवंदनाविधिप्रकरण पत्र २०-२२ । भा. प्रा. । गा. ३५ । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३१६-३४३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २१३ (३) नवतत्त्वप्रकरण पत्र २२-२३ । भा. प्रा. । गा. २७ । (४) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र २३-२८ । भा. प्रा.। क. आसड । गा. १४४ । र. सं. १२४८॥ (५) जंबूद्वीपक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र २९-३३। भा. प्रा.। गा. १०९। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३३१ संग्रहणीप्रकरण अपूर्ण पत्र १० । भा. प्रा. । क. श्रीचंद्रसूरि। स्थि. मध्यम। पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३३२ शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र । भा. प्रा. । क. जयकीर्तिसूरि । गा. ११६ । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३३३ शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र ३। भा. प्रा. । क. जयकीर्तिसूरि । गा. ११६ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३३४ पुष्पमालाप्रकरण पत्र १९ । भा. प्रा. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि। गा. ५०५। ले. सं. १६६७ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३३५ वैद्यकसारोद्धार सन्निपाताधिकार अपूर्ण पत्र ११। भा. सं. । ग्रं. २३३ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३३६ अश्विनीकुमारसंहितागत त्रयोदशम प्रकरण सस्तबक पत्र ११ । भा. सं. गू.। मू. ग्रं. ४१। ले. सं. १६८८। स्थि . मध्यम । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ पोथी २८ मी क्र. ३३७ समवायांगसूत्र पत्र ३९ । भा. प्रा. । क. सुधर्मा स्वामी। ग्रं. १७६७ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०४४॥.। प्रथम पत्रमा भगवाननुं चित्र छे । क्र. ३३८ उपासकदशांगसूत्र पत्र २३ । भा. प्रा. । क. सुधर्मा स्वामी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४॥.। प्रति पाणीमां भीजायेली छे । क्र. ३३९ सूत्रकृतांगसूत्र द्वितीयश्रुतस्कंध सस्तवक त्रिपाठ पत्र ३४। भा. प्रा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. २५। लं. प. १०x४॥ . क्र. ३४० आचारांगसूत्रदीपिका पत्र १९०-३०१। भा. सं. । क. जिनहंससूरि । ग्रं. १.५००। र. सं. १५७३ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०x४॥ क्र. ३४१ (१) गुर्वावली पत्र १-२ । भा. गू. । क. गुणविनय। गा. ३१ । (२) गौतमस्वामिगीत पत्र २ जु। भा. गू. । क. गुणविनय । कडी ४। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०x४॥ क्र. ३४२ (१) पार्श्वनाथस्तवन पत्र १। भा. गू. । क. जिनसुंदरसूरि । गा. ७। (२) गोडीपार्श्वनाथस्तवन पत्र १ लुं। भा. गू. । क. जिनसुंदरसूरि । गा. ९। (३) पार्श्वनाथस्तवन पत्र १-२। भा. गू. । क. हर्षसमुद्र । गा. ७। र.सं. १७४१ । (४) ऋषभदेवस्तवन बालेवामंडन पत्र २-३ । भा. गू. । क. जिनसुंदरसूरि। ) पार्श्वनाथमेघराजगीत पत्र ३जुं। भा. गू. । क. जिनसुंदरसूरि । गा. ६। र.सं. १७४९। ले.सं. १७४९ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३४३ (१) थिरपुरमंडन शांतिजिनस्तवन-आलोचनाविनतीस्तोत्र पत्र २। भा. गू। क. जिनसमुद्रसूरि। गा. ३९ । र. सं. १७३२ । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी २८ (२) थिरपुरमंडन कुंथुजिनस्तवन पत्र ३-४ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि। गा. ४७ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । ले. प. १०x४॥ क्र. ३४४ पंचसमवायाधिकार (गुणसागरप्रबोधांतर्गत) पत्र ३ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि। गा. ६९ । स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३४५ पार्श्वजिनछंद पत्र ३ । भा. गू । क. जेतसी। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ३४६ चतुर्विंशतिजिनचतुर्विंशतिका शांतिनाथजिनपर्यंत पत्र ३। भा. गू । क. जिनसुंदरसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २०। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३४७ (१) मौनएकादशीतपगर्भित सर्वतीर्थकरस्तुतिरूप श्रीमल्लिजिनस्तोत्र पत्र २ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि। गा. ४४। (२) मौनएकादशीस्तुति पत्र २-३ । भा. गू.। क. जिनसमुद्रसूरि । गा. ४ । (३) एकादशीनिर्णयगर्भित पाश्वनाथस्तवन पत्र ३-४ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि। गा. १८। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १२। लं. प. १०४४॥ क्र. ३४८ श्रीपालचरित्रबालावबोध पत्र १४ । भा. गू.। क. रत्नसोम वेगडगच्छीय। ले. सं. १७२५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६। लं. प. १०x४॥.. ग्रंथकर्ताए पोतेज लखेली प्रति छ । अन्त श्रीमद्वेगडगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिराट । राज्ये एषा कृता वार्ता रत्नसोमेन साधुना ॥१॥ इति श्रीचरित्रम् ॥ ॥छ॥ संवत् १७२५ वर्षे पोषमासे त्रयोदशीतिथौ सोमवारे श्रीमबृहत्खरतरवेगडगच्छे भट्टारकश्रीजिनसमुद्रसूरिविजयराज्ये पं. रत्नसोमेन लिखितं श्रीसुरतबंदरमध्ये श्रीअजितनाथप्रसादात् । शुभं भवतु ॥छ॥ क्र. ३४९ (१) नेमीश्वरगीत पत्र १ लुं। भा. गू. । क. लाभोदय। गा. ५। (२) पंचासरापार्श्वनाथस्तवन पत्र १ लु। भा. गू, । क. लाभोदय। (३) नारिंगापार्श्वनाथस्तवन पत्र १-२ । भा. गू। क. लाभोदय। गा. ७ ॥ (४) चिंतामणीपार्श्वनाथस्तवन पत्र २ जूं। भा. गू। क. लाभोदय । गा. ७ । (५) हरियाली ६ पत्र २-३ भा. गू. । क. लाभोदय। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०४४|| क्र. ३५० (१) नेमिनाथगीत पत्र १ । भा. गू.। क. महिमराज। गा. १३ । (२) वैराग्यगीत पत्र १-२ । भा. गू.। क. राजसमुद्र । गा. ८। (३) संजमसुंदरीगीत पत्र २ जुं। भा. गू.। क. राजसमुद्र । गा. १५ । स्थि. मध्यम। पं. १३। लं. प. १०x४॥ क्र. ३५१ गोडिचास्तवन पत्र ५। भा. गू.। क. जिनसुंदरसूरि वेगडगच्छीय। र.सं. १७५३ । स्थि . मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०४४॥ ३५२ चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र पत्र ४५। भा. प्रा.। ग्रं. २०००। ले. सं. १६२० । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०४४॥ अन्त संवत् १६२० वर्षे ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षेऽमावास्यां बुधवासरे श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने श्रीजिनशेखरसूरि श्रीजिनधर्मसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनमेरुसूरिपट्टोदयाद्रि श्रीजिनगुणप्रभसूरिविजयराज्ये श्रीचंदपनत्तीसूत्रमलेखि । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१५ क. ३४४-३६५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. ३५३ औपपातिकोपांगसूत्र पत्र ३५। भा. प्रा. । ग्रं. ११६७ । ले. सं. १६१७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४॥ अन्त उववाइयं उवगं सम्मत्त। ग्रं. ११६७। सं. १६१७ वर्षे श्रावण वदि सप्तमीदिने रविवासरे श्रीखरतरघेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने श्रीजिनशेखरसूरयः। ततः श्रीजिनधर्मसूरयः तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरयः तत्पट्टप्रवराः श्रीजिनमेरुसूरीश्वराः तत्पट्टोद्धरणप्रवणश्रीजिनगुणप्रभसूरिविजयराज्ये पं. भक्तिमंदिरेण लिपीकृता श्रीउपपातिकोपाङ्गप्रतिरियं वाचनार्थ श्रीपूज्यवराणाम्। वाच्यमाना च चिरं नन्दतात् आचन्द्रार्कम् । श्रीरस्तु श्रीसङ्घस्य ॥ छ॥ क्र. ३५४ औपपातिकोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ७१। भा. सं.। क. अभयदेवसूरि। ग्रं. ३१३५ । ले. सं. १६१७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५।लं. प. १०x४॥ क्र. ३५५ गणधरसार्द्धशतकप्रकरण पत्र ८। भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि । ले. सं. १६८९ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०x४॥ क्र. ३५६ (१) षष्टिशतप्रकरण सस्तबक पत्र १-१६ । भा. प्रा. गू.। क. नेमिचंद्र भंडारी। गा. १६१ (२) महर्षिकुलक (लुद्धा नरा०) पत्र १६-१७। भा. प्रा. । गा. २० । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १९। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३५७ पुष्पमालाप्रकरण पत्र ३० । भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । गा. ५०८। स्थि. श्रेष्ठ। पं. ११ । लं प. १०॥४४॥ क्र. ३५८ प्रश्नोत्तररत्नमाला बालावबोधसह पत्र ३ । भा सं गू। मू. क. विमलाचार्य । मू. आर्या २९ । स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३५९ चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तबक पत्र १२ । भा. प्रा गू.। मू. क. वीरभद्रगणि। गा. ६३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६। लं. प. १०x४॥ क्र. ३६० वैद्यमनोत्सव पत्र ४-११। भा. हिन्दी । क. नयनसुख । ग्रं. ६००। स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३६१ सूत्रकृतांगसूत्रगत आर्द्रकीय आदि अध्ययन पत्र ११ । भा. प्रा.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३६२ चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र ३ । भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणि । गा. ६३ । स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. १०x४॥ क्र. ३६३ बुद्धिरास पत्र ४ । भा. गू. । क. शालिभद्रसूरि। गा. ५७ । ग्रं. ९० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ३६४ जंबूस्वामिरास पत्र ७ । भा. गू. । क. रत्नसिंहसूरि शिष्य । र. सं. १५१६ । ले.सं. १५४१। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०४४॥ अन्त इति श्रीजंबूस्वामिरासः संपूर्णः। संवत् १५४१ वर्षे वैशाख सुदि ३ रवौ । संघवी थावरभार्या सुधाविका मानू तत्सुता श्रा० मणकाईपठनार्थ लिखितं परोपकाराय ॥७॥ शुभं भवतु श्रीचतुर्विधश्रमणसंघस्य ॥छ॥ क्र. ३६५ ललितांगकुमाररास पत्र ८ । भा. गू. । क. क्षमाकलश । गा. २१९। र. सं. १५५३ । ले. सं. १६४५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०४४॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी २९ ___ क्र. ३६६ उपदेशरत्नकोश सस्तबक पत्र २ । भा. प्रा. गू. । गा. २५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं.२० । लं. प. १०x४॥ क्र. ३६७ रत्नचूडरास पत्र १८ । भा. गू. । गा. ३४३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३६८ कलिकालरास पत्र २ । भा. गू. । क. हीरानंदमुनि पिष्पलगच्छीय । गा. ४७ । र. सं. १४२६ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३६९ सुंदरशंगार पत्र १६ । भा. हि.। गा ३५३ । ले. सं. १७५३ । स्थि . मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ३७० रघुवंशमहाकाव्यटीका पत्र १२४ । भा. सं.। क. गुणरत्नगणि । ग्रं. ६०७० ।र.सं. १६६७। ले. सं. १६८३ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०x४॥ अन्त रघुवंशे लघुटीका बालानां बोधहेतवे । गुणरत्नगणिवादी कृतवान् विदुषांवरः ॥१॥ श्रीमज्जोधपुरे रम्ये मुनिषड्रसमामिते । वर्षे श्रीगुणरत्नाख्यां टीका बालसुबोधिनीम् ॥२॥ इति श्रीरघुवंशे महाकाव्ये कालिदासकृतौ एकोनविंशतितमः सर्गः समाप्तः । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥श्री॥ संवत् १६८३ वर्षे भाद्रवा सुदि ८ दिने शनौ मूलनक्षत्रे श्रीखरतरवेगडगच्छे भट्टारकश्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने भ. श्रीजिनशेखरसूरि तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि तत्पट्टे श्रीजिनमेरुसूरि तत्पट्टे श्रीजिनगुणप्रभसूरि तत्पट्टे श्रीजिनेश्वरसूरि तत्पट्टालङ्कार भट्टारक श्री ६ जिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये पं. मतिसागरेण लिखिता एषा प्रतिः श्रीजेसलमेरौ राउल श्रीकल्याणजीविजयराज्ये श्रीपार्श्वतीर्थे । यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्धं वा मम दोषो न दीयते ॥१॥ ॥ श्रीरस्तु कल्याणं भूयात् ॥ श्रीः ॥ ग्रं. ६०७० ।। पोथी २९ मी क्र. ३७१ उत्तराध्ययनसूत्र सस्तबक पत्र ३४-१३० । भा. प्रा. गू। ले. सं. १७११ । स्थि . मध्यम । पं. १८ । लं. प. १०x४॥ अन्त संवत् १७११ आषाढादि १२ वर्षे कात्तिकमासे मनोल्लासे सप्तमीतिथौ शुक्रवारे श्रवणनक्षत्रे वृद्धियोगे श्रीजेसलमेरुनगरे श्रीपाश्वजिनतीर्थे श्रीवृहत्खरतरवेगडगच्छे भट्टारकश्री ५ श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये तच्छिष्य पं. रत्नसोमेन लिखिता एषा प्रत्तिरिय स्ववाचनार्थ । शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥छ। श्रीस्तात् कल्याणं भूयात् ॥ क्र. ३७२ शीलोपदेशमाला शीलतरंगिणीवृत्तिसह चूटक अपूर्ण पत्र १८-७७ । भा. प्रा. सं.। ७. क. सोमतिलकसूरि रुद्रपल्लीय । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०x४॥ ल्पसूत्र बालावबोधसह अपूर्ण पत्र २-१८१। भा. प्रा. गू। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३। लं. प. १०x४॥ क्र. ३७४ शीलोपदेशमालाप्रकरण वालावबोधसह पत्र १५३ । भा. प्रा. गू.। ग्रं. ६२५० । ले. सं. १५७८ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०४४॥ अन्त संवत् १५७८ वर्षे आसोजमासे शुक्लपक्षे द्वितीयादिने भोमवासरे श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिश्रीजिनशेखरसूरि तत्पट्टे भट्टारक श्रीजिनधर्मसूरि भ० जिनचन्द्रसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनमेरुशिष्य आचार्य विद्यमान श्रीजयसिंघसूरिविजयराज्ये पं. राजशेखर लिखितम् । आचन्द्राकै यावत् पुस्तकलेखकयोः शुभं भवतु ॥छ॥ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३६६-३९०] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. ३७५ शाताधर्मकथांगसूत्र सस्तबक त्रुटक अपूर्ण पत्र १२५-२४८ । भा. प्रा. गू। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ३७६ कल्पसूत्र किरणावलिटीकासह त्रिपाठ पत्र २०१। भा. प्रा. सं.। मू. क. भद्रबाहुस्वामी । टी. क. धर्मसागरोपाध्याय । टी. र. सं. १६२८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ३७७ रघुवंशमहाकाव्यवृत्ति पत्र १५३ । भा. सं.। क. चारित्रवर्धन। पं. ८०००। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०x४॥ पोथी ३० मी क्र. ३७८ सामाचारीशतक बीजकसह पत्र ११० । भा. सं.। क. समयसुंदरोपाध्याय । ले. सं. १९८३। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ११॥x५। ___ क्र. ३७९ वक्रोक्तिजीवित अपूर्ण पत्र ४४। भा. सं. । क. कुत्तक महाकवि। ले. सं. १९८४ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. ११॥x५। ___क्र. ३८० जयदेवछंदःशास्त्र वृत्तिसह पत्र १९ । भा. सं.। मू. क. जयदेव । वृ. क. हर्षट । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ११॥४५॥ क्र. ३८१ जयदेवछंदःशास्त्र पत्र ४। भा. सं. । क. जयदेव । ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ११४५। . क्र. ३८२ कइसिहछंदःशास्त्र पत्र १२ । भा. प्रा.। ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. ११॥४५॥ क्र. ३८३ ज्योतिष्करंडकप्रकीर्णक वृत्तिसह पत्र १३२ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. आचार्य मलयगिरि। ले. सं. १९८३ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. ११४५। क्र. ३८४ नंदीसूत्रलघुवृत्तिदुर्गपदप्रबोध पत्र ७७ । भा. सं. । क. श्रीचंद्रसूरि । पं. ३३०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ११४५। ___क्र. ३८५ योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १४ । भा. सं. । क. हेमचन्द्रसूरि। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १२। लं. प. ११॥४४॥. । पत्र २-३ नथी. क्र. ३८६ वज्जालग पत्र २० । भा. प्रा.। ले. सं. १५४१। स्थि. मध्यम। पं. १६ । लं. प. ११॥४४॥ अन्त संवत् १५४१ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे राउलश्रीदेवकर्णराज्ये श्रीफाल्गुनमासे कृष्णपक्षे द्वितीया रवौ वासरे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालङ्कारश्रीजिनचन्द्रसूरीणामादेशेन पं. देवभद्रमुनिना श्रीसुभाषितप्रन्थः लिखितोऽयम् ॥श्रीकल्याणमस्तु ॥छ। . क्र. ३८७ सूक्तसंग्रह-सम्यक्त्वकौमुदीकथागत पत्र । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. ३८८ सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय पत्र ७ । भा. प्रा. स.। ले. सं. १५४७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ११४४|| क्र. ३८९ दुरियरयसमीर महावीरचरित्रस्तोत्र पत्र २ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. ४४ । स्थि . मध्यम । पं. १२ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. ३९० प्रवचनसारोद्धार अपूर्ण पत्र ३५ । भा. प्रा.। क. नेमिचन्द्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. ११॥४४॥ २८ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ३०-३१ क्र. ३९१ धनपालपंचाशिका सावचूरि पंचपाठ पत्र ३। भा. सं. । मू. क. धनपाल । मू. गा. ५०। स्थि . मध्यम । पं. १७। लं. प. ११॥४४॥ क्र. ३९२ जिनशतकमहाकाव्य पत्र ९ । भा. सं.। क. जंबूकवि । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १३ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. ३९३ मलयसुंदरीचरित्र पद्य पत्र ३० । भा. सं.। क. जयतिलकसूरि आगमिक । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १६ । लं. प. ११॥४४॥। प्रति उदरे करडेली छ। क्र. ३९४ उपदेशमाला हेयोपादेयावृत्तिसह पत्र ३-१३५ । भा. प्रा. सं. । भू. क. धर्मदास गणि। वृ. क. सिद्धर्ष । स्थि. सारी। पं. १२। लं. प. १११४४॥ क्र. ३९५ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति तद्धितपर्यंत टिप्पणीसह पंचपाठ पत्र ९० । भा. सं.। ले. सं. १५५२। स्थि . मध्यम। पं. १६। लं. प. ११४४॥ क्र. ३९६ सप्तस्मरण संस्कृतस्तबकसह-खरतरगच्छीय पत्र ८ । भा. प्रा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. ११४४॥ क्र. ३९७ कथासंग्रह पत्र ९। भा. सं. । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १८ । लं. प. ११४४॥ पोथी ३१ मी क्र. ३९८ पंचतंत्र पत्र २-२९८ । भा. सं.। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०४४| क्र. ३९९ (१) शबूंजयउद्धाररास पत्र १-१० । भा. गू। क. समयसुंदरोपाध्याय । र.सं. १६८२ । (२) गौतमस्वामिरास पत्र ११-१७ । भागू. । गा. ४७ । र. सं. १४१२ । । महावीरस्वामितपपारणास्तवन पत्र १७-२० । भा. गू. । गा. ३१ । (४) शांतिनाथस्तवन पत्र २०-२२ । भा. गू। क. गुणसागरसूरि। गा. २२ । २) सोलसतीस्तवन पत्र २२-२४ । भा. गू, । गा. ११। (६) नवकारनी सज्झाय पत्र २४-२५ । भा. गू. । क. गुणसागरसूरि । गा. ९। (७) अष्टापदस्तवन पत्र २६ मुं। भा. गू.। क. समयसुंदर । गा. ५। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. १०x४.। आ प्रतिनां पानां चोंटी जवाथी अक्षरो उखडी गया छ। अन्त क्र. ४०० ऋषिदत्ताचोपाई पत्र २७ । भा. गू. । र. सं. १६९८ । क. वेगडगच्छीय महिमसमुद्र प्रारब्ध. वेगडगच्छीय क्षमासुंदर पूर्णीकृत । ले. सं. १७६६ । स्थि. मध्यम। पं. १५ । लं. प. १०x४॥ आदि-॥ ६॥ श्रीभारत्यै नमः॥ श्रीश्रीसीमंधरप्रमुख विहरमाण जिन वीस । सांप्रति सामी विहरता जगजीवन जगदीस ॥१॥ आदिनाथ जिन आदिदेव चउवीस जिनराय। पुंडरीक गौतम प्रमुख गणधर सवि सुखदाय ॥२॥ ए सहूनइ प्रणमी करी प्रण, सदगुरु पाय । बे कर जोडी भावसुं प्रणमुं सरसति माय ॥३॥ प्रथम अभ्यास मई मांडीयु पिण हुँ मूढ अज्ञान । आई जा तूं आपिजे हिव मुझ अविरल वाणि ॥४॥ दान सील तप भावना च्यारे धर्म उदार । तउ पिण सोल मोटड काउ इह परभव सुखकार ॥५॥ ढाल-सील कहै जग हुँ वडो-ए देशी एतले खंड पूगे थयो सात ढाले सुसंवादो रे । पांचमो रूडी परि जाणीइं श्रीजिनचंदसूरि प्रसादी रे। खं० ॥१॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ३९१-४०४ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २१९ २१९ शिश गच्छ खरतर गुणनिलो वेगडबिरुद श्रीकारो रे । महिमसमुद्र सतीत्णा गुण गाया अतिह उदारो रे । ख० ॥ २ ॥ सील सवि संकट टलै सीलै सुख हुइ मोटा रे । सीलस्यु जस वाधे घणो इणमाहे काइ न खोटा रे । खं० ॥३॥ ढाल एह पुरी थई कहै महिमसमुद्र मुदो रे । छट्टो खड कह हिव भवीयण सुणज्यो आणंदो रे । खं० ॥४॥ ॥ इति श्री पंचम खण्डः ॥ अन्त-मत कांई का ढो इणमें खोडी जुगति संघाते जोडीजी । तरुण पुरुषने स्वाद वाचतां आवस्यै कोडी सुणतां कान पवित्र सजोडी जी ॥ संवत् सोल अठाणू वरसै १६९८ वैशाख सुदि मन हरखै जी। श्रीजिनचद वयणे चित तरस तिण ए भाख्यो हरख जी ॥ श्रीमहिमसमुद्र तेहनो सीस भाखी तिण विश्वावीस जी। पांच खंड तिण पूरण भाखी छेड्डे अधुरी राखी जी ॥ श्रीजिनसमुद्र सूर पाटै सोहै धजिनसुंदरसुर मन मोह जी। तास आदेसइ तेहनै सं सइ खमासुंदर सुजगीसइ जी । भाग थाकतो पूरण कीधो सुजस भलो जगमें लीधो जी। सतीचरित गायो मन हरसें भाख्यो अतिहरसइं जी ॥ जे ए चरित सांभलस्ये भणस्यै एकचित्त थइ गुणस्य जी । ते लक्ष्मी अविचल लीला लहिस्यै सुख संपति बहु लहीइ जी ।। ............श्रीऋषिदत्ताना गुण गाया ॥ इति श्रीऋषिदत्ता प्रति योगिन्या कलङ्क चटापन १ पुरबाट निकासन २ विरह विलाप कुर्वण ३ पश्चात्तपोवनप्रापन ४ जटिकाप्रयोगेन तापसवेषकुदेन ५ कुमर मिलन ६ रुक्मिणीपरणण तत्र तापस स्त्री वेष करणन दीक्षा ग्रहण यावत् भोक्ष प्रापण नाम सगः षष्ठः ॥ इति श्रीऋषिदत्ता चोपाई संपूर्णा । सं. १७६६ वर्षे श्रीईटाथी मध्ये लिखिता। श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ॥ क्र. ४०१ हृदयप्रकाश पत्र २-७ । भा. सं.। क. हृदयनारायणदेव । ले. सं. १७३८। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०x४॥.। संगीतशास्त्रविषयक ग्रंथ छे । अन्त-इति श्रीमहाराजाधिराजमहाराजगच्छदुर्गाधिपमहाराजश्रीहृदयनारायणदेवविरचितो हृदयप्रकाशः समाप्तः ॥ सं. १७३८ वां। क्र. ४०२ पंचतंत्र पत्र २३-४६ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १७। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ४०३ प्रक्रियाकौमुदी पत्र १०३ । भा. सं.। क. रामचंद्राचार्य । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ अन्त-श्रीपूज्यश्रीजिनगुणप्रभसूरीणां शिष्यश्रीकमलमंदिरगणीनं शिष्यमहोपाध्यायश्रीगुणसमुद्रेण श्रीप्रक्रियाकौमुदी लिपीकृता ॥श्री स्तात् ॥ क्र. ४०४ सुभाषितश्लोकसंग्रह पत्र ३-१७। भा. सं.। ले. सं. १६९९। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३। लं. प. १०४४॥ Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ३१-३२ क्र. ४०५ सूक्तावली पत्र २७ । भा. सं. । ग्रं. १०४६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १० ४४॥ प्रति प्राणीमां भींजाईने खराब थयेली छे । २२० क्र. ४०६ सुभाषितसंग्रह पत्र ९ । भा. सं. । का. १४५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ४०७ वाग्भटालंकार पत्र ६२-७२ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. १० १४४ ॥ क्र. ४०८ सुभाषितसंग्रह पत्र ८ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ४०९ गुणावलीगुणकरंडकरास पत्र १२ । भा. गू. । क. उदयसूरि वेगडगच्छीय । र. सं. १७७३ | ले. सं. १७७३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०।४४ ॥ अन्त-ढाल २३दीठौ २ रे जिम सुंदर दरिसण दीठौ - एहनी देशी । गाया गाया रे में सतीतणा गुण गाया । कूडकपट मिथ्यात न कीजै धरम दया चित्त ध्याया रे, में सतीतणा गुण गाया ॥१॥ सील प्रमाणे सती गुणावलि परिगल संपद पाया । बोल चतुर कीधा बिरुदाली श्रीजिनधरम सवाया रे । गुण सीलतणा इम गाया ॥२॥ सतीय चरित सुणतां सुख संपद आनंद अंग उपाया । ग्रंथ निरीखे भाषा ग्रंथी सलही सुगुरु पसाया रे । कवि कल्पन जे अधिकौ कहियौ मिच्छादुकृत दिराया। भाव करीनै भावौ भवियण सुणतां हरख सवाया रे । 11811 सतरहसै तेहुत्तर वरसै १७७३ शुक्रवार सुख दाया । माघ शुक्ल दशमी मन हरखे चरित रच्यौ चित्त लाया रे । गुण० ॥५॥ ससि गच्छ खरतर साख सवाई वेगड बिरुद सवाया । वडा विद्यावंत सूरीश्वर सुगुरु जिनेश्वरराया रे | गुण० ॥ ६ ॥ श्री जिनशेखर श्रीजिनधर्मवर मेरुसूरींद मुनिराया । गुण० ॥३॥ गुरु गुणप्रभसूरि सवाई विधि जिण धन वरसाया रे । गुण० ॥७॥ सूरि जिनेश्वर जिनचंद्रसूरिवर जिनसमुद्र युगराया । तास पट्ट गुरु युगवर गच्छपति श्रीजिनसुंदरसूरिराया रे । गुण० ॥८॥ तस पद सेवक उदयसूरीश्वर ग्रन्थ रच्यौ गुण गाया । सुख संपति भणतां सुणतां नित वंछित फल वर दाया रे । गुण ० अह लगि भूमि लवणदधि सूरज जां चंद्रमंडल चंदा | थिर संबंध सदा थिर थावौ उदयसूरि आणंदा रे । गुण० ॥ १० ॥ इतिश्रीगुणावलीगुणकरंडक सेठ गुणसुंदरीचरित्र संपूर्ण समाप्तम् । श्री ॥ छ ॥ || शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ श्री ॥ संवत् १७७३ वर्षे माघ शुक्ल दशम्यां दिने पक्षे फाल्गुनि बहुलतृतीयायां भृगुवासरे श्रीषट्पत्तनाख्यदेशे श्रीवीरातरां ग्राममध्ये श्रीवेगडखरतरगच्छे भट्टारक श्री १०५ श्रीजिनसुंदरसूरिपट्टे वर्त्तमानभट्टारक श्री श्री १०४ श्रीजिनोदयसूरिविजयराज्ये प्राज्यसाम्राज्ये पं. विनयसुंदर पं. देवकुसल चिरं. कानजी प्रमुखयुतेन लिखिता पं. विनयसुंदरस्योद्यमेन श्रेयसे भूयात् । श्रीरस्तु । श्रीवांकुलदेव्याजीप्रसादात् ऋद्धि वृद्धि भूयात् ॥ छ ॥ श्रीकल्याणं भूयात् श्रीश्रेयसे शुभं ॥ छ ॥ पं. विनयसुंदरपठनार्थमिदं श्रेयसे स्तात् ॥ 11811 Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ४०५-४२० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २२१ क्र. ४१० (१) सत्तरभेदीपूजा पत्र १० । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि । र. सं. १७१८ । (२) गुर्वावली पत्र १० मुं । भा. प्रा. । गा. ८ । (१) पंचतीर्थीस्तुति पत्र १० मुं । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि । कडी ४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ४११ जंबूस्वामिचरितरास पत्र २३ । भा. गू. । क. जिनेश्वरसूरि शिष्य वेगडगच्छीय । गा. ५८४ । ग्रं. १२५० । ले. सं. १६०३ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०।४४ ॥ प्रति पाणीर्मा भींजाइ खराब थएली छे । क्र. ४१२ साधुवंदनारास पत्र २२ । भा. गू. । क. समयसुंदर । गा. ५१६ । र. सं. १६९७ । ग्रं. ५७० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०।४४ ॥ ५४९ । र. सं. क्र. ४१३ ऋषिदत्तारास पत्र ४-२६ । भा. गू. । १६४३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४ ॥ पोथी ३२ मी क. जयवंतसूरि । गा. १०४ ॥ क्र. ४१४ शत्रुञ्जयमाहात्म्य पत्र २९० । भा. सं. । क. धनेश्वरसूरि । . ९००० । ले. सं. १६५९ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १२ । लं. प. प्रति पाणीमां भींजाईने खराब थएली छे । क्र. ४१५ सिद्धांतचंद्रिका पूर्वार्द्ध पत्र लं. प. १०।४४ ॥ वचमां घणां पानां नथी । ३० । भा. सं. । क. रामचंद्राश्रम | स्थि. श्रेष्ठ | पं. १३। क्र. ४१६ द्रव्यगुणपर्यायरास सस्तबक अपूर्ण पत्र २७ । भा. स्वोपज्ञ । गा. २७० पर्यंत । स्थि. मध्यम । पं. २२ । लं. प. १० ४४ ॥ क्र. ४१७ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ७१ । भा. प्रा. । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ४१८ चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तबक पत्र ९ । भा. प्रा. गू. । मू. क. वीरभद्रगणि । मू. गा. ६३ । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १०।४४ ।।। । प्रति पाणीमां भींजाएली छे । गू. । क. यशोविजयोपाध्याय । पत्र ८, ९, २१ नथी । क्र. ४१९ कल्पसूत्रअवचूरि पत्र ६३ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ४२० ब्रह्मविलास पत्र ११६ । भा. हिन्दी । क. भगवतीदास । र. सं. १७५५ । (१) अष्टोत्तरशतस्तोत्र कवितबद्ध अपूर्ण पत्र ४- १२ । भा. हिन्दी । (२) द्रव्यसंग्रह पत्र १५ - २३ । भा. हिन्दी । क. भगवतीदास । र. सं. १७३१ । कवित ७७ । (३) चेतनकर्मचरित्र पत्र २३-३४ । भा. हिन्दी । क. भगवतीदास । र. सं. १७३६ । गा. २९६ । (४) अक्षरबत्रीसी पत्र ३४-३५ । भा. हि. । क. भगवतीदास । गा. ३६ । (५) ब्रह्मसमाधिशतक पत्र ३५-३८ । भा. हि. । क. भगवतीदास । र. सं. १७१६ । गा. १०० । (६) अष्टप्रकारीपूजाकवित पत्र ३८-३९ । भा. हिं. । कडी ११ । (७) अष्टप्रातिहार्यकवित पत्र ३९ मुं । भा. हि. । (८) चित्रबद्ध कवितत्रिक पत्र ३९-४० । भा. हिं. । (९) वर्त्तमान जिन चोवीसी छप्पा पत्र ४३-४५ । भा. हिं. । छप्पा २५ । (१०) विहरमानजिनवी सीछप्पा पत्र ४५-४७ । भा. हिं. । छप्पा. २२ । (११) परमातमजयमालिका पत्र ४७-४८ । भा. हि. । कडी. ९- । Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ३२ (१२) मुनिराजजयमालिका पत्र ४८ मुं। भा. हिं.। कडी. १०। (१३) अहिछत्रापुरीपार्श्वनाथछंद पत्र ४८-४९ । भा. हिन्दी । गा. ७ । र. सं. १७३१ । (१४) परमारथपद सवैया दुहा पत्र ४९-५२ । भा. हिन्दी । क. भैया। (१५) शिष्यचतुर्दशी पत्र ५२ मुं। भा. हिन्दी। क. भगवतीदास । गा. १४ । (१६) मिथ्यात्वविध्वंसनचतुर्दशी पत्र ५२-५४ । भा. हिन्दी। क. भैया। छप्पा-सवैया १५। (१७) जिनगुणमालिका पत्र ५४-५५ । भा. हिं. । क. भैया । गा. २१ । (१८) गुणमंजरी पत्र ५५-५८ । भा. हिं. । क. भया। गा. ७४ । र. सं. १७४० । (१९) लोकक्षेत्ररज्जुचोपाई पत्र ५८ मुं । भा. हिं. । क. भैया। गा. २० । र. सं. १७४० । थाचोपाई पत्र ५८-६१ । भा. हि. । क. भया । गा. ६२। र. सं. १७४०। (२१) सिद्धचतुर्दशी पत्र ६१-६२ । भा. हिं. । क. भैया । सवैया १४ । (२२) निर्वाणकांड पत्र ६२-६३ । भा. हि. । क. भैया । र. सं. १७४१ । (२३) गुणस्थानरकादशचढ्यापड्याकथकसज्झाय पत्र ६३-६४ । भा. हिं.। क. भैया। गा. २१ । (२४) कालअष्टक पत्र ६४ मुं । भा. हि. । क. भया । गा. ८ । (२५) उपदेशपच्चीसी पत्र ६४-६६। भा. हि. । क. भैया। गा. २७ । र. सं. १७४१ । (२६) नंदीश्वरद्वीपजयमाल पत्र ६५ मुं। भा. हिं. । क. भैया । गा. १६ । (२७) बारभावना पत्र ६५-६६ । भा. हिं.। क. भैया। गा. १५। (२८) कर्मभेदविवरण पत्र ६६ मुं। भा. हिं. । क. भैया। गा. १५ । (२९) सप्तभंगवाणी पत्र ६६-६७ । भा. हिं. । क. भया। गा. १२ । (३०) सुबुद्धिचोवीसी पत्र ६७-७० । भा. हिं. । क. भगवतीदास । सवैया २५ । (३१) शाश्वतचैत्यजयमाला पत्र ७०-७१। भा. हि.। क. भैया। गा. ३३ । र. सं. १७४५। (३२) चौदगुणस्थानजीवसंख्याविचारसज्झाय अपूर्ण पत्र ७१ मुं । भा. हिं.।। (३३) नित्यपच्चीसी पत्र ७५ मुं। भा. हिं. । क. भैया। सवैया २५ । १८ मा सवैयाथी शरु थाय छे । (३४) अष्टकर्मचोपाई पत्र ७५-७६ । भा. हिं. । क. भैया। गा. २७ । (३५) सुपंथकुपंथपच्चीसी पत्र ७६-७९ । भा. हि. । क. भैया। सवैया २५।। (३६) मिथ्यादृष्टिसम्यग्दृष्टिवर्णन पत्र ७९-८० । भा. हिं. । क. भैया। सवैया ११। (३७) आश्चर्यचतुर्दशी पत्र ८०-८२ । भा. हिं.। क. भैया। सवैया १४ । (३८) रागादिनिर्णयाष्टक पत्र ८२मुं। भा. हिं.। क. भगवतीदास । सवैया ८। (३९) पुण्यपापजगमूलपचीसी पत्र ८२-८४ । भा. हिं। क. भैया। सवैया २७ । (४०) बावीसपरीसहवर्णन पत्र ८४-८७ । भा. हिं.। क. भैया। स. ३० । (४१) छेतालीसदोषरहितआहारवर्णनपच्चीसी पत्र ८७-८९ । भा. हि. । क. भैया। गा. २५। र.सं. १७५० ।। (४२) जिनधर्मपच्चीसी पत्र ८९-९१ । भा. हि.। क. भैया । गा. २८। र. सं. १७५० । (४३) अनादिबत्रीसी पत्र ९१-९२ । भा. हिं. । क. भैया। गा. ३३ । र. सं. १७५० । (४४) समुद्रातस्वरूप पत्र ९२। भा. हि. । क. भया । गा. ११ । (४५) मूढाष्टक पत्र ९२-९३। भा. हि. । क. भैया। गा. ८८ । Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ४२०-४२५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २२३ (४६) सम्यक्त्वपच्चीसी पत्र ९३-९४ । भा. हि. । क. भैया । गा. २६ । र. सं. १७५० । (४७) वैराग्यपच्चीसी पत्र ९४-९५ । भा. हि. । क. भैया । गा. २५ । र. सं. १७५० । (४८) परमातमछत्रीसी पत्र ९५-९६ । भा. हि. । क. भैया । गा. ३६ । र. सं. १७५० । (४९) नाटकपच्चीसी पत्र ९६ मुं । भा. हिं. । क. भैया । गा. २५ । (५०) उपादानकारणनिमित्तकारणसंवाद पत्र ९६-९८ । भा. हि. । क. भैया । गा. र. सं. १७५० । (५१) चोवीसतीर्थंकरजयमाल पत्र ९८-९९ । भा. हि. । क. भैया । गा. १७ । (५२) पंचइंद्रियचोपाई पत्र ९९ - १०४ । भा. हि. । क. भगवतीदास । गा. र. सं. १७५१ । (५३) ईश्वर निर्णयपच्चीसी पत्र १०४ - १०५ । भा. हि. । क. भैया । गा. २६ । (५४) कर्त्ता अकर्ता पच्चीसी पत्र १०५ - १०६ । भा. हि. । क्र. ४२१ गुणकरंडकगुणावलीरास पत्र १६ । भा. गू. 1 स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं. प. १०४४॥ सं. १७५१ । (५५) दृष्टांतपच्चीसी पत्र १०६ - १०७ । भा. हि. । र. सं. १७५२ । (५६) मनवत्रीसी पत्र १०७ - १०८ । भा. हि. । क. भगवतीदास । गा ३४ । (५७) सुपनबत्रीसी पत्र १०९ - ११० । भा. हिं । क. भगवतीदास । गा. ३४ । (५८) सूआवत्रीसी पत्र ११० - १११ । भा. हि. । क. भगवतीदास । गा. ३४ । र. सं. १७५३॥ (५९) प्रकीर्णक सवैया पत्र १११ - ११४ । भा. हि. । दोहा. ४१ । (६०) ग्रंथोपसंहार पत्र ११५ - ११६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०४४॥॥॥ पत्र - १३, १३-१४, २७, ४०-४२, ७२-७४, ११६ नथी । ४७ । १५५ । क. भैया । गा. २६ । र. क. भगवतीदास । गा. २५ । क्र. ४२२ कविप्रिया पत्र १०९ । भा. हि. । क. केशवकवि । ले. सं. १७११। स्थि. जीर्ण 1 पं. १० । लं. प. १०४४ ।। । क्र. ४२३ राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ७९ । भा. सं. । क. मलयगिरि । ग्रं. ३७०० । सं. १६१७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०x४ ॥ क. जिनद्दर्ष । र. सं. १७५१ । अन्त - इति मलयगिरिविरचिता राजप्रश्नीयोपाङ्गवृत्तिका समर्थिता | प्रत्यक्षरगणनातो ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । सप्तत्रिंशत् शतान्यत्र श्लोकानां सर्वसङख्यया ॥ छ ॥ प्रं. ३७०० ॥ संवत् १६१७ वर्ष माघमासे कृष्णपक्षे त्रयोदशी सोमवारे मूलनक्षत्रे हर्षणयोगे श्रीखरतरवेगडगच्छे श्री जिनेश्वरसूरीश्वरसन्ताने श्रीजिनशेखरसूरयः ततः श्री जिनधर्मसूरयः तत्पट्टे श्री जिनचंद्रसूरयः तत्पट्टप्रवराः श्रीजिनमेरुसूरीश्वराः तत्पट्टोद्धरणप्रवणश्री जिन गुणप्रभसूरिविजयराज्ये पं. भक्तिमंदरेण लिपीकृता श्रीराज्प्रनीयोपाङ्गवृत्ति अवाचीत् किञ्चिदशोधश्च । शुभं भवतु | कल्याणमस्तु ॥ छ ॥ श्री ॥ क्र. ४२४ नलदमयंतीरास पत्र ३३ । भा. गू. । क. समयसुंदर । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ४२५ धातुप्रक्रिया पत्र २२ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. १०४४ ॥ Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ३३-३५ पोथी ३३ मी क्र. ४२६ कुमारसंभवमहाकाव्यटीका अपूर्ण पत्र ११६ । भा. सं.। क. मल्लिनाथ। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १३ । लं. प ९॥४४॥ । अष्टमसर्ग ७७ श्लोक पर्यंत । २. ४२७ सारावली पत्र ४-१०२। भा. सं.। क. कल्याणवर्म। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६। लं. प. ९॥४४॥ । प्रति पाणीमां भीजाएली छे । आदिनां पानां चोंटी गयां छे। क्र. ४२८ प्रदेशीराजरास पत्र २-४९ । भा. गू. । स्थि . जीर्णप्राय। पं. १०। लं.प. ९॥४४॥ पत्र १४-१९, ४४-४५ नथी । क्र. ४२९ भगवतीसूत्र सटीक त्रिपाठ ११मा शतक पर्यंत पत्र ३०२ । भा. प्रा. सं.। मू. क. सुधर्मास्वामी। टी. क. अभयदेवसूरि। स्थि. मध्यम । पं. २२। लं. प. ९।४४. । पत्र-१२-१५ नथी । क्र. ४३० सिद्धांतविचाररास पत्र २-९९ । भा. गू.। गा. १८२८ । ले. सं. १७२४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. ९x४॥.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे।। क्र. ४३१ हरिबलरास पत्र ६४ । भा. गू.। क. जिनसमुद्रसूरि वेगडगच्छीय। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥४४॥ पत्र २० मां श्रीखरतरगच्छराजीयो भट्टारक अधिकप्रताप । श्रीजिनगुणप्रेमसूरजी जसु कीरति अछे अद्याप ॥हा॥१३॥ मुंह मांग्यो जिण वरसावीयो मेघराजा मंत्रप्रभाव । माणिकपूरने पाटी थापियो श्रीजिणचंदरिद ॥ ह. ॥१४॥ तास पाटि असि जांणीये श्रीजिनेससूर नाम । शास्त्रसूत्र कलानिलो जसु कीरति ठाम ठांम ॥ ह० ॥१५॥ वेगडबिरुद बडो धरें तसु पाटें अधिक सनूर । बाफणागोत्र वखाणीयो श्रीजिनचंद सूरिंद ॥ ह०॥ १६॥ तेज प्रताप करी अति दीपतो जेसलमेरु जसु थांन । रावल राणा जेहने माने घणा आपें जे बहु मांन ॥ ह० ॥ १७ ॥ तासु शिष्य पभणें इसो श्रीजिनसमुद्रसूरिद । साधुतणा गुण गावतां लहीये परम आनंद ॥ ह० ॥ १८॥ ढाल पहिली पहिला खंडनी सुणतां भविक सुहाय । पहिलो खंड पुरो थयो श्रीजिनचंद्र पसाय ॥हा॥१९॥ क्र. ४३२ सिंहासनबत्रीसी पत्र ६३। भा. गू.। क. संघविजय। गा. १५८१ । र. सं. १६७८ । ले.सं. १३७८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९४४॥ । पोथी ३४ मी क्र. ४३३ सारस्वतव्याकरणचंद्रकीतिटीका पूर्वाद्ध पत्र १५५ । भा. सं। क. चंद्रकीर्तिसूरि । स्थि . जीर्ण। पं. १३। लं. प. १०x४१. । पत्र ७८-१२० नथी ।। ___ क्र. ४३४ प्रक्रियाकौमुदी पत्र १२८ । भा. सं । क. रामचंद्राचार्य । ले. स. १७१७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०४४॥ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का ४२६-४४८] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २२५ क्र. ४६५ पत्रकोश पत्र ८। भा. सं.। ले. सं. १६९३ । स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. Foxxii क्र. ४३६. सारस्वतव्याकरणचंद्रकीतिटीका पत्र २०३। भा. सं.। क. चंद्रकीतिसूरि। ग्रं. ७१००। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०४४॥. । केटलांक पत्रो उदरे करडेलां छे।। क्र. ४३७ वसंतराजशास्त्र सटीक पत्र १०१। भा. सं.। मू. क. वसंतराज । टी.क. भानुचंद्र। नं. ३७५ स्थि . श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०४४॥ । पत्र ३, २२, २७, ५७. नथी। ___क्र. ४३८ परिशिष्टपर्व अपूर्ण पत्र १३३ । भा. सं। क. हेमचंद्रसूरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. फ १०x४॥. । पत्र ८९-१०५, ११३-१२२ नथी । क्र. ४३९ भरहेसर वृत्तिसह अटक अपूर्ण पत्र २४८ । भा. सं. । वृ.क. शुभशीलगणि । स्थि. मध्यम। पं. १७ । लं. प. १०४४॥. । प्रतिनां बधां मळीने लगभग ५० पानां छे, बाकीनां नथी । . क्र. ४४० उत्तराध्ययनसूत्र सस्तबक पत्र १६१ । भा. प्रा. गू. । ले. सं. १७६७ । स्थि. अतिजीर्ण। पं. १५। लं. प. १०४४॥ पोथी ३५ मी क्र. ४४१ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रटीका पत्र १७१। भा. सं.। क. अभयदेवसूरि . ४६३० । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०४४॥ प्रतिनां केटलांक पान उंदरे करडेला छ। पत्र १-२, ११-३० नथी। क्र. ४४२ बोलविचार पत्र ३९ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. १०x४॥ । प्रति चोंटी जवाथी अक्षरो उखडी गया छे। क्र. ४४३ वंदारुवृत्ति पत्र ७२ । भा. स.। क. देवेन्द्रसूरि । . २७२८ । स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. १०x४॥ क. ४४४ दशवैकालिकसूत्र सटीक पत्र ८८। भा. सं.। मू. क. शय्यभवसूरि । वृ. के. सुमतिसूरि । ग्रे. ३६०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लः प. १०x४॥ क्र. ४४५ उपदेशमालाप्रकरण सस्तबक पत्र ४३ । भा. प्रा. गू. । मू. क. धर्मदासगणि। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १८। लं. प. १०x४॥ क्र. ४४६ अभिधानरत्नमाला पत्र २-४७ । भा. सं. । क. हलायुध भट्ट । ले. सं. १४५४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०x४॥ क्र. ४४७ नंदीसूत्रवृत्ति पत्र २०५ । भा. सं.। क. मलयगिरिसूरि । ग्रं. ७७३२। ले. सं. १६२७-२९ । स्थिः श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ अन्त मुनिमयनकलावर्षे १६२७ लिपीकर्तुमारभद् भक्तिमन्दिरः । गुणाधिना कृता पूर्णा एकोनत्रिशवच्छरे । श्रीजेसलमेरौ श्रीजिनगुणप्रभसूरीणां वाचनाय नृपहरिराजराज्ये ॥ क्र. ४४८ सारस्वतव्याकरणभाष्य पत्र ११.। भा. सं.। क. काशीनाथ । ग्रं. ३२०१। ले. सं. १७०९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०४४॥.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे । अन्त सर्वलोकोपकाराय काशीनाथेन भाषितम्। भाष्यं सारस्वतस्येदं पण्डितैः परिसेव्यताम् ॥१॥ इति श्रीकाशीनाथकृती सारस्वतभाष्ये कृत्प्रक्रिया समाप्ता। Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ३६ संवन्निधिनभात्यष्टिप्रमिताब्दे १७०९ कार्तिकासितैकादश्यामिन्दुघने सुयोगे शुभवेलायां श्रीईसमाईलखानदेशकोहे श्रीचन्द्रकुले कौटिकशाखायां श्रीबृहत्खरतरान्वये श्रीमवेगडगच्छे श्रीमज्जिनदत्त जिनकुशल जिनपति जिनेश्वर जिनचन्द्र जिनगुणप्रभ जिनेश्वरसूरिसन्ताने पट्टोद्धरणकरणमार्तण्डावतार भ. श्रीमज्जिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये तच्छिष्य मुख्य पं. महिमासमुद्राणां शिक्ष पं. महिमाहर्ष लिपीचक्रे। शुभं भवतु लेखकपाठकयोः। श्री स्तात् ॥छ॥ ग्रं. ३२०१॥ क्र. ४४९ सारस्वतव्याकरणचंद्रकीतिटीका पत्र १०३ । भा. सं.। क. चंद्रकीर्ति । ग्रं. ७८००। ले. सं. १६६२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. २३ । लं. प. १०४४॥ क्र. ४५० उपदेशमालाप्रकरण पत्र २६ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि। गा. ५४३ । ले.सं. १६५१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०x४॥.। पुष्पचित्रांकिता। अन्त संवत् १६५१ वर्ष माघ शुद्ध चतुर्थी दिने श्रीनागपुरमध्ये श्रीमति बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टोदयाद्रिद्युमणिः सकलभूमण्डलाखण्डलश्रीअकबरसाहिमनःसंशीतिप्रश्नव्याकरणावाप्तप्रधानयुगप्रधानपदवीसन्निधानयुगप्रधानश्रीजिनचन्द्रसूरिविजयिराज्ये आचार्यप्रभुश्रीजिनसिंहसूरिगुरुराजे वर्तमाने पण्डितप्रवरविजयराजगणि मुख्य शिष्यपण्डित श्रीहर्षसारगणिमणि विनेय पं. शिवनिधानगणिना लिखितम् । श्राविकापुण्यप्रभाविकानवलादे पठनार्थम् ॥ शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ पोथी ३६ मी क्र. ४५१ सारस्वतध्याकरण अपूर्ण पत्र ४५ । भा. सं. । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०४४॥ क्र. ४५२ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र सस्तबक पत्र १००। भा. प्रा. गू.। ले. सं. १७७९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४॥ क्र. ४५३ सूत्रकृतांगसूत्रस स्तबक अपूर्ण पत्र १००। भा. प्रा. गू। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. १०x४॥. । प्रतिमा घणां पानां नथी। ___क्र. ४५४ उपदेशमालाप्रकरण सस्तबक किंचिदपूर्ण पत्र २-६२। भा. प्रा. गू.। मू. क. धर्मदासगणि। स्थि. मध्यम । पं. १६। लं. प. १०४४॥ क्र. ४५५ कल्पसूत्र बारसा पत्र ३-१०१। भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ६ । लं. प. १०४४.। अंतिम पत्र नथी । क्र. ४५६ कल्पसूत्रबालावबोध सप्तम वाचना पत्र १७ । भा. गू. । स्थि. मध्यम। पं. १५ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४५७ कालिकाचार्यकथा पत्र ३५। भा. गू. । ले. सं. १६९३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४॥ क्र. ४५८ कालिकाचार्यकथा बालावबोधसह पत्र १०। भा. सं. गू.। मु. का. ८१। ले. सं. १५८२। स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. १०४४।। अन्त संवत् १५८२ वर्षे फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे एकादश्यां तिथौ शुक्रवारे श्रीजेसलमेरौ श्रीवृद्धवेगडगच्छे पूज्यभधारकश्रीजिनशेखरसूरि तत्पट्टे भ. श्रीजिनधर्मसूरि तत्पट्टे भ. श्रीजिनचंद्रसूरयः तत्पट्टे भ. श्रीजिनमेरुसूरयः Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ४४९-४७० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २२७ पूज्य भ. श्री ६ जिनगुण प्रेमसूरिशिष्य पण्डितकमलसुंदर पं. गुणसागरेण पं. शष्य नाकरकस्य लेखि शुभं भूयात् ॥ श्रीशंखेश्वरापार्श्वनाथनी रक्षा श्रीअमीझरापार्श्वनाथनी रक्षाः भ. युगप्रधान श्री पूज्य जिनसमुद्रसूरविजयराज्ये विजयते श्रीवेगडगच्छे ॥ क्र. ४५९ गीतगोविंद सटीक पत्र ४८ । भा. सं.। भू. क. जयदेवकवि । टी. क. जगद्धर । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २० । लं. प. १०४४ ॥ । प्रति पाणीमां भींजाएली छे । क्र. ४६० उत्तराध्ययनसूत्र प्रथम अध्ययन पत्र २ । भा. प्रा. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५ । लं. प. १०४४॥ । बन्ने पत्रमां भगवाननुं तथा पर्षदा सह आचार्यनुं सुंदर चित्र छे । गू । क्र. ४६१ उत्तराध्ययनसूत्र बालावबोधसह १३ अध्ययनपर्यंत पत्र ४९ । भा. प्रा. स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ४६२ निर्यावलिकासूत्र पत्र २८ । भा. प्रा. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. प्रति पाणीमां भींजाएली छे । क्र. ४६३ निर्यावलिकासूत्रवृत्ति पत्र १४ । भा. सं. । क. श्रीचंद्रसूरि । स्थि श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०४ ॥ । प्रति पाणीमां भीजाएली छे । क्र. ४६४ राजप्रश्नीयोपांग पत्र ४८ । भा. प्रा. । ग्रं. २०७९ । ले. सं. १६१७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. पं. १०४४ ।।। । अन्त रायपसेणइयं सम्मत्तं ॥ छ ॥ समर्थितमिदं सूत्रम् ॥ श्रं. २०७९ ॥ सं. १६१७ वर्षे आषाढ वदि दशमी शनीवारे श्रीखरतर वेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरि सन्ताने श्रीजिनशेखरसूरिराजपट्टोद्धरश्रीजिनधर्मसूरिवरान्वयगगनविभाकरश्रीजिनचन्द्रसूरीश पट्टोदयाचलमार्तण्डश्री जिनमेरुसूरीन्द्राः तत्पट्टीदयकर श्री जिन गुणप्रभसूविराणां विजयराज्ये वाचनाय च तेषामेव श्रीराजप्रश्नीयोपांगसूत्रं । तत्पादाम्बुजभ्रमरेण प्रथमकलाभ्यासप्रवणेन प. भक्तिमंदिरेण गौरवेणाऽलेखि । वाच्यमानं च चिरं नन्दतात् ॥ श्रीः १०४४।।। । क्र. ४६५ उपदेशमालाप्रकरण पत्र २-२७। भा. प्रा. क. धर्मदासगणि। गा. ५४४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०४४ ॥ ॥ । पत्र १, १७ - २३ नथी । क्र. ४६६ अंतगडदशांगसूत्र पत्र ५८ । भा. प्रा. । लं. प. १०४४ ॥ ग्रं. ८२५ । स्थि. जीर्ण । पं. ७ । क्र. ४६७ कालिकाचार्यकथा गद्यपद्य पत्र २६ । भा. प्रा. । ग्रं. ३६९ । ले. सं. १५२६ । स्थि. जीर्ण । पं. ९ । लं. प. १०४ ॥ अन्त संवत् १५२६ वर्षे कार्तिक वदि ५ सोमे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने भ० श्रीजिनशेखरसूरिपट्टालङ्कार भ० श्रीजिनधर्मसूरिशिष्याचार्य श्रीजयानन्दसूरि शिष्यानुशिष्य-क्षमामूर्त्तिना कालिकाचार्य कथानकमलेखि ॥ छ ॥ श्रीजेसलमेरौ ॥छ ॥ क्र. ४६८ महानिशीथसूत्रगत कमलप्रभाचार्य अधिकार सस्तबक पत्र १२ । भा. प्रा. गू. स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४६९ अनेक विचार संग्रह पत्र ९ । भा. प्रा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. १६ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ४७० अंतकृद्दशांगसूत्र वृत्तिसह त्रिपाठ पत्र ३१ । भा. प्रा. सं । भू. क. सुधर्मास्वामी । वृ. क. अभयदेवसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४।॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ श्रीजेसकोरुकुस्थ [पोथी ३.७-२८ क्र. ४७१ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १३ । भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । गा. ५४४ । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४७२ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १५ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि। गा. ५४४ । स्त्रिा . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४॥ पोथी ३७ मी क्र. ४७३ स्थानांगसूत्र पत्र १५४ । भा. प्रा.। क. सुधर्मास्वामी। नं. ३६०० । ले. सं. १५७० । स्थि . श्रेष्ठ। पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ४७४ कल्पांतर्वाच्य पत्र ३१ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२ । लं. प्र. १०x४॥ क्र. ४७५ (१) लब्धिकुशलसूरिगीत पत्र १ लुं। भा. गु.। क. कीर्तिवर्धन । गा. ७। (२) लब्धिकुशलसूरिगीत पत्र लुं। भा. गू. । क. सुमतिहंस । मा. ५। (३) लब्धिकुशलसूरिगीत पत्र १-२ । भा. गू. । क. कीर्तिवर्धन । गा. ७। (४) लब्धिकुशलसूरिगीत पत्र २ जूं। भा. गू। क. दयावर्धन । गा. ८ । (५) लब्धिकुशलसूरिगीत पत्र २ जूं। भा. गू.। क. महिमाकीर्तिगणि। गा.६। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४७६ सामवेदनिर्णय-द्वादशमहावाक्यनिर्णय पत्र २१-३६ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४७७ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र सटीक त्रिपाठ पत्र २७३-३८३ । भा. प्रा. सं. । वृ.क. शांतिचंद्रोपाध्याय । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०x४॥.। वृत्तिनुं नाम "प्रमेयरत्नमंजूष!" छ। क्र. ४७८ भुवनभानुकेवलिचरित्र बालाववोध पत्र ८२ । भा. गू.। क. हरिकलश धर्मघोषगच्छीय। ले. सं. १७२५। स्थि. सारी। पं. १५ । लं. प. १०x४॥ . क्र. ४७२ ऋषिमंडलसूत्रवालावबोध अपूर्ण पत्र ४६ । भा. गू.। स्थि. जीर्णनाय। पं. १७॥ लं. प. १०४४॥ . क्र. ४८० त्याद्यंतप्रक्रिया अपूर्ण पत्र २-२२९ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. १०x४॥.। पत्र ७४-१६१ नथी। प्रति उंदरे करडेली छे। . क्र. ४८१ कुंडेश्वरागम अपूर्ण पत्र ७ । भा. सं. । ग्रं. १७९ । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ४८२ प्रत्येकवुद्धरास अपूर्ण पत्र ४० । भा. गू. । क. समयसुंदर । र. सं. १६६४ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०४४॥ क्र. ४८३ ऋषिदत्तारास पत्र २३ । भा. गू.। क. जयवंतसूरि । ग्रं. ८५० । र. सं. १६४३ । ले. सं. १७०४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४८४ प्रत्येकबुद्धचोपाई चूटक अपूर्ण पत्र ८-१२ । भा. गू। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०x४॥ क्र. ४८५ चंपकमालारास अपूर्ण पत्र २४। भा. गू. । क. सौभाग्यसागरसूरिशिष्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ४८६ वीरस्तुतिअध्ययन नरयविभत्तिअध्ययन सूत्रकृतांगसूत्रगत पत्र ४ । भा. प्रा.। स्थि . मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९॥४४॥ । क्र. ४८७ पूर्णकलशस्थापनाविधि पत्र ९ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९ixxn Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ४७१-५०२ ] जैन ताडपत्रीय अंथभंडार सूचीपत्र क्र. ४८८ भर्तृहरिशतकबालावबोध अपूर्ण पत्र २२९ ११ । भागू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ४८९ विक्रमचोपाईरास पत्र २३ - ४१ । भा. गू । क. परमसागर । र. सं १७२४ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. १०४४॥ क्र. ४९० शालिभद्रचोपाई पन २१ । भा. गू. । क. मतिसार । र. सं. १६७८ । स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. १०४४ ॥ । प्रति चोंटीने खराब थएली छे । क्र. ४९१ जंबूस्वामिरास पत्र १२ - ३० । भा. गू. । क. नयविमल । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। कं. प. १०४४ ॥ क्र. ४९२ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ५२ । भा. प्रा. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४ ॥ पोथी ३८ मी क्र. ४९३ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति अपूर्ण पत्र २७ - १८० । भा. सं । क. दुर्गसिंह । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ । प्रति पाणीमां भींजाएली छे । पत्र ३१ - ३९ नथी । क्र. ४९४ प्रव्रज्याविधानकुलक बालावबोधसह पत्र ५। भा. प्रा. गू. । बा. क. जिनेश्वरसूरि वेगडगच्छीय । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. १० ||४|| क्र. ४९५ पर्यंताराधनाप्रकरण सस्तबक पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । मू. क. सोमसूरि । मू. गा. ७० । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ४९६ पर्यंताराधनाप्रकरण सस्तबक पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । भू. क. सोमसूरि । मू. गा. ७० । ले. सं. १७३३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०|||४|| क्र. ४९७ संबंधोद्योत पत्र ८ । भा. सं । क. रभसनंदि । स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. १०।।। ४४ । क्र. ४९८ अभिधानचिंतामणिनाममाला अपूर्ण पत्र ८ । भा. सं. । क. हेमचंद्रसूरि । स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ४९९ (१) दानविधिप्रकरण पत्र २ जुं । भा. प्रा. । गा. २२ । (२) नवकारफलकुलक पत्र २-३ । भा. प्रा. । गा. २३ । (३) आदिजिनस्तवन पत्र ३-४ । भा. प्रा. । गा. १९ । (४) आत्मानुशासन पत्र ४-६ । भा. सं. क. पार्श्वनाग आर्या ७६ । (५) प्रश्नोत्तररत्नमालिका पत्र ६-७ । भा. सं । क. विमलाचार्य | आर्या. २९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५०० (१) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण पत्र १-७। भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १५६ । (२) आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण (प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ ) पत्र ७-११। भा. प्रा. क. जिनवल्लभगणि । गा. ८६ । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं.प. १० ।। ४४ ॥ क्र. ५०१ उत्तराध्ययनसूत्र सार्थ - अवचूरिसह पत्र १६३ । भा. प्रा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ | लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ५०२ संस्तारकप्रकीर्णक बालावबोध सह त्रिपाठ पत्र १२ । भा. प्रा. गू. बा. क. क्षेमराजऋषि पार्श्व चंद्रगच्छीय । भू. गा. १२१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ३८-३९ क्र. ५०३ तीर्थोद्गारप्रकीर्णक पत्र २४ । भा. प्रा. । गा. १२५४ । ग्रं. १५४१ । स्थि. मध्यम । पं. १६। लं. प. १०॥४४॥. । प्रति पाणीभां भींजाएली छे ।। क्र. ५०४ (१) चंदाविज्झयप्रकीर्णक पत्र १-५ । भा. प्रा.। गा. १७४ । (२) तंदुलवेयालियप्रकीर्णक पत्र ५-११ । भा. प्रा. । (३) पौषधविधि पत्र ११मुं। भा. प्रा. गू. स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५०५ कातंत्रव्याकरण तद्धित अपूर्ण पत्र ६ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. १०x४॥. । पत्र २, ४ नथी । क्र. ५०६ कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति व्याख्यानकलाप्रदीपिका पत्र ६७ । भा. सं.। दी. क. गौतमपंडित। ग्रं. ४०७० । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥x॥ अन्त-इति श्रीवीरसिंहोपाध्याय श्रीगौतमपण्डितविरचितायां दुर्गसिंहोक्तकातन्त्रवृत्तिव्याख्यानकलाप्रदीपिकायां नाम्नि तृतीयः पादः समाप्तः ॥छ।। शुभमस्तु लेखकपाठकयोः ॥छ। ग्रं. ४०७० । क्र. ५०७ नवपदप्रकरण पत्र ७ । भा. प्रा.। क. जिनचंद्र । गा. १३९ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ५०८ योगशास्त्रस्वोपज्ञवृत्ति अपूर्ण पत्र ३६ । भा. सं.। क. हेमचंद्रसूरि स्वोण्ज्ञ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १४॥४४॥ क्र. ५०९ सारस्वतव्याकरण सूत्रपाठ पत्र ९ । भा. सं.। ग्रं. ८४ । ले. सं. १७११ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ७ । लं. प. १०x४॥ क्र. ५१० योगशास्त्र प्रथम प्रकाश पत्र ४ । भा. सं.। क. हेमचन्द्रसूरि । ग्रं. ५६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५११ (१) अनाथीमुनिसंधि पत्र १-३। भा. गू.। क. विमलविनय । गा. ७१। र. सं. १६४७। (२) सिंहलसुतचोपाई-प्रियमेलकचोपाई अपूर्ण पत्र ३-४ । भा. गू। क. समयसुंदर । स्थि . जीर्ण। पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५१२ संदेहदोलावली लघुटीकासह पत्र ३५। भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनदत्तसूरि । वृ. क. जयसागरोपाध्याय । ग्रं. १५५० । र. सं. १४९५ । ले. सं. १५७४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५१३ गणधरसार्धशतकप्रकरण पत्र ८। भा.प्रा. । क. जिनदत्तसूरि। गा. १५० । स्थि. जीर्ण। पं. ११ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५१४ दानादिकुलक सस्तबक अपूर्ण पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५१५ ज्ञानार्णवसारोद्धार पत्र ७ । भा. सं. । क. शुभचंद्राचार्य। ग्रं. ६२२ । स्थि. मध्यम । पं. २५ । लं. प. १९x४॥ क्र. ५१६ प्रशमरतिप्रकरणअवचूरि पत्र ११ । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५१७ पर्यन्ताराधनाप्रकरण बालावबोधसह पत्र ७ । भा. गू: । मू. क. सोमसूरि । स्थि . जीर्णप्राय । पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ५०३-५३३ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २३१ क्र. ५१८ पर्यन्ताराधनाप्रकरण सस्तबक पत्र । भा. प्रा. गू. । मू. क. सोमसूरि । ले. सं. १७३३ । स्थि . जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥। प्रति चोंटेली छे।। क्र. ५१९ पर्यन्ताराधनाप्रकरण पत्र ५ । भा. प्रा. । क. सोमसूरि । गा. ७० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. १०॥४॥ क्र. ५२० नैषधमहाकाव्य अपूर्ण पत्र ३१ । भा. सं. । क. श्रीहर्षकवि । स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. १०॥४४॥ __ क्र. ५२१ कातंत्रव्याकरण गोल्हणवृत्ति अपूर्ण पत्र ४८। भा. सं.। वृ. क. गोल्हण । स्थि. अतिजीर्ण । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र ५२२ सारस्वतव्याकरण घटक अपूर्ण पत्र ४३-४६ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे । क्र ५२३ रामकलशव्याकरण पत्र १७ । भा. सं.। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १० । लं. प. १०x४॥ क्र. ५२४ संग्रहणीप्रकरण पत्र ४-१० । भा. प्रा.। क. श्रीचंद्रसूरि । स्थि. जीर्ण । पं. ११ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५२५ संग्रहणीप्रकरण बालावबोधसह अपूर्ण पत्र ३-२२। भा. प्रा. गू. । मू. क. श्रीचंद्रसूरि। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १८ । लं. प. १०॥४४॥.। प्रति पाणीा भीजाएली छे। क्र. ५२६ अनेकार्थतिलकनाममाला पत्र २३ । भा. सं.। क. महिप । ग्रं. ८९८ । ले. सं. १७८१। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ५२७ कतिचिद्विचारबालावबोध पत्र १४ । भा. गू. । स्थि. जीर्ण । पं. १॥ लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५२८ शाताधर्मकथांगसूत्र अपूर्ण पत्र २५ । भा. प्रा. । क. सुधर्मास्वामी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ६ । लं. प. १०॥४४॥.। पत्र ११-१७ नथी। पोथी ३९ मी __ क्र ५२९ खंडनखंडखाद्य पत्र ७२ । भा. सं.। क. श्रीहर्ष । ले. सं. १५५४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०x४॥ क्र. ५३० तत्त्वचिंतामणीमंगलवाद पत्र ४ । भा. सं. । क. गंगेश भट्ट। स्थि. मध्यम । पं. १॥ लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५३१ संबंधोद्योत पत्र ७ । भा. सं. । क. रभसनंदि । स्थि. मध्यम। पं. १८ । लं. प. १०॥४४॥ __ क्र. ५३२ वैद्यक ज्योतिष प्रकीर्णकसंग्रह पत्र १९ । भा. गू.। ले. सं. १७०२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४। ___ क्र. ५३३ (१) जीवविचारप्रकरण पत्र १५-१७ । भा. प्रा. । क. शांतिसूरि । । (२) नवतत्त्वविचारगाथा पत्र १७-१९ । भा. प्रा. । क. जयशेखरसूरि । गा. ३१॥ तमपृच्छा पत्र १९-२३ । भा. प्रा.। गा. ६४। स्थि . श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. १०॥xn Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेर दुर्गस्थ क्र. ५३४ गौतमपृच्छाप्रकरण सटीक त्रिपाठ पत्र २४ । भा. प्रा. सं. भू. गा. ६४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५३५ गौतमपृच्छा पत्र २ । भा. प्रा. । गा. ६४ । स्थि: मध्यम । पं. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ५३६ दशवैकालिकसूत्र सावचूरिक पंचपाठ पत्र ४२ । भा. प्रा. सं.। स्थिः श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १० ॥४४॥ २३२ [ पोथी ३ क. श्रीतिलक । क्र. ५३७ गाथासंग्रह पत्र ४ । भा. प्रा. । स्थिः श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. पः १० ॥४४॥ क्र. ५३८ कर्मस्तवकर्मग्रंथ (प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ ) पत्र १ । भा. प्रा. । गा. ५८। स्थि. श्रेष्ठ । पं २५ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ५३९ कर्मविपाककर्मग्रंथ पत्र ४ । भा. प्रा. क. देवेंद्र पूरि । गा. ६१ । स्थिः मध्यम । पं. १० । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ५४० दशवैकालिकसूत्र पत्र २० । भा. प्रा. क. शय्यंभवसूरि । ग्रं. ७०० । स्थिः मध्यम'। पं. १३ । लै. प. १०॥४४॥ क्र. ५४१ अनेकार्थध्वनिमंजरी - शब्दरत्नप्रदीप पत्र ६ । भा. सं. । ग्रं. ३५१ । स्थि. जीर्ण | पंः १८ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५४२ एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र ५। भा. प्रा. क. सिद्धसेनसूरि । गा. ६६ स्थि श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०।९४।। क्र. ५४३ विचारषट्त्रिंशिका सस्तबक पत्र ५ । भा. प्रा. गू. । क. गजसार । भू. गा. ३८। स्थि. जीर्ण। पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५४४ प्रश्नोत्तरषष्टिशतप्रकरण पत्र १० । भा. सं. । क. जिनवल्लभगणि । का. १६१। स्थि: जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ५४५ क्षुल्लकभवावलिकाप्रकरण सावसूरिक पंचपाठ पत्र १ । भा. सं. । मू. गा. २५ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. २४ । लं. प. १०।४४॥ क्र. ५४६ सम्यक्त्वस्वरूपस्तव अवचूरि पत्र ५ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १४ । लं. प. १०१४४ ॥ क. उमास्वातिवाचक स्वोपज्ञ । क्र. ५४७ तत्त्वार्थसूत्र भाष्यसह पत्र ४५ । भा. सं. 1 क्रं २२५० । ले. सं. १६४२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. पः १०।४४ ॥ अन्त—- संवत् १६४२ वर्षे मगशिर सुदि ५ तिथौ श्रीजेसलमेरौ राउल श्री भीमजीविजयराज्ये श्रीखरतर वेगडगच्छे भट्टारक श्री जिन गुणप्रभसूरिविनयराज्ये पं. मतिसागरेण लिपीकृता ॥ क्र. ५४८ तत्त्वार्थसूत्र पत्र ५ । भा. सं. । क. उमास्वाति वाचक । ले. सं. १६४२ । स्थिः श्रेष्ठ । पंः १६ । लः प. १०१४४॥ । अन्त--- संवत् १६४२ वर्षे मगशिर सुदि ५ तिथौ श्रीजेसलमेरौ महाराजलश्री भीमराज्ये खरतरवे गडगच्छे-भट्टारकश्रीजिनगुणप्रभसूरिविजयराज्ये पं. मतिसागरेण लिपीकृतम् । तत्वार्थसूत्रम् ॥ श्री ॥ छ ॥ श्रीः क्र. ५४९ भवभावनाप्रकरण पत्र ३१ । भा. प्रा. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । गा. स्थि. जीर्ण । पं. ९ । लं. प. १०।४४ ॥ ५३१ । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ५३४-५६२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. ५५० सुभाषितश्लोक पत्र ५। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. १०४४॥ क्र. ५५१ पाक्षिकक्षामणासूत्र पत्र २ । भा. प्रा. । स्थि. मध्यम। पं. ७ । लं. प. १०x४॥ क्र. ५५२ सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति प्रथमाध्याय पत्र ५। भा. सं.। क. हेमचन्द्राचार्य स्वोपज्ञ। स्थि . मध्यम । पं. २० । लं. प. १०x४॥ ___ क्र. ५५३ सारस्वतव्याकरण बालावबोध सह अपूर्ण पत्र १५। भा. स. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १८। लं. प. १०x४॥. । प्रति पाणीमां भीजाएली छे । क्र. ५५४ योगवासिष्ठसार योगतरंगिणीटीका सह अपूर्ण पत्र १५ । भा. सं. हिन्दी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०x४॥. 1 जैन टीका छे। आदि-॥ श्रीअर्हद्भयो नमः ॥श्रीविघ्नविनाशाय नमः॥ प्रणम्य पूर्व गुरुपादपद्मं जिनेश्वराणां च गणेश्वराणाम् । सुवातिकं स्वात्महितोपकृत्यै वासिष्ठसारस्य करोमि व्याख्याम् ॥१॥ क्र. ५५५ षष्टिशतप्रकरण बालावबोधसह पत्र २४ । भा. प्रा. गू.। मू.क. नेमिचंद्र भंडारी। बा.क. सोमसुंदरसूरि। म. गा. १६१। बा. र. सं. १४९६ । स्थि . मध्यम । पं. १७। लं. प. १०x४॥ क्र. ५५६ षष्टिशतप्रकरण बालावबोधसह पत्र २५। भा. प्रा. गू.। मू. क. नेमिचन्द्र भंडारी । मू. गा. १६१ । बा. क. सोमसुंदरसूरि । बा. र. सं. १४९६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०x४॥ अन्त माखण्डामृतकुण्डविष्टपमिते १४९६ संवच्छरे श्रीतपागच्छेन्द्रैर्गुरुसोमसुन्दरवरैराचार्यधुयरियम् । वार्ताभिर्विहिता हिताय कृतिनां सम्यक्त्वबीजे सुधावृष्टिः षष्टिशताहवयप्रकरणव्याख्या चिरं नन्दतु ॥१॥ इति षष्टिशतबालावबोधः समाप्तो विरचितः श्रीसोमसुन्दरसूरिपादैः सर्वजनोपकाराय॥ शुभं भवतु श्रीसङ्घस्य ॥छ॥श्रीः॥ ___ क्र. ५५७ समुद्रप्रकाशविद्याविलासचोपाई पत्र ६ । भा. हिं.। क. जिनसमुद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥.। वैद्यकविषयक । क्र. ५५८ नवतत्त्वप्रकरण पत्र २। भा. प्रा. । गा. ४७ । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. १०x४॥ ___क्र. ५५९ नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक पंचपाठ पत्र २ । भा. प्रा. गू.। मू. गा. २७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २२। लं. प.१०॥४॥ क्र. ५६० (१) नवतत्त्वप्रकरण पत्र १-३ । भा. प्रा. । गा. ५४ । (२) उपदेशमालागाथासज्झाय पत्र ३-४ । भा. प्रा. । गा. ३४ । (३) तिजयपहुत्तस्तोत्र पत्र ४ थें। भा. प्रा. । गा. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०॥४॥ क्र. ५६१ सारस्वतव्याकरण पत्र ३६। भा. सं.। क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५६२ उल्लंठवचननिर्लोठनचोपाई पत्र ३ । भा. गू. । गा. ७६। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०॥x४॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ३९-४० आदि-५०॥ धीर जिणिदह प्रणमी पाय मनि समरी गोतम रिषिराय । भली भाति कहीयइ उपई सि...तह अनुसारइ थई ॥१॥ अन्त इम देखी आगम तणी हुंडी कहीअ छई चउपई । मन वचन काया मूंकि माया सेवि पाया सरसई ॥ प्रभु आण पाली कुमत टाली मग सूधउ थापिस्यई । इह लोकि नइ परलोकि नर ते खेमि शिवपुर पामिस्यइं ॥७६॥ इति उलंठवचननिर्लोठनचउपई समाप्ता। पं. लक्ष्मीचन्द्रगणि ॥ क्र. ५६३ तर्कभाषा पत्र २१। भा. सं. । क. केशवमिश्र । ले. सं. १७७७ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५६४ सारस्वतमंडन पत्र ७८ । भा. सं. । क. मंडन । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १७ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५६५ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १६ । भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । गा. ५४३। ले.सं. १५६८ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५६६ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १६ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि। गा. ५४३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५६७ विदग्धमुखमंडनविषमपदव्याख्या अपूर्ण पत्र । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १०॥४४॥। क्र ५६८ अष्टोत्तरशतपाश्वनाथनामस्तव पत्र १। भा. सं.। क. जिनभद्रसूरि। का. १५। स्थि श्रेष्ठ। पं. १३ । लं प. १०॥४४॥ क्र. ५६९ आदिनाथधवल पत्र ३। भा. गू। ले. सं.। १५४५ । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०४४॥ क्र. ५७० रामतिबालाप्रबंध-वज्रस्वामीनां फुलडां पत्र २ । भा. गू.। कडी. २४ । स्थि. मध्यन । पं. ११ । लं. प. १०१४॥ क्र. ५७१ साधुवंदना अपूर्ण पत्र २ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १८। लं. प. १०x४॥. । __ क्र. ५७२ कुंयरिश्राविकाबारव्रतनियम पत्र ३ । भा. गू. । कडी. १८। स्थि. श्रेष्ठ। पं. ९ । लं. प. १०॥४४॥ __क्र. ५७३ शत्रुजयरास पत्र ६ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५७४ कर्पटहेटकपार्श्वनाथरास पत्र ७-९ । भा. गू. । क. दयारत्न । र. सं. १६९४ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १२। लं. प. १०॥४॥ अन्त संवत् सोल चाणवइ राजइ श्रीजिणहरष सूरीसकि । पासरास गुणपूरीयउ सुविहित दयारतन तस सीस कि ॥३९॥हुं बलि०॥ ॥ इति कर्पटहेटकपार्श्वनाथरास संपूर्ण। लिखितं ज्ञानउदयेन सं. दुलीचंदवाचनकृते ॥ क्र. ५७५ रत्नाकरावतारिका अपूर्ण पत्र ७८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ५७६ तर्कभाषा पत्र २२ । भा. सं.। क. केशवमिश्र । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं.प. १०x४॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ५६३-५९५ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २३५ पोथी ४० मी क्र. ५७७ कर्मविपाककर्मग्रंथ अपूर्ण पत्र ९। भा. प्रा.। क. देवेंद्रसूरि। स्थि. जीर्णप्राय । पं. ४। लं. प. १०॥४४॥ ___क्र. ५७८ ज्ञानपंचमीकथा पत्र ७। भा. सं. 1 क. कनककुशल । अं. १५४ । र. सं. १६५५ । स्थि. जीर्ण । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५७९ वाग्भटालंकार सावचूरि पंचपाठ पत्र ७ । भा. सं. । मू. क. वाग्भट। स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १०॥४४॥.। क्र. ५८० दंडकबोलविचार पत्र ११ । भा. गू.। ले. सं. १७३१ । स्थि. श्रेष्ठ। पं १८ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५८१ गुणस्थानविचार पत्र ३। भा. सं.। स्थि . श्रेष्ठ। पं. . प 1011४४॥॥ क्र. ५८२ क्रियाकलाप पत्र २७ । भा. सं । स्थि जान। पं. १२ । लं प. १०१-४॥ क्र. ५८३ अनेकार्थनाममाला वृत्तिसह पचपाठ अपूर्ण पत्र २२८ । भा . . क. हेमचद्रसूनि। वृ. क. महद्रसूर। स्थि . श्रेष्ठ। पं १६ । लं. प. १०!!४४।। क्र. ५८४ अव्यय पत्र ५ । भा. स.। ले सं. १५११। स्थि. ण । पं १४ । प १०॥४४॥ क्र. ५८५ बालसंग्रह पत्र ७ । भा. गू। स्थि . मध्यम। पं. १८। लं. प. १.४४। क्र ५८६ द्रव्यसंग्रह सस्तबक पत्र १२ । भा. प्रा.। स्त. क. नेमिचंद्रद्वार। मू. गा. ५८ । स्थि . मध्यम। पं. २३ । लं. प. १०॥४॥ क्र. ५८७ प्रियंकरनृपकथा-उपसर्गहरस्तोत्रप्रभावे पत्र ११। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं प १०॥x.। प्रति पाणीमां भाजाएली छ। क्र. ५८८ कथासंग्रह पत्र ७ । भा स.। स्थि . श्रेष्ठ । पं. २७ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५८९ गौतमकुलक सस्तबक पत्र २। भा. प्रा. गू.। मू. गा. २० । स्थि. मध्यम । पं. २१। लं. प. १०॥४४॥ ___ क्र. ५९० वनस्पतिसप्ततिकाप्रकरण पत्र ५। भा प्रा.। क. मुनिचंद्रमूरि। गा. ७७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५९१ सुसढचरित्र पत्र २-२२ । भा. प्रा.। गा. ५१९ । ले. सं. १६०१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५९२ सुपात्रदानादिविषयककथासंग्रह पत्र १९ । भा. सं.। ले. सं. १५६५। स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प १०॥४४॥ अन्त-संवत् १५६५ वर्षे फागुणधरि ४ शुके श्रीतपागच्छनायकश्रीकमलकलससूरिशिष्यपन्याससोमरत्नगणिशिष्य संघसोमगणिलिखापितम्। सेनापुरनगरे वास्तव्य जोषी मांडण लिखितम् ॥ छ । शुभं भवतु ॥ क्र. ५९३ समवायांगसूत्र पत्र ३७। भा. प्रा.। क. सुधर्मास्वामी। ग्रं. १६६७ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५९४ दशवकालिकसूत्र सस्तबक पत्र ५५ । भा.प्रा. गू.। मू. का शय्यंभवति । स्त.क. राजचंद्रसूरि पार्श्वचंद्रगच्छीय। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५९५ पाक्षिकसूत्र पत्र ६। भा. प्रा.। ले. सं. १७०६ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ ना Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थं [पोथी ४०-४५ क्र. ५९६ अभिधानचिंतामणीनाममाला अपूर्ण पत्र ३-५७। भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । स्थि . मध्यम। पं. १०। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ५९७ अभिधानचिंतामणीनाममाला सावचूरि पंचपाठ पत्र ३६ । भा. सं. । मू. क. हेमचंद्रसूरि । ले. सं. १५२५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २७ । लं. प. १०॥४४॥ अन्त-श्री ५ तपागच्छाधिराजपरमगुरुश्रीजयचंद्रसुरिपट्टप्रभाकरश्रीउदयनंदिसूरिशिष्यश्रीसरसुंदरसूरिशिष्यश्रीसोमजयसूरिशिष्यपरमाणुना पं. मंदिसहजगणिनाऽलेखि सं. १५२५ वर्षे माघ शुदि ५ दिने। श्रीरस्तु ॥ क्र. ५९८ अभिधानचिंतामणीनाममाला पत्र २३-३६ । भा. सं.। क. हेमचंद्रसूरि। ले. सं. १७९१। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ __क्र. ५९९ अभिधानचिंतामणीनाममालाअवचूरि अपूर्ण पत्र ८। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६०० चंदनबालाचोपाई पत्र ६ । भा. गू. । क. देपालकवि । स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६०१ नवतत्त्वचोपाई पत्र ६ । भा. गू.। क. मेरुमुनि। गा. ९६ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६०२ बालशिक्षाव्याकरण पत्र ३० । भा. सं.। क. संग्रामसिंह । र. सं. १३३६ । स्थि. मध्यम। पं. १७ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६०३ ज्ञानपंचमीकथा पत्र २१। भा. सं.। क. कनककुशल । ग्रं. १५४ । स्थि. मध्यम । पं. ९ । लं. प. १०॥४४॥। प्रति चोंटेली छे। क्र. ६०४ स्थूलभद्रस्वामिचरित्र पत्र १२ । भा. सं.। ग्रं. ५४७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०॥x४॥ क्र. ६०५ श्रीपालचरित्र पद्य पत्र १८ । भा. सं.। क. सत्यराजगणि। र. सं. १५१४ । ले. सं. १५७५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०॥x४||| क्र. ६०६ (१) चंदनबालाभास पत्र ३-५ । भा. गू। गा. २२। गा. ३ थी चालु । (२) वीरजिनस्तवन आदि पत्र ५-६ । भा. गू. । (३) सिद्धांतगीत पत्र ६छं। भा. सं.। (४) चिंहुगतिनी वेल पत्र ६-१५ । भा. गू.। गा. १३५ । (५) मृगावतीभास पत्र १५-१८ । भा. गू. । गा. २२ । (६) गौतमस्वामिगीत पत्र १८-१९। भा. गू. । गा. ९। (७) शिवकुमारगीत पत्र १९-२१। भा. गू.। गा. १८ । (८) गुरुगीत पत्र २१ मुं। भा. गू.। (९) सुकोशलमुनिभास पत्र २१-२४ । भा. गू.। गा. २२ । (१०) सप्तपदी चंदी पत्र २४-२५ । भा. गू. । (११) पूजाविधिभाससंग्रह पत्र २६-३१। भा. गू. । (१२) पुण्याढ्यनरेसरभास पत्र ३२-४३ । भा. गू. । (१३) राजसिंहरत्नवतीरास-नवकारप्रभावे पत्र ४३-४६ । भा. गू. । गा. २८ । (१४) आदेिवस्तव पत्र ४६-४८ । भा. गू। गा. २१। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ५९६-६१९] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २३७ (१५) शांतिनाथविनती पत्र ४९-५० । भा. गू.। गा. १५ । (१६) भुवनतिलककुमारभास पत्र ५१-५२। भा. गू. । (१७) नरवर्मकुमारभास पत्र ५३-५६ । भा. गू. । कडी २० । (१८) नागदत्तकुमारभास पत्र ५६-५९ । भा. गू. । कडी. २३ । पत्र ६०-६२ नथी। (१९) मृगध्वजकुमारभास पत्र ६३-६४ । भा. गू.। गा. १८। गा. ६ थी शरु । (२०) मृगांकलेखाभास पत्र ६४-६८ । भा. गू.। गा. ३४। (२१) विवेकचउपई पत्र ६८-७० । भा. गू। गा. १९ । (२२) कर्मविचारचउपई पत्र ७०-७१। भा. गू.। गा. १२। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६०७ सिद्धहेमशब्दानुशासम अष्टमाध्याय अपूर्ण पत्र ४८ । भा. सं.। क. हेमचंद्ररि स्वोपज्ञ। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ पोथी ४१ मी क्र. ६०८ सिद्धांतचंद्रि पत्र ४४ । भा. सं.। क. रामचंद्र । स्थि . श्रेष्ठ । पं.११ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६०९ नेमिनाथचरित गद्य पत्र २-१२३ । भा. सं.। क. गुणविजय । ग्रं. ५२५५ । र. सं. १६६८। ले. सं. १७३५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९x४॥ क्र.६१० द्रव्यप्रकाश अपूर्ण पत्र १८ । भा. हिन्दी। क. देवचन्द्र (2)। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. smx४॥ क्र. ६११ योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्क पत्र २७। भा. सं. । क. हेमचन्द्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. ७ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६१२ स्थानांगसूत्र अपूर्ण पत्र ४१ । भा. प्रा. । क. सुधर्मास्वामी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९x४m क्र. ६१३ साल्हाऋषिसज्झाय पत्र १ । भा. गू. । क. शुभमंदिर । गा. ११ । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६१४ इलाकुमारचोपाई पत्र ७ । भा. गू. । क. न्यानसागर। र. सं. १७७९ । ले. सं. १८७० । स्थि . मध्यम। पं. १४ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६१५ कुमारसंभवमहाकाव्य सप्तमसर्गपर्यंत पर २९ । भा.सं.। क.महाकवि कालीदास । ले. सं. १७२३ । स्थि . मध्यम । पं. ११। लं. प. ९॥४४॥ ___ क्र. ६१६ कर्मस्तवअवचूरि पत्र ७ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६१७ रंगरत्नाकर-नेमिनाथप्रबंध पत्र ८। भा. गू, । क. लावण्यसमय । ग्रं. ४०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९x४। क्र. ६१८ सुबाहुकुमाररास अपूर्ण पत्र ३। भा. गू। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. ९॥४४॥ __ क्र. ६१९ प्रश्नोत्तररत्नमाला सस्तबक पत्र ३ । भा. सं. गू. । मू. क. विमलाचार्य। स्थि. जीर्ण। पं. १२। लं. प. ९॥४४॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ રૂટ श्रीजेसलमेरु दुर्गस्थ [ पोथी ४१-४२ क्र. ६२० प्रश्नोत्तररत्नमाला सस्तबक पत्र २ । भा. संः गू. । मू. क. विमलाचार्य । स्थि. जीर्ण । पं. २४ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६२१ ऋषभपंचाशिका सस्तबक पत्र ४ । भा. प्रा. गू. । मू. क. धनपाल । भू. गा. ५० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६२२ कायस्थितिप्रकरण सस्तबक पत्र ३-७ । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । क. सोमप्रभाचार्य । स्थि. मध्यम । पं. १३ । क्र. ६२४ सिंदूरकर पत्र ५। भा. सं. । क. सोमप्रभाचार्य । ग्रं. २२० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९ ।। ४४ । । प्रति पाणीमां भींज एली छे । क्र. ६२५ हलायुधनाममाला पंचमकांड पत्र ३ । भा. सं. । क. हलायुध । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५1 लं. प. ९ ॥ ४४ क्र. ६२६ कालज्ञान अपूर्ण पत्र २ । भा सं. । स्थि. मध्यम । पं. क्र. ६२७ शतश्लोकी अपूर्ण पत्र ११ । भा. स. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. क्र. ६२८ रामवनोद अपूर्ण पत्र ८ भा. हिन्दी । क रामविनोद | लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६२३ सिंदूरप्रकर पत्र ७ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ भा. सं. १४ । लं. प. ९॥४॥ १३ । लं. प. ९४४ ॥ स्थि ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६२९ सिद्धान्तालापक पत्र ८ । भा. प्रा. । स्थि. मध्यम । पं ९ । लं. प. क्र. ६३० धन्यशालिभद्ररास पत्र २५ । भा. गू क. जिनराजसूरि । र. सं. १६७८ । ले. सं. १७७१ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९॥४४॥ । पत्र ९, १८, १९, २१-२५ सिवायनां पानां नथी । श्रेष्ठ । पं. १९ । क्र. ६३१ छंदमाला पत्र २ - ११ । भा. गू. । क. हेमकवि । गा. १९४ । र. सं. १७०६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६३२ कथासंग्रह पत्र ६ । भा. हिंदी । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६३३ ढोलामारुवार्त्ता पत्र ५। भा. गू. । स्थि. जीर्ण । पं. १६ । लं. प. ९॥४॥ क्र. ६३४ प्रश्नोत्तररत्नमालिका सस्तबक पत्र ३ । भा. सं. गू. । मू. क. विमलाचार्य । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६३५ (१) कायस्थितिस्तोत्र प्रकरण पत्र २-४ । भा. प्रा. गा. २४ । (२) सम्यक्त्वस्तवपचीसी पत्र ४-५ । भा. प्रा. गा. २५ । (३) नंदीसूत्रस्थविरावली पत्र ५-७ । भा. प्रा. । गा. ५० । (४) आवश्यकनिर्युक्तिगतकतिविगाथा पत्र ७-८ । भा. प्रा. । गा. २९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ९ ॥ ५ ॥ क. ६३६ कर्मविपाककर्मग्रंथ सस्तबक पत्र ११ । भा. प्रा. गू. । मू. क. देवेंद्रसूरि । स्थिश्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६३७ वाजसनेयी संहिता पत्र १८६ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ६ । लं. प. ९ ॥ वचमां घणां पानां खूटे छे । क्र. ६३८ जिनबिंबनमस्कार पत्र २ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १० । लं. प. ९॥४४॥ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ६२०-६५५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २३९ क्र. ६३९ जिनमालिका पत्र ३ । भा. गू. । क. सुमतिरंग। स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६४० माधवानलकामकंदलाचोपाइ पत्र १९ । भा. गू. । क. कुशललाभ । गा. ५५० । र. सं. १६१६ । ले. सं. १६६७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ९ ।। ४४ । । पत्र १०, ११, १५, १६, १८ नथी । क्र. ६४१ यागशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १९ । भा. सं । क. हेमचंद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १० । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. ६४२ कातंत्रव्याकरणसूत्रपाठ पत्र ३ । भा. सं. । स्थि. जीर्णप्राय । ९॥४४ क्र. ६४३ भीमसेनचोपाई पत्र ६४ । भा. गू. । क. जिनसुंदरसूरि । गा. १७५५ । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९ ॥४४॥ पोथी ४२ मी क्र. ६४४ सूत्रकृतांगसूत्र पत्र ५१ । भा. प्रा. । क. सुधर्मास्वामी । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ६४५ पंचपरमेष्ठिनमस्कार पत्र २ । भा. गू. । क. जिनवल्लभसूरि । गा. मध्यम । पं. १२ । लं. प. १०।।।४४ ॥ क्र. ६४६ पंचसंवरगीत पत्र २ । भा. गू । क. हीरदेव । गा. २४ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १२ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र ६४७ श्रीपतिपद्धतिवृत्ति पत्र २ - २० । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १०x४॥ प्रति चोंटीने खराब थई छे । क्र. ६४८ नेमिनाथस्तव तथा देवगुरुगीत पत्र २ । भा. सं. । स्थि. अतिजीर्ण । पं. ११। लं. प. १० ॥ ४४॥ क्र. ६५२ नव्यबृहत्क्षेत्रसमास पत्र जीर्णप्राय । पं. २१ । लं. प. १०॥४४॥ पं. १३ । लं. प. १४२८ । र. सं. क्र. ६४९ अढारपापस्थानकभास पत्र स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ । प्रति २-८ । भा. गू. । क. ब्रह्मकवि । ले. सं. १६६८ । दरे करडेली छे । क्र. ६५० संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र ७१ । भा. प्रा. सं.। भू. क. श्रीचंद्रसूरि । टी. क. देवभद्रसूरि । ग्रं. ३५०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६५१ पिंडविशुद्धिप्रकरण पत्र श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ ४ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १०३ । स्थि. १३ । स्थि. ७ । भा. प्रा. क. सोमतिलकसूरि । गा. ३८६ । स्थि. क्र. ६५३ नव्यबृहत्क्षेत्रसमास पत्र ११ । भा. प्रा. । क. सोमतिलकसूरि । गा. ३८६ । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ६५४ (१) पंचनिग्रंथीप्रकरण पत्र ६ । भा. प्रा. । क. अभयदेवसूरि । गा. १०६ । (२) पार्श्वनाथविनती पत्र ६ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि । गा. ९। स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६५५ (१) लघुक्षेत्र समासप्रकरण पत्र १ - १४ | भा. प्रा. । क. रत्नशेखरसूरि । गा. २६७ ।। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ४२-४३ (२) दंडकप्रकरण पत्र १४-१६ । भा. प्रा.। क. गजसारमुनि। गा. ३८। (३) जीवविचारप्रकरण पत्र १६-१८ । भा. प्रा.। क. शांतिसूरि। गा. ५१। (४) नवतत्त्वप्रकरण पत्र १८-२० । भा. प्रा. । गा. ४७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०mx४ क्र. ६५६ प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणी पत्र ४ । भा. प्रा. । क. अभयदेवसरि। गा. १३२ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६५७ उत्तराध्ययननां गीतो पत्र १६ । भा. गू.। क. राजशील उपाध्याय । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६५८ लीलावतीगणित पत्र ३३ । भा. सं.। क. भास्कराचार्य । ले. सं. १७२१। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ __क्र. ६५९ अनुयोगद्वारसूत्र बालावबोधसह त्रिपाठ पत्र ८५ । भा. प्रा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. २३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ६६० उववाईसूत्रपर्याय पत्र १६-२६ । भा. गू. । ग्रं. ६१५ । ले. सं. १६२२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०mx४॥ क्र. ६६१ विधिप्रपा पत्र ६६ । भा. सं.। क. जिनप्रभसूरि। ग्रं. ३५७४ । र. सं. १३६३ । ले. सं. १५५९ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. १०x४॥ अन्त-श्रीविधिप्रपापुस्तकग्रन्थः समाप्तः । ग्रं. ३५७४ श्रीः ॥ सं. १५५९ वर्षे भाद्रमासे सोमवारे शुक्लपक्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने श्रीजिनशेखरसरिपट्टे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टपूर्वाचलचूलिकायां प्रौढप्रतापदिवाकरपूज्यश्रीजिनमेरुसूरिवराणां वाचनाय पं. ज्ञानमंदिरमुनिना पण्ड्याभीदाकेन विधिप्रपापुस्तकमलेखि चिरं नन्दतात् । आचन्द्रार्कमिति ॥छ॥ क्र. ६६२ योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १७ । भा. सं. । क. हेमचंद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६६३ नवरससागर-उत्तममहाराजर्षिचरित्ररास अपूर्ण पत्र १६-७२ । भा. गू. । क. जिनसमुद्रसूरि। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥.। पत्र १९ नथी। क्र. ६६४ नवतत्वना बोल पत्र ४ । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. १०x४|| क्र. ६६५ वसुदेवचरित्ररास पत्र १४ । भा. गू. । क. महिमासमुद्र । स्थि. मध्यम । पं. १७॥ लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६६६ गुणसुंदरचोपाई अपूर्ण पत्र ६ । भा. गू.। क. जिनसुंदरसूरि। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ६६७ सरस्वतीकुटुंबसंवाद पत्र २-३ । ले. सं. १७२६ । स्थि. मध्यम। पं. ११ । लं. प. १०x४॥ क्र. ६६८ (१) सज्जनचित्तवल्लभ पत्र १-२ । भा. सं. । क. मल्लिषेणसूरि। का. २५ । (२) पूजाप्रकरण पत्र ३जुं । भा. सं.। क. उमास्वाति वाचक। आर्या. १९ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. २० । लं. प. १०x४॥ क्र. ६६९ उत्तराध्ययनसूत्रसावचूरिक पंचपाठ पत्र १०९ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १५९८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ गया। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१ क. ६५६-६८४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथमंडार सूचीपत्र क. ६७० राजसिंहकुमारचोपाई पत्र ११ । क. जटमल नहार । गा. २२५ । र. सं. १६९३ । स्थि जीर्ण । पं. १२। लं. प. १०॥४४॥.। प्रति चोंटीने अक्षरो उखडी गया छे । क्र. ६७१ दशआश्चर्य पत्र १० । भा. सं.। स्थि . मध्यम । पं. १०। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ६७२ अनेकार्थध्वनिमंजरी अपूर्ण पत्र ४-१०। भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १०। लं. प. १०x४॥ क्र. ६७३ पांचपांडवरास (द्रौपदीरास) पत्र ३५ । भा. गू.। क. जिनचंद्रसूरि । ग्रं. १३०० । गा. ८७१ । र. सं. १६९८ । ले. सं. १७०९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०x४॥ अन्त इति श्रीपांचपांडवद्रूपदीचरित्रे षष्ठमो प्रस्तावः ॥ सर्वगाथा १३९ ढाल ७ ॥ सर्व ग्रन्था. गाथा ८७१ श्लोक सङ्ख्या १३०० सर्व ढाल ५१॥ स. १७०९ वर्षे वैशाख वदि १० दिने मंगलवारे धनिष्ठानक्षत्रे सिद्धियोगे श्रीमेहरानगरे शान्तिजिनप्रासादे श्रीबृहत्खरतरवेगडगच्छे भट्टारक श्री ५ श्रीजिनचंद्रसूरिविजयराज्ये तच्छिष्य पं. रत्नसोमैलिखितम् ॥छ॥ शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ श्रीस्तात् ॥ कल्याणं भूयात् ॥ क्र. ६७४ चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र पत्र ५२ । भा. प्रा. । ग्रं. २००० । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. . १०॥४४॥.। पत्र २४९ नथी । क्र. ६७५ आराधना पत्र ५० । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ पोथी ४३ मी क्र. ६७६ जीवविचारप्रकरण अपूर्ण पत्र ९। भा. प्रा. । क. शांतिसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ३ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६७७ ऋषिमंडलप्रकरण पत्र ९। भा. प्रा.। क. धर्मघोषसूरि । गा. २०८ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३। लं. प. ९॥४४॥ क्र. ६७८ योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १५। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४४ क्र. ६७९ रामायण पत्र २-७ । भा. सं.। स्थि . मध्यम। पं. १७। लं. प. १०४४॥ क्र. ६८० सुधानिधियोगविवरण पत्र १० । भा. सं. । क. यादवसूरि। स्थि. मध्यम। पं.१२। लं. प. १०x४॥.। ज्योतिषविषयक ग्रंथ । क्र. ६८१ नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक अपूर्ण पत्र २-१३ । भा. प्रा. गू.। स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ६८२ (१) एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र १-३ । भा. प्रा. । क. सिद्धसेनसूरि । गा. ६६। (२) महावीरस्तवन पत्र ३जु। भा. प्रा. । क. अभयदेवसूरि। स्थि. मध्यम। पं. . १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ६८३ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र १० । भा. प्रा.। क. रत्नशेखरसूरि। गा. २६३ । ले. सं. १६..। स्थि . जीर्ण। पं. १३ । लं. प. १०४४॥ क्र. ६८४ नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक अपूर्ण पत्र १३ । भा. प्रा. सं.। स्थि. जीर्ण। पं. १७ ॥ लं. प. १०x४॥ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ४३ क्र. ६८५ गौतमस्वामिसज्झाय पत्र ३। भा. गू.। क. कांतिविजय । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १०। लं. प. १०x४॥ क्र. ६८६ दिक्पटचोरासीबोलकवित पत्र ८। भा. हिंदी। गा. ९०। ले. सं. १७६४ । स्थि. जीर्ण। पं. १२ । लं. प. १०४४॥ क्र. ६८७ चौदस्वमबालावबोध पत्र ४। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १०। लं. प. १०x४॥ क्र. ६८८ तपागच्छगुर्वावलि सटीक त्रिपाठ पत्र १९। भा. प्रा. सं. । भू. टी. क. धर्मसागरोपाध्याय स्वोपज्ञ। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०४४|| क्र. ६८९ सारस्वत आख्यातप्रक्रिया पत्र २० । भा. सं. । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ६९० नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक पत्र । भा. प्रा. गू। म. गा. ५१। ले. सं. १७४८ । स्थि . मध्यम । पं. १९। लं. प. १०४४॥ क्र. ६९१ नवतत्त्वप्रकरण पत्र २ । भा. प्रा.। गा. ५३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प.१०x४॥ क्र. ६९२ गणेशकथा अपूर्ण पत्र ४ । भा. हिंदी। स्थि. श्रेष्ठ। पं. ९। लं. प. १०x४॥ क्र. ६९३ स्नात्रपूजा पत्र १०। भा. अप्रभ्रंश। स्थि. जीर्ण। पं. १३ । लं. प. १०४४॥ क्र. ६९४ तत्त्वप्रबोधनाटक पत्र १३। भा. हिंदी । क. जिनसमुद्रसूरि । गा. १८१। र. सं. १७३० । ले. सं. १७३० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९। लं. प. १०४४॥ क्र. ६९५ ज्ञानपंचमीस्तवन पत्र २। भा. गू.। क. लन्धिहर्ष। गा. ७७ । स्थि. मध्यम । पं. २३ । लं. प. १०४४॥ क्र. ६९६ योगशास्त्र अपूर्ण पत्र १० । भा. सं.। क. हेमचंद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. १०x४॥ क्र. ६९७ कल्पान्तर्वाच्य प्रथमवाचना पत्र ११ । भा. गू.। क. जिनभद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०x४॥.। प्रति पाणीमां भींजाएल छे।। क्र.६९८ चउगतिचोपाई पत्र ५। भा. गू। क. वस्तिग। गा. ९६ । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. १०x४ ___ क्र. ६९९ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति-चतुष्कवृत्ति पत्र ४६-६४ । भा. सं. । वृ. क. दुर्गसिंह । स्थि. अतिजीर्ण। पं. ९ । लं. प. १०४४॥ क्र. ७०० दशवकालिकसूत्र पत्र १९ । भा. प्रा.। क. शय्यंभवसूरि। ग्रं. ७०० । ले. सं.१७०११ स्थि. अतिजीर्ण । पं. १९। लं. प. १०x४॥ क्र. ७०१ योगचिंतामणि पत्र ४१। भा. सं. गू. । क. हर्षकीर्तिसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१। लं. प. ९॥४४॥ क्र. ७०२ अभिधानचिंतामणिनाममाला पत्र २ थी ८२ । भा. सं. । क. हेमचन्द्राचार्य। ले. सं. १६९९ । स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. १०४४॥ अन्त-इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां अभिधानचिंतामणौ नाममालायां सामान्यकांडः षष्ठः ॥६॥ श्री शुभं भवतु लेखकपाठकयोः। श्रीरस्तु॥ स्वस्ति श्री संवत् १६९९ वर्षे भाद्रवा वदि ७ दिने चंद्रवारे लिखित श्रीकरटवाणिज्ये भट्टारक श्री ५ श्रीहीरविजयसूरिशिष्यपंडितशिरोरत्नायमानपंडितश्रीदेवविजयगणिशिष्य पं. प्रवरपंडितश्री......विजयगणिवाचनार्थ शिष्यगणि......विजयेन । शुभं भवतु। श्रेयसे कल्याणमस्तु ।।छ।। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ६८५-७१५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २४३ यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा मम दोषो न दीयताम् ।।१।। जलाद्रक्षेत् स्थलाद्रक्षेत् रक्षेत् शिथिलबंधनात् । परहस्तगताद्रक्षेत् एवं वदति पुस्तिका ॥२॥ शुभं भूयात् ॥छ। मंगलं श्रीसंघस्य भूयात् ॥छ।। श्रीरस्तु ॥छ।। क्र. ७०३ मृगावतीचरित्ररास अपूर्ण पत्र ३ थी २६ । भा. गू. । क. समयसुंदरगणि। स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०४४। क्र. ७०४ रात्रिभोजनरास पत्र ६। भा. गू.। गा. २४९ । स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं. प. १०४४॥ क्र. ७०५ जीवविचारप्रकरण सस्तबक पत्र ४। भा. प्रा. गू. । मू. क. शांतिसूरि । मू. गा. ५१। ले.सं. १७७८ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६। लं. प. १०x४॥ ___ क्र. ७०६ देशीनाममाला पत्र २५ । भा. प्रा.। क. हेमचन्द्राचार्य। *लो. ९२०। ले. सं. १७.१। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४॥ अन्त-संवत् १७०१ वर्षे ॥ भाद्रपद शुक्ल दशम्यां । श्रीजेसलमेरौ श्रीखरतरवेगडगच्छे भट्टारकश्री५श्री जिनचंद्रसूरीश्वराणां शिष्यमुष्य पं. श्रीमहिमासमुद्रेण एषा प्रतिलिषापिता। श्रीः। क्र. ७०७ परमात्मस्वरूपगीत तथा अध्यात्मगीत पत्र १ । भा. हिंदी । क. यशोविजयोपाध्याय । गा. २१-५। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १८। लं. प. १०४४॥ क्र. ७०८ प्राकृतर्पिगल अपूर्ण पत्र ४ । भा. अपभ्रंश। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । ल.प.९॥४॥ क्र. ७०९ धातुपा र्ण पत्र ९। भा. सं. । स्थि . श्रेष्ठ । पं. २४ । लं. प. १०४४। क्र. ७१० पंचमहाव्रतस्वाध्याय पत्र ४ । भा. गू.। क. कांतिविजय । गा. २९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं.८। लं. प. १०४४।। क्र. ७११ परमानन्दपंचविंशतिका सस्तबक पत्र ३। भा. सं. गू । मू.क. यशोविजयोपाध्याय । मू. प्रलो. २५ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १८। लं. प. १०४४॥ क्र. ७१२ षड्विंशति प्रश्नोत्तर चार्चिक पत्र २८ । भा. प्रा. सं. गू. । क. जयसोम उपाध्याय । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. १०४४। आदि नत्वा श्रीसर्वज्ञ ध्यात्वा श्रुतदेवतां विशेषेण । गुरुचरणाम्बुजसेवां कृत्वा विघ्नव्यपोहाय ॥१॥ खरतरगणराजानां श्रीमज्जिनचन्द्रसूरिराजानाम्। राज्ये श्रीलाभपुरे प्रमोदमाणिक्यगणिशिष्यैः ॥२॥ श्रीजिनसिंहगुरूणामाज्ञातः प्रवचनानुसारेण । जयसोमोपाध्यायैः प्रश्नानामुत्तराणि लिख्यते ॥३॥ क्र. ७१३ नवकारबालावबोध पत्र ६ । भा. गूर्जर । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७१४ कर्मस्तवकर्मग्रंथ सस्तबक पत्र ७ । भा. प्रा. गू.। मू. क. देवेन्द्रसूरि । मू. गा. ३५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०x४. । पत्र २ जु नथी। क्र. ७१५ भर्तृहरिवैराग्यशतक सटीक पत्र ३५। भा. सं. हिंदी। मू. क. भर्तृहरि । टी. क. जिनसमुद्रसूरि । टी. र. १७४० । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १२ । लं. प. १०x४. । टीकानाम-सर्वार्थसिद्धिमणिमाला । अन्त नमो वैराग्यनाथाय महावीराय स्वामिने । जिनाय च जिनेन्द्राय कर्मोन्मूलनहस्तिने ॥१॥ नमः श्रीनेमिनाथाय स्थूलभद्राय साधवे । याभ्यां त्यक्ता वरा नारी रता ताभ्यां व्रते गता ॥२॥ Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेलधुर्गस्थ [ पोथी ४३ वजाय वज्रनाथाय वञसेनाय सूरये । नमो योगीन्द्ररूपाय ब्रह्मणे ब्रह्मचारिणे ॥३॥ ये जिनाः ये जिनेन्द्राश्च वैराग्यरसधारिणः । साधवो मानवाश्चैव तेषां नित्यं नमो नमः ॥४॥ वैराग्यशतकं नाम ग्रंथं विश्व महोत्तमम् । सटीक सार्थक पूर्ण कृतं जैनाब्धिना शुभम् ॥५॥ इति । श्रीवैराग्यशतं शास्त्र महावैराग्यकारणम् । सुभाष सुगमं चक्रे समुद्रोद्यतसूरिणा ॥६॥ सूरिणा श्रीजिनाधिना [पाठां०] ॥ श्रीमत्सर्वार्थसिद्धयाः मणिस्रजि मतिना रत्नकानि धृतानि, नानाशास्त्रागरेभ्यः श्रुतश्रुतविधिना मथ्यतानि स्थितानि । प्रोद्यश्रीवेगडाख्यगगनदिनमणीनां गणीनां सुशिष्यैः, शिष्यानामर्थसिद्धयै जिनदधिरविभिः शोधनीयानि विद्भिः ॥७॥ शीघ्रगत्या यथा पत्री लिख्यतेऽत्राप्यसौ मया । लिखिता शतकटीका च शोध्या विद्भिः सतां गुणः ॥८॥ वैराग्यशतकाख्यस्य टीकायां श्रीसमुद्रभिः । सर्वार्थसिद्धिमालायां प्रकाशस्तुरीयो मतः ॥९॥ इति श्रीश्वेतांबरसूरिशिरोमणीनां परमार्हच्छासनगगनांगणदिनमणीनां भट्टारकश्रीजिनेश्वरसूरिसूरीणां पट्टे युगप्रधानपूज्यपरमपूज्यपरमदेवश्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां शिष्येण भट्टारकश्रीजिनसमुद्रसूरिणा विरचितायां श्रीभर्तृहरिनामवैराग्यशतकटीकायां सर्वार्थसिद्धिमणिमालायां चतुर्थः प्रकाशोऽयं समाप्तः। श्रेयसे स्तात् । कल्याणं भूयात् । सौधर्मगच्छे गगनांगणेऽस्मिन् श्रीवज्रसूरिरभवञ्च सूरिः । युगप्रधानान्वयके प्रभाकृदुद्योतनोद्योतकरो गणीन्द्रः ॥१॥ श्रीवर्द्धमानाभिधवर्द्धमानः सूरीश्वरोऽभूच रमाप्रधानः । तत्पधारी भुवनैकवीरो जिनेश्वरः सूरिगुणैः सधीरो ॥२॥ जिनाद्यचन्द्रोऽभयदेवसूरिः क्रमेण सूरिजिन वल्लभाख्यः। तत्पट्टधारी कृतविद्यभूरियुगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ॥३॥ पत्तिर्जिनाद्यस्तत्पट्टचन्द्रः श्रीचन्द्रपट्टे प्रवरो गणीन्द्रः । जिनेश्वरः श्रीकुशलादिसूरिः क्रमेण तु श्रीजिनचन्द्रसूरिः ॥४॥ श्रीवेगडेत्याख्यगणस्य कर्ता संपूर्णवृद्धाख्यखरस्य धर्ता । तरांत्यशब्दाभिधगच्छनेता जिनेश्वरः सूरिरभूज्जनेता ॥५॥ श्रीशेखराख्यो जिनधर्मसूरिः ततः परं श्रीजिनचन्द्रसूरिः । श्रीमरुपट्टे सुगुणावतारो गुणप्रेमः सूरिगुणैरुदारः ॥६॥ जिनेश्वरस्तस्य विनेय एव तत्पट्टधारी जिनचन्द्रदेवः। युगप्रधानः सुगुणैः प्रधानः तत्पट्टधारी सुविराजमानः ॥७॥ सरेः श्रीजिनचंद्राहवगुरोः शिष्येण चाग्रहात् । टीका शतप्रबंधस्य कृता भाषामयी शुभा ॥८॥ शिष्याणां सेवकाणां च सूर्यान्तः श्रीजिनाधिना। सर्वार्थसिद्धयाश्चाख्याया मणिमाला मनोहरा ॥९॥ युग्मम् ॥ पूर्णचन्द्राश्विपक्षाख्य २२१० प्रमिते वीरवत्सरे। पूर्णवेदसमुद्रेन्दुवत्सरे विक्रमाहवये १७४० ॥१०॥ कार्तिक्यां शुक्लपूर्णायां दिने जीवे सुयोगके। औरंगावस्य साहस्य वादे कर्णपूरे तथा ॥११॥ तत्राधीशे धनूपेऽस्मिन् बलवंशे जयेन्दुके। तीर्थे श्रीवीरनाथस्य पार्श्वे देवगिरेस्तथा ॥१२॥ आरब्धा तु मया तत्र संपूर्णाऽपि कृता तथा । चतुःषष्टिदिनैरेषा सर्वसिद्धार्थदायिनी ॥१३॥ नीतिसिंगारवैराग्याधिकारैस्त्रिशतैः शुभैः । त्रिवर्गान्वितत्रिस्कंधा रचितैषा मया [ शुभा] ॥१४॥ धर्मार्थकामसंसिद्धा निबद्धा वर्गकैस्त्रिकैः । धारयति हि वै कंठे तेषां सर्वार्थसाधिनी ॥१५॥ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ७१६-७२१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र संस्कृता प्राकृता देशी क्वचिदन्याऽपि कीर्त्तिता । ग्वालेरदेशजा जाता सर्वतोऽस्यां धृता स्रजि ॥१६॥ पुनः पाठांतरम् - कचित् संस्कृता प्राकृता चान्यदेशी परं सर्वतो देशग्वालेरजाता । वैरेव ज्ञात्वा मया ग्रंथिताभिः गले धार्यतां सर्वभूषार्थसिद्धये ॥१७॥ यावद्धराभ्रचन्द्रार्कध्रुवसागरपर्वताः । तावन्नन्दतु ग्रंथोऽयं सर्वार्थमणिमालिकम् ||१८|| श्रीसौधर्मगणे पट्टधारी श्रीवीरशासने | युगप्रधानश्रेण्यां तु सूरिः श्रीजिनवल्लभः ॥१९॥ गच्छस्तु युगप्रधानानां श्रीसौधर्मिकसंज्ञिकम् । पूर्णसत्यतरावं च वेगडामुखशोधनम् ॥२०॥ वेदाधिकद्विसाहस्री संख्या तेषां प्रवर्त्तते । युगेऽस्मिन् युगप्रधानानां श्रीजिनागमसंग्रहे ॥२१॥ शासने वीरनाथस्य प्रमिते पंचमारके । खखचंद्राश्विवार्षिक्यां (२१००) भविष्यति कलौ युगे ॥२२॥ प्रसिद्धोऽयं समाख्यातः सामाचाय्यंत्र वर्त्तते । स्वयं सर्वेषु गच्छेषु ज्ञातव्यो ज्ञानसंग्रहात् ॥ २३॥ पट्टे श्रीजिनचन्द्रस्य सूरेः श्रीविजयो गुरुः । तत्प्रसादात् कृता पूर्णा श्री जिनाब्ध्यादिसूरिणा ॥ २४ ॥ वाच्यमाना पठ्यमाना श्रूयमाणा त्वहर्निशम् । क्षेमारोग्यायुः कल्याणप्रदा भवतु सर्वदा ॥ २५ ॥ श्री सर्वार्थसिद्धाद्या मणिमाला महोत्तमा । यावच शासनं जैनं तावच्च नंदताश्चिरम् ॥ २६ ॥ सर्वागमेष्वधिष्ठाता श्रुतज्ञा श्रुतदेवता । न्यूनाधिकमिहाख्यातं तत् क्षमस्व महेश्वरि ! || २७॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं • ॥२८॥ मंगलं सर्वभूतानां सङ्घानां मंगलं सदा । मंगलं सर्वधर्माणां श्रीसर्वज्ञप्रसादतः ॥१॥ लोकानां भूयात् सर्वत्र मंगलम् १ । सर्वमं. २ । मंगलं भ. ३ । शिवम. ४ । मंगलं लेखकस्यापि पाठक - स्यापि मंगलं मंगलं. ५ | तैला । शुभं भवतु कल्योणकल्याणमालिका भव्यप्राणिनां लेखकपाठकानां च जिनेश प्रभावतः ६ ॥ क्र. ७१६ ऋग्वेदयजुर्वेदगतशब्दादिनिर्णय पत्र २ थी २० । पं. १० । लं. प. १०४४ ॥ २४५ क्र. ७१७ शब्दभेदप्रकाशनाममाला पत्र ७ । भा. सं. । क. महेश्वर कवि । प्रलो. २७० । ले. सं. १७७२ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ७१८ माधवानलकामकंदलाचोपाई किंचिदपूर्ण पत्र २ थी २० | ५२९ पर्यंत । क. कुशललाभ । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. १०४४ ॥ भा. सं. । स्थि. जीर्णप्राय । क्र. ७१९ हरिबलचरित्ररास - विबुधप्रिया अपूर्ण पत्र ६४ । भा. गूर्जर । क. महिमासमुद्रगणि । गा. १३१९ पर्यंत । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ भा. गूर्जर । गा. पोथी ४४ मी क्र. ७२० प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र बालावबोधसह पंचपाठ पत्र ९२ । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ७२१ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १३८ । भा. प्रा. । ग्रं. ४९५४ । ले. सं. १५८२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०/४४ | अन्त धम्मका सुखंधो सम्मत्तो ॥ छ ॥ दसहि वग्गेहिं नायधम्मकहाओ सम्मत्ताओ || || ग्रंथाग्रे ४९५४ ॥ ॥ संवत् १५८२ वर्षे श्रीपत्तने श्रीखरतरगच्छावीश्वरश्रीजिनमाणिक्यसूरिविजयराज्ये श्रीजिनभद्रसूरि संताने Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ દ્ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ४४-४५ श्रीमुनिसोमोपाध्याय शिष्य वा विनयकुमारगणि सतीर्थ्य वा. विमलकीर्तिगणिवराणां वाचनार्थे लेखितम् । श्रीज्ञाताभिधं षष्ठांगं मात्रा रंगाईसुश्राविकया स्वश्रेयसे । तच्च वाच्यमानं चिरं नंदतु ॥छ || क्र. ७२२ जीवाभिगमोपांगसूत्र सस्तबक पत्र ३६२ । भा. प्रा. गू. । मू. ग्रं. ४७५० । उभय ग्रं. १५००० । ले. सं. १७८६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०४४। अन्त - संवत् १७८६ वर्षे भाद्रवा शुक्ल १४ भोमे ॥ क्र. ७२३ निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र सस्तबक पत्र ६९ । भा. प्रा. गू. । स्थि. जीर्ण | पं. १४ । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ७२४ भक्तामर स्तोत्र भाषा कवित कल्प षड्विधानसहित पत्र २७ । भा. स्थि. श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. १०४४। हिन्दी । क्र. ७२५ श्रावकाराधना पत्र ९ । भा. सं. । ले. सं. १७९५ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. लं. प. १०/४४ । क्र. ७२६ महादंडकबोल पत्र ३४ । भा. गू. । ले. सं. १८७० । स्थि. मध्यम । पं. १४ । ९ । लं. प. १०४४। क्र. ७२७ सप्तपदार्थीमितभाषिणीटीका पत्र ३० । भा. सं. । क. माधव सरस्वती । ले. सं. १६८१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०४४॥ क्र. ७२८ धन्वंतरीयनिघंटु पत्र ४२ । भा. सं. । क. धन्वंतरी । ग्रं. १३०० । ले. सं. १६०४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४॥ अन्त - ॥ संवत् १६०४ वर्षे भाद्रवा वदि ११ शुक्रे लिखितम् ॥ क्र. ७२९ विपाकसूत्र सस्तबक पत्र ४४ । भा. प्रा. गू. । ले. सं. १८१६ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. २५ । लं. प. १०४४ । अन्त-गढ १२१६ श्रुत ॥ सम्मत्तं । १८ विरखे सोलसट्ठे | जोधपुर मधे। श्री आरज्याजी श्री १००८ पुरांजानी सीषणी वकतु । आरज्या आत्मा अरथी लीषत्तं सम्मत्तं ॥ छ ॥ श्री ॥ श्री ॥ क्र. ७३० लघुक्षेत्रसमासप्रकरण यंत्र स्थापना चित्रसह पत्र ४४ । भा. प्रा. क. रत्नशेखरसूरि । गा. २६४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. १०४४। क्र. ७३१ प्रदेशीराजरास पत्र ५४ । भा. गू. । क. ज्ञानसागर आंचलिक । ग्रं. ११०० । गा. ७२१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. १०४४ ॥ पोथी ४५ मी क्र. ७३२ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ८४ । भा. प्रा. ग्रं. २१०० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १११ लं. पं. १० ॥ ४४ ॥ क्र. ७३३ उपासकदशांगसूत्र सस्तबक पत्र ५९ । भा. प्रा. गू. । ग्रं. २००० । ले. सं. १६९६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. १०।४४॥ अन्त—संवत् १६९६ वर्षे कार्त्तिकमासे शुकलपक्षे ४ दिने वार बुधवासरे लखिता ॥ छ ॥ ॥ कल्याणमस्तु ॥ क्र. ७३४ अंतकृद्दशांगसूत्र पत्र ४८ । भा. प्रा. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ६ । लं. प. १० १४४ | क्र. ७३५ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १९ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि । मध्यम । पं. १४ । लं. प. १० ।। ४४१ । प्रति पाणीमां भींजाएली छे । गा. ५४३ । स्थि. Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ७२२-७५४ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ર૪૭. क्र. ७३६ सुभाषितावलि पत्र ९। भा. प्रा. सं.। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १३ । लं. प. १०४४। प्रति चोंटेली छ। क्र. ७३७ नमस्कारवातिक पत्र ४। भा. गू.। स्थि. जीर्ण। पं. १२। लं. प. १०४४ . क्र. ७३८ सप्तस्मरण सस्तबक अपूर्ण पत्र २३ । भा.प्रा. गू.। स्थि. जीर्ण। पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ७३९ सप्तस्मरण पत्र ९। भा. प्रा.। स्थि. जीर्णप्राय । पं. ११। लं. प. १०४४। क्र. ७४० देववन्दनादिभाष्यत्रय पत्र ५। भा. प्रा. । क. देवेंद्रसूरि । गा. १५३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०x४। क्र. ७४१ वंदारुवृत्ति-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति पत्र ६१। भा. सं. । क. देवेन्द्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७४२ सिंदूरप्रकर सस्तबक पत्र १८ । भा. सं. गू. । मू. क. सोमप्रभाचार्य। मू.का.९९ । ले. सं. १७७० । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ अन्त-॥ संवत् १७७० वर्षे मिती भाद्रवा वदि ९ दिने सोमवारे श्रीमन्मूलत्राणमध्ये पं. लीलापति लि. क्र. ७४३ श्रावकविधिप्रकाश पत्र २३ । भा. गू। क. क्षमाकल्याण। ले. सं. १९०९। र. सं. १८३८ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ७४४ (१) समाधितंत्रदुहा पत्र १-६। भा. गू.। क. यशोविजयोपाध्याय। दुहा १०४ । (२) हितशिक्षाद्वात्रिशिका आदि पत्र ६-२०। भा. हिन्दी। क. क्षमाकल्याण आदि। गा. ३२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ९ । लं.प. १०४४॥ . ७४५ आगमसार पत्र ४८ । भा. हिन्दी। क. देवचन्द्र । र. सं. १७७६ । स्थि. मध्यम । पं. १३। लं.प. १०४४॥ क्र. ७४६ द्रव्यप्रकाश पत्र ४१। भा. हिन्दी। क. देवचन्द्रगणि । ग्रं. ७७५। र. सं. १७१७ । ले. सं. १९०९ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. ९। लं. प. १०x४॥ क्र. ७४७ सुरसुंदरीरास अपूर्ण पत्र १० । भा. गू.। क. नयनसुंदर। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ७४८ जीवविचारप्रकरण सस्तबक पत्र ८। भा. प्रा. गू. । मू. क. शांतिसूरि। मू. गा. ५१। ले.सं. १८३६। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १६। लं. प. १०४४॥ क्र. ७४९ मजलस पत्र २। भा. हिन्दी-उर्दू। स्थि. मध्यम। पं. १५। लं. प. १०४४॥ क्र. ७५० सिद्धांतहुंडिका सटीक त्रिपाठ पत्र ४-२३। भा. प्रा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. ७५१ उपासकदशांगसूत्र सस्तबक पत्र ३८ । भा. प्रा. गू. । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १६ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७५२ तर्कसंग्रह दीपिका टीका पत्र ११। भा. सं.। क. अन्नभट्टोपाध्याय। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ७५३ महावीरस्वामिचरित्रस्तोत्र बालावबोधसह पत्र १६ । भा. प्रा. गू.। मू. क. जिनवल्लभगणि। मू. गा. ४४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०४४। क्र. ७५४ (१) षष्टिशतप्रकरण पत्र १-९ । भा. प्रा.। क. नेमिचंद्र भंडारी। गा. १६१। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी४५-४६ (२) चैत्यवंदनाकुलक पत्र ९-१२ । भा. प्रा. । गा. ३५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०४४। क्र. ७५५ वीतरागस्तव पत्र ११। भा.सं.क. हेमचंद्रसूरि। स्थि. श्रेष्ठ। पं. ९ ।लं. प. १०४४। क्र. ७५६ नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक पत्र ५। भा. प्रा. गू.। मू. गा. ४७ । ले. सं. १७०९ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. २७ । लं. प. १०४४। अन्त-इति श्रीनवतत्त्वसूत्रस्य टबार्थः समाप्ता ॥ संवत् १७०९ पोष वदि१० दिने पंडितश्रीश्रीश्रीसुमतिधर्ममुनीनां वि. सुंदरेण लिपि॥ श्रीहाजीखांनडेरामध्ये ॥ __ क्र. ७५७ चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तवक पत्र ९। भा. प्रा. गू. । मू. क. वीरभद्रगणि । मू. गा. ६३। स्थि. मध्यम । पं. २० । लं. प. १०x४॥ क्र. ७५८ आराधना अपूर्ण पत्र २-९। भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९x४॥ क्र. ७५९ रसिकप्रिया पत्र ३२ । भा. सं.। क. केशवदास स्थि .श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प.१०४४। क्र. ७६० रामविनोद वैद्यक अपूर्ण पत्र ७५। भा. हिन्दी । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०४४ पोथी ४६ मी क्र. ७६१ (१) गणधरनमस्कार पत्र १। भा. गू. । कडी ११। (२) एकादशगणधरस्तुति पत्र १-२। भा. सं. । का. १३ । (३) एकादशगणधर एकादश भास पत्र २-४ । भा. ग.। क. दानशेखर । ग्रं. ११५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७६२ शानसुखडी पत्र २० । भा. गू. । क. धर्मचन्द्र वेगडगच्छीय। र. सं. १७६७ । ले. सं. १७८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०x४॥ अन्त संवत सत्तरह सतसठे अश्वनी आदितवार । सित फागुन फुन पंचमी आनंद जोग संभार ॥६॥ वेगडबिरुद वखाणीये गछ खरतरकी साख । श्रीजिनचंद जतीश्वरू पदमचंद गुरु भाख ॥७॥ धर्मचंद नित ध्याई यइ ज्ञानसुखडी ग्रंथ । तस प्रसाद करि जूं लहो मुक्ति मुहलको पंथ ॥८॥ थटा नगर वखाणीये श्रावक चतुर सुजाण । सभाचंद सोहे भलो कुशलकरण कल्याण ॥९॥ इति श्रीज्ञानसुखडी ग्रंथ समाप्तम् । संवत् १७८४ वर्षे नभस्यपरदले चतुर्दशीतिथौ लिखितमस्ति श्रीसक्तिपुरौ श्रीमहावीरमूलनायकप्रासादात् कल्याणमस्तु श्रीरस्तु ॥श्रीः॥ क्र. ७६३ दशवैकालिकसूत्र पत्र ९ । भा. प्रा.। क. शय्यभवसूरि। ग्रं. ७०० । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १६ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७६४ नेमिनाथस्तवन पत्र २ । भा. गू.। क. धनचन्द्र । गा. ३५ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७६५ गौतमपृच्छा बालावबोधसह अपूर्ण पत्र ५। भा. प्रा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०x४.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे ।। क्र. ७६६ भक्तामरस्तोत्र बालावबोध अपूर्ण पत्र ५। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. ११ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७६७ नवकारबालावबोध पत्र । भा. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १६ । लं. प. १०४४॥ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ७५५-७८४] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र _ . ७६८ लिंगानुशासन सावधूरि पत्र १२ । भा. सं.। मू.क. हेमचंद्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१। लं. प. १०x४॥ क्र. ७६९ जीवविचारप्रकरण सस्तबक अपूर्ण पत्र ३ । भा. प्रा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. २१। लं. प. १०x४॥ क्र. ७७० दोढसो कल्याणकनुं गणणु पत्र २। भा. सं.। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १८ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७७१ चैत्रीपूर्णिमाचैत्यवंदन अपूर्ण पत्र १। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७७२ अध्यात्मकल्पद्मवृत्ति पत्र ३५। भा. सं.। घ.क. रत्नचंद्रगणि । र. सं. १६७४ । ग्रं. २४६. । स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं. प. १०४४॥.। वृत्तिनु नाम अध्यात्मकल्पलता छ । क्र. ७७३ चतुःशरणप्रकीर्णक बालावबोधसह पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । मू. क. वीरभद्रगणि । बा. क. जयचंद्रसूरि । ले.सं. १५१८ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १८ । लं. प. १०x अन्त-संवत् १५१८ वर्षे फागुण शुदि १४ दिनेऽलेखि तिलककल्याणगणिभिः ॥ कर्णपुरमामे ॥छ॥ इति भद्रम् ॥ श्रीतपागच्छनायकसुविहितचक्रचूडामणिपरमगुरुभट्टारकप्रभुश्रीरत्नशेखरसूरितत्पट्टालंकरणश्रीलक्ष्मीसागरसूरिशिष्येण ॥ क्र.७७४ विनयचटकुमाररास अटक अपूर्ण पत्र २-९ । भा. गू.। स्थि. मध्यम ।पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. ७७५ व्रतविचार चूटक अपूर्ण पत्र १२ । भा. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७७६ कल्याणमंदिस्तोत्र सावचूरि पत्र ७ । भा. सं. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १६ । लं. प. १०x४॥.। प्रति पाणीमां भींजाएली छे । क्र. ७७७ पिंडविशुद्धिप्रकरणअवचूरि किंचिदपूर्ण पत्र ५। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं.२१ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७७८ कातंत्रद्वयाश्रयकाव्यअवचूरि पत्र १६ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ७७९ सिद्धांतसारोद्धार टिप्पनकसह पत्र २१। भा. प्रा. गू. । क. कमलसंयमोपाध्याय । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. १०४४॥ क्र. ७८० प्रतिक्रमणसूत्र सस्तबक पत्र ३६ । भा. प्रा. सं. गू.। ले. सं. १७०८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८। लं. प. १०४४। क्र. ७८१ गजसुकुमालरास पत्र १८ । भा. गू.। क. जिनराजसूरि। गा. ५५७ । र. सं. १६९२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०४४॥ क्र. ७८२ वंदारुवृत्ति-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति पत्र ३-७९ । भा. सं.। क. देवेन्द्रसूरि । ग्रं. २७००। ले.सं. १४७३ । स्थि . जीर्णप्राय। पं. १७ । लं. प. १०४४॥ क्र. ७८३ पुरंदरचतुष्पदी पत्र १० । भा. गू. । क. मालदेव । गा. ३०१ । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ७८४ जीबविचारप्रकरण सस्तबक अपूर्ण पत्र ५। भा. प्रा. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ ३२ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ४६-४७ क्र. ७८५ द्वादशवतातिचार पत्र १६ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण। पं. ९। लं. प. १०x४॥ क्र. ७८६ ओघनियुक्ति पत्र २३ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामि । गा. ११६४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७८७ दर्शनसप्ततिकाप्रकरण पत्र ५। भा. प्रा.। गा. ७० । स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ७८८ ब्रह्मतुल्यज्योतिष पत्र ६। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. ७८९ द्रव्यसंग्रह पत्र ५। भा. प्रा.। क. नेमिचंद्र भंडारी । गा. ५९ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. ९। लं. प. १०x४॥ क्र. ७९० अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र ५। भा. प्रा.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०४४। क्र. ७९१ स्थविरावली पत्र १२ । भा. प्रा.। गा. ५० । स्थि. मध्यम । पं. ४ । लं. प.१०४४। __ क्र. ७२२ कुमारसंभवमहाकाव्य अवचूरि व. अ. पत्र २२। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. ७९३ कल्पसूत्रबालावबोध अपूर्ण पत्र ४० । भा. गू. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १४ । लं. प. १०x४/ क्र. ७९४ कल्पसूत्रबालावबोध पत्र ६४ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४। क्र. ७९५ स्थानांगसूत्रचतुर्थस्थान सस्तबक अपूर्ण पत्र २० । भा. प्रा. ग.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०४४।। क्र. ७९६ रत्नाकरावतारिका अपूर्ण पत्र ८६ । भा. सं. । क. रत्नप्रभाचार्य। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १७। लं. प. १०x४1.। प्रति चोंटेली छे। क्र. ७९७ भक्तामरस्तोत्र पत्र ४। भा. सं.। क. मानतुंगसूरि। का. ४४ । स्थि. जीर्ण। पं. ११। लं. प. १०x४॥ क्र. ७२८ (१) एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र १-८ । भा. प्रा. । क. सिद्धसेनसूरि। गा. ६६ । (२) विचारषट्त्रिंशिकाप्रकरण सावचूरि पंचपाठ पत्र ८-१२। भा. प्रा. सं.। क. गजसारमुनि स्वोपज्ञ। (३) प्रश्नोत्तररत्नमालिका अपूर्ण पत्र १२-१४ । भा. सं.। क. विमलाचार्य। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. १०x४॥ क्र. ७९९ धर्मरत्नप्रकरण बहदवत्तिसह त्र. अ. पत्र ६५-२३५। भा. प्रा. सं.। मू. क. शांतिसूरि । वृ. क. देवेन्द्रसूरि। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ पत्र ७९ थी १६०, १७६-१८४, १९२, १९३, १९७-२०३ नथी. क्र. ८०० सप्ततिशतस्थानप्रकरण सस्तबक अपूर्ण पत्र ४१ । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०४४॥। पत्र १४ थी २२ नथी। पोथी ४७ मी क्र. ८०१ गाथाकोश पत्र १। भा. प्रा.। गा. ४.। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १६। लं. प. १०x४ क्र. ८०२ श्रीचंद्रीयसंग्रहणीप्रकरण पत्र १३ । भा. प्रा.। क. श्रीचंद्रसूरि। गा. ३१४ । ले. सं. १७२३ । स्थि. जीर्ण । पं. १२। लं. प.१०x४ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ क्र. ७८५-८१०] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. ८०३ भक्तामरस्तोत्र पत्र ४ । भा. सं. । क. मानतुंगरि । का. ४४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं.११ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८०४ भक्तामरस्तोत्र पत्र ४ । भा. सं. । क. मानतुंगसूरि । का. ४४ । स्थि. मध्यम । वं १३। लं. प. १०४४। क्र. ८०५ भक्तामरस्तोत्र सार्थ पत्र २१। भा. प्रा. गू.। भू. क. मानतुंगसूरि। स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. १०४४।। प्रति पाणीमा भीजाएली छे। क्र. ८०६ सूर्यसहस्रनामस्तोत्र-स्कंदपुराणगत पत्र ८। भा. सं.। ग्रं. १३०। ले. सं. १६९८ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. १२ । लं. प. १०४४। अन्त संवत् १६९८ वर्षे शाके १५६५ प्रवर्त्तमाने मास भाद्रवा वदि चतुर्दशीदिने शुभजोगे श्रीमेहराशुभस्थाने शांतिजिनप्रासादे श्रीखरतरवेगडगच्छे भट्टारक श्रीजिनगुणप्रभसूरि तत्पट्टे श्रीजिनेश्वरि तत्पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वाणारसमानसिंघ तत् शिष्य पं. श्रीसदारंगशिष्य खेतसी पठनार्थम् ॥ षीमानी परत संवत् १७॥ क्र. ८०७ दशआश्चर्य अपूर्ण पत्र ६ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १७ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८०८ (१) द्वादशभावनासज्झाय पत्र १-३ । भा. गू. । क. जयसोम। गा. ७३ । र.सं. (२) मेघकुमार चोढालीयुं पत्र ३-४ । भा. गू.। क. कनककवि। गा. ४७ । (३) अनाथीसंधि पत्र ४-६ । भा. गू.। क. विमलविनय । गा. ७१। र.सं. १६४७ । (४) सुबाहुसंधि पत्र ६-९। भा. गू। क. पुण्यसागरोपाध्याय । गा. ९४ । र. सं. १६७४ । (५) पार्श्वनाथस्तोत्र पत्र ९ मुं। भा. सं.। क. शिवलक्ष्मी। का. १३ । (६) चंद्रप्रभजिनस्तोत्र षड्भाषामय पत्र ९-१० । भा. सं.। का. १३ । (७) वैराग्यस्तोत्र-रत्नाकरपचीसी पत्र १०९। भा. सं.। क. रत्नाकरसूरि । का. २५। (८) चतुर्विंशतिजिनस्तवन पत्र १०-११। भा. सं.। क. जिनप्रभसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २०। लं. प. १०x४॥ क्र. ८०९ (१) वीसविहरमानजिनगीत पत्र ५। भा. गू। क. जिनसागरसूरि।। (१) षड्बांधवमुनिसज्झाय पत्र ५ मुं। भा. गू.। क. प्रेममुनि। स्थि. मध्यम । पं. १४। लं. प. १०x४॥ क्र. ८१० आराधनाचुपई पत्र ५। भा. गू.। क. हरिकलशमुनि। गा. ८३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०४४। अन्त संवत भवणनरयतिरिससी जो जो निपुण हीयए कसी। माह सूकल गुरु पुष्यसंजोग तेरस तिथि तेरम रविजोग ॥२॥ खरतरगच्छ जिणचंदसूरीस साता सुराजि हर्षप्रभ सीस । हरीकलस मुनि पास पसाइ कही आराधन अहिपुरमांहि ॥८३॥ इति श्रीआराधनाचुपई समाप्ता ॥छ॥ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोची ४७ __ क्र. ८११ गौतमपृच्छाचउपई पत्र २। भा. गू. । क. नयरंग। ले. सं. १६७३। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १५। लं. प. १०४४। अन्त-संवत् १६७३ वर्षे वईसाख वदि १० दिने ॥श्रीसिंधुदेशे। शीतपुरे लिखितमिदम् ॥ क्र. ८१२ ऋषभदेवविवाहलो पत्र १३। भा. गू.। गा. २४५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०x४) क्र. ८१३ विद्याविलासपवाडो पत्र १० । भा. गू.। क. हीरानंदसूरि। गा. १५३ । र. सं. १४८५। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८१४ चतुर्गतिवेलि पत्र १०। भा. गू.। गा. १३५ । स्थि. मध्यम । पं. ९। लं. प. १०॥४४॥ ___ क्र. ८१५ छोतीकुलक पत्र ५। भा. गू.। क. पातो। गा. ८५। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८१६ रूपकमाला वृत्तिसह पत्र १७ । भा. मू. गू.। भा. वृ. सं.। मू. क. पुण्यनंदि । वृ. क. रत्नरंगोपाध्याय । वृ. र. १५८२ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३। लं. प. १०४४। पत्र १३ तथा १६ मुं नथी। क्र. ८१७ (१) नंदीश्वरस्तवन पत्र ४ थें। भा. अपभ्रंश । गा. ११। (२) सीमंधरस्तवन पत्र ४-६ । भा. अपभ्रंश । गा. २१ । (३) चोवीसजिनस्तवन पत्र ६-७ । भा. अपभ्रंश । गा. १७ । (४) चतुर्विशतिजिनस्तवन पत्र ७-९ । भा. अपभ्रंश । गा. २४ । (५) आदिनाथस्तवन पत्र ९-१० । भा. अपभ्रंश । गा. २१॥ अष्टापदस्तवन पत्र १०-११। भा. अपभ्रंश । क. समरो। गा. २२ । (७) सीमंधरजिनस्तुति पत्र ११-१२ । भा. प्रा.। का. ४ । (८) पंचतीर्थीस्तुति पत्र १२ मुं। भा. सं.। का. ४ । (९) चतुविशतिजिनस्तुति पत्र १२ मुं। भा. सं. । का. ४ । (१०) महावीरस्तवन पत्र १६-२१ । भा. अपभ्रंश। क. लखमण । गा. ४-९१ । र. सं. १५२१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०x४. । पत्र १३-१५ नथी । क्र. ८१८ श्रीपालचरित्रबालावबोध पत्र ५। भा. गू। स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. १०॥४४॥ __ क्र. ८१९ नंदबत्रीसीचोपाई पत्र २-८ । भा. गू. । क. ज्ञानशील । गा. १५७ ।र. सं. १५६० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८२० पुरंदरचोपाई पत्र ९ । भा. गू। क. मालदेव । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १९ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८२१ (१) गौतमपृच्छाचउपई पत्र १-४ । भा. गू. । क. नयरंग । गा. ४५ । (२) द्वादशभावनासंधि पत्र ४-८ । भा. गू. । क. जयसोम । गा. ७२। र. सं. १६४६ । ले. सं. १६९५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०x४॥ संवत् १६९५ वर्षे जेठमासे सुकलपक्षे ऋसनपक्षे ६। वरसोमदिने पारीच्य परतापसी पांचाणी लीषतं ॥ श्रीनगरथटै मध्ये ॥छ॥ बाई लाल वांचना अर्थ ॥ शुभं भवतुः। श्रीरस्तुः।। Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ८११-८३६ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २५३ क्र. ८२२ नवतत्त्वविचार पत्र ७ । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ८२३ कमलावतीचरित्रचोपाई पत्र ४ । भा. गू. । क. विजयभद्र । स्थि. मध्यम । पं. १८८ लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ८२४ एकाक्षरीनाममाला पत्र १ । भा. सं. । क. अमरचंद्र । ग्रं. पं. ११ । लं. प. १०।४४ । गा. ४९ । स्थि. क्र. ८२५ सुकोशलऋषिसज्झाय पत्र २ । भा. गू. । क. विद्याचारित्र । श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०/४४ ॥ क्र. ८२६ वाग्भटालंकार पत्र ६ । भा. सं. क. वाग्भट । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १७ । लं. प. १०।४४ ॥ क्र. ८२७ चतुर्मुखश्रीधरणविहार श्री आदिनाथस्तवन पत्र ३ । भा. गू. । क. मेघो । गा. ४८ । र. सं. १४९९ । ले. सं. १५४७ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १४ । लं. प. १०।४४ ॥ अन्त जंगम तीरथ जयवंता ए, गोयमसम गणहर । श्रीसोमसुंदरसूरिराय, नंदउ संघ जयकर ॥४५॥ तस पयपंकय भमर जिम, नितु धरइ आनंद । प्रागवंसि धरणिंद साह, चिरकालिहि नंदउ ॥४६॥ भगति करइ साहामीतणी, छइ दरसण दान | चिहुँ दिसि कीरति विस्तरी ए, धन धरण प्रधान ॥४७॥ संवत चउदनवाणवइ ए धुरि काती मासे । मेहउ कहि मदं तवन कीउ मनिरंगि उल्हासे ||४८ ॥ इति श्रीचतुर्मुखश्रीधरणविहार श्री आदिनाथस्तवन समाप्तम् ॥ छ ॥ संवत् १५४७ वर्षे । पं. नंदिसहजगणि संघाटिक अभयप्रभगणिना लिखितं कुतबपुरे ॥ क्र. ८२८ नमस्कारबालावबोध पत्र ६ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०।४४॥ क्र. ८२९ आदिजिनस्तवन पत्र २ । भा. गू. । क. विजयतिलक । गा. २१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १० ४४ ॥ क्र. ८३० भोज्यनामगर्भित जिनस्तुति पत्र १ । भा. सं. । क. साधुराजगणि । का. स्थि. श्रेष्ठ | पं. ११ । लं. प. १०१४४ ॥ ले. सं. क्र. ८३१ उत्तराध्ययन सूत्रछत्रीसभास पत्र ४ । भा. गू. । क. राजशीलोपाध्याय । १६१२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २७ । लं. प. १०१४४ | अन्त-सं. १६५२ वर्षे आसोज वदि ३ गुरौ ॥ श्रीखरतरगच्छे पं. श्रीराजहंसगणीनां शिष्य पं. क्षेमकलश लिखिता ॥ क्र. ८३५ सीमंधरस्वामिरूपवर्णनस्तवन लस्तबक पत्र २ । २० । स्थि. श्रेष्ठ । क्र. ८३२ शांतिनाथस्तवन पत्र २ । भा. गू. । क. प्रेमविजय । गा. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १० । ४४ । क्र. ८३३ नंदीसूत्रगत द्वादशांगी आलापक पत्र १३ । भा. प्रा. । क. देववाचक । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. १०१४४ ॥ क्र. ८३४ रघुवंशमहाकाव्य अवचूरि पत्र १७। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०१४४ ॥ १२ । पं. १८ । श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. १०।४४ ॥ पं. क्र. ८३६ आलोचनाविचार - योगविध्यन्तर्गत पत्र १५ - २१ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । १५ । लं. प. १०॥४४॥ भा. गू. । या. १३ । स्थि. Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ४७ क्र. ८३७ सम्यक्त्वकौमुदी पत्र १८ । भा. गू। ग्रं. १३०० । ले. सं. १७०३ । स्थि. अतिजीर्ण। पं. १९ । लं. प. १०४४॥ . क्र. ८३८ शत्रुजयउद्धार पत्र ४ । भा. गू.। क. नयसुंदर । गा. १२४ । र. स. १६३८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०४४॥ ___ क्र. ८३९ देलवाडामंडनआदिजिनस्तवन सावचूरि पंचपाठ पत्र २। भा. अपभ्रंश सं. । मू. क. लक्ष्मीसागर । मू. कडी २२ । स्थि. जीर्ण । पं. १९ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८४० जिनपालजिनरक्षितस्वाध्याय पत्र ३ । भा. गू.। क. आनंदप्रमोद। गा. ६९ । स्थि. मध्यम । पं. १४। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८४१ औक्तिक पत्र ८ । भा. सं. गू.। ले. सं. १७०२। स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. १०४४। क्र. ८४२ चतुःशरणप्रकीर्णक बालावबोधसह पत्र १७ । भा. प्रा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८४३ चंद्रलेखाचरित्ररास अपूर्ण पत्र १५ । भा. गू । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५ । लं. प. १०x४1.1 प्रति उधेइए खाधेली छे । क्र. ८४४ चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र ३ । भा. प्रा. । क. वीरभद्रगणि । गा. ६३ । स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. १०४४। क्र. ८४५ अंतरिक्षपार्श्वनाथस्तवन पत्र २। भा. गू.। क. सुमतिहंस। गा. ३२। स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८४६ रसमंजरी-अलंकारग्रंथ पत्र १९। भा. सं. । क. भानुकर भट्ट। स्थि.श्रेष्ठ। पं. १० । लं. प. १०x४॥ क्र. ८४७ चारित्रमनोरथमाला पत्र ३ । भा. गू.। क. खेमराजमुनि । गा. ५३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४। क्र. ८४८ साधुवंदना पत्र ८। भा. गू.। क. कुंवरजी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०x४ । क्र. ८४९ सुर उरास पत्र १० । भा. गू.। क. मुनिसुंदरसूरिशिष्य । गा. २६४ । र. सं. १५७१ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४। क्र. ८५० कालिकाचार्यकथा पत्र । भा. प्रा.। गा. ५६ । ले. सं. १६५९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ८ लं. प. १०x४॥ आदि-नयरंमि धरावासे. अन्त-॥ इति श्रीकालिकाचार्यकथा संपूर्णा ॥ . संवत् १६५९ वर्षे भाद्रपदकृष्णैकादश्यां सोमे श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनगुणप्रभसूरीश्वराणां शिष्येण . मतिसागरेण लिपीकृता छाजहडगोत्रे वेगडान्वये मं. पंचाइण तत्पुत्र चांपसी उदयसिंह ठकुरसिंह तोडरमल्लपौत्र देवकर्ण इत्यादिपरिवारो जयति। मं. उदयसिंहभार्या श्राविका भानां ज्ञानपुण्यवृद्धयर्थ लेखिता। श्रीजेसलमेरौ श्री. पार्श्वचैत्ये महीपतिश्रीभीमसेनराज्ये। चिरं नंदतादाचन्द्रार्क यावत् वाच्यमाना प्रतिरियम् ॥ श्री ॥ - क्र. ८५१ एकाक्षरीमाममाला पत्र १। भा. सं.। ग्रं. ३६ । ले. सं. १७४९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०x४। क्र. ८५२ जिनचंद्रसूरिगीतादि गुरुगीत पत्र २। भा. गू। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०४४॥ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५५ क्र. ८३७-८६४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क. ८५३ विदग्धमुखमंडन पत्र १६ । भा. सं. । क. धर्मदास । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०x४ क्र. ८५४ जयतिहुयणस्तोत्र सार्थ पत्र ५। भा. अपभ्रंश. गू.। स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. १०४४। क्र. ८५५ शांतिनाथचरित्र पद्य टिप्पणीसह पत्र ११२ । भा. सं.। क. अजितप्रभसूरि । अं. ४९११ । ले. सं. १६९२ । स्थि. मध्यम। पं. १५। लं. प. १०x४। क्र. ८५६ गुरुगुणट्त्रिंशिका सटीक पत्र २५ । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १६०२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०४४। अन्त-॥ संवत् १६०२ वर्षे भाद्रवा वदि ४ने दिने । श्रीसेरणाग्रामे । श्रीरत्नरंगोपाध्यायशिष्य पं. अमरगिरिगणिना स्वहस्तेन स्ववाचनार्थं लिखिता ॥छ । क्र. ८५७ संयममंजरीप्रकरण पत्र २। भा. प्रा.। क. महेश्वरसूरि। गा. ३५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०४४॥ क्र. ८५८ (१) शीलरास पत्र १-६ । भा. गू.। क. पार्श्वचंद्रीय विजयदेवसूरि। कडी. ७८।। (२) नेमिरास अपूर्ण पत्र ६-७ । भा. गू.।। (३) द्वादशभावना पत्र ११-१२ । भा. गू.। क. जयसोम। गा. ७३। र. सं. १६७६ । स्थि . मध्यम । पं. १८। लं. प. १०४४। क्र. ८५९ इंद्रियपराजयशतक सस्तबक पत्र १० । भा. प्रा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. १०४४। क्र. ८६० चंदनबालाचुपई पत्र ५। भा. गू। क. देपालकवि । गा. १७६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. १०४४1 ___ क्र. ८६१ ध्यानस्वरूप पत्र १। भा. गू.। स्थि. जीर्णप्राय। पं. १४ । लं. प. १०४४। पोथी ४८ मी क्र. ८६२ रघुवंशमहाकाव्य सटीक त्रिपाठ पत्र १७६। भा. सं.। मू. क. कालिदास। टी. क. धर्ममेरु । टी. ग्रं. ८००० । उभयकुल ग्रं. १००००। पं. २२ । स्थि. जीर्ण। लं. प. १०॥४४॥.। प्रतिमा केटलांक पानां नथी। तथा चोंटी गई छे तथा थोडा पानानां टुकडा थएला छे। अन्त-इति श्रीवाचनाचार्य मुनिप्रभगणि। शिष्य धर्ममेरुविरचितायां रघुकाव्यटीकायां वंशप्रतिषेधराज्ञीराज्यनिवेशो नामैकोनविंशतितमः ॥१९॥ इति श्रीरघुवंशटीका समाप्तेति ॥ श्रेयो भूयात् ॥ ___ क्र. ८६३ समाधितंत्रबालावबोध पत्र १५४ । भा. गू. । क. पर्वत धर्मार्थी। ले. सं. १७७९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १०॥४४॥ अन्त इति परवतधर्मार्थीकृत बालावबोध समाधितंत्र अध्यात्मशास्त्र समाप्तम् ॥ श्री॥ संवत् १७७९ वर्षे मिती कार्तक सुदि १० बुद्धिवासरे लिखतं श्रीनगरथटामध्ये श्रीखरतरवेगडगच्छे भट्टारकश्रीजिनचन्द्रसूरिसूरीश्वराणां शिष्यमुख्य पण्डितप्रवर श्रीपदमचंद्रजी तशिष्य पं. धर्मचंद्रेण लिखतं शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥श्री। क्र. ८६४ न्यायप्रवेशवृत्ति टिप्पणीसह पंचपाठ पत्र ५। भा. सं.। वृ. क. हरिभद्रसूरि । पं. २५ स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०॥४४॥.। प्रति प्राचीन अने अतिसुंदर छ। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ४८ क्र. ८६५ पिंडविशुद्धिप्रकरण सस्तबक पत्र । भा. प्रा. गू. । मू. क. जिनवाल्लभगणि । गा. १०३ । ले. सं. १५९६ । पं. २० । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०॥४४॥ ____ क्र. ८६६ (१) चतुर्विशतिजिनवर्णलांछनादि अष्टक पत्र २। भा. अपभ्रंश। कडी. । (२) वर्धमानाष्टक पत्र २ जुं । भा. सं. । कडी. ८। (३) गुरुपरिवाडी पत्र २-३। भा. अपभ्रंश । कडी. ८। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८६७ नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक पत्र ७। भा. प्रा. गू.। गा. ४६ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८६८ द्वारिकामाहात्म्य अपूर्ण पत्र ११। भा. सं.। पं. १३ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८६९ भोजचरित्र पद्य पत्र ८-३६ । भा. सं.। क. राजवल्लभोपाध्याय । ले. सं. १६३४ । पं. १७ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०॥४४॥ अन्त इति श्रीधर्मघोषगच्छे धर्मसूरिसंताने पाठकराजवल्लभकृते श्रीभोजचरित्रे भानुमतीविवाहवर्णनो देवराजसज्जीभूतवर्णनो नाम पंचमः प्रस्तावः। श्रीभोजचरित्रं संपूर्ण समाप्तम् ॥ ग्रन्थानम् १८०१॥ संवत १६३४ वर्षे चैत्र वदी १० दिने अकबरपातीशाहविजयराजे। कुभमेरगढवीग्रहे विजयो भवति। वा. श्रीभावधर्मशीष्यगणि श्रीउदयनंद सीष्यष्य हारी लीखतं स्वलूमधे मांगलीकययो भवती कलीकालसमा चेत्रेः दसमी बुधवासरे। गोपाचलसंस्थानमध्ये लीक्षतं भोजचरीत्रज। सुभं संषु भवती ॥ क्र. ८७० (१) आगमोद्धारगाथा पत्र ११२-११४ । भा. प्रा. । गा. ७१ । (२) षट्स्थानकप्रकरण अपूर्ण पत्र ११४-१२० । भा. प्रा.। पं. ९। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०॥४४॥ __ क्र. ८७१ पुष्पमालाप्रकरण पत्र ३५ । भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि। गा. ५०६ । ले. सं. १५९६ । पं. ९। स्थि. मध्यम । लं. प. १०mx४| __ अन्त-संवत् १५९६ वर्षे ज्येष्ठवदि १० दिने शनिवारे श्रीयोद्धपुरे श्रीमन्महाराजाधिराजश्रीमालदेवविजयराज्ये श्रीखरतरगच्छे श्रीश्रीश्रीजिनदेवसूरिविजयराज्ये श्रीपुष्फमालाप्रकरणं लिखितं हर्षकुंजरेण ॥छ।। क्र. ८७२ कल्याणमंदिरस्तोत्र वृत्तिसह पत्र १२ । भा. सं.। म.क. सिद्धसेनाचार्य। ले.सं. १८५१ । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८७३ (१) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र ४-५ । भा. प्रा. । क. वीरभद्रगणि । गा. ६३ । (२) नवतत्त्वप्रकरण पत्र ५-९ । भा. प्रा. । गा. ४७ । (३) जीवविचारप्रकरण पत्र ९-१३। भा. प्रा.। क. शांतिसूरि। गा. ५१। (४) शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र १३-२१। भा. प्रा.। क. जयकीर्तिसूरि । गा. ११५। (५) स्थविरावली पत्र २१-२४ । भा. प्रा. । क. देववाचक । गा. ५० । पं. ९। स्थि . श्रेष्ठ । लें. प. १०॥४४॥ क्र. ८७४ भक्तामरस्तोत्र वृत्तिसह त्रिपाठ पत्र १३ । भा. सं. । मू. क. मानतुंगसूरि । वृ.क. अमरप्रभसूरि। ग्रं. ४०१। ले. सं. १८५१ । पं. १३ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०x४|| Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ८६५-८९२] जैन ताइपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २५७ क. ८७५ कल्पसूत्र सस्तबक अ. अ. पत्र ५-९२ । भा. प्रा. गू.। पं. २२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८७६ दशवैकालिकसूत्र अपूर्ण पत्र ५। भा. प्रा. । क. शय्यभवसूरि। पं. १३। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ८७७ जीवविचारप्रकरण पत्र २ । भा. प्रा.। क. शांतिसूरि। गा. ५१। पं. १३ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०॥४४॥ ___ क्र. ८७८ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र वृत्तिसह पंचपाठ पत्र ६। भा. प्रा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि। पं. २१ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८७९ कल्पसूत्रवृत्ति ३. अ. पत्र ६७-७८ । भा. सं. । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८८० अमरदत्तमित्राणंदकथा बालावबोध अपूर्ण पत्र १३-१८। भा. गू.। पं. १७ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८८१ चतुःशरणप्रकीर्णक बालावबोधसह पत्र १०। भा. प्रा. गू. । मू. क. वीरभद्रगणि । गा. ६३ । पं. १५ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८८२ कल्याणमंदिरभाषास्तोत्र पत्र २। भा. हिन्दी। क. बनारसीदास । ले. सं. १७७९ । पं. १२। स्थि . मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ८८३ सिद्धान्तआलापक पत्र ६। भा. प्रा. । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क. ८८४ मनोवेगवायुवेगचोपाई पत्र ४-५६। भा. गू.। क. दशेनविजय । र. सं. १७०१ । गा. ९०८ । ग्रं. १२५२ । ले. सं. १७५६ । पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. ८८५ वीरचरित्रस्तोत्र पत्र ३ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. ४५। पं. ८। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥॥ क्र. ८८६ चन्द्रप्रभस्वामिषड्भाषामयस्तोत्र पत्र ४ । भा. षड्भाषा। गा. १३ । पं. ४ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ ___क्र. ८८७ जीवाभिगमोपांगसूत्र अपूर्ण पत्र ४२ । भा. प्रा.। पं. ४। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. ८८८ तत्त्वार्थसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र २० । भा. सं. गू. । मू. क. उमास्वाति वाचक । पं. ३। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८८९ तस्वार्थसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र १४ । भा. प्रा. गू. । मू. क. उमास्वाति वाचक । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४॥ क्र. ८९० शबूंजयरास पत्र १० । भा. गू. । क. समयसुंदरोपाध्याय । र. सं. १६८२। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥x५.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे। ___ क्र. ८९१ श्रीचंद्रीयसंग्रहणीप्रकरण सस्तबक यंत्रसह पत्र ४४-७१ । भा. प्रा. गू. । मू. क. श्रीचंद्रसूरि। ले.सं. १८८६ । पं. २० । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४॥ पोथी ४९ मी क्र. ८९२ कल्पसूत्र सस्तबक पत्र १३२ । भा. प्रा. गू. । ले. सं. १८४९ । पं. १२ । स्थि . जीर्णप्राय। लं. प. १०४५ ३३ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૬૮ भोजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ४९-५० क्र. ८९३ एकविंशतिस्थानप्रकरण किंचिदपूर्ण पत्र ३ । भा. प्रा.। क. सिद्धसेनरि। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८९४ भर्तृहरित्रिशती सुखबोधिनीटीकासह पत्र ५० । भा. सं.। मू. क. भर्तृहरि। टी. क. श्रीनाथव्यास। ग्रं. ३०००। र. सं. १८१८ । ले. सं. १८७७ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ८९५ आचारांगसूत्रद्वितीयश्रुतस्कंध बालावबोधसह पंचपाठ अपूर्ण पत्र ३-१११ । भा. प्रा. गू. । पं. १८ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र. ८९६ रामचरित्ररास पत्र ९७। भा. गू. । क. केशराज मुनि। पं. ४५००। र. सं. १६८३ । ले. सं. १९१५ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०x४॥ क्र. ८२७ सूत्रकृतांगसूत्र प्रथमश्रुतस्कंध सस्तबक पत्र ६५ । भा. प्रा. गू. । पं. १८ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४m क्र. ८९८ सूत्रकृतांगसूत्र द्वितीयश्रुतस्कंध सस्तबक पत्र १०५। भा. प्रा. गू.। ले. सं. १९४८ । पं. १८। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क. ८९९ सुभाषितसंग्रह पत्र ४-१७ । भा. सं. प्रा. ग.। पं. १२। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०x४॥ क्र. ९०० अनुत्तरौपपातिकसूत्र वृत्ति पत्र ३ । भा. सं.। वृ. क. अभयदेवसूरि। पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र. ९०१ लघुस्तव टीका सह पत्र २-१६ । भा. सं.। वृ. क. सोमतिलकसूरि। ग्रं. ४७४ । पं. १४ । स्थि . मध्यम। लं. प. १०x४॥ क्र. ९०२ दंडकप्रकरण तथा नवतत्त्वप्रकरण पत्र १५। भा. प्रा.। पं. ४। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. ९०३ (१) सामायिकदोषनिवारणवत्रीसी पत्र २। भा. गू.। क. प्रमोदमाणिक्य । गा. ३२॥ (२) पौषधविधिस्वाध्याय अपूर्ण पत्र २-४ । भा. गू. । पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क. ९०४ कुमतिउत्थापनचर्चा पत्र १४ । भा. हिन्दी। पं. ९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र. ९०५ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण सस्तबक यंत्र स्थापना सह पत्र ३२। भा. प्रा. गू. । मू. क. रत्नशेखरसूरि। मू. गा. २६२ । ले. सं. १७४२ । पं. १५। स्थि. अतिजीर्ण। लं.प. १०x४॥ क्र. ९०६ जीवविचारप्रकरण पत्र ८। भा. प्रा.। क. शांतिसूरि। गा. ५१। ले.सं. १९०९ । पं. ४ स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ९०७ कल्पसूत्र अष्टमक्षण-वाचना पत्र १७ । भा. गू.। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४|| क्र. ९०८ वीसस्थानकपूजा पत्र १३ । भा. गू.। क. जिनहर्षसूरि। र. सं. १८७१। ले. सं. १८९५। पं. १५। स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४४॥ पोथी ५० मी क्र. ९०९ नमिराजर्षिचोपाई पत्र ७ । भा. ग. । क. समयसुंदर। गा. ३१९। प्र. ४७५ । ले. सं. १७०० । पं. १८। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ८९३-९२५ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २५२ क्र. ९१० उपदेशमालाप्रकरण अवचूरि किंचिदपूर्ण पत्र १३। भा. सं. । पं. १९ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०x४ ____ क्र. ९११ (१) सर्वशस्तोत्र सावचूरि पंचपाठ पत्र १। भा. सं. । मू. क. सोमतिलकसूरि । आदि-शुभभावानतं स्तौमि. (२) पार्श्वनाथस्तोत्र महायमकमय सावचूरि पंचपाठ पत्र १-२। भा. सं.। मू. क. पद्मप्रभदेव दिगंबर। पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ आदि-लक्ष्मीर्महस्तुत्यसतीसतीसती. क. ९१२ उत्तमचरित्रकथानक गद्य पत्र १४ । भा. सं.। ले. सं. १७०१। पं. १०। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४। क्र. ९१३ नंदीसूत्र पत्र १९ । भा. प्रा.। क. देववाचक । ग्रं. ७००। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४। क्र. ९१४ शारीरनिबंधसंग्रह-वैद्यक अपूर्ण पत्र ३३ । भा. सं.। पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४। क्र. ९१५ सिद्धान्तचंद्रिका पूर्वार्द्ध पत्र २३-३७ । भा. सं.। क. रामाश्रमाचार्य । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ९१६ सप्ततिकाकर्मग्रंथभंगक पत्र २-८ । भा. गू. । पं. २१। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ९१७ नंदीषेणचोपाई किंचिदपूर्ण पत्र । भा. गू. । क. ज्ञानसागर । पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. ९१८ पंचमषष्ठकर्मग्रंथ बालावबोध त्रू. अ. पत्र ५०-९३ । भा. गू. । पं. १३। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. ९१९ पाक्षिकसूत्र पत्र ५। भा. प्रा.। ग्रं. ३००। पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४ क्र. ९२० देववंदनादिभाष्यत्रय बालावबोधसह पंचपाठ किंचिदपूर्ण पत्र १२। भा. प्रा. गू. । मू. क. देवेंद्रसूरि । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४। क्र. ९२१ संस्कृतमंजरी पत्र २-४। भा. सं.। पं. १४॥ स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४॥ क्र. ९२२ कर्पूरप्रकर सावचूरि पंचपाठ भपूर्ण पत्र ५। भा. सं. । मू. क. हरिकवि । पं. २४ । स्थि . जीर्ण । लं. प. १०x४॥ क्र. ९२३ जिनयक्षयक्षणीवर्णादि निर्वाणकलिकांतर्गत पत्र २ । भा. सं.। ले. सं. १५०४ । पं. १५। स्थि . मध्यम । लं. प. १०४४॥ क्र. ९२४ नंदीसूत्रवृत्तिगत योग्यायोग्यपर्षदाविचार पत्र २-८ । भा. सं.। पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ९२५ लघुस्तव वृत्तिसह पत्र ८। भा. सं.। टी. क. सोमतिलकसूरि । वृ. र. सं. १३९७ । ग्रं. ४७४ । पं. २० । स्थि . मध्यम। लं. प. १०४४॥ अन्त-संपूर्णेयं लघुस्तषटीका ॥छ॥ __ जाता नांगीविवृतेर्विधातुरनुक्रमेणाभयदेवसूरेः । युगप्रधाना गुणशेखराड्वाः सूरीश्वराः संप्रति तस्य पट्टे ॥१॥ Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० आजसलमरुद्गस्थ [पोथी ५० श्रीसिंहतिलकसूरिस्तच्चरणांभोजखेलनमरालः। श्रीसोमतिलकसूरिलघुस्तवे व्यधित वृत्तिमिमां ॥२॥ मुनिनंदगुणक्षोणीमिते विक्रमवत्सरे। कृता घृतघटीपुर्यामाचंद्रार्क प्रवर्तताम् ॥३॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्या अन्थमान विनिश्चितम् । अनुष्टुभां चतुःसप्त साम्रा जाता चतुःशती ॥४॥ अङ्कतोपि ४७५ ॥ इति श्रीलघुस्तवव्याख्या पूर्णेति ॥छ॥श्री॥ श्रीकंबोजकुलोत्तंसः स्थाणुनामाऽस्ति ठक्कुरः। तस्याभ्यर्थनया चक्रे टीकेयं ज्ञानदीपिका ॥३॥छ।। क्र. ९२६ चित्रबद्धजिनस्तुति पत्र १। भा. सं. । क. जिनचन्द्रसूरि। ग्रं. ५ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४।। पत्रनी एक बाजु खवाएल छे। क्र. ९२७ (१) भावारिवारणस्तोत्र बालावबोधसह पत्र ६। भा. समस. प्रा. गू.। मू. क. जिनवल्लभगणि । मू. का. ३० । ) विद्वद्रोष्ठी पत्र ६ हुँ। भा.सं.का. २१। पं. १७ स्थि . श्रेष्ठ । लं.प.१०x४॥ क्र. ९२८ काव्यप्रकाश पत्र ७ । भा. सं.। क.मम्मट अने अलक । ले. सं. १७११। पं. ११॥ स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४। क्र. ९२९ रघुवंशमहाकाव्य त्रु. अ. पत्र १२-१८ । भा. सं.। क. महाकवि कालिदास । पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४। क्र. ९३० मुनिपतिचरित्र अपूर्ण पत्र १९ । भा. प्रा. । पं. १५। स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४ क्र. ९३१ बुद्धिरास पत्र २ । भा. गू.। क. शालिभद्रसूरि । गा. ८४ । पं. १७ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९३२ चतुर्विशतिजिनचरित्रस्तोत्र J. अ. पत्र २-१५ । भा. सं. । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥.। पूर्वभव-जन्मादिअनेकस्थानकविचारगर्भित । क्र. ९३३ कथासंग्रह पत्र ६-९ । भा. सं.। पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥x४। क्र. ९३४ सप्ततिशतस्थानप्रकरण अपूर्ण पत्र ४ । भा. प्रा.। पं. २१। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९३५ कर्पूरप्रकर पत्र ११ । भा. सं.। क. हरिकवि । का. १७५ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. ९३६ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १२ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि । गा. ५४४ । पं. १४ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४॥ क्र. ९३७शीलरास अ. अ. पत्र २-६ । भा. ग.। पं. १३ । स्थि .श्रेष्ठ। लं. प. १.xn B. ९३८ शीलोपदेशमालाबालावबोध पत्र ५९-७७ । भा. गू. । पं. १७। स्थि. श्रेष्ठ । ल. प. १०॥४४॥ प्रति पाणीमा भोंजाएली छे। क्र. ९३९ वीसलरास पत्र ११। भा. राजस्थानी । गा. २०२। पं. १५। स्थि. मध्यम लं. प. १०॥४४१. प्रति पाणीमां भीजाएली छे! क्र. ९४० प्रश्नोत्तर चार्थिक पत्र १४ । भा. सं.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. ९४१ मल्लिज्ञाताध्ययनगत आलापक पत्र ५। भा. प्रा.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । है. प. १०॥४४॥.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. ९२६-२५५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २६१ क्र. ९४२ अंतकृशांगसूत्र पत्र २३ । भा. प्रा.। ग्रं. ७९०। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९४३ बोलसंग्रह पत्र १४ । भा. गू. । पं. १४। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥। प्रति पाणीमां भीजाएली छ। क्र. ९४४ पंचवर्गपरिहारनाममाला-अपवर्गनाममाला पत्र ६ । भा. सं. । क. जिनभद्रसूरि। ग्रं. ३६० । ले. सं. १५२५ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०॥४४॥ अन्त श्रीजिनवल्लभजिनदत्तसूरिसेवी जिनप्रियविनेयः । अपवर्गनाममालामकरोज्जिनभद्रसूरीणां ॥५६॥ इति पंचवर्गपरिहारनाममाला समाप्ता ॥ संवत् १५२५ वर्षे कार्तिक वदि १० श्रीखरतरगच्छाधिराज सावतार श्रीजिनभद्रसूरिशिष्योत्तम सैद्धान्तशिर चूडामणि श्रीकमलसंयमोपाध्यायविनेय मुनिमेरुमुनिना लिखिता ॥ वाच्यमाना चिरं जयतु ॥ क्र. ९४५ औपपातिकसूत्र अपूर्ण पत्र १५ । भा. गू.। पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९४६ द्वादशवतस्वरूप आदि पत्र ४-२९। भा. गू.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९४७ ज्योतिष्करंडकवृत्तिगत सप्तदश प्राभूत वृत्ति सह पत्र ३। भा. प्रा. सं. । क. मलयगिरिसूरि। पं. १८। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ९४८ चंद्रप्रभस्वामिस्तोत्र षड्भाषामय सटीक पत्र ४ । भा. षड्भाषा। पं. २० । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९४९ कालिकाचार्यकथाबालावबोध पत्र ९। भा. गू. । पं. १४ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९५० दशवकालिकसूत्र पत्र २४ । भा. प्रा. । क. शय्यंभवसूरि । ग्रं. ७००। ले. सं. १६११। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥.। प्रति पाणिमां भीजाएली छे। क्र. ९५१ (१) नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक पत्र १-९ । भा. प्रा. गू.। क. विमलकीर्तिगणि वाचनाचाये। गा. ५१। । (२) जीवविचारप्रकरण सस्तबक पत्र ९-१६ । भा. प्रा. गू.। क. विमलकीर्ति ___ गणि वाचनाचार्य। गा. ५१। पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ९५२ सम्यक्त्वपंचविंशतिका-सम्यक्त्वस्वरूपस्तवन सटीक पंचपाठ पत्र २ । भा. प्रा. सं.। पं. २२। स्थि . जीर्ण । लं. प. १०x४॥ क्र. ९५३ चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तबक त्रिपाठ पत्र ५। भा. प्रा. गू.। पं. २१। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९५४ हैमधातुपाठ पत्र ९। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ९५५ श्रीपालचरित्र प्राकृत गाथावद्ध पत्र २६ । भा. प्रा. । क. रत्नशेखरसूरि । ग्रं. १७००। पं. १९। स्थि . मध्यम । लं. प. १०॥४४॥.। पत्र १, ४-१३ नथी. अन्त । इति श्रीपालनरेन्द्रकथा श्रीसिद्धचक्रमाहात्म्ययुता समाप्ता ॥छ॥ प्रन्थाग्रम् १७०० ॥छ॥ श्री ॥छ॥ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ५०-५१ श्रीपत्तनस्यांतिकभाविखानपुरे महेभ्योऽजनि सायराख्य: । ऊकेशवंशामलमौक्तिकाभो गुणैः पवित्रो बहुपुत्रपौत्र :॥१॥ जाया सहजलदेवी तस्येह सती बभूव सदपत्यैः । निचिता नवभिनिधिभिर्लक्ष्मीरिव सार्वभौमस्य ॥२॥ पञ्चेषुरूपास्तनयाः बभूवुर्वर्यास्तयोः पंचजनेषु पंच । वेलाभिधो मालवनीवृतीह संखेटकेऽगात्समयानुभावात् ॥३॥ वीरीति नाम्ना दयिताऽस्य जाता जनेषु मुख्याः पितृबन्धुसंख्याः। पुत्रस्तयोस्तेषु गुणाकरोऽस्ति वनाभिधो धर्मधुराधुरीणः ॥४॥ सोऽलीलिखद् द्वादशपादवृत्ति श्रीपालभूपालचरित्रमेतत् । मुदादिसूत्रं च जिनोदितश्रीसिद्धान्तभक्त्या निजवित्तशक्त्या ॥५॥ इति प्रशस्तिः ॥ क्र. ९५६ कालिकाचायकथा पत्र ३। भा.प्रा.। गा. १०२। पं.१४ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९५७ शांतिनाथविवाहलो अपूर्ण पत्र १६। भा. गू.। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ ___क्र. ९५८ नेमिनाथशीलरास पत्र ७। भा. गू। गा. ७१। पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०॥४४॥.। प्रति चोंटी गएली छे। क्र. ९५९ कल्पसूत्रबालावबोध त्रू. अ. पत्र ७६-८५। भा. गू। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९६० उत्तराध्ययनसूत्रवृत्ति त्रू. अ. पत्र २९९-३०८। भा. सं. । वृ.क. कमलसंयमोपाध्याय । पं. १५। स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९६१ कल्पसूत्र-बारसा त्रू. अ. पत्र २-२३ । भा. प्रा.। पं. ८। स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९६२ कल्पसूत्र सामाचारी बालावबोध अपूर्ण पत्र २-१३ । भा. गू। पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०॥४४॥ क्र. ९६३ मात्रापताका पत्र ३ । भा. सं.। पं. २४ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ पोथी ५१ मी क्र. ९६४ चैत्यवंदनावंदनकप्रत्यारख्यानश्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति पत्र ८६ । भा. सं. । व. क. श्रीचंद्रसूरि । र. सं. १२३२ । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४५ ६५ न्यायकंदलीटिप्पनक पत्र ६२। भा. सं.। क. नरचंद्रसरि । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥x५ क्र. ९६६ श्रीपालरास पत्र ७५ । भा. गू. । क. विनयविजय तथा यशोविजयोपाध्याय। र. सं. १७३८ । ले. सं. १८७८ । पं. १३ । स्थि . मध्यम । लं. प. १०॥४५ क्र. ९६७ सर्वसिद्धांतविषमपदपर्याय पत्र ४८ । भा. सं. । ले. सं. १९८४ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४५ क्र. ९६८ जीतकल्पसूत्र वृत्तिसह पत्र ४६ । भा. प्रा. सं. । वृ. क. तिलकाचार्य । भू. क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । ले. सं. १९८४ । पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४५ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ९५६-९८७] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २६३ क्र. ९६९ श्रावकाचार कुलक आगमपाठसह पत्र २-४। भा. गू.। क. क्षेमकुशल। गा. ८.। पं. ११। स्थि . मध्यम। लं. प. ११४५ क्र. ९७० (१) आतरप्रत्यारख्यानप्रकीर्णक पत्र १-४ । भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणि । गा. ५९ । (२) आराधना पत्र ४-५ । भा. प्रा.। पं. १२। स्थि . जीर्णप्राय । लं. प. ११४४॥ क्र. ९७१ द्रव्यसंग्रह बालावबोधसह पत्र १५ । भा. प्रा. गू. । मू. क. नेमिचंद्र भंडारी। पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ११४४॥ क्र. ९७२ वैद्यकविषयक प्रकीर्णक पानांओ। भा. सं. गू.। स्थि. मध्यम। लं. प. ११४४॥ __ क्र. ९७३ वीतरागस्तोत्र पत्र ६। भा. सं। क. हेमचंद्रसूरि। पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ११४४॥ क्र. ९७४ हितोपदेशप्रकरण पत्र २७ । भा. प्रा.। क. प्रभानन्दसूरि। गा. ५२५। ले. सं. १९८४ । पं. १३। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०mx५ क्र. ९७५ बृहत्संग्रहणीप्रकरण पत्र १३ । भा. प्रा.। क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । गा. ५२४॥ ले. सं. १९८४ । पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४५ क्र. ९७६ श्रावकधर्मप्रकरण पत्र ६ । भा. सं.। क. जिनेश्वरसूरि। गं. २४५। र. सं. १३१३। पं. १३। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४५ . क्र. ९७७ पंचवस्तुकप्रकरण पत्र ४७ । भा. प्रा. । क. हरिभद्रसूरि । ले. सं. १९८४ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४५ क्र. ९७८ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण टिप्पणीयंत्रसह पत्र ४१ । भा. प्रा. सं. । क. रत्नशेखरसरि। मू. गा. २६३ । ले. सं. १८६९ । पं. १८। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४५ क्र. ९७९ दीवालीस्तवन पत्र १३ । भा. गू। क. गुणहर्ष। गा. १२२ । ले. सं. १९०२ । पं. ११। स्थि . मध्यम । लं. प. १०४५ क्र. ९८० कल्पसूत्रवृत्ति ७. अ. पत्र ३०-६०। भा. सं.। पं. १५। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४५ क्र. ९८१ गौतमस्वामिरास पत्र ६ । भा. गू, । क. विजयभद्र। र. सं. १४१२। गा. ५२ । पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४. प्रति पाणीमां भीजाएली छ। क्र. ९८२ विचारपंचाशिका सावचूरि पत्र ५ । भा. प्रा. सं. । अ. क. विजयविमलगणि अपरनाम वानर्षिगणि स्वोपज्ञ । ले. सं. १९०१ नं. २५० । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४॥ क्र. ९८३ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सस्तबक पत्र १५ । भा. प्रा. गू. । ग्रं. ११००।ले. सं. १९२४ । पं. २० । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र. ९८४ खंडाजोयणबोल पत्र ५। भा. गू. । पं. २३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९x४॥ क्र. ९८५ निशीथसूत्रवचनिका पत्र २६ । भा. गू.। ले. सं. १९०८ । पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ९८६ राजनीतिवर्णनकवित पत्र २० । भा. हिन्दी । क. देवीदास । ले. सं. १९११ । पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क. ९८७ दीपालिकाकल्प पत्र ४-११ । भा. सं. । क. जिनसुंदरसूरि। र. सं. १४८३ । ले. स. १७४०। पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय। कं. प. १०x४॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ५१-५२ क्र. ९८८ आनंदसंधि पत्र ९ । भ्रा. गू. । क. श्रीसारमुनि । र. सं. १६८१ । ले. सं. १७३११ गा. २४८ । पं. १५ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४ ॥ क्र. ९८९ जयतिहुअणस्तोत्र सटीक पत्र ५ । भा. अपभ्रंश सं । मू. क. अभयदेवसूरि । ग्रं. २५० । ले. सं. १७८१ । पं. १९ । लं. प. १०।४४ ॥ २६४ क्र. ९९० नवतत्वप्रकरण सस्तबक पत्र ५० । भा. प्रा. गू. । स्त. क. मानविजयजी । प्र. ११५० । मू. गा. ९६ । भू. ग्रं. १२५ । ले. सं. १७७३ । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०/४४॥ क्र. ९९१ सिद्धांतचंद्रिका उत्तरार्द्ध पत्र ४० । भा. सं । क. रामचन्द्राश्रम । ले. सं. १७७९ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र. ९९२ नियतानियतिविचार पत्र ४ । भा. सं. 1 क. पार्श्वचन्द्रगणि । ग्रं. १९२ । पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४ ॥ । प्रति चोटी गएली छे । पत्र २ जुं नथी । पोथी ५२ मी क्र. ९९३ अनेकार्थतिलक पत्र ३८ | भा. सं. । क. महीप । ग्रं. ९०७ । ले. सं. १७१५ । पं. १२ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४ क्र. ९९४ स्याद्यंतप्रक्रिया पत्र ५४ । भा. सं. । क. सर्वधर । ले. सं. १५२८ । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ अन्त इत्युपाध्यायसर्वधरविरचितायां स्याद्यन्तप्रक्रियायां लिंगकाण्डः षष्ठः समाप्तः ॥ छ ॥ श्रीः॥ श्रीनृपविक्रमादित्यसंवत् १५२८ वर्षे पौष सुदि षष्ठी रखौ वासरे । खरतरगच्छे श्री जिनेश्वरसूरि संताने श्रीजिनधर्मसूरि पट्टालंकार चूडामणि भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि । आचार्य श्रीजयानंदसूरि । देवभद्रशिष्य लिखिता । श्रीरस्तु ॥ भा. प्रा. पं. १३ । स्थि. अतिजीर्ण । क्र. १९५ सूत्रकृतांगसूत्र अपूर्ण पत्र ६३ ॥ लं. प. १०४४। क्र. ९९६ द्वादशभावना पत्र ५ । भा. गू. । क. सकलचंद्रगणि । ले. सं. १७७३ । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ । क्र. ९९७ सिंहासनबत्रीसी पत्र ४६ । भा. गू. । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४। क्र. ९९८ प्रश्नोत्तरपष्टिशतअवचूरि त्रू. अ. पत्र २-५ । भा. सं. । पं. २० । स्थि. अतिजीर्णे । लं. प. १०४४ । क्र. ९९९ दशवैकालिकसूत्र सस्तबक पत्र ६५ । भा. प्रा. गू. । पं. १५ । स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. १००० सारस्वतव्याकरण पत्र ५४ । भा. सं. । क. अनुभूत स्वरूपाचार्य । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. १००१ वैद्यकसारोद्धार सटीक अपूर्ण पत्र १०५ । भा. सं. । क. हर्षकीर्तिसूरि । पं. १५ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९४४ ॥ क्र. १००२ आवश्यकसूत्र पत्र २५ । भा. प्रा. सं । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥४४॥ क्र. १००३ कातंत्रव्याकरण पत्र २५ । भा. सं. । पं. ७ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ ॥ १ अस्तव्यस्त पानां । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १८८-२०१६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ૧૧ क्र. १००४ नवतत्त्वविचार पार्श्वनाथस्तोत्र क्षेत्रसमासचतुष्पदी आदि अनेक स्तोत्र प्रकरण आदि संग्रह पत्र २४८ । भा. प्रा. सं. गू. । पं. १९ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४ वचमां केटलांक पानां नथी । क्र. १००५ बंधस्वामित्वप्रकरण वृत्तिसह-प्राचीन तृतीय कर्मग्रंथ पत्र १३ । भा. प्रा. सं. । ग्रं. ६५० । पं. १७ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. १००६ पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि पत्र ३ । भा. प्रा. गू. । ले. सं. १९०८ । पं. १० । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ स्थि. मध्यम । क्र. १००७ समयसारप्रकरण अपूर्ण पत्र ५ । लं. प. ९॥४४॥ भा. STT. I पं. १६ । क. १००८ शालिभद्ररास अपूर्ण पत्र ८ । भा. गू. । ९ ॥ ४४ ॥ पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । क. १००९ संबोधसप्ततिकाप्रकरण अपूर्ण पत्र ४ । भा. प्रा. लं. प. ९॥४४॥ क्र. १०१० आराधनाबालावबोध पत्र १० । भा. गू. । पं. लं. प. ९४४ ॥ क्र. १०११ दशाश्रुतस्कंध सस्तबक पत्र ५२ । भा. प्रा. गू. । मू. ग्रं. ८०० । स्त. प्र. ३००० । ले. सं. १८३६ | पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४॥ लं. प. पं. १० । स्थि. जीर्ण । क्र. १०१२ लुंकाचउपई पत्र ११ । भा. गू. । क. लावण्यसमय । गा. १८१ । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥४४॥ १० । स्थि. जीर्णप्राय । क्र. १०१३ सुरसुंदरीरास पत्र १७ । भा. गू. । क. नयसुंदर । गा. ५०७ । र. सं. १६४४ । ले. सं. १७०७ । पं. १७ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९४४१ क्र. १०१४ जीरणशेठरत्नपालचोपाई पत्र १२ । भा. गू. । क. सुमतिकमल । र. सं. १६४५ ले. सं. १६४५ | पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. १०१५ ऋषिमंडलप्रकरण पत्र १४ । भा. प्रा. । क. धर्मघोषसूरि । गा. २२५ । ले. सं. १७२६ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ अन्त इति श्रीश्वेताम्बराचार्यवर्यधुर्य श्रीधर्मघोषसूरिविनिर्मित ऋषिमण्डलशास्त्र समाप्तमिति ॥ संवत् १७२६ विक्रमतः शाके १५९१ शालिवाहनतः अब्दे २१९६ श्रीमद्देवाधिदेवश्रीमन्महावीरवर्द्धमानशिव सुखसंप्रापणचैत्रमासि श्रीधींगपंचमीतिथौ कुंजबास रेसुनक्षत्र सुयोगे श्रीषट्पत्तना ध्वजनपदे श्रीवीरपादनाम्नि महादेव्याश्रीवांकुलांबामहास्थाने श्रीखरतर वेगडनामगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरिसन्ताने श्रीजिनपप्ति जिनकुशल जिनधर्म जिनगुफ प्रभजिनेश्वरादीनां पट्टशृंगारभट्टारकयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां पट्टाजिसहस्रकराक्तार सवाई युगप्रधान श्रीजिनसमुद्रसूरीश्वरविजयराज्ये शिष्य पं. समुद्रेण लिपीकृतं श्रेयसे भूयात् ॥ श्री ॥ पोथी ५३ मी क्र. १०१६ नर्मदासुंदरीरास पत्र ५५ । भा. गू. । क. मोहनविजय । र. सं. विधिमुख शिवमुख ऋषि इंदु संवत् संज्ञा एहजी । ले. सं. १८२१ । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ ૩૪ Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्र. १०१७ मनोरथमाला पत्र १८ । भा. गू. । क. जिनसमुद्र । र. सं. स्थि. मध्यम । लं. प. ९१४४ | क्र. १०१८ उपदेशमालाप्रकरण शब्दार्थसह पत्र २४ । भा. प्रा. गू. । क. धर्मदासगणि । गा. ५४३ । पं. १२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ प्रतिना दरेक पत्रना मध्यमां लखेला चित्राक्षरोने सलंग करतां नीचे प्रमाणे नाम नीकळे छे [ पोथी ५३-५४ १७०८ । पं. २० । "श्रीशांतिवल्लरि गणिनी शिष्यणी श्रीपरमश्री श्रीमहत्तरा योग्यं ।" क्र. १०१९ योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १९ । भा. सं. । क. हेमचन्द्राचार्य । ले. सं. १५५० । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १०२० कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति पत्र २ - १४२ । भा. सं. । वृ. क. दुर्गसिंह । पं. ११ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९ ।। ४३ ।। क्र. १०२१ जीवसिद्धि पत्र ९ । भा. सं. । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥४४ क्र. १०२२ कल्पसूत्रवृत्ति अपूर्ण पत्र ३१ । भा. सं.। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४ क्र. १०२३ विष्णुनामसहस्र- महाभारतशतसाहस्रीसंहितागत पत्र ५ । भा. सं. । ले. सं. १७३९ । ग्रं. १२५ । पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १०२४ कल्पसूत्रबालावबोध षष्ठीवाचना पत्र १५ । भा. गू. । पं. १६ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९॥४४ क्र. १०२५ राजसिंघकुमारचतुष्पदी पत्र १४ । भा. गू. । क. जिनचंद्रसूरि । र. सं. १६८७ ॥ पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १०२६ एकविंशतिस्थानप्रकरण सस्तबक पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । मू. क. सिद्धसेनसूरि । पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १०२७ समाधिशतक बालावबोधसह अपूर्ण पत्र १४ । भा. प्रा. सं. गू. । मू. क. सोमसेनसूरि । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९१४४ क्र. १०२८ भक्तामर स्तोत्र सस्तबक पत्र ५ । भा. सं. गू. । पं. २४ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९।४४ । क्र. १०२९ जीवविचारप्रकरण पत्र ११ । भा. प्रा. । क. शांतिपूरि । गा. ५१। १८३८ । पं. ४। स्थि. साधारण । लं. प. ९ ।९४। क्र. १०३० नंदीसूत्र पत्र २६ । भा. प्रा. क. देववाचक । ग्रं. ७०० । पं. १२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९१४४ क्र. १०३१ आवश्यक सूत्र सस्तबक पत्र २७ । भा. प्रा. गू. । पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. १०३२ सिंहासनद्वात्रिंशिका त्र. अ. पत्र ५२-६२ । पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ । ले. सं. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. १०३३ ढोलामारुवार्ता अपूर्ण पत्र २२ । भा. गू. । पं. ९॥४४१ पत्र ८, १२, १९, २० नथी । क्र. १०३४ एकविंशतिस्थानप्रकरणबालावबोध पत्र ९ । भा. गू. । ले. सं. १७१९ । पं. ११॥ स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ १६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. लं. प. Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १०१७-५०] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २६७ क्र. १०३५ कल्पसूत्रसंक्षिप्तबालावबोध पत्र १४ । भा. गू.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४॥ क्र. १०३६ नेमिनाथबारमासा तथा सवैया पत्र २-४ । भा. हिन्दी। क. तिलक गुसांई । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥x४1. बारमासानी आदिनी १० गाथा नथी। __क्र. १०३७ (१) कर्मछत्रीसी पत्र १-२ । भा. हिन्दी। गा. ३७।। अध्यात्मपयडीछत्रीसी पत्र २-३ । भा. हिन्दी। क. बनारसीदास । गा. ३५। (३) कवितसंग्रह पत्र ३-५ । भा. हिन्दी। क. ज्ञानरत्न। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९x४1.1 प्रति पाणीमां भोंजाएली छे। क्र. १०३८ दिक्पटचोरासीबोलविसंवाद पत्र ५। भा. हिन्दी। क. जिनसमुद्र। पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे। क्र. १०३९ मृगांकलेखारास पत्र १५ । भा. गू. । गा. ४०८ । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥x४।। पत्र ५-१२ नथी। क्र. १०४० उत्तमकुमारचरित्र पद्य पत्र ३-१९ । भा. सं. । ग्रं. ५७५ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४। क्र. १०४१ कालशान अपूर्ण पत्र १३ । भा. सं. । पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १०४२ कातंत्रव्याकरण पंचसंधि पत्र १० । भा. सं.। पं. १० । स्थि. मध्यम। लं. प. ९॥४४ क्र. १०४३ बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक पत्र ? । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनभद्रगणि । पं. १० । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९४४.। प्रति त्रुटक अपूर्ग चोंटेली अने अस्तव्यस्त छ। क्र. १०४४ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ८० । भा. प्रा. । पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ८४४1.1 प्रति पाणीमां भोंजाइ ने खराब थएली छे । पोथी ५४ मी क्र. १०४५ भावाध्याय अपूर्ण पत्र १० । भा. सं. । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥xx क्र. १०४६ गोरक्षकप्रबोध अपूर्ण पत्र २-१३ । भा. सं. । पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४. । पत्र ४, ५, नथी । क्र. १०४७ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति टिप्पणीसह अपूर्ण पत्र १६१। भा. सं. । वृ. क. दुर्गसिंह । पं. १० । स्थि . मध्यम । लं. प. १०४३॥ । पत्र २, ३, ७-६४ नथी । क्र. १०४८ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति टिप्पणीसह पत्र १२३ । भा. सं. । वृ. क. दुर्गसिंह । पं. ७ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १०४९ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र परिशिष्टपर्व अपूर्ण पत्र ७९ । भा. सं.। क. हेमचन्द्रसूरि । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९४३॥ - क्र. १०५० लघुजातक सटीक त्रिपाठ पत्र ६९ । भा. सं. । मू. क. वराहमिहिर । टी. क. उत्पलभट्ट । ले. सं. १७०१ । पं. १२ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९४४. प्रति पाणीमां भोंजाइने खराब थई छे । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोजेसलमेरदुर्गस्थ [ पोथी ५४-५५ क. १०५१ दार्शनिकबंथ अज्ञात अपूर्ण पत्र १८ । भा. सं. । पं. ८ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ मादि प्रणम्य शंभु जगतः पर्ति परं समस्ततत्वार्थविदं स्वभावतः । शिशुप्रबोधाय मयाऽभिधास्यते प्रमाणतभेदतदन्यलक्षणम् ॥१॥ क्र. १०५२ प्रवचनसारोद्धार त्रूटक-अपूर्ण अस्तव्यस्त । पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥. प्रति पाणीमां भीजाएली छे । क्र. १०५३ कथासंग्रह गद्यपद्य पत्र २४० । भा. प्रा. सं. । पं. १० । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९४३॥ क्र. १०५४ नारचंद्रज्योतिष द्वितीयप्रकरण पत्र १३ । भा. सं. । क. नरचंद्रसूरि । पं. १२ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ पोथी ५५ मी क्र. १०५५ कातंत्रव्याकरण दुर्गसिंही आख्यातवृत्ति अपूर्ण पत्र ३१ । भा. स. । वृ. क. दुर्गसिंह । पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०॥४५॥ क्र. १०५६ शालिभद्रकथा पद्य पत्र २-४ । भा. स. । अं. १८१। पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १०५७ जीरावलापार्श्वनाथस्तवन पत्र १ । भा. गू. । क. भक्तिलाभ । गा. १४ । पं. १५ । स्थि . मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १०५८ अष्टप्रकारपूजाकथा पत्र २४ । भा. प्रा. । पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १०५९ शीलोपदेशमालाबालावबोध अपूर्ण पत्र · । भा. गू. । पं. १७ । स्थि.. मध्यम । लं. प. ११mx४॥ क्र. १०६० त्रिषष्टिशालाकापुरुषचरित्र परिशिष्टपर्व पत्र ३१ । भा. सं. । क. हेमचंद्रसूरि । ग्रं. ३५६४ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ११४४॥ क्र. १०६१ जल्पमंजरी अपूर्ण पत्र ७ । भा. सं. गू. । पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥xrn क्र. १०६२ अल्पबहुत्वस्तवन पत्र २। भा. अपभ्रंश । क. क्षांतिमंदिरशिष्य खरतर । गा. ३७ । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. Pixel आदि- एर्द ॥ श्री सेत्रुज सिणगार रिसह जिणेसर बंदि करि । अलपबहुत्तविचारी अट्ठाणलं पद जीवधरि ॥१॥ पन्नवणासिद्धत अणुसारिई इम संकलीय । हुं विन्नत्ति करेसु जीवरहई जिणिपरिवलीय ॥२॥ थोवा गब्भय जेय सामनाई माणुस कहीय १ । तेह थकी तसु नारी अधिकी संखगुणी सहीय २॥३॥ अन्त खरतरगच्छि जुगप्पवर सिरिजिनहंससूरिस तु । तसु आएस लही करीय श्रीमुखि गुरुम जगीस तु ॥३७॥ इय महदंडगि भमणठाण जे छई सत्ताणउं । ते मझ न रूक्ई वीतराग आप सब ठाणउं । बहुविह अलपबहुत्तखाणि पन्नवणा खंधइ । क्षांतिमंदिरगुरुखीसि तवन कीज तमु बंपिड ॥३॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १०५१-७६] जैन ताडपत्रीय प्रथभंडार सूचीपत्र ईय विन्नविउ रिसहजिण सामिय वारउ......। दुक्ख निवारिज्यो मझनइ एहजि भाउ ॥३९॥ इति अल्पबहुत्वस्तवनम् ॥छ॥ क्र. १०६३ पोडशकप्रकरण पत्र । भा. सं. । क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. २९६ । ले. सं. १५४४ । पं १६ । स्थि . मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. १०६४ (१) देववंदनवंदनकप्रत्याख्यानप्रकरण पत्र १८ । भा. प्रा. । क. जिनप्रभसूरि । नं. ६७२ । ले.सं. १५४४ । पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ (२) साधुसंघमर्यादापट्टक पत्र १८ मुं । भा. सं. । क. जिनप्रभसूरि । क्र.१०६५ पिंडविशद्धिप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा.१०३ । पं.१४। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४|| क्र.१०६६ वरदराजीटिप्पनक पत्र ६ । भा. सं.। पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०nxxn क्र. १०६७ श्रीचंद्रीया संग्रहणी सावचूरि पंचपाठ पत्र १० । भा. प्रा. सं.। भू. क. श्रीचंद्रसूरि। अव. क. साधुसोम । मू. गा. २७६ । ले. सं. १५०१ । पं १४ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०॥४४॥ अन्त श्रीखर [ तर ] गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशिष्यश्रीसिद्धान्तरुचिमहोपाध्यायशिष्येण साधुसोमगणिना परोपकृतयेऽवचूरिरिय लिखिता चिरं नन्द्यात् ॥ संवत् १५०१ वर्षे श्रीमालवदेशे श्रीमंडपपुगें श्रीसिद्धान्तरुचिमहोपाध्यायपादाम्बुजचंचरीकेण साधुना यथावबोधं लिखितेयं सतां हर्षाय भूयात् ॥ ॥ श्रीगुरुम्यो नमः ॥ ॥श्री। क्र. १०६८ मौनएकादशीकथा सस्तबक पत्र । भा. सं. गू. । क. सौभाग्यनंदि। मू. ग्रं. ११७। र. सं. १५७६ । ले. सं. १८००। पं. १९। स्थि . मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १०६९ सारस्वतीयधातुपाठ वृत्तिसह अपूर्ण पत्र १९ । भा. सं.। पं. २१ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. १०७० चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तबक पत्र १० । भा. प्रा. गू.। पं. २० । स्थि. जीर्ण। लं. प. १०४४॥.। पत्र २-६ नथी । क्र. १०७१ हैमधातुपाठ सावचूरि पंचपाठ पत्र ४-८ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. १४९७। पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र.१०७२ चंपकमालाकथा अपूर्ण पत्र २१। भा. प्रा.। पं. १३ । स्थि. मध्यम । ल.प. १०॥४४॥। प्रति चोंटी जवाथी अक्षरो उखडी गया छे। पत्र ३-८ नथी । क्र. १०७३ नमिराजर्षिकुलक पत्र ३। भा. गू, । क. विनयसमुद्र वाचक। गा. ६३ । पं. १३ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०x४॥ क्र. १०७४ अनाथीमुनिसज्झाय पत्र १। भा. गू. । क. समयसुंदर। गा. ९ । पं. १३ । स्थि. ओर्ण। लं. प. १०x४॥ क्र. १०७५ (१) दानपत्रिंशिका वृत्तिसह पत्र १-९ । भा. सं.। भू. क. राजशेखर । वृ.क. दैवललामसाधु । र. सं. १५५२ । (२) जीवविचारप्रकरण सटीक किचिदपूर्ण पत्र ९-१५। भा. प्रा. सं। पं. १७ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क. १०७६ लक्ष्मीआदिमंत्रसंग्रह पत्र १। भा. सं.। पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०x४॥ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ५५-५६ क्र.१०७७ नवतत्त्वप्रकरण सावचरि पत्र ६-१०। भा. प्रा. सं.। अव.क. साधुरत्नसूरि। ले. सं. १७१९ । पं. १८ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. १०७८ दमयंतीकथाचंपू सावचूरि पंचपाठ अपूर्ण पत्र ३२। भा. सं। मू. क. त्रिविक्रमभट्ट । पं. १२ । स्थि . जीर्ण । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १०७९ (१) दमयंतीकथाचंपूविवरण पत्र १-३९ । भा. स। वि. क. चंडपाल। ग्रं. १९००। ले. सं. १४८४ । (२) कविगुह्यनामकाव्य पत्र ३९-४६ । भा. सं. । क. हलायुध । ग्रं. ३५०। पं. १६ । स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०॥x४१ __ क्र. १०८० संस्कृतशब्दपावली पत्र १२ । भा. सं.। ले. सं. १५५५ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४। क्र. १०८१ ऋषिमंडलप्रकरण पत्र ३-९ । भा. प्रा.। क. धर्मघोषसूरि। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १०८२ योगचिंतामणि वैद्यक पत्र ५४। भा. सं.। क. नागपुरीय तपागच्छीय हर्षकीर्तिसूरि । पं. ११। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. १०८३ बालशिक्षाव्याकरण अपूर्ण पत्र ८। भा. सं. ग.। क. भक्तिलाभ। पं. १६। स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०४४॥ क्र. १०८४ (१) दशवैकालिकसूत्र पत्र ६-१४ । भा. प्रा.। क. शय्यंभवसूरि। (२) चतुर्विशतिजिनस्तोत्र क्रियागुप्त पत्र १४ मुं। भा. सं.। क. जयशेखरसूरि । का. २६। पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४। क्र. १०८५ नवतत्त्वविवरण तथा चैत्यवंदनावंदनकादिविचारबालावबोध त्रूटक-अपूर्ण । भा. सं. प्रा. गू.। पं. १३ । स्थि . जीर्णप्राय । लं. प. १०४४ । प्रति अस्तव्यस्त तथा पत्रांको भुसाइ गयेल छ। ___ क्र. १०८६ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र ९ । भा. प्रा.। ग्रं. २००। पं. ११। स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०४४। अन्त अणुत्तरोबवाइयदसाओ समत्ताओ॥ ग्रंथाग्रं २०० ॥छ॥ श्री जो आणंदसुत कुंअरजी स्वहस्तेन लिपिकृत लेखकपाठकयोश्चिरं जीयात् ॥श्रीरस्तु॥ स्वस्ति श्रीमद्विशालस्त्रिभुवनविदितो जंगलो देशराजस्तत्र श्रीवद्धमानप्रभुमहिमयुता सत्यपूः पुण्यपात्रम् । नानादेशीयवस्तूच्चयपरिकलिता धर्मिणां सौख्यधाम, प्रोतुङ्गेर्जेनचेत्यैरतिशयललितेभूषिता भूमिरल्म् ॥१॥ तत्रासीच्छेष्ठिमुख्यः सकलगुणनिधिर्दानसत्कल्पवृक्षो, व...केशावतंसो गुरुचरणसरःसेवने राजहंसः । लक्ष्मीवान् धर्मिधुर्यो विमलतरमतिः पंचकाख्यः प्रवीणे, टीबू कूरी च भार्ये समजननयनानंददायौ हि तस्य ॥२॥ तत्पुत्रो धन्यराजः कुलकमलरविः साधुसारङ्गतुल्यो, विख्यातो भूमिपीठे विनयनयपटु मतां माननीयः । तस्यास्ति प्रेमपात्रं प्रबलतमकलाकेलिसत्र कलत्रं, धन्यादेवीति नाम्ना वरतरवनितामौलिमाणिक्यमौलिः ॥३॥ करुणाचांतस्वांतो बभस्ति तत्सूनुरुदयसिंहोऽयम् । भानुरिवोदयशाली जिनवचनापास्ततिमिरभरः ॥४॥ लाडिमदाडिमदेव्यौ पत्न्यावद्वन्द्वमानसे तस्य। नानी-मरघे भग्न्यौ सूनुः श्रीपालनामास्य ।।५।। गुणराजः पितृव्योऽस्य धौरेयो धर्मिणामभूत्। गंगादेवी प्रिया तस्य गॉव शुचिशीलभाक् ॥६॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १०७७-११०३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २७१ स्ववंशदीपोदयसि...साधुः श्रीपूर्णिमापक्षसरोजहंसः । सत्तीर्थयात्रादिकपुण्यकारकः सन्नागगोत्राम्बुजबोधभास्करः ॥७॥ राकापक्षविधुप्रभ गुणधरा विद्वज्जनः सेविताः, पंचाचारविचारपालनपरा मिथ्यात्वनिनाशकाः। भव्यानां भवभीतिभेदनकराः कंदपदपेश्वरा, जीयासुर्विमलेन्दुसूरिवृषभाश्चारि ............ ॥८॥ क्र. १०८७ वैद्यकग्रंथ अपूर्ण पत्र २-११। भा. सं.। पं. ६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र. १०८८ भववैराग्यशतक अपूर्ण पत्र । भा. प्रा.। पं. ११ 1 स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १०८९ चैत्यवंदनाभाष्य सस्तबक पत्र ५। भा. प्रा. । गा. ५१। पं. १५। स्थि. मध्यम। लं. प. १०॥४४॥। देवेन्द्रसूरिकृत चैत्यवंदनभाष्यथी अन्य। क्र. १०९० रामसीतासंबंध पत्र ३ । भा. गू.। पं. १८ । स्थि . मध्यम । लं. प. १०४४। क्र. १०९१ चैत्यवंदनभाष्य पत्र ३ । भा. प्रा.। क. देवेंद्रसूरि । गा. ६३ । पं. १४। स्थि. मध्यम। लं. प. १०x४॥ __क्र. १०९२ उपदेशमालाप्रकरण सस्तबक पत्र २-३७ । भा. प्रा. ग. । मू. गा. ५४२ । स्त. ग्रं. ७५०। पं. १६ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४। क्र. १०९३ दशवकालिकसूत्र अपूर्ण पत्र ११। भा. प्रा. । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४। पोथी ५६ मी क्र. १०९४ विनयचटरास पत्र ५-४३ । भा. गू.। क. ऋषभसागर । ले. सं. १८३२ । पं. १९ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९४५।। पत्र २१-३४ नथी। क्र. १०९५ शालिभद्रचरित्र पद्य पत्र ५६ । भा. सं.। क. धर्मकुमार । ग्रं. १२२४ । र. सं. १३३४ । ले. सं. १९५१ । पं. १२ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४५॥ क्र. १०९६ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सस्तबक पत्र ३००। भा.प्रा. गू.। ले. सं. १९११ । पं. २२ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४५ ____ क्र. १०९७ संग्रहणीप्रकरण पत्र १९ । भा. प्रा. । क. श्रीचंद्रसूरि । गा. ३१२ । पं. ११। स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९x४॥। पत्र १६-१८ नथी। क्र. १०९८ वंकचूलचोपाई पत्र ४ । भा. गू.। ले. सं. १७६०। गा. ११६ । पं. १९ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ अन्त-संवत् १७६० वर्षे आसु वदि १४ दिने हालार देसे मोंडपुरमध्ये लिखितम् ॥ क्र. १०९९ सीमंधरजिनसवासोगाथार्नु स्तवन पत्र ३-११ । भा. गू. । क. यशोविजयोपाध्याय । पं. ९ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥.। पत्र १० मुं नथी। क्र. ११०० ईषुकारीयचरित्ररास पत्र ३ । भा. गू.। क. खेमराजमुनि। गा. ५१। पं. ११ । स्थि . जीणप्राय। लं. प. ९॥४४॥ क्र. ११०१ भक्तामरस्तोत्र सस्तबक पत्र २-९ । भा. सं. गू.। मू. क. मानतुंगसूरि । मू. का. ४४ । पं. २६। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९x४॥ क्र. ११०२ अध्यात्मस्तुति सस्तबक (उठी सवेरा सामायिक लीधुं. स्तुति) पत्र २ । भा. गू। क. भावप्रभमूरि। पं. २१ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४४॥ क्र. ११०३ नवकारबालावबोध अपूर्ण पत्र ८ । भा. गू.। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४४॥। प्रति पाणीमां भीजाएली छे। Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ५६ क्र. ११०४ एकविंशतिस्थानप्रकरण सस्तबक पत्र ६ । भा. प्रा. गू. । मू. क. सिद्धसेनसूरि । . गा. ६७ । ले. सं. १७७७ । पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९१४५ क्र. ११०५ अनेकविचारसंग्रह पत्र ६। भा. सं. । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९४४ ॥ क्र. १९०६ सुवतश्रेष्ठिकथानकबालावबोध पत्र ६ । भा. गू. । ले. सं. १७८४ । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९४४ ॥ સમ क्र. ११०७ भक्तामर स्तोत्र भाषाकवित्त पत्र ३ । भा. हिन्दी । क. बनारसीदास । ले. सं. १७८३ । पं. १६ । स्थि. मध्यम । लं. प. ८ ॥ ४४ ॥ अन्त - संवत् १७८३ रा वर्षे काती वदि ९ दिने डेरासमालखांन मध्ये पं. दीपचंद लिखितं आत्मार्थे । क्र. ११०८ गोडीपार्श्वनाथस्तवन पत्र २ । भा. गू. । क. प्रीतिविमल । गा. ५५ । ले. सं. १७८३ । पं. १७ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ८॥४४॥ अन्त अष्टमहाभयहरै कांनपीडा टलइ... . लसीस गभणते । वदितवरप्रतिसुं प्रीतविमल प्रभु पासजिणनाम अभिरामं मलै ॥ ५५ ॥ ओजि. ॥ ..... गोडीपारसनाथ स्तवनं संपूर्णम् । संवत् १७८३ वर्षे मिती माहमासे कृष्णपक्षे अमावास्यातिथौ बुधवारे श्रीसमालखांनडेरामध्ये श्रीखरतरवेगडगच्छे पं. दीपचंद लिखतं आत्मार्थे । कल्याणमस्तु ॥ श्रीः || क्र. ११०९ महावीरसत्तावीसभवस्तवन पत्र ४ । भा. अपभ्रंश । कडी. ३२ । र. सं. १५३० । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९१४४॥॥ क्र. १११० लघुचाणाक्यराजनीतिशास्त्र सस्तबक पत्र ४ । भा. सं. गू. | पं. २५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ८१४४ ॥ क्र. १९११ कविप्रिया पत्र ८० । भा. हिन्दी । क. केशवदास । ले. सं. १८३२ । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८ ||४| क्र. १९१२ गौतमपृच्छाप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा. । गा. ६४ । पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ८ ।। ४४ । क्र. १९१३ अमरसेनवयरसेनरास पत्र १८ । भा. गू. । क. जिनहर्ष । गा. ४६३ । १७४२ । ले. सं. १७४७ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८४४ क्र. १९१४ महर्षिकुलक सस्तबक पत्र ३ । भा. प्रा. गू. । मू. गा. २० । पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ८ ४४ ॥ क्र. १११५ (१) पंचभावना सज्झाय पत्र ३ । भा. हि. । (२) लघुभावना तथा तमाकुसज्झाय आदि पत्र ३-४ । भा. हि. । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८ ४४ ॥ र. सं. क्र. १९१६ श्रावक अतिचार पत्र ५ । भा. गू. । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८॥४४॥ क्र. १११७ संवत् १८२५ नुं पंचांग गुटकाकारे । स्थि. मध्यम । लं. प. ८x४। क्र. १९१८ सारस्वतव्याकरण पंचसंधि पत्र ९ । भा. सं. । क. अनुभूतस्वरूपाचार्य । ले. सं. १९०२ । पं. ९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८x४ ।। प्रति पाणीमां भींजाएली छे । क्र. १११९ महावीरस्वामितपपारणं पत्र ३ । भा. गू. । गा. २८ । पं. ९ । स्थि. मध्यम । लं. प. ८x४ । प्रति प्राणीमां भींजाएली छे । Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १९०४-११३६] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. १९२०शांतिजिनस्तवन पत्र २। भा. गू।क. गुणसागर। गा. पं. सस्पि . मण्यम । लं. प. ८४४.। प्रति पाणीमां भीजाएली छे। क्र. ११२१ नवकारछंद पत्र २ । भा. गू.। क. कुशललाम । गा.१३ पं. ५। स्थि. मध्यम । लं. प. ८xx. । प्रति पाणीमां भीजाएली छ। क्र. ११२२ कामधेनुज्योतिषग्रंथ तथा सारणी पत्र १६ । भा. सं.। रामचंद्राचार्य । के.सं १५.१। स्थि . मध्यम । लं. प. •ixi. पोथी ५७ मी क. १९२३ (१) ग्रहरत्नाकरसारणी पत्र ४-१६। स्थि. मध्यम। लं. प. •ixru (२) ज्योतिषसारणी पत्र ४-१९। भा. सं.। स्थि. मध्यम । लं. प. •ixxn (३) खेटभूषणसारणी पत्र १९ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । लं. प. १.४४॥ (४) ज्योतिषसारणी पत्र ६। भा. सं. । स्थि. मध्यम । लं. प. १.४४|| (५) ज्योतिषसारणी पत्र ४ । भा. सं- । स्थि. मध्यम । लं. प. १.xru क. १९२४ यंत्रराजकोष्ठक पत्र ८। स्थि. मध्यम । लं. प. १.ixel क. १९२५ यंत्रराजवृत्तिसह पत्र ३२। मू. क. महेन्द्रसूरि । भा. सं.। पं. १५। स्थि. बीर्णप्राय । लं. प. १०४४॥ क्र. ११२६ वीतरागसहस्रनाम पत्र ४। भा. सं. । ग्रं. १२८ । पं. १४ । स्थि. जीर्णप्राय । ठं. प. १०x४॥ क्र. ११२७ ज्योतिषग्रंथ ३. अ. पत्र ३-१३। भा. सं.। पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प.१.xxi क्र. ११२८ ग्रहणाधिकार पत्र ।। भा. सं.। क. शतानंद । पं. १६ स्थि . मध्यम । लं. प. १०x४॥ क. ११२९ शकुनाचली पत्र ३ । भा. गू.। पं. १२। स्थि. मण्यम । लं. प...1xru क्र. ११३० कल्याणमंदिरस्तोत्र सस्तबक पत्र । भा. सं. गू, । मु. क. सिद्धसेन दिवाकर । लें. सं. १७३७ । पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ११३१ ताजिकसार पत्र १६। भा. सं. । क. हरिहर । ले. सं. १७२८ । पं. १५। स्थि . मध्यम । लं. प. १०x४॥.। प्रति पाणीमा भीजावाथी अक्षरो खराब थयेला छे । क्र. ११३२ ग्रहसाधनप्रक्रिया पत्र १४ । भा. स.। पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. •ixen क्र. ११३३ रत्नप्रदीप पत्र १.। भा. सं.। क. गणपति । ले. सं. १७.३ । पं. १४। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४.। प्रति पाणीथी भौजाएली छे। क्र. १९३४ जनावरशकुनावली पत्र ५। भा. हि.। पं. "। स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०x४॥.। पत्र १, ५, ६ नयी। क्र. ११३५ षट्पंचाशिका पत्र ।। भा. सं. । क. पृथुयशा। पं. ५६ । पं. "स्थि.श्रेष्ठ । लं. प. १.४४॥ क. १९३६ कर्णकुतूहल पत्र १० । भा. सं। ले. सं. १७२८ । पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. १.xxm। प्रति पाणीथी भीजाएली छे। मन्त-संवत् १७२८ वर्षे माह सुदि ५ बुधे श्रीनसरपुरमध्ये श्रीखरतरवेगडगच्छे भट्टारकश्रीजिनसमुद्रसूरिwhy यराज्य तशिम्य पं. सौभाग्यसमुद्रेण एषा प्रतिलिपीकूता ॥ श्रीपार्श्वनाथ श्रीअजितनाथ प्रसादात् ॥छ॥श्री १५ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ५७-५८ क. ११३७ विचाररत्नाकरज्योतिष पत्र ३। भा. सं । पं. १७। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. Smxn.प्रति उदरे करडेली छे। क्र. ११३८ मुष्टिज्ञान पत्र १। भा. सं.। पं. १७। स्थि . मध्यम । लं. प. १०x1 क्र. १९३९ महादेवीज्योतिषयंत्रावली पत्र ७७ । भा. सं.। पं. १५ स्थि. मध्यम । लं. प. xxm प्रति पाणीथी भोंजाएली छ। क्र. ११४० ग्रहभावप्रकाश पत्र । भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि । ग्रं. १७७ । ले. सं. १७.८ । पं. १२। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १.xn क्र. ११४१ यंत्रराज पत्र १८ । भा. सं.। क. महेन्द्रसूरि । ले. सं. १७२२ । पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४) क्र. ११४२ महादेवीवृत्ति पन्न ३८ । भा. सं। वृ. क. धनराज । र. सं. १६९२ । पं. १५। स्थि. जीर्ण । लं. प .xn क्र. ११४३ विष्णुकरण सटीक त्रिपाठ पत्र ३८ । भा. सं। वृ. क. त्र्यंबक। ले. सं १७११ । पं. १६। स्थि. मध्यम । लं. प. १०ix॥। प्रति पाणीथी भीजाएली छ । क्र. ११४४ ज्योतिषसारणी अस्तव्यस्त । भा. सं। स्थि. मध्यम। लं. प. १०x४॥। प्रति पाणीथी भीजाएली छे। क्र. ११४५ बासठमार्गणायंत्र पत्र १८ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. ११४६ ऋषिमंडलस्तोत्र पत्र ३ । भा. सं। ग्रं. ७९ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प ९mxxi .. क्र. ११४७ अजितशांतिस्तोत्र तथा गोडीपार्श्वनाथस्तवन आदि पत्र ५। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ixsi क्र. ११४८ नारचंद्रज्योतिष पत्र । मा. सं । क. नरचंद्रसूरि । पं. २१३ । पं. १६ । स्थि. श्रेधलं. प. १.x४॥ क्र. ११४९ मुहतचिंतामणि पत्र १४। भा. सं. । क. रामदैवज्ञ । पं. १८ । स्थि. श्रेष्ठ । है. प. १०x४॥ क्र. ११५० मुहूर्त्तदीपक पत्र ३ । भा. सं. । क. भूद्रमादेव (१)। पं. १८। स्थि. जीर्ण । लं. प. ९x४॥ ऋ. ११५१ ज्योतिषसारणो पत्र। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ • क्र. ११५२ किरातमहाकाव्य पत्र ६९ । भा. सं. । क. भारवि । ले. सं. १५२५ । पं. १२। स्थि . मध्यम । लं. प. १०४३.। पत्र १३-६२ मथी। . क्र. ११५३ विवाहपटल सस्तबक पत्र अस्तव्यस्त । भा. सं.। पं. ११ स्थि. मध्यम । लं. प. १.xel क्र. १९५४ विवाहपटल पत्र ११-१४ । भा. सं. । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प.5mxn क्र. ११५५ कर्णकुतूहल वृत्तिसह पत्र ५८ । भा. सं.। वृ.क. सुमतिहर्षगणि । ग्रं. १८५०। वृ. र.सं. १६७८ । पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥xxi क्र. ११५६ वृहज्जातक पत्र । भा. सं. । ग्रं. ७२ । ले. सं. १६३४ । पं. ११। स्थि. जीर्ण । लं. प. sixi Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. ११३७-७७ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पोथी ५८ मी क. ११५७ षष्टिसंवत्सर अपूर्ण पत्र ६ । भा. गू.। पं. १९। स्थि. जीर्ण । लं. प. xen पत्र ३, ४, नथी। क. ११५८ षष्टिसंवत्सरवृत्ति पत्र ४। भा. सं.। पं. १७ । स्थि. जीर्ण । लं. प. .nn क ११५९ भुवनदीपक पत्र २-६ । भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि। ग्रं. १७३। पं. १५। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०x४।। क्र. ११६० पंचांगतत्त्व व्याख्यासह पत्र ८.भा. सं.। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं.प. १०mxel क्र. ११६१ वृद्धग्रहरत्नाकरतिसंस्कारयंत्र पत्र १६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४४॥ क ११६२ आशाघरसारणी पत्र ६१ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४|| क्र. ११६३ महादेवीसारणी पत्र १५। स्थि. जीण । लं. प. १०x४॥ . क्र. ११६४ कल्पसूत्रनवमव्याख्यानबालावबोध पत्र १४-२७ । भा. गू। पं. १३। स्थि. जीर्ण। लं. प. १०॥x४। क्र. ११६५ आशाधर पत्र ५। भा. सं. । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ। लं.५.१.xn.। पत्र १, ४ नथी। क्र. ११६६ सप्तस्मरणनी अनेक प्रतिभो। भा. प्रा. सं.। लं. पं. १00x४॥ क. १९६७ चंद्राीपद्धति पत्र ३ । भा. सं.। पं. १४। स्थि. मध्यम । ले. प. १०nxen क्र. ११६८ षटगंचाशिकाबालावबोध पत्र ५। भा. गू। पं. १६ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०x४॥ क. ११६९ श्रीपतिसूत्रवृत्ति अपूर्ण पत्र १४ । भा. सं.। पं. १५। स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १.xxn ___ क्र. ११७० कर्णकुतूहम्वृत्ति पत्र १८। भा. सं. । मू.क. भास्कराचार्य । पं. १३। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०ixe ___ क्र. ११७१ जीवविवारप्रकरण सावरि त्रिपाठ पत्र ५। मा. प्रा. सं.। मू. क. शांतिरि। पं. १४। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०nxxn क्र. ११७२ ज्योतिषरत्नमाला बालावबोधसह. पत्र २१। भा. सं. । क. श्रीपति । ग्रं. ८४. ले. सं. १७३४ । पं. २१ । स्थि . भतिजीर्ण । लं. प. ॥xen.। प्रति चोंटेली अने नकामी छे।। क्र. ११७३ षष्टिसंवत्सरट का पत्र ४ । भा. सं.। पं. १७॥ स्थि. मध्यम । लं. प. १011xxn क. १९७४ कर्णकुतूहल पत्र १३ । भा. सं.। क. भास्कराचार्य । ले. सं. १७०८। पं...। स्थि . मध्यम । लं. प. १.xxl क्र. ११७५ जातकपद्धति टिप्पणीसह पत्र ४ । भा. सं.। क. मिश्रप्रेम । ग्रं. ५४। पं.११। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९४४॥ क्र. ११७६ कर्मविकज्योतिष पत्र । भा. सं. । पं. १२। स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. ११७७ भुवनदीपकवृत्ति अपूर्ण पत्र १.। भा. स.। पं. ९। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. SHIXY Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ प्रोजेसलमेरुदुर्गस्य [पोथी-५८-६१ क. ११७८ जन्मपत्रीपद्धति पत्र । भा. .सं.। क. हर्षकात्तिसूरि। पं. १४। स्थि. श्रेष्ठ। कं. प. ९॥xs क्र. १९७२ विपाकसूत्र सस्तबक पत्र ..। भा. प्रा. गू। पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८ixn क्र. १९८० बृहद्महरत्नाकर पत्र २। मा. सं.। क. योगराज । का. २७। पं. १४। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९x४॥.। प्रति एक बाजुथी उंदरे करडेली छे। क्र. ११८१ औपपातिकसूत्र सस्तबक पत्र ११६ । मा. प्रा. गू.। ले. सं. १९२७ । पं. १५ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४४॥ क्र. १९८२ संघर १७२७ थी १७४१ सुधीनां पंचांगनी विशेष हकीकतोनो लांबो गुटको स्थि . श्रेओ।लं. प. nxx ____क्र. १९८३ सीमंधरस्वामिस्तुति आदि स्तुतित्रय पत्र ।। मा. प्रा. सं. । पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. emxvi क्र. १९८४ जंबूद्वीपसंग्रहणी सस्तबक पत्र ८ । मा. प्रा. गू. । मू. क. हरिभद्ररि । ले. सं. १८१७। पं. १. स्थि . श्रेष्ठ । लं.प. ८mx४॥ क्र. ११८५ शिखामणस्वाध्याय अपूर्ण पत्र २ । भा. गू। पं. १६। स्थि. मध्यम । लं. प. ८mxx ___ क्र. १९८६ ॐकारयावनी अपूर्ण पत्र २ । भा. हि.। पं. १८ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ___ क्र. ११८७ षडावश्यकसूत्रमालाषयोध पत्र ४-४३ । भा. ग. । ले. सं. १७४६ । पं. १५। स्थि .श्रेष्ठ। लं. प. xx पोथी ५९ मी *. १९८८ तस्वसंप्रहपंजिका पत्र ३३८ । भा. सं.। कमाल । ले.सं. १९८३। पं. ४रिय. . प.१५॥४५॥ क्र. १९८२ द्वादशफुलक विवरणसह पत्र ५। भा..प्रा. सं.। ए. क. जिनवलराममरि । .. जिनालोण्याय।ले. सं. १९८३। पं. १६ स्थित श्रेष्ठ । लं. प. ११४५॥ *. १९९० मवावनिका गपूर्ण पत्र । मा. पं. १६ । स्थि . मध्यम। .. x४ क. १९९१ उपदेशमालाशकुमावली पर.४ । मा. सं.। स्थि. मध्यम । लं. प. •mxm क्र. ११९२ चंडीशतक पत्र । भा. सं.। क. बाणभट्ट । का. १.१। ले. सं. १५४६ । पं.११ स्थि. जीर्ण । लं.प. 1 क. ११९३ ऋषभदेववीवाहलो पत्र १३ । भा. गू। गा. २४५ । पं. ११। स्थि, श्रेष्ठ । 5. प. ११४५ क. ११९४ भत्तामरस्तोत्र सावरिक पंचपाठ पत्र ।भा. सं.। पं. १९ । स्थि. अतिजीर्ण । सं. प. ११xxn क. १९९५ षष्टिसंघत्सर पत्र ३-७ । मा. सं.। पं. १७ । वि. जीर्ण । लं. प. १४४॥ क. १९९६ शाकनामली पत्र । भा. न. । स्थि . मध्यम । लं. प. १.uxemm Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १९७८-१२१६ ] जैन ताडपत्रीय प्रथमंडार सूचीपत्र क. ११९७ विवाहपटल सस्तबक पत्र १९ । भा. सं. गू। नं. २१७। ले. सं. १८१७ । पं. २७ । स्थि . जीर्ण । लं. प. १.४५ क. ११९८ अनेक ग्रंथोनां प्रकीर्णक आदि अंत घगेरेनां पानां। लं. प. nxn पोथी ६० मी क. ११९९ परचुरणकवितपदसंग्रह गुटको। भा. हि.। स्थि. मध्यम । लं. प. smx। क्र. १२०० गोपीचंदकी धारता पत्र ८ । भा. हिं.। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४६॥ क्र. १२०१ नंददासनाममाला तथा बुहासोरठा आदि गुटको। स्थि. श्रेष्ठ। लं.प. ॥४६॥ क्र. १२०२ रसमंजरी तथा अष्टनायिकाभेद पत्र ३८ गुटको। र.क. नंददास। भा. हि.। ले. सं. १७११ । स्थि . मध्यम । लं. प. suxt क्र. १२०३ कोकशास्त्र पत्र २४ । भा. हि.क. आनंद । स्थि . श्रेष्ठ । लं. पः ॥x६ क. १२०४ रसिकप्रिया पत्र १.६ 1 भा. हि.। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥x६) क. १२०५ माधवानलकामदलाचोपाई पत्र ५९ । भा. हि.। स्थि. मध्यम। लं. प. Sxs.। प्रति भौजाईने चोंटी गई छे। ___फ. १२०६ उपासकदशांगसूत्र अपूर्ण पत्र १३ । मा. प्रा.। पं. । स्थि. मध्यम । लं. प. ९४५॥ पोथी ६१ मी क. १२०७ चमत्कारचिंतामणि पत्र १२ । भा. सं.। पं. ८ । स्थि. जीर्ण। लं.प. ६x४॥ क. १२०८ भागवतदशमस्कंधपंचाध्यायी पत्र २-१.९। भा. सं.।.क.बाभदीक्षित । ले.सं. १८१२। पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. sixviii। पत्र ६९-९४ नथी। क्र. १२०९ अर्यकांड अपूर्ण पत्र १२। भा. सं. । पं.4 स्थित मध्यम। लं..प. x५ क्र. १२१० भकामरस्तोत्रवृत्ति पत्र । मा. सं.। मू.क. मानतुंगरि । पु. क. समयसुंदर । *. १३। स्थि. मध्यम । लं. प. omx५. आदिनो अर्धा भाग छोडीने लखवामा आवी छ । उत्तरार्द्ध मात्र छ। क. १२११ दुर्गासप्तशती पत्र ४७ । भा. सं.। ले. ख. १५५१ । पं. ११। स्थि. जात्राय । *.प. omxen क. १२१२ विवाहपटल सस्तबक पत्र १५। मा. सं. .। भू.प्रे. १..। ले.सं. १७७. पं. १ स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. Guxum क्र. १२१३ शीघ्रबोधसंग्रह ज्योतिष पत्र ८७। भा. सं.। क. काशीनाथ । पं. ८ स्थिः श्रेष्ठ । 5. प. x५ क्र. १२१४ कोकसार पत्र ३६। भा. हि.। ले. सं. १७४८। पं. ८। स्थि. मध्या । लं. प. sixe क्र. १२१५ योगदीपवैद्यक पत्र ४० । भा. सं.। ले. सं. १७६२। पं. ९। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ७४४. पत्र २७-३९ नथी। क. १२१६ देवीगीत आदि पत्र मा. हि. । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । सं. प. xom Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ६१-६३ क्र. १२१७ शिक्षापत्री त्र. अ. पत्र ५० । भा. सं. ।। पं. ९ । स्थि. मध्यम । लं. प. ६ ।। ४४ ।। || पत्र ३२-४० नथी । क्र. १२१८ सारशिखामणरास पत्र १८ । भा. गू. । ले. सं. १७७५ । पं. १७ । स्थि. मध्यम । लं. प. ५ ॥ ४४ ॥ ॥ २७८ पोथी ६२ मी क्र. १२१९ रत्नाकरावतारिकाटिप्पनक पत्र १४० । भा. सं. । क. ज्ञानचंद्र । ग्रं २१०४ । ले. सं. १९५१ । पं. ६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प क्र. १२२० खंडनखंडखाद्य टिप्पनक पत्र ले. सं. १९५१ । पं. ६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १३ ॥ ४४ ८९ । भा. सं. । क, परमानंदसूरि । ग्रं. १२५० । १३ । ४४१ लं. प. स्थि. अतिजीर्ण | क्र. १२२१ जिनागमपाठसंग्रह अस्तव्यस्त । भा. प्रा. सं. १३॥४४॥ क्र १२२२ कथासंग्रह गद्यपद्य पत्र ७ - २४ । भा. सं. । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. १० ॥ ४३ ॥ क्र. १२२३ नैषधमहाकाव्य पत्र ११ अपूर्ण । भा. सं. । क. श्रीहर्षकवि । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ११।४३ ॥ क्र. १२२४ लटकमेलकप्रहसन पत्र १० । भा. सं. । क. शंखधर । पं. १० । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४३॥॥. प्रति अनु. १५मा सैकामां लखाएली छे । क्र. १२२५ नैषधमहाकाव्य पत्र ९ - २०१ । भा. सं. । क. श्रीहर्षकवि । पं. ९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ११।४३।।। पत्र १२७ - १८१ नथी । क्र. १२२६ सिद्धहेमसूत्रपाठ आदि टक अपूर्ण । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १२२७ अनुत्तरौपपातिकसूत्र पत्र ६ । भा. प्रा. पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९४३॥ पोथी ६३ मी क्र. १२२८ सन्मतितर्कनी चार अपूर्ण प्रतिओ तथा अंगविज्जा अपूर्ण स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४५॥॥ क्र. १२२९ मारदीयपुराण अपूर्ण पत्र २०० । भा. सं. । पं. ७। ले. सं. १४७६ । स्थि. मध्यम । लं. प. १२॥४५ पत्र ९० मां संवतु राजाश्रीविक्रमादित्ये १४७६ वर्षे पोष सुदि १ प्रतिपदायां मूलनक्षत्रे श्रीमलिकवाहणस्थाने ब्रह्ममूर्त्तिः श्रीहरिचंद्रः । तस्य पुत्रेणं व्यास जनार्द्दनेन लिखितमिदं पुस्तकं शिवमस्तु ॥ छ ॥ आ ग्रंथमां नासिकेत तथा रुक्मांगदचरित्रादि छे । क्र. १२३० प्रेतमंजरी पत्र १६ । भा. सं. । ग्रं. १५४ । पं. ७ । स्थि. मध्यम । लं. प. १२॥४५ क्र. १२३१ विवेक विलास पत्र ४५ । भा. सं. । क. जिनदत्तसूरि । र. सं. १४९३ । ले. सं. १४९७ । स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. १२४४॥ अन्त भुवननंदयुगेन्दुसुवत्सरे प्रबलभाद्रपदाह्वकमासके । असितपक्षसुऋक्षशुभे तिथौ .... . रराजिते ॥१॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १२१७-४४] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र श्रीजिनधर्मसूरीणां विनेयेन विवेकिना। श्रीविवेकविलासाख्यो मेरुणाऽलेखि भावतः ॥२॥ संवत् १४९७ वर्षे भाद्रपदमासे असितपक्षे पंचमी ५ क्रमवाट्यां पृथिवीतनयवारे भरणीनाम्नि नक्षत्रे हर्षणयोगे श्रीखरतरगच्छीय श्रीश्रीजिनदत्तसूरिशाखायां श्रीजिनचन्द्रसुरिपट्टालङ्कार श्रीजिनेश्वरसूरिपट्टे श्रीजिनशेखरसूरिपट्टे श्रीजिनधर्मसूरिगणे विनयमेरुगणिना श्रीविवेकविलासाख्यो ग्रन्थोऽलेखि। श्रीसूराचंदनगरे राज्यधीधीसलः। तस्य पुत्रो रिपुहृदयसल्ल । राज्यश्रीघडमल्लः तस्य सुतः राज्यश्रीसहसमल्लः । तस्मिन् राज्यं कुर्वति स्वभणनाय प्रन्थोऽयं लिख्यते स्म ॥श्री॥ क्र. १२३२ एकादशीमाहात्म्य-मत्स्यपुराणगत पत्र १२। भा. सं. । ग्रं. १४७ । पं. ८। स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १२॥x५ क्र. १२३३ जीवाभिगमसूत्रवृत्ति द्वितीयखंड पत्र १५०-२१२। भा. सं.। वृ.क.मलयगिरि । पं. १५। स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १२६x४॥। प्रतिमां १६३-१८७ पत्र नथी। क्र. १२३४ अष्टकप्रकरण पत्र ४ । भा. सं. । क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. २५६ । पं. १९। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२४४॥ क्र. १२३५ औपपातिकोपांगसूत्र पत्र २० । भा. प्रा. । पं. १७। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२४४॥ क्र १२३६ भयहरस्तोत्र वृत्तिसह मंत्रकल्पगर्भित अपूर्ण पत्र १२ । मा. प्रा. सं. । पं. १५ । स्थि . जीर्णप्राय। लं. प. ११॥४४॥ क्र. १२३७ श्रीपालचरित्रप्राकृत पत्र २४ । भा. प्रा.। क. हेमचंद्र। गा. १३४२ । र. सं. १४२८ । पं. १९ । स्थि . मध्यम । लं. प. १२४४॥ क्र. १२३८ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ३६ । भा. प्रा. । ले. सं. १५३९ । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. १२३९ बप्पभट्टीस्तुतिचतुर्विशतिका पत्र ३ । भा. सं. । क. बप्पभट्टीसूरि। का. ९६ । पं. १६ । स्थि. मध्यम । लं. प. १९४४॥.। प्रथम पत्र नथी। क्र. १२४० वीतरागस्तोत्रअष्टमप्रकाशवृत्ति त्रू. अ. पत्र २-१३ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । लं. प, ११।४३॥. । पत्र ४, ५ नथी। ___क्र. १२४१ वीतरागस्तोत्रअवचूरि-त्रयोदशप्रकाशथी वीस प्रकाशपर्यंत पत्र ६ । भा. सं. । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १.४३॥ पाथी ६४ मी क्र. १२४२ एक एक पानानां स्तवन. छंद. सज्झाय. गीत. स्तुति आदि ग्रंथोनो संग्रह भा. गू. । लं. प. १०mx४॥ क्र. १२४३ भयहरस्तोत्र सटीक अपूर्ण पत्र ६। भा. प्रा. सं.। पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०imx३॥ क्र. १२४४ संग्रहणीप्रकरण सावचूरि त्रिपाठ त्रूटक पत्र ७-३६ । भा. प्रा. सं.। मू. क. श्रीचंद्रसूरि । ले. सं. १७६४ । पं. १८ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ अन्त-इति संग्रहणिसूत्रकारश्रीश्रीचंद्रसूरिशिष्यश्रीदेवभद्रसूरिविनिर्मितविवरणानुसारेण संग्रहण्यवचूर्णिः समाप्ता ॥ शुभं भवत। संवत् १७६४ वर्षे अश्विनमासे गुज्जरमते शुक्लपक्षे पंचभ्यां तिथौ भिल्लवासरे लिखितमस्ति । Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १४-६५ वाचनाचार्य श्री ५ श्री वाचकोत्तमवाचक श्री ५ श्री १.३ श्री सोमसुंदरजी शिष्य मयाचंद दीपचंदजी मुनि मयाचंदकेन लिखितं स्ववाचनार्थ। शुभं भवतु । कल्याणमस्तु ॥श्री॥ जलाक्षेत् स्थलात् रक्षेत् रक्षेत् शिथिलबंधनात् । मूर्खहस्तेषु गतात् रक्षेदेवं वदति पुस्तिका ॥ भद्रं भूयात् श्रेय ॥श्री॥ क्र. १२४५ (१) कल्याणमंदिरस्तोत्र सावचूरि पत्र १-७ । भा. सं.। (२) भक्तामरस्तोत्र सावचूरि पत्र ७-९ अपूर्ण । भा. सं । पं. १७॥ स्थि. मध्यम । लं. प. .x४॥ . १२४६ भवानीसहस्रनामस्तोत्र तथा जैनरक्षास्तोत्र पत्र । भा. सं। भ. . २०६। 3. ग्रं. १७। पं. १५ स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०x४|| क्र. १२४७ धनंजयनाममाला अपूर्ण पत्र २७। भा. सं.। क. धनंजय। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ०x४॥ क. १२४८ कथासंग्रह पत्र ६ । भा. प्रा. सं । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १९। लं. प. १.xxl क. १२४९ चंद्रार्कीटिप्पनिका पत्र । भा. सं.। पं. १३ । स्थि . मध्यम । लं. प. १०xxi क्र. १२५० उल्लासिकमस्तोत्रबालावबोध अपूर्ण पत्र २। भा. गू, । पं. २३। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४/ क. १२५१ वृत्तरत्नाकर पत्र २-७ । भा. सं. । क. केदारभट्ट । पं. १.। स्थि. भेष्ठ। लं. प. १०x४॥ क्र. १२५२ जयतिहुयणस्तोत्र पत्र ३ । भा. अप.। क. अभयदेवसूरि। कडी. ३.। स्थि. भेट। लं. प. १०x४॥ क्र. १२५३ दुरियरयस्तोत्र अपूर्ण पत्र ६। भा. प्रा. । क. जिनबल्लभगणि । गा. ४४ । पं. ४। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १.x४॥ क्र. १२५४ भक्तामरस्तोत्र बालावधोधसह पंचपाठ पत्र ६-२४ । भा. सं. गू। पं. १२ । स्थि . श्रेष्ठ। लं.प. १०ixvil क्र. १२५५ स्वप्नचिंतामणि पत्र ९ । मा. सं.। क. जगदेव । ग्रं. २५१ । पं. १३। स्थि. मध्यम । लं. प. १.xrl क्र. १२५६ लग्नपत्रसारणी पत्र ३.। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४॥ क्र. १२५७ चैत्यवंदनावंदनकप्रत्याख्यानविवरण पत्र २४-३५। भा. सं.। पं. १४। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४॥ क्र. १२५८ शिशुपालकथा पत्र ६-८। भा. गू. । पं. १८ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. १२५९ स्तोत्रस्तवनादिसंग्रह पत्र ९ । भा. अप. गू. । पं. २१ । स्थि. मध्यम । लं. प. Sinxn क्र. १२६० भाचारांगसूत्रआलापक घालावबोधसह पंचपाठ पत्र २-४ । भा. प्रा. गू. । पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४॥ क्र १२६१ क्रांतिसाधन पत्र ३। भा. सं.। पं. १७॥ स्थि . मध्यम । लं. प. iixen क्र. १२६२ सरस्वतीस्तवन पत्र । भा. सं। ग्रं. १२। पं. ११ स्थि . मध्यम । सै. प. १.x1 Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १२४५-७८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २८१ क्र. १२६३ (१) नेमिनाथबारमासा गीत पत्र १लं । भा. गू. । क. धर्मकीर्ति । गा. १७ । (२) जेसलमेरपार्श्वनाथगीत पत्र १-२ । भा. गू. । क. धर्मकीर्ति । गा. ७ । (३) जिनचंद्रसूरिगीत पत्र २जुं । भा. गू. । क. धर्मकीर्ति । गा. ९ । (४) सीमंधरगीत पत्र १-२ । भा. गू. । क. धर्मकीर्ति । गा. ७। पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०।४४ । क्र. १२६४ ज्योतिषरत्नमाला बालावबोधसह अपूर्ण पत्र १० । भा. सं. गू. । पं. १३ । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. १०४४ ॥ क्र. १२६५ ऋषिमंडलप्रकरण पत्र २८ । भा. प्रा. क. धर्मघोषसूरि । गा. ११० । ले. सं. १६५२ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०/४४ | क्र. १९६६ शीतलामातागीत आदि पत्र १ । १७ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०।४४ | भा. गू. । क. (१) कानजी । गा. ७। क्र. १२६७ सिद्धांतशिरोमणिसूत्र पत्र स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ । क्र. १२६८ उपधानविधिप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा. क. मानदेवसूरि । गा. ५४ । पं. १० । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९।४३। क्र. १२६९ राशिचक्र पत्र ३ । भा. सं. । पं. १० । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९ । ९३ । क्र. १२७० नंदितादयछंदःशास्त्र किंचिदपूर्ण पत्र । भा. प्रा. । पं. ८ | स्थि. मध्यम । लं. प. ९४३ ॥ ॥ क्र. १२७१ संवत् १८२२ नुं पंचांग । स्थि. मध्यम । लं. प. ८ ४४ ॥ ॥ क्र. १२७२ भागवतदशमस्कंधविवरण अपूर्ण पत्र ४८ । भा. लं. प. ७।। ४४ ।। सं । पं. क्र. १२७३ अंतःकरणप्रबोधवृत्ति पत्र २-९ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ७४४ प्रति चोटेली छे । पोथी ६५ मी क्र. १२७४ पोथी ६६ मी क्र. १२७५ १५-२६ । भा. सं. । पं. क. भास्कराचार्य । पं. १३ । आ ग्रंथनो बीजो मूल श्लोक यस्योच्चैः शस्तहस्तस्फुरदरुणन खश्रेणिरोचिष्प्रपंचस्तीव्रध्वान्तं भा. सं. । क. वल्लभ । ग्रं. १७० । पं. ११। पोथी ६७ मी क्र. १२७६ राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ७० । भा. सं । वृ. क. आचार्य मलयगिरि । ले. सं. अनु. १४मानुं उत्तरार्द्ध । स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. १७/४३ । प्रति उधेईए खाली छे । १३ । स्थि. जीर्णे । क्र. १२७७ चैत्यवंदनाकुलक वृत्तिसहित अपूर्ण पत्र २ - १५ । स्थि. श्रेष्ठ । ले. सं. अनु. १४ मा सैको । लं. प. १७/९३ क्र. १२७८ अंजनासुंदरीकथानक पत्र २३ । भा. प्रा. । क. गुणसमृद्धि महत्तरा । गा. ५०४ | र. सं. १४०७ । पं. ९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२/४ | ३ ३६ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ भीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १८-१ मन्त सिरिजेसलमेरपुरे विक्कमचउदहसतुत्तरे वरिसे । वीरजिणजम्मदिवसे कियमंजणसुंदरीचरियं ॥५०३॥ जो आसायण कुणई अणंतसंसारु भमइ सो जीवो। जो आसायण रक्खइ सो पावइ सासयं ठाणं ॥५.४॥ इति श्रीअंजणासुदरीमहासतीकथानकं समाप्तम् ॥ कृतिरिय श्रीजिनचंद्रसूरिशिष्यणीधीगुणसमृद्धिमहत्तरायाः ॥७॥ शुभं भवतु । श्रमणसंघस्य ॥छ॥ पोथी ६८ मी ___ क्र. १२७९ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य दशमपर्व महावीरचरित्र पत्र २४१ । भा. सं.। क. हेमचन्द्रसूरि । ले. सं. १३८४ । लं. प. १५४२।।। अन्त संवत् १३८५ वर्षे अश्विन सुदि त्रयोदश्यां रवी श्रीमत्मठस्थाने श्रीमहावीरपुस्तकमलेखि। श्रीलेखकपाठकयोः ॥छ॥छ॥ श्रीवीरनाथः सकलः शशांकः शिवावतंसस्थितिरद्भुतश्रीः। शीतात्मकः स्फोटितपापतापः सदा मतानां तमसं भिनतु ॥१॥ अस्तींदिराधाम कवीन्द्रराजिविराजितं सूरबुधैः समृद्धम् । गुर्वेश्वरश्रीदसमूहयुक्तं सुरालयाद् बाहुपुरं मन्योन्यम् ( मनोज्ञम् ) ॥२॥ श्रीमालवंशः सुकृतावतसस्तस्मिन् पुरे भूपकृतप्रशंसः । पात्रालयो मानवरत्नखानिर्जीयाचिरं धर्मसुपर्वजानिः ॥३॥ भुवनविदितकीर्तिस्तत्र वशे विशाले नरपतिरितिनामा साधुरासीन्नयज्ञः। गुरुजनगुरुभक्तिप्रीतचित्तः सुवृत्तः शुभगुणगणशाली धर्मकर्मप्रवीणः ॥४॥ आसीत् प्रिया तस्य सुलक्षणस्य धानीति नाम्नी गुरुभक्तियुक्ता। तयोर्बभूवुस्तनया सुशीला गुणास्त्रयोऽपीव शरीरबद्धाः ।।५।। गुणेगरिष्ठोऽजनि साधुरांबूदाभिधानः प्रथितो द्वितीयः। लावूस्तृतीयः सरलस्वभावस्त्रयोऽपि गांभीर्यगुणादियुक्ताः ॥६॥ समधरधीरिति दयिताऽस्त्यांबूनानो विशुद्धतरचित्ता। अजनिषत शुद्धपक्षा दक्षाश्चत्वार इह तनयाः ॥७॥ कामाभिधोऽभूत् प्रथमः प्रतीतोऽपरो नयी कुवरपालनामा । नानूस्तृतीयः सुगुणैरमेयो होलाख्यसाधुः सुकृती तुरीयः ॥८॥ काधूनाम्नस्तृतीयस्य कामदेवसमत्विषः। वीरोधीरिति संजज्ञे कांता कांता रतियुतिः॥९॥ वीरोधीः स्यात् श्राविकाणां गरिष्ठा सल्लावण्या दानदाक्षिण्यशिष्टा। मन्ये सम्यक् शीलयोगेन दक्षा सत्सौभाग्येनापि सीतासदृशा ॥१०॥ धीराकनामेति तयोः सुबुद्धिः आद्यो द्वितीयोऽजनि खेतसिंहः । गोविंदनामा विदुरस्तृतीयो जीयासुरेते तनुजास्त्रयोऽपि ॥११॥ धीराभार्या षोतू रम्यालंकारधारिणी सौम्या। यद्विमलशीलमहिमा नित्यं संस्तूयते विबुधैः ॥१२॥ खेताकनाम्रो दयिता बभूव साल्ही सदाचारविशुद्धबुद्धिः। यदूपशोभामवलोक्य काममरूंधती विष्णुपद सिपेवे ॥१३॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३ क्र. ११७२-२२८८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र गोविंदसाधोरभवद्विनीता शांता प्रिया रोहिणिनामधेया। अद्यापि मन्ये सकलत्वमस्याः सा रोहिणी ध्यायति रोहिणीशम् ॥१४॥ श्रीविक्रमादित्यनरेन्द्रकालाद् वेदाष्टयक्षप्रमिते १३८४ व्यतीते। संवत्सरे माधवमासि षष्ठयां तिथौ सितायां शुचि चन्द्रवारे ॥१५॥ अलेखयत् श्रीजिनवीरनाथचरित्रमेतत् परितः पवित्रम् । स साधुधीराक इति स्वमातुः सुपुण्यपोषाय विशालकीर्तिः ॥१६॥ युग्मम् ॥ नक्षत्राक्षतपूरितं मरकतस्थालं विशालं नभः, पीयूषद्युति नालिकेरकलितं श्रीचन्द्रिकाचंदनम् । यावन्मेरुकराप्रसंस्थितमिदं धत्ते धरित्रीवधूस्तावन्नन्दतु पुस्तिका भुवि चिरं व्याख्यायतां साधुभिः॥१७॥ पोथी ६९ मी क. १२८० संग्रहणीप्रकरण आदि संक्षिप्तटिप्पणी पत्र ८। भा. स । स्थि. जीर्ण। ले. सं. अनु. १५ मो सैको। लं. प. १४४३॥ क्र. १२८१ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य प्रथमपर्व आदिनाथचरित्र अपूर्ण पत्र १०२। क. हेमचंद्राचार्य। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। ले. सं. अनु. १५ मो सैको। लं. प. १४४३॥. . क्र. १२८२ दुर्गवृत्तियाश्रयमहाकाव्य स्वोपशवृत्तिसह त्रूटक अपूर्ण पत्र १२२-२८२ । भा. सं.। क. जिनप्रभसूरि स्वोपज्ञ । स्थि. जीर्ण । ले. सं. अनु. १५ मो सैको। लं. प. १२॥॥४३. क्र. १२८३ पंचवस्तुकप्रकरणवृत्ति प्रथमखंड अपूर्ण पत्र १९९ । क. मुनिचंद्रसूरि। भा. सं। ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १२॥४३॥ पोथी ७० मी क्र. १२८४ कर्मप्रकृतिप्रकरण सटीक अपूर्ण पत्र ३४७ । भा. प्रा. सं.। मू. क. शिवशर्मसूरि । टी. क. आचार्य मलयगिरि। ले. सं. अनु. १४ मा सकार्नु पूर्वार्द्ध। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १२४३.। पत्र ११७ तथा ११८, १५५, १६१-१६३, १९५, १९७, २०४-३४६ नथी । क्र. १२८५ (१) प्रद्युम्नशांबचरित्र पत्र ३-५० । भा. प्रा. । गा. १०७० । (२) सीताचरित्र अपूर्ण पत्र ५०-१४३ । भा. प्रा.। ले. सं. अनु. १५ मो सैको। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२४३.। पत्र-२५-४६, ५५, ५७-६१, ६६-६९, ७१, ७३-७४, ७७, ७९-८५, ८९-९०, ९७, १०६, १०८, ११०, ११५, १२२, १३९, १४२ नथी। क्र. १२८६ बृहत्संग्रहणीप्रकरण ७. अ. पत्र ५६-७६ । भा. प्रा.। क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि . अतिजीर्ण। ल. प. ११mx३। क्र. १२८७ पाणिनीव्याकरणमहाभाष्यप्रदीप त्रु. अ. पत्र ४-१०८ । भा. सं.। क. कैयट । ले. सं. अनु. १५ मो सैको। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ११॥४३१.। वचमा केटलांक पानां नथी। पोथी ७१ मी क. १२८८ (१) कातंत्रव्याकरणदुर्गपदप्रबोधवृत्तिढुंढिका कारकपर्यन्त पत्र २०८ । भा.सं.गू। (२) शास्त्रीयअनेकविचार पत्र २०९-२४३ । भा. सं. गू.। । कर्मविपाककर्मग्रंथबालावबोध पत्र २४४-२५७ । भा. सं. गू.। Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथो ७२-७५ (४) लघुअजितशांतिस्तव भाषार्थसह पत्र २५७-२६१ । भा. सं. गू.। मू. क. जिनदत्तरि। (५) प्रकीर्णकविचार पत्र २६१-२६४ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १५ मो सैको। स्थि. मध्यम । लं. प.६११॥४२॥ क्र. १२८९ (१) बृहत्संग्रहणीप्रकरण (२) वंदनविधिप्रकरण (३) पंचाशकप्रकरण (४) श्रावकवक्तव्यताप्रकरण (५) भवभावनाप्रकरण आदि प्रकरणो। पत्र २२४ । ले.सं. अनु. १४ मो सेको। स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. १०॥४३. प्रति चोंटी गयेली अने उंदरे करडी खाधेली छे। पोथी ७२ मी क्र. १२९० उपदेशमालाप्रकरण दोघट्टीवृत्तिसह अपूर्ण पत्र ७-३७० । भा. प्रा. सं। टी. क. रत्नप्रभाचार्य । ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२४३।। पत्र २१९-२२० नथी। क्र. १२९१ कातंत्रव्याकरण विद्यानंदिवृत्तिसह पत्र ३२३ । भा. सं. । क. विजयानंद। ले. सं. १३९२ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । लं. प. १२४३ प्रति प्राणीमां भीजाइने खराब थई छे अने अक्षरो उखडी गया छ । अन्त इति विजयानन्दविरचिते कातंत्रोत्तरे विद्यानन्दापरनाम्नि कृत्सु षष्ठः पादः समाप्तः ॥छ॥छ॥छ। शिव भूयात् संघस्य ॥छ॥छ॥ॐ॥ संवत् १३९२ मार्गशीर्षशुक्ल अष्टम्यां श्रीविद्यानन्दमहाशास्त्रपुस्तकं समर्थित श्रीमज्जिनचन्द्रसूरिशिष्येण यशःकीर्तिगणिना श्रीदेवराजपुरस्थितेन ॥छ। पोथी ७३ मी क्र. १२९२ प्रवचनसारोद्धारप्रकरणवृत्ति द्वितीयखंड ३४ मा द्वारथी ८३ मा द्वार पर्यंत पत्र २३० । भा. सं । ले. सं. अनु. १५मार्नु पूर्वार्द्ध। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १२४२॥ क्र. १२९३ प्रवचनसारोद्धारप्रकरणवृत्ति तृतीयखंड ८४ मा द्वारथी २१७ द्वार पर्यंत पत्र २२८ । भा. सं.। ले. सं. अनु. १५मार्नु पूर्वार्द्ध। स्थि . अतिजीर्ण। लं. प. १२॥४२॥ __पत्र ६२-६४, ७६, ७८, ८९. २२५, २२७ नथी। प्रति पाणीमां भीजाएली छे । पोथी ७४ मी क्र. १२९४ पंचवस्तुकप्रकरणवृत्ति प्रथमखंड पत्र २१६ । ले. सं. अनु १४ मार्नु उत्तरार्द्ध । स्थि.अतिजीर्ण। लं. प. १२॥४२॥.। प्रति पाणीमा भीजाएली छे। प्रति उधेइए खाधेली छे । आदि-प्रणिपत्य जिनं वीरं क्र. १२९५ रुद्रटालंकार बेटक अपूर्ण पत्र ४६-५९ । भा. सं.। क. रुद्रट । ले. सं. अनु. १४मो सैको। स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. ११॥४३।। __ क्र. १२९६ शिशुपालवधमहाकाव्य-माघकाव्य टिप्पणीसह २० मा सर्ग पर्यन्त अपूर्ण पत्र १०७ । भा. सं.। क. महाकवि माघ । ले. सं. अनु. १४मानुं उत्तरार्द्ध । स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. १०x२॥ क्र. १२९७ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति अपूर्ण पत्र ३-३२ । भा. सं । वृ. क. दुर्गसिंह । ले. सं. अनु. १५ मो सैको । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ११४३ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १२८९-१३०२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. १२९८ शतककर्मग्रंथ सटीक पत्र । भा. प्रा. सं.। . ३७०० मू. क. शिवशर्मसूरि। टी.क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि . अतिजीर्ण। लं. प. ११४२॥ प्रतिना पानांना अंको घसाइ जवाथी पानां अस्तव्यस्त छ। क्र. १२९९ (१) सर्वजिननमस्कार पत्र,१ । भा. सं.। अं. ६ काव्य । आदि-स्तोतुं समर्थ किल (२) चतुर्विशतिजिनस्तव पत्र १-४ । भा. सं. । क. पूर्णभद्र । आदि-विभक्तिभिः सप्तभिरस्मिसर्ववचोभिरुत्कृष्टगुणस्तवेन अन्तइत्थं सुभक्त्यादरतः पवित्रं ये मोदिनः स्तोत्रमिदं विचित्रं । तीर्थकराणां पुरतः पठंति ते पूर्णभद्रं पदमाप्नुवंति ॥१६॥ ॥ इति सर्वविभक्तिवचनांतयत्तन्नामविन्यासवैचित्र्येण चतुर्विशतिजिनस्तवनं समाप्तम् ॥छ॥ (३) जिननमस्कार पत्र ४-६ । भा. सं.। का. २० । आदि-नामेयो भवतीति ले. सं. अनु. १४ मो सैको । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४२॥.। प्रति पाणीमां भीजाएली छ । क्र. १३०० (१) दशवकालिकसूत्रनियुक्ति पत्र १-२१। भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । गा. ४४४ । (२) उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति पत्र २२-४७ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ५९६ । ले. सं. १२७७ । अन्त-उत्तरज्झयणाणं निज्जुत्तीओ समत्ताओ ॥छ॥ अश्वस्वरद्यमणिसम्मितविक्रमाब्दे ज्येष्टस्य दर्शदिवसे ग्रहणे च भानोः । वीजापुरे जिनपतेयंतिपस्य शिष्यो नियुक्तिमालिखदिमां मुनिपूर्णभद्रः ॥१॥छ॥ शुभमस्तु लेखकपाठकव्याख्यातृश्रोतां ॥ मंगलं महाश्रीः॥ (३) आचारांगसूत्रनियुक्ति पत्र ४८-६५ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. ४७० । ले. सं. १२७७ । अन्त-आचारांगनिज्जुत्ती समत्ता ॥छ॥ अनुष्टुप्छंदसां श्लो. ४७०। मुनिभवरविसंख्ये विक्रमादित्यवासरे। अश्वयुप्रथमपक्षस्याष्टमी दिवसे रवौ ॥१॥ प्रल्हादनपुरस्थेन पूर्णभद्रेण साधुना। नियुक्तिः प्रथमाङ्गस्याऽलेखि कर्मविमुक्तये ॥२॥ नमो नमः श्रीजिनशासनाय ॥ कतांगर पत्र ६६-७५ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. २०८। पं. ७ । स्थि जीर्णप्राय । लं. प. ११॥४२॥ पोथी ७५ मी क्र. १३०१ सनत्कुमारचरित्र पत्र १८४ । भा. सं.। क. जिनपालगणि । ले. सं. १२७८ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०॥४३ क्र. १३०२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य सप्तमपर्व-रामायण पत्र २-१८५ । भा. सं.। क. आचार्य हेमचंद्रसूरि। ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि. श्रेष्ठ । ल. प. १०॥४३ पत्र १०-१३ नथी। Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ७५-७८ क्र. १३०३ किरातार्जुनीयमहाकाव्य पंचदशसर्गपर्यत पत्र ७६ । भा. सं.। क. महाकवि भारवि। ले. सं. अनु. १४ मो सको। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४२॥ क्र. १३०४ नैषधमहाकाव्य पंचमसर्गपर्यन्त टिप्पणीसह पत्र ७८। भा. सं.। क. श्रीहर्ष । ग्रं. ९३५ । ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४२॥ क्र. १३०५ (१) चञ्चरीरासक सटीक पत्र १७-३९ । भा. अपभ्रंश सं.। मू.क. जिनदत्तसूरि । टी. क. जिनपाल। टी. र. सं. १२९४ । (२) उपदेशरसायनरासक सटीक पत्र ३९-५९ । भा. अप. सं.। मू. क. जिनदत्तसूरि । टी. क. जिनपाल । टी. र. सं. १२९४ । (३) कालस्वरूपकुलकविवरण पत्र ५९-६५। भा. सं. । क. जिनपाल । ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३ क्र. १३०६ सामायिकप्राप्तिआदिविषयककथानकादि पत्र १३ । भा. प्रा. सं. । ले.सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३ पोथी ७६ मी क्र. १३०७ तत्वप्रदीपिका-चित्सुखी पत्र १९५ । भा. सं. । क. चित्सुखमुनि । ले. सं. अनु. १३मा सकार्नु उत्तरार्द्ध । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ९४२॥ क्र. १३०८ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति त्रूटक अपूर्ण पत्र १९९ । भा. सं । वृ. क. दुर्गसिंह । स्थि. जीर्णप्राय। लं.प. ९४३1.। पानां अस्तव्यस्त छ। __ क्र. १३०९ सिंहासनद्वात्रिंशिका पत्र ३३-८० । भा. सं. । ले. सं. अनु. १५ मो सैको । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ८॥४३.। आदि अने अंतनो थोडो भाग नथी। क्र. १३१० (१) पाक्षिकसूत्र पत्र १-१७ । भा. प्रा.। अं. ३००। (२) यतिप्रतिक्रमणसूत्र पत्र १७-२२ । भा. प्रा.। (३) स्थविरावलि पत्र २२-२५ । भा. प्रा.। गा. ५० । (४) पिंडविशुद्धिप्रकरण पत्र २५-३० । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा.१०३। (५) दशवकालिकसूत्र पत्र ३०-६८ । भा. प्रा.। क. शय्यंभवसूरि। ग्रं. ७०० । (६) उपदेशमालाप्रकरण पत्र ६९-१०३। भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि। गा. ५४१ । ले. सं. अनु. १५ मो सैको । स्थि. जीर्ण । लं. प. ८४३। क्र. १३११ षट्स्थानकप्रकरण वृत्तिसह . अ. पत्र ९३ । भा. प्रा. सं. । मू.क. अभयदेवसरि। ७. क. जिनपाल । ले. सं. अनु. १४मो सेको। स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. ८x२॥ प्रति अत्यंत अस्तव्यस्त छ । पोथी ७७ मी क्र. १३१२ पंचवस्तुकप्रकरण पत्र १९१ । भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि। ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९४२॥॥ क्र. १३१३ किरणावली पत्र २२९ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि. मध्यम । लं. प. ९४३। क्र. १३१४ दमयंतीकथाचंपू त्र. अपूर्ण पत्र ९४। भा. सं.। क. त्रिविक्रमभट्ट । ले.सं.। अनु. १३मानुं उत्तरार्द्ध । स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. ९४३१.। पत्रांको भुसाइ गया छे। Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १३०१-१७] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पोथी ७८ मी ___ क्र. १३१५ वृहत्संग्रहणीप्रकरण अपूर्ण पत्र ७। भा. प्रा. । क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । ले. स. अनु. १४ मो सको। स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ८४३ ___ क्र. १३१६ (१) ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीरजिनपंचस्तथी पत्र १९२-१९४ । भा. प्रा.। गा. ३१।। (२) धूमावलि पत्र १९४-१९५। भा. प्रा.। गा. १४ । (३) अजितशांतिस्तोत्र पत्र १९६-२०२। भा. प्रा.। क. नन्दिषेण । गा. ४२॥ ले. सं. १३३४ । स्थि. जीर्ण। लं. प. ८४३ अन्त-ॐ श्रीवीरजिण प्रणम्यः अवंकउरग्राम द...पुत्तहरिया लिषितं संवत् १३३४ चैत्र वदि ५ रा श्रीलोहट राज्ये लिषितं । क्र. १३१७ (१) उपदेशमालाप्रकरण पत्र ३-३५। भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । गा. ५४१ । (२) श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण पत्र ३५-४२ । भा. प्रा.। क. हरिभद्रसूरि । गा. १२०। (३) आगमोद्धारगाथा-स्वप्नसप्ततिकाप्रकरण पत्र ४२-४६ । भा. प्रा.। गा.७१। (४) श्रावकवक्तव्यताप्रकरण-षट्स्थानकप्रकरण पत्र ४६-५३। भा. प्रा.। क. अभयदेवरि । गा. १०३ । (५) पंचलिंगीप्रकरण अपूर्ण पत्र ५३-५८ । भा. प्रा. । (६) द्वादशकुलक पत्र ६९-८६ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभसूरि । (७) प्रवचनसंदोह अपूर्ण पत्र ८६-१०३ । भा. प्रा.।। (८) नामेयस्तोत्र, शांतिनाथस्तोत्र, नेमिनाथस्तोत्र, पार्श्वनाथस्तोत्र, महावीरस्तोत्र पत्र १११-१८ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १३२ । (९) गणधरस्तव पत्र ११९-१२० । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. २१ । (१०) चैत्यवन्दनकुलक पत्र १२०-१२२ । भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि । गा. ३० । चैत्यवन्दनविधिकुलक पत्र १२२-१२४ । भा. प्रा.। गा. ३३ । (१२) श्रावकआवश्यकसूत्र पत्र १२४-१२७ । भा. प्रा.।। (१३) चच्चरीप्रकरण पत्र १२७-१३२ । भा. अपभ्रंश । क. जिनदत्तसूरि । गा. ४७ । (१४) उपदेशरसायन पत्र १३२-१३८ । भा. अपभ्रंश । क. जिनदत्तसूरि । गा. ८० । (१५) कालस्वरूपकुलक पत्र १३८-१४१ । भा. अपभ्रंश । क. जिनदत्तसूरि । गा.३१। (१६) गणधरसाधशतकप्रकरण पत्र १४१-१५० । भा. प्रा.। क. जिनदत्तरि । गा. १५०। (१७) संदेहदोलावलीप्रकरण पत्र १५०-१५९। भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि । गा. १५० । (१८) वन्दित्तुसूत्र पत्र १५९-१६३ । भा. प्रा. । गा. ५० । (१९) प्रश्नोत्तररत्नमालिका अपूर्ण पत्र १६४-१६५ । भा. सं. । क. विमलाचार्य । (२०) मधकारफल पत्र १७०मुं। भा. प्रा. । गा. २३। - Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ७९ (२१) अजितशांतिस्तव पत्र १७०-१७४ । भा. प्रा. । क. नंदिषेण। गा. ३९ । (२२) लघुअजितशांतिस्तोत्र पत्र १७७-१७८ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा.१७॥ (२३) स्नपनविधि पत्र १८२-१९३ । भा. सं.। (२४) कथानककोश पत्र १९३-१९५ । भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. ३०। (२५) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र १९५-१९६ । भा. प्रा. । गा. २८ । (२६) आतुरप्रत्याख्यान पत्र १९६-१९९ । भा. प्रा. । गा. १९ । (२७) भावनाप्रकरण पत्र १९९-२०१ । भा. प्रा.। गा. २९ । (२८) प्रव्रज्याविधानप्रकरण पत्र २०१-२०३ । भा. प्रा.। गा. ३०। ले. सं. अनु. १४ मो सैको । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८४३. । वचमा केटलांक पानां नथी । क्र. १३१८ कातंत्रसूत्रपाठ त्रू. अ. पत्र ४-१५ । भा. सं. । ले. सं. अनु. १५ मो सैको । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८४३. । वचमां पानां नथी। क्र. १३१९ ऋषिदत्ताचरित्र अपूर्ण भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १४ मो सैको । स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. ८४२॥ क्र. १३२० स्मरणस्तोत्रत्रिक पत्र २४२-२४६ । भा. प्रा. । ले. सं. अनु. १४ मो सैको । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ८x२॥ क्र. १३२१ उपदेशमालाप्रकरण अपूर्ण पत्र १०५-११६ । भा. प्रा. । क. धर्मदासगणि । ले.सं. अनु. १४ मो सैको। स्थि. अतिजीर्ण । लं. प. ८॥४२॥ क्र. १३२२ आवश्यकसूत्रनियुक्ति अपूर्ण पत्र २६ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामि । ले. सं अनु. १५ गो सैको । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ७॥४२॥ । प्रति पाणीमां भीजाएली छे । क्र. १३२३ योगशास्त्र नवतत्व जीवविचारप्रकरण आदिनां प्रकीर्णक पानां अपूर्ण चूटक। भा. सं. प्रा. ले. सं. १५१८ । स्थि . जीर्ण। लं. प. ६॥४२॥ पोथी ७९ मी क्र. १३२४ (१) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण पत्र ७३ । भा. प्रा. । क. चक्रेश्वरसूरि । ले. सं. १२४६ । (२) षड्शीतिप्रकरण चतुर्थकर्मग्रंथ टिप्पनकसह पत्र ७४-१०५ । भा. प्रा. । भू. क. जिनवल्लभगणि । टि. क. रामदेवगणि । ले. सं. १२४६ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८४२।। क्र. १३२५ मणिपतिराजर्षिचरित्र पत्र १०७ । भा. सं. । क. जंबूकवि । ले. सं. अनु. १३ मो सैको । स्थि. जीर्णप्राय । लं. प. ८x२॥. । प्रति उधेइए खाधेली छे। क्र. १३२६ (१) उपदेशमालाप्रकरण पत्र १-४२ । भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । गा. ५४१ । (२) पिंडविशुद्धिप्रकरण पत्र ४२-५०। भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा.१.३॥ (३) श्रावकवक्तव्यताप्रकरण-षट्स्थानकप्रकरण पत्र ५०-५८ । भा. प्रा.। क. जिनेश्वरसूरि। गा. १०३ । (४) पंचलिंगीप्रकरण पत्र ५८-६६। भा. प्रा.। क. जिनेश्वरसूरि । गा. १०२। (५) श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण पत्र ६६-७५ । क. हरिभद्रसूरि । गा. १२०। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १३१८-२६] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २८९ (६) आगमोद्धारगाथा-स्वप्नसप्ततिका पत्र ७५-८० । भा. प्रा.। गा. ७१। (७) जंबूद्वीपक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र ८०-८८ । भा. प्रा.। गा १०९। (८) संदेहदोलावलीप्रकरण पत्र ८८-१०१। भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि । गा. १५० । (९) गणधरसार्धशतकप्रकरण पत्र १०१-११२ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. १५०। (१०) पंचनमस्कारफलस्तव पत्र ११२-१२१ । भा. प्रा. । क. जिनचंद्रसूरि । गा. ११८ । (११) नाणाचित्तप्रकरण पत्र १२१-१२७ । भा. प्रा.। गा. ८१ । (१२) कथानककोश पत्र १२८-१३० । भा. प्रा. । क. जिनेश्वरसूरि । गा. ३० (१३) व्यवस्थाकुलक पत्र १३०-१३५। भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि। गा. ७५ । (१४) षष्टिशतप्रकरण पत्र १३५-१४७ । भा. प्रा. । क. नेमिचंद्र भंडारी । गा. १६१ । __ (१५) विवेकमंजरीप्रकरण पत्र १४७-१५८ । भा. प्रा. । क. आसड । गा. १४४। र. सं. १२४८ । अन्त विवेकमंजरीप्रकरणं समाप्तम् ॥छ। संवत् १३८५ वर्षे चैत्रमासे मुनिसिंहगणिना पुस्तिका लिखिताः श्रीआलापुरे ॥ (१६) प्रवचनसंदोहप्रकरण पत्र १५९-१८१। भा. प्रा. । (१७) बालावबोधप्रकरण पत्र १८१-१९२ । भा. अपभ्रंश । गा. ११६ । आदि पणमवि जिणवइ देउ गुरु अनु सरसइ सुमरेवि । धम्मुवएसु पयंपियइ सुणि अवहाणु करेवि ॥१॥ (१८) चतुर्विशतितीर्थकरनमस्कार पत्र १९२-१९७ । भा. अपभ्रंश । गा. २५ । आदि-देव तिहुयणपणयपयकमल । (१९) चतुर्विशतिजिननमस्कार पत्र १९७-२०२। भा. अपभ्रंश । गा. २५ । आदि पढमजिणवर जणमणाणंद सुरनाहसंथुयचलण भरहजणय, जय पढमसामिय संसारवणगणदवचत्तदोस अपवग्गगामिय!। लोयालोयपयासयर पयडियधम्माहम्म!। सुविहाणउं तुहं रिसहजिण! दुज्जयनिज्जियकम्म ॥१॥ अन्त-सुविहाणांकाश्चतुर्विशतिजिननमस्काराः॥लिखिताः श्रीआलापुरे आनन्दमूर्तिमुनिना ॥ (२०) श्रावकषडावश्यकसूत्र पत्र २०२-२१९ । भा. प्रा. सं. गू. । (२१) जयतिहुयणस्तोत्र पत्र २१९-२२४। भा. अपभ्रंश। क. अभयदेवरि । कडी. ३०। (२२) अजितशांतिजिनस्तोत्र पत्र २२४-२३० । भा. प्रा.। क्र. नंदिषेण । गा. ३९ । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ७९-८३ (२३) उल्लासिकमस्तोत्र-लघुअजितशांतिस्तोत्र पत्र २३०-२३२ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभगणि। गा. १७ ।। (२४) भयहरस्तोत्र पत्र २३२-२३४ । भा. प्रा. । क. मानतुंगसूरि। गा. २१ । (२५) स्मरणास्तोत्र पत्र २३४-२३६ । भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि । गा. २६ । (२६) गुरुपारतंत्र्यस्मरण पत्र २३६-२३८ । भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि। गा. २१ । (२७) सिग्घमवहरउपार्श्वजिनस्तोत्र पत्र २३८-२३९। भा.प्रा.। क. जिनवल्लभगणि। गा. १४ । (२८) श्रावकविधिप्रकरण पत्र २३९-२४१। भा. प्रा.। गा. २२। (२९) दानविधिकुलक पत्र २४१-२४३ । भा. प्रा. । गा. २५ । (३०) लघुनमस्कारफलस्तव पत्र २४३-२४५ । भा. प्रा. । गा. २३ । (३१) चैत्यवंदनविधिकुलक पत्र २४५-२४९ । भा. प्रा. । गा. ३५ । (३२) चैत्यवंदननियमकुलक पत्र २४९-२५१ । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि। गा. २८ । (३३) महर्षिकुलक पत्र २५१-२५४ । भा. प्रा.। गा. ३६ । प्रतिमां "पडिलेहणकुलकं समाप्त" एवं नाम लखेलुं छे पण ते खोटुं छे ।। (३४) महर्षिकुलक पत्र २५५-२५७ । भा. प्रा. । गा. २६ । (३५) गुर्वावलि पत्र २५७-२५८। भा. प्रा. । गा. १०। (३६) प्रवज्याविधानप्रकरण पत्र २५८-२६१ । भा. प्रा.। गा. ३४ । (३७) संजममंजरीप्रकरण पत्र २६१-२६३। भा. अपभ्रश । क. महेश्वरसूरि । गा. ३५। (३८) प्रश्नोत्तररत्नमाला पत्र २६३-२६६ । भा. सं. । क. विमलाचार्य । आर्या. २८॥ (३९) धर्मलक्षण पत्र २६६ -२६७ । भा. सं.। (४०) साधर्मिकवात्सल्य कुलक पत्र २६७-२६९ । भा. प्रा. । क. अभयदेवसूरि । गा. २६ । (४१) उपदेशमणिमालाकुलक पत्र २६९-२७० । भा. प्रा । क. जिनेश्वरसूरि। (४२) संवेगकुलक पत्र २७०-२७२ । भा. प्रा.। क. धनेश्वरसूरि । गा. १५ । (४३) चिन्ताकुलक पत्र २७२-२७३ । भा. प्रा. । गा. १३ ।। (४४) पुण्यलाभकुलक पत्र २७३-२७४ । भा. प्रा. । गा. १०।। (४५) इगुणतीसीभावना पत्र २७४-२७६ । भा. अपभ्रंश । गा. २९ । (४६) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र २७६-२७९ । भा. प्रा. । गा. २८ । (४७) आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक पत्र २७९-२८२ । भा. प्रा.। गा. २६ । (४८) द्वादशकुलक पत्र २८२-३०१ । भा. प्रा.। क. जिनवल्लभसूरि । गा. २३३ । ले. सं. १३८९ वर्ष पोष मासे ॥छ।। (४९) आदीश्वरस्तवन पत्र ४१२-४१३। भा. सं.। क. जिनचंद्रसूरि। का.३-२५ । (५०) भक्तामरस्तोत्र अपूर्ण पत्र ४१३-४१५ । भा. सं.। क. मानतुंगसूरि । (५१) युगादिदेवस्तोत्र पत्र ४१७-४२० । भा. अपभ्रंश। कडी ३० । ले. सं. १३ ८५-८९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८४२॥.। वचमा केटलांक पानां नथी। Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९१ क. १३२६-३० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पोथी ८० मी क्र. १३२७ ज्योतिषग्रंथो अपूर्ण तथा प्रकीर्णक ज्योतिषविषयक पानांनो संग्रह. पोथी ८१ मी क्र. १३२८ अनेक ग्रंथोनां अने स्तवन सज्झाय आदिनां प्रकीर्णक पानां. पोथी ८२ मी क्र. १३२९ अनेक ग्रंथोनां अने स्तवन सज्झाय आदिनां प्रकीर्णक पानां. पाथी ८३ मी क्र. १३३० अनेक ग्रंथोनां अने स्तवन सज्झाय आदिनां प्रकीर्णक पानां. Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अहम् ॥ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ वडो उपाश्रय जैन ज्ञानभंडार __ पोथी ८४ मी क्र. १३३१ गोमटसार कर्मकांड सटीक पत्र ६४। भा. प्रा. सं.। क. नेमिचंद्र । पं. १० । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०mx४ क्र. १३३२ तत्त्वसंग्रहचंद्रलघुटीका पत्र १५ । भा. सं.। क. शिवाचार्य । पं. १० । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १३३३ तत्त्वसंग्रहचंद्रलघुटीका पत्र १८ । भा. सं.। क. शिवाचार्य । पं. १० । स्थि. मध्यम। लं. प. १०॥४४॥ क्र. १३३४ न्यायग्रंथ पत्र २५ । भा. सं.। पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. १३३५ न्यायग्रंथ पत्र ६३ । भा. सं.। पं. १२। स्थि . जीर्ण। लं. प. १०x४॥ क्र. १३३६ न्यायग्रंथ पत्र २२ । भा. सं.। पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १३३७ न्यायग्रंथ पत्र १९ । भा. सं । पं. १२। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०॥॥४४ क्र. १३३८ द्वादशांशफल आदि ज्योतिष पत्र १२। भा. सं.। पं. १६ । स्थि. जीर्ण। लं. प. १०||४४ क्र. १३३९ योगिनीदशाफल ज्योतिष पत्र ७ । भा. सं. । पं. १५ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०॥४४। क्र. १३४० लोकतत्त्वनिर्णय सस्तबक पत्र २१। भा. सं. गू. । मू. क. हरिभद्रसूरि। पं. १६ । स्थि . जीर्ण । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १३४१ प्रकीर्णकविचारसंग्रह पत्र २२ । भा. सं. । पं. १९ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०॥४४॥ . क्र. १३४२ स्याद्वादरत्नाकर सावचूरिक त्रिपाठ पत्र १९ । भा. सं.। पं. १९ । स्थि. जीर्णप्राय। लं. प. १०४४। क्र. १३४३ न्यायसिद्धांतमंजरी प्रत्यक्षपरिच्छेद पत्र ९। भा. सं. । पं. ८ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०x४ क्र. १३४४ वृत्तरत्नाकर सटीक पंचपाठ अपूर्ण पत्र ८। भा. सं. । मू. क. भट्ट केदार । पं. २६ । स्थि . जीर्ण । ल. प. १०४४ क्र. १३४५ कल्पसूत्र सचित्र व. अ. पत्र २३-८८ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामि। पं. ७ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ११४४ पोथी ८५ मी क्र. १३४६ आचारांगसूत्र पत्र ७९ । भा. प्रा.। पं. २५५४ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १३४७ आचारांगसूत्र पत्र ६६। भा. प्रा.। ग्रं. २५५४ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ ___क्र. १३४८ आचारांगसूत्रनियुक्ति पत्र ११ । भा. प्रा. । ले. सं १५३३ । पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥x४ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १३३१-६३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २९३ क्र. १३४९ आचारांगसूत्रवृत्ति पत्र २०९ । भा. सं. । वृ. क. शीलांकाचार्य । ग्रं. १२००० । पं. १७ । ले. सं. १५३५ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४ क्र. १३५० आरांगसूत्रवृत्ति पत्र ३१६ | भा. सं. । वृ. क. शीलांकाचार्य । ग्रं. पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४ क्र. १३५१ सूत्रकृतांगसूत्र प्रथमश्रुतस्कंध पत्र ३२ । भा. प्राकृत पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ । । किनारी उंदरे करडेली छे । १२००० । क्र. १३५२ सूत्रकृतांगसूत्र पत्र ६० । भा. प्रा. । ले. सं. १५५८ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ॥ ४४ अन्त-सं. १५५८ वर्षे श्रीखरतरगच्छेश श्री जिनहंससूरिराज्ये श्रीधर्मरत्नाचार्यशिष्यश्री पुण्यवल्लभोपाध्याय समुद्यमेन मं. धणपतिपुत्र मं. गुणराजभार्यया कन्हाईसुश्राविकया पुत्ररत्न मं. जगपाल पौत्रलटकण उदयकर्ण प्रमुखपरिवार श्रीकया श्री एकादशांगीपुस्तकं लेखयांचक्रे ॥ श्रेयोऽस्तु ॥ क्र. १३५३ सूत्रकृतांगसूत्र पत्र ५० । भा. प्राकृत । ग्रं. २१०० । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. १३५४ सूत्रकृतांगसू पत्र ५७ । भा. प्राकृत । ग्रं. २१०० । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९||४ क्र. १३५५ सूत्रकृतांगसूत्रनिर्युक्ति । पत्र ५ । भा. प्रा. क. भद्रबाहुस्वामी । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १३५६ सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति पत्र १६९ । भा. सं. । वृ. क. शीलांकाचार्य । ग्रं. १३८४३ । पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥३ ॥ पोथी ८६ मी क्र. १३५७ सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति पत्र २६४ । भा. संस्कृत । टी. क. शीलांकाचार्य । ग्रं. १३८५३ । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ | लं. प. ९ || ४३ ॥ क्र. १३५८ सूत्रकृतांगसूत्र सस्तबक पत्र १८९ । भा. प्रा. गू. । ग्रं. १४०० । पं. १० । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४ क्र. १३५९ स्थानांगसूत्र अ. त्र पत्र ९३ - ११३ । भा. प्रा. । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ।। ४३ ॥ क्र. १३६० स्थानांगसूत्र पत्र ७७ । भा. प्रा. । ले. सं. १६५३ | नं. ४७५० । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥४३॥ अन्त - श्री १६५३ वर्षे युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरीश्वरेभ्यः श्रीस्थानांगसूत्रप्रतिर्विहारिता साउंसक्खागोत्रीय सा. श्रीचंदपुत्र सा. पदमसीकेन श्रीपुत्रपौत्रादियुतेन ज्ञानभक्तये श्रेयोस्तु | क्र. १३६१ स्थानांगसूत्र पत्र १०४ । भा. प्रा. । ले. सं. १६५९ । ग्रं. ३७०० । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥४४ क्र. १३६२ स्थानांगसूत्रवृत्ति पत्र २५५ । भा. सं. । टी. क. अभयदेवसूरि । र. सं. ११२० । ले. सं. १६७६ । ग्रं. १४५०० । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४ क्र. १३६३ स्थानांगसूत्रवृत्ति पत्र २१२ । भा. सं । टी. क. अभयदेवसूरि । र. सं. ११२० । अं. १४३५० । पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ८७-८९ अन्त- उल्लसल्लीलालयजालरत्नरश्मिविजितमेरो श्रीजेसलमेरौ लिखिता प्रतिः पं. मुष्येण कमलोदयेन ॥ आजानेयाब्जषष्ठद्विजसदृशसमे कर्मवाटयां दशम्यां वेषे मासे सुभासे विमलतरदिने मंजुपक्षे वलक्षे । स्थानव्याख्यानकल्पं स्वपरहितधिया लेखयामास साधुः । जीयादापुष्पदंतौ कनकगिरिरयं साधुभिर्वाच्यमानः ॥१॥२॥ पोथी ८७ मी क्र. १३६४ भगवतीसूत्रवृत्ति पत्र ३०३ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि । र. सं. ११२८ । ग्रं. १८६१६ । पं. १८ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४ क्र. १३६५ भगवतीसूत्रवृत्ति पत्र ४२५ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि। र.सं. ११२८ । ले. सं. १५७५ । ग्रं. १८६१६ । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९iixx३|| अन्तस्वस्ति ।। एकोपि श्रीकारः सुप्रापो नेह भाग्यहीनानां । तद्वययुक्ता ज्ञातिः कथं प्रशंसास्पदं न स्यात् ॥१॥ पुरत्नरत्नखानौ तस्यां ज्ञातौ प्रशस्तगुणजालः। श्रीआचवाटिकाभिधगोत्र मंत्रीश जालः ॥२॥ समभूत्तत्संताने धर्मात्मजमंत्रिराजशिवराजः। तज्जायाऽजनि वरणुनाम्नी तत्पुत्ररत्नयुगं ॥३॥ अभ्यदितभागधेय धणपतिहर्षाभिधं सुधीरम्यं । देवगुरुभक्तिभरिता चंपाई धणपतेर्दयिता ॥४॥ तत्कुक्षिशुक्तिमुक्ताफलोपमः सप्रभः सुवृत्तश्च । सर्वमहाजनमान्यः समस्तदीवाणलब्धयशाः ॥५॥ यः सरलात्मा सदयः सकलव्यवहारिमुकुटमणिसदृशः। मंत्रीश्वरगुणराजस्तज्जायाऽजान जने विदिता ॥६॥ सुश्राविका कन्हाई तपोनिधिः पठितधर्मशास्त्रसंभारा । सौराष्ट्रादिषु यात्रा घृतलंभनिकादिकृत्यकरी ।।७।। अतिजातो यजातः पत्तनतिलकं जयी धनी धन्यः । मंत्रीशः श्रीराजो राजति राजेव मात्रनुगः ॥८॥ समभूतां तत्तनयो लटकणमंत्री सहस्रकर्णश्च । विद्याधरः प्रपौत्रस्तस्यैवं परिकरः प्रचुरः ॥७॥ श्रीमति खरतरगच्छे श्रीमज्जिनहससूरिसुगुरूणां । आदेशात् कन्हाईनाम्नी श्रीदेवगुरुभक्ता ॥१०॥ एकादशांग्याः सूत्राणि वृत्तीश्च विशदाक्षराः । लेखयामास हर्षेण ग्रंथानन्याश्च कांश्चन ॥११॥ नंदतु शासनमेतत् प्रभावकाः शासनस्य नंदंतु । पुस्तकलेखकवाचकरक्षयितारोपि नंदंतु ।।१२॥ लेखितमिदं वा. धवलचंद्रगणिमिश्राणामादेशात् ५. गजसारगणिना सं. १५७५ वर्षे ।। क्र. १३६६ भगवतीसूत्र सस्तबक त्रयोदशशतकतृतीयोदेशपर्यंत पत्र ३९५ । भा. प्रा. गू. । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क. १३६७ स्थानांगसूत्रवृत्तिसह पत्र ३५३ । भा.प्रा. सं.। टी. क. अभयदेवमूरि । टी. र.सं. ११२० । ग्रं. उ. १८०००। पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १३६८ समवायांगसूत्र पत्र ८१ । भा. प्रा. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १३६९ भगवतीसूत्र पत्र ४०८। भा. प्रा.। ले. सं. १६७६ । ग्रं. १५७५० । पं. ९३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ अन्त संवत् १६७६ फाल्गुन सुदि २ शुक्रे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिपजहांगीरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदधारकश्रीमच्छीजिनसिंहसूरिपट्टपूर्वाचलचूलिकासहस्रकरावतारप्रतिष्ठितश्रीशत्रुजयाष्टमोद्धारसर्वातिशायिभट्टारकचक्रचक्रवर्तिश्रीजिनराजसूरिसूरिराजेभ्यो विहारित श्रीपंचमांगसूत्रं श्रीमदुपकेशज्ञातीयशंखवालगोत्रीय सा. कोचरान्वयोद्भवत्महेवावास्तव्य सा. गोराभार्या अलवेसर पु. श्रीराशभार्या मृगादे पु. सा. महिकाभार्या नाथीपुत्र वउधभार्या चतुरंगदे पुत्ररत्न सा. जयतमालेन भार्या राणीयुतेन वाच्यमानं च तत् शिष्यप्रशिष्य परंपराभिश्चिरं नंदतादाचंद्रार्कम् ॥छ॥ Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १३६४-१३८३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २९५ क्र. १३७० भगवतीसूत्रवृत्ति अपूर्ण पत्र १०३ । भा. सं. । टी. क. अभयदेवसूरि । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ||४४ क्र. १३७१ भगवतीसूत्रवृत्ति अपूर्ण पत्र ४९ । भा. सं. क. अभयदेवसूरि । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x३ ॥ ॥ पोथी ८८ मी क्र. १३७२ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १३२ । भा. प्रा. । ले. सं. १६५६ । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १३७३ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पत्र २२० । भा. प्रा. ग्रं. ५३७५ | पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १३७४ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १४५ । भा. प्रा. । ले. सं. १६६३ । ग्रं. ६००० । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ।। ४३ ।। क्र. १३७५ शाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १४५ । भा. प्रा. ग्रं. ५६५० | पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १४७६ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र १२३ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि । ११२० । ग्रं. ४२०० । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥॥४३॥ प्रथम पत्रमा आचार्यनुं चित्र छे । क्र. १३७७ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र १११ । ११२० । ले. सं. १६१६ | ग्रं. ४२०० । पं. १३ । स्थि. भन्त ग्रं. ५३७५ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि । श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ नंदरबार नगरे तपागच्छे श्री आणंदविमलसूरितत् शिष्यगणी श्रीभानुविमलप्रतिश्राविका सोनाइवाश्राविका कमलादे लिखापित कर्मक्षयनिमित्तं ॥ राज्ये मीरामबीरषश्याहा ॥ लषीतं कृष्णासुत गोपाल लषीतं ॥ शुभं भवतु || क्र. १३७८ शाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र ९९ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि । र. सं. ११२० । ग्रं. ३८०० । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥॥ पोथी ८९ मी क्र. १३७९ उपासकदशांगसूत्र पत्र २४ । भा. प्रा. ग्रं. ८१२ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ ॥ संवत् १६५२ सूरेतिमंदिरे लिखितेयं पं. जयनिधानगणिना शुक्र हरिणदशम्यां ॥ श्री ॥ छ ॥छ॥ क्र. १३८२ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र २३२ । भा. प्रा. । ले. सं. १५९१ । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९३ ।। | पत्र १ अने २८ मुं नथी । क्र. १३८३ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र ३६ । भा. प्रा. । ग्रं. १२५० । पं. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ र. सं. क्र. १३८० अंतकृद्दशांगसूत्र पत्र २४ । भा. प्रा. पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १३८१ अनुत्तरौपपातिकसूत्रवृत्ति पत्र ३ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि । ले. सं. १६५३ । ग्रं. १००। पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥३॥॥ अन्त र. सं. ग्रं. १२५० । १३ । स्थि. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ प्रोजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ९० क्र. १३८४ विपाकसूत्र सस्तबक पत्र ७२ । भा. प्रा. गू. । ग्रं. उभय. ५०००। पं. १७ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४४ क्र. १३८५ उववाइसूत्र पत्र २९ । भा. प्रा.। ले. सं. १६४९ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ । किनारी उंदरे खाधेली छे। अन्त संवत् १६७९ वर्षे कार्तिकमासे शुक्लपक्षे तृतीयातिथौ शनिवारे श्रीजावालदुर्गे लिखितं ॥श्री॥छ। क्र. १३८६ औपपातिकोपांगसूत्र सटीक त्रिपाठ अपूर्ण पत्र १५ । भा. प्रा. सं. । टी. क. अभयदेवसूरि । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १३८७ राजप्रश्नीयोपांगसूत्र पत्र ४४ । भा. प्रा. । ले. सं. १५९० । ग्रं. २०८९ । पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. ९x४ अन्त गयणनिहिबाणचंदे १५९० वरिसे बहुलम्मि पण्णरसितिहिए । रायपसेणीगंथं लिहियं डुणायि हरिसवसा ॥१॥ श्रेयोस्तु लेखकस्य ॥ क्र. १३८८ राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ९३। भा. सं. । ग्रं. ३७००। पं. १५ । टी. क. आचार्य मलयगिरि । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १३८९ राजप्रश्नीयोपांगसूत्र वृत्तिसह त्रिपाठ पत्र ३७-९८ । भा. प्रा. सं. । पं. १८ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ ___ क्र. १३९० जीवाभिगमोपांगसूत्र पत्र ८५। भा. प्रा.। पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १३९१ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र ८१ । भा. प्रा.। ले. सं. १६५१। पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४ अन्त–संवत् १६५१ वर्ष श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे श्रीपुण्यसागरमहोपाध्यायपुरंदराणां शिष्येण वाचकपद्मराजगणिना संशोधितमिदं श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रं ॥ वाच्यमानं चिरं नंदतु ॥ ___ क्र. १३९२ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र ९६ । भा. प्रा.। पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥किनारी उंदरे करडेली छे।। क्र. १३९३ जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र पत्र १३१ । भा. प्रा. । ग्रं. ४१५४ । पं. १३। स्थि. श्रेष्ठ । लं.प. ९॥४४ क्र. १३९४ सूर्यप्राप्तिउपांगसूत्र पत्र १०२ । भा. प्रा.। पं. १०। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ पोथी ९० मी क्र. १३९५ कल्पसूत्रकल्पलतावृत्ति पत्र १४० । भा. सं. । वृ. क. समयसुंदरोपाध्याय । र. सं. ९६८५ । ग्रं. ६३७८ । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १३९६ कल्पसूत्रकल्पमंजरीटीका पत्र १५७ । भा. सं.। टी. क. सहजकीत्ति । र.सं. १६८५ । ले. सं. १७७१ । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ अन्त-संवत् १७७१ वर्षे मिती कार्तिक शुदि ६ ने मंगलवारे श्रवणनक्षत्रे श्रीमरोटकोट्टमध्ये लिषिता ॥ शुभं भूयात् ॥ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १३८४-१४०८] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र २९७ क्र. १३९७ कल्पांतर्वाच्य अपूर्ण पत्र ३९ । भा. सं. । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १३९८ कल्पसूत्र भाषाटीकासह पत्र १३५ । भा. प्रा. गू. । ले. सं. १५८६ । पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ अन्त संवत् १५८६ वर्षे शाके १४५१ प्रवर्तमाने कृष्णपक्षे कार्तिकमासे कृ. नवम्यां तिथौ रवौ वारे पुण्यनक्षत्रे सिद्धिनाम्नयोगेने लिखित ॥ शुभं भवतुः ॥छ॥छ॥ श्रेयोऽत्रः ॥ श्रीभट्टारक श्री ६ श्रीसंडेरगच्छाधीशपूज्यभट्टारक श्रीयशोभद्रसूरिभिः संताने श्रीसालिसूरि श्रीसुमतिसूरि तत्पट्टे भट्टारकश्रीशांतिसूरि तत्पट्टे भट्टारक श्री ईश्वरिसूरि तत्पट्टे प्रभपुरंदरभट्टारकधीश्री५शालिसूरि तशिष्य वा. श्रीहर्षसागर तशिष्य मुनिगंगाकेन वाचनार्थ ॥शुभं भवतुः ॥मुनिमेया लिखितं ॥श्री०॥रिसासीग्राममध्ये लिखितं ॥ शुभं भूयात् ॥ क्र. १३९९ कल्पसूत्र सस्तबक पत्र १८२ । भा. प्रा. गू. । मू. क. भद्रबाहुस्वामी। ले. सं. १७८७। पं. १३ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४०० कल्पसूत्र सस्तबक पत्र १०४ । भा. प्रा. गू.। मू. क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. १७४० । पं. १४ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४०१ कल्पसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र ११० । भा. प्रा. गू.। भू.क. भद्रबाहुस्वामि । पं. ४ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ पोथी ९२ मी __ क्र. १४०२ सूत्रकृतांगसूत्र तथा सूत्रकृतांगनियुक्ति पत्र ५४ ।भा. प्रा. । नियु. क. भद्रबाहुस्वामि । पं. १५। ले. सं. १५६६ । स्थि . जीर्ण । लं. प. १०x४ अन्त श्रीवर्द्धमानजैनसंवत्सरस्य २०३६ वर्षे श्रीमत्पर्थि सं. १५६६ वर्षे फाल्गुनमासे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिविजयिराज्ये श्रीसागरचंद्राचार्यान्वये वा. सागरचंद्रगणीनां शिष्य वा. दयासागरगणीनामंतेवासि वा. ज्ञानमंदिरगणिनां शैक्षदेवतिलकगणेचिनार्थ श्रीसूत्रकृतांगस्य सुत्रं नियुक्तिलेखिते । क्र. १४०३ उपासकदशांगसूत्र पत्र १६ । भा. प्रा. । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ क्र.१४०४ उपासकदशांगसूत्र पत्र २५। भा. प्रा.। ले. सं. १७९८ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं.प. १०४४) क्र. १४०५ प्रश्नव्याकरणदांगसुत्र पत्र २० । भा. प्रा. । ले. सं. १६६१ । ग्रं. १२५० । पं. १७॥ स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ अन्त संवत् १५६१ वर्षे श्रावणशुद्धपंचम्यां तिथौ श्रीतिमिरीपुरे श्रीसागरचंद्रसूरिसंताने वा. दयासागरगणोंद्राणां शिष्य वा. ज्ञानमंदिरगणिवराणां विनेयो देवतिलकगणिः श्रीप्रश्नव्याकरणांगसूत्रमवाचि किचिदशोधि च शिष्यशाखायां वाच्यमानं चिरं नंदतु ॥ श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहससूरिविजयराज्ये ॥ मंगलमस्तु चतुर्विधश्रीसघाय क्र.१४०६ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रवृत्ति पत्र ८३ । भा. सं. । वृ. क. अभयदेवसूरि । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ क्र. १४०७ प्रश्नव्याकरण सस्तबक पत्र ८७। भा. प्रा. गू.। पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०1४४ क्र. १४०८ समवायांगसूत्र अपूर्ण पत्र ३६ । भा. प्रा.। पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥xei ३८ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ पीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ योगी ९३ क. १४०९ उपासकदशांगसूत्र सस्तबक पत्र ६४ । भा. प्रा. गू.। पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ . १४१० अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र पत्र ९ । भा. प्रा.। पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १४११ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र ५० । भा. प्रा. । ग्रं. १२५० । पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४४ क्र. १४१२ अनुयोगद्वारसूत्र पत्र ३९ । भा. प्रा. । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १४१३ अनुयोगद्वारसूत्र अपूर्ण पत्र २२ । भा. प्रा.। पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । ल.प.१०x४ क्र. १४१४ कल्पसूत्र सस्तवक पत्र ८३। भा. प्रा. गू.। पं. १४ । लं. प. १०४४ क्र. १४१५ कल्पांतर्वाच्य पत्र २४ । भा. सं.। पं. १५ स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ क्र. १४१६ कल्पांतर्वाच्य पत्र ४। भा. सं.। पं. १९ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क. १४१७ कल्पसत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र ५४ । भा. प्रा. गू.। पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ॥४३॥ क. १४१८ कल्पसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र ६६ । भा. प्रा. गू. । पं. ५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ __ क्र. १४१९ कल्पसूत्र सप्तमव्याख्यान पत्र १६ । भा. सं.। पं. २७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४२० कल्पसूत्र नवमव्याख्यान सस्तबक पत्र १७। भा. सं. ग.। पं.१५ स्थि. श्रष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४२१ कल्पसूत्र अष्टमनवमव्याख्यानबालावबोध पत्र ४४ । भा. गू.। ले. सं १७७६ । पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९।४३।। पोथी ९३ मी . १४२२ भाउजीतकल्प सटीक अपूर्ण पत्र २० । भा. प्रा. सं.। पं. २३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०x४ क्र. १४२३ कल्पसूत्रसंदेहविषौषधिटीका पत्र ३१। भा. सं.। क. जिनप्रभसूरि। ले.सं. १५७०। . २१६८। पं. १९। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४.1 प्रति पाणीथी भींजाएली छे।। अंत-वा. दयासागरगणीनां वि. वा. शानमंदिरगिणभिः शोधिता श्रीतिजाभापुरे १५७० वर्षे ॥ क. १४२४ चतःशरणप्रकीर्णक पत्र ३। भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणि। गा. ६३। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९४४ क्र. १४२५ चतुःशरणप्रकीर्णकादि पत्र २।। (१) चउसरणपयन्नो भा. प्रा.। क. वीरभद्र । गा. ६३ । घउक्कसाय गा. २। भा. अपभ्रंश । (३) संथारापोरिसी गा. २३ । भा. प्रा.। पं. १८। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. . ९॥४३॥ क्र. १४२६ चतुःशरण-आउरपञ्चक्खाण-भक्तपरिक्षा-संस्तारकप्रकीर्णक विषमपदविवरण पत्र १४ । भा. सं.। पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १४०९-४१] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. १४२७ चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तबक पत्र ७। भा. प्रा. गू.। मू. क. वीरभद्रगणि । ले. सं. १७२६ । म. गा. ६३ । पं. १३ । स्थि . मध्यम। लं. प. ९॥४४ क्र. १४२८ चतुःशरणप्रकीकर्णक बालावबोध पत्र १६ । भा. प्रा. गू. । बाला. क. पार्श्वचंद्रसूरि। पं. १५। बाला. र. सं. १५९७। ले. सं. १६९८ । स्थि. मध्यम। लं. प. १०x४. । _प्रति उंदरे करडेली छे। अन्त मुनिनदेषुचंद्राब्दे १५९७ व्यतीते विक्रमार्कतः। सुभासि फाल्गुने मासि त्रयोदश्यां रवेर्दिने ॥१॥ पवित्रमूलनक्षत्रे चतुःशरणवात्तिकं । गुरुश्रीसाधुरत्नानां साधुरत्नानुयायिनाम् ॥२॥ शिष्येण पार्श्वचंद्रेण रचितं हितहेतवे। शब्दशास्त्रानभिज्ञानां साध्वादीनां तदादरात् ॥३॥ वाच्यमानमिदं नंद्याद्यावत्तीथे जिनेशितुः। श्रीमतो बर्द्धमानस्य वर्द्धमानस्य सद्गुणैः ॥४॥ चतुर्भिः कुलकं ॥ शमस्तु ॥ संवत् १६९८ वर्षे हरषालिषितं ॥श्री॥ क्र. १४२९ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक पत्र ४। भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणि। गा. ६०। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९x४ क्र. १४३० संस्तारकप्रकीर्णक पत्र ४ । भा. प्रा.। मा. १२२ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४ क्र. १४३१ तीर्थोद्गालिप्रकीर्णक पत्र ३६ । भा. प्रा. । ले. सं. १५६२ । गा. १२२३ । ग्रं. १५६५। पं. १६ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १४३२ तीर्थोद्गालिप्रकीर्णक पत्र २२। भा. प्रा.। गा. १२२३ । ग्रं. १५६५। पं. १९ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४.। प्रति उंदरे करडेली छे। क. १४३३ आवश्यकसूत्रनियुक्ति पत्र १११। भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। पं. १३। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४३४ आवश्यकसूत्रनियुक्ति पत्र ५५ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। पं. १७॥ स्थि. जीर्ण। लं. प. १०४४ क्र. १४३५ आवश्यकसूत्रनियुक्ति पत्र ६३ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। ले. सं. १५३३ । पं. १५। स्थि. जीर्ण। लं. प. १०४३॥ क्र. १४३६ आवश्यकसूत्रनियुक्ति पत्र १०४ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४३॥ क्र. १४३७ आवश्यकसूत्रनियुक्ति पत्र ४९-९५ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। ले. सं. १५०३ । पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४ __क्र. १४३८ आवश्यकसूत्र सावरि पत्र ७१। भा. सं.। अव. क. ज्ञानसागरसूरि । पं. २२। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ क्र. १४३९ विशेषावश्यकमहाभाष्य पत्र ११७। भा. प्रा. । क. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण । हे. सं. १६७९ । गा. ३६२५। ग्रं. ४४१०। पं. १३। स्थि . मध्यम । लं. प. ९mxam प्रति उंदरे करडेली छे। __ क्र. १४४० ललितविस्तरावृत्ति पत्र २४ । भा. सं.। क. हरिभद्ररि । ले. सं.-१५११। अं. १२७० । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १४४१ श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र-वंदितुसूत्र अर्थदीपिकाटीकासह पत्र १४२। भा. प्रा. सं.। दी.क. रत्नशेखरसरि। र. सं. १४९६ । ग्रं. ४२६६। स्थि . श्रेष्ठ।पं. १७ लं. प.१.xn. Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ९४-९५ पोथी ९४ मी क्र. १४४२ पाक्षिकसूत्र पत्र ९। भा. प्रा.। पं. १३ । स्थि . मध्यम। लं. प. ९॥४३॥ क्र.१४४३ पाक्षिकसूत्र अपूर्ण पत्र १४-१७ । भा. प्रा.। पं. १०। स्थि . मध्यम । लं. प. sux३॥ क्र. १४४४ पाक्षिकसूत्र तथा दशवैकालिकसूत्र पत्र १०। भा. प्रा. । दश. क. शय्यंभवसूरि । पं. २२ । स्थि . जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १४४५ पाक्षिकसूत्र सटीक पत्र ८९ । भा. प्रा. सं. । टी. क. यशोदेवसूरि । र.सं. ११८० । अं. २२०७ । पं. १३ । स्थि . जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४४६ पाक्षिकसूत्र सावचूरि पंचपाठ पत्र ५। भा. प्रा. सं.। पं. २० । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १४४७ यतिप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति टिप्पनकसह पत्र १४ । भा. सं.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १४४८ पगामसज्झाय सस्तबक पत्र ६ । भा. प्रा. गू.। ले. सं. १६९४ । पं. १५ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥। __ क्र. १४४९ ओघनियुक्ति पत्र १४ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । ले. सं. १६५७ । पं. १४ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ अंत-संवत् १६५७ वर्ष श्रावणमासे पंचनीतिथौ शनीवासरे श्रीमुलताननगरे पं. रिणमल्लमुनिना लिपीकृता स्ववाचनाय ॥ कल्याणं वो भूयात् ॥ क्र. १४५० ओघनियुक्ति पत्र ५३ । भा. प्रा.। क. भदवास्वामी। गा. ११६० । पं. ११॥ ले. सं. १५९०। स्थि . मध्यम । लं. प. १०४४ अंत . संवत् १५९० वर्षे श्रीभाद्रवामासे शुक्लपर्वाधिराजे वा. श्रीमहिमलाभ गणिशिष्याणुश्रीखरतरगच्छे वा. दयानंदनगणिभिः श्रीओधनियुक्तिसूत्रं लिखाप्य प्रदत्तं संघाधिराजश्रीजजमलपुत्र सं. मानसिंहभार्या उभयकुलानंदकारणी सा. आसराजपुत्री संघवाणी आसाही जोग्यं ॥श्री॥ क्र. १४५१ ओघनियुक्ति पत्र ३२ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी। गा. ११६० । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४५२ ओधनियुक्तिवृत्ति पत्र ६९। भा. सं.। वृ. क. द्रोणाचार्य । ले. सं. १५१० । ग्रं. ७०००। पं. २१। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ अंत-संवत् १५१० वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचंद्रसूरिशाखायां वा. महिमराजगणि तशिष्य पं.दयासागरगणिना लिखिता श्रीपट्टने । क. १४५३ ओघनियुक्ति सटीक पत्र १२५ । भा. प्रा. से.। टी. क. द्रोणाचार्य । मू. क. भद्रबाहुस्वामी। ग्रं. ८३८५। ले. सं. १५१४ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ अंत संवत् १५१४ वष माघमासे शुक्लपक्षे १३ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचंद्रसूपि वा. महिमराजगणि तच्छिष्य वा. दयासागरगणिना समलेखि ग्रंथोऽयं श्रीमालज्ञातीय से. कारुपुत्र सं. ठाकुरसी सुसावकोत्तमेन लिखिता। लेखिता टीकेयं श्रीमंडपे वा.दयासागरगणिक्राणां लक्षप्रथान्त: । Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १४४२-१४७१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३०१ क्र. १४५४ साधुषडावश्यकसूत्र-स्मरणादिआवश्यकसूत्रसंग्रह पत्र ४६ । भा. प्रा. सं.। पं. १४ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४। क्र. १४५५ श्रावकषडावश्यकसूत्र पत्र ६। भा. प्रा. । पं. १४ । स्थि. जीर्ण। लं.प.९॥४३॥ क्र. १४५६ श्रावकआवश्यकसूत्र पत्र ६ । भा. प्रा.। पं. १३। स्थि. मध्यम । लं. प. ९mxx क्र. १४५७ श्रावकषडावश्यकसूत्र अपूर्ण पत्र २-१३ । भा. प्रा.। पं. ११। स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥.। प्रति उधईए खाधेली छे। क्र. १४५८ षडावश्यकसूत्र अपूर्ण पत्र ५-२१। भा. प्रा.। पं. ९। स्थि. मध्यम । लं. प. १.४४ __ क्र. १४५९ श्रावकआवश्यकसूत्र पत्र ४ । भा. प्रा.। ले. सं. १५३८ । पं. १६। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४६० षडावश्यकसूत्र सस्तबक पत्र ९। भा. प्रा. गू.। पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४ ___क्र. १४६१ श्रावकषडावश्यकसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र २-३० । भा. प्रा. गू. । पं. १२ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४। क्र. १४६२ श्रावकषडावश्यकसूत्र सस्तबक पत्र १५। भा. प्रा. गू.। पं. १६। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १४६३ आवश्यकसूत्रवालावबोध अपूर्ण पत्र २६-५१। भा. गू.। पं. १५ । लं. प. १०४४ क्र. १४६४ श्रावकप्राकृतअतिचार सस्तबक पत्र ४ । भा. प्रा. गू.। पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. ९x४i क्र. १४६५ श्रावकअतिचार पत्र २-५। भा. गू.। पं. १६। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९mx३॥ ___ क्र. १४६६ श्रावकअतिचार पत्र ३-७। भा. गू. । ले. सं. १८१०। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १४६७ दशवैकालिकसूत्र पत्र २९ । भा. प्रा. । क. शय्यंभवसूरि । ले. सं. १६५९। अं. ७००। पं. १२। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १४६८ दशवैकालिकसूत्र चारअध्ययनपर्यंत पत्र ५। भा. प्रा.। पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ ____ क्र. १४६९ दशवैकालिकसूत्रवृत्ति पत्र १२५ । भा. सं.। वृ. क. हरिभद्रसूरि। अं. ६८१० । पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४३॥ क्र. १४७० आवश्यकसूत्रलघुवृत्ति पत्र ५०। भा. सं.। क. सुमतिरि। ले. सं. १५१६ । ग्रं. २६००। पं. १७। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ अन्त-संवत् १५१६ वर्षे श्रीपट्टननगरे लेखिता श्रीदशवैकालिकवृत्तिः श्रीकीर्तिरत्नसूरिभिः । वाचिता तेषामेव शिष्येण श्रीधर्मेण श्रीराटहूदे ॥ पोथी ९५ मी क्र. १४७१ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ७६ । भा. प्रा.। पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४३॥ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ९५-९७ क. १४७२ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ३-४० । भा. प्रा. पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ। लं.प. ९॥४३॥ क्र. १४७३ उत्तराध्ययनसत्र पत्र ३६ । भा. प्रा.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४७४ उत्तराध्ययनसूत्र पत्र ५१। भा. प्रा.। पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । ले. प. ९४३॥ क. १४७५ उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति पत्र १७ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामी । ग्रं. ७०० । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र.१४७६ उत्तराध्ययनसत्र सुखबोधावृत्तिसह पत्र ३०४। भा. प्रा. सं.व.क. नेमिचंद्रसूरि । भू. पं. १४००। टी. ग्रं. १२००० । र. सं ११२९ । ले. सं. १६२४ । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ क्र. १४७७ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्तिसह पत्र २९५ । भा. प्रा. सं.। वृ. क. नेमिचंद्रसरि। पं. १४०००। र. सं. ११२९ । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ क्र. १४७८ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्तिसह पत्र २८१। भा.प्रा. सं.। वृ.क. नेमिचंद्रसूरि । र.सं. ११२९ । ले.सं. १५८६ । ग्रं. १४०००। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ अन्त-संवत् १५८६ समये पोष वदि १ प्रतिपदौ भोमवासरे। खाती श्रीसूत्रधार प्रत्यागदासात्मजेन पुरुषोत्तमेनालेखि॥ पोथी ९६ मी क्र. १४७९ उत्तराध्ययनसूत्रसुखबोधावृत्ति-नवम अध्ययन पर्यंत पत्र ८३। भा. स. । वृ.क. नेमिचंद्रसूरि। र. सं. ११२९ । पं. १९। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०x४ क्र. १४८० उत्तराध्ययनसत्र अवचूरिटिप्पणीसह पत्र ३३ । भा. सं. । अव. क. ज्ञानसागरसूरि । र.सं. १४४१ के. स. १४८६ । पं, २१। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥xx श्रीमसपागणनभोगणभास्करात श्रीदेवसुंदरयुगोत्तमपादुकानां । शिष्यर्जिनागमसुधांबुविलीनचित्तः श्रीज्ञानसागरगुरूत्तमनामधेयैः ॥१॥ भूवाद्धिमनु १४४१ मितेऽन्दे कृति उत्तराध्ययनगावचूर्णिरियम् । श्रीशान्याचार्यभुवस्सद्विवृतेः स्वपरहितकूतये ॥२॥ संवत् १४८६ वर्षे फाल्गुन वदि १० रवौ श्रीडूंगरपुरे राउल श्रीगइपालदेवराज्ये लिखिता लींबाकेन । क. १४८१ उत्तराध्ययनसूत्र प्रथमद्वितीयाध्ययन सस्तबक पत्र १३ । भा. प्रा. गू। पं. १९ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४८२ उत्तराध्ययनसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र १२९ । भा. प्रा. गू. । पं. ११। स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४ क्र. १४८३ उत्तराध्ययनसत्र दीपिकासह पत्र २४४ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. १६२८ । पं. १०७७.। पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३|| मन्त___ संवत् १६२८ वर्षे आषाढ सुदि प्रतिपत्तिथौ शनिवारे पुष्यनक्षत्रे श्रीमज्जेसलमेरौ। यादवान्वयमुकुटमणिराउलश्रीहरिराजक्जियिराज्ये। श्रीबृहत्खरतरगच्छे। श्रीजिनचंद्रसूरिसूरीशे विजयिनि श्रीमत्सागरचंद्रसूर्या Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १७२-२२] जैन ताडपत्रीय ग्रंथमंडार सूचीपत्र चार्य श्रीमहिम राजगणिबंधुराणां शिष्य वा. दयासागरगणिसिंधुराणां शिष्य ज्ञानमंदिरगणिधुरंधराणां प्रवर प्राथमकल्पिकानरूपगुणरत्नरोहणाद्रि श्रीश्रीदेवतिलकोपाध्यायपुरहतदंताबलानां विनेयामेयगुणश्रीविजयराजोपाध्यायदिग्गजानां पं. पद्ममंदिरमुनि पं. कनकसारमुनि पं. कर्मसारमुनि पं. मेहाजल चिरंजीवी रिणमल्ल पं. किसना प्रमुखसारपरिवारपरिवृत्तानां शेष्येण पं. कनकसारमुनिना श्रीमदुत्तराध्ययनसूत्रदीपिका लिलिखे ॥श्री॥ श्रेयसे स्तात् ॥ कल्याणमस्तु लेखकवाचकयोः ॥ श्रीरस्तु ॥ शुभमस्तु ॥ श्री॥ श्री॥श्री __ क्र. १४८४ उत्तराध्ययनसूत्र सावचूरि किंचिदपूर्ण पत्र २१८ । भा. प्रा. सं.। पं. १५। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥1.। पाणीथी भींजाएली तथा उधेइए खाधेली छे । क्र. १४८५ उत्तराध्ययनसूत्र सस्तबक पत्र १७४। भा. प्रा. गू. । पं. १६ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४८६ दशवकालिकसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र २५ । भा. प्रा. गू. । पं. १८ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४॥ पोथी ९७ मी क्र. १४८७ जीवविचार-नवतत्त्व-दंडकप्रकरण पत्र ७। भा. प्रा. । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १४८८ जीव विचारप्रकरण सावचूरिक त्रिपाठ पत्र ४। भा. प्रा. सं.। मू. क. शांतिसरि । पं. २४ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ । रिक्तलिपिचित्रमय। क्र. १४८९ नवतत्त्वप्रकरण पत्र २। भा. प्रा.। गा. ५४ । पं. १५ स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १४९० नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक पत्र ११ । भा. प्रा. गू.। ले. सं. १८५० । गा.६१ । पं. १९। स्थि श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र.१४९१ विचारषत्रिशिकाप्रश्नोत्तर पत्र ५। भा.सं.।क. जिनाब्धिसरि । र.सं. १७२४ । पं. २० । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९४३॥ अन्त श्रीमद्वेगडगच्छेशजैनचंद्रस्य सद्गुरोः। शिख्येण विहिता चैषा सूरिणा श्रीजिनाधिना ॥१॥ सिद्धसंयमसंख्याब्दे १७२४ स्थिरपद्रे मासि फाल्गुने । शुक्लपक्षे द्वितीयायां वासरे रोहिणीपती ॥२॥ ॥शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥ क्र. १४९२ जंबूद्वीपसंग्रहणीप्रकरण सटीक त्रिपाठ पत्र ९। भा. प्रा. सं.। मू.क. हरिभद्रसूरि । मू. गा. २९ । टी. क. प्रभानंदसूरि । र. सं.१३९० । पं. २२ । अं. ६६७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ नित्य श्रीहरिभद्रसूरिगुरवो जीयासुरत्यद्भुतज्ञानश्रीसमलंकृताः सुविशदाचारप्रभाभासुराः। येषां वाकप्रपया प्रसन्नतरया शास्त्रांबुसंपूर्णया भव्यस्येह न कस्य कस्य विदधे संतापलोपोऽवनौ ॥१॥ वृत्ते श्रीकृष्णगच्छे श्रवणपरिवृढः श्रीप्रभानंदसरिः क्षेत्रादेः संग्रहण्या अकृत समयगौसंवदती सदयः । एतां वृत्ति खनंदज्वलनशशिमिते विक्रमाब्वे चतुा भाद्रस्य श्यामलायामिह यदनुचितं तद् बुधाः शोधयंत ॥२॥ इति क्षेत्रसंग्रहणीवृत्तिः समाप्ता ॥मंगलानि भवंतु॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ९७ ___ क्र. १४९३ नवतत्वप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा.। गा. ४७ । पं. ११। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४९४ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी पत्र १४ । भा. प्रा. । क. श्रीचंद्रसूरि। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४३॥ क्र. १४९५ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी सटीक त्रिपाठ पत्र ३४ । भा. प्रा. सं.। मू.क. श्रीचंद्रसूरि । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ अंत-सं. १८४० मिते भाद्रपद वदी द्वादस्यां श्रीजेसलमेरुदुर्गे वा. अमृतधर्मगणिभिः पं. क्षमाकल्याणयुतैः पुस्तकमिदं ज्ञानभांडागारे स्थापितं ॥ क्र. १४९६ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी सस्तबक पत्र ४७ । भा.प्रा. गू. । मू.क. श्रीचंद्रसूरि। पं. १०॥ स्थि . जीर्ण। लं. प. ९॥x४ क्र. १४९७ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी पत्र ३१ । भा. प्रा. । क. श्रीचंद्रसूरि । ले.सं.१८४९ । पं. ६। स्थि . मध्यम। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १४९८ लघुक्षेत्रसमास पत्र १२ । भा. प्रा.। क. रत्नशेखरसूरि। ले. सं. १८५८ । गा. २६४ । पं. १३। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १४९९ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण यंत्रसह पत्र २० । भा. प्रा. क. रत्नशेखरसूरि । गा. २६३ । क्र. १५०० जंबूद्वीपक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा. । गा. १०९। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १५०१ जंबूद्वीपक्षेत्रसमासप्रकरण सस्तबक पत्र १३ । भा. प्रा. गू। ले. सं. १७८३ । गा. १५४ । पं. १४ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ ____ क्र. १५०२ कर्मविपाककर्मग्रंथ प्राचीन वृत्तिसह पत्र १५। भा. प्रा. सं.। वृ. क. परमानंदसूरि । ग्रं. ९२२ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १५०३ प्राचीन कर्मस्तव बंधस्वामित्वकर्मग्रंथवृत्ति पत्र २५ । भा. सं. । पं. १७ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४१.! किनारी उंदरे करडेली छे। (१) कर्मस्तबवृत्ति पत्र १-१६ । भा. सं. । ग्रं. १०९० । (२) बंधस्वामित्वकर्मग्रंथवृत्ति पत्र २५ । क्र. १५०४ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ पत्र ६ । भा. प्रा. । क. जिनवालभगणि । गा. ९२ । पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५०५ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण-प्राचीनषडशीतिचतुर्थकर्मग्रंथ सटीक पत्र ३९ । भा. प्रा. सं. । भू. क. जिनवल्लभगणि । टी. क. मलयगिरि। पं. १७। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. SIXX क्र. १५०६ कर्मग्रंथषटक पत्र २० । भा. प्रा.। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ (१) कर्मग्रंथ १ थी ४ पत्र १-१७ । क. देवेन्द्रसूरि । (२) सत्तरिनामा षष्ठकर्मग्रंथ पत्र १७-२० । क्र. १५०७ कर्मग्रंथ प्रथम द्वितीय तृतीय पत्र ४ । भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि। पं. १३ । स्थि . जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १४९३-१५२५] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३०५ क्र. १५०८ कर्मग्रंथ प्रथम द्वितीय तृतीय सस्तबक पत्र २१ । भा. प्रा. गू. । मू. क. देवेन्द्रसूरि। पं. १८ । स्थि . जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥ __क्र. १५०९ कर्मविपाककर्मग्रंथ पत्र ५। भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि। गा. ६२ । पं. ११ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५१० कर्मविपाककर्मग्रंथवालाधबोध पत्र ३२ । भा. प्रा. गू.। पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥x४. । पाणीथी भींजाएली छे। क्र. १५११ द्वितीयतृतीयकर्मग्रंथ पत्र ४। भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि । पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र.१५१२ सप्ततिका षष्ठकर्मग्रंथ पत्र ३। भा. प्रा.। पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५१३ सप्ततिका षष्टकर्मग्रंथ सटीक पत्र ३४-६१। भा.प्रा. सं.। टी. क. मलयगिरि। पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥xx क्र. १५१४ कर्मग्रंथपञ्चक पत्र ९ । भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि। पं. १५ । स्थि. मध्यम। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५१५ कर्मप्रकृतिप्रकरण पत्र १७ । भा. प्रा.। क. शिवशर्मसूरि। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १५१६ कर्मप्रकृतिवृत्ति पत्र १२२। भा. सं. । वृ. क. मलयगिरि। पं. १७। स्थि. अतिजीर्ण। लं. प. १०x४ क्र. १५१७ कर्मप्रकृतिप्रकरण वृत्तिसह पत्र २०७। भा. प्रा. सं.। मू. क. शिवशर्मसूरि । ७. क. मलयगिरि। ग्रं. ८०००। पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ पोथी ९८ मी क्र. १५१८ सार्धशतकप्रकरण (सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण) सटीक पत्र ९४ । भा. प्रा. सं. । म. क. जिनवल्लभगणि। पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १५१९ लोकनालिकाद्वात्रिंशिका पत्र २। भा. प्रा.। गा. ३२ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १५२० लोकनालिकाद्वात्रिंशिका प्रकरण बालावबोध सह पंचपाठ पत्र २ । भा. प्रा. गू. । पं. १६ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५२१ क्षुल्लकभवावलिप्रकरण सावचूरिक पंचपाठ पत्र १। भा. प्रा. सं. । पं. १९ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५२२ प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणीप्रकरण पत्र । भा. प्रा.। क. अभयदेवसूरि। पं. स्थि . श्रेष्ठ । लं प. ९॥४३॥ क्र. १५२३ प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणीप्रकरण पत्र ७ । भा. प्रा.। क. अभयदेवसरि। पं. ११। स्थि . मध्यम। लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. १५२४ प्रज्ञापनातृतीयपदसंग्रहणीप्रकरण अवचूरि पत्र १४ । भा. सं.। अव. क. कुलमंडनगणि। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९४४ क्र. १५२५ प्रज्ञापनातृतीयसंग्रहणीप्रकरण सावरि त्रिपाठ पत्र । भा प्रा. सं.। Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • ३०६ ३०६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ९७-९८ मू. क. अभयदेवसूरि । अव. क. कुलमंडनगणि । ले. सं. १६५५ । पं. २३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १५२६ देघवंदनादिभाष्यत्रय पत्र ११। भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि। पं. ९। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥ __ क्र. १५२७ प्रत्याख्यानभाष्य वंदनकभाष्य पत्र ५। भा. प्रा.। क. देवेन्द्रसूरि। पं. ११॥ स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥.। उंदरे किनारी करडेली छे। ___क्र. १५२८ सम्यक्त्वस्तवपंचविंशतिकाप्रकरण पत्र २ । भा.प्रा.। गा. २५। पं. ९। स्थि. जीर्ण। लं. प. ८॥४३॥ क्र. १५२९ गुणस्थानक्रमारोहप्रकरण पत्र ८। भा. सं.। क. देवेन्द्रसूरि। पं. १३। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३|| क्र. १५३० तत्त्वार्थाधिगमसूत्र पत्र ५। भा. सं.। क. उमास्वातिवाचक। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १५३१ तत्त्वार्थसूत्र श्रुतसागरीटीकासह अपूर्ण पत्र ५१। भा. सं. । मू. क. उमास्वातिवाचक। पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९x४ क्र. १५३२ समयसारनाटक सटीक त्रिपाठ पत्र ? । भा. सं. । ले. सं. १७४३ । मू. क. अमृतचंद्राचार्य। टी. क. शुभचंद्राचार्य। पं. १८ स्थि. श्रेष्ठ । अंत संवदीशाक्षिवेदर्षिचंद्रमिते १७४३ वर्षे आषाढस्य सितेतरे पक्षे नवम्यामर्यमदिने। श्रीमबृहत्खरतरगणे भट्टारकश्रीजिनभद्रसूरिशाखायां वा. श्रीसमयहषगणेः शिष्य पं. धर्मचंद्रस्तच्छिंष्य पं. रत्नसमुद्रेण लिखितेयं वृत्तिः। शिष्यजैवातृकमुनिसत्यशीलादिविलोकनाय पठनार्थ वा ॥ श्रीअर्जुनपुरवरे ॥ शुभं भूयात् ॥ श्रीयं दद्यात् लेखकपाठकयोः ॥ श्रीः॥ __ क्र. १५३३ षट्स्थानकप्रकरण पंचलिंगीप्रकरण पत्र ५। भा. प्रा. । पंच. क. जिनेश्वरसूरि । षट. गा. १०३ । पंच. गा. १०२। पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५३४ षटस्थानकप्रकरण वृत्तिसह पत्र २५। भा. प्रा. सं. । टी. क. जिनपाल। ले. सं. १५१४ । पं. १७। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९॥४४ अंत-संवत् १५१४ वर्षे माघ मासे १३ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचंद्रसूरि शिष्य वा. महिमराजगणि तच्छिष्य वा. दयासागरगणिना समलेखि ग्रंथोऽयं । क्र. १५३५ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ५२ । भा. प्रा. । क. नेमिचंद्रसूरि । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५३६ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ९१। भा. प्रा.क. नेमिचंद्रसूरि । भा. प्रा.। ले. सं. १५८५। गा. १६१४ । पं. ११। स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ अन्त___संवत् १५८५ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरीश्वरपट्टोदयशैलचूलिकासहस्रकरावतारभट्टारकप्रभुश्रीश्रीश्री. जिनमाणिक्यसूरिसार्वभौमविजयिराज्ये भ. हेमापुत्रिकामृगावतीसुश्राविकापठनार्थ लिखिता स्वाध्यायपुस्तिका वा. आनंदनंदनगणिभिः ॥ शुभं भवतु ।। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कं. १५२६-५२ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र शोधित च श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः। संवत् १५८९ वर्षे श्रीजेसलमेरौ भाद्रवा वदी २ दिने रवीवारे ॥ श्रीरस्तु ॥ क्र. १५३७ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ८१। भा. प्रा. । क. नेमिचंद्रसूरि । ले. सं. १६६१ । पं. १२। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ __क्र. १५३८ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ६१। भा. प्रा. । क. नेमिचंद्रसूरि। ले. सं. १५२९ । पं. १३ । स्थि , जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५३९ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ८९। भा. प्रा. । क. नेमिचंद्रसूरि । पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५४० प्रवचनसारोद्धारप्रकरण अपूर्ण पत्र ३० । भा. प्रा.। क. नेमिचंद्रसूरि। पं. ११। स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥.। किनारी खाधेली छ। ___क्र. १५४१ प्रवचनसारोद्धारप्रकरणवृत्ति पत्र २४२ । भा. सं.। वृ. क. सिद्धसेनसूरि। - ग्रं. १८००। पं. १९। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४४.। पत्र १९९ थी २४२ सुधी जीर्ण छ। पोथी ९९ मी क्र. १५४२ प्रवचनसारोद्धारविषमपदपर्याय पत्र ११-५१। भा. सं. । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४३.। पाणीथी भीजाएली छे। क्र. १५४३ प्रवचनसारोद्धारबीजक पत्र ३ । भा. सं । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५४४ प्रवचनसारोद्धारबीजक पत्र ६। भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५४५ सत्तरिसयठाणप्रकरण पत्र १५ । भा. प्रा.। ले. सं. १७८१ । गा. १७० । पं. ११। स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४४.। पाणीथी भीजाएली छे। ___ क्र. १५४६ एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र ३। भा. प्रा.। क. सिद्धसेनसूरि। पं. १२। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९॥॥४३॥ ___ क्र १५४७ एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र ४। भा. प्रा.। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ ___ क १५४८ एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र ६। भा. प्रा. । क. सिद्धसेनसूरि । पं. ७ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ . १५४९ एकविंशतिस्थानप्रकरण पत्र २। भा. प्रा.। क. सिद्धसेनसूरि । पं. १६ । स्थि. जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५५० एकविंशतिस्थानप्रकरण सस्तबक पत्र १५। भा. प्रा. गू. । ले. सं. १८२२ । पं. १५। स्थि . जीर्ण। लं. प. ९॥४४॥ क्र. १५५१ अष्टकप्रकरण सटीक पत्र ८२ । भा. सं. । मू. क. हरिभद्रसूरि । टी. क. अभयदेवसूरि । ग्रं. ३३७० । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र.१५५२ षोडशकप्रकरण टिप्पणीसह पत्र ६ । भा.सं.। क. हरिभद्रसूरि । ले.सं. १५५५ । पं. १५ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४३॥ अन्त सं० १५५५ वर्षे वैशाख सुद तृतीया दिने शनी रोहिण्यां वा० दयासागरगणिवराणां शिष्य वा० ज्ञानमंदिरगणोंद्राणां विनेयदेवतिलकेनाऽलेखि श्रीयोधपुरे ॥ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ क्र. १५५३ षोडशकप्रकरणवृत्ति पत्र ३० । ग्रं. १५०० । पं. १७ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ [ पोथी ९९-१०० भा. सं. । क. यशोभद्रसूरि । ले. सं. १६६४ । क्र. १५५४ ज्ञानमंजरीज्योतिष पत्र १६ । भा. सं. । ले. सं. १८१० । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ क्र. १५५५ योगशास्त्र प्रथमप्रकाश पत्र ३ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. १७०८ । ग्रं. ५६ । पं. १२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ८॥४४ क्र. १५५६ योगशास्त्रप्रथमप्रकाश पत्र ३ । भा. सं. । ११ । स्थि. श्रेष्ठ | लं. प. ९ ॥ ४४ क. हेमचंद्राचार्य | ग्रं. ५६ । पं. क्र. १५५७ योगशास्त्र आद्यप्रकाशचतुष्टय पत्र १४ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १५५८ योगशास्त्र बालावबोधसह पत्र ११० । भा. सं. गू. । मू. क. हेमचन्द्राचार्य | बा. क. सोमसुंदरसूरि । ले. सं. १५०२ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४।। अंत्य पत्रमां चतुर्विध संघनुं चित्र छे । अन्त श्री तपागच्छाधिराजश्रीदेव सुंदर सूरिपदालंकार श्री सोमसुंदरसूरिपादैर्विरचितश्विरं नंदतु ॥ इति भद्रं ॥ शुभं भवतु मंगलमस्तु | ऊकेशज्ञातीय सा. हर्षाति भार्या हेमादि सुतायाः सा. हरसिंग पत्न्या सा. रूपाई श्राविकायाः योग्यः श्रीयोगशास्त्रबालावबोधः । संवत् १५०२ वर्षे श्रावण सुदि १२ भूमे लिखितं ॥ मंत्रि सांगा लिखितं ॥ छ ॥ श्री ॥ पं. १४ । क्र. १५५९ संघपट्टकप्रकरण पत्र ३ । भा. सं । पं. १४ । स्थि. जीर्णे । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १५६० संघपट्टकप्रकरण सावचूरिक पत्र १४ । भा. सं. सू. क. जिनवल्लभरि । अव. क. साधुकीर्तिगणि । र. सं. १६१९ । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १५६१ संदेहदोलावलीप्रकरण पत्र ९ । भा. प्रा. क. जिनदत्तसूरि । ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ गा. १५० । पं. क्र. १५६२ संदेहदोलावलीप्रकरण पत्र ८ | भा. प्रा. क. जिनदत्तसूरि । गा. १५० । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ||४३|| क्र. १५६३ संदेहदोलावलीप्रकरण पत्र ९ । भा. प्रा. । ले. सं. १६१६ । ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ।। ४३ ।। ले. सं. १६७५ । क्र. १५६४ संदेहदोलावलीप्रकरण वृत्तिसह पत्र ६८ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनदत्तसूरि । वृ. क. जिनेश्वरसूरि । नं. ४७५० । र. सं. १३२० | पं. १७ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९ ।। ४३ ।। अन्त गा. १५० । पं. श्रीमद्विक्रमवप्रे महाराजाधिराजमहाराजा श्रीराजसिंहविजयराज्ये लिखितं विद्वन्नृसिंहावेनर्षिणा ॥ क्र. १५६५ एषणाशतक पत्र ४ । भा. गू. । क. पार्श्वचंद्रसूरि । गा. १०४ । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । कं. प. ९॥४३॥ क्र. १५६६ द्वादशकुलक टिप्पणीसह पत्र ६ । भा. प्रा. मू. क. जिनवल्लभसूरि । ग्रं. ३०० । पं. १८ । स्थि जीर्ण । लं. प. १०x४ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५५३-८१ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३०९ क्र. १५६७ द्वादशकुलक विवरणसह पत्र ७५ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनवल्लभसूरि । टी.क. जिनपाल । र. सं. १२९३ । पं. १५ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४ क्र. १५६८ षष्टिशतप्रकरण पत्र ८ । भा. प्रा. क. भंडारी नेमिचंद्र । गा. १६१ । पं. ११ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १५६९ षष्टिशतप्रकरण बालावबोधसह पत्र ४४ । भा. प्रा. गू. । मू. क. भंडारी नेमिचंद्र । बाला. क. सोमसुंदरसूरि । र. सं. १४९६ । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०x४ क्र. १५७० षष्टिशतप्रकरण बालावबोधसह पत्र २-४४ । भा. प्रा. गू. । मू. क. भंडारी नेमिचंद्र | बा. क. सोमसुंदरसूरि । र. सं. १४९६ । ग्रं. ११२५ । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १५७१ सम्यक्त्वसप्ततिकाप्रकरण पत्र ६ । भा. प्रा. । गा. ७० । पं. ९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १५७२ दर्शनसप्ततिका वृत्तिसह अपूर्ण पत्र १९१ । भा. प्रा. सं. । जीर्ण । लं. प. ९ ।। ४३ ।।। पं. १३ । पोथी १०० मी क्र. १५७३ ऋषिमंडलप्रकरण पत्र १० । भा. प्रा. क. धर्मघोषसूरिं । गा. २३३ । पं. १२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४३ ।। अन्त स्थि संवत् १८३८ वा. अमृतव गणित पं. क्षनाकल्याणयुतेन इदं भांडागारे युक्तम् । क्र. १५७४ ऋषिमंडलप्रकरण पत्र ११ । भा. प्रा. । क. धर्मघोषसूरि । गा. स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ वि. क. आसड । क्र. १५७५ विवेकमंजरीप्रकरण जीवविचारप्रकरण पत्र ९ । भा. प्रा. र. सं. १२४८। जी. क. शांतिसूरि । वि. गा. १४४ | पं. १२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र १५७६ उपदेशमालाप्रकरण अपूर्ण पत्र ६-१४। मा. प्रा. । क. धर्मदासगणि । गा ५४४ । पं. १५ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९३ ॥ क्र. १५७७ उपदेशमालाप्रकरण पत्र २६ । भा. प्रा. क. धर्मदासगणि । गा. ५४४ । पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ क्र. १५७८ उपदेशमालाप्रकरण अपूर्ण पत्र १०- २५ | भा. प्रा. | क. धर्मदासगणि । गा. ५४४ । पं. १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ॥४३॥ क्र. १५७९ उपदेशमालाप्रकरण पत्र ३-१८। भा. प्रा. क. धर्मदासगणि । गा. २३३ । पं. १२ । १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. १५८० उपदेशमालाप्रकरण पत्र २ - १५ । भा. प्रा. क. धर्मदासगणि । गा. ५४४ । पं. १६ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ ५४४ । पं. क्र. १५८१ उपदेशमालाप्रकरण बालावबोधसह पत्र ४३ । भा. प्रा. गू. । मू. क. धर्मदासगणि । बा. क. विमलकीर्त्ति । बा. र. सं. १६६९ । ले. सं. १६८० । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १०० अन्त संवत् १६८० वर्षे भाद्रपदविशददशम्यां। श्रीमद्वीरमपुरे ॥ श्रीसाधुकीलुपाध्यायानां शिष्य वा. श्रीमहिमसुंदरगणीन्द्राणां वि. ज्ञानमे रुभिरलखि निःशेषविशेषविदांवरा साध्वी मानसिद्धिगणिनीशिष्या पद्मसिद्धिगणिनी तच्छिष्या साध्वी पुण्यसिद्धिगणिनी पठनकृते । कृतिनां श्रेयोस्तु श्रीश्रेयांसजिनेशप्रसत्त्या ॥छ॥ __क्र. १५८२ उपदेशमालाप्रकरण बालावबोधसह अपूर्ण पत्र ६४-११५ । भा. प्रा. गू. । ग्रं. ५०००। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५.३ उपदेशमाला बालावबोध अपूर्ण पत्र ४-४७ । भा. गू. । पं. १५। स्थि. जीर्ण। लं. प. ९x४ क्र. १५८४ पुष्पमालाप्रकरण पत्र २४ । भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचंद्राचार्य । गा. ५०५ । पं. ११। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५८५ पुष्पमालाप्रकरण अपूर्ण. पत्र २४ । भा. प्रा.। क. मलधारी हेमचंद्राचार्य । गा. ५०५। पं. ११। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४.। पत्र ७ थी १२ नथी।। क्र. १५८६ पुष्पमालाप्रकरण पत्र ६-२७ । भा. प्रा. । क. मलधारी हेमचंद्रसूरि । पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ क्र. १५८७ अध्यात्मकल्पद्रुम सटीक त्रिपाठ पत्र ६२ । भा. सं. । मू. क. मुनिसुंदरसूरि । ग्रं. २४५९ । टी. क. वाचक रत्नचंद्र । टी. र. सं. १६७२ । ले. सं. १६७४ । पं. १७। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥xx अंत-संवत् १६७४ वर्ष अश्विनमासि शुक्लदशम्यां। श्रीसूरितबंदिरे उपाध्यायधी रत्नचंद्रगणिभिविरचिता श्रीप्रद्युम्नचरित्र । श्रीसम्यक्त्वसप्ततिकाबालावबोध श्रीसम्यक्त्वरत्नप्रकाशाभ्यां भ्रातृभ्यां । श्री कल्याण मंदिरस्तव १। श्रीभक्तामरस्तव २। श्रीदेवाप्रभोस्तव ३। श्रीमन्धर्मस्तव ४। श्रीऋषभवीरस्तव ५। श्रीकृारसकोष ६। श्रीनैषधमहाकाव्य। श्रीरघुवंशमहाकाव्यानां वृत्तिभगिनीभिः। सह रममाणा चिरं जयतु । अध्यात्मकल्पलतानाम्नी वृत्तिः ॥ श्रीविजयदेवसूरीणां आदेशात् ॥ क्र. १५८८ रत्नसंचय सस्तबक अपूर्ण पत्र १८-४० । भा. प्रा. गू. । पं. ७ । स्थि. मध्यम । लं. प ९॥xx क्र. १५८९ पूजाप्रकरण पत्र ३। भा. प्रा.। गा. ५०। पं. ११। स्थि. जीणे। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५९० संबोधसप्ततिकाप्रकरण पत्र ४। भा. प्रा.। क. रत्नशेखर। पं. १२ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५९१ संबोधसप्ततिकाप्रकरण पत्र ३ । भा. प्रा. । क. रत्नशेखर । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १५९२ संबोधसप्ततिकाप्रकरण पत्र ३। भा. प्रा.। क. रत्नशेखर । पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १५९३ संबोधसप्ततिकाप्रकरण सस्तबक पत्र ३३ । भा. प्रा. गू. । मू. क. रत्नशेखर । स्त.क. विमलबोध । र. सं. १७३३ । पं. १३। स्थि . श्रेष्ठ । ले. सं १७७९ । लं. प. ९॥४३॥ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १५८२-१६१० जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३११ क्र. १५९४ उपदेशरत्नकोश सावचूरिक त्रिपाठ पत्र ३ । भा. प्रा. सं.। पं. १७ । ले. सं. १७४९ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९||॥४३॥ क्र. १५९५ उपदेशरत्नकोश सस्तबक पत्र ३। भा.प्रा. गू.। पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९||॥४४ क्र. १५९६ सिंदूरप्रकर पत्र ७ । भा. सं.। क. सोमप्रभाचार्य। का. १००। पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५९७ सिंदूरप्रकर सटीक पत्र २३ । भा. सं.। मू. क. सोमप्रभाचार्य । टी.क. हर्षकीर्तिसूरि। ले. सं. १८७६ । पं. १६ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४३॥ क्र. १५९८ सिंदूरप्रकर अवचूरि किंचिदपूर्ण पत्र ११। भा. सं.। पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १५९९ (१) आदिनाथदेशनोद्धार पत्र १-४। भा. प्रा.। गा. ८८। (२) आत्मभावनास्तव पत्र ४-७ । भा. सं. । क. पार्श्वनाग । ग्रं. ७६ । पं. १२। स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६०० (१) भववैराग्यशतक पत्र १-५। भा. प्रा.। गा. १०३।। (२) जिनस्तुति पत्र ५ मुं। का. ४। भा. प्रा.। ले. सं. १६१७ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६०१ भववैराग्यशतक सस्तबक पत्र ११ । भा. प्रा. गू. । पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. ९x४। क्र. १६०२ गौतमपृच्छा बालावबोधसह पत्र ४० । भा. प्रा. गू. । पं. १५ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४४ क्र. १६०३ गुणस्थानकप्रकरण वृत्तिसह पत्र ३१। भा. सं. । क. रत्नशेखरसूरि स्वोपज्ञ । पं. १५ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४४। क्र. १६०४ दानादिकुलकबालावबोध अपूर्ण पत्र ५३ । भा. गू. । पं. १४ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १६०५ श्रावकदिनकृत्यप्रकरण पत्र १६ । भा. प्रा.। पं. ११ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. १०४३॥ क्र. १६०६ गौतमकुलक सस्तबक पत्र २ । भा. प्रा. गू.। मू. गा. २०। पं. १४ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६०७ गौतमकुलक सस्तबक पत्र ३ । भा. प्रा. गू. । भू. गा. २० । पं. १२। स्थि. मध्यम। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६०८ गौतमपृच्छा पत्र २। भा. प्रा.। गा. ६४। पं. १३। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६०९ ईरियापथिकीकुलक सस्तबक पत्र २ । भा. प्रा. गू. । पं. १२। स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६१० प्रश्नोत्तररत्नमाला सस्तबक पत्र २। भा. सं. गू. । मू. क. विमलाचार्य । पं. १३। स्थि . जीर्ण। लं. प. ९॥४३॥ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १०१ क्र. १६११ सिद्धमातृकाप्रकरण पत्र २-५। भा. सं.। पं. १७। स्थि. मध्यम। लं. प. ९x४। क्र. १६१२ षष्टिशतप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा. । क. नेमिचंद्र भंडारी। गा. १६२। पं. १६ । स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ पोथी १०१ मी क्र. १६१३ वीतरागस्तोत्र पत्र ८। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १६१४ वीतरागस्तोत्र पत्र ४। भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । पं. १८। स्थि. श्रेष्ठ । लं.प. ९॥४४ क्र. १६१५ वीतरागस्तोत्र सावचूरि पत्र ६। भा. सं.। मू. क. हेमचंद्राचार्य । पं. १९ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ ___ क्र. १६१६ भावारिवारणस्तोत्र पत्र ३ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । का. ३० । पं. १२ । स्थि . जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६१७ भावारिवारणस्तोत्र सटीक पत्र ८ । भा. प्रा. सं. । भू.क. जिनवल्लभसूरि । टी. क. जयसागरसूरि । पं. १५। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र.१६१८ उल्लासिक्कमस्मरण सस्तबक नमिऊणस्तोत्र सस्तबक पत्र ७ । उ. क. जिनवल्लभसूरि । भा. प्रा. गू. । पं. १२ । स्थि . श्रेष्ठ। लं. प. १०४४ क्र. १६१९ दरियरयसमीरस्तोत्र पत्र ४। भा. प्रा. । क. जिनबल्लभसूरि। पं. ७। स्थि. श्रेष्ठ। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६२० दुरियरयसमीरस्तोत्र वालावबोधसह अपूर्ण पत्र । भा. प्रा. गू. । पं. १२ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९।४३॥ क्र. १६२१ दुरियरयसमीरस्तोत्र सावचूरिक पंचपाठ पत्र ४ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनवल्लभसूरि । ले. सं. १६२४ । पं. १९ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ अन्त संवत् १६२४ वर्षे श्रीबृहत्खरतरगच्छे। श्रीजिनचंद्रसूरिराज्ये । श्रीअलकापुऱ्या श्रीदयाकलशगणि. वाचनाचार्य श्रीअमरमाणिक्यगणि तत्शिष्य पं. कनकसोमेन स्ववाचनार्थ श्रीमहावीरचरित्रं श्रीमदभयदेवसुरिशिष्यपुंगव श्रीजिनवल्लभसूरिभिः कृतं लिखितं । श्रेयसेस्तु । कल्याणमस्तु ॥श्री। क्र. १६२२ अजितशांतिस्तवावचूरि पत्र ८। भा. सं. । ले. सं. १५९१। पं. १५ । स्थि श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ अंत इति श्रीअजितशांतिस्तवावचूरिः । लिपिकृता वा. सहजकीर्तिगणिना संवत् १५९१ वर्षे नागपुरवरे ॥ ___क्र. १६२३ अजितशांतिस्तव सावचूरिक पंचपाठ पत्र ८। भा. प्रा. सं.। मू. क. नंदिषेण । ले. सं. १६००। ग्रं. ४१७ । पं. १८। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९x४ क्र. १६२४ अजितशांतिस्तोत्र सस्तबक पत्र ७ । भा. प्रा. गू. । मू. क. नंदिषेण । पं. १२। स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १६११-३६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३१३ ३१३ क्र. १६२५ सप्तस्मरण पत्र २० । भा. प्रा. सं. । ले. सं. १७२६ । पं. ९ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ (१) नवकार पत्र १ । भा. प्रा. । उपसग्गहरं पत्र १ । भा. प्रा. । क. भद्रबाहुस्वामी । गा. ५ । (३) संतिकरं पत्र १-२ । भा. प्रा.। क. मुनिसुंदरसूरि । गा. १३ । (४) नमिऊण पत्र २-५ । भा. प्रा. । गा. २४ । (५) अजितशांति पत्र ५-११। भा. प्रा. क. नंदिषेण । गा. ४० । (६) भक्तामर पत्र ११-१६ । भा. स. । क. मानतुंगसूरि । गा. ४४ । (७) बृहत्शांति पत्र १६-१९ । भा. सं. । क. वादिवेताल शांतिसूरि । (८) लघुशांति पत्र १९-२० । भा. सं.। क. मानदेवसूरि । गा. १७ । क. १६२६ सप्तस्मरण पत्र १० । भा. प्रा. स. । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. । ९॥॥४४॥ (१) अजितशांति पत्र १-४ । भा. प्रा. । क. नंदिषेण । गा. ४० । (२) लघुअजितशांति पत्र ४-६ । भा. प्रा. । क. जिनवल्लभगणि । गा. १७ । (३) नमिऊण पत्र ६-७ । भा. प्रा. । गा. २४ । (४) तं जयउ स्मरण पत्र ७-८। भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. २६। (५) मयरहिय स्तोत्र पत्र ८-१० । भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. २१ । (६) सिग्घमवहरउविग्धं स्तोत्र पत्र १० भा. प्रा. । क. जिनदत्तसूरि । गा. १४ । क्र. १६२७ भक्तामरस्तोत्र पत्र ३ । भा. सं. । क. मानतुंगसूरि । ले. सं. १७५५ । का. ४८ । पं. १२ । स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६२८ भक्तामरस्तोत्र बालावबोध पत्र १२ । भा. गू. । पं. ११ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९४३॥ ___ क्र. १६२९ कल्याणमंदिरस्तोत्र पत्र २ । भा. सं. । क. सिद्धसेन दिवाकर। का. ४४ । पं.१३ । स्थि . जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥1 क्र. १६३० कल्याणमंदिरस्तोत्र पत्र ३ । भा. सं. । क. सिद्धसेन दिवाकर। पं. १६ । स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६३१ कल्याणमंदिरस्तोत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र ८ । भा. स. गू. । मू. क. सिद्धसेन दिवाकर । पं. १० । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४३॥ क्र. १६३२ लघुशांतिस्तव पत्र २ । भा. सं. । क. मानदेवसूरि। गा. १७। पं. ८ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९mx३॥ __क्र. १६३३ जयतिहुयणस्तोत्र सस्तबक पत्र ६ । भा. अपभ्रंश. गू.। मू. क. अभयदेवसूरि । मू. गा. ३० । पं. १० । स्थि. मध्यम । लं. प. ९mx३॥ क्र. १६३४ कलिकुंडपार्श्वनाथस्तोत्र धरणोरगेन्द्रस्तोत्र पत्र २। भा. स. । ग्रं. ३९ । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९४३॥ . क्र. १६३५ विज्ञप्तिद्वात्रिंशिका पत्र २। भा. सं. । ग्रं. ३३ । पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. । ९॥४३॥ क्र. १६३६ परमानंदस्तोत्र तथा मूर्खशतक पत्र १ । भा. सं. । ग्रं. २८ । पं. १८ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जेसलमेरु दुर्गस्थ [पोथी १०१-२ क्र. १६३७ ऋषिमंडलस्तोत्र पत्र २ । भा. सं. । पं. १५ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १६३८ चतुर्विंशतिजिनस्तव तथा सद्भक्त्या देवलोके स्तोत्र का. २८ । च. क. देवविजयगणि । पं. १३ । स्थि. नध्यम । लं. प. ९ ॥३॥ ३१४ पत्र २ । भा. सं. । क्र. १६३९ बप्पभट्टिस्तुतिचतुर्विंशतिका सटीक पंचपाठ पत्र ५ । भा. सं. । मू. क. बप्पभट्टिसूरि । का. ९६ । पं. २२ । स्थि. श्रेष्ठ लं. प. ९ ॥ ॥४४ क्र. १६४० शोभनस्तुति पत्र ८ । भा. सं. । क. शोभनमुनि । ले. सं. १८७६ । पं, १२ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १६४१ स्तोत्रसंग्रह पत्र ६ । भा. सं. । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥४४ क्र. १६४२ जिनस्तोत्ररत्नकोश पत्र ५ । भा. सं. । क. मुनिसुंदरसूरि । मध्यम । लं. प. १०x४ । पाणीथी भींजाएल छे । क्र. १६४३ नवकारमाहात्म्य अपूर्ण पत्र ४-८ । भा. सं. । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥॥४४॥ क्र. १६४४ जिनकुशलसूरिक वित्वाष्टक पत्र १ । भा. सं. । क. मुनिमेरूपाध्याय । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १६४५ भवानीसहस्रनामस्तोत्र पत्र ९ । भा. सं । पं. १२ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ।। ४४ क्र. १६४६ त्रिपुरास्तोत्र - लघुस्तव पत्र २ । भा. सं. । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ पं. १७ । स्थि. क्र. १६४७ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्रमहाकाव्य दशमपर्व - महावीचरित्र पत्र २०८ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. १६५७ । पं. ११। स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ।। ४४ अन्त संवत् १६५७ वर्षे भाद्रपद वदी ७ वार गुरु लख्तं व्यास लहूजी || शुभं भवतु ॥ क्र. १६४८ एकविंशतिस्थानकप्रकरण सस्तबक पत्र ५ । भा. प्रा. गू. । ले. सं. १७०१ । मू. क. सिद्धसेनसूरि । पं. १६ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९ ।। ४४ क्र. १६४९ शांतिनाथचरित्र गद्य टक पत्र ११-४६ अने १९६मुं । भा. सं. । क. भावचंद्रसूरि । लै. सं. १६५६ । ग्रं. ६९०० । पं. १३ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ॥४४ क्र. १६५० त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण घटक-अपूर्ण पत्र ६४ - १०१ । भा. सं.। पं. ११ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १६५१ जंबूस्वामिचरित्र पत्र १८ । भा. प्रा. क. पद्मसुंदर । पं. १५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ।। ४४ । क्र. १६५२ जंबूस्वामिचरित्रगद्य पत्र ११ । भा. सं. । पं. १६ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १६५३ अंबडचरित्र गद्य पत्र ३१ । भा. सं. । क. अमरसुंदर । ले. सं. १८५७ । पं.१५ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९ ||२४| क्र. १६५४ धर्मदत्तकथानक गद्य पत्र ७ । भा. सं. । ले. सं. १६६८ । पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क. सकल हर्ष । ले. सं. १७२० । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १६३७ - १६६९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३१५ क्र. १६५५ ज्ञानपंचमीकथा पत्र ३ । भा. सं. । क. कनककुशल । र. सं. १६५५ । ले. सं. १८५९ । पं. १७ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९४४ क्र. १६५६ पौषदशमीकथा गद्य पत्र ३ । भा. सं. । पं. १६ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥४३॥ प्रति पाणीथी भींजाएली छे । क्र. १६५७ होलिकाकथा पद्य पत्र ३ । भा. सं. । पं. १३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४३॥ ॥ प्रति पाणीथी भींजाएली छे । क्र. १६५८ चातुर्मासिकव्याख्यान पत्र ६ । भा. सं. । क. समयसुंदर । र. सं. १६६५ । पं.१३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९१४३ ॥ क्र. १६५९ सम्यक्त्वकौमुदीकथा गद्य पत्र ३९ । भा. सं. । पं. १५ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४३॥ । प्रति पाणीथी भींजाएली छे । क्र. १६६० चातुर्मासिक व्याख्यान पत्र ४ । भा. सं । पं. १९ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९॥३ ॥ * १६६१ सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा पत्र लं. प. ९॥ ४३ ॥ १२- ४४ । भा. सं. । पं. ११ । स्थि. जीर्ण 1 पोथी १०२ मी क्र. १६६२ उत्तराध्ययनसूत्र सस्तबक पत्र १६८ । भा. प्रा. गू. । मू. ले. सं. १८२८ । ट. ले. सं. १८३३ । ग्रं. ९००० । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४| क्र. १६६३ भक्तामर स्तोत्र वार्त्तिकसह पत्र २८ । भा. सं. गू. । भू. क. मानतुंगसूरि । वा. क. मेरु सुंदरोपाध्याय । पं. ११ । ले. सं. १६४२ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९ ॥ ४४ क्र. १६६४ उपदेशरत्नाकर पत्र । भा. सं. क. मुनिसुंदरसूरि । पं. १५ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १६६५ सुरसुंदरीकथा टिप्पनकसह पत्र ८१ । भा. प्रा. । क. धनेश्वसूरि । र. सं. १०१५। ले. सं. १५०३ । ग्रं. ५०००। पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०१४४ अन्त संवत् १५०३ वर्षे पोषमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कुजे देवकुलपाटके महाराजाधिराजप्रतापाक्रांतसकलदिक्चक्रवालराजन्यराणश्री कुंभकर्णविजयराज्ये श्रीखरतरगच्छालंकारभूत षट्त्रिंशद्गुणोपेत महामहनीयतम श्रीमज्जिनभद्रसूरीश्वरैः सुरसुंदरीकथापुस्तकमिदं लेखयांचक्रे ॥ लिखितं च विप्रपंचाननेन ॥ क्र. १६६६ मलयसुंदरीचरित्र पत्र ३ - ४३ । भा. सं. । क. जयतिलकसूरि । ग्रं. २४०६ । पं. १६ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४ । प्रति उधईए खाली छे । क्र. १६६७ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र दशमपर्व महावीरचरित्र पत्र ८३ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य पं. १७ । स्थि. जीर्ण । लं. प. १०४४ क्र. १६६८ श्रीपालचरित्र पत्र २७ । भा. प्रा. । क. रत्नशेखरसूरि । र. सं. १४२८ । ले. सं. १६७४। पं. १९ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४४ क्र. १६६९ श्रीपालचरित्र पत्र ३८ | भा. प्रा. क. रत्नशेखरसूरि । र. सं. १४२८ । पं. १३ ॥ स्थि. मध्यम । लं. पू. १०x४ Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १०२-४ क्र. १६७० वरांगचरित्र पत्र ३८। भा. सं.। क. वर्द्धमानभट्टारकदेव । ग्रं. १३८३ । पं. १४ । स्थि . मध्यम। लं. प. १०x४. अन्तस्वस्ति श्रीमूलसंघे भुवि विदितगणे श्रीवलात्कारसंज्ञे श्रीभारत्यादिगच्छे सकलगुणनिधिर्वर्द्धमानाभिधानः । आसीद्भट्टारकोऽसौ सुचरितमकरोच्छीवरांगस्य राज्ञो भव्यश्रेयांसि तन्वद् भुवि चरितमिदं वर्त्ततामार्कतारं ॥ प्रमाणमस्य काव्यस्य श्लोका ज्ञेया विशारदैः । अनुष्टुप्संख्यया सर्वे गुणेभाग्नींदुसम्मिताः १३८३॥ ॥इति श्रीपरवादिदंतिपंचाननश्रीवर्द्धमानभट्टारकदेवविरचिते वरांगचरिते वरांगसर्वार्थः ॥ क्र. १६७१ आचारांगसूत्र पत्र ३९ । भा. प्रा.। क. सुधर्मास्वामी। ग्रं. २५५४ । पं. १८। स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १६७२ चैत्यवंदनभाष्य सस्तबक पत्र ४ । भा. प्रा. गू. । गा. ६२। पं. १५। स्थि. लं. प. १०४४ क्र. १६७३ क्षुल्लकभवावलिकाप्रकरणसावचूणि पंचपाठ पत्र १ । भा. प्रा. सं. । अव क. धर्मशेखरगणि । ले. सं. १७८५ । गा. २५ । पं. २३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४। अन्त सं. १७८५ चैत्रादि सितदशम्यां श्रीमयूरसीमिन ग्रामेऽलीलिखत श्रीखरतरवेगडगणाधीश भट्टारकश्री जिनउदयसूरिविजयराज्ये शिष्य पं. कनककीर्तिकेन अभ्यर्थनया लिखापिता श्रेयसे भूयात् क्र. १६७४ पाक्षिकसूत्र तथा अतिचार पत्र २-१७ । भा. प्रा. गू.। पं. ११। स्थि. श्रेष्ठ। . लं. प. १०४३॥ क्र. १६७५ श्रीचंद्रीयासंग्रणी सस्तबक अपूर्ण पत्र २-३८ । भा. प्रा. गू.। पं. १७ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४.। गाथा १३० सुधी टबो छ । क्र. १६७६ प्राचीनकर्मस्तवकर्मग्रंथवृत्ति पत्र २-१५। भा. सं. । क. गोविंदगणि । ग्रं. १४९९ । पं. १९ । लं. प. १०x४ क्र. १६७७ उपदेशमालाप्रकरण टिप्पणीसह पत्र २६ । भा. प्रा.। मू. क. धर्मदासगणि । पं. १२। स्थि. जीर्ण। ल. प. १०x४ क्र. १६७८ संघपट्टकप्रकरण वृत्तिसह पत्र ४८। भा. सं.। मू.क. जिनदत्तसूरि। ग्रं. ३६..। टी. क. जिनपतिसूरि । ले. स. १५६४ । पं. १९ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ अन्त श्रीवर्द्धमानजिनसं. २०३४वर्षे विक्रमसंवत् १५६४वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्रीसागरचंद्राचार्यान्वये वा.महिमराजगणीनां शिष्य वा. दयासागरगणीनां वि. वा.ज्ञानमंदिरगणीनां समीपे शि. देवतिलकेन वाचिता किंचिच्छोधिता च श्रीजंगलदेशे श्रीबीकानयरे श्रीलूणकर्णराज्ये ॥ ____ क्र. १६७९ दर्शनसप्ततिकाप्रकरण वृत्तिसह पत्र ११६ । भा. प्रा. स. । टी. क.सोमतिल काचार्य। टी. र.सं. १४२२ । ले. सं. १५०१। ग्रं. ८७०७ । पं. १७ ! स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १६८० लघुक्षेत्रसमासप्रकरण पत्र (१)। भा. प्रा. । क. रत्नशेखरसूरि । ले. सं. १८६० । गा. २६५ । पं. १४ । स्थि. मध्यम । लं. प. ९x४ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १६७०-९३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र __ क्र. १६८१ श्रीचंद्रीयासंग्रहणो पत्र ६ । भा. प्रा. । क. श्रीचंद्रसूरि । पं. १५। स्थि. मध्यम । लं प. ९॥४४ . क्र. १६८२ जीवविचार नवतत्त्वप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा.। जी. गा. ५० । न. गा. ५१। जी. क. शांतिसूरि । पं. १४ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९॥४४ क्र. १६८३ नवतत्त्वप्रकरण सावचूरिक पत्र ८। भा. प्रा. सं.। पं. १५। स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४। __ क्र. १६८४ गीत सज्झायादि पत्र ७। भा. गू.। पं. २० । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४ पाथी १०३ मी क्र. १६८५ पर्युषणाष्टाहिकाव्याख्यान पत्र १५ । भा. सं.। क. क्षमाकल्याण । र.सं. १८६० । ले. सं. १८८२ । पं. १५। स्थि . श्रेष्ठ । लं प. ९॥४४॥ क्र. १६८६ आत्मप्रवोध बोजकसह पत्र १२४ । भा. सं.। क. जिनलाभसूरि। र. सं. १८३३ । पं. १३ । स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. ९||४४। क्र. १६८७ वर्धमानदेशना गद्य पत्र १७९। भा. सं.। क. राजकीर्ति । ले. सं. १८६५। पं. ११। स्थि . मध्यम । लं. ए. ९॥४४॥ क्र. १६८८ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी अपूर्ण पत्र ७१। भा.प्रा.। पं. ४ । स्थि. श्रेष्ठ। लं.प. ९x४| क्र. १६८९ समरादित्यचरित्र संस्कृतछायासह पत्र ३०१ । भा. प्रा. सं। मू. क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. १००००। पं. ११। स्थि . मध्यम । लं. प. ९॥४४ क्र. १६९० सप्तव्यसनकथानक पद्य अपूर्ण पत्र ५२। भा. सं. । क. सोमकीर्ति । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ पोथी १०४ मी क्र. १६९१ प्रज्ञापनोपांगसूत्रटीका पत्र ३६-३५२ । भा. सं.। टी. क. मलयगिरि आचार्य । ले. सं. १७८२ । ग्रं. १६०००। स्थि. जीर्ण । पं. १६। लं. प. ९॥४४॥.। पाणीथी भीजाएली छ। क्र. १६९२ पाक्षिकसूत्र पत्र ८। भा. प्रा.। स्थि. मध्यम। पं. ११ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १६९३ स्मरणस्तोत्रादि सार्थ कल्प सह पत्र २१। भा. प्रा. सं. गू.। ले. सं.१८२९ । स्थि. मध्यम । पं. १६। लं. प. ९x४। (१) जांगुलीमहाविद्याकल्प पत्र १। भा. सं.। (२) सर्वरोगहरस्तोत्र पत्र २। भा. सं.। (३) ज्वालामालिनीमंत्र पत्र २। भा. सं.। (४) उवसग्गहरंस्तोत्र पत्र २-३ । भा. प्रा.। (५) सप्ततिशतजिनस्तोत्र पत्र ३-४ । भा. प्रा. । (६) भयहरस्तोत्र पत्र ४-७ । भा. प्रा.। (७) अजितशांतिस्तोत्र पत्र ७-१४ । भा. प्रा. । (८) बृहत्शांतिस्तोत्र पत्र १४-१५ । Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १०४-५ (९) लघुशांतिस्तोत्र पत्र १५-१७॥ (१०) संतिकरं पत्र १७-१९। (११) भरवपद्मावतीकल्प पत्र १९-२० । (१२) अवकहडाचक पत्र २१ । क्र. १६९४ रत्नाकरपच्चीसी सस्तबक पत्र ३। भा. सं. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १५॥ लं. प. ९॥४४॥ क्र. १६९५ अजितशांतिस्तव पत्र ३। भा. प्रा.। क. नंदिषेण। गा. ४०। स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. ९x४। क्र. १६९६ भक्तामरस्तोत्र पत्र ९। भा. सं.। क. मानतुंगसूरि। का. ४४ । स्थि. जीर्ण । पं. ४ । लं. प. ९॥४४.। किनारी उंदरे करडेली छे। क्र. १६९७ षोडशकप्रकरणटीका पत्र ३७ । भा. सं.। टी. क. यशोभद्रसूरि। ले.सं. १८१७ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. ९॥४४ क्र. १६९८ योगशास्त्रटीका पत्र ४८ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञटीका। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९x४॥.। क्र. १६९९ दशवकालिकसूत्र सस्तबक पत्र ४८ । भा. प्रा गू। मू. क. शय्यंभवसूरि । ग्रं. ४५००। स्थि . मध्यम। पं. २३ । लं. प. ९४४ क्र. १७०० सप्तस्मरण अपूर्ण पत्र ८ । भा. प्रा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. १४४॥ क्र. १७०१ शीलोपदेशमालाप्रकरण पत्र ६ । भा. प्रा.। क. जयकीर्तिमूरि। गा. ११७॥ स्थि . जीर्ण । पं. १३। लं. प. ९।४४। क्र. १७०२ भावारिवारणस्तोत्रादिवृत्ति पत्र १५। भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. ८४४| क्र. १७०३ अष्टाह्निकाव्याख्यान अपूर्ण पत्र २१ । भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. १०। लं. प. ८॥४४ क्र. १७०४ ज्योतिषाम्नाय पत्र १। भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १२ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७०५ कल्पसूत्र अपूर्ण पत्र ९९ । भा. प्रा. । स्थि. मध्यम । पं. ७। लं. प. ९४४ क्र. १७०६ श्रावकषडावश्यकसूत्र पत्र १६ । भा.प्रा. स. । स्थि. मध्यम। पं. १३। लं. प. ९x४/ क्र. १७०७ दशवैकालिकसूत्र पत्र २८। भा. प्रा.। क. शय्यंभवसूरि। ले. सं. १६०६। स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. ८॥४४ क्र. १७०८ भक्तामरस्तोत्र वृत्तिसह पत्र ५९। भा. सं.। मू.क. मानतुंगसूरि। वृ. क. गुणाकरसूरि । र. सं. १४२६ । ले. सं. १८५९ । ग्रं. १५७२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. ९४३|| क्र. १७०९ भावारिवारणस्तोत्र तथा दुरियरयसमीरस्तोत्र पत्र ४ । भा. सं. प्रा.। क. जिनवल्लभसूरि। पं. १२ स्थि . श्रेष्ठ । लं. प. ८॥४३॥ क्र. १७१० कालज्ञानभाषाप्रबंध पत्र ९। भा. राजस्थानी। क. लक्ष्मीवल्लभगणि। र. सं. १७४१। ले. सं. १८५३ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. ११। लं. प. ९४३॥॥ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १६९४-१७२२] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ___ क्र. १७११ शीतलजिनस्तुति आदि पत्र २। भा. प्रा. गू.। स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. ९४३॥ (१) शीतलनाथस्तुति भा. सं.। क. जिनलाभसूरि। गा. ४ । (२) ज्ञानपंचमीस्तुति भा. गू. । क. जिनलाभसूरि। गा. ४ । (३) मौनएकादशीस्तुति भा. गू। क. जिनलाभसूरि । गा. ४ । (४) पार्श्वनाथस्तुति भा. गू. । क. जिनलाभसूरि । गा. ४ । (५) वीरस्तुति भा. गू.। क. जिनलाभसूरि। गा. ४ । पोथी १०५ मी क्र. १७१२ सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति द्वितीयअध्याय प्रथमपादपर्यंत पत्र १५। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ। स्थि . जीर्ण। पं. १५। लं. प. १०x४ क्र. १७१३ सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति षष्ठसप्तमाध्याय-तद्धितवृत्ति पत्र ४१। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ । ले. सं. १५१६ । ग्रं. १६२८ । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०x४ क्र. १७१४ सिद्धहेमशब्दानुशासन बृहदवृत्ति लघुन्यास षष्ठपाद पर्यंत पत्र ५९ । भा.सं. । क. कनकप्रभसूरि। पं. २२। स्थि. श्रेष्ठ । लं. प. १०४४ क्र. १७१५ सिद्धहेमशब्दानुशासन चतुष्कावरि षष्ठपादपर्यत पत्र २० । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं २४ । लं. प. १०x४ क्र. १७१६ सिद्धहेमशब्दानुशासन भाख्यातावचूरि चतुर्थाध्यायपर्यंत किंचिदपूर्ण पत्र २८ । भा. सं. । स्थि . जीण। पं. २१ । लं. प. १०४४ क्र. १७१७ हैमलिंगानुशासन अपूर्ण पत्र ११ । भा. सं. 1 क. हेमचंद्राचार्य। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. ९।४३॥॥ क्र. १७१८ लिंगानुशासन स्वोपाटीकासह पत्र ८३ । भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥४३॥ अंत__ श्रीकल्याणविजयवरवाचकशिष्यशुभविजयबुधशिशुना । लालविजयेन कृतिना चित्कोषे प्रतिरियं मुक्ता ॥ . क्र. १७१९ सिद्धहेमशब्दानुशासम अष्टमाध्याय बृहद्वृत्तिसह पत्र ६८ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ। ले.सं. १५५४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। लं. पं. १०४४ क्र. १७२० प्राकृतचंद्रिका पत्र २६ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण। ले. सं. १६४१ । पं. ८ । लं. प. १०४३॥ . क्र. १७२१ पाणिनिव्याकरण अष्टाध्यायीसूत्रपाठ पत्र २५ । भा. सं.। ले. सं. १७१६ । स्थि . जीर्ण। पं. १६। लं. प. ९॥४३॥ अंत संवत् १७१६ वर्षे मास कार्तिकसुदि १०दिने सौम्यनामासंवच्छरे इदं लिपिकृतं । पंडितसभाभामिनीभालस्थलतिलकायमान पंडितश्रीसुमतिविजयगणिविनेय गणिसुजाणविजयस्य निजवाचनार्थ लिखित पावटीनगरमध्ये ॥ क्र. १७२२ लघुसिद्धांतकौमुदी पत्र ५४-११७ । भा. सं. । क. वरदगज। ले. सं. १८८५ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. ७ । लं. प. ९।४३॥॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १०५-७ क्र. १७९३ मध्यमसिद्धांतकौमुदी पत्र ९५ । भा. सं. । क. वरदराज । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ८ || ४३ ॥ ॥ क्र. १७६४ पाणिनिउणादिगणवृत्ति पत्र २० । भा. सं. । ग्रं. १६५१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २५॥ लं. प. ८॥४३॥॥ क्र. १७२५ पाणिनिपरिभाषा पत्र २ । भा. सं. । क. व्याडि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ३२० ९॥४३॥ क्र. १७२६ सिद्धांतचंद्रिका सुबोधिनीव्याख्यासह पत्र ११८ | भा. सं. । मू. क. रामाश्रमाचार्य । व्या. कृ. सदानंद । स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. ९४३ ॥ ॥ क्र. १७२७ सिद्धांतचंद्रिकातत्व दीपिका व्याख्या पूर्वार्द्ध पत्र ७५१ भा. सं. । क वोकेश कर शर्मा । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७२८ सारस्वतव्याकरण पत्र ५४ । भा. सं. । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ ॥ पोथी १०६ मी क्र. १७२९ सिद्धांतकौमुदी पूर्वार्ध पत्र १३७ । भा. सं. । क. भट्टोजी दीक्षित | ले. सं. १८३१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प ९ || ४४ क्र. १७३० सिद्धांतकौमुदी तत्त्वबोधिनी टीका अपूर्ण पत्र ८५ । भा. सं. 1 स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९ ।। ४४ । क्र. १७३१ सिद्धांतचंद्रिका पत्र ८७ । भा- सं. । स्थि. श्रेष्ठ । ले. सं. १८६० । पं. १२ । लं. प. ९ ॥ ४४ क्र. १७३२ सिद्धांतचंद्रिका स्वरान्तनपुंसकलिंग पर्यंत पत्र १२ । भा. सं. । क. रामाश्रमाचार्य । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १७३३ सिद्धांतचंद्रिका पत्र ३४ । भा. सं. क. रामाश्रमाचार्य । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ९ || ४४१ क्र. १७३४ सारस्वतव्याकरण पत्र ६४ । भा. सं । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । ले. सं. १८११ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०x३॥ क्र. १७३५ सारस्वतव्याकरणटीका पत्र ११५ । भा. सं. । क. चंद्रकीर्त्ति । स्थि. श्रेष्ठ । ले. सं. १७१६ । पं. १७ । लं. पं. १०४३ ॥ अंत— संवद्रसांगमुनिभू१७९६समे अश्वयुजि बहुलेतरे पक्षे । दशम्यां कर्मवाट्यां शुचिवारे श्रीफलवर्द्धिकापुरि चतुर्मासी चक्रे ॥ भट्टारकयंगमयुगप्रधान भट्टारक श्री श्री श्री श्री श्री १०८ श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां पाठकयथार्थपदधारक श्रीमदुपाध्याय श्री १०८ श्रीविनयप्रमोदगणिजी तदंतेवासी सर्वविद्याप्रवीणगरियसीनिदूषणवाचनाचार्यवयश्री १०८ श्री विनयलाभगणिजी तत् शिष्यमुख्यमनुष्यदक्षकृतिसत्तमश्री सुमतिविमलजीगणि तच्छिष्य विद्वद्धौरेय श्रीसुमतिसुंदरजी तदंतेवासी सुमतिहेमगणिना व्यलीलिखित् ॥ श्रीमच्छ्रीपार्श्वनाथजी साहायात् ॥ विजयदशमीदिने प्रथमप्रहरेऽलेखि | Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १७२३ - १७४९ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३२१ क्र. १७३६ सारस्वतव्याकरण पत्र ८० । भा. सं । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । ले. सं. १८५९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७३७ सारस्वतव्याकरण पत्र २१ । भा. सं. । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. १७३८ सारस्वतव्याकरण अपूर्ण पत्र ११ । श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ९ ।। ४३ ।।। पोथी १०७ मी क्र. १७३९ सारस्वतवृत्ति अपूर्ण पत्र ७ । भा. सं. । वृ. क. चंद्रकीर्त्ति । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं प. ९ ॥ ४३ ॥ ॥ क्र. १७४० सारस्वतदीपिका पंचसंधि पत्र ३२ । भा. सं । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७४१ सारस्वतटिप्पनक पत्र १७ । भा. सं. । टि. क. क्षेमेन्द्र । ले. सं. १६६२। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ | लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ ॥ क. १७४२ सारस्वतप्रथमश्लोकार्थ पत्र २६ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १० । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १७४३ क्रियाचंद्रिका अपूर्ण पत्र ७३ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९॥४३॥ भा. सं. । क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । स्थि. क्र. १७४४ ऋजुप्राशप्रक्रियावृत्ति पत्र ५ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २४ । लं. प. ९॥९४ क्र. १७४५ ऋजुप्राज्ञव्याकरण पत्र १० । भा. सं. । क. सहजकीर्त्ति । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥४४ क्र. १७४६ शब्दशोभाव्याकरण टिप्पणीसह पत्र २८ । भा. सं. । क. नीलकंठ । ले. सं. १७३७ । स्थि. जीर्ण । पं. ११ । लं. प. ९ ॥ ४४ अंत संवत् १७३७ वर्षे वर्षाऋतौ अश्वनिकृष्ण त्रयोदश्यां भृगुवासरे शुभवेलायां पूर्णीचकार ॥ श्रीनवरंगषानस्य कोट्टमध्ये लिखितं ॥ श्रीसागरचंद्रसूरिशाखायां पट्टानुक्रम श्रीश्रीश्रीरायचंद्रगणिवाचक प्रसरति यशः । श्रीवा० जयनिधान गणिशिष्य पण्डितोत्तम कमलसिंहगणिशिष्यश्री वा० कमलरत्नगणि तदनुशासनशिष्य विज्ञानचंद्रमुनिशिष्य पं. नयनानंदमुनिपठनहेतवे ॥ शुभं भवतु ॥ श्रीश्रीश्री भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरि तत्प्रसादाल्लिखितमस्ति । श्रीखरतरगच्छीय ॥ क्र. १७४७ शतश्लोकींव्याकरण अपूर्ण पत्र ३ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १६ लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ ४१ क्र. १७४८ कविकल्पद्रुम टिप्पणीसह पत्र १६ । पं. १० । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १७४९ कविकल्पद्रुम पत्र २६ । भा. सं । क. वोपदेव । ग्रं. १७५४ । ले. सं. १६७२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ८ । लं. प. ९॥४३॥ अंत सवत् १६७२वर्ष फाल्गुन सितैकादश्यामलेखि वा०जयनिधानेन श्रीलाभपुरे । शुभं भवतु ॥ भा. सं. । क. वोपदेव । स्थि. मध्यम । Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १०० क्र. १७५० कविकल्पद्रुम धातुपाठ पत्र । भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. २१। लं. प. ९॥४४ अंत संवत् १६ वैशाख वदि १४ दिने रविवारे श्रीमत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिविजयराज्ये श्रीहर्षप्रियोपाध्याय तशिष्यवाचनाचार्यवर्यधुर्यश्रीचारित्रोदयगणि तशिष्य पं.समयकल्लोलेनाऽलेखि ॥ शुभं भवतु। कल्याणमस्तु । क्र. १७५१. क्रियाकलाप पत्र ९। भा. सं.। क. विद्यानंद । ग्रं. ३२५। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. ९x४ क. १७५२ क्रियाकलाप पत्र ११। भा. सं.। क. विद्यानंद । ले. सं. १७५८ । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. ९x४ क्र. १७५३ दुर्गसिंहलिंगानुशासन पत्र १२ । भा. सं.। क. दुर्गसिंह । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७५४ कातंत्रविभ्रम सटीक त्रिपाठ पत्र । भा. सं. टी. क. चारित्रसिंह । र. सं. १६३५ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १७ । लं. प. ९॥४३॥ अंत बाणाश्विषडिंदु१६२५मिते संवति धवलक्कपुरवरे समेह । श्रीखरतरगणपुष्करसुदिवापुष्टप्रकाराणाम् ॥१॥ श्रीजिनमाणिक्याभिधसूरीणां सकलसावेमौमानाम् । पट्टे वरे विजयिषु श्रीमज्जिनचंद्रसरिराजेषु ॥२॥ गीतिः। वाचकमतिभद्रगणेः शिष्यस्तदुपास्त्यवाप्तपरमार्थः। चारित्रसिंहसाधुर्यधादवचूर्णिमिह सुगमाम् ॥३॥ यल्लिखितं मतिमांचादनृतं प्रश्नोत्तरेऽत्र किचिदपि । तत् सम्यक प्राज्ञवरैः शोध्य स्वपरोपकाराय ॥४॥ इति कातंत्रविभ्रमावचूरिः संपूर्णा लिखनतः। श्रीमद्विक्रमद्रंगे ॥ शुभं भवतु ॥ क्र. १७५५ अव्यय सावचूरिक त्रिपाठ पत्र २ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. six३॥ क्र. १७५६ अनिट्कारिका पत्र ५। भा. स. । ले. सं. १७०१। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७५७ विभक्तिविचार अपूर्ण पत्र । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. ९॥४४ क्र.१७५८ वाक्यप्रकाश-औक्तिक सटीक त्रिपाठ पत्र ६ । भा. सं.। टी. क. उदयधर्मगणि । र. सं. १५०२। ले. सं. १६१२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २५ । लं. प. १०४३।। संवत् १६ बारोत्तरा वर्षे। तपगच्छनायकश्रीविजयदानसूरीश्वरभट्टारक श्री ६ हीरविजय[सूरीश्वर तशिष्य पंडितविशालसत्यगणि तशिष्यशिवहर्षगणि लिखितं ॥ क्र. १७५९ गणरत्नमहोदधिवृत्ति पत्र ५० । भा. सं. । क. गोविंदसूरिशिष्य वर्द्धमान । र. सं. ११९७ । ले. सं. १७६९ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. ९॥४४ संवत् १७६९ वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे अक्षयतृतीयातिथौ अर्कवारे ज्येष्ठानक्षत्रे श्रीमत् वृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनकुशलसूरिशाखायां श्रीक्षेमकीर्तिसंतानीय उपाध्याय श्रीलक्ष्मीकीर्तिगणिदिग्गजाना शिष्यमुख्यवाचनाचार्यवर्यधुर्य श्रीसोमहर्षगणिमणीनामंतेवासी वाचनाचार्यवर्यधुर्य श्री१०४श्रीलक्ष्मीसमुद्रगणिमतलकाना शिष्यमुख्य दख्य Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १७५०-७३ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३२३ पंडितप्रवर श्रीकनकप्रियगणिस्तच्छिष्य पंडितजससोममुनिः लिपिश्चकार । श्रीवेनातटमध्ये ॥ श्रीगौडीप्रार्श्वनाथजी प्रसादात् ॥ ___क्र. १७६० गणरत्नमहोदधि स्वोपशटीकासह अपूर्ण पत्र ५४ । भा. सं.। क. गोविंदसूरिशिष्य वर्दमान । र. सं. ११९७ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९॥४४ क्र. १७६१ वृत्तरत्नाकर टिप्पणीसह पत्र ५। भा. सं. । क. भट्ट केदार । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०४३॥ . १७६२ वृत्तरत्नाकर पत्र ४ । भा. सं.। क. भट्ट केदार । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १७६३ वृत्तरत्नाकर सटीक पत्र ३० । भा. सं.। म.क. भट्ट केदार। टी.क.पं. सोमचंद्र। र. सं. १३२९ । अं. ११९९ । स्थि. जीर्ण। पं. १५। लं. प. ९॥४४ श्रीविक्रमनृपकाले नंदकरकृपीटयोनिशशि१३२९संख्ये। समजनि रजोत्सवदिने वृत्तिरिय मुग्धबोधकरी ॥४॥ सर्वाग्रं ग्रंथांके रुद्रमितशतानि नवतियुक्तानि ११९.। अत्रानुष्टुपगणनायोगाजातानि किंचिदधिकानि ॥५॥ संपूर्णा चेयं पंडितसोमचंद्रकृता वृत्तरत्नाकरछंदोवृत्ति ससूत्रा समाप्ता ॥ क्र.१७६४ श्रतबोध पत्र २। भा. सं.। क. कालिदास कवि। स्थि . मध्यम । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ ____ क्र. १७६५ भरतसंगीतसंयोग पत्र ५। भा. स.। ग्रं. १५१। स्थि. मध्यम। पं. १४ । लं. प. ९x४ क्र. १७६६ रूपदीप भाषाछंदोग्रंथ पत्र ५। भा. हिन्दी। र. सं. १७७६ । क. जयकृष्ण । स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७६७ रूपदीप भाषाछंदोग्रंथ पत्र ५। भा. हिन्दी। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ८॥४३॥ क्र. १७६८ काव्यानुशासनसूत्रपाठ पत्र ४ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं.प. smx३॥ क्र. १७६९ हैमकाव्यानुशासनविवेक पत्र ११२। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । ग्रं. ४०००। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०x४ अंत संवत् १८७८ वर्षे शाके १७४३ रा प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे ८तिथौ ज्ञवासरे श्रीहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिशाखायां वाचनाचार्यमोक्ष वा.लालचंदजी ततूशिष्य वा.उदयचंदजी ततसीष्यमोक्ष पं. वखतमलजी तत्भ्रात्र पं० प्र०कसरूपजी तत्सीष्य प.तखतमलमुनिना इदं पुस्तकं भांडागारे स्थापितं जेसलमेरुमध्ये ॥ क्र. १७७० कविशिक्षा काव्यकल्पता वृत्तिसह पत्र ७१। भा. सं.। क. अमरचंद्रसूरि । ग्रं. २३५७ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७७१ वाग्भटालंकार पत्र ६। भा. सं. । क. वाग्भट । ग्रं. २८९। पं. १५ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७७२ कुमारसंभवमहाकाव्य सप्तमसर्गपर्यंत सावचूरि पत्र २५। भा. सं.। मू. क. कवि कालिदास । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥.। प्रति पाणीथी भोजाएली छे । क्र. १७७३ रघुवंशमहाकाव्य अपूर्ण पत्र २४ । भा. सं. । क. कवि कालिदास । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. sux३॥ Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १०७-९ क्र. १७७४ रघुवंशमहाकाव्य-सर्ग नवथी बार अपूर्ण पत्र १७ । भा. स. । क. कविकालिदास । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९x४ पोथी १०८ मी क्र. १७७५ अभिधानचिंतामणिनाममाला स्वोपज्ञीकासह पत्र १७० । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ । ग्रं. १००००। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ प्रतिनी किनारी उंदरे करडेली छ। क्र. १७७६ अभिधानचिंतामणिनाममाला स्वोपज्ञटीकासह पत्र २४७ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य। ले. सं. १६५० । ग्रं. १०००० । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७७७ अमरकोश प्रथमकांड सटीक त्रिपाठ पत्र १११। भा. सं.। मू. क. अमरसिंह । जी.क. भावजी दीक्षित । ले.सं. १८०२ । स्थि . मध्यम । पं. १२। लं. प. ९x४ क्र. १७७८ अमरकोश सटीक द्वितीयकांड त्रिपाठ पत्र २८९ । भा. सं.। मू. क. अमरसिंह । टी. क. भावुजी दीक्षित। ले. सं. १८०३ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९।४३।। क्र. १७७९ अमरकोश तृतीयकांड सटीक त्रिपाठ पत्र ११६ । भा. सं. । मू. क. अमरसिंह । जी.क. भावोजी दीक्षित । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ९।४३॥॥ पोथी १०९ मी क्र. १७८० अभिधानचिंतामणिनाममाला अपूर्ण पत्र ९ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य। स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९ ४४ क्र. १७८१ अभिधानचिंतामणिनाममाला अपूर्ण पत्र १०-३१। भा. सं. । क. हेमचंद्राचार्य । स्थि . जीर्ण । पं. १७। लं. प. ९॥४४ क्र. १७८२ अभिधानचितामणीनाममाला अपूर्ण पत्र ५-१९। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । स्थि . मध्यम । पं. ९। लं. प. ९॥४४ क्र. १७८३ अभिधानचिंतामणीनाममाला स्वोपज्ञवृत्तिसह अपूर्ण पत्र ५४ । भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य स्वोपज्ञ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १७। लं. प. ९॥४४ क्र. १७८४ अमरकोश प्रथमकांड पत्र ४२। भा. सं.। क. अमरसिंह । स्थि. मध्यम । पं.४। लं. प. ९॥४४ क्र.१७८५ रघवंशमहाकाव्यटीका पत्र १२७ । भा. सं.। क. मल्लिनाथ । ले. सं. १७१८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४४ क्र. १७८६ म्यायरत्नप्रकरण शशधरसूत्र पत्र ३९ । भा. सं.। क. शशधर । स्थि. श्रेष पं. १८। लं. प. १०४३।।.। प्रतिनी किनारी उंदरे करडेली छे। क्र. १७८७ न्यायरत्नप्रकरण शशधरसूत्र टिप्पणीसह पत्र ४३ । भा. स.। क. शशधर । ले.सं. १८१६ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०४३॥ क्र. १७८८ तर्कपरिभाषा पत्र १४ । भा. सं.। क. केशवमिश्र । ले. सं. १५५२। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १७। लं. प. १०x४ क्र. १७८९ तर्कपरिभाषा पत्र २० । मा. सं.। क. केशवमिश्र। ले. सं. १६५९ । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०४३॥ । प्रति चारे बाजथी उधेईए खाधेली छे । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १७७४ - १७९८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३२५ क्र. १७९० तर्कपरिभाषा अपूर्ण पत्र २७ । भा. सं । क. केशवमिश्र । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १७९१ तर्कभाषाप्रकाशवृत्ति पत्र ३० । भा. सं. । क. गोवर्धन । ले. सं. १६९९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३ ।।। क्र. १७९२ न्यायसार न्यायतात्पर्यदीपिकाटीका पत्र ५३ । भा. सं । क. जयसिंहसूरि । ग्रं. ३००० | ले. सं. १६३३ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ अंत श्री कृष्णर्षिमहेच्छ गच्छ मुकुट श्रीमन्महेंद्रप्रभोः शिष्यः श्रीजयसिंह सूरिरखिलप्रामाणिकग्रामणीः । एतां निर्मितवान् परोपकृतये श्री न्यायसाराश्रितां स्पष्टार्थ विवृतिं कृपापरवशैः सैषा विशोध्या बुधैः ॥१॥ टीकेय न्यायसारस्य न्यायतात्पर्यदीपिका । मनीषिणां मनःसौधे सर्वदापि प्रकाशताम् ॥२॥ इतिश्री कृष्ण[र्षिगच्छ] मंडन श्रीमन्महेंद्रसूरिशिष्य श्री जयसिंहसूरिविरचितायां तात्यर्यदीपिकाभिधानायां श्रीन्यायसारटीकायामागमपरिच्छेदस्तातयीकः समाप्तः ॥० ॥ ग्रंथाग्रं ३००० ॥०॥ संवत् १६३३ वर्षे फागुण सुदि ६ दिने आदित्यवारे ॥ ० ॥ क्र. १७९३ सप्तपदार्थों पत्र ४ । भा. सं. क. शिवादित्य मिश्र । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ९ ।। ४४ क्र. १७९४ तर्कसंग्रहदीपिका पत्र १२ । भा. सं. क. अन्नंभट्ट । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १७९५ मंगलवादप्रश्नपद्धति पत्र ३ । भा. सं. 1 क. समयसुंदरजी । ले. सं. १६५३ । स्थि. जीर्ण । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥. ग्रंथकर्ताए स्वहस्ते लखेली प्रति । प्रतिनी किनारी खवाएली छे । अंत श्रीमंगलवादसुखावबोधप्रश्नोत्तरपद्धतिः समाप्ता ॥ कृता लिखिता च संवत् १६५२ वर्षे आषाढ सुदि १० दिने श्रीलादुर्गे चतुर्मासीस्थितेन श्रीयुगप्रधान श्री ४ जिनचंद्रसूरिशिष्य मुख्य पंडितसकलचंद्रगणि तच्छिष्य वा० समयसुंदरगणिना ॥ पं. हर्षनंदनमुनिकृते शुभं भवतु ॥ क्र. १७९६ आलापकपद्धति अपूर्ण पत्र ७ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १७९७ षड्दर्शनसमुच्चय पत्र २-५ । भा. सं. क. हरिभद्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १७९८ षड्दर्शनसमुच्चय सटीक पत्र २७ । भा. सं. । मू. क. हरिभद्रसूरि । वृ. क. विद्यातिलक । ग्रं. १२५२ । स्थि. जीर्ण । पं. १९ । लं. प. ९ ।। ४३ ।। । प्रति प्राणीथी भींजाएली छे । अन्त श्रीरुद्रपल्लीयगणे गणेयः श्रीचंद्रसूरिर्गुणराशिरासीत् । तबंधुरिंदुप्रभकीर्तिभूरिर्जीयाश्चिरं श्रीविमलेंद्रसूरिः ॥१॥ नंदन्तु श्रीगुरवः श्रीगुणशेखरमुनीश्वरास्तदनु । श्रीसंघतिलकसूरिस्तत्पट्टे जयति चिरमधुना ॥ २ ॥ तत्पदपयोजभृंगो विद्यातिलको मुनिर्जिनस्मृतये । षड्दर्शनीयसूत्रे चक्रे विवृति समासेन ॥ ३ ॥ यदनुचितमौच्यताऽत्र प्रमादतो । मंदमतिविमर्शाच्च । हृदयं विधाय मधुरं तत्सुजनाः शोधयंतु मयि ॥४॥ Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ११०-११ वैक्रमे ऽन्दे......नंदविश्वदेवप्रमाणिते। आदित्यवर्द्धनपुरे शास्त्रमेतत् समर्थितम् ॥५॥ खेलतोऽमू राजहंसौ यावद्विश्वसमस्तटे । तावद् बुधैर्वाच्यमानं पुस्तकं नंदतादिदम् ॥६॥ सप्ताशीतिः सूत्र[मान] टीकामान विनिश्चितम् । सहस्रमेकं द्विशती द्वापंचाशदनुष्टुभाम् ॥७॥ अंकतोऽपि ग्रंथमानं १२५२ ॥०॥ श्रीरस्तु ॥०॥ क्र. १७९९ प्रामाण्यवाद पत्र २४ । भा. सं.। क. हरिराम तर्कवागीश। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८०० वादस्थल अपूर्ण पत्र २। भा. सं.। स्थि . जीर्ण । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १८०१ शरोमणीटीका पत्र ६३ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ९। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८०२ न्यायग्रंथ पत्र ७९ । भा. सं। स्थि . मध्यम। पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥। आदि अनुमितिलक्षणैककार्यानुकूलत्वसंगत्या पक्षधर्मतां निरूपयितुमाह-व्याप्तीति । संदिग्धेति । यत्र साध्यस्य यादृशसंबंधावगाहिनिर्णयनिवत्यों संशयः स तत्र तादृशसंबंधेन साध्यानुमितौ पक्षतेत्यर्थः, तेन न पक्षसाध्यविशेष्यकसंशयाननुगमः, न वा संबंधांतरेण संदेहेऽपि निर्णीतसंवंधेन पक्षत्वम् , न वा तमःप्रभृतिषु समवायेनाकाशादिसाधने तद्वैकल्यं संशययोग्यतां निरस्यति । नापीति साधकबाधकमाने सिद्धिबाधौ केवलान्वयिनिजपक्षनिष्ठाभावप्रतियोगित्वधीरेव सुलभो बाधः । क्र. १८०३ न्यायग्रंथ टीका अपूर्ण पत्र ३५। भा. सं.। स्थि . मध्यम । पं. ९। लं. प. ९॥४३॥.। पत्र बीजुं नथी। आदि श्रीगणेशाय नमः॥ अनुमाननिरूप्यन्यायतदवयवनिरूपणं प्रतिजानीते-मूले तच्चेति, तन्निरुक्तमनुमानं परार्थ रदशायां मध्यस्थस्य विवादविषयसाध्यनिश्चयरूपप्रयोजनसाधनं ॥ न्यायसाध्यमिति न्यायप्रयोज्यमित्यर्थः । वादिप्रयुक्तन्यायजन्यशाब्दबोधेन मध्यस्थस्य लिंगपरामर्शरूपानुमानजननादिति भावः ॥ पोथी ११० मी क्र. १८०६ सारस्वतव्याकरणदीपिकाटीका पत्र २१२ । भा. सं.। क. चंद्रकीर्ति। र. सं. १७७४ । ले. सं. १८२२। स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १८०५ लोकानी हुंडी बीजकसह पत्र ३५ । भा. प्रा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. ८। लं. प. १०x४। क्र. १८०६ शत्रुजयकल्प सस्तबक तथा पडिलेहणाकुलक पत्र ४ । भा. प्रा. गू. । प. क. विनयविमल। स्थि . मध्यम। पं. १२। लं. प. १०४४। क्र. १८०७ सिद्धांतचंद्रिका स्वरान्तनपुंसकपर्यंत पत्र ३२ । भा. सं. । क. रामाश्रम । पं. ७ । लं. प. १०x४। क्र.१८०८ व्याकरण पत्र २६ । भा. सं.। स्थि . मध्यम । पं. ७। लं. प. १०१४४| क्र. १८०९ अनिटकारिका सटीक त्रिपाठ पत्र ६। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. ८। लं. प. १०॥४४॥ क्र. १८१० हारितोत्तर वैद्यकग्रंथ अपूर्ण पत्र ६७। भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. ९। लं. प. १०४४। क्र. १८११ अष्टांगहृदयसंहिता उत्तरकल्प त्रूटक पत्र १०३ । भा. सं.। क. वाग्भट । स्थि. मध्यम। पं. १०। लं. प. १०x४| Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १७९९-१८२६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३२७ ___क्र. १८१२ निबंधसंग्रह वैद्यक सटीक अपूर्ण पत्र ७२ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. ११ । लं. प. १०x४॥ क्र. १८१३ शार्ङ्गधरसंहिता पत्र ६ तथा ५९-९८ । भा. सं.। क. शार्ङ्गधर । स्थि. मध्यम । पं.११। लं. प.१०॥४३॥ क्र. १८१४ अष्टांगहृदयसंहिता पत्र ११२ । भा. सं.। क. वाग्भट । ले. सं. १७१४ । स्थि. जीर्ण। पं. ७ । लं. प. १०x४॥.। अस्तव्यस्त । पोथी १११ मी क्र. १८१५ रामविनोद-वैद्यक पत्र ७६ । भा. गू. । क. रामचंद्र । र. सं. १६१०। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०x४॥ क्र. १८१६ अनेकार्थतिलक पत्र ३४ । भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. १३। लं. प. ९॥xen क्र. १८१७ योगचिंतामणी सस्तबक अपूर्ण पत्र ९१। भा. सं. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १८१८ बालतंत्र-वैद्यक पत्र १२। भा. सं. । क. वैद्यरतन । ले. सं. १८८६ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ९mxn . क्र. १८१९ सन्निपातकलिका वैद्यक पत्र १४ । भा. सं.। क. अश्विनीकुमार। स्थि. मध्यम । पं. ६। लं. प. ९x४। क्र. १८२० सूत्रस्थान-वैद्यकग्रंथ पत्र ३-३२ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण। पं. १७। लं. प. १०१४४ __ क्र. १८२१ सुश्रुतसूत्रस्थान पत्र २४ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०४४ क्र. १८२२ योगसारसमुच्चय सस्तबक-वैद्यक पत्र ३९-४८। भा. सं. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. १०४४ । . क्र. १८२३ न्यायग्रंथटीका पत्र ९१ । भा. सं.। ले. सं. १६६२। स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. १०x४ आदि श्रीगणेखाय नमः॥ मिलदिति तां विधुसंबंधिनी कलां नुमः स्तुमः । किभूतां विश्वबीजस्य महादेवस्य अंकुरसमां अंकुरसाम्यमाह। पुरद्विषः । मूर्ध्नि स्थितां अव्यस्याप्यंकुरबीजमस्तकस्थायित्वात्। मिलंती या मंदाकिनी सैव मल्लीदाम यस्याः सा ताम् । एता जलसानिध्यं अंकुरसाम्यं भवति । यथा बीजं अंकुरसहभूतं मं करोति। तथा भगवानपि यत्कलासहभूतं विश्वं निवर्तयति तां स्तुम इति भावः॥ अन्त संवत् १६६२ वर्षे शाके १५२७ प्रवर्त्तमाने उत्तरायनगते श्रीसूर्ये शिशिरऋतौ सन्मांगल्यप्रदौ अयेह माघमासे शुक्लपक्षे प्रतिपदायां तिथौ सोमवासरे अद्य भृगुकच्छवास्तव्यं मेदपाठज्ञातीय अध्यारू गोव्यंदसुत रूद्रजी लिखितं ॥ लेखकपाठकयोः। क्र. १८२४ लीलावतीगणित पत्र ५१। भा. सं.। क. भास्कराचार्य । स्थि. जीर्ण। पं. १०। लं. प. ९॥४४॥ ___क्र. १८२५ अभिधानचिंतामणि सटीक बृहत्वृत्ति पत्र २०५+८९=२९४ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९॥४४ ___ क्र. १८२६ सारस्वतव्याकरणसिद्धांतरत्नावलीटीका अपूर्ण पत्र ८४ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १९। लं. प. ९x४॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ पोथी ११२ मी क्र. १८२७ शीघ्रबोधज्योतिष पत्र १३ । भा. सं. । क. काशिनाथ । ले. सं. १८४३ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९ ॥४३॥ ३२८ [ पोथी ११२-१३ क्र. १८२८ रत्नदीपज्योतिष पत्र ११ । भा. सं. । क. गणपति । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १८२९ फलकल्पलता पत्र १२ । भा. सं. । ले. सं. १८४४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८३० बालावबोधसारसंग्रहज्योतिष पत्र १० । भा. सं. क. मुंजादित्य । ग्रं. ५०० । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९१४३ ॥ क्र. १८३१ प्रश्नप्रदीप पत्र ८ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ९।४३॥ क्र. १८३२ प्रश्नप्रदीप पत्र ५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ९||४३|| क्र. १८३३ महादेवी दीपिकावृत्ति पत्र २७ । भा. सं. । क. धनराजगणि। ग्रं. १५०० | र. सं. १६९२ । ले. सं. १८२९ । स्थि. श्रेष्ठ । आदि पं. १८ । लं. प. ९ ।। ४४ श्रीनामेयजिनं नत्वा श्रीगुरोः पादपुष्करं । वाग्देवीं तपनादींश्च हेरंब भुवनेश्वरीम् ॥१॥ महादेवोक्तसारिण्याः ग्रहाणां विदधाम्यहम् । वृत्तिं शास्त्रानुसारेण दैवज्ञानां सुखाप्तये ॥२॥ अन्त- वर्षे नेत्रनवांगभूपरिमिते १६९२ ज्येष्ठस्य पक्षे सितेऽष्टम्यां सद्गुणटक्यमत्ररयुते पद्मावतीपत्तने । राजाऽत्युत्कटवैरिनागदमनः राष्ट्रोढवंशोद्भवः श्रीमान् श्रीगजसिंहभूपतिवरोऽस्ति श्रीमरोमंडले ||१|| जैने शासन एवमंचलगणे सत्सज्जनैस्संस्तुते कल्याणोदधिसूरयः शुभकरा नंदतु भूमंडले तत्सेवाकरभोजराजगणयो विद्वद्वारा वाचकाः आसन् सर्वसुधीमनः कमलिनीसंबोधने भानवः ॥२॥ खेटानां हि पुराकृतां बुधमहादेवेन यत् सारणी तस्या दैवविदां सुखार्थजननीं वृत्तिं च संविस्तरां । तच्छिष्यो धनराज एबमकरोद् वर्षेण बह्वादरैः बह्वर्थेः सहिता च पंडितपदाप्तप्रसत्तेर्गुरोः ॥३॥ बालाशतसंख्यका पुनरनुष्टुप्छंदसा तन्मितिर्यावन्मेरुमही ध्रुवाः स्थिरतराः खे पुष्पदंतौ स्थिरौ ॥ तावत्तिष्ठतु दीपिकेति सततं नाम्नी हि वृत्तिस्त्वियं तज्ज्ञानां च सुखाप्तये सुमतिनां धार्या गुरोर्भावतः ॥ ४॥ इत्यांचलिकवाचनाचार्यश्री भुवनराजगणींद्राणां शिष्यपंडितश्रीधनराजगणिकृता महादेबीदीपिका वृत्तिः संपूर्णा ॥ इि संपूर्णम् ॥ संवत् १८२९ वर्षे शाके १६९४ प्रवर्त्तमाने श्रावण सुदि ३ रविवारे श्रीबालोतरानगरे पं. सुमतिधर्मलिखितम् ॥ श्रीरस्तु || शुभं भवतु दिने दिने ॥ क्र. १८३४ रुद्रयामलज्योतिष पत्र ४ । भा. सं. । ले. सं. १८२९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७१ लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १८३५ रुद्रयामलज्योतिष पत्र ४ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९४४ क्र. १८३६ भुवनदीपक पत्र १८ । भा. सं. । क. पद्मप्रभसूरि । स्थि. मध्यम । पं. ६ । लं. प. ९।४३।। क्र. १८३७ यंत्र चिंतामणी सटीक पत्र ८ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९।४३ ॥ क्र. १८३८ ताजिकसार ज्योतिष पत्र ३ । भा. सं । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १८२७-१८४६] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३२९ __ क्र. १८३९ ताजिकसार ज्योतिष पत्र २४ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. १८४० ताजिकसारकारिकाटीका पत्र?। भा. सं.1 क. सुमतिहर्ष अपरनाम सामंत। र.सं. १६७७ । ले. सं. १८१८ । ग्रं. ११०१ स्थि . मध्यम । पं. १५। आदि श्रीसूर्यचंद्रारबुधेन्द्रपूज्यान् भृग्वार्किमुख्यान् प्रणिपत्य खेटान् । हृन्मानसस्वर्णसुबोधपद्मप्रबोधने तिग्मकरं गुरुं च ॥१॥ श्रीशारदीयं शरदिन्दुशुभ्रं तेजोगतध्वान्त इवैकदीपं । निधाय चित्ते विवृणोमि ताजिकसारेऽत्र तन्त्राभ्युगमान् पदार्थान् ॥२॥ अन्त सुबोधा श्रीपती महादेवी ब्रह्मार्कपर्वणां । एतस्या वृत्तयो ज्ञेयाः स्वसारो हृदयंगमाः ॥१॥ वर्षे शैल्यांगभूपरिमिते १६७७ मासे तथा फाल्गुने, पक्षे शुभ्रतरे तिथौ दशमिते श्रीखेरवापूर्वके। राज्ये श्रीमति विष्णुदासनृपतेरीभवृन्दे हरौ वृत्ति श्रीगुरुहर्षरत्नकृपया सामंतनामाऽकरोत् ॥२॥ गुरुबांधवरत्नाह्वदीर्घायुर्द्धनराजयोः। निरंतराग्रहादेषा रचिता तमुताच्चि।।३।। इत्यांचलिकमहोपाध्यायधीअभयराजगणिकुंजर शिष्योपाध्यायश्रीहर्षरत्नगणिशार्दूलशिष्य पंडितवादिराजश्री पं. श्रीसुमतिहर्षगणिना कृता ताजिकसारटीका कारिकानाम्नी संपूर्णा ॥१॥ ग्रं. ११०१॥ संवत् १८१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ सोमवासरे। श्रीसितपत्रपुरे लिखिता प्रतिरियं पं. सुमतिधर्मेण स्ववाचनार्थ। श्रीरस्तु । क्र. १८४१ ताजिकबालावबोध ज्योतिष पत्र ३। भा. गू.। स्थि. मध्यम। पं. १७ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८४२ ताजिकभूषण ज्योतिष अपूर्ण. पत्र १० । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १८। लं. प. ९४३॥ क्र. १८४३ रत्नमाला ज्योतिष बालबोधिनी टीका पत्र ४२ । भा. सं.। टी. क. महादेव । ले. सं. १७६४ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. २१। लं. प. ९x४ अंत श्रीश्रीपतिविरचितायां ज्योतिषरत्नमालायां पंडितमहादेवकृतटीकायां स्वरप्रतिष्ठायां विंशतितमं प्रकरणं समाप्तम् ॥ श्रीनमः ॥ शश्वद्वाक्यप्रमाणप्रवणपटुमतेर्वेदवेदांगवेत्तुः सूनुः श्रीलूणिगस्याच्युतचरणनतिः श्रीमहादेवनामा । तत्प्रोक्ते रत्नमालारुचिरविवरणे सज्जनांभोजभानौ स्वर्भानू दुर्जनेंदोः प्रकरणमगमत्......प्रदिष्टम ॥२०॥ संवत्वारिधिरसमुनिइंदुप्रमितिवर्षे १७६४ कार्तिकशुक्लैकादश्यां तिथौ रविवारे लिखितं पं.मानसिंघगणिशिष्य जीवणवाचनार्थम् ॥ __ क्र. १८४४ विवाहवृंदावन ज्योतिषशास्त्र सटीक पत्र ३३ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ९/x३॥ क्र. १८४५ षट्पंचाशिका ज्योतिष पत्र ९ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८४६ भावचिंतामणि षष्ठपटल-ज्योतिष पत्र ३। भा. सं.। ले. सं. १८४८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३० श्रीजेसलमेरुवुर्गस्थ [.पोधी-११२-१३ क्र. १८४७ आरंभसिद्धि-ज्योतिष द्वितीयविमर्श पर्यंत पत्र ६ । भा. सं.। क. उदयप्रभसूरि । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९mx३॥ क्र. १८४८ लघुजातक ज्योतिष पत्र ९। भा. सं.। स्थि. जीर्ण। क. वराहमिहिर। स्थि. जीर्ण। पं. ९। लं. प. ९x४ ___ क्र. १८४९ लघुजातक सटीक-ज्योतिष पत्र ३३ । भा. सं. । टी. क. उत्पलभट्ट। मू. क. वराहमिहिर। स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८५० लघुजातक सटीक-ज्योतिष पत्र ३१। भा. सं.। मू. क. वराहमिहिर। टी. क. उत्पलभट्ट। ले. सं. १८४५। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ९४३ क्र. १८५१ पद्मकोशज्योतिष पत्र ५। भा. सं. । क. गोवर्धन । ले. सं. १८०९ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९x४ क्र. १८५२ अर्घकांड-ज्योतिष पत्र १ मा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८५३ पद्मकोश-ज्योतिष पत्र ५। भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । क. गोवर्धन। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९। लं. प. ९।४३॥ क्र. १८५४ पद्मकोश-ज्योतिष पत्र ६। भा. सं.। क. गोवर्धन। ले. सं. १८४६ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८५५ प्रश्नफलादेश ज्योतिष पत्र ५। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प.९॥xx क्र. १८५६ ज्योतिषप्रकीर्णकविचार पत्र ५। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८५७ षष्टिसंवत्सर-ज्योतिष किंचिदपूर्ण. पत्र २। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. २० । लं. प. ९।४३॥ क्र. १८५८ षष्टिसंवत्सर-ज्योतिष पत्र ५। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. २२ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८५९ योगरत्नावली ज्योतिष पत्र ३७-६८ । भा. सं.। क. श्रीकंठशिव पंडित । ले. सं. १६५८। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ९॥४३॥ अंत संवत् १६५८ वर्षे चैत्र शुदि पूर्णिमायां तिथौ बृहस्पतवारे श्रीसरस्वतीपत्तने श्रीबृहद्गच्छे श्रीधीश्रीपुण्यप्रभसरि ततूपट्टे भट्टारकश्रीश्रीश्रीशीलदेवसूरि तच्छिष्य मांडणेन व्यलेखि ॥९॥ क्र. १८६० लघुसारावलीगत अरिष्टाध्याय ज्योतिष पत्र ६ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं.१७ । लं. प. ९॥x४ क्र. १८६१ ग्रहभावप्रकाशज्योतिष अपूर्ण. पत्र ८। भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८६२ ग्रहभावप्रकाशज्योतिष सस्तबक पत्र ८ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८६३ जातकचंद्रिका ज्योतिष अपूर्ण. पत्र ३। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. ९x४ क्र. १८६४ त्रिपुरबन्धमुहूर्त ज्योतिष पत्र ५ । भा. स.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. ९४३॥ Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के. १८४७-१८८३] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. १८६५ ग्रहसिद्धिज्योतिष पत्र २ । भा. सं.। क. महादेव दैवज्ञ। ले. सं. १८१७ । स्थि . जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८६६ चंद्रार्कीज्योतिष पत्र १। भा. सं.। क. दिनकर । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. ९||४४ अंतबारेजाख्ये वसन् प्रामे चक्रे दिनकरो मुदा। जातः कुसिकसे गोत्रे मौढज्ञातिसमुद्भवः ॥२६॥ इति चंद्रार्की सम्पूर्णा ॥ क्र. १८६७ चंद्रार्कीज्योतिष पत्र २। भा. सं.। क. दिनकर। स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८६८ भवनविचार ज्योतिष पत्र ५। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. ९x४॥ क्र. १८६९ जन्मपत्रीविधानपद्धति अपूर्ण. पत्र ६१। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८७० जगदभूषणसारणी पत्र ३४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. ९॥४३॥ क. १८७१ कामधेनुपंचांगसारणी पत्र १८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. ९॥४३॥ पोथी ११३ मी क्र. १८७२ जातककर्मपद्धतिउदाहरण पत्र ४२। भा. सं.। क. कृष्ण दैवज्ञ । ले. सं १७६२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. १०४३॥ क्र. १८७३ समाविचार (सुभिक्षदुर्भिक्षविचार) पत्र १८ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. १०४३॥ क्र. १८७४ कर्णकुतूहलज्योतिष पत्र १२ । भा. सं.। क. भास्कराचार्य। ले. सं. १६९३ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प ९॥४३॥ क्र. १८७५ नारचंद्रज्योतिष अपूर्ण पत्र ५। भा. सं. । क. नरचंद्राचार्य। स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. १०४४ क्र. १८७६ भुवनदीपक सस्तबक पत्र ९। भा. सं. गू.। क. पद्मप्रभसूरि । स्थि. जीर्ण। पं. १४ । लं. प. १०४४ क्र. १८७७ आरंभसिद्धि पंचम विमर्श पर्यंत पत्र ११ । भा. सं.। क. उदयप्रभसूरि। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८७८ ताजिकसारसूत्रज्योतिष पत्र २५। भा. सं.। क. हरिभट्ट। ले. सं. १८४४ । ग्रं. १३९४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४३॥ क्र. १८७९ प्रश्नमनोरमाविद्याज्योतिष पत्र ६। भा. सं. । क. गर्गाचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ९॥४४ क्र. १८८० पंचांगानयनविधिज्योतिष पत्र २। भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १८८१ भुवनदीपक सस्तबक पत्र ६-१३। भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०४३॥ क. १८८२ षष्टिसंवत्सर पत्र २० । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०४३॥ क्र. १८८३ श्रीपतिपद्धति अपूर्ण पत्र ३६। भा. सं। स्थि. मध्यम । ६. १५। लं.प. १०४३॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ११३-१४ क्र. १८८४ दशाकोष्ठकज्योतिष पत्र ५। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४। लं. प. ९॥४४ क्र. १८८५ उपदशायंत्र ज्योतिष पत्र २-६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २५। लं. प. ९।४३॥ क्र. १८८६ सारणी ज्योतिष पत्र ११। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ९॥४४ क्र. १८८७ कामधेनुकोष्टक ज्योतिष पत्र ७ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. २२। लं. प. ९॥४३॥। क्र. १८८८ दशाकोष्ठक ज्योतिष पत्र ५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९॥xx क्र. १८८९ महादेवीकोष्ठक ज्योतिष पत्र ९१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २६ । लं. प. ९॥४४ क्र. १८९० ज्योतिषसारणी पत्र ७६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८। लं. प. ९x४ क्र. १८९१ शीघ्रबोधज्योतिष पत्र २१ । भा. सं.। क. काशीनाथ भट्ट। ले. सं. १८६१ । स्थि . मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १८९२ भुवनदीपकज्योतिष सटीक पत्र २४। भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि। ले. सं. १६७८ । स्थि. मध्यम। पं. १३ । लं. प. ९॥४॥ क्र. १८९३ चरखंडांज्योतिषसारणी पत्र २। स्थि. मध्यम । पं. १९। लं. प. ९x४। क्र. १८९४ रत्नमाला बालावबोध सह पत्र ४८-९० । भा. सं. गू.। मू.क. श्रीपति । ले.सं. १८०४ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १८९५ वैद्यजीवन पत्र ३७ । भा. सं.। क. लोलिबराज। ले. सं. १८५० । स्थि. श्रेष्ठ पं. ९। लं. प. ९||४३॥ क्र. १८९६ योगचिंतामणी अपूर्ण पत्र ८२। भा. सं. । स्थि. जीर्ण। पं. ९ । लं. प. ९४३॥ पोथी ११४ मी क्र. १८९७ अनेकार्थनाममालाभाषा पत्र ५। भा. हिंदी । क. नंददास। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ८॥४४॥ क्र. १८९८ विश्वशंभुएकाक्षरनाममाला पत्र ५। भा. सं.। क. विश्वशंकर । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ८॥४४॥ क्र. १८९९ वाग्भटालंकारवृत्ति पत्र २४ । भा. सं. । वृ. क. जिनवर्धनसूरि । ले. सं. १८०७ । स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. ८॥४४॥ क्र. १९०० वाग्भटालंकार पत्र ९ । भा. सं.। क. वाग्भट । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ८४४ क्र. १९०१ विद्वन्मनोरंजनीप्रक्रिया पत्र ६३ । भा. सं. । क. शंकरदत्त । ले. सं. १८२० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. ८४४/ क्र. १९०२ तर्कभाषा अपूर्ण पत्र १४ । भा. स.। क. केशव । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ८॥४३॥ क्र. १९०३ निषेकोदाहरणज्योतिष पत्र २। भा. सं. । ले. सं. १८३९ । स्थि. मध्यम । पं. २३ । लं. प. ८॥४४॥ क्र. १९०६ श्रावकअतिचार पत्र ४ । भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ८॥x४। क्र. १९०५ षड़ पुच्चय बालावबोधसह पत्र १२। भा. सं. गू.। स्थि. मध्यम । पं.१३ । लं. प. ८४४i Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १८८४-१९२८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३३३ क्र. १९०६ विमयचंद्रकृत चोविशी पत्र ६ । भा. गू. । क. विनयचन्द्र । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ८ ।। ४४ । क्र. १९०७ भाषाभूषण पत्र ११ । भा. हिन्दी । स्थि. मध्यम । पं. १३ | लं. प. ८ ||२४| क्र. १९०८ ज्योतिषसारणी पत्र ९ । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. ८ ४४ । क्र. १९०९ धातुरूपावली पत्र ६७ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ९ | क्र. १९१० कोकसवैयाछप्पा पत्र १८ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. क्र. १९११ चिहुंगतिवेल पत्र ७ । भा. गू. । क. जिनआनंद । ले. सं. लं. प. ८ ||४४॥ १२ । लं. प. ८४४१ १६६६ । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. 211×8 क्र. १९१२ ग्रहलाघवसारणी पत्र २७ । स्थि. मध्यम । पं. १८ । लं. प. ८॥४४ क्र. १९१३ घीकोटीग्रंथ्यादि पत्र ४ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. क्र. १९१४ दंडकप्रकरण- विचारषत्रिंशिका स्वोपज्ञवृत्तिसह पत्र ७। भा. प्रा. सं. 1 क. गजसार । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ८॥४४॥ ८॥४ ८७ । भा. गू. । क. लावण्यकीर्त्ति । क्र. १९१५ रामकृष्णचरित्ररास पत्र स्थि. मध्यम । पं. ११ | लं. प. ८॥ ४४ ॥ क्र. १९१६ भगवद्गीता दोहासह भाषाटीका पत्र २६२ । भा.गू. । ले. सं. १८०९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. ८x४ क्र. १९१७ षष्टिशतप्रकरण पत्र ११ । भा. प्रा. । क. नेमिचंद भंडारी । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ८४४ क्र. १९१८ सौंदर्यलहरी पत्र १५ । भा. सं. । क. शंकराचार्य । स्थि. मध्यम । पं. ९ । लं. प. ७३|| क्र. १९१९ मृगांकलेखाचरित्रचोपाई पत्र २८ । भा. गू. । क. जिनहर्ष । र. सं. १७४८ । ले सं. १७८४ । स्थि. जीर्ण । पं. १९ । लं. प. ७||४३|| क्र. १९२० सुभाषितसंग्रह पत्र २९-३८ । भा. मिश्र । स्थि. मध्यम । पं. १० । लं. प. ७|| ४३ ॥ र. सं. १६७७ । पोथी ११५ मी क. १९२१ मेघदूतमहाकाव्य पत्र ७ । भा. सं. क. कवि कालिदास । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९ ||४ क्र. १९२२ सूक्तावली अपूर्ण पत्र १३ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ९॥४४ क्र. १९२३ सुभाषित पत्र २ । भा. सं. । का. ४१ । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प ९ ॥ ४३ ॥ क्र. १९२४ सुभाषितप्रास्ताविकश्लोक पत्र ५ । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९।४४ क्र. १९२५ अतिचारनी आठगाथा सटीक त्रिपाठ पत्र २ । भा. प्रा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १९२६ रसरत्नाकरवैद्यक पत्र ९ । भा. सं. 1 स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९२७ रूपमंजरी पत्र ६ । भा. सं. । क. रूपचंद्र । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ११५-१६ क्र. १९२८ वैद्यजीवन टिप्पणीसह पत्र २२ । भा. सं.। क. लोलिबराज। ले. सं. १७६३ । ग्रं. ४९८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. ९॥४३॥ क १९२९ धनंजयनाममाला पत्र २७ । भा. सं.। क. धनंजय । स्थि. जीर्ण । पं. ९ । लं. प. ९||४३॥ क्र. १९३० गणितनाममालाज्योतिष पत्र २। भा. सं.। क. श्रीपतिसुत । स्थि. जीर्ण। पं. २० । लं. प. ९॥४३।। क्र. १९३१ भट्टिकाव्य पत्र ६१। भा. सं. । क. भट्टिकवि । स्थि. जीर्ण । पं. १० । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९३२ भर्तृहरित्रिशती पत्र ३४ । भा. सं.। क. भर्तृहरि । ले. सं. १८७८ । स्थि. मध्यम । पं. ८ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १९३३ कालिकाचार्यकथानक गद्य पत्र ३० । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. ६ । लं. प. ९॥४३॥ ____ क्र. १९३४ कालिकाचार्यकथानक अपूर्ण पत्र ५ । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९३५ दिव्यतत्त्व पत्र २४ । भा. सं.। क. रघुनंदन भट्टाचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ९४४ क्र. १९३६ ग्रहलाघवज्योतिष पत्र ३७ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ८imxx क्र. १९३७ नारचंद्रज्योतिष पत्र १९ । भा. सं. । क. नरचंद्राचार्य । स्थि. मध्यम । पं. १६ । प. ८॥४३॥ क्र.१९३८ ज्योतिषसारणी पत्र १२४ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९४३॥ क्र. १९३९ व्याकरण पत्र २९ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. ९॥४४॥ क्र. १९४० किरातार्जुनीयमहाकाव्य पत्र ७४ । भा. सं. । क. भारवि । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ९x४.। प्रथम पत्र नथी। क्र. १९४१ रघुवंशमहाकाव्य अपूर्ण पत्र ६ । भा. सं. । क. कालिदास । स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ९/४३॥ क्र. १९४२ प्रक्रियाकौमुदी अपूर्ण पत्र ७४ । भा. सं. । क. रामचंद्राचार्य । स्थि. श्रेष्ठ । पं.१३ । लं. प. ९/४३॥ क्र. १९४३ सुभाषितश्लोकसंग्रह पत्र १५। भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. १२ । लं. प. ९४३॥.। पत्र ८ मुं नथी। क्र.१९४४ अलंकारमाला पत्र २३ । भा. हिन्दी । क. सूरतमिश्र । र. सं. १७६६ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. ९४३॥ अलंकारमाला करी सूरत मन सुखदाय । वरनत चूक परीलषौ लीजो सुकवि बनाय ॥४८॥ सूरतमिश्र कनौजिया नगर आगरे वास । रच्यो ग्रंथ तिह भूषन नवलित विवेकविलास ॥४९॥ संवत सत्तरह से वरस छासठ सावन मास । सुरगुर सुद एकादसी कोनो ग्रंथ प्रकास ॥५०॥ अलंकारमाला जु यह पढे सुनै चित लाय। बुद्धि समा पर वीनती ताहि देत हरिराय ॥५१॥ इति श्रीसूरतमिश्रविरचिते अलंकारमाला संपूर्ण ॥ आहडसर मध्ये ॥ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र. १९२९-५२] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र पोथी ११६ मी क्र. १९४५ रघुवंशमहाकाव्य पत्र १४६ । भा. सं. । क. कालिदास। ग्रं. २१००। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९। लं. प. १०॥x४ क्र. १९४६ दशवकालिकसूत्रलघुवृत्ति पत्र ५१। भा. सं.। मू. क. शय्यभवसूरि । ले. सं. १४८१। क. सुमतिसूरि। ग्रं. २८०० । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०॥४३॥ अंत सं. १४८१ श्रीपत्तने सा. देपापुत्रैः श्रीकीर्तिरत्नाचार्यमिश्रभ्रातृभिः सा. लखा सा. भादा सा. केल्हादिश्राद्धैः स्वपुण्यार्थ लेखिता॥ सं. १४९९ वर्षे श्रीसत्यपुरे शोधिता वा. शांतिरत्नगणिना पं.जिनसेनगणिसान्निध्यात् ॥ क्र. १९४७ गणधरसार्धशतक सटीक अपूर्ण पत्र ११० । भा. प्रा. सं.। मू. क. जिनदत्तसूरि । स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०४४ क्र. १९४८ उपदेशतरंगिणी पत्र ९-४१। भा. सं.। क. रत्नमंदिरगणि । ले. सं. १५३५ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १९ । लं. प. १०x४ क्र. १९४९ गणधरसार्धशतकप्रकरण पत्र ५। भा. प्रा.। क. जिनदत्तसूरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९५० गणधरसार्धशतक लघुटीकासह पत्र ३१ । भा. प्रा. सं. । मू. क. जिनदत्तसूरि । टी. क. सर्वराजगणि। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०४३॥॥ क्र. १९५१ चतुःशरणप्रकीर्णकादिप्रकीर्णकसंग्रह पत्र ९५। भा प्रा.। ग्रं. २८२५ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४४ (१) चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र १-४ । भा. प्रा.। गा. ६३ । (२) भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णक पत्र ४-११। भा. प्रा.। गा. १७२। (३) आउरपञ्चक्खाण पत्र ११-१४ । भा. प्रा.। गा.६.। संथारगपयन्नो पत्र १४--१९। भा. प्रा. । गा. १२१ । (५) तंदुलवेयालियपयन्नो पत्र २५-३३ । भा. प्रा.। (६) चंदाविज्झयप्रकीर्णक पत्र ३३-४०। भा. प्रा.। गा. १७४ । (७) देविदत्थओ पत्र ४०-५१। भा. प्रा.। गा. ३०० । (८) गणिविज्जाप्रकीर्णक पत्र ५१-५४ । भा. प्रा. । गा. ८६। (९) महापञ्चक्खाणप्रकीर्णक पत्र ५५-६० । भा. प्रा.। गा. १४१ । (१०) वीरस्तव पत्र ६०-६२ । भा. प्रा.। गा. ४३ । (११) अजीवकल्प पत्र ६३-६४ । भा. प्रा. । गा. ४५ । (१२) गच्छाचारप्रकीर्णक पत्र ६४-६९। भा. प्रा. | गा. १३७ । (१३) मरणविधिप्रकीर्णक पत्र ६९-९५ । भा. प्रा. । गा. ६५९ । आ प्रतिनां पाना सांधेलां छे। क्र. १९५२ भरतबाहुवलीकथा पत्र ४ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४४ क्र. १९५३ कथासंग्रह त्रूटक पत्र २-५८ । भा. सं. । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४३॥.। पत्र-१-४-८-१३-१७थी२७-३६-३९-४८-५४-५५-५७ नथी। Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ११६-१८ क्र. १९५४ कालिकाचार्यकथाबालावबोध त्रू. अ. पत्र १२थी२४ । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ । पाणीथी भींजाएली छे।। क्र. १९५५ कुमारविहारशतक पत्र ७। भा. सं.। क. रामचंद्रगणि। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. १०x४ क्र. १९५६ कुमारसंभवमहाकाव्य सप्तमसर्गपर्यंत पत्र २८ । भा. सं.। क. कालिदास । ले. सं. १७८६ । स्थि . मध्यम। पं. १२। लं. प. ९॥४३॥॥ क्र १९५७ कुमारविहारशतक पत्र ७। भा. सं. । क. रामचंद्रगणि । ले. सं. १४८९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६। लं. प. १०४३॥ क्र. १९५८ नलोदयकाच्यसावचरिक पंचपाठ पत्र ९। भा. सं.। क. रविदेव स्वोपज्ञ । ले. सं. १४९६ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. २३ । लं. प. १०x४ क्र. १९५९ जिनशतकमहाकाव्य पत्र ६। भा. सं. । क. जंबूकवि। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९६० जिनशतक सावचूरि पंचपाठ पत्र ९। भा. सं.। मू. क. जंबूकवि । ले. सं. १५२० । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १९। लं. प. १०x४ क्र. १९६१ इयाश्रयमहाकाव्य वृत्तिसह-कुमारपालचरित पत्र ४५। भा. प्रा. सं. । मू. क. हेमचंद्राचार्य । वृत्तिक. राजशेखर । र. सं. १३८७ । ग्रं. ३५०० । ले.सं. १५११ । स्थि. श्रेष्ठ । पं.१९ । लं. प. १०४४। क्र. १९६२ पट्टावली भाषानी खरतरगच्छीया पत्र ९ । भा. गू.। ले. सं. १७५५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६। लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. १९६३ पट्टावली खरतरगच्छीया पत्र ३। भा. गू.। स्थि. मध्यम। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९६४ पट्टावली खरतरगच्छीया पत्र ८। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९६५ पट्टावली खरतरगच्छीया पत्र १५। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७। लं. प. ९।४३॥ क्र. १९६६ कृत्यरत्नावली पत्र ११० । भा. सं.। क. रामचंद्रभट्ट । ग्रं. २३०० । ले. सं. १८३१। स्थि . मध्यम । पं. ११ । लं. प. १०x४॥ पोथी ११७ मी क. १९६७ राजमृगांकसारणी पत्र १६० । ले. सं. १८४५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २० । लं. प. १०४४॥ क्र. १९६८ श्रावकातिचार पत्र ८ । भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. १९६९ संबोधसप्ततिकाप्रकरण वृत्तिसह पत्र २० । भा. सं.। मू. क. रत्नशेखरसूरि । टी. क. अमरकीर्तिसूरि । ले. सं. १८९६ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०॥४४॥.। अंत पत्रमा गोडिपार्श्वनाथनुं स्तवन छे। क्र. १९७० चतुःशरणप्रकीर्णक पत्र २। भा. प्रा.। क. वीरभद्रगणी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०४४। Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ क. १९५४-१९८८ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. १९७१ पर्यताराधनाप्रकरण पत्र ४ । भा. प्रा.। क. सोमसूरि । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२ । लं. प. १०४४॥ क्र. १९७२ वर्षतंत्र पत्र २५ । भा. सं.। क. नीलकंठ। ले. सं. १८४२ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं प. १०x४॥ अंत संवत् १८४२ मिति आषाढ कृष्ण द्वादश्यां तिथौ श्रीमकसूदावादअजीमगंजमध्ये । श्रीखरतरगच्छाधिराज भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि शाखायां उपाध्याय श्रीज्ञानवर्धनगणि स्तत्सिष्य पं. कुशलकल्याणेन लिखितमिदं पुस्तकं चिरं। दुलीचंद्रादि पठनहेतवे ॥श्री॥ ___ क्र. १९७३ सूर्यचंद्रसारणी पत्र १३ । भा. सं. । क. त्रिविक्रम दैवज्ञ । ले. सं. १७७६ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १८। लं. प. १०x४॥ क्र. १९७४ ज्योतिषसारणी पत्र १०। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. १०४४ क्र. १९७५ धनफलीगणसारणी सस्तबक पत्र १० । भा. सं. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. २१ । लं. प. १०४४॥ क्र. १९७६ ज्योतिषसंग्रह परचुरण भा. मिश्र । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४॥ क्र. १९७७ ज्योतिषप्रकीर्णकसंग्रह भा. मिश्र । स्थि. मध्यम । लं. प. १०४४॥ क्र. १९७८ जीवाभिगमोपांगसूत्र अपूर्ण पत्र ५४ । भा. प्रा.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. १०x४॥. पोथी ११८ मी क्र. १९७९ स्तवन सज्झाय थोय विगेरे संग्रह भा. मिश्र । स्थि. मध्यम । लं. प. १०x४॥ क्र. १९८० धन्यशालिभद्ररास पत्र ७५। भा. गू । क. जिनविजय । ले. सं. १८२२ । स्थि . मध्यम। पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. १९८१ श्रीपालरास पत्र २७ । भा. गू. । क. जिनहरख । र. सं. १७४० । ग्रं. १२६० । स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. १९८२ श्रीपालरास अपूर्ण पत्र १० । भा. गू. । पं. ११ । स्थि. जीर्ण । पं. ११ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९८३ श्रीपालरास अपूर्ण पत्र ? । भा. गू.। क. जिनहर्ष । र. सं. १७४० । स्थि. मध्यम । पं. १२। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९८४ अंजनासुंदरीपवनंजयकुमाररास पत्र २३ । भा. गू.। क. पुण्यसागर। र. सं. १६८९ । स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९८५ मृगावतीरास अपूर्ण पत्र १८ । भा. गू. । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. ९x४/ क्र. १९८६ सुरसुंदरीरास पत्र ३३। भा. गू.। क. नयनसुंदरजी। र. सं. १६४४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९८७ शत्रुजयउद्धाररास पत्र ३ । भा. गू. । क. नयसुंदर। र. सं. १६४८। ले. सं. १७७१। स्थि . मध्यम। पं. २०। लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९८८ शश्रृंजयआदिराससंग्रह पत्र ३-२४ । भा. गू.। ले. सं. १८७० । स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. ९x४ ४३ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी ११८ (१) शत्रुजयरास पत्र ३-६ । क. समयसुंदरजी। (२) अतिसकमालचोढालीया पत्र ६-११। क. जिनहर्ष । (३) आषाढाभूतिधमाल पत्र ११-१४ । क. कनकसोम। र. सं. १६३८ । (४) मेघकुमारराजर्षिसन्झाय पत्र १५-२४ । क. श्रीसार । क्र. १९८९ अभयकुमाररास अपूर्ण पत्र ११। भा. गू.। क. पद्मराज। र. सं. १६५० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ९॥४३॥॥ ___ क्र. १९९० परदेशीराजारास अपूर्ण पत्र ६ । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥ . क. १९९१ जिनप्रतिमास्थापनरास पत्र २ । भा. गू.। क. पार्श्वचंद्रसूरि। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९x४ क्र. १९९२ विद्याविलासचोपाई पत्र १६ । भा. गू.। क. आज्ञासुंदर । र. सं. १५१६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. १०४४ क्र. १९९३ हंसराजवच्छराजचोपाई अपूर्ण-बेटक पत्र १२-२५। भा. गू. । ले. सं. १६४७ । स्थि . जीर्ण। पं. १२ । लं. प. १०४४ क्र. १९९४ रत्नचूडमुनिचोपाई पत्र २६ । भा. गू.। क. कनकनिधान । र. सं. १७२४ । ले. सं. १८११। स्थि . जीर्ण। पं. १२ । लं. प. ९।४३॥ क्र. १९९५ माधवानलकामकंदलाचोपाई अपूर्ण पत्र १२ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. १९९६ चंद्रलेखाचोपाई पत्र २३ । भा. गू. । क. मतिकुशल। र. सं. १७२८ । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ९x४। ___ क्र. १९९७ मृगावतीचोपाई पत्र ९। भा. गू.। क. चंद्रकीति। र. सं. १६८२ । स्थि. मध्यम। पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ ___ क्र. १९९८ जयसेनकुमारचोपाई तथा रात्रिभोजनचोपाई पत्र १३ । भा. गू. । क. धर्मसमुद्रवाचक । स्थि. जीर्ण। पं. १३। लं. प. ९x४ क. १९९९ शालिभद्रचोपाई पत्र १७ । भा. गू. । क. मतिसार । र. सं. १६७८ । ले. सं. १७२३ । स्थि. जीर्ण। पं. १३ । लं. प ९॥४४॥ क्र. २००० उपदेशरसाल पत्र ६७। भा. सं. ले. सं. १८१३। ग्रं. ३०००। स्थि . मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९x४ क्र. २००१ अइमत्तामुनिचोढालियु पत्र २। भा. गू.। क. नयरंग। स्थि. जीर्ण। पं. १३ । लं. प. ९x४ ___क्र. २००२ दानशीलतपभावनाचोपाई पत्र ५। भा. गू.। क. समयसुंदर। र. सं. १६६४ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९४३॥ क्र. २००३ ज्ञानपचीसी पत्र २। भा. हिन्दी। क. बनारसीदास । ले. सं. १७३२ । स्थि. जीर्ण । पं. ९ लं. प. ९॥४३॥ . क्र. २००४ स्त्रीसंयोगबत्रीसी पत्र ५। भा. गू.। ले. सं. १८१३ । स्थि. मध्यम। पं. १७ ॥ लं. प. ९॥४३॥ क्र. २००५ शाश्वतजिनस्तोत्र पत्र २। भा. प्रा.। क. देवेंद्रसूरि। गा. २४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. ९॥४३॥ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. १९८९-२०२० ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३३९ ___ क्र. २००६ ऋषभदेवस्तवन बालावबोधसह पत्र ५। भा. प्रा. गू. । मू. क. विजयतिलक । स्थि . मध्यम। पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २००७ वासुपूज्यजिनपुण्यप्रकाशस्तवन पत्र २६ । भा. गू.। क. सकलचंद्र । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. ९॥४३॥ क्र. २००८ जिनप्रतिमाहुंडीस्तवन पत्र २-४ । भा. गू.। क. विजय । ले. सं. १६४३ । स्थि. जीर्ण। पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. २००९ वीसस्थानकतपस्तवन पत्र २। भा. गू.। क. वस्तो। ले. सं. १६३८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ९४३॥ क्र. २०१० गोडीपार्श्वनाथस्तवनादि पत्र ४। भा. गू.। र. सं. १८१३ । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ८॥४३॥ (१) गोडीपार्श्वनाथस्तवन पत्र १-३ । क. जिनलाभ। (२) शांतिजिनस्तवन पत्र ३जुं । क. धर्मवर्धन | र. सं. १७०० । (३) पार्श्वनाथस्तवन पत्र ३-४। क. जिनहर्ष । क्र. २०११ वीसविहरमानजिनगीतो अपूर्ण पत्र ३ । भा. गू.। क. जिनराज। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०४४ क्र. २०१२ आदिनाथस्तवनादि स्तवनो पत्र ४। भा. गू. । स्थि. मध्यम। पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥ (१) आदिनाथम्तवन पत्र १-२ । क. विजयतिलक। गा २१ । (२) सामायिकदोषनिवारणस्तवन पत्र २-३। क. वा. गुणरंग। गा. ३२ । (३) उपदेशस्तवन पत्र ३-४ । क. धर्मसी। (४) गोडीपार्श्वनाथस्तवन पत्र ४ थें । क्र. २०१३ महावीरस्तवन नयनिक्षेपविचारगर्भित पत्र ३ । भा. गू. । क. रामविजय। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. २०१४ स्थविरावलीस्वाध्याय पत्र २। भा. गू.। क. सहजकीर्ति। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३। लं. प. १०x४ क्र. २०१५ सुंदरशंगार पत्र ५-२३ । भा. हिन्दी। क. कवि राजसुंदर । ले. सं. १७५७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०१६ जीवोत्पत्तिसज्झाय कलियुगगीत पत्र २ । भा. गू. । जी. क. श्रीसार । क. क. कर्मचंद । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १८ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०१७ सीमंधरस्वामिस्वाध्याय पत्र ३ । भा. गू.। क. लावण्यसमय । र. सं. १५६२ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. ११ । लं. प. ९x४ ___क्र. २०१८ प्रेसठशलाकापुरुषस्तवन पत्र २ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९।४३॥ क्र. २०१९ राजनीतिकवित पत्र १५। भा. हिन्दी । क. देवीदास । ले. सं. १८७४ । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९॥४४ क. २०२० महावीररसोइस्तवन पत्र १। भा. गू. । क. दयासागर । स्थि. जीर्ण । पं. १७ । लं. प. ९x४ Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ११८-१९ क्र. २०२१ मल्लिनाथबृहत्स्तवन पत्र २ । भा. गू. । क. कुशललाभ । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४४ . क्र. २०२२ हितशिक्षा पत्र १ । भा. गू। क. धरणसी। स्थि. मध्यम। पं. १८ । लं. प. ९॥४४ क्र. २०२३ कोकचोपाई पत्र २३ । भा. गू. । क. नर्बुद । स्थि. जीर्ण । पं. १४। लं. प. ९॥॥४३॥1.। पाणीथी भींजाएली छे। ___क्र. २०२४ गोरावादरप्रस्ताविक पत्र ९। भा. गू.। ले. सं. १७६६ । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९॥॥४३॥ क्र. २०२५ पृथ्वीराजवेली सस्तबक अपूर्ण पत्र १५ । भा. हिंदी। स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. ९॥४३॥ पोथी ११९ मी क्र. २०२६ मुष्टिज्ञान आदि पत्र ४ । भा. गू.। स्थि. मध्यम। पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. २०२७ अभिधानचिंतामणिनाममाला पत्र ४५। भा. सं.। क. हेमचंद्राचार्य । ले. सं. १६८५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०x४|| क्र. २०२८ चैत्यवंदनचतुविशतिका पत्र ४ । भा. सं.। क. क्षमाकल्याण। स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. १०x४..। पत्र ३ जु नथी। क्र. २०२९ सारस्वतव्याकरण अपूर्ण पत्र २० । भा. सं.। क. अनुभूतिस्वरूपाचार्य । स्थि. मध्यम । पं.११। लं. प. १०x४॥ क्र. २०३० श्रीचंदरास अपूर्ण पत्र ?। भा. गू.। स्थि . मध्यम। पं. १८। लं. प. १०x४॥ क्र. २०३१ चोवीसतीर्थकरगीत पत्र३। भा. हिन्दी। क. लक्ष्मीवल्लभ। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. २०३२ नर्मदासुंदीरास अपूर्ण पत्र ३१ । भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. १०४४। क्र. २०३३ सवैया-ऋषभदेवछंद आदि पत्र ३ । भा. गू. । स्थि. जीर्ग । पं. १३ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. २०३४ स्वरोदय पत्र ९। भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. २०३५ प्रतिष्ठाविधि पत्र ७ । भा. मिश्र । स्थि. जीर्ण । पं. १३ । लं. प. १०४४ क्र. २०३६ जिनजन्माभिषेकमहोत्सव पत्र २। भा. सं.। क. इंद्र । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. २०३७ भगवतीसूत्र अपूर्ण पत्र १०-१४ । भा. प्रा.। स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. १०४४/ क्र. २०३८ सप्तस्मरण पत्र ४ । भा. प्रा. स.। स्थि. जीर्ण। पं. १४ । लं. प. १०४४ (१) एकीभावस्तोत्र पत्र १-२। क. वादिराज । का. २५ । (२) पार्श्वनाथस्तोत्र पत्र २ जु। (३) पार्श्वनाथस्तोत्र पत्र २ जु। (४) भावारिवारणस्तोत्र पत्र ३ जूं। क. जिनवल्लभ । Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २०२१-४९] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र (५) भयहरस्तोत्र पत्र ३-४ । (६) लघुशांति पत्र ४ थें ।। ___क्र. २०३९ सारस्वतपुंजराजीटीका अपूर्ण पत्र ७६ । भा. सं.। क. पुंजराज। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. १०४४ क्र. २०४० समासयोगपटल पत्र २ । भा. सं.। स्थि. मध्यम। क. वररुचि। पं. १६ । लं. प. १०४४। क्र. २०४१ माघकाव्य संदेहविषौषधिटीका अपूर्ण पत्र २४ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । टी. क. आनंददेव । पं. १६ । लं. प. १०४४। आदि यस्य भुंगावलिः कंठे दानांभोराजरंजिते । भाति रुद्राक्षमालेव स वः पायाद् गणाधिपः ॥१॥ अभीष्टफलसंपत्तिहेतुं स्मृत्वा सरस्वतीं। शिशुपालवधे काव्ये सारटीका विधीयते ॥२॥ मन्त इति श्रीआनंददेवायनिविरचितायां संदेहविषौषध्यां नाम्न्यां शिशुपालवधटीकायां प्रथमः सर्गः ।। क्र. २०४२ भावारिवारणस्तोत्र वृत्तिसह पत्र ७ । भा. सं. । मू. क. जिनवल्लभ । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥। क. २०४३ ज्ञानपहेरामणी आदि पत्र ३ । भा. प्रा. । स्थि. जीर्ण । पं. १७ । लं. प. १०४४ क्र. २०४४ अनेकविचारसंग्रह पत्र ९ । भा. प्रा. सं.। क. रत्नसूरि । ले. सं. १६१६ । स्थि. मध्यम । पं. २१ । लं. प. १०४४ अन्त पूज्यभट्टारकपुरंदर प्रामाणिकप्रकरालंकरण विद्वद्जनशिरोमणि कुमततमोनिन् शननभोमणि सुविहितचूडामणि । महामोहांधकारप्रणाशनगृहमणि श्रीगणरत्नसूरिविरचिताः समाप्ताः ॥छ||श्री॥ संवत् १६१६ वर्षे माघमासे शक्लपक्षे १२ गुरुवासरे अदेह राजपुरवास्तवां राउल ककीआ लक्षितं ॥छ॥श्री॥ क्र. २०४५ कल्पसूत्रनी मांडणी पत्र ४ । भा. गू। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १०४३॥ क्र. २०४६ स्थानांगसूत्रना बोल पत्र ७। भा. गू.। स्थि. मध्यम। पं. १८। लं. प. १०x४ क्र. २०४७ढंढकप्रतिक्रमण पत्र ११। भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. ९। लं. प. १०४३॥ क्र. २०४८ वाग्भटशारीरस्थान पत्र ५१। भा. गू.। ले. सं. १७१५ । स्थि. जीर्ण । पं. ६ । लं. प. १०x४ क्र. २०४९ अभिधानचिंतामणिनाममाला पत्र ७४ । भा. सं.। ले. सं. १७२१ । पं. ११। लं. प. १०x४ अंत संवत् १७२१ वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे एकादशीतिथौ भोमवारे मृगसिरनक्षत्रे विकुंभयोगे श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनरत्नसूरि तत्पट्टालंकार भट्टारकयुगप्रधान श्रीजिनरत्नपूरि तत्पट्टालंकार भट्टारकयुगप्रधान श्री श्री श्रीजिनचंद्रसूरिविजयराज्ये श्री श्री श्री श्रीसागरचंद्रसूरिसंताने महोपाध्याय श्रीदयारतनगणि तशिष्य वा. श्रीशिवदेवगणि तशिष्य वाचनाचार्य श्री सहजकीर्तिगणि तशिष्य वा. श्री श्रीराजचंद्रगणि तशिष्य वाचकराज श्रीजयनिधानगणिगजेन्द्राणां शिष्य पंडितप्रवर श्री श्री कमलसिंहगणि तशिष्य पं. कमलरत्नगणि लिखितं शिष्य पं. दानचन्द्रपठनार्थ श्रीसिंधुदेशे श्रीहाजीषानदेशमध्ये चतुर्मासी कृता तदा लिखिता ॥ शुभं भवतु ॥श्री॥ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ प्रोथी ११९, २० क्र. २०५० योगविधिआदि पत्र ३९ । भा. मिश्रित । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०।४४ क्र. २०५१ बिहारी सतसइयां पत्र २४ । भा. हिन्दी । क. बिहारीदास । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०x४ ३४२ क्र. २०५२ आराधना पत्र ५ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १७ लं. प. क्र. २०५३ स्तवनचोवीसी पत्र १६ । भा. गु । क. ज्ञानविमल । स्थि. लं. प. ९ ॥ ४४ क्र. २०५४ बृहत्संहितागत अधिकार पत्र ३ | भा. सं. 1 स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ९ ॥ ४३ ॥ ॥ क्र. २०५५ देशकालस्वरूप पत्र ५ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. क्र. २०५६ हेमचातुपाठ पत्र ७ । भा. सं. । ले. सं. १७९६ । लं. प. १०x४ । क्र. २०५७ भोजराजकथा पत्र ४ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. क्र. २०५८ आगमसारबालावबोध पत्र ६४ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९ |||४४ क्र. २०५९ लिंगानुशासन पत्र ३ । भा. सं । क. हेमचन्द्राचार्य । ले. सं. मध्यम | पं १५ । लं. प. ९ ।। ४४ ९४४ मध्यम । पं. ९ । १७ । लं. प. १०x४ स्थि. मध्यम । पं. १७ । १२ । लं. प. ९ ||४| क. देवचंद्रजी । ग्रं. ३००० । १६८० । स्थि. क २०६० शक्रस्तवाम्नाय पत्र १ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९ ॥ ४४ क्र. २०६१ स्वरोदय पत्र १३ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९४४ क्र. २०६२ प्रश्नोत्तरसार्धशतकभाषा पत्र २५ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. २०६३ सामायिकबत्रीसदोषसज्झाय पत्र २ । भा. गू. । क. गुणरंग । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. २०६४ सज्झायसंग्रह पत्र ३ । भा. गू. । ले. सं. १८१० । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. २०६५ सत्तरभेदीपूजा पत्र ७। भा. गू. । क. साधुकीर्त्ति । र. सं. १६१८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ९ ॥ ४४ ॥ क्र. २०६६ अष्टयोगिनीअंतर्दशा पत्र ३ । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९४४ ॥ क्र. २०६७ अंतर्दशाकोष्ठक पत्र ७ । स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९४४ | क्र. २०६८ आवश्यकपीठिकाबालाबबोध पत्र १५ । भा. गू. । क. संवेगदेवगण । र. सं. १५१४ । ले. सं. १५५७ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २० । लं. प. ९x४ अंत श्री सोमसुंदर युगोत्तमसूरिशिष्यः संवेगदेव गणिरिद्रतिथि १५१४ प्रमेऽब्दे । आवश्यकस्य धुरि संस्थितपीठिकाया बालावबोधमतनोत् स्वपरार्थसिद्धयै ॥१॥ इति श्री आवश्यक प्रथमपीठिका वालावबोधः समर्थितः ॥ ग्रंथाग्रं १२११ ॥ श्रीः ॥ संवत् १५५७ वर्ष . माघ वदि ४ खौ । श्रीमति गंधारबंदिरे लिखितोऽयं ग्रंथः ॥ क्र. २०६९ मार्गगत्यध्ययन सावचूरि पत्र २-८ । भा. सं. 1 लं. प. ९/४३ ॥ स्थि. मध्यम । पं. १६ । Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४३ क्र. २०५०-९२] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २०७० पासाकेवली पत्र १३ । भा. गू.। स्थि. जीर्ण । पं. १३। लं.प. ९॥४३॥ क्र. २०७१ त्रिपताकीचक्रोदाहरण पत्र १। भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९।४३॥ क्र. २०७२ नृसिंहकवच पत्र १। भा. सं.। स्थि . मध्यम । पं. १६। लं. प. ९॥४३॥। क्र. २०७३ नवकारनो अर्थ पत्र ३ । भा. गू. । पं. १४ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ९॥४४ पाथी १२० मी क्र. २०७४ जिनागमगाथासंग्रह पत्र १२ । भा. प्रा.। क. रत्ननिधान । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०७५ प्रश्नोत्तरीसंग्रह पत्र २४ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ ___ क्र. २०७६ श्रीदेवीवर्णन (चतुर्थस्वप्नवर्णन) पत्र २ । भा. गू। स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ९॥xm __ क्र. २०७७ दशआश्चर्यस्वरूप पत्र ६ । भा. प्रा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०७८ चतुर्दशस्वप्नविचार पत्र ५। भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. २६ । लं. प. ९॥४४ क्र. २०७९ नागमहामंत्रषोडश पत्र १। भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १६ । लं. प. ९।।।४४ क्र. २०८० नागमंताचोपाई पत्र ३। भा. गू.। क. मेरुशेखर। ले. सं. १७३०। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०८१ भगवतीसूत्रगतशतकादि पत्र ७० । भा. प्रा.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ९x४ ___क्र. २०८२ कल्पसूत्रकल्पद्रुमटीका अपूर्ण पत्र ३ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ९।४३॥ क्र. २०८३ कल्पसूत्र अपूर्ण पत्र ९। भा. प्रा.। स्थि. मध्यम । पं. ६ । लं. प. ९॥४३॥ क. २०८४ कल्पसूत्र अपूर्ण पत्र १२। भा. प्रा.। स्थि. जीर्ण। पं. ७। लं. प. १०४४ क्र. २०८५ शयुंजयमाहात्म्य चतुर्थसर्ग पत्र ५। भा. सं.। क. धनेश्वरसूरि। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥॥ क्र. २०८६ चोल्लकदृष्टान्त पत्र १३ । भा. सं.। ले. सं. १७१२ । स्थि. जीर्ण। पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०८७ दशप्रश्नोत्तर पत्र ६। भा. प्रा. सं.। स्थि. जीणे। पं. १५। लं. प. ९४३|| क्र. २०८८ वृत्तज्योतिष पत्र ६ । भा. सं.। क. महेश्वराचार्य। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. १०४४ क्र. २०८९ पार्श्वनाथदशभव संक्षेपबालावबोध पत्र १३ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०९० खरतरगच्छसामाचारी अष्टोत्तरीस्नात्रविधि पत्र ३ । भा. प्रा. सं. गू.। क. जिनपतिमुरि। स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०९१ खरतरगच्छसामाचारी पत्र २। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥ ऋ.२०९२ श्रावकआराधना पत्र ५। भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९॥४३॥ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १२०-२१ क्र. २०९३ सिद्धान्तहुंडी पत्र । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. २३ । लं. प. ९॥४३॥.। प्रति पाणीथी भीजाएली छे। क्र. २०९४ वसुधारा पत्र ८। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. ९।४३॥॥ क्र. २०९५ चार्चिक पत्र १२। भा. प्रा. सं.। स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०९६ मोकलीआराधना पत्र २। भा. गू.। स्थि. जीर्ण। पं. १६। लं. प. ९४३॥ क्र. २०९७ प्रश्नोत्तरसंग्रह पत्र १३ । भा. गू.। क. जयसोम । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २०९८ योगविधि पत्र ११। भा. सं. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १७। लं. प. ९॥४४ क्र. २०९९ रत्नकोश पत्र ४। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. २० । लं. प. ९x४ क्र. २१०० पौषधादिविधि ज्वरहरादिमंत्र पत्र ३। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं २३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २१०१ आराधना पत्र ५। भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २१०२ सोलस्वप्नविचार पत्र २। भा. प्रा.। स्थि. जीर्ण । पं. १७ । लं. प. ९॥४४ क्र. २१०३ योगविधि यंत्र पत्र ५। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२। लं. प. ९४४ क्र. २१०४ वसुधारा पत्र ३ । भा. सं.। ले. सं. १७२१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८। लं. प. ९|||४४ क्र. २१०५ आठकर्मनी उत्तरप्रकृति पत्र ३। भा. गू। स्थि. मध्यम। पं. १६ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. २१०६ योगविधि पत्र २५ । भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ९॥x४ क्र. २१०७ स्वरोदयविचार पत्र २ । भा. गू । ले. सं. १८४३ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ९४४ क्र. २१०८ द्वादशव्रतअतिचारस्वरूप पत्र ३ । भा. गृ.। स्थि. मध्यम । पं. १४। लं. प. ९॥४४ क्र. २१०९ पंचसमितिसज्झाय पत्र ४ । भा. गू.। क. देवचंद्रजी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७॥ लं. प. ९४४। क्र. २११० एगुणतीसीभावना संस्कृत स्तबक सह पत्र २। भा. प्रा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९॥४४ क्र. २१११ अष्टप्रकारीपूजा पत्र १४ । भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. ९। लं. प. ९:४३॥ क्र. २११२ शानछत्रीशी पत्र ४ । भा. गू. । क. कान्हजी। स्थि. मध्यम । पं १३ । लं. प. ९॥४३॥ क्र. २११३ गजसिंहचरित्ररास पत्र २० । भा. गू. । क. राजसुंदर। र. सं. १५५६ । ले. सं. १८११। स्थि . जोर्ण । पं. १२। लं. प. ९॥४३॥.। प्रति उघइथी खवायेली छे। क्र. २११४ नवपदपूजा-अपूर्ण. पत्र । क. उ. यशोविजयजी। भा. ग.। स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. ९॥४३॥ ___ क्र. २११५ लोंकाहुंडी ५८ बोल पत्र ३१ । भा. ग. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ९४३॥ क्र. २११६ चंदराजरास अपूर्ण पत्र २६ । भा. ग. । स्थि. मध्यम । पं. १० । लं. प. ९४३॥ Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २०९३-२१२५] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २११७ सिंहासनबत्रीसीरास अपूर्ण. पत्र २-६२ । भा. ग.। स्थि. जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ९४३॥ क्र. २११८ चतुःश्लोकीप्रकाश पत्र १९ । भा. सं. । क. केशवभट्ट । स्थि. मध्यम । पं. १० । लं. प. ९४३॥ क्र. २११९ स्वरोदयसिद्धि पत्र ११ । भा. गू । ले. सं. १८५३ । स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. ९४३॥ पोथी १२१ मी क्र. २१२० प्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति तथा सप्तस्मरणवृत्ति पत्र ५१ । भा. सं. । ले. सं. १८८५ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. २०। लं. प. १०॥४५ (१) चैत्यवंदनकप्रत्याख्यानलघुवृत्ति पत्र १-१० । क. तिलकाचार्य । (२) वंदित्तुसूत्रवृत्ति पत्र १०-१४ । क. तिलकाचार्य। (३) चत्तारि अट्ट दस दोय सूत्रवृत्ति पत्र १४ । क. देवेन्द्रसूरि । (४) नवग्रहस्तुतिगर्भितपार्श्वनाथस्तुतिवृत्ति पत्र १४-१६ । क. जिनप्रभसूरि स्वोपज्ञ । (५) लघुशांतिवृत्ति पत्र १६-१८ । क. हर्षकीर्तिसूरि। (६) अजितशांतिवृत्ति पत्र १८-२७ । क. जिनप्रभसूरि । र. सं. १३६५। ग्रं. ७४० । (७) लघुअजितशांतिवृत्ति पत्र २७-३१। भा. प्रा.। क. धर्मतिलकोपाध्याय । र. सं. १३२२ । ग्रं. ३२० । (८) भयहरस्तोत्रवृत्ति पत्र ३१-३५ । क. जिनप्रभसूरि। ग्रं. ३०० । (९) तं जयउ०स्तववृत्ति पत्र ३५-३७ । क. वाचनाचार्य जयसागर । (१०) गुरुपारतंत्र्यस्तववृत्ति पत्र ३७-३९ । (११) सिग्घमवहरउ स्तोत्र पत्र ३९ । (१२) उवसग्गहरंवृत्ति पत्र ४०-४३ । क. जिनप्रभसूरि । (१३) भक्ष्याभक्ष्यगाथावृत्ति पत्र ४३ । (१४) पार्श्वनाथस्तोत्रवृत्ति पत्र ४३-४४ । (१५) , , , पत्र ४४-४५ । (१६) साधुप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति पत्र ४५-४९ । (१७) तिजयपहुत्तस्तोत्रवृत्ति पत्र ४९-५१। क. हर्षकीर्ति । ले. सं. १८८५ । क्र. २१२१ प्रकीर्णकविचारसंग्रह पत्र १० । भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. ३१। लं. प. ८॥४५ क्र. २१२२ सारोद्धारकोश सस्तबक पत्र ३५। भा. सं. । स्थि. जीर्ण। पं. १२ । लं. प. १०॥४३॥ क्र. २१२३ गौतमस्वामिरास पत्र ६। भा. ग.। क. विनयप्रभ । र. सं. १४१२। ले. सं. १७२९ । स्थि . मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २१२४ लघुसिद्धांतकौमुदी अपूर्ण. पत्र २५ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११। लं. प. १.४४|| क्र. २१२५ शंखेश्वरपार्श्वनाथछंद पत्र ३ । भा. गू.। क. कवि वर्द्धमान। स्थि. मध्यम । पं. १३। लं. प. १०x४॥ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १२१-२२ क्र. २१२६ द्वादशभावफल विवरणज्योतिष पत्र १५। भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १९। लं. प. १०॥x५. | पाणीथी भींजाएली छे। क्र. २१२७ अध्ययसंग्रह पत्र ५। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. १०॥४४॥ क्र. २१२८ जीवविचारप्रकरणवृत्ति पत्र ६। भा. सं.। स्थि. मध्यम। पं. १४ । लं. प. १०x४॥ क्र. २१२९ एकाक्षरीनाममाला पत्र ११। भा. सं. गू। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. १०x४॥ क्र. २१३० पापिनीयव्याकरणगणपाठ पत्र ४६ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. ८। लं. प. १०x४॥ क्र. २१३१ कल्पसूत्रटीका अपूर्ण पत्र १५। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. १०४४। क्र. २१३२ श्रीचंद्रीयसंग्रहणीप्रकरण पत्र २०। भा. प्रा.। क. श्रीचंद्रसूरि । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. १०॥४४॥ क्र. २१३३ चितामणिसार प्रत्यक्षखंड पत्र ४४ । भा. सं.। क. भवानंद सिद्धांत । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. १०x४॥.। लखतां अधुरी छ। आदि नवनीलांबुदरुचिरं चरणरणत्किंकिणीजालं। यंगबीनचोरं नंदकिशोरं नमस्यामः ॥१॥ प्रत्यक्षीयमणौ सारमालोकोऽय प्रयत्नतः। श्रीभवानंदसिद्धांतवागीशेन प्रकाश्यते ॥२॥ क्र. २१३४ पद्मकोश पत्र ६। भा. सं.। स्थि . मध्यम । पं. १८। लं. प. १०४४। क्र. २१३५ ऋषभदेवस्तवन आदि पत्र ६। भा. गू। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०॥४४॥ (१) आदिनाथस्तवन पत्र १-२ । क. रतनचंद। (२) आदिनाथस्तवन पत्र २-३। क. समयसुंदर। (३) लोदवास्वामिलेख पत्र ३-४ । क. जिनचंद्रसूरि । (४) चौदगुणस्थानकस्तवन पत्र ४-६ । क. धर्मसी । क्र. २१३६ बैंतालीसदोषविवरणस्तवन पत्र २। भा. गू.। क. सिद्धार्थमुनि। र. सं. १८७८ । स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. १०४३॥ ___ क्र. २१३७ स्नात्रविधि पत्र ७ । भा. गू.। क. देवचंद्र। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४। लं. प. १०x४|| क्र. २१३८ दंडकचोवीसबोलयंत्रपट पत्र १। स्थि. श्रेष्ठ । क्र. २१३९ श्रीपालरास अपूर्ण पत्र ४८। भा. गू.। क. विनयविजयजी यशोविजयजी। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ९॥४४॥ क्र. २१४० दानविजयचोवीसी पत्र ५। भा. गू. । क. दानविजयजी। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९४४॥ क्र. २१४१ महावीरस्तुतिआदि पत्र २। भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ९४३॥॥ क्र. २१४२ कालकाचार्यकथानक. पत्र १९ । भा. गू। स्थि. मध्यम। पं. १२। लं. प. ८॥४३॥ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २१२६-६०] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २१४३ दिगंबरचोरासीबोल पत्र ३। भा. गू. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १२ । लं. प. ९॥४३।।। क्र. २१४४ भक्तामरस्तोत्रभाषाकवित पत्र ८-१४ । भा. गू.। क. हेमराज । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ८॥४३॥ __ क्र. २१४५ सुभाषितश्लोकसंग्रह पत्र २-११। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२। लं. प. ८॥४३॥ क्र. २१४६ मेघदूतमहाकाव्य पत्र १६ । भा. सं. । क. कालिदास। स्थि. श्रेष्ठ। ले. सं. १८१२। पं. ५। लं. प. ८॥४३॥ क्र. २१४७ प्रश्नोत्तर तथा बोलविचार पत्र २५। भा. गू । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ८४३॥ क. २१४८ बोलविचारसंग्रह पत्र ११। भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १४ । लं. प. ८४४ क्र. २१४९ चातुर्मासिकव्याख्यानबालावबोध पत्र १२। भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १९ । लं. प. ७॥४४ क्र. २१५० भवानीकवच आदि पत्र । भा. सं.। क. हरिहरब्रह्म । स्थि. मध्यम। पं. ११ । लं. प. ॥४४॥ क्र. २१५१ गोडीपार्श्वनाथछंद पत्र १ । भा. गू.। क. रूपचंद । गा. ११३ । स्थि. जीर्ण । लं. प. ७४४ क्र. २१५२ गोरखबोधवाणी आदि दुहाकवितसंग्रह पत्र ६३ । भा. गू.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. २० । लं. प. ७॥४४॥ क्र.२१५३ कटमदगर पत्र ८ भा.सं.। क. माधव । ले. सं. १८१२ स्थि . मध्यम। पं.१४॥ लं. प. uix४॥ पोथी १२२ मी क्र. २१५४ मोतीकपासीयासंवाद पत्र ४ । भा. गू. । क. श्रीसार। स्थि. मध्यम । पं. १५। लं. प. ७४४ क्र. २१५५ विचारसित्तरिप्रकरण सस्तबक पत्र ९। भा. प्रा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १५ । लं. प. ७४४ क्र. २१५६ वार्तासुभाषितादि पत्र २१। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. sixe क्र. २१५७ विनोदकथासंग्रह अपूर्ण पत्र ३२ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. ७.४४ क्र. २१५८ दृष्टिफलज्योतिष अपूर्ण पत्र ३ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १६। लं. प. ॥४४ क्र. २१५९ पच्चक्खाणविचारगर्भ पार्श्वनाथस्तवन पत्र ३। भा. गू. । क. वाचक खेम । स्थि . मध्यम । पं. १९। लं. प. ॥४४ क्र. २१६० साधुषडावश्यकसूत्र आदि पत्र ११२। भा. प्रा. सं. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. ८४३|| Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी १२२-२४ (१) प्रतिक्रमणसूत्र पत्र १-९ । (२) प्रव्रज्याकुलक पत्र ९-११। गा. ३४ । (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र पत्र ११-१४ । णस्तोत्र पत्र १४-२८ । क. अभयदेवसूरि। गा. ३० । (५) वंदित्त पत्र १८-२१ । (६) संथारापोरसी पत्र २१-२२ । (७) सीमंधरस्वामिआदिनी स्तुतिओ-स्तवन-स्तोत्र पत्र -२२ ४४ । (८) अजितशांति पत्र ४४ ४९ । (९) लघुअजितशांति पत्र ४९-५१ । (१०) नमिऊणस्तोत्र पत्र ५१-५४ । (११) महरियगुण पत्र ५४-५६ । सग्घमवहरउस्तोत्र पत्र ५६-५७ । (१३) लघुशांति पत्र ५७-५८ । (१४) तिजयपहुत्त पत्र ५८-५९ (१५) उपदेशमाला पत्र ५९-६३ । (१६) भक्तामरस्तोत्र पत्र ६३-६८ । (१७) कल्याणमंदिरस्तोत्र पत्र ६८.७३ । (१८) भावारिवारणस्तोत्र पत्र ७३-७६ । (१९) दुरियरयस्तोत्र पत्र ७६-८० । (२०) जीवविचार पत्र ८०-८४ । (२१) नवतत्त्वप्रकरण पत्र ८४-८७ (२२) दंडकप्रकरण पत्र ८७-९० । (२३) संग्रहणीप्रकरण पत्र ९०-११२ । क्र. २१६१ दूहासंग्रह पत्र ८ । भा. गू. । स्थि. मध्यम । पं. १०। लं. प. ५।४४ क्र. २१६२ कोकदोहासंग्रह पत्र ६ । भा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ५४४ क्र. २१६३ सप्तव्यसनकथा पद्य पत्र १३१। भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. ११ । लं. प. ७४३। क्र. २१६४ बृहत्क्षेत्रसमास सस्तबक पत्र ६३। भा. प्रा. गू.। स्थि. मध्यम । पं. १०। लं.प. ६४३॥ क्र. २१६५ उपदेशमालाप्रकरण पत्र ३८। भा. प्रा.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. ९ । लं. प. ६॥४२॥ पत्र ३७ मुं नथी। पोथी १२३ मी क्र २१६६ प्रज्ञापनोपांगसूत्र पत्र २५८ । भा. प्रा.। क. श्यामाचार्य। ले. सं. १८२६। . ७७८७ । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १३ । लं. प. १२४५ अंत संवत् १८२६ वर्षे ।मि। आसू वदि १० दिने उपाध्याय श्री. १०६ श्रीक्षमाप्रमोदजीगणि तच्छिष्य पं. अनोपचंद्रमुनिनैषा । प्रतिलिखिता॥ श्रीजेसलमेरदुर्गे केशवशे। गोलवत्था गोत्रे। सा। श्रीतिलोक Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के. २१६१-७५ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र રૂષ્કર सीजी । तत्पुत्र सा । धारसी । तेनैषा प्रतिः ज्ञानवृद्वर्थे बोधीबीजप्राप्तथे । पुस्तकभंडारे ढौकिता । सा वाच्यमाना ज्ञानलाभाय मिथ्यात्वनाशाय भवेयुः । वर्त्तमानभट्टारक जंगमयुगप्रधान श्रीजिनलाभसूरीणां विजयिराज्ये ॥ श्री ॥ श्रेयोमाला विशाला वृद्धिर्भवेयुः । ॥ श्रीरस्तुः ॥ क्र. २१६७ (१) प्रज्ञापनोपांगसूत्रवृत्ति पत्र २३३ सुधी । भा. सं. । क. मलयगिरि । (२) प्रज्ञापनोपांगसूत्रवृत्ति पत्र २३४-३६५ । भा. सं. । वृ. क. मलयगिरि । ग्रं. १६००० । ले. सं. १८२६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. १२४५ अन्त संवत् १८२६ वर्षे । मि । पोह क्र. २१६८ लघुजातक पत्र सुदि ५ दिने उपाध्याय श्री १०६क्षमाप्रमोदजी गणिः । १२ । भा. सं. । ले. सं. १८८४ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १० । लं. प. १० ॥४५॥ क्र. २१६९ जीवाभिगमोपांगसूत्र पत्र ५५ । भा. प्रा. ग्रं. ४८८० । ले. सं. १५७१ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १९ । लं. प. १३४४ ।। अंत- संवत् १५७१ वर्षे आसाढमासे शुक्लपक्षे नवम्यां तिथौ श्री अणहिलपुरपत्तने पातसाहश्रीमदाफरराज्ये श्रीखरतरवेगडगच्छे श्रीजिनेश्वरसूरि संताने श्रीजिनशेषरसूरिपट्टे श्रीजिनधर्मसूरिपट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरयस्तत्पट्टपूर्वाचल सहस्रकरावतार | श्रीजिनशासनशृंगारहार श्रीजिनमेरुसूरीणां वाचनाय ओसवालज्ञातीय दोसी सिरपति तयोः पुत्र दोसी सहस्रकिरणभार्या श्री. संसारदेस्य पुण्याय श्रीजीवाभिगमोपांगं लिखाप्य गुरूणां प्रदत्तं । वाचकस्य शुभं भवतु ॥ पोथी १२४ मी क्र. २१७० गोयरिगवयरिरूप विचार पत्र ३ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १६ । लं. प. १३८४ ।।। क्र. २१७१ वासुपूज्यजिनचरित्रमहाकाव्य पत्र ६८ । भा. सं. 1 क. वर्धमानसूरि । ले. सं. १४८२ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १९ । लं. प. १३४५ क्र. २१७२ उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्तिसह पत्र १७० | भा. वृ. क. नेमिचंद्रसूरि । र. सं. ११२९ । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १९ । लं. प. क्र. २१७३ हनुमन्नाटक पत्र १८ । भा. सं. । क. हनुमंत । ले. सं. १६३५ । स्थि. जीर्ण । पं. २१ । लं. प. १२॥४५ अंत अब्दे श्रीविक्रमस्य केवल बलशशिकलासहिते मधौ मासे सितपक्षे पंचम्यां तिथौ रविवासरे । श्रीमज्ञानकपादपद्मभृंगाः श्रीरामदासाचार्याः तत्पट्टे श्रीहंसराजसूरयः तच्छात्रेग सागरर्षिगाऽऽत्मबोधार्थ हनुमद्विरचितं नाटकं श्रीवूटिकनगरमध्ये ॥ श्रीरस्तु || प्रा. सं. । ग्रं. १२००० । १३४४॥ क्र. २१७४ सिद्धान्तकौमुदी पूर्वार्ध अपूर्ण पत्र ५५ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ११। लं. प. १२ ॥ ४४ ॥ क्र. २१७५ कल्पसूत्रसंदेहविषौषधिवृत्ति पत्र ६१ । भा. सं । क. जिनप्रभसूरि । ग्रं. ३५४१ । ले. सं. १५९६ । स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. १२४४॥ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० अंत श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ नंदुरबारनिवासी भीमः संघाधिपोऽभवद् भविकः । श्रीजिनधर्माधारोऽभूत्तनयो डुंगरस्सुकृती ॥१॥ तद्वशैकविलासी प्राग्वाटः प्रकटजिनमताभ्यासी । श्रीगुणराजो गुणवान् पदप्रतिष्ठादिकारयिता ॥२॥ श्री शत्रुंजयरैवतजी रापल्ल्यर्बुदादियात्रासु । वित्तव्यय सफलीकृतजन्मा तद्दं च लखमाई ॥३॥ तनयस्तयोः सुविनयः कालू नामा कृतानुकृतसुकृती । तज्जाया जसमाई ललितादेवी च वीराई ॥ ४ ॥ श्रीजिनभवनजिनार्चापुस्तकसंघादिके सदा क्षेत्रे । वित्तव्ययस्य कर्त्ता दानार्थिजनान् समुद्धर्ता ||५|| युग्मं || श्रीमत्कालूनाम्ना निजकरकमलार्जितेन वित्तेन । चित्कोशे सिद्धांताः ससूत्रका वृत्तिसंयुक्ताः ॥६॥ श्रीमद्वाचक नायकमही समुद्राभिधानमुखकमलात् । लब्ध्वा वरोपदेशं नंदंतु च लेखिताः सुचिरं ॥७॥ संवत् १५९६ वर्षे मिती काती सुदि ७ दिने शनिवारे वा०जयशीलगणिना जेसलमेरभंडारमध्ये मुक्ता प्रतिरियं ॥ क्र. २१७६ दशवेकालिकसूत्रलघुवृत्ति पत्र ४८ । भा. सं. क. सुमतिसूरि । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १५ । लं. प. १२४४ ।। क्र. २१७७ निरुक्तिकांड पत्र २१ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. १२ । लं. प. १२४४ | क्र. २१७८ प्रशमरतिप्रकरण पत्र २ । भा. सं. क. उमास्वातिवाचक । स्थि. मध्यम । पं. १७ । लं. प. ११ ।। ४४ । क्र. २१७९ चिंतामणि पत्र ६ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. ९ । लं. प. ११४४ ॥ क्र. २१८० टक पानाना टूकडा [ पोथी १२४-२६ पोथी १२५ मी क्र. २१८१ संकाशकथानक पत्र ३ । भा. सं. । क. सर्वलाभगणि। स्थि. जीर्ण । पं. १०। लं. प. ११ ।। ४४ क्र. २१८२ व्याकरणन्यायसंग्रह पत्र २ । भा. सं. । ग्रं. १७५ । स्थि. जीर्ण । पं. १८ । लं. प. ११ || ४४ क्र. २१८३ (१) कौतुकमंजरी पत्र १-३ । भा. सं । क. जयचंद्रसूरि । ग्रं. १४२ । (२) कौतुकमंजरीटीका पत्र ३-५ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. ११ ।। ४४ । क्र. २१८४ कविशिक्षा पत्र ८ । भा. सं. । ग्रं. ५२५ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ११।।।४४ क्र. २१८५ आलोचनाविधि अपूर्ण पत्र ६ । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. १७। लं. प. ११॥ ४४ ॥ उंदरे करडेली छे । क्र. २१८६ कर्पूरप्रकरवृत्ति अपूर्ण पत्र २-५२ । भा. सं. 1 स्थि. जीर्ण | लं. प. ११॥४४ क्र. २१८७ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार पत्र ५ । भा. सं. । स्थि. जीर्ण । पं. २२ । लं. प. पं. १३ । ११ |||४४| क्र. २१८८ सम्यक्त्वकौमुदी पत्र २९ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १६ । लं. प. ११।।।४४ क्र. २१८९ शोभनस्तुतिचतुर्विंशतिका टिप्पणीसह पत्र ८ । भा. सं. । क. शोभनमुनि । ले. सं. १५६० । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. ११॥४४ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.२१७६-२२०४ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २१९० दमयंतीकथा-नलचंपूविवरण पत्र ४३ । भा. सं. । क. चंडपाल । ले. सं. १४७६ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ११४४/ क्र. २१९१ बंधस्वामित्व तृतीयकर्मग्रंथ वृत्तिसह प्राचीन पत्र ७ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. १४९६ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १८ । लं. प. ११४४ क्र. २१९२ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ३३ । भा. प्रा.। क. नेमिचंद्रसूरि। पं. १९ । लं. प. ११४४ क्र. २१९३ (१) एकाक्षरीनाममाला पत्र १ । भा. सं. । (२) एकाक्षरीनिर्घटुनाममाला पत्र १-३ । भा. सं. । क. सुधाकलश । (३) शब्दप्रमेदनाममाला पत्र ३-८ । भा. सं.। क. महेश्वर भट्टारक। स्थि.श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ११॥x४) क्र. २१९४ प्रवचनसारोद्धारप्रकरणलघुवृत्ति पत्र ५१ । भा. सं. । क. उदयप्रभसूरि। ग्रं. ३२०२ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १८ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१९५ संघपट्टकप्रकरण वृत्तिसह पत्र ४२ । भा. सं.। मू. क. जिनदत्तसूरि। टी. क. जिनपतिसूरि। ग्रं. ३६०० । स्थि . जीर्ण । पं. १९। लं. प. ११॥४४॥ क्र. २१९६ उपदेशमालाप्रकरण पत्र १० । भा. प्रा.। क. धर्मदासगणि । स्थि. जीर्ण । पं. १७॥ लं. प. ११॥४४ क्र. २१९७ (१) बृहत्क्षेत्रसमास विवरण सह पत्र २६ । भा. प्रा. स.। मू. क. जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण । वि. क. मलयगिरि।। (२) लोकनालिकाद्वात्रिंशिका मूल तथा अवचूरि पत्र २६-२७ । भा. प्रा. सं. । मू. क. धर्मघोषसूरि । स्थि. जीर्ण। पं. २० । लं. प. ११||४४ क्र. २१९८ षडावश्यकसूत्रबालावबोध अपूर्ण पत्र ५१। भा. गू.। क. तरुणप्रभसूरि । स्थि. जीर्ण। पं. १८। लं. प. ११॥x४। क्र. २१९९ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी सटीक पत्र। भा. प्रा. सं.। मू. क. श्रीचंद्रसूरि । टी. क. देवभद्रसूरि। स्थि. जीर्ण। पं. १७ । लं. प. ११४४ क्र. २२०० अनुयोगद्वारसूत्र पत्र ३० । भा. प्रा. । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १३ । लं. प. ११॥४४ क्र. २२०१ अगडदत्तकथा पत्र ७ । भा. प्रा. । स्थि. जीर्ण । पं. १८। लं. प. ११॥४४.। उंदरे करडेली छे । क्र. २२०२ धर्मकुटुंबकथा-अष्टप्रकारीपूजाफलविषये पत्र ३। भा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. ११४४ क्र. २२०३ तत्त्वचिंतामणिआलोक अपूर्ण पत्र ३६ । भा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ९ । लं. प. ११॥४३॥ • पोथी १२६ मी क्र. २२०४ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र पत्र ८१। भा. प्रा.। ले.सं. १६१९ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १७ । लं. प. ११४४ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १२६-२८ क्र. २२०५ अष्टकप्रकरण वृत्तिसह पत्र ३९ । भा. सं.। मू. क. हरिभद्रसूरि । टी. क. अभयदेवसूरि । ग्रं. २३७० । ले. सं. १५०९ । स्थि . जीर्ण । पं. २४ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२०६ सम्यक्त्वस्वरूपस्तव सावचूरिक पत्र ३ । भा. प्रा. सं.। स्थि. जीर्ण । पं. १५ । लं. प. ११॥x४ क्र. २२०७ कविशिक्षा काव्यकल्पलतावृत्तिसह पत्र ४६ । भा. सं. । क. अमरचंद्रसूरि स्वोपज्ञ । ग्रं. ३३५० । स्थि. जोर्ण । पं. १७। लं. प. ११॥४४ क्र. २२०८ तर्कपरिभाषा पत्र १० । भा. सं.। क. केशवमिश्र । ले. सं. १५४६ । स्थि. जीर्ण । पं. १९। लं. प. १११४४.। उंदरे करडेली छे । अन्त संवत् १५४६ वर्षे श्रावण शीतात् त्रयोदशीदिने गुरौ श्रीपार्श्वतीर्थे श्रीदेवकर्णराज्ये श्रीजेसलमेरौ । क्र. २२०९ षष्टिशतप्रकरण सटीक पत्र ५४ । भा. प्रा. सं.। मू. क. नेमिचंद्र भंडारी । टी.क. गुणरत्नोपाध्याय । स्थि. श्रेष्ठ । ५ १६ । लं. प. ११॥४४ क्र. २२१० प्रवचनसारोद्धारप्रकरण पत्र ४८। भा. प्रा.। क. नेमिचंद्रसूरि। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६। लं. प. ११४४ क्र. २२११ कथासंग्रह पत्र ९। भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं. १६ । लं. प. ११४४ क्र. २२१२ खंडप्रशस्तिकाव्य पत्र ९। भा. सं.। स्थि. जीर्ण। पं. ११ । लं. प. ११।४३॥॥ क्र. २२१३ व्रतविधिसंग्रह पत्र १७ । भा. प्रा. सं. । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १४ । लं. प. ११।४४ क्र. २२१४ आराधनाविधिआदि पत्र २१। भा. प्रा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ। पं. १५ । लं. प. ११४४ क्र. २२१५ भर्तृहरित्रिशती सावचूरिक पंचपाठ पत्र १८ । भा. सं.। मू. क. भर्तृहरि । स्थि . जीर्ण । पं. १४ । लं. प. ११।४३॥ __क्र. २२१६ चैत्यवंदनादिभाष्यत्रय सावचूरिक पत्र २७। भा. प्रा. सं.। मू. क. देवेन्द्रसूरि । स्थि. श्रेष्ठ। पं. १२। लं. प. ११४४॥ क्र. २२१७ (१) जयतिहुयणस्तोत्र सटीक पत्र १-९ । भा. प्रा. सं. । मू. क. अभयदेवसूरि । (२) जीवविचारप्रकरण सटीक पत्र ९-१५। भा. प्रा. सं.। मू. क. शांतिसूरि । (३) संसारदाबास्तुति सटीक पत्र १५-१७। भा. प्रा. सं.। टी. क. पार्श्वचंद्र । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १२। लं प. ११४४ क्र. २२१८ हनुमंतवज्रकवच पत्र ७ । भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. ८ । लं. प. ११४४ क्र. २२१९ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र पत्र ४-२६ । भा. प्रा.। स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. ११४४. । पाणीथी भोंजाएली छ। पाथी १२७ मी क्र. २२२० कल्पसूत्रसंदेहविषौषधिटीका पत्र ३१ । भा. प्रा. सं.। टी. क. जिनप्रभसूरि। स्थि . श्रेष्ठ । पं. २२। लं. प. १२।४४. । किनारी उंदरे करडेली छे। क्र. २२२१ प्रमेयरत्नकोश आदि पत्र ३२। भा. सं.। स्थि. जोर्ण। पं. २.लं. प. १२१४४ IMI - Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २२०५-३६ ] जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३५३ (१) प्रमेयरत्नकोश पत्र १-१० । क. चन्द्रप्रभसूरि । (२) महाविद्याविडंबन पत्र १०-२० । क. बादींद्र । (३) विदग्धमुखमंडन पत्र २०-२४ । क. धर्मदास | (४) अनेकार्थतिलककोश पत्र २४-३२ । भा. सं.। क. महीप। र. सं १४३० । __ क्र. २२२२ नंदिताढयछंदःशास्त्र सटीक पत्र ५। भा. सं.। टी. क. रत्नचंद्र । स्थि. जीर्ण । पं. १९ । लं. प. १२।४४ क्र. २२२३ सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति टिप्पणीसह चतुष्कवृत्ति पर्यत पत्र ८९ । भा.सं. । क. हेमचंद्राचाय स्वोपज्ञ। स्थि. श्रेष्ठ। पं ११। लं. प. १२।४४ क्र. २२२४ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णि पत्र ६९ । भा. प्रा. ! स्थि. जीर्ण । पं. १५। लं. प. ११॥४३॥ क्र. २२२५ कर्मविपाककर्मग्रंथ सटीक पत्र २९ । भा. प्रा. सं.। ग्रं. ४८२ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. ११ । लं. प. ११४३॥ क्र. २२२६ समयसार सटीक पत्र २३ । भा. प्रा. सं.। ले. सं. १४३५ । स्थि. जीर्ण । पं. ९। लं. प. १०४३ क्र. २२२७ प्रश्नप्रदीप पत्र १। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. १३ । लं. प. ८॥४॥ क्र. २२२८ योगशत सटीक पत्र २१ । भा. सं.। ले. सं. १५४५ । स्थि. जीर्ण । पं. १२ । लं. प. ८॥४३॥ क्र. २२२२ पाशाकेवली पत्र ७ । भा. गू. । स्थि . मध्यम । पं. ८। लं. प. ८॥४३॥ क्र. २२३० प्रश्नशतावचणि पत्र ६। भा. स. । स्थि. मध्यम । पं. २० । टे. प. ९॥४३॥ क्र. २२३१ सारसंग्रह पत्र १० । भा. सं. 1 क. दरदराज । स्थि . मध्यम । पं. ८। लं. प. ९॥४२॥ पथी १२८ मी __क्र. २२३२ हरिवंशपुराण पत्र २०१-३९६ । भा. सं.। ले. सं. १७२७ । स्थि. जीर्ण । पं. १०। लं. प. ११॥x५. । उंदरे करडेली छे। क्र. २२३३ समयसारनाटक सटीक पत्र ९३ । भा. सं.। म. क. अमृतचन्द्राचार्य। टी. क. देवेन्द्रकीर्ति। टी. र. सं. १७८८ । ले. सं. १८२८ । स्थि . श्रेष्ठ। पं. १४ । लं. प. ११॥४५॥ ___ क्र. २२३४ सप्ततिकाकर्म ग्रंथ सस्तवक यंत्रसह पत्र ३८। भा. प्रा. गू.। स्थि. जीर्ण। पं. २१। लं. प. ११॥४५ क्र. २२३५ प्रवचनसारोद्धारटीका अपूर्ण पत्र ४४ । भा. सं । क. सिद्धसेनाचार्य। स्थि. जीर्णप्राय । पं. १६ । लं. प. ११॥x५ क्र. २२३६ दशवैकालिकसूत्रनां गीतो आदि पत्र ६ । भा गू.। स्थि. मध्यम । पं. १५ ॥ लं. प. १०४४॥ (१) दशवेकालिकगीत क. खेतसी-पुण्यकलश शिष्य । (२) मेघकुमारसज्झाय क. श्रीसार। (३) धन्यर्षिसज्झाय क. नयरंग । Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ पोथी १२९-३३ (४) धन्यर्षिसज्झाय क. विद्याकीर्ति । (५) अनाथीमुनिसज्झाय क. अभयचद्र । (६) ढंढणऋषिसज्झाय क. जिनहर्ष । __ क्र. २२३७ बटुकभैरवस्तोत्र मंत्राम्नायसह अपूर्ण पत्र ६ । भा. सं.। स्थि. जीर्ण। पं. १३ । लं. प. ११४४।। क्र. २२३८ चातुर्मासिकव्याख्यान पत्र ९। भा. सं.। क क्षमाकल्याण । ले. सं. १८३९ । ग्रं. ४०१। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १६। लं. प. ११४४॥ क्र. २२३९ यशोधरनृपचरित्र गद्य पत्र ३४ । भा. सं. । क. क्षमाकल्याण । र. सं. १८३९ । ले. सं. १८३९ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५। लं. प. ११।४४॥। अंत संवत् १८३९ मिते वैशाखमासे श्रीजेसलमेरुदंगे भ. श्रीजिनचंद्रसूरीश्वरविजयिराज्ये वाचकअमृतधर्मगणिनां । पं. क्षमाकल्याणगणियुतानां उपदेशात् सा। धारसीजीकस्य लघुभार्या फतूबाई तया स्वपरोभयज्ञानवृद्ध्यर्थ स्वश्रेयोथै च पुस्तकमिदं लेखयित्वा ज्ञानभांडागारे स्थापितं सद्भिर्वाच्यमानं चिरं नंदतु ॥ क्र. २२४० साधुविधिप्रकाश पत्र १६। भा. सं. । क. क्षमाकल्याण । ग्रं. ७.. र. सं. १८३८ । स्थि . श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ११४४|| क्र. २२४१ श्राद्धविधिप्रकाश पत्र ११ । भा. सं. गू. । क. क्षमाकल्याण । र. सं. १८३८ । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ११४४॥ पाथी १२९ मी क्र. २२४२ उपासकदशांगसूत्र सस्तबक अपूर्ण पत्र ३२ । भा. प्रा. गू. । स्थि. जीर्ण। पं. १८ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२४३ आवश्यकहारिभद्रीयवृत्ति पत्र १०८-४२२ । भा. सं.। क. हरिभद्रसूरि । ग्रं. २२०००। स्थि . श्रेष्ठ। पं. १५। लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२४४ गदाधरीअनुमानखंड-न्याय पत्र ३८ । भा. सं.। स्थि. श्रेष्ठ । पं.१३। लं. प. ११४४।.। प्रति उंदरे करडेली छे.। क्र. २२४५ न्यायग्रंथ पत्र १०१। भा. सं. । स्थि. जीर्णप्राय । पं. १३ । लं. प. ११४४॥ क्र. २२४६ न्यायग्रंथ पत्र ९८-२१०। भा. सं.। स्थि . मध्यम । पं. १५। लं. प. ११४४॥ क्र. २२४७ भवानंदीप्रकाश सटीक पत्र ४७ । भा. सं. । मू. क. महादेव । ले. सं. १८३२ । स्थि . मध्यम। पं. ११। लं. प. ११४४॥ क्र. २२४८ न्यायग्रंथ पत्र ३७ । भा. सं.। स्थि जीर्ण । पं. १३ । लं. प. ११४४॥ क्र. २२४२ सिद्धांतकौमुदी पत्र १३ । भा. सं । स्थि. श्रेष्ठ । पं. १५ । लं. प. ११४४॥ क्र. २२५० नादकारिका वृत्ति सह तथा तत्त्वनिर्णयविवरण पत्र ६ । भा. सं. । स्थि. मध्यम । पं. २०। लं. प. ११४४॥ क्र. २२५१ श्रीचंद्रीयासंग्रहणी बालावबोधसह पत्र ६५। भा. प्रा. गू। ले. सं. १८३१ । स्थि . मध्यम । पं. १२। लं. प. ११४४॥ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क. २२३७-५७ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र क्र. २२५२ प्रयोगमुखव्याकरण अपूर्ण पत्र ३४। भा. सं.। स्थि. मध्यम । पं. ११ । लं. प. ११॥४४॥ क्र. २२५३ विशेषशतक बीजकसह पत्र ४३ । भा. सं.। क. समयसुंदर। र. सं. १६८७ । स्थि. जीर्णप्राय। पं. २१ । लं. प. ११४४॥ पाथी १३० मी क्र. २२५४ अनेक ग्रंथो अने स्तवन, सज्झाय आदिनां प्रकीर्णक पानां पाथी १३१ मी क्र. २२५५ अनेक ग्रंथो अने स्तवन सज्झाय आदिनां प्रकीर्णक पानां पोथी १३२ मी क्र. २२५६ स्तवन, सज्झाय, रास, चोपाई, प्रतिक्रमण अने नवस्मरण आदिना गुटकाओ. पाथी १३३ मी क्र. २२५७ तीर्थकरभगवाननां चित्रो जीर्ण ॥ अहम् ॥ प्रस्तुत सूचीपत्रना पृष्ठ ६४ क्रमांक १७८ (१) बन्धस्वामित्ववृत्ति ग्रन्थकारनी प्रशस्तियत्यालये मन्दगुरूपशोमे सन्मङ्गले सुबुधराजहसे। तारापथे वा सुकविचारे श्रीमानदेवामिधसूरिगच्छे ॥१॥ भव्या बभूवुः शुभशस्यशिष्याः अध्यापकाः श्रीजिनदेवसंज्ञाः । तेषां विनेयो गुरुभक्तिपूर्णः समस्ति नाम्ना हरिभद्रसूरिः ॥२॥ अणहिल्लपाटकपुरे श्रीमज्जयसिंहदेवनृपराज्ये। आशावरसौवर्णिकवसतौ विहिताधिवासेन ॥३॥ बन्धस्वामित्वाख्यप्रकरणवृत्तिः समासतो रचिता। तेनेय तनुमतिना प्राक्तनटिप्पनकमवलोक्य ॥४॥ अत्र च यन्मतिमान्द्यादुत्सूत्रं विरचितं कथञ्चिदपि। तच्छोध्यं धीमद्भिः परोपकारैककृतचित्तैः ॥५॥ वर्षशतैकादशके द्वासप्तत्याऽधिके नभोमासे। सितपञ्चम्यां सूर्ये समर्थिता वृत्तिकेयमिति ॥६॥ अस्यामक्षरगणनाज्जातं शतपञ्चकं युतं षष्टया। द्वात्रिंशदक्षरात्मकसदनुष्टुप्छन्दसां प्रायः ॥७॥ ॥ इति बन्धस्वामित्वप्रकरणवृत्तिः समाप्ता । Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [पोथी ८-६५-६६ प्रस्तुत सूचीपत्रना पृष्ठ १८९ पोथी ८ मीना खंडित क्रमांको पथी ८ मी क. ७७ संबेगरंगशाला अपूर्ण। भा. प्रा.। क. जिनचन्द्रसूरि। लं. प. १३।४५।। प्रति अतिजीर्ण उधेईए खाधेली अस्तव्यस्त छ। क्र. ७८ जीपसमासप्रकरण वृत्तिसह पत्र १०८। भा. प्रा. सं. । ७.क. मलधारी हेमचन्द्रसूरि। ग्रं. ६६२७ । ले. सं. १४९९। लं. प. १३१४५।। प्रति उंदरे करडेली, पाणीमां भीजाएली, जीर्ण अने अस्तव्यस्त छे।। प्रस्तुत सूचीपत्रना पृष्ठ २८१ पोथी ६५-६६ ना क्रमांको पाथी ६५ मी क्र. १२७४ (१) न्यायतात्पर्यटीका द्वितीयाध्याय पर्यन्त टिप्पणी सह पत्र ५ थी १८९ । क. वाचस्पतिमिश्र। ले. सं. १२७९ । लं. य. १८॥४३॥। प्रति अतिशुद्ध । पत्र ३७ मुं नथी। (२) न्यायतात्पर्यटीका तृतीयाध्यायथी सम्पूर्ण टिप्पणी सह पत्र १९० थी २८० । क. वाचस्पतिमिश्र। ले. सं. १२७९ । लं. प. १८||४३॥.। प्रति अतिशुद्ध । अन्त-श्रीवाचस्पतिमिश्रविरचितायां न्यायवार्तिकतात्पर्यटीकायां पञ्चमोऽध्यायः समाप्तः ॥छ॥ आदर्शदोषान्मतिविभ्रमाद्वा यदर्थहीन लिखितं भयाऽत्र । स्तू सर्वमायः परिशोधनीयं प्रायेण मुह्यन्ति हि ये लिखन्ति ॥१॥ ।। संवत् १२७९ भाद्रपद वदि १३ लिखितम् ॥छ।। (३) न्यायभाष्य टिप्पणीसह अपूण पत्र २८१ थी ३५०। क. वात्स्यायनमुनि। ले. सं. १२७९ । लं. प. १८॥४३॥.। प्रति अतिशुद्ध। पथी ६६ मो क्र. १२७५ (१) न्यायवात्तिक टिप्पणीसह पत्र ८ थी १५७ । क. भारद्वाज । ले. सं. १२७९ । लं. प. १८॥४३॥ अन्त योऽक्षपादमृर्षि न्यायः प्रत्यभाद् वदतांवरम् । तस्य वात्स्यायन इदं भाष्यजातमवतयत् ॥१॥ जातीनां सप्रपञ्चानां निग्रहस्थानलक्षणम् । शास्त्रस्य चोपसंहारः पञ्चमे परिकीर्तितः ॥ यदक्षपादप्रतिमो भाष्यं वात्स्यायनो जगौ। अकारि महतस्तस्य भारद्वाजेन वार्तिकम् ॥ छ॥ इति पञ्चमोध्यायः समाप्तः ॥छ। न्यायवार्तिकं समाप्तमिति छ। संवत् १२७९ वर्षे फागुन सुदि ६ बुधे प्रह्लादनपुरस्थितेन ठ. बिल्हणेन न्यायवार्तिकपुस्तकं समाप्तमिति ॥ श्रीमन्जिनपतिसूरिशिष्यश्रीजिनेश्वरसूरीणां उपदेशेन । नूतनलिखित संवत् १७४५ रा श्रावण सुदि १३ सोमे। भट्टारक जंगमयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीणां प्रथमशिष्यपण्डितोत्तमप्रवर श्रीसकलचन्द्रगणिमणीनां शिष्यमुख्यमहोपाध्यायश्रीसमयसुन्दरजीगणीनां शिष्यवाचनाचार्यधीमेघविजयगणिमणीनां शिष्यवाचनाचार्यश्रीहर्षकुसल गणिमणीनां शिष्यवाचनाचार्यश्रीहषनिधानगणिमणीनां शिष्य पं. हर्षसागरभ्रातृ श्रीज्ञानतिलकशिष्य वेणोदास चिरं. तोडरमल चिरं धर्मदास सपरिकरसहितः लिखिता सोधिता ॥ (२) तात्पर्यपरिशुद्धि टिप्पणीसह अपूर्ण पत्र १५७-२ थी ३२५ । क. उदयनाचार्य । ले. सं. १२७९ । लं. प. १८॥४३॥.। अतिशुद्ध ।। Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र प्रदर्शनीम जूषामां (शोकेसमां) मूकेली वस्तुओ १ एक डब्बामां प्राचीन ताडपत्रीय पुस्तकोना टूकडाओ २ ताडपत्रीय अनेक ग्रंथोनां पानां ३ श्रीमहावीरस्वामि भगवाननां पांच कल्याणकनी चित्रपट्टिका ४-५ चोवीस तीर्थकरोनी माताओनी बे चित्रपट्टिकाओ ६ जलक्रीडा आदि विषयक चित्रपट्टिका आ चित्रपट्टिकामां जिराफर्नु चित्र छे, जे ऐतिहासिक अने प्राणिशास्त्रनी दृष्टिए घगुंज महत्त्वनु छे। आ पट्टिकानी बीजी बाजुए चौद स्वप्नो चीतरेला छ। ७ नदी अने जलाशय दृश्य विषयक चित्रपट्टिका ८ भगवान श्रीऋषभदेवना जीवनप्रसंगविषयक चित्रपट्टिका (१) भगवाननी भिक्षायाचनामां स्त्री-हाथी-घोडा वगेरेनु दान अने तेनो अस्वीकार तथा श्रेयांस कुमारनुं इक्षुरसदान (२) नमि-विनमि कुमारोनी राज्यभागयाचना आदि प्रमंगो. ९ निशीथसूत्र साथेनी पट्टिका आ पट्टिका आचार्य श्रीजयसिंहना नामथी अलंकृत छे। आमां हाथी-सिंह आदि प्राणियोनां सुंदर चित्रो छे तथा आ पट्टिकानो रंग अति प्रभावित छ। पट्टिका उपा "निसीहभास्यपुस्तकं श्रीजयसिंहाचार्या. ' णाम् ” एवो उल्लेख छ। १० काष्ठपट्टिका आ पट्टिका चित्र विनानी होवा छतां, ए श्रीखरतरगच्छीय मह प्रभावक युगप्रवान आचार्य श्री जिनदत्तसूरि महाराजना नामथी विभूषित होई घगी ज महत्त्वनी छे । आ पट्टिकाओ दशवकालिकचर्णि अने टीकानी प्रति साथे जोडाएली हती। पट्टिका उपर "॥छ। श्रीमज्जिनदत्तसूरीणां दशवकालिकवत्तिच ॥छ॥ प्रधानाक्षरा ॥” एवो उल्लेख छे. ११ भगवान महावीरना जीवनप्रसंगने लगती खंडित चित्रपट्रिका Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ ॥ अहम् ॥ जेसलमेर तपागच्छीय ज्ञानभंडारगत ताडपत्रीय ग्रंथो १ पंचाशकप्रकरण पत्र ७७ । भा. प्रा. । क. हरिभद्रसूरि । ले. सं. १११५ । लं. प. १५४२ । अन्त-संवत् १११५ वर्षे लिखिता। २ ऋषभदेवचरित्र पद्य पत्र १-२०४ । भा. सं. । क. जयसिंहसूरे। ग्रं. ३१००। ले. सं. १३३० । प्रथम पत्रमा ऋषभदेव तथा २०३ पत्रमा ग्रंथ लखावनार श्रावक श्राविकानुं चित्र छे। अन्त इति श्रीजयसिंहसूरिविरचिते पुरुषरत्नगदिते जिनयुगलचरिते मरीचिभवभाविशलाकापुरुषभगवन्निर्वाण वर्णनो नाम षष्ठः प्रस्तावः समाप्तः ॥ तत्समाप्तौ च समाप्तं श्रीमवृषभदेवचरितम् ॥छ।॥छ।। श्रीमद्वृषभदेवस्य चरित्रमिदमुत्तमम् । सदैव सततानन्दहेतवेऽस्तु स्तुतिस्पृशाम् ॥१॥ कुलप्रभप्रभायुक्तो नरेश्वरकृतस्थितिः। पद्मानन्दकरो देवो जयसिंहः श्रियेऽस्तु वः ॥२॥ वृत्तेऽत्र ग्रन्थमानेन सहस्रत्रितयं मतम् । अनुष्टुभामिति तथा शतेनेकेन संयुतम् ॥३॥ ग्रंथाग्रंथ ३१०० ॥छ। मंगलं महाधीः॥ शुभं भवतु लेखकपाठकश्रोतणाम् ॥छ।छ।। वर्षे त्रयोदशांत्र(शात्त्रि)शे मार्गे श्वेतेऽह्नि पञ्चमे । वृषभस्य कृतं वृत्तं श्रीजयसिंहसूरिभिः ॥ धत्ते कुन्तलसन्ततिर्जिनपतेर्यस्यांसदेशे स्थिति वक्त्राम्भोरुहसौरभाकुलमिल भंगावलीविभ्रमम्। स श्रेयःश्रियमातनोतु जगतीनेता विनीतावनीपावित्र्यप्रथमावतारचतुरः श्रीनाभिसूनुर्जिनः ।।१।। श्रीमालान्वयसंभवः शुभमतिः श्रेष्टी पुरा जेसल. स्तत्पुत्रो विजयाभिधो गुणनिधिः सिंहावतारः पुरः । तत्पत्न्यस्ति त्रपालसप (?) सुता तत्कुक्षिसंभूतया लक्ष्मा(भ्याऽ) लेख(खि) युगादिदेवचरितं श्रेयोऽर्थमत्रात्मनः ॥२॥ य(ज)ज्ञे यस्या आंबडो बंधुराद्यः सोभाकावः सालिगो भीमसिंहः । तस्मादेवं माहणः पद्मसिंहः सामंताख्यो माणिकस्तु स्वसैका ॥३॥ अयं हि पुस्तकः स्वस्तिहेतवेऽस्तु निरन्तरम् । सूरिभिर्वाच्यमानस्तु श्रीमदादिजिनेशितुः ॥४॥ यतः कल्पद्मनिभश्चितितार्थप्रदायकः । स एव भविनामस्तु सर्वदा सर्वसिद्धिदः ॥५॥ त्रिशत्त्रयोदशे१३३०वर्षे विक्रमाद् भक्तितस्तथा। श्रीजयसिंहसूरीणां पुस्तकोऽयं समर्पितः ॥६॥ स्वःशैलस्वर्णदण्डोपरिरचितककुप्शालभंजीसशोभं तारामुक्तावचूलं जलनिधिविलसज्झल्लरीसुन्दरान्तम् । यावद् व्योमातपत्रं तपनतपमथो बद्धगंगादुकूलं तावद् व्याख्यायमानो जगति विजयतां सूरिभिः पुस्तकोऽयम् ॥७॥ शुभमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥१॥ ३ महावीरचरित्र पत्र २०६-४०७ । भा. सं.। क. जयसिंहसूरि । ले. सं. १३३० । लं. प. १८४२। ४ धर्मरत्नप्रकरणस्वोपशवृत्तिसह पत्र १९८ । भा. स.। क. शांतिरि स्वोपज्ञ। ले. सं. १३०९। लं. प. १६४२ । Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्त इति श्री सिद्धांतसंग्रहभूषा भव्यजनहिता नाम धर्मरत्नवृत्तिः समाप्ता ॥ चंद्रकुलांवर विधुभिः परोपकारैकरसिकचेतोभिः । श्रीशांतिसूरिभिरियं बुधप्रिया विरचिता वृतिः ॥ संवत् १३०९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १ बुधे अद्येह धवलकके थे. सीधासुत सहजलेन धर्मरत्नप्रकरणपुस्तिका लिखा पिता । अन्त जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ५ महानिशीथसूत्र पत्र २१५ । भा. प्रा. । ले सं. अनु. १४ श । लं. प. १८४२ । ६ उपदेशमाला हेयोपादेयाटीका पत्र २३५ । भा. सं । क सिद्धर्षि । ग्रं. ४०६१। अनु. १४ श । लं. प. १६॥४२॥ ७ हरिविक्रमचरित्र पत्र ३०० । भा. सं । क. जयतिलकसूरि । ले. सं. १४१५ । लं. प. १७४२ इतश्व ३५९ संवत् १४१५ वर्षे अयेह स्तंभतीर्थे प्रतिर्लिखिता । ८ कल्पसूत्र सचित्र सुवर्णाक्षरी कागळ उपर लखेली अतिसुंदर अने सुरक्षित प्रति । अन्त ग्रंथा १२१६ ॥ ॥ संवत् १५२४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि सप्तमी शनिवारे लिखितं मंत्रि वाछाकेन ॥ छ ॥ ए ६० ॥ नमः सर्वज्ञाय ॥ श्री वीर तीर्थकरराजतीर्थ सुधर्मनामा गणभृद् बभूव । तद्वंशमुक्ताफल मंजुल श्रीर्जम्बूमहात्मा प्रभवः प्रभुच|| १ || शय्यंभवः स्वांगरुहोपकर्त्ता सूरिर्यशोभद्रमुमुक्षुभर्त्ता । संभूत आर्योऽजनि भद्रबाहुः श्री स्थूलभद्रश्च महागिरिश्च ||२|| सुहस्तिसूर्याssसमुद्रसूरी श्री आर्यमंगुश्च गुरुः सुधर्मा । श्रीभद्रगुप्तोऽर्पितवंशर्मा स्वामी च वज्रोऽद्भुतसौभगश्रीः ॥३॥ श्री आर्यरक्षितगुरुर्हरिभद्रसूरिसारः क्रमादपि ततोऽजनि नेमिचन्द्रः । उद्योतनो मुनिपतिर्गुरुवर्द्धमानः श्रीमज्जिनेश्वरयतीश्वरकुंजगेऽभूत् ॥४॥ चान्द्रे कुले श्रीजिनचन्द्रसूरिः संविग्नभावोऽभयदेवसूरिः । सलभः श्रीजिनवल्लभोऽपि युगप्रधानो जिनदत्तसूरिः ||५|| भाग्याधिकः श्रीजिनचन्द्रसूरिः क्रियाकठोरो जिनपत्तिसूरिः । जिनेश्वरः सूरिरुदारचेता जिनप्रबोधो दुरितापनेता ॥६॥ प्रभावकः श्रीजिनचन्द्रसूरिः सूरिजिनादिः कुशलावसानः । पद्मापदं श्रीजिनपद्मसूरिर्लब्धेर्निधानं जिनलब्धिसूरिः ॥७॥ सांवेगिकः श्रीजिनचन्द्रसूरिः जिनोदयः सूरि बभूव सूरिः । ततः परं श्रीजिनराजसूरिर्युगप्रधाना जिनभद्रसूरयः ॥८॥ तदास्पदव्योमतुषारभावनवोदयाः शुद्धनया महाधियः । स्याद्वादपंकेरुहपद्मपाणयो जयन्त्यमी श्रीजिनचन्द्रसूरयः ॥९॥ ले. सं. ऊकेशवंशे सश्रीके बभूवतुर्मनोरमे । भाण्डशालिकशाखायां लूणादूल्हाभिधौ नरौ ॥१०॥ पाश्चात्यपदमादृतं ताभ्यां सामलसंघे तु । शत्रुंजयोज्जयंताद्वितीर्थयात्रा व्यधीयत ॥११॥ तथा दूल्हांगजो जातो हायलाद्द्वो महीतले । मूलामांडलिका जावास्तत्सुता विश्रुता इमे ॥१२॥ मूलाकस्याभवंस्तेषु भीम- हीडण - ताल्हणाः । देवराज - महीराजावित्येते पंच नन्दनाः ॥१३॥ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ तत्रापि साधु भीमस्य भरमादेव्यभूत् प्रिया । तत्कुक्षिशुक्तिमुक्ताभाश्चत्वारः सन्ति सूनवः ॥ १४॥ प्रथमो नायकस्तत्र दृदाख्यस्त्वपरः पुनः । तृतीयः सुरपतिश्च दशराजस्तुरीयकः ॥१५॥ माऊ भाऊ वरणू इति तिस्रः पुत्रिकाः पवित्राशाः । नायकजाया जज्ञे नायकदेवी च धर्मिष्ठा ॥१६॥ सीधरो देवनामा च गोविंदश्च तदंगजाः । तेषु सीधरजायाऽस्ति हीराई तत्सुतद्वयम् ॥१७॥ नउला कोला संज्ञा जसमाई - कुंउरि-चंद्रिकाः पुत्र्यः । देवाकस्य प्रियेस्तो धन्नाई चापरा सांपूः ॥ १८ ॥ धन्ना कुक्षिसंभूतो जगमालः सुता पुनः । नाथी नाम्ना विजयते चंद्रोज्ज्वलगुणा तथा ॥ १९ ॥ गोविंदस्य प्रियायुग्मं चंगाई इंदुनामिका । दूदाकस्य प्रिया रम्या चंपाई पुण्यतत्परा ॥२०॥ वर्त्तते तत्तनयाश्चत्वारश्चतुरबुद्धयः सन्तः । मण्डन- हमीर - समधर - साधारणनामकाः क्रमशः ॥ २१॥ द्वेपुत्रिके तु रूपाई हंसाई इति विश्रुते । जाता सुरपतेर्जाया कुशली कुशलाशया ॥२२॥ जीवणिश्च दशाकस्य प्रिया पुत्रो महीपतिः । सोनपालश्च रंगाई चंगाई चापि पुत्रिके ॥ २३॥ लीलादेव्याः सुतः पूनपालः पुत्रीद्वयं तथा । देमाई चाथ पूनाईरित्यायेषां सुसंततिः ॥ २४ ॥ किच महातीर्थे महायात्रा सांघपत्योपसूचिका । विनिर्ममे महीराज नायकाद्यैः सविस्तरा ॥२५॥ अपि चेति महेभ्यैश्च जीरापळ्यां तथाऽर्बुदे । श्रीम देवनमस्याभिः स्वलक्ष्मीः सफला कृता ||२६| कृता षट् पहने यात्रा तथा सत्यपुरे पुरे । सर्वैर्नायकद्दार्थः कारितः पौषधालयः ॥२७॥ अथ दूदादशाभ्यां तु समं सुश्राद्धसीधरः । पंचम्युद्यापनं चक्रे भूनंदमनुवत्सरे १४९१ ॥२८॥ नइनंदाब्धिचन्द्रांक १४९९ संख्ये वर्षेऽपि संघयुक् । यात्रामासूत्रयामास शत्रुंजयोज्जयंतयोः ॥ २९ ॥ दशाख्योऽथ तथा भ्रातृसुतौ श्रीधर - मण्डनौ । भाग्नेयो धनपत्तिश्च सर्वेऽप्येते सतन्त्रकाः ॥ ३० ॥ संघानुमत्या ते धर्मशालां गुर्वीमचीकरन् । वर्षे युग्मैकबाणेदु १५१२ मिते श्रीपत्तने पुरे ॥३१॥ साधुसीधरसुद्ध धर्मकर्मधुरंधरः । दीक्षादानोत्सवांश्चक्रेऽनेकान् सम्यक्त्वमोदकान् ॥ ३२ ॥ चैत्येषु धर्मशालासु तथा साधर्मिकेष्वपि । द्रव्यव्ययं करोत्येष सर्वदैव शुभाशयः ॥ ३३॥ ततश्व आदेशतः श्रीजिनचन्द्रसूरिराजेश्वराणामिह सीधराख्यः । सिद्धांतलक्षं प्रविलेख्य हैममलीलिखचिचत्रितकल्पपुस्तकम् ||३४|| वेदपक्षेषुभूसंख्ये १५२४ वर्षे हर्षात् समर्थितम् । सुचिरं नंदतादेतत् सौवर्ण कल्पपुस्तकम् ||३५|| नन्दतु खरतरगच्छो नन्दन्तु तदीश्वराः पुनर्गुरवः । नन्दतु पुस्तककारी नंदतु संघः सुकृतकारी ॥ ३६ ॥ कृतिरियं वाचनाचार्य साधुसोमगणीनाम् ॥ संवत् १५२४ वर्षे श्रीअणहिलपाटकनगरे सुरत्राणमहमूदराज्ये श्रीखरतरगच्छाधिराजश्री जिन चन्द्रसूरीणामादेशेन भ. नायकपुत्र भ. सीधरसुश्रावकेण भ. देवा भ. गोइंद भ. नउला भ. कउलाप्रमुखपरिवारसश्रीकेण कल्पपुस्तकमिदं लेखितम् । वाच्यमानं चिरं नंदतात् । लिखितं मंत्रिवाच्छाकेन ||छ || श्रीशुभं भवतु ॥ छ ॥ श्री ॥ १ ॥ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६१ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ___ ३६१ ॥अहम् ॥ जेसलमेरुनगरस्थ लोकागच्छीय शानभंडारगत ताडपत्रीय प्रतिओ क्र. १ (१) शाताधर्मकथांगसूत्र पत्र १-१५९ । भा. प्रा. । ग्रं. ५०६१ । ले. सं. १३०७ । सं. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ। लं. प. ३१॥४२॥ । पत्र २ मां चतुर्विध संघने लगतां बे सुंदर चित्रो छ । क्र. २ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति पत्र १६० -३०४ । भा. सं.। वृ. क. अभयदेवसूरि । ग्रं. ३८०० । र. सं. ११२० । ले. सं. १३०७ । सं. श्रेष्ठ । द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१॥४२॥ क्र.३ (३) निरयावलिकादिपंचोपांगसूत्र पत्र ३०५-३२९ । भा. प्रा.। (४) निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्रवृत्ति पत्र ३३०-३४७ । भा. सं.। वृ.क. श्रीचंद्र सूरि। र. सं. १२२८। ग्रं. ६४० । (५) कल्पसूत्रटिप्पनक पत्र ३४८-३६६ । भा. सं.। क. पृथ्वीचंद्रसूरि । ग्रं. ६७० । (६) कल्पसूत्र बारसा पत्र ३६७-४००। भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामि। ग्रं १२१६ । (७) कल्पसूत्रचूर्णि पत्र ४००-४१७ । भा. प्रा. । (८) कल्पसूत्रनियुक्ति पत्र ४१७-४१९ । भा. प्रा.। क. भद्रबाहुस्वामि। गा. ६७। ले. सं. १३०७ । सं. श्रेष्ठ। द. श्रेष्ठ । लं. प. ३१||४२।। पत्र-४१८ मां समवसरणर्नु खंडित चित्र छे। अंननां पत्रो उंदरे करडेलां छे अने टुकडाओ छे । अन्त मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ .........ममहोदधौ। अवतारः सर्वविद्यानां नयानां सरितामिव ॥१॥ सरस्थाने पूर्व प्रसृतदृढपादौघनिचितप्रशस्यश्रीमालान्वयनिलयसौवर्णकलशः। चतुःश्रेष्ठिश्रेष्ठ; समजनि स........ ... ............श्रेष्ठी गुणगरिमगंभीरिमगृहम् ॥२॥ तजन्मा बहपाल: समजनि रजनीशविशदगुणनिवहः । विपुलमतिरस्य गृहिणी विपुलमति म धर्मरता ॥३॥ तयोर्नयसरोजन्मभानवः सूनवस्त्रयः। ऊदाकआभडगुणपालसंज्ञाः क्रमादमी ॥४॥ .......................... ...............शामलकेतवः ॥५॥ समभूवन् त्रयः पुत्राः पवित्रगुणशालिनः । सर्वदेवः साढदेव छाडाकश्च क्रमेण ते ॥६॥ तथा] पवित्रशीलालंकारसारं विचारवित् । रत्नी मादूरिति ख्यातं पुत्रीयुग्मं बभूव तत् ॥७॥ मनोनिहिताहद्देवः सव देवः सदा शुचिः। ....... .........॥८॥ ...................। ......राभिधः साधुधर्म तेने विशुद्धधी; ॥९॥ ज्ञानदर्शनचारित्ररत्नश्रीपरिशीलिता। रत्नी यत्नाद्भुतं......रन्तश्रीरिति विश्रुता ॥१०॥ साढाकस्याऽभवद् भार्याद्वन्द्वं द्वन्द्वविवर्जितम्। आद्या प्रियमतिरिति श्रियादेवी द्वितीयका ॥११॥ प्रियमतिप्रियाजातौ प्रियौ पुत्रौ बभूवतुः। वीरपालस्तथा देवधरश्चेति सुविश्रुतौ ॥१२॥ श्रियादेव्याः सुतौ जातौ गेहिन..................। ...................॥१३॥ पुत्र्यौ वलालदेवीति पूनिणीनामतः श्रुते। जाया देवधरस्याथ देल्हणादेविनामिका ॥१४॥ Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ तयोश्च धंधलाभिख्यस्तनयोऽतिनयान्वितः । साढासुश्रावकस्यैवमन्वयो वर्णितः स्फुटः ॥१५॥ अस्मिन् कुले गुरुकुलमियं सूरिपरम्परा। ... ................. ॥१६॥ ................... .... . ......। .........च्च जयसिंहमुनीशमुख्यः । श्रीधर्मघोषगुरुरुपयशास्ततोऽपि श्रीमन्महेन्द्रमुनिवन्द्रपतिः प्रतीतः ॥१७॥ तत्पदपद्मसरोवरहंसः श्रीभुवनतुंगसूरिवरः । इति गुरुपंक्तिभक्तः साढासुश्रावकः सततम् ॥१८॥ अथाऽत्र सवदेवस्य महि... ......... | ........................... ॥१९॥ ....................... ... रसम्यक्त्व वासितमतिवेरशुद्धभावः । दानादिधर्मपरिपालनबद्धकक्षो दीनेषु दानमपि संततमाततान ॥२०॥ शत्रणां निचखाय पादमुदरे निःकाश्य गोंदरात् , श्रीभूमीशकुमारपाल......ने .........। ..............शुद्धधीः ॥२१।। यश्चास्मिन् तिमिरपुरे चत्ये श्रीवीरजिनवरप्रवरम् । स्थापयति स्म सुविस्मयजनकं जगतीत्रयस्याऽपि ॥२२॥ ........ । .. .......भ्यचेताः ॥२३॥ इत्यादिसद्धर्मविधेर्विधाता आराध्य सुश्रावकधर्ममुच्चैः । महेन्द्रसूरीश्वरपादमूले स सवदेवः......॥२४॥ तस्य श्रेयस्कृते साढाधावको वरपुस्तके। षष्ठांगं लेखयामास सूत्रत वृत्तिसंयुतम् ] ॥२५।। ...................... ............. ......... .. ... ......... ॥२६॥ [निरयावलिकाश्रुतस्कंधसूत्रं वृत्त्यान्वितं तथा । पर्युषणाकल्पसूत्रचूर्णिनियुक्तिटिप्पनम् ॥२७॥ ज्ञानं मानवदानवद्धिजनकं ज्ञानं मदोच्छेदकं, ज्ञानं दुर्गतिदुर्गभंगसुभगं ज्ञानं तमस्तोमभित् । ज्ञानं चोपशमैककारणमिदं संवेग......... ... ... ... ... ........ ...... ......॥२८॥ [ज्योतिश्चक्रमचक्रबरतले यावच्च विद्योतते यावच्छासनमाहतं विजयते यावच्च संघोऽनघः । .........स्तावन्नन्दतु पुस्तकं वरतरं वावच्यमानं बुधैः ॥२९॥छ।। मंगलं महाश्रीः ॥छ। संवत् १३०७ वर्षे माघ शुदि १५ सोमे छ। क्र.४ भगवतीसूत्र पत्र ४२२ । भा. प्रा.। ग्रं. १५६००। ले. सं. अनु. १२ मी शताब्दी । सं. जीर्णप्राय । द. श्रेष्ठ । लं. प. २६॥४२. । पत्र ४५२ ना अंतमा त्रण अतिसुंदर शोभनो छ। अन्त रासीजुम्मसतं सम्मत्तं ।। ४१ सत । सवाए भगवतीए अट्ठत्तीस सयाणं १३८ ॥ उद्देसाणं १९२५॥ चुलसीयसयसहस्सा पयाण पवरवरनाणदंसीहि । भावाभावमणंता पण्णत्ता एत्थमंगम्मि ॥ तवनियमविणयवेलो जयति सया णाणविमलविपुलजलो। हेउसयविउलवेगो संघसमुद्दो गुणविसालो ॥छ। रासीजुम्मसयं सम्मत्तं ॥ समत्ता भगवती ॥६०३॥ नमो गोयमाईण गणहराणं ।। नमो भगवतीविवाहपन्नत्तीए । नमो दुवालसंगस्स गणिपिडगस्स ॥ कुम्मसुसंठियचलणा अमलियकोरेंटबिण्टसंकासा । सुयदेवया भगवती मम मतितिमिरं पणासेउ ॥छ।। पण्णत्तीए आदिमाणं अट्टण्हं सयाणं दो दो उद्देसया उद्दिसिज्जति। नवरं चउत्थसए पढमदिवसे अट्ठ बीयदिवसे दो उद्देसगा उद्दिसिज्जंति। नवमाओ सयाओ आरद्धं जावतिय ठाइ तावइयं एगदिवसेण उद्दिसिज्जइ उक्कोसेण सयं पि एगदिवसेण, मज्झिमेण दोहि दिवसेहि सयं, जहण्णेण तिहिं दिवसेहि, एवं जाव वीसतिम Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ३६३ सयं। नवरं गोसालो एगदिवसेण उद्दिसिज्जइ । जति ठियो एगेण चेव आयंबिलेण अणुणव्वइ, अह ण ठियो आयंबिलछटेण अणुणव्बइ। एकवीसबावीसतेवीसतिमाइं सयाई एक्केक्कदिवसेण उद्दिसिज्जंति। चउवीसतिम दोहि दिवसेहि छ छ उद्देसगा। पंचवीसंतिमं दोहि दिवसेहि छ छ उद्देसगा। तमियाणं आतिमाई सत्त सयाई एगेण दिवसेण । सेढिसयाई बारस एगेण । एगिदियमहाजुम्मसयाई बारस एगेण । एवं बेंदियागं बारस, तेंदियाणं बारस, चउरिदियाणं बारस एगेण । असन्निपंचेंदियाणं बारस, सन्निपचेदियमहाजुम्मसयाई एकवीसं एगदिवसेण उद्दिसिज्जति । रासीजुम्मसयं एगदिवसेण उद्दिसिज्जइ ॥ ग्रंथाग्रं उद्देसतः १५६०० ॥ भगवती समाप्ता ॥ मंगलं महाश्रीः ॥छ॥ चे चंदसेहरकलासहिओ हवेज्ज संपप्प पक्खमसियं जइ नो खिएज्ज । बोहिज्ज भव्वकुमुयुप्पलमंडलं चे, तो चंदगच्छसरिसो सलहेज्ज चंदो ॥१॥ तत्थेवऽहेसि सगुणा सिरिसव्वदेवसूरी सुचापसरिसा विणयावनम्मा । रागारिचूरणपरा न हु लोहबाणा वन्नोत्तमा सगुणकोडिजणाणुजुत्ता ॥२॥ सिरिमणिचंदभिहाणा सज्झायपरायणा उवज्झाया । संजाया तेसि चिय सुविणेया बाहुबलिविणया ॥३॥ पारंगया जे सुयसायरस्स निस्संगचित्ता तवतेयदित्ता । सुरोवमा बोहियभव्चसत्ता भवाडवीतारणसत्थवाहा ॥४॥ गंगातरंगतरलिदियवग्गदुट्ठअस्सालिवज्जमयदामसमा अहेसि । सीसाहिया सिरिधणेसरसूरिरेसिं एरावर्णिदुभुयगिदपवित्तकित्ती ॥५।। माणेभदारणे सोही पवित्तिणी मियावई । असोगसेविया निच्च तिगुत्तिवज्जपंजरे ॥६॥ दियंतविस्संतसहस्ससंखसाहाउलो पावपरंपरड्ढो । वंसो विसालो भुवि वन्नसालो संसोहए सो इह धकडाणं ॥७॥ तदुम्भवो नागभिहाणसेट्ठी विसिट्टपत्तोचियदत्तदाणो। पच्चक्ख........... नराणं दक्खिन्नुदारत्तगुणेगवासो ॥८॥ जो बुद्धिदप्पणतलं न कया वि धीरो पंकीकरेइ परदसणपंकजोगा। आसावहूवयणमंडलनिम्मलाभं सवन्नुभत्तिपुरिसज्जियधम्मलाभो ॥९॥ तत्थऽन्नया......धम्मपरायणस्स चिंताकरी सुपयवी विमला विसाला । सारस्सउज्जमपरे वयणाण देवी भत्ते जहा कयिजणे विहियप्पसाया ॥१०॥ दाणाइमेएहि चउप्पयारो धम्मो जिणेहि भणिओ विसिट्रो । दाणाभिहाणो मम सो य इट्ठो विसेंसओ नाणमओ नराणं ॥११॥ एयं भयवइसुत्तं लिहावियं तेण हेउणा तेण । रविबिंब व पयडयं नीसेसपयत्थसत्थाण ॥१२॥ जिणावली जाव महीयलम्मि खंताइओ रेहइ जाव धम्मो। तेसि पि जा पंच महव्वयाणि सुपुत्थय नंदउ ताव कालं ॥१३॥छ।। मंगलं महाश्रीः ॥छ॥छ॥ आ ग्रंथनी बे बाजूए बेचित्रपट्टिकाओ छ। जेमां नेमिनाथभगवानना नवभवना प्रसंगी आलेखाएला छे। Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४ जैनताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ॥अहम् ॥ जेसलमेरुदुर्गस्थ थाहरूशाह शानभंडार १. अंगविज्जा पत्र ३३२ । अन्त ग्रं. ९००० ॥छ॥ सं. १६६९ वर्षे जेठ वदि २ दिवसे सोमवारे बहुमंगलसूरिबुधगुरुजनवर्गे प्रवरतरन्यायोदयविधिधरणीपालनानुकृतश्रीरामे प्रस्फुरत्प्रचुरतरजगत्त्रयाकृताश्रयनिष्पापप्रतापसुरूपसहस्रधामाभिरामे । निजरूपशोभावैभवतिरस्कृतकामे। श्रीमद्यादवकुलामलकमलिनीदलमरालाबालश्रीभीमनिस्सीमभूमिरामेशे विजयिनि ।। इतश्च श्रीखरतरविधिपक्षे श्रीमज्जिनभद्रसूरिपरंपराशुक्तिकासंपुटमौक्तिकानुकारिश्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टधारकेषु स्ववचनरचनारंजिताऽकबरसाहिप्रदत्तयुगप्रधानपदस्फारकेषु। जलधिसकलजलचरजंतुरक्षाकारेषु। श्रीशत्रुजयप्रमुखतीर्थकरमोचकेषु सकलगोरक्षादायकेषु कलिकालकलंकावलोकनकलुषीभूतमनस्समस्तावनुस्सागरांबरधरणीनिवेशितात्मप्रतापकोट्टपालसाहिसलेमबलिराजेन संतापितं श्रीवीरशासनं निराधारं प्रणष्टसकलसूरिपालनमालोक्य विशिष्टवचोमृतैस्तमाश्वास्याखंडजैनशासनरक्षाविधायकेषु युगप्र. श्रीजिनचंद्रसूरिषु खरतरगणसंतति राजन्वतीं कुर्वत्सु तत्पट्टोदयशैलसहस्रधामानुकारिषु श्रीसाहिकृतसूरिपदमहोत्सवविधिषु चतुर्दशविद्यावधूवरभोगविधानभर्तषु श्रीजिनसिंहसूरिषु यौवराज्यपदं पालयत्सु श्रीमज्जेसलमेरुवास्तव्यकृतानेकधर्मकर्तव्यभणसालीगोत्रपवित्रताकारक सा० पूनसी तत्पुत्र सा. श्रीमल्ल तद्भार्या चांपलदे तत्पुत्ररत्नेन धर्मस्थानविषयप्रदत्तबहुद्रविणकृतसकलनगरलोकभोजनपूर्वकनालिकेरयुतरजतवितरणजीवजंतुरक्षागुणस्मारितकुमारपालगुण सा० थिरराजेन सा. हरिराजपुत्रयुतेन स्वकृतनूतनश्रीज्ञानकोशे अंगविद्यापुस्तकं लेखितम् ॥ श्रीजिनकुशलसूरिशाखायां वा. श्रीस्वर्णप्रभगणि तच्छिष्य श्री.मलोदयगणित शिष्य पं. देवसार पं. गुणराजजी थिरराजेन पुस्तकं लिपीकृता। शिष्य करमचंद उदयसंघ सपरिवारान् शुभं भवतु । कल्याणमस्तु । अंगविद्यापुस्तकं लिपीकृतम् । श्रीसाधुकीयुपाध्यायानां शिष्येण पं. महिमसुदरगणिना यथा प्रतिकृतेय प्रतिः पं. शानमेरु पं. नयमेरुयतेन । ९ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ दिने । सा. थिरुकेन स्वभांडागारे पुण्याथे टेखितेयं प्रतिः कल्याणमस्तु ॥छ।। २. जिनदत्तसूरिचित्रपट्टिका शताब्दी १३ मी। गुणसमुद्राचार्य । पंडित ब्रह्मचन्द्र । सहणपाल। अनंग । नरपतिश्रीकमरपालभक्तिरस्तु । श्रीजुगप्रधानागमश्रीमज्जिनदत्तसूरयः। ३. थाहरूशाहना भंडारनी कल्पसूत्रनी सचित्र सुवर्णाक्षरी प्रति ग्रं. १२१६ संवत् १५१९ वर्षे आखाढ सुदि ३ रवौ लिखितम् मंत्रि वाछाकेन ॥छ।। शुभं भवतु ॥ छ॥श्री॥ संवत् १६४४ वर्षे कार्तिक शुदि ११ दिने वरदगोत्रे साह खरहतसुत साह वरसिंघ तत्पुत्र सा० कर्मचंद प्रभृत्यपत्यानां श्रीकल्पसूत्रपुस्तिका वाच्यमाना चिरं नन्द्यात् ॥छ।। थाहरूशाहना भंडारना चामडाना दाबडा उपर लेख स्वस्ति श्रीजयमंगलाभ्युदयाय संवत् १६७३ वर्ष श्रीमज्जेसलमेरुमहादुर्गे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टालंकार युगप्र० श्रीजिनसिंहसूरीश्वरे विजयिनि श्रीकल्याणदासमहाराजे राज्यं कुर्वति भंडसालिक गोत्रीय सा० श्रोमल्ल तत्पुत्र भ० थाहरूश्रावकेन । चि. हरराज । चि मेघराज प्रमुखसपरिकरेण श्रीज्ञानकोशे पुस्तकरक्षार्थ दाबडा कारिता ॥श्री। हर्षनंदनमुनीनामुपदेशेन आचन्द्राकै विजयतात् । - - Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५१ ३१२ प्रथमं परिशिष्टम् जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक अनुयोगद्वारसूत्र २६, १८७, २९८, ३५१ अइमत्तामुनिचोढाळियु चूर्णी २६, १७५ अक्षरबत्रीसी २२१ अनुयोगद्वारसूत्र बालावबोध सह त्रिपाठ २४० अगडदत्तकथा अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति २६, १८७ अजितशांतिस्तोत्र ५२, ५६, ५८-६०, १९६, २७४, अनुयोगद्वारसूत्रलघुवृत्ति २६, १८८ २८७-२८९, ३१३, ३१७, अनेकविचारसंग्रह २२७, २७२, ३४१ अनेकार्थकोश अनेकार्थकैरवाकर ३१८, ३४८ अजितशांतिस्तव अवचूरि कौमुदी टीकायुक्त १९८, २३५ वृत्ति अनेकार्थतिलककोश " सस्तबक ३१२ अनेकार्थतिलकनाममाला २३१, २६४, ३२७ " सावरिक पंचपाठ ३१२ अनेकार्थध्वनिमंजरी अजीवकल्प २३२, २४१ ३३५ अनेकार्थनाममाला भाषा अढारपापस्थानकभास २३९ अनेकांतजयपताकावृत्तिटिप्पनक १५६, १९९ अणुव्रतविधि १२४, १९६ अपभ्रंशकाव्यत्रयी १५२, अतिचारनी आठ गाथा सटीक त्रिपाठ अभयकुमारचरित्र अतिमुक्तकचरित्र ९७, ११५, १९५ अभयकुमाररास अध्यात्मकल्पद्रुम २०२ अभिधानचितामण ममाला २००, २०१, २०५, अध्यात्मकल्पद्रुमवृत्ति २४९ २२९, २३६, २४२, ३२४, , सटीक त्रिपाठ ३१० ३४०, ३४१ अध्यात्मपयडीछत्रीसी अवचूरि अध्यात्मस्तुति सस्तबक " सावचूरिक पंचपाठ २३६ अनघराघवनाटक १५३, २०७ , स्वोपज्ञवृत्तिसह १३२, ३२४, ३२७ " टिप्पनक १५३ अभिधानरत्नमाला २२५ अनाथीमुनिसज्झाय २६९, ३५४ अभिधावृत्तिमातृका १३९, १९८ अनाथीमुन्सिंधि २३०, २५१ अमरकोश प्रथमकांड सटीक त्रिपाठ ३२४ अनादिबत्रीसी २२२ , द्वितीयकांड ., ३२४ अनिट्कारिका ३२२ " तृतीयकांड , , सटीक त्रिपाठ ३२६ अमरदत्तमित्राणंदकथावालावबोध २५७ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र ७, १८३, १९०, २५०, अमरसेनवयरसेनरास २७२ २७०, २७८, २९८ अमरुशतक टिप्पणीसह , वृत्ति ६, ७, १८३, २०५. अरिष्टनेमिचरित्र (भक्भावनावृत्त्यन्तर्गत) १.७ २५८, २९५ अर्घकांड ज्योतिष २७७, ३३० अनुत्तरौपपातिकसूत्र वृत्तिसह २५७ अर्थशास्त्रवृत्ति १६९ अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र सस्तबक अलंकारदर्पण १३८ २६७ २७१ ३२४ २०३ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ २२१ २८५, २९२ १८९ २९६ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां [ प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक अलंकारमाला ३३४ आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरणअल्पबहुत्वस्तवन २६८ षडशीतिचतुर्थकर्मग्रंथ प्राचीन ४७, ६१, १७६, अवकहडाचक्र ३१८ २२९, ३०४ अवंतिसुकुमालचोढाळिया ३३८ वृत्तिसह ६४, ६६, ३०४ अव्ययसंग्रह २३५, ३४६ ,, वृत्ति ६३ , सावचूरिक त्रिपाठ ३२२ आगमोद्धारगाथा ५१, ५४, १९६, २०१, २५६ अश्विनीकुमारसंहितागत १३ मुं प्र. सस्त. २१३ , -स्वप्नसप्ततिका प्रकरण २८७, २८९ अष्टकप्रकरण २७९ आचारांगसूत्र १, १८१, २०५, २९२, ३१६ सटीक ३०७, ३५२ आचारांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध बालावबोध अष्टकर्मचोपाई २२२ सह पंचपाठ अपूर्ग २५८ अष्टप्रकारीपूजा आचारांगसूत्र आलापक बाला० सह २८० अष्टप्रकारीपूजाकथा (विजयचन्द्रचरित्रगत) २८४, २६८ आचारांगसूत्रचूर्णी २, १८८ अष्टप्रकारीपूजाकवित आचारांगसूत्रदीपिका २१३ अष्टप्रातिहार्यकवित २२१ आचारांगसूत्रनियुक्ति १, १८१, अष्टयोगिनीअंतर्दशा ३४२ आचारांगसूत्रपर्याय अष्टापदस्तवन २१८, २५२ आचारांगसूत्रवृत्ति १, १८१, अष्टाह्निकाव्याख्यान ३१८ आटकर्मनी उत्तरप्रकृति अष्टांगहृदयसंहिता ३२६, ३२७ आतुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णक ४५, ४८, ५२, १९६, अष्टोत्तरशतपार्श्वनाथनामस्तव १९७, २६३, २८८, २९, अष्टोत्तरशतस्तोत्र कवितबद्ध २२१ २९९, ३३५ अहिछत्रापुरीपार्श्वनाथछंद २२२ आत्मप्रबोध बीजकसह ३१७ अंगविज्जापयन्नो ४६, १७६, १९४, २७८, ३६४ । आत्मभावनास्तव ३११ अंजनासुंदरीकथानक २८१ आत्मविशुद्धिकुलक अंजनासुंदरीपवनंजयकुमाररास आत्मानुशासन ५८, ५९, २०१, २२९ अंतकृद्दशांगसूत्र ७, १८३, १९०, २२७, २४६, आदिनाथचरित्र प्राकृतगाथाबद्ध पंचावसरमय ९८ २६१, २९५ आदिनाथदेशनोद्धार ३११ अंतकृदशांगसूत्र वृत्ति ६-८, १८३, २०४ , सस्तबक २०८ ,, वृत्तिसह त्रिपाठ २२७ आदिनाथधवल २३४ अंतःकरणप्रबोधवृत्ति आदिनाथस्तवन २२९, २३६, २५२, २५३, २९०, अंतरिक्षपार्श्वनाथस्तवन २५४ ३३९, ३४६ अंतर्दशाकोष्टक आनंदसंधि २६४ अंबडचरित्र गद्य ३१४ आरंभसिद्धि द्वितीय विमर्श पर्यंत आ , पंचम विमर्श पर्यंत ३३१ मागमसार आराधना ५०, ५५, १९७, २४१, " बालावबोध २४८, २६३, ३४२, ३४४ २३४ ४८ . Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६७ २३७ ३५० ur Cham परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक आराधना बालावबोध २६५ आषाढाभूतिधमाल ३३८ आराधनाकुलक ४८, १९७ आराधनाचोपाई २५१ इगुणतीसीभावना २९० आराधनाप्रकरण ४८, ५६, ६१, १९७ इरियापथिकीकुलक सस्तबक ३११ आराधनाविधि ३५२ इरियावहियादंडकचूर्णी ४४ आलापपद्धति अपूर्ण ३२५ इलाकुमारचोपाई आलोचनाकुलक १९७ इषुकारीयचरित्ररास आलोचनाविचार २५३ इष्टसिद्धि वृत्तिसह १६४ आलोचनाविधि इंद्रियपराजयशतक सस्तबक आलोयणाविधिप्रकरण आवश्यकविधिप्रकरण प्रतिक्रमणसामाचारी आवश्यकसूत्र २६४ ईश्वरनिर्णयपच्चीसी २२३ आवश्यकसूत्रचूर्णी ३४, १९२ ईश्वरशिक्षा २११ आवश्यकसूत्रटिप्पनक आवश्यकसूत्रनियुक्ति ३२, ३४, ४२, ४३, १८५, २०१, २८८, २९९ उत्तमकुमारचरित्रकथानक गद्य आवश्यकनियुक्तिगत कतिचिद् गाथा २३८ पद्य आवश्यकसूत्रपीठिकाबालावबोध ३४२ उत्तराध्ययनसूत्र ३२, १८८, २२१, २२९, २४६, आवश्यकसूत्रबालावबोध ३०१ २६७, २७९, ३.१,३०२ आवश्यकसूत्रबृहवृत्तिशिष्यहिता ३४, ३५, १८५ प्रथम अध्ययन २२७ १८६, १९२, २१०,३५४ छत्रीस भास २५३ आवश्यकसूत्रवृत्ति मलयगिरि अवचूरि टिप्पणी सह ३०२ आवश्यकसूत्र लघुवृत्ति ३७, ३९, १८५, १९२, चूर्णी ३३, १८७ २०२, ३०१ उत्तराध्ययनसूत्र दीपिका सह " टिप्पनक उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति १८९, २८५, ३०२ विषमपदपर्याय उत्तराध्ययनसूत्रबृहृवृत्ति पाइयटीका ३३, १८७ आवश्यकसूत्र सस्तबक उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्तिपर्याय सावचूरि २९९ . १३ अध्ययन पर्यंत २२७ आवश्यकादिगतकथासंग्रह गद्य पद्य ११२ , प्रथमद्वितीयाध्ययन ३०२ आशाधर , सस्तबक २१६, २२५,३०२, ३०३, ३१५ सारणी २७५ , सार्थ सावचूरि २२९ आशापल्लीयउदयनविहारस्थजिनबिब उत्तराध्ययनसूत्र सावचूरि पंचपाठ २४०, ३०३. अवंद्यत्वमतव्यवस्थापन उत्तराध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्ति ३३, ३४, आशापल्लीयउदयनविहारस्थजिन २६२, ३०२, ३४९ बिम्बावन्द्यत्वमतनिरास अपूर्ण १२२ उत्तराध्ययनसूत्रनां गीतो आश्चर्यचतुर्दशी २२२ उद्भटकाव्यालकार लघुवृत्तिसह २७५ २४० Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ २३३ ३५८ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतानां [प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक उपदशायंत्र ज्योतिष ३३२ उपादानकारणनिमित्तकारणसंवाद २२३ उपदेशकंदली उपासकदशांगसूत्र ७, १८३, १९०, २१३, उपदेशकुलक ४९, ५०, ६२, १९७ २७७, २९५, २९७ उपदेशतरंगिणी ३३५ , वृत्ति ६, ७, ८, १८३, २०४ उपदेशपच्चीसी उपासकदशांगसूत्र सस्तबक २४६, २४७,२९८, ३५४ २२२ उल्लंठवचननिर्लोठनचोपाई उपदेशपदप्रकरण ५१, ६१, ६२ उल्लासिक्कमस्तोत्र-लघुअजितशांतिस्तोत्र २९० लघुवृत्ति ७५, ७६, १९५ " सस्तबक २८०,३१२ उपदेशमणिमालाकुलक २९० उववाइसूत्र २९६ उपदेशमालागाथासज्झाय २३३ पर्याय २४० उपदेशमालाप्रकरण ५३, ५८, ५९, ६०, ६१, उवसग्गहरंस्तोत्र ३१७, ३१३ ६२, २१२, २२६, २२७, २२८, वृत्ति ३४५ २३४, २४६, २६०, २८६, २८७, २८८, ३०९, ३४८, ३५१ ऋग्वेदयजुर्वेदगतशब्दादिनिर्णय २४५ , अवचूरि ७८, २५९ ऋजुप्राज्ञव्याकरण ३२१ उपदेशमालाप्रकरणकर्णिकावृत्ति , प्रक्रियावृत्ति ३२१ उपदेशमालाप्रकरण कर्णिकावृत्तिसह ऋषभदेवचरित्र पद्य टिप्पणीसह ५९, ३१६ ऋषभदेवविवाहलो दोघट्टीवृत्ति ८१, १९२, २८४ ऋषभदेवस्तवन (धुलेवामंडन) बालावबोधसह ३०९, ३१० , वालावबोधसह बृहद्वृत्तिसह प्रा. कथासह ८१,८२ ऋषभदेव-शांतिनाथ-नेमिनाथ-पार्श्वनाथशब्दाथसह महावीरजिनपंचस्तवी २८७ सस्तबक २२५, २२६, २७१ ऋषभपंचाशिका सस्तबक २३८ सावचूरि पंचपाठ २०२ ऋषिदत्ताचरित्र हेयोपादेयाटीका १९५,२१८,३५९ ऋषिदत्ताचोपाई २१८ उपदेशमालाशकुनावली ऋषिदत्तारास २७६ २२१, २२८ ऋषिमंडलप्रकरण २४१, २६५, २७०, २८१, ३०९ उपदेशरत्नकोश सस्तबक २१६,३११ , सावचूरिक त्रिपाठ वृत्तिसह , १९५, १२१ ऋषिमंडलसूत्र बालावबोध २२८ उपदेशरत्नाकर ऋषिमंडलस्तोत्र २७४, ३१४ उपदेशरसायनरासक २८७ सटीक २८६ उपदेशरसाल एकविंशतिस्थानप्रकरण २३२, २४१, २५०,२५८,३०७ उपदेशशतक २०८ , बालावबोध उपदेशस्तवन , सस्तबक २६६, २७२, ३०७,३१४ उपधानविधिप्रकरण एकाक्षरीनाममाला २५३, २५४, ३४६, ३५१ उपमितभवप्रपंचाकथा प्रतित्रिक प्रशस्ति एकाक्षरीनिर्घटुनाममाला २१३ ५६. २८८ ३११ ३१५ ३३८ ३३९ २८० Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४८ वृत्ति २२३ २३४ ३०८ ३५० २५९ २०२ ३०४ परिशिष्टम्] प्रन्थानां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम অগাব্দ एकादशगणधरस्तुति कर्णकुतूहल २७३, २७५, ३३१ एकादशगणधरएकादशभास २४८ २७५ एकादशीनिर्णयगर्भित पार्श्वस्तवन २७४ वृत्तिसह २१४ कर्ताअकर्तापच्चीसी २७९ एकादशीमाहात्म्य-मत्स्यपुराणगत कर्पटहेटकपार्श्वनाथरास एकीभावस्तोत्र ३४० कर्पूरप्रकर २०२, २६० एगुणतीसीभावना संस्कृत स्तबक सह ३४४ वृत्ति एषणाशतक सावचूरिक पंचपाठ कर्पूरमंजरीनाटिका २०६ ओपनियुक्ति ४१, १८६, २५०, ३०० कपूरकुसुमभाष्य २०६ अवचूरि २०१ टिप्पणीसह बृहद्भाष्य ४१, १८६ कर्मग्रंथ चतुर्थ पंचम २१२ विषमपदपर्याय कर्मग्रथचतुष्क २०२, ३०४ कर्मग्रंथपंचक २१२, ३८५ वृत्ति २७, ४१, ४२, कर्मग्रंथ प्रथम-द्वितीय-तृतीय १८६, २००, ३०० कर्मग्रंथ द्वितीय-तृतीय ओघनियुक्ति वृत्तिसह ३०५ ओंकारपंचाशिका कर्मग्रंथ पंचमषष्ठ बालावबोध १६९ २५९ ओंकारवावनी कर्मग्रंथ प्रथम-द्वितीय-तृतीय सस्तबक २७६ कर्मछत्रीसी २६७ कर्मप्रकृतिप्रकरण औक्तिक २५४ कमप्रकृतिचूर्णी ६२, १९५ औपपातिकोपांगसूत्र ८, १८३, २१५, २६१, २७९ कर्मप्रकृतिवृत्ति ३०५ ___, वृत्ति ८, १८३, २१५ , वृत्तिसह ६३, २८३, ३०५ औपपातिकोपांगसूत्र सस्तबक कर्मप्रकृतिसंग्रहणी ५२, १७६, १९६ कर्ममेदविवरण सटीक त्रिपाठ २२२ २९६ कर्मविचारचउपई कर्मविचारसारप्रकरण कइसिट्ठछंदःशास्त्र १३३, २१७ कर्मविपाक ज्योतिष वृत्ति १३३, १९८ कर्मविपाककर्मग्रंथ २३२, २३५, ३०५ कतिचिद् विचार बालावबोध २३१ प्राचीन ४७, ६०, १७६ कथानककोश ५५, २०२, २८८, २८९, वालावबोध २८३, ३०५ , सटीक प्राचीन विवरणसह कथासंग्रह १९६, २०९, २१८, २३५, २३८, २६०, " वृत्ति २६८,०७८, २८०, ३३५, ३५२ , वृत्तिसह ३०४, ३५३ कमलावतीचरित्रचोपाई २५३ सस्तबक २३८ कयवन्नारास २११ सावरि २१२ ३०५ २७६ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां [प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक कर्मस्तव द्वितीयकर्मग्रंथ प्राचीन ४७,६५,१७६, २३२ कल्पसूत्रसंदेहविषौषधिवृत्ति १७, १७८ २९८, , वृत्ति ६३, ६४, ३०४, ३१६ ३४९, ३५२ कर्मस्तव द्वितीय कर्मग्रंथ नव्य २०२, २१२ कल्पसूत्रवृत्ति २५७, २६३, २६६ कर्मस्व द्वितीयकर्मग्रंथ अवचरि २०१, २३७ कल्पबृहद्राध्य प्रथमखंड १८ सस्तबक २४३ कल्पलघुभाध्य १७, १६८ कलावतीरास २११ कल्पचूर्णी १८, १९, २१, १६८, १९२ कलिकालरास २१६ कल्पविशेषचूर्णी २१, १८८ कलिकुंडपाश्वनाथस्तोत्र ३१३ कल्पलताविवेक (कल्पपल्लवशेष) १३४, १९८ कलियुगगीत कल्पान्तर्वाच्य २२८, २४२, २९७, २९८ कल्पसूत्र १६, १७, २६, २२६, २६२ कल्याणमंदिरस्तोत्र ३१३, ३४८ ३१८, ३४३, ३६१ वृत्तिसह " २५६ सचित्र १७८, २९२ " सस्तबक २०८, २७३, ३१३ ,, रौप्याक्षरी १७७ ,, सावचूरि २४९, २८० , सुवर्णाक्षरी ३५९, ३६४ कल्याणमंदिरभाषास्तोत्र कल्पसूत्र अष्टमक्षणवाचना २५८ कविकल्पद्रुम ३२१, ३२२ सप्तमव्याख्यान २९८ कविगुह्यनामकाव्य २७० अवचूरे २२१ कवितसंग्रह २६७ " घूर्णी कविप्रिया २२३, २७२ , नियुक्ति २६, ३६१ कविरद्दस्य-अपशब्दाभासकाव्य सटीक १४०, १९८ कल्पसूत्र बालावबोध २५०, २६२ कविशिक्षा ३५० षष्ठी वाचना २६६ सप्तमवाचना २२६ काव्यकल्पलतावृत्तिसह ३५२ अष्टमनवम व्याख्यान २९८ कातंत्रधाश्रयकाव्यअवचूरि २४९ नवम व्याख्यान २७५ कातंत्रविभ्रम सटीक टिप्पणीसह २०६ सामाचारी २६२ त्रिपाठ ३२२ संक्षिप्त कातंत्रव्याकरण २३०, २३९, २६४, २६७, २८८ कल्पसूत्र बालावबोधसह कातंत्र व्याकरणदुगपदप्रबोधवृत्तिढुंढिका कल्पसूत्र कल्पद्रुमटीका कारक पर्यत १२६, २८३ ___कल्पमंजरी टीका २९६ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति २०१, २८५, २८६, कल्पलतावृत्ति २९६ २१८, २२९, २४२, २६६कल्पसूत्र किरणावलीटीकासह २१७ २६८, २८६ टिप्पनक ३६१ , व्याख्यानकलाप्रदीपिका २३० टीका कातंत्रव्याकरणदौगसिंहीवृत्ति विवरणपंजिकाटिप्पणीसह कल्पसूत्रनी मांडणी १२५ कल्पसूत्र भाषाटीकासह दुढिकासह २१० " सस्तबक २१०, २५७, २९७, २९८ गोल्हणवृत्ति २३१ २६७ २१६ ३४३ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ग्रन्थनाम कातंत्र व्याकरण बालावबोधवृत्ति विद्यानंदी वृत्तिमह कामधेनुकोष्ठक ज्योतिष कामधेनु ज्योतिषग्रंथ तथा सोरणी कामधेनु पंचांगसारणी काय स्थितिप्रकरण कालअष्टक कालज्ञान " कालस्वरूपकुलक विवरण "" कालापकव्याकरण वृत्तिसह कालिकाचार्यकथा १६, १७, १७८, २०२, कालिकाचार्यकथा गद्यपद्य सचित्र 23 १७८ बालावबोध २६१. ३३६ बालावबोधसह २२६ काव्यकल्पलता कविशिक्षावृत्तिसह २०३ २०५, २१२ ३२३ १३६, २६० १३६, १३७ १३६ १३५ १३५ १३८ १३८ ३२३ २८६ काव्यप्रकाश 93 भाषाप्रबन्ध 19 33 "" 33 ३३२ २७३ ३३१ २३८ २२२ २३८ २६७ ३१८ २८७ २८६ २०७ २२६, २२७, २५४, २६२, ३३४, ३४६ सचित्र रौप्याक्षरी १७८ काव्यमीमांसा (कविरहस्य ) काव्यादर्श (काव्यप्रकाश संकेत ) अकारादिवर्णक्रमेण सूची पत्रांक २०६ १२६, १२७, २८४ अवचूरि टिप्पणी सह काव्यानुशासन सूत्रपाठ किरणावली तृतीयरिच्छेदपर्यंत तृतीयपरिच्छेदटिप्पनक "" २७४, २८६, ३३४ किरातार्जुनीयमहाकाव्य कुमतिउत्थापनचर्चा २५८ कुमारविहारशतक ३३६ कुमारसंभवमहाकाव्य सप्तमसर्गपर्यंत २०९, २३७, ३३६ अवचूरि २०९, २५० सावचूरि ३२३ 33 ग्रन्थनाम कुमारसंभवमहाकाव्यटीका कुवलयमालाकथा कुसुमांजलिस्तोत्र कुडेश्वरागम कुंवरिश्राविका बारव्रतनियम कुटमुद्गर कृतपुण्यमहर्षिचरित्र पद्य कृत्यरत्नावली कोकचोपाई कोकदूहासंग्रह कोकशास्त्र कोकसवैयाछप्पा कोकसार कौतुकमंजरी 29 क्रांतिसाधन क्रियाकलाप क्रियाचंद्रिका क्षामणाकुलक क्षुल्लकभवावलिका सावचूरिक ख खरतरगच्छसामाचारी खंडनखंडखाद्य ور "" 33 टीका खंड प्रशस्तिकाव्य खंडाजीयण बोल खेटभूषण सारणी ग होमहाकाव्य सटीक गच्छाचारप्रकीर्णक गजसिंहचरित्ररास गज सुकुमारास टिप्पनक शिष्य हितैषिणवृत्ति टिप्पणीयुक्त Tr पत्रांक २२४ ११० ५५ २२८ २३४ ३४७ ९८, ११३, १९९ ३३६ ३४० ३४८ २७७ ३३३ २७७ ३५० ३५० २८० २३५. ३२२ ३२१ १९७ २३२, ३८५, ३१६ ३४३ १६२, २३१ २७८ १६२ ३५२ २६३ २७३ १५३ ४५, ३३५ ३४४ २४९ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारगंत ग्रन्थानां ग्रन्थनाम पत्रांक गणधरनमस्कार २४८ गणधर सार्द्धशतकप्रकरण २०२, २१५, २३०, २८७, २८९, ३३५ १२२, १९६, ३३५ ३३५ २८७ ३७३ गणधरस्तव गणरत्नमहोदधि स्वोपज्ञवृत्तिसह गणितनाममाला ज्योतिष जिविद्या प्रकीर्णक गणेशकथा वृत्तिसह लघुघुत्ति गदाधरी अनुमानखड गाथाकोश गाथासंग्रह गीतगोविंद सटीक गीतसज्झायादि गुणकरंडकगुणावली रास गुणमंजरी गुणसुंदर चोपाई गुणस्थान एकादश चयापच्या कथकसज्झाय गुणस्थानकप्रकरण वृत्तिसह गुणस्थानकमारोहप्रकरण गुणस्थान विचार गुणावली कथानक स गुणावली गुणकरंडकर स गुरुगीत गुरुगुणत्रिशिका सटीक गुरुपरिवाडी गुरुपरतंत्र्य कुलक गुरुपारतंत्र्यस्तववृत्ति गुरुपारतंत्र्यस्मरण गुर्वावली गृहप्रतिमास्नात्रविधि गोडिचास्तवन गोडी पार्श्वनाथस्तवन गोडी पार्श्वनाथछंद गोपीचंदकी वार्ता ३२२, ३२३ ३३४ ४५, ३३५ २४२ ३५४ २५० २३२ २२७ ३१७ २२०, २२३ २२२ २४० २२२ ३११ ३०६ २३५ २११ २२०, २२३ २३६ १९१, २५५ ५७, २५६ ५७ ३४५ २९० २१३, २२१, २९० १६९ २१४ २१३, २७२, २७४, ३३९ ३४७ २७७ ग्रन्थनाम गोमटसारकर्मकांड सटीक गोयरिगवयरिरूपविचार गोरक्षकप्रबोध गोरखबोधवाणी आदि दुहाकवितसंग्रह गोराबादरप्रास्ताविक गौतमकुलक सस्तबक गौतमपृच्छा प्रकरण गौतमपृच्छाच उप गौतमपृच्छा प्रकरण 3) 39 गौतमस्वामिगीत गौतमस्वामिरास गौतमस्वामिसज्झाय गौतमीयन्यायसूत्रवृत्ति ग्रहणाधिकार ग्रहभावप्रकाश ज्योतिष ग्रहरत्नाकरसारणी ग्रहलाघवसारणी ग्रहसाधन प्रक्रिया ग्रहसिद्धि ग्रंथोपसंहार काव्य "" घीकोटी ग्रंथयादि चउकसाय चउगतिचोपाई चउगतिवेलि बालावबोधसह २०७, सटीक त्रिपाठ प्रथमं पत्रांक २९२ ३४९ २६७ ३४७ ३४० २३५, ३११, ५९, २३१, २३२, ३११ २५२ सटीक सस्तबक चउपन्नमहापुरिसचरिय चक्रपाणिविजयमहाकाव्य चचरीरासकप्रकरण च २७२ २४८, ३११ २३२ २१३, २३६ २१८, २६३, ३४५ २४२ १६५ २७३ २७४, ३३० ३३० २७३ ३३३, ३३४ २७३ सटीक ३३१ २२३ १४७, १९८ १४८, १५० ३३३ २९८ २४२ २११, २५२ ९३, १९५ १५०, १९८ २८७ १५२, २८६ Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम्] अकारादिवर्णक्रमेण सूची २५३ ३३८ १५४ ३४० २८९ २५६ له م م २७० اس ग्रन्थनाम पत्रांक चतुर्जिनकल्याणकस्तोत्र चतुर्दशस्वप्नविचार ३४३ चतुर्मुखश्रीधरणविहारआदिनाथस्तवन चतुर्विशतिजिनकल्याणकस्तोत्रचतुर्विशतिका चतुर्विशतिजिनचरित्रस्तोत्र २६० चतुर्विशतिजिनचतुर्विशतिका २१४ चतुर्विशतिजिनचैत्यवन्दन चतुर्विशतिका चतुर्विशतिजिननमस्कार चतुर्विशतिजिनवर्णलांछनादिअष्टक चतुर्विंशतिजिनस्तवन २५१, २५२, २८५ चतुर्विंशतिजिनस्तुति २५२ , चतुर्विशतिका चतुर्विशतिजिनस्तोत्र क्रियागुप्त चतुस्त्रिंशदतिशयस्तोत्र चतुःशरणप्रकोणक ४५, ४८, ५६. ६०, १९७, १९७, २१५, २५४, २५६, २८८,२९०,२९८, ३३५,३३६ ,, बालावबोध सह २१५, २२१, २४८, २४९, २५४, २५७, २६१, २६९, २९९ चतुःशरणविषमपदविवरण २९८ चतुःश्लोकीप्रकाश ३४५ चत्तारिअट्ठदसदोय. सूत्रवृत्ति ३४५ चमत्कारचिंतामणि २७७ चरखंडां ज्योतिषसारणी चंडीशतक २७६ , सटीक २०७ चंदनबालाचोपाई २३६, चंदनबालाभास २३६ चंदनमलयागिरिकथा २११ चंदराजरास चंदाविज्झयप्रकीर्णक ४५, २३० ३३५ चंद्रदूतकाव्य १४८, १९८ , सटीक १४९ चंद्रप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र १३, १८४, २१४, २४१ चंद्रप्रज्ञप्युपांगसूत्रवृत्ति १५, १८५, १९१ ग्रन्थनाम पत्रांक चंद्रप्रभस्वामिचरित्र गाथाबद्ध चंद्रप्रभस्वामिचरित्र. पद्य १०१ चंद्रप्रभस्वामिषड्भाषामयस्तोत्र २५१, २५७ " सटीक २६१ चंद्रलेखाचरित्ररास २५४ चंद्रलेखाचोपाई चंद्रलेखाविजयप्रकरणनाटक चंद्रवेध्यकप्रकीर्णक चंद्रार्की ज्योतिष २३०, ३१, ३३५ चंद्रार्की पद्धति चंद्रार्की टिप्पनिका चंपकमालाकथा चंपकमालारास चातुर्मासिकव्याख्यान ३१५. ३५४ , बालावबोध चारित्रमनोरथमाला २५४ चार्चिक ३४४ चित्रबद्धकवितत्रिक चित्रबजिनस्तुति २६० चिहुंगतिवेलि २३६, ३३३ चिताकुलक २९० चिंतामणि " पार्श्वनाथस्तवन चितामणिसार प्रत्यक्षखंड चेतनकर्मचरित्र चैत्यवंदननियमकुलक चैत्यवंदनप्रत्याख्यानलघुवृत्ति चैत्यवंदनविधिकुलक २८७, २९. चैत्यवंदनविधिप्रकरण २१२ चैत्यवंदनाकुलक २४८, २८७ , युत्तिसह चैत्यवंदनादिविवरण चैत्यवंदनाभाष्य सस्तबक २७१, ३१६ , संघाचारवृत्तिसह ७२, १९५ चैत्यवंदना वंदनक प्रत्याख्यान विवरण २८. २२१ سم سم سم سم ३३२ २५५ ३४४ २८१ Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ ३१४ m ३४६ ३३१ २७५ ३३० ३१४ ३७४ जैसलमेरुदुर्गस्थंक्षानभंडारंगतग्रन्थानां [ प्रथम प्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक चैत्यवंदना वंदनक प्रत्याख्यान श्रावक जंबूद्वीपप्रज्ञप्त्युपांगसूत्रचूर्णी ९, ११, १३, १५, प्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति २६२ १८४, १९. चैत्यवंदनासूत्रवृत्ति जंबूद्वीपप्रज्ञात्युपांगसूत्रवृत्ति १९० चैत्यवंदनासूत्रचूणी ४३, ४४ जंबूद्वीपप्रज्ञप्त्युपांगसूत्र सटीक २२८, ३०३ चैत्रीपूर्णिमास्यवन्दन जंबूद्वीपसग्रहणीप्रकरण सस्तबक २७६ चोल्लकदृष्टान्त ३४३ जंबूस्वामिचरित्र चोवीसतीर्थकरगीत गाथाबद्ध चोवीसतीर्थकरजयमाल २२३ बालावबोध २११ चौदगुणस्थानकस्तवन रास २२१ चौदगुणस्थानजीवसंख्याविचारसज्झाय २२२ जंबूस्वामिप्रबंध २११ चौदस्वप्न बालावबोध २४२ जंबूस्वामिरास २११, २१५, २२९ जातककर्मपद्धति उदाहरण टिप्पणीसह छंदमाला जातकचंद्रिका ज्योतिष छंदोनुशासन १३४ जिनकुशलसूरिकवित्वाष्टक स्वोपज्ञछंदचूडामणि वृत्तिसह १३४ जिनगुणमालिका २२२, २३९ छतालीसदोसरहितआहारवर्णनपचीसी २२२ जिनचंद्रसूरिंगीत २८० छोतीकुलक २५२ , आदि गुरुगीत जिनजन्माभिषेकमहोत्सव जगभूषणसारणी ३३१ जिनदत्तसूरि चित्रपट्टिका जनावरशकुनावली २७३ " स्वाध्याय जन्मपत्रींविधानपद्धति २७६, ३३१ जिनदत्ताख्यान १०९ जयतिहुयणस्तोत्र ५६, २८०, २८९, ३४८ जिनधर्मपच्चीसी २२२ सटीक २६४, ३५२ जिननमस्कार सस्तबक ३१३ जिनपालजिनरक्षितस्वाध्याय , सार्थ जिनप्रतिमास्थापनरास ३३८ जयदेक्छदःशास्त्र १३२, २१७ जिनप्रतिमाहुंडीस्तवन ३३९ , वृत्तिसह १३२, २१७ जिनबिंबनमस्कार २३८ जयसेनकुमारचुपई जिनयक्षयक्षिणीवर्णादि निर्वाणकलिकांतर्गत २५९ जल्पमंजरी जिनविज्ञप्तिका जंबूद्व पक्षेत्रसमासप्रकरण ५९-६१, २१३, जिनशतकमहाकाव्य २१८, ३३६ २८९, ३०४ , सावचूरि पंचपाठ ३३६ " वृत्त जिनस्तुति ३११ " सस्तबक ३०४ जिनस्तोत्ररत्नकोश ३१४ जंबूद्वीपप्रज्ञप्त्युपांगसूत्र ९, ११-१३, १८४, २९६ जिनस्नात्रविधि चतुष्पत्मिक Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ परिशिष्टम् ] अकारादिषर्णक्रमेण सूची ग्रन्थमाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक जिनागमगाथासंग्रह ३४३ ज्योतिषाम्नाय ३१८ जिनागमपाठसंग्रह अस्तव्यस्त २७८ ज्योतिष्करंडकप्रकीर्णकसूत्र जीतकल्पसूत्र १७७, २०९ सटीक १३, ४६, १८८, चूर्णीसह १७७ २१७, २६१ चूर्णाटिप्पनक ज्वालामालिनीमंत्र विषमपदपर्याय ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र ५, १६८, १८२, २१०, वृत्तिसह १७७ १९४, २३१, २४५, २९५, ३५१, ३६१ २०९, २६२ शाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति ५, ६, १६८, १८२, २०४, जीरणशेठरत्नपालचोपाई २६५ २९५, ३६१ जीरावलापार्श्वनाथस्तवन २६८ ज्ञाताधर्मस्थांगसूत्र सस्तबक २१७, २७१ जीवविचारप्रकरण २३१ २४०, २४१, २५६ ज्ञानछत्रीसी ३४४ २५८, २६६, ३०३, ३१७, ३४८ ज्ञाननमस्कार १६८ जीवविचारप्रकरण वृत्ति ३४६ ज्ञानपचीसी ३३८ सटीक २६९, ३५२ ज्ञानपरिधापनिकावृत्त १६८ , सस्तबक २४३, २४७, २४९, २६१ ज्ञानपहेरामणी आदि ३४१ सावचूरि त्रिपाठ ज्ञानपंचमीकथा २३५, २३६, ३१५ जीवसमासप्रकाण ५१, ६६ ज्ञानपंचमीस्तवन २४२ सटीक ज्ञानपंचमीस्तुति जीवसिद्धि ज्ञानमंजरी ज्योतिष जीवाभिगमोशंगसूत्र ९, १८४, २५७, २९६, ज्ञानमाहात्म्यप्रकरण ज्ञानलवणादिवृत्तानि १६८ " पर्याय ज्ञानसुखडी , लघुवृत्ति ज्ञानस्तोत्र १६८ जीवाभिगमोपांगसूत्रवृत्ति ९, १८४, २७९ ज्ञानार्णवसारोदार सस्तबक २४६ जीवोत्पत्तिसज्झाय जीवोपदेशपंचाशिका १९७ जेसलमेरुपार्श्वनाथगीत २८० ढढणऋषिमज्झाय ३५४ ज्योतिषप्रथ २७३ दुढकप्रतिक्रमण ज्योतिषप्रथो तथा ज्योतिष पत्रसंग्रह ढोलामारुवार्ता २३८, २६६ ज्योतिषप्रकीर्णकविचार ज्योतिष प्रकीर्णक सग्रह २९१, ३३७ ज्योतिषरत्नमाला बालावबोध सह २७५, २८० ज्योतिषसारणी २७३, २७४, ३३२-३३४, तत्त्वचितामणिआलोक ३५१ ३३७ मंगलवाद २३१ ३१९ २४८ २३० ३३९ २९१ ३३० Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ . १६० ३३९ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतमन्थानां [प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक प्रन्थनाम पत्रांक तत्त्वप्रदीपिका चित्सुखी २८६ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र गद्य तत्त्वप्रबोधनाटक २४२ शांतिनाथचरित्रपर्यंत तत्त्वसंग्रह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र प्रथमपर्व ऋषभचरित्र चंद्रलघुटीका २९२ ९५, २८३ पंजिकावृत्ति १६०, २७६ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र तृतीयपर्व पर्यंत तत्त्वसारगाथा २०८ शीतलनाथस्वामिचरित्रपर्यंत तत्त्वार्थाधिगमसूत्र २३२, ३०६ त्रिषष्टि. द्वि. तृ. पर्व. संभव-अभिनंदनचरित्र ९६ " भाष्यसह २३२ त्रिषष्टि तृ. पर्व. संभवथी शीतलनाथचरित्र पर्यंत ९६ " श्रुतसागरीटीकासह सस्तवक. त्रिषष्टि सप्तमपर्व-रामायण " ૨૧૭ ९६, २००, ३८५ तपश्चरणभेदस्वरूपप्रकरण ५३ त्रिषष्टि अध्टमपर्व-नेमिनाथचरित ९६, १७५ तपागच्छगुर्वावली सटीक त्रिपाठ २४२ त्रिषष्टि. दशमपर्व-महावीरचरित्र ९५, १७५, २०४, तपोटर्षिमतकुट्टनशतक १२४ २८२, ३१४, ३१५ तपोटषिमतखंडन स्वोपज्ञवृत्तिसह १२४ त्रिषष्टि श. पु. च. परिशिष्टपर्व २६७, २६८ तर्फपरिभाषा २३४, ३२४, ३२५, ३३२, ३५२ सठशलाकापुरुषस्तवन तर्कभाषाप्रकाशवृत्ति ३२५ तर्कसंग्रह दीपिकाटीका २४७, ३२५ थ तं जयउ० स्मरण स्तव ३१३ ३४५ थिरपुरमंडन कुंथुजिनस्तवन २१४ तंदुलवेयालियप्रकीर्णक २३०, ३३५ थिरपुरमंडन शांतिजिनस्तवन-आलोचना ताजिकबालावबोध विनतिस्तोत्र २१३ ताजिकभूषण ३२९ थेरावली (नंदीसूत्रगता) ५६, ५९ ताजिकसार २७३, ३२८, ३२९, ३३१ र कारिकाटीका ३२९ तात्पर्यपरिशुद्धि टिप्पणीसह तिजयपहुत्तस्तोत्र २३३, ३४८ दमयंतीकथा चंपू विवरण २७०, ३५१ तिलकमंजरी सावचूरिक पंचपाठ २७० तीर्थोद्गालिप्रकीर्णक २३०, २९९ दर्शनशुद्धिप्रकरण विवरणसह त्याद्यन्तप्रक्रिया २२८ दर्शनसप्ततिकाप्रकरण २०१, २१२, २५० त्रयोदशमेदनवकारस्वरूपकुलक ५३ वृत्ति १८८ त्रिपताकीचक्रोदाहरण ३४३ दर्शनसप्ततिकाप्रकरणवृत्तिसह ३०९, ३१६ त्रिपुरबंधमुहूर्त ज्योतिष ३३० दश आश्चर्य २४१, २५१, ३४३ त्रिपुरास्तोत्र लघुस्तव ३१४ दशउपासककथा १९५ त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण चू. अ. ३१४ " वृत्ति २८६ ३४५ चूर्णी १९६ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३११ MMMM र परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची प्राथनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक दशप्रश्नोत्तर ३४३ दानादिकुलक सस्तबक २३० दशवैकालिकगीत ३५३ बाला. दशवैकालिकसूत्र २५, २७, १८६, २०४, २३२, दार्शनिक अज्ञात ग्रंथ २६८ २४२, २४८, २५७, २६१, दिक्पटचोरासीबोलकवित २७०, २८६, ३००, ३०१, ३१८ दिक्पटचोरासीबोलविसंवाद दशवैकालिकचूर्णी ३१, १७५, १८६, १९२ दिगंबरचोरासीबोल , अगस्त्यसिंह २८ दिव्यतत्त्व दशवैकालिकसूत्रनियुक्ति २७,२८,३०,३१,१८६,२८५ दीपालिकाकल्प २६३ दशवकालिकसूत्रलघुवृत्ति-सुमतिसूरि ३०, १६९, २२५, दीवालीस्तवन २६३ ३३५, ३५० दुरियरयसमीरस्तोत्र-महावीरचरित्र २१७, २८०, हारिभद्री वृत्ति २७, २८, ३०, ३१२, ३१८, ३४८ १८६, ३०१ बालावोध सह. ३१२ तिलकीयावृत्तिसह सावचूरिक पंचपाठ ३१२ विषमपदपर्याय दुर्गवृत्तिद्याश्रयमहाकाव्य स्वोपज्ञ वृत्तिसह २८३ सस्तबक २३५२६४,३०३, ३१८ दुर्गसिंह लिंगानुशासन ३२२ सावचूरिक २३२ दुर्गासप्तशती दशश्रावकचरित्र गाथाबद्ध ११५ दूहासंग्रह ३४८ चूर्णी दृष्टान्तपच्चीसी २२३ दशाकोष्टक ज्योतिष ३३२ दृष्टिफलज्योतिष ३४७ दशाश्रुतस्कंधसूत्र १६, २२, १९२, २०९ देलवाडा आदिजिनस्तवन सावचूरिक पंचपाठ २५४ चूणी १६, २२, १९२, २०९ ।। देववंदनभाष्यादि प्रकरणसंग्रह १७८ नियुक्ति १६, २२, १९२ देववंदन वंदनक प्रत्याख्यानप्रकरण २६९ सस्तबक २६५ देववंदनादि भाष्यत्रय दंडकप्रकरण २५८ , बालावबोध सह २५९, ३०६ दंडकप्रकरण २४०, ३०३, ३१७, ३४८ देविदत्थओ ३३५ अवचूरि देवीगीत आदि २७७ सस्तबक २०९ देशकालस्वरूप ३४२ स्वोपज्ञवृत्तिसह २.९, ३३३ देशीनाममाला दंडकबोलविचार २३५ दोढसो कल्याणकनुं गुणj २४९ दंडक २४ बोल यंत्रपट ३४६ द्रव्यगुणपर्यायरास सस्तबक २२१ दानविजयचोवीसी द्रव्यप्रकाश २३७, २४७ दानविधिकुलक ५४, २९० द्रव्यसंग्रह २२१, २५० दानविधिप्रकरण २२९ बालावबोध सह दानशीलतपभावनाचोपाई ३३८ सटीक दानषट्त्रिंशिका सटीक २६९ संस्तबक २३५ २०९ २४३ ३४६ २६३ ४८ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ ग्रन्थनाम द्रव्यालंकार सटीक द्वादशकथा द्वादशकुलक द्वादशकुलक टिप्पणीसह 33 द्वादश भावना "" "" द्वादशभावफलविवरण ज्योतिष द्वादशत्रतअतिचार स्वरूप द्वादशव्रतकथा गाथाबद्ध द्वादशव्रतस्वरूपा दि द्वादशांशफल आदि द्वारिकामाहात्म्य द्वीपसागर प्रज्ञप्तिसंग्रहणी व्याश्रयमहाकाव्य प्राकृत वृसिह संस्कृत "" धनंजयनाममाला धन्यषिञ्झाय सज्झाय संधि धन्यशालिभद्रचरित्र धन्यशालिभद्ररास 33 धनपालपंचाशिका सावचूरिक पंचपाठ धनफली गणसारणी सस्तबक 33 धर्मरत्नप्रकरण "9 पत्रांक १५८, १९८, १९९ २०९ २०३, २८७, २९० ३०८ विवरणसह ७८, २७६, ३०९ २५५, २६४ २५१ २५२ ३४६ २५०, ३४४ ९७ २६१ २९२ २५६ २०० ३३६ १४० १४१ धन्वंतरीय निघंटु धरणोगेंद्रस्तोत्र धर्मकुटुंबकथा - अष्टप्रका रीपूजाफलविषये धर्मदत्तकथानक गद्य धर्मपद - धर्मशिक्षा प्रकरण धर्म बिंदुप्रकरण सटीक ध "2 जेसलमेरु दुर्गस्थज्ञानभंडारगत ग्रन्थानां बृहद्वत्तिसह स्वोपज्ञ वृत्ति २१८ ३३७ २८०, ३३४ ३५३, ३५४ ९७, ११२ २३८, ३३७ २४६ ३१३ ३५१ ३१४ ६७ ८० ८० ५३ ८७, २५० ३५८ ग्रन्थनाम धर्मरसायनरासक सटीक धर्मलक्षण धर्मविधिप्रकरण धर्मशिक्षा प्रकरण धर्मसंग्रणी प्रकरण सटीक धर्मोत्तर टिप्पनक धर्मोपदेशमालाप्रकरण धातुपाठ धातुपारायण धातुप्रक्रिया धातुरूपावली धूमावलि ध्यानस्वरूप नभिऊणस्तोत्र नमिराजर्षिकुलक नमराजर्षिचोपाई नयचक्रवचनिका नरवर्म कुमारचरित्र सम्यक्त्वालंकार नवकुमारभास नर्मदा सुंदरीरास न ५७, ३१३, ३४८ २६९ २५८ २७६ १२० २३७ २६५, ३४० २२३ २०७ ३३६ ३१३ छंद २७३ 33 नवकार मंत्रनो अर्थ ३४३ नवकार मंत्र फलकुलक ४९, १९७, २२९, २८७ नवकार मंत्रबालावबोध २४३, २४८, २५३, २७१ नवकार मंत्र माहात्म्य ३१४ २४७ नलदमयंतीरास नलदवदंतीचरित्र नलोदयकाव्य सावचूरिक नवकार मंत्र 33 "" [ प्रथमं पत्रांक १५३ ५२, ५९, १९६, २९० ९० ८० १८९ १५९ ५३, ५९, ६० १२८, २४३ १३०, २०० २२३ ३३३ ५४, २८७ २५५ वार्तिक सज्झाय सारस्तव 23 नवग्रहस्तुतिगर्भित पार्श्व स्तुतिवृत्ति पद्य २१८ ५९ ३४५ Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ૨૭૮ २३१ ३५० ग्रन्थनाम पत्रांक नवतत्त्वचोपाई नवतत्त्वप्रकरण २१३, २३३, २४०, २४२, २५६, ३०३, ३०४, ३१७, ३४८ नवतत्त्वप्रकरणभाष्य ६२, १९६, १९७ नवतत्त्वप्रकरण भाष्यसह नवतत्त्वप्रकरण भाष्यवृत्तिसह १८९ नवतत्त्वप्रकरण सस्तबक २३३, २४१, २४२, २४८, २५६, २६१, २६४, ३०३ , सावरिक २०२, २१२, २७०, ३१७ नवतत्त्वना बोल २४० नवतत्त्वविचार २५३ नवतत्त्वविचारगाथा नवतत्त्वविवरण आदि वंदनकादिविचार बाला. २७० नवपदपूजा ३४४ नवपदप्रकरण ५२, ६१, १९६, २३० , बृहवृत्तिसह ७८, ७९, १९५ नवरससागर-उतमराजर्षिचरित्ररास २४० नव्य बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण नंददासनाममाला तथा दूहा सोरठा आदि नंदबत्रीसीचोपाई २५२ नंदिताब्यछदःशास्त्र २८१ सटीक ३५३ नंदीविषमपदपर्याय नंदीश्वरतीर्थस्तवन २५२ नंदीश्वरतीर्थस्तोत्र नंदीश्वरद्वीपजयमाल २२२ नंदीसूत्रगत द्वादशांगीआलापक २५३ नंदीसूत्र २५, १८७, २५९, २६६ नंदीसूत्रचूर्णी १७५ नंदीसूत्रलघुवृत्तिदुर्गपदप्रबोध नंदीसूत्रवृत्ति २५, १८७, २२५ नंदीसूत्रवृत्तिगत योग्यायोग्यपर्षदाविचार २५९ नंदीसूत्रस्थविरावली २३८ नंदीषेणचोपाई नागदत्तकुमारभास २३७ ग्रन्थनाम पत्रांक नागमहामंत्रषोडश ३४३ नागमंताचोपाई ३४३ नागानंदनाटक १५४ नाटकपच्चीसी २२३ नाणाचित्तप्रकरण ५५, ६६, २०२२८९ नादकारिका सटीक ३५४ नामेय, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा महावीरस्तोत्र २८७ नारचंद्र ज्योतिष द्वितीय प्रकरण २६८, २७४, ३३१, ३३४ नारदीयपुराण नारिंगापाश्वनाथस्तवन २१४ नित्यपच्चीसी २२२ निबंधसंग्रह वैद्यक सटीक ३२७ नियतानियतविचार २६४ निरुक्तिकांड निर्यावलिकाउपांगसूत्र १८५, २२७ निर्यावलिकाउपांगसूत्रवृत्ति १८५, २००, २२७ निर्यावलिकादि पंचोपांगसूत्र १३, १५, ३६१ सस्तवक २४६ वृत्ति १५, ३६१ निर्वाणकांड २२२ निर्वागलीलावतीमहाकथाउद्धार (लीलावतीसार) १५१ निशीथसूत्र २३, २४, १९३ निशीथसूत्रचूणी प्र. खंड ११ उद्देशपर्यंत २४, १९३ " विशोद्देशकव्याख्या निशीथसूत्रभाष्य २३, २४, १९३ निशीथसूत्रवचनिका २६३ निषेकोदाहरण ज्योतिष नृसिंहकवच ३४३ नेमिनाथगीत नेमिनाथचरित अपभ्रंश १०४ " गद्य । २३७ नेमिनाथबारमासागीत २८१ नेमिनाथबारमासा तथा सवैया २६७ २१४ Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८० जेसलमेरुदुर्गस्थानिभंडारगतग्रन्थानां [ प्रथम पत्रांक ग्रन्थनाम न्यायावतारसूत्रवृत्ति टिपणीसह १५७ २४८ २०६ १४६ " " भाषानी ३२६ २२३ प्रन्थनाम पत्रांक नेमिनाथरास २५५, २६२ नेमिनाथस्तवन नेमिनाथस्तव तथा देवगुरुगीत २३९ नेमिनाथस्तोत्र ६३, ६७ नैषधमहाकाव्य १४५, १४६, २०२, २३१. २७८ नैषधमहाकाव्य पंचमसर्गपर्यंत टिप्पणीसह २८६ नैषधमहाकाव्यदीपिका द्वितीयसर्गपर्यंत नैषधमहाकाव्य साहित्यविद्याधरीटीका न्यायकंदलीटिप्पनक १६१, १९८, २६२ न्यायकंदलीटीका १५७, १६१ न्यायग्रंथ २, ३२६, ३५४ , टीका ३२६, ३२७ न्यायटिप्पनक श्रीकंठीय १८९ न्यायतात्पर्यटीका टिप्पणीसह न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि टिप्पणीसह १८९ ३५६ न्यायप्रवेशटीका १६० टिप्पणीसह २५५ पंजिका १५७, १९८ न्यायप्रवेशसूत्र १६० न्यायबिंदु (लघुधर्मोत्तरसूत्र) १५७, १६० न्यायबिंदुवृत्ति १६० टिप्पणीसह १५७ न्यायभाष्य १८८, ३५६ विवरण १९८ न्यायमंजरी ग्रंथिभंग -१६२ न्यायरत्नप्रकरण-शशधरसूत्र ३२४ ' टिप्पणी सह न्यायवार्तिक टिप्पणीसह १८९, ३५६ न्यायवार्तिकतात्पर्यवृत्ति , न्यायवार्तिकभाष्यवृत्तिविवरण १८९ न्यायसारन्यायतात्पर्यदीपिकाटीका ३२५ न्यायसिद्धांतमंजरी प्रत्यक्षपरिच्छेद २९२ न्यायावतारसूत्र १५७ " टिप्पनक १६१ पउमचरिय गाथाबद्ध ११० पगामसज्झाय तथा हरियालीगीत २१२ सस्तबक पच्चक्खाण १६८ पच्चक्खाणविचारगर्भित पार्श्वनाथस्तवन ३४७ पट्टावली खरतरगच्छीया ३३६ पडिलेहणाकुलक पद्मकोश ज्योतिष २२५, ३३०, ३४६ पद्मावतीस्तोत्र ६३ परदेशीराजानो रास परमात्मजयमालिका २२१ परमात्मछत्रीसी परमात्मप्रकाश सस्तबक परमात्मस्वरूपगीत तथा अध्यात्मगीत २४३ परमानंदपचविंशतिका सस्तबक २४३ परमानंदस्तोत्र तथा मूर्खशतक ૨૧૩ परमारथपदसवैया-दूहा २२२ परिशिष्टपर्व २२५ परीक्षामुखप्रकरण १५८, १९९ पर्यताराधनाप्रकरण ४७, ५२, १९६, १९७, २३१, ३३७ सस्तबक बालावबोध सह २३० पर्युषणाअष्टाह्निकाव्याख्यान पर्युषणाकल्पचूगी १६, १७ पर्युषणाकल्पटिप्पनक पर्युषणाकल्पदुर्गपदव्याख्या २१० पर्युषण कल्पनियुक्ति पर्युषणाकल्पनियुक्तिवृत्ति पंचइंद्रियचोपाई २२३ पंचकल्पचूणी १६, १७४, १९३ २३१ ३२४ १६१ ३१७ १८९ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंरिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची २३३ २८९ २३९ ३२० २७२ ग्रन्थमाम पत्रांक पंचकल्पमहाभाष्य १६, १७४ पंचकल्याणकस्तोत्र ५१, ८०, १९६ पंचग्रंथी-बुद्धिसागरव्याकरण १२७ पंचतंत्र २१८, २१९ पंचतीर्थीस्तुति २५१, २५२ पंचनमस्कारफलस्तव पंचनिग्रंथीप्रकरण पंचपरमेष्टिनमस्कार २३९ पंचपरमेष्टिस्तव ६२, १९७ पंचप्रस्थान-न्यायमहातर्कविषमपदव्याख्या न्यायालंकार १८६ पंचभावनासज्झाय पंचमहाव्रतस्वाध्याय २४३ पंचलिंगीप्रकरण ५१, ५४, १९६, २०१, २८७, २८८, ३०६ विवरणसह २०३ पंचवर्गपरिहारनाममाला-अपवर्गनाममाला रिनाममाला-अपवगनाममाला २६१ पंचवस्तुकप्रकरण ६१, २६३, २८६ वृत्ति ७५, २८३, २८४ पंचसमवायाधिकार (गुणसागरप्रबोधान्तर्गत) २१४ पंचसमितिसज्झाय ३४४ पंचसंग्रह , सटीक प्रथम खंड पंचसंवरगीत पंचसूत्रप्रथमसूत्र पंचाणुव्रतप्रकरण पंचाशकप्रकरण १७६, २८४, ३५८ पंचाशकप्रकरणवृत्ति पंचाशकप्रकरणलघुवृत्ति अष्टादशपंचाशकपर्यंत ७४ पंचासरापाश्वनाथस्तवन | २१४ पंचांग सं.१८२५नु गुटकाकारे २७२ पंचांग सं.१७२७ थी १७४१ सुधीनो गुटको पंचांग सं. १८२२नुं २८० पंचांगतत्त्व व्याख्यासह २७५ पंचांगानयनविधि ज्योतिष ३३१ ग्रन्थनाम पत्रांक पाक्षिकक्षामणासूत्र पाक्षिकप्रतिक्रमणविधि २६५ पाक्षिकसूत्र २५, २३५. २५९, २८६, ३००, ३१६, ३१७ पाक्षिकसूत्रचूणी पाक्षिकसूत्र वृत्तिसह ४२, ४५, १७६, ३०० पाक्षिकसूत्र सावचूरि पाणिनिव्याकरण उणादिगणवृत्ति गणपाठ ३४६ अष्टाध्यायीसूत्रपाठ परिभाषा ३२० पाणिनिव्याकरणमहाभाष्यप्रदीप २८३ वृत्ति १६७ पार्श्वनाथचरित्र १०९, २०७ पार्श्वनाथछंद २१४ पार्श्वनाथदशभवसंक्षेपबालावबोध ३४३ पार्श्वनाथमेघराजगीत २१३ पाश्वनाथवीनति पार्श्वनाथविवाहलो २०६, २१२ पाश्र्वनाथस्तवन २१३, ३३९ पार्श्वनाथस्तुति ३१९ पार्श्वनाथस्तोत्र ५७, ६७, ७९, ८०, २५१, ३४. वृत्ति ३४५ पार्श्वनाथस्तोत्र महायमकमय सावचूरिक २५९ पासाकेवली ३४३, ३५३ पांचपांडवरास (द्रौपदीरास) २४१ पांडवचरित्रमहाकाव्य पद्य १७७ पिंडनियुक्ति ३१, ३२ अवचूरि पिंडनियुक्तिकतिचिद्गाथावृत्ति पिंडनियुक्तिवृत्ति ३२ पिंडनियुक्तिलघुवृत्ति ३१, ३२ पिंडनियुक्ति वृत्तिसह ३२, १८७ पिंडनियुक्तिविषमगाथाविवरण - २७६ Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮૨ ३०५ २२८ जैसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां [प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थमाम पत्रांक पिडनिर्यक्तिविषमपदपर्याय स्तवनस्तुतिसज्झायछंदगीतांदि २७९ पिंडविशुद्धिप्रकरण ५१, १९६, २०१, २३९, स्तोत्रमंत्रकल्पादि. ३१७ २६९, २८६, २८८ प्रतिकमणसूत्र सप्तस्मरणवृत्ति ३४५ अवचूरि २४९ प्रतिक्रमणसूत्र,प्रकरण,स्मरणादि सटीक ७०, ७३ सस्तबक २५६ प्रकीर्णकविचार २८४ पुण्यपापजगमूलपच्चीसी २२२ प्रकीर्णकविचारसंग्रह २९२, ३४५ पुण्यलाभकुलक २९० प्रक्रियाकौमुदी २१४, २२४, ३३४ पुण्याढयनरेसरभास २३६ प्रज्ञापनासूत्र ९, ११, १८४, ३४८ पुरंदरचतुष्पदी २४९, २५२ प्रज्ञापनातनीयपदसंग्रहणी ६६, २४०, ३०५ पंचनिग्रंथीप्रकरणपुलाकोद्देशसंग्रहणी " अवचूरि ३०५ पुष्पमालाप्रकरण ५८, २११, २१२, २१३, , सावचूरिक २१५, २५६, ३१० प्रज्ञापनासूत्रपर्याय ४६ पूजाप्रकरण २४०, ३१० प्रज्ञापनासूत्रविवरणविषमपदपर्याय पूजाविधिभाससंग्रह प्रज्ञाषनासूत्रवृत्ति ९, ११, १८४, ३१७, ३४९ पूर्णकलशस्थापनाविधि प्रज्ञापनासूत्रलघुवृत्ति ११ पृथ्वीचंद्रचरित्र ११६ प्रतिक्रमणसूत्र पृथ्वीराजवेली सस्तबक ३४० सस्तबक पौषदशमीकथा गद्य प्रतिष्ठाविधि पौषधविधि २३० प्रत्यंगिरास्तोत्र पौषधादिविधि तथा ज्वरहरादिमंत्र ३४४ प्रत्याख्यान तथा वंदनकभाष्य पौषधविधिप्रकरण ५१, १९६ प्रत्याख्यानसूत्रवृत्ति पौषधविधिस्वाध्याय २५८ प्रत्याख्यानस्वरूपप्रकरण प्रकरणसंग्रह ४७, ५१, ५३, ५४, ५८, ५९, गाथाबद्ध ६०, ६२, ६६, ७९, १७६, १७८, १९६, प्रत्येकबुद्धचतुष्कचरित्र पद्य ११७, १२०, १९७, २२१, २६५, २८४, २८७, २८८ प्रत्येकबुद्धचोपाई २२८ प्रकीर्णक अंत्यपत्रसंग्रह २७७ प्रत्येकबुद्धरास प्रकीर्णक कवितपदसंग्रहगुटको २७७ प्रथमपंचाशकप्रकरण चूणिसह ७४ प्रकीर्णकगाथाव्याख्या प्रदेशिराजर्षिरास प्रकीर्णक अटकपत्रसंग्रह प्रद्युम्नशांबचरित्र २८३ प्रकीर्गकसंग्रहपोथी-स्तवनसज्झायादि २९१, ३५५ प्रबोधचंद्रोदयनाटक टिप्पणीसह १५३ प्रकीर्णकसग्रहपोथी. गुटकाओ ३५५ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार ३५० प्रकीर्णकसंग्रहप्रति. भासचोपाईआदि २३६ प्रनाणमीमांसा १५८ स्तवनस्तोत्रादि २५१ स्वोपज्ञवृत्तिसह १९९ स्तुतिस्तवनादि प्रमाणांतर्भाव १६३, १९९ ३४८ ३१५ . d Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५३ ३५५ ३२६ परिशिष्टम्] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ३८३ ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक प्रमालक्ष्मलक्षण सटीक १५९ प्रश्नोत्तरसंग्रह ३४३, ३४४ प्रमेयरत्नकोश प्रश्नोत्तर तथा बोलविचार ३४७ प्रयोगमुखव्याकरण प्रश्नोत्तरसार्धशतकभाषा ३४२ प्रयोगविवेकसंग्रह २०४ प्रश्नोत्तरषष्टिशतप्रकरण २३२ प्रवचनसंदोहप्रकरण ५१, ६०, १७६, २८७, २८९ " अवचूरि २६४ प्रवचनसारोद्धारप्रकरण ५१, ६१, ६२, २१७, २६८ प्राकृतचंद्रिका ३१९ ३०६, ३०७, ३५१, ३५२, प्राकृतपिंगल २४३ प्रवचनसारोद्धारबीजक ३०७ प्राकृतप्रकाश १२९ प्रवचनसारोद्धारविषमपदपर्याय प्रतिहार्य-कुसुमांजलि-नंदीश्वरस्तोत्र प्रवचनसारोद्धारवृत्ति ७०, २८४, ३०७, ३५३ प्रामाण्यवाद प्रवचनसारोद्धारप्रकरण वृत्तिसह प्रियकरनृपकथा-उपसर्गहरस्तोत्रप्रभावे २३५ लघुवृत्ति प्रेतमंजरी २७८ प्रव्रज्याविधानकुलक ५६, २०८, ३४८ " बालावबोध सह २२९ प्रव्रज्याविधानप्रकरण ६०, २८८, २९० फलकल्पलता ३२८ प्रशमरतिप्रकरण ३५० अवचूरि सटीक ६३ बटुकभैरवस्तोत्र मंत्राम्नाय सह ३५४ प्रशस्तपादभाष्यपदार्थधर्मसंग्रह बप्पभट्टीस्तुतिचतुर्विशतिका २७९ प्रश्नप्रदीप ३२८, ३५३ सटीक ૩૧૪ प्रश्नफलादेश ज्योतिष बलाबलसूत्र २०४ प्रश्नमनोरमाविद्या , , वृत्ति. टिपणीसह २०४ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र ७, १८३, १९०, २०५ बलिनरेन्द्रकथा-भुवनभानुकेबलिचरित्र २९५, २९७, २९८. ३५२। (भवभावनावृत्त्यंतर्गत) १९२ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रवृत्ति ६, ७, ८, १८३, २२५, बंधस्वामित्व-प्राचीनतृतीयकर्मग्रंथ २३० १६१ ३३० c८ ॥ वृत्ति वृत्तिसह २६५, ३०४, ३५१ प्रश्नध्याकरणदशांगसूत्र सस्तबक २२६, २९७ बालावबोधसह २४५ प्रश्नशतावचूर्णि प्रश्नोत्तर चर्चिक प्रश्नोत्तररत्नमालिका ५२, ५९, ६३, १९६, २२९, २५०, २८७, २९० वृत्तिसह बालावबोधसह २१५ सस्तबक २३७, २३८, ३११ बारभावना बारव्रतकथा घालतंत्र वैद्यक बालशिक्षाव्याकरण बालावबोधप्रकरण बालावबोधसारसंग्रह ज्योतिष बावीसपरीषहवर्णन " २२२ २११ ३२७ २३६, २७० २८९ ३२८ २२२ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ३१५ २७७ नव्य २३९ ३५१ . ૨૮૪ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां [प्रथम प्रन्थनाम पत्रांक प्रन्थनाम पत्रांक बासठमार्गणायंत्र २७४ २९०, ३१३, ३१८, ३४८ बिल्हणपंचाशिका ___ बालावबोध २४८, ३१३ बिहारीसतसइयां ३४२ भक्तामरस्तोत्र बालावबोधसह २८० बुद्धिरास २१५, २६० भक्तामरस्तोत्र सस्तबक २६६, २७१ बृहज्जातक २७४ भक्तामरस्तोत्र भाषाकवितकल्पषविधानसह २४६ बृहत्कल्पसूत्र १७, २०९, २१० भक्तामरस्तोत्रभाषाकवित २७२, ३४७ बृहत्कल्पसूत्रनियुकि लघुभाष्यवृत्तिसह २०, २१, भक्तामरस्तोत्र वार्तिकसह १८५, १९३ भक्तामरस्तोत्रवृत्ति बृहत्क्षेत्रसमासप्रकरण भक्तामरस्तोत्र वृत्तिसह २५६, ३१८ भक्तामरस्तोत्र सार्थ २५१ विवरण सह भक्तामरस्तोत्र सावचूरि २७६, २८० सटीक ६७, ६८ भक्ष्याभक्ष्यगाथावृत्ति टिप्पणीसह भगवतीसूत्र ३, १८२, १९९, २९४, ३४०, सस्तबक भगवतीसूत्रआलापक १८९ बृहत्पंचकल्पभाष्य भगवतीसूत्रगतशतकादि ३४३ बृहत्शांतिस्तोत्र ३१३, ३१७ भगवतीसूत्रपर्याय ४६ बृहत्संग्रहणीप्रकरण ४७, ५४, ५८, १७६, २६३, भगवतीसूत्रबीजक २०८ २८३, २८४, २८७ भगवतीसूत्रवृत्ति ४, ५, १८२, २२४, २९४, २९५ बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक ६९, २६७ भगवतीसूत्र सस्तबक त्रयोदशमशतक बृहत्संहितागत अधिकार ३४२ तृतीयोद्देशपर्यंत २९४ बृहद्ग्रहरत्नाकर २७६ भगवद्गीता दोहासह भाषाटीका ३३३ बेंतालीसदोषविवरणस्तवन ३४६ भगवद्गीता भाष्यसह १६४ बोटिकनिराकरणप्रकरण १९६ भट्टिकाव्य (रामकाव्य) १४१, ३३४ बोधप्रदीपपंचाशिका भट्टिकाव्यवृत्ति सर्ग ८ थी १५ पर्यंत १४१ बोलविचार भयहरस्तोत्र २९०, ३१७, ३४१ बोलविचारसंग्रह , वृत्ति ३४५ बोलसंग्रह २३५, २६१ भयहरस्तोत्र वृत्तिसह मंत्रकल्पगर्भित २७९ ब्रह्मतुल्य ज्योतिष २५० भरतबाहुबलीकथा ३३५ ब्रह्मविलास २२१ भरतसंगीतसंयोग ३२३ ब्रह्मसमाधिशतक २२१ भरहेसर वृत्तिसह २२५ भर्तृहरित्रिशती २३४ " सावचूरिक ३५० भक्तपरिज्ञाप्रकीर्णक सुखबोधिनीटीकासह २५८ विषमपलविवरण २९८ भर्तृहरिवैराग्यशतक मालावबोध २२९ भकामरस्तोत्र ५९, १६८, २५०, २५१, सटीक २२५ २४३ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम्] अकारादिवर्णक्रमेण सूची पत्रांक ग्रन्थनाम भोज्यनामगर्भित जिनस्तुति २५३ ३५४ १९८ ग्रन्थनाम पत्रांक भवनविचार ज्योतिष भवभावनाप्रकरण १७६, २३२, २८४ , स्वोपज्ञवृत्तिसह ८३, ८५, ८७, २०५ भववैराग्यशतक २७१, ३११ " सस्तबक २०८, ३११ भवानंदीप्रकाश सटीक भवानीकवच ३४७ भवानीसहस्रनामस्तोत्र २८०, ३१४ भागवत दशमस्कंध पंचाध्यायी २७७ भागवतदशमस्कंधविवरण २८० भावचितामणि षष्ठपटल ज्योतिष ३२९ भावनाकुलक-वैराग्यकुलक ५०, ५१, ६०, १९७ भावनाप्रकरण २८८ भावनासंधि १९७ भावशतक २०२ भावाध्याय २६७ भावारिवारणस्तोत्र ३१२, ३१८, ३४०, ३४८ बालावबोधसह २६० " सटीक ३१२, ३४१ भावारिवारणस्तोत्रादिवृत्ति ३१८ भाषाभूषण ३३३ भाष्यत्रयप्रकरण २४७, २५९, ३०६ , सावचूरि भाष्यवार्तिकवृत्तिविवरणपंजिका २ थी ५ अध्यायपर्यंत भीमसेनचोपाई २३९ भुवनतिलककुमारभास २३७ भुवनदीपक २७५, ३२८ भुवनदीपकटीका २७५ भुवनदीपक सटीक ज्योतिष भुवनदीपक सस्तबक भुवनभानु केवलिचरित्रबालावबोध २२८ भैरवपद्मावतीकल्प ३१८ भोजचरित्र पद्य भोजराजकथा ३४२ ३४८ मजलस २४७ मणिपतिराजर्षिचरित्र २८८ मधुबिंदुकथाचोपाई २२२ मधुवर्णन काव्य मध्यमसिद्धांतकौमुदी ३२० मनबत्रीसी २२३ मनोरथमाला मनोवेगवायुवेगचोपाई २५७ मयरहियस्तोत्र ३१३ मरणविधिप्रकीर्णक ४५, ३३५ मलयसुंदरीचरित्र-ज्ञानरत्नोपाख्यान पद्य २००, २१८, ३१५ मल्लिज्ञाताध्ययनगत आलापक २६० मल्लिनाथबृहत्स्तवन ३४० महरियगुण महर्षिकुलक ५१, २१५, २९० , सस्तबक २७२ महादंडकबोल २४६ महादेवीकोष्ठक ज्योतिष ३३२ महादेवीज्योतिषयंत्रावली २७४ महादेवीदीपिकावृत्ति २७४, ३२८ महादेवीसारणी २७५ महानिशीथसूत्र २४, १९४, ३५९ महानिशीथसूत्रगतकमलप्रभाचार्यअधिकारसस्तबक २२७ महापच्चक्खाणप्रकीर्णक महाविद्याविडंबन महावीरस्वामिचरित्र गद्यपद्यबद्ध गाथाबद्ध महावीरस्वामिचरित्र बालावबोधसह महावीरस्वामितपपारणा २७२ स्तवन २१० ३३५ ३५८ ३३२ ३३१ ० २५६ ४९ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेसलेभेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारगग्रन्थानां [प्रथम ३३३ ३४६ ३२५ ग्रन्थनगम पत्रांक मृगावतीभास २३६ मृगावतीरास ३३७ मृगांकलेखाचरित्रचोपाई मृगांकलेखाभास २३७ मृगांकलेखारास २६७ मेघकुमारराजर्षिचोढाळ्युि २५१ मेघकुमारराजर्षिसज्झाय ३३८, ३५३ मेघदूतम्हाकाव्य ३३३, ३४७ मेघाभ्युदयकाव्य १४७ १९८ सटीक १४९ मोकळी आराधना मोतीकपासीआसंवाद ३४७ मौनएकादशीकथा सस्तबक मौन एकादशीतपगर्भित सर्वतीर्थकरस्तुतिरूप मल्लिजिनस्तोत्र २१४ मौनएकादशीस्तुति २१४. ३१९ २६९ २६९ बृन्थनाम पत्रांक महावीरस्वामिपंचकल्याणकस्तोत्र महावीरस्वामिरसोइस्तवन ३३९ महावीरस्वामिसत्तावीसभवस्तवन २७२ महावीरस्वामिस्तवन २४१ २५२ नयनिक्षेपविचारगर्भित महावीरस्वामिस्तुत्यादि मंगलवाद प्रश्नपद्धति मंत्रसंग्रह मांधकाव्यसं देहविषौषधिटीका ३४१ मात्रापताका माधवानलकामकंदलाचोपाई २३९, २४५, २७७, ३३८ मार्गगत्यध्ययन सावचूरि मिथ्यात्वमेधनाकुलक मिथ्यात्वविध्वंसनचतुर्दशी २२२ मिथ्यादुष्कृतकुलक ४८, ४९, १९७ मिथ्यादृष्टिसम्यग्दृष्टिवर्गन २२२ मीमांसासूत्रसाबरभाष्य प्रथमाध्यायप्रथमपाद १९९ मुद्राराक्षसनाटक टिप्पणीसह १५३ मुनिपतिचरित्र २६० मुनिराजजयमालिका २२२ मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र गाथाबद्ध पच पवत्रयात्मक पद्य पर्वत्रयात्मक १.२ मुंरांरिनाटक टिप्पणीसह २००, २८३ मुष्टिज्ञान २७४, २४० मुहतचितामणि २७४ मुहूर्तदीपक २७४ मूढाष्टक २२२ मूर्खशतक ३१३ मूलशुद्धिप्रकरण मृगध्वजकुमारभास २३७ मृगापुत्रचरित्रसंधि २११ मृगावतीचरित्ररास २४३ मृगावतीचोपाई १७४ २७३ यतिप्रतिक्रमणसूत्र यतिप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति टिप्पनकसह यशोधरनृपचरित्र गद्य ३५४ यत्रचितामणि सटीक ३२८ यंत्रराज २७४ यंत्रराजकोष्ठक २७३ यंत्रराज वृत्तिसह युगप्रधानगुरुसुरूपदेशिकुलक युगादिदेवस्तोत्र २९० योगचितामणि २४२, २७०, ३३२ सस्तबक ३२७ योगदीप वैद्यक २७७ योगरत्नावली ज्योतिष योगवासिष्ठसार योगतरंगिणी टीकासह २३३ योगविधि ३४२, ३४४ " यंत्र ३३० Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ग्रन्थनाम योगशत सटीक योगशास्त्र 23 आद्यप्रकाशचतुष्क ५८, ५९, २३९, २४०, २४१, योगशास्त्र प्रथमप्रकाश योगशास्त्रटीका योगशास्त्र बालावबोधसह योगशास्त्रविवरण योगशास्त्रस्वोपज्ञवृत्ति योगशास्त्र स्वोपज्ञवृत्तिसह योगसारसमुच्चय सस्तबक वैद्यक योगिनी दशाफल ज्योतिष रघुवंश महाकाव्य " रघुवंश महाकाव्यवृत्ति रघुवंशमहाकाव्य सटीक रत्नकोश अवचूरि "" रत्नचूडमुनिकथाविषमपदविवरण टिप्पनक रत्न चूडमुनिचोपाई रत्नचूडमुनिरास रत्नप्रदीपज्योतिष रत्नमाला बालबोधिनी टीका स्स्नसंचय सस्तबक र १४०, २६०, ३२३, ३२४, ३३४, ३३५ २५३ रत्नसारकुमाररास रत्नाकरपच्चीसी सस्तबक रत्नाकरावतारिका रत्नाकरावतारिका टिप्पनक बालावबोधसह अकारादिवर्णक्रमेण सूची रसमंजरी अलंकारग्रंथ रसमंजरी तथा अष्टनायिकाभेद गुटको रसरत्नाकर वैद्यक रसिकप्रिया पत्रांक ३५३ २४२ २१७, २३७, २६६, ३०८ २३०, ३०८ ३१८ ३०८ २०३ २१६, २१७, ३२४ २५५ ३४४ ७८ ३३८ २११, २१६ २७३, ३२८ ३२९ ३३२ ३१० २११ ३१८ १५९, २३४, २५० २७८ २३० ७६, १७४ ३२७ २९२ २५४ २७७ ३३३ २४८, २७७ ग्रन्थनाम रंगरत्नाकर - नेमिनाथप्रबंध राक्षसकाव्य सटीक रागादिनिर्णयाष्टक राजनीतिवर्णन कवित राजप्रश्नीयोपांगसूत्र राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति रात्रिभोजन चुपई रात्रिभोजनरास राजप्रनीयोपांगसूत्र वृत्तिसह त्रिपाठ राजमृगांक सारणी राजसिंधकुमार चतुष्पदी राजसिंहरत्नवतीरास - नवकारप्रभावे रामकलशव्याकरण रामकृष्णचरित्ररास रामचरित्ररास रामतियाला प्रबंध-वज्रस्वामीनां फूलडां रामविनोद वैद्यक रामसीतासंबंध रुद्रयामल ज्योतिष रूपकमाला वृत्तिसह रूपदीप भाषा छंदो ग्रंथ रूपमजरी रामायण राशिचक्र रुद्रटालंकार रुद्रटालंकार टिप्पनक तृतीयाध्यायथी लक्ष्मीआदि मंत्र संग्रह लग्नपत्रसारणी २२२ २६३, ३३९ ८, १८३, २२७, २९६ ८, " १८३, २२३. २८१, २९६ २९६ ३३६ २४१, २६६ २३६ ३३८ ૨૪૨ २३१ ३३३ २५८ ૨૪ २३८, २४८, ३२७ 33 पंचमाध्याय पर्यंत ल ૨૦૦ पत्रांक २३७ १४९ २६९ २८० लघुअजितशांतिस्तव उल्लासिक्कम ० स्तोत्र ५१, १९६, २८८, ३१३, ३४८ २८४ ३४५ भाषार्थ वृत्ति २७१ २४१ २८० २८४ १४० ३२८ २५२ ३२३ ३३३ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारगतग्रन्थानां [प्रथम पत्रांक ग्रन्थनाम २६९ ३१६ २२१ २५६ - २७१ ग्रन्थनाम पत्रांक लघुक्षेत्रसमासप्रकरण २०१, २३९, २४१, ३०४,३१६ टिप्पणी यंत्रसह २६३ यंत्रसह २५८, ३०४ यंत्रस्थापना चित्रसह २४६ लघुचाणाक्यराजनीतिशास्त्र सस्तबक २७२ लघुजातक ज्योतिष ३३०, ३४९ सटीक २६७, ३३० लघुनमस्कारफलस्तव २९० लघुभावना तथा तमाकुसज्झायादि २७२ लघुशांतिस्तव ५६, ३१३, ३१८, ३४१, ३४८ " वृत्ति लघुसंघपट्टकप्रकरण २०३, २१२ लघुसारावलीगत अरिष्टाध्याय ज्योतिष ३३० लघुसिद्धांतकौमुदी ३१९, ३४५ लघुस्तव सटीक २५८, २५९ लटकमेलकप्रहसन २७८ लब्धिकुशलसूरिगीत २२८ ललितविस्तरावृत्ति-चैत्यवंदनासुत्रवृत्ति २९९ संक्षेप ललितांगकुमाररास लिंगानुशासन ३४२ . सावचूरि " स्वोपज्ञटीकासह लीलावतीकथा गाथाबद्ध-(महाराष्ट्रीदेशीभाषामय) १५२ लीलावतीगणित २४०, ३२७ लुंकाचउपई २६५ लोकक्षेत्ररज्जुचोपाई २२२ लोकतत्त्वनिर्णय , सस्तबक लोकनालिकाद्वात्रिंशिकाप्रकरण बालावबोध सावचूरि ३५१ लोद्रवातीर्थस्वामिलेख लोंकानी हुंडी बीजकसह ३२६ " ५८ बोल वक्रोक्तिजीवित (काव्यालंकार) सटीक १३८, १३९, २१७ वज्जालग २१७ वनस्पतिसप्ततिकाप्रकरण २३५ वरदराजी टिप्पनक वरांगचरित्र वर्त्तमानजिनचोवीसीछप्पा वर्द्धमानअष्टक वर्द्धमानदेशना गय ३१७ वर्षतंत्र वसंतराजशास्त्र सटीक वसुदेवचरित्ररास वसुदेवहिंडी प्रथम खंड १७५ वसुधारा ३४४ वंकचूलचोपाई वंदनकसूत्रचूर्णी ४४ वंदनकसूत्रवृत्ति ४४ वंदनविधिप्रकरण २८४ वंदारुवृत्ति-श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति २००, २२५, २४७, २४९ वंदित्तुसूत्र २८७, ३४८ , वृत्ति वाक्यप्रकाश-औक्तिक सटीक ३२२ वाग्भटशारीरस्थान ३४१ वाग्भटालंकार २०३, २२०, २५३, ३२३, ३३२ ३३२ , सावचूरि २३५ वाजसनेयीसंहिता वादस्थल ३२६ वामनीयकाव्यालंकार स्वोपज्ञवृत्तिटिप्पणीसह वार्तासुभाषितादि वात्तिकवृत्ति वासवदत्ता आख्यायिका टिप्पणीसह १५० वासवदत्ताकथा २११ AM २४९ ३४५ " वृत्ति २३८ ام ३०५ ३०५ س ३४७ س س Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ २६३ २२१ २७९ ३०३ परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक वासुपूज्यजिनचरित्रमहाकाव्य पद्य १०२, ३४९ विवेकविलास २७८ वासुपूज्यजिनपुण्यप्रकाशस्तवन विशेषशतक बीजकसह विक्रमचोपाईरास २२९ विशेषावश्यकमहाभाष्य ३५, ३९, १८७, २९९ विक्रमांकमहाकाव्य १९८ विशेषावश्यकवृत्ति ३९, ४१ टिप्पणीसह विश्रुतश्रुतस्तव विज्ञप्तिका विश्वशंभुएकाक्षरनाममाला ३३२ विज्ञप्तिकाद्वात्रिशिका ३१३ विष्णुकरण सटीक विचारपंचाशिका सावचूरि विष्णुनामसहस्र विचारमुखप्रकरण ५४ विहरमानजिनवीसी छप्पा विचाररत्नाकर ज्योतिष २७४ वीतरागसहस्रनाम २७३ विचारसित्तरिप्रकरण सस्तबक ३४७ वीतरागस्तोत्र २४८, २६३, ३१२ विचारषत्रिंशिकाप्रकरण सस्तबक २३२ वीतरागस्तोत्रअवचूरि १३ थी २० प्रकाश " सावचूरिक पंचपाठ २५० वीतरागस्तोत्र अष्टमप्रकाशवृत्ति विचारषटत्रिशिकाप्रश्नोत्तर वीतरागस्तोत्र सावचूरि ३१२ विदग्धमुखमंडनकाव्य २५५, ३५३ वीरचरित्रस्तोत्र २५७ विषमपदव्याख्या २३४ वीरजिनस्तवनादि २३६ विद्याविलासचोपाई २३३, ३३८ वीरजिनस्तुति ३१९ विद्याविलासपवाडो २५२ वीरस्तव ३३५ विद्वद्गोष्ठी ३३२ वीरस्तुतिअध्ययन, नरयविभत्तिअध्ययन विद्वन्मनोरंजनी प्रक्रिया विधिप्रपा १९६, २४० __ (सूत्रकृतांगसूत्रगत) २२८ वीसलरास विनयचटकुमाररास २४९, २७१ २६० विनयचंद्रकृत चोवीसी वीसविहरमानजिनगीत ३३३ २५१, ३३९ विनोदकथासंग्रह बीसस्थानकतपपूजा ३४७ २५८ वीसस्थानकतपस्तवन विपाकसूत्र ७, १८३, १९० ३३९ विपाकसूत्रवृत्ति ६, ७, १८३ वृत्तज्योतिष ३४३ वृत्तरत्नाकर १३४, २८०, ३२३ विपाकसूत्र सस्तबक ४६, २७६, २९६ , टिप्पणीसह विभक्तिविचार १२९, ३२२ ३२३ सटीक विरहिणीप्रलापकाव्य (षड्ऋतुवर्णनकाव्य) १४७, १९८ २९२, ३२३ विलासवईकहा १११, ११२ वृद्धग्रहरत्नाकरहृतिसंस्कारयंत्र वृंदावनमहाकाव्य विवाहपटल १४७, १९८ २७४ विवाहपटल सस्तबक २७४, २७७ सटीक १४८ विवाहवृंदावन ज्योतिषशास्त्र सटीक वेणीसंहारनाटक १५४ विवेकचउपइ वेलिपीराएली २११ विवेकमंजरीप्रकरण ४८, ५९, ६०, १९७, २०२, वैद्यकग्रंथ २७१ २०८, २१३, २८९ वैद्यक ज्योतिष प्रकीर्णक संग्रह २३१ २६० २७५ २३७ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६३ س MW. ل ३३९ ३२७ २६८ ३९० जेसलमेरुदुर्गस्थमानभंडारगतग्रन्थानां [ प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक वैद्यकविषयक प्रकीर्णक पानां शत्रुजयकल्प २.८ वैद्यकसारोद्धार सटीक २६४ " सस्तबक सन्निपाताधिकार २१३ शत्रुजयमाहात्म्य २०६. २२१, ३४३ वैद्यजीवन शत्रुजयरास २३४, २५७, ३३८ टिप्पणीसह शब्द प्रभेदनाममाला वैद्यमनोत्सव २१५ शब्दभेदप्रकाशनाममाला १५०, २४५ वैराग्यकुलक-धर्माधर्मफलकुलक ४८ शब्दशोभाव्याकरण टिप्पणीसह ३२१ वैराग्यगीत २१४ शरीरनिबधसग्रह-वैद्यक २५९ वैराग्यपच्चीसी २२३ शलाक पुरुषस्तवन वैराग्यस्तोत्र तथा रत्नाकरपचीसी २५१ शखेश्वरपाश्वनाथछद ३४५ व्यक्तिविवेककाव्यालंकार शाबरभाष्य प्रथमाध्याय १६२ व्यवस्थाकुलक २०२, २८९ शागधरसंहिता व्यवहारसूत्र २१, २२ शालिभद्रकथा पद्य व्यवहारसूत्रचूर्णी २२, १९३ शारिभद्रचरित्र गाथाबद्ध व्यवहारसूत्र नियुक्तिभाष्यवृत्तिसह पद्य १९९ व्यवहारसूत्रभाष्य २१, २२ २७१ व्यवहारसूत्रवृत्ति २२, २३, १९३ शालिभद्रचोपाई २२९, ३३८ व्याकरण ३२६, ३३४ शालिभद्ररास व्याकरणचतुष्कावचूरि-हैमलघुन्यास द्वितीयाध्याय द्वितीयपादपर्यंत १९८ शाश्वतचैत्यजयमाला २२२ शाश्वतजिनस्तोत्र व्याकरणन्यायसंग्रह व्रतविचार ०अ० २४९ शास्त्रीयअनेकविचार व्रतविधिसंग्रह ३५२ शांतिनाथचरित्र गद्य गाथाबद्ध " पद्य , पद्य टिप्पणीसह शकुनावली २७३ २७६ (जानवरविषयक) शांतिनाथवीनति २७३ शांतिनाथविवाहलो शक्रस्तवान्नाय ३४२ २६२ शतक-प्राचीनपंचमकर्नग्रथ ४७, ६०, १७६ शांतिनाथस्तवन २१८, २५३, २७३, ३३९ शतक-प्राचीनपंचमकर्मग्रंथचूर्णी ६४, ६५ शिक्षापत्री शतक-प्राचीनपंचमकर्मग्रंथ वृत्तिसह ६५, १९५,२८५ शिखामणस्वाध्याय शतक-नव्यपंचमकमग्रंथ स्वोरज्ञवृत्तिसह ६६ शिरोमणीटीका शतश्लोकीव्याकरण २३८, ३२१ शिवकुमारगीत २३६ शत्रुजयउद्धार २५४ शिवभद्रकाव्य सटीक १४८ शत्रुजयउद्धाररास २१८, ३३७ शिशुपालकथा २८० به اس سه ३५० اس ه اس م ه م २५५ २३७ २७८ ३२६ . Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची २८० ग्रन्थनाम पत्रांक श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूणी २०१, ३५३ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति ४४ श्रावकवक्तव्यताप्रकरण-ष स्थानकप्रकरण ५१, ५४, २८४, २८७, २८८ श्रावकविधिप्रकरण ६६, १६९, २९० श्रावकविधिप्रकाश २४७ श्राक्कविध्युपदेश १६८ श्रावकवतभंगकुलक श्रावकषडावश्यकसूत्र ५१, २८९, ३०१, ३१८ श्रावकषडावश्यकसूत्र सस्तबक श्वानशकुनावलो १६८ श्रीचंदरास ३४० श्रीचंद्रीया संग्रहणीप्रकरण २५०, ३०४, ३१७, ३४६ श्रीचंद्रीया संग्रहणीप्रकरण सटीक ३०४, ३५१ सस्तबक ३०४ ५२ ३०१ २१० ३१४ ३५० ग्रेन्थनाम पत्रांक शिशुपालवधमहाकाव्य-माघकाव्य टिप्पणी सह. २० सगे पर्यत २८४ शिष्यचतुर्दशी २२२ शीघ्रबोधसग्रह ७७, ३२८, ३३२ शोतलनाथस्तुति ३१९ शीतलामातागीत आदि शीलरास २५५, २६० शीलोपदेशमालाप्रकरण १, २१०, २१३, २५६. ३१८ बालावबोध २६ , २६८ शीलोपदेशमाला बालावबोध सह २१६ सस्तबक शीलतरंगिणी वृत्तिसह २१६ शङ्गारमंजरी शोभनस्तुतिचतुर्विशतिका " टिप्पणीसह श्राद्ध जीतकल्पसूत्र श्रावकसामाचारी १७७ स्वोपज्ञवृत्ति सटीक शद्धदिनकृत्यप्रकरण ५३, ३११ " बृहवृत्तिसह ८१ श्राद्धविधि विधिकौमुदीवृत्तिसह २०८ श्राद्धविधिप्रकाश ३५४ श्रावकअतिचार २७२, ३०१, ३३०, ३३६ प्राकृत सस्तबक ३०१ श्रावकआचारकुलक आगम पाठसह श्रावकआराधना २०८, २४६, ३४३ श्रावकआवश्यकसूत्र ५७, २८७, ३०१ श्रावकधर्मप्रकरण ६१, २६३ श्रावकधर्मविधिप्रकरण ५२, १९६ श्रावकधर्मबिधितंत्रप्रकरण ४३.५६, १६९ २०१, २८७, २८८ श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरणवृत्ति ४३ श्रावक प्रज्ञप्ति प्रकरण ६०, ६६ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र (वंदित्तुसूत्र) ५९, ६० , अर्थदीपिकाटीकासह १७७ २९८ २५७ बालावबोध सह सस्तबक यंत्रसह सावचूरिक २६९ श्रीदेवीवर्णन (चतुर्थस्वप्नवर्णन) ३४३ श्रीपतिपद्धति ३३१ , वृत्ति २३९, २७५ श्रीपालचरित्र २३६, ३१५ प्राकृत २६१, २७९ बालावबोध २१४, २५२ श्रीपालरास २६२, ३३७, ३४६ श्रुतबोध श्रेणिकरास-सम्यक्त्वरास २११ ३२३ षट्पचाशिका २७३, ३२९ ,, बालावबोध २७५ षट्स्थानकप्रकरण (श्रावकवक्तव्यता) १९६, २०१, २५६, ३०६ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७ ३२५ ३२५ २२२ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां [ प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक , वृत्तिसह २८६, ३०६ सप्ततिका-षष्टकर्मग्रंथभंगक २५९ षडशीति-चतुर्थकर्मग्रंथ टिप्पनकसह २८८ सटीक षडावश्यकसूत्र १९६, ३०१ सस्तबक यंत्रसह षडावश्यकसूत्रबालावबोध २०३, २७६, ३५१ सप्ततिशतजिनस्तोत्र षडावश्यकसूत्रवृत्ति ४३ सप्ततिशतस्थानप्रकरण २६०, ३०७ षडावश्यकसूत्र सस्तबक ३०१ सस्तबक २५० षड्दर्शनसमुच्चय ३२५ सप्तपदार्थी " बालावबोध सह ३३२ सप्तपदार्थीमितभाषिणीटीका २०३, २४६ , सटीक सप्तपदीचंडी २३६ षड्बान्धवमुनिसज्झाय २५१ सप्तभंगवाणी षड्विंशतिप्रश्नोत्तरचार्चिक सप्तव्यसनकथानक पद्य ३४८ षष्टिशतप्रकरण २०२, २४७, २८९, ३०९, ३१२, ३१७ सप्तस्मरण २४७, ३१८, ३४० षष्टिशतप्रकरण बालावबोधसह २३३, ३०९ सप्तस्मरणनी अनेक प्रतिओ २७५ षष्टिशतप्रकरण सटीक ३५२ खरतरगच्छीय २१७ सस्तबक २१५ , सं. स्तबकसह " २१८ . सावचूरि २१२ सस्तबक २४७ षष्टिसंवत्सर ज्योतिष २७५, २७६, ३३०, ३३१ , सावचूरिक षष्टिसंवत्सरवृत्ति समयसारप्रकरण षोडशकप्रकरण २६९ सटीक ३५३ षोडशकप्रकरण टिप्पणीसह ३०८ समयसारनाटक सटीक त्रिपाठ षोडशकप्रकरणवृत्ति ३०६, ३५३ ३०८, ३१८ समराइचकहा ११०, १९५ समरादित्यचरित्रसंक्षेप १९२ ,, संस्कृतछायासह ३१७ सजनचित्तवल्लभ २४० समवायांगसूत्र ३, १९२, २१३, २३५, सज्झायसंग्रह २९४, २९७ सत्तरभेदीपूजा २२१, ३४२ समवायांगसूत्रपर्याय ४६ सद्भक्त्यादेवलोके स्तोत्र ३१४ समवायांगसूत्रवृत्ति ३, १८२ सनत्कुमारचरित्र २८५ समाधितंत्रदुहा २४७ सन्निपातकलिका वैद्यक समाधितंत्रबालावबोध २५५ सन्मतितकनी चार अपूर्ण प्रतिओ समाधिशतक बालावबोधसह सन्मतितकंप्रकरण तत्त्वबोधविधायिनीवृत्तिसह समाविचार(सुभिक्षदुर्भिक्षविचार) ३३१ १५७, १८७, १८८ समासयोगपटल ३४१ सप्ततिका-षष्ठकर्मग्रंथ १७६, ३०४,३०५ समुद्घातस्वरूप २२२ टिप्पनक गाथाबद्ध समुद्रप्रकाशविद्याविलासचोपाई २३३ २७५ our " ३२७ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ३९३ २०८ २८० ग्रन्थनाम पत्रांक सम्यक्त्वकौमुदी २५४, ३५० सम्यक्त्वकौमुदीकथा गद्य ३१५ सम्यक्त्वपचीसी २२३, २३८ सम्यक्त्वपंचविशतिका-सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन सटीक पंचपाठ २६१ सम्यक्त्वपंचविशतिकाप्रकरण सम्यक्त्वसप्ततिकाप्रकरण सम्यक्त्वस्वरूपस्तव सावचूरिक २३२, २६१, ३५२ सरस्वतीकुटुंबसंवाद २४० सरस्वतीस्तवन सरस्वतीस्तोत्र सर्वजिननमस्कार २८५ सर्वजिनस्तोत्र सर्वज्ञसिद्धिप्रकरण १५८, १९९ सर्वज्ञस्तोत्र सावचूरिक सर्वरोगहरस्तोत्र ३१७ सवसिद्धांतप्रवेश १६०. १९९ सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय २६२ सवैया प्रकीर्णक २२३ सवैया तथा ऋषभदेवछंद आदि सवैयासंग्रह संकाशकथानक संक्षिप्तआराधना संग्रहणीप्रकरण २१३, २३१, २७१, ३४८ संग्रहणीप्रकरणादि संक्षिप्तटिप्पणी २८३ संग्रहणीप्रकरण बालावबोध सह २३१ संग्रहण प्रकरण सटीक २६, ७०, २०३, २३९ संग्रहणीप्रकरण सावचूरिक त्रिपाठ २७९ संघपट्टकप्रकरण ३०८ संघपकप्रकरण सटीक २००, ३१६, संघपट्टकप्रकरण सस्तबक २०८ सावचूरिक संजममंजरीप्रकरण ४९, ६७, १९, २५५, २९० संतिकरस्तोत्र ३१३, ३१८ संथारापोरिसीसूत्र २९८, ३४८ ग्रन्थनाम पत्रांक संदेहदोलावलीप्रकरण २०१, २८७, २८९, ३०८ संदेहदोलावलीप्रकरणटीका २०१ सदेहदोलावलीप्रकरण टीकासह ३०८ लघुःौकासह २३० संस्कृत स्तबकसह २१२ संदेहविषौषधि-कल्पसूत्रवृत्ति २०८ संबंधोद्योत २२९, २३१ संबोधसप्ततिकाप्रकरण २६५, ३१० बालावबोधसह सस्तबक ३१० वृत्तिसह ३३६ संयमसुंदरीगीत २१४ संयमाख्यान ६३, १९५ संवेगकुलक २९० संवेगमंजरीप्रकरण ४९, १९७ संवेगरंगशाला ८७, ३५५ संसारदावा० स्तुति सटीक ३५२ संस्कृतमजरी संस्कृतशब्दरूपावली संस्तारकप्रकीर्णक ४५, २९८, २९९, ३३५ , बालावबोधसह त्रिपाठ २२९ साधर्मिकवात्सल्यकुलक साधुप्रतिक्रमणसूत्र ૩૪૮ वृत्ति साधुवंदना २३४, २५८ साधुवंदनारास २०३, २११, २२१ साधुविधिप्रकाश ३५४ साधुसंघमर्यादापट्टक साधुषडावश्यकसूत्र-स्मरणादि ३०१ सामवेदनिर्णय द्वादशमहाबाक्यनिर्णय २२८ सामाचारी-यतिदिनचर्या २०१, २०३ " बीजकसह १२१ सामाचारीशतक , सामायिकदोषनिवारणबत्रीसी २५८ सामायिकदोषनिवारणस्तवन २५९ २७० ३४० २२३ ३५० ३४५ २६९ ३५१ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ س " १२७ ३२७ ३२१ ३९४ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां [प्रथम ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थ नाम पत्रांक सामायिकप्राप्तिआदिविषयककथानकादि २८६ सिद्धप्राभृतसूत्रवृत्ति १३, १५, १९५ सामायिकबत्रीसदोषसज्झाय ३४२ सिद्धमातृकाप्रकरण ३१२ सारणी सिद्धहेमशब्दानुशासन आख्यातावचूरि चतुर्थ सारशिखामणरास २७८ अध्याय पर्यत ३१९ सारसंग्रह ३५३ चतुष्कावचूरि षष्टपादपर्यंत ३१९ सारस्वतव्याकरण २२६, २३१, २३३, २६४, सिद्धहेमलघुन्यास १२८ ३२०, ३२१, ३४० सिद्धहेमवृह वृत्ति द्वितीयाध्याय तृतीयपाद १२७ सूत्रपाठ २३० , तृतीयाध्याय द्वितीयपाद १२७ सारस्वतव्याकरण पंचसंधि २७२ सिद्धहेमबृहदुवृत्तिलघुन्यास षष्ठपादपर्यत ३१९ आख्यातप्रक्रिया २४२ सिद्धहेमबृहवृत्ति सप्तमाध्याय १२७ चंद्रकीर्तिटीका २२४, २२५, २२६, , आख्यात तथा कृवृत्ति १२७ ३२०, ३२१ , तद्धितप्रकरण दीपिकाटीका ३२१, ३२६ सिद्धहेमरहस्यवृत्ति (सिद्धहेमलघुवृत्तिसंक्षेप) । १२८ पुंजराजीटीका ३४१ सिद्धहेमलघुवृत्ति प्रथमाध्याय २३३ सिद्धांतरत्नावलीटीका द्वितीयाध्यायप्रथमपादपर्यंत ३१९ टिप्पनक ३-१ पादथी ५-४ पादपर्यंत १२८ धातुपाठ वृत्तिसह अ. २६९ पंचमाध्याय-कृवृत्ति बाला. सह षष्टाध्यायपयत १८९ भाष्य षष्टसप्तमाध्याय-तद्धितवृत्ति ३१९ तद्धितवृत्ति अ. १२८ सारस्वतव्याकरणप्रथमश्लोकार्थ ३२१ टिप्पणीसह चतुष्कवृत्तिपर्यंत ३५३ सारस्वतमंडन षष्ठसप्तमाध्याय तद्धितवृत्ति १२८ सारावली २२४ सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय सारोद्धारकोश सस्तबक ३४५ , बृवृत्तिसह ३१९ साद्धशतक-सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण सटीक सूत्रपाठादि २७८ ,, सूत्रपाठ, धातुपाठ तथा साल्हाऋषिसज्झाय २३७ लिंगानुशासन १८९ सांख्यसप्ततिका १६५ सिद्धान्तआलापक २३८, २५७ सांख्यसप्ततिकाटीका-सांख्यतत्त्वकौमुदी सिद्धान्तकौमुदी ३१९, ३२०, ३४५, सांख्यसप्ततिकाभाष्य १६५, १६६ ३४९, ३५४ सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह तत्त्वबोधिनीटीका सिग्घमवहरउ. पाश्वजिनस्तोत्र ६७, २९०, ३१३, ३२० सिद्धांतगीत २३६ सिद्धान्तचंद्रिका २२१, २३७, २५९, सित्तरी षष्ठकर्मग्रंथ ४७, ६० २६४, ३२० सिद्धचतुर्दशी २२२ स्वरांतनपुंसकलिंगपर्यंत सिद्धप्रामृतसूत्र १३, १५, १९५ ३२६ अ. २३३ २२५ २३७ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ २२४ २३७ २२२ २४७ परिशिष्टम्] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ३९५ ग्रन्थनाम पत्रांक ग्रन्थनाम पत्रांक , तत्त्वदीपिका व्याख्या पूर्वार्द्ध ३२० सुपात्रदानादिविषयक कथासंग्रह २३५ , सुबोधिनी व्याख्या सह ३२० सुपासनाहचरिय ९९, १६८ सिद्धांतविचारगाथा सुबाहुकुमारचरित सिद्धांतविचाररास सुबाहुकुमाररास सिद्धांतविचारसंग्रह २०४ सुबाहकुमारसंधि २५१ सिद्धांतशिरोमणिसूत्र २८० सुबुद्धिचोवीसी सिद्धांतसारोद्धार टिप्पनक सह सुभाषित ३३३ सिद्धांतहुंडी ३४४ सुभाषितगाथा ६७ सटीक त्रिपाठ २४७ सुभाषित पद्यसंग्रह १६९ सिंदूरप्रकर २०३, २०९, २१०, सुभाषित प्रास्ताविकश्लोक २३८, ३११ सुभाषितश्लोक २३३ अवचूरि ३११ सुभाषितश्लोकसंग्रह २१९, ३३४, ३४७ सटीक ३११ सुभाषितसंग्रह २२०, २५८, ३३३ सस्तबक २४७ सुभाषितषटपचाशिका १६८ सिंहलसुतचोपाई-प्रियमेलकचोपाई २३० सुभाषितावली सिंहासनद्वात्रिंशिका २६६. २८६ सुरसुंदरीकथा टिप्पनकसह कथा ३१५ सुरसुंदरीरास २४७, २६५, ३३७ सिंहासनबत्रीसी सुलसआराधनाप्रकरण १९७ सुव्रतष्ठिकथानक बालावबोध सीताचरित्र अ० २८३ सुश्रुतसूत्रस्थान ३२७ सीमंधरजिनगीत २८. सुसढ चरित्र २३५ सीमंधरजिन सवासो गाथा- स्तवन २७१ सुंदशंगार २१६, ३३९ सीमंधरस्वामिस्तवन २५३ सूआबत्रीसी २२३ सीमंधरस्वामिस्तुति २५२ सूक्तसंग्रह (सम्यक्त्वकौमुदीकथागत) २०८, २१७ आदि स्तुतित्रय सूक्तावली २२०, ३३३ सीमंधरस्वामिस्वाध्याय सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण सार्द्धशतक प्र. ४७, ६१, सुकोशलमुनिभास १६९, १७६, २२९ सुकोशलमुनिसज्झाय २५३ सुखबोधासामाचारी १२३ टिप्पनक २०३ सुगुरुगुणसंथवसत्तरिया टिप्पणीसह २०३ सुगुरुदांगडउ १९७ सूत्रकृतांगसूत्र २, १८१, २०५, २३९, २६४, सुदर्शनश्रेष्ठिरास २५४ २९३, २९७ सुधानिधियोगविवरण सूत्रकृतांगसूत्रगत अद्रकीयादि अध्ययन २१५ सुपनबत्रीसी २२३ सूत्रकृतांगसूत्रअवचूरि सुपंथकुपंथपञ्चीसी २२२ " घूर्णी २७६ चूर्णी २४१ २०३ १८८ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम २०४ ३५२ २१८ २२४ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारगतग्रन्थानां प्रन्थनाम पत्रांक प्रन्थनाम पत्रांक नियुक्ति २,१८१ स्वप्नचिंतामणि २८० , २८५, २९३, २९७ स्वप्नसप्ततिकाप्रकरणगत अधिकार सटीक सूत्रकृतांगसूत्रपर्याय गतगाथा सटीक सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति २, १८१, २९३ वृत्तिसह सूत्रकृतांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध सस्तबक २१३, २९३ सावरि २२६, २५८ स्वरोदय ३४०, ३४२ सूत्रस्थान-वैद्यक ३२७ स्वरोदयविचार सूर्यचंद्रसारणी ३३७ स्वरोदयसिद्धि सूर्यप्रज्ञप्त्युपांगसूत्र १३, १८८, २९६ सूर्यप्रज्ञप्त्युपांगसूत्रवृत्ति १४, १८८ हनुमन्नाटक ३४९ सूर्यसहस्रनामस्तोत्र-स्कंदपुराणगत २५१ हनुमंतवज्रकवच सोलसतीस्तवन हम्मीरमदमर्दननाटक सोलस्वप्नविचार १५४ ३४४ सौंदर्यलहरी हरविजयमहाकाव्य १७४ स्कंदपुराण उत्कलखंडगत पुरुषोत्तममाहात्म्य १७६ हरिबलचरित्ररास-विबुधप्रिया २४५ स्तवनचोवीसी ३४२ हरिवलरास स्तवन सज्झाय थोय आदिसंग्रह हरियाली २१४ स्तोत्रस्तवनादिसंग्रह २८० हरिवंशपुराण स्तोत्र स्तवन स्तुत्यादि संग्रह ३४८ हरिवंशपुराणगत उद्देशद्वय ६३, १९७ स्तोत्रसग्रह हरिविक्रमचरित्र ३५९ स्त्रीसयोगबत्रीसी ३३८ हलायुधनाममाला पंचमकांड स्थविरावली ६१, २५०, २५६, २८६ हंसराजवच्छराजचोपाई स्थविरावलीस्वाध्याय हारितोत्तर वैद्यकग्रंथ स्थानांगसूत्र २, १८१, २०५, २२८, हितशिक्षा ३४० २३७, २९३ हितशिक्षाद्वात्रिशिका आदि २४७ स्थानांगसूत्रपर्याय हितोपदेशकुलक ६२, १९७ स्थानांगसूत्रवृत्ति २, १८२, २९३ हितोपदेशप्रकरण २६३ स्थानांगसूत्र वृत्तिसह २९४ हितोपदेशामृतप्रकरण स्थानांगसूत्र चतुर्थस्थान सस्तबक २५० हृदयप्रकाश २१९ स्थानंगसूत्रना बोल ३४१ हैमअनेकार्थकोश अनेकार्थकरवाकरकौमुदी स्थूलभद्रस्वामिचरित्र २३६ वृत्तिसह १३०, १३१ स्नपनविधि २८८ हमउणादिगण स्वोपज्ञविवरणसह ९३० स्नात्रपूजा २४२ हैमकाव्यानुशासनविवेक स्नात्रपूजाविधि हैमधातुपाठ स्मरणस्तोत्रत्रिक २८८ सावचूरिक ३६९ स्मरणस्तोत्रादि २९०, ३१७ हैमलिंगानुशासन ३१९ स्याद्यंतप्रक्रिया १२९, २६४ स्वोपज्ञ विवरणसह १३० स्याद्वादरत्नाकर प्रथमखंड १७४ होलिकाकथा पद्य ३५३ ३ اس س ३२६ ३२३ २६१, ३४६ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयं परिशिष्टम् जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारसूचीस्थितग्रन्थकर्तृनाम्नामकारादिवर्णक्रमेण सूची ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक ग्रन्थकर्तृनाम अलक राजानक अश्विनीकुमार पत्रांक १३६, २६० ३२७ आ आज्ञासुंदर ३३८ आनंद आनंददेव आनंदप्रमोद २५४ आयरक्षितसूरि १८७ आसड ४८, ५९, ६०, १९७. २०२, २०८, २१३, २८९, ३०९ ईश्वरकृष्ण १६५, १६६ अगस्त्यसिंहसूरि स्थविर २८, १७५, अजितप्रभसूरि २५५ अनिरुद्ध पंडित १४१, १६५, १८९ अनुभूतिस्वरूपाचार्य २२६, २३३, २४२, २६४, २७२, ३२०, ३२१, ३४० अन्नभट्टोपाध्याय २४७, ३२५ अभयचंद्र अभयतिलकगणि १४०, १४१, १८९ अभयदेवसूरि २-८, ४८, ५२, ५३, ५६, ५७, ६१, ६२, ६६, ७२, ७३, १८२, १८३, १८९, १९६, १९७, २०४, २०५, २१५, २२४, २२५, २२७, २३९-४१, २५७, २५८, २६४, २८०, २८६, २८७, २८९, २९०, २९३-९७, ३०५, ३०७, ३१३, ३४८, ३५२ अभयदेवसूरि तर्कपंचानन १५७, १८७, १८८ अमरकीर्तिसूरि अमरचंद्र २५३ अमरचंद्रसूरि ५४, २०३, २०५, २१२, ३२३, ३५२ अमरप्रभसूरि २५६ अमरसिंह १३०, ३२४ भमरसुंदर ३१४ अमरुककवि २०३ अमृतचंद्रसरि ३०६, ३५३ २२. उत्पलभट्ट २६७, ३३० उदयधर्मगणि ३२२ उदयनाचार्य १८९, ३५६ उदयप्रभसूरि २००, २०८, ३३०, ३३१, ३५१ उदयसूरि वेगडगच्छीय उद्योतकर १६१ उद्योतनसुरे दाक्षिण्यांक ११. उपेन्द्रहरिपालभट्ट १५३ उमास्वातिवाचक ६०, ६३, ६६, २३२, २४०, २५७, ३०६, ३५० ऋषभसागर २५१ Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५३ २८१ २३१ १०९ ३९८ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारसूचीगतग्रन्थकर्तृनाम्नां [द्वितीय ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक क्षांतिमंदिरशिष्य खरतर २६८ कनककुशल २३५, २३६, ३१५ क्षेमकीआिचार्य तपा० २०, २१, १८५, १९३ कनकनिधान ३३८ क्षेमकुशल २६३ कनकप्रभसूरि १२८, १९८, ३१९ क्षेमराजऋषि पार्शचंद्रगच्छीय २११, २२९, २५४, कनकसोम ३३८ २७१ कमलप्रभसूरि २११ क्षेमेन्द्र ३२१ कमलशील आचार्य १६०, २७६ कमलसंयमोपाध्याय २४९, २६२ खेतसी कल्याणवर्म २२४ कानजी कान्हजी गजसारमुनि २०९, २३२, २४०, २५०, ३३३ कालिदास कवि १४०, २०९, २३७, २५५, गणपति २७३, ३२८ गर्षि २६०, ३२३, ३२४, ३३३-३५, ४७, ६०, १७६ गर्गाचार्य ३४७ ३३१ काशीनाथ २२५, २७७, ३२८, ३३२ गगेशभट्ट कीर्तिवर्द्धन २२८ गुणचद्रसूरि कीत्तिविजय २४२, २४३ गुणपाल कुतूहलकवि गुणप्रभसूरि १२४ कुत्तककवि १३८, १३९, २१७ गुणरत्नगणि २१६ कुलमंडनगणि ३०५, ३०६ गुणरंग कुशललाभ २३९, २४५, २७३, ३४० गुणविजय कुंवरजी २५४ गुणसमृद्धि महत्तरा २८१ कृष्णवज्ञ ३३१ गुणसागरसूरि २११, २१८, २७३ कृष्णमिश्र १५३ २६३ केदारभट्ट १३४, २८०, २९२, ३२३ गुणाकरसूरि ३१८ केलिकवि १४७, १९८ गोपालभट्ट पंडित १३३, १९८ केशराजमुनि २५८ गोल्हण २३१ केशवदासकवि २२३, २३४, २४८, २७२, ३२४, गोवर्द्धन ३२५, ३३० ३२५, ३३२, ३५२ गोविंदगणि ६३, ६४, ३१६ केशवभट्ट गौडपाद १६५, १६६ २८३ गौतमपंडित २३० कोट्याचार्य क्षमाकलश २१५ चक्रधर १६२ क्षमाकल्याण २४७, ३१७, ३४., ३५४ चक्रश्वरसूरि ५३, ६५, २८८ क्षमासुंदर वेगडगच्छीय २१८ चंडपाल २७०, ३५३ १५२ 30ur २३७ गुणहर्ष ३४५ कैयट Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ग्रन्थकर्तृनाम चंद्रकीर्त्तिसूर चंद्र तिलकोपाध्याय चंद्रप्रभ महत्तर चंद्रप्रभसूरि चंद्रर्षि महत्तर चारित्रसिंह चित्सुखमुनि जगदेव अगद्धर जटमल नाहर जयकीर्त्तिरि पूर्णिमापक्षीय जसदेव जयवंतसूरि जयशेखरसूरि पत्रांक २२४, २६, ३२०, ३२१ ३२६, ३३८ १२१ २०४ ७९, ३५३ जयसिंहसूर जयसागर वाचनाचार्य जयसोम उपाध्याय जसदेवमुनि जंबूकवि जंबूनाग जिनआनंद ज अकारादिवर्णक्रमेण सूची जयकृष्ण जयचंद्रसूरि ३५० जयतिलकसूरि आगमिक २००, २१८, ३१५. ३५९ १३२, २१७, २२७ २२१, २२८ २३१, २७० ६३, ६६ ३२२ २८६ २८० २२७ २४१ १३४, २०१, २०५, २१०, २१३, २५६, ३१८ ३२३ ६०, १५४, ३२५, ३५८ ३४५ २४३, २५१, २५२, २५५, ૨૪૪ ५०, १९७ २१८, २८८, ३३६ १४९ ३३३ जिनचंद्रसूरि ५२, ५७, ६१, ६७, ७८, ७९८७, १४९, १९५, १९६, २०२, २३०, २४१, २६०, २६६, २८९, २९०, ३४६, ३५६ ३९९ ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक जिनदत्तसूरि ५६, ५७, ६७, १२२, २०१, २०२, २१२, २१५, २३०, २७८, २८४, २८६, २८७, २८९, २९०, ३०८, ३१३, ३१६, ३३५, ३५१ जिनदासगणि महत्तर २२, २६, ३४, १७५, १९३ जिनपतिसूरि २००, ३१६, ३४३ जिनपालमणि उपाध्याय ७८, १५२, २७६, २८५, २८६, ३०६ जिनप्रभसूरि १७, ५०, १२४, १७८, १९६, १९७, २०६, २०८, २४०, २५१, २६९, २८३, २९८, ३४५, ३४९. ३५२ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ३५, ३९, ४१, ४७, ५४, ५८, ६७, ६९, १७६, १७७, १८७, १९४, २०९, २६२, २६३, २६७, २८३, २८७, २९९, ३५१ २३४, २४२, २६१ १५१ जिनभद्रसूरि खरतर जिनरत्न सूरि जिनराजसूरि जिनलाभसूरि जिनवर्द्धरि २३८, २४९, ३३९ ३१७, ३१९, ३३९ ३३२ जिनवल्लभगणि-सूरि ४७, ५१, ५२, ५६ ५८, ६१, ६४, ६७, ७०, ७३, ७८-८०, १५२, १६९, १७६, १९६, २००, २०१, २०३, २१२, २१७, २२९, २३२, २३९, २४७, २५६, २५७, २६०, २६९, २७६, २८०, २८६२९०, ३०४, ३०५, ३०८, ३०९, ३१२, ३१३, ३१८, ३४०, ३४१ जिनविजय जिनसमुद्र ३३७ २६६, २६७ Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०० जेसलमेरु दुर्गस्थानभंडारसू चीगत ग्रन्थकर्तृनाम्नां प्रन्थकर्तृनाम पत्रांक जिनसमुद्रसूरि २११, २१३, २१४, २२१, २३३ ०३९, २४०, २४२, २४३, ३०३ २२४ जिनसमुद्रसूरि वेगडगच्छीय जिनसागर सूरि २५१ जिनसुंदरसूरि २१३, २१४, २३९, २४०, २६३ जिनहर्षमूरि २२३, २५८, २७२, ३३३, ३३७, ३३९, ३५४ २१३ जिनहंससूरि जिनेश्वरसूरि ५१, ५४, ५५, ५८, ६०, ६१, ९६, १९६, २०३, २२९, २६३, जिनेश्वरसूरिशिष्य वेगडगच्छीय ज्ञानचंद्र ज्ञानमेरु ज्ञानरत्न ज्ञानविमल ज्ञानशील ज्ञानी आर्यिका ज्ञानसागर आंचलिक ज्ञानसागरसूरि तरुणप्रभसूरि तिलक गुसांई तिलकाचार्य त्रिलोचनदास त्रिविक्रम देवज्ञ त्रिविक्रमभट्ट त्र्यंबक २८८-९०, ३०६, ३०८ दयारत्न दयावर्द्धन दयासागर त २२१ २७८ २११ २६७ ३४२ २५२ २५७ २४६, २५९ २९९, ३०२ ३५१ २६७ ३७, ३९, १२१, १७७, १८५ १९२, १९४, २०२, २०९, २६२, ३४५. १२५ ३३७ २७०, २८६ २७४ २३४ २२८ ३३९ ग्रन्थकर्तृनाम दर्शन विजय दडिकवि दानविजय दानशेखर दिग्नागआचार्य दिनकर दुर्गसिंह देपालकवि देवगुप्तसूरि देवचंद्रगणि देवचंद्रमुनि - हेमचंद्रशिष्य देवचंद्रसूरि देवप्रभरि मलधारी देवभद्र देवविजय गणि देवसूरि देवीदास देवेंद्रकीर्ति देवेंद्रसूरि [ द्वितीयं पत्रांक २५७ १३८ ३४६ २४८ १५७, १६० ३३१ २०१, २०५, २०६, २१०, २२९, २४२, २६६, ६८, २८४, २८६, ३२२ २११, २३६, २५५ ५२, ५३, १८९ देवभद्रसूरि देवभद्रसूरि मलधारी देववाचक दैवललाम साधु द्रोणाचार्य धनचंद्र धनपाल २३७, २४७, ३४२, ३४४, ३४६ १५४ १०२ १७७ १६३, १९९ ४९,७९, १०९ १९७, २६, ७०, १६१, ३५१ २५, ५५, ५९, ६१, १८७, २५३, २५६, २५९, २६६ ३१४ २०१ २६३, ३३९ ३५३ ५०, ५३, ६६, ७२, ७९, ८१, ८७, १०१,१९५, २००, २०२, २१२, २२५, २३२, २३५, २३८, २४३, २४७, २४९, २५०, २५९, २७१, ३०४-६, ३३८, ३४५, ३५२ २६९ २७, ४१, ४२, १८६, २००, ३०० ध २४८ १६९, २१८, २३८ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ परिशिष्टम् ] अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४०१ ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक धनराज गणि २७४, ३२८ नदिषेण ५२, ५८-६०, १९६, २८७-८९, धनंजय २८०, ३३४ ३१२, ३१३, ३१८ धनेश्वरसूरि २०६, २२१, २९०, ३१५, ३४३ नागराज २०२ धन्वंतरी २४६ नारायण कवि १५४ धरणसी ३४० नीलकंठ ३२१, ३३७ धरमसी ३३९, ३४६ नेमिचंद्र भंडारी २०२, २१२, २१५, २३३, धर्मकीर्ति आचार्य १६०, २८१ २४७, २५०, २६३, २८९, धर्मकुमार २७१ २९२, ३०९, ३१२, ३३३, धर्मघोषसरि ७२, १९५, २४१, २६५, २७०, ३५२ २८१, ३०९, ३५१ नेमिचंद्रसूरि ३३, ३४, ५१, ६१, ६२, धर्मचंद्र वेगडगच्छीय २४८ ७०, ७१, ९७, २१७, २३५ धर्मतिलक उपाध्याय ३०२, ३०६, ३०७, ३४९, धर्मदास गणि ५८-६२, २००, २०२, ३५१, ३५२ २१२, २१८, २२५-२८, नेमिचंद्रसूरि दिगंबर २३४, २४६, २५५, २६०, न्यायसागर २६६, २८६-२८८, ३०९, ३१६, ३५१, ३५३ धर्मवर्द्धन पद्मप्रभदेव दिगंबर धर्मशेखर गणि ३१६ पद्मप्रभसूरि १०२, १०४, २७४, २७५, धर्मसमुद्र वाचक ३३८ ३२८, ३३१, ३३२ धर्मसागर उपाध्याय २१७, २४२ पभराज ३३८ धत्तिरपाद आचार्य १५७, १६० पद्मसुंदर ३१४ परमसागर परमहंस विमुकात्माचार्य नन्नसूरि परमानंदमूरि २७८, ३०४ नमिसाधु पर्वत धर्मार्थी ४३, १४० २५५ पल्ह कवि नयनसुख २१५ २५२ नयनसुंदर पातो २४७, ३३७ नयरंग २५२, ३३८, ३५३ पादलिप्ताचार्य नयविमल पार्श्वचंद्र गणि २२९ नयसुंदर २५४, २६५, ३३७ पार्श्वचंद्र सूरि २९९, ३०८, ३३८, ३५२ नरचंद्रसूरि मलधारी १५३, १६१,२६२, २६८, पार्श्वदेव गणि १५५, १९८ २७४, ३३१, ३३४ पार्श्वनाग ५९, २०१, २२९, ३११ नर्बुद पुण्यनंदि २५२ नंददास २७७, ३३२ पुण्यसागर उपाध्याय - १९०,२११, २५१, ३३७ १६४ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ २७१ ४०२ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारसूचीगतग्रन्थकर्तनाम्नां [द्वितीयं • ग्रन्थकर्वनाम पत्रांक ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक धुंजराज ३४१ २०८-२१०,२१७, २२६, २५०, पूर्णभद्र गणि ९५, ९८, ११२, ११३, ११५, २८५, २८८, २९२, २९३, २९७, ११६, १९५, १९६, १९९, २८५ २९९, ३००, ३०२, ३१३ पृथुयशा २७३ भर्तृहरि २४३, २५८, ३३४, ३५२ पृथ्वीचंद्रसूरि १६, २६ भवानंद सिद्धांत ३४६ पेथी मंत्री २०६ भानुकर भट्ट २५४ प्रतीहारदुराज १३९ भानुचंद्र प्रद्युम्नसूरि ५९, १२१, १९२ भारद्वाज मुनि १८९, ३५६ प्रबोधमूर्ति गणि भारवि २७४, २८५, ३३४ प्रभानंदसूरि ५८, २६३, ३०३ भावचंद्रसूरि ३१४ प्रमोदमाणिक्य २५८ भावदेवसूरि १७८, २०२, २०७ प्रशस्तपाद १६१ भावप्रभसूरि प्रीतिविमल २७२ भावोजी दीक्षित ३२४ प्रेममुनि २५१ भास्कराचार्य २४०, २७४, २७५, २८१, प्रेमराज २०६ ३२७, ३३१ प्रेमविजय २५३ भूद्रमादेव (2) २७४ २२२, २२३ भोजदेव बनारसीदास २५७, २६७, २७२, ३३८ बप्पभट्टीसूरि २७९, ३१४ बाणभट्ट मतिकुशल २०७, २७६ ३३८ बिल्हण कवि १४६, १९८, २०९ मतिसार २२९, ३३८ बिहारीदास मम्मट राजानक ३४२ १३६, २६० बुद्धिसागरसूरि १२७, १५९ मलयगिरि ८, ९, ११, १४, १५, २०-२३, ब्रह्मकवि २३९ २५, ३२, ३५, ३७, ४६, ६३, ६७-६९,१८३-८५, १८७-८९, १९१-९३, १९९, २१७, २२३, भक्तिलाभ २६८, २७. २२५, २६१, २७९, २८१,२८३, भगवतीदास २२१, २२२, २२३ २९६,३०४,३०५, ३१७,३४९, भट्टि कवि १४१, ३३४ ३५१ भट्टोजी दीक्षित १२० मल्लवादी आचार्य १५९ भद्रबाहुस्वामी १, २, १६, १७, २१-२४, मल्लिनाथ २२४, ३२४ २६-२८, ३०-३२, ३४, ४१मल्लिषेणसूरि २४० ४३, १७७, १७८, १८१, १८५ ३२९, ३५४ १८७, १९२, १९३, १९९, २०१, महादेव देवश ३३१ भैया महादेव Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ग्रन्थकर्तृनाम महिमराज महिमराजानक महिमसमुद्र वेगडगच्छीय महिमाकीर्त्तिगणि महिमा मुद्रण महीप २३१, महेन्द्रसूरि १३०, १३१, १९८, २३५, महेश्वर कवि भट्टारक महेश्वर मानदेवसूर मानविजय मानांक कवि मालदेव मिश्र प्रेम मंडन माघकवि माणिक्यचंद्रसूरि १०९ माधव सरस्वती २४६ मानतुंगसूरि ५५, ५९, १६८, २५०, २५१, २५६, २७१, २७७, २९०, ३१३, ३१५, ३१८ ५६, २८१, ३१३ २६४ १४७, १४८ २४९, २५२ २७५ १३९, १९८ ८०, १५६, १९९, २३५, २८३. १९२ मुकुलभट्ट मुनिचंद्रसूरि मुनिदेवसूरि मुनिसुंदरसूरि मुनिसुंदरसूरिशिष्य मुरारि कवि मुंजादित्य मेघो पत्रांक २१४ १३७, २६० २१८ २२८ २४०, २४५ २६४, ३५३ २७३, २७४ २४५, ३५१ ४९, १९७, २५५, २९०, ३४३ २३४ २८४ मेरुतुंगसूरि अंचलगच्छीय मेरुमुनि उपाध्याय मेरुशेखर मेरुदरोपाध्याय मोहनविजय यशोदेव अकारादिवर्णक्रमेण सूची २०२, ३१०, ३१३-१५ २५४ १५३, २००, २०३, २०७ ३२८ २५३ २०६ २३६, ३१४ ३४३ ३१५ २६५ य ५०, १६३, १९७, १९९ ४०३ पत्रांक यशोदेवसूरि ४२-४५, ७०, ७३, ७४, ७८, ९९, १७६, १८९, १९५, ३०० ७४, ३०८, ३१८ २२१, २४३, २४७, २६२, २७१, ३४४, ३४६ ग्रन्थकर्तृनाम यशोभद्रसूरि यशोविजय उपाध्याय यादवसूरि योगराज रघुनंदन भट्टाचार्य रतनचंद्र रतनमुनि र रत्नसिंह सूरिशिष्य रत्नसूर रत्नसोम वेगडगच्छीय रत्नाकरकवि वागीश्वरांक रत्नाकर सूरि रभसनंदि ३३४ ३४६, ३५३ २१२ २४९, ३१० ३४३ ८१, १५९, १९२, २५०, २८४ रत्नचंद्रवाचक रत्ननिधान रत्नप्रभाचार्य रत्नमंदिरगणि ३३५ २५२ रत्नरंग उपाध्याय रत्नशेखरसूरि १९१, २०८, २३९, २४१, २४६, २५८, २६१, २६३, २९९, ३०४, ३१०, ३११, ३१५, ३१६, ३३६ २१५ २४१ २७६ रविदेव रविधर्म राजकीर्त्ति राजचंद्रसूरि पार्श्वचंद्रगच्छीय ३४१ २१४ १.७४ २५१ २२९, २३१ ३३६ १४०, १९८ ३१७ २३५ राजवल्लभ उपाध्याय २५६ राजशील उपाध्याय २४०, २५३ राजशेखर कवि १३५, २०२, २०६, २६९, ३३६ राजसमुद्र २१४ राजसुंदर ३३९, ३४४ Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३९ ४०४ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारगतग्रन्थकतनाम्नां प्रथम प्रन्यकर्तनाम पत्रांक प्रन्थकर्तृनाम पत्रांक रामचंद्रगणि वस्तो रामचंद्र-गुणचंद्र १५८, १९८, १९९ वाक्पतिराज १५३ रामचंद्र भट्ट ३३६ वाग्भट २०३, २३५, २५३, ३२३, ३२६, रामचंद्राचार्य २१९, २२४, २७३, ३३४ ३२७, ३३२ रामचंद्राश्रम (रामाश्रमाचार्य) २२१, २३७, २५९, वाचकखेम २६४, ३२०, ३२६, ३२७ वाचस्पतिमिश्र १६५-६७, १८९, ३५६, रामदेवगणि ६६, २८८ वात्स्यायनमुनि १८८, ३५६ रामदैवज्ञ वादिराज रामविजय ३३९ वादिदेवसूरि १७४ रामविनोद २३८ वादीन्द्र रुद्रट २८४ ३५३ रूपचंद ३४७ वानर्षिगणि वामन १४० विजय ३३९ लक्ष्मणगणि विजयतिलक २५३, ३३९ लक्ष्मीतिलक ११७, १२०, १९५ विजयदेवसूरि पाचचंद्रगच्छीय २५५ लक्ष्मीधरभट्ट १५०, १९८ विजयभद्र २५३, २६३ लक्ष्मीवल्लभगणि ३१८, ३४० विजयविमलगणि २६३ लक्ष्मीसागर विजयसिंहमूरि ६३, ६९, २०१ लखमण विजयानंद १२६, १२७, २८४, ३२२ लब्धिहर्ष २४२ विद्याकीर्ति लाभोदय २१४ विद्याचारित्र २५३ लावण्यकीर्ति ३३३ विद्यातिलक ३२५ लावण्यसमय २३७, २६५, ३३९ विद्याधर पंडित १४६ लोलिबराज ३३२, ३३४ विनयचंद्र ३३३ विनयप्रभ विनयविजय २६२, ३४६ घरदराज ३१९, ३२०, ३५३ विनयविमल वररुचि १२९, २०४, ३४१ विनयसमुद्रवाचक वराहमिहिर २६७, ३३० विमलकीर्तिगणि वाचनाचार्य २६१, ३०९ वर्धमान कवि विमलबोध ३१० वर्धमान भट्टारकदेव विमलविनय २३०, २५१ वर्धमानसूरि ७५, ७६, ९८, १०२, १९५, ३४९ । विमलाचार्य ५२, ५९, ६३, ७६, ९७, ११० वल्लभ दीक्षित २७७ १९६, २१५, २२९, २३७, २३८, वसंतराज २२५ २५०, २८७, २९०, ३११ बस्तिग २४२ विरहांक १३३ २५४ २५२ ३५४ ३२६ Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ग्रन्थकर्तृनाम विवेकसमुद्रगणि वाचनाचार्य विशाखदेव विश्वशंकर वीरचंद्रशिष्य वीरभद्रगणि ४५, २१५, २२१, २४८, २५४, २५६, २५७, २६३, २९९, ३३६ वीरसूरि वैद्यरतन वोकेशकर शर्मा वोपदेव व्याडि व्यासि शतानंद शय्यंभवसूरि २५-२७, शशधर शंकरदत्त शंकरस्वामी शंकराचार्य शंखधर शार्ङ्गधर शालिभद्रसूरि शांतरक्षित शांतिचंद्र उपाध्याय शांतिसूरि पूर्णतल्लगच्छीय शांतिसूरि वादिवेताल श अकारादिवर्णक्रमेण सूची पत्रांक १२० १५३ ३३२ ५३ २४९, २९८, ३२ ३२७ ३२० ३२१ ३२० १६८ २७३ ३०, १८६, २०४, २२५ २३२, २३५, २४२, २४८, २५७, २६१, २७०, २८६, ३००, ३०१ ३१८, ३३५ ३२४ ३३२ १६४ ३३३ २७८ ३२७ ६९, २१५, २६० १६० २२८ १४८, १४९, १५० ३३, ५३, ५५, ८७, ११६, १६०, १८७, २३१, २४०, २४१, २४३, २४७, २५०, २५६-२५८, २६६, २७५, ३०३, ३०९, ३१७, ३५२, ३५८ ग्रन्थकर्तृनाम शिवभद्रकवि शिवलक्ष्मी शिवशर्मसूरि शिवाचार्य शिवादित्यमिश्र शीलाचार्य शीलांकाचार्य शुभचंद्राचार्य शुभमंदिर शुभशीलगणि शोभनमुनि श्यामाचार्य श्रीकंठ श्रीकंठशिव पंडित श्रीचंद्रसूरि श्रीतिलक श्रीधरभट्ट श्रीनाथव्यास श्रीपति श्रीपतिसुत श्रीसारमुनि श्रीहर्षकवि सकलचंद्र गणि सकलहष सत्यराजगणि सदानंद मानदेवसूरिशिष्य ૩૦૧ पत्रांक २५१ ४७, ५२, ६०, ६३, ६५, १७६, १९५, १९६, २८३, २८५, ३०५ २९२ ३२५ १ १, २, १८१, १८९, २९३ ९३ २३०, ३०६ २३७ २२५ ३१४, ३५० ९, ११, १८४, ३४८ १८९ ३३० १५, २५, २६, ४४, ७०, १२३, १७४, १७७, १८५, २००, २०३, २१३, २१७, २२७, २३१, २३९, २५०, २५७, २६२, २६९, २७१, २७९, ३०४, ३१७, ३४६, ३५१ २३१ १५७, १६१ २५८ २७५, ३३२ ३३४ २६४, ३३८, ३३९, ३४७, ३५३ १४५, १४६, १५४, १६२, २३१, २७८, २८६ स -१४८ २६४, ३३९ ३१४ २३६ ३२० Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५१ २३६ ४०६ जैसलमेरुदुर्गस्थक्षानभंडारगतग्रन्थकर्तनाम्नां [ प्रथम ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक ग्रन्थकर्तृनाम पत्रांक समयसुंदर २१७, २१८, २२१, २२३, २२८, सुधाकलश २३०, २५७, २५८, २६९, २७७, सुबंधु महाकवि १५० २९६, ३१५, ३२५, ३३८,३४६, सुमतिकमल २६५ सुमतिगणि १०९, १२२, १९६ समरो २५२ सुमतिरंग २३९ सर्वधरोपाध्याय १२९, २६४ सुमतिसूरि ३०, १६९, २२५, ३०१, ३३५, ३५० सर्वराजगणि वाचनाचार्य २०३, ३३५ सुमतिहर्षगणि २७४, २७५, ३२९ सर्वलाभगणि ३५० सुमतिहंस २२८, २५४ सहजकीर्ति २९६, ३२१, ३३९ सुरतमिश्र सहजसुंदर २११ सोमकीर्ति ३१७ संग्रामसिंह सोमचंद्र संघतिलकसरि १८८ सोमचंद्रसूरि संघदासगणि क्षमाश्रमण १६, १७, १७४, १७५, सोमतिलकसूरि २३९, २५८, २५९, ३१६ १८५, १९३ , रुद्रपल्लीय २१६ संघविजय २२४ सोमदेव ५१, १९७ संयममूर्ति २११ सोमप्रभाचार्य २०३, २०९, २१०, २३८, संवेगदेवगणि २४७, ३११ साधारणकवि १११, ११२ सोमसुंदरसूरि साधुकीर्तिगणि ३०८, ३४२ सोमसूरि ४७, १९७, २२९, २३०, २३१, साधुरत्नसूरि साधुराजगणि सोमसेनस्रि साधुसोम २६९ सोमेश्वरभट्ट १३५ सामंत ३२९ सौभाग्यनंदि सिद्धर्षि २१८, ३५९ सौभाग्यसागरसूरि शिष्य सिद्धसाधु सौभाग्यहर्षसरि शिष्य सिद्धसूरि उपकेशगच्छीय सिद्धसेन दिवाकर १५७, १८७, १८८,३१३, हनुमंत सिद्धसेनाचार्य ७०, ७१, २३२, २४१, २५० २५६, हरिकलश धर्मघोषगच्छीय २२८ २५८, २६६, २७२, २७३, ३०७, हरिकलश मुनि २५१ हरिकवि २०२, २५९, २६० सिद्धार्थमुनि ३४६ हरिभट्ट ३३१ सिंहो २११ हरिभद्रसूरि ९, ११, २६-२८, ३०, ३४, सुधर्मस्वामी १८१-८३, १९०, १९९, २०५, ३५, ४३, ५१, ५५, ६१, २१०, २१३, २२४, २२७, २२८, ६२, ६६, ६८, ७५, ७९, २३१, २३५, २३७, ३१६ ८०, ११०, १५८,१६०, १६९, २७. २५३ २२८ २११ ३४९ Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ग्रन्थकर्तृनाम हरिभद्रसूरि बृहद् गच्छीय हरिराम तर्कवागीश हरिहर हरिहरब्रह्म हर्षकीर्त्तिरि नागपुरीयतपागच्छीय हर्षगण हर्षट हलायुध भट्ट पत्रांक १७६, १८५-८७, १८९, १९५, १९६, १९९, २०१, २१०, २५५, २६३, २६९, २७६, २७९, २८६-८८, २९२, २९९, ३०१, ३०३, ३०७, ३१७, ३२५, ३५२, ३५४, ३५८ हेमकवि हेमचंद्र हीरानंदमुनि पिष्पलगच्छीय हीरानंदसूर हृदयनारायणदेव अकारादिवर्णक्रमेण सूची ६४. १०४ ३२६ २७३ ३४७ २४२, २६४, २७०, २७६, ३११, ३४५ २०८ १३२, २१७ १४०, १९८, २२५, २३८, २७० २१६ २५२ २१९ २३८ २७९ ग्रन्थकर्तृनाम हेम चंद्रसूरि हेमचंद्रसूरि मलधारी हेमप्रभसूर हेमराज ४०७ पत्रांक ५८, ५९, ७६, ९५, ९६, १२७, १२८, १३०-३२, १३४, १४०, १४१, १५८, १७४, १७५, १८९, १९८- २०५, २१७, २२५, २२९, २३०, २३३, २३५-३७, २३९-४३, २४८, २४९, २६१, २६३, २६६-६९, २८२, २८३, २८५, ३०८, ३१२, ३१४, ३१५,३१८, ३१९, ३२३, ३२४, ३३६, ३४०, ३४२, ३५३ २६, ३५, ३९, ४१, ४३, ५३, ५८, ५९, ६५, ८३, ८५, ८७, १०७, १७६, १८६, १८७, १९२, १९५, २०५, २११ - २१३, २१५, २३२, २५६, २८५, ३१०, ३५६ ७६ ३४७ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयं परिशिष्टम् जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारगतग्रन्थप्रान्तस्थितलेखकपुष्पिकावळतानामैतिहासिको पयोगिविशेषनाम्नामकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम किम् पत्रांक किम् पातीसाह गणधर तिथि गणधर २२६, २५६ ११७ ३२२ ११७ ११७ गोत्र ३२७ अकबर अकंपित अक्षयतृतीया अग्निभूति अचल अच्युत अजमेर अजयपुर अजयमेरुदुर्ग अजयमेरु पुर अजितनाथ देवलोक नगर १३० ___ ७५, १४१ , ३६, ७३, ११५, ११९ तीर्थकर ९८, १५५, २१४, २७३ राजा १०० नगर विशेषनाम पत्रांक अणहिल्लपुरपत्तन अणहिल्लवाड १०५, १०६ अणहिल्लवाडपुरपट्टण १०१ अध्यारु अनंग श्रेष्ठी अनीश्वर १०, १९ अनुपमदेवी श्रेष्टिनी अनुपमादेवी ८४ अनेकार्थसंग्रह ग्रंथ अनोपचंद्र लेखक मुनि ३४८ अभय श्रेष्ठी ११६, १२० अभयकुमार पं० मुनि ६१, ६४,८७, १०१ अभयकुमार श्रेष्ठी अभयचंद्र अभयड १०३ अभयतिलक गणि ८३, १४२, १४५ अभयदेवसूरि ४८, ५८, ७३, ७४, ८८, ९४, १०२, १०९, ११३, ११४. ११८, १४२, १४४, १५१, १६१, १७७, १८०, १९०, १९१, २४४, २५९, ३१२, ३५९ अभयप्रभगणि अभयराजगणि अभयश्री श्रेष्ठिनी अभयसिंह श्रेष्ठी अभयी ११६ अभिधानकोश १३२ श्रेष्ठी अजितसेन अजीमगंज अजेसीह अणल्हपुर अणहलपुरपत्तन अणहिल अणहिलपाटक नगर १८५, १८७ १८१ ७, २१, ८७, ८८, १०९, ११६, १३६, १७५, ३६० २५३ अणहिल्लनगर अणहिल्लपट्टण अणहिलपाटक अणहिलपुर अणहिलपुरपट्टण ९३, १७४ १८६ १२५ ग्रंथ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ २५५ मुनि अंबड १३० १७९ अंबा ९५ श्रेष्ठी १५ मुनि श्रेष्ठी WW श्रेष्ठी परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेपनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक अभिषेक असाढ श्रेष्ठी ११९ अमरकीर्ति मुनि १४२ अहमद पादशाह १८६ अमरगिरि गणि लेखकमुनि अहिपुर नगर २५१ अमरचंद्र अंकक शाखा १७८ अमरनंदि उपाध्याय २१० अंचल गच्छ ३२८ अमरप्रभसूरि २१२ अंचलमत १२४ अमरमाणिक्यगणि ३१२ श्रेष्ठी ८३, १०३ अमरसिंह ग्रंथकार अंबहुंडी देवी अमरा श्रेष्ठिनी १०५, १९० अमीझरा पार्श्वनाथ २२७ अमृतदेवी श्रेष्ठिनी आ अमृतधर्मगणि ३०४, ३०९, ३५४ आकाश मंत्री १८८ अमृतपाल श्रेष्ठी आगरा नगर अमृतमूर्ति आचवाटिक गोत्र २९४ अम्मुक आजङ अरसिंह आणंद जोषी लेखक ९३, २७० अरिसिंह आणंदविमलसूरि २९५ अरिष्टनेमि तीर्थकर आदित्यवर्द्धनपुर अर्जुनदेव १०२ आदिनाथ तीर्थकर २१८, २५३, ३५८ अर्जुनपुर नगर आनंदनंदनगणि अर्णोराज राजा १५५ आनंद मन्त्री ८९, १०६ अर्बुदगिरि १०५, १०६, आनंदमूर्ति लेखकमुनि २८९ ३५०, ३६० आनंद २८, ८६, ८९ अलकपुर नगर आना १४५ अलकापुरी नगरी ३१२ आफर पातसाह अलवेसर श्रेष्ठिनी आभड ३६१ आमचंद्र ८४, ९५, १०४, १७४ अवलेपचिन्ह आचार्य प्रन्थकार १३३ आमण अवंकउर नगर २८७ आमणाग अविधवदेवी श्रेष्ठिनी ८५, ८६ आमंधर अव्ययात्मा आचार्य आमाक अशोकचंद्र ११८, ११९ आमी श्रेष्ठिनी भश्वतर ग्रन्थकार १३३ आम्रकुमार श्रेष्ठी भश्वदेव श्रेष्ठी आम्रदत्त भश्वराज आम्रदेव लेखकमुनि राजा तीर्थ श्रेष्ठी २९४ श्रेष्ठी अल्ह श्रेष्ठि १६४ मुनि १४५ ५२ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m 1848 १७१ ग्रंथ नगर १७९ श्रेष्ठी १६६ २९७ ३५९ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगताना [तृतीयं विशेषनाम पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक आम्रदेवसूरि २८, १७४ आहड श्रेष्ठी १४४ आम्रवीर श्रेष्ठी १०३ आह्डसर नगर ३३४ आम्र आहादनसिंह श्रेष्ठी आम्रसीह ९२, १०३ आंचलिक मत ३२९ आमेश्वर ९१, १०३ आरज्या २४६ आराधनामाला ८८, ९४ ईटायी २१९ आरासण तीर्थ १०, १९, ९२ आर्यभद्रगुप्त स्थविर आचार्य ३५९ ईश्वरकृष्णमहर्षि आर्यमनक २९ ईश्वरसाहु लेखक श्रेष्ठी ११ आर्यमहागिरि ३५९ ईश्वरसूरि आर्यमंगु ईसमाईलखांनदेशकोट नगर २२६ आर्यरक्षितसूरि ३५९ आर्यसमुद्रसूरि ३५९ आर्यसंभूत ३५९ उग्रसेन १४८ आर्यसुहस्ति उच्चानगरी १७९ आलापुर नगर २८९ उज्जयंत तीर्थ नगर ५,६४, १७९, ३५९, आल्हाक श्रेष्ठी आल्ही श्रेष्ठिनी उजल श्रेष्ठी १२ आशाधर श्रेष्ठी १७२ उत्तरायन ३२७ आशापल्ली ७६, ७७, १२२ उदयकर्ण आशापाल १३२ उदयचंद्र वाचक आशामती १७३ उदयन विहार १२२ आशावल्लीपुरी नगर १०१ उदयनंद गणि आश्क श्रेष्टी ८६, ९२ उदयनंदसूरि २३६ आसदेव , २५, ९१, ९२, १२८ उदयमती आसनाग १०, १८ उदयराज श्रेष्ठी १५,३१,३२,३४,४० आसराज ९५, ३०० उदयश्री श्रेष्ठिनी १०, १९ आसी लेखक मंत्री ३१, १८३ उदयसंघ पं. १९४, ३६४ आसादित्यमहामात्य लेखक ठक्कुर ३१, १५३ उदयसिंह राजा आसासाह श्रेष्ठी ६५, १९४ उदयसिंह श्रेष्ठी ६५, २५४, २७० आसाही संघवाणी श्रेष्टिनी उद्दा १७६ आसिग उद्धार आसुरि महर्षि उद्भट ग्रंथकार आसुला श्रेष्ठिनी १२० उद्यमनक ८४ MY श्रेष्टी २९३ नगर श्रेष्ठी प्रेष्टिनी MY ३२३ श्रेष्ठिनी मुनि १४३ ३०० श्रेष्ठी १३२ ८४ Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औ महर्षि चैत्य ग्रंथ . ग्रंथ . M " ज्ञाति नगर परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक उद्यापन ११७, १६४, १७९, १९०, २४४, औरंगाबाद नगर २४४ औष्ट्रिकमत १२१ उपकेशपुर नगर उपकेश वंश उपधानतप तपः कउतिग श्रेष्टिनी १७९ उपाध्याय ४७, १४५, २३०, २६९,३१०, कउल श्रेष्ठी ३६० ककीआ राउल लेखक उलूक १६७ ककुदसूरि उसभदत्त श्रेष्ठी १७९ कटुकासन नगर उसहजिणेसर १०५ कथाकोश ११४ कथारत्नकोश ऊ कनककीर्ति पं. मुनि ऊकेश गच्छ ८१ कनकचंद्र ऊकेश कनकप्रभ राजा ऊकेशपुर १०१ कनकप्रियगणि ऊकेशपुरीय गच्छ कनकसार लेखक मुनि ३०३ ऊकेश वंश ६, १०, १८, ३६, ५९, ६८, कनकसोम पं. मुनि ३१२ ७७, ८०, ८२, ११५, ११९, कनौज नगरः ३३४ १२४, १४३, १७८, १९१, कन्हाई २९३, २९४ २६२, ३४८, ३५९ कपरिका (?) ९४ ऊदयश्री श्रेष्ठिनी कपर्द लेखक श्रेष्ठी कपर्दि ऊदा कपिल महर्षि १६५, १६६ ऊमता प्राम कमलकलशसूरि २३५ कमलमंदिरगणि लेखक मुनि २००, २१९ कमलरत्नगणि ३२१, ३४१ ऋषभदेव तीर्थकर ९०, १०० कमलराजगणि १७८ ऋषभभवन चैत्य कमलसंयम उपाध्याय २४, २६१ ऋषभवीरस्तव कमलसिंहगणि ३२१, ३४१ ऋषिगुप्त क्षमाश्रमण स्थविर कमलसुंदर २२७ ऋषिमुनीन्द्र १६५ कमलसूरि कमलादे श्रेष्ठिनी २९५ कमलोदयगणि लेखक मुनि १९४, २९४, ३६४ ओसवाल करमचंद ३६४ मुनि ६.४५ १५६७३. 54 * * प्रेष्ठिनी श्रेष्ठी १०५ ३१० ..... २९ ओ शाति ३४९ Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कांसा किरता मुनि कपूरी कीका मुनि नगर श्रेष्ठी जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगताना [ तृतीय विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक करेणुगत १०६ कालू . , ३५० कर्कसूरि ६८, १०१ काव्यतीर्थ पदवी १९१ कर्णदेव राजा कासइदीय गच्छ कर्णपुर नगर २४४, २४९ ग्राम कर्पटवाणिज्य २४२ श्रेष्ठी २५ कपुरदेवी श्रेष्ठिनी किसना ३०३ श्रेष्ठिनी १७९ श्रेष्ठी २५, ८४ कर्मग्रंथप्रकरण ग्रंथ ११८ कीर्तिकलशगणि ११९ कर्मग्रंथविचार कीतिरत्नसूरि १८१, ३०१, ३३५ कर्मचंद पं, १९४ कीर्तिसागरसूरि २०७ कर्मण ठ. १७९ कीर्तिसुंदरमुनि १४५ कर्मवाटी २७९, २९४, ३२० कीट श्रेष्ठी १७९ कर्मसार पं. ३०३ कुडिलूपुरि कर्मसिंह ५, २५ कुतबपुर २५३ कलसभवमइंद स्थविर आचार्य कुभमेरगढ नगर २५६ कल्याणकमल पं. कुमरपाल राजा कल्याणचंद्रगणि १८१ कुमरपाल श्रेष्ठी १०, १८, १९ कल्याणजी राजा २१६ कुमरसिंह मंत्री ९५, ११६ कल्याणदास राउल १९४, ३६४ कुमरसिंह ठ. लेखक २७, ३२, ४२ कल्याणविजयवाचक ३१९ कुमरसिंह १०, १९, ७२ कल्याणसमुद्रसूरि ३२८ कुमरिका श्रेष्ठिनी कलटभट्ट १३९ कुमारपल्ली नगर कवाणयपंच कुमारपाल राजा ९३,१०६, ११६, १३६, कसरूपजी पं. १५५, १९४, २०४,३६२ कंबल १३३ कुमारपाल श्रेष्ठी १९, ८० कंबोज २६० कुमारविहार १५५ कातंत्रभूषण-न्यास ग्रंथ कुमारिल दार्शनिक १६३ कात्यायन ग्रंथकार १३३ कुलचंद्र ८३, १३२ कानजी लेखक २२० कुलधर श्रेष्ठी ८३, ११६, १४३ महामात्य कुलप्रभसूरि १७०, ३५८ कान्ह श्रेष्ठी कुलमंडन मुनि काम[देव] कुशलकल्याण पं० लेखक मुनि ३३७ कायस्थ शाति २०७ कुशली क्रोरु सं० श्रेष्ठी ३०० कुसिकस गोत्र ३३१ १०३ कुंअरी श्रेष्टिनी १७८, ३६. श्रेष्ठी ८९ ३२३ श्रेष्ठी कान्ह १७९ २१२ २८२ श्रेष्ठिनी ३६० Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१३ परिशिष्टम् ] विशेषनाम कुंडधर विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची पत्रांक विशेषनाम किम् किम् पत्रांक कुंप कुंभकर्णविजय कुंवरजी जोषी कुंवरपाल कूरला यक्ष श्रेष्ठी राजा लेखक श्रेष्ठी श्रेष्टिनी ३१५ २७० २८२ १०३ २७० कूरी वंश mS २५ कृष्टचकल्लाण कृपाचंद्रसूरि कृपारसकोश कृष्ण कृष्णर्षि महेश केलिका केली केल्हण केल्हणदेवी केल्हा कोचर कोटिक कोटिक कोटीगण कोला १११ १९०, १९४ प्रन्थ ३१० गच्छ गच्छ ३२५ श्रेष्टिनी ९१ श्रेष्ठी ८५, ८६ श्रेष्टिनी श्रेष्ठी ३३५ गोत्र ११, २९४ गोत्र शाखा २२६ २९, १०४, १११, ११७, १७७ श्रेष्ठी श्रेष्ठी खयर श्रेष्ठी खयरोड ग्राम खरतरंग २, ३, ५, ९, ११, १४, १५, १७, १८, २०, २१, २२, २३ ३१, ३२, ३३, ३४, ३५, ४०, ४१, ४६, ४७, ५७, ५८, ६२, ६५, ६७, ७३, ९९, १२५, १३४, १४२, १५७ १८१, १८५, १८६, १८७, १८८, १८९ १९०, २०१, २८४, २०५, २०६, २०७, २१७, २१९, २२०, २२४, २४०, २४३, २५३, २५६, २६१. २६४, २६८, २६९, २७९, २९३, २९४, ३००, ३०६, ३१५, ३१६, ३२१, ३२२, ३३७, ३६० खरतर गण २५, १२४, १८०, २०१, ३६४ खरतरविधिपक्ष १९३, ३६४ खरतर वेगडगच्छ २०५, २०६, २०९, २१६, २२३, २२७, २३२, २४३, २५१, २५४, २५५, २६५, २७२, २७३, ३१६, ३४९ खरहत श्रेष्ठी खंभात नगर खाती गोत्र ३०२ खानपुर प्राम २६२ खीमसिंह श्रेष्ठी ९२, १०३, ११६, १२०, २५१ खूकचंचलि खेतल ९२, २०७ ९२, १४८, ३६० कोल्हण कोंकण देश १३९ कौशांबी नगरी १५१ क्षमाकल्याणगणि ३०४, ३०९, ३५४ क्षमाप्रमोदजी उपा० लेखक मुनि १७५, ३४८,३४९ क्षमामूर्ति २२७ क्षमारत्न २०५ क्षमासुंदर उपा० २.२ क्षेमकलश पं० लेखक मुनि २५३ क्षेमकीर्तिः क्षेमसिंह श्रेष्ठी ७८, १४४ क्षेमंधर श्रेष्ठी ३६,३७,७७,११५,११९ . ा महर्षि . खेतसिंह मुनि ३२२ २८२ २५१ खेतसी खेरवा Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [तृतीय ३६४ श्रेष्ठी २९४ ११२ गजू २३३ वंश १३३ गूर्जर ४१४ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक खोखन श्रेष्ठी १०३ गुणसमुद्र लेखक मुनि २१९, २२५ खोतू श्रेष्टिनी २८२ गुणसमुद्राचार्य गुणसागर पं० २२७ गुणसूरि गइपालदेव ३०२ राजा गुणीया पंडित २०७ गग्गय १०१ गुर्जर श्रेष्ठी गजराज गणि गुर्जर देश गजसिंह राजा ३२८ गूजर श्रेष्ठी १, २, ३, ५, ९, १४, श्रेष्ठी १७८ १८, २०, २२, २३, ३१, गणदेव ३८, १७८ ३३, ३५, ४१, ४६, ४७, गणेश्वर १३४ गर्ग महर्षि १६६ गूर्जर ज्ञाति गंगा श्रेष्टिनी गूर्जर देश १२२, १४२, १५१ गंगाक मुनि गूजेर १०२ गंगादेवी श्रेष्टिनी २७० गूजरवाल ज्ञाति गंधहस्ती कवि ग्रंथकार श्रेष्ठी २, ३८, ६७, १५७ गंधार बंदर नगर ३४२ गोइंद गांगदेव श्रेष्ठी १०३, १९२ गोगी श्रेष्ठिनी १०, १९ गांभूपुरी १०५ गोडि पार्श्वनाथ २७२, ३२३, ३३६ गुजर श्रेष्टी ७, ९, १४ गोपाचल संस्थान २५६ गुणचंद्र गणि ८८ गोपाल गुणचंद्र श्रेष्ठि १७४ गोभद्र श्रेष्ठी गुणदेवी . .. श्रेष्टिनी श्रेष्ठिनी गुणधर श्रेष्ठी गोरधन श्रेष्ठी गुणपाल ३६१ गुणप्रभसूरि १२१, १२४ गोलवत्था गुणभद्रसूरि गोल्ल गुणमती श्रेष्ठिनी गोल्हण गुणरत्ना टीका ग्रंथ २१६ गोविंदचंद्र राजा गुणराज पं० १९४, ३६४ गोविंद २८२, ३६० गुणराज मंत्री २९३, २९४ गोव्यंद अध्यारु-लेखक गुणराज श्रेष्ठी २७०, ३५० गोसाल गुणवल्लभ पं० १२८ गौतम गणधर ९०,९८,११८,१४२,२१८ गुणविनय उपाध्याय १९४ २३४, २५३ गुणशेखरसूरि २५९, ३२५ ग्रामाध्यक्ष ८४ नगर लेखक २९५ गोमी AR १४४ गोरा गोत्र श्रेष्ठी ४Cm १५० श्रेष्ठी Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mar लेखक ८४ श्रेष्ठी श्रेष्टी चांपू १०५ परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४१५ विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम पत्रांक ग्वालेर देश चारित्रसिंहगणि चारित्रसुंदरी साध्वी चारित्रोदयगणि घडमल्ल राजा २७९ घृतघटीपुरी नगरी २६० चाहड पं. चाहिणिदेवी श्रेष्टिनी घृतलंभनिका प्रामृत चाहिणी ९१, १०३, १४३ चाही १७६ चक्रपालभट्ट १३३ चांदु चक्रेश्वर चांपलदे १९४, ३६४ चक्रेश्वरसूरि ८४, ८५, १४४, १७० चांपला ७२, १०३ चड्ढावल्लिपुर नगर १०५,-१०६ चांपसी २५४ चतुरंगदे श्रेष्ठिनी २९४ चतुर्मासी चित्कोश ३२०, ३२५, ३४१ ३१९, ३५० चतुर्मुखधरणविहार चैत्य ८९, २५३ चित्रकुट दुर्ग नगर ८, ६४, १४८ चगाई श्रेष्ठिनी चित्रपट ३६० १०५ चंड ठ. लेखक चुलुग कुल चंडप्रसाद चैत्यनिवासी १९० चंडसिंह श्रेष्ठी चैत्यवंदनमीमांसा त्यवदनमीमांसा ग्रन्थ १०१ चंदन चंद्र शाखा ८६ १२, २७, २८, ३७, ४०, ७९, ८३, छज्जल श्रेष्ठी १४५ ९४, ९८, १०१, १०२, १०४, १११, छड्डक ११२, ११४, ११७, १२६, १४२, छत्रापल्ली नगर ८५, ८८, १०३ १४४,१५९,१७९, १९०, २२६, ३५९ छाजहड गोत्र चंद्रगच्छ ४६,९१, ११३, ३६३ छाहड १४८ चंद्रप्रभप्रासाद १३२ चंद्रप्रभ श्रेष्ठी ११० चंद्रप्रभसूरि ७७, १७० जइतसी श्रेष्ठी १९१ चंद्रसूरि ७१, १०६, १६१, १७४, ३२५ जगत्सिह ,, ७१, ७७, ९२, १०२ चंद्रावली श्रेष्ठिनी १७९ जगद्देविका श्रेष्ठिनी १७३ चंद्रिका जगद्धर श्रेष्ठी ३७, ७७, ११६, १२० चंपाई २९४, ३६० जगधर ११९ चाचाकराण महामात्य जगपाल १७८, १७९, २९३ चामुंड राजा १०५ जगमतगणिनी चामुंडी १९० जगमाल श्रेष्ठी १७९, ३६० m . 1 m Tour चंद्रकुल २५४ श्रेष्ठी चत्य साध्वी देवी Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किम् श्रेष्ठी मुनि " ३२३ देश ९२, १४५ २०७ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां [वृतीयं विशेषनाम पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक जगसिंह श्रेष्ठी ७८, ९२, १४८ जयानंदरि २२७, २६४ जजमल संघपति ३०० जयेन्दुक-जयचंद राजा २४४ जज्जणाग जल्हण पंडित लेखक १२३ जज्जय ८८ जसदेव जनार्दन व्यास २७८ जसमाई श्रेष्ठिनी ३५०,३६० जनाश्रय पं. १३४ जससोम लेखक-मुनि जयचंदसूरि २३६ जसोधर जयतक ८४ जहांगीरसाहि पातिशाह २९४ जयतमाल जंगल २७०, ३१६ जयतसिंह जंबूस्वामि ८७, १०४, ११७, ३५९ जयतिपाल १३२ जागूसा प्राम जयति श्रेष्ठिनी ८६, ८७ जामुणाग श्रेष्ठी ११९ जयतुग्निदेव राजा जालिधर गच्छ जयदेव साधु कवि १४३ जाल्योधर गच्छ जयदेवसूरि जाल्हणदेवी धेष्ठिनी जयदेवी श्रेष्ठिनी जावड श्रेष्ठी जयनिधानगणि २९५, ३२१, ३४१ जावालदुर्ग नगर जयवमदेव राजा जावालपुर जयशीलगणि मुनि जावालिपत्तन १५२ जयशीलमेरुपुर जेसलमेरनगर १९१ जावालिपुर जयश्री श्रेष्ठिनी जासला श्रेष्ठिनी जयसमुद्रसूरि १२१ जांबू ठ. श्रेष्ठी ८८ जयसागर उपाध्याय जिनकुशलसूरि १०, १२, १८, १९, २४, १४५, जयसिरि श्रेष्ठिनी ८६ १८०, १९१, १९४, २२६, २४४, जयसेन मुनि २६५, ३२१, ३२२, ३५९, ३६४ जयसेनसूरि १७०, १७१ जिनगुणप्रभसूरि २००, २०५, २०९, २१४-२१६, जयसोम उपाध्याय १९४ २१९, २२०, २२३-२२७, २३२, जयसिंघदेव राजा ४३, ११० २४४, २५१, २५४, २६५ जयसिंघसूरि २१६ जिनचंद श्रेष्ठी जयसिंह राजा ३९,५८, ७७, ९९, जिनचंद्रसूरि ३, १०, १२, १८, १९, २४, ३६, १०१, १०६, १७४ ३७, ४०, ४४, ६२, ७४, ७७, जयसिंहमूरि २३, ७९, ८५, १०८, ८८,९४, ९५, १०२, १०४, १०५, ३५७, ३५८, ३६२ ११३, ११४, ११८, १२०, १२२, जयसुंदर १४५ १२३, १२५, १२६, १२९, १३२, जयस्तंभविहार प्रासाद ११७ १४२-१४४, १४९, १५१, १७४, २९६ १२५ १४३ मुनि Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ मुनि २१, २२ ८८ परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४१७ विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक १८०, १८४, १८७, १९०, १९१, जिनपाल श्रेष्ठी १९३, १९४, २०१, २०५-२०७, जिनप्रबोधसूरि १२, १९, १५२, १७४, १८०, २०९, २१४-२२०, २२३, २२४, १९१, ३५९ २२६, २२७, २४०, २४१, २४३, जिनप्रभसूरि १२४, २०७ २४४, २४८ २५१, २५५, २६४, जिनबंधुर २६५, २७९, २८२, जिनभक्त श्रेष्ठी १२ २८४, २९३, ३०२, ३०३, ३१२, जिनभद्रसूरि १-३, ५, ९, ११, १४, १५, १७, १८, २०, २२, २३, २६, ३१-३५, ३२०, ३२२, ३२३, ३२५, ३३७, ४०,४१, ४६, ४७, ६७, ९४, १०२, ३४१, ३४९, ३५४, ३५६, ३५९, ११८, १३४, १५७, १७३, १७८३६०, ३६४, १८१, १८४, १८५, १८७-१८९, जिनदत्तगणि १९१, १९४, २४५, २६९, ३०६, जिनदत्तसूरि १२, २४, २८, ३७, ५७, ५८, ३१५, ३५९, ३६४ ७३, ८५, ११३, ११४, ११८, १२०, जिनमतसाधु लेखक-मुनि १२२, १२३, १२६, १३१, १४१, जिनमती श्रेष्ठिनी १४२, १४४, १४९, १५१, १८०, जिनमाणिक्यसूरि ४४, १९१, १९४, २२४, २२६, १९०, २०४, २०७, २२६, २४४, २४५, ३०६, ३२२, ३६४ २६१, २७९, ३५७, ३५९, ३६४ जिनमेरुसूरि २००, २०१, २०५, २०९, २१४जिनदत्तसूरिशिष्या २१६, २२०, २२३, २२६, २२७, जिनदासगणि महत्तर २४०, २४४, ३४९ जिनदास श्रेष्ठी जिनयुगल १७, १८ जिनरक्षितसूरि २२ जिनदेव , ४, १०, १३, ४७ जिनदेवसूरि जिनरत्नसूरि २५६ ११५, ११९, १४२, १५२ जिनदेवी श्रेष्ठिनी जिनराजसूरि २, ३, ५, ९, १४, १५, १७, १८, जिनधर्मसूरि २००, २०२, २०४, २०५, २०६, २०, २२, २३, २६, २७, ३१-३५, ४०, ४१, ४६, १३४, १५७, १७९, २०७, २८९, २१४, २१५, २१७, १८०, १८७, १९१, २९४, ३५९ २२०, २२३, २२६, २२७, २४०, जिनलब्धिसूरि १८०, १९१, ३५९ २४४, २६४, २६५, २७९ जिनलाभरि जिनपतिसूरि ६, ८, १०, १२, १९, ३६, ३७, जिनवल्लभसूरि-गणि ३७, ५७, ६४,८८, ११३, ११४, ३८, ७७, ८०, ८३, ११२, ११३, ११८, १२०, १२२, १२६, १४२, ११४, ११६, ११८, १२०, १२२, १४४, १५१, १८०, १९०, २४४, १२३, १२४, १२६, १३२ १३९, २६१, ३१२, ३५९ १४२, १४३, १४४, १५१, १८०, जिनशासनपातसाह बिरुद १९३ १९१, २२६, २४४, २६५, २८५, जिनशेखरसूरि २००, २०१, २०४-२०७, २०९, ३५६, ३५९ २१४-२१६, २२०, २२३, २२६, जिनपद्मसूरि ३, ५, २५, ७१, १८०, १९१, ३५९ २२७, २४०, २४४, २७९, ३४९ १९३ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ ३५० जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगतानां [ तृतीय विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक जिनसमुद्रसूरि २४, १९१, २१४, २१९, २२०, जेसलपुरी नगर ११६, १२० २२४, २२७, २४४, २६५, २७३, जेसलमेरको जेसलमेरदुर्ग ,, ११३, ११४, १९४,३०४, जिनसिंहसूरि १९१, १९३, १९४, २२६, २४३, जेसलमेरनगर २९४, ३६४ , १४५, १८४, १८९, १९४, जिनसुंदरसूरि २१९, २२० २८२, ३०७, ३५०, ३५२ जिनसेनगणि ३३५ जेसलमेरपत्तन १९० जिनहर्ष पुरि २३४ जेसलमेरभंडार जिनहंससूरि १८२, १९०, १९१, २६८, २९३, जेसलमेरुदुर्ग नगर १८२, १९१, ३६४ २९४, २९७, ३०६ जेसलमेरुद्रंग जिनागर श्रेष्ठी जेसलमेरुनगर , ३७, २००, २१६, २२४ २२७, २३२, २४३, २५४, जिनेश्वरसूरि १०, १२, १९, ३७, ३८, ६४, २९४, ३०२, ३२३, ३५२ ७४, ७७, ७८, ८०, ८१, ८३, ८८, ९४, ९८, १.२, १८४, ११२, ११४, जेसलमेरुपत्तने जिनपार्श्वमन्दिरं ११८-१२०, १२३, १२६, १४१, जेसलमेरु महादुर्ग नगर १८०, १९३, २०४-२०७, १४३, १४४, १५१, १८०, १९०, २१७, २९६ १९१, २००, २०१, २०४-२०७, जेसलमेरुसत्क ज्ञानकोश १९१ २०९, २१४-२१६, २२०, २२३, जेसल श्रेष्ठी ६, ८३, ९१, १७८, ३५८ २२४, २२६, २२७, २३३, २४०, जैत्रकर्ण राजा २४४, २५१, २६४, २६५, २७९, जैत्रसिंह ठक्कुर १७० ३४९, ३५६, ३५९ जैन्शास्त्रोद्धार जिनोदयसूरि ४०, ६५, १८०, १९१, २२०, जैनेन्द्रव्याकरण १५९ ३१६, ३५९ जैमिनि १७६ जिल्हण श्रेष्ठी ८२ जेवातृक जीरापल्ली तीर्थ ३५०, ३६० नगर २१६, २४६ जीर्णागमोद्धारिणीसंस्था १७८, २३५ जीर्णोद्धार १९४ ज्ञानकोश १७, ३६४ जीवणजी लेखक ज्ञानचंद्र मुनि ३२१ जीवणी श्रेष्ठिनी ३६. ज्ञानतिलकगणि प्रथमादर्शलेखक मुनि १९१, ३५६ जीवंद श्रेष्ठी ज्ञानभांडागार ३०४, ३५४ जीवंदही श्रेष्टिनी १२ ज्ञानमंदिरगणि लेखक मुनि २०१, २०५, २४०, जीवा श्रेष्ठी २१० २९७, २९८, ३०३, जींद १७९, १८० ३०७, ३१६ जेठमल व्यास पंडित १९१ ज्ञानमेरु पं. ३१०, ३६४ जेल्लक श्रेष्ठी ज्ञानवर्द्धनगणि १८२ ऋषि rur " जोधपुर ० १९० जोषो गोत्र ० १७९ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि ه لس श्रेष्ठी २१ १७९ १ ट नगर २९८ 6 ३६२ १६. २९७ टीका टीबू २७० و परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४१९ विशेषमाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक ज्ञानश्री साध्वी ग्रन्थकी १५७ तपगच्छ ३२२ ज्ञानसागर तपन ३२८ ज्ञानोदय लेखक तपागच्छ गच्छ २१०, २३३, २३५, २३६, २४९, २९५, ३०२, ३०८ तपोटमत १२४ झांझण तरुणप्रभसूरि झांबटक तारंगा तीर्थ झेरिडक नगर तारादेवी श्रेष्ठिनी ताल्हण श्रेष्ठी ३६० तिजाभापुर टप्पत्तकुवादि तपागच्छ तिमिरपाटक टंकसाल १०५ तिमिरपुरे चैत्य टिप्पण तिमिरासहन वासर वार टीकमचंद महात्मा १९१ तिमिरीपुर नगर ११३, १३० तिलककल्याणगणि लेखक २४९ श्रेष्टिनी तिलोकसी श्रेष्ठी तिहणदेवी श्रेष्ठिनी तिहुणश्रेष्ठी श्रेष्ठी ठकुरसिंह श्रेष्ठी २५४ तिहुणी श्रेष्ठिनी ठक्कुर गोत्र ८९, ९९, १०५. १७०, तीर्थयात्रा ५, ७७, ८६ तील्हिका १४४ तेउका ठाकुरसी ३०० तेजा लेखक-श्रेष्ठी १८१, १८८ तेजा ५,४०, ७८ तोडरमल्ल २५४ डुसाऊ श्रेष्ठी त्रिभुवनदेवी श्रेष्ठिनी ९५ डुंगरसी ३५० त्रिभुवनश्रेष्ठी श्रेष्ठी ड्रणायि लेखक त्रिभुवनपालधीदा श्रेष्टिनी ७८, ११६, १२० डूंगर ३०२ त्रिभुवनमल्लदेव बिरुद डूंगरपुर त्रिभुवनी श्रेष्टिनी डेरासमालखान त्रीकम श्रेष्ठी त्रैलोक्यगंड बिरुद त्रैस्तुतः गच्छ तखतमल पं. ३२३ तत्त्वादित्य तपउद्यापन उत्सव थटा नगर २४८, २५२, २५५ سر ع س २०७ श्रेष्ठी श्रेष्ठी ८३ श्रेष्ठी नगर त मुनि ऋषि Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० विशेषनाम किम भणपार्श्वनाथ थारापद्रपुरीय थावर थाहरू थिरराज पं. 33 थिराख्यपुर थिरुक सा. थिरुकभंडारपुस्तिका श्रीदुक दयाकलश गणि दयानंदनगणि दहहुक दशराज दंडधर दंडनायक दाडिम दानचंद्र पं० दामोदर दीक्षादानोत्सव दीपचंद्रजी दीपिका दुर्गदत्त दुर्लभराज दुर्लभश्रेष्ठी दु दुलीचंद महात्मा दूअक दूदा गच्छ श्रेष्ठी 33 लेखक श्रेष्ठी नगर श्रेष्ठी श्रेष्ठी ३१२ ३०० दयारतन गणि ३४१ दयासागर गणि २९७, २९८, ३००, ३०३, ३०६, ३०७, ३१६, श्रेष्ठी द "" श्रेष्ठिनी जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगतानां पत्रांक ३९ १०३ ३६० १०५, १०६ ८८ २७० ३४१ १५० ३६० २७२, २८० १९१ १७४ राजा १०५, ११२, ११८, १४२, १४४, १५१, १९० श्रीकृष्णः ७० मुनि व्याख्या वंश २१५ १९४, ३६४ १९४ १९१, १९४, ३६४ २०८ ३६४ ४७ ८३ श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी १०, १८ ८३ लेखक १९०, १९४, २३४, ३३७ श्रेष्ठिनी ८० श्रेष्ठी ३६० विशेषनाम किम् श्रेष्ठी दूल्हा देगा देदा देदी देपा देमति देमाई देयड महं० देल्हक देल्हणदेवी देल्हा देव देवकर्ण देवकी देवकुलपाटक देवकुलिका देवकुसल देवगिरि देवगुप्तसूरि देवचंद्र 33 देवचंद्रसूरि देव देवत देवतिलकगणि देवदत्त देवधर देवनाग देवपत्तन देवप्रभसूरि देवभद्रगणि देवभद्र देवभद्र "" 35 श्रेष्टिनी श्रेष्ठी 33 श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी "3 श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी "" राजा श्रेष्ठिनी नगर लेखक - मुनि नगर ८१ ३१५ १०, १८ २२० २४४ ६८, १०१ मुनि १३२, १५५, १५६,२०२ श्रेष्ठी ६, ८१, १९२ श्रेष्ठी ५, ८६ ६, १२४ ८२ श्रेष्टिनी लेखक २९७, ३०३, ३०७, ३१६ श्रेष्ठी ४० नगर मुनि श्रेष्ठी [ तृतीयं पत्रांक ३५९ १७३ ६४, ९२, १४५, २८२ "" लेखक ८५, ८६, १४४ ३३५ १७३ ३६० १५३ १०३ ३६१ १७९ ३६० "" १४३, १७३, ३६१ २०४, २०६, २०७, २१७, २५४, ३५२, ८० ८७ १०४, १५३ २०४, २०५, २०६, २०७, २१७, २६४ १६४ ६ Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखक परिशिष्टम्] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक देवभद्रसूरि ५, ५८, १०२, ११४, २७९ धन्य श्रेष्ठी ११२, १७९ देवमूर्ति उपाध्याय धन्यराज २७० देवराज धन्या श्रेष्ठिनी १०, १९ देवराज श्रेष्ठी ३६० धन्यादेवी २७० देवराजपुर नगर १७९, २८४ धरणविहार प्रासाद २५३ देवविजयगणि २४२ धरणाक श्रेष्ठी १-३, ५, ७, ९, ११, देवश्री श्रेष्ठिनी ३६, ८१, ११६ १४, १७, १८, २०, देवसार पं० मुनि १९४, ३६४ २२, २३, ३१-३५, ४१, देवसिंह मंत्री २, १७१, १७२ ४६, ४७, ६७, १३४, देवसुंदरसूरि ३०२, ३०८ १५७ देवसूरि ८६, ८७, ९१, ११७, १२१, १८० धरणिग १०३ देवाउ महं. धरणिद्धय विद्याधर १०० देवानंद गच्छ धरणिद श्रेष्ठी २५३ देवानंदरि ७१, १०२, १५३ धरणीधरशाला वसति ६४ देवा भणसाली धरणेन्द्र देव १०७ देविणी श्रेष्ठिनी धरसेन राजा १४१ देवीदास राजा २०६ धरावास नगर १६, १७, २५४ देवेन्द्रसूरि ७९, ९५ कुल १०३ देसल १७३ वंश ४, २९, ८१. १३१, दोसी गोत्र श्रेष्ठी श्रेष्ठो १०३ धर्कट श्रेष्ठी धर्म १९२ ध m . लेखक श्रेष्ठिनी मंत्री मुनि २९३, २९४ १०१ १४३ श्रेष्ठी ६४ धणचंड धणदेवी धणपति धनदेव धनदेव धनपति धनपाल धनपाल धनराज धनसिंह धनेश्वरसूरि ঘম্বাই धर्मकीनिगणि १०२ धर्मघोष __ गच्छ २५६ धर्मघोषसूरि ७२, ७७, १७०, ३६२ धर्मचंद लेखक -मुनि २५५, ३०६ धर्मदास ३५६ धर्मदेव उपा० मंत्री धर्मधीरगणि १८१ धर्मनिधान पं० मुनि धर्मरत्नसूरि २९३ धर्मराज मंत्री २९४ धर्मवर्द्धन गणि १४५ धर्मशाला विश्रामस्थान ३६० धर्मशेखर लेखक-मुनि २०७ ७१, १३० १७९, ३२९ १२, ९२ २५, ३६३ अष्टिनी Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ विशेषनाम धर्मसूरि धर्मिणी धवलकपुर धवलगुणदेवी धवल चंद्रगणिमिश्र धवल धंधल धंधिका धंधुक्कयपुर धानी धाम धारसी धारादित्य पंडित धारापुरी धांउका धांधलदेवी धांधल धांधी धांधुक घीणिग धीदा धीरा धीराक धींगपंचमी धींध धींधी धेनड नउल नन्नसूरि नन्नुक नयणा नयनानंद मुनि पं० नयमेरु पं० किम् श्रेष्ठिनी नगर श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी "" श्रेष्ठिनी नगर श्रेष्ठिनी श्रेष्टी "" लेखक नगर श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी " श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी तिथि श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी न श्रेष्ठी श्रेष्ठी श्रेष्ठी जेसलमेरुदुर्ग स्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगतानां विशेषनाम नयसमुद्र पं० नचंद्रसूरि नरदेव नरपति नरसिंह पं० पत्रांक २५६ १२ ३२२, ३५९ २९ २९४ ९५, १०१, १०६ ३६२ ८९ १११ २८२ ९०, १७९ ३४९, ३५४ १६५ १२३ ८९ ७१ ९२, १४८, १७८ १४४ १०३ १०३ ११६ २८२ २८२ २६५ ७८-१४३ १४३ १९४ १०३, ३६० ९० ८९ ७१ ३२१ ३६४ नवलखा नवलादे नवांगवृत्ति नलकच्छकपुर नगर नवा पार्श्वनाथ अजमेर नवरंगखानकोट्ट नसरपुर नंदकिशोर नंदरबार नंदि सहजगणि नंदीश्वर नंदुरबार नाइकि नाकर नाग नाग नागड महामात्य नागदेव नागपाल नागपुर नागराज नागिनी नागेन्द्र नाथी नाथू नानक नानी नानू नाभिसूनु नाभेयजिन किम लेखक - मुनि श्रेष्ठी लेखक ऋषि नगर कुल श्रेष्टिनी नगर कृष्णः नगर लेखक तीर्थ नगर श्रेष्ठिनी लेखक गोत्र श्रेष्ठी 23 33 33 नगर देवः श्रेष्ठिनी શ્રેષ્ઠી श्रेष्ठिनी [ तृतीयं पत्रांक २०२ १२८, १५३ * २८२ ३०८ १२३, १२५ ५७ ३२१ ९९ २२६ ९४, ११३ २७३ ३४६ २९५ २३६, २५३ १०२ ३५० १७३ २२७ 39 २७१ ३६३ ५९ ८९, ९१, ९४, १९० २८ ७७, २२६, ३१२ १९० ७१, ७६ ४ २९४, ३६० १७९ ३४९ महर्षि श्रेष्ठिनी ८५, ८६, ८७, २७० २८२ श्रेष्ठी तीर्थकर ९०, १२, १६३, ३५८ ८७, ३२८ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] विशेषनाम नायक नायका नायकदे नायकदेवी नायिका नालदेवी नाहट्ट निघण्टु निम्नय ठक्कुर निर्वृत नीलकंठ मौबाक नुरद नेट नेमकुमार 33 नेमिचंद्र नेमिचंद्रसूरि नेमिनाथ नैयायिक भोत् पञ्चनदीश पट्टन पण्ड्या भीदाक पण्यास पत्तनतिलक पत्तनपुर पदमचंदजी पदमसी पद्म पद्मकेसर पद्मचंद्रसूरि श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी د. 37 किम् 37 35 वंश मैकग्रंथ कुल श्रेष्ठी राजा मंत्री पंडित श्रेष्टी 33 तीर्थकर सम्प्रदाय श्रेष्ठिनो प नगर नगर मुनि श्रेष्ठी नगर लेखक पन्यासपदवी " मुनि विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम पत्रांक ३६० २५, ९२ १७८, १७९, ३६० ७२, ३६० ९३ ७१ १०, १८ १३० १०५ १, ९३ १७६ १४३ १९४ १८५ ८७ ३८, ९३ ११९ ११७, ३५९ १०८, २४३ १६० १४४ १९४ ३६० २४० २१० २९४ - २४८, २५५ २९३ ३६, ८०, १२, ११६, १७१ १५१ ८५ पद्मदेव पद्मदेवर पद्मनाभ पद्मप्रभ पद्मप्रभसूर पद्ममंदिर पं० पचराजगणि पद्मलदेवी पद्मला पद्मसिद्धि गणिनी पद्मसिंह पद्माक पद्मानंदसूर पद्मावती पद्मावती पत्तन पद्मिका पद्मिनी पद्मी पद्रउर परतापसी परमश्री महारा परमानंदसूरि परीक्ष परीक्षि परीक्ष्य पथि पर्युषणा पल्लिका पल्हण पवयणदेवी पवित्तिणी पंचक पंचप्रमाणीवृत्ति ४२३ किम् पत्रांक श्रेष्ठी ३६, ७७, ११९, १३२ ९४ १०० १०२ १०, १९, १०२, १०३ ३०३ १८४, १९१, २९६ ९५ ४, ७१, ९२ राजा तीर्थकर मुनि 33 श्रेष्ठिनी "3 साध्वी श्रेष्टी 19 श्रेष्ठिनी नगर श्रेष्ठिनी 33 "" नगर लेखक साध्वी गोत्र ८५ गोत्र १, ९, १४, १८, २०, २२, २३, ३१, ३५, ४१, ४७, १५७, १७१ जैनपर्व पालीनगर लेखक- श्रेष्ठी पदवी श्रेष्ठी ३१० ७१, ३५८ ११९ ३५८ ૧૬ ३२८ ९३ ७८ ८६, ९१ ८५, ८६, ८७ ग्रंथ २५२ २६६ २, ५, ११, ३३, ३४ २९७ ३६२ २९ २५, १२८ ३ ३६३ २७० १०१ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठी १६६ १०१ १०१ - श्रेष्ठी गोत्र ९२ ३३० जिन श्रेष्ठी ३१० ७८ पुण्यिनी કરછ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां [ तृतीयं विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक पंचमी उद्यापन १७९ पासड ९१, ९२ पंचशिख महर्षि पाससामिजिणभवण पंचाइण मंत्री श्रेष्ठी २५४ पासुक श्रेष्ठी ८५. ८६ पंचानन विप्र लेखक १८९, ३१५ पाहिका श्रेष्ठिनी पंचासर प्राम १०६ पाहिनी पाजाक श्रेष्ठी पाहिल लेखक पाणिनि महर्षि १५९ पांचाणी गोत्र २५२ पातू श्रेष्ठिनी १०३ पिङ्गल पं. १३३, १३४ पादरा ग्राम पील्हाक पारि पुण्य पारीख २५२ पुण्यप्रभसूरि पारुत्थ नाणक पुण्यवल्लभ उपा० २९३ पार्श्व १४२ पुण्यसागर उपा० १८४, १९०, १९१, २९६ पार्श्वकुमार ९३, ९४ पुण्यसिद्धि गणिनी साध्वी पार्श्वचंद्रगणि मुनि-लेखक श्रेष्टिनी पाश्वठक्कुर पुनिणी ३६१ पार्श्वतीर्थ ३५२ पुन्नाग श्रेष्ठी १०, १८ पावतीर्थशदेवगृहक १४३ पुन्नी श्रेष्ठिनी पाश्वदत्त श्रेष्ठी ९१, ९२, १७९ पुरा आरज्या साध्वी २४६ पाश्वदेवजन्मकल्याणक श्रेष्ठिनी १७९, १८० पार्श्वदेव मुनि लेखक पाश्वदेव श्रेष्ठी १०२, १०३ पुरुषोत्तमदास पार्श्वनाग Jष्ठी ७३, ८८, १०४, १३१ पुरोहित ज्ञाति १४, २०, ४१, ४६ पार्श्वनाथचैत्य १०२, १०६, ११५, १९४, २५४ ६७, १३४, १५७, ३०२ पार्श्वनाथ तीर्थकर ३६, ९४, ९८, १००, १४१, पुंजराज श्रेष्ठी १९१, २७२, ३२. पुंजी श्रेष्ठिनी १७९ पावनिकेतन पुंडरीक गणधर ९८, २१८ पावनेतुः सदन पूनपाल श्रेष्ठी पार्श्ववीर श्रेष्ठी पूनसिंह ७१, ८४ पावसाधु १४३ पूनसी १९४, ३६४ पाविलगणि पूनाई श्रेष्ठिनी पालउद्र ग्राम पूनाक श्रेष्ठी पाल्हण ठक्कुर १७. पूर्णकलशगणि ११५, १४२ पाल्हणसिंह पूर्णतल्ल गच्छ १४८ पावटी नगर ३१९ पूर्णदेव १७२ पुरुषाक ३०२ १९४ ७ १२० श्रेष्ठी श्रेष्ठी Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किम् पत्रांक v श्रेष्ठी N - - श्रेष्ठिनी ७१ श्रेष्ठी ३२० फूदी परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम पूर्णदेवी श्रेष्ठिनी प्राग्वाट ज्ञाति पूर्णप्रसाद श्रेष्ठी प्राग्वाट वंश ७१, ७६, ८४, ९५, पूर्णभद्रगणि लेखक ७०, ११३, ११४, २८५ १७२, २५३, ३५० पूर्णभद्र प्रियमति श्रेष्ठिनी ३६१ पूर्णसिंह प्रेमराज श्रेष्ठी पूर्णिमापक्ष गच्छ १२१, १७७, ४७१ प्रेमिका श्रेष्ठिनी पृथिवीदेवी पृथ्वीधर ग्रंथकार १६१ फतूबाई श्रेष्टिनी ३५४ पृथ्वीपाल राजा १०, १९, १०६ फम्मण पेथड श्रेष्ठी फलवचिकापुर नगर पोरुयाड वंश श्रेष्ठिनी पौषधालय धर्मस्थान ३६० प्रतापदेवी श्रेष्ठिनी प्रतापसिंह लेखक बकुलदेवी श्रेष्टिनी श्रेष्ठी ९२ बकुलश्री प्रतिपदा तिथि ३२७ बडुआक जोषी लेखक प्रतिमा १०३, १९४ बप्पभट्टिसूरि प्रतिष्ठा १२, १४३ बलवंश वंश २४४ प्रत्यागदास बलात्कार गण प्रद्युम्न बलालदेवी श्रेष्टिनी ३६१ प्रद्युम्नसूरि ७७, ९६, ११९, १२१ बलिराज राजा प्रबोधचंद्रगणि ८१, १४२ श्रेष्ठी ११, १५, ३१, ३२, ४० प्रभवस्वामि ८७, १०४, ११७, ३५९ बल्लाल ठ. प्रभाकरगणि १५९ बहादुरपुर नगर २१० प्रभावती महत्तरा साध्वी बहुदेव ९२, १४३ प्रभास गणधर ११७ बहुदेवी श्रेष्ठिनी प्रमोदचंद्र मुनि १४२ बहुपाल श्रेष्ठी प्रमोदमाणिक्यगणि श्रेष्टिनी प्रमोदमूर्ति ११५ बहुश्री प्रयागदास श्रेष्ठी २०६ २१४ प्रश्नवाहन कुल १०८, १७७ बंदिर २९५, ३१० प्रसन्नचंद्रसूरि ८८, १०२ बंदिराज लेखक ३ प्रहोदनपुर नगर ५, ६१, ११५, ११९, बंधक १४२, १४३, २८५, ३५६ बाफणा गोत्र प्रहादन श्रेष्ठी बारेजा ग्राम १७८ ३०२ ३१६ प्रेती ७२ س श्रेष्ठी ३६१ १७९ २४३ बहुरी बंदर श्रेष्ठी २२४ Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किम् २८२ श्रेष्ठी गोत्र बूटिक ३५० २५ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगताना [तृतीय विशेषनाम पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक बालचंद मुनि भणसाली गोत्र १९३, १९४, ३६४ श्रेष्ठी भद्रगुप्तसूरि १७३ बालप्रसाद भद्रबाहुस्वामि ११७, १२२, १७३, ३५९ बालबृहस्पति राजा(?) १७४ भद्रेश्वरसूरि १२८ बालोतरा प्राम ३२८ भरद्वाज बाह्ड श्रेष्ठी १२, ९१, ९५ भरमादेवी श्रेष्ठिनी बाहुपुर नगर भतृहरि ऋषि बाहुबल अमात्य भवभावना पने प्रथमवेला व्याख्यान बिकानेर १९१, १९४ नगर भवभावणा पढ़े द्वितीयवार व्याख्यान बिल्हण लेखक भवभावना पढ़े तृतीयवार व्याख्यान भवभावना चतुर्थवार व्याख्यान तिमिरपाटके ८७ बीकानेर नगर १९०, ३१६ भवभावना पढ़े पंचमवार व्याख्यान भवविरहसूरि बुद्धिसागरसूरि ८८, ९८, १०२, १०४, ११८, भंडशाली १०१, ३६४ १४२ मंडार नगर भंडारी गात्र बृहत्खरतरगच्छ २२६, २९७, ३०२, ३०६, ३१२, भाऊ श्रेष्ठिनी ३६० ३२२, ३२३, ३६४, भागुरि ग्रंथकार बृहत्खरतर वेगड़गच्छ २१४, २२६, २४१ भादा बृद्गच्छ भानुविमल गणि २९५ बोधक आचार्य भारतवर्ष बोधिस्थ श्रेष्ठी १०७ ४, ५, ८५ भारती गच्छ बोहडि भारती श्रेष्ठिनी बोहित्थ भार्गव महर्षि ब्रह्म गच्छ भावदेव श्रेष्ठी ब्रह्मचंद्रगणि लेखक भावधर्मवाचक २५६ , पंडित भावसुंदरयतेः व्रतोत्सव ब्रह्मदेव भानां श्रेष्ठिनी ब्रह्ममूर्ति उपाधि भांडकार ब्रह्मशांति ३१ यक्ष भांडशालिक शाखा ३५९ ब्रह्माण गच्छ ६१, ८६, १०१ भांडागार ११, १८२, १८४, १८६, १८७, ब्राह्मण ज्ञाति १३२ १९४, ३०९, ३२४, ३६४ भांडागारिक गोत्र २५ भिल्लमाल ८९, ११०, १११ भक्तिमंदिर लेखक-मुनि २०९, २१५, २२३, गोत्र २२५, २२७ वंश १३० श्रेष्ठी देश १०३ मुनि श्रेष्ठी १७९ २५४ २७८ Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ पत्रांक १११ देश ६४ ११७, १७७ १९१ श्रेष्ठी २८. ग्राम ३१६ " २७० ७७, १३२ २५ १२० ३७, ३८, ३२८ १७४ परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् भीम श्रेष्ठी ९२, १४८, ३६० मथुरा भीमदेव महाराजा ६९, ८७, १०५, १०६, मदन श्रेष्ठी मदनाग १८४, १९२, १९३, १९४, २३२, मध्यमा शाखा भीमदेव ३६ ३५० मनसुखदास भीमपल्लीपुरी मयाचदजी लेखक-मुनि नगर भीमसिंह श्रेष्ठी ७२, १०३, १७१, मयूरसीमा १७८, ३५८ मरघा श्रेष्ठिनी भीमसी संघवी ३५० मरुकोट्टदुर्ग नगर मरुदेवा श्रेष्ठिनी भीमसेन राजा मरुभूमि देश भीलमाला २१२ गच्छ श्रेष्ठी मरुमण्डल भुवणिग मरुस्थल भुवनक १४४ मरोटकोट्ट नगर भुवनचंद्र मलधारी गच्छ भुवनतुंगसूरि मलयगिरि आचार्य भुवनपाल श्रष्ठी ३८, ७७, ११६, ११९, मलसाह श्रेष्ठी १२० मलिकवाहणस्थान भुवनराजगणि ३२८ मल्हण श्रेष्ठी प्रेष्ठिनी महण भुवनेश्वरी महत्तरी साध्वीपद भगुकच्छ नगर ११०, १५३, १६०, महन श्रेष्ठी महमूद राजा २४१, २५१ महसेनसूरि भोजराज गणि महागिरि भोपला अष्टिनी १०३, १४४ महात्मा महादेव महादेवी प्रन्थ मकसूदाबाद नगर ३३७ महाप्रतिष्ठा मठस्थानक ग्राम २८२ महावीर तीर्थकर माहड ग्राम मणकाई प्रेष्ठिनी २१५ महावीरबिम्ब मणिभद्रगणि ११५ महिका श्रेष्ठी मतिकीर्ति प. महिपाक लेखक मतिभद्रगणि महिपाल मतिसागर पं. लेखक-मुनि २१६, २३२, २५४ महिममंदिर २९६ १६१, १७८ १९१ १९४ २७८ ग्राम भुवनी देवी ३२८ ९५, १०४, १७४ ७३, २६६ १४४ मेहरा १७० ३२८ ११७ १९०, १९१, १९४ ३२८ ३२९ १७९ ९०, ३४३, २६५, १०३ २९४ १२५ ८७, १४४, १७४ १९४ ३२२ श्रेष्ठी मुनि Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m वंश . १ २२६ श्रेष्ठी १७० श्रेष्ठी ग्रंथकार ० ४२८ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां [ तृतीयं विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक महिमराजगणि २४, ३००, ३०३, माणेक श्रेष्ठी ३०६, ३१६ माण्डलिक विहार प्रासाद महिमलाभगणि माण्डव्य पं० १३४ महिमसमुद्र पं. २१९ माथुर २०७ महिमसुंदरगणि ४७, ३१०, ३६४ माधलदेवी श्रेष्ठिनी महिमासमुद्र पं. लेखक-मुनि २२६, २४३ मानतुग प्रासाद १०, १८ महिमाहर्ष पं० मानदेव १४३ महीतिलक पंडित मानदेवसूरि महीन्द्र मानसिद्धि गणिनी साध्वी ३१० महीपति मानसिंघ गणि महीराज १७, १८, १७९, मानसिंघ मुनि २५१ २१०, ३६० मानसिंह महीलण मानांक पंडित १४८ महीसमुद्र वाचक ३५० मानू प्रेष्ठिनी २१५ महेन्द्र ८० मामल्लदेवी श्रीहर्षमाता १४५ महेन्द्रनृप বলা १०० मालदेव विजय राजा ६२, २५६ महेन्द्रसूरि ११९, १२१, १३१, मालव देश १५५, २६२, २६९ ३२५ ३६२ मालारोपोत्सव उत्सव महेवा ग्राम २९४ माल्हणदे श्रेष्ठिनी १७९ महेश्वरकवि प्रन्थकार १५० माहण श्रेष्ठी ३५८ मंख १३० माहेश्वर ७७, ११९ मंटजिनेशमंदिर मांडण जोषी २३५, ३३० मंडन मांडलिका श्रेष्ठिनी ३६० मंडप ३६, १०६ मांडव्यपुर नगर ४ मंडपदुर्ग नगर १२३, २६९, ३०० मियावई प्रवर्तिनी मंडली प्राम . २५, १२८ मीमांसक संप्रदाय मंडलीक श्रेष्ठी मीरामबीरषश्याह राजा मंडिक गणधर ११७ मुकुट मंडोवरा ज्ञाति १७८ मुकुलभट्ट पंडित । १३३, १३९ मंत्रीदलीय वंश मुणाग १३२ माऊ श्रेष्ठिनी मुनिचंद्र उपा. माणिक श्रेष्ठी ३५८ मुनिचंद्रसूरि ___ २८, ७१, ८६, ९१ माणिकि श्रेष्ठिनी १०९, ११० माणिक्यपाटकपुर नगर १७०, १७१ मुनिप्रभगणि २५५ माणिक्यसूरि मुनिसिंह गणि लेखक २८९ ८४ लेखक श्रेष्ठी ३६३ ९२ २९५ १९२ श्रेष्ठी Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ م १७८ ل नगर लेखक م १८७ श्रेष्ठी १६५ १०५ " ३१६ मुनि मूला परिशिष्टम्] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४२९ विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम पत्रांक मुनीन्द्रसूरि १५३ य मुरारि पंडित १३९, १५३ यक्षदेव श्रेष्ठी मुलतान ३०० यवन १७९ मुलासी यवनधीश १९४ मुंजला श्रेष्ठिनी यशःकीतिगणि लेखक २८५ मुंडहटा ग्राम यशश्चन्द्र श्रेष्ठी ९२, ९५ मूलदेव ९५, १०३ यशश्चन्द्रसूरि ९१, ९४ मूलनारायणदेवीय मठ यशःपाल श्रेष्ठी मूलराज राजा यशःसूरि श्रेष्ठी ९२, १७९, १८० यशोघोषसूरि मूलसंघ यशोदेव श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी मूंजालदेव मंत्री १०४, २९४ , उपा० मृगाई श्रेष्ठिनी २१० यशोदेवसूरि २८, ७१, १०१, १११ मृगादे २९४ यशोदेवी श्रेष्ठिनी ४, ८८, १२० मृगावती यशोधन १७२ मेघराज श्रेष्ठी १९४, ३६४ यशोधर भट्ट १५० मेघविजय गणि यशोधवल पं० १६० श्रेष्ठी श्रेष्ठी ३८, ७७, ९१, ९२, ९३, १०२, १०३, मेतार्य गणधर ११७ ११६, १२०, १९४ मेदपाट ग्राम ११६ यशोनाग मेदपाठ ज्ञाति ३२७ यशोभट मेया लेखक-मुनि २९७ यशोभद्र मुनि मेरुमुनिवाचक " , २४, १८२, २६१ यशोभद्रसूरि ७४, १११, ११७, मेहा श्रेष्ठी १२२, २९७, ३५९ मेहाजल पं० यशोराज श्रेष्ठी ९१ मोक्षदेव श्रेष्ठी १७८ यशोवर्द्धन २५ यशोधर्द्धनसूरि १६४ मोषदेव यशोवीर मुनि-लेखक मोषू श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी ९२, १०३ मोहण श्रेष्ठी १०६, १७८ याकिनी महत्तरा प्रवर्तिनी मोहिणी श्रेष्टिनी १०३ यात्रा मोंडपुर प्राम २७१ यात्रोत्सव १७९ मौढ ज्ञाति ३३१ यादव कुल ३०२, ३६४ मौर्य पुत्र गणधर ११७ प्रथकार श्रेष्ठी लेखक मेघा मेडता देश श्रेष्ठी यति १४३ मोढ वंश श्रेष्ठी " Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ तृतीयं पत्रांक १७८ ३४१ २१६ १२ ३०८ योद्धपुर २५३ " १९१ ११० ९५, १०८ श्रेष्ठी १४४ १८१ ६९, ३१५ जैसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् युगप्रधान राजपाल श्रेष्ठी युगादिजिनालय चैत्य १०३ राजपाल युगादिदेवतीर्थ २०७ राजपुर नगर युगादिदेव तीर्थकर ९५, ९६, ९९, ३५८ राजशेखर पं० लेखक-मुनि युवराजपद राजसिंह श्रेष्ठी योगिनीपुर नगर २०७ राजसिंहविजय राजा २५६ राजहंसगणि योधपुर राजा श्रेष्ठी राजिणी श्रेष्ठिनी राजिनी रउला श्रेष्ठो राजीमती रणसिंह ठक्कुर १७० राजुका रतनसी १९१ राजू रत्ननिधान मुनि पं० राडद्रह नगर रत्नपाल श्रेष्ठी राणा रत्नप्रभसूरि राणिका अष्ठिनी रत्नरंग उपा. २५५ राणी रत्नशेखरसूरि २४९ रत्नसमुद्र पं० राम श्रेष्ठी रत्नसिंह श्रेष्ठी ९२, १०२, १४४, रामचंद्रगणि १७४ रामदासाचार्य रत्नसोममुनि लेखक -ग्रंथकार २१४, २१६, २४१ रामदेव लेखक रत्नदेवी श्रेष्ठिनी रायचंद्रगणि रत्नी ५, ८३, ९१, ३६१ राल्हाक श्रेष्ठी रभस ग्रंथकार १३० राल्ह श्रेष्ठिनी रमा श्रेष्ठिनी ११९ रासला रमाई २१० राष्ट्रोढ वंश रली रांवदेव श्रेष्ठी रंगाई श्रेष्ठिनी २४६, ३६० रिणमल्ल पं० लेखक-मुनि राउत श्रेष्ठी १०३ रिसहजिण तीर्थकर राउल २१६, २१७, २३२, रिसासी ग्राम ३०२, ३४१ रुक्मिणी श्रेष्ठिनी राकापक्ष गच्छ १२४, २७१ रुद्रजी लेखक राजदेव श्रष्ठी १४३, १४५ रुद्रपल्ली नगर राजनगर नगर १०२ रुद्रपारखीय ९२, १७९, २९४ राणू मुनि १५२, १५६ ८५, १५७ ३२१, ३४१ ६४ ९१ ३२८ १०९ ३००, ३०३ ८६, २६९ २९७ ९२ ३२७ १५० ८७, ३२५ गच्छ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] विशेषनाम रुल्हण रूपल रूपा रूपाई रूपादे रूयड रेवतगिरि रैवताचल रोहाइय रोहिणी लक्खुका लक्षिका लक्ष्मण ठ० लक्ष्मण लक्ष्मणी लक्ष्मसीह लक्ष्मणी लक्ष्मी लक्ष्मीकीर्ति गणि लक्ष्मीचंद्रगणि लक्ष्मी तिलकगणि लक्ष्मीधर पंडित "9 लक्ष्मीरंग पंडित लक्ष्मीसमुद्रगणि लक्ष्मीसागरसूरि लखमाई लखा लटकण लड्डी लब्धिनिधान ललतू ललितादेवी किम् श्रेष्ठी श्रेष्टिनी 33 "" 25 तीथ नगर तीर्थ ग्राम श्रेष्ठिनी ल श्रेष्ठिनी "3 लेखक श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी लेखक श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी मंत्री श्रेष्ठिनी मुनि श्रेष्ठिनी "" विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम पत्रांक ५९ १०३ २१० ३०८, ३६० ४० १४४ १०६ १७९, १९० ३५० १०६ २८३ ८९ १४३ ७२ ८९ १०३ ८४ ७८ ९१, ९२,१४३, ३५८ ३२२ २३४ ११९, १४२ १११, १३६ ४, ८५, ९५, १३२ १७५ ३३२ २४९ ३५० ३३५ २९३, २९४ ८५ ११, १९ ९२ ३५० लवणखेट लहर ठक्कुर लहूजी व्यास लाखण लाखुका लाखू "3 लाछू लाड लाडिम लाडी लाभपुर लालचंदजी वाचक लालबाई लिहवेह लिंबचंद्र बिर्या लीलादेवी लीलुका बाक पुरोहित लूणकर्ण लूणदेवी लूणा लूणिग लोहट लालविजय मुनि लावण्यसिंह ब्राह्मण लेखक "" लोहदेव लोहिनी वइजू वउध वकत्तु वखतमलजी पं. किम् नगर दंडधर लेखक श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी "" देश श्रेष्ठिनी 37 नगर मुनि श्रेष्ठिनी 33 श्रेष्ठी देवी श्रेष्ठिनी श्रेष्ठिनी लेखक राजा श्रेष्टिनी श्रेष्टी "" श्रेष्ठी नगर श्रेष्टी श्रेष्ठिनी व श्रेष्ठिनी श्रेष्ठी साध्वी मुनि ४३१ पत्रांक ३६, ३८ १०५ ३१४ ९२ ७१ २८२ ९१ १०३ ७४ २७० ८६, १०३ २४३, ३२१ ३२३ २५२ ३१९ १३२ ४३ ૮૪ १२५ ३६० ७२ ३०२ ३१६ ७१ ६५, ९२, ३५९ ८०, ३२९ १०, १९ २८७ १४३ १४४ १०३ २९४ २४६ २२३ Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [तृतीयं किम् देवी श्रेष्ठी ग्रंथकार " १३० ANS १०० م ग्राम १५३ १३ ११७ श्रेष्ठी ९२ १०६ ur mr जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां विशेषनाम पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक बचावा प्राम १२१ वागेश्वरी वच्छक वाग्देवी ३२८ वज्र शाखा २९, ९८, १०४, वाचक १३, ६०, ११३, २८० १११, ११७ वाचनाचार्य ८७, १४५, ३५६, ३६० श्रेष्ठी वाचस्पति वज्रसिंह वाच्छ श्रेष्ठी वज्रसेनसूरि २४४ वाछामंत्री लेखक ३५९, ३६०, वज्रस्वामी ८५, ८८, ११७, २४४, ३५९ वाणिज्य कुल १११ वटप्रद्र __ नगर ७४, ८८, १५९ वाणी वडगच्छ १०४ वादिराज ३२९ वदरसिद्धि वामनस्थली नगर वनराज राजा १०५ वायग वनेचंद लेखक-श्रेष्ठी २६२ वायुभूति गणधर वयजल वार वयजलदेवी श्रेष्ठिनी ९२ वार्तिक १५९, १६५, २३३ वयरसिंह राजा १६ वालब्भ वरणू श्रेष्ठिनी २९४, ३६० वाल्मीकि महर्षि १६७ वरद गोत्र वासप ग्राम वरदेव श्रेष्ठी ४, ९५, १०३, १०४, वासुपूज्य तीर्थकर १४३, १७४ वारि साधु वरसिंध वाहला श्रेष्ठी राजा वांकुलदेवी वर्धमानजिन तीर्थकर १२४, १५१, २७०,२९९ वांकुलांबा वर्धमानजिनसंवत्सर २९७, ३१६ विक्रमद्रंग वर्धमान श्रेष्ठी ८८, ९२ विक्रमपुर वर्धमानसूरि ८५, ८८, ९१, ९८, १०२, १०४, विक्रमवप्र ११८, १४२, १४८, १५१, १७९, विक्रमसिंह १९०, २४४, ३१६, ३५९ विग्रहराजदेव राजा वर्धापन विजमल श्रेष्ठी वर्षाऋतु ३२१ विजय ११५, ३५८ वलभी नगर ३९, १४१ विजयकीर्तिमुनि वल्लभराज राजा १०५ विजयचंद्र गणि वल्लाल १५५ विजयदशमी तिथि ३२० वसन्तोत्सव १५५ विजयदानसूरि ३२२ वस्ता श्रेष्ठी विजयदेवसूरि ११८, १५२, ३१० १४२ मुनि वरांग ३१६ देवी له .5 Mr له नगर سه 5 له سه . श्री ی श्रेष्ठी १४५ ० १९४ Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० ه m م و م س و वंश م ک که له वीरक ११३ परिशिष्टम्] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक विजयमती श्रेष्टिनी विल्वक श्रेष्ठी विजयराजगणि २२६, ३०३ विशददशमी तिथि विजयसिंह श्रेष्ठी ७१, ७२, ९२, १७१ विशालसत्यगणि विजयसिंहसूरि १०० विश्रान्त ग्रंथकार विजयसेन राजा १५१ विश्वप्रकाश विजयहर्षगणि वाचक १४५ विश्वलदेव राजा विद्यादेवी ३, १०७ विषयदण्डाज्यपथक विद्याधर गच्छ १०५ विषयपथक ६४, २९४ विष्णुदास राजा विद्याधरी शाखा ११७ विध्यगिरि विद्युत्पुर नगर वीजापुर नगर विधिधर्म १४४, १५२ वीण्हुका श्रेष्ठिनी विधिपक्ष १८७, १९४, २०५ श्रेष्ठी ३९, ८५ विधिपथ १२, ७७ वीरकलशगणि ११९ विधिमार्ग वीरगणि विनयकुमार गणि २४६ वीरचंद्र मुनि १२१ विनयप्रमोद गणि वीरजिनचैत्य चहावल्ली प्रामे १०६ विनयमेरु गणि लेखक २७९ वीरजिनभवन ८९, १०१, १४७ विनयलाभगणि ३२० वीरजिनमूर्ति विनयसुंदर लेखक-मुनि २२०, २४८ वीरड १०३ विनामिका श्रेष्ठिनी ३६० वीरतीर्थ विनीता नगरी ३५८ वीरतीर्थकर श्रेष्ठिनी विपुलमती १३, १५, १०४, १५६, २३४, २४४, २८२, २८३, २८७, ३५९, विबुधप्रभ १०२ ३६२ विमल श्रेष्ठी ४०, ९३, १७९ विमलकीर्तिगणि १४५, २४६ वीरदेव १०८ विमलचंद्रगणि श्रेष्ठी १०, १३२ श्रेष्ठी १४३ वीरधवल विमलचंद्रसूरि वीरनाग विमलतिलकगणि १४५ पंडित विमलमती श्रेष्ठिनी १४४ वीरपाद देवीस्थानक विमल मंत्री १०५, १०६ वीरपाल १३२, ३६१ विमलशैले प्रतिष्ठा १२ वीरभद्रसूरि विमलसूरि वीरम विमलेन्द्रसूरि ३२५ वीरमगाम नगर विरहलांछन आचार्य १३३ वीरमदेव राणा ३२० श्रेष्ठी मुनि १४५ س س २७१ वीर م श्रेष्ठी १५३ श्रेष्ठी . Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किम् श्रेष्ठी 4 4 . हु । 1854 ग्राम २८२ १०, १८ २७९ श्रेष्ठी ४३४ जेसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां [तृतीय विशेषनाम पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक वीरमपुर नगर ३१० व्यक्त गणधर ११७ वीर मंत्री व्याडि ग्रंथकार वीरवती श्रेष्ठिनी व्यास गोत्र २७८, ३१४ वीरश्रेष्ठी व्रतोत्सव वीरसद्म चत्य १७१ वीरसिंह उपाध्याय २३० वीरसूरि ८५, ८६, १०१ शतपत्रप्रामे नेमिपार्श्वयोर्बिम्बे १०३ वीराई श्रेष्ठिनी ३५० शत्रुजय तीर्थ ५, ६४, १७९, २६८, वीरातरा २२० २९४, ३५०, ३५९, ३६०, वीरी श्रेष्ठिनी २६२ वीरोधी शत्रुजयदेवदेवकुलिका वील्ह श्रेष्ठी ११९, १७९ शमि श्रेष्ठी वीसल राजा शय्यभवसूरि २९, ८७, ११७, ३५९ ८६ शरणिग श्रेष्ठी ८४, ८९ बूटिक नगर शव १२५ वृद्धखरतरवेगडगच्छ २२६, २४४ शशधर कुल वेगडगच्छ २००, २०१, २१४, २५४, ३०३ शशांकधर पंडित १६२ वेगडविरुद २१९, २२०, २२४, २४४ शंकर भट्ट १६२ वेजयंत देवलोक शंखलवाल १९१ वेडू श्रेष्ठी १७८ शंखवाल २९४ वेणीदास लेखक ३५६ शंखेश्वरापार्श्वनाथ २२७ वेन्नातट नगर ३२३ शंभवनाथदेवगृहस्थापनामहे राजती मुद्रां प्रददौ १९४ वेल(सी) श्रेष्ठी २६२ शंभु २६८ वेल्लक ३९, ८५ शाकंभरि १३६, १५५ वेल्हक १२४ शाखा २०४, ३००, ३२२ वेहक लेखक शालिग श्रेष्ठी १०३ वैर श्रेष्ठी शालिभद्र २९, ११२ वैरसिंह ७१ शालिभद्रसूरि ७०, ८५, १२३ वैरिसिंह राजा १८. शाश्वत ग्रंथकार वैरोव्या शांतमती गणिनी साध्वी वैशेषिक संप्रदाय १६० शांति श्रेष्ठी वैसट शांतिजिनप्रासाद २४१, २५१ वोडसिंह १०३ शांतिनाथ तीर्थकर १००, १४३ वोसरि ८४, ८८ शांतिनाथबिम्ब ९४ वोहडि १६, ८३ शांतिनाथमंदिर १०० गोत्र sf : ४ 4.4 " १३० देवी ५२ श्रेष्ठी Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किम् कुल ज्ञाति V 9 परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४३५ विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम पत्रांक शांतिमती श्रेष्ठिनी २९, ३० श्रीधर लेखक १३२ शांतिरत्नगणि श्रेष्ठी २८, ११५, ३६० शांतिवल्लरी गणिनी साध्वी २६६ श्रीधर्म्य पंडित १३७ शांतिसूरि ७३, १११, १४८, २९७, ३०२ श्रीध्वजा १४३ शांती श्रेष्ठिनी १०३ श्रीपती ३२९ शांब श्रेष्ठी श्रीपादपूज्य प्रन्थकार १३४ शिवदिनसूरि श्रीपाल श्रेष्ठी २७० शिवदेवगणि ३४१ श्रीमती श्रेष्टिनी शिवनिधानगणि २२६ श्रीमल्ल श्रेष्ठी १९४, ३६४ शिवराज मंत्री १७९, २९४ श्रीमाल १२, १४५ शिवहर्षगणि लेखक ३२२ शिवादेवी श्रेष्ठिनी वंश ८, २५, ३२, ४०, ४२, शीतपुर नगर २५२ १६९, १७१, २८२, ३५८, शीता श्रेष्ठिनी ८९ ३६१ शीलदेवसूरि ३३० श्रीमालपुर नगर १०५ शीलभद्रसूरि २५, ७० श्रीराज मंत्री २९४ शीलमती श्रेष्ठिनी ९४, ९५ श्रीराटहूद ग्राम ३०१ शीलाचार्य १, ९३ श्रीरास २९४ शीलांकाचार्य १०५ शीलुका श्री श्रेष्ठिनी ८४ शुभविजय ३१९ श्रीस्वामि पंडित १४१ शुल्कशाला श्रुतदेवता १०७, २४५ शुषमिणि श्रेष्ठिनी १३२ १०१, १३८ श्रेयांसजिन तीर्थकर ३१० शृंगारदेवी श्वेतांबर संप्रदाय १६०, २४४ शेषभट्टारक पंडित १५६ *वेतांबर यति २९७ श्वेतांबराचार्य ७४, २६५ शोभनदेव श्रेष्ठी ११० शोल्लिका श्रेष्टिनी १०३ सकलचंद्रगणि ३२५, ३५६ श्यामल पं० १३७ सक्तिपुर २४८ श्रीकृष्ण १७६ सगणिव श्रीचंद श्रेष्ठी ९५, २९३ सज्जन ८५, ८६, ९३ श्रीचंदमूरि १०५ धेष्ठिनी श्रीदेवी श्रेष्ठिनी ८९, ९१,९२, १४३, सज्जना १७१, ३६१ सज्जनी श्रेष्ठी श्रीवर श्रुतदेवी शृंगारदे ४० ७१ शैक्ष नगर श्रेष्ठी Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विशेषनाम " r m4 लेखक १७२ m १२ " १५८ १४२ सत्यपुर सत्यपू: सत्यशील सदारंग पं० सदेव सद्धर सद्भावलांछन सप्तक्षेत्री सप्तचैत्य सप्तफणापार्श्वनाथ सभाचंद समधर समधरधी समयकल्लोल समयराज पं० समयसुदरगणि समयहर्षगणि समालखानडेरा समुद्रमुनि पं० समुद्रोद्यतसूरि समुद्धर सरस्वती ३६० २८२ राजा जैसलमेरुदुर्गस्थशानभंडारग्रन्थसूचीगतानां [ तृतीयं किम् पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक नगर २५, ३३५, ३६० सवाईयुगप्रधान विरुद १९३, २६५ २७० सवाईवेगडविरुद २२० मुनि ३०६ ससिप्रभ १०० २५१ सहजकीर्तिगणि ३१२, ३४१ श्रेष्ठी २५ सहजगति श्रेष्ठिनी सहजल श्रेष्ठी आचार्य १३३ सहजलदेवी श्रेष्ठिनी सहजला १९४ सहजिग लेखक सहणपाल श्रेष्ठी श्रेष्ठी २४८ सहदेव " ३८, ७७, ९२, ११६, १२० श्रेष्ठिनी सहसमल्ल २७९ लेखक-मुनि ३२२ सहस्रकिर्ण श्रेष्ठी २९४ ___२४ सहस्रकिरण ३४९ लेखक-ग्रंथकार ३२५, ३५६ सहस्रराज १७९ सहिगिल २०६ नगर २७२ सहिजला श्रेष्ठिनी ९२ लेखक-मुनि २६५ संखेटक २६२ २४४ संगमखेटक श्रेष्ठी ११६, १३२ संघ साधु साध्वी श्रावक धाविकारूप ६४, ३६० देवी ९८, १११, १३३, १३८, संघतिलकसूरि ३२५ १४०, २३४, ३४१ संघपट्टक ११८ श्रेष्ठिनी ४, ५, १०, १९, ३८, संघपति ३५०, ३६० ९१, १७८ संघवाणी ३०० ३३० संघवी २१५, ३५० श्रेष्ठी ९१, ९३, ९५, ३६१ संघसोमगणि २३५ ७९, ८५, ११३, ११८, १३२, संघाटिक २५३ १५२, १५७, ३६३ संघेशपद १२१ संडथल श्रेष्ठिनी ९१, ९३ संडेर गच्छ लेखक संतिजिणभवण श्रेष्ठी संतुक श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी संपिका श्रेष्टिनी मुनि १६५ संपूर्णा ३०६ नगर नगर सरस्वतीपत्तन सर्वदेव सर्वदेवसूरि १७९ प्राम सर्वानंदसूरि सलक्षणा सलषाक ठ० सल्लक्षण सल्लक्षण सल्हण Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किम् लेखक श्रेष्ठी लेखक ३५८ गोत्र ऋषि परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची विशेषनाम पत्रांक विशेषनाम किम् पत्रांक संप्रति महाराजा ११७ साम संभूतविजय ११७, १२२ सामंत ३२९ संवत्सर २९७, ३१६, ३१९ ९२, १०२, ३५८ संसारदे श्रेष्ठिनी ३४९ सामंतसिंह साइया श्रेष्ठी २, ३, ७, १७, १८, सायणवाड प्राम १०६ ___ २०, २२, २३, ३३, सारंग श्रेष्ठी १९१ सारंग साई श्रेष्टिनी ९२ सारंगदेव राजा साईया श्रेष्ठी ५, ९, १४, ३१, ३५, सालिग श्रेष्ठी ४१, ४६, १३४ सालिसूरि २९७ साउसक्खा २९३ साल्हण श्रेष्ठी ४, ५, ५९, १०३ साऊ श्रेष्ठिनी १४४ साल्ही श्रेष्ठिनी २८२ सागर ३४९ सावित्री ९२, ११६ श्रेष्ठी २६२ साहड श्रेष्ठी सागरचंद्रगणि २९७ साहण सागरचंद्रसूरि २९७, ३००, ३०२, ३०६, साहिसलेम १९३, ३६४ ३१६, ३२१, ३४१ साहु हेमा साचा श्रेष्ठी सांख्य संप्रदाय १६. साढ सांगण श्रेष्ठी १७८ साढक सांगाक उ० लेखक साढदेव ३६१ सांगा मंत्री साढल ३६, ११९ सांपट स्वर्णिक श्रेष्ठी साढलही श्रेष्ठिनी ३७, ११६, १२० श्रेष्ठिनी साढा ठ० २७, ३२, ४२ सितपटगुरु सादेव पंडित लेखक सितपत्रपुर साधर्मिक सिद्ध श्रेष्ठी ९१, ९३ साधर्मिकवात्सल्यभोजनदान सिद्धधवल साधारण श्रेष्ठी १२, २९, ८५, ९३, सिद्धराज राजा १०१,१०६ सिद्धवीर श्रेष्ठी ८८ साधारणकवि मुनि १११ सिद्धसूरि ६८, १०१ साधुकीर्ति उपाध्याय ४७, १४५, ३१०, ३६४ सिद्धसेन दिवाकर २०७ साधुरत्न २९९ सिद्धसेनसूरि १११ साधुसुंदरगणि वाचनाचार्य सिद्धान्तकोश ७, ९, १४, १८, २०, २३, साधुसोमगणि लेखक-मुनि २६९ ३३, ३५, ४१, ४६ साभट श्रेष्ठी सिद्धान्तभाण्डाकार श्रेष्ठी सांपू नगर Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रांक [तृतीय पत्रांक ३२० . ३१, ६४, २९७ १८१, १८७, १८८ ३२९ देवी १२. नगर २१४ श्रेष्ठी २९५, ३१० ३६० १४३ ११७ ११७ ३८, ९३ १७५ १०३ सीतु श्रेष्ठिनी " ४३८ जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगतानां विशेषनाम किम् विशेषनाम किम् सिद्धान्तरुचि उपा० २६९ सुमतिसुंदरगणि सिद्धान्तसंग्रह ३५९ सुमतिसूरि सिद्धायिका १०९ सुमतिसेनगणि सिरपति श्रेष्ठी ३४९ सुमतिहर्षगणि सिरोहा नगरी १११ सुमतिहेमगणि लेखक सिल्लण लेखक ११० सुयदेवया सिवनंदिवाचक १३ सुरतिबंदर सिंधु देश २५२, ३४१ सुरपति सिहगिरि सुशर्म नगर सिंहतिलकसूरि २६. सुस्थित सिंहबल राजा १३१, १३२ सुषमता श्रेष्ठिनी सिंहसूरि १५१ सुहस्ती सीणि श्रेष्ठिनी सुंदरी सीतादेवी श्रेष्ठिनी ४, ७२, ९१,९३,१७० सूपट पंडित लेखक सूमिणि सीधर श्रेष्ठी ३६० सूमक श्रेष्ठी सीधा सूमणबुध लेखक सीनंधर तीर्थकर सूमला श्रेष्टिनी सीमिका श्रेष्ठिनी सूमशाखा प्रेष्टिसन्तति सीलादिच्च राजा सूमाक श्रेष्ठी सीलुका श्रेष्ठिनी सूर सूरप्रभ वाचक सीहक श्रष्ठी सूरसुंदरसूरि सीहड सूराचंद नगर सुजाणविजयगणि सूर्यवंश सुधर्म गणधर ८७, १०४, ११७, सूहवदेवी श्रेष्ठिनी १५१, १९०, ३५९ सुहवा सुधवा श्रेष्ठिनी सेढी नदी सुप्रतिबद्ध आचार्य ११७ सेतव ५० श्रेष्ठिनी सेनापुर नगर सुमति श्रेष्ठी ८०, १०३ ग्राम सुमतिधर्म पं० लेखक-मुनि २४८, ३२८, ३२९ श्रेष्ठी सुमतिविजयगणि ३१९ सेवाक सुमतिविमलगणि ३२० सैतव सुमतिसिंहसरि १७० सोढल . सील ११३ २३६ २७९ २०६ लेखक ३१९ . .. सुभटादेवी सेरणा १३४ २३५ २५५ ७१ १०३ सेलू १३३ Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रांक सोणला " ३६० नगर श्रेष्ठी स्वल परिशिष्टम् ] विशेषनाम्नां अकारादिवर्णक्रमेण सूची ४३९ विशेषनाम किम् पत्रांक विशेषनाम किम् श्रेष्ठिनी स्तंभनपार्श्वनाथ १९० सोनपाल श्रेष्ठी स्तंभनपुर १४२ सोनाइबा श्रेष्ठिनी २९५ स्तुति १११ सोभना १७२ स्तूप ७७, ११६, १२० सोभाक श्रेष्ठी ३५८ स्तोत्र १११ सोभी श्रेष्ठिनी स्थाणु २६० सोमकीर्तिगणि १२५ स्थिरचंद्रगणि सोमकुंजरगणि स्थिरदेव श्रेष्ठी १०, १९ सोमगणि साधु ३६० स्थिरमती १७३ सोमजयसूरि स्थूलभद्रस्वामि ११७, १२२, २४३, ३५९ सोमटि श्रेष्ठी ८३ स्थेहड ८१ सोमदेव स्याणी श्रेष्ठिनी सोममुनि २४६ स्वर्णप्रभगणि १९४, ३६४ ग्राम सोमरत्नगणि २३५ सोमसिंह श्रेष्ठी ७२, ७७ सोमसुंदर वाचक २८० सोमसुंदरसूरि २३३, २५३, ३०८, ३४२ षट्पत्तन जनपद २२०, २६५ सोमहर्षगणि ३२२ षडेर गच्छ सोमाकर भंडारी सोहिक श्रेष्ठी सोहिणी श्रेष्ठिनी ४७, ८५, ९१, १०३ श्रेष्ठी ३६० सौधर्मगच्छ २४४ हरखो लेखक २९९ सौधर्मगण २४५ हरराज श्रेष्ठी सौभाग्यदेवी श्रेष्ठिनी हरसिंग सौभाग्यसमुद्र पं० लेखक-मुनि २७३ हरिकलश मुनि सौम्यमूर्तिगणि १५२ हरिणदशमी सौम्यसंवच्छर ३१९ हरिपाटक गोत्र सौराष्ट्र हरिपाल मंत्री सौरिपाद पंडित १३९ हरिभद्र श्रेष्ठी सौवर्णिक हरिभद्रसूरि ३१, ७०, ९४,१०५, १०६, स्तंभतीर्थ नगर २, ३, ५, ७, ९, ११, १६०, ३५९ १४, १५, १८, २०, २२, २३, हरियाक पुरोहित लेखक १४, २०, ४१, ४६, २७, ३१, ३२, ३३, ३४, ३५, ६७, १३४, १५७, २८७ ४१, ४२, ४६, ४७, ६७, ७२, हरिराज राजा २००, २२५, ३०२ १२३, १३४, १५१, ३५९ श्रेष्ठी १९४, ३६४ षट्कर्म हमीर देश २९४ ७ . श्रेष्ठी Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४० विशेषनाम हरिश्चन्द्र हर्ष हर्षगण हर्षकुंजर हर्षट हर्षति हर्षनंदन पं० हर्षनिधानगण हर्षपुरीय गच्छ हर्षप्रभ हर्षप्रिय उपा हर्षरत्न गणि हर्षसागर वा ० हर्षसार गणि हस्तू हंसरत्नगणि हंसराजसूर हंसला हंसाई हंसिनी हाजीखांनडेरा हाजी हायल हारी हारीत किम् व्यास श्रेष्ठी लेखक - मुनि ग्रंथकार श्रेष्ठी मुनि मुनि श्रेष्ठिनी श्रेष्ठिनी " १३३ ३०८ ३२५, ३६४ ३५६ १०८, १५३, १६१, १७७ २५१ ३२२ ३२९ २९७, ३५६ २२६ १७९ २१० ३४९ ८४, ९२ ३६० ३६, १२० २४८, ३४१ ४० 37 जेसलमेरुदुर्गस्थज्ञानभंडारग्रन्थसूचीगतानां पत्रांक २७८ २९४ ३५६ २५६ ग्राम श्रेष्ठी "" लेखक महर्षि ३६० २५६ १६७ विशेषनाम किम् देश हालार हीड हीर हीरला हीरविजयसूरि हीराई हीरा ठक्कुर हुंबठ हेमचंद्र हेमचंद्रसूरि हेम ठ० प्रभसूर भद्रसूरि समुद्रसूरि हेमसिंह हेमसूरि हेमा 23 हेरंब होला होला हट "" श्रेष्ठी कवि श्रेष्ठिनी श्रेष्ठिनी वंश श्रेष्ठी ३६० ९९ ९० १०४, १४४, १७४ २५, १०९, १३१, १५६, १६१, १७७, २०४ श्रेष्ठी श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी देव श्रेष्ठी श्रेष्ठिनी [ चतुर्थ पत्रांक कुल वंश २७१ ३६० १४५ १२०, १७६ २४२, ३२२ १७९ ७७, १२३ १७३ २१० १२ ९१, ९७ १६ ३०६, ३०८ ३२८ २८२ ७४ ९४ ९३ Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थं परिशिष्टम् सं. १८०९ रा पोस सुदि ४ दिने संभवनाथजीरे देहरै पुस्तकरो भंडार छै तिण पुस्तकरी टीप लिखीजे छै श्रीजेसलमेरुमै छै १२१ १ शतकवृत्ति २ न्यायावतार ३ प्रमाणव्यवस्था ४ काव्यालंकारसार ५ कातंत्रावतारटीका ६ आगमपरिच्छेद ७ राम काव्य ८ अंगविज्जापुस्तक ९ तर्कप्रकरण १० महादेवटिप्पन ११ न्यायग्रंथ तीजी गांठडीमें ए २२ परता छै पत्र २३८ १२ कृतपुण्यचरित्र , २३० १३ क्षेत्रसमासटीका १४ .........चरित्र १५ न्यायबंधटीका २०९ १६ चंद्रोद्योतकाव्य १६६ १७ वंदनविधान १४४ १८ वंदनसूत्र १९ कर्मग्रंथटीपणी १२४ २० किरातसूत्र २१ नैषधसूत्र स्वर्ग ५ ,, ३४९ २२ न्यायटीका २९९ १ कमलशील २ संघाचारपइन्ना ३ निशीथचूर्ण ४ जंबूदीवपन्नत्ती ५ ज्ञाताधर्मकथादिषडंगीविवरण ६ कल्पलताविवेकालंकार पत्र ३१३ ७ उपदेशपदटीका २९४ ८ समवायांगसूत्रटीका ९ नैषधटीका विद्याधरी , २३३ १० हैमचंद्रकृता लिंगादिवृत्ति ११ पृथवीचंद्रचरित्र ,, ३८९ १२ भगवतीवृत्ति ए प्रति १२ चोथा आंकरी गांठडीमांहि छै। 5.WWS. AN २५५ २२९ س १ स्यादवादकरीकर जैनतर्क ८ आदिचरित्र प्राकृत २ पन्नवणासूत्ररी टीका ९ पंचाशकवृत्ति ३ जीवाभिगमटीका १० पंचकल्पभास्य ४ मुनिसुव्रतचरित्र ११ आवश्यकचूर्ण ५ क्षेत्रसमासटीका " २३८ १२ वृहत्कल्पभाष्य ६ धर्मरत्नकरंडक २५० १३ आवश्यकचूर्ण ७ पिंडनियुक्तिविवरणटीका २४१ १४ ओघनियुक्ति एतली परत पांचमा आंकरी लांबा पानारी गांठडीमांहे परत छै १५ छै। ००० " १५७ و لم ४४२ १०९ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ संभवनाथजीरा देहरारे [ चतुर्थ पत्र १०० १४१ १ श्रावकसामाचारी २ जीर्णव्याकरणसूत्रटीका ३ संयममंजरी ४ कर्मग्रंथचूरण ५ कल्पसूत्र ६ शब्दानुशासन ७ पातंजलिभास्य ८ पिंडविशुद्धिप्रकर्ण ९ रघुकाव्य १० प्रमाणमीमांसा ११ काव्यराक्ष्यसंज्ञा पत्र १११ १२ उपदेशपद १३ कल्पचूरण १४ काव्यालंकारसार १५ आवश्यकटीका १६ सनत्कुमारचरित्र १७ सर्वधरव्याकरण १८ वदन्ताकथा १९ सामाचारी तिलकाचार्यकृत २० शतकचूरण २१ भाष्यवार्तिकटीका ४. २२ प्रथमकमग्रंथटीका ए पांचमा आंकरी गांठडीमाहै २२ परता छै। GK २०५ १८७ १७३ , ११७ , १११ पत्र १६० " १४० १ जीर्णअलंकारटीका पत्र ३०० १३ व्याकरण चतुष्कावचूरि २ चक्रिपाणिकाव्य , ११७ १४ उपदेशप्रकरण ३ उपदेशपद ११३ १५ चरचरीविवरणटीका ४ मंडपदुर्गवृत्ति १६ न्यायाथेमंजूषा ५ संग्रहणीटीका त्रूटक १७ नैषधकाव्य ६ कम्मपयडीसंग्रहणी ३०६ १८ संघणवृत्ति ७ दुर्गव्याकरणपंचक २७० १९ खंडनतर्क ८ प्रत्येकबुद्धचरित्र २७० २० मातृकाविवरणटीका ९ विलासवतीकथा २०५ २१ विवेकाख्यालंकार १० काव्यप्रकाश २२ उपदेशपद ११ रामनाटकन्यायालंकार २३ त्रेसठिसलाकाचरित्र १२ षोडशजिनचरित्र एती परत छट्ठा आंकरीमांहे गांठडीरे परत २३ छै सही। १०९ १४० पत्र २३३ १०१ १ पंचासकवृत्ति पत्र २६१ ९ ज्योतिष्करंड २ धातुपाराइण हेम " १८१ १० भगवती प्रथमखंड ३ नेमीचरित्र ३५५ ११ ओघनियुक्तिभाष्य दशवेकालक त्रूटक १२ अनुयोगद्वारचूणी ४ गीतभास्य १३० ५ तर्कग्रंथ १३ सूरपन्नत्तीटीका ६ पिडनियुक्ति १४ चंदपन्नत्तीटीका ७ कुवलयमाला संकीर्णकथा २४३१५ पद्मचरित्र ८ उपदेशमाला संकीर्णकथा ., २७४ १६ कल्पव्यवहारचूणी एतली परत सातमा आंकरी गांठडी मोटी लांवा पानारी तिणमां प्रति १६ है। " ३१० २६० Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] पत्र १५२ ,, १३४ ... १ भुवनदीपकादि २ कालकुलक ३ शब्दानुशासनद्वयाश्रयवृत्ति ४ प्रमाणमीमांसा ५ द्वद्याश्रयवृत्ति पंचमांग ६ शब्दप्रमेदप्रकरण ७ न्यायभाष्य ८ चंद्रलेखाविजयप्रकरण ९ दुर्गव्याकरण १० काव्यप्रकाशटीका ११ कमग्रंथटीका १२ छंदोनुशासन १३ उपदेशमालाटीका भंडाररी पुराणी टीप १४ विशेषाविशेष १५ विषमपदपर्याय १६ अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी १७ शब्दानुशासन १८ माघकाव्य १९ धर्मोत्तरटिप्पनक २० पंचाशकवृत्ति २१ षष्ठकर्मग्रंथ २२ चतुर्द्धर्मकथा २३ अनेकांतजयपताका ,, २२८ २४ षडावश्यक , २१४ २५ काव्यालोक , १०७ ए आठमी आंकरी गांठडीमां प्रति २५ है । M २९२ ___२२२ १३१ १६५ १९६ पत्र १०१ , २५८ १ उपदेशमाला १० जंबुदीवपन्नत्तीसूत्र २ व्यवहारसूत्र पत्र १९ ११ उववाई वृत्ति ३ सप्तमांगादिसूत्र १२ रायपसेणीसूत्रवृत्ति ४ ओघनियुक्ति त्रूटक १३ कल्पचूणी त्रुटक ५ कल्पटीका ,, २९७ १४ भगवती अटक ६ व्यवहारटीका १५ ठाणांगटीका ७ चूर्णसिद्धप्राभृतसूत्रवृत्ति १६ पिंडनियुक्ति टक सूत्र ८ जंबुदीवपन्नत्तीसूत्र ,, ९७ १७ , टीका ९ रायपसेणीटीका एती परत नवमा आंकरी गांठडी मोटी लांबा पानारी तिणमाहे परत १७ छै । , ३७४ " ३३ " ४३१ पत्र ३८० १ हैमअनेकार्थनाममालाटीका पत्र ३३६ ११ वासुपूज्यचरित्र २ शतकादि , १९ १२ दशवैकालिकनियुक्ति ३ सिद्धांतसार १३ जीतकल्प ४ सूयगडांगवृत्ति १४ श्रावकजीतकल्प ५ कमलशीलतर्क ,, १८५ १५ प्रायश्चित्तजीतकल्प ६ चंदपन्नत्ती त्रुटक १६ सिद्धसेन जीतकल्पवृत्तिचूणी ७ त्रेसठशलाकाचरित्र त्रुटक १७ श्रावकप्रतिक्रमणवृत्ति ८ नेमचरित्र त्रूटक १८ उत्तराध्ययनलघुवृत्ति ९ साहित्यविद्याधरीटीका , ३२९ १९ सूरपन्नत्ती १. भगवतीसूत्र , ३२४ २० पंचकल्पभास्यचूणी एतली परत दसमा आंकरी गांठडीमांहे परत १६ छे सही । Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभवनाथजीरा देहरारे [ चतुर्थ पत्र ३०८ , २०१ ३१ १ निशीथभाष्य पत्र १७८ ९ उत्तराध्ययन बृहद् बृत्ति २ सिद्धपाहुड , १६० १. सूयगडांगसूत्रचूणी ३ अनुयोगद्वार सटीक ११ आवश्यकनियुक्ति त्रूटक ४ पाखीसूत्रटीका समवायांगछेद १२ अनेकांतजयपताकासूत्र ५ दशवैकालिकसूत्रटीका १३ , टीका ६ , चूणी जिनदत्तसूरिकृत १४ चंद्रप्रभचरित्र प्राकृत ७ भवप्रपंचप्रकरण ,, ३६३ १५ लोकसाराध्ययन ८ वीरचरित्र " ३६३ १६ उपदेशमालावृत्ति ए एकादशरी आंकरी गांठडीमांहे परता छ । م 66 पत्र १३६ २६० १३६ १७५ १४३ १ प्रवचनसारोद्धारसूत्र पत्र १४४ १४ नंदीचूणी २ कल्पलताविवेकालंकार १५ कल्पसूत्र ३ वीरचरित्र २४१ १६ पक्खीसूत्रटीका ४ प्रबोधचंद्रोदयनाटक १६५ १७ नैषधकाव्य ५ संग्रहणीटीका २६. १८ लीलावतीकथा ६ श्रुतकेवलीचरित्र १९ कल्पसूत्र ७ आवश्यकटीका हेमचंद्रकृत २१८ २० प्रश्नव्याकरण ज्योतिष ८ आवश्यकसूत्र २१ न्यायकंदली ९ भवभावना २२ काव्यप्रकाश १० नंदीटीका २२१ २३ नवतत्त्वप्रकरणादि ११ श्रावकधर्म १ पंचलिंगी २ २४ भट्टीकाव्य छंद त्रुटक १२ क्षेत्रसमास , २०२ २५ हैमव्याकरण पंचमोध्याय १३ नंदीविवरण ३९ २६ षडशीति ए प्रथम आंकरी गांठडीमांहे परत २५ अथ २८ मा जनै छै। २३९ २७५ GK पत्र ४४३ १ सुपार्श्वचरित्र पत्र २७८ ७ भगवतीवृत्ति अभयदेवसूरिकृत २ कल्पचूणी , ३३३ ८ समरादित्यचरित्र प्राकृत ३ व्यवहारभाष्य ९ उपदेशपदटीका ४ मुनिसुव्रतचरित्र १० व्यवहारचूणी ५ अंगविज्जा प्राकृत , २४१ ११ आवश्यकनियुक्तिटीका ६ उपदेशमालादुर्गपदवृत्ति ,, ३१८ १२ विशेषाविशेष प्रथम खंड ए प्रति १२ छहा आंकरी गांठडी मोटी लांबा पानारी छ। ८९ ३०१ Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] भंडाररी पुराणी टीप १ ओघनियुक्ति पाखीसूत्र बृत्ति ७ नंदीसूत्र २ उपदेशमालाबृहद्वृत्ति ८ दशवैकालिकवृहद्वृत्ति ३ संघयणी , ९ भवभावना ४ नेमि० वीरचरित्र १० प्रवचनसारोद्धार ५ ज्ञाताधर्मकथादि षडंगीसूत्र ११ आवश्यकबृहद्वृत्ति द्वितीय खंड ६ अंगविज्जा १२ आवश्यकनियुक्ति त्रूटक ए १२ प्रति गांठडी आठमा आंकरी लांबा पानानी छै। १५ कर्मस्तव टीका १ अंगविज्जाप्रकीर्णक २ गोडविधिसार टीका ३ आदिनाथचरित्र ४ द्रव्यपदार्थकंदलीभाष्य ५ शशांकसंकीर्तन ६ प्रवचनसारोद्धार ७ धमबिंदुप्रकरण ८ स्वोपज्ञ हेमनाममाला टीका ९ रायपसेणीवृत्ति १० घनरत्नमहोदधिटीका ११ मीमांसा १२ रामचरित्र प्राकृत १३ दुर्गसिंह व्याकरण १४ हेमव्याकरण रहस्य 255 ०GO पत्र २९९ १७ खंडनखाद्यटीका १८ लघुवृत्ति पंचमाध्यायपर्यंत " ३४९ १९ प्रदेशीचरित्र २० कर्मप्रकृति २१ प्रतिक्रमणवृत्ति २२ पदार्थप्रवेशन्यायकंदली २३ , द्वितीय खंड । २४ उपदेशमाला--योगशास्त्र आदि २५ आवश्यकवृत्ति १९९ २६ चैत्यवंदनवृत्ति २७ क्षेत्रसमासवृत्ति , १६० २८ पिंडविशुद्धिप्रकरण ए बीजी गांठडीमांहे परता २८ छै । १९० २८१ ३३८ K " २२० . ० 6 ९० १ पंचवस्तुकप्रकरण पत्र १९९ २ सांख्यसप्ततिका ३ सांख्यग्रंथ ४ मुनिपतिचरित्र १०७ ५ अलंकारग्रंथ ६ अलंकारदर्पण ७ पज्जुसणानियुक्ति २०१ ८ कातत्रवृत्ति ९ उपदेशमाला विवेकमंजरी अजितशांति १० शब्दानुशासनवृत्ति ११ शतकचूर्णी , १४३ १२ कारक टिप्पण १३ निर्वाण लीलावती कथा १४ तर्कीकरण १५ नाटक काव्य मंडळी १६ षडशीति टिप्पनक १७ विलासवती कथा १८ कन्न श्रेष्ठि छंद १९ उपदेशमाला २० दुर्गपद प्रबोध व्याकरण २१ धर्मबंधाख्य प्रकरण २२ धर्मोत्तर तर्क Mr २७० " १९३ ६४ १५५ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभवनाथजीरा देहरारे [ चतुर्थ , १३४ . २३ प्रशमरतिप्रकरण , २०१ २८ प्रवचनसारोद्धारसूत्र २४ शतकचूर्णी , १७५ २९ न्यायप्रवेश तर्क २५ प्रश्नोत्तररत्नमाला वृत्ति ,, १८३ ३० लघुवृत्ति पंचमाध्याय २६ आवश्यकनियुक्ति , १७९ ३१ उणादिवृत्ति पाद २७ सांख्यसत्तरी " १०२ ए तीजा आंकरी गांठडीमांहे परता छ आंके ३२ छै । 5 0 २४५ . २९१ १ रत्नचूडकथाटीका पत्र १५८ १४ वीरचरित्र २ अनेकार्थनाममाला कांड टीका १५ भट्टीकाव्यटीका ३ न्यायमंजरीसूत्र १६ संग्रहणीटीका ४ गजसुकुमालचरित्र १२१ १७ आवश्यकनियुक्ति ५ शतकवृत्ति १८ भावनाकुलक ६ काव्यप्रकाशटीका २०६ १९ रत्नावलीनाटक ७ पंचवस्तुप्रकरण २० कर्मविचारग्रंथ ८ मुरारिटीका १९२ २१ पंचवस्तुकविवरण ९ सार्द्धशतकटीका २४७ २२ पंचमकर्मग्रंथवृत्ति १० अभिनंदनचरित्र २३ गुर्वावली ११ उपदेशपद २४ काव्यालंकार १२ उपदेशपदप्रकरण ,, १३३ २५ सांख्यवृत्ति १३ अलंकारटीका रुद्रटालंकार ., ६१ २६ कविरहस्य चोथा आंकरी गांठडीमांहे लघुपत्ररी प्रति २६ छोटा पानारी छै । VM Gm ० ० ०G ur ० m १ दशवकालिकनियुक्तिवृत्ति ७ दशवैकालिकलघुवृत्ति २ मलयगिरिकृत आवश्यकवृत्ति द्वितीय खंड ८ संग्रहणीसूत्रटीका ३ विशेषावश्यक द्वितीय खंड ९ कल्पटिप्पनक ४ शांतिचरित्र १० आवश्यकबृहद्वृत्ति ५ भगवतीसूत्र ११ बृहत्कल्पवृत्ति ६ दशकालिकबृहद्वृत्ति १२ निशीथसूत्रवृत्ति ए १२ प्रति लांबा पानारी प्रथम आंकरी ग्रंथी मांहे छ । पत्र ३३१ १९१ W ०७ १ पन्नवणाटीका भलयगिरिस्कृत ७ आवश्यकबृहबृत्ति द्वितीयखंड २ श्रावकधर्मप्रकरणयोग्य ५ पत्र ३५२ ८ मुनिसुव्रतचरित्र ३ विशेषाविशेष द्वितीयखंड ९ धर्मविधिप्रकरण ४ नेमिचरित्र " ३४० १० कल्पचूणी ५ महानिशीथसूत्र ११ जीवाभिगमसूत्रलघुवृत्ति जंबूद्वीप,, चूणी पन्नत्तीसूत्र तथा चूणी ६ भवभावनावृत्ति , ३८३ १२ उत्तराध्ययनबृहबृत्ति एती परत द्वितीय आंकरी मोटी लांबा पानारी तिणमाहे परत १२ छ । ३ Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] १ संवेगरंगशाला प्राकृत २ भगवतीवृत्ति ३ निशीथचूर्णी विशेष ४ वसुदेवहिडी प्रथमखंड ५ हरिविजयमहाकाव्य ६ वसुदेवहिडी १ क्षेत्र विवरणटीका २ अनुयोगद्वार चूणी' ३ सूयगडांगटीका ४ आवश्यकटीका رد १ पन्नवणासूत्रटीका २ जीवाभिगमसूत्र ३ " ४ रायपसेणीसूत्र ५ टीका ६ जंबुद्वीपपन्नत्ती सूत्र टीका तथा चूर्णी ७ चंद्रपन्नत्ती सूत्र 92 टीका ८ ९ सूरपन्नत्तीसूत्र १० 22 ११ निरयावलीसूत्रटीका १२ नंदी सूत्रटीका टीका १ ज्ञातासूत्रटीका २ ज्ञातासूत्र ३ उत्तराध्ययन सूत्र ४ भंडाररी पुराणी टीप टीका पत्र "3 ११ व्यवहारभाष्य १२ मुनिसुव्रतचरित्र ए त्रीजा आंकरी गांठडी द्वितीय मोटा लांबा पानारी परति १४ छै । टीका "" " 33 29 ३०१ ए प्रति ८ लांबा पानारी गांठडीमांहे है । इतरी पुस्तक जेसलमेरुरा उपरला भंडारमै छै । भंडार संभवनाथजीरा देहरा में है। "" संघी थिरूसाहजीरा भंडारा पुस्तकनी टीप लिखोजें है । संख डाबडारी टीप पत्र ३३३ २७५ " पत्र १७३ ११३ ३११ ४६ ७९ "" " " "" " २३८ " ४१८ १५८ १०६ ३४५ ور " "" ७ पत्र १८५ १३३ ११२ २९२ " पिंडनिर्युक्तिभद्रबाहुकृत ओघनियुक्ति ४१ १७६ ५४ २१७ ८ तिलकमंजरीचरित्र ९ पार्श्वनाथचरित्र प्राकृत १० विवेकमंजरीचरित्र ५ व्यवहारटीका मलयगिरिकृत ६ आचारांगसूत्र बृहद्वृत्ति ७ निशीथभाष्य ८ पन्नवणासूत्रटीका टक दर्पण डाबडारी टीप १३ अनुयोगद्वारसूत्र १४ १५ उत्तराध्ययनसूत्र १६ " १७ उववाईसूत्र "" टीका टीका १८ "" १९ दशवैकालिकसूत्र टीका २० "" टीका २१ संघाचारपइन्नासूत्र तथा टीका २२ प्रवचनसारोद्धारसूत्र तथा टीका २३ पन्नवणासूत्र तथा टीका २४ पन्नवणासूत्रबीजक ५ धर्मरत्नकरंडकसूत्र ६ पिंडनियुक्तिसूत्रवृत्ति ७ ओघनियुक्तिवृत्ति ८ षोडशकसूत्रटीका AAAAAAA पत्र २०० २४१ १९३ २२९ २९४ २३३ ११८ पत्र ३०७ ४४१ २१४ 33 "" पत्र " " 23 22 " "" 23 " 23 ૪૭ "" AAAA ५८ १२५ ५३ ३१७ २९ ७४ २१ १८८ १७६ ४३० ३३६ ५४ २२० १६१ १५१ ४० Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ ९ प्रतिक्रमणविधि १० वादस्थलसूत्र ११ ज्ञाताटीका १२ उत्तराध्ययनटीका १३ जंबूद्वीपचूण १ निशीथसूत्र २ निशीथचूर्णी प्रथमखंड ३ जीतकल्प ४ संघाचारटीका ५ पंचास्तिकायसूत्र ६ 33 "" 33 ८ व्यवहारसूत्रटीका ९ बृहत्कल्प प्रथमखंड १० ११ आराधना १२ चैत्यवंदनाभाष्य १३ पंचलिंगीवृत्ति १४ पंचास्तिकायसूत्र १५ विशेषणवती द्वितीयखंड १ आचारांगसूत्रटीका २ सूयगडांग ३ समवायांग ४ भगवती सूत्र 39 टोका भाष्य 39 " ५ ज्ञातासूत्र ६ उपासकदशांगसूत्रटीका ७ अणुत्तरोववाईसूत्र ८ अंतगडदशासूत्र " ९ प्रश्नव्याकरणसूत्र १० विपाकसूत्र ११ आवश्यक बृहद्वृत्ति 33 35 23 संघवी थिरूसाहजीरा भंडाररा १४ रायपसेणीटीका १५ दशाश्रुतस्कंधचूर्णी १६ आवश्यक नियुक्तिभाग्य १७] ओषनियुक्तिभाष्य १८ रायपसेणीटीका पत्र २५ , १६३९ "" " धजा डारडारी टीप पत्र १९ ३३१ ५६ 23 " :s "" 33 " 29 31 33 ४१७ १२१ 33 27 १८३ २८ २०९ १४१ १४१ ४०७ २४१ ७२ २७ ३१ ११ १६ दशकालि १७ शीलांगरथ १८ दावृत्ति १९ अष्टकसूत्र २० नमस्कारमाहात्म्य २१ चैत्यवंदनाभाष्य २२ प्रवचनसारोद्धारसूत्र २३ चैत्यवंदनसूत्रभाष्य २४ २५ षडावश्यकबालावबोध २६ लौकामत्खंडनमंडन २७ तपामतखंडन २८ पार्श्व गणरसंवध २९ निशचूर्णी ३० संघपट्टा० सूत्र काला डाबडारी टीप " १२ आवश्यकलघुवृत्ति १३ विशेषावश्यकवृत्ति प्रथमखंड द्वितीयखंड टीका १४ १५ रायपसेणीसूत्रटीका १६ विधिप्रभा १७ भक्तामरबालावबोध " १८ सूयगडांगसूत्र १९ पडिकमणाविधि २० ठाणांगसूत्र २१ उत्तराध्ययनसू त्रूटक [ चतुर्थ >> "" "" "" 55 13 27 " AAAAAAAER " "2 " 93 ૮૮ १०१ ६८ ६८ ९१ २१ ९ ५१ १०५ ८ ९ ५९ ३ २७ ४३ ९३ ५४ २८ १९ ३०४ Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] १ व्यवहारभाष्य २ टीका ३ पंचकल्पचूर्णी ४ चैत्यवंदनचूणों भंडाररी पुराणी टीप श्रीवच्छ डाबडारी टीप पत्र २३२ ५ अंगविज्जापइन्ना पत्र ३२२ ,, ११४६ चैत्यवंदन ७ श्रावकपन्नत्ती , १७ ८ पायचंदीया आंचलीया तपामत खंडन पत्र ५८ स्वस्तिक डाबडारी टीप १ निशीथसूत्र पत्र २७ ७ बृहत्कल्पसूत्र २ , भाष्य , २६८ ८ आराधनापत्र ३ निशीथचूर्णी वीसमा उद्देसारी टीप , १३४ ९ आवश्यकनियुक्ति ४ निशीथचूणी १. ललितविस्तरा ५ बृहत्कल्पभाष्य ११ अंगचूलिया ६ बृहत्कल्प खंड ३ टीका , १४९ १२ ऋटक पानारी परत ४५ ८० नंद्यावर्त डाबडारी टीप छै पत्र ६२ ११ रायपसेणीसूत्र ,, ११ १२ , वृत्ति ,, २६५ १३ आवश्यक मलयगिरिटीका २८० १४ आवश्यकटिप्पण १५ शत्रुजयमाहात्म्य १६ संग्रहणीलघुटीका १७ ऋषिमंडलटीका ४०२ १८ धर्मपरीक्षा १९ दशवकालिकवृत्ति " ८८ २० कल्पसूत्र स्वर्णा कित छै १ आचारांगसूत्र २ , नियुक्ति ३ टीका ४ सूयगडांगसूत्र नियुक्ति टीका ५ समवायांगसूत्र ६ , नियुक्ति टीका ७ ठाणांगसूत्रटीका ८ भगवतीसूत्रटीका ९ उत्तराध्ययनसूत्रटीका १० ज्ञातासूत्रटीका २६४ ___८६ ३४४ , ३११ पत्र १०८ १ धर्मोपदेशमाला २ दर्शनसत्तरीटीका ३ भवभावना ४ धर्मसंग्रहणीसूत्रटीका मच्छयुग्म डाबडारी टीप छै पत्र १४० ५ प्रतिक्रमणचूणी , २१६ ६ विचारसार , २९३ ७ क्षेत्रसमाससूत्रटीका , २७२ ८ सत्तरी १८३ Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघवी थिरूसाहजीरा भंडाररी टीप पत्र ६७ २५ ९ नवतत्त्वटीका १० " ११ पंचास्तिकायसूत्र १२ , टीका १३ विवेकमंजरी प्रथमखंड १४ प्रतिक्रमणगर्भहेतु १५ उपदेशपदसूत्र टीका १७ श्रावकविधि १८ नवतत्त्वटीका १९ प्रश्नोत्तरटीका २० आचारदिनकर २१ योगशास्त्रटीका २२ नवपदप्रकरण २३ पंचवस्तुसूत्र २४ , टीका २५ संवेगरंगशाला २६ संग्रहणो २७ पंचलिंगीवृत्ति २८ पंचाशकवृत्ति २९ विधिप्रभा १५१ १६१ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमं परिशिष्टम् संवत् १९४१ रा मिती पोष सुदि ११ दिने बार रवी भट्टारक श्री श्री १०८ श्रीजिनमुक्तिसूरिश्वरविजयराज्ये देश गुजरात सूरतबिंदाका रहिवासी श्री श्री १०८ पं। प्र। मुनि लालचदजी तभ्राना श्रीग्यांनचंदजी तशिष्य पं ।प्र। भाईचंदजी तत्भ्रता श्रादलीचंदजी तशिष्य मुनिकीर चंदनी तत् शिष्य पं। प्र। मोतीचं जी तत्भ्राता पं। प्र। देवीचंदजी बृरत्खरतरगच्छे श्रीजेसलमेरुमध्ये श्रीसंघहस्ते किल्ले ऊपर श्रीपार्श्वनाथजीको मंदिर हे उसमें च्यार भंवरा छे तेहनी विगन इण मुज-प्रथम भुंवरा मध्ये सर्वध तुकी प्रतिमायां छ । बीना भंवरामध्ये पारसपाषाणकी खंडित प्रतिम यां छे जिणसे अगाडी छोटी बारी एक आवे छ तिणसं अगाडी तीसरो अंघरो छ तिण मध्ये लकडेकी मिदुकां नंग ४ बडी हे अने सिंदूक एक छोटी ह अने कटाना डब्बा नंग दोय हे जिसमें ताडपत्र तथा कागदका लिखित पुस्तकोंकी टीप में करूं हूं। देश गुजरात अहमदाबादके पास शहर कपटवपिजके शेठ पारष नीहालचाई नत्थूभाईकी तरफ ले श्रोआणं इसुरिगच्छाधिपति । श्री १०८ श्रीविजयगुणरत्नसरिश्वर जीकी मारफत पुस्तकमीको भंडार देखणेकुं आया। मु। मोतीचंदजी उणांने सर्वपुस्तकनी देखके सर्व पुस्तकोंकी टीय इण वहीमध्ये करी हे । तीजा भुंवराम पुस्तकनीको भंडार हे तिसरी ए टीप करि हे अने जीमणे बाज चोथो भंवरो छे ते परचरन सामान्य भरीयों पडीयो छे ते भुंवरो अंदर पेसतां जीमणे हाथे छे तोजा भुंवरामां ताडपत्रके पुस्तकको भंडार हे उसकी टीप नीचे करी मुजब। ताडपत्रोंकी याददास्ति इणमुजब ० १ प्रमाणप्रमेयतर्कग्रंथ २ प्रत्येकबुद्धचरित्र श्लोकबंध ३ मुरारिटिप्पन क० हेमचंद्रमूरि ४ नैषद् टीका क० विद्याधरी ५ नैषदसूत्र ६ प्रबोधचंद्रोदयनाटिक काव्यबंध ७ आद्यंतप्रक्रिया वासवदत्तकथा भेली ८ अनेकार्थकरवाकरकौमुदी पेटी पहिली नंबर पहिलो पत्र २२४ १२ शब्दानुशासनवृत्ति कृत हेमचंद्रसूरि पत्र १९३ , २२० १३ खंडनखंडखाद्यखड क. हर्षसूरि , १९० ,, २०३ १४ कातंत्रदुर्गसिंह क. त्रिलोचनदास संस्कृत ,, १९६ ,, २१८ १५ आवश्यकनियुक्ति १६ प्रमाणमीमांसा १७ प्रमाणतर्क १८ न्यायग्रंथ १९ हेमव्याकर्ण , १३४ २० कर्कटिप्पनक २१ पंचग्रंथीव्याकर्ण का बुद्धिसागर ,, २६२ २२ कर्मग्रंथवृत्ति क. हरिभद्रसूरि , १९८ २३ छंदट्टीका ,, २९४ 2200 S०० ,, २०४ १० हैमी नाममाला सौपज्ञटीका ११ शब्दानुशासन संस्कृत , २९१ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ २४ नैषद किरात २५ न्यायावतारटिप्पन २६ जैनवार्तिकवृत्ति क० शांत्याचार्य २७ गुणनिर्णय २८ न्यायप्रवेशटीका २९ चंद्रदूतकाव्य ३० अनेकार्थकैरवाकर कौमुदी ३१ बिक्रमकाव्य ३२ माघकाव्य त्रटक ३३ दुर्गसिंहव्याकर्ण ३४ काव्यालंकारवृत्ति ३५ धन्नाश। लिभद्र चरित्र क० जिनहषसूरि ३६ द्रव्याऽलंकारटीका क० रामचंद्रगुणचंद्र परत २ भेली ३७ हेमप्रकाश, ४० श्रुतकेवली चरित्र ४१ अनेकार्थकरवाकर कौमुदी ४२ सामाचारीग्रंथ कृ० तिलकाचार्य ४३ चर्चरीवृत्ति, कालस्वरूपविवरण ४४ कल्पकीर्णावली ४५ काव्यप्रकाशकाव्यालंकार ४६ दुर्गपदप्रबोधावृत्ति ४७ पंचकल्पसतकलघुवृत्ति ४८ धन्नाशालिभद्रचरित्र संस्कृत कृ० पुन्यमऋषि ४९ न्यायकंदलीचरित्र तर्क ५० उद्भटालंकारलघुवृत्ति कृत इंदुराज ५१ महावीरचरित्र कृ० चंदकुशलसूरि ५२ सप्तशब्दादिग्रंथ कृत जयदेवसूरि ५३ उपदेशप्रकरण पार्श्वनाथजीरा देहरारे ५४ स्तुतीकाव्य हम्मीरमर्दननाटिक ५५ उपदेशसूत्र नाटिक ७८ , २३० १, १५५ , १११ " १३४ , २१५ , ३३८ 27 १५९ " २७० , १२० काव्यालंकार दोनुं भेला ९२ ३८ गणधर सार्धशतक प्राकृत कृत क्रियासुमती पत्र ३९.३ पत्र ४५ ३९ रुद्रटालंकार मूल संस्कृत धातवंत षोडशपलका ,४५, १८ 33 در , २२३ ,, १६०, पत्र ३१६ ,, २३९ , १८८ ६८ २२९ १७८ १९२ २२० 23 23 دو १२० ११८ " " ३८५ , २३९ १४२ ११४ 23 " १८३ " १५२ ९० " १०९ دو ५६ चक्रपाणिकाव्य ५७ खंडनवृत्ति ५८ काव्यादर्शकाव्यप्रकाश ५९ व्याकर्णअवचूरि ६० रामरावणचरित्र ६१ न्यायविदुवृत्ति ६२ उपदेशमाला आदि सप्त प्रकर्ण ६३ विवेकालंकारप्रकर्ण ६४ गोडबंधसारटीका ६५ संभवचरित्र संस्कृत ६६ दुर्गसिंहकातंत्र छूटक पत्र ६७ प्रवचनसारोद्धार ६८ कर्मग्रंथटीका ६९ विलासवती कथा ७० महावीरचरित्र कृत हेमाचार्यजी ७१ कल्पलताविवेकालंकार ७२ भट्टीकाव्यटीका ७३ भाष्यटीका संखसप्तका ७४ कमलशील तर्कसूत्र ७५ रामनाटिक ७६ संखसप्तकावृत्ति ७७ तत्त्वकौमुदी संसप्तकात्रवृत्ति ७८ न्यायकंदलीटीका ७९ लघुधर्मोत्तरसुत्रवृत्ति, न्यायविंदु टीका, चैत्यवंदनटीका कृत हरिभद्रसूरि ८० रहस्यसुत्र कातंत्रवृत्ति ८१ विचारसंग्रहणी जैनव्या कर्ण ८२ हेमीसब्दानुशासन ८३ रघुवंशटीका ८४ द्वादसकुलक कृत जिनवल्लभसूरि ८५ सामुद्रिकशास्त्र ८६ उपासकदशांगटीका ८७ श्राद्धसतकवृत्ति कृ० मेहसुंदरगणि [ पंचमं पत्र ११७ " १०४ " १८८ ,, ११९ " ३५९ १५२ ,, १९८ 12 " २४२ " १४० " २२७ १३४ १११ ” २०३ ,, २४१ 23 "" "2 २५९ " ३७५ ११२ , १८५ 25 " १७० १६१ ८० ,, "" 23 " २८८ ११५ ९० 33 ६० , २६४ ७२ २७७ ,, २३० ,, ३०१ , २२१ २८४ ,,, २४४ 13 " ७० " " Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] भंडाररी पुराणी टोप ४५३ , १३१ " १८४ , २०० ,, १३३ ०८८ ८८ अनेकांतजयपताकावृत्ति टिप्पनक कृ० मुनिचंद्रसूरि ८९ पिडबिशुद्धिप्रकर्णवृत्ति ९० कर्मपयडीटीका कृ० मलयगिरि ९१ कल्पचूणी ९२ आवश्यकवृत्ति कृ० अभयदेवसूरि ,, २१८ ९३ संग्रहणीसूत्रटीका कृ० मलयगिरि ,, १२० ९४ जंबूस्वामीचरित्र गद्यबंध ,, ३२६ ९५ षट्त्रिंशिकावृत्तिटिप्पन कृत हेमचंद्रसूरि ,, १०५ ९६ व्याकर्णटीका कृ० बुद्धिसागर ९७ उपदेशमालाप्रकर्ण ,, १५१ ९८ शतकसहस्रकूट पाठांतर शतकसंस्कृत, मूलवृत्ति कृ० शिवरामसूरि ९९ समाधिशतक सौपज्ञ कृ. देवेंद्रसूरि " १२८ १०० उपदेशमालाविवरण , १९८ १०१ प्रतिक्रमणबृत्ति १०२ विवेकालकार नैषद १०३ स्याद्वादरत्नाकरावतारिका क देवेंद्रसुरि १०४ बंधसामंतविचार १०५ प्रश्नोत्तरवृत्ति ,, १८६ १०६ चैत्यवंदनादिप्रकर्ण ,, १०५ १०७ संग्रहणीटीका कृ. हरिभद्रसूरि १०८ द्वादशकल्पवृत्ति कृ. देवभद्रसूरि । १०९ उपदेशपद पाठांतर दशांगगाथाबंध प्राकृत कृ. हरिभद्रसूरि ११० कर्मग्रंथपंचवृत्ति " ११९ १११ सनत्चक्रीचरित्र श्लोकबंध कृ० सिद्धसेन दिवाकर १८३ ११२ धर्मबिंदु कृ० मुनिचंद्रसूरि , १५४ ११३ कर्मपयडीसग्रहणीटीका ३०६ ११४ सित्तरीटिप्पन कृ. रामदेवसूरि ११५ लघुशब्दानुशासन कृ हेमचंद्रसुरि १२३ ११६ कल्पनियुक्तिवृत्ति २०१ ११७ विलासवतीचरित्र ., १४९ ११८ आराधनाकुलकादिप्रकर्ण ,, १५५ ११९ बिशेषाबिशेष ,, ११३ १२० शतकचूर्णी पत्र १४७ १२१ कातंत्रसंभ्राम , २२५ १२२ पंचवस्तुसूत्र १२३ जीवसमासादिप्रकर्ण १२४ संग्रहणीवृत्ति १२५ लीलावतीसारकथा १२६ षडावश्यकवृत्ति १२७ प्रवचनसारोद्धार १२८ रायप्रश्नवृत्ति कृ. मलयगिरि १२९ चंद्रलेषजसाप्रकर्ण कृत देवेचंद्रसूरि १३० नंदीदुर्गपदटीका कृ० चंद्रसूरि १३१ क्षेत्रसमास तथा उपदेशमाला १३२ संग्रहणी तथा श्रावकविधि ,, २६१ १३३ कल्पसूत्र विवरण १३४ वेदिविद्याख्यप्रकर्ण स्वोपज्ञटीका कृ. हरिभद्रसूरि १३५ अंगविद्याटीका चंदकुशलसूरि स्वोपज्ञटीका कृ० २५४ १३६ विवेकवृत्तिप्रदेशव्याख्याटिप्पनक कृ. हेमचन्द्रसूरिभिः ,, ३१५ १३७ संग्रहणी तथा कर्मग्रंथ क्षेत्रसमास , २२३ १३८ आवस्यकषडसल , २२३ १३९ विलासवतीकथा सं० कृत जिनचंद्रसूरि ,, १०८ १४० दशवैकालिकसूत्र तथा पक्खीसूत्र . , १२४ १४१ संभवअभिनंदनचरित्र संस्कृत कृ० हेमचंद्रसूरि १४२ कर्मग्रंथ क्षेत्रसमास १४३ चैत्यवंदनादित्रयवृत्ति १४४ सिद्धांतविषे जीतकल्प १४५ कर्मस्तवटीकाचूणी १४६ नंदीसूत्रलघुवृत्तिचूी कृत हरिभद्रसूरि १४७ नंदींचूर्णी १४८ दर्शनशुद्धि कृ. देवभद्रसूरि ,, १५८ १४९ कर्मप्रकृतिटीकाचूणी १५० शांतिनाथचरित्र , १६२ १५१ प्रशस्तिप्राकीर्ति १०२ , ५१ Gr , १०४ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ पार्श्वनाथजीरा देहरारे [पंचम १५२ चैत्यवंदनादिसूत्रविवरण पाखीसूत्र पत्र १५० १५९ पंचवस्तुकटीका पत्र ३०० १५३ प्रवचनसारोद्धार ,, २०४ १६० काव्यालंकारटीका , १२९ १५४ प्रदेशीचरित्र , ११३ १६१ कल्पसूत्र कल्पवाच्य, कालिकाचार्यकथा , १३७ १५५ संग्रहणीटीका , २५६ १६२ सतकचूणी ,, १२९ १५६ तपयोगविधि त्रूटक १६३ कल्पलक्षण १५७ ऋषिमंडलकुलक त्रूटक ,, १५२ १६४ नमोत्थूणंटीका कृत प्रद्युम्न सूरि ,, १३० १५८ सब्दानुशासन कृत हेमचंद्रसूरि , १०७ १६५ प्रबोधचंद्रोदयनाटिक ॥ इति श्री ताडपत्रों की पुस्तको की सूचीपत्र संपूर्णम् ॥ mur. ,, १६५ ,, १०७ ०0 ॥ अथ कागदांगी पुस्तकोंकी सूचीपत्र लिख्यते ॥ १ षोडशाधिकारप्रकरण कृत हरिभद्रसूरि पत्र ८ २५ कर्पूरमंजरीनाटिक २ भवनभावनावृत्ति कृ० हेमचंद्रसूरि , १६४ २६ व्याकर्ण कातंत्र ३ पंचलिंगप्रकरण ,, १८ २७ सूक्ष्मार्थिविचार ४ नेमिचरित्र २८ बिसालरास ५ सिद्धांतगाथाबंधप्रकर्ग २९ चंदनबालाचौपद सित्तरी १९ ३० गोडीपार्श्व० स्तवन ६ ठाणांगसूत्र पंचकल्याण ३१ चउसरणपइन्नो मूल ७ स्थिवरावलीचरित्र कृत हेमचंद्रसूरि ३२ प्रसमरति ८ रत्नप्रकाश प्राकृत ३३ चतुर्विशतिजिनस्तवन ९ दर्शनसित्तरी ३४ पत्तनचैत्यप्रवाडी १० मलयसुंदरीचरित्र ३५ कर्मस्तवन ११ सब्दप्रकाश प्राकृत ३६ अष्टकसूत्र कृ. हरिभद्रसूरि १२ उपदेशमालाविवरण ३७ प्रश्नोत्तरीअवचूरि १३ संदेहदोहलावृत्ति ३८ महावीरजीस्तवन १४ देशीनाममाला ३९ समाधिसतक १५ दीवसागरपन्नत्ती ४० गणधरस्तवन १६ त्रेसठसिलाकापुरसचरित्र बालाबोध २४ ४१ हेमव्याकर्ण १७ योगनियुक्तिवृत्ति ९८ ४२ अमरसेनरास १८ अध्यात्मोपनेषसंजात कृत हेमचंद्रसूरि ४३ सोमशतक प्राकृत १९ प्रष्णव्याकर्णटब्बो ४४ योगशास्त्र प्रथमप्रकाश २० सुयगडांग त्रिपाठ ४५ दुर्गापाठ २१ प्रस्मरती अवचूरि ४६ चउगतिचौपई २२ खडशटीका ४७ नवतत्त्व प्राकृत टबो २३ जीतकल्पसूत्र ४८ आदिनाथस्तोत्र २४ योगनियुक्तिअवचूरि , २८ ४९ चउसरणपयन्नोटबो . Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] भंडाररी पुराणी टीप पत्र ३ _२६ १३ ५० वैष्णवगीता ५१ भक्तामरस्तोत्रटबो ५२ इकवीसठाणासूत्र ५३ सारस्वत ५४ ईश्वरीशिक्षा ५५ महावीरचरित्र ५६ ऋषभदेवधबलबंध ५७ आवश्यकसूत्र ५८ जंबूस्वामिचरित्र ५९ रामसीताचरित्र ६. अंतगडसुत्रवृत्ति ६१ पाश्वेनाथस्तवन ६२ भक्तामरस्तोत्र ६३ सातस्मरण ६४ नमस्कारवृत्ति ६५ राजहंसचौपई ६६ एकादशीनिर्णय ६७ स्वप्नसित्तरीअवचूरि ६८ अमरकृत शतक ६१ स्तवन बप्पभट्टसूरिकृत ७. आत्मानुशासन ७१ शिलोपदेशमाला ७२ लघुसंघपट्टप्रकरण ७३ अष्टोत्तरसतक ७४ बिवेकमंजरीप्रकरण ७५ प्रणव्याकर्ण ७६ चक्रवृत्तिगाथाबद्ध ७७ धनपालपंचासिका ७८ सिद्धांतगाथा ७९ अजितशांतिस्तवन ८. वैद्यक फुटकर ८१ विष्णुकरज्योतिस ८२ नवतत्त्वसूत्र ८३ गुणसुंदरीचरित्र ८४ ऋषिदत्तानो रास ८५ रत्नचूडनो रास ८६ कालिकाचार्यकथा ८७ रायपसेणीचौपइ ८८ कमलावतीचरित्र ८९ पंचमहाव्रतसिज्झाय ९. काया पर सिन्झाय ९१ नवतत्त्वचउपई ९२ रायपसेणीसूत्र ९३ भवनभानुकेवलीचरित्र ९४ सूयगडांगसूत्र ९५ एतदमस्थापन ९६ ठाणांगसूत्र ९७ आचारांगसूत्र ९८ विवाहपडल ९९ न्यायप्रवेशटीका १०० उववाईवृत्ति १०१ रायपसेणीवृत्ति १०२ दर्शनसित्तरी १०३ गुरुगणछत्तीसी १०४ कातंत्र मूल १०५ वीतरागस्तोत्र १०६ परचुर्णस्तोत्र १०७ तत्त्वप्रदीपिका १०८ लटकमोरनाटिक १०९ सतकाख्य ११० वीतरागस्तुति १११ राघवानिधाननाटिक ११२ गीतगोविंदटीका ११३ कालिकाचायकथा ११४ योतिषनाममाला ११५ लघुस्तोत्रटीका ११६ जनरामायण ११७ दशाश्रुतस्कंध ११८ पंचवस्तुकाव्य ११९ भुवनदीपकज्योतस १२० लिंगानुशासन १२१ अणुत्तरोववाईवृत्ति १० २४ २४ m-0- , २३ , १८ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वनाथजीरा देहरारे [पंचम पत्र ११३ १२२ काव्यप्रकास पत्र ७ १२३ उत्तराध्ययनगीत १२४ योगनियुक्ति १२५ योगभाषा १२६ आवश्यकटिप्पन १२७ आवश्यकबृहद्वृत्ति १२८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र १२९ उत्तराध्ययनबृहद्वृत्ति १३० दशवैकालिकटीका १३१ तत्त्वार्थवृत्ति १३२ संग्रहणीवृत्ति १३३ लिंगानुशासन कृत हेमचंद्रसूरि १३४ अनुयोगद्वारलघुटीका १३५ सूर्यप्रज्ञप्तिटीका १३६ उत्तराध्ययनियुक्ति १३७ उत्तसिद्धांतधनधुर्यगाथा १३८ उत्तराध्ययनअवचूरि १३९ विशेषाबिशेषसूत्र १४० कल्पचूणी १४१ सुयगडांगचूणी १४२ पिंडनियुक्ति १४३ आवश्यकलघुवृत्ति १४४ , बृहद्वृत्ति कृत हरिभद्ररि , १४५ सुमतितर्क दूजो खंड १४६ दशवैकालिकनियुक्ति १४७ निशीथसूत्र १४८ सुमतिप्रकरण १४९ दशकालिकसूत्र १५० भगवतीसूत्र १५१ नंदीसूत्र १५२ , वृत्ति कृत मलयगिरि १५३ ज्ञाताधर्मकथावृत्ति कृत, १५४ अनुयोगद्वारवृत्ति १५५ प्रज्ञापनाटीका कृ. मलयगिरि १५६ समवायांगवृत्ति कृत देवसूरि , ३९ १५७ जंबूद्दीवपन्नत्ती , ४६ १५८ बृहद्कल्पटीका १५९ आचारांगचूणी १६० जंबुद्दीवपन्नत्तीवृत्ति कृत हरिभद्रसूरि १६१ निरयावलीसूत्र १६२ जंयुद्वीपअवचूरि १६३ समाधितंत्र बालावबोध १६४ रसिकमंजरी कविता १६५ स्थिवरावलीसूत्र १६६ पुष्पमालाप्रकर्ण १६७ संदेहविषेऔषधि १६८ संथारापयन्नो बालावबोध १६९ कालिकाचार्यकथा १७० दशवकालिकसूत्र १७१ क्षेत्रसमासवृत्ति १७२ सिद्धांतमणिमाला १७३ तर्कसंस्कृत १७४ दशकालिकसूत्र १७५ आवश्यकसूत्र १७६ चंदपन्नत्तीसूत्र १७७ प्रष्णव्याकर्ण १७८ विपाकसूत्र १७९ पंचांगीवृत्ति १८० जीवाभिगमसूत्र १८१ , वृत्ति १८२ पन्नवणासूत्र १८३ बृहत्कल्पटीका खंड १ १८४ , खंड २ १८५ रायपसेणीवृत्ति १८६ सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति १८७ ठाणागसूत्रवृत्ति खंड १ १८८ , खंड २ १८९ उववाईवृत्ति १९० सूयगडांगसूत्र १९१ ठाणांगसूत्र १९२ उववाईसूत्र १९३ आचारांगवृत्ति १३४ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] भंडारी पुराणी टीप १९४ अभिधाननाममाला पत्र ४६ १९. पूर्णकलशविधि " ३ १९६ बृहत्कल्पसूत्र १९७ समवायांगसूत्र , ३९ १९८ चंदपन्नत्तीसूत्र १९९ चारित्रवृद्धनीरगुटिका २०० नाममाला २.१ पौंछीकरणविधि २०२ द्वात्रिशिका २०३ संघपट्टकवृत्ति , ४१ २०४ श्रेणिकचरित्र २०५ कर्पूरनाममंजरी २०६ संबोधद्योत २०७ पिंडनियुक्तिवृत्ति २०८ खंडनमंडनवृत्ति कृत मलयगिरि . २०९ आनंदादयवृत्ति २१. चंद्रिकाटीका २११ योतिष्करंडटीका २१२ ब्रह्मस्थीटीका पाठांतर ब्रह्मसिद्धिकारिका,, २१३ कविगुम्यनामकाव्य २१४ सारस्वतटीका २१५ सुयगडांगनियुक्ति २१६ लघुचंद्रिका २१७ सिंदुरप्रकरण २१८ हेमीसब्दानुशासन २१९ योतिष्करंडटीका २२० वीतरागस्तोत्र २२१ रत्नाकरावतारिका पाठांतर रत्नाकरावतारी टीका २२२ तत्त्वसारगाथा २२३ राजनीतिशास्त्र २२४ विदग्धमुखमंडन २२५ शांतिरस , ३ २२६ चितामणिनाममाला , ४ २२७ कुमारसंभवमहाकाव्य , १६ २२८ कातंत्रवृत्ति " ६७ २२९ षोडससूत्र २३० नंदीसत्र २३१ सप्तस्मरण २३२ अंतगडसुत्र २३३ दशाश्रुतस्कंध २३४ कर्मविचार २३५ जीवविचार २३६ कुशलानुबंधी २३७ रत्नमालाटीका २३८ प्रयोगविवरण २३९ ज्योतिषमाला २४० ऋषीमंडलसूत्र २४१ कल्याणमंदिर २४२ कल्पसूत्र बालाबोध २४३ युष्मदशब्दा २४४ श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र २४५ सूक्ष्मार्थविचार २४६ उपासगदशा २४७ पार्श्वनाथव्याख्या ___२४८ दशाश्रुतस्कंध २४९ निरियावलीसूत्र २५० , वृत्ति २५१ पुष्पमाला प्रकर्ण २५२ उववाईसूत्र २५३ उपदेशमालाटीका २५४ चोमासेको व्याख्यान २५५ जीवस्तवन २५६ चिहुंगतिचोपई २५७ चारित्रमनोर्थमाला २५८ छोतिकुलक पाठांतरेण छत्रीसकुलक २५९ आदिनाथस्तवन २६. स्थिवरावली २६१ पार्श्वनाथजीको रास २६२ पिडविशुद्धीप्रकरण २६३ उपदेशमाला २६४ नवकारबालाबोध १०३ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वनाथजीरा देहरारे [पंचम .. mcc .... ३० १९ . ..... २६५ प्रवाविधि २६६ पंचपरमेष्ठीनमस्कार २६७ वार्तारूपविचार २६८ प्रज्ञापतिसूत्र २६९ कर्मविपाक २७० प्रशस्ती २७१ क्षेत्रसमास २७२ मुनिपतिचरित्र २७३ गणधरस्तवनम् २७४ क्षेत्रसमास २७५ उपदेशमाला २७६ नवतत्त्वबालाबोध २७७ भावनाप्रकास २७८ कर्मस्तवनम् २७९ चंद्रप्रभस्तवनम् २८० नवपदस्तवनम् २८१ चंद्रप्रभस्तवनम् २८२ कर्मस्तवनम् २८३ वीतरागस्तवनम् २८४ एकवीसठाणा २८५ षोडशवृत्ति २८६ उपदेशमाला २८७ साते स्मरण २८८ भक्तामरबालाबोध २८९ उपदेशमाला २९० शांतिस्तवनम् २९१ मनोर्थमाला २९२ प्रवाविधी २९३ विवेकमंजरी २९४ जयतिहुयण २९५ पौषधवृत्ति २९६ क्रीयाकलाप २९७ आगमवस्तुविचार २९८ लघुसंघपट्टक २९९ उपदेशमाला ३०० संग्रहणीसूत्र ३०१ षष्टिशतक ३०२ चउसर्णसूत्र ३०३ उपासगदशा ३०४ पार्श्वनाथवंदन ३०५ निर्वाणकलिका ३०६ सनात ३०७ क्षेत्रसमास ३०८ मलासिज्झाय ३०९ साते स्मरण ३१. चंद्रकीती ३११ सप्तकश्लोक ३१२ चौपइ ३१३ नेमनाथस्तवनम् ३१४ सिज्झायमाला ३१५ रामनाटक ३१६ रत्नाकरावतारिका ३१७ विद्याविलास ३१८ लीलावतीसूत्र ३१९ षष्टीशतक ३२. कातंत्र ३२१ सिलोपदेशमाला ३२२ समकितकथा ३२३ कातंत्रअवचूरि ३२४ भक्तामरस्तोत्र ३२५ सुरसुंदरीरास ३२६ श्रीपालचरित्र ३२७ चंपककथा ३२८ षष्टीटीका ३२९ गुरुआवली ३३० कालिकाचार्यकथा ३३१ आदिनाथदेशना ३३२ आराधना ३३३ नवतत्व ३३४ जिनमाला ३३५ चारित्रमनोर्थमाला ३३६ ललितांगरास . . १२ , १३ ९ 6 DAN. २७ anman.... " १३ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . परिशिष्टम् ] भंडाररी पुराणी टीप ११ १२ ३३७ उपासगदशा पत्र १ ३७४ नेमीनाथचरित्र ३३८ चंद्रद्योतकथा , ७ ३७५ भरहेसरवृत्ति ३३९ अतीचार ३७६ उत्तराध्ययन ३४. अंतगडसूत्र ३७७ रूपमालावृत्ति ३४१ उत्तराध्ययन ३७८ जयतिहुयण ३४२ चउसर्ण ३७९ दुर्गसिंहवृत्ति ३४३ सिलोपदेशमाला ३८० विचारषत्रिशिका ३४४ वाग्भट्टालंकार ३८१ कृतषष्ठोध्याय ३४५ किरातकाव्य २० ३८२ निबंध पंचमोध्याय ३४६ लिंगानुशासनवृत्ति ३८३ सूरिस्तवन ३४७ प्रश्नोत्तररत्नमाला ३८४ मोक्षाधिकार ३४८ सप्तपदीटीका ३८५ भक्तामरस्तोत्र ३४९ तपकुलाक्षीटब्बो ३८६ षष्टीशतक ३५. प्रश्नोत्तरनाममाला ३८७ गौतमपृच्छा ३५१ बुद्धीरास ३८८ अर्थखंड ३५२ सीतभनपार्श्व स्तोत्र ३८९ सम्यक्त्वकौमुदी ३५३ प्रक्रियाकौमुदी ३९० महावीरजीस्तवनम् ३५४ रत्नमालचौपी ३९१ चोवीसदंडक ३५५ सिंघासणबत्तीसी ३९२ विवेकविलास ३५६ बारे भावना ३९३ ॥ ३५७ आचारांगसूत्र ३९४ बृहत्वृत्ति ३५८ हरिबलचरित्र ३९५ भवीम्योना ३९६ दुर्गसिंहतंत्र ३५९ दुर्गसिंहवृत्ति ३९७ तारकीपरिष्या ३६. सम्यक्त्वकौमुदी ३९८ आवश्यकबृहद्वृत्ति ३६१ पांडवकथा ३९९ दवदंतीकथा ३६२ भुवनदीपक ४०० सिलोपदेशमाला ३६३ पिंडविशुद्धिप्रकर्ण ३६४ बत्तीस अंतकाय ४०१ मुरारीनाटिक ३६५ संबोधसित्तरी ४०२ वसंतराजटीका ३६६ ठाणांगसूत्र ४०३ षट्पंचाशिका ३६७ जयतिहुयण ४०४ बोधप्रक्षा ३६८ बारे भावना ४०५ कल्पसूत्र ३६९ वासिष्ठकथा ४०६ गौतमकुलकवृत्ति ३७० ऋषीदत्त कथा ४०७ उपदेशमाला ३७१ इलाकुमारचौपी ४०८ तत्वप्रबोध ३७२ पांडवचरित्र , ३५ ४०९ भावारीवारण ३७३ ऋषीदत्तचरित्र ,, १४ ४१० मुरारीनाटिक ॥ इति श्री लिखित पुस्तकोंकी सुचिपत्र संपूर्णम् ॥ सरुपचंदजीमहाराजके सुचिपत्रमें २५३ नग हे ॥ , १५ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० पार्श्वनाथजीरा देहरारे [पंचम अथ श्रीखरतरगच्छके बडे उपासरेमें ताडपत्र या लिखित पुस्तकोंकी टीप इण मुजब नीचे प्रमाणे। अथ लिखितपुस्तकोंकी टीप इण मुजब है। गांठ पहिली पोथी १ १ तत्वबोधनी वृत्ति कृत ग्यानेन्द्रसरस्वती पत्र ४०६ ८ नाममाला कृत हेमचंसूरि २ आगमसारोद्धार बालाकृत धर्मराजऋषी, १८ ९ श्राद्धशतकभाषा कृत क्षमाकल्याणजी ३ ज्ञानमंजरीटीका कृतमहर्षिसर्म १० षट्पंचासिका ४ सुरादित्यचरित्रप्राकृत ११ ताजकसारटीका कृत सुमतिहर्षगणी ५ साधुप्रतिक्रमणवृत्ति कृत चंद्रकीर्तिसूरि तहत चकातिसूर " ६१ १२ ताजकसारसुत्र ६ सारस्वतटीका , ११६ १३ दशनीकालिकटीका कृत हरिभद्रसूरि ७ संग्रहणीसूत्रप्राकृतबालाबोध कृत हेमचंद्रसूरि, ६५ ur . पत्र ७१ पोथी २ टीप १ आवश्यकवृत्तीऽवचूरि मूलकर्ता हरिभद्रसूरि ६ वर्षतंत्र कृत नीलकंठ टीकाकर्ता ग्यानसागरसूरि ७ रत्नमालाटीका कृत श्रीपती २ महावीरचरित्र कृत हेमचन्द्रसूरि , २०८ ८ वाराहसंहिता कृत वराहमीर ३ सतकसूत्र कृत देवेंद्रसूरि ९ प्रकर्णअवचूरी कृत गुणरत्नसूरि ४ मीनराजताजकवृत्ती कृत यवनेश्वरसूरि , १०३ १० तिर्थोग्गालि सिद्धांतगाथाबंध। ५ भुवनदीपकसूत्र कृत पद्मप्रभसूरि , १३ ११ गुणरत्नमहोदधीवृत्ती कृत वर्द्धमानसूरि , ५० पोथी ३ थी पोथी १८ उपर लिखये मुजब पोथी १६मां परचुर्ण जोतस वैद्यक सूत्रादिक टब्बा तथा प्राकृत तथा बालाबोध तथा स्तवन चोपई वगेरेकी पोथीयां छे ॥ पत्र २०१ गांठ २ पोथी १ जिस्का सूचिपत्र पं० वस्तपालजी मोहनलाल की १ सूक्षमजातकवृत्ती कृत भट्ट उत्पल पत्र ३३ ८ वैरागी तथा उपदेशकरसिककथा २ सत्तरसठाणा कृत सोमतिलकसूरि , १५ ९ पार्श्वनाथदशभवकथा ३ समयसारनाटकवृत्ती कृत कुंदकुंदाचार्य , १. ब्रह्मपुराण ४ विद्वन्मनोरंजया पूर्वार्ध कृत शंखदत्त , ११ धातु कृत हेमचंद्रसूरि ५ खरतरगछसामाचारी कृत राजकीर्ति , ११८ १२ मानमणीशिरोमणि कृत भट्टाचार्य ६ रत्नकुलकवृत्ति कृत समयसुंदरोपाध्याय १३ श्लोकीप्रकाश कृत कैसव ७ विशेसाविशेषसूत्रवृत्ती , , ४३ १४ वाक्यप्रकास कृत रायसिंहसूरि १ लिंगानुशासनवृत्ति कृत हेमचंद्रसूरि २ , कृत सिंहसूरि ३ अनेकार्थवर्ण कृत धनराज ४ वीतरागस्तोत्रत्रिपाठ कृ. हेमचंद्रसूरि ५ प्राकृतचंद्रिका कृत श्रीकृत पोथी २ टीप इण मुजब पत्र ३८३ ६ तर्कपरिभासा कृत कैशवमिश्र ,, २८९ ७ कुमारसंभवकाव्य कृत कालिदास ८ लिंगानुशासनवृत्ती कृत दीक्षत ९ संज्ञाप्रकर्ण Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] भंडाररी पुराणी टीप पोथी ३ टीप १ तत्वत्रयनिरणे विवर्ण कृत अघोर शिवाचार्य पत्र ६ ५ सामान्यनियुक्तिकोड २ प्रमाणवाद कृत हरिराम तर्कवागीश ६ विद्वन्मनोरंजनी कृत शंकरदत्त ३ अमरकोसटीका कृत मेरूंजी दीक्षत , ११७ तिलकमंजरी कृत सोमभट्टसूरि ,, ११६८ तत्वसंग्रहचंद्रस्यलघुवृत्ति कृत अघोरशिवाचार्य , १५ १ संग्रहणीसूत्र २ विपाकसूत्र रब्बेरी टीका ३ सुभद्रचरित्र प्राकृत ४ रत्नचूडमुनीचौपई कृत कनकसूरि ५ धर्मदत्तकथा गांठ ३ पोथी १ पत्र ११२ ६ विक्रमचरित्र , ७१ ७ सिद्धांतचंद्रिकाटीका लोकेसकरकृत , २७ ८ सूयगडांगसूत्र टब्बो , २६ ९ श्रीपालचरित्रटब्बो , ७ १० जैनतत्वविचार ९ १ कालिकाचार्यव्याख्या २ , कथा ३ उपासगदशासूत्र टब्बो ४ पंचेंद्रीयजीवविचार ५ मंगलकलसकथा कृत कनकसोमवाचक ६ दशमीकालिक टब्बो ७ वाग्भट्टालंकार पोथी २ टीप पत्र ३०८ उपदेशरसाल ९ कालग्यांनभाषा कृत लक्ष्मीवल्लभगणि , १० प्रज्ञापनाबिधान चतुर्थों उपांगकृत अभयदेवसूरि , ११ संबोधसत्तरी कृत मानकीर्तिसूरि १२ प्रश्नव्याकर्ण टब्बो १३ उत्तराध्ययन टब्बो १४ जीवाभिगमसूत्र , २५ अथ गांठ ४ डब्बो पहिलो १ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र बालाबोध पत्र ५१ १३ रत्नकराख्यछंद अ०६ कत केदारभट्ट पत्र २ धन्नाशालिभद्रचरित्र कृत बुधविजय , ७५ १४ साधुदिनचरियासामाचारी ३ भक्तामरस्तोत्रकथानि १५ सामाचारिसूत्र ४ चतुर्विशतिजिनस्तुति त्रिपाठ कृत बप्पभट्टसूरि १६ व्याकर्ण लघु अवचूरी ५ तर्कभाषा कृत कैसवमिश्र १७ श्रावकदिनकृत्यप्रकर्ण ६ ऐरावतक्षेत्रद्वार कृत गुणसुंदर १८ षोडशकसटीक मूलकत हरिभद्रसूरि ७ षट्दर्शनटीका कृत सिंहतिलकसूरि टीकाकर्ता यशोभद्रसूरि " ८ आलापकप्रकर्णवृत्ती कृत गुणत्नरसूरि , १९ जंबुचरित्र बालाबोध कृत पद्मसुंदरसूरि, ९ प्रद्युम्नकुमारचरित्र कृत गुणसागरऋषि , २० क्रियाकलाप अ. ४ कृत विद्यानंद , १० जिनसतकपंचपाठ कृत जंबू , ९ २१ कर्मपयडीसूत्र ११ लघुशब्दानुशासनसौपग्य कृत हेमचंद्रसूरि, २२ समयसारनाटिक कृत अमृतचंद्राचार्य , १२ भवानीसहस्रनामस्तोत्र कृत २३ कर्णकुतूहल कृत कवि भास्कर, महदेव नंदिकेस २४ ऐरावतसारोद्धारगाथाबद्धकृतनेमिचंद्रसूरि, ८९ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ पार्श्वनाथजीरा देहरारे [पंचम , १२५ . डब्बा २ की टीप इण मुजब १ काव्यकल्पलताकविसिक्षा कृत अमरचंद पत्र ७९ ९ कर्मप्रकृतिटीका कृत मलयगिरि पत्र १९ २ दशवैकालिकवृत्ती कृत कीर्तिरत्नसूरि , ४८ १. कल्पसुत्रटीकातृपाठ कृत ब्रह्मकवि " १.५ ३ चितामणीनाममाला कृत हेमचंद्रसूरि । ११ उपासगदशासूत्र ४ विदग्धमुखमंडनालंकारटीका कृत १२ तर्कभाषाप्रकाश कृ० गोवर्द्धनसुरि कनकसागर , १३ द्रव्यगुणपर्यायरास कृत जसविजय ५ आवश्यकटिप्पनक मूलकर्ता अभयदेवरि १४ सिद्धांतकौमुदीमध्यम कृत वरदराज भट्ट , टीकाकर्ता हेमचंद्रसूरि , १५ विचारषट्त्रिंशिका कृत धवलचंद्र ६ भुवनदीपिकाटीका , २४ १६ कल्पसूत्रवृत्ति कृत महोपाध्याय ७ ठाांगवृत्ती कृत अभयदेवसूरि " २४२ समयसुंदरगणी ८ कल्पसूत्रटीका ,, १३५ १७ भगवतीसूत्रटीका इण मुजब पुस्तक खरतरगच्छका बडा उपाश्रमे छे ।। पत्र १०९ " २८६ २८६ अथ गुजराती बँकागच्छका बडा उपाश्रमे पुस्तकजीको भंडार छे तेहनी टीप इण मुजब नीचे प्रमाणे छ । पहिले डब्बेकी टीप लिख्यते १ जीवाभिगमसूत्र तृपाठ पत्र ११३ ४ महानिसीथसूत्र २ भगवतीसूत्र ,, ५४७ ५ पनवणासूत्र ३ षष्टकर्मग्रंथ बालाबोध ,, २७८६ श्रीयुगादीदेसना अथ २ की टीप इण मुजब १ भगवतीसूत्र पत्र ७०७ ११ रायपसेणीसूत्र २ पन्नवणासूत्र १२ उववाईसूत्र ३ ज्ञातासूत्र १३ निर्यावलीसूत्र ४ ठाणांगसूत्र १४ आचारांगसूत्र ५ अनुयोगद्वारसूत्र १५ उत्तराध्ययनटब्बो ६ अंतगडदशासूत्र १६ प्रतीक्रमणसूत्र ७ आचारांगप्रथमस्कंध १७ दशमीकालिकसूत्र ८ अणुत्तरोववाईसूत्र १८ उत्तराध्ययनटबो ९ उत्तराध्ययनसूत्र ७२ १९ विपाकसूत्र १० अंबुद्दीपपन्नत्तीसूत्र , १५७ २० तंदुलवेयालीयसूत्र अथ ३ की टीप इण मुजब १ कल्पसूत्र ,, ११२ ४ ठाणांगवृत्ती २ भगवतीवृत्ती , ३६० ५ ज्ञाताटीका ,, ४१०६ आचारांगदीपिका कृत जिनहंससूरि अथ ४ डब्बे की टीप इण मुजब १ चदपन्नत्ती ३ उववाईसूत्र २ सूर्यपन्नत्ती ४ सुयगडांग बालाबोध , ४६० Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] ५ सुयगढांगसूत्र पंचपाट ६ उत्तराध्ययन सूत्र "" ८ ९ "" १० दशवेकालिक बालाबोध ११ दशवेकालिकसूत्र १२ १३ १४ १५ 22 " 21 93 "" १६ "" १७ दशवेकालिकसूत्र १८ उपासगदशा १ भगवती सूत्र २ पन्नवणासूत्र ३ जीवाभिगम ४ उत्तराध्ययनबालावबोध ५ दशवैकालिक ६ कल्पसूत्र ७ ज्ञातासूत्र ८ मंदीसूत्र ९ प्रवचनसारोद्धार १ कल्पसूत्र चित्रम् १२ कालिकाचार्यकथा ३ छूटक बोल ५ भवभावनावृत्ती ६ नैषधविद्याधरीटीका 22 "" 39 "" 39 ९४ ४१ १०० " १०८ ३९ २६ ३८ ३० ३० २७ २४ २१ " डब्बे ५ की टीप इण मुजब " "3 23 "" "3 भंडाररी पुराणी टीप ار "" " "" " " در " "" " 29 "" "" पत्र ७०७ ३१५ २०१ २३८ २१ १०९ १०४ २४ "" ६४ अथ डब्बे ६ की टीप इण मुजब "" 99 " " "" ७६ ex "" अथ किल्ले पर भंडारमें गुप्त परतां हे तिस्की याददास्ती १ नेमनाथ चरित्र लंबर पहिलो ७ कल्पविवरण २ मुनिसुव्रत चरित्र २ ३ मुनिपति चरित्र ३ ४ धर्मबद्धप्रकर्ण १९ नंदी सूत्र २० प्रस्मरतीवृत्ती ८२ १० ९६ २१ नंदीसूत्र पंचपाट २२ भुवनभानुकेवली चरित्र २३ हुंडीका ग्रंथ २४ उत्तराध्ययन २५ ज्ञातावृत्ती २६ अनुयोगद्वार २७ निसी वृत्ती २८ पिंडविद्धिप्रकर्ण ३०४ १४२ १५७ १८७ ३८४ ३७७ २९ प्रिष्णव्याकरण ३० शिलोपदेशमाला ३१ वसुधारा ३२ उपासगदशा १० सुयगडांग द्वितीय ११ ठाणांगसूत्र १२ रायपसेणीवृत्ती १३ आचारांगसूत्र १४ व्यवहारसूत्र १५ प्रतिक्रमणसूत्र १६ सूयगडांगसूत्र १७ संग्रहणीसूत्र १८ उपदेशमाला ४ गजसुकमाल चौपी ५ प्रतिक्रमणसूत्र ६ संग्रहणीबालावबोध ८ श्रावक दिनकृत्यप्रकरण ९ आवश्यक नियुकि १० भगवती सूत्र ११ योगनिर्युि १२ कल्पपीठिकावृत्ती AAAA पत्र " "" "" AAAAAA "> "" "" AAAAA " "" 33 " " 33 23 "" "" "" " " " " " ४६३ २६ १२ ४५ ४४ ७९ ३० ९३ ५४ **** १९ ५ ७ ६ २३ ५१ १३० ११० ३४ १० ३० ६३ २४ २९ 5 22 २९ २७ १६६ ૨૪૮ २३२ ३४८ २३४ ९६ Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ ४६४ पार्श्वनाथजीरा देहरारे [पंचर्म १३ दशाश्रुतस्कंध पत्र ७० २० ज्योतिषकरंडटीका कृत मलयगिरि पत्र २२३ १४ , नियुक्ति , ११२ २१ दशवैकालिक बृहवृत्तीनियुक्ति , २४७ १५ पंचकल्प बृहत् भाष्य , १२५ जंबूद्दीपपन्नत्तीचूणी " १६० १६ दशाश्रुतस्कंधचूणी १२५ २२ जंबूद्दीपपन्नत्तीवृत्ती , २६५ १७ ऋषभादि श्रेयांस सुधी ११ तीर्थकर जीवाभिगमसूत्र चरित्र सं. लोकबद्ध कृत २३ विशेषाविशेषवृत्ती , ३२२ ___हेमचंद्रसूरि , २४० २४ प्रज्ञापनावृत्ती कृत मलयगिरि १८ उत्तराध्ययनवृत्ती २५ चंद्रप्रभचरित्र प्राकृत टीका सूत्र १९ विशेषाविशेषवृत्ती द्वितीयखंड कृत धनदेव उ० , १७८ ___ हेमाचार्य , ३६४ २६ निशीथचूर्णी तथा महानिशीथ सूत्र , २९४+८७ ॥ इति श्री किल्लेपर भंडारमें गुप्त परतां हे तिस्की टीप संपूर्णम् ॥ अथ लध्वाचार्यगरुळ उपाश्रये पुस्तकेषु चिपत्र प्रारभ्यते नंबर पहिला १ कल्पसुत्र मूल रूप्यक्षराणि पत्र १४३ २ कल्पसुत्र मूल रूप्यक्षराणि टक पत्र नंबर दूजा १ सप्ततिबृहत्चूर्णि कर्मप्रकृतिचूर्णि पत्र १३२ ८ समवायांगसुत्र २ कर्मप्रकृतिचूर्णि ,, १०० ९ उपासकदशासूत्र ३ कम्मपयडीसंग्रहणीटीका १. अंतगडसुत्र , चूर्णि टिप्पनक ११ ठाणांगसुत्र ४ शतकचूर्णि १२ अणुत्तरोववाईसू० ५ तत्वार्थसारदीपक तथा ध्यानस्वरूप १३ विपाकसुत्र ६ ज्ञातासूत्र मूल ३२ १४ आचारांगसुत्र ७ प्रश्नव्याकर्णसूत्र , २४ १५ उववाईसुत्र नंबर ३ १ दारुवृत्ति धाबकप्रतिक्रमणा पत्र ६१ ९ काव्यकल्पलतावृत्ति अमरचंद्र २ प्रवचन सारोद्धार सूत्र १. वृंदारुवृत्ति ३ पर्युषणकथा कल्पसूत्र , १०८ ११ ललितविस्तरापंजीका मुनिचंद्रसूरि ४ देवचंवजीकत चतुर्विशति बालावबोध १२ ज्ञानार्णव योगप्रदीप सुभचंद्रसूरि ५ भत्तपरिन्ना १३ अर्थदीपिका श्रावक प्र. टीका , १४४ ६ दशवैकालिक वृत्ति सुमतिसूरि १४ कल्पान्तरवाच्य ७ योगशास्त्रे द्वादशमप्रकाश हेथचंद्रसूरि १५ सूयगडांगवृत्ति शीलंकाचार्य ___, १९० ८ चोराशीआशातनादि पूजाविधि १६ उत्तराध्ययनसूत्र नग २ ,६४+८४ नंबर ४ १ आवश्यकनियुक्तिचूर्णि पत्र ३४२ ४ भगवती सूत्र २ पंचाशकवृत्ति हरिभद्राचार्य ५ पिंडविशुद्धिदिपिका ३ विपाकसूत्र , ४२६ गुणस्थानकप्रकर्णवृत्ति , २८ " ३१ ,, ४२५ Jair Education International Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] • उपधानविधि नंदिसूत्र ८ उपदेशमाला ९ सूयगडांग बालावबोध शूटक १० पचक्खाणभाष्य ११ सुकृतसागर जाजणप्रबंध रत्नमंडन १ पुरंदरकथा - शीलविषये २ दिगंबरमतनिरूपणनाम द्वितीयो विश्राम प्रवचनपरीक्षा उ० धर्मसागर ३ उववाइसूत्रवृत्ति तथा मूल अभयदेवसूरि • श्राद्ध दिनकृत्य "" ५. पुष्पमाला 33 ६ अंतगड सूत्रटीका • जीवविचारवृत्ति ८ रत्नश्रावकप्रबंध ९ उपदेशमाला १० संग्रहणीसूत्र मलधारी हेमचंद्रसूरिशिष्य ११ उत्तराध्ययनसूत्र १२ गंडयस्स कहा १३ प्रश्नषष्टिशतककाम्यवृत्ति क्र. पुण्यसागर १४ अतिचार १५ दशवेकालिकसूत्र १६ दशविध सामाचारी १७ लघुक्षेत्रसमासविवरण १८] प्रबोधचितामणि क• मेरुतुंगाचार्य १९ अंतगडसूत्र १० चैत्यवंदनाविधि २१ प्रश्नव्याकर्णसूत्र २२ श्रमणदिवसचर्या २३ ललितविस्तरा चैत्यवंदनवृत्ति हरिभद्रसूरि ५९ 25 53 "" 39 39 "" " " "" पत्र १७ " "" 53 "3 93 " 23 " " 23 33 "2 " "9 "" "9" 33 " "> भंडाररी पुराणी टीप ६ २१ २९ ४१ ७ १६ ३० नंबर ५ ६५ १३ १५ १९ १६ ७ १७ ५ ३१ २२ ** १५ १८ ८ १५ ३४ ४२ २९ ३३ १९ १३ २४ १६ १२ कल्पसूत्र १३ दशअच्छेरा १४ बलिनरेंद्राख्यानम् १५ निशीथसूत्र १६ श्रावकदिनकृत्य १७ प्रतिक्रमणहेतुगर्भ जयचंद्रसूरि २४ भक्तामर स्तोत्र २५ पचखाणभाष्य व्याख्या नग २ २६ उपदेशमाला २७ श्राद्धसामाचारी २८ योगशास्त्र चतुर्थप्रकाश नग २ हेमचंद्रसूरि २९ प्रदेशीकथा ३० पिंडविशुद्धिदीपिका ३१ विवेकमंजरीबालावबोध ३२ कर्मविपाक ३३ परिशिष्टपर्व क० हेमचंद्रसूरि ३४ नवतत्वटीका ३५ कल्याणमंदिरवृत्ति देवतिलकसूरि ३६ अनुमानखंड गोपाल ३७ पंचनिग्रंथसंग्रहणी अभयदेवसूरि ३८ रविगमनप्रमाण योतिष ३९ अनुत्तरोववाई ४० चतुःशरण अवचूरि ४१ कायस्थितिस्तोत्र ४२ कृष्णराजीविचार ४३ रत्नचूडचोप ४४ नवतत्वप्रकर्णमूलटब्बो ४५ नयचक्र मूल तथा बाला• ४६ लोकनाल मूल तथा बाला• ४७ दशठाण ४८ पुष्पमालाप्रकर्णमूल ४९ "" ५० संदेहदोहलावलिप्रकर्ण " १२० ५ ====== "" 22 ७८ ,, ६+७ २८ "" "" "" "" "" "" 33 "" "" " دو "" "2 "" 33 ور " "" "" 39 ४६५ " " ५४ २९ १५ ११ ८ १९ १४ ८ १६ ६२ ६३ १७ १३ १३ ५ ७ ६ ३ ३ १ १४ ४५ ४९ १२ १६ २५ १३ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ [पंचम संग्रहणीसूत्र २ उत्तराध्ययनसूत्र पार्श्वनाथजीरा देहरारे नंबर ६ " ७६ १. गुणमंजरीवरदत्तचौपई ११ दशपयन्नासूत्र , ५४ १२ शालिभद्रचोपई पत्र ७ १३ साधुसामाचारी १०. १४ थावच्चाजिनचौपइ ,, १५१ १५ अयवंतीसुकुमालभास २४ १६ पंचदशतिथिस्तुति , २४ १५ आणंदश्रावकसंधि ४ विवेकमंजरी ५ भगवतीसूत्र मूल ६ श्राद्धदिनकृत्य ७ कल्पसूत्र बालावबोध ८ अंतगडसूत्र ९ निर्यावलिसूत्र नंबर ७ ... .. १० .. १ कल्पलता कल्पसूत्रवृत्ति समयसुंदरगणि पत्र १९१५ उत्तराध्ययनावचूरि पत्र ११६ २ महानिशीथसूत्र , १५१ ६ ज्ञातासूत्र तथा वृत्ति पत्र ६७+१३८ ३ शत्रुजयमहात्म लोकबद्ध धनेश्वरसुरि , १८४ ७ लघु संदेहदोहलावली प्रबोधचंद्रगणि , ३३ ४ भगवतीवृत्ति ८ वंदारुवृत्ति नंबर ८ १ सुयगडांगदीपिका साधुरंग उ. ,१४४ २७ दशाफल २ पात्रदाने वस्तकथानक २८ समकित तथा चतुर्थव्रत उच्चारणविधि ३ उपदेश २९ वैराग्यशतक ४ श्रीपालरास ३० क्षेत्रसमास ५ योगशास्त्रप्रकाश ४ हेमचंद्रसुरि ३१ योगविधिकल्पाकल्प ६ दंडकटब्बो ३२ शिलोपदेशमाला ७ विंशतिवहिरमानस्तवन जशोविजयजी ३३ विवेकमंजरी ८ दोशावलि निमित्त ३४ स्तवन सज्झायादि ९ सारस्वत ३५ सीमंधरजिन स्तवन १२५ गाथार्नु १० उपासकदशाटब्बो ३६ चोवीसजिनस्तवन १ कमप्रथ १२ श्रावकदिनकृत्य ३७ रंगरत्नाकर छंद १३ लघुक्षेत्रसमास ३८ चउसरणपयन्ना १४ षष्टिशतकप्रकर्ण ३९ सीमंधर जिन ३५० गाथार्नु स्तवन १५ समकित ६७ बोल ढाल यशोविजयजी ४० चोवीसचिनस्तवन १६ सिद्धाचलमहिमा ४१ सिद्ध संचाशिका १७ द्रव्यगुणपर्यायरास १२ भववैराग्यशतक १८ सत्तरमेदीपूजा सकलचंद्र ४३ क्षेत्रसमास १९ भगवतीसूत्रभांगा ४४ समासमारोबार २. चतुर्मासीव्याख्यान ४५ कर्मग्रंथ २१ संबोधसत्तरीटम्बो ४६ शेषनाममाला २२ पञ्चखाणभाष्यादि ४७ सामायक पौषधविधी पोसहादी २३ वीतरागस्तोत्र हेमचंद्राचार्य १८ दशवैकालिकसूत्र २४ चत्रीदेववंदनविधि ४९ द्वादशभावनासिज्झाय २५ अतीचार ५० कपूरप्रकरामिध सुभाषितकोश २६ वसुधारा बज़सेनशिष्य .:.. ८ २ Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11.TA. ३२७ परिशिष्टम् । भंडाररी पुराणी टीप नंबर ९ १ सम्मतितर्कटीका भाग दो तत्वबोध ८ विचारषदत्रिशिका विधायनी पाम्नर्टिशिष्य पत्र ६५ ९ जगतसिंहयशस्वीसमस्या २ कालिकाचार्यकथा समयसुंदर महाकाव्ये तृतीयस्वर्ग-भटभदन ३ विवाहप्रकर्ण काशीनाथ १. शालिभद्रचौपद ४ भक्तामरटीका मंत्रकथासहित ११ शांबप्रद्युम्नचोपाई ५ स्तवन सिज्झाय सिद्धाचलगीतम् १२ कर्मप्रथबालाबोध त्रूटक गुणाकररि १३ प्रवचनसारोद्धार सारांस ६ क्षेत्रसमास १४ इलाकुमारचोपइ ७ चतुर्विशतिजिनस्तोत्र भाषा १५ बिल्ल हकृत बावनी नंबर १० १ नंदीसूत्र पत्र १४ ७ उत्तराध्ययन सुबोधिकावृत्ति २ शत्रुजय महात्म धनेश्वरसूरि ,, १६७ ८ जंबुद्वीपपन्नत्ती सूत्र ३ जीवाभिगमसूत्र-नग २ पत्र ९०+८१ ९ जीतकल्पसूत्र ४ उवाईसूत्र पत्र २८ १० श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तिलकाचार्य ५ दशवैकालिकटीका तिलकाचार्य ११ ओघनियुक्ति ६ पिंडनियुक्ति , १. १२ रायप्रस्नीसूत्र नंबर ११ १ भगवतीसूत्रवृत्ति अभयदेवसूरि पत्र ३६५ ३ आचारांगसूत्रवृत्ति शीलंकाचार्य , २८८४ अनुयोगद्वारसूत्र नंबर १२ १ अनेकांतजयपताका हरिभद्रसूरि ८७ ३ अनेकांतजयपताका टिप्पण श्रीमुनिचंद्र पत्र २२ २ अनेकांतजयपताकाटीका , नंबर १३ पंचकल्पभाष्य संपदासगणि क्षमा० पत्र १५१३ कप्पे छट्ठो उद्देसो पत्र २२ २ , चूर्णी , नंबर १४ १ बसुदेवहिंदीए पढमो पभावईलंभो नाम धर्मसेनगणि छउ पत्र ३६५ नंबर १५ श्रावकधर्मप्रकर्ण वृत्ती ग्रंथ श्लोक १५१३१ जिनेश्वरसरि पत्र ३५३ नंबर १६ १ तिलकमंजरी धनपाल पंडित पत्र १९३ नंबर १७ १ सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकर्ण तथा लोकनालि सम्यग क्षेत्रसमासादि अनेक ग्रंथ छे तथा पंचलिंगीप्रकर्ण आवश्यकविधि तथा जिनवल्लभसूरि आदि पत्र २०२ २.. २८ " " १४२ Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ६२ पार्श्वनाथजीरा देहरारे भंडारी पुराणी टीप नंबर १८ १ प्रतिष्ठाविवादमोहोन्मूलन वादस्थल तथा आवश्यक पत्र १०१ सर्वज्ञपरिक्षा १०५ महादेवस्तोत्र १.९ स्वरूप तथा आत्मानुशासन तथा कालचक्र पत्र ६१ तथा दूजा ग्रंथ छ । अजितदेवसूरि में तथा वोच्छेयगंडीया पत्र ९१ में दुसमगंडीया २ अजितशांति दूसरी टीकादि धर्मतिलकमनि पत्र" नंबर १९ जयपाहुड प्रश्नव्याकर्ण पत्र २२८ नंबर २० यतियोगविधान आराधनाविधी १६ दशवैकालिकसूत्र नवम अध्ययनस्य तथा गच्छसामाचारी पत्र ११७ प्रथमाध्ययन बालावबोध २ उपदेशमाला संस्कृत टब्बो तथा १७ पुंडरीककंडरीकसंधि चतुर्विशतिजिनचउपईबंधस्तोत्र १८ अव्ययोभावसमास ३ नंदि सूत्रवृत्ती मन्यगिरि १९ दंडक सं० ४ मौनएकादशीकथा रविसागर २० महावीरस्तवन समयसुंदरगणि ५ सौभाग्यपंचमीकथा श्लोकबद्ध कनक २१ सिद्धाचलस्तवन ज्ञानविमलसूरि कुशल २२ अढारपापस्थान जसविजयजी ६ प्रतिक्रमणसूत्र बालावबोध २३ दानसियलतपभावचौपई ७ जीवचार समयसुंदरगणि ८ आषाढभूतिमुनिरास २४ साधुवंदना ९ कल्पसूत्रान्तरवाच्य २५ नंदीसूत्र १. प्रतिक्रमणसूत्रबालावबोध २६ स्थंभणस्तुति अवचूरी ११ शेत्रुजय चैत्यपरिपाटी २७ अढारपापस्थान का देवचंदजी १२ कर्मविपाक २८ गौतमकुलक १३ महावीरचरित्र २९ नववाड उदयरतन १४ शेत्रुजयकल्प ३. रूपकमाला शीलगीत १५ जसविजयकृत चोवीसी ३१ स्तवनसिज्झाय Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठं परिशष्टम् जेसलमेरुज्ञानभण्डारशिलालेख: ॥५०॥ णमो त्थु णं समणस्स भगवओ वीरवद्धमाणजिणस्स । णमोत्थु णं अणुओगधराणं । श्रीमन्तं कमठप्रतापमथनं श्रीअश्वसेनाङ्गजं श्रीवामातनयं प्रभावनिलयं नाम्ना निरस्तामयम् । अर्हन्तं धरणोरगेन्द्रमहितं पद्मावतीसंस्तुतं पौनःपुन्यमई करोमि शरणं श्रीपार्श्वनाथं जिनम् ॥ १॥ स्वस्ति श्रीनृपविक्रमार्कसंवति २००७ चैत्रमासे शुक्लपक्षे एकादशीतिथौ बुधवासरे पूर्वाफल्गुनीनक्षत्रे स्थिरयोगेऽयेह श्रीजेसलमेरुमहादुर्गे खरतरगच्छालङ्कारयुगप्रधानाचार्यप्रवरश्रीजिनभद्रसूरिजैनभाण्डागारस्य जीर्णोद्धारविधानादिपुरस्सरं पुनः स्थापना विहिता। अयं च ज्ञानकोशो युगप्रधानाचार्यश्रीजिनभद्रसूरिभिः पञ्चदशविक्रमशतकचतुर्थचरणे स्थापित आसीत् । तदन्तश्च तैः प्राचीनतमानां चिरन्तनजैनजैनेतरस्थविराचार्यपुङ्गवविनिर्मितानामतिबहुमूल्यानामलभ्यदुर्लभ्यानां ग्रन्थानां सङ्ग्रहोऽकारि। नवीना अपि च सहस्रशो ग्रन्थप्रतयस्तैस्ताल-कागलादिपत्रेषु लेखिताः । लेखयित्वा चात्रत्यज्ञानकोशेऽणहिल्लपुरपत्तनादिचित्कोशेषु च स्थापिताः । अपि च जेसलमेरुदुर्गस्थस्थास्यातिमहतो ज्ञानागारस्याघावधि बहुभिर्मुनिपुङ्गवैविद्वत्प्रवरैश्यावलोकन ग्रन्थनाममूचीपत्रं पुस्तकलेखनं जीर्णोद्धारादिकं च व्यधायि । तत्रापि गतविक्रमशतकान्तः डॉ० टोड, डा० बुल्हर, डॉ० याकोबी, डॉ० भाण्डारकर, यतिजी श्रीमोतीविजयजी, श्रीहंसविजयजी महाराज, श्रीजैनश्वेताम्बर कोन्फरन्स मुम्बई, सी०डी० दलाल, श्रीजिनकृपाचन्द्रसरि, श्रीजिनहरिसागरसूरि, भारतीयविद्याभवनाधाचार्य श्रीजिनविजयजी, यतिश्रीलक्ष्मीचन्द्रजीप्रभृतिभिर्विद्वद्वरैर्ज्ञानभण्डारनिरीक्षण-पुस्तकलेखन-ग्रन्थनामसूचीविधानादि पाण्डित्यसूचकं निरमायि । तथापि नैकेनापि विद्वत्मकाण्डेनैतद्भाण्डागारजीर्णोद्धार-ग्रन्थव्यवस्थापन-लेखन-संशोधनादिकं समग्रभावेन व्यधायि । किञ्च श्रीसङ्घपुण्योदयात् श्रीजेसलमेरुदुर्गश्रीसङ्घसम्मत्या सधवीश्रेष्ठि बाफणा श्रीसांगीदासजी सुपुत्र श्रेष्ठिश्रीआयदानजी, महेता श्रेष्ठिश्रीराजमलजी सुत श्रीफत्तेसिंहजीसुश्रावकयोविज्ञप्स्या श्रीजेसलमेरुतीर्थयात्रा-प्राचीनज्ञानभण्डारजीर्णोद्धाराद्यर्थ श्रीगूर्जरदेशान्तर्गतराजनगरतः ( अहमदाबादनगरात् ) अत्युग्रेण विहारेण विहत्यात्रागतैः श्रीतपोगच्छदिवाकर न्यायाम्भोनिधि संविग्नशाखीयाद्याचार्य पञ्जाबदेशोद्धारक आचार्यश्रीविजयानंदमूरि (श्रीआत्मारामजी महाराज) शिष्याऽणहिल्लपुरपत्तनादिगतजैन Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० जेसलमेरुज्ञानभंडारशिलालेखः [ षष्ठ ज्ञानभाण्डागारोद्धारक प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयान्तेवासि लीम्बडीप्रभृतिनगरस्थप्राचीनज्ञानभण्डारोद्धारक श्रीआत्मानन्दजैनग्रन्थमालासम्पादकमुनिवर श्रीचतुरविजयजीशिष्याणुशिष्यरत्नैः समग्रजिनागमपुनःसर्वाङ्गसंशोधनेच्छुकैर्मुनिपुण्यविजयैः स्वबृहद्गुरुबन्धुपूज्यपाद श्रीमेघविजयजीमहाराजच्छत्रच्छायास्थितैः पूज्यप्रवरचारित्रचूडामणिश्रीहंसविजयजी महाराजान्तिषदतिविनीतभावपूर्ण प्रज्ञांशश्रीसम्पतविजयजी शिष्याणु अनेकग्रंथसंशोधनप्रतिलिपिविधानप्रवीण मुनिश्रीरमणीकविजयजीसंयुतैः स्वशिष्य श्रीजयभद्रविजयजीपरिवृतैरत्रत्यदुर्गस्थितप्राचीनतमजनज्ञानकोशस्य ग्रन्थालेखन-संशोधन-पृथक्करण-टिप्पविधानादिना सर्वाङ्गीणो जीर्णोद्धारो विहितः । अपि चैतद्भण्डारजीर्णोद्धारादिसमस्तकार्येषु अनेककार्यविधानकुशलो न्यायतीर्थबेलाणीश्रीफत्तेहचन्द्रो भोजककुलभूषणः पण्डितश्रीअमृ. तलालः सततसंशोधनादिलीन पण्डितश्रीनगीनदासः लेखनकलाप्रवीणो भोजकचीमनलालश्च एते चत्वारोऽपि विद्वांसः सततसहायिनोऽभूवन् । तथा राजनगरीयश्रीगूजरात विद्यासभया स्वीयद्रव्यव्ययेन प्रहिताः श्रीजितेन्द्रभाई जेटली एम. ए. न्यायाचार्या अप्यत्रत्यज्ञानकोशस्थदार्शनिकग्रंथसंशोधनादिषु सहायका आसन् । तथैवात्रत्यभण्डारजीर्णोद्धाराशुपयोग्यन्यान्यकार्येष्वनवरतश्रमी भोजककुलनंदनो लक्ष्मणदासो रसिकलालश्चापि सहायिनावभूताम् । रसवतीकारको वीरचन्द्रः ठाकोरमाधवसिंहश्चापि सोत्साहभावेन सर्वेषामानंददायिनावभूताम् । अपि चैतज्जीर्णोद्धाराद्यर्थ समस्ता द्रव्यादिव्यवस्था श्रीजैनश्वेताम्बरकोन्फरन्स बम्बई संस्थया विहिता। तत्रोपर्युक्तविद्वत्समूहद्रव्यव्ययव्यवस्था सर्वाऽप्यणहिल्लपुरपत्तनवास्तव्य-ज्ञानभक्तिभृत् सुश्रावकश्रेष्ठि श्रीकीलाचन्द्रात्मज श्रीकेशवलालसत्प्रेरणया पत्तनीयोदारचेतस्क-जिनप्रवचनानुरागिणा श्रेष्ठि पोपटलालसुपुत्रेण श्रीचीमनलालेनात्मीयज्ञानावरणीयादिक्लिष्टकर्मनिर्जराथै विनिर्मिता । अपरा च ग्रन्थकाष्ठपट्टिका-दवरक-वस्त्रवेष्टन मञ्जूषा-ऊर्ध्वमहामञ्जूषा (कबाट) आदि विषया ग्रन्थप्रतिबिम्बन (माइक्रोफिल्मिंगफोटोग्राफी) विषया च द्रव्यव्यवस्था विश्वाऽपि श्रीजैन श्वे. को० कार्यकरविज्ञप्त्या तत्तत्स्थानीयश्रीसधैर्विहिता । तथाहि-श्रीगोडीजीजैनश्रीसङ्घ बम्बई रू. १००००। कोटश्रीसम बम्बई रू० २००० । पूना श्रीसङ्घ २००० । कलकत्ता श्रीसङ्घ २००० । श्रेष्ठिश्रीहेमचंदभाई-भूपेन्द्र ब्रधर्स बम्बई २५०० । वडोदरा जानीसेरीश्रीसङ्घ ७५१ । वडोदराश्री आत्मारामजीजैनज्ञानमंदिर ७५१ । बहेन जसकोरबहेन झवेरी ह० हसमुखबहेन ज्ञवेरी वडोदरा ५०० । शा० छगनलाल लक्ष्मीचंद वडु ४०१। एतत्सर्वसहायकारिभ्योऽप्यत्युपयोगि साहाय्यं श्रीजेसलमेरु श्रीसङ्घचित्कोशव्यवस्थापक सङ्घमुख्य श्रेष्ठि महेताश्री Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्टम् ] जेसलमेरुज्ञानभंडारशिलालेखः ४७१ रतनलालजीनंदन श्रेष्ठि श्रीरामसिंहजी-श्रेष्ठि श्रीफत्तेसिंहजी महेता-संघवी श्रेष्ठि श्रीआयदानजी बाफणा-श्रेष्ठि श्रीकेसरीमलजी जिंदाणी सुपुत्र श्रेष्ठि श्रीप्यारेलालजी प्रभृतिभिर्वितीर्णम् , यद् एतैर्निर्मलज्ञानभक्तिशालिभिः समस्तोऽपि ज्ञानकोशो व्यवस्थाधर्थ समर्पितो येन ज्ञानकोशव्यवस्थादिसौकर्य समजनि । अपि चात्र पञ्चदशमासाधिकसमयस्थित्या जीर्णोद्धारादि सर्व कार्य निर्वाहितमिति भद्रं श्रीसंघभट्टारकस्य । प्रशस्तिलिखितेयं चीमनलालेन । उत्कीर्णा च मेडती सिलावट ईस्माइलेन । वीर संवत् २४७७॥ श्री ॥ शुभं भवतु ॥ तपागच्छाधीशश्रीविजयानंदसूरिपट्टप्रभाकर श्रीविजयवल्लभखरिधर्मसाम्राज्ये स्वतन्त्रभारतमहासाम्राज्यगणतन्त्रच्छायास्थमहारावलजी श्रीरघुनाथसिंघजी साहबबहादुर विजयराज्ये ॥ श्री ॥ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in Education International