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________________ २८ २०८ न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका, वाचस्पतिमिश्रकृता, पत्र २०१ (२०१ थी ४०१) - २०९ न्यायतात्पर्य परिशुद्धि, उदयनाचार्यकृता; पत्र १६४ (४०२ थी ५६६) २१० न्यायटिप्पन, श्रीकण्ठकृत, पत्र ४९ (५६७ थी ६१४) A २११ जम्बूद्वीपप्रज्ञति सूत्र, पत्र ४६ (१६५१ थी १६९६) २१२ पिण्डनिर्युक्तिअवचूरि २१३ बालशिक्षा व्याकरण, पत्र ३० २१४ निर्वाणलीलावती कथोद्धार, पत्र २६७, अपूर्ण. ' उपर जणावेला ग्रन्थोनी माइक्रोफिल्म लेवानुं कार्य न्यु दिल्हीमां कराववामां आव्युं छे. मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स अने ओथोरीटीस ऑफ एडमिनिस्ट्रेटीव इ-टेलीजन्ट्स रूम (क्वीन्स वे, न्यु दिल्ही), आर माइक्रोफिल्म लेवाना कार्यमां अनुकूलता आपी हती. आ दिवसोमां नेशनल म्युझीयम - न्यू दिल्हीना विद्वान् अध्यक्ष श्री डॉ. वासुदेवशरणजी अग्रवालने आ ग्रन्थेनुं महत्त्व अने दर्शनीयता जणातां तेमणे ता. २४-२५ फेब्रुअरी १९५१ ना दिवसे नेशनल म्युझीयममां आ ग्रन्थोनुं प्रदर्शन योग्य हतुं. आ प्रसंगे तेमणे प्रकाशित करेला निमंत्रण पत्रमा जेसलमेरना जैन भंडार अने तेना ग्रन्थो माटे आ प्रमाणे जणान्युं हतुं : -- Jain Education International AN EXHIBITION OF OLD PALM-LEAF MANUSCRIPTS These mansucripts belong to the Jinabhadra Jñana Bhandar, an ancient library established in the 15th century at Jaisalmer as part of a Jain temple establishment. The library contains some of the oldest manscripts known in India going back to the 10th century A. D. and has remained almost sealed to the public from the 15th century, which partly accounts for its preservation intact. The distinguished Jain scholar Muni Punya Vijayaji, through his personal influence १. पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीना काळधर्म पछी तेमनी अंतरेच्छाने अनुसरीने तेमना प्रधान शिष्य दीर्घतपस्त्री पंन्यासजी दर्शविजयजी महाराज साहेबे पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीनो समग्र संग्रह (हस्तलि खितं मुद्रित ग्रंथो अने अन्य कलासामग्री) श्री ला.द. विद्यामंदिरने समर्पित कर्यो छे. आ संग्रहमां अह उपर जणावेली, माइक्रोफिल्न टेवायेला ग्रंथोनी यादी पण मळी आवी छे, जे पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीए स्वहस्ते लखेली छे. आ यादीने अनुसरीने ज उपर जणावेली ग्रन्थसूचि आपवामां आवी छे. आम छतौ आ सूचिमां आवेला रोल नं ६-७८ ला.द. विद्यामंदिरमां आव्या नथी. आ संबंधमां विशेष तपास करतां एम जणायुं छे के उक्त ऋण रोल पं. श्री फतेचंदभाई बेलाणीनी पासे छे. आ संबंधमां ला.द. विद्यामंदिरना मुख्य निय मक पं. श्री दलसुखभाई मालवणियानी समक्ष रूबरू मुलाकातमां पं. श्री फतेचंदभाई बेलाणीए मौखिक जणावे के रोल नं. ६ ७ ८ तो में मारा माटे अने मारा खर्चे लेारावेला छे. आभी उक्त त्रण रोल ला.द. विद्यामंदिरमां आव्या नथी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018005
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages522
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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