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________________ ३२ जेसलमेरना ज्ञानभंडारोना समुद्धार संशोधन आदिना संबंधमां पूज्यपाद आगमप्रभाकरजी साथेना मुनिवरो, सहायक विद्वानो, अन्य कार्यकरो तेमज आ महत्वना ज्ञानकार्यमां थयेल खर्चना दाताओ वगेरेनी विगतो दर्शावतो एक शिलालेख सुंदरलिपिमां कोतरावीने जे भयरामां भंडार छे ते भयराना प्रवेशना पहेला खंडमां पत्थरनी दीवाल कोचीने चोडाव्यो छे जेथी आवा ज्ञानकार्यमा ते ते प्रकारे प्रेरणा अने अनुमोदनानी परंपरा जळवाई रहे, आ शिलालेखनो पूरो ख्याल आवे ते माटे तेनो ब्लोक बनावीने तेनी प्रतिकृति आ सूचीपत्रना प्रारंभमां मूकवामां आवी छे, अने तेनुं समग्र लखाण सुवाच्य बने ते माटे आ ग्रन्थना अंतमां छट्टा परिशिष्टरूपे आप्युं छे. संस्कृतभाषामां लखायेला आ शिलालेखनो अनुवाद नीचे प्रमाणे छे. जेसलमेर ज्ञानभंडार शिलालेख श्रमण भगवान वीर वर्द्धमानजिनने नमस्कार हो. अनुयोगधरोने नमस्कार हो. कमठासुरना प्रतापनं मथन करनारा, श्री अश्वसेन तथा श्री वामादेवीना पुत्र, प्राभाविक, नामस्मरण मात्री रोगोने दूर करनारा, अर्हन्, घरणेन्द्रथी सेवित, पद्मावतीथी संस्तुत, एवा श्री पार्श्वजिननुं हुं पुनः पुनः शरण स्वीकारुं लुं. स्वस्ति श्री विक्रम संवत् २००७ना चैत्र सुदि ११ तिथि अने बुधवार पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रमां स्थिरयोगमां आज अहीं श्री जेसलमेर महादुर्गमां खरतरगच्छालंकार युगप्रधानाचार्यप्रवर श्रीजिनभद्रसूरिज्ञानभंडारनी, जीर्णोद्वारादि कार्य पूर्वक, फरीने स्थापना करवामां आवी छे. आ ज्ञानभंडार युगप्रधानाचार्य श्री जिनभद्रसूरिए विक्रमना पंदरमा शतकना चौथा चरणमां स्थापित क्रर्यो हतो. तेमां तेमणे जैन जैनेतर स्थविरार्यपुंगवोए रचेला अतिबहुमूल्य अलभ्य अने दुर्लभ्य प्राचीनतम ग्रन्थोनो संग्रह कर्यो हतो. तेम ज तेमणे ताडपत्र अने कागळ उपर हजारो ग्रन्थो लखाव्या हता. अने ते अहींना - जेसलमेरना अने अणहिलपुर पाटण वगेरेना भंडारोमां मूक्या हता. आज पर्यन्त घणा मुनिपुंगवाए भने श्रेष्ठ विद्वानोए जेसलमेर दुर्गमा रहेल आ अतिमहान् ज्ञानभंडारनुं अवलोकन, ग्रन्थसूची, पुस्तक लेखन अने जीर्णोद्धारादि कार्य कयुं छे. तेमां य गया सैकामां डॉ. टोड, डॉ. बुल्हर, डो. याकोबी, डॉ. भाण्डारकर, यति श्री मोतीविजयजी, श्री हंसविजयजी महाराज, श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स - मुंबई, श्री सी. डी. दलाल, श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि, श्री जिनहरिसागरसूरि, भारतीयविद्याभवन ( मुंबई ) ना आद्य आचार्य श्री जिनविजयजी, यति श्री लक्ष्मीचन्द्रजी वगैरे विद्वद्वरोए ज्ञानभंडारनुं निरीक्षण, पुस्तक लेखन अने ग्रन्थसूचीनुं पाण्डित्यसूचक कार्य कर्युं छे. आम छतां एक पण प्रकाण्ड विद्वाने आ भण्डारनुं जीर्णोद्धार प्रन्थव्यवस्थापन-लेखनसंशोधनादि कार्य समप्रभावे कर्यु नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018005
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages522
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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