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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org मी मग माण जिणस्सा मोगराणीक उपतापमथन श्री च्या सेना- जाशी वा मातनयं नाव नित्र्यंनाना निरस्तामयम्॥ छर्दनर गौरापतीसंतापीन पुण्यमहं करो मिशरण श्री पार्श्वनार्थ जिन॥॥ स्वस्तिश्रीनृपविक मार्क संवति २००१चैत्रमासे युक्त पदे एकादशी तिथी बुधवासरे पूर्वष्णुनीनदविश्विर योगे वह श्रीनितलमागे खरंतर गजानं कारयुगपधाना वार्यश्वरश्री जिनसरिजैन ज्ञानमा अगारस्य जीर्णोद्वार विधानादि पुरस्रं पुनः सापनाविहिता अर्थच ज्ञान की ओयुग प्रधा नाचार्य श्रीचिकाइसन पचदशनिमगठकचतुर्थचरखापित पोसीता तदनचतैः प्राचीनतमानां चिनकोनजेनेतर स्त्रविराचार्य विनिर्मितानामतिवकमूल्यानामनच्या जानकारी पिनसह सोन्यश्य खालका गलादि खिताः । खविवाचात्य ज्ञानकोशेहि पुरपत्तनादिचिकोशे पुचस्त्रापिताः। यपि जेसलमेरु स्वातिमहतोज्ञानागारस्थानाधिभिर्मुनिवार्य नरैवावलोकानंगन्य नाम सूची पुस्तक जननेजीणेचारादिकंच व्यधायितचापिगतविक मशतकात डॉ० टॉड-डॉ. बुखर- डॉ. याकोनी डॉ. नाशस्कर-यतिजी श्री मोतीबिजयना-श्रीसविजयजी महाराज श्रीजैन होता घर कॉन्फरन्स मुखई - सी०डी० दलाल-श्रीजिनक पावन्द्रसरि, यी जिनहरिसागर सूरि- भारतीयविद्या नवनाथाचा थीजिनविजयजी यतिनीधी न साची प्रतिनिधिघरे ज्ञान नडार निरीक्षण- पुस्तक लेखन-य-थनामसूचीविधानादिपाण्डित्य सूचकं निरमायातथापिने के ना विविधत्यकाण्डेनैताखागार लीमार उपवाक्यापा-पेखन संशोधनारिक समग्र नावेन वाधायिकि श्रीस इ-पृयोदयात श्रीजेसलमेरु श्री ममसम्मत्यास वी श्रेष्ठापणा श्रीसाजीदारानी सुपुत्रश्रेधिश्रीया यदानजी श्रीराजमनजीत श्रेष्ठिफतेसिंहजी मुथा योर्विज्ञाया श्रीजेसन मेरुतीर्थयात्रा प्राचीन ज्ञान मडारजीर्णोधाराद्यर्य श्री गुर्जरदेशान्न तिराननगरत (मवावादत परिहारेणवित्वावागतैः श्रीतयोग दिनाकरन्यायाजोनिविसंविशारतीयाद्याचार्य पञ्चानदेशीधारक याचार्य श्री विनयान इस रिश्रीश्रात्मारामजी महाराज) शिथाऽगहि जैन ज्ञानमा डामारो वारक वर्तक कवि विजयातेवासिलीनी पतिमगर प्राचीन ज्ञानाधारक श्री श्रात्मानधन यन्यमाला सम्पादक सुनिवरश्री चतुरविज (शशाशिनः सराय निकाम पुनः सह संशाने कर्मनिश्री विजय स्त्रहरुबंधुपादश्री विजयनी महाराज वायातितैः पूज्यपवस्वास्त्रिचडामणिश्रीहं वि विनीतनावपूर्णज्ञांश श्रीसमासविजयजी शिक्षा अनेक संशोधनऽतिलिपिविधान प्रवीण मुनि श्री रमणीक विजयजी में गुते खशिघ श्रीजयन्नद विजयजीपरिवृ तिनमनज्ञानकोशन्यलेखन संशोधन-पृथक्करण-विष्यविधानादिना सर्वाणोजीकारी विहितः प्रपिचेत भडार जीणोदारादिसमरत कार्ये कार्यवा श्वान्यायतीव जाणवतेहचंद्रो नी कुलभूषण:पडितश्री मृतजातः सतत संवोधनादिजीन परितश्रीनगीन रासो जेस्वनकला पवीण नीजक चीमन जायतेचारोऽवि सतत महाविनास्या राजनगरीय श्री राजरात विद्यासनया चीयनपहिताः नटली एम.ए. न्यायाचार्याय ज्ञानकोशस्त्र दार्शनिकयन्यसंगी विकास तात्याजीगरायोग्य त्याच कार्येमोनीलमणदास रसिकजालश्चापि सायिनावनुताम्। रसवंतीकारको वीरमादवसितावतो साहभावेन सर्वेषामानदायिनी नूनामा पितीणी दारार्थसमस्ताऽयादिवताश्रीजैन प्रेतांबर कॉन्फरन्स बघई संख्या विहितात विवस्वास हिलपुर तन वास्त ज्ञान श्रेष्ठका चात्मजश्री केशव जाल मत्प्रेरणयापत्तनी यो दार चेतरक- जिनवचनानु भिमादेवि पटला सुगीचीमन वाले नात्मीय ज्ञानावरणीयादिकिष्टकर्मनिर्जरादिनिर्मिता अपरान् कामपछिका दवरक वस्त्रवेष्टनमा महापा(कबाद) विश्या वी निकालाको फिलिंग फोटोग्राफ विश्याच वागवस्त्राविद्या १०००० कोटी ६:३० २०० श्री मेघ २००० कटक नाश्री संघ २००० ज्ञानमंदिरपरा बदन जसकोर व्हेइरा कोशापक समस्य श्रेष्ठता श्री रतन लाल जीन श्रीजेन खे० कॉ० कार्य करविज्ञातत्तखानीय श्री सहै विहिना। तथा श्री गोडीजी जैन श्रीस हम चंदनाई पेद्रई२५०० वडोदराजानी तेरी श्रीसंघ१५१ वडोदरा श्री आत्मारामजी बगनेसाल लक्ष्मी व सर्वसहायका रिन्योऽयुपयोगि साहाय्य श्री नेसलमेरुराय रामजी सिंहजी तावश्रियायदान जी जागा-श्रेतिश्री केशरीमलजी जनाणी सुड परिवाराश्चति निर्वनि-एननिर्मलज्ञानमक्तिशालिग सोडा को समर्पितयेन ज्ञानकोश व विसौकर्य समननिय पिधायामासाधक समय अनिवरित नितिन श्री सनारकर यासि विखोजक चीन जालना जीणी मेलामाइन वीरवर२४९३८ ॥ श्री गावाकयानसर पहनाकर श्रीविजयवन सरिक्षसामान्यख महागणारा धीरघुनाथ संघजी साहब नव॥श्री श्री जिनभद्रसूरि ज्ञानभंडारके जीर्णोद्धारका शिलालेख
SR No.018005
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages522
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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