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________________ १३ " अणहिलपुर पाटणथी ज्ञानभंडारने खसेडीने जेसलमेर दुर्गना गुप्तस्थानमां मूकवामां भाव्यो छे" आवी प्राचीन समयथी किंवदंती संभळाय छे, पण अहीं एटलं तो सुस्पष्ट थाय ज के जेसलमेरो आ प्राचीनतम ज्ञानभंडार आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीए ज स्थापेलो छे. जे भंडार माटे किंवदंती छे ते भंडार कोई बीजो होय अने ते हजु सुधी गुप्तावस्थामां न होय से वस्तु विचारणीय छे. २. बेगडगच्छीय ज्ञानभंडार खरतरगच्छनी वेगडशाखाना विद्वान् आचार्योंए आ भंडार स्थापेलो . आमां विक्रमना १३ मा शतक भी २० मा शतक सुधीमां लखायेला ग्रन्थो छे. २० मा शतकमां लखाएला ग्रन्थो माचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजीए लखावीने मूक्या छे. आमां रहेला, विक्रमना १५ मा शतकमां पाटण (गुजरात) मां लखायेला, प्रन्थोनी पुष्पिकाओ जोतां एम जणाय छे के ते समयना बेगडगच्छीय भाचार्योए जेसलमेरना भंडार माटे पाटणना प्राचीन ग्रन्थोनी नकलो करावी होय. श्री जिनभद्रसूरिजी पाटणमां स्थापेला भंडार माटे लखाववामां आवेली प्रतिओ पण आ भंडारमां छे. पोथी नं. १ थी ८३ सुत्री मां (पृ० १८१ थी २९१) आ भंडारना क्रमांक १ थी १३३० सुधोना प्रन्थो छे. अने ते बधा कागळ उपर लखावेला के. ८० मी पोथी ज्योतिषना अपूर्ण तथा प्रकीर्णक पानांना संग्रहरूपे छे, अने ८१ थी ८३ सुधीनी त्रण पोथीओमां स्तवनसाय आदिनां प्रकीर्णक पानां छे. आ भंडारमा वि. सं. १२४६ (क्र० १३४, पृ० २८८ ), वि. सं. १२७७-१२७८ (क्र० १३०० - १३०१, पृ० २८५ ) मां लखाएला अने बीजा पण विक्रमना १३मा शतकमां aareला अनेक ग्रन्थो छे. काळ उपर लखाएला आटला प्राचीन ग्रन्थो आ भंडारमां ज सचवाया छे. तेमां य वि. सं. १२७९मां लखायेली न्यायतात्पर्यवृत्ति अने भाष्य, श्रीकण्ठनुं टिप्पन अने न्यायवार्तिकी प्रतिओ तो अत्यन्त महत्वनी छे. आ प्रतिओ एवी जीर्ण हालतमां हती के जेने स्पर्श करतां पण तूटी जवानो भय रहे, परंतु तेने दिल्ही नेशनल आर्काइशमां मोकलावीने वैज्ञानिक पद्धतिए तेनो जीर्णोद्धार कराववामां आव्यो छे, जेथी बीजां चार सो पांच सो वर्ष सुधी एने आंच न आ भने भेनी मूळस्थिति जळवाई रहे. वि. सं. १५३८ मां लखाएली प्रेमराजकृत कर्पूरमञ्जरीनाटिकाकर्पूरकुसुमभाष्यनी प्रति (क्र० २४६, पृ० २०६ ) अने जयदेवकृत गीतगोविन्दनी जगद्धरकृत टीका (क्र० ४५९ पृ० २२७ ) तेमज वि. सं. १४०७मां गुणसमृद्धिमहत्तराए प्राकृतभाषामां रचेला अंजनासुंदरीकथानकनी प्रति पण आ भंडारमां छे. उपर जणान्या सिवायना विविध विषयोना अनेक प्राचीन ग्रन्थो आ भंडारमां छे, जे प्राचीन प्रत्यंतरादि दृष्टिए अति उपयोगी है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018005
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages522
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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