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४. चैःयवंदनभाष्य उपर श्री देवेन्द्रसूरिए रचेली संघाचारटीकानो प्रति, टीकाकारनी पोतानी ज छे. आनो क्रमांक २०७ के.
५. वि. सं. ११९० ना कार्तक सुद १ ना दिवसे रचायेला धर्मविधिप्रकरणनी वि. सं. ११९० ना पोष सुदि ३ ना दिवसे लखायेली प्रतिनो क्रमांक २३६ छे.
६. श्री नामनां शेठाणीए लखावेली भवभावनावृत्तिनी प्रति उपद्रवथी खंडित थई गयेली, तेने तेमनां प्रपौत्रवधुए समरावीने संपूर्ण करी हती. जुओ पृ० ८४--८५, श्लो० २५-२६. आ प्रतिनो क्रमांक २३१ छे.
७. सिद्धसाधुरचित न्यायावतार वृत्ति उपरनी टिप्पणी ज्ञानश्री नामनां साध्वीजीए करेली होय तेवो संभव छे. आनो क्रमांक ३६४(१) छे.
८. प्रकरण-स्तोत्रादिना संग्रहरूप वि. सं. १२१५ मां लखा येली क्रमांक १५४ वाळी प्रति शांतिमतिगणिनीना स्वाध्याय माटेनी पोथी छे. तथा सटीक पिंडविशुद्धिप्रकरण (क्रमांक २१०) नी प्रति प्रभावतीमहत्तरानी छे.
९. कर्मप्रकृतिचूणिं (क्रमांक १६९) नी प्रति, गच्छादिना दुराग्रहथी के मालिकीहक्कना व्यामोहथी प्रेराईने ग्रंथ लखावनारनी पुष्पिका भूसी नाख्याना नमूना रूपे छे.
१०. क्रमांक २३२ वाळी भवभावनावृत्तिनी प्रति नन्नी-नानी नामनी श्राविकाए वि. सं. १२४० मां लावावेली अने तेनुं व्याख्यान वि. सं. १२४०, १२४८ तथा १२५३ मां पादरामा करावेलं. आ नन्नी-नानी ना पछी तेना सुकृत माटे तेनी पुत्री जयतीए वि. सं. १२६५ मां तिमिरपाटकमां अने वि. सं. १२८० मां पंडित नेमिकुमार द्वारा आ ग्रंथन व्याख्यान कराव्यु. यारबाद देवपत्तनथी आवीने जयतीए अभयकुमारगणिने आ ग्रंथ पादरामा समर्पित कर्यो. आ ग्रंथ नानी श्राविकाए त्रण वार वंचाव्यो ए अंगेनी नानी श्राविकानी प्रशस्ति प्राकृत भाषामां छे. भने तेनी पुत्री जयतीनी प्रशस्ति संस्कृतमां छे..
लखावेला ग्रन्थोना व्याख्याननी हकीकत तथा ग्रंथो वंचायानी तेमज तेमनुं संशोधन कर्यानी हकीकतोनां उदाहरण अन्वेषकोने आ सूचीपत्रमाथी मळी रहेशे.
____ आ उपरांत आ भंडारनी विक्रमना १२ मा शतकथी पंदरमा शतक सुधीमां लखायेली प्रतिमो लखावनारनी प्रशस्ति-पुष्पिकाओमां तत्तत्कालीय राजवंशो, राजाओ, महामात्यो, पंचकुलो, दंडनायको, श्रमणोना गणो शाखाओ-गच्छो-पट्टपरंपराओ, जैनाचार्य आदि जैन विद्वानो, जैन गृहस्थो तेमनां कुळ वंश गोत्र भने अटको, अजैन विद्वानो, प्राचीन ग्रंथो अने गाम-नगर आदिनां नाम मळे छे, जेने तेमना सत्तासमय अने प्राचीनताना प्रामाणिक आधार तरीके स्वीकारी शकाय. आ महत्वनां थशां य नाम आ ग्रन्थना त्रीजा परिशिष्टमांथी जोई-जाणी शकाशे .
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