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________________ उपदेशथी जेसलमेर, जावाल, देवगिरि, अहिपुर (आहोर), पाटण (गुजरात), मंडपदुर्ग, आशापकी अने खंभातमां ज्ञानभंडारोनी स्थापना थई हती (जुओ पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी संपादित ' विज्ञप्ति त्रिवेणी' नी प्रस्तावना, पृ० ५७ - ५८.) प्रस्तुत श्री जिनभद्रसूरिज्ञानभंडारमां परीख घरणाशाह अने श्रेष्ठी श्री उदयराज बलिराजे न खावी होय तेवी प्रतिओने विक्रमना बारमा शतकना पूर्वार्द्धथी लई पंदरमा शतकना उत्तरार्द्ध सुधीमां जुदा जुदा महानुभावोए लखावेली छे. सौथी प्राचीनतम प्रति विशेषावश्यक महाभाग्यनी छे, जे विक्रमना दसमा शतकना पूर्वार्द्धमां लखायेली छे, जुओ क्रमांक ११६. प्राचीनता भने लिपिनी दृष्टिए आ प्रति असाधारण महत्त्वनी छे. आ भंडारमां लांबा अने का मापनी कुल ४०३ ताडपत्रीय प्रतिओ छे, प्यारे तेमां पेटा नंबरोमां आवता नाना मोटा ग्रंथो मळीने कुल ग्रंथसंख्या लगभग ७५० थी पण उपर थाय है. आमां अहीं जणावेल विशेषावश्यकमहाभाष्य, सर्वसिद्धान्तप्रवेश, तत्व संग्रह, सांख्यकारिकानी टीकाओ, मलबादीनुं धर्मोत्तर टिप्पन, पादलिप्तसूरिकृत ज्योतिष्करण्डकनी टोका, ओघनिर्युक्तिभाष्य, गुणपालकृत जंबूचरियं अने चन्द्रलेखाविजयप्रकरण आदि अनेक अलभ्य दुर्लभ्प ग्रंथो आ भंडारमां छे. आ सिवाय जैन आगमो, तेनी व्याख्याओ, व्याकरण, काव्य, कोश, अलंकार, छंद अने दर्शनशास्त्राना प्राचीन प्राचीनतम महत्वना ग्रंथो आमां के, जे अभ्यासी अन्वेषको आ सूचीपत्रमाथी जाणी शकशे. आ उपरांत जेनुं अमुक दृष्टिए वैशिष्ट्य होय तेवी प्रतिओमांथी केटलीक उदाहरण फूत अहीं जणाववामां आवे छे - १. भगवती सूत्रवृत्ति (क्रमांक १५) आ प्रतिनां पत्रो अतीव सुकुमार छे. २. वि. सं. १२०७ मां अजमेरनो भंग थयेलो ते समये त्रुटित थयेली पंचाशक प्रकरण लखीने संपूर्ण करी हती. आ प्रतिनो क्रमांक १२०७ मां अजमेरनो भंग भयो हतो, भने वृत्तिनी प्रतिने, श्री स्थिर चन्द्रगणिए त्रुटित भाग पुनः २०८ छे. आ उपरथी जाणी शकाय छे के वि. सं. ते वखते जैन ज्ञानभंडारने पण हानि पहोंची हती. ३. वि. सं. ११८० मां लखायेली पाक्षिकसूत्र सवृत्तिकनी प्रति नजीकना समयमां ब स्वबाई जवाने कारणे के फाटी जवाथी कोई कळाघरे तेने काळजी पूर्वक सांधीने तैयार करेली के. विशिष्ट प्रकारे संधायेली प्रतिओमां आ प्रति कीमती दर्शनीय नमूनारूप छे. आनो क्रमांक १२९ के. * आ प्रतिनी प्रतिलिपि में करेलो तेने आधारे ते अमदावादमी नाणीती लालभाई दळपतभाई प्रन्थमाळामी छपायुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018005
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages522
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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