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________________ मा भंडारोमा भारतीय वामयना प्राचीन-प्राचीनतम प्रन्थो सचवाया छे. एमां शक नथी; मळवत, भामां जैनधर्मना ग्रन्थोनी बहुलता होय ए स्वाभाविक के. __ उपर जणावेला जेसलमेरना ज्ञानभंडारो पैकीनो छदा नंबरवाळो आचार्यगच्छना उपाश्रयमांनो भंडार तथा माठमा नंबरवाळो श्रीडूंगरजी यतिनो भंडार जोवानी मुविधा पूज्यपाद आगमप्रभाकरजीने मळो न होती. तेमज दसमा नंबरवाळो तपागछनो मंडार जेसलमेरथी नौकळवाना थोडा दिवसो पहेलां जोवानी सगवड यई हतो, ज्यारे सातमा नंबरवाळो श्री थाहरूशाहनो भंडार तो सलमेरथी विहार करवाना बे-चार दिवस पहेलां एक दिवस माटेज जोवानी तक मळी हती. बाकीना भंडारो तेमोश्रीए संपूर्ण जोया के. तेमांय भौजिनभद्रसूरिज्ञानभंडार, वेगडगच्छीय ज्ञानभंडार भने खरतरगच्छीय वडा उपाश्रयनो अथवा पंचनो शानभंडार, एम त्रण ज्ञानभंडारोनो संपूर्ण सुरक्षा तथा व्यवस्था भने सूचीपत्र करवामां आवेल के. परबत, तपागच्छीय भंडार अने लोकागच्छीय भंडारमा रहेली ताडपत्रीय प्रतिमोनुं सूत्रीपत्र करवामां भाव्यु छे, अने थाहरूशाहना भंडारनी कागळ उपर लखायेली मात्र बे प्रतिओनोज परिचय आप्यो . जे त्रण भंडारोना संपूर्ण समुद्धारनुं कार्य करवामां आव्यु छे ते भंडारोनी विशेष माहिती नीचे प्रमाणे के १. श्रीजिनभद्रसरि जैन ज्ञानभंडार आ भंडारनी स्थापना खरतरगच्छीय युगप्रधान आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीए विक्रमना पंदरमा शतकना उत्तरार्द्धमां करेली छे. व्यवहारभां आ भंडार 'बडो भंडार' ना नामे ओळखाय के. मा आचार्यश्रीना उपदेशथी खंभातनिवासी परीक्षक-परीख धरणाशाहे घणा ग्रंथो ताडपत्र उपर लखावेला, जेमांना ४८ ग्रंथो आज पण आ भंडारमा बिद्यमान छे. ते उपरांत खंभातनिवासी श्रेष्ठी श्री उदयराज अने श्रेष्ठी श्री बलिराज नामना भ्रातृयुगले पण आ आचार्यश्रीना उपदेशथी अनेक ग्रंथो ताडपत्र उपर लखावेला होवा जोईए, आ बे भाईओए लखावेला छ ग्रंथो आ भंडारमां विद्यमान छे. श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर (पाटण)मा रहेला श्री वाडीपार्श्वनाथज्ञानभंडारनी स्थापना पण आ ज आचार्यश्रीनी प्रेरणाथी थई हती. आ भंडारमा विक्रमना पंदरमा शतकना अंतमां श्री जिनभद्रसूरिना उपदेशथी कागळ उपर लखा येला जैन आगमादि साहित्य उपरांत काव्य, कोश, अलंकार, छंद अने दर्शनशास्त्रना पण महत्त्वना ग्रंथो छे. आथी आ आचार्य श्रीनी विविध विद्याशाखाओ प्रत्येनी रुचि, आदर अने प्रेरणा विशेष उल्लेखनीय बनी जाय छे. वाडीपार्श्वनाथज्ञानभंडारमा केटलाक ग्रंथो एवा छे जे जेसलमेरना ज्ञानभंडारनी ताडपत्रीय प्रतिनी नकलरूपे छे. आचार्य श्री जिनभद्रसूरिजीना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018005
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Jesalmer Collection
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1972
Total Pages522
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size10 MB
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