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गंभूयपुरी, सं० १२१६-गांभू (उ. गु.) क्रमांक २५९. पंचासर, , - मांडलपासे पंचासर , संडथल, , 'चडावली, , 'छत्तावल्लिपुरी, सं० ११२५ क्रमांक २३५. 'छत्रापल्ली, सं० १३०४ क्रमांक २५६. मूलनारायणदेवीयमठ, सं० १२०० क्रमांक ३९१. ज्ञेरिंडक, सं० १२२३ क्रमांक २१७, पृ०७६. धारापुरी, सं० १२९५ क्रमांक २८१, पृ. १२३. नलकच्छपुर
, " " मण्डपदुर्ग , , , , ; सं० १३०८, क्रमांक २८६, पृ. १२५ बाहुपुर-मठस्थानक, सं० १३८४ क्रमांक १२७९, पृ० २८२. मड्डाहड सं० १२१३ क्रमांक १५५ (८), पृ० ५३.
उपर उदाहरण रूपे जणावेलां गाम-नगरो पैकी जे नाम लेखकनी प्रशस्तिओनां छे तेमां मोटा भागनां नाम गुजरातनां छे. आथी अने खंभातनिवासी परीख धरणाशाह तथा उदयराजबलिराजना लखावेला ग्रंथोने लक्षीने कही शकाय के जेसलमेरना प्रस्तुत ताडपत्रीय ज्ञानभंडारना स्थापक आचार्य प्रवरनो उपासक वर्ग गुजरातमां विपुल प्रमाणमा हतो अने ते धर्मशील समृद्ध तथा दानी हतो. ग्रन्थ लखनार लेखकोनां-लहियानां नाम पण मळे छे; तेमां मुनिओ उपरांत श्रावको अने ब्राह्मणोनां नामोनो पण समावेश थाय छे. आ गृहस्थ लेखकोए पोतानां गामनां नाम आ प्रमाणे जणाव्यां छे-स्तंभतीर्थ, अणहि लपुरपत्तन, मंडली-मांडल, कांसा, पलोदर, ऊमता अने मुंडहटा. आमां एक लेखके 'पोते भव्य अक्षरथी भवभावनावृत्ति (क्र० २३३)नुं पुस्तक लख्यु' एम जणावीने अने एक लेखके पोताना माटे 'विविधलिपिनो जाणकार' (क० ४०८) आवं विशेषण आपीने पोत पोतानो विशेष परिचय पण आप्यो छे.
पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजयजी आदि द्वारा प्राचीन प्राचीनतम ग्रन्थो लखावनारनी प्रशस्ति-पुष्पिकाओ अलग मुद्रित ग्रन्थरूपे प्रसिद्ध थयेली छे. आथी पण अनेक रीते वधारे उपयोगी प्राचीनतम सामग्री ग्रन्थकारोनी प्रशस्तिओमां सचवायेली छे, जो तेनो संग्रह करीने ते एक के बध ग्रन्थरूपे प्रकट थाय तो अभ्यासी अने जिज्ञासुभोने अनेक ऐतिहासिक तेमज धर्मकार्योनी उपयोगी सामग्री एमांथी मळी शके. अस्तु.
१-१. आ छ नाम प्रन्थकारनी प्रशस्तिमांथी मोज्यां छे.
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