________________
विषेनो उद्यम ज नथी. प्राचीन काळथी एटलं गाता रहे छे के "अठे तो धान के साथ धान सावारो हे" एटले अहीं व्यंजन (साक) तरीके मोटे भागे मग, अडद, चोळा के चणानो भने एनी दाळनो न वपराश थाय छे. ए उपरांत व्यंजन तरीके सांगरी, केर, कुमठी, बावळना पैडॉ वगैरेनी सुकवणीनो उपयोग अमुक प्रमाणमां अहीं थाय छे. दूध-घी अहीं ठीक ठीक मळे छे.
आजी लगभग सो-सवा सौ वर्ष पहेला जेसलमेरमा २७०० जेटलां जैन घरो हता. पण प्रादेशिक विषमता अने राज्यनी अव्यवस्था आदिने लीधे वेपार-धंधाओ नष्ट थवाने कारणे प्रजा क्रमे क्रमे देश-देशांतरमा जती रही छे अने आजनी परिस्थितिमां तो ए विषे काई कहेवानुं व न होय. ममे जेसलमेर हता त्यारे (ई. स. १९५०-५१मां) जैनोना मात्र सत्तावोस घर व हता. अहींनी मुख्य पेदायश पत्थरोनी छे. ए पत्थरोमां मारेसनी जातिने मळतो पीळो पत्थर अहीं ठीक ठीक प्रमाणमां पाके छे, ए काईक पोचो होई तेमां कोतरणी के नकशी सरळताथी बनावी शकाय छे. अमरसागरनां कळापूर्ण जैन मंदिरो अने जेसलमेरमांनी पटवाओनी भव्य हवेलीओ आ ज पाषाणनी एक सरखी जातिने पसंद करीने बनाववामां आवेल छे. जेसलमेरनां जैन मंदिरो भने तेमांनी हजारोनी संख्यामा विद्यमान मूर्तिो पण आ ज पाषाणमांथी निर्मित थयां छे. कुदरती रीतेज जेमां अनेक रंग-विरंगी भातो अने आकृतिओ देखाय तेवी वींछीया वगेरे पत्थरनी जातिओ पण अझै पाके छे, पण तेनुं प्रमाण घणुं ओछु छे. आथीज अहींनां मंदिरोमां एनो खास उपयोग नजरे पडतो नथी। जेसलमेरनां जैन मंदिरो
___जेसलमेरगाममा मात्र नानुं सरखं अने लगभग सादुं गणी शकाय तेवु तपगच्छनु जैन मंदिर छे. जेने आपणे भव्य अने कळापूर्ण कहीं शकीए एवां मंदिरो तो अहींना टेकरी उपरना किल्लामां आवेलां छे. अहींनो किल्लो एटले ऊंचाईमा प्रायः तलाजा (सौराष्ट्र) जेवी टेकरी (लगभग ५००६०० फीट ऊंची) समजवी जोईए, परंतु किल्लाना उपरना भागनो विस्तार एटलो बधो छे के जे एक नानुं सरखं नगर गणी शकाय. किल्लामा अहींना महाराउलजीना महेल, संख्याबंध जैन जैनेतर मंदिरो उपरांत आमप्रजानां घरो पण ठीक ठीक प्रमाणमां छे. किल्लामां पाणी वगेरे साधनोनी सगवर होवाने कारणे युद्धना प्रसंगोमां आ किल्लाए राज्यनुं सारी रीते रक्षण कयु छे. किल्लामा लक्ष्मीनारायण आदि मंदिरो पण अनेक छे, तेम छतां जेमां विविध कळाओना जीवता नमूनाओ छे ते जैन मंदिरोनो ज मात्र अहीं परिचय आपवामां आवे छे. किल्लामां बधां मळोने आठ जैन मंदिरो छे, जे विक्रमना पंदरमा शतकना चतुर्थ चरणमां अने सीळमा शतकना प्रथम चरणमा विषमान स्वरतरगच्छीय समर्थप्रभावक आचार्य श्री जिनभद्रसूरिप्रवरना उपदेशथी बनेलां छे. आज भाचार्यना उपदेशथी संभातनिवासी गूर्जरज्ञातीय श्रेष्ठी धरणाके अने श्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठी बलिरान उदयराजे लखावेली संख्यावंध ताडपत्रीय पोथीओ अहींना ज्ञानभंडारमा विद्यमान छे, जेने विधे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org