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आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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स्वर्णिम साधिका अर्चनाजी [ श्री उदय मुनि 'जैन सिद्धान्ताचार्य'
भारतीय संस्कृति युगों से विविधता से परिपूर्ण रही है। लम्बे समय से यहाँ पर भिन्नभिन्न धर्म, मत-मतान्तर, त्यौहार एवं रीति-रिवाज प्रचलित रहे हैं। इन सभी क्षेत्रों में पुरुष वर्ग के साथ-साथ नारी का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । कोई भी धर्म या क्षेत्र रहा हो, नारी ने अपनी महिमा के अनुरूप गरिमा प्रदान की है। जैनधर्म भी इस ममतामयी नारी से गौरवान्वित हुआ है। चन्दना, ब्राह्मी सुन्दरी, मैनासुन्दरी धादि अनेक सतियों ने सात्विक संयमी जीवन अपनाकर मुमुक्षुत्रों के लिये मार्ग प्रशस्त किया है। श्राज वर्तमान में भी अनेक नारियां धर्मध्वजा को थामे भगवती दीक्षा को अंगीकार करके अपने आत्मकल्याण के साथसाथ भ. महावीर के अमर संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के महान् कार्य को सम्पादित कर रही हैं। इसी श्रृंखला में उदारमना अध्यात्मयोगिनी श्री उमरावकुंवरजी म. सा. 'अर्चना' भी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। वि. सं. १९७९ भाद्रपद सप्तमी को दादिया ग्राम (किशनगढ़) में पिता श्री मांगीलालजी एवं माता श्रीमती अनुपा देवी तातेड़ के घर जन्मी इस महासती को बचपन से ही घर में धर्ममय वातावरण मिला। आपके पिताश्री ने भी भगवती दीक्षा अंगीकार की थी। मात्र पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में ही सांसारिकता का १९९४ अमन वदी ११ को महासती श्री उमरावकुंवरजी म. सा. ने कुंवरजी म. सा. के पावन श्रीचरणों में संयमी जीवन अंगीकार कर लिया था । दीक्षा धारण करके आप अपना समय अध्ययन, चिन्तन, मनन, ज्ञानार्जन में व्यतीत करने लगीं अल्प समय में ही धाप जैन धागम, दर्शन एवं अन्य साहित्यिक क्षेत्रों के ज्ञाता होने के साथ-साथ संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा में भी पारंगत हो गई।
महासती 'अर्चना' बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। जहाँ एक ओर आप जैन दर्शन की अच्छी ज्ञाता हैं वहीं दूसरी ओर एक मधुर एवं प्रभावी प्रवचनकार भी हैं। आप अपनी स्पष्ट एवं निर्मीक प्रवचनशैली, दृढ़ मनोबल, सुलेखन तथा सरल मानस के कारण अपनी एक विशिष्ट ही पहचान रखती हैं । श्रापने अपने संयमी जीवन में राजस्थान, पंजाब, कश्मीर, हिमाचल दुर्गम क्षेत्रों में पैदल बिहार कर
मुमुक्षुद्धों को सम्मार्ग का दर्शन
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प्रदेश उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश भादि अनेक दूरस्थ एवं महावीर के पावन धर्मसन्देश को जन-जन तक पहुंचाया।
कराया ।
मोह छोड़कर वि. सं.
महासती श्री सरदार
आज आप अपने संयमी जीवन के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में प्रवेश करने जा रही हैं। इस शुभ अवसर पर यही कामना है कि महासती दीर्घ समय तक धर्मीजनों का मार्ग प्रशस्त करती रहें. धर्म ध्वजा फहराती रहें।
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अर्चनार्चन / १८
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