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टिप्पणी में लिखे हों और लेखकोंकी गलतीसे वे मूल ग्रन्थमें सामिल हो गये हों ! प्रायः इस ग्रन्थ की कोई कोई प्रतियोंमें विभिन्नता भी देखी जाती हैं । कितने ही श्लोक ऐसे हैं जो मुद्रित मराठी पुस्तकमें नहीं हैं और वे दूसरी प्रतियोंमें हैं। इसी तरह संभव है कि कोई ऐसी प्रति भी हो जिसमें ये श्लोक न भी हों। कदाचित् हों भी तो अपेक्षावश दोषाधायक नहीं हैं।
पृष्ठ ५३ में श्लोक नं०१७:
भावार्थ-इस श्लोकका तात्पर्य सिर्फ वस्त्र-परिधारणके अनंतर शरीरको न पोंछनेका है । अतएव साधारण जनताको इस युक्ति द्वारा न पोंछनेका उपदेश-मात्र दिया है । अथवा श्लोक नं. १७-१८-१९ उद्धृत जान पड़ते हैं । अथवा प्रकरणानुसार या तो क्षेपक रूपसे किसीने मिला दिये हों या टिप्पणी से मूलमें शामिल हो गये हों । संभव है ऐसा ही हुआ हो । क्योंकि प्रायः देखा गया है कि टिप्पणीका पाठ भी लेखकोंकी गलतियोंसे मूलमें आ जाता है । अस्तु, कुछ भी हो इन श्लोकोंका सिर्फ तात्पर्यार्थ ही ग्रहण करना चाहिए । तात्यार्थ इतना ही है कि स्नान कर वस्त्र पहन लेने के बाद शरीरको न पोंछे।
पृष्ठ ५५ में श्लोक नं० २६:
नीले रंगका कपड़ा दूरसे ही त्यागने योग्य है अर्थात् श्रावकोंको नीले रंगसे रंगा हुआ कपड़ा कभी नहीं पहनना चाहिए । परंतु सोते समय रतिकर्ममें स्त्रियां यदि नीला वस्त्र पहनें तो दोष नहीं है।
पृष्ठ ५७ में श्लोक नं. ५७:
सूखी हुई लकड़ीपर कपड़ा सुखा देने पर दो वार आचमन करनेसे शुद्ध होता है । अतः पूर्व दिशामें या उत्तर दिशामें धोया हुआ वस्त्र सुखावे ।
पृष्ठ ७२ में श्लोक नं०११३, ११४:--
अपनेको जैसा अवकाश हो उसके अनुसार पंचनमस्कार मंत्रके एकसौ आठ या चौपन या सत्तावीस जाप देवे। पंचनमस्कार मंत्रके दो दो और एक पदपर विश्राम लेते हुए नौ बार जपने पर सत्ताईस उच्छास होते हैं । भावार्थ-"अर्हद्भ्यो नमः सिद्धेभ्यो नमः इन दो पदोंको बोलकर थोड़ा विश्राम ले, फिर “आचार्येभ्यो नमः उपाध्यायेभ्यो नमः" इन दो पदोंका बोलकर थोड़ा विश्राम ले, बाद "साधुभ्यो नमः" इस एक पदको बोलकर विश्राम लेवे। एवं एक पंचनमस्कार मंत्रमें तीन उच्छास, और नौ पंचनमस्कारोंमें सत्ताईस उच्छास होते हैं । इस विधिके अनुसार पंचनमस्कार मंत्रके उपर्युक्त. जाप देनेपर सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं।
पृष्ठ १०३ में श्लोक नं० १०९-११०:
पहलेके ब्रह्मभागोंको छोड़कर आगेवाले ब्रह्मभागोंकी पूर्वदिशावर्ती मानुषभाग और देवभागोंमें तीन कुंड बनवावे । उन तीनों कुंडोंके बीचमें एक अरनिप्रमाण लंबा, इतना ही चौड़ा. और इतना ही गहरा चौकोन-जिसके चारों ओर तीन मेखला (कटनी ) खिंची हुई हों ऐसा एक कुंड बनवावे ।
-अनवादक।