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(२८) "पृष्ठ सं० पंक्ति सं० अशुद्धियां। १३७ २१ स्थापनाकी थी १३७ २५ की थी १४२
२१ भद्रासन बैठे १९५
अण्ये-पान
भी दूषित है २७
कायसे अन्न
अग्निसे पकाये २०५
चैत २०८
धर्मे - २२१
भूखे रहने दे बात भी न करे
१९७
१९७
१६
२२६ २३२ २३२
न्यायमाग ब्रह्मस्थानको छोड़ किसी दूसरे स्थानमें
१७
.
शुद्धियां। स्थापना की जाती है की जाती है भद्रासन पर बैठेअपेय-पान भी-रात्रम दूषित कायसे रात्रिमें अन्न अग्निसे न पकाये चैत्य धर्मे . . भूखे न रहने दे बात भी न करे अर्थात् इनके साथ लेन-देन व्योहार न करे न्यायमार्गे पहलेके ब्रह्मभागोंको छोड़ आगेके ब्रह्ममागोंकी पूर्व दिशावाले मनुष्यभाग और देवभागोंमें चतुर्थे . उन मंडलोपर बाई ओरके चूलाकर्म शुभेऽलि जयादि बायें पैरको
मृत्योश्च ___घरपर अथवा रात्रिमें अथवा शूद्रके
घरपर भोजन भत्ती योग्य उसके हाथमें अर्घ्य दे मधुपर्क घरके दरवाजेपर वरके आजानेपर कन्याका मामा उसका हाथ पकड़कर घरके भीतर ले जाय।
चतुथ अग्निमंडलोंपर दाहिनी ओरके
चूलाकम
२३२ २३३ २५२ २५३ २५३ २५७ २६५ २७४ २७६
भेऽन्हि जमादि दाहिने पैरको मृत्योञ्च घरपर अथवा शूद्रके घर पर रात्रिमें भोजन भत्ता याग्य अर्घ्य चढ़ावे मधुपक कन्याका मामा वरको हाथ पकड़कर वेदीके पास लावे
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