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पैरोंतक
"पृष्ठ सं० पंक्ति सं० अशुद्धियां ।
शुद्धियां। ५० पुण्य-पापक
पुण्यपापका ५० मुक्तिका होना
मुक्तिका होना इत्यादि गौत
गौत.. सहज
यह जल कोई भी बात सत्य न ठहरेगी- ऐसे कितने ही विषय हैं जो समझमें
नहीं आते हैं । ऐसी दशामें वे सब
असत्य ही ठहरेंगे। पांछ
पौंछ कछौटा लगानेवाला कछौटा लगाने वाला, कछौटा
न लगाने वाला नीले रंगका या लाल रंगका नीले रंगका शूद्रों द्वारा
कारु शूद्रों द्वारा शूद्रों द्वारा
कारु शूद्रों द्वारा और मंत्रस्नान
और मानसस्नान परातेंक या टेढ़ा-मेढ़ा होकर या झुककर आचमन करनेके बाद ( इतना पद नहीं होना चाहिए ) समग्र
समुद्र विदी
बदी चार्धमष्टाविंशतिक
चार्धं सप्तविंशतिक शब्दके
शब्दोंके विद्याके कारण
विद्यासंबंधी ऊपरि
उपरि
यक्ष यक्ष
यक्षी उनके तर्पण
ॐ हीं अर्ह जयायष्ट इत्यादि
उनके तर्पण यह उनको नमस्कार ॐ हीं अर्ह असि आ इत्यादि
नमस्कार इन श्लोकोंमें ऊंच नीच इन श्लोकोंमें ऊंच जातिके मनुष्यों
दोनों तरहके मनुष्योंको न को भी न ५ करना है।
करना है तथा जो छूने योग्य नहीं हैं उन्हें किसी भी हालतमें न छूवे।
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यक्षी