________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
(७३) यतः ॥ विनागुरुभ्यो गुण नीरधिभ्यो, जानाति धर्म न विचक्षणोपि॥
आकर्ण दीर्घोज्वल लोचनोपि, दीपं विना पश्यति नांधकारे ॥१॥ ___ भावार्थः-गुण समुद्र गुरुओंके विना, विचक्षण पुरुष भी, यथार्थ धर्मको नहीं जानता है, जैसे कानपर्यंत लंबे निर्मल नेत्रवाला भी पुरुष, अंधकारमें बिना दीपकके, नहीं देखता है.
चौमासे बाद, यहां संवत् १९४८ मगसर वदि पंचमीके दिन, गुजरात देश में शहेर अहमदाबादके पास वलाद नामा गामके रहेनेवाले डाह्याभाईको दीक्षा दीनी; और " श्री विवके विजयजी" नाम स्थापन करके,उसही दिन जीरेके श्रावकोंकी नूतन जिन मंदिरकी प्रतिष्ठा करानेकी विनती मंजूर करके, पट्टीसे विहार किया, और जीरा गाममें पधारे. .
बडौदेसे पूर्वोक्त श्रावक आये, तथा भरुच निवासी शेठ "अनूपचंद मलूकचंद” सपरिवार, नूतन स्फाटिक रत्नके जिनबिंबकी अंजनशिलाका (मंत्रपूर्वक संस्कार) कराने के वास्ते, आये.
और भी देश देशावरोंके बहुत लोक आये. संवत् १९४८ मार्गशीर्ष मुदि एकादशी (मौन एकादशी पर्व) के दिन, विधि पूर्वक नूतन बिंबको अंजन करके, "श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी". को नवीन जिन मंदिर में गद्दी ऊपर पधराये. निर्विघ्नतासे महोत्सव पूर्ण होनेके बाद, जीरासे विहार करके नीकोदर, जालंधर, होकर शहेर हुशीआरपुरमें पधारे. क्योंकि, यहांके रहनेवाले परम उपकारी शेठ लाला गुज्जरमल्लजीने नवीन जिन मंदिर, बनायाथा. तिसकी प्रतिष्ठा करानेका मुहूर्त, साधना था. यहां भी पूर्वोक्त बडौदेवाले गृहस्थही आये थे. संवत १९४८ माघ सुदि पंचमी (वसंत पंचमी) के दिन, निर्विघ्नतापूर्वक “श्री वासुपूज्य स्वामी को गद्दी ऊपर स्थापन करे बाद, आसपासके गामोंमे कितनाक समय व्यतीत करके +जीराके श्रावकोंका आनंद यह स्तुतिसें जाहिर होताहै.
(पंजाबी-हिंदी भाषामें ) चलो जी महाराज आए प्यारे, मात रूपदेवी जाए ॥ अंचलो॥ भाग्य उनोदे तेज भए जब, सूरि पदवी पाइ ॥ नगर पट्टीमें किया चौमासा, लोक सवी तर जाइ । च० ॥१॥ मुनी इग्यारह (११) संग उनोंदे, एकसे एक सवाए । महेरबान जब होए सवीजी, जीरे नगर उठ धाए || च० ॥ २ ॥ सुनी बात जब सब सेवकने, मनमें खुशी मनाई ॥ लगे शहेरमें बाजे बजन, ध्वजा निशान सजाए ॥ च० ॥ ३ ॥ धूमधामसे जलै लैनको, महिमा कही न जाए। एक दूसरा चले अगाडी, आगेही कदम उठाए ॥ चः ॥ ४ ॥ तीन कोशपर मिले सबी जा, चरणी सीस नमाए । सीस उठाके दर्शन पाए, धन्य रूपदेवी जाए ॥ च० ॥५॥ सबी संघ होकर आनंदी, तरफ शहरदी आए ॥ नगर बिच परवेशही कीना, आन बैठक उतराए ॥ च ० ॥ ६ ॥ चौंकी ऊपर आनहीं बैठे, मंगलिक आख सुनाए । भरी सभामें दीनानाथ और, खुशीराम गुण गाए ॥ च० ॥ ७॥
१०
For Private And Personal