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तत्वनिर्णयप्रासादव्याख्या हे भगवन् ! (परः) पर अन्य मतावलंबी (सहस्राः) हजारों (शरदः) वर्षांताई (तपांसि ) विविध प्रकारके तप करो, (वा) अथवा (युगांतरं) अर्थात् वहुत युगांताई (योगं) योगाभ्यासकों (उपासतां) सेवोकरो, (तथापि ) तोभी वे (ते) तेरे (मार्गम् ) मार्गकों (अनापतंतः) न प्राप्त होते हुए, अर्थात् तेरे मार्गके अंगीकार करे विना, (मोक्ष्यमाणाअपि) चाहो वे अपने आपकों मोक्ष होना मानभी रहे हैं, तोभी, (मोक्षम् ) मोक्षकों (न) नहीं (यांति) प्राप्त होते हैं, क्योंकि, सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्रके अभावसे किसीकोंभी मोक्ष नहीं है, और सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्रकी प्राप्ति, तेरे मार्ग विना कदापि नही होवे है || १४॥
अथाग्रे स्तुतिकार, परवादीयोंके उपदेश भगवत्के मार्गको किंचिन्मात्रभी कोप वा आक्रोश नही कर सक्ते हैं, सो दिखाते हैं.
अनाप्तजाड्यादिविनिर्मितित्वसंभावनासंभविविप्रलम्भाः ॥ परोपदेशाः परमाप्तक्लप्तपथोपदेशे किमु संरभन्ते ॥ १५॥ व्याख्या हे जिनेंद्र ! (परोपदेशाः) जे परमतवादीयोंके उपदेश है,वे उपदेश (परमाप्तकृप्तपथोपदेशे ) तेरे परमाप्तके रचे कथन करे उपदेशमें (किमु ) क्या, किंचिन्मात्रभी (संरंभन्ते) करते हैं ? अर्थात् कोप वा आक्रोश करते हैं ? किंचिन्मात्रभी नही क्या ? खद्योत प्रकाश करते हुए सूर्य मंडलकों कोप वा आक्रोश कर सक्ता है ? कदापि नही. ऐसें तेरे शासनकोंभी परोपदेश संरंभ नहीं कर सक्ते हैं, क्योंकि, परवादीयोंके मतमें जो सूक्ति संपत् है, सो तेरेही पूर्व रूपी ये समुद्रके बिंदु गए हुए है, तिनके विना जो परवादीयोंने स्वकपोलकल्पनासें मिथ्या जाल खडा करा है, सो सर्व युक्ति प्रमाणसें बाधित है, इस हेतुसें परवादीयोंके उपदेश तेरे मार्गमें कुछभी कोप वा आक्रोश नही कर सक्ते हैं. कैसे हैं वे परवादीयोंके उपदेश ? (अनाप्तजाड्यादिविनिर्मितित्वसंभावनासंभविविप्रलंभाः)अनाप्तोंकी बुद्धिकी जो जाड्यतादि, तिससे निर्मितित्व संभावना, अर्थात् अनाप्तोंकी मंदबुद्धिकी संभावना करके विप्रलंभरूप वे उपदेश रचे गए हैं; भावार्थ यह है कि, अनाप्तोंकी मंदबुद्धिकी संभावनासें जे विप्रलं
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