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तत्त्वनिर्णयप्रासादनिग्रंथ एक अगत्यकी कोम होनी चाहिये. इस अनुमानका हेतु यह है कि, बौद्धोंके पिटकोंके बीच वारंवार कथन करनेमें आया है कि, निर्मथ बुद्धके, वा तिसके शिष्योंके विरुद्ध पक्षवाले हैं. अथवा तिनमेंसें कितनेकको बौद्धमतमें लेनेमें आए. तथा निग्रंथ एक नवीन स्थापन करी हुई कोम है, ऐसा किसी जगे भी कहनेमें आया नहीं है; और अनुमान भी करनेमें नहीं आया है. तिससे हम तुम निश्चय कर सकते हैं कि, बुद्धके जन्म पहिले बहुत वखत हुए निग्रंथ होने चाहिये. इस निर्णयको दूसरी एक बातका आधार मिलता है. बुद्ध, और महावीरस्वामीके वखतमें हुए मंखलिगोशालेका कहना ऐसा है कि, मनुष्यजातिके छ (६) विभाग है. (देखो बौद्धोंका दीर्घनिकायका सामान्यफलसूत्र ) इस सूत्रके ऊपर बुद्धघोषने सुमंगलविलासिनी इस नामकी टीका रची है, तिसके अनुसारें मनुष्यजातिके छ विभागमेंसें तीसरे विभागमें निग्रंथोंका समावेश करनेमें आया है. निग्रंथ, तिसही समयकी नवीन उत्पन्न हुई कोम होती तो, तिनको गोशाला मनुष्यजातिका एक पृथक् जुदा अर्थात् अगत्यका विभाग गिणे, ऐसा संभव नही होता है.
मेरे मत (मानने) मूजब जैसें प्राचीन बौद्ध, निग्रंथोंको, एक अगत्यकी, और पुरानी कोमतरीके जानते थे, तैसेंही गोशालेने भी निर्ग्रथोंको बहुत अगत्यकी, और पुरानी कोमतरीके जानी हुई होनी चाहिये. इस मेरे मतकी तरफेणमें आखिर दलील यह है कि, बौद्धोंके मज्झिम (मध्यम) निकायके ३५ मे प्रकरणमें बुद्ध, और निघृथके पुत्र सञ्चकके साथ हुई चर्चाकी बात लिखि हुई है. सच्चक आप निग्रंथ नहीं है. क्योंकि, वो आप वादमें नातपुत्त (ज्ञातपुत्र महावीर) को हरानेका अभिमान जनाता है. और जिन तत्वोंका आप बचाव करता है, वे तत्त्व जैनोंके नहीं हैं. जब एक नामांकितवादी, जिसका पिता निग्रंथ था, सो बुद्धके वखतमें हुआ, तब निग्रंथोंकी कोम बुद्धकी जिंदगीकी अंदर स्थापनेमें आई होवे, यह बन सकता नहीं है.
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