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चतुस्त्रिंशःस्तम्भः।
६३१ इमें लडता था, तब सूर्य कितनेक घंटेतक चलनेमें थम गया था; इत्यादि सर्व धर्मपुस्ककोंमें प्रायः सूर्यका चलनाही लिखा है.
प्रश्नः-कितनेक कहते हैं कि, जैनमतमें जो भरतखंडकी लंबाई, और चौडाइ, कही है, सो बहुत है; और देखनेमें हिंदुस्तान थोडासा है, इसका क्या सबव है?
उत्तरः-जैनमतमें हिंदुस्तानका नाम कुच्छ भरतखंड नही लिखा है; किंतु आर्य, अनार्य, सर्व देश मिलाके ३२००० देश जिसमें वसते थे, उसका नाम जैनमतमें भरतखंड लिखा है, वे अनार्य, आर्य देश जौनसे है, उनके नाम श्रीप्रज्ञापना उपांग सूत्रसे लिखते हैं. । प्रथम अनार्य देशोंके नाम लिखते हैं.। शक १, यवन २, चिलात ३, शबर ४, बर्बर ५, काय ६, मुरुंड ७, ओड्ड ८, भडग ९, तीर्णक १०, पक्कण ११, नीक १२, कुलक्ष, १३, गोंड १४, सीहल १५, पारस १६, गोध १७, अंध्र १८, दमिल १९, चिल्लल २०, पुलिंद २१, हारोस २२, दोव २३, बोकण २४, गंधहार २५, बहलि २६, अर्जल २७, रोम २८, पास २९, बकुश ३०, मलका ३१, बंधकाय (चूंचुका) ३२, सूकलि (चूलिक) ३३, कुंकण ३४, मेद ३५, पल्हव ३६, मालव ३७, मग्गर (महुर) ३८, आभासिक ३९, कण (अणक) ४०, वीरण (चीन) ४१, ल्हासिक ४२, खस ४३, खासिक ४४, नेदूर ४५, मढ ४६, डोंविलग ४७, लकुस ४८, खकुस ४९, केकेय ५०, अरब ५१, हणक ५२, रोमक ५३, भमरु ५४, इत्यादि. । और शक १, यवन २, शबर ३, बर्बर ४, काय ५, मरुंड ६, उड्ड ७, भंडड ८, भित्तिक ९, पक्कणिक १०, कुलाक्ष ११, गौड १२, सिंहल १३, पारस १४, क्रौंच १५, अंध्र १६, द्रविड १७, चिल्वल १८, पुलिंद्र १९, आरोषा २०, डोवा २१, पोकाणा २२, गंधहारका २३, बहलीका २४, जल्ला २५, रोसा २६, माषा २७, बकुशा २८, मलया २९, चूंचुका ३०, चूलिका ३१, कोंकणगा ३२, मेदा ३३. पल्हवा ३४, मालवा ३५, महुरा ३६, आभाषिका ३७, अणक्का ३८, चीना ३९, लासिका ४०, खसा ४१, खासिका ४२, नेहरा ४३, महाराष्ट्रा ४४, मुढा ४५, मौष्ट्रिका ४६, आरव ४७, डोंबिकल ४८, कु.
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