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षट्त्रिंशःस्तम्भः पूर्वपक्षः-हमारा जो अनुमान है, सो व्यवहारसत्य है; इसवास्ते असत्यत्वके अभावसें अपने साध्यका साधकही है !
उत्तरपक्षः-हम तुमसे पूछते हैं कि, यह ' व्यवहारसत्य ' क्या है ? व्यवहृतिर्व्यवहारः तब तो, ज्ञानकाही नाम व्यवहार ठहरा. जेकर तिस ज्ञानरूप व्यवहारकरके सत्य है, तब तो, सो अनुमान, पारमार्थिकही है. यदि व्यवहारसत्यकरके अनुमान सत्य है, तब तो व्यवहारसत्यकरके प्रपंच भी सत्य होवे. ऐसे इस पक्षमें सत्ख्यातिरूप प्रपंच सिद्ध हुआ, जब प्रपंच सत् सिद्ध हुवा, तब तो, एकही परमब्रह्म सद्रूप अद्वैततत्त्व किसीतरह भी सिद्ध नहीं हो सकता है. जेकर कहोगे, व्यवहार नाम शब्दका है, तिसकरके जो सत्य, सो व्यहार सत्य है; तो, हम पूछते हैं कि शब्द सत्यस्वरूप है ? वा असत्य है ? जेकर कहोगे, शब्द सत्यस्वरूप है, तब तिसकरके जो सत्य है, सो पारमार्थिकही है. तब तो, अनुमाकीतरें प्रपंच भी सत्य सिद्ध हुआ. जेकर कहोगे शब्द असत्यस्वरूप है, तो तिस शब्दसें अनुमानको सत्यपणा कैसे होवेगा ! तथा शब्दसे कहे हुए ब्रह्मादि कैसें सत्स्वरूप हो सकेंगे? क्योंकि, जो आपही असत्यस्वरूप है, सो परकी व्यवस्था करने, वा कहनेका हेतु कदापि नहीं हो सकता है, आतप्रसंग होनेसें.
पूर्वपक्षः-जैसें खोटा रूप्यक, सत्यरूप्यकके क्रयविक्रयादिक व्यवहारका जनक होनेसें सत्यरूप्यक माना जाता है, तैसेंही हमारा अनुमान, यद्यपि असत्यस्वरूप है, तोभी जगतमें सत्व्यवहारकरके प्रवर्तक होनेसें, व्यवहार सत्य है; इसवास्ते अपने साध्यका साधक है.
उत्तरपक्षः-इस तुमारे कहनेसें तो, तुमारा अनुमान, असत्वस्वरूपही सिद्ध हुआ. तब तो, जो दूषण, असत्य पक्षमें कथन करे, सो सर्व, यहां पडेंगे. इसवास्ते प्रपंचसे भिन्न, अनुमान, उपपत्ति पदवीको नहीं प्राप्त होता है. जेकर कहोगे कि, हम अनुमानको प्रपंचसे अभेद मानते हैं, तब तो, प्रपंचकीतरें अनुमान भी, मिथ्यारूप ठहरा. तब तो, अपने साध्य को कैसे साध सकेगा ? इस पूर्वोक्त विचारसे प्रपंच मिथ्यारूप नहीं, किंतु
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