Book Title: Tattva Nirnayprasad
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 832
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ૭૨૦ तत्वनिर्णयप्रासादतदुक्तं राजप्रश्नीयवृत्तौ ॥ “॥ द्रव्यार्थिकनये नित्यं पर्यायार्थिकनयेत्वनित्यं द्रव्यार्थिकनयो द्रव्यमेव तात्त्विकमभिमन्यते नतु पर्यायान् द्रव्यं चान्वयि परिणामित्वात् सकलकालभावि भवति ॥” । भावार्थः-द्रव्यार्थिकनयसें नित्य और पर्यायार्थिकनयसें अनित्य वस्तु है. द्रव्यार्थिकनय द्रव्यहीको तात्त्विक वस्तु माने हैं, परंतु पर्यायोंको नही. क्योंकि, द्रव्य अन्वयि है, परिणामी होनेसें, तीनों कालमें सद्रूप है. पूर्वपक्षः-गुणप्रधान, तीसरा गुणार्थिक नय, क्यों नही कहा ? उत्तरपक्षः-पर्यायोंके ग्रहण करनेसें साथ गुणका भी ग्रहण हो गया, इसवास्ते गुणार्थिक नय, पृथक् नही कहा. प्रश्नः-पर्याय तो द्रव्यहीके हैं, तब द्रव्यार्थिक, और पर्यायार्थिक, येह दो नय कैसे होसकते हैं? उत्तरः-द्रव्य और पर्यायके स्वरूपकी विवक्षासें कुछक विशेष है. तथाहि-पर्याय, द्रव्यसें भी सूक्ष्म है. एक द्रव्यमें अनंत पर्यायोंके संभव होनेसें. द्रव्यकी वृद्धिके हुए, पर्यायोंकी निश्चयही वृद्धि होती है. प्रतिद्रव्यमें संख्याते असंख्याते पर्याय, अवधिज्ञानसें परिच्छेद होनेसें. और पर्यायोंकी वृद्धि हुए, द्रव्यवृद्धिकी भजना. तदुक्तं ॥ भयणाए खेत्तकाला परिवèतेसु दव्वभावेसु॥ दव्वे वटुइ भावो भावे दव्वं तु भयणिज्जं ॥ १॥ भावार्थः-द्रव्यभावकी वृद्धि में क्षेत्रकालकी वृद्धिकी भजना है, द्रव्यकी वृद्धि हुए भावकी वृद्धि अवश्यमेव होती है, और भावकी वृद्धिमें द्रव्यवृ. द्धिकी भजना है. तथा क्षेत्रसे द्रव्य अनंतगुणे हैं, और द्रव्यसै अवधिज्ञानके विषयभूत पर्याय, संखेयगुणे असंखेयगुणे हैं. तदुक्तं ॥ 'खित्तविसेसेहिंतो दव्यमणंतगुणियं पएसेहिं ॥ दव्वेहितो भावो संखगुणो असंखगुणिओ वा ॥१॥ For Private And Personal

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