Book Title: Tattva Nirnayprasad
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 857
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Marur , २२५ 9 " 0 0 १ م पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध स्थलरूप स्थूलरूप नाणीयोइ त्राणीयोइ कश्चिदृक्ष कश्चिदक्ष स्तब्धोदिवि स्तथोदिवि अमरणभब अमरणभाव रिचित्रितां विचित्रतां क्षरका श्रीहरी श्रीहरि नही है.? नहीं है. अश्वत्रिमः अकृत्रिमः शास्वत शाश्वतः निम्मितनैका निम्मितानेका अरे ! अरे, दिले दले १८५ १२ ब्रह्मादि ब्रह्मादि १८६ १२ बतलाई बतलाओ १९१ १८ तदानीमम् तदानीम् तो . तो १९७ २१ द्विर- द्विरा२००५ यद २०० १८ जायान् ज्यायान् २०४ १८ १८ साम्येद सौम्येद २०५ १७ अनित्यं अनित्य २०८ वा अभावका या अभावका वा असत् या असत् सो-जो जो-सो एकात एकांत २०९ पंचरूप प्रपंच २१० जाल जाला जीवों करके जीवोंके करे पचं पंच अप्समार, अपस्मार, । क्षयी क्षय २१३ १४ सपादन उपादान , २१ विचारोंकेही विकारोंकेही " २६ जिसमें जिससे HEEEEE : : -STREEEEEEE: पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध आपना अपना करेनसें करनेसें २१७१ सीन्नोसीत्-सीन्नोसदासीत् २ ठहरेगी ठहरेगा २१८ २ होवेंगी; न होवेंगी; २२३ इत्यदि इत्यादि चक्षु चक्कु २२४ शूद्रणी शृगी ब्राम्हणी ब्राह्मणी कोंकी कोंकी । २२९ ४ अधार आधार तदएडम तदण्डम २२९-२३० सर्वाश्च) सर्वाश्च । व्युष्टीः व्युष्टी: २३२ ९ ऋगवेग ऋग्वेद भाषानुसार भाष्यानुसार २३४ १७ हुआ, था, हुआथा, २३५ २३ इसमें इससे २३८६ २३८ १७ भस्मथन्नाग्नि भस्मच्छन्नाग्नि २३९ २२ सर्वशक्तिमान सर्वशक्तिमान् २४१ २१ विवस्वान विवस्वान् २४३६ स्कम्मन्तम् स्कम्भन्तम् २४४९-१२ उत्स्वास निःश्वास २४५ १२ (आजायत) (अजायत) करता कराता २४७ दुसरा दूसरा ऋग्वदं ऋग्वेदं २५७ ८ श्रृ शू २५८ १७ पठण पठन २०९ प्रणित प्रणीत २६० १० वसिष्टके। वसिष्टके २.६५ १ उद्देश्यके उद्दिश्यके ८ इसमें इससे २६६ २२ बैंचके «चके | २६७ १ वर्गमें वर्ग में यह For Private And Personal

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