Book Title: Tattva Nirnayprasad
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Amarchand P Parmar

View full book text
Previous | Next

Page 852
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७४० तत्वनिर्णयप्रासादसुनक्षत्रपुरे रम्ये धर्मनाथप्रतिष्टिते ॥ घस्रेजनशलाकायाः पादोनद्विशतार्हताम् ॥६॥ शिखिवाणांकचंद्राब्दे (१९५३) वल्लभेन मुमुक्षुणा ॥ राकायां प्रथमादशेऽलेखि माधवमासके ॥७॥ युग्मम् ॥ सूर्याचंद्रभसौ यावद् यावच्छीवीरशासनम् ॥ ग्रंथोऽयं नंदतात्तावत् परोपकृतिहेतवे ॥ ८॥ कियानप्यस्य शास्त्रस्य श्राद्धैः पट्टीनिवासिभिः॥ पंडितामृतचंद्राद्वैर्भागोऽस्ति परिशोधितः ॥९॥ ॥ इति शुभं भूवात् ॥ ॥ इतिश्रीमद्धिविजयगणिशिष्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिततत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथः समाप्तः॥ यह ग्रंथ मरुदेशवासी (हाल झुंबई निवासी ) ओसवाल बालफेना (वाफणा ) परमार गोत्रीय जैन (श्वेतांवरी-तपगच्छीय) अमरचंद पी० (पद्माजी) परमारने स्वमत्यनुसार पदच्छेद भ्रूफ आदि शोधन करके प्रसिद्ध किया. याचना है कि पाठक वर्ग दृष्टिदोषकी क्षमा करे. श्रेयांसि सन्ति बहुविधतानि लोके । कस्येदमस्त्यविदितं भुवि मानवस्य ॥ श्रेयस्तरोऽयमिति यः समयात्ययोऽभूत् । तं क्षन्तु महति सदा विदुषां समूहः ॥ १॥ अर्थः-किसको विदित नहीं है कि “ अच्छे कार्यों में बहुत विघ्न होते हैं.” यह ग्रंथ एक वडा सत्कार्य है, जिससे (कीलनीक आफत-मुश्केलीके सबबसें) प्रसिद्ध करनेमें विलंब हुवा जिसकी सुज्ञ साक्षरवर्ग क्षमा करेंगे. अंतापिका अगम धरमचंद्र दलपत दन मान जीन। पकर क्षमाधरम सुपरद तन तलीन ॥ ॥ शुभम् ॥ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863