Book Title: Tattva Nirnayprasad
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 849
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पटूत्रिंशः स्तम्भः ७३७ व्यवहारमात्रसें जाननी; परंतु निश्चयसें नही. ऐसें यह नय, स्वीकार करता है. जातिशब्द जे हैं, वे क्रियाशब्दही हैं. 'गच्छतीति गौः ' जो गमन करे सो गौ. 'आशुगामित्वादवः' आशु - शीघ्रगामी होनेसें अश्व. गुणशब्द जैसे 'शुचिर्भवतीति शुक्लः ' शुचि होवे, सो शुक्ल. 'नीलभवन्नान्नील: ' नील होनेसें नील. । यदृच्छाशब्द जैसें ' देव एनं देयात् यज्ञ एनं देयात् । संयोगी समवायीशब्द जैसें 'दंडोस्यास्तीति दंडी, विषाणमस्यास्तीति विषाणी' अस्ति क्रियाको प्रधान होनेसें अस्तिअर्थ में प्रत्यय है. येह सर्व क्रियाशब्दही हैं. अस्ति भू इत्यादि क्रियासामान्यको सर्वव्यापी होनेसें. उदाहरण जैसें, इंदनके अनुभवनसें इंद्र, शकनक्रियापरिणत शक, पूरणप्रवृत्तको पुरंदर कहते हैं, इति. अथ एवंभूताभास कहते हैं:-अपनी क्रियारहित, सो वस्तु भी, शब्दका वाच्य नही. तत्शब्दवाच्य यह नहीं है, ऐसा एवंभूताभास है. उदाहरण जैसें, विशिष्टचेष्टाशून्य घटनामक वस्तु घटशब्दका वाच्य नहीं. घटशब्दप्रवृत्तिनिमित्तभूत क्रियासें शून्य होनेसें, पटवत्. इस वाक्यसें अपनी क्रियारहित घटादिवस्तुको घटादिशब्दवाच्यताका निषेध करना प्रमाणबाधित है. ऐसें एवंभूताभास कहा है, इति. इन सातों नयों में सें आदिके चार नय, अर्थ निरूपणेमें प्रवीण होनेसें, अर्थtय हैं. अगले तीन नय, शब्दवाच्यार्थगोचर होनेसें, शब्दनय हैं. अथ इन पूर्वोक्त नयोंके कितने भेद हैं, सो लिखते हैं: गाथा ॥ saat य सयविहो सत्त नयसया हवंति एमेव ॥ अन्नो विय आएसो पंचेव सया नयाणं तु ॥ १ ॥ अर्थः- नैगमादि सातों नयोंके एकैकके प्रभेद सौ सौ भेद हैं, सर्व मिलाके सात सौ ( ७०० ) भेद होते हैं. प्रकारांतरसें पांचही नय होते हैं. सो यदा शब्दादि तीनोंको एकही शब्दनय, विवक्षा करीये, और एकैकके सौ सौ भेद करीये, तब पांचसौ भेद नयोंके होते हैं. ऐसेंही For Private And Personal

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