Book Title: Tattva Nirnayprasad
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 826
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ७१४ तत्त्वनिर्णयप्रासादभावार्थ:-सर्वत्र अनंतधर्माध्यासितवस्तुमें एक अंशका ग्राहक जो बोध है, सो नय है.-इत्यनुयोगद्वारवृत्तौ. ॥ __ अथवा। “॥ अनंतधर्मात्मके वस्तुन्येकधर्मोन्नयनं ज्ञानं नयः॥" इति नयचक्रसारे ॥ भावार्थः-अनंतधर्मात्मक जो वस्तु अर्थात् जीवादिक एक पदार्थमें अनंतधर्म है, उसका जो एक धर्म ग्रहण करना, और दूसरे अनंतधर्म उसमें रहे है, उनका उच्छेद नही. और ग्रहण भी नही, केवल किसीएक धर्मकी मुख्यता करनी, सो नय कहिये. __अथवा। “ ॥ नीयते येन श्रुताख्यप्रमाणविषयीकृतस्यार्थस्यांशस्तदितरांशौदासीन्यतः सप्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषो नयः ॥" अर्थः-यह सूत्र स्याद्वादरत्नाकरका है। प्रत्यक्षादि प्रमाणसें निश्चित किया जो अर्थ, तिसके अंशको, अंशोंको, वा ग्रहण करें, और इतर अंशोमें औदासीन रहै, अर्थात् इतर अंशोंका निषेध न करे, सो नय, कहिये हैं. यदि मानें अंशके सिवाय तदितर दूसरे अंशोंका निषेध करे तो, नयाभास हो जावे. जैनमतमें जो कथन है, सो नयविना नहीं है. यदुक्तं विशेषावश्यके ॥ णत्थि णएहिं विहुणं सुत्तं अत्थो य जिणमए किंचि ॥ आसजउ सोआरं नए नयविसारओ बूआ ॥ १॥ अर्थः-जिनमतमें नयविना कोई भी सूत्र, और अर्थ, नही है; इसवास्ते नयविशारद, नयका जानकार गुरु, योग्य श्रोताको प्राप्त होकर, विविध नय कथन करे. इति.॥ अथ प्रसंगसें नयाभासका लक्षण कहते हैं. ___ “॥ स्वाभिप्रेतादंशादितरांशापलापी नयाभासः॥” । भावार्थ:-अपने इच्छित अंशसे पदार्थके अन्य अंशको जो निषेध करे, और नयकीतरें भासन होवे, सो नयाभास है; परंतु नय नही. जैसे अन्य For Private And Personal

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