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तत्त्वनिर्णयप्रासादतदुक्तम् ॥
यदेवार्थक्रियाकारि तदेव परमार्थसत् ॥
यच्च नार्थक्रियाकारि तदेव परतोप्यसत् ॥ १॥ भावार्थ:-जो अर्थक्रियाकारि है, सोही, परमार्थसें सत् है; और जो अर्थक्रियाकारि नहीं है, सो परतः भी असत् है. इति.॥
अथवा अन्यप्रकारसें द्रव्यका लक्षण कहते हैं। .. निज निज प्रदेशसमूहैरखंडवृत्त्या । स्वभाववि__भावपर्यायान् द्रवति द्रोष्यति अदुद्रुवदितिद्रव्यम् ॥"
भावार्थः-अपने अपने प्रदेशसमूहोंकरके अखंडवृत्तिसे स्वभावविभावपर्यायोंको प्राप्त होता है, होगा, और पीछे हुआ, सो द्रव्य है.
अथवा “॥ गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ॥"गुणपर्यायवाला द्रव्य होता है. यदुक्तं विशेषावश्यकवृत्तौ ॥
दवए दुयए दोरवयवो विगारो गुणाण संदावो ॥
द भवं भावस्स भूयभावं च जं जोग्गं ॥१॥ व्याख्याः-तिनतिन पर्यायोंको प्राप्त होता है, वा छोडता है; अथवा अपने पर्यायोंकरकेही प्राप्त होवे, वा छूटे, अथवा द्रुसत्ता तिसकाही अवयव, वा विकार, सो द्रव्य; अवांतरसत्तारूपद्रव्य, महासत्ताके अवयव, वा विकारही होते हैं. अथवा रूपरसादि गुण तिनोंका संद्रावसमूह, घटादि. रूप, सो द्रव्य. तथा भाविपर्यायके योग्य जो होनेवाला, सो भी, द्रव्य; राज्यपर्याययोग्य कुमारवत्. तथा पश्चात्कृतभावपर्याय जिसका, सो भी, द्रव्य; अनुभूतघृताधारत्त्वपर्यायरहित घृतघटवत्. च शब्दसें भूतभविष्यत्पर्याय द्रव्य, भूतभविष्यत् घृताधारत्वपर्यायरहित घृतघटवत्. भूतभावके, भाविभावके, और भूतभविष्यत् भावोंके, इस समय न हुए भी, उन भावोंके जो योग्य है, सोही, द्रव्य है, अन्य नही. अन्यथा तो, सर्वपर्यायोंको भी, अनुभूतत्व होनेसें, और अनुभविष्यमाणत्व होनेसें, पुद्गलादि सर्वको भी द्रव्यत्वका प्रसंग होवेगा. इति गाथार्थः । इतिद्रव्याधिकारः॥
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