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पत्रिंशः स्तम्भः ।
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भंग है. परद्रव्यादिचतुष्टयके अविद्यमानत्वके हुए भी, सदंश असदंश ऐसी प्ररूपणा करनेको यह भंग असमर्थ है. इस भंगमें सर्ववस्तु जीवादि, परद्रव्यादिचतुष्टयकी अपेक्षाकरके नास्ति भी है, तो भी विधिप्रतिषेधरूपों करके कहनेको अनिर्वचनीय है. ' नास्त्यत्र प्रदेशे घटः ' नही है, इस प्रदेशमें, घट, सत्रूप असतूरूपकरके युगपत्स्वरूपके कथन करनेमें असामर्थ्य होनेसें नास्तित्वके हुए भी, अवक्तव्य है. इतिफलितार्थः षष्ठो भंगः ॥ ६ ॥
अथ अर्थसें सातमा भंग प्रकट करते हैं :- स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्यमिति ॥ अनुक्रमकरके अस्तित्वनास्तित्व पूर्वक युगपत् विधिनिषेध प्ररूपणानिषेधप्रधान यह भंग है. इति शब्द सप्तभंगीकी समा तिमें है; स्वद्रव्यादिचतुष्टयकी अपेक्षाकरके अस्तित्व के हुए भी, परद्रव्या. दिचतुष्टयकी अपेक्षा नास्तित्वके हुए भी, विधि वा प्रतिषेध कथन करनेको असमर्थ है. इस भंग में सर्वजीवादिवस्तु, स्वद्रव्यादि अपेक्षा अस्ति है, परद्रव्यादि अपेक्षा नास्ति है, तो भी, एककालमें विधिनिषेधरूपोंके साथ युगपत् प्रतिपादन करनेको असमर्थ है. जैसें स्वद्रव्यादि अपेक्षासें है, इसप्रदेशमें, घट, परद्रव्यादि अपेक्षासें, नही है; यहां घट, विधिप्रतिषेधरूपों करके युगपत्स्वरूप कथन करनेको असमर्थ होनेसें अवक्तव्य है. इति प्रकटार्थ है. इसवास्ते स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्यं कथंचित है, कथंचित् नही, और कथंचित् अवक्तव्य, इसभंगकरके दिखलाया है. इतिसप्तमभंगः ॥ ७ ॥
तथा यह जो सप्तभंगी है, सो सकलादेश, विकलादेश, दोतरेंके भंगवाली है.
तदुक्तं प्रमाणनयतत्वालोकालंकारे. ॥
॥ इयं सप्तभंगी प्रतिभंगं सकलादेशस्वभावा विकलादे - शस्वभावा च ॥ ४३॥ प्रमाणप्रतिपन्नानंतधर्मात्मकवस्तुनः कालादिभिरभेदवृत्तिप्राधान्यादभेदोपचाराद्वा यौगपद्येन प्रतिपादकं वचः सकलादेशः ॥ ४४ ॥ तद्विपरीतस्तु बिकलादेशः ॥ ४५ ॥ इतिचतुर्थपरिच्छेदे ॥
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