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तत्वनिर्णयप्रासादलिखा है, तिससें जैनमत तो खंडन नहीं होता है, परंतु वेदांतमत खंडन होता है, सोही दिखाते हैं. __ शंकरस्वामी कहते हैं, “तुमने ( जैनोने ) जे सात पदार्थ माने हैं, वे अनेकांत माननेसें निश्चित अनिश्चित होजावेंगे."
इसका उत्तरः-तुमने वेदांतीयोंने जो ब्रह्म माना है, सो एकांतनिश्चित है, वा अनिश्चित है ? जेकर एकांतनिश्चित है तो, जैसें सत्रूपकरके निश्चित है, तैसें असत्रूपकरके भी, निश्चित होना चाहिये; तिसको सर्वप्रकारसें निश्चित होनेसें. जेकर अनिश्चित है, तो जैसे असत्रूपकरके अनिश्चित है, वैसेंही सत्रूपकरके भी, अनिश्चित होना चाहिये; तिसको सर्वथाप्रकार अनिश्चित होनेसें. जब ऐसें हुआ, तब तो, ब्रह्मका नियतरूप न रहा, सत् असत्का संकर होनेसें. जेकर कहोगे सत्करके निश्चित है, और असत्करके अनिश्चित है, तब तो, तुमने अपनेही हाथसें अपने शिरमें प्रहार दीया, अनेकांतवादके सिद्ध होनेसें. तथा जैसे ब्रह्म सत्रूपकरके निश्चित है, और असत्रूपकरके अनिश्चित है, ऐसेंही सात पदार्थ, अपने स्वरूपकरके निश्चित है, और परस्वरूपकरके अनिश्चित है.
पुनः शंकरखामी कहते हैं, “ निरंकुश अनेकांतके माननेसें जो निश्चय करना है, सो भी, वस्तुसें बाहिर न होनेसें स्यात् अस्ति, नास्ति, होना चाहिये. इत्यादि."
इसका उत्तरः-निश्चयस्वरूपकरके अस्ति है, संशय विपर्ययरूपकरके नास्ति है. जेकर एकांत अस्ति होवे, तब तो संशय विपर्ययरूपकरके भी, अस्ति होना चाहिये; जेकर एकांत नास्ति होवे, तब निश्चयरूपकरके भी नास्ति होना चाहिये; इससे सिद्ध हुआ कि, कोई भी वस्तु एकांत नहीं है. ऐसेंही निर्धारण करनेवाला, और निर्धारणके फलको भी, स्वपररूपकरके अस्तिनास्तिरूप जानना. जेकर स्वपररूपकरके अस्तिनास्तिरूप वस्तु न मानीये, तब वस्तुके नियतरूपके नाश होनेसें सर्व जगत् सर्वरूप होजावेगा. तब तो, ब्रह्मका भी, नियतरूप नहीं रहेगा. वाहरे ! शंकरखामी ! अच्छा अनेकांतका खंडन किया, अनेकांत तो खंडन नही हुआ, परंतु ब्रह्मके स्वरूपका नाश कर दिया!!! इतिशंकरकृतखंडनस्य खंडनम् ॥
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