Book Title: Tattva Nirnayprasad
Author(s): Vallabhvijay
Publisher: Amarchand P Parmar

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Page 796
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तत्त्वनिर्णयप्रासादपूर्वपक्षः-भावरूप, तथा अभावरूप, येह दोनोंही प्रकारे वस्तु नही. उत्तरपक्षः-हम तुमको पूछते हैं कि, भाव, और अभाव, इन दोनोंका अर्थ, जो लौकिकमें प्रसिद्ध है, वोही, तुमने माना है ? वा इससे विपरीत और तरेंका माना है ? जेकर प्रथम पक्ष मानोगे तो, जहां भावका निषेध करोगे, तहां अवश्यमेव अभाव कहना पडेगा; और जहां अभावका निषेध करोगे तहां अवश्यमेव भाव कहना पडेगा. जो परस्पर विरोधी है, उनमें एकका निषेध करोगे तो, दूसरेका विधि, अवश्य कहनाही पडेगा. अथ दूसरा पक्ष मानोगे, तब तो हमारी कुच्छ हानी नही है. क्योंकि, अलौकिक एतावता तुमारे मनःकल्पित शब्द, और शब्दका निमित्त, जेकर नष्ट होजावेगा तो, लौकिकशब्द, और लौकिशब्दका निमित्त, कदापि नष्ट नहीं होगा; तो फिर, अनिर्वाच्य प्रपंच किसतरें सिद्ध होगा? जब अनिर्वाच्यही सिद्ध नहीं होगा तो, प्रपंच मिथ्या कैसे सिद्ध होगा? और एकही अद्वैत ब्रह्म कैसे सिद्ध होवेगा ? निःस्वभावत्वपक्षमें भी, निस् शब्दको निषेधार्थके हुए, और स्वभावशब्दको भी भाव अभाव दोनोंमेंसें अन्यतर किसी एक अर्थके अर्थात् भावके, वा अभावके वाचक हुए, पूर्ववत् प्रसंग होवेगा. . पूर्वपक्षः-हम तो जो प्रतीत न होवे, उसको निःस्वभावत्व कहते हैं. उत्तरपक्षः-इस तुमारे कहने में विरोध आता है; जेकर प्रपंच प्रतीत नहीं होता तो, तुमने अपने प्रथम अनुमानमें प्रपंचको प्रतीयमान हेतुस्वरूपपणे क्योंकर ग्रहण किया? और प्रपंचको अनुमान करनेके समय धर्मीपणे क्योंकर ग्रहण किया ? तथा धर्मीपणे ग्रहण करे हुए, वो कैसे प्रतीत नही होता है? पूर्वपक्षः-जैसा प्रतीत होता है, तैसा है नही. उत्तरपक्षः-तब तो यह, विपरीतख्याति, तुमने अंगीकार करी सिद्ध होवेगी. तथा हम तुमको पूछते हैं कि, यह जो तुम इस प्रपंचको अनिर्वाच्य मानते हो, सो प्रत्यक्षप्रमाणसें मानते हो ? वा अनुमानप्रमाणसें मानते हो? प्रत्यक्षप्रमाण तो, इस प्रपंचको सतस्वरूपही सिद्ध करता है. For Private And Personal

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