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तत्त्वनिर्णयप्रासादइत्येकविंशतिविधा जिनराजपूजा चान्यत्
प्रियं तदिह भाववशेन योज्यम् ॥ भावार्थः-स्नान १, विलेपन २, पुष्प ३, वास ४, दीप ५, धूप ६, फल ७, तंदुल ८, पत्र ९, सुपारी १०, नैवेद्य ११, जल १२, वस्त्र १३, चामर १४, छत्र १५, वादित्र १६, गीत १७, नाटक १८, स्वस्तिक १९, कोष (भंडार) २०, और दूर्वा २१, यह इकास प्रकारकी श्रीजिनराजकी पूजा जाणनी, तथा और भी, जो प्रिय होवे, सो शुद्ध भावोंसें पूजनमें योजन करना. तथा भगवदेकसंधिविरचित श्रीजिनसंहितामें ऐसें लिखा है.॥ नित्यपूजाविधाने तु त्रिजगत्स्वामिनः प्रभोः॥ कलशेनैककेनापि स्नापनं न विगृह्यते॥१॥ विदध्यात्कलहमित्यादि-॥ भावार्थः-नित्यपूजाविधानमें त्रिजगत्स्वामी भगवान्को एक कलशसें भी स्नान जो नहीं कराते हैं, तिनको कलह कुलका नाश आदि प्राप्त होवे हैं, ऐसें जाणना. तथा श्रीउमास्वामिविरचित श्रावकाचारमें ऐसें कहा है. ॥
प्रभाते घनसारस्य पूजा कुर्याजिनेशिनाम् ॥ तथा ॥
चंदनेन विना नैव कुर्यात्कदाचन ॥ भावार्थः-प्रभातके समय घनसार (वरास) से श्रीजिनराजकी पूजा करनी. । तथा-चंदनके विना कदापि पूजा नही करनी. तथा वसुनंदीजिनसंहितामें ऐसें लिखा है.॥
अनर्चितपदवढं कुंकुमादिविलेपनैः॥ बिंबं पश्यति जैनेंद्र ज्ञानहीनः स उच्यते ॥१॥ भावार्थ:-कुंकुम (केसर ) आदि सुगंधित द्रव्योंके लेपसे रहित चरण है जिसके, ऐसे जिनबिंबका जो दर्शन करता है, तिसको ज्ञानहीन पुरुष कहिये हैं.
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