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तत्त्वनिर्णयप्रासादप्रमाण था. । और कीनटोलोकस नामका राक्षस पंदरा (१५) फुट ६ इंच ऊंचाथा, उसके खंभेकी चौडाइ १० फुटकी थी; और सारलामेनके वखतमें मालुम हुआ फरटीग्स नामका सखस २८ फुट ऊंचा था; यह कथन गुजरातमित्रके ३० मे पुस्तकके तारीख १८ सपटेंवर सन १८९२ के अंकमें लिखा है.
तथा तारीख १२ नवेंबर सन १८९३ के बुंबईका गुजराती पत्रमें लिखा है कि, हंगरीमें राक्षसीकदके एक मेंडक ( दुर्दर-देडका) का हाडपिंजर मिला है; इस मेंडकको 'लेवीरीनथोडोन' के नामसें पिछानने में आते हैं. प्राचीन शोधोंके करनेसें मालुम होता है कि, ऐसी जातके मेंडक तिस अतीतकालमें बहुत अस्ति धराते थे, परंतु आजकालमें ऐसे मेंडककी अस्ति है नही. इस मेंडककी खोपरी इतनी बडी है कि, उसकी दोनों आंखोंके खाडोंके बीचमें १८ ईचका अंतर है; इस खोपरीका वजन ३१२ रतल प्रमाण है, और सर्व हाडोंके पिंजरका वजन १८६० रतल प्रमाण, अर्थात् लगभग एक टन प्रमाण होता है. तथा प्रोफेसर थीओडोर कुक अपने बनाए भूस्तर विद्याके ग्रंथमें लिखते हैं कि, पूर्वकालमें उडते गिरोली ( छपकली-किरली) जातके प्राणी ऐसे वडे थे, जिसकी पांख २७ फुट लंबी थी. जब ऐसे प्राणी पूर्व कालमें इतने बडे थे, तो फिर मनुष्योंकी अवगाहना बहुत बडी होवे तो, इसमें क्या आश्चर्य है ? ये पूर्वोक्त सर्व शोधे अंग्रेजोंने करी है. अब जो कोइ कहे कि, इतने बड़े शरीरवाले मनुष्य, मेंडक, गिरोलीको हम नहीं मानते हैं, तो फिर हम उनको क्या प्रमाण देवे ? क्योंकि, ऐसें अकलके पुतलों (बारदानों). को तो सर्वज्ञ भी नही समझा सकते हैं. और जो कोइ भृस्तर विद्याकी शोधको सत्यकरके मानते हैं, उनकेवास्ते तो पूर्वोक्त प्रमाण बहुत बलवत् है कि, पिछले जमानेमें मनुष्योंके शरीर बहुत बड़े कद्दावर थे; इससे बहुत प्राचीनतर कालमें जो अवगाहना जैन सिद्धांतमें लिखी है, सो भी सत्य सिद्ध होसकती है. । तथा मनुस्मृतिकी टीकामें श्रीरामचंद्रजीकी आयु दशसहस्र (१००००) वर्षकी लिखी है. । तथा महाभार
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