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तत्त्वनिर्णयप्रासादआयमसत्थपुराणं पायच्छित्तं च अण्णहा किंपि ॥ विरइत्ता मिच्छत्तं पवत्तियं मूढलोएसु ॥३६॥ सो सवणसंघबन्झो कुमारसेणो हु समयमिच्छत्तो॥ चत्तोवसमो रुद्दो कट्टं संघ पवत्तवेदि ॥ ३७॥ सत्तसए तेवण्णे विकमरायस्स मरणपत्तस्स ॥ णंदियडेवरगामे कट्ठो संघोमुणेयवो ॥ ३८॥ भाषार्थः-श्रीवीरसेनका शिष्य सकल शास्त्रका ज्ञाता जिनसेन हुआ, तिसके पीछे चार संघका उद्धार करनेवाला धीर पुरुष श्री पद्मनंदि हुआ, तिसका गुणवान् दिव्यज्ञानपरिपूर्ण परकाव्यको मर्दन करनेवाला महातपस्वी भावलिंगी गुणभद्र नामा शिष्य हुआ, तिसने अपना मृत्यु जानके विनयसेन मुनिको सिद्धांत पढाके स्वयं स्वर्गलोकको गमन किया. विनयसेन मुनिका शिष्य कुमारसेन हुआ, तिसने संन्यास भांग दीया, फिर विनाही गुरुके ग्रहण करे दीक्षित हुआ, पिच्छको त्यागके चामर ग्रहण करके मोहसंयुक्त होके तिसने सर्ववागडदेशमें उन्मार्ग चलाया; स्त्रीको दीक्षा क्षुल्लकलोमको वीरचरियत्त कर्कशकेशग्रहण छहागुणवत आगमशास्त्रपुराणप्रायश्चित्त इत्यादि कितनीक अन्यथा रचना करके मूढलोकोंमें मिथ्यात्व प्रवाया, सो सर्वसंघसें बाह्य ऐसा कुमारसेन रुद्र उपशमको त्यागके मिथ्यासिद्धांत, और काष्टसंघको प्रवर्त्तावता हुआ. वि. क्रमराजाके मरण पीछे सातसौ त्रेपन (७५३ ) वर्षे नंदियडेवरगाममें काष्टसंघ उत्पन्न हुआ जानना. इति॥
तथा अन्य दिगंबर ग्रंथोंमें लोहाचार्यसें काष्टसंघकी उत्पत्ति लिखि है, और दर्शनसारमें कुमारसेनसें काष्टसंघकी उत्पत्ति लिखि है.
मूलसंघकी बलात्कारगणकी पट्टावलिमें भद्रबाहु श्रीवीरनिर्वाणसे ४९८ वर्षे पट्टस्थ हुए लिखा है. तथाहि । बहुरि श्रीवीरस्वामीकू मुक्ति गये पीछे च्यारिसैं सत्तरि (४७०) वर्ष गये पीछे श्रीमन्महाराज विक्रमराजाका जन्म भया, बहुरि पूर्वोक्त सुभद्राचार्यते विक्रमराजाको जन्म हैं.
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