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त्रयस्त्रिंशः स्तम्भः ।
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उत्कृष्ट श्राविकाही मानते हैं. शेष रहा नग्नमुनि, तिनके वास्ते जो अनुचित कठिन वृत्ति लिख दीनी हैं, सो तिसका पालना पंचमकालमें अशक्य है; और दिगंबरमत चलानेवाले इनके आचार्य भी दीर्घदर्शी नही थे. क्योंकि, जो कठिनवृत्ति, वज्रऋषभनाराचसंहननवालोंकेवास्ते थी, वोही वृत्ति सेवार्त्तसंहननवालेके वास्ते लिख मारी. क्या हाथिका बोझ, गर्दभ ऊठा सकता है ?
प्रथम तो दिगंबराचार्योंको पांच प्रकारके निग्रंथोंके स्वरूपहीका यथा र्थ बोध नही मालुम होता है. क्योंकि, उनोंने राजवार्त्तिकादिग्रंथोंमें जैसा पांच निर्ग्रथों का स्वरूप लिखा है, तिस स्वरूपवाले बुक्स १, प्रति सैवना निग्रंथ २, ये दोनों जे इस पंचमकालमें पाईये हैं, तैसें स्वरूपवाले इस भरतखंडमें दीख नही पडते हैं. जब प्रत्यक्षप्रमाणसेंही तुम्हारा ( दिगंबर ) मत बाधित है, तो फिर अन्यप्रमाणकी क्या आवश्यकता है? और श्वेतांबरम के व्याख्याप्रज्ञप्ति, उत्तराध्ययननियुक्ति, पंचनिग्रंथी संग्रहणी, उमाखातिकृत तत्त्वार्थसूत्र, और तत्त्वार्थसूत्रकी भाष्य, तथा सिद्धसेनगणिकृत तत्त्वार्थभाप्यवृत्ति प्रमुख शास्त्रोंमें जो पांच निर्मंथोंका स्वरूप लिखा है, तिनमेंसें बुक्कस १, प्रतिसेवनानिग्रंथ २, जैसे स्वरूपवाले लिखे हैं, तैसें स्वरूपवाले साधु, साध्वी, इस पंचमकालमें प्रत्यक्ष प्रमाणसें भी सिद्ध है. तो फिर श्वेतांबरमतही असली जैनमत, और दिगंबरमत पीछेसें निकला क्यों नही होवेगा ? अपितु होवेहीगा.
एक बात याद रखनी चाहिये कि, जो जो कथन जिनेंद्रदेवके कथनानुसार दिगंबर मतके शास्त्रों में है, तिस कथनको हम बहुमान देते, और अनंतवार नमस्कार करते हैं; परंतु जो जो दिगंबरोंने स्वकपोलकल्पना सें रचना करी है; तिसकाही हम समालोचन करते हैं.
और जो दिगंबर कहते हैं कि, श्वेतांबरोंने केवलीको कवल आहार १, स्त्रीको मोक्ष २, साधुको चउदह (१४) उपकरण राखने, इत्यादि विरुद्ध कथन लिखे हैं.
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