________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
५७८
तत्त्वनिर्णयप्रासादअनुपस्थाप्यतापारांचितककरके शून्य होनेसें स्त्रियोंमें विशिष्टसामर्थ्याभाव है, यह भी कहना अयुक्त है. क्योंकि, तिनके निषेधसें विशिष्टसामर्थ्यका अभाव नही होता है. क्योंकि, योग्यताकी अपेक्षाहीसे शास्त्रोंमें नानाप्रकारका विशुद्धिका उपदेश है. । उक्तं च ॥
संवरनिर्जररूपो, बहुप्रकारस्तपोविधिः शास्त्रे ॥
रोगचिकित्साविधिरिव, कस्यापि कथंचिदुपकारी ॥ भावार्थः-जैसे रोग चिकित्साका विधि, किसीको किसीतरें, और किसीको किसीतरें, उपकारी होता है, तैसेंही शास्त्रमें कहा हुआ, संवरनिर्जरारूप, बहुप्रकारवाला तपका विधि उपकारी है. ॥ २ ॥
पुरुष वंदन नहीं करते हैं, इसकरके भी, स्त्रियोंमें हीनता सिद्ध नहीं होती है. क्योंकि, तैसा अनभिवंद्यत्व, सो भी सामान्यतः मानते हो, वा गुणाधिक पुरुषकी अपेक्षासें मानते हो? आद्यपक्ष असिद्ध है. क्योंकि, तीर्थंकरकी माता आदिको, पुरंदरादि इंद्रादि भी पूजते हैं, नमस्कार करते हैं तो, शेषपुरुषोंका तो कहनाही क्या है ? और दूसरे पक्षमें आचार्य अपने शिष्योंको वंदना नहीं करते हैं, तब तो, आचार्यसें हीन होनेसें, शिष्योंको मुक्ति न होनी चाहिये; परंतु ऐसें है नहीं क्योंकि, चंद्ररुद्रादिके शिष्योंको मुक्ति हुइ शास्त्रोंमें सुननेमें आती है तथा गणधरोंको भी तीर्थंकर नमस्कार नहीं करते हैं; लब तो, तिनको भी हीन गिणने चाहिये, और तिनको मोक्ष न होना चाहिये ! इसवास्ते मूल हेतु व्यभिचारी है. अपरं च । चतुर्वर्णसंघ, सो तीर्थंकरोंको वंद्य है; और स्त्रियों भी संघमेंही है, इसवास्ते जे संयमवती हैं, तिनको तीर्थकरवंद्यत्व सिद्ध हुआ; तब तो, स्त्रियोंको हीनत्व कहां रहा! ॥३॥
स्मारणादिके न करनेसें. यह पक्ष अंगीकार करोगे, तब तो, केवल आचार्यकोंही मुक्ति होनी चाहिये; शिष्योंको नहीं. क्योंकि, वे स्मारणादि करते नहीं हैं.
हीन हो अपने शिष्यांक तो कहनाही त्रादि भी पूजते
For Private And Personal