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तत्त्वनिर्णयप्रासादहैं कि, श्वेतांबरमत चलानेवाला जिनचंद्र प्रथम नरकमें गया. अब विचार करो कि, देवसेनने संवत् ९९० में दर्शनसार बनाया तो, क्या उस वखत देवसेनको कोइ अवधिज्ञान हुआ था कि, जिससे उसने जाना कि, जिनचंद्र पहिली नरकमें गया ? इस देवसेनके लेखसेही सिद्ध होता है कि, श्वेतांबरमतकी बावत जो कल्पना करी है सर्व असत्य और द्वेषसंयुक्त है. ऐसेंही सर्व दिगंवराचार्योंकी कल्पनाबाबत जान लेना चाहिये. तथापि सर्वार्थसिद्धिभाषाटीकाके पाठकी समालोचना दिङ्मात्र करते हैं. इस लेखमें बहुत मुनि शिथिलाचारी हो गए, तिनका संप्रदाय चला लिखा है, और अंतके श्रुतकेवली प्रथम भद्रबाहुस्वामीके पीछे चला लिखा है, यह श्वेतांबरमतकी मूल उत्पत्ति लिखी है. परंतु जिनचंद्रका नाम, वा उत्पत्तिका संवत् यह कुछ भी नहीं लिखा है. तथा दिगंबरपट्टावलिमें, और विक्रमप्रबंधादि ग्रंथाल श्रीवीरनिर्वाणसें १६२ वर्षे प्रथम भद्रबाहु अंतिम श्रुतकेवलीको स्वर्गवासी लिखे हैं; और देवसेनने श्वेतांबरमत चलानेवाले जिनचंद्रको श्रीवीरनिर्वाणसे ७२६ वर्षे हुआ लिखा है, इसवास्ते यह लेख भी परस्पर विरोधी है, इसीवास्ते स्वकपोलकल्पित है. __ तथा देवर्षिगणिने शिथिलाचारके पोषणवास्ते श्वेतांबरोंके माने आचारांगादि सूत्र रचे, यह कथन भी अज्ञानविजूंभितही है. क्योंकि, प्रथम तो देवर्षिगणिनामा श्वेतांबरोंका कोई साधुही नही हुआ है तो, रचना दूरही रही!! परंतु प्रथम सर्व पुस्तक ताडपत्रोपरि लिखने लिखानेवाले श्रीदेवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण पूर्वके ज्ञानके धारक हुए हैं, वे तो श्रीवीरनिर्वाणसें ९८० वर्ष पीछे हुए हैं, तो, क्या श्वेतांवरोका मत विनाही शास्त्रके ८१८ वर्षतक चलता रहा ? लिखनेवालेकी कैसी अज्ञानता थी कि, विनाही शोचे विचारे असमंजस लेख लिख दीया ! ! तथा देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणजीने तो, शास्त्र पुस्तकारूढ करे हैं, परंतु रचे नहीं हैं. जैन श्वेतांबर आगमोंकी रचना तो, यूरोपीयन सर्व विद्वान मंडलने २२ सौ वर्षसें भी अधिक पुराणी सिद्ध करी है, * तो फिर किसी अज्ञने देवर्षिगणिके
* देखो सेक्रेडबुकके अंतर्गत आचारांगसूत्रके अंग्रेजी तरजमेकी उपोद्घात ( प्रस्तावना ) में और बुल्हरकत मधुराके शिलालेखोंक भापणाम ।।
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