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तत्वनिर्णयप्रासादभारी । ८। एवं सर्व आठ विकल्प होते हैं. पहिला भेद जो पाणिपात्र, और वस्त्ररहित कहा है, सोही आठ विकल्पोंमेंसें प्रथम विकल्पवाला जानना. . जब आचार्योंने जिनकल्पका ऐसा स्वरूप कथन करा, तब शिवभूतिने पूछा कि, किसवास्ते आप अब इतनी उपाधि रखते हों ? जिनकल्प क्यों नही धारण करते हो ? तब गुरुने कहा कि, इस कालमें जिनकल्पकी सामाचारी नहीं कर सकते हैं. क्योंकि, जंबूस्वामिके मुक्ति गमनपीछे जिनकल्प व्यवच्छेद हो गया है. तब शिवभूति कहने लगा कि, जिनकल्प व्यवच्छेद हो गया क्यों कहते हो ? मैं करके दिखाता हूं. जिनकल्पही परलोकार्थीको करना चाहिये. तीर्थकर भी अचेल थे, इसवास्ते अचेलताही अच्छी है. तब गुरुयोंने कहा, देहके सद्भाव हुए भी कषायमूर्छादि किसीको होते हैं, तिसवास्ते देह भी तेरेको त्यागने योग्य है. और जो अपरिग्रहपणा मुनिको सूत्रमें कहा है, सो धर्मोपकरणोंमें भी मूर्छा न करनी;
और तीर्थकर भी एकांत अचेल नही थे. क्योंकि, कहा है कि, सर्व तीर्थंकर एक देव दृष्यवस्त्र लेके संसारसे निकले हैं; यह आगमका वचन है. ऐसें स्थविरोंने तिसको कथन करा, यह गाथाका अर्थ हुआ. १९३। ऐसें गुरुयोंने तिसको समझाया भी, तो भी, कर्मोदयकरके वस्त्र छोडके नग्न होके जाता रहा. तिस शिवभूतिकी उत्तरा नामा बहिन जो आर्या हुइ थी, उद्यानमें रहे शिवभूतिको वंदना करनेको गई. तिसको नग्न देखके तिसने भी वस्त्र उतार दीने, और नग्न हो गई, और नगरमें भिक्षाको गई, तब गणिकाने देखी, तब विचारा कि, इसका कुत्सिताकार देखके लोक हमारे ऊपर विरक्त न हो जावें, इसवास्ते तिसकी उरः (छाती) ऊपर वस्त्र बांधा. * वो तो वस्त्र नही चाहती है; तब शिषभूतिने कहा कि, यह वस्त्र तूं रहने दे, देवताने तुझको यह वस्त्र दीना है, इसवास्ते.। तिस शिवभूतिने दो चेले करे. कौडिन्य १, कोष्टवीर २, इन दोनोंकी शिष्यपरंपरासें कालांतरमें मतकी वृद्धि होगई. ऐसें दिगंबरमत उत्पन्न हुआ. * किसी जगह ऐसे भी लिखा है कि तितके .पर झरोखेसै ५० अन ऐसे गेरा जिस्से उसका नग्नपणा
ढका गया.
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