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दशमस्तम्भः।
૨૭.
तथा ऋ० सं० अष्टक ७ अध्याय ६ वर्गमें यम और यमीका संवाद है. विवस्वतके पुत्रपुत्री युगल प्रसूत हुए, जब वे यौवनवंत हुए तब यमी बहिन, अपने यमनामक भाइको देखके कामातुर होके तिसकेसाथ भोग करनेकी इच्छावंत हुई; और यमको कहने लगी कि, तूं मेरेसाथ मैथुन करके मुझे तृप्त कर. तब यमने कहा कि, बहिन और भाइका मैथुन (विषय) महापापका हेतु है; इसवास्ते मैं यह काम कदापि नही करुंगा. तब यमीने, यमको समझाने, और तिसकेसाथ संभोग (विषय) सेवनेकेवास्ते अनेक युक्तियां, और दृष्टांत दीए हैं. परंतु यमने तिसको उत्तर देके तिसका कहना स्वीकार नही करा. यह कथन चतुर्दश (१४) ऋचायोंमें है, और इस सूक्तके ऋषि भी यम और यमी है. यह सूक्त यमयमीऊपर संतुष्टमान होके परमेश्वरने तिनको प्रदान करा था ! अब वाचकवर्गके वाचनेवास्ते नमूनेमात्र दो ऋचायों अर्थसहित लिख दिखाते हैं. उशन्ति घा ते अमृता स एतदेकस्य चित्त्यजसं मत्यस्य । निते मनो मनसि धाय्यस्मे जन्युः पतिस्तन्वमा विविश्याः ॥३॥
१० अ०७। अ०६॥ भाष्यानुसारभाषार्थ:--पुनरपि फिर यमी यमप्रतें कहती है। (घा) ऐसा निपात अपि अर्थमें है, हे यम! (ते) प्रसिद्ध-वे-(अमृतासः) प्रजापतिआदि देवते भी (एतत् ) ईदृशं-शास्त्रने जो अगम्य कही है (त्यजसं) त्यागीए हैं, परकेतांइ देइए हैं, ऐसी जो खबेटी बहिनादि स्त्रीजात तिनको (उशन्ति ) कामयन्ते अर्थात् तिनकेसाथ पूर्वोक्त देवते भोग करनेकी इच्छा करते हैं। (एकस्यचित् ) एकही सर्व जगत्का मुख्य प्रजापति ब्रह्मादि देवतायोंका भी अपनी बेटी भगिनीके साथ संबंध है। इसकारणसें (ते) तेरा (मनः) चित्त (अस्मे) मेरे (मनसि) चित्तमें (निधायि) स्थापन कर, अर्थात् जैसें मैं तेरेको भोगेच्छा करके वांछती हुँ, तैसें तूं भी मुझको वांछ,-मेरेसें भोग करनेकी इच्छा कर.
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