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तत्त्वनिर्णयप्रासादस्तंभन कर दीया. तदपीछे धनेशने तिस व्यंतरदेवताकी पूजा करी, तब तिस समुद्रकी भूमिसें तिस व्यंतरके उपदेशसे स्यामवर्णकी तीन प्रतिमा निकाली; तिनमेसें एक प्रतिमा तो चारूपग्राममें तीर्थप्रतिष्ठित करी, अन्य श्रीपत्तनमें आमलीके वृक्षके हैठ प्रासादमें श्रीअरिष्टनेमिकी प्रतिमा प्रतिष्ठित करी, और तीसरी प्रतिमा श्रीपार्श्वनाथकी स्थंभन ग्रामके पास सेढिकानदीके कांठे ऊपर तरुजाल्यांतरभूमिमें स्थापन करी. __पुरा गये कालमें शालिवाहनराजाके राज्यसे पहिले वा लगभग,नागार्जुन विद्यारससिद्धिवाला, बुद्धिका निधान, भूमिमें रहे हुए बिंबके प्रभावसें रसको स्थंभन करता हुआ; तदपीछे तिसने तहां स्थंभनक ग्राम निवेशन करा.। और तिस श्रीपार्श्वनाथकी प्रतिमाके, जो खंभातबंदरमें संप्रतिकालमें विद्यमान है, बिंबासनके पीछे भागमें ऐसी अक्षरोंकी पंक्ति लिखी हुई परंपरायसें हम सुनते हैं; और यह बात लोकोंमें भी प्रायः प्रसिद्ध है. । सो लेख यह है ॥
नमेस्तीर्थकृतस्तीर्थे वर्षे द्विकचतुष्टये २२२२
आषाडश्रावको गौडोकारयत्प्रतिमात्रयम् ॥१॥ अर्थः-जैनमतमें ऐसी दंतकथा चलती है कि, गत चौवीसीके सतारमे नमिनामा तीर्थंकरके शासन चलां पीछे २२२२ इतने वर्ष गए, आषाडनामा श्रावक, गौडदेशका वासी, तिसने तीन प्रतिमा बनवाई थीं, तिसमें यह रत्नमयी प्रतिमा भी, तिसनेही बनवाई थी.
जेकर इस चौवीसीके २१ के नमिनाथके शासन चलां पीछे २२२२, इतने वर्ष गए बनवाइ होवे, तो भी, ५८६६५० वर्षके लगभग व्यतीत हुए हैं.। - यह लेखसंबंधि कथन प्रभावकचरित्र, और प्रवचनपरीक्षा, अपरनाम कुमतिमत कौशिक सहस्रकिरणनामक ग्रंथों में है. इससे भी सिद्ध होता है कि, जैनमत अतीव प्राचीन है. इत्यलं विद्वज्जनपर्षत्सु ॥
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तत्त्वनिर्णयप्रासादग्रंथे
जैनमतप्राचीनतावर्णनो नाम द्वात्रिंशः स्तम्भः॥३२॥
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