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पञ्चदशस्तम्भः। दयः। ततः शांतिः पुष्टिः तुष्टिर्वृदिर्ऋद्धिः कांतिः सनातनी अर्ह ॐ॥" इस वेदमंत्रको आठवार पढता हुआ, गर्भवंतीको अभिषेचन करे। तदपीछे गर्भवंती आसनसें ऊठके सर्वजातिके आठ २ फल, वर्णरूप्यमयी मुद्रा आठ, प्रणाम (नमस्कार) पूर्वक जिनप्रतिमाके आगे ढोवे.। तदपीछे गुरुके चरणोंको नमस्कार करके, दो वस्त्र, सोनेरूपेकी आठ मुद्रा, और तंबोलसहित आठ क्रमुक गुरुको देवे. । तदपीछे धर्मागार (पोषधशाला) में जाकर साधुयोंको वंदना नमस्कार करे, और साधुयोंको यथाशक्तिसें शुद्ध अन्न वस्त्र पात्र देवे.। कुलवृद्धोंको नमस्कार करे. ॥ इति पुंसवनसंस्कारविधिः ॥ तदपीछे खकुलाचारकरके कुलदेवतादिपूजन जानना.॥
पंचामृत १, स्नात्रवस्तु २, स्त्रीके नवीन वस्त्र ३, नवीन वस्त्रयुगल ४, स्वर्णकी आठ मुद्रा ५, रूपेकी आठ मुद्रा ६, सोनेकी ८ और रूपेकी ८ एवं षोडश (१६) मुद्रा और ७, फलकी जाति ८, कुशा९, तांबूल १०, सुगंध पदार्थ ११, पुष्प १२, नैवेद्य १३, सधवा स्त्रीयां १४, गीतमंगल १५, इतनी वस्तु पुंसवनसंस्कारमें चाहिये. ॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकृताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धपुंसवनसंस्कारकीर्तननामद्वितीयोदयस्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसुरिकृतो बालाववोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च समाप्तोयं चतुदेशस्तम्भः ॥२॥
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानन्दसूरिविरचिते तत्वनिर्णयप्रासादग्रन्थे द्वितीयपुंसवनसंस्कारवर्णनो नाम चतुर्दशस्तम्भः ॥ १४ ॥
॥अथपञ्चदशस्तम्भारम्भः॥ अथ पंचदश स्तंभमें जन्मसंस्कारनामा तृतीय संस्कारका वर्णन करते हैं ॥ .. जन्मसमय हुए, गुरु, ज्योतिषिकसहित, सूतिकागृहके निकट गृहमें एकांतस्थानमें जहां रौला न सुनाइ देवे, स्त्री, बाल, पशु, जहां न आवे,
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