________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendral
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
एकविंशस्तम्भः ।
३४५
T
पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य करके मंडली पट्टकी पूजा करे. मंडलीपट्टोपरि वर्णमुद्रा १०, रूप्यमुद्रा १०, क्रमुक १०८, नालिकेर २९, वस्त २९ स्थापन करे । तदपीछे पुत्रसहित माता तीन प्रदक्षिणा करके यतिगुरुको नमस्कार करे. । नव सोनेरूपेकी मुद्रा करके गुरुके नवांगकी पूजा करे. । निरुंछना और आरात्रिका ( आरती ) करके क्षमाश्रमणपूर्वक हाथ जोडके, " वासर केवंकरेह " ऐसा पुत्रकी माता कहे. तव यतिगुरु वासक्षेपको, ॐकार होकार श्रीँकार सन्निवेशकरके कामधेनुमुद्राकरके, वर्द्धमान विद्याकरके जपके, मातापुत्र दोनोंके शिरपर क्षेप करे. तहां भी तिनके शिरमें ॐ ह्रीँ श्रीँ अक्षरोंका सन्निवेश करे। तदपीछे बालकका अक्षतसहित चंदनकरके तिलक करके, कुलवृद्धाके अनुवादकरके, नाम स्थापन करे । तदपीछे तिसही युक्तिकरके सर्व अपने घरको आवे । यतिगुरुयोंको शुद्ध आहार वस्त्र पात्रका दान देवे । और गृहस्थगुरुको वस्त्र अलंकार स्वर्णदान देवे. ॥ नांदी, मंगलगीत, ज्योतिषिकसहित गुरु, प्रभूत फल, और मुद्रा, विविधप्रकारके वस्त्र, वास, चंदन, दूर्वा, नालिकेर, धन, इतनी वस्तु नामसंस्कारकार्य में चाहिये. ॥ इत्याचार्यश्रीवर्द्धमानसूरिकताचारदिनकरस्य गृहिधर्मप्रतिबद्धनामकरणसंस्कारकीर्त्तननामाष्टमोदय
स्याचार्यश्रीमद्विजयानंद सूरिकृतो बालावबोधस्समाप्तस्तत्समाप्तौ च सभासोयं विंशस्तम्भः ॥ ८ ॥
इत्याचार्यश्रीमद्विजयानंदसूरिविरचिते तवनिर्णयप्रासादग्रंथेऽष्ट नामकरणसंस्कारवर्णनो नाम विंशस्तम्भः ॥ २० ॥
॥ अथैकविंशस्तस्म्भारम्भः ॥
अथ २१ मे स्तंभमें अन्नप्राशनसंस्कारविधि लिखते हैं. ॥ रेवती, श्रवण, हस्त, मृगशीर्ष, पुनर्वसु, अनुराधा, अश्विनी, चित्रा, रोहिणी, उत्तरात्रय, धनिष्ठा, पुष्य, इन निर्दोष नक्षत्रोंमें और रवि, चंद्र, बुध, शुक्र, गुरु वारों में पुरुषोंको नवीन अन्नप्राशन ( खाना ) श्रेष्ठ है । और बालकों को
**
For Private And Personal