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तत्वनिर्णयप्रासाद चाहता था कि जैनतत्त्वादर्श वो अज्ञानतिमिरभास्करमें जैनदेव प्रशंसा होनी चाहेती थी। एकवार आपको मिलनेबाद अपना सिद्धांतका निश्चय फिर करना बने तो देखी जायगी ॥” .
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ENT मालाबंध काव्य॥
-:मुनि आत्मारामजीकी स्तुतिका
वर्णन है. ॥ मालाबंध श्लोकोयथा ॥ योगाभोगानुगामी द्विजभजनजनिः शारदारक्तिरक्तो । दिग्जेता जेतृजेता मतिनुतिगतिभिः पूजितोजिष्णुजिहैः ॥ जीयादायादयात्रीखलबलदलनो लोललीलस्वलज्जः। केदारोदास्यदारी विमलमधुमदोदामधामप्रमत्तः॥१॥
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इस श्लोकके ५१ अर्थ है.
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यह लेख उनका एक कागजके टुकडे में अलग था ॥ यह सर्व लेख पूर्वोक्त महात्माका है ॥ अब विचार करना चाहिये कि, इस कालमें
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