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तत्त्वनिर्णयप्रासादऐसें तीनवार पढावना. । मस्तकोपरि वासक्षेप करना, अक्षतवासांका अभिमंत्रणा, और संघके हाथमें वासक्षेप देना, यहां नहीं है. परंतु प्रदक्षिणा तीन, करवावनी.। इतिषाण्मासिक सम्यक्त्वारोपणविधिः ॥
इसीतरें सम्यक्त्वका, और द्वादश व्रतोंका भी इसही दंडकसें तिस २ अभिलापसें मास, पट् (६) मास, वा वर्ष पर्यंत, सम्यक्त्व व्रतोंका उच्चारण करना. । नवरं सम्यक्त्वका सम्यक्त्वदंडसें उच्चार करना. नवरं इतना विशेष है कि, सम्यक्त्वकी अवधिमें जावज्जीवाए' यह पाठ न कहना. किंतु, ' मासं छम्मासं परिसं' इत्यादि कहना. शेष व्रतोंमें भी जावजीवाएके स्थानमें 'मासं छम्मासं वरिसं ' इत्यादि कहना.॥ __ अथ प्रतिमोहनविधिः ॥ यावजीवतांइ नियम स्थिरीकरण प्रतिज्ञा जो है, तिसको प्रतिमा कहते हैं. तिनमें कालादिमें नियमव्यवच्छेद नही है.। ते प्रतिमा एकादश ( ११) गृहस्थोंकी हैं। तद्यथा ॥ "॥दसण १, वय २, सामाइय ३, पोसह ४, पडिमाय ५, बंभ ६, अचित्ते ७॥ आरंभ ८, पेस ९, उद्दिष्ट्वज्जए १०, समणभूए य ११, ॥१॥"
अर्थः-तहां जिस प्रतिमामें मासतांइ श्रावक निःशंकितादि सम्यग् दर्शनवाला होवे, सा प्रथमदर्शनप्रतिमा १. व्रतधारी द्वितीया २. कृतसामायिक तृतीया ३. अष्टमी चतुर्दश्यादिमें चतुर्विध पौषध करना, चतुर्थी ४. पौषधकालमें, रात्रिकी आदि प्रतिमा, अंगीकार करनी, अस्नान, प्रासुकभोजी, दिनमें ब्रह्मचारी, रात्रिमें परिमाण करे, और कृतपौषध तो, रात्रिमें भी ब्रह्मचारी, इति पंचमी ५. सदा ब्रह्मचारी षष्ठी ६. सच्चित्ताहारवर्जक सप्तमी ७. आप आरंभ नही करना, अष्टमी ८. नोकरोंसें आरंभ नही करावना, नवमी ९. उद्दिष्टकृताहारवर्जक, झुरमुंडित, शिखासहित, वा निराधारीकृतधनका, पुत्रादिकोंको बतलानेवाला, इतिदशमी १०.
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