________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
द्वादशस्तम्भः। जय ऋषि चले गये, लब देवतालोग यज्ञको प्रात होते भये. यह भी हमने सुना है कि, राजा प्रियन्नत, उत्तानपाद, ध्रुव, मेधातिथि, वसु, सुधामा, विरजा, शंखपाद, राजस्, प्राचीनबर्हि और हविर्धान, इत्यादि राजा, और अन्य भी अनेक राजा तपकरकेही स्वर्गको प्राप्त होते भये । जो राजऋषि महात्मा भये हैं, उनकी कीर्ति आजतक पृथिवीपर स्थित हो रही है, इसीसें अनेक कारणोंकरके यज्ञोंसे तपकोंही अधिक कहा है। १). इसीतपके प्रभावसे ब्रह्माजीने भी स्टाष्टिकी रचना करी है, इसी कारण यज्ञसे अधिक तप है; सब पदार्थों का मूल तप है. । इसीरीतिसें स्वायंभु मुनिके अंतर में यज्ञ प्रवृत्त हुए हैं; तभीसें ले कर यह यज्ञ सब युगोंमें प्रवृत्त हो रहा है. ॥ ४२ ॥ इतिमत्स्यपुराणे १४२ अध्यायः॥ ___ इस पूर्वोक्त लेखसें भी यही सिद्ध है कि, जो वेदोंका स्थापक है, सोही नास्तिक है; अधोगति जानेसें, वसुराजावत् ; नतु निंदक, ऊर्ध्व खर्गगति जानेसें, पूर्वोक्त महर्षियोंवत् । तथा जैनी लोक जो मानते हैं कि, प्रायः हिंसक यज्ञ वसुराजाके समय में सुरु हुए हैं (२), तिसको भी यह पूर्वोक्त लेख सिद्ध करे है. अपरं च स्वायंभु मुनिके अंतरमें इन हिंसक यज्ञोंकी प्रवृत्ति महर्षियोंका कहना न मान कर इंद्रने अभिमानके वश हो कर करी है, तब तो सिद्ध हुआ कि, प्रथम हिंसक यज्ञ नहीं होते थे, और हिंसक यज्ञके न होनेसें हिंसक यज्ञोंके प्रतिपादक वेदादिशास्त्र, जो कि सांप्रति विद्यमान है, और जिनमें हिंसक यज्ञोंका मेघ वर्षाया है, तिनोंका अभाव सिद्ध हुआ; तब तो सांप्रति कालके विद्यमान वेदादि शास्त्र अनादि नही, किंतु बनावटी सिद्ध हुए.। याद कहो कि, प्राचीन वेद नष्ट हो गये, और यह हिंसक श्रुतियों बनाके एकत्र करके वेदकेही नामसें पुस्तक प्रसिद्ध हुआ, यह तो हम मानतेही हैं, तथा हमको बडा दुःख होता है कि वसुराजा 'यज्ञके योग्य उत्तम पशुओंकरके यज्ञ
(१) इस कथनसें ' स तपोऽतप्यत् ' इत्यादि स्थानपर भाष्यकारने आलोचनात्मक तप करा लिग्वा है, सो असत्य भासन होता है.
(२) देवा जैतन्वादर्शका एकादश (११) परिच्छेद.
For Private And Personal