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तत्त्वनिर्णयप्रासाद
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'यज्ञं यज्ञके साधनभूत' तम् ' तिस पुरुषकों पशुत्वभावनाकरके यूपमें बांधेहुएको 'बर्हिषि ' मानस यज्ञमें 'प्रौक्षन्' प्रोक्षण करते भये, कैसे पुरुषकों ? सोही कहे हैं. 'अग्रतः ' सर्वसृष्टिके पहिले 'पुरुषम् जातम्' पुरुषपणे उत्पन्न भयेकों ' तेन ' तिस पुरुषरूप पशुकरके ' देवा: ' देवते 'अयजन्त यजन करते भये, मानस यज्ञ निष्पन्न करते भये इत्यर्थः । कौन वे देवते ? सोही कहे हैं. 'साध्याः' सृष्टिके साधनयोग्य प्रजापतिप्रमुख 'ऋषयश्च' और तिनके अनुकूल ऋषि मंत्रोंके देखनेवाले जे हैं, ते सर्व यजन करते भये इत्यर्थः ॥ ७ ॥
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'सर्वहुतः' सर्वात्मक पुरुष जिस यज्ञमें आहवन करीए, सो यह सर्वहुतः, तैसें ' तस्मात् ' पूर्वोक्त 'यज्ञात्' मानसयज्ञसें' पृषदाज्यम् ' दधिमिश्रितघृतकों 'संभृतम्' संपादन करा, दधि और घृत यह आदिभोग्यजात सर्वसंपादन करा इत्यर्थः । तथा ' वायव्यान् ' वायुदेवसंबंधी लोकमें प्रसिद्ध 'आरण्यान् पशून्' आरण्य पशुयोंकों ' चक्रे ' उत्पन्न करता भया; आरण्यहरिणादिक । तथा ' ये च ग्राम्याः' गौ अश्वादि तिनकोंभी उत्पन्न करता भया ॥ ८ ॥ ' सर्वहुतस्तस्मात् ' पूर्वोक्त ' यज्ञात् ' यज्ञसे ' ऋचः सामानि जज्ञिरे ' ऋच साम उत्पन्न भए तस्मात् ' ' तिस यज्ञसेंही ' छंदांसि ' गायत्रीआदि ' जज्ञिरे ' उत्पन्न भए ' तस्मात् ' तिस यज्ञसें 'यजुरप्यजायत' यजुर्वेदभी होता भया. ॥ ९ ॥
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तस्मात् ' ' तिस पूर्वोक्त यज्ञसें 'अश्वा अजायन्त' घोडे उत्पन्न भए, तथा ' ये के च ' जे केइ अश्वसे व्यतिरिक्त गर्दभ और खच्चरां ' उभयादतः उर्ध्व अधोभाग दोनों दंतयुक्त होते हैं जिनके ते भी तिसयज्ञसेंही उत्पन्न हुए हैं, तथा ' तस्मात् ' तिस यज्ञसें' गावश्च जज्ञिरे ' गौयां उत्पन्न हुई हैं, किंच ' तस्मात् ' तिसयज्ञसें 'अजा: ' बकरीयां और ' अवय:' भेडें भी ' जाताः ' उत्पन्न भई . ॥ १० ॥
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प्रश्नोत्तररूपकरके ब्राह्मणादि सृष्टि कहनेकों ब्रह्मवादियोंके प्रश्न कहते हैं । प्रजापति प्राणरूप देवते 'यत्' यदा' पुरुषं' विरारूप पुरुषकों 'व्यदधुः' रचते भए, अर्थात् संकल्पकरके उत्पन्न करते भए, तब 'कतिधा' कितने प्रकारोंकरके 'व्यकल्पयन् ' विविधरूप कल्पना करते भए ? 'अस्य'