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तत्त्वनिर्णयप्रासादतुझको देके 'अहं कः' में कैसा होऊ ? ऐसा कहता हुआ, तब इंद्रने जबाब दिया कि, जो तूं यह कहता है कि, 'अहं कः स्यामिति' मैं क्या होऊं? तदेव सोही तूं हो इस कारणसें 'कः इति' क शब्दसें प्रजापति कथन करीए हैं। “इंद्रो वै वृत्रं हत्वा सर्वा विजितीविजित्याब्रवीत्" इत्यादि ब्राह्मणका यहां अनुसंधान करना । जब सो किं शब्द तब सर्वनाम होनेसें स्मैभाव सिद्ध हैं. और जब यौगिक है, तब व्यत्यय जानना. कंप्रजापति (देवाय) देव-दानादिगुणयुक्त देवकों (हविषा) प्रजापतिसंबं. धी पशुके वपारूपेण-कालेजारूपकरके, अथवा एककपालात्मक पुरोडाशकरके (विधेम) वयमृत्विजः-- हम ऋत्विज 'परिचरेम' परिचरणकर्म करीए हैं.
[समीक्षा] पूर्वोक्त अर्थोंसे यह सायणाचार्यका अर्थ औरहीतरेंका है. अब वाचक वर्गको हम नम्रतापूर्वक कहते हैं कि, दोनों भाष्यकारोंके अर्थों में कितना बडा विसंवाद पडता है. तथा ऋग्वेदादि भाष्यभूमिकाके कर्त्ताने और भाष्यभूमिकेंदुके कोने कैसें २ अर्थ करे हैं, सो आपही विचार कीजीएं. जब वेदोंके अर्थोकाही निश्चय नहीं होता है तो, वेद सत्योपदेष्टाके कथन करे हुए हैं, वा अनादि है, वा ऋषियोंद्वारा जगत्में प्रवर्तन हुए हैं, इत्यादि कैसें माना जावे ? अब हम ज्यादा लिखना छोडकरके श्रुतियां, और संक्षेपमात्र उनोंकी समीक्षा, और परस्पर विरुद्धता मात्र लिखके अपनी नही बंद होती लेखनीको, जोरावरी बंद करनी चाहते हैं. क्योंक, वेदोंका बहोता फरोलना भस्मथन्नाग्नि उद्घाटनतुल्य है.
सुभूः स्वयम्भूः प्रथमोऽन्तर्महत्यर्णवे । दधे ह गर्भमृत्वियं यतो जातः प्रजापतिः॥
६३॥य।वा।सं। अ० २३। मं०६३॥ भाषार्थः--(सुभूः) सुंदर है भुवन जिसका सो कहावे सुभू और (स्वयंभूः) जो अपनी इच्छाहीसे शरीरको धारण कर शके सो कहावे स्वयंभू ऐसा जो परमात्मा सो (महत्यर्णवे) महान् जलसमूहमें (ऋत्वि
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