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दशमस्तम्भः।
२५९ मांगता है तो, ऋचा परमेश्वरकृत कैसे सिद्ध होवेंगी? और ऋषि तिन ऋचायोंके कैसे सिद्ध होवेंगे ? जेकर वेद अपौरुषेय है, तब तो किसीके भी रचे सिद्ध नही होवेंगे; जेकर कहोंगे ब्रह्माजीने प्रथम वेदका उच्चार करा, इसवास्ते ब्रह्माजीके रचे वेद हैं, तब तो, यह जो कथन वेदोंमें है कि, मानसयज्ञसे ऋगादिवेद उत्पन्न भए, तथा अग्नि वायु सूर्यसें तीन वेद ब्रह्माजीने बँचके काढे, इत्यादि मिथ्या सिद्ध होवेगा. इसवास्ते येह सर्व वेद ब्राह्मणोंकी स्वकपोलकल्पनासें रचे गए हैं, नतु ईश्वर प्रणित; परस्पर विरुद्ध, और युक्तिप्रमाणसें बाधित होनेसें.
तथा ऋग्वेदसंहिताष्टक ३. अध्याय ३, वर्ग २३, में लिखा है-अतीतकालमें विश्वामित्रका शिष्य सुदा नाम राजऋषि होता भया, सो किसी कारणसें वसिष्ठजीका द्वेषी होता भया, तब विश्वामित्र स्खशिष्यकी रक्षावास्ते इन ऋचायोंकरके शाप देता भया. येह जो शापरूप ऋचायों है, तिनकों वसिष्टके संप्रदायी नहीं सुनते हैं। इतिभाष्यकारः । वे ऋचायों येह हैं.--
तत्राद्या सूक्ते एकविंशी ॥ इन्द्रोतभिर्बहुलाभिनों अद्य यांच्छेष्टाभिर्मघवञ्छूर जिन्व । यो नो द्वेष्टयधरः सस्पदीष्ट यमु द्विष्मस्तमु प्राणो जहातु ॥२१॥
॥ अथद्वाविंशी॥ परशुं चिहि तपति शिंबलं चिद्वि वृश्चति । उखा चि दिन्द्र येषन्ती प्रयस्ता फेनमस्यति ॥ २२॥
॥अथत्रयोविंशी ॥ न सायकस्य चिकिते जनासो लोधं नयन्ति पशु मन्यमानाः। नावाजिनं वाजिना हासयन्ति न गर्दभं पुरो अश्वान्नयन्ति ॥२३॥
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